मेरी चीख पुकार सुनकर नयी माँ की चेतना जागी और वो फिर से भागती हुई मेरे पास आ गयी. वो मुझे पापा से छुड़ाने की कोशिश करने लगी, पर जब पापा ने मुझे नही छोड़ा तो उनने मुझे पकड़ कर ज़ोर से खिचा और मैं पापा की पकड़ से छूट गया.
मैं जाकर नयी माँ से लिपट गया और उन्हे बड़ी ज़ोर से पकड़ लिया. पापा ने दोबारा मुझे पकड़ने की कोशिश की मगर नयी माँ ने उनका हाथ गुस्से से झटक दिया और बोली "बस बहुत हो गया. इतने छोटे से बच्चे को कोई इतनी बेरहमी से मारता है क्या."
"लोग तो यही कहेगे ना कि सौतेली माँ ने आते ही अपना रंग दिखाना सुरू कर दिया. ये कोई नही देखेगा कि बाप ने बेटे को जानवरों की तरह पीटा है."
पापा का भी गुस्सा शांत नही हुआ था. वो बोले "इसे समझा दो. मेरे घर मे रहना है तो मेरे तरीके से रहे, नही तो इसके बोर्डिंग जाने का रास्ता खुला है." इतना कहकर पापा वापस ऑफीस चले गये.
पापा के जाने के बाद नयी माँ मुझे अपने से अलग करती हुई बोली "जाओ अपने कमरे मे जाकर आराम करो." ये कहकर वो सोफे पर अपना सर पकड़ कर बैठ गयी. उनके सर पर खून लगा हुआ था.
मैं रोते हुए अंदर कमरे मे गया और दवाई का बॉक्स लेकर आया और नयी माँ से बोला "छोटी माँ आपके सर से खून निकल रहा है. दवा लगा लीजिए.
ये पहला मौका था, जब मैने अपनी नयी माँ को छोटी मा कह कर पुकारा था. लेकिन उनके उपर मेरी इस बात का कोई असर नही पड़ा. वो अपना सर पकड़ कर बैठी रही और उनकी आँखों से आँसू बहते रहे.
शायद मेरी दूसरी शादी और दूसरे बच्चे की बात से उन्हे बहुत ज़्यादा दुख पहुचा था. इसलिए वो मुझसे गुस्से मे बोली "मुझे कोई दवाई नही लगाना. तुम अपने कमरे मे जाओ और मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो."
छोटी माँ की बात सुनकर मुझे ओर भी ज़्यादा रोना आ गया. मैं वहाँ एक पल ना रुक सका और सीधे अपने कमरे मे आकर तकिये मे अपना मूह छुपा कर रोने लगा. मैं रोते रोते ये सोचने लगा कि, कोई मुझसे प्यार नही करता. यही सब सोचते सोचते मेरा रोना और भी तेज होता चला गया.
इधर मैं रो रहा था और उधर छोटी माँ के सर मे चोट लगी थी. लेकिन उन्हे चोट से ज़्यादा दर्द मेरी वो बात पहुचा रही थी, जो मैने पापा से बोली थी. उनके माथे से खून बह रहा था और आँखों से आँसू बह रहे थे.
मगर उन्हे इस सब की ज़रा भी परवाह नही थी. उनने गुस्से मे दवा का वो बॉक्स जो मैं उनके पास रख कर आया था, उसे उठा कर फेक दिया और चंदा मौसी से बोली “मौसी आप ने देखा ना दोनो बाप बेटे कैसे लड़ रहे थे. क्या आपको भी पुन्नू की तरह यही लगता है कि, इस सब के पीछे मेरा कोई हाथ है.”
मौसी ने छोटी माँ का फेका दवा का बॉक्स उठाते हुए कहा “नही बहूरानी. आज जो कुछ भी हुआ है, उस मे पूरी ग़लती साहब जी की है. यदि पुन्नू बाबा स्कूल से भाग भी आए थे तो, उन्हे इतना गुस्सा और पुन्नू बाबा के साथ ये मार पीट नही करना चाहिए था. बल्कि प्यार से उनसे इसकी वजह पूछना और उनको समझाना चाहिए था”
ये कहते हुए चंदा मौसी ने दवा का बॉक्स छोटी माँ के पास रख दिया और कहा “बहूरानी ये दवा लगा लीजिए. खून अभी भी बह रहा है.”
छोटी मा बोली “मौसी आप मेरी फिकर मत कीजिए. आप पहले जाकर पुन्नू को देखिए. बेचारे को जानवरों की तरह पीटा गया है. वो लंच मे स्कूल से निकला था, पता नही, उसने कुछ खाया भी है की नही. आप जाकर उसे कुछ खिला दीजिए.”
छोटी माँ की बात सुनकर मौसी ने किचन से खाना लिया और मेरे कमरे मे आने लगी. मौसी के पीछे पीछे छोटी माँ भी आई, पर वो मुझे अभी भी रोता देख कर मेरे कमरे के बाहर ही रुक गयी.
मौसी मेरे पास आकर बैठ गयी और मेरे सर को अपनी गोद मे रखते हुए बोली “चुप हो जाओ पुन्नू बाबा. नही तो आपकी तबीयत खराब हो जाएगी.”
मौसी के प्यार से हाथ फेरने से मुझे थोड़ा सुकून मिला. मेरा रोना कुछ कम हुआ तो, मौसी ने कहा “पुन्नू बाबा अब खाना खा लीजिए.”
मैं बोला “मौसी मैं खाना खा चुका हूँ.”
मौसी बोली “झूठ मत बोलो बाबा. मैं अच्छे से जानती हूँ कि, आपने खाना नही खाया. अब गुस्सा शांत करो और चुपचाप खाना खा लो.”
मैं बोला “मौसी आपकी कसम मैने खाना खा लिया है.”
मौसी की गोद मे मैने होश संभाला था. वो अच्छे से जानती थी कि, मैं झूठी कसम नही ख़ाता. इसलिए फिर उन ने मुझसे खाने के लिए ज़िद नही की और प्यार से मेरे सर पर हाथ फेरने लगी.
मैने मौसी के पास बैठते हुए पूछा “मौसी छोटी माँ ने दवा लगा ली.”
मेरे मूह से छोटी मा सुनकर, मौसी के चेहरे पर मुस्कान आ गयी. वो फिर प्यार से मेरे सर पर हाथ फेरते हुए बोली “नही बाबा. वो दवा नही लगा रही है.”
मौसी की बात सुनकर मैं फिर रोने लगा. मुझे रोते देख कर मौसी बोली “क्या हुआ बाबा. अब क्यो रो रहे हो.”
मैने रोते हुए कहा “मौसी वो दूसरी शादी और दूसरे बच्चे वाली बात मैने छोटी माँ को नही बोली थी. वो बात ना जाने कैसे मेरे मूह से निकल गयी और छोटी माँ मुझसे नाराज़ हो गयी. इसलिए वो दवा नही लगा रही. उनको खून बह रहा है. मौसी आप उनको जाकर दवा लगा दीजिए.”
मौसी बोली “मैने उनसे बोला था बाबा, पर वो नही मान रही है.”
मौसी की बात सुनकर, मेरा रोना और भी तेज हो गया. मैने रोते हुए मौसी से कहा “मौसी आपको मेरी कसम, चाहे जैसे भी आप उनको दवा लगा दीजिए. नही तो उनका सारा खून बह जाएगा और मेरी मम्मी की तरह वो भी मर जाएगी.”
इतना कह कर मैने आँसुओं की झड़ी लगा दी और मौसी मुझे चुप कराने की कोशिस करने लगी. ये देख कर छोटी माँ वापस सोफे पर आकर बैठ गयी. मैने रोते रोते मौसी को छोटी माँ को दवा लगाने के लिए भेज दिया.
मौसी छोटी माँ के पास आई तो छोटी माँ ने पुछा “पुन्नू ने खाना खा लिया.”
मौसी बोली “नही वो कह रहे है कि, वो खाना खा चुके है.”
छोटी माँ बोली “मौसी उसने कहा कि, मैने खाना खा लिया और आपने उसकी बात का यकीन भी कर लिया. वो गुस्से मे झूठ भी तो बोल सकता है.”
मौसी बोली “नही बहूरानी, मैं पुन्नू बाबा को अच्छे से जानती हूँ. वो कसम खाकर कभी झूठ नही बोलते.”
चंदा मौसी की बात सुनकर, छोटी माँ कुछ सोच मे पड़ गयी. तभी उनकी नज़र मेरे बॅग पर पड़ती है और वो कहती है
छोटी माँ बोली “मौसी ज़रा उसका बॅग उठाइए. अभी पता चल जाएगा कि उसने खाना खाया है कि नही.”
मौसी बॅग उठा कर देती है और छोटी माँ टिफिन निकाल कर देखती है. जो भरा हुआ रहता है. वो टिफिन मौसी को दिखाने लगती है. तभी उनकी नज़र मेरे बॅग मे रखे बॉक्स और दो लिफाफो पर पड़ती है.
छोटी माँ उन दोनो चीज़ों को बाहर निकालती है. सबसे पहले वो बॉक्स को खोलती है तो, उसमे चूड़ीयाँ देख कर दोनो चौक जाती है.
मौसी पूछती है “ये किसकी चूड़ीयाँ है बहूरानी और ये बाबा के बॅग मे क्यो है.”
छोटी माँ कहती है “लगता है ये पुन्नू ने किसी के लिए खरीदी है. इन लिफाफो मे शायद कोई ग्रीटिंग्स हो.”
ये कहकर छोटी माँ पहले सॉरी वाला लिफ़ाफ़ा खोलती है और उसमे नाम पड़ती है. फिर वो दूसरा वाला भी लिफ़ाफ़ा खोलती है तो उसमे भी उनका ही नाम होता है. जिसे देख कर फिर से उनकी आँखो मे आँसू आ जाते है.
मौसी पूछती है “क्या हुआ बहूरानी. इसमे ऐसा क्या लिखा है. जिसको पढ़कर आप रोने लगी और ये सब किसके लिए है.”
छोटी मा बोली “मौसी ये सब मेरे लिए है. इस ग्रीटिंग मे लिखा है कि, छोटी माँ को पुन्नू की तरफ से कल की ग़लती के लिए सॉरी, ऐसा फिर नही होगा और इस दूसरी ग्रीटिंग मे लिखा है कि, छोटी माँ को पुन्नू की तरफ से जनमदिन की बहुत बहुत बहुत बधाई.”
छोटी माँ की बात सुनकर, मौसी की आँखों मे भी आँसू आ जाते है और वो छोटी माँ से कहती है “बहूरानी पुन्नू बाबा तो कल के लिए आपको सॉरी बोलने और जनमदिन की बधाई देने आ रहा था. लेकिन उस बेचारे को इस सब के बाद मिला क्या, जनवरो की तरह पिटाई.”
ये बोल कर मौसी अपने आँसू बहने से नही रोक सकी और फफक कर रो पड़ी. लेकिन छोटी माँ अपने आँसू पोछते हुए बोली “आप चिंता मत कीजिए मौसी. आज इस घर मे जो कुछ भी हुआ है. वो अब दोबारा नही होगा.”
तब मौसी बोली “बहूरानी दवा ना लगा कर, उस बिन माँ के बच्चे को दुख तो आप भी दे रही है.”
मौसी की बात सुनकर, छोटी माँ ने उनकी तरफ देखा और फिर मौसी से बोली “मौसी वो बिन माँ का नही है. मैं उसकी माँ हूँ और अब कोई उसे दुख नही दे सकेगा. आप दवा और ये सारा समान लेकर पुन्नू के कमरे मे आ जाइए.”
ये कह कर छोटी माँ मेरे कमरे की तरफ बढ़ चली और चंदा मौसी वो सारा समान मेरे कमरे मे लाने के लिए समेटने लगी.
मेरे कमरे मे आकर, छोटी माँ मेरे पास आकर बैठ गयी. छोटी माँ को आया देख कर मैं भी उठकर बैठ गया. मैं खुश भी था और मन ही मन डर भी रहा था. तभी चंदा मौसी भी मेरा बॅग और बाकी का समान लेकर मेरे कमरे मे आ गयी.
छोटी माँ ने टिफिन मुझे दिखाते हुए कहा “ये क्या है.? तुमने खाना नही खाया और चंदा मौसी से कहते हो खाना खा लिया.”
