यह उस समय की कहानी है जब यातायात के लिए मोटर गाड़ियां ना के बराबर थी उस समय केवल तांगे या बेल गाड़ियां चला करती थी,,,,,,,, यातायात के लिए यही एक रोजगारी का साधन था,,,। और यही एक जरिया भी था एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचने का,,,।
बेल के पैरों में बंधे घुंघरू और गले में बजी घंटी की आवाज से पूरी सड़क गूंज रही थी,,, रविकुमार अपने बेल को जोर से हंकारते हुए रेलवे स्टेशन की तरफ ले जा रहा था,,,, क्योंकि स्टेशन पर गाड़ी आने वाली थी और समय पर पहुंच जाने पर सवारियां मिल जाया करती थी जिससे उसका गुजर-बसर हो जाता था,,,, लेकिन आज थोड़ी देर हो चुकी थी इसलिए समय पर पहुंचने के लिए रविकुमार बेल को जोर-जोर से हंकार रहा था लेकिन उस पर चाबुक बिल्कुल भी नहीं चला रहा था,,,, क्योंकि रविकुमार के लिए बेल उसकी रोजी-रोटी थी जिसकी बदौलत वह अपने बच्चों का पेट भर रहा था,,,,।
चल बेटा मोती आज बहुत देर हो गई है अगर समय पर हम स्टेशन नहीं पहुंचेंगे तो हमें सवारी नहीं मिलेगी ,,, सवारी नहीं मिली तो पैसे नहीं मिलेंगे पर पैसे नहीं मिले तो तू तो अच्छी तरह से जानता है,,,,, नामदेवराय साहूकार के पैसे चुकाने,, बड़ी बेटी की शादी के लिए जो पैसे दिए थे उसके एवज में, जमीन गिरवी पड़ी है और तुझे भी तो नामदेवराय से पैसे उधार लेकर ही खरीद कर लाया हुं,,, और अगर पैसे नहीं कमाऊंगा तो नामदेवराय को क्या चुकाऊंगा,,,,
(इतना सुनते ही रविकुमार का बेल जान लगा कर दौड़ने लगा ,,,)
शाबाश बेटा,,,, एक तेरा ही तो सहारा है ,,,, ऊपर भगवान और नीचे तु,,,, शाबाश मोती यह हुई ना बात,,,, शाबाश बेटा,,,,
(और थोड़ी ही देर में रविकुमार की बेल गाड़ी स्टेशन के बाहर खड़ी हो गई और रविकुमार खुद बैलगाड़ी से नीचे उतर कर,,, सवारी लेने के लिए आगे बढ़ चला गाड़ी आ चुकी थी और धीरे-धीरे सवारी स्टेशन से बाहर निकल रही थी,,,, रविकुमार की किस्मत अच्छी थी जल्द ही उसे सवारी भी मिल गई,,, और सवारी को उसके गंतव्य स्थान पर ले जाने के लिए ८ आना किराया तय किया गया,,,, खुशी-खुशी रविकुमार उस सवारी का सामान लेकर बैलगाड़ी में रखने लगा,,,)
अरे वाह रविकुमार तुझे तो सवारी भी मिल गई मुझे तो लगा था कि आज तु नहीं आएगा,,,,,,,(दूसरा बैलगाड़ी वाला जो कि काफी समय से वहीं बैठा था उसे सवारी नहीं मिली थी वह बोला)
अरे कैसे नहीं आता यही तो हमारी रोजी-रोटी है ,,अगर नहीं आएंगे तो फिर काम कैसे चलेगा और तू चिंता मत कर तुझे भी सवारी मिल जाएगी,,,,(उस सवारी के आखिरी सामान को भी बैलगाड़ी में रखते हुए रविकुमार बोला,,,,, सवारी भी बेल गाड़ी में बैठ गया था,,, और वह बोला,,)
अरे भाई जल्दी चलो देर हो रही है,,,।
