“क..क्या मतलब बगीचे पर नही जाना क्या…”
“तू जा…मैं वाहा जा कर क्या करूँगी…” आँखे नचाती बोली.
“ आमो की रखवाली कौन करेगा….” मुन्ना समझ गया कि ये फिर नाटक कर रही है.
“क्यों तू तो कर ही लेता है…जा और अपनी सहेलियों को भी बुला ले…”
“अब…चल ना…देख कैसे तड़प रहा है मेरा…लौरा..एयेए” चिरोरी करते हुए मुन्ना लंड को लूँगी के उपर से सहलाते हुए बोला.
“तड़प रहा तो….खुद ही शांत कर…मैं नही आती….” मुन्ना एक पल उसे देखता रहा फिर चिढ़ कर बोला. “ठीक है मत चल…मैं जा रहा हू…कोई ना कोई तो मिल ही जाएगी…” और फिर तेज़ी के साथ बाहर निकल गया. उसे पहले पता होता तो बसंती को बुला लेता, मगर आज तो कोई जुगाड़ नही था. फिर भी गुस्से में बाहर निकल सीधा बगीचे पर पहुँचा और दरवाज़ा बंद कर बिस्तर पर लेट गया. नींद तो आ नही रही थी. चुप-चाप वही लेटा करवटें बदलने लगा.
मुन्ना के बाहर निकल जाने के थोरी देर तक शीला देवी कुच्छ सोचती रही, फिर धीरे से उठी और बाहर निकल गई. उसके कदम अपने आप बगीचे की तरफ बढ़ते चले गये. कुच्छ समय बाद वो खलिहान के दरवाजे पर थी. दरवाजे पर खाट-खाट की आवाज़ सुन मुन्ना बिस्तर से उच्छल कर नीचे उतरा. कौन हो सकता है सोचते हुए उसने दरवाजा खोल दिया. सामने शीला देवी खड़ी थी पसीने से लत-पथ, लगता है जैसे दौरती हुई आई थी. उसकी साँसे तेज चल रही थी और सांसो के साथ उसकी छातियाँ उपर नीचे हो रही थी. नज़रे नीचे की ओर झुकी हुई थी. मुन्ना ने एक पल को उपर से नीचे शीला देवी को निहारा फिर चेहरे पर मुस्कान लाते हुए बोला “बाहर ही खरी रहोगी या अंदर आओगी”
एक पल रुक कर धीरे से वो अंदर आ गई और धीरे धीरे चलते हुए बिस्तर पर पैर लटका कर बैठ गई. फिर मासूम सा चेहरा बना मायूस आवाज़ में बोली “बेटा ये ठीक नही है… मैं नही चाहती की तू रंडियों के चक्कर में पड़े…ये सब बंद कर दे….” .
“मुझे कौन सा उनके साथ मज़ा आता है…पर तू तो…जब कि कल…”
“मैं तेरी मा हू…मुझे कल रात से खुद पर शरम आ रही है….इसलिए तुझे दुबारा करने से रोका…अंधी हो गई थी…ये ठीक नही है…..फिर तू उन रंडियों के साथ करता था मुझे बहुत बुरा लगता था…”
“तुझे मज़ा नही आया..था…सच बता…. तुझे मेरी कसम…”
“हा…आया था…बहुत मज़ा आया….पर…” शरम से लाल होती शीला देवी बोली. शीला देवी को थोरा सा खिसका कर उसके पास बिस्तर बैठ उसकी जाँघो पर हाथ रख कर मुन्ना उसे समझाने वाले अंदाज में बोला “तू गाओं में रह कर कुएँ की मेंढक बन गई है….दुनिया में सब कितना मज़ा करते है…फिर गाओं भर की जासूस वो बुढ़िया तो तेरे पास आती है, क्या वो तुझे नही बताती कि लोगो के घरो में क्या-क्या होता है.”
“आती है…और बताती भी है मगर…फिर भी हम औरो के जैसा क्यों…”
“तो फिर क्यों आई है भागती हुई”
“मैं तुझे रोकने आई हूँ....मैं नही चाहती तू औरो के जैसे बन जाए”
“बात उनके जैसा बन ने की नही. बात मज़े करने की है. कोई और हमारे बदले मज़ा नही कर सकता ना ही हम किसी को बताने जा रहे है कि हम कितने मज़े करते है. लोगो को अपना मज़ा करने दो हम अपना करते है. घर के अंदर कोई देखने आता है?…खुल कर मज़ा लेगी तभी सुखी रहेगी….शहर में तो….. ”
“तू मुझे ग़लत बाते सीखा रहा है…गंदी औरत बना रहा है…”
“…जिंदगी का असली मज़ा इसी में है…”
“पर तू मेरा…बेटा है…तेरे साथ…ये ग़लत है.
“मतलब मेरे साथ नही करवाएगी…बाहर के किसी से…”
“तू बात को पता नही कहाँ से कहाँ ले जाता है…देख बेटा ऐसा मत…कर…मुझे किसी से नही करवाना और उन रंडियों का चक्कर…ठीक नही…तू भी छ्चोड़ दे”
“तू अपनी सारी उठा कर रखेगी तो मैं बाहर क्यों मुँह मारूँगा…”
“बहुत बरी ….कीमत माँग रहा है….”
“तेरी छेद घिस जाएगी क्या…फिर तुझे भी तो मज़ा आएगा…बाहर करवाएगी तो बदनामी होगी…घर में…खुल कर मज़ा लूट…नही तो…जाम हो जाएगा…छेद…फिर उंगली भी डालेगी तो नही घुसेगी…” मुन्ना का ये भाषण सुन कर शीला देवी हस्ने लगी अब पर उसको ये बात भी समझ आ गई वो मुन्ना को नही रोक सकती. वो बाहर जाएगा ही. कुच्छ पल सोचती रही फिर समझ में आ गया कि अच्छा होगा वो अपनी छेद की सेवा उस से करवाती रहे. उसके दोनो हाथ में लड्डू रहेगा बेटा भी कब्ज़े में रहेगा और उसकी खुजली भी शांत रहेगी. इतना सोच मुस्कुराते हुए बोली “घिसेगी तो नही पर ढीली ज़रूर हो जाएगी…”