मैं बोला “मैं मेहुल के यहाँ से खाना खा कर आया हूँ छोटी माँ.”
छोटी माँ गुस्से मे बोली “क्या हम लोग तुम्हे खाना नही देते, जो तुम अपने दोस्तो के घर खाना खाने जाते हो. आज से तुम्हारा खाना पीना सब बंद. मौसी आज से इसे कोई खाना नही देगा.”
छोटी माँ की बात सुनकर मैं डर गया और मेरा चेहरा रुआंसा हो गया. मेरी ऐसी हालत देख कर मौसी हँसने लगी. मुझे कुछ समझ मे नही आया पर मौसी की हँसी देखकर छोटी माँ बोली “क्या मौसी आप ज़रा देर चुप नही रह सकती थी.”
फिर छोटी माँ ने मुझे अपने गले से लगा लिया. छोटी माँ के सीने से लगकर, मुझे बहुत सुकून मिला. मैं बहुत देर उनके गले से लगा रहा. फिर छोटी माँ मुझे ग्रीटिंग और चूड़िया दिखाकर बोली “ये सब तुझे लाने को किसने कहा था और तेरे पास इतने पैसे कहाँ से आए.”
मैं बोला “किसी ने नही छोटी माँ. मुझे चूड़ियों की दुकान दिखी तो, लगा कि ये चूड़ियाँ आप पर अच्छी लगेगी, इसीलिए मैने ले ली और जब बाहर निकला तो ग्रीटिंग की दुकान भी दिखाई दी. मैने कल आपको बर्तडे विश भी नही किया था और पार्टी मे ना आकर आपको दुख भी पहुचाया था, इसलिए ये कार्ड भी ले लिए. ये सब मैने अपने जेब खर्च के पैसे से खरीदे है.”
ये बोल कर मैने मौसी से दवा का बॉक्स लिया और उसमे से डेटोल निकाल कर छोटी माँ के सर मे लगे जख्म मे लगाने के बाद उसमे दवा लगाई और फिर छोटी माँ को देखने लगा. उनने हंसते हुए मुझे अपने सीने से लगा लिया. अब हम सब खुश थे.
रात को पापा घर आए तो मैं खाना खाकर अपने कमरे मे पढ़ाई कर रहा था. छोटी माँ ने उन्हे दिन मे हुई सारी बाते बताई. इससे पापा को अपनी ग़लती का अहसास हुआ और वो मेरे कमरे मे आए. उनने मुझसे बड़े प्यार से बात की और मुझे सॉरी भी बोला, मगर ना जाने क्यो अब पापा मुझे अच्छे नही लग रहे थे.
मैने उनकी हर बात का जबाब हाँ या ना मे दिया. क्योकि मैं उनसे कोई बात करना नही चाहता था और चाहता था कि, वो जल्द से जल्द मेरे पास से चले जाए. कुछ देर मेरे पास रुकने के बाद पापा चले गये और मैं फिर से पढ़ने लगा.
कुछ देर बाद छोटी माँ मेरे कमरे मे आई और मेरे पास बैठते हुए कहने लगी.
छोटी माँ बोली “तुमने अपने पापा से अच्छे से बात क्यो नही की. क्या तुम उन से दिन की बात को लेकर अभी तक नाराज़ हो.”
मैं बोला “मैं उन से नाराज़ नही हूँ छोटी माँ.”
छोटी माँ बोली “तो फिर उनसे अच्छे से बात क्यो नही की.”
मैं बोला “मेरा मन ही नही किया बात करने का.”
छोटी माँ बोली “उन्हो ने दिन मे तुम्हारी पिटाई की थी. क्या इसलिए तुम्हारा मन नही किया.”
मैं बोला “वो बात तो मैं कब की भूल चुका हूँ. मुझे इसके लिए उनसे कोई शिकायत नही है.”
छोटी माँ बोली “क्या अपनी छोटी माँ को भी नही बताओगे, कि तुम्हारा पापा से बात करने को मन क्यो नही किया.”
मैं थोड़ी देर सर झुकाए बैठा रहा फिर बोला “पापा बहुत गंदे है, इसलिए मेरा मन नही किया उनसे बात करने का.”
छोटी माँ बोली “ऐसा नही कहते. वो तुम्हारे पापा है. उन्हे तुम्हारी भलाई की चिंता है और इसलिए उन्हे गुस्सा आ गया और उन ने तुम्हे मारा था.”
मैं बोला “मैने कब कहा कि उन्हो ने मुझे ग़लत मारा. मैं तो उनके मारने वाली बात को दिन को ही भुला चुका हूँ.”
छोटी माँ बोली “तो फिर तुम क्यो कहते हो कि, तुम्हारे पापा गंदे है.”
मैं कुछ नही बोला सर झुकाए चुपचाप बैठा रहा.
तब छोटी माँ बोली “सच सच बताओ, तुमको मेरी कसम है.”
मैं थोड़ी देर चुप रहा फिर बोला “क्योकि उन्होने आपको इतनी बुरी तरह से धकेला की आपको खून निकल आया और वो इसे देखते हुए भी ऑफीस चले गये. उनको आपकी ज़रा भी चिंता नही हुई. कही आपका सारा खून बह जाता तो, मेरी मम्मी की तरह आप भी मर जाती ना.”
ये कहकर मैं रोने लगा और छोटी माँ ने मुझे अपने सीने से चिपका लिया.
मैने थोड़ी देर बाद छ्होटी मा की तरफ देखा तो, उनकी आँखो मे भी आँसू थे. मई तुरंत उठा और उनकी आँखो से आनु को पोछने लगा तो, उन ने मुझे फिर अपने सीने से लगा लिया. उनके गले लगने से मुझे इतना सुकून मिला कि मैं उनसे गले लगे लगे ही सो गया.
सुबह जब मेरी नींद खुली तो मेरी खुशी का कोई ठिकाना नही रहा. क्योकि छोटी माँ मेरे पास ही सो रही थी. मैं फिर उनके सीने से चिपक गया. मगर फिर मेरी नज़र उनके जख्म पर पड़ी तो, मेरा मन फिर पापा को लेकर कड़वाहट से भर गया. लेकिन छोटी माँ का चेहरा देखकर सब कुछ भूल गया और छोटी माँ से लिपट कर आँख बंद कर के लेट गया.
थोड़ी देर बाद छोटी माँ की नींद खुलती है. वो मेरे माथे को चूमती है और मुझे नींद से जगाती है. मैं आँख खोलता हूँ और फिर छोटी माँ के गले लग जाता हूँ.
छोटी माँ कहती है “चलो अब बहुत लाड हो गया. जल्दी से फ्रेश हो जाओ, नही तो स्कूल को देर हो जाएगी.”
मैं खुशी खुशी फ्रेश होने चला जाता हूँ. फ्रेश होने के बाद छोटी माँ मुझे नाश्ता कराती है और फिर मैं स्कूल चला जाता हूँ.
स्कूल मे मैं सारी बात मेहुल को बताता हूँ. वो भी मेरी बात सुनकर खुश हो जाता है. इस तरह मेरी जिंदगी एक नया मोड़ ले लेती है और अब मैं अपनी छोटी माँ के साथ खुशी खुशी रहने लगता हूँ. मगर कही ना कही मेरे दिल मे पापा के लिए कड़वाहट भी भरी हुई थी.
यूँ ही दिन बीतते बीतते, एक साल बीत गया और फिर मेरी छोटी बहन अमिता का जनम हुआ. अमिता के आने से मुझे एक जीटा जागता खिलौना मिल गया. मैं सारे समय उसके आस पास ही मंढराता रहता.
लेकिन वो अभी बहुत छोटी थी, इसलिए कोई मुझे उसको अपनी गोद मे लेने नही देता था. फिर भी स्कूल से आने के बाद मैं सारे समय अमिता के पास ही रहता और बहाने बहाने से उसे छुता रहता. छोटी माँ मेरी इस हरकत को देख मुस्कुरा देती और कुछ देर के लिए अमिता को मेरी गोद मे देती.
कभी कभी छोटी माँ अमिता को दूध पिला रही होती तो, मैं भी दूध पीने की ज़िद करने लगता. तब वो मुझसे कहती “पुन्नू बेटा, तुम जैसे भूख लगने पर खाना खाते हो, ऐसे ही ये अमिता का खाना है. अब यदि तुम इसे खा लोगे तो, अमिता भूखी रह जाएगी.”
कभी कभी तो मैं उनकी बात को समझ जाता और जब कभी नही समझता तो, वो अपने एक स्तन से अमिता को और दूसरे से स्तन से मुझे लगाकर साथ साथ दूध पिलाती. शायद उन्हे भी मेरा ऐसा करना अच्छा लगता था और वो बस मुझे देख कर मुस्कुराती रहती थी.
ऐसे ही बहुत से पल आए, जिन्हो ने मेरे मन से इस बात को हमेशा हमेशा के लिए निकाल दिया कि, छोटी माँ मेरी सौतेली माँ है. उन्हो ने भी मुझे इस बात का कभी अहसास नही होने दिया.
दिन बीतते जा रहे थे. मेरी दुनिया स्कूल मे मेहुल और घर मे मेरी छोटी माँ और मेरी छोटी बहन अमिता के बीच ही सिमट कर रह गयी थी. मगर मैं इसी सब मे बहुत खुश था.
यूँ ही 3 साल बीत गये और फिर मेरी दूसरी छोटी बहन नामिता का जनम भी हो गया. अब मेरी खुशी दुगनी हो चुकी थी. नामिता के जनम होने तक मैं ज़्यादा तो नही मगर थोड़ा बहुत समझदार ज़रूर हो चुका था और अपनी दोनो बहनों का बहुत ख़याल रखता था.
नामिता तो अभी छोटी थी. वो सारे समय या तो झूले मे या फिर छोटी माँ की गोद मे ही रहती थी. मगर अमिता अब थोड़ी बहुत चलने लगी थी. इसलिए मैं उसकी उंगली पकड़ कर उसे सारे घर मे घुमाया करता था. जिसे देख कर छोटी माँ मुस्कुराती रहती थी.
एक दिन मैने छोटी माँ से कहा “छोटी माँ हमारे घर मे बहुत समय से कोई पार्टी नही हुई. मैं चाहता हूँ कि नामिता के पहले बर्तडे पर हम पार्टी करे और अपने सारे रिश्तेदारो को बुलाए.”
छोटी माँ बोली “पार्टी तुझे पसंद नही है, इसलिए तो मैने अमिता के बर्तडे तक की कोई पार्टी नही की थी. आज अचानक तुझे ये पार्टी करने का ख़याल कैसे आ गया.”
मैं बोला “आप ठीक कहती हो छोटी माँ, मगर कल जब ये बड़ी होगी और इन्हे पता चलेगा कि इनके जनमदिन मे कभी पार्टी सिर्फ़ इसलिए नही दी गयी, क्योकि ये मुझे पसंद नही था. तब क्या मैं या आप इन्हे कोई जबाब दे पाएगे.”
छोटी माँ बोली “बात तो तुम्हारी ठीक है पर क्या तुम पार्टी मे शामिल होना पसंद करोगे.”
मैं बोला “क्यो नही छोटी माँ. मैं अपनी बहनो की खुशी के लिए कुछ भी कर सकता हूँ. फिर तो ये सिर्फ़ एक पार्टी मे शामिल होने की बात है. मैं पार्टी मे ज़रूर शामिल होउँगा.”
छोटी माँ बोली “तब हम नामिता के जनमदिन पर ज़रूर पार्टी देगे. नामिता के ही नही बल्कि अब हम अमिता के जनमदिन की भी पार्टी देगे. अब तो खुश.”
मैं बोला “जी छोटी माँ.”
फिर मैं अपनी छ्होटी बहनो के साथ खेलने लगा और छ्होटी माँ नामिता के जनमदिन की पार्टी देने की तैयारी मे लग गयी.
कुछ दिन बाद नामिता के जनमदिन की पार्टी हुई. पार्टी मे हमारे सभी रिश्तेदार आए थे. छ्होटी माँ के मयके से उनकी बड़ी बहन अनुराधा और उनके पति दिनेश के साथ उनका बेटा कमल और बेटी कीर्ति पार्टी मे आए थे. रिचा आंटी, मेहुल के पापा और मेहुल भी पार्टी मे आए थे.
