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Incest खेल है या बवाल

sunoanuj

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Raghuraka

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मधु: समय,
सुमन: समय?
मधु: हां, एक दिन में २४ घंटे सबको मिलते हैं तुम्हें भी तो अगर बच्चों को कुछ और नहीं दे सकती तो अपना समय दो, उनसे बात करो उनके मन की जानो, उनकी दोस्त बनो, जिससे उनके मन में जो हो वो पहले तुम्हे बताएं।
सुमन: इससे बात बनेगी?
मधु: बिल्कुल बनेगी।
जमुना: हमें भी जीजी की बात ठीक लग रही है री बन्नो।
सुमन: सही कह रही हो जीजी,
और कछु न दे सकत तो समय तो दे सकत हैं।
मधु: बिलकुल सही, अब तुम लोग घर जाओ उनको डांटना मत और उनकी दोस्त बनने की कोशिश करना।

जमुना: ठीक जीजी हम ऐसा ही करेंगी।

इसके बाद दोनों मधु को प्रणाम और आज के लिए धन्यवाद करके अपने अपने घर चली जाती हैं।


अपडेट 6
रास्ते में भी दोनों आपस मे यही बातें कर रही थी कि क्या किया जाए कैसे अपने बच्चों का दोस्त बना जाए, जिससे आगे उन्हे ऐसी मुसीबत न झेलनी पड़े.
यही बात करते करते दोनों घर आती हैं पर ये फैसला करती हैं की अब उस बात के लिए बच्चों को और नहीं दांटेंगी।

घर आकर देखती हैं तो दोनों आंगन में ही बैठे हुए थे अपनी अपनी मां को देखकर दोनों सिर झुका लेते हैं।
दोनों उनके पास जाती हैं और बैठ जाती हैं
जमुना: कछु खाओ तुम दोनो ने कि नही भूख तो लगी ही होगी
जमुना ने बड़े प्यार से पूछा तो दोनों ही हैरान हो गए क्योंकि उन्होंने सोचा था कि आकर और मार पड़ेगी।
धीनू: ननवाय अम्मा भूख नाय लगी हमें।
रतनू: हां हमें भी नाय लगी है
सुमन: देखो तो कैसे झूठ बोल रहे हैं दोनों क्यों मार से ही पेट भर लियो का?
सुमन ने मजाक करते हुए पूछा,
तो धीनू और रतनू भी मुस्कुरा दिए
जमुना: बन्नो एक काम कर तू चाय चढ़ा ले चूल्हे पर हम परांठे सेक लेत हैं फिर साथ में खायेंगे सब।
सुमन: जी दीदी अभी रखते हैं और तब तक तुम दोनों भी हाथ मुंह धो लो और कपड़े बदल लो।

धीनू और रतनू अपनी मांओं के इस बर्ताव से थोड़ा हैरान थे पर खुश भी थे कि कम से कम गुस्सा तो नहीं कर रही हैं ।
दोनों ने जल्दी से बात मानी और नल पर चल दिए
धीनू: यार रतनू ये तो उल्टा ही हो गयो
रतनू: हां यार हम तो सोचे थे कि और पड़ेगी अभई पर मम्मी तो प्यार से बात कर रही हैं।
धीनू: सही है री जो भी हो रहो है, अब हाथ मुंह धो और मस्त चाय परांठे खायेंगे।
रतनू: हां रे, मार खूब खा ली अब खाना खाएं बहुत भूख भी लगी है।

दोनों हाथ मुंह धोकर आए और आंगन में आकर बैठ गए थोड़ी बातें की की कुछ ही देर में जमुना और सुमन भी चाय और परांठे लेकर आ गईं
जमुना: ऐसे अच्छो लगत है ना साथ में खाना।
सुमन: हां जिज्जी सही में अकेले तो खान को मन ही नाय करत।
धीनू: हां अम्मा हम तो कह रहे रोज ही ऐसे खाओ करो
रतनू: और का..
सुमन: मतलब तुम दोनों रोज मार खाए कर आओगे फिर।
इस बात पर चारों खिलखिलाकर हंसने लगे।
सच में ही चारों इस वक्त बहुत खुश नजर आ रहे थे और थे मुश्किलों भरी जिंदगी से किसी तरह से खुशी के चार पल निकाले थे चारों ने, चाय और परांठे वैसे तो कोइ खास व्यंजन या भोजन नही था पर इन चारों के लिए वोही इस समय दुनिया का सबसे स्वादिष्ट भोजन था क्योंकि कम से कम खुशी से मिल जुल कर उनका आनंद तो ले पा रहे थे।

चारों ने खूब हंसी मज़ाक करते हुए खाना खाया और फिर जमुना ने दोनों बच्चों को जानवरों के लिए चारा बटोरने भेज दिया और खुद जानवरों को खाना पीना करने में लग गईं अंधेरा होने को था तो सारा काम पहले ही निपटा लेना सही होता था।

करीब घंटे भर बाद दोनों ही सारे काम निपटा चुकी थीं, तो अपने माथे को साड़ी के पल्लू से पौंछते हुए सुमन बोली: जीजी कछु सोचो उस बारे में?
जमुना: किस बारे में बन्नो?
सुमन: और बच्चों के दोस्त कैसे बनेंगे?
जमुना: हां री हमें कछु समझ ही नहीं आ रहो है, दोस्त का करत हैं एक दूसरे के साथ हमें भी वोही करने होगा बच्चों के संग।

सुमन: खेला कूदी करत हैं। पर हम उनके संग कैसे खेल कूद सकत हैं।
जमुना: हां ये ही तो हमें भी समझ नहीं आ रहो। कि हम कैसे खेलें।
सुमन: एक बात है जीजी की सब खेल थोड़े ही खेला कूदी के होते हैं बैठे वाले भी तो खेल सकत हैं।
जमुना: अरे हां जैसे वो का कहत हैं अंताक्षरी।
सुमन: और का।
दोनों ये बातें ही कर रहे थे कि तब तक दोनों बच्चे भी आ गए।
अंधेरा भी हो चुका था तो सारे काम निपटा कर सब सोने को तैयार थे जैसे ही रतनू अपने कमरे की ओर जाने को हुआ जमुना ने उसे रोका
जमुना: रतनू मत जा लल्ला आज हम सब एक संग सोएंगे।
धीनू: का सच्ची अम्मा?
धीनू ने खुशी से उछलते हुए पूछा
रतनू: मज़ा आयेगा।
सुमन: हां सच्ची। तुम लोग चलो हम कुंडी चढ़ा कर आते हैं
कुछ देर बाद सब जमुना के कमरे में इक्कठे थे, और ज़मीन पर बिस्तर लगा रहे थे,
जमुना: अरे ये चादर छोटी पड़ेगी सुन बन्नो वो चद्दर तो उठा उधर से वो डिब्बा के नीचे दबी है।
सुमन उठकर चद्दर निकलने लगी, और उसके ऊपर रखे अजीब से डिब्बे को देख पूछा: इसमें का है जीजी?

जमुना: का अच्छा ये? पता नाय का है जे दोनो ही उठा कर लाए थे तबसे हमने देखा ही नहीं।
सुमन: बच्चों का है इसमें
सुमन ने बच्चों को डिब्बा दिखाते हुए पूछा...
रतनू: पता नाय मम्मी, नदी में मिला था उस दिन तबसे खोल के देखो ही न है।

जमुना: ले आ बन्नो अभई देख लेत हैं का बवाल है ये।
सुमन डिब्बा लेकर आई और उसे बिस्तर के बीच रख दिया और एक ओर बैठ गई बाकी लोग भी एक एक तरफ बैठ गए और बीच में था डिब्बा लकड़ी का पुराना सा पर कहीं से भी टूटा फूटा नहीं था,
सुमन: श्रृंगार दानी जैसों लग रहो है, खोल के तो देखो जीजी।
धीनू: हां अम्मा खोलो।
जमूना: खोल तो रहे हैं पर खुलेगा कहां से कुछ समझ नहीं आ रहो।
रतनू: कैसो डिब्बा है जे।
धीनू: लाओ मैं देखत हूं।
धीनू ने भी कोशिश करली पर कहीं कुछ नहीं मिला।
धीनू: लगत है एसो ही बेकार डिब्बा है ये कुछ नाय है इसमें।
रतनू ने अब बारी ली और वो भी डिब्बे को पलट पलट कर देखने लगा,
धीनू: अरे रहन दे हम कह रहे बेकार है जे।
रतनू: और रुक तो सही एक मिंट। अह्ह्ह जे कछु लिखो है यहां।
धीनू: हैं पढ़ का लिखो है..
रतनू: हां लिखो है।


शापित खेल
स्वागत है आपका दुनिया के सबसे रोचक खेल में जो देगा आपको ऐसा रोमांच जो कहीं नहीं मिल सकता।
यदि आप खेलने के इच्छुक हैं तो कुछ बातें जान लें एक बार खेल शुरू होने के बाद बीच में नहीं छोड़ा जा सकता, खेल को खत्म करके ही बंद किया जा सकता है खत्म करते ही मिलेगा आपको वो सब जिसके आप हमेशा से सपने देखते हैं।
तो अगर आगे बढ़ना चाहते हैं तो अपना दायां हाथ सभी खिलाड़ी बक्से के चारों तरफ रखें और तीन बार एक साथ कहें।
है नीरस ये जीवन, लगता नहीं है मन।
ऐ खेल के जादूगर, करदे हमें मगन।

धीनू: जे कैसो खेल है?
जमुना: एक बार शुरू करके बंद नहीं कर सकत जे का मतलब हुआ।
सुमन: हमें भी कछु समझ नाय आ रहो।
रतनू: पता नहीं पहले तो ऐसे खेल के बारे में कभी नाय सुनो।

सुमन: हम तो कह रहे भैया की बंद करो ना जाने का बला होय।
धीनू: पर चाची जे भी तो लिखो है कि खेल ख़त्म होन पर सपने की चीज मिलेगी।

जमुना: नाय नाय लालच बुरी बला होती है।
रतनू: ताई तो वैसे भी कौनसी अच्छी बला चल रही है हमारी?
रतनू की बात सुनकर सुमन और जमुना एक पल को चुप हो गए और एक दूसरे की ओर देखा।
धीनू: अरे खेल के देख लेत हैं न और हमें तो जे एसो ही लग रहो है चूतिया बनाने की चीज है जे और कछु नाय।

रतनू: और का सच्ची में ऐसे खेल होते हैं कहीं?
जमुना: बात तो सही है और एसो का है इस खेल में जो इतनी बड़ी बड़ी बात लिखी हैं अब तो हमाओ भी मन है रहो है खेलन को। तू का कहात है बन्नो?

