मीता ने तो clear कर दिया वो किसी भी हाल में मनीष का साथ नहीं छोड़ेगी परंतु उसके रीना के बारे में विचार मुझे 100%सही लगते हैं रीना भले ही मासूम हो पर मनीष से बेइंतहा प्यार और अब शायद नफरत भी करती है वो मनीष को किसी के साथ नहीं बांटेगी चाहे प्यार में हो या नफरत में,#68
हम दोनों उसी समय जब्बर से मिलने के लिए चले गए . पर अफ़सोस वो कहीं बाहर गया हुआ था . निरासा से भरे हुए कदमो से वापिस लौटना कठिन था .
मीता-क्या बता सकता है ये जब्बर हमें
मैं- कोई ऐसी बात जो हमारे काम में आये, उसे लगता है की बाबा ने उसकी बहन का इस्तेमाल किया , इस घटना से पहले इनकी मजबूत दोस्ती थी .
मीता- बाबा ऐसी ओछी हरकत कभी नहीं करेंगे.
मैं- जब्बर के पास क्या मालूम कुछ ठोस सबूत हो .
मीता- पर न जाने कहाँ गया है ये जब्बर
मैं- कोई न , आज नहीं तो कल मिल ही जायेगा.
ढलती शाम में मैंने मीता का हाथ पकड़ा और हम दोनों नहर की पुलिया पर बैठ गए.
मीता- ऐसे मत देखा कर मुझे तू
मैं- तू ही बता कैसे देखू तुझे.
मीता- ये नजरे सीधा दिल पर जाकर लगती है
मैं- तो इसमें मेरा क्या कसूर , तू दोष दिल को दे
मीता- दिल भी तेरा ही है न
मैं- दिल अपना प्रीत पराई
मीता- वो क्यों भला
मैं- सब कुछ तेरे सामने ही है . एक तरह तू है एक तरफ रीना है . मैं न उसे छोड़ सकता हूँ न तुझे.
मीता- पर किसी दिन तो ये निर्णय लेना ही होगा न
मैं- मैं उस दिन भी दोनों में से किसी को नहीं छोडूंगा.
मीता- क्या तू मुझसे भी मोहब्बत करता है
मैं- ये त्रिकोण एक दिन मेरी जान ले जायेगा.
मीता- वैसे तू चाहे तो मेरा साथ छोड़ सकता है
मैं- इतना खुदगर्ज़ नहीं मैं, पल पल मेरे साथ तू खड़ी है और तू कहती है की तेरा साथ छोड़ दूँ.
मीता- हाथ थाम भी तो नहीं पायेगा तू .
ढलती शाम ने उसका सांवला चेहरा दमक रहा था सुनहरे सोने सा. मैंने उसके चेहरे को अपने हाथो में लिया और बोला- श्याम से पहले सदा राधा का नाम आया है .
मीता- जो प्यार कर गए वो लोग और थे .
मैं- हम भी तो प्यार ही कर रहे है .
मीता- ये कैसा प्यार है , चल मैं मान भी गयी इस त्रिकोण के लिए तो भी रीना नहीं मानेगी, मैं लिख कर देती हूँ तुझे. उसके दिल में तेरे लिए जो प्यार है . वो हद से गुजर जाएगी पर तुझे किसी और का नहीं होने देगी.