मैं भी अपनी दोनो बहनो के साथ पार्टी मे शामिल हुआ और कॅक कटा गया. कॅक काटे जाने के बाद छ्होटी माँ ने मुझे मौसी और मौसा जी से मिलवाया. मगर मौसी जी मुझसे मिलकर कुछ खास खुश नज़र नही आई.
लेकिन मैने इस बात पर कोई विशेष ध्यान नही दिया और अमिता की उंगली पकड़ कर उसे सारे महमानो के बीच घूमता रहा. जिसे देख कर छ्होटी माँ और रिचा आंटी दोनो मुस्कुराती रही.
रिचा आंटी ने देखा कि अनुराधा मौसी मुझसे मिलकर खुश नज़र नही आ रही थी. इसलिए आंटी,मौसी के पास गयी और पूछा “क्या बात है अनु. तुझे पुन्नू से मिलकर खुशी नही हुई क्या.?”
मौसी बोली “नही ऐसी कोई बात नही.”
आंटी बोली “तो फिर क्या बात है. ऐसा मूह क्यो बना कर रखा है.”
मौसी बोली “मैं सोच रही थी कि, सुनीता की दोनो ही लड़कियाँ ही है. कोई लड़का नही है. लड़कियों की एक ना एक दिन शादी हो जाएगी. यदि कोई लड़का होता तो, वो कम से कम बुढ़ापे मे उसका ख़याल तो रखता.”
आंटी बोली “तू ऐसा क्यो सोचती. पुन्नू तो है ना. तूने देखा नही, वो अपनी छ्होटी माँ और बहनो को कितना प्यार करता है.”
मौसी बोली “लेकिन पुन्नू है तो, उसका सौतेला बेटा ही ना. अभी वो छ्होटा है और इस सगे सौतेले की बात को नही समझता. मगर एक ना एक दिन तो उसे बड़ा होना ही है और तब वो इस सगे सौतेले के भेद को भी अच्छी तरह से समझ जाएगा. क्या तब वो अपनी सौतेली माँ और बहनों से इस तरह प्यार कर पाएगा जैसे आज करता है.”
अभी आंटी कुछ बोलने वाली थी कि, तभी मौसा जी बोले “अनु तुम ठीक कहती हो कि, पुन्नू अभी बच्चा है. मगर तुम इस बात को क्यो भूलती हो कि, एक बच्चा वैसा ही बनता है, जैसे उसके माता पिता उसे संस्कार देते है. इसलिए बेहतर यही होगा कि, हम इस सगे सौतेले की बात को ज़्यादा तूल ना दे और ना ही इन बच्चों मे इस बात को लेकर कोई भेद आने दे.”
मौसी बोली “मैं तो बस वो ही बोल रही हूँ, जो आगे चलकर होना है.”
तभी छ्होटी माँ वहाँ आ जाती है. उन ने शायद अनुराधा मौसी की बातों को सुन लिया था. वो मौसी की बात के जबाब मे बोलती है.
छ्होटी माँ बोली “देखो दीदी. मुझे मालूम है कि, मैं उसकी सग़ी माँ नही हूँ और पुन्नू भी इस बात को जानता है. लेकिन अब हम सब एक परिवार है और हमारे बीच सगे सौतेले की कोई बात नही है.”
मौसी बोली “मैं आज की बात नही कर रही. मैं तो उस आने वाले कल की बात कर रही हूँ, जब तुम्हारा ये पुन्नू बड़ा हो जाएगा और शादी कर के अपनी दुल्हन लाएगा. तब इसे यही माँ बहन सौतेली नज़र आएगी.”
छ्होटी माँ बोली "दीदी शादी के बाद तो अपना सगा बेटा भी बदल जाता है. कमल तो आपका सगा बेटा है. क्या आप ये कह सकती है कि, शादी के बाद वो नही बदलेगा.”
छ्होटी माँ के मूह से अपने बेटे के बारे मे ऐसी बात सुनकर मौसी को अच्छा नही लगा.
मौसी बोली “तुम को आज भले ही मेरी बात बुरी लगे. मगर एक दिन मेरी बात ज़रूर सच होगी. तब तुझे मेरी कही बात का अहसास होगा.”
छ्होटी माँ बोली “दीदी ऐसा कभी नही होगा. पुन्नू मुझे और अपनी बहनों को बहुत प्यार करता है और मुझे विस्वास है कि आपकी कही बात कभी सच नही होगी. वो देखिए पुन्नू को कैसे अपनी बहन को सारी पार्टी मे घुमा रहा है. जबकि वो खुद पार्टी और भीड़ भाड़ से दूर रहता है. ये पार्टी भी उसने अपनी बहनों की खुशी के लिए रखवाई है. नही तो हम लोगों के मन मे तो, पार्टी रखने का कोई ख़याल ही नही था.”
छ्होटी माँ की बात सुनकर, उनके साथ साथ मौसी और आंटी भी मेरी तरफ देखने लगे. मैं अमिता को पूरी पार्टी मे घुमा रहा था और तरह तरह के नाटक कर उसे हंसा रहा था.
फिर पार्टी ख़तम होने के और महमानो के जाने के बाद सभी लोग घर मे बैठे थे. तभी आंटी मेरे पास आकर बोली “पुन्नू तेरी छ्होटी माँ अमिता और नामिता को लेकर तुम्हारी मौसी के साथ कुछ दिनो के लिए उनके घर जा रही है.”
मैं बोला “मैं भी छ्होटी माँ के साथ जाउन्गा.”
मौसी बोली “लेकिन पुन्नू मैं तुम्हे नही ले जा सकती. क्योकि तुम्हारे पापा ने तुम्हे ले जाने से मना किया है.”
मैं बोला “यदि मैं नही जाउन्गा तो, छ्होटी माँ को भी नही जाने डुगा.”
मेरी बात सुनकर सभी हँसने लगे और मुझे परेशान देख कर छ्होटी माँ बोली “मैं कही नही जा रही. तेरी मौसी और आंटी तुझे चिड़ा रही है.”
और फिर उन ने मुझ से कहा जाओ अंदर अमिता और नामिता सो रही है उनके पास जाकर बैठो मैं तुम्हारी मौसी और आंटी को बाहर तक छोड़ कर आती हूँ.
छ्होटी मा की बात सुनकर मैं अंदर चला गया और छ्होटी माँ मौसी और आंटी को छोड़ने बाहर चली गयी.
उस दिन के बाद से मेरे मौसी के परिवार से भी रिस्ते बनने लगे. खास कर मौसा जी मुझे बहुत पसंद आए थे. क्योकि वो मुझसे बड़े ही प्यार से और किसी दोस्त की तरह ही पेश आते थे.
उस समय मौसा जी 33 साल के और मौसी जी 30 साल की थी. कीर्ति मेरी ही उमर की थी और कमल उस से 2 साल छोटा था. मौसा जी का खुद का कारोबार था. जो उन ने पापा की मदद से जमाया था. जिसकी वजह से वो पापा को बहुत मानते थे.
समय बीतता जा रहा था और सारे बच्चे बड़े होते जा रहे थे. अब मैं 10थ मे आ गया था और कमल भी मेरी ही स्कूल मे 8थ मे पढ़ रहा था. वो मुझ से सिर्फ़ 2 साल छोटा था. इसलिए हम किसी दोस्त की तरह ही रहते थे.
मगर मौसी जी के लाड प्यार की वजह से कमल बिगड़ता जा रहा था. स्कूल मे भी उसकी संगति कुछ ग़लत तरह के लड़को के साथ हो गयी थी. मैने कमल से उन लड़को से दूर रहने को कहा. मगर उसने मेरी बात को अनसुना कर दिया. इसलिए अब मैं उस से कटा कटा सा रहने लगा था.
एक दिन मैं छ्होटी माँ के साथ मौसी के घर गया. तब मौसी ने हमें रात वही रुकने को कहा तो, हम लोग वही रुक गये. मैं कमल के साथ उसके कमरे मे रुका. रत को मेरी नींद खुली तो, कमल कमरे मे नही था. मैने सोचा की बाथरूम मे होगा. लेकिन जब कुछ देर तक इंतजार करने के बाद भी, मुझे बाथरूम मे कोई हलचल समझ मे नही आई तो, मैने उठ कर देखा. मुझे वहाँ कमल नज़र नही आया. मैने सोचा शायद कुछ करने बाहर गया होगा. मगर जब बहुत देर तक वो नही आया तो, मैने उसे बाहर निकल कर इधर उधर देखा. तब वो मुझे मौसा मौसी के कमरे के बाहर दिखाई दिया. वो दरवाजे के किसी छेद से अंदर झाँक रहा था.
अब मैं बच्चा तो था नही, जो उसके इस तरह अपने मॅमी पापा के कमरे मे झाँकने का मतलब ना समझ पाता कि, वो इतनी रात को अपने मॅमी पापा के कमरे मे क्या देख रहा है.
मुझे उसकी ये हरकत बहुत खराब लगी. लेकिन मैं चुपचाप रूम मे आकर लेट गया. काफ़ी देर बाद कमल लौटा और सीधे बाथरूम मे घुस गया. अब ये समझना मुस्किल नही था कि, वो इस समय बाथरूम मे क्या कर रहा होगा.
बाथरूम से निकल कर उसने एक ठंडी सांस ली और एक नज़र मेरी तरफ देख कर वापस सो गया. मुझे ये तो मालूम था कि, उसकी हरकते खराब है और लड़कियों की बात तो दूर वो स्कूल की मॅडमो को भी गंदी नज़र से देखता है. लेकिन ये बात आज पता चली थी कि, उसकी गंदी नज़रो ने, उसके माता पिता तक को नही छोड़ा था.
तभी मेरे दिमाग़ मे विचार आया कि, कीर्ति भी तो जवान दिखने लगी है और वो देखने मे भी बहुत सुंदर है, तो क्या कमल अपनी सग़ी बहन पर भी बुरी नज़र रखता है.
ये बात सोचते ही मेरे दिमाग़ मे कीर्ति का चेहरा घूमने लगा और ना चाहते हुए भी वो सब सोचने लगा. जो आज से पहले कभी मैने कीर्ति के बारे मे नही सोचा था. मगर ये सब सिर्फ़ एक पल के लिए ही था. अगले ही पल मैने सारे विचारो को परे धकेल दिया और कीर्ति मेरी बहन है, ये सोचते हुए सो गया.
दूसरे दिन मेरी नींद बहुत सुबह खुल गयी. मैने देखा तो कमल बिस्तर पर नही था. मुझे शक़ हुआ कि, ये कमीना फिर कही रात वाली हरकत तो नही कर रहा है. मैं तुरंत छुपते छुपाते मौसा मौसी के कमरे की तरफ चला गया.
मगर कमल वहाँ नही दिखा. मैने सोचा हो सकता है कि, ये कीर्ति के कमरे मे गया हो. लेकिन वहाँ देखने पर भी वो वहाँ भी नही दिखा. अब मेरे मन मे सवाल आया कि, यदि कमल यहाँ नही है, तो फिर वो गया कहाँ.
मेरा मन तो नही था, पर फिर भी मैने छ्होटी माँ के कमरे मे देखना ठीक समझा और जब मैने छ्होटी माँ के कमरे मे देखा तो, मेरा खून खौल गया. क्योकि कमल छ्होटी माँ के साथ उनसे लिपट कर सो रहा था.
रात की उसकी हरकत देख कर, अब वो मुझे बच्चा नही लग रहा था. छ्होटी माँ का तो, मुझे कोई डर नही था, पर मुझे लगा कि, ये कही मेरी बहनो के साथ कोई हरकत ना करे. अब मैं अपनी बहनों के साथ, उसे एक पल के लिए भी अकेला छोड़ना नही चाहता था.
बात कुछ भी नही थी, फिर भी मैं एक अजीब से डर से घिर गया और छ्होटी माँ के पास गया. मुझे सुबह सुबह देख कर छ्होटी माँ बोली “क्या हुआ पुन्नू. क्या तुझे यहाँ नींद नही आ रही.”
मैं बोला “हां छ्होटी माँ, मुझे नींद नही आ रही थी. आप जल्दी उठो. हम घर जाएगे.”