सुमन: अब जब सभई लोग राज़ी हैं तो हम भी तैयार हैं, वैसे रतनू ने कहा भी जो है रहो है उससे बुरो का ही हो सकत है।
जमुना: और तू चिंता न कर जे कोई बच्चन वालो खेल है और कछु नाय।

धीनू: तो बढ़िया सब तैयार हैं तो रखो हाथ डिब्बा पर।
रतनू और धीनू ने जल्दी से हाथ रख लिया सुमन और जमुना ने भी एक बार देखा एक दूसरे की ओर फिर दोनो ने भी हाथ रखा।
रतनू अब सब एक साथ बोलेंगे ठीक है?
सब ने हामी भरी और फिर साथ में दोहराया

है नीरस ये जीवन, लगता नहीं है मन।
ऐ खेल के जादूगर, करदे हमें मगन।

ये बोलते ही सब डिब्बे की ओर देखने लगे पर कुछ नही हुआ।
जमुना : अरे हमने कही थी न बच्चन को खेल है एसो ही है।
सुमन: हां लग तो कछु एसो ही रहो है
धीनू: धत्त तेरे की जे तो फुस्सी निकलो, हम खेल समझ रहे थे।
रतनू: एक मिनट रुको और रतनू दोबारा से डिब्बे पर लिखे हुए निर्देशों को पढ़ने लगा।

धीनू: छोड़ रतनू यार बेकार ही है जे।
रतनू: इसमें लिखा है कि हाथ रखकर वो मंतर हमें तीन बार दोहराने है तब आगे बढ़ेगा।
धीनू: तो पहले क्यों न बताई यार तूने तीन बार बोलने है?
रतनू: अब दिया के उजाले में जितना दिखा पढ लिया।
जमुना: अरे अब तीन बार बोलने पड़ेगा।
सुमन: अब करके देख लेत हैं जीजी।

रतनू: तो फिर से सब लोग हाथ रखो और बोलो साथ में।
और फिर सबने वोही पंक्ति तीन बार दोहराई:

है नीरस ये जीवन, लगता नहीं है मन।
ऐ खेल के जादूगर, करदे हमें मगन।

तीसरी बार पंक्ति पूरी होते ही डिब्बे में जहां पर निर्देश लिखे हुए थे उन शब्दों में से एक सफेद सी रोशनी निकलने लगी जिसे देखकर चारो हैरान रह गए साथ ही घबरा भी गए तो उन्होंने अपने हाथों को डिब्बे से हटा लिया।
जमुना: जे रोशनी कैसी।
सुमन: जीजी हमें तो जे कोई काला जादू लग रहो है,
जमुना: बच्चों तुम दूर रहो जा से पीछे हटो।
रतनू और धीनू भी उतने ही परेशान थे जितनी उनकी माएं।
इससे पहले ऐसा कुछ किसी ने भी नहीं देखा था, सब हैरानी से उस डिब्बे और उसमे से निकल रही रोशनी को देख रहे थे।
खैर कुछ पल बाद ही शब्दों से निकल रही रोशनी ऊपर की ओर उठने लगी तो चारो घबराने लगे,धीरे से डिब्बे से एक रोशनी का गोला बाहर आया और धीरे धीरे ऊपर की ओर बढ़ने लगा, सब हैरान परेशान होकर उसे देख रहे थे।

सुमन: हाय दैय्या जीजी जे का है हमें बहुत डर लग रहो है।
जमुना: हमें हमें भी सुमन, हम हमको तो लगत है जे किसी के प्राण हैं जो डिब्बा में बंद थे वो निकल रहे हैं।
ये बात सुनकर सुमन और तेज़ रोने लगी।
रतनू और धीनु खुद भी दर रहे थे पर साथ ही अपनी मांओं को शांत करने की कोशिश भी कर रहे थे।

रतनू: मम्मी एसो कछु नाय है तुम रोने बंद करो और शांत हो जाओ देखो हमें कछु कर रही है रोशनी कोई नुकसान नाय कर रही।
धीनू: हां अम्मा थोड़ी शांत हो जाओ।
जब तक इनका रोना पीटना चल रहा था वो रोशनी उपर उड़ती हुई कच्ची छत तक पहुंच चुकी थी और फिर छत पर ही किसी बिजली के बल्ब की तरह चिपक गई और पूरा कमरा उसकी रोशनी से जगमगा उठा, आज जमुना का ये झोपड़ी नुमा कमरा लाला की हवेली के कमरों से भी तेज चमक रहा था।
रतनू: जे तो बल्ब बन गई,
सुमन : हम कह रहे हैं जे जरूर कोई काला जादू है।
जमुना: ईश्वर जाने का बला है ये।
धीनू: पर एक चीज देखो अम्मा कितनी रोशनी है गई है न एसो लग रहो है कमरा में दिन है गयो।

रतनू: और का हमें तो लगत है जे कोई बड़े वैज्ञानिक ने बनाओ है जे और जे डिब्बा कोई मशीन है।
सुमन: हट ऐसी मसीन कहां होती है।
धीनू: नाय चाची विज्ञान ने बड़ी तरक्की कर ली है ताभी देखो कैसे जहाज आकाश में उड़ जात है इतनों बड़ो जे तो बस एक बल्ब है उड़ता हुआ।

जमुना: अरे जे देखो जा डिब्बा में कछु है रहो है।
सब की नजरें डिब्बे पर गईं तो सब हैरान हो गए।


आखिर अब क्या निकलेगा डिब्बे में और आगे कैसा खेल होगा सब कुछ अगली अपडेट में साथ बनाए रखें धनयवाद
Next update do yr bahut time ho gya h ab to
 
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Tiger 786

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अपडेट 1



मिली का??? धीनू??? ओ धीनू….

धीनू: नहीं ई ई ई…

रतनू: धत्त तेरे की, हमने पहले ही बोली हती की मत मार इत्ती तेज पर सारो(साला) सुने तब न, बनेगो सचिन तो और का हेग्गो।

इधर रतनू अकेले में ही गांव के तालाब के किनारे बैठे बैठे बडबडा रहा था, वहीं धीनू छाती तक पानी में डूबा हुआ तालाब में कुछ ढूंढने की कोशिश कर रहा था ।

धीनू: सारी(साली) गेंद गई तो गई काँ? आधो घंटा है गओ ढूंढ़त ढूंडत।

रतनू: बाहर निकर आ अब न मिलैगी.

धीनु: एक लाट्ट बार देख रहे फिर निकर आयेंगे।

धीनू गहरे पानी में कदम बढ़ाता हुआ थोड़ा आगे बढ़ा कि उसकी चप्पल किसी चीज़ में फंस कर उतर गई।

धीनु: इसके बाप की बुर मारूं, सारी गेंद तो मिल न रही चप्पल और उतर गई।

रतनू: का कर रहो है, सारे बाहर निकर देर है रही है।

धीनू: और रुकेगो दो मिंट, हमाई चप्पल उतर गई।

रतनू: सारे पूरो बावरो है तू, गेंद ढूंढन गओ है और चप्पल भी गुमा बैठो। अब वो सारे लल्लन को देवे पड़ेंगे रुपिया, यहां सारे हम वैसे ही कंगाल बैठे।

धीनू: सारे वहां बैठे बैठे चोदनो मति सिखा हमें, बोल रहे न रुक जा दो मिंट। एक तो वैसे ही हमाइ खोपड़ी खराब है रही है।

धीनू ने पैर को इधर उधर चलाकर चप्पल टटोलने की कोशिश की पर कहीं नहीं मिल रही थी तो हार मानते हुए एक लंबी सांस ली और फिर दो उंगलियों से नाक को दबाया और झुक कर लगादी डुबकी पानी में मुंह डुबा कर अपनी कला दिखाते हुए आंखें खोल कर देखा तो पहले कुछ नहीं दिखा पर फिर दूसरे हाथ की मदद से टटोलते हुए देखा तो पाया एक लकड़ी के डिब्बे के नीचे अपनी चप्पल को देखा।

धीनू: जे रही सारी परेशानी ही कर दओ।

एक हाथ से उस लकड़ी के डिब्बे को पलट कर चप्पल को तुरंत पैर से दबा लिया और पहन लिया पर साथ ही उस डिब्बे पर भी नजर मारी जो पलट गया था तो कुछ अजीब सा लग रहा था।

खैर जल्दी से डिब्बा हाथ में उठा लिया।

रतनू: नाय मिली न गेंद, अब कांसे(कहां से) दिंगे लल्लन को गेंद। और जे का उठा लाओ?

रतनू ने भीगे हुए धीनू के हाथ में एक लकड़ी के डिब्बा सा देखकर पूछा।

धीनू: पता न यार मैं भी भए सोच रहूं हूं कांसे दिंगे लल्लन को गेंद, ना दी तो सारो आगे से खेलन नाय देगो।

रतनू: जे का है?

धीनू: अरे जे तो तलबिया में ही मिलो मोए अजीब सो है न? मेरी चप्पल दब गई हती जाके नीचे।

रतनू: है तो कछु अजीब सो ही,

रतनू ने अपने हाथ में डिब्बा लेकर उसे पलटते हुए कहा,

और जे कैसो कुंदा सो लगो है ऊपर की ओर खोल के देखें।

धीनू: सारे बाद में देख लियो मैं पूरो भीजो हूं और तोए डिब्बा की पड़ी है।

रतनू: अच्छा चल घर चल रहे हैं, सारो आज को दिन ही टट्टी है, गेंद खो गई और मास्टरनी चाची को टेम भी निकर गओ।

धीनू: अरे हां यार धत्त तेरे की। ना खेल पाए ना हिला पाए।

रतनू: यार सही कह रहो है, चाची के चूतड़ देखे बिना मुठियाने को मजा ही नहीं है।

दोनों की हर शाम की दिनचर्या का ये समय काफी महत्वपूर्ण और दोनों का ही पसंदीदा था जब वो मास्टरनी चाची जो कि गांव के प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाती थी, शाम के समय स्कूल के पीछे के ही खेत में लोटा लेकर बैठती थीं और ये दोनों ही झाड़ियों में छुपकर उनके चिकने गोरे पतीलों को देखकर अपने अपने सांपों का गला घोंटते थे। और आज गेंद के खो जाने के कारण वहीं दिनचर्या अधूरी रह गई थी।

धीनू: अब का कर सकत हैं, सही कह रहो तू सारो दिन ही टट्टी है।

रतनू: अरे चल, अब जे सोच लल्लन को रुपया कैसे दिंगे।

धीनू: एक उपाय है

रतनू: का?

