kamdev99008
FoX - Federation of Xossipians
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बहोत बहोत धन्यवाद कामदेव जी. आप प्लीज एक बार किस्से अनहोनीयों के पर भी आइये. आप को माझा आएगा.बहुत खूब
जरूरबहोत बहोत धन्यवाद कामदेव जी. आप प्लीज एक बार किस्से अनहोनीयों के पर भी आइये. आप को माझा आएगा.
Waah Shetan ji .. Maza aaya padh kar... specially nawab sahab ki sehat ke baare mein .... ki wo bechare pen rakhte they taaki udh na jayein.......नवाब साहब बस मे तो चढ़ गए. पर उन्होंने ये नहीं देखा की जेब मै खुले पैसे है या नहीं. नवाब साहब अपने ससुराल से लोट रहे थे.
आजमगढ़ से लखनऊ तक के बस के सफर मे सडक के गढ़ो से हिचकले खाते नवाब साहब बस यही सोच रहे थे की अच्छा है. खर्चा बच गया. वो अपनी बेगम को उसके मायके छोड़ने गए हुए थे.
अपने ससुराल वो बढ़िया मीठाई के बदले सस्ती सी जलवबी ले गए थे. नवाब साहब वैसे तो काफ़ी धनवान थे.
पर जितने धनवान वो उतने ही कंजूस भी थे. हमेसा खर्चा बचाने और दुसरो पे डालने के चक्कर मे रहते थे. वो मन ही मन खुश होते मुस्कुरा रहे थे. अच्छा है. खर्चा बच गया.
तभी बस के कंडक्टर ने उनकी खुशियों पर ग्रहण लगाया. ग्रहण इस लिए क्यों की पैसे जो खर्च होने थे. टिकट जो खरड़ना पड़ रहा था.
कंडक्टर : बताइये श्रीमान. कहा का टिकट कटे???
नवाब साहब ने सर ऊपर उठाया. और कंडक्टर को देखा. काला मोटा नाटा पसीने से लटपट आदमी खाखी कपड़ो मे सर पर ही खड़ा था.
कंडक्टर : टिकट लीजिये श्रीमान.
नवाब साहब : (पान चबाते) मुजे नहीं लगता की मे 40 किलो का भी होऊंगा. बच्चों जितना तो हु मे. और बचे की कहे की टिकट.
नवाब साहब का कहना भी सही था. 4.2 फिट की हाईट वाले नवाब साहब सूखे मरियल से थे. तेज़ हवा जो चल जाए तो खुद को ही डर लगने लगता. कही उड़ ना जाए. इस लिए नवाब साहब जेब मे कलम रखते थे. ताकि दबाव बरकरार रहे. पर कंडक्टर ने भी तगड़ा जवाब दिया.
कॉन्डक्टर : छोटे बच्चों को लोग अपनी गोद मे बैठकर ले जाते है. जाइये आप भी किसी की गोद मे बैठ जाइये. नहीं तो टिकट खरीदीये.
नवाब साहब ने अपना मुँह सिकोड़ा. अब बड़े आदमी को गोद मे कौन बैठाएगा. वो अपने कोट की ऊपर वाली जेब मे हाथ डालते है. और पांच रूपए की नोट निकलते है.
कॉन्डक्टर : अरे अरे. लखनऊ तक का 10 पैसा होता है. अब बाकि का छुट्टा हम कहा से लाए.
इस बार तो दुबले पतले नवाब साहब मे भी गर्मी आ गई. पान खाते हुए भी वो गुर्रा उठे.
कॉन्डक्टर : ला हॉल बिला कु वत. अब हम कहा से छूटा पैसा लाए. चलिए दीजिये अब टिकट.
छोटे बम के बड़े धमाके को देख कर कॉन्डक्टर भी थोडा सहेम गया. और टिकट काट ते हुए जितना खुला पैसा था. वो नवाब साहब को दे दिया. मगर उन खुले पेसो मे एक एक रूपए का सिक्का खोटा था.
जिसकी जानकारी नवाब सहाब को नहीं थी. नवाब साहब अब भी खुश थे. उनकी जेब मे अब भी चार रूपए 90 पैसे सलामत थे. शाम हो गई. नवाब साहब भी लखनऊ पहोच गए.