हां हां साहब चल रहा हूं,,,(इतना कहने के साथ ही रविकुमार बेल गाड़ी पर बैठ गया और बैल को हांकने लगा,,,, एक तरफ कोयले का इंजन सीटी बजाता हुआ और काला काला धुआं उगलता हुआ आगे बढ़ने लगा और दूसरी तरफ रविकुमार का बेल कच्ची सड़क पर अपने पैरों में बंधे घुंघरू को बजाने लगा,,,,,, सवारी और गाड़ीवान का वैसे तो किसी भी तरह से रिश्ता नहीं होता लेकिन फिर भी दोनों के बीच औपचारिक रूप से बातचीत होती रहती है उसी तरह से रविकुमार और सवारी के बीच भी औपचारिक रूप से बातचीत हो रही थी ताकि समय जल्दी से कट जाए और अपने गंतव्य स्थान पर जल्द से जल्द पहुंचा जा सके,,,,। रविकुमार उस सवारी को लेकर उसे गंतव्य स्थान पर पहुंच चुका था और अपने हाथों से उसका सारा सामान उतार कर उसके घर के आंगन में भी रख दिया था और उस से किराया लेकर,,, मुस्कुराते हुए वापस फिर गाड़ी पर बैठ गया और उसे अपने घर की तरफ हांक दिया,,, घर पर पहुंचते-पहुंचते रात हो चुकी थी,,, वैसे तो रविकुमार को कोई भी बुरी लत नहीं थी केवल बीड़ी पीता था जिसकी वजह से उसे खांसी की भी शिकायत थी,,, ४२ वर्षीय रविकुमार बेहद चुस्त पुस्ट तो नहीं था फिर भी गठीला बदन का जरूर था,,,,,,,
बैलगाड़ी को खड़ी करके उसमें से बेल को अलग करके उसे छोटी सी झोपड़ी में जो की बेल के लिए ही बनाया था उसने काम किया और उसके आगे चारा रख दिया और एक बाल्टी पानी भी,,,।
का बेटा और आराम कर,,,,
(इतना कहकर वह अपने घर के आंगन में खटिया गिरा कर बैठ गया और बीडी निकालकर दिया सलाई से उसे जला लिया और पीना शुरू कर दिया,,,, और अपनी बीवी को आवाज लगाया,,,,)
रूपाली ओ रूपाली ,,,,, कहां हो एक गिलास पानी लेते आना तो,,,
(इतना कहकर बीड़ी फूंकने लगा,,,, रूपाली उसकी बीवी का नाम था जो कि २ बच्चों की मां थी और बड़ी बेटी की शादी भी कर दी थी और एक बच्चा ५ साल का था,,,, अपने पति की आवाज सुनते ही रसोई बना रही रूपाली ,,, अपनी ननद मंजू को आवाज देते हुए बोली,,, जो की सूखी लकड़ियां लेने के लिए बगल वाले इंधन घर में गई हुई थी,,, रूपाली की आवाज सुनते ही सूखी लकड़ियों को दोनों हाथों में उठा कर बोली,,,)
आई भाभी,,,(और ईतना कहते ही वह जल्दी से सूखी लकड़ी के पास पहुंच गई और उसे नीचे रखते हुए बोली,,)
लो भाभी आ गई,,,।
अरे आ नहीं गई,,, देख तेरे भैया आए हैं और पानी मांग रहे हैं,,जा जरा एक गिलास पानी दे देना तो,,,,,,
ठीक है भाभी,,,,( और इतना कहने के साथ ही वह एक गिलास पानी लेकर अपने बड़े भाई रविकुमार के पास आ गई और बोली,,)
लो भैया पानी,,,,
अरे मंजू तू,,,,,(इतना कहने के साथ ही बची हुई बीडी को बुझा कर फेंकते हुए पानी का गिलास थाम लिया और बोला,,) मुन्ना कहां है,,,?