मैं- तो तुम दोनों देख लेना, मैं बहुत थक गया हूँ, मैं सोना चाहता हूँ
मीता और मैं थोड़ी देर बाद कुवे पर आ गए. मैंने कपडे उतारे और पानी की हौदी में कूद गया . ठन्डे पानी ने मेरे वजूद को अपने अन्दर समेट लिया. मीता ने चारपाई बाहर लाकर पटक दी और चाय बनाने लगी. इस पानी की हौदी में मुझे बड़ा आराम मिलता था , इसके अन्दर ही मेरा दिमाग ठीक से काम करता था , कुछ बेहतरीन विचार मुझे यही पर आये थे . गर्दन तक पानी में डूबे मैं बस जब्बर के बारे में ही सोच रहा था . आखिर वो क्या बात थी , जब्बर की बहन के बारे में मुझे पड़ताल करनी थी . क्या अतीत था उसका. मैं बहुत ज्यादा थका था तो मैंने बिस्तर पकड़ लिया. पर नसीब के जब लौड़े लगे हो तो नींद भी साली बेवफा हो जाती है . बरसात की बूंदों ने मेरी नींद तोड़ दी. मैंने देखा की मीता चारपाई पर नहीं थी, मैंने उसे कमरे में देखा वो वहां पर भी नहीं थी.
मैंने दो चार बार उसे आवाज दी पर कोई जवाब नहीं आया. थोडा परेशां हो गया मैं ऐसे बिना बताये वो कहीं नहीं जाती थी . हाल के दिनों में जो घटनाये हुई थी थोडा घबराना तो मेरा लाजमी था. सबसे पहला ख्याल दिल में बस यही आया की कहीं वो शिवाले पर तो नहीं गयी. मैंने एक पतली सी चादर ओढ़ी और हाथ में एक लकड़ी लेकर बरसात में ही रुद्रपुर की तरफ चल दिया.
मैंने देखा की खंडित शिवाले का मलबा इधर-उधर बिखरा हुआ था . पर देहरी पर एक छोटा सा दीपक जल रहा था . न जाने क्यों मेरे होंठो पर मुस्कराहट सी आ गयी.कहने को तो ये जगह कुछ भी नहीं थी पर अपने अन्दर न जाने क्या समेटे हुई थी.न जाने क्या कहानी थी जिसे वक्त की रेत अपने अंदर दफ़न कर ही नहीं पा रही थी .
मैं आगे बढ़ कर देवता के स्थान पर पहुंचा तो अचम्भे से मैं हैरान रह गया , मेरी आँखों ने मुझे धोखा देना चाहा . देवता का प्रांगन दियो से रोशन था . पर जैसे ही मैंने पैर वापिस किया दहलीज से घुप्प अँधेरा छ गया , पैर आगे बढ़ाते ही शिवाला रोशन होने लगा. मैंने दो तीन बार करके देखा. ये धोखा नहीं था.
“तुम अन्दर आ सकते हो ” किसी औरत ने मुझे आवाज दी.
बेशक मैं घबराया हुआ था पर मैं सावधान था . मैं जरा भी नहीं हिला.
“तुम्हे डरने की जरुरत नहीं है .” अन्दर से फिर आवाज आई.
हिचकिचाते हुए मैं दहलीज को पार करके अन्दर चला गया .
“अपनी सारी परेशानियों को इनके पास छोड़ दो. शिव सबके है , तुम्हारे भी है तुम्हे भी देख रहे है वो ” उसने कहा और मुझे बैठने का इशारा किया.
मैं बस उस औरत को देखे जा रहा था , उसके चेहरे पर ऐसा तेज था की ये तमाम दिए न भी होते तो भी ये शिवाला रोशन हो जाता. उसके चांदी से बाल .ठोड़ी के निचे तीन टिल. हाथो में चांदी के कड़े. बड़ा प्रभावशाली व्यक्तित्व था उसका.
“कौन है आप ” मैंने हाथ जोड़ कर उसका परिचय पूछा.
औरत- मैं एक डोर हूँ जो बंधी हूँ इस शिवाले से
उसने एक थाली निकाली जो खाने से भरी थी . उसने रोटी का एक टुकड़ा तोडा और बोली- बेटे, खाना खाओ.
न जाने क्या बात थी उसमे, मैं ना कह नहीं पाया. उन कुछ निवालो से ही मेरा पेट भर गया. ऐसा अहसास मुझे पहले कभी नहीं हुआ था . न जाने क्यों मेरी आँखों से बहकर आंसू उसकी हथेली को भिगोने लगे.