धीनू: कल मेला लगवे वालो है जो रुपिया मिलंगे उनसे ही गेंद लेके दे दिंगे।

रतनू: पता नाय यार हमें मुश्किली मिलेंगे रुपिया पता नाय मेला जायेंगे की नहीं।

धीनू: क्यों का हुआ एसो क्यों बोल रहो है।

रतनू: मां से पूछी हती तो उनको मुंह बन गयो तुरंत।

धीनू: अरे चिंता मति कर अभे घर चल बाद में देखेंगे।



ये हैं दो लंगोटिया यार धीनू ( धीरेन्द्र) और रतनू(रतनेश) , और काफी सारी वजह भी हैं इनके दोस्त होने की, पहली तो दोनों की उम्र में सिर्फ महीने भर का फासला था और उसी वजह से धीनू दोनों में कभी विवाद होने पर बड़े होने का उलाहना दे देता, और रतनू पर हावी हो जाता था, दूसरी वजह थी दोनों के घर पड़ोस में थे, घर क्या कच्ची मिट्टी से बना एक कमरा और सामने आंगन, दोनों ही परिवार की माली हालत कुछ ठीक नहीं थी, जमीन के नाम पर एक दो छोटे छोटे टुकड़े थे जिन पर खेती करके पेट भरना नामुमकिन है। तो दोनों के ही पिता शहर की एक फैक्ट्री में मजदूरी करते थे और जो मिलता उससे किसी तरह दिन तो कट रहे थे पर बहुत कुछ करना था पर होने के कोई आसार नज़र नहीं आ रहे थे।



जमुना: पता नाय जे दोनों कहां रह गए, सांझ है गई है,

जमुना ने चूल्हे के लिए गट्ठर में से लकड़ियां निकालते हुए कहा,

सुमन: हां जीजी हम तो समझा समझा कै परेशान है गए हैं।

सुमन ने दीवार के किनारे बंधी एक भैंस के सामने चारा डालते हुए जमुना की बात का जवाब दिया।

जमुना : सुमन हरिया की कोई खबर आई का?

सुमन ये बात सुनते ही थोड़ी उदास हो गई।

सुमन: कहां जिज्जी, दुए महीना हुए गए कछु खबर नाय, वे दोनों तो वां जाए के हम लोगन को भूल ही जात हैं।

जमुना: अरे एसो कछु नाय हैं अब वे लोग भी तो हम लोगन की खातिर रहते हैं दूर, नाय तो अपने परिवार से दूर को ( रहना) चाहत है।

सुमन: जिज्जी तुम हमें कित्तो भी समझा लियो पर तुमने नाय देखो वो लाला कैसे उलाहनो देत है कर्ज के लाय, ब्याज बढ़त जाति है,

सुमन ने दुखी होकर बैठकर कुछ सोचते हुए कहा,

जमुना: परेशान ना हो सुमन हमाए दिन जल्दी ही फिरंगे।

सुमन: पता नाय जिज्जी कब फिरंगे, अब हम घबरान लगे हैं, तुमने नाय देखी लाला की नजरें, एसो लग रहो कि हमाये ब्लाउज को आंखन से फाड़ देगो,

जमुना: जानती हूं सुमन, हम दोनो एक ही नाव में सवार हैं री,

सुमन: जिज्जि अगर जल्दी लाला को कर्ज नाय चुकाओ तो वो कछु भी कर सकतु है। गरीब के पास ले देकर इज्जत ही होत है वो भी न रही तो कैसो जीवन।

सुमन ने शून्य में देखते हुए कहा, ढलते सूरज की प्रतिमा उसकी पनियाई आंखों में तैरने लगी।

जमुना: सुमन ए सुमन… परेशान ना हो गुड़िया ऊपरवाले पर भरोसा रखो, वो कछु न कछु जरूर करेगो

सुमन ने साड़ी के पल्लू से अपनी आंखों की नमी को पोंछा और फिर से लग गई काम पर,

जमुना सुमन को यूं उदास देख मन मसोस कर रह गई, ऐसा नहीं था की जमुना पर कम दुख था पर अब उसने इसे ही अपना जीवन मान लिया था, कर्जे के उलाहने पर लाला की नज़र उसे भी नंगा करती थी और वो सुमन का डर समझती थी की अगर जल्दी से लाला का कर्ज़ नहीं चुकाया गया तो अभी तो वो सिर्फ नजर से नंगा करता है फिर तो, और अच्छा है लक्ष्मी अपने मामा के यहां रहती है नहीं तो यहां पर लाला की नज़रें उसे भी,

ये खयाल आते ही जमुना ने अपना सिर झटका और फिर से लकड़ियां निकलने में लग गई।



जमुना एक गरीब मां बाप की बेटी थी जिन्हें दो वक्त खाने को मिल जाए तो उस दिन को अच्छा समझते थे ऐसे परिवार में बेटी एक बेटी से ज्यादा जिम्मेदारी होती है जिसे मां बाप जल्द से जल्द अपने कंधे से उतरना चाहते हैं जमुना के साथ भी ऐसा ही हुआ, पन्द्रह वर्ष की हुई तो उसका ब्याह उमेश के साथ कर दिया गया जो कि जाहिर है गरीब घर से था उमेश के घर में एक बूढ़ी बीमार मां के सिवा कोई नहीं था और वो मां भी ब्याह के तीन महीने बाद चल बसी, ब्याह के एक साल के बाद ही जमुना ने एक लड़की को जन्म दिया, जिसका नाम लक्ष्मी रखा गया, और उसके अगले साल एक लड़का हुआ धीनू। आज जमुना 35 साल की है, दो बच्चों को जन्म देने की वजह से बदन भर गया है, रंग थोड़ा सांवला है पर फटी पुरानी साड़ी में भी ऐसा की किसी का भी मन डोल जाए, इसी लिए लाला जैसे लोगों की नज़रें उसके गदराए बदन से हटती नहीं हैं, लक्ष्मी 19 की हो चुकी है, पर घर के हालात ऐसे नहीं कि उसका ब्याह किया जा सके पहले से ही इतना कर्जा है, लड़का धीनू 18 का हो गया है और वोही जमुना की आखिरी उम्मीद है अपने परिवार के लिए।

सुमन भारी मन के साथ शाम के खाने के लिए सिल बट्टे पर चटनी पीस रही थी, रह रह के उसके मन में सारी बातें घूमें जा रहीं थी, पति की दो महीने से कोई चिठ्ठी नहीं आई थी, कर्ज़ वाले रोज़ तकादा कर रहे थे, उसे जीवन संभालने की कोई उम्मीद नज़र नहीं आ रही थी। सिल बट्टे के बीच में पिसती हुई चटनी उसे अपने जैसी लग रही थी, वो भी तो चटनी ही थी जिसे जिंदगी की सिल पर मुश्किलों का बट्टा पीसता जा रहा था,

सुमन ने जिंदगी में कभी अच्छा वक्त देखा ही नहीं, मां बाप का तो उसे चेहरा भी नहीं याद, बस ये सुना के बाप उसके जन्म से कुछ महीने पहले ही शराब की लत के कारण चल बसा और मां उसको जन्म देते हुए, सुमन को उसके चाचा चाची ने पाला और चाची का उसे मनहूस कहना पैदा होते ही मां बाप को खा जाने वाली कहना आम बात थी,चाची ने बस उसे इसलिए पाला था की समाज क्या कहेगा कि बाकी चाची का ऐसा कोई उसके प्रति मोह नहीं था, चाचा थोड़ा दुलार भी करता था ये कहकर की उसके भाई की आखिरी निशानी है, पर चाची कभी खरी खोटी सुनाने से पीछे नहीं रहती, सुमन जी तोड़ के काम करती सोचती चाची खुश हो जाएंगी, पर चाची को बस अपने बच्चों पर ही दुलार आता था, 14वर्ष की होते होते पतली दुबली सी सुमन का वजन उसकी चाची को बहुत ज़्यादा लगने लगा और 15 की होते होते उन्होंने सुमन की शादी राजेश से कर दी, राजेश अच्छा आदमी था पर बहुत सीधा, किसी की भी बातों में आ जाने वाला, इसी का फायदा उठा उसके भाइयों ने राजेश के हिस्से की जमीन अपने नाम करवाली और शादी के एक साल बाद लड़ाई कर दोनों पति पत्नी को घर से निकाल दिया, दोनों पति पत्नी और गोद में एक महीने का रतनू, बेघर थे वो तो शुक्र था राजेश की स्वर्गीय मौसी का जिनके कोई संतान नहीं थी तो बचपन में राजेश उनके पास ही रहा था तो मौसी ने अपना घर और एक खेत राजेश के नाम कर दिया था बस वो ही मुश्किल में उनके काम आया और तब से राजेश का परिवार अपनी मौसी के गांव में आकर बस गया। दुबली पतली सुमन अब चौंतीस साल की गदरायी हुई औरत हो गई थी, बदन इतना भर गया था की साड़ी के ऊपर से ही हर कटाव नज़र आता था, गेहूंए रंग की सुमन बिना कपड़े उतारे ही किसी के भी ईमान दुलवाने के काबिल थी और गांव में कइयों के ईमान सुमन पर डोल भी चुके थे पर समझ के डर से कोई खुल कर कोशिश नहीं करता था पर सुमन की मजबूरी का फायदा उठाने को कई गिद्ध तैयार थे गांव में। पर सुमन ने किसी तरह खुद को बचाकर रखा था। रतनू भी अब 18 का हो गया था और हो न हो सुमन को भी अब रतनू से ही सहारा था उसे लगता था कि अब उसके दिन उसका पूत ही फेरेगा।

दोनों परिवार अगल बगल रहते थे कच्ची मिट्टी की कोठरी और ऊपर छप्पर बस ये ही था घर के नाम पर दोनों का आंगन बस एक ही समझो क्योंकि बीच में चिकनी मिट्टी की ही एक छोटी सी दीवार थी जो आंगन को दो हिस्सों में बांटती थी।

सुमन के पास एक भैंस थी जो आंगन में बंधी रहती थी उसके ऊपर एक छप्पर डाल दीया था जहां भैंस और चारा वगैरा रहता था वहीं जमुना के यहां दो तीन बकरियां पली हुईं थी।

दोनों के ही पति साथ में मजदूरी करते थे, और महीने दो महीने में आते जाते रहते थे पर इस बार दो महीने में कोई खबर नहीं थी, दोनों ही कुछ नहीं जानती थीं किससे पता करें कैसे करें तो मन मसोस कर इंतजार करने के अलावा दोनों के पास ही कुछ और चारा नहीं था।



पहली अपडेट पोस्ट कर दी है कृपया करके अपने अपने रिव्यू ज़रूर दें और कहानी को आगे बढ़ाने में मदद करें। धन्यवाद
Bohot badiya update
 
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दोनों के ही पति साथ में मजदूरी करते थे, और महीने दो महीने में आते जाते रहते थे पर इस बार दो महीने में कोई खबर नहीं थी, दोनों ही कुछ नहीं जानती थीं किससे पता करें कैसे करें तो मन मसोस कर इंतजार करने के अलावा दोनों के पास ही कुछ और चारा नहीं था।