वह तो सो रहा है,,,,
और सुरज,,,

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Suryadeva
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289108
Jan 31, 2024
#3
सुरज रविकुमार का सगा भांजा था बचपन में ही उसकी मां के गुजर जाने के बाद उसके पिता ने दूसरी शादी कर ली सौतेली मां का प्यार उसे अच्छे से नहीं मिलेगा इसी कारण रविकुमार ने सुरज को अपने गांव लेकर आया,, तबसे वह अपने मामा साथ ही रहता है,, जो कि अभ जवान हो रहा था,,, लेकिन एकदम भोला भाला,,,,,, दिनभर यहां वहां घूमता ही रहता था घर में उसके पैर कम ही टिकते थे,,,,, इसीलिए तो अंधेरा हो चुका था लेकिन अभी तक घर पर नहीं आया था,,,। सुरज की चिंता रविकुमार को हमेशा रहती थी,,, क्योंकि वह जानता था कि उसके घर की माली हालत इतनी अच्छी नहीं थी कि वह अपने बच्चों की अच्छे से परवरिश कर सके उन्हें पढ़ा लिखा सके लेकिन फिर भी वह उन्हें अच्छा इंसान बनना चाहता था लेकिन इसके विपरीत सुरज दिन भर घूमता फिरता रहता था कभी यहां कभी वहां,,,,,, घर का कोई काम भी नहीं करता था,,,, ऐसा नहीं था कि वह रविकुमार की बात नहीं मानता था,,, बस थोड़ा सा लापरवाह जो कि इस उम्र में लगभग सभी लड़के होते हैं,,, पानी का गिलास मुंह से लगाने से पहले रविकुमार बोला,,,।
मंजू तू ही बता क्या करूं इस लड़के का,,,,,,(इतना कहकर वह पानी पीने लगा,,, पानी पीकर पानी का गिलास नीचे रख दिया जिसे मंजू नीचे झुककर उठाते हुए बोली,,,)
सब सही हो जाएगा भैया अभी लड़का है खेलने खाने के दिन है,,,
यह तो ठीक है मंजू लेकिन अब उसे मेरा हाथ बढ़ाना चाहिए,,,, मेरे साथ रेलवे स्टेशन पर आना चाहिए सवारियां ढोना चाहिए,,, कुछ सीखना चाहिए कल को अगर मैं नारहा तो क्या होगा अगर कुछ सीखा रहेगा तभी तो घर की बागडोर संभाल पाएगा,,,,।
ना ,,,,ना,,,, भैया भगवान के लिए ऐसा मत कहो तुमको कुछ नहीं होगा,,,,,,,,
(अपने बड़े भाई की बात सुनकर मंजू चिंतित हो गई थी,, उसकी चिंता भरे मुखड़े को देखकर रविकुमार मुस्कुराता हुआ बोला,,,)
चल पकड़ी इस दुनिया में जो आया है वह तो जाएगा इसमें चिंता करने वाली कौन सी बात है और जा जरा उसे ढूंढ कर तो लिया ना जाने कहां खेल रहा है रात को भी ईसे चैन नही
है,,,,
ठीक है भैया मैं अभी बुला कर लाती हूं,,,,
(इतना कहकर मंजू घर से बाहर सुरज को ढूंढने के लिए चली गई और रविकुमार खटिया से उठकर रसोई घर मैं आ गया जहां पर उसकी बीवी रूपाली खाना बना रही थी,,, रविकुमार रसोई घर में खड़ा था और रूपाली चूल्हे के सामने बैठकर रोटियां पका रही थी,,,, गर्मी का मौसम ऊपर से चूल्हे की आंच से रूपाली का बदन पसीने से तरबतर हो चुका था,,, उसका ब्लाउज पसीने में भीगा हुआ था जिसकी वजह से उसकी गोलाकार चुचियों की निप्पल भीगे हुए ब्लाउज में से बाहर झांक रही थी गर्मी की वजह से रूपाली भी,,, अपनी साड़ी के पल्लू को कंधे से नीचे गिरा दी थी जिससे उसकी भारी भरकम छातियां एकदम साफ नजर आ रही थी,,, खरबूजे जैसी बड़ी बड़ी गोल चुचियों के बीच की पतली दरार बेहद गहरी और किसी नदी की भांति लंबी नजर आ रही थी,, जिसे देखकर रविकुमार के मुंह में पानी आ रहा था वैसे तो वह संभोग का आदि बिल्कुल भी नहीं था,,, नहीं किसी के औरत को देखना