“ये आंसू किसलिए भला ” उसने मुस्कुराते हुए कहा .
मैं- कभी माँ के हाथ से ऐसे खा नहीं पाया. बरसो से दबी इच्छा आंसू बन कर बह चली.
औरत -समझती हूँ . एक बेटे के लिए माँ का क्या महत्व होता है . ये सब नसीब का खेल है , मिलन है जुदाई है तकदीरो के लेख को भला कौन समझ पाया है .
मैं- इस शिवाले की कहानी क्या है क्या आप मुझे बतायेंगी. जब से मेरे कदम यहाँ पड़े है मेरी जिन्दगी बदल गयी है .
औरत- ये खुशकिस्मती है तुम्हारी . शिवाले की क्या कहानी भला. जिन्दगी के तमाम रंग है शिवाले में सुख है दुःख है .
इस से पहले वो कुछ और कहती वो तमाम दिए बुझने लगे. वो औरत मेरे पास आई मेरे माथे को चूमा और बोली- अतीत के पन्ने मत पलटना , जो है वो आज है और आने वाला कल है .
इस से पहले मैं कुछ कहता शिवाले में घुप्प अँधेरा छा गया . जब तक मेरी आँखे देखने लायक हुई वहां पर कुछ भी नहीं था .
Jaberdast update hai#10
ताई की बातो ने मुझे उत्सुक कर दिया था , दिल कर रहा था की अभी के अभी साइकिल उठाऊ और सीधा उधर पहुँच जाऊं , पर फिर सोचा शाम होने में भला देर ही कितनी बची है, ताई के घर से जब मैं बाहर निकल रहा था तो गली में उसी अजनबी से टकरा गया मैं.
मैं- देख कर चल भाई
वो- गुजरा हुआ कल देखा है , आने वाला कल भी देख रहा हूँ, और कितना देख कर चलू
मैं- क्या मतलब इस बात का .
वो- मतलब तो वो जाने जिसने हम सब के लेख लिखे है ,हम तो कठपुतली है उसकी जिसने ये तमाशा रचा है .
मैं- पागल है क्या तू
वो- काश, पागल होता , खैर अब तूने पूछ ही लिया है तो सुन, अगली पूर्णिमा को रुद्रपुर में निमन्त्रण है तेरा, सोलह साल बाद मेला लगेगा,
मैं- मेरा निमन्त्रण क्यों भला
वो- ये मुझसे क्यों पूछता है , ये तब सोचना था न जब कपाट खोल आया तू, अब जब धूना सिलगा ही दिया है तो सींचना भी तो पड़ेगा
उसकी बाते मेरे सर के ऊपर से गुजर रही थी,
मैं- चुतिया है क्या तू, क्या बकवास कर रहा है, किसके कपाट, कौन सा धुना, मैं अब क्या कर आया रुद्रपुर में .
उस अजनबी ने अपनी छोटी छोटी से आँखों से घुर मुझे और फिर सीधा मेरा कालर पकड़ लिया.
“इतना मासूम भी नहीं है तू ,जितना बनने का नाटक कर रहा है , तेरे सिवा और कौन होता जो बरसो से बंद पड़े मंदिर के दरवाजे खोल आता, अब ये मत पूछना कौन सा मंदिर ” उसने गुर्राते हुए कहा और मुझे धक्का देकर परे धकेल दिया.
“पूनम का इंतज़ार है सब को ” जाते जाते उसने मुड कर कहा
मैं अपना गला सँभालने लगा. घर गया तो देखा की चाचा आँगन में कुर्सी पर बैठा था , चाचा का चेहरा इतना पीला पड़ा हुआ था की देख कर लगे जाने कितने सालो से बीमार हो. मुझे देखते ही वो झटके से खड़ा हुआ और बोला- बेटे, तुम्हे घुमने जाना था न , अपनी तयारी कर लो.