छ्होटी माँ बोली “अरे ये अचानक तुझे क्या हो गया. अभी दिन तो निकलने दे. फिर घर चलेगे.”
मैं अब वहाँ किसी भी हालत मे रुकना नही चाहता था. मगर छ्होटी माँ की बात मानकर मुझे रुकना पड़ रहा था.
मैं बोला “ये कमल यहा आकर कब सो गया.”
छ्होटी माँ बोली “अरे रात को नामिता रो रही थी तो, ये उठ कर आ गया और फिर उसे खिलाते खिलाते यही सो गया.”
मैं सोचने लगा कि, ये तो मेरे सामने ही सो गया था. फिर इसने नामिता के रोने की आवाज़ कैसे सुन ली. कहीं ये साला रात को छ्होटी माँ के कमरे के चक्कर तो नही लगा रहा था.
छ्होटी माँ उठ चुकी थी, इसलिए मैं वापस कमल के कमरे मे आ गया और लेट गया. फिर अचानक मेरे दिमाग़ मे कमल के कमरे की तलाशी लेने की बात आई और मैं उठ कर कमल के कमरे का समान तलाशने लगा.
उसके समान की तलाशी लेते हुए मुझे कुछ सेक्स स्टोरी की बुक्स मिली. ऐसी बुक्स ना मैने कभी देखी थी और ना ही पढ़ी थी. इसलिए मैं उन्हे जल्दी जल्दी देखने लगा. सारी बुक्स इन्सेस्ट स्टोरी और सेक्स पिक से भरी पड़ी थी. मैने सारी बुक्स जहाँ से जैसे उठाई थी, वापस वही वैसे ही रख दी.
फिर कुछ देर बाद मैं फ्रेश होने चला गया और फ्रेश होने के बाद मैं तैयार होने लगा. तब तक कमल भी आ गया. मुझे तैयार होते देख कर बोला “यार तुम तो सुबह बहुत जल्दी उठ जाते हो. क्या आज भी स्कूल जाने का इरादा है.”
मैं बोला “स्कूल नही, अब घर जाने का इरादा है.”
कमल बोला “यार पहली बार तो मेरे घर मे रुक रहे हो. कम से कम दो तीन दिन तो रुकना चाहिए था.”
मैं बोला “नही मुझे घर के सिवा कही अछा नही लगता. मैं तो आज पहली बार अपने घर से बाहर रुका हूँ. अगली बार जब आउन्गा, तब ज़रूर दो तीन दिन रूकुगा.”
कमल बोला “जैसी तुम्हारी मर्ज़ी. तुम जाना चाहते हो तो जाओ, पर मैं मौसी और अमिता नामिता को अभी नही जाने दूँगा.”
मैं बोला “मुझे तो आज जाना ही है. हां छ्होटी माँ और अमिता, नामिता यदि रुकना चाहती है तो रुक सकती है. मैं उनसे चलने की ज़िद नही करूगा.”
मेरी बात सुनकर कमल खुश हो गया. उसे उम्मीद थी कि, छ्होटी माँ उसकी बात मान कर वहाँ रुक जाएगी. लेकिन वो ये नही जानता था कि, मैं छ्होटी माँ से सुबह उसके जागने से पहले ही घर जाने की बात कर चुका था.
छ्होटी माँ इस बात को भी अच्छे से जानती थी कि, मैं घर के सिवा कही भी रात बिताना पसंद नही करता हूँ और घर मे भी मैं उनके और अमि निमी के बिना नही रह सकता हूँ. इसी वजह से कल मैं यहाँ आ गया था.
मगर अब कल की कमल की हरकत देखने के बाद, मैं वहाँ एक पल भी रुकना नही चाहता था और अब मुझे कमल के छ्होटी माँ के सामने रुकने की ज़िद करने की कोई परवाह नही थी. क्योकि मेरे बिना छ्होटी माँ के वहाँ रुकने का सवाल ही पैदा नही होता था.
मैं अभी इन्ही सोचो मे गुम था कि तभी कीर्ति आई और बोली “पुन्नू चलो, पापा तुम्हे नाश्ते के लिए बुला रहे है.”
कीर्ति उस समय ब्लॅक जीन्स और ब्लू टी-शर्ट पहनी थी. आज पहली बार वो मुझे इतनी सुंदर लग रही थी और मैं ना चाहते हुए भी उसे देखे जा रहा था.
मुझे इस तरह अपने आपको घूरते देख कर कीर्ति बोली “कहाँ खो गये, नाश्ता करने चलना है या नही.”
उसकी बात सुन मैं एक पल के लिए चौका और मेरा ध्यान टूटा.
मैं बोला “तुम चलो, मैं अभी आता हूँ.”
उसके जाने के बाद मुझे अपनी हरकत पर बहुत गुस्सा आया और मैने फिर अपने मन मे कहा “अबे साले वो तेरी बहन है. कमल की तरह, तू क्यो अपनी नियत और नज़र खराब कर रहा है.”
ऐसा सोच कर मैने अपने सर को झटका और फिर नाश्ता करने के लिए कमरे से बाहर निकल आया.
मौसा जी डाइनिंग टेबल पर बैठे नाश्ते के लिए मेरा इंतेजर कर रहे थे. मैं जाकर उनके पास बैठ गया और नाश्ता करने लगा. मौसा जी ने मुझसे मेरी पढ़ाई के विषय मे पूछा और फिर कमल को लेकर बात करने लगे.
मुझे कमल के बारे मे कोई बात करना पसंद नही आ रहा था. क्योकि जो मैं उसके बारे मे जान गया था, वो बोल नही सकता था और कोई दिल बहलाने वाली झूठी बात करना नही चाहता था. इसलिए मैं उनकी बात सुनकर हां या ना मे जबाब दे रहा था.
तभी कीर्ति और छ्होटी माँ भी आ जाते है. मैं छ्होटी माँ से पूछता हूँ “अमि और निमी कहाँ है.”
छ्होटी माँ “निमी तो अभी सो ही रही है और अमि कमल के साथ खेल रही है.”
मैने कीर्ति से पूछा “क्या कमल नाश्ता नही करेगा.”
कीर्ति बोली “कमल तो अपने रूम मे ही नाश्ता करता है.”
फिर सब नाश्ता करने लगे और सब की आपस मे इधर उधर की बातें होती रही. मैं चुप चाप नाश्ता करते हुए सबकी बातें सुनता रहा. नाश्ते के बाद कीर्ति ने मौसा जी से कहा.
कीर्ति बोली “पापा मुझे स्कूल का प्रॉजेक्ट तैयार करना है और उसके लिए कुछ ज़रूरी समान खरीदना है. आप चलकर दिला दीजिए.”
मौसा जी बोले “आज नही बेटी. आज मुझे ऑफीस मे ज़रूरी काम है. कल दिला दूँगा.”
कीर्ति बोली “नही पापा कल तो मुझे अपना प्रॉजेक्ट जमा करना है. अभी समान लेकर आउन्गी, तभी तो उसे आज तैयार कर पाउन्गी.”
तब छ्होटी माँ बोली “बेटी तू इसके लिए क्यो जीजा जी को परेशान कर रही है. हम तो शाम तक यही है. तू ऐसा कर पुन्नू को अपने साथ ले जा. वो तुझे समान दिला देगा और प्रॉजेक्ट तैयार करने मे तेरी मदद भी कर देगा.”
कीर्ति बोली “ठीक है मौसी. मैं पुन्नू के साथ ही चली जाती हूँ.”
फिर वो मौसा जी से पैसे लेती है और मेरी तरफ देख कर चलने का इशारा करती है तो मैं कहता हूँ “एक मिनिट रूको मैं अमि निमी से मिल कर आता हूँ.”
ये कहकर मैं अमि निमी के पास जाता हूँ. कमरे मे पहुच कर देखता हूँ तो निमी नींद से जाग चुकी थी और अमि निमी दोनो कमल के साथ खेल रही थी.
कमल घोड़ा बना हुआ था और निमी उस पर बैठ कर घोड़े की सवारी कर रही थी और अमि गाना गा रही थी “लकड़ी की काठी, काठी का घोड़ा, घोड़े की दुम पे, जो मारा हथौड़ा, दौड़ा दौड़ा दौड़ा घोड़ा, दुम उठा के दौड़ा.” कमल को इस तरह अमि निमी के साथ प्यार से खेलते देख, मेरे मन मे जो मैल उस के लिए आया था, वो कुछ हद तक कम हो जाता है और मैं मुस्कुराते हुए कमल से कहता हूँ “तुझे घोड़ा बन कर, बड़ा मज़ा आ रहा है. देखना कही ये सच मे तुझे घोड़ा समझ कर ना मारने लगे.” कमल बोला “यार पहली बार तो घोड़ा बनने का मौका मिला है, नही तो हमेशा स्कूल मे सिर्फ़ मुर्गा बन कर बांग देता ही नज़र आता हूँ. उस मुर्गा बन कर बांग देने से तो, ये घोड़ा बन कर मार खाना ही अच्छा है.”
कमल की ये बात सुनकर मेरी हँसी छूट जाती है और मैं अमि निमी के सर पर प्यार से हाथ फेर कर बाहर आ जाता हूँ.
मैं बाहर आता हूँ तो, कीर्ति मेरा इंतजार कर रही होती है. वो मुझे वापस आते देख कर ताना मारते हुए कहती है “अब चले या फिर कहो तो, अमि निमी को भी अपने साथ ले चलते है.”
उसकी बात सुनकर मैं हंस देता हूँ और कहता हूँ “चलो, मैने कब मना किया. मैं तो बस अपनी बहनो को देखने गया था. इसमे ये ताने मारने की क्या ज़रूरत है.”
कीर्ति बोली “ओके, अब मिल लिया हो अपनी प्यारी बहनो से तो, अपनी इस बहन के साथ भी चलो.”
मैं बोला “चलो, मैने कब मना किया.”
ये कहकर मैं बाहर निकल आया और कीर्ति अपनी स्कूटी निकालने लगी. स्कूटी निकाल कर वो बाहर आई और स्कूटी स्टार्ट कर मुझे पीछे बैठने को कहने लगी तो, मैने उस से कहा.
मैं बोला “तू पीछे बैठ, मैं चलाता हू.”
कीर्ति बोली “क्या तुझे मेरे पीछे बैठने मे शरम लगती है.”
मैं बोला “हाँ मुझे शरम लगती है. अब अपना मूह बंद कर और चुप चाप पीछे बैठ.”
मेरी बात सुनकर, उसने बुरा सा मूह बनाया और मेरे पीछे आकर बैठ गयी. उसके बाद हम लोग बाजार के लिए निकल गये. वहाँ हम ने दो तीन दुकानो से उसके प्रॉजेक्ट का समान खरीदा. जिसमे हमें 3 घंटे लग गये. सारी खरीदी हो जाने के बाद कीर्ति कहने लगी.
कीर्ति बोली “पुन्नू इस समान को खरीदने मे तो दोपहर हो गयी. अब तो मुझे भूख लग रही है. चल किसी रेस्टोरेंट मे चल कर कुछ खाते है.”
मैं बोला “समान तो हम ने खरीद ही लिया है. घर पहुचने मे आधा घंटा ही तो लगना है. अब घर चल कर ही कुछ खा लेना.”
कीर्ति बोली “अरे भूख मुझे अभी लगी है और तू आधे घंटे बाद मुझे खाना खाने की बात बोल रहा है. कैसा भाई है तू. अपनी बहन को कुछ खिला भी नही सकता.”
मैं बोला “तू समझती क्यो नही. आज तक मैं किसी लड़की के साथ कभी किसी रेस्टौरेंट मे नही गया. इसलिए मुझे वहाँ जाने मे बहुत अटपटा सा लग रहा है.”
कीर्ति बोली “मगर किसी दोस्त के साथ तो गया होगा.”
मैं बोला “नही किसी दोस्त के साथ भी नही गया.”
कीर्ति बोली “कैसा भोन्दा भाई है मेरा. इतना बड़ा हो गया और रेस्टौरेंट जाने से डरता है. तुझसे अच्छा तो वो कमल है. जो तुझसे 2 साल छोटा है, लेकिन कही भी जाने से नही डरता. तुझे तो कमल से कुछ सीखना चाहिए.”