अपडेट 2



अपनी परेशानियों का भार दोनो उठाए हुए दोनों ही औरतें अपना अपना रोज़ का चूल्हा चौका संभाल रही थी, सुमन ने चटनी बना ली थी तभी दोनों के सहारे और आंखों के तारे आंगन में घुसे।

सुमन : क्यों रे कहा मरी गओ हतो, कछु दिखत है कि नाय। झां ( यहां) हम तबसे राह देख रहे हैंगे।

आते ही सुमन रतनू पर बरस पड़ी और अपने अंदर का सारा क्रोध रतनू पर बहा दिया। उधर धीनू ने जब सुमन चाची को भड़कते देखा तो तुरंत अपनी कोठरी की तरफ खिसक लिया।

रतनू: हम ने का करो मां हम्पे ( हम पर) काय (क्यों) चिल्ला रही है। तोसे बता के तो गए हम कि खेलन जाय रहे हैं कोई काम हो तो बताई दे। खुदी तो तूने कही हती जा खेल आ।

सुमन को रतनू की बात सुनकर एहसास हुआ कि उसने अपने मन का गुस्सा बेचारे पर बिना गलती के ही उतार दिया है। पर फिर भी अपने बचाव में बोली: तो कही हती तो जाको मतबल जे थोड़ी ना है कि अंधेरे के बाद आयेगो।

बात को शांत करने के लिए आखिरी में जमुना को ही बीच में आना पड़ा, और चूल्हे के सामने बैठ कर फूंकनी मुंह से हटा कर बोली: अब रहन दे सुमन का है गयो जो थोड़ी देर है गई तौ। बताई के तो गाओ हतो।

जमुना की बात का सुमन पर कोई जवाब नहीं था और वैसे भी उसे पता था वो बिन बात ही रतनू पर भड़क रही है तो उसने हार मानते हुए रतनू से कहा: जा हाथ धोए आ, रोटी बनाए रहे हैं बैठ जा।

रतनू को थोड़ा डर और बुरा तो लगा था अपनी मां की बात सुनकर पर उसे आदत थी और अपनी मां की हालत वो भी समझता था कि वो कैसे झूझती है हालातों से, और उसी बीच कभी कभी उसका दुख गुस्सा बन कर बाहर निकल जाता है, और कभी कभी सामने वो पड़ जाता है, पर वो जानता था की उसकी मां उसपर जान छिड़कती है पर उसके परिवार पर मुसीबतें भी कुछ कम नहीं थी,

खैर रतनू ने अपनी मां की बात को माना और तुरंत चल दिया दोनो घरों के एक ही नलके की और जो आंगन के एक तरफ था और दोनों ही परिवार उसी का उपयोग करते थे,

जमुना: क्यों लल्ला भीज कैसे गओ, फिर से तलबिया में कूद रहो था न?

जमुना ने हाथों से आटे को पीटते हुए गोल रोटी बनाते हुए कहा,

धीनू: नाय माई वो हमई गेंद गिर गई हती तलबिया में ताई (इसीलिए) से हमें कूदन पड़ो,

जमुना: तुम लडिकन से किट्टी बेर कई है कि तलबिया ते थोरी दूर खेलो करौ, काई (किसी) दिन कछु है गाओ तो लेने के देवे पड़ी जागें।

धीनु: मोए का होयगो माई मोए तैरनो आत है।

धीनू ने अपनी गीली बनियान उतार कर रस्सी पर डालते हुए कहा।

जमुना: हां हां पता है हमें की तोय तैरनो आत है, अब जल्दी से उतार दे भीजे लत्ता (कपड़ा) और अंगोछा ते अच्छे से पोंछ लें नाय तो नाक बहने लगैगी।

धीनू: हां माई उतार तो रहे।

जमुना: और जू का डिब्बा सो है लकडिया को?

धीनू: का जू? अरे जू तो हमें तलबिया में मिलो, हमाई चप्पल फंस गई हती जाके नीचे।

जमुना: का है जा में?

धीनू: पता नाय अभी तक खोल के नाय देखो।

अब तक धीनू ने सारे कपड़े उतार लिए थे और अंत में कोठरी में जाकर एक सूखी बनियान और नीचे एक पुरानी लुंगी को लपेट कर बैठ गया।

जमुना ने भी एक प्लेट में थोड़ी चटनी और एक रोटी रखकर बढ़ा दी धीनू की ओर।

धीनू: घी बिलकुल नाय हतो का माइ?

जमुना: ना बिलकुल नाय तेरे पापा जब आय हते तबही आओ हतो और कित्तो चलेगो?

धीनू: सूखी रोटी खान में मजा न आत है।

जमुना: अभै खाय ले तेरे पापा अंगे तो और मंगाई लिंगे।

धीनू: पता नाय कब आंगे, इत्ते दिन है गए न कोई खोज ना खबर।

धीनू ने रोटी का टुकड़ा मुंह में डालते हुए मुंह बनाते हुए कहा।

जमुना: आँगे जल्दी ही कल हम जाएंगे मुन्नी चाची से पूछन कि हरिया की कोई खबर आई की नाय.

धीनू: हरिया तो पिछले महीने ही आओ हतो, हर महीने घूम जात है और पापा हैं कि कछु याद ही न रहत उन्हें।

जमुना: अरे अब चुप हो जा, और रोटी खान पर ध्यान दे?

धीनू थोड़ी देर शांति से खाता रहा और फिर कुछ सोच कर बोला: माई वो हम कह रहे हते..

जमुना: का कह रहो है?

धीनू: कल मेला लगो है गांव में हमहुं जाएं?

जमुना: अच्छा कल लगो है मेला?

धीनू: तो बाई (उसी) की लें कछु रुपिया मिलंगे?

जमुना: रुपिया??

जमुना को पता था मेला जायेगा तो रुपए तो चाहिए ही पर चौंक इसलिए गई की रुपए के नाम पर उसके पास कुछ नहीं था।

धीनू: हां मेला की खातिर रुपया तौ होने चाहिए ना?

जमुना: देख धीनू तोए भी हालत पता तो है हमाई फिर भी ऐसे बोल रहो है हम पे कछु नाय है।

धीनू: तौ मेला कैसे जागें ऐसे ही बस।

जमुना: लला तू सब जानत तो है तोस्से कछु छुपो तौ है न जब हम पे हैं ही नाय तो कांसे दिंगे।

धीनू का ये सुनकर मुंह बन जाता है,

जमुना: अरे लल्ला ऐसे मुंह न फुलाओ देखौ तुमाय पापा आंगें तो तब ले लियो रुपया और अपनी मरजी से खरच कर लियो।

धीनू: अच्छा मेला कल लगो है और पापा पता नाय कब आंगे, तब हमाय ले मेला लगो थोड़ी ही रहेगो।

धीनू ने खाली प्लेट को सरकाते हुए कहा।

जमुना : अच्छा तौ तू ही बता का करें हम। जब हमाए पास एक चवन्नी तक नाय है तो कांसे दें तोए?

धीनू: काऊ से लै लेत हैं न माई कछु दिन के लै जब पापा आ जागें तो लौटा दिंगे।

जमुना: तेरी बुद्धि बिलकुल ही सड़ गई है का? मेला में जान के लै कर्जा लेगो। थोड़ी सी भी अकल है खोपड़ी के अंदर के नाय।

धीनू अपनी मां की डांट सुनकर मुंह बनाकर चुपचाप उठ गया और कोठरी के अंदर चला गया,

और जैसा हमेशा हर मां के साथ होता है धीनू के अंदर जाने के बाद जमुना की आंखे नम हो गई, वो धीनु पर चिल्लाना नहीं चाहती थी पर वो भी क्या करे, वो जानती थी धीनू कभी किसी चीज़ के लिए ज़्यादा जिद नहीं करता था पर है तो बच्चा ही गांव में मेला लगेगा तो उसका मन तो बाकी बच्चों की तरह ही करेगा ही।

खैर इन आंखों की नमी से सूखी जिंदगी में खुशियों का गीलापन तो आयेगा नहीं तो अपने पल्लू से आंखों की पोंछकर जमुना भी लग गई काम बाकी की रोटियां बनाने में, रह रह कर उसे अपने बचपन के दिन याद आ रहे थे जब उसके गांव में मेला लगता था और वो भी अपने बाप और भाई के साथ बाप के कंधे पर बैठकर मेला घूमती थी हालांकि उसके बाप के पास ज्यादा पैसे तो नहीं होते थे पर जितने भी होते थे उनसे उन्हें खूब मजा करवाता था, जमुना को ऐसे लगता था कि संसार की हर लजीज़ चीज उसके गांव के मेले में मिलती थी, चाट पकौड़ी, गोलगप्पे, रसगुल्ला, पापड़ी, जलेबी, समोसा और खिलौने इतने के देखते ही लेने का मन करे हालांकि सब खरीद तो नहीं पाती थी पर उसे खूब मजा आता था, जमुना सोचने लगती है कि जो मजा उसने अपने बचपन में लिया उसे लेने का हक धीनूका भी है पर गरीबी उसके बेटे का हक़ छीन रही थी पर वो बेचारी कर भी क्या सकती थी सिवाय अपनी हालत पर रोने के।



सामने की कोठरी में मामला थोड़ा शांत था हालांकि रतनू भी अपनी मां से मेले के लिए बात करना चाहता था, पर अपनी मां का रवय्या देख उसने अभी इस बात को न करना ही बेहतर समझा उसने सोचा सुबह इस बारे में मां से पूछूंगा और चुपचाप रोटी और चटनी खाने लगा, सुमन भी कांखियो से अपने लाल को खाते हुए देख रही थी साथ ही उसके मन में ग्लानि के भाव उतार रहे थे की बिन बात ही उसने रतनू को झाड़ दिया, जिस हालत में वो हैं उसमे उस बेचारे का क्या दोष है तो वो भी बच्चा ही सारे बच्चों के जैसे उसके भी शौक़ हैं अरमान हैं उसका भी मन करता होगा, पर वो अपने घर की हालत समझता था और कोई भी अनचाही मांग नहीं करता था।



रतनू के खाने के बाद सुमन ने भी चूल्हा बुझाया और अपने लिए भी एक प्लेट में लेकर बैठ गई, उधर रतनू बाहर जाकर भैंस को छप्पर के नीचे बांध दिया, और आकर कोठरी में अपना बिस्तर लगाने लगा, सुमन भी खा पी कर और चूल्हा चौका निपटा कर कोठरी का दरवाज़ा लगा कर लेट गई और पास रखे मिट्टी के तेल के दिए को बंद कर दिया।