चाचा ने जेब से नोटों की गड्डी निकाली और मेरे हाथ में रख दी.
“तुम घूम आओ , बाहर की दुनिया देखो वैसे भी इस बार मैं तुम्हारा दाखिला बड़े शहर में करवा रहा हूँ, बढ़िया पढाई बहुत जरुरी है भविष्य में काम आएगी, इधर गाँव में क्या रखा है . ” चाचा ने कहा.
मैं- क्या हुआ है चाचा, कोई बात है क्या
चाचा- क्या बात होगी , कुछ भी तो नहीं अपनी औलाद के बारे में हम नहीं सोचेंगे तो भला कौन सोचेगा. तू जा खेल कूद ऐश कर .
चाचा ने मेरे कंधे पर हाथ रखा और फिर अन्दर कमरे में चले गए. मेरा दिमाग पूरी तरह घूम गया था . ये क्या हो रहा था . मैंने नोटों की गड्डी को उधर कुर्सी पर ही रखा और घर से बाहर चल दिया. दोस्तों के साथ इधर उधर घुमा, बेर खाने गया पर मन बिचलित था, काबू में नहीं आ रहा था जैसे तैसे करके शाम हुई और मैं ताई के साथ जंगल पार वाली जमीन की तरफ चल दिया.
ये जंगल भी बड़ा अजीब था , दुनिया भर के पेड़, कुछ बिलकुल सूखे कुछ गहरे, कुछ फलो से लदे, चूँकि पास में नहर थी तो येहमेशा हरा भरा ही रहता था , कभी मिटटी का रस्ता सही मिलता तो कभी कांटो भरा, या लकडियो ने रास्ता रोका हुआ, मैं और ताई चले जा रहे थे की मेरी नजर आम के पेड़ पर पड़ी.मैंने साइकिल रोकी.
ताई- क्या हुआ
मैं -आम
ताई- रहने दे हाथ नहीं पहुंचेगा उधर
मैं- तू देख, अभी तोड़ता हूँ.
मैंने इधर उधर देखा पर पत्थर नहीं मिले मेरे को, न ही कोई ऐसी छड़ी जिसे हिला कर मैं आम तोड़ सकू,
ताई- छोड़ न ,
मैं- रुक जरा, अभी करता हु जुगाड़.
मैंने पेड़ पर चढने की कोशिश भी की पर बात बनी नहीं . उछल कर भी देखा फिर मैंने कुछ सोचा
मैं- ताई , मैं तुझे उठाता हूँ, ये इस तरफ वाली डाली पर तेरा हाथ पहुँच जायेगा.
ताई- न बाबा न, गिर वीर गयी तो कौन करेगा मेरा , हाथ पैर न टूट जाये.
मैं- क्यों घबराती है कुछ नहीं होगा.
मैंने ताई ओ पकड़ा और ऊपर की तरफ उठाना शुरू क्या मेरे हाथ ताई की चिकनी कमर से होते हुए ताई के कुल्हो पर रेंगने लगे थे, मैंने ताई के कुल्हे मजबूती से थामे और ताई को ऊपर उठा दिया.
जब मेरा ध्यान उस बात पर गया तो न जाने क्यों मुझे बड़ा अच्छा लगा. मैंने कुछ जोर से दबाया उन्हें.
ताई- हाथ नहीं पहुंचा थोड़ी कसर है .
मैं- रुक जरा
मैंने ताई को और ऊपर किया अब मेरे हाथ ताई की जांघो पर पहुँच गए थे, और ताई की चूत वाला हिस्सा मेरे मुह के सामने मेरे इतने पास की मेरे होंठ उस पर रगड़ खा जाते अगर ताई का लहंगा बीच में ना आ रहा होता तो . सर चकराने लगा मेरा. आँखों आगे अँधेरा सा आने लगा. ताई के बदन की खुसबू छाने लगी मुझ पर .