उसे पसंद था लेकिन अपनी बीवी रूपाली की खूबसूरती देखते ही उसके तन बदन में हलचल सी होने लगती थी,,,, रूपाली खाना बनाते समय कपड़ों के मामले में एकदम लापरवाह हो जाती थी,,, वह घुटना मोड़ के नीचे जमीन पर सटाकर और एक पैर को घुटने से मोड़कर बैठी हुई थी जिसकी वजह से उसकी साड़ी घुटनों से ऊपर चढ़ चुकी थी इसलिए उसकी गोरी गोरी मांसल पिंडलिया नजर आ रही थी और अपनी बीवी की गोरी गोरी चिकनी मांसल टांगों को देखकर रविकुमार के मुंह के साथ-साथ,, उसके लंड में भी पानी आ रहा था जिसकी वजह से उसकी धोती में हलचल होना शुरु हो गया था,,, पसीने की बूंदें उसके माथे से होते हुएकिसी मोती के दाने की तरह उसके गोरे गोरे भरे हुए गाल को छेड़ते हुए उसकी गर्दन से होकर उसकी चुचियों के उभार पर फिसलते हुए ब्लाउज की धारी को भिगो रही थी बालों की लट उलझी हुई थी जिसे वह बार-बार आटा ऊंगलियों से सुलझाने की कोशिश कर रही थी,,, बेहद खूबसूरत और अद्भुत नजारा था इसे देखकर रविकुमार के दिन भर की थकान दूर हो रही थी,,,। रोटी को बेल कर उसे गर्म तवे पर रखते हुए रूपाली बोली,,,।
आप यहां क्या कर रहे हैं जी,,,, अभी खाना बनने में थोड़ा समय लगेगा,,, अब खटिया पर बैठ कर इंतजार करिए मैं खाना तैयार कर लेकर आती हूं,,,,।
क्या करती हो रूपाली,,,,, दिन भर पैसे कमाने के चक्कर में घर से बाहर रहता हूं तुमसे दूर रहता हूं और यही तो मौका मिलता है तुम्हें जी भर के देखने का वह भी मुझसे छीन ना चाहती हो,,,(ऐसा कहते हुए रविकुमार वही नीचे बैठ गया और अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला,,,) दिन भर की थकान तुम्हारा खूबसूरत चेहरा देखते ही दूर हो जाती है,,,
(अपने पति की बातें सुनकर रूपाली को शर्म आ रही थी,,, वह शर्मा रही थी और अपने चेहरे को छुपाने की कोशिश कर रही थी,,,, लेकिन रविकुमार अपने दोनों हाथों को आगे बढ़ाकर जैसे किसी गुलाब के फूल को अपनी हथेली में लेता हो इस तरह से अपनी बीवी की खूबसूरत चेहरे को अपने हथेली में लेते हुए बोला,,,)
क्या रूपाली दो बच्चों की मां हो गई हो फिर भी मुझसे शर्मारही हो,,,,,,
छोड़ो जी क्या करते हो,,, बच्चे आ जाएंगे,,,,(रूपाली अपने चेहरे को दूसरी तरफ घुमाते हुए बोली,,,)
अरे कोई नहीं आएगा,,,,(इतना कहते ही जैसे ही वह अपनी बीवी रूपाली के ब्लाउज पर हाथ रखकर उसकी चूची को दबाया ही था कि आंगन से मंजू की आवाज सुनाई दी और वह तुरंत उठ कर खड़ा हो गया,,,।)
देखो भैया सुरज आ गया,,,,
(एकाएक मंजू की आवाज सुनते ही रविकुमार सकपका गया था,,, और यही हाल रूपाली का भी था,,, वह एकदम से शरमा गई थी,,, गनीमत यही थी कि,, मंजू ने कुछ देखी नहीं थी,,,, रविकुमार तुरंत आंगन में आ गया,,,,, और अपने दोनों हाथों को पीछे की तरफ ले जाकर,,,, थोड़ा शांत होता होता हुआ बोला,,,।)
क्या सुरज,,,,, यह सब क्या हो रहा है,,,,,,,
कककक,,, कुछ नहीं मामा ,,,,(सुरज घबराते हुए बोला,,,,, सुरज अपने मामा की बहुत इज्जत करता था और उनसे डरता भी था,,,)
कुछ नहीं क्या दिन भर आवारा लड़कों की तरह घूमते रहते हो,,,, तुम अब बडे़ हो गए हैं तुम्हें तो घर की जिम्मेदारी संभालना चाहिए,,, घर के काम में हाथ बंटाना चाहिए,,,।