रतनू जो दिन के खेलने के कारण थक गया था तुरंत सो गया, वहीं सुमन की आंखों के सामने अपनी परेशानियां घूमने लगीं। वो रतनू के होते हुए भी काफी अकेला महसूस कर रही थी, दिन तो घर के काम काज में और परेशानियों से जूझने में निकल जाता था पर रात को जब सारा गांव सो रहा होता था तो सुमन को अपने पति की याद आती थी उसे साथी की जरूरत महसूस होती थी वो चाहती थी कि उसका पति उसके साथ हो उसके साथ सारी मुसीबतों को झेले जब सुमन बिन बात रतनू को डांटे तो वो उसे बचाए, सुमन के मन को साथी चाहिए था जिसके सामने वो अपनी हर परेशानी कह सके, रो सके, चिल्ला सके बता सके कि वो क्या महसूस करती है हर पल,हर रोज़, कैसे काटती है वो एक एक दिन।

और सिर्फ सुमन के मन को ही नहीं उसके तन को भी साथी की जरूरत थी और हो भी क्यों न उसकी उम्र ही क्या थी 34 वर्ष उसका बदन अब भी जवान था और सुख मांगता था, वो चाहती थी कि उसका पति आकर उसके बदन से खेले उसे रगड़े, उसकी सारी अकड़न को निकल दे, उसे खूब प्यार से सहलाए तो कभी बेदर्दी से मसले, सुमन के बदन का एक एक उभार कामाग्नि और वियोग की ज्वाला में जल रहा था, वो अपने पति के साथ बिताई हुए पिछली रातें याद करने लगती है जब उसका पति कैसे उसके पल्लू को उसके सीने से हटाकर उसके उभारों को ब्लाऊज के ऊपर से ही मसलता था और सुमन की सांसे अटक जाती थी, वो अपने हाथों से ब्लाउज का एक एक हुक खोलता था, और जब सारे हुक खुल जाते थे तो ब्लाऊज के दोनों पाटों को अलग करके उसके दोनों उभरो को अपने खुरदरे हाथों में भरकर जब हौले हौले से मसलता था तो सुमन की तो जैसे धड़कने किसी रेलगाड़ी के इंजन जैसे चलने लगती थी, उन्हीं पलों को याद करते हुए सुमन का एक हाथ अपने आप ही उसके उभारों पर चला गया और उसे खबर भी न हुई कि वो पति के साथ कामलीला के सपनों में इस कदर को गई थी कि उसकी उंगलियां ब्लाउज के ऊपर से ही उसके आटे के गोले जैसे मुलायम उभारों को गूंथने लगी थीं।

तभी अचानक से सोते हुए रतनू ने करवट बदली तो सुमन को जैसे होश आया और उसे एहसास हुआ कि वो क्या कर रही है तो जैसे उसे खुद के सामने ही लज्जा आ गई झट से उसने अपना हाथ अपने उन्नत वक्षस्थल से हटा लिया और फिर अपने बेटे की ओर करवट लेकर आंखें बंद करके सोने की कोशिश करने लगी।



उधर जमुना जब तक चूल्हा चौका करके कोठरी के अंदर आई तो देखा धीनू सो चुका था एक पल को जमुना ठहर गई और अपने लाल के मासूम चेहरे को देखने लगी जो उसे सोते हुए और प्यारा लग रहा था, इस चेहरे के लिए वो अपनी जान भी न्योछावर कर सकती थी पर आज वो ही उससे नाराज होकर सोया था, उसने कुछ सोचा फिर वो भी बिस्तर पर आकर लेट गई और दिया बंद करके सोने लगी।

अकलेपन के मामले में जमुना भी सुमन जैसी ही थी मन और तन दोनों से ही अकेली, पर सुमन जहां खुद के बदन के साथ खेलने में शर्माती थी वहीं जमुना इसे अपनी किस्मत मान कर कभी कभी खुद को शांत कर लेती थी, कभी धीनू के सो जाने पर जमुना अपनी साड़ी को ऊपर खिसका कर अपनी उंगलियों का भरपूर इस्तेमाल करके खुद को ठंडा करने की कोशिश करती रहती थी।

पर उसके तन की आग ऐसी निकम्मी थी की जितना शांत होती अगली बार उतना ही और भड़क जाती थी, हालांकि शुरू में उसे भी सुमन की तरह शर्म आती थी पर फिर धीरे धीरे वो खुद के बदन के साथ सहज होती गई और अब तो आलम ये था कि एक दो बार तो उसने उंगलियों की जगह मूली गाजर का सहारा भी लिया था।

खैर आज वो दिन नहीं था और जमुना भी जल्दी ही नींद की आगोश में चली गई।

गांव में अक्सर लोग जल्दी ही उठ जाते थे तो सुमन और जमुना भी जल्दी उठकर लोटा गैंग के साथ अंधेरे में ही खेतों में हल्की हो आई थीं और अब अपने और पालतू जानवरों के खाने का इंतजाम करने लगी थी तब जाकर दोनों के ही साहबजादों की नींद खुली, अपनी माओ की तरह ही दोनों मित्र भी साथ में लोटा लिए खेत की ओर निकल पड़े।

खैर सुबह के सारे काम निपटा कर जमुना ने कोठरी की सांकड़ लगाई और सुमन को आवाज दी, ओ री सुमन।

सुमन : हां जीजी का भओ?

सुमन ने नल के नीचे कपड़े रगड़ते हुए पूछा

जमुना: अच्छा तो तू लत्ता धोए रही है, अरे सुन हम जाय रहे हरिया के घरे देख आएं कोई खबर होय मुन्नी चाची को हरिया की तो हमें भी पता चल जाएगो।

जमुना की बात सुनकर सुमन की आंखों में भी एक हल्की सी उम्मीद जागी और उसने भी तुरंत बोला: हां जीजी देख आओ हम हूं जे ही सोच रहे हते।

जमुना: ठीक जाय रहे तू बकरियां देख लियो एक बेर पानी दिखा दियों।

सुमन: अरे जीजी तुम हम देख लिंगे.



जमुना सुमन से बताकर निकल गई मुन्नी चाची के घर, मुन्नी चाची एक पचास वर्ष की विधवा औरत थीं जिनका एक ही लड़का था हरिया और वो भी राजेश और उमेश की तरह ही शहर में काम करता था, तो इसीलिए जमुना सुमन मुन्नी चाची के पास आती रहती थी जिससे उन्हें अपने अपने पतियों के बारे में खबर मिल जाती थी।

जमुना जब मुन्नी चाची के यहां पहुंची तो वो लकड़ियों को तोड़कर जलाने लायक बना रही थीं,

जमुना: राम राम चाची।

जमुना ने आदर से झुककर मुन्नी के दोनों पैरों को पकड़ते हुए कहा,

मुन्नी ने जमुना को देखा और बड़े प्रेम से उसकी पीठ पर हाथ फेरते हुए भर भर के आशीष जमुना पर उड़ेल दिए, अब गरीब के पास देने को बस एक ही चीज होती है आशीर्वाद और दुआ तो चाची ने भी जो था उसे खूब दिया।

मुन्नी: अरे आ आ बहु बैठ, सही करो तू आय गई।

जमुना: का भाओ चाची सब बढ़िया तुमाई तबियत ठीक है?

मुन्नी: अरे सब ठीक है बिटिया अब तू जानति है कि हम तो अपने घोंटू (घुटने) की पीर से परेशान हैं न चल पाएं सही से न कछु ऊपर ते जू सुनो घर काटन को दौड़तहै बहु। तेई कसम खाए के कह रहे कभाऊ कभऊ तो सोचत हैं जा से अच्छे तो ऊपर ही चले जाएं।

जमुना: कैसी बात कर रही हो चाची सुभ सूभ बोलो करौ।

मुन्नी: गरीब के जीवन में का सुभ होत है बिटिया, और हमसे तो परमात्मा को न जाने कैसो बैर पहलहै, पति को छीन लओ और अब एक पूत है वाय गरीबी दूर करे बैठी है।

जमुना: हारो ना चाची, दुख तो सभपरै kkaभी) की ही झोली में ही हैं पर हारन से हु कछु न होने वारो है। हम तो तुमसे पहले से ही कह रहे हैं, हरिया को घोड़ी चढ़ाए देउ।

मुन्नी: अरे हमऊ जे ही चाहत हैं जमुना, पर हरिया है कि सुनत ही नाय हैं, कहत है कि पक्को घर बन जाएगो तौ ही ब्याह करंगे। जिद्दी भी तौ भौत (बहुत) है।

जमुना: वाको भी समझन चहिए चाची कि खुद तौ चलो जात है और झाँ तुम अकेली सुनो घर में।

मुन्नी: अरे हमाई छोड़ जमुना तू बता अपनी।

जमुना: अब हम का बताएं चाची, तुम्हें तौ सब पता ही है, तुमाय पास चले आत हैं सोचिके कि कछु खोज खबर होए तो थोरो चैन परै करेजा में।

मुन्नी: हम सब जानत हैं बहू।

जमुना शून्य में निहारते हुए बोली: खर्चा तक निकारनो मुश्किल है गओ है चाची, रोज़ लाला को तकादो, खेत में कछु पैदा न होत, जवान लड़की छाती पर बैठी है, का करें चाची एक मुस्किल होय तब ना।

मुन्नी: करेज़ा पकड़े रह बहु थोड़े दिन की बात है, उपरवारो परीक्षा ले रहो है, जल्दी ही सब अच्छो है जायगो।

जमुना: तुमाइ कसम चाची हमें तो लगत है उपरवारो हमाई पूरी जिदंगी परीक्षा ही लेतो रहो है और न जाने कब तक लेतो रहेगो। आधी परेशानी तौ हम काऊ से कैह भी न पात चाची।

मुन्नी: हमें मालूम है बिटिया, हमाई तुमाई और सुमनिया की हाथ की रेखा एक ही स्याही की हैं, हमाओ पति भाग(भाग्य) ने दूर कर दओ, तुम दोनन को गरीबी ने।

मुन्नी चाची ने एक गहरी सांस ली और बोली: हम जानत हैं बिन पति के रहनो कैसो है, जू दुनिया को भलो समाज और जा के भले लोग, अकेली दुखियारी औरत के सामने कैसी भलाई दिखात हैं हम सब देख चुके हैं।

जमुना मुन्नी चाची के सिलवटों पड़े चेहरे को देख रही थी और चाची शून्य में देखते हुए अपनी आप बीती सुना रही थी,

मुन्नी चाची: भलेमानुस के भेस में जो भेड़िया छुपे बैठे हैं भूखे जो औरत को बदन नजर आत ही जीभ निकार के वाके पीछे पड़ जात हैं, जब तेरे चाचा हमें छोड़ कै चले गए तो हमाए पीछे भी जा गांव के भले भेड़िया पीछे पड़ गए, बहुत बचाओ हमने खुद को बहू, पर एक दुख होय तो झेले कोई,

गरीबी झेंलते या खुद को बचाते, अगर बात सिरफ हमाई होती ना बिटिया तो हम भूखे भी मर जाते कोई चिंता नाय हती पर गोद में भूखे बच्चा की किलकारी हमसे सुनी नाय गई और हमें अपनो पल्लू ढीलो करनो पड़ो।