“क्या कर रहा है ठीक सा पकड़. गिराएगा क्या , बस तोड़ ही दिया मैंने ” ताई ने कहा और दो आम तोड़ लिए.
ताई- अब उतार भी दे.
मैंने हौले हौले ताई को निचे उतार दिया , जब उसकी चुचिया मेरे सीने पर रगड़ी तो मैंने अपने कच्छे में कुछ जोर मारती चीज़ को महसूस किया.
“क्या देख रहा है ऐसे ” ताई ने मुझे अपनी छाती ताड़ते हुए कहा
मैं- तुझे देख रहा हु,
मैंने बिलकुल भी झूठ नहीं बोला.
ताई- मेरे को तो रोज ही देखता है तू
मैं- आम दे मुझे.
हम वही बैठ कर आम खाने लगे. चीनी से भी मीठा आम . बिलकुल ताजा अभी अभी पेड़ से तोडा हुआ इस से बढ़िया भला क्या होता. मैंने देखा ताई का होंठ थोडा सा आम क रस से सना है
ताई- क्या देख रहा है.
मैं- रस लगा है
ताई किधर
मैं थोडा सा आगे हुआ और ताई के होंठो पर अपनी ऊँगली फेर दी.
उफ़ कितने मुलायम थे उसके होंठ, कितने नर्म होंगे जब मैं चुसुंगा इन्हें. सोचा मैंने
ताई- हो गया साफ
मैं- हा बस
मैंने एक बार और ऊँगली फेरी तो ताई ने हल्का सा मुह खोला और मेरी ऊँगली थोड़ी सी ताई के मुह में चली गयी, गर्म जीभ का स्पर्श मेरे तन बदन को हिला गया. न जाने क्यों मुझे लगा की ताई ने मेरी ऊँगली को चूमा हो . .........................
“चल अब, देर मत कर ” ताई ने कहा तो मेरी तन्द्रा टूटी
हम फिर चल पड़े. करीब आधे घंटे में हम लोग उस जगह पर पहुँच गए जहाँ जंगल खत्म होता था और हमारी जमीन शुरू होती थी . दूर कहीं सूरज लाल हुआ पड़ा था , ढलने को बेताब. मैंने दूर दूर तक नजर डाली एक तरफ घना जंगल था जिसे पार करके हम आये थे दूसरी तरफ सूखी जमीन दूर दूर तक
मैं- क्या है ये ताई.
ताई- ये ही है वो जमीन
ताई- झटका लगा न, इस बंजर को देख कर . यहाँ से रुद्रपुर तक तेरी ही जमीन है .
रुद्रपुर यहाँ सेकोई दो ढाई कोस दूर था . इस हिसाब से तो काफी क्या बहुत ज्यादा जमीन थी ये .
मैं- ये तो बहुत बड़ा इलाका हुआ
ताई- ये मत पूछ की ये कितना इलाका है ये देख की ये जमीन बंजर क्यों है .
ताई ने मेरा हाथ पकड़ा और अपने साथ ले चली.
देख- यहाँ से रुदपुर तक पुरे ११ कुवे है , और एक बावड़ी. ताई ने कहा
ताई मुझे एक कुवे पर ले आई और बोली निचे देख. मैंने झाँक कर देखा कुवा पानी से लबालब भर था पानी इतना था की बस बाल्टी डालो और पानी खींच लो.
मैं- जब पानी है तो फिर जमीन प्यासी क्यों.
ताई ने पास पड़ी एक पुराणी सी बाल्टी की तरफ इशारा करते हुए कहा तू खुद ही देख ले
मैंने बाल्टी कुवे में डाली और खींचा , बाल्टी मैंने जमीन पर खाली की .पर जमीन जरा भी गीली नहीं हुई. अब मैं हुआ हैरान
ताई- हैरानी हुई न, दुनिया कहती है की ये प्यासी जमीन है जिसकी प्यास न कोई कुवा बुझा सकता है न कोई बारिश, बारिस के मौसम में जब आस पास की सारी धरती नया जीवन प्राप्त करती है ये धरा ऐसी की ऐसी ही रहती है .