उतारते ही नवाब साहब ने अपनी जेब मे हाथ डाला. नवाब सहाब की आदत थी. वो सफर के अंत मे हमेशा अपनी जेब चैक करते. पर जेब चैक करते नवाब साहब के चहेरे पर छोटी सी सिकन आ गई. 50 पैसे का एक सिक्का खोटा निकला. पुरे 50 पैसे का नुकशान..
बाप रे बाप. ये तो नवाब साहब के बरदास बस के बाहर था. नवाब साहब रस्ता तलाश करने लगे. अब कैसे नुकशान से बच्चा जाए. नवाब साहब ने देखा. एक ठेले पर गरमा गरम समोसे बन रहे थे. नवाब साहब के चहेरे पर मुश्कान फिर लोट आई.
नवाब साहब : (मन मे) चले नवाब नुकशान को नफा मे बदलने.
नवाब साहब लहेराते लम्बे कदमो से चलते हुए ठेले पर पहोच गए.
नवाब साहब : (पान चबाते) हा तो बरखुरदार कैसे दिये समोसे.
समोसे वाला : 5 पैसे के 3 है जनाब.
नवाब साहब : ओह्ह्ह... बड़े महेंगे नहीं है. हनारे ज़माने मे तो 1 पैसे मे हम भर पेट बिरयानी खा लिया करते थे. और अब देखो. 5 पेसो के सिर्फ 3 समोसे. बहोत महेगाई बढ़ गई है.
समोसे वाला : हुजूर आज कल तो एक पैसे मे 1 किलो आलू नहीं मिलते. भर पेट खाना कहा मिलेगा. खाना है तो खाइये. वरना आगे बढिये.
नवाब साहब : अरे ऐसे कैसे बात कर रहे हो. जब आए है तो खाने के लिए ही तो आए है.
समोसे वाला : हा तो बोलिये कितने लगाए???
नवाब साहब : 3 ही लगाए.
समोसे वाला एक बड़े से दोने मे 3 समोसे रख कर उसपर चटनी डालने लगा.
नवाब साहब : थोड़ी और डालिये.
समोसे वाले ने थोड़ी और चटनी डाली.
नवाब साहब : थोड़ी और...
उसने थोड़ी और डाली.
नवाब साहब : थोड़ी और...
समोसे वाला : जनाब आप सिर्फ 3 समोसे खा रहे हो. और चटनी इतनी चाहिए जैसे जमात जिमा रहे हो.
नवाब साहब बेशर्मी से मुश्कुराते दोने को हाथो मे लिए समोसे खाने लगे. आंखे बंद किये समोसे के जायके का लुफ्त उठा रहे हो. पिचका हुआ मुँह तो किसी पशु की तरह जुगाली कर रहा था. खाने के बाद समोसे वाले ने जग से पानी डाल कर नवाब साहब के हाथ धुलवाए.
पर पैसे देने की बारी आई तो नवाब साहब ने वही खोटी अठन्नी आगे कर दी. और दए बाए देखने लगे. पर जान कर भी अनजान बन ने का क्या फायदा.
समोसे वाला : (झटका) जनाब ये अठन्नी तो खोटी है.
नवाब साहब भी जैसे उन्हें पता ही ना हो. अनजान बन ने लगे.
नवाब साहब : अमा क्या बात करते हो जनाब. ठीक से देखो. कही तुम्हे कोई गलत फेमि तो नहीं हो रही है.
समोसे वाले ने वो अठन्नी नवाब साहब के हाथो मे रख दी.
समोसे वाला : (ताना) आप ही देख लीजिये जनाब. हमें तो आप खुला पैसा दे दीजिये.
नवाब साहब को दिल पर पत्थर रखना पड़ा. और पेसो की बदली करनी पड़ी. नुसका काम ना आया. वो समोसे वाले को पैसे तो दे देते है. पर अब खोटी अठन्नी को बदला कैसे जाए.
नवाब साहब को एक पान की दुकान दिखाई दी. नवाब साहब सोचने लगे की इस बार कही वो पकड़े ना जाए. पर पान तो खाना ही था. नवाब साहब एक बार फिर अपनी किश्मत आजमाने के लिए उस पान की दुकान की तरफ चल दिये.