मुझे कीर्ति की ये बात सुनकर, कुछ खराब ज़रूर लगा. लेकिन मैं उसकी आदत जानता था. वो अक्सर किसी ना किसी बात पर मुझे छेड़ती रहती थी. इसलिए मैने उसकी इस बात का बुरा ना मानते हुए उस से कहा.
मैं बोला “तुझे मेरा जितना मज़ाक उड़ाना है, तो तू उड़ा ले. मगर जो सच था, वो मैने तुझे बता दिया.”
मेरी बात सुन कर कीर्ति को अपनी ग़लती का अहसास हुआ और उसने फ़ौरन मुझसे माफी माँग कर, मुझे समझाते हुए कहा.
कीर्ति बोली “सॉरी, मैं तेरा मज़ाक नही उड़ा रही. तू मेरा भाई है तो, मुझे किसी भी जगह ले जाने मे तुझे कैसी शरम.”
कीर्ति की ये बात मुझे सही लगी और मैने उस से पूछा.
मैं बोला “तू कभी किसी रेस्टौरेंट मे कभी गयी है.”
कीर्ति बोली “मैं तो रेस्टौरेंट मे जाती ही रहती हूँ. मेरी सहेलियाँ अक्सर रेस्टौरेंट मे ही अपने बाय्फ्रेंड से मिलती है और उस समय मैं भी उनके साथ होती हूँ. क्या तेरी कोई गर्लफ्रेंड नही है.”
कीर्ति की बात सुनकर, एक पल के लिए मैं सकपका गया और उसे गौर से देखने लगा. उसके चेहरे पर वो ही जानी पहचानी मुस्कुराहट थी. मैने उसकी बात का जबाब देते हुए कहा.
मैं बोला “नही मेरी कोई गर्लफ्रेंड नही है. क्या तेरा कोई बाय्फ्रेंड है.”
कीर्ति बोली “इस बात मे तो हम दोनो भाई बहन एक जैसे है. मेरा भी कोई बाय्फ्रेंड नही है. अब तू ज़्यादा समय बर्बाद मत कर. वो सामने जो रेस्टौरेंट दिख रहा है ना, चल वही चलते है. वहाँ खाना अच्छा मिलता है. मैं बहुत बार वहाँ आ चुकी हूँ. वही बैठ कर बात भी कर लेगे और अपनी भूक भी मिटा लेगे.”
मैं उसकी बताई जगह पर गाड़ी रोक देता हूँ और फिर हम लोग अंदर चले जाते है. वो जगह सच मे बहुत अच्छी थी. वहाँ सबके बैठने के लिए कॅबिन बना हुआ था. एक कॅबिन मे जाकर हम लोग भी बैठ जाते है. कीर्ति दोनो के लिए खाना मँगाती है और फिर मुझसे पूछती है.
कीर्ति बोली “क्या सच मे तेरी कोई गर्लफ्रेंड नही है.”
मैं बोला “मैं तुझसे झूठ क्यो बोलुगा. तू ही तो एकलौती लड़की है, जिसके साथ मैं खुल कर इतनी बात कर लेता हूँ. वो भी इसलिए क्योकि तू मेरी बहन है.”
कीर्ति बोली “क्या किसी लड़की को देख कर, अपनी गर्लफ्रेंड बनाने का तेरा मन नही करता.”
मैं बोला “नही, मुझे किसी लड़की से दोस्ती करने की ज़रूरत ही महसूस नही होती. ना ही मेरे पास इस सब के लिए इतना समय है कि, मैं किसी लड़की के आगे पीछे घूमता फिरता रहूं.”
कीर्ति बोली “क्यो तू ऐसा क्या करता है, जो तेरे पास किसी लड़की के लिए समय ही नही है.”
मैं बोला “मुझे अमि निमी से फ़ुर्सत मिले, तभी तो मैं किसी लड़की के बारे मे सोचु. मुझे अमि निमी से फ़ुर्सत ही नही मिलती और मैं इसी मे खुश हूँ.”
मैं जितना इस बात को टलने की कोसिस कर रहा था. कीर्ति उतना ही इस बात को बढ़ाती चली जा रही थी. मुझे लग रहा था कि, मैने इसके साथ यहाँ आकर बहुत बड़ी ग़लती कर दी. मेरी बात के जबाब मे जब कीर्ति कुछ नही बोली तो, मुझे लगा कि, उसने ये बात ख़तम कर दी. लेकिन अगले ही पल कीर्ति ने मेरे सामने फिर से वो ही सवाल रख दिया.
कीर्ति बोली “तेरे स्कूल मे तो लड़कियाँ पढ़ती है, तो क्या तेरी उनसे भी दोस्ती नही है.”
मैं बोला “स्कूल मे मेरा एक ही दोस्त है मेहुल. जो मेरे बचपन का दोस्त है. उसके रहते मुझे कभी किसी दोस्त की ज़रूरत महसूस नही हुई.”
इसके बाद खाना आ गया और मैने राहत की साँस ली. अब मैं जल्दी से जल्दी यहाँ से निकल जाना चाहता था. इसलिए मैने उससे खाना सुरू करने को कहा और फिर हम दोनो खाना खाने लगे.
मगर कीर्ति पर तो जैसे आज इस बात को जानने का भूत ही सवार हो गया था. उसने खाना खाते खाते फिर से बात को आगे बढ़ाते हुए कहा.
कीर्ति बोली “देख तू चाहे तो मुझे अपनी दोस्त समझ कर सब कुछ बता सकता है. मैं किसी को कुछ नही बताउन्गी.”
कीर्ति की बात सुनकर मैने एक नज़र कीर्ति की तरफ देखा. मुझे समझ नही आ रहा था कि, वो ऐसा क्यो बोल रही है. इसलिए मैने उस से पुछा.
मैं बोला “मैं क्या बता सकता हूँ और तू क्या किसी को नही बोलेगी.”
कीर्ति बोली “यही कि वो लड़की कौन थी. जो मेरे भाई को इतनी पसंद आई कि, उसके बाद उसे किसी लड़की से दोस्ती करने का मन ही हुआ.”
मैं बोला “तू एक ही बात के पीछे क्यो पड़ी है. मैं बोल तो चुका हूँ मेरी जिंदगी मे कोई लड़की नही और तुझे मुझसे ऐसी बात करते हुए ज़रा भी शरम नही आती.”
कीर्ति बोली “आती है तभी तो पूछ रही हू.”
मैं बोला “ये तो बेशर्मी है और तू इसे शरम आना कहती है.”
कीर्ति बोली “हां शरम आती है ना, कि मेरा इतना हॅंडसम भाई है और उसकी कोई गर्लफ्रेंड ही नही है.”
मैं बोला “तू भी तो इतनी सुंदर है, फिर तेरा बाय्फ्रेंड क्यो नही है.”
कीर्ति बोली “मेरा बाय्फ्रेंड है.”
उसके मूह से अचानक ये बात सुनकर मैं चौक गया और अनायास ही मेरे मूह से निकला.
मैं बोला “कौन है वो.? क्या तेरी स्कूल का है.?”
कीर्ति बोली “जब तू अपना राज़ मेरे सामने नही खोलना चाहता तो, मैं अपना राज़ तुझे क्यो बताऊं.”
मैं बोला “मेरा कोई राज़ नही है और मैं तेरा भाई हूँ. मुझे जानने का पूरा हक़ है कि तेरा बाय्फ्रेंड कौन है.”
कीर्ति बोली “अच्छा तू भाई है तो, तुझे सब जानने का हक़ है. अब तू ये जानना चाहता है कि मेरा बाय्फ्रेंड कौन है तो, तुझे शरम नही आ रही. लेकिन यही बात जब मैने पूछी थी, तो मैं बेशर्म हो गयी थी.”
मैं बोला “शरम तो मुझे आ रही है पर जब तूने बेशर्म होकर ये बता दिया कि तेरा बाय्फ्रेंड है तो मुझे भी बेशर्म होकर पूछना पड़ रहा है कि कौन है वो.”
कीर्ति बोली “अच्छा तो तू ये जानकर क्या करेगा.”
मैं बोला “मैं कुछ भी नही करूगा. मैं बस जानना चाहता हूँ कि वो कौन है.”
कीर्ति बोली “क्या तुझे ये जानकार अच्छा लगेगा.”
मैं बोला “जान तो मैं गया हूँ कि तेरा कोई बाय्फ्रेंड है. अब यदि तू नही भी बताएगी, तो भी मैं अपने तरीके से पता कर लूँगा.”
कीर्ति बोली “याने कि तू मेरी जासूसी करेगा या करवाएगा.”
मैं बोला “अब तू नही बताएगी तो, मुझे ये सब करना ही पड़ेगा.”
कीर्ति बोली “पर इस सब की ज़रूरत क्या है. तेरे लिए ये जान लेना ही काफ़ी होना चाहिए कि, मेरा बाय्फ्रेंड है. कौन है.? कैसा है.? इस से तुझे क्या मतलब. ये सब जानकार तुझे क्या फ़ायदा.”
मैं बोला “तुझे इस सब मे कुछ मतलब समझ मे आता हो या ना आता हो. लेकिन मुझे इस सब से मतलब है. माना कि मैं तेरी मौसी का सगा लड़का नही हूँ. फिर भी मुझे, तेरी फिकर तेरे भाई की तरह ही है.”
मेरी बात सुनकर कीर्ति गुस्सा हो गयी और गुस्से मे भड़कते हुए कहने लगी.
कीर्ति बोली “तुझे मैने कब सौतेला समझा है. तुझे तो मैं अपना भाई और दोस्त दोनो मानती हूँ. इसके बाद भी आज तूने ये बात बोल कर मुझे बहुत दुख पहुँचाया है.”
मैं बोला "जो सच है वो ही मैने कहा. यदि ये सच नही है तो, फिर बता तेरा बाय्फ्रेंड कौन है.”
कीर्ति बोली “बात जानने का ये कोई तरीका नही है. यदि मेरी बात जानना चाहते हो तो, पहले मुझे अपनी बात बताओ.”
मैं बोला “तुझे क्यो लगता है कि, मेरी जिंदगी मे कोई लड़की है या फिर कभी कोई लड़की थी.”
कीर्ति बोली “क्योकि ये नामुमकिन है कि, अब तक तेरी जिंदगी मे कोई लड़की ना आई हो और यदि इस बात को मान भी लिया जाए कि, तेरी जिंदगी मे अभी तक कोई लड़की नही आई है, तो भी तू किसी लड़की के तेरी जिंदगी मे आने के सपने तो सजाता होता. इस तरह लड़कियों से दूर नही भाग रहा होता. इसका मतलब तो सॉफ है.”
मैं बोला “क्या मतलब साफ है.”
कीर्ति बोली “यही की पहली बार मे ही प्यार मे धोका मिला.”
कीर्ति की ये बात सुनकर मेरी हँसी छूट गयी और मैने हंसते हुए कहा.
मैं बोला “जैसे तू सोच रही है, ऐसा कुछ भी नही है. तू तो किसी कहानीकार की तरह ज़बरदस्ती मेरे प्यार की झूठी कहानी गढ़ती जा रही है और मुझसे चाहती है कि मैं तेरी इस गढ़ी हुई झूठी कहानी को सच मान जाउ.”
कीर्ति बोली “चल मैं तेरी बात मान लेती हूँ. तू बस एक काम कर दे.”
मैं बोला “क्या.?”
कीर्ति बोली “तू अमि और निमी की कसम खाकर बोल दे कि, जैसा मैं बोल रही हू, वैसा कुछ भी नही है.”
कीर्ति की बात सुनकर मैं अजीब दुविधा मे पड़ गया था और वो मुझे देख कर मेरे अंदर चल रहे मनोभावों का अंदाज़ा लगा रही थी. मुझे कुछ बोलते ना देख कर, उसने अपनी बात को फिर से दोहराया.
कीर्ति बोली “इतना क्यो सोच रहा है. खा ले कसम और इस बात को यही ख़तम कर दे.”
मैं उसकी बात का कुछ जबाब देने की सोच ही रहा था. तभी मेरे मोबाइल की रिंग टोन बजी और मैने देखा तो छ्होटी माँ का कॉल था. मैने फ़ौरन कॉल उठाते हुए कहा.
मैं बोला "जी छ्होटी माँ.”
छ्होटी माँ “पुन्नू बेटा तुम लोग कहाँ हो. क्या तुम लोगों की खरीदी अभी तक नही हुई है.”