मैं- क्यों भला
ताई- आ मेरे साथ तुझे कुछ और दिखाती हु,
मैं ताई के पीछे पीछे हो लिया. ताई की मटकती गांड एक बार फिर मेरी परीक्षा लेने लगी.
Amzing update#11
इन्सान का मन बड़ा विचित्र होता है , उसकी इच्छाए, उसकी लालसा , उसकी अनगिनत महत्वकांक्षी योजना, मन कब बावरा हो जाये, कब वो छल कर जाये कौन जानता है. कुछ ऐसा ही हाल मेरा उस समय था जब आगे चलती ताई की मटकती गांड को देख कर मैं महसूस कर रहा था . जबसे उसे ठेकेदार से चुदते देखता था मेरे मन में कहीं न कहीं ये था की मैं भी ताई की ले लू.
करीब आधा कोस चलने के बाद मेरे लिए एक अजूबा और इंतज़ार कर रहा था , ये एक बड़ी सी बावड़ी थी जिसकी पक्की सीढिया अन्दर को उतरती थी. चारो कोनो पर चार मीनार जैसी मध्यम आकार की छत्रिया , लाल पत्थर जिस पर समय ने अपनी कहानी लिख दी थी . सीढिया चढ़ कर ऊपर आकर मैंने देखा तो कुछ सीढिया छोड़कर बावड़ी लगभग भरी ही थी .
काफी समय से उपेक्षित होने के कारण अन्दर पानी में काई, शैवाल लगा था ,
“किसी ज़माने में बड़ा मीठा पानी होता था इसका. आसपास के लोग, चरवाहे, राहगीर न जाने कितने लोगो की प्यास बुझाती थी ये बावड़ी. ” ताई ने कहा.
“तुम्हारे पिता को बड़ी प्रिय थी ये जमीन, उसका ज्यादातर वक्त इधर ही गुजरता था . उसके हाथ में न जाने कैसा जादू था, जिस खेत में उसने मेहनत की वो ऐसे झूम के लहलहाता था की खड़ी फसल देखते ही बनती है , और देखो किस्मत की बात जब से वो गया , ये धरती भी रूठ गयी ” ताई ने कुछ उदासी से कहा.
“पर चाचा इस जमीन को क्यों बेचना चाहता है ” मैंने कहा
ताई- शायद इसका अब कोई मोल नहीं रहा इसलिए.
मैं- अगर मेरे पिता को इस से लगाव था तो ये अनमोल हुई मेरे लिए. इसे बिकने नहीं दूंगा. मैं बात करूँगा चाचा से .
ताई थोडा मेरी तरफ सरकी, मेरे हाथ को अपने हाथ में लिया और बोली- तेरा चाचा बुरा आदमी नहीं है, बहुत चाहता है तुझे पर तेरी चाची से थोडा दबता है , इसलिए खुल कर तुझसे प्यार नहीं जता पाता.
मैं- जानता हूँ , आज घर पर कोई आदमी आया था ,उसके आने के बाद चाचा बहुत परेशान था .
ताई- अब तू बड़ा हो रहा है, उसका साथ दे, तेरे दादा, तेरे पिता के जाने के बाद जैसे तैसे उसने परिवार को संभाला है , पर वो तेरे दादा, तेरे पिता जैसा वीर नहीं है ,
मैं- कैसे थे मेरे पिता.
ताई- वो अलग था दुनिया से, उडती पतंग जैसा. गाँव के हर घर का बेटा, ऐसा कोई नहीं था गाँव में जो उसे पसंद नहीं करता हो.