नवाब साहब : एक बनारसी पान लगाओ बरखुरदार. तमाकू चुना जरा तेज़.
नवाब साहब को हर चीज ज्यादा ही चाहिए थी. वो भी वाजित दामों मे ही.
पान वाले ने पान बनाया. और नवाब साहब की तरफ अपना हाथ बढ़ाया. नवाब साहब ने भी अपना मुँह खोला. और गप से पान मुँह मे घुसेड़ दिया.
नवाब साहब : (मुँह मे पान तुतलाते) कितने पैसे हुए बरखुरदार???
पान वाला : जनाब आधा पैसा.
नवाब साहब : (मुँह मे पान तुतलाते) एक और बांध दीजिये बरखुरदार.
पान वाले ने एक और पान बनाकर बांध दिया. और नवाब साहब को पकड़ा दिया. जब पैसे देने की बारी आई तो नवाब साहब ने वही अठन्नी पान वाले को पकड़ा दी. खुला पैसा है या नहीं ये बताने के बजाय पान वाले ने पहले ही बता दिया.
पान वाला : जनाब ये अठन्नी तो खोटी है.
नवाब साहब पान की पिचकारी साइड मे मरते हुए फिर वैसे ही नकली भाव देते है. जैसे उन्हें पता ही ना हो.
नवाब साहब : क्या कहे रहे हो बरखुरदार.
अब नवाब साहब के पास कोई चारा नहीं था. उन्हें खुले पैसे देने ही पड़े. नवाब साहब का दूसरा पेत्रा भी फेल हो गया. एक खोटी अठन्नी ने नवाब साहब को परेशान कर दिया.
नवाब साहब वहां से चुप चाप निकाल लिए. वो घर जाने के बजाय बाजार मे ही टहल ने लगे. उस अठन्नी के कारण नवाब साहब का घर जाने का मन ही नहीं हो रहा था. शाम ढल गई. और अंधेरा हो गया.
वक्त ज्यादा ही बीतने लगा. पर कोई तरकीब ही नहीं सुझ रही थी. तभी नवाब साहब की नजर एक लॉज के बोर्ड पर पड़ी. 7 पेसो मे भर पेट खाना. सुध और शाकाहारी. नवाब साहब सोचने लगे.
7 पैसे मे भर पेट खाना.... भूख भी लगने लगी थी. नवाब साहब कब से घूम रहे थे. समोसे तो कब के पच गए. नवाब साहब ने होटल को गौर से देखा. भीड़ बहोत थी.
लोग जल्दी मे निकालने की कोशिश कर रहे थे. यही मौका हे नवाब. चल बेटा आज यही भोजन किया जाए. नवाब साहब होटल की तरफ चल दिये. वो जाकर बैठ गए. उन्हें बैठने के लिए जगह भी मिली पर एक टेबल पर 6 लोग बैठे.
नवाब साहब समेत. नवाब साहब कभी दए देखते तो कभी बाए. तो कभी सामने. गरीबो के बिच नवाब साहब. पर चुप रहे. भैया खोटा 50 पैसे का सिक्का जो चलना था. बगल मे बैठे एक आदमी से नवाब साहब थोड़ी गुफ़्तगू करने की कोसिस करते हे.
नवाब साहब : 7 पैसे मे भर पेट खाना. हमारे ज़माने मे तो सिर्फ 2 पेसो मे नल्ली निहारी मिलती थी.
पास वाला आदमी जैसे गुस्से मे हो. वो बस गर्दन घुमाकर बस नवाब साहब की तरफ देखता है. नवाब साहब बस गला खांगलते हुए उस से नजरें हटा लेते है. तभी बगल वाला आदमी हाथ ऊपर कर के अपने भोजन का आर्डर देता है.
आदमी : (चिल्ला कर) मेरी 1 थाली लगाना.
आदमी2 : (चिल्ला कर) एक मेरी भी.
आदमी 3 : (चिल्ला कर) एक मेरी भी.
नवाब साहब ने भी अपना ऑर्डर दे दिया. पर आवाज देते उनकी पोल खुल गई.
नवाब साहब : एक मेरी भी.