मैं बोला “नही छ्होटी माँ हो गयी है. बस हम लोग घर ही आ रहे है.”
छ्होटी माँ “ठीक है बेटा.”
इतना कहकर छ्होटी माँ ने फ़ोन रख दिया और कीर्ति से कहा.
मैं बोला “अब घर चलो बहुत देर हो गयी है. छ्होटी माँ चिंता कर रही है.”
कीर्ति बोली “लेकिन अभी मेरी बात अधूरी है.”
मैं बोला “अब जो भी बात करना है, घर चल कर कर लेना. हमें घर से निकले बहुत देर हो गयी है. इसलिए अब जल्दी से घर चलो.”
कीर्ति अपनी बात को पूरा करना चाहती थी. मगर उसको भी मेरी बात सही लगी. इसलिए इसके बाद उसने मुझसे कोई सवाल जबाब नही किया और फिर हम दोनो वहाँ से घर के लिए चल पड़े.
घर आने के बाद मैं सीधे अम्मी निम्मी की पास चला गया. वो दोनो छोटी माँ के पास खेल रही थी. ये मेरी आदत थी कि, घर से आते जाते, जब तक एक बार मैं उनको देख नही लेता था, मुझे चैन नही मिलता था. मुझे वापस आया देख कर छोटी माँ ने मुझसे पुछा.
छोटी माँ बोली “तुम लोगों ने वापस आने मे बहुत देर लगा दी.”
मैं बोला “छोटी माँ, वो क्या है कि, कीर्ति को बहुत भूक लगी थी और वो वही पर कुछ खाने की ज़िद करने लगी तो, हम लोग रेस्टौरेंट मे खाना खाने लगे थे.”
मेरी बात सुनकर छोटी माँ के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी और उन्हो ने कीर्ति से कहा.
छोटी माँ बोली “ये तो बहुत अच्छी बात है बेटी. इसी बहाने इसने घर से बाहर खाना तो खाया. वरना ये बाहर कुछ भी नही ख़ाता.”
कीर्ति बोली “आप चिंता मत कीजिए मौसी. ये कुछ दिन यहाँ रहेगा तो और भी बहुत कुछ सीख जाएगा.”
छोटी माँ बोली “ठीक है, अब जब अगली बार आएगा तो सिखा देना. अब तू जा और दीदी को बोल कि, तुम लोग वापस आ गये हो.”
कीर्ति बोली “वो तो मैने आते ही बता दिया है मौसी. लेकिन मम्मी बोल रही है कि, आप अभी ही जा रही है.”
छोटी माँ बोली “जाना तो कल ही था, पर दीदी ने रोक लिया तो रुकना पड़ गया. मगर अब रुक पाना मुस्किल है. तेरे मौसा जी भी घर मे अकेले है और फिर पुन्नू और अमि की पढ़ाई का नुकसान भी तो हो रहा है.”
कीर्ति बोली “लेकिन मौसी आप तो कह रही थी कि, मेरे स्कूल का प्रॉजेक्ट बनाने मे, पुन्नू मेरी मदद कर देगा और अब आप लोग जा रहे है. अब यदि पुन्नू चला जाएगा तो, मेरा प्रॉजेक्ट कैसे बनेगा मौसी.”
कीर्ति की बात सुनकर, छोटी माँ को, सुबह कीर्ति से कही गयी, अपनी बात याद आ गयी. लेकिन वो तो खुद मेरी वजह से घर वापस जा रही थी. ऐसे मे वो मुझे वहाँ रुकने के लिए कैसे कह सकती थी.
उन्हे समझ नही आ रहा था कि, वो अब कीर्ति को क्या जबाब दें. वो सवालिया नज़रों से मेरी तरफ देखने लगी. जैसे पूछ रही हो कि, अब क्या किया जाए. मैने उन्हे इस दुविधा मे पड़ा देखा तो, उनको इस दुविधा से बाहर निकालते हुए कहा.
मैं बोला “छोटी माँ, यदि अमि, निमी यहाँ नही रही तो, फिर मैं भी यहाँ नही रुकुंगा.”
मेरी इस बात का मतलब छोटी माँ के सिवा कोई नही समझ पाया. सबको यही लगा कि, मैं अमि निमी के बिना वहाँ रहना नही चाहता. जबकि मैने छोटी माँ को, अपने वही रुकने की सहमति दी थी. मेरी बात का मतलब समझते ही, छोटी माँ मुस्कुरा दी और उन्हो ने कीर्ति से कहा.
छोटी माँ बोली “जा और अपने मौसा जी को फोन लगा कर बोल दे कि, हम लोग आज भी यही रुकेगे.”
छोटी माँ की बात सुनकर कीर्ति खुशी खुशी फोन करने चली गयी और मैं कमल के कमरे मे आ गया. कमल उस समय अपने कमरे मे नही था. शायद वो बाहर गया हुआ था.
मैं जाकर लेट गया और फिर थोड़ी देर बाद मेरी नींद लग गयी. ना जाने कितनी देर तक मैं सोता रहा. फिर कीर्ति ने आकर मुझे जगाया तो मेरी नींद खुली. उसने मुझे जागते हुए कहा.
कीर्ति बोली “शाम के 5 बज गये है, अब उठ भी जाओ. ऐसे ही सोते रहोगे तो, मेरा प्रॉजेक्ट तैयार करने मे मेरी मदद कब करोगे.”
मैं बोला “तूने इतनी देर तक मुझे सोने ही क्यो दिया, पहले ही जगा देना था.”
कीर्ति बोली “मैं तो जगा देना चाहती थी. लेकिन मौसी ने कहा कि, उसने कभी घर से बाहर रात नही बिताई है. इसलिए उसे यहाँ रात को ठीक से नींद नहीआई होगी. अब वो सोया है तो, उसे अपनी नींद पूरी कर लेने दो. अब भला मैं मौसी की बात को कैसे काट सकती थी.”
मैं बोला “चल कोई बात नही. तू अपने प्रॉजेक्ट का समान निकाल, तब तक मैं मूह हाथ धोकर आता हूँ.”
कीर्ति बोली “ठीक है, जल्दी आना.”
ये बोल कर वो चली गयी. उसके जाने के बाद मैं उठा और मूह हाथ धोने लगा. मूह हाथ धोने के बाद, मैं कीर्ति के कमरे मे जाने को हुआ, तभी अमि और निमी आ गयी. दोनो किसी बात पर लड़ रही थी. उनको लड़ते देख कर मैने उनसे पुछा.
मैं बोला “तुम दोनो लड़ क्यो रही हो.”
अमि बोली “भैया निमी ने अपनी डॉल तोड़ दी है और अब मेरी डॉल लेकर यहाँ भाग आई है.”
मैने निमी को देखा तो, वो अपने दोनो हाथ पीछे किए खड़ी थी. तभी कीर्ति भी आ गयी और दोनो की नाटक बाजी देखने लगी. मैने निमी को अपने पास बुलाया और उस से पुछा.
मैं बोला “छोटी, तूने दीदी की डॉल क्यो ले ली.”
मेरी बात के जबाब मे निमी बड़े ही हक़ से अपने हाथ की, डॉल दिखाती हुए कहने लगी.
निमी बोली “भैया दीदी झूठ बोल रही है. ये डॉल मेरी है.”
मैं बोला “छोटी, अच्छे बच्चे कभी झूठ नही बोलते. सच बताओ, ये दीदी की डॉल है ना.”
मेरी बात सुनकर, निमी ने अपना सर हिला कर हां कहा और फिर अपना सर झुका लिया. मैने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरा और उसे समझाते हुए कहा.
मैं बोला “छोटी, मैं तुम्हे इस से भी अच्छी डॉल लाकर दूँगा. तुम दीदी की डॉल, दीदी को वापस कर दो.”
मेरी बात सुनकर निमी ने अपना चेहरा रुआंसा सा बना लिया. जैसे अभी ही रो पड़ेगी और फिर डॉल अमि को देने लगी. मगर अमि ने जब उसका रुआंसा चेहरा देखा तो, वो डॉल वापस लेते लेते रुक गयी और कहने लगी
अमि बोली “मुझे नही चाहिए ये डॉल. अब ये तुम ही रख लो. भैया मुझे इस से अच्छी डॉल लाकर दे देगे.”
उसके मूह से ये सुनते ही निमी के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी और उसने डॉल को अपने गले से लगा लिया. उसकी हरकत पर अमि ने मूह बनाते हुए मुझसे कहा.
अमि बोली “भैया मुझे अच्छा वाला वीडियो गेम चाहिए. जिसमे 1000 गेम हो. मैं वो गेम इस निमी को नही दूँगी.”
मैं बोला “ठीक है, मैं तुझे अच्छा वाला वीडियो गेम लाकर डुगा. अब तो खुश.”
मेरी बात सुनकर अमि खुश हो गयी. मगर निमी के चेहरे की मुस्कान गायब हो गयी. वो फ़ौरन मेरे पास आई और कहने लगी.
निमी बोली “भैया, मुझे भी वीडियो गेम चाहिए.”
निमी की ये हरकत देख, अब अमि को गुस्सा आने लगा. लेकिन उसके कुछ बोलने के पहले ही मैने बात को सभालते हुए कहा.
मैं बोला “मैं तुम दोनो को ही वीडियो गेम लाकर दूँगा और बेटू को एक सुंदर सी डॉल भी लाकर दूँगा. मगर ये सब तभी लाकर दूँगा. जब तुम दोनो आपस मे नही लड़ोगी.”
मेरी ये बात सुनते ही दोनो के चेहरे की मुस्कुराहट वापस आ गयी और दोनो ने एक दूसरे के कंधे पर हाथ रखते हुए, मुझसे कहा.
दोनो बोली “भैया, अब हम दोनो कभी नही लड़ेंगे. लेकिन आप हमें बहुत सारे गेम वाला वीडियो गेम लाकर देना.”
मैने प्यार से दोनो के सर पर हाथ फेरा और दोनो से कहा.
मैं बोला “ठीक है, अब तुम दोनो बाहर जाकर खेलो. मैं कीर्ति दीदी का काम करके आता हूँ.”
मेरी बात सुनते ही दोनो ने कमरे के बाहर की तरफ दौड़ लगा दी. उनकी ये हरकत देख कीर्ति मुस्कुरा रही थी. दोनो के चले जाने के बाद कीर्ति ने हंसते हुए मुझसे कहा.
कीर्ति बोली “अब मुझे समझ मे आया कि, तुम इन दोनो के बिना क्यो नही रह पाते हो.”
मैने बोला “हां, मेरी दोनो बहने इतनी प्यारी है कि, मैं कभी इनसे दूर नही रह पाता और जब इनके पास रहता हूँ तो, सब कुछ भूल जाता हूँ.”
कीर्ति बोली “हां वो तो मैं देख ही रही हूँ. जैसे अभी मेरा प्रॉजेक्ट भूल गये हो.”
मैं बोला “ओह्ह ये तो मैं सच मे भूल गया, चलो जल्दी चलो.”
कीर्ति बोली “चलो याद तो आया.”
इसके बाद मैं कीर्ति के साथ उसके रूम मे आ गया. उसने बैठने को बोला तो, मैं उसके बॅड पर बैठ गया और कीर्ति भी कुर्सी खींच कर मेरे सामने बैठ गयी.
मैं बोला “तू मुझे यहाँ प्रॉजेक्ट तैयार करने को लेकर आई है या बैठने के लिए लेकर आई है.”
कीर्ति बोली “ना ही मैं तुझे यहाँ प्रॉजेक्ट तैयार करने को लेकर आई हूँ और ना ही बैठने के लिए लेकर आई हूँ.”
मैं बोला “तो क्या तुझे प्रॉजेक्ट तैयार नही करना.”
कीर्ति बोली "वो तो मैने दिन मे तैयार कर लिया था.”
मैं बोला “तो फिर तू मुझे यहाँ क्यो लेकर आई है.”
कीर्ति बोली “दिन वाली अधूरी बात पूरी करने के लिए, अब हमें यहाँ कोई परेशान नही करेगा.”
ये कह कर वो मुस्कुराते हुए मेरी तरफ देखने लगी. लेकिन कीर्ति की इस बात ने मुझे एक अजीब ही परेशानी मे डाल दिया था. मुझे समझ नही आ रहा था कि, मैं उसे अपनी बात का कैसे यकीन दिलाऊ.