ये कहती ही चाची की आंखों से आशुओं की धारा बहने लगी, बेचारी अपने दुखों के बहाव को रोक नहीं पाई।

मुन्नी: हम गरीबन की एक ही दौलत हौत है इज़्जत और हम वाय भी न बचा सके। जब तलक जे बदन मसलने लायक थो खूब मसलो, नोचो और जब मन भरि गाओ तो छोड़ कै आगे बड़ गए।

जमुना को भी मुन्नी चाची की आपबीती अपनी सी लग रही थी, उसके साथ भी वैसा नहीं पर कुछ कुछ तो हो ही रहा था जमुना ने चाची को चुप कराने की कोशिश की और उनके कंधे को सांत्वना में दबाते हुए बोली: हमें पता है चाची तुमने बड़े बुरे दिन देखे हैं पर अब देखियो हरिया भौत ही जल्दी तुम्हें हर खुशी देगो देख लियो।

मुन्नी: हमें अब अपनी खुशी की चिंता नाय है बिटिया हमाई तो कटि गई जैसे कटनी हती, अब बस बालक अच्छे से रहे खुश रहें ब्याह करले बस बाके बाद हमें कछु न चाहिए।

जमुना: भोत जल्दी एसो होएगो चाची देख लियो तुम हम कह रहे हैं बस अब तुम्हाए दुख के दिन पूरे हैं गए समझों।

मुन्नी: अरे हमहू ना तू हमसे मिलन आई और हम तेरे सामने अपनों रोनो रोने लगे। खैर कछु बनाए का? चाय पानी।

जमुना: नाय चाची अभि खाय के ही आ रहे हैं, बस हुमाई तौ एकई इच्छा होत है। कछु खबर है का हरिया की,

मुन्नी: नाय बहु कछु नाय, डाकिया आओ हतो वासे भी पूछी पर कोई चिट्ठी कोई संदेश नाय हतो तुमाओ और सुमनिया भी पूछो पर नासपीटे के मुंह से हां नाय निकरी।

जवाब सुनकर जमुना का मुंह उतर गया जिसे मुन्नी में भी महसूस किया,

मुन्नी : कित्ते दिन है गए उमेश को गए?

जमुना: दूए महीना से जादा है गए चाची, और जबसे गए हैं कोई चिट्ठी पत्तर कछु ना आओ है, ना उनको और न ही राजेश को, अब ऐसे में का करें चाची हम तो हार गए हैं।

मुन्नी: हौंसला रख बिटिया, आभेई से हार मत और चिट्ठी को का है आज नाय कल वे खुद आ जागें, देख हरिया को भी तो डेढ़ महीना है गओ है। आय जागें बस तू अपनो और धीनूआ को संभाल तब तलक।

जमुना ने मुन्नी की बात सुनकर थोड़ी तसल्ली की पर धीनू का नाम सुनकर उसे रात को धीनू का रूठना याद आ गया और उसने ध्यान दिया की धीनू ने आज सुबह से भी उससे कोई बात नहीं की थी।

जमुना: अच्छा चाची अब हम निकल रहे हैं खेत से लकड़ियां उठानी है चूल्हे कै लै।

मुन्नी: हां हम औरतन को काम की कहां कमी एक निपटाओ तौ दूसरो माथे पे बैठ जात है।

जमुना: भए तौ चाची, अब करनो तौ हमें और धीनू कौ ही है ।

मुन्नी: हां कह तौ सही रही है। जा आराम से कोई खबर आएगी तो हम खुद आय जागें तेरे पास।

जमुना: राम राम चाची

जमुना ने एक बार फिर से चाची के पैर पकड़े तो चाची ने एक बार पीठ पर हाथ फेरते हुए आशीर्वाद दिया और फिर कुछ सोच कर बोली: जमुना बिटिया संभल के रहियो, बहुत से भेड़िए बैठे हैंगे घात लगाए कि तू कमज़ोर पड़े और तेरी जवानी को नोच खाएं। जुग जुग जियो।

जमुना को मुन्नी का आशीर्वाद सुनकर घबराहट हुई पर वो भी जानती थी कि चाची जो कह रही हैं सही है, जमुना बिना कुछ बोले सिर हिलाकर वहां से चल दी, रास्ते में आते हुए उसके दिमाग में बस धीनु का ही खयाल चल रहा था कि वो उससे रूठा हुआ है, अरे कैसी मां है री तू जो अपने लाल की एक इच्छा पूरी नहीं कर पा रही वैसे भी कहां वो कुछ मांगता ही है और जब बेचारे ने आज कुछ मांगा तो मैं वो भी नहीं दे पा रही, इस गरीबी के चलते मैंने अपने न जाने कितने अरमानों को गला घोंट के मार दिया है और अब अपने लाल के अरमानों का भी गला घोंट रही हूं। जमुना के मन में यही उथल पुथल मची हुई थी, उसके मन में एक खयाल आया पर उसे सोच कर ही वो डर गई, उसे समझ नहीं आ रहा था क्या करे, बेटे की खुशी के लिए करे या नहीं।

इसी कशमकश में वो चले जा रही थी और एक मोड़ पर आकर उसने फैसला कर लिया, मन की शंका के आगे उसका उसके लाल के प्रति प्रेम जीत गया और उसी लाल की खुशी के लिए जमुना के कदम एक रास्ते की ओर मुड़ गए।





एक अधेड़ उम्र का पर तंदरुस्त बदन वाला आदमी एक आदम कद शीशे के सामने खड़े होकर अपनी मूछों को ताव दे रहा था, बदन पर बस एक लुंगी, बालों से भरा हुआ चौड़ा सीना खुला हुआ, सिर पर आगे के बाल गायब थे तभी उसे दरवाज़े पर किसी के खटखटाने की आवाज आती है,

अब को आय गाओ सारो मरने कै लें। मूछन पै ताव भी न दे पाए हम। ऐ रज्जो देखो को है, रज्जो??? अरे हम भूल ही गए रज्जो तौ मंदिर गई हती हमें ही खोलन पड़ेगो।

इतना कह वो जाकर सीधा दरवाजा खोलता है और सामने एक औरत को खड़ा देख बोलता है: अरे अरे जमुना आज हमाय गरीब खाने में खुद आई हैं वैसे तो हमेही जानो पड़त है तुमाए दर्शन करन।

जमुना: लालाजी हमें तुमसे कछु बात करनी हती।

जी ये है लालाजी उमर ये ही करीब 40 के आस पास की होगी, थोड़ा सा पेट निकला हुआ पर चौड़े सीने के कारण ज्यादा मोटा नहीं लगता, ब्याज पर कर्ज देना इसका खानदानी पेशा है, और फिर कर्जे के बोझ के तले गरीबों की जमीन पर कब्जा करना, कर्जा लेने वाले न जाने गांव के कितने ही लोगों की बहु बेटियों को ये अपने नीचे ला चुका है, जिसने इससे एक बार कर्जा ले लिया वो इसके जाल में फंसता चला जाता है पहले जमीन जाती है और फिर घर की बहु बेटी लाला के बिस्तर की शोभा बढ़ाती है, गांव में अपनी धाक जमाने के लिय लाला ने कुछ चमचे भी पाल रखे हैं जो लाला के कहने पर किसी गरीब को हाथ पैर तोड़ने से लेकर उसकी बहु बेटियों को जबरदस्ती उठा लाने तक का काम करते हैं, लाला पहले किसी की घर की इज्जत को खुद लूटता है और फिर अपने चमचों के आगे फेंक देता है। जिस पर चमचे भूखे गिद्दों की तरह झपट पड़ते हैं पर समाज के सामने ये बहुत शरीफ बन कर रहता है सारे उल्टे काम छुपकर करता है।

लाला: हां हां जमुना रानी हम तो आपही लोगन की सुनन के लै तौ बैठे हते। आओ आओ अंदर आओ।

जमुना ने डरते हुए कदम अंदर बढ़ाए और लाला ने जमुना के पीछे तुरंत दरवाज़ा बंद कर दिया। लाला जमुना को ऊपर से नीचे घूरता हुआ सामने पड़े एक दीवान पर जाकर बैठ गया।

लाला: हां जमुना रानी कहो का बात करनी हती तुम्हें।

जमुना: वो लालाजी हमें थोड़े रुपिया की जरूरत हती, कछु मिलजाते तौ मुस्किल हल है जाती,

लाला जमुना को तीखी निगाह से देखते बोला: देख जमुना तोय जरूरत है हम समझ सकत हैं पर तुझे भी पता है तेरे आदमी पर पहले से ही हमाय kitte रूपया उधार हते, और पिछले तीन महीना सै मूल तौ छोड़ो ब्याज भी न आओ हतो। तौ अब तुम ही बताई दियो कि और रुपिया कैसे दें दें तुम्हें।



जमुना: हम जानत हैं लालाजी वो का है कि धीनू के पापा आन बारे ही हैं जल्दी ही और उनके आत ही हम तुमाए पिछले दोनों महीने को ब्याज भी चुकाए देंगे और जो अभेई लिंगे जे भी पूरे दे दिंगे।

लाला: देख जमुना हम काऊ के साथ गलत नाय कर सकत अगर तोय छूट देके और उधर दिंगे तौ जे बाकी सब के संग अन्याय होएगो। और जे हम ना कर सकत। जे परम्परा हमाए पुरखन तै चली आय रही है जो नियम कानून वे लोग बनाए गए वे हमें मानने पड़तें।

जमुना: हम अलग से कर्जा नाय मांग रहे लालाजी जे बस थोड़े से चाहिएं और पूरे लौटाए दिंगे कछु दिनन में ही।

लाला: देख जमुना हमें पता है तोय जरूरत है तासे ही तू हमाए दरवज्जे पर आई हती पर हमाई भी मजबूरी है, हम तोय सांत्वना दे सकत हैं रुपिया नाय।

लाला का जवाब सुनकर जमुना बेचारी निराश हो गई और भारी कदमों से बापिस मुड़ कर जाने लगी कुछ ही कदम बढ़ाए होंगे कि उसे लाला ने आवाज दी

लाला: रुक जमुना।

जमुना लाला की आवाज सुनकर तुरंत पलट गई,

लाला: देख जमुना हम वैसे तौ कछु नाय कर सकत हमाए हाथ नियम कानून से बंधे भए हैं पर एक काम होए सकत है।

जमुना: वो का लालाजी

जमुना को एक हल्की सी उम्मीद बंधी।

लाला दीवान से खड़ा हुआ और धीरे धीरे जमुना की ओर बढ़ता हुआ बोलने लगा।

लाला: देख जमुना तू तौ जान्त है कि हम एक वोपारी(व्यापारी) हैं और बोपार को एक ही नियम होत है, एक हाथ लेओ एक हाथ दियो, सही कह रहे ना?