बातो बातो में कब रात घिरने लगी होश कहाँ था तो हम वहां से चलने लगे, पर मैंने सोच लिया था की अब तो इधर आता जाता ही रहूँगा. बाते करते हुए हम लोग नहर की पुलिया पार करके गाँव की तरफ जाने वाले मोड़ की तरफ मुड़ने को ही थे की मैंने सामने से उसे आते देखा, चार पांच बकरियों संग सर पर लकडियो का गट्ठर उठाये हुए रीना लम्बे लम्बे कदम उठाये चली आ रही थी . मैंने साइकिल रोकी.
ताई- क्या हुआ
मैं- ताई तू चल घर मैं रीना के साथ आता हूँ
तब तक रीना पास आ चुकी थी .
मैं-साइकिल पर रख दे लकडियो को वैसे ये क्या समय है लकडिया लाने का वो भी अकेले
रीना- अकेली कहाँ हूँ मैं, तू साया है तो सही मेरा.
मैं- इन बातो से मत बहला , थोडा देख भाल लिया कर घर से किसी को साथ ला सकती थी न .
रीना- अरे, मेरी सहेली आई थी साथ , फिर न जाने उसे क्या जल्दी हुई भाग खड़ी हुई वो .
मैं- चल कोई न.
रीना- वैसे मैंने देखा , मेरी बड़ी फ़िक्र करता है तू.
मैं- एक तू ही तो है मेरी.
वो मुस्कुरा पड़ी.
“वो इसी बात से तो डर लगता है मुझे, ” उसने कहा
मैं- किस बात से
वो- अब क्या बताऊ किस बात से .......
उसने एक ठंडी आह भरी.
मैं- तू साथ है , तूने मुझे तब थामा जब सबने ठुकराया . मेरी दुनिया में बस तू है
रीना- आ दो पल बैठते है .
मैंने साइकिल खड़ी की और हम सड़क किनारे कच्ची मिटटी पर ही बैठ गए.
मैं- चुप क्यों हो गयी .
रीना- समझ नहीं आ रहा क्या कहू, कहना भी है चुप रहना भी है .
आज से पहले उस चुलबुली को कभी इतना संजीदा नहीं देखा था .
मैं- क्या हुआ , क्यों परेशान हुई भला.
रीना- परेशां नहीं हूँ, बस सोच रही हूँ आने वाले कल के बारे में.
मैं- कल की क्या फ़िक्र करनी
रीना- फ़िक्र है , तू तो जानता है की बचपन से मामा के घर ही पली बढ़ी हूँ, पर एक न एक दिन तो यहाँ से जाना ही होगा
मैं- हां, तो कुछ दिन अपने गाँव रह कर फिर वापिस आ जाना उसमे क्या बात है .
रीना- कल मेरी माँ का संदेसा आया था, बारहवी होते ही मेरा रिश्ता कर देंगे.
मैं- पर तू तो बहुत पढना चाहती है ,पढ़ लिख कर नौकरी करना चाहती है .
रीना- बदनसीबो के सपने भला कहाँ पुरे हुआ करते है .
मैं-सो तो है.
रीना- माँ को ना भी तो नहीं कह सकती, अभी तक तो मामा ने पढ़ा दिया, खाना कपडे सब देते है पर उनके बच्चे भी बड़े हो रहे है , वो अपनी औलादों का भी सोचेंगे .
मैं- अभी एक साल बचा है न , तू तेरी माँ से फिर बात करके देखना, कोई न कोई हल निकल आएगा.
रीना- क्या हल निकलेगा. तू तो जानता है मेरा पिता शराबी है , माँ कहती है मुझे ब्याह के वो अपनी जिमेदारी निभा देगी आगे मेरे भाग.
मैं जानता था की आगे अगर कुछ और बोली तो वो रो पड़ेगी. मैंने बस उसे अपने सीने से लगा लिया.
“जब तक मैं हूँ,तुझे गमो की जरा भी हवा नहीं लगने दूंगा, मेरा वचन है तुझे. ” मैंने उसे कहा.