मुझे इस बात पर इतना सोचते देख कर, कीर्ति ने मुझे, मेरी सोच से बाहर निकालते हुए कहा.
कीर्ति बोली “तुझे इतना ज़्यादा सोचने की ज़रूरत नही है. तुझे तो अमि निमी की कसम खाकर, सिर्फ़ ये कहना है कि तेरी जिंदगी मे कभी कोई लड़की नही आई.”
इतना कह कर वो फिर से मुस्कुराने लगी और मेरी तरफ देखते हुए, मेरे जबाब देने की राह देखने लगी. लेकिन मेरे लिए उसकी इस बात का जबाब देना इतना आसान नही था. इसलिए मैने अभी भी अपनी बात को दोहराते हुए कहा.
मैं बोला “मेरी जिंदगी मे कभी कोई लड़की नही आई. ये ही सच है. अब तुझे मेरी बात पर यकीन करना है तो कर और नही करना तो मत कर. मगर मैं इस बात को सच साबित करने के लिए अमि निमी की कसम खाने की ज़रूरत नही समझता हूँ.”
कीर्ति बोली “तेरा कसम ना खाना ये बताता है कि, तू सच नही बोलना चाहता.”
मैं बोला “कसम ना खाने से सच बात झूठ नही हो जाती.”
कीर्ति बोली “हां ठीक बोला तूने, पर यदि कोई बात सच होती है तो, उसके लिए कसम खाने मे कोई परेशानी नही होती.”
मैं बोला “बात कैसी भी हो, पर मैं कभी अमि निमी की कसम नही ख़ाता.”
कीर्ति बोली “तो फिर मेरी कसम खाकर बोल दे. मैं तेरी बात का विस्वास कर लुगी.”
मैं बोला “खाने को तो मैं तेरी झुटि कसम भी खा सकता हूँ और जब तुझे विस्वास करना ही है तो, ऐसे ही मेरी बात का विस्वास क्यो नही कर लेती.”
कीर्ति बोली “देख अब ज़्यादा नाटक करना बंद कर और जल्दी से मेरी कसम खाकर बोल दे कि, तेरी जिंदगी मे कभी कोई लड़की नही थी. अब तुझे मेरी कसम है.”
मैं बोला “मैं तेरी इस कसम को नही मानता और ना ही मैं तेरी या किसी की, कोई कसम खाने वाला हूँ. अब तुझे जो समझना है, तू समझ सकती है. मुझे तेरे कुछ भी समझने से, कोई परेशानी नही.”
मेरी ये बात सुनते ही कीर्ति की आँखों मे आँसू झिलमिला गये. उसने बहुत ही भावुक होते हुए कहा.
कीर्ति बोली “पुन्नू बात सिर्फ़ मेरी कसम मानने या ना मानने की नही थी. मैने तो तुझे अपनी कसम सिर्फ़ इसलिए दी थी कि, मैं ये देखना चाहती थी कि, मैं तेरे लिए कितनी अपनी हूँ. तेरे लिए मेरी अहमियत अमि निमी की तरह है या नही. ये बात आज मैं अच्छी तरह से जान चुकी हूँ. अब मुझे तुझसे कुछ भी नही जानना है.”
इतना कह कर, वो अपनी नम आँखे लिए कमरे से बाहर निकल गयी. मैने अंजाने मे उसके दिल को जो चोट पहुचाई थी. अब मुझे उसका अफ़सोस हो रहा था. मगर मैं भी मजबूर था और इसलिए ना चाहते हुए भी उसे दुखी कर दिया.
मुझे लगा कि वो मुझे अपने कमरे मे बैठा देख कर, वापस आ जाएगी. इसलिए मैं वही बैठा उसके वापस आने का इंतजार करने लगा और उसके कमरे मे यहाँ वहाँ देखने लगा.
तभी मेरी नज़र उसके, स्कूल के लिए तैयार किए गये प्रॉजेक्ट पर पड़ती है और मैं उठा कर उसको देखने लगता हूँ. कीर्ति ने एक बहुत ही सुंदर आदर्श गाँव का प्रॉजेक्ट तैयार किया था. जिसमे उसने स्कूल, हॉस्पिटल, बस स्टॅंड, पोलीस स्टेशन, रेलवे स्टेशन को बखूबी दर्शाया था.
जब मुझे उसका इंतजार करते बहुत देर हो जाती है तो, मैं उठ कर बाहर आ जाता हूँ. बाहर हॉल मे सब लोग बैठे टीवी देख रहे होते है. कीर्ति मुझे आते देख छोटी माँ से कहती है
कीर्ति बोली “मौसी मैं भी आप के साथ कुछ दिन के लिए चलना चाहती हूँ.”
छोटी माँ बोली “लेकिन तेरे स्कूल का क्या होगा.”
कीर्ति बोली “कल के बाद कुछ दिन की मेरी छुट्टी है. मैं सोच रही थी कि, ये छुट्टियाँ आप के साथ ही मनाऊ.”
छोटी माँ बोली “ठीक है तू अपना समान आज ही पॅक कर ले. नही तो पता चला कि कल फिर जाना टल जाए.”
कीर्ति बोली “ऐसा कुछ नही होगा मौसी. मैं अपना समान आज ही पॅक कर लुगी और फिर स्कूल से आते ही हम निकल चलेगे.”
छोटी माँ बोली “वो तो ठीक है, पर पहले दीदी और जीजा जी से तो पूछ ले.”
मौसी भी वही थी. उन ने छोटी माँ की बात सुनकर उन से कहा.
मौसी बोली “इसमे मुझसे पूछने वाली बात क्या है. ये तेरी भी तो बेटी है. मुझे इसके जाने मे कोई परेशानी नही. कम से कम कुछ दिन तो, इसकी बक बक से फ़ुर्सत मिलेगी. रही इसके पापा की बात तो, वो भला इसे तेरे साथ जाने से क्यो मना करने लगे.”
मौसी की बात सुनकर कीर्ति खुश हो गयी. लेकिन अब वो मेरी तरफ देख तक नही रही थी. मुझे कीर्ति की ये बात अच्छी नही लग रही थी. इसलिए मैं वहाँ से उठ कर कमल के कमरे मे आ गया.
मुझे कीर्ति का बर्ताव कुछ अजीब लग रहा था. जिस वजह से अब मेरा वहाँ मन नही लग रहा था. तभी कमल कमरे मे आ गया. मुझे अकेले कमरे मे बैठा देख उसने कहा.
कमल बोला “क्या बात है.? तुम इस तरह अकेले कमरे मे बंद क्यो बैठे हो. अगर घर मे अच्छा नही लग रहा तो चलो बाहर घूम कर आते है.”
मेरा मन तो पहले ही वहाँ नही लग रहा था. इसलिए कमल की बात मुझे सही लगी. मैने उस से बाहर घूमने चलने के लिए हां कहा और उसके साथ बाहर घूमने चला गया.
हम लोग बहुत देर तक, यहाँ वहाँ घूमने के बाद 9 बजे घर वापस आए. जब हम घर पहुचे तो, मौसा जी भी घर आ चुके थे. सब उनके साथ बैठ कर बातें कर रहे थे.
लेकिन कीर्ति वहाँ नही थी. शायद वो अपने कमरे मे थी. मैं भी सबके साथ बैठ गया और बातें करने लगा. कुछ देर बाद कीर्ति भी वहाँ आ गयी. उसे देखते ही मौसा जी ने उस से पूछा.
मौसा जी बोले “तुम्हारे जाने की सारी पॅकिंग हो गयी या अभी भी कुछ बाकी है.”
कीर्ति बोली “सारी पॅकिंग हो गयी है पापा.”
मौसा जी बोले “ये तो अच्छी बात है. लेकिन 2 दिन बाद तुम्हारा जनमदिन भी आ रहा है. अब तब तो तुम यहाँ रहोगी नही, इसलिए मैं चाहता हूँ कि, तुम अपने जनमदिन का गिफ्ट भी अपने साथ ले जाओ. अब बोलो तुम्हे अपने जनमदिन पर क्या गिफ्ट चाहिए .”
मौसा जी की बात सुनते ही कीर्ति की खुशी का ठिकाना ना रहा. उसने बड़े ही उतावलेपन से कहा.
कीर्ति बोली “पापा मुझे जनमदिन पर एक अच्छा सा मोबाइल चाहिए.”
मौसा जी बोले “अच्छा ठीक है ले लेना. मैं कल तुम्हारी मम्मी को मोबाइल के लिए पैसे दे जाउन्गा. तुम स्कूल से आकर अपनी पसंद का मोबाइल ले लेना.”
मौसा जी की बात सुनकर खुश हो गयी और कमल जो अभी तक चुप चाप उनकी बातें सुन रहा था. अब उस से चुप ना रहा गया और वो भी बोल पड़ा.
कमल बोला “पापा मुझे भी मोबाइल चाहिए.”
मौसा जी बोले “ये तो कीर्ति के जनमदिन का है. तुम चाहो तो अपने जनमदिन पर मोबाइल ले लेना.”
अपने जनमदिन पर मोबाइल मिलने की बात सुनकर कमल भी खुश हो गया. फिर मौसी ने खाना खाने की बात कही तो, सब डाइनिंग टेबल पर आ गये और खाना खाने लगे.
खाना खाने के बाद सब बहुत देर तक बातें करते रहे और फिर 11 बजे अपने अपने रूम मे आ गये.
निमी सो गयी थी तो, मैने उसे गोद मे उठाया और छोटी माँ के कमरे मे ले जाकर आ गया. निमी को वहाँ लिटाने के बाद, मैं वही बैठा छोटी माँ से बात करता रहा. जिसमे 11:30 बज गये.
इसके बाद मैं कमल के कमरे मे आ गया मगर कमल कमरे मे नही था. मैने सोचा कीर्ति कल जा रही है. इसलिए शायद कमल के साथ कीर्ति से बात कर रहा हो. मैं लेट गया और सोने की कोसिस करने लगा. मगर दिन मे सो लेने की वजह से अब मुझे नींद नही आ रही थी.
इसलिए मैं उठ कर कमरे के बाहर आ गया. मैने देखा कि कीर्ति के कमरे की लाइट जल रही है तो मैं उसके कमरे की ओर आ गया. मगर उसका कमरा खाली था. कीर्ति या कमल दोनो मे से किसी भी कमरे मे नही था.
मैने सोचा हो सकता है कि कीर्ति बाथरूम मे हो, इसलिए मैने कीर्ति को आवाज़ दी मगर कोई जबाब नही मिला तो, मैं समझ गया कि वो यहाँ नही है. मैं उन्हे मौसा मौसी के कमरे मे देखने आया मगर उनके कमरे का दरवाजा बंद था. याने की दोनो वहाँ भी नही थे.
इतनी रात को दोनो के घर से बाहर जाने का सवाल ही पैदा नही होता था. मुझे समझ नही आ रहा था कि, दोनो इतनी रात को कहाँ गायब हो गये. ये ही सोचते सोचते मैं हॉल मे आकर बैठ गया. फिर अचानक मुझे ख़याल आया कि, कही ये दोनो छत पर तो नही है.
ये ख़याल आते ही मैं सीडीयों की तरफ बढ़ चला. वहाँ आकर मैने देखा सीडीयों की लाइट जल रही थी. अब इस बात मे कोई शक़ नही था कि, दोनो छत पर ही है. मेरे कदम खुद ब खुद छत की सीडीयों की ओर बढ़ने लगे. लेकिन छत पर पहुचते ही मुझे जोरदार झटका लगा.
कीर्ति और कमल दोनो छत की फर्श पर दीवार से अपनी पीठ टिकाए बैठे थे. दोनो के हाथ मे एक एक सिगरेट थी और मूह से धुँआ निकल रहा था. मुझे अपने सामने देखते ही, कमल की तो सिट्टी पिटी गुम हो गयी. उसने तुरंत अपनी सिगरेट दूर फेक दी और कीर्ति की तरफ देखने लगा.
मगर कीर्ति ने मुझे देख कर भी अनदेखा कर दिया. वो वाइट टी-शर्ट और लोवर पहने थी. उसका एक पैर फर्श पर सीधा था जबकि दूसरा पैर मोड़ कर वो दोनो हाथ ज़मीन पर टिकाए बैठी थी. उसके एक हाथ मे सिगरेट का पॅकेट था तो दूसरे हाथ मे जलती हुई सिगरेट थी.