जमुना ने थोड़ा असमंजस से में सिर हिला दिया

लाला: जैसे तू दुकान पै जात हैगी तो रुपया देत हैंगी और समान लेत हैगी।

जमुना: हां लालाजी

लाला: तौ बस तोय भी वैसो ही करने पड़ेगो। अगर रूप्या चहियें तौ बदले में कछू ना कछू तौ देनो पड़ेगो।

जमुना बेचरी असमंजस में फंस गई और सोचने लगी की अब मेरे पास क्या होगा लाला को देने के लिए।

जमुना : लालाजी हम गरीब के पास रूपया के बदले में देन को का होयेगो अगर कछू होतो तौ हमैं मांगन की जरूरतहे नाय पड़ती।

लाला अब तक चलते हुए जमुना के करीब आ चुका था,

लाला: अरे जमुना रानी ऊपर वारो इत्तो निरदयी नाय हतो, वाको तराजू बहुत सही है, काऊ को कछू देत है तौ काऊ को कछू। हमैं रुप्या दओ है तौ तुम्हें हू कछू ना कछू तो जरूर दऔ हैग्गो।



जमुना: हमैं तौ समझ नाय आय रहो लालाजी कि हमाय पास ऐसो का है जो हम तुम्हें रूपया के बदले दे सकें।

लाला अब जमुना के चारों ओर चक्कर लगा लगा कर बात कर रहा था जैसे कि भेड़िया किसी मासूम हिरन का शिकर करने से पहले उसे घेरता है।

लाला ने जमुना के बगल में रुक कर उसकी साडी और ब्लौज के बीच से झांकती नंगी चीकनी मासल कमर को घूरते हुए कहा: अरे जमुना रानी तेरे पास तो भौत कछू है कि अगर तू काय को दे दे तो वो मलामाल है जाए।

जमुना को जब लाला की थोड़ी बात समझ आई साथ ही उसने जब लाला की नजर का पीछा किया तो उसे खुद की कमर को घूरता हुआ पाया बस जमुना तो जैसे वहाँ खडे खडे बुत सी बन गई, उसे यहाँ आने से पहले जो डर सता रहा था वो सच होता जा रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था क्या करे क्या बोले, वो चाह रही थी कि धरती फट जाए ओर वो धरती के सीने में समा जाए।

जमुना: ज्ज ज्जी जी लालाजी हम कछू समझे नाय।

लाला: हम समझाय देत हैं जमुना रानी।

और ये बोलकर लाला ने जो किया उससे तो जमुना के होश ही उड गए वो शर्म से मरने को हो गई। लाला ने अपना हाथ बढ़ाकर जमुना की नँगी कमर पर रख दिया और उसे मसलने लगा।।





इसके आगे क्या हुआ अगली अपडेट में तब तक आप लोग कृपा करके कॉमेंट ज़रूर करें और बताएं कैसी लगी आपको कहानी। बहुत बहुत धन्यवाद।
Superb update
 
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जमुना को जब लाला की थोड़ी बात समझ आई साथ ही उसने जब लाला की नजर का पीछा किया तो उसे खुद की कमर को घूरता हुआ पाया बस जमुना तो जैसे वहाँ खडे खडे बुत सी बन गई, उसे यहाँ आने से पहले जो डर सता रहा था वो सच होता जा रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था क्या करे क्या बोले, वो चाह रही थी कि धरती फट जाए ओर वो धरती के सीने में समा जाए।

जमुना: ज्ज ज्जी जी लालाजी हम कछू समझे नाय।

लाला: हम समझाय देत हैं जमुना रानी।

और ये बोलकर लाला ने जो किया उससे तो जमुना के होश ही उड गए वो शर्म से मरने को हो गई। लाला ने अपना हाथ बढ़ाकर जमुना की नँगी कमर पर रख दिया और उसे मसलने लगा।।




अपडेट



जमुना का शरीर डर और शरम से जम सा गया उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसके बदन में जान ही नहीं है उसका खूंन जैसे जम सा गया है उसके मांसल पेट के जिस हिस्से पर लाला का हाथ था उसे लग रहा था वो हिस्सा जल रहा है, वो बहुत तेज चिल्लाकर लाला को दूर कर देना चाहती थी, धक्का दे कर भाग जाना चाहती थी, पर उसका गला जैसे जम गया हो उसकी ज़बान पत्थर की हो गई थी उसके गले से आवाज़ तक नहीं निकल रही थी, लाला का हाथ उसकी कोमल कमर को अपनी घिनौनी उंगलियों से मसल रहा था उसे खुद से घिन आ रही थी और तभी अचानक जैसे उसकी खोई हुई ताकत वापस आ गई, उसके पत्थर बने हाथ वापिस हाड़ मांस के हो गए। दोनों हाथ साथ उठे और दोनों हाथों ने मिलकर लाला को धक्का दिया तो लाला पीछे की ओर दरवाज़े के बगल में दीवार से जा लगा,



जमुना की सांसे किसी रेल के इंजन की तरह चल रही थीं, अचानक उसे ऐसा लगा जैसे उसका बदन हल्का हो गया है, उसके बदन से न जाने कितना भारी बोझ हट गया है और वो बोझ लाला के हाथ का था जो उसकी कमर से हट चुका था, कहने को तो हाथ सिर्फ कमर पर था पर उसके नीचे जमुना का पूरा वजूद उसका आत्म। सम्मान सब कुछ दबा हुआ था, लाला की उंगलिया सिर्फ उसके कमर के माँस को नहीं मसल रही थी, बल्कि जमुना की इज्जत, उसके सर उठाकर चलने के अरमानो को मसल रही थीं, उसके पतिव्रत जीवन को मसल रही थीं। जमुना को अब जाकर थोड़ा होश आया तो उसे यकीन नहीं हुआ कि उसने लाला जैसे बलशाली और बड़ी काया के व्यक्ति को धक्का देकर इतनी दूर फेंक दिया है, इतनी शक्ति न जाने कहां से उसके अंदर आ गई।



दीवार से लगे लाला को तो जैसे एक हैरानी और अचंभे ने घेर लिया, उसे यकीन नहीं हुआ कि उससे आधे कद वाली स्त्री जिसकी उसके आगे कोई औकात नहीं है उस औरत ने उसे यूं धकेला कि वो दीवार से जा लगा, लाला को जिसका पूरे गांव क्या आस पास के सभी गांवों में इतना रसूख था, कि उसकी बात को काटने की किसी में हिम्मत नहीं होती थी उस लाला को एक मामूली सी गरीब पुरानी साड़ी लपेटे एक औरत ने धक्का दे दिया। लाला के साथ ऐसा कभी नहीं हुआ था कि कोई भी औरत उसके जाल में न फंसी हो,

जमुना की तरह ही जब भी कोई औरत लाला से कर्जा मांगने आई तो उसके कुछ देर बाद ही वो औरत लाला के नीचे होती थी, और लाला कर्जे के बदले में औरत के जिस्म को नंगा कर भोगता था, जब वो उनके बदन को मसलता था अपनी मर्दानगी के तले रौंदता था, अपने मजबूत हाथों से उनकी छातियों को गूंथता था तो हर औरत चीखती चिल्लाती थी आहें भरती थी, उससे रहम की भीख मांगती थी और वो चीखें वो आहें सुनकर लाला को जो सुख मिलता था वो उसके लिए जीवन का परम सुख था, औरतों की चीखें, उनकी रहम की गुहारें, उनकी आहें, लाला के कानों का सबसे पसंदीदा संगीत था,

आज जमुना को अपने दरवाजे पर देखकर लाला को बेहद प्रसन्नता हुई थी, न जाने कब से वो जमुना के जिस्म को नोचना चाहता था उसे नंगा कर के अपने नीचे मसलना चाहता था, कई बार उसने जमुना को खेतों में काम करते देखा था, पसीने से भीगे जमुना के मादक बदन को देखकर लाला के पजामे में न जाने कितनी बार तनाव आया था, जमुना के गोल मटोल बड़े बड़े नितम्ब उसे बहुत आकर्षक लगते थे, वो उन मांस के तरबूजों को चखना चाहता था, खाना चाहता था, भीगे हुए ब्लाउज में कैद जमुना के पपीते के आकार के स्तन देख लाला का गला सूख जाता था और वो जानता था उसके सूखे गले की प्यास बस जमुना के ब्लाउज को खोलकर ही बुझ सकती थी

तो आज जमुना को दरवाजे पर देखकर लाला को अपनी प्यास बुझती नजर आई थी, उसने सोच लिया था कि आज जमुना को खूब रगडूंगा।

पर हुआ उसका बिलकुल उलट जमुना ने तो उसे दूर धकेल दिया, आज तक किसी भी औरत की इतनी हिम्मत नहीं हुई थी, जमुना ने धक्का तो लाला के बदन को दिया था पर उसकी चोट लाला के आत्मसम्मान पर हुई थी, उसके अहंकार पर हुई थी,

कैसे एक मामूली सी औरत ने लाला को धक्का दे दिया, क्या इज्जत रह जायेगी उसकी समाज में अब, लाला के दिमाग में यही सब घूमने लगा दीवार से लगे लगे उसके चेहरे के भाव बदलने लगे, हर एक पल के साथ लाला को उसके आत्मसम्मान की चोट का एहसास गुस्से में बदलने लगा, उसका मन ये यकीन नहीं कर पा रहा था की ऐसा भी कोई औरत कर सकती थी उसके साथ, आज तक हर औरत ने उसके आगे अपना पल्लू ही गिराया है, बचपन से लेकर अब तक उसके सामने हर औरत साड़ी खोलती ही आई है, और ऐसा हो भी क्यों ना, उसके बाप दादा सब ने ही तो ये किया था, उसके सामने ही न जाने कितनी औरतों को उसके बाप ने अपने नीचे कुचला था, तो अगर वो ऐसा न कर पाया और कोई औरत उसके चंगुल से निकल गई तो इसका मतलब तो वो अपने पूर्वजों को मुंह तक नहीं दिखा पाएगा।



लाला ने जमुना के एक धक्के सोच सोच कर इतना बढ़ा बना लिया उसका क्रोध सातवे आसमान पर पहुंच गया, उसी क्रोध में लाला जमुना की तरफ पलटा,

सहमी हुई सी जमुना जो कि अब तक जो हुआ उसे ही समझने की कोशिश कर रही थी उसकी नजर लाला के चेहरे पर पड़ी और लाला का क्रोध में लाल चेहरा देख तो जमुना डर से कांप गई वो सोचने लगी उसने धक्का देकर कहीं कुछ गलत तो नहीं कर दिया लाला के चेहरे को देखकर उसे लगने लगा ये उसके जीवन का आखिरी दिन है, उसका पूरा बदन डर से थरथरा रहा था, कहां वो बेचारी गरीब दुखियारी औरत और सामने कहां लाला जिसकी पूरे ही गांव में कितनी चलती थी,