बोलते हुए नवाब साहब अपना पान निगल गए. और उन्हें खांसी आने लगी. और वो खाँसने लगे. पास बैठे आदमी ने तुरंत ताना मरा.
आदमी : बड़ा आया नल्ली निहारी खाने वाला.
पर नवाब साहब कुछ ना बोले. सामने थालिया आना शुरू हो गई. जब नवाब साहब के सामने जब थाली आई. तब उसे देख कर नवाब साहब के तो मानो तोते ही उड़ गए.
2 रोटी, साथ एक मुंग की सब्जी. सलाद के नाम पर थोड़ी सी मूली. हा... नवाब साहब का चहेरा देख कर बगल वाले आदमी ने उनका जरूर मज़ाक उड़ाया. नवाब साहब भी नवाब साहब थे.
वो तो शुरू ही हो गए. भैया 50 पैसे का खोटा सिक्का जो चलना था. ऊपर से नवाब साहब थे बड़े कंजूस. पैसा वसूल के चक्कर मे दुबली पतली बॉडी ने जम के मीटर खिंचा. वो 7 रोटी तो खिंच गए. जो उनकी कैपेसिटी से ज्यादा ही थी. ऐसे मे बगल वाले आदमी ने ताना भी मार दिया.
आदमी : अरे चाचा इसी को नल्ली निहारी समझ रहे हो क्या??? सिर्फ 7 पैसे दे रहे हो. रोटी तुम 25 की खा गए.
पर बेजती मंजूर थी नवाब साहब को. लेकिन पैसा जाए वो नहीं. नवाब साहब ने ठूस ठूस कर पूरी 10 रोटियां पेल दी. अब आई पैसे देने की बारी. जब वो अपना हाथ धो रहे थे. तब देखा काउंटर पर बहोत भीड़ थी. नवाब साहब भी पहोच गए.
बड़ी मुश्किल से नवाब साहब ने भीड़ मे अपना हाथ बढ़ाया. और वही अठन्नी आगे कर दी. जब तक खुले पैसे नहीं आए तब तक भीड़ से नवाब साहब हिचकले ही खाते रहे. नवाब साहब काउंटर पे बैठे उस आदमी की तरफ बड़ी गौर से देख रहे थे.
उस सेठ ने नवाब साहब की अठन्नी ले भी ली. और 4 सिक्के नवाब साहब के हाथ मे थमा भी दिये. 2 सिक्के 20 पैसे के. एक सिक्का 2 पैसे का और एक 1 पैसे का. मुट्ठी बंद करते नवाब साहब तुरंत ही बाहर निकाल गए. बाहर आते नवाब साहब मुश्कुराने लगे. भैया 50 पैसे का खोटा सिक्का नवाब साहब ने चला दिया. पर जैसे को तैसा तो कुदरत का नियम है.
जब बाहर आकर नवाब साहब ने मुट्ठी खोली तो 20 पेसो के दोनों सिक्के खोटे निकले. नवाब साहब अब क्या करोगे हा हा हा.
नवाब साहब का कहना भी सही था. 4.2 फिट की हाईट वाले नवाब साहब सूखे मरियल से थे. तेज़ हवा जो चल जाए तो खुद को ही डर लगने लगता. कही उड़ ना जाए. इस लिए नवाब साहब जेब मे कलम रखते थे. ताकि दबाव बरकरार रहे. पर कंडक्टर ने भी तगड़ा जवाब दिया.
नल्ली निहारी
जय हो जय हो जय होवो क्या हेना की आज कल पंडित हार जगह छए हुए है. बच्चा पैदा होने से लेकर बड़ा हो जवानी बुढ़ापा और अंतिम बिदाई तक. बिना पंडितो के गुजारा नहीं होता
बहोत बहोत धन्यवादWaah Shetan ji .. Maza aaya padh kar... specially nawab sahab ki sehat ke baare mein .... ki wo bechare pen rakhte they taaki udh na jayein.......
Nawab Sahab ka khota sikka khota hi reh gaya... balki ek ko chalane ke chakkar 2 gale padh gaye....
Aur ye nalli nihari ka zikr humne galat time pe padh liya ab to sach mein khwahish ho gai nalli nihari khaane ki...