उसने मुझे अपने पास आता देख सिगरेट का एक जोरदार कश लगाया और फिर अपनी नाक से धुआँ निकालने लगी. मैं पास पहुचा तो उसने बड़ी बेशर्मी से सिगरेट का पॅकेट मेरी तरफ बढ़ा दिया.
उन्हे सिगरेट पीते देख वैसे ही मुझे गुस्सा आ रहा था. उस पर कीर्ति की इस हरकत ने मेरा गुस्सा ऑर भी ज़्यादा बढ़ा दिया. मैने उसके हाथ पर हाथ मारा और उसके हाथ से सिगरेट का पॅकेट दूर जाकर गिरा.
लेकिन वो जलती हुई सिगरेट वाला दूसरा हाथ मेरी तरफ बड़ा देती है. मैं उस पर भी एक हाथ मारता हूँ और उसके हाथ से छूट कर, सिगरेट दूर जाकर गिरती है. इसके बाद भी कीर्ति मुस्कुरा रही थी. मैं गुस्से मे दोनो को घूर कर देखते हुए कहता हूँ.
मैं बोला “तुम दोनो को ऐसी हरकत करते हुए शरम नही आती.”
लेकिन मेरी बात सुनकर भी कीर्ति मुस्कुरा रही थी. उस पर मेरी इस बात का कोई असर नही था. मेरा गुस्सा बढ़ रहा था और फिर मैने कमल की तरफ अपनी उंगली करते हुए उस से कहा.
मैं बोला “तुझे कल मैने जो हरकत करते देखा था उसको अनदेखा करके मैने बहुत बड़ी ग़लती कर दी. यदि कल मैने तेरी उस हरकत को नज़रअंदाज ना किया होता तो, आज तुझे इसके साथ सिगरेट पीते ना देख रहा होता. ये सिगरेट का पॅकेट कीर्ति तो ला ही नही सकती. समझ ले अब तेरी खैर नही, कल मौसा जी तेरी अच्छे से खबर लेगे.”
मेरी बात सुनकर तो कमल की जान ही निकल गयी. वो समझ गया कि मैं उसकी कल वाली किस हरकत की बात कर रहा हूँ. वो जल्दी से उठ कर मेरे सामने आकर गिडगिडाने लगता है.
कमल बोला “यार इस सिगरेट पीने मे मेरा ज़रा भी हाथ नही है. मेरी मजबूर था, वरना मैं ऐसा कभी नही करता.”
मैं बोला “खुद तो गंदी हरकत करने से बाज नही आता और अब अपने साथ साथ अपनी बहन को भी बिगाड़ रहा है. मैं तेरी इस ग़लती को कभी माफ़ नही कर सकता.”
मेरी बात सुनकर कमल की हालत खराब हो गयी और वो मिन्नत करते हुए कीर्ति से कहने लगा.
कमल बोला “अरे मेरी माँ, तुम चुपचाप क्यो बैठी हो. ये तो मेरी कोई बात सुन ही नही रहा है. अब तुम ही इसको मेरी कुछ सफाई दो. वरना इसने पापा से ये सब बोल दिया तो, तुम्हारा तो कुछ नही होगा, पर मुझे मार भी पड़ेगी और धक्के मार कर घर से भी निकाल दिया जाएगा.”
कमल की बात सुनकर, कीर्ति ने मुझे ताना मारते हुए, कमल से कहा.
कीर्ति बोली “हम इसके सगे भाई बहन होते तो, ये ऐसे हमारी शिकायत थोड़ी करता. बल्कि उल्टा हमें समझाता और पापा की डाँट से भी बचाता. लेकिन तू चिंता मत कर, इसे जो भी करना है, करने दे. मैं पापा से बोल दुगी कि, तूने जो भी किया, मेरे कहने पर किया है.”
लेकिन कीर्ति की ये बात सुनकर, कमल ऑर भी ज़्यादा घबरा गया. उसने कीर्ति को समझाते हुए कहा.
कमल बोला “अरे तुम पागल हो क्या, समझती क्यो नही. छुरी चाहे खरबूजे पे गिरे या खरबूजा छुरि पर गिरे, काटना तो खरबूजे को ही पड़ेगा. ये चाहे मैने तुम्हारे ही कहने पर क्यो ना किया हो. लेकिन किया तो मैने ही है और ऐसा मैने क्यो किया ये जान कर तो, पापा मुझे जान से ही मार डालेगे. तुम इसे पापा के पास जाने से रोक लो, मैं तुम्हारे पैर पकड़ता हूँ.”
कीर्ति बोली “मैं नही रोकूगी, इसे जो करना है कर ले.”
कीर्ति की इस बात ने तो कमल के तोते ही उड़ा दिए. वो मेरे सामने हाथ जोड़ कर अपनी सफाई देने लगा.
कमल बोला “यार मैने इसकी बात मानकर बहुत बड़ी ग़लती की है. लेकिन मैं मजबूर था. इसने मुझे ब्लॅकमेल किया, इसलिए मुझे इसकी बात मानना पड़ी.”
ब्लॅकमेल किए जाने की बात सुनकर, अब चौकने की बारी मेरी थी. मेरी समझ मे कुछ नही आया तो, मैने कमल से पूछा .
मैं बोला “तूने ऐसा क्या किया था. जिस बात को लेकर इसने तुझे ब्लॅकमेल किया.”
कमल समझ चुका था की, अब उसके पास सच कहने के सिवा कोई रास्ता नही है. उसने अपनी बात खुल कर रखते हुए कहा.
कमल बोला “मेरे दोस्त ने मुझे रखने के लिए कुछ सेक्स की बुक्स दी थी और पढ़ने को मना किया था. लेकिन मुझसे रहा नही गया और मैने वो बुक्स पढ़ ली. उसके पिक देखने के बाद मेरा मन, वो सब रियल मे देखने का हुआ और तब पापा मॅमी को सेक्स करते देखने के लिए मैं उनके कमरे मे झाँकने लगा. ऐसा करते एक दिन कीर्ति ने मुझे पकड़ लिया. इसने मेरी बात पापा को बताने की धमकी दी तो, मैं डर गया और रोने लगा. मुझे रोता देख इसको मुझ पर दया आ गयी और इसने मुझे इस शर्त पर माफ़ कर दिया कि, मैं दोबारा ऐसी ग़लती नही करूगा.”
मैं बोला “जब इसने तुझे माफ़ कर दिया था तो, फिर ये सिगरेट पीने वाली बात कहाँ से आ गयी.”
कमल बोला “आज शाम को जब हम लोग घूम कर आए तो सब बैठे थे. लेकिन ये नही थी तो, मैं इसके कमरे मे गया. ये अपने कमरे मे चुपचाप बैठी थी. मैने इस से पूछा कि क्या हुआ तो, इसने मुझे कुछ नही बताया. लेकिन रात को सबके सोने के बाद सिगरेट पीने की बात करने लगी. जब मैने इसे ऐसा करने से मना किया तो, इसने कहा ये मेरा राज़ छुपा कर रख सकती है तो, क्या मैं इसको एक बार सिगरेट नही पिला सकता. इसलिए मुझे इसकी बात मानना पड़ी. प्लीज़ यार सिर्फ़ एक बार मेरी ग़लती को माफ़ कर दो.”
मुझे अब कीर्ति का सारा खेल समझ मे आ गया था. इसलिए मैने थोड़ा नरम बनते हुए कमल से कहा.
मैं बोला “मान लो मैं ये सब भूल भी जाता हूँ. लेकिन इस बात को कैसे मान लूँ कि, तू ये सब ग़लतिया फिर नही करेगा.”
कमल बोला “मैं अब समझ गया हूँ कि, ये सब चीज़े थोड़ी देर का मज़ा है, पर बाद मे बहुत बड़ी सज़ा है. मैं माँ कसम खाकर कहता हूँ कि, दोबारा ऐसी ग़लती कभी नही होगी.”
मैं कमल की बात सुनकर, कुछ सोचने लगा और कमल गौर से मेरा चेहरा देखते हुए, मेरे जबाब का इंतजार करने लगा. तभी कीर्ति खिलखिला कर हंसते हुए कमल से कहने लगी.
कीर्ति बोली “तू चाहे अपनी माँ की कसम खा या अपनी बहन की कसम खा ले. मगर इसे किसी की कसम से कोई फ़र्क नही पड़ेगा. क्योकि ये तो हमें अपना मानता ही नही है. तू बेकार मे इसके सामने रो रहा है. इसे करने दे जो करना है. मैं बोल रही हूँ ना कि, मैं तुझे बचा लुगी, तो मेरा विस्वास कर, मैं तुझे बचा लुगी.”
कमल बोला “क्या उल्टा सीधा बक रही हो. तुम चुप रहो.”
मैं बोला “उसे बोलने दे, जो बोलना है. लेकिन तू याद रख कि, अब दोबारा ऐसी कोई हरकत नही करेगा. अब तू जा, मुझे अभी इस से बात करनी है.”
मेरी बात सुनकर कमल की जान मे जान आ गयी. इसके बाद वो वहाँ एक पल भी नही रुका और वहाँ से ऐसे गायब हुआ, जैसे गधे के सिर से सींग गायब होते है.
कमल के जाने के बाद, मैं जाकर कीर्ति के पास बैठ गया. मैं अभी उस से कुछ बोलने ही वाला था कि, तभी कीर्ति वहाँ से उठने लगती है. मैं उसे उठता देख, उसका हाथ पकड़ लेता हूँ.
कीर्ति अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश करती है. लेकिन जब वो मुझसे अपना हाथ छुड़ा नही पाती है तो, फिर गुस्से मे मुझसे कहती है.
कीर्ति बोली “मेरा हाथ छोड़ो. मुझे नींद आ रही है.”
मैं बोला “अभी जब बैठ कर सिगर्रेट पी रही थी, तब तुझे नींद नही आ रही थी. अब जब मैं बात करना चाहता हूँ तो, तुझको नींद आ रही है.”
कीर्ति बोली “मुझे तुझसे कोई बात नही करनी. मेरा हाथ छोड़ो और मुझे जाने दो. वरना मुझसे बुरा कोई नही होगा.”
मैं बोला “तुझसे जो करते बने, तू कर ले. लेकिन मैं तेरा हाथ नही छोड़ूँगा.”
कीर्ति बोली “मुझे अपना हाथ छुड़ाना अच्छे से आता है. अब तुम सीधे से मेरा हाथ छोड़ते हो या नही.”
मैं बोला “जब तक मेरी बात पूरी नही हो जाती, मैं तेरा हाथ नही छोड़ूँगा.”
कीर्ति बोली “तो अब देखो मैं कितनी आसानी से अपना हाथ छुड़ा कर जाती हूँ.”
मैं बोला “दिखाओ.”
कीर्ति बोली “तुमको अमि निमी की कसम, मेरा हाथ छोड़ो और मुझे जाने दो.”
कीर्ति की ये बात सुनते ही, मैने उसका हाथ छोड़ दिया. लेकिन उसकी ये हरकत मुझे बहुत बुरी लगी. अपना हाथ छुड़ाते ही कीर्ति मेरे पास से उठ कर खड़ी हो गयी. उसने एक नज़र मेरे उपर डाली और फिर मेरी हालत पर हँसती हुई वहाँ से चली गयी.
मैं चुप चाप बैठे उसे जाते हुए देखता रहा और उसके बारे मे सोचता रहा. उसके जाने के बाद, मैने वहाँ पड़ा सिगर्रेट का पॅकेट उठाया और उसे खोल कर देखा. उसमे सिर्फ़ दो सिगर्रेट ही कम थी. जिसका मतलब था कि उन दोनो ने पहली सिगर्रेट ही जलाई थी और तभी मैं आ गया था.
लेकिन अब मुझे दो बातें परेशान कर रही थी. पहली तो ये कि कीर्ति को अचानक ये सिगर्रेट पीने की क्यो सूझी और दूसरी बात ये कि, कीर्ति ने कमल को इस शर्त पर माफ़ किया था कि, वो दोबारा ऐसी हरकत नही करेगा. इसके बाद भी कमल ने अपनी हरकत करना बंद क्यो नही किया.