( अपने मामा की बातों को सुनकर सुरज कुछ बोला नहीं बस अपनी नजरों को नीचे झुकाए खड़ा रहा,,,)
देख रही हो मंजू अब ये कुछ बोलेगा भी नहीं,,,,
रहने दो भैया समय के साथ सब सीख जाएगा,,,,(मंजू सुरज का बीच बचाव करते हुए बोली,,,) अभी तो इसके भी खेलने खाने के ही दिन है,,,(सुरज के कंधों पर अपने दोनों हाथ रखते हुए उसके पीछे आकर बोली) ,,,,,,,
जाओ जाकर हाथ मुंह धो कर जल्दी से आओ खाना तैयार हो रहा है,,,,।
ठीक है मामा ,,,(इतना कहकर राजु खुश होता हुआ,, बाहर हाथ मुंह धोने के लिए चला गया,,, तभी रूपाली खाना बनाकर अपने कपड़ों को ठीक करते हुए बाहर आंगन में आ गई और अपनी साड़ी के पल्लू से अपने माथे के पसीने को पोछते हुए बोली,,,)
आप तो ठीक से डांटते ही नही है,,, तभी तो आवारा की तरह घूमता रहता है,,,
( ऐसा नहीं था की रूपाली सूरज से प्यार नहीं करती थी,, रूपाली ने सुरज को बचपन से अपने सगे बेटे के जैसा प्यार देकर बड़ा किया था पर गांव के आवारा लड़को के साथ घूमकर वह बिगड़ने लगा था,,, और घर के कामों पर उसका जरासा भी ध्यान नहीं था,,, इसी चिंता के कारण रूपाली ऐसा बोली,,,)
बिन मां का लड़का है और अब सुरज मेरे बराबर हो गया है इस तरह से डांट ना ठीक नहीं है वैसे भी आज नहीं तो कल सब कुछ सीख ही जाएगा,,,,,,
भाभी भैया ठीक कह रहे हैं,,,
हां तुम तो अपने भैया का ही पक्ष लोगी,,,,,
(रूपाली की बात से मंजू मुस्कुराने लगी और उसे मुस्कुराता हुआ देखकर रूपाली बोली,,,)
चलो जल्दी से खाना परोसने में मेरी मदद करो,,,।
तुम रहने दो भाभी में सबके लिए खाना परोस कर लेकर आती हूं,,,,,, आप भी भैया के साथ बैठ जाओ खाना खाने,,,,
(इतना कहकर मंजू रसोई घर में चली गई और रूपाली मुस्कुराते हुए अपने पति रविकुमार के पास बैठ गई,,,, रविकुमार अपनी छोटी बहन मंजू को जाते हुए देख रहा था,,, और बोला,,,)
कोई अच्छा सा लड़का देखकर मंजू के भी हाथ पीले कर दु तो समझ लो गंगा नहा लिया,,,,,
आप सही कह रहे हो मुन्ना के बाबु,,,,(रूपाली अपने पति की बातों में सुर मिलाते हुए बोली,,)
वैसे तो मुझे सबसे पहले मंजू की शादी करनी चाहिए थी लेकिन हालात ही कुछ ऐसे बन गए थे कि मुझे अपनी बड़ी बेटी की शादी करना पड़ा,,,, उसके विवाह के लिए लिया हुआ कर्ज अभी तक चुका रहा हूं कल साहूकार को उसके ब्याज के पैसे भी देने जाने हैं,,, नामदेवराय का कर्ज चुकाऊ तो मंजू के विवाह के लिए पैसे ले लु और वैसे भी बैलगाड़ी का भी कर्जा चुकाना है,,,,(रविकुमार आंगन में से आसमान को देखते हुए बोली,,,)
तुम चिंता मत करो मुन्ना के बाबू,,, सभ कुछ ठीक हो जायेगा,,,,
(इतने में सुरज भी आकर वहीं बैठ गया और मंजू एक-एक करके सबके आगे थाली रखने लगी,,, और रूपाली अपने साड़ी के पल्लू को ठीक करने लगी क्योंकि चुचीया कुछ ज्यादा बड़ी होने की वजह से ब्लाउज में से चूचियों के बीच की लकीर कुछ ज्यादा ही बड़ी नजर आती थी,,,, और यही रविकुमार को बेहद पसंद थी,,,, सब लोग खाना खाने लगे,,और, खाना खाने के बाद सोने की तैयारी करने लगे,,, सुरज अपनी मौसी मंजू के साथ सोता था और रविकुमार उसकी बीवी रूपाली और छोटा लड़का मुन्ना एक साथ सोते थे,,,,,,, मंजू जब सुरज को लेकर बगल वाले कमरे में जाने लगी तो रूपाली मंजू को आवाज देते हुए बोली,,,)
अरे मंजू,,,
क्या हुआ भाभी,,,?