गुस्से में लाला बिना सोचे समझे जमुना की ओर बढ़ने लगा,

लाला को अपनी तरफ आता देख जमुना का पूरा बदन कांपने लगा, उसे अपना जीवन खत्म होता दिखने लगा उसकी आंखों के सामने अपना पूरा जीवन किसी फिल्म की तरह चलने लगा।

उसी बीच लाला लगातार जमुना की ओर बढ़ रहा था लाला जमुना के करीब जैसे ही पहुंचा जमुना की हालत ऐसी थी जैसे वो अभी बेहोश हो जायेगी, वो अपना बचाव तक करने की हालत में नहीं थी, लाला ने गुस्से में ये ठान लिया था कि अब वो जमुना को उसके किए की सजा देकर ही रहेगा, लाला ने जैसे ही जमुना के पास पहुंचकर अपना हाथ आगे बढाया ही था कि अचानक से दरवाज़े पर दस्तक हुई,

और लाला का ध्यान दरवाज़े पर गया, दोबारा से खट खट हुई तो लाला न चाहते हुए भी जमुना के सामने से हटा और दरवाज़े की ओर बढ़ा, लाला के घूमते ही जमुना की जान जैसे वापस आने लगी, जमुना को लगा जैसे आज पहली बार ईश्वर ने उसकी सुध ली है। लाला ने दरवाज़ा खोला तो सामने लाला की पत्नी रज्जो जिसका नाम रजनी था पर गांव में असल नाम से कोई कहां पुकारता है तो हो गई वो रज्जो वोही थी।

रज्जो को देख लाला थोड़ा निराश हुआ पर अब क्या कर सकता था, तो अपने अंदर भरे गुस्से को अपनी पत्नी पर निकालते हुए ही वो बोला: कां मर गई हती इत्ती देर लगत है मंदिर में?



लाला ने दरवाजे से हटते हुए कहा, रज्जो पति की डांट सुनकर जरा भी हैरान नही हुई उसे इसकी आदत हो चुकी थी उसका पति किसी न किसी बात का गुस्सा उस पर निकालता रहता था, चाहे उसका उस बात से कोई लेना देना ही न हो, जब सामने से लाला हटा तो रज्जो की नजर सामने डरी सहमी सी खड़ी जमुना पर गई,

जमुना को देखकर रज्जो ने सवालिया निगाहों से लाला को देखा पर खेला खाया लाला खुद को बचाने में माहिर था,

लाला: जे उमेश की घरवाली और कर्जा मांगन आई है, हमने तौ साफ मना कर दई, पर देखो मान ही न रही है, पहले पिछलो हिसाब निपटाओ तभही आगे रुपिया मिलिंगे।



रज्जो बेचारी क्या करती हमेशा की तरह पति की हां में हां मिलादी,

रज्जो: हां री जमुनिया देख बात तो जे ही सही है पहले पिछलो दे जाओ फिर ही नओ कर्जा मिलिगो।



जमुना जो अब तक जमी हुई खड़ी थी उसे कुछ होश आया और वो तुरंत बिना कुछ बोले भागी,



जमुना को यूं बिन कुछ बोले जाते देख लाला अंदर चला गया वहीं रज्जो खड़ी खड़ी दरवाज़े को देख रही थी, उसका पति उसे बेवकूफ समझता था पर वो थी नहीं, वो समझती थी कि कर्जे के लिए मना ही करना था तो अंदर से दरवाज़ा लगाने की क्या जरूरत थी, और बाकी का बचा कूचा हाल जमुना के चेहरे ने बयां कर दिया था, जमुना के चेहरे पर को भाव थे उसे देखकर साफ पता चलता था कि उसके साथ क्या हो रहा होगा,

रज्जो भी औरत थी और उसे पता था औरत कब कैसा महसूस करती है, जब से इस घर में ब्याह कर आई थी, तबसे उसने खुद को ऐसे ही ढाल लिया था उसे सब पता होता था कि उसका पति अपनी हवस मिटाने के लिए न जाने कितनी ही औरतों के जीवन से खेलता है पर वो कर भी क्या सकती थी औरत की जिम्मेदारी है बस घर संभालना और हर तरीके से पति को खुश रखना अपना वजूद था ही कहां उसका, पति ने प्यार दिया तो खुशी खुशी लिया गाली दी तो वो भी खुशी खुशी लेना उसने सीख लिया था, इससे सिर्फ रसोई में क्या बनेगा या घर में किस रंग की रंगाई होगी इसके अलावा कोई फैसला वो नहीं करती थी।

वो सब जानती थी कि उसका पति उसके साथ धोखा करता है दूसरी औरतों की इज्जत के साथ खेलता है पर वो जानबूझ कर इन सब चीजों को अनदेखा करती थी क्योंकि वो जानती थी कि वो अगर इसके बारे में लाला के सामने भी जायेगी तो कुछ नहीं होगा, जो अभी लाला ये सोचकर कि उसे नहीं पता थोड़ा छुप कर करता है फिर वो सामने करने लगेगा जो कि वो देख नहीं पाएगी, तो उसने खुद को इस भ्रम के जीवन में बांध लिया था,

वो भी ये सब सोचते हुए अंदर चली गई।



जमुना लाला के घर से निकली तो सीधी भागी जा रही थी उसकी आंखों से आंसुओं की धारा रुक ही नहीं रही थी, उसे ऐसा लग रहा था जैसे आज उसका समाज के उस घिनौने चेहरे से, या यूं कहें उस राक्षस से सामना हुआ था जो हमें लगता था कि हमारी पलंग के नीचे है जिस से रात में हम पलंग के नीचे झांकने से डरते थे, आज वोही नीचे का राक्षस जमुना के सामने आ खड़ा हुआ था, उसे ये तो हमेशा से पता था कि समाज का ये चेहरा भी है पर उसका खुद का सामना भी कभी होगा उसने ये न सोचा था।

जमुना उखड़ती सांसों के साथ बस भागी जा रही थी, अपना घर उसे बड़ी दूर लग रहा था वो किसी भी तरह से अपने घर पहुंचना चाहती थी,



सुमन जमुना की बकरियों को पानी देकर खड़ी हुई थी कि अचानक उसकी नज़र भागती हुई आती जमुना पर गई उसको इस तरह भागते देख सुमन डर गई उसे कुछ गलत का अंदेशा होने लगा,

जमुना को तो जैसे आंगन में खड़ी दिखी ही नहीं वो सीधी कमरे के सामने गई कांपते हाथों से दरवाजा खोला और अंदर जमीन पर पड़ी एक चटाई पर गिर गई,

जमुना को यूं अंदर जाते देख सुमन भी बाल्टी छोड़ कर उसके पीछे भागी भाग कर जब कमरे के दरवाज़े पर पहुंच जमुना को इस हाल में देखा तो सुमन कांप गई उसके मन में अनेकों अनचाहे खयाल आने लगे, कुछ अनिष्ठ होने की कल्पना से सुमन का मन घबराने लगा, उसके मन ही मन में ईश्वर की प्रार्थना होने लगी न जाने कितने ही भगवान के नाम का उसने जयकारा लगा दिया इस पल में ही।

भारी कदमों से सुमन ने बढ़ कर जमुना के करीब पहुंची,

सुमन: जीजी का है गओ, ऐसे काय(क्यों) रोए रही हो, जीजी हमाओ करेजा(दिल) मचल रहो है, जीजी का है गओ (गया).

जमुना थी जो बस रोए जा रही थी उसे देखकर सुमन की आंखों से भी आंशु बहने लगे साथ ही मन में घबराहट कि जरूर कुछ गलत हुआ है नहीं तो जमुना जैसी कठोर औरत यूं नहीं रोती।



सुमन: बस जीजी हम हैं तुमाए पास, बस सब ठीक है, बस अब न रो, शांत है जाओ।

बास्स्स।

सुमन ने जमुना को अपने सीने से लगाकर किसी बच्चे की तरह शांत करते हुए कहा,

जमुना को भी थोड़ा आराम मिला तो उसका रोना भी कम हुआ,

सुमन: जीजी हमें बहुत घबराहट है रही है, का है गाओ हमें बताए दो, तुमाई कसम जीजी करेजा मुंह को आए रहो है।

जमुना ने सुबकते सुबकते हुए ही एक एक बात सुमन को बता दी जिसे सुनकर सुमन भी कांप गई, क्योंकि उसे पता था कि आज जो जमुना के साथ हुआ है कल उसके साथ भी होगा, लाला के कर्ज़ के तले वो भी दबी हुई है, सुमन का दिल भी घबराने लगा, आने वाले खतरे को सोचकर वो कांपने लगी, जमुना को अपने सीने से लगाए वो सोचने लगी, कि जमुना तो तब भी भाग आई और किसी तरह झेल गई पर क्या वो सह पाएगी, हो न हो उससे पहले ही वो अपनी जान दे देगी, उसमे शायद इतना साहस नहीं है कि इस तरह से वो लाला का सामना कर सके।



साहस तो जमुना में भी नहीं था पर अपने बेटे के मोह में आकर चली गई थी, उसने सोचा कहां था कि पुत्र प्रेम की सजा इस तरह से ये समाज उसे देगा। दोनों न जाने कितनी ही देर तक एक दूसरे की बाहों में पड़ी आंसू बहाती रहीं, सुमन हालांकि जमुना को हिम्मत बंधा रही थी पर उसकी खुद की हिम्मत जवाब दे चुकी थी, दोनों एक दूसरे के सीने में शायद सुरक्षित महसूस कर रहीं थी और इसी लिए काफी समय तक ऐसे ही पड़ी रहीं।



एक पीपल के नीचे बैठे हाथ में कंचे लिए हुए दोनों दोस्त अपनी मांओं की परिस्थिति से बेखबर कुछ और ही उधेड़बुन में लगे हुए थे।

धीनू: का करें यार रुपिया की तौ कछु जुगाड़ न भई (हुई)

रतनू: हां यार मां पहले से ही गुस्सा हती हमाई तो बोली भी न निकरी(निकली) उनके आगे।

धीनू: अच्छा है नाय निकरि, हमाई निकरी तौ चिल्लाय पड़ी माई।



रतनू: फिर अब का करें कहूं सै तौ पैसन की जुगाड़ करने पड़ेगी ना।

धीनू: मेरे पास एक उपाय है।

रतनू: सही में? बता फिर सारे..

धीनू: सुन…





क्या हुआ जमुना और सुमन का और साथ ही क्या उपाय निकाला है धीनू ने सब कुछ अगली अपडेट में, अपने रिव्यू ज़रूर दें। बहुत बहुत धन्यवाद।
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