ले आज मुन्ना को अपने पास सुला ले,,, रात को बहुत परेशान करता है और तुम्हारे भैया सो नहीं पाते,,,,
ठीक है भाभी लाइए मुन्ना को मुझे दो,,,(इतना कहते हुए मंजू मुन्ना को अपनी भाभी की गोद में से अपनी गोद में ले ली,,, और कमरे में चली गई सुरज को नींद आ रही थी इसलिए चारपाई पर पडते ही वह सो गया,,, मंजू को नींद नहीं आ रही थी,,,, क्योंकि वह मुन्ना को अपने पास सुलाने का मतलब अच्छी तरह से जानती थी,,,,
दूसरी तरफ रविकुमार रूपाली से बोला,,,,)
बड़ी सफाई से बहाना करके मुन्ना को मंजू के पास सोने के लिए भेज देती हो,,,
तो क्या मुन्ना को मंजू के पास ना भेजु तो और क्या करूं,,,
चलो ठीक है लेकिन जिस काम के लिए मुन्ना को उसकी बुआ के पास भेजी हो वह काम शुरु तो करो,,,,(रविकुमार चारपाई पर लेटता हुआ बोला,,,)
मुझे शर्म आती है जी,,,,(रूपाली शर्म के मारे अपने हाथों से अपने चेहरे को ढंकते हुए बोली,,,)
अरे मुझसे क्या शर्माना,,, चलो जल्दी करो कपड़े उतारो,,,,
आप कहते हो तो उतारती हूं वरना तो मुझे तो नींद आ रही थी,,,,(इतना कहने के साथ ही है रूपाली अपने हाथों से अपने ब्लाउज के बटन खोलने लगी,,,, उत्तेजना के मारे उसकी सांसे भारी हो चली थी,,,,, उसका खुद का मन चुदवाने के लिए कर रहा था क्योंकि रसोई में रविकुमार ने अपनी हरकत की वजह से उसको उत्तेजित कर दिया था,,, देखते ही देखते रूपाली अपने ब्लाउज के सारे बटन खोल कर अपने ब्लाउज को उतार फेंकी,,,रविकुमार की नजर जेसे ही अपनी बीवी के भारी भरकम गोल गोल खरबूजे जैसे चुचियों पर पड़ी उसके मुंह के साथ-साथ उसके लंड में भी पानी आ गया और वह अपनी धोती खोलने लगा,,,, रूपाली को अपने पति का खड़ा लंड देखने की इच्छा हो रही थी अच्छी तरह से जानती थी कि ईतनी देर में उसके पति का लंड खड़ा हो गया होगा,,,

वह जल्दी जल्दी अपनी साड़ी भी उतार कर नीचे फेंक दी,,, अब वह अपने पति की आंखों के सामने केवल पेटीकोट में खड़ी थी,,, रविकुमार पूरी तरह से मस्त हो चुका था वह अपनी धोती खोल चुका था उसका लंड आसमान की तरफ मुंह उठाए खड़ा था,,, रविकुमार अपना एक हाथ आगे बढ़ाते अपनी बीवी के पेटीकोट की डोरी को खींच दिया जिससे रूपाली को बिल्कुल भी संभलने का मौका नहीं मिला और उसकी पेटीकोट उसकी कमर से नीचे उसके पैरों में जाकर गिर गई,,, रविकुमार के साथ-साथ रूपाली की पूरी तरह से नंगी हो चुकी थी तीन तीन बच्चों की मामी होने के बावजूद भी रूपाली एकदम खूबसूरत और गठीला बदन की मालकिन थी क्योंकि अभी भी वह खेतों में सारा काम अकेले ही करती थी,,,, रूपाली के नंगे बदन को देख कर रविकुमार के मुंह में पानी आ रहा था उससे रहा नहीं गया और वह खुद अपने हाथों को आगे बढ़ाकर रूपाली के कमर को थाम लिया और उसे अपने ऊपर चारपाई पर खींच लिया,,, रूपाली का मखमली खूबसूरत बदन उत्तेजना से तप रहा था,,, रविकुमार तुरंत उसे अपनी बाहों में भर लिया जैसे कि कहीं वह भागी जा रही हो,,, रूपाली भी पूरी तरह से उत्तेजित हो चुकी थी वह भी अपनी पती को अपनी बाहों में लेकर चूमना शुरु कर दी,,,।
रविकुमार अपनी ताकत का प्रदर्शन करते हुए असली बीवी रूपाली को तुरंत अपनी बाहों में लिए हुए ही पलटी मार दिया और उसे नीचे और खुद ऊपर आ गया,,,,,, दोनों की सांसें बड़ी तेजी से चल रही थी,,,,,, पल भर में ही मौसम की गर्मी और बदन की तपन से रूपाली पसीने से तरबतर हो गई,,,, पसीने में तर बतर रूपाली का खूबसूरत बदन और भी ज्यादा मादक और उत्तेजक लग रहा था,,,,,,,, रविकुमार पूरी तरह से बाजी अपने हाथों में ले लिया था,,, वैसे भी बिस्तर पर मर्दों की अगुवाई ही ज्यादा मायने रखती है,,,,,,
दिन भर की थकान वह अपनी बीवी की चुदाई करके मिटाना चाहता था,,,, पसीने से तरबतर चुचीया रविकुमार के हाथों में ठीक से समा नहीं पा रही थी,,। बार-बार उसकी हथेली फिसल जा रही थी मानो किसी टेकरी को पकड़ रहा हो,,,, फिर भी रविकुमार बड़े जोर लगाकर रूपाली की चूचियों को दबा रहा था और रूपाली को बहुत मजा आ रहा था,,।
रूपाली के लिए यही एक पल होता था जब वह पूरी तरह से खुल जाती है और अपनी जिंदगी का भरपूर आनंद लुटती थी,,, रविकुमार पागलों की तरह अपनी बीवी की चुचियों को मुंह में भर कर पी रहा था रूपाली की सिसकारी कमरे में गूंजने लगी थी,,,, रविकुमार का खड़ा लंड बार-बार रूपाली की जांघों के लिए रगड़ खा जा रहा था,,। जिससे रूपाली की आनंद और तड़प दोनों बढ़ जा रही थी,,।
अब दोनों से बिल्कुल भी रहा नहीं जा रहा था इसलिए रविकुमार अपनी बीवी की दोनों टांगों को फैला कर अपनी खड़े लंड को उसकी बुर में डाल दिया और अपनी कमर को हिलाना शुरू कर दिया रूपाली चुदाई से पूरी तरह से मस्त हो चुकी थी,,, वह भी गर्म सिसकारी के साथ अपने पति का पूरा साथ दे रही थी,,, रविकुमार कमर हिलाता हुआ अपनी बीवी को चोद रहा था,,,। रूपाली के मुंह से उसकी गरम सिसकारी बड़ी तेजी से निकल रही थी,,,रूपाली इस बात से पूरी तरह से बेखबर थी कि उसके बाजू वाले कमरे में उसकी ननद मंजू उसकी गरम सिसकारियां को सुन रही है सुरज और मुन्ना दोनों सो चुके थे,,,लेकिन मंजू अच्छी तरह से जानती थी कि आज रात क्या होने वाला है इसलिए उसकी आंखों में नींद नहीं थी,,, यह उसके लिए पहली बार नहीं था,,। आए दिन उसे उसके भैया भाभी की गरम आवाजें सुनाई देती थी जिसे सुनकर वह गर्म हो जाती थी क्योंकि उसकी भी शादी की उम्र हो चुकी थी जवान हो चुकी थी उसके तन बदन में भी भावनाएं जोर मारने लगी थी उसकी जवानी बदन में चीकोटी काटने लगी थी,,,। इसलिए तो अपनी भाभी की चुदाई की गरमा गरम आवाज सुनकर उसने भी अपनी सलवार की डोरी को खोल कर उसने अपना हाथ डाल दी थी और अपनी उंगली को अपनी मंजू बुर की छेंद में डालकर उसे छेड़ रही थी,,,,
दूसरी तरफ रविकुमार पूरा जोर लगा दिया था अपनी बीवी को चोदने में,,, और थोड़ी देर बाद दोनों हांफने लगे,,,, दूसरी तरफ मंजू का भी पानी निकल गया,,, रविकुमार और रूपाली नग्न अवस्था में ही एक दूसरे की बाहों में चारपाई मैं गहरी नींद मे सो गए,,,