बाकी पुरे रस्ते हम दोनों चुपचाप आये. कहने को और कुछ था भी नहीं . आज तक मैं खुद की हालत देख कर रोता था पर आज मालूम हुआ की इस दुनिया में मैं अकेला ही मजबूर नहीं था .
अगली दोपहर मैं फिर से मेरी बंजर जमीन पर खड़ा था , तपती दुपहरी में जमीन जैसे जल रही थी . मैं और अच्छे से इस जमीन को देखना चाहता था . कभी इधर भटका, कभी उधर. घूमते घूमते मैं थोडा ज्यादा आगे ही निकल आया. इतना आगे की रुद्रपुर ही आ गया . आज से पहले मैं रुद्रपुर कभी नहीं आया था .
गाँव की शुरुआत में ही एक के बाद एक कतार में पुरे ग्यारह पीपल लगे हुए थे. पास में ही एक जोहड़ था, कुछ चरवाहे बकरियों-भेड़ो को पानी पिला रहे थे, कुछ बुजुर्ग पीपलो की छाया में ताश खेल रहे थे. थोडा आगे चलने पर दो रस्ते जाते थे एक आबादी की तरफ और दूसरा उस तरफ जहाँ मैं खड़ा था . वो एक बहुत बड़ी, पुराणी इमारत थी , बड़ी बड़ी छतरिया दूर से ही दिखती थी . मैं उसी तरफ चल दिया.
पहली नजर में समझ नहीं आया की ये क्या इमारत थी, स्लेटी पत्थरों की बनी ये इमारत जिसके चार कोनो ने दो बरगद, दो पीपल. पत्थरों को काट कर ही खिडकिया, चोखटे बनाई हुई. पास एक पानी की टंकी थी, एक खेली थी जो न जाने कब से सूखी थी. आस पास सन्नाटा तो नहीं था पर ख़ामोशी कह सकते है, कुछ कबूतर गुटर गुटर कर रहे थे . मैं अन्दर जाने को पैर उठाया ही था की मेरी नजर पास ही पड़ी , खडाऊ पर पड़ी तो मुझे भान हुआ ये कोई पवित्र जगह होगी.
मैंने चप्पल उतारी और सीढ़ी चढ़ा, पहली , दूसरी तीसरी सीढ़ी पर जैसे ही मैंने पैर रखा, ऐसा लगा की पैर जैसे जल ही गया हो मेरा. स्लेटी पत्थर धुप की वजह से पूरा गर्म हुआ पड़ा था. भाग कर मैं अन्दर गया. अन्दर कुछ भी नहीं था , जगह जगह जाले लगे थे, कई जगह पक्षियों की बीट थी. घोंसलों का कचरा था. उस बड़े से हाल को पार करके मैं आगे गया तो मैंने देखा की एक बड़ी सी बावड़ी थी जिसके तीन किनारों पर पत्थरों की नक्काशी किये हुए छज्जे लगे थे.
ठीक वैसी ही बावड़ी जैसी हमारे खेत में बनी थी . पानी हिलोरे मार रहा था इतना साफ़ नीला पानी मैंने कभी नहीं देखा था ,अंजुल में भर कर मैंने पानी पिया. अब क्या कहूँ ये मेरा वहम था या मेरी प्यास पानी मुझे शरबती लगा. जी भर कर पीने के बाद , मैंने कुछ छींटे चेहरे पर मारे. गजब का सुख मिला.
इधर उधर देखते हुए मैं आगे बढ़ा, अब कच्चा आँगन आ गया था . पास में एक कुवा था ,बहुत पुराना . एक तरफ कुछ सूखे पेड़ खड़े थे. थोडा आगे एक विशाल बरगद था जिसके ऊपर बहुत से धागे बंधे थे जिनका रंग उड़ चूका था. शायद बहुत पहले बाँधा गया होगा इन्हें. घूरते हुए मैं अब उस हिस्से की तरफ गया जहाँ पर कुछ ठंडक सी थी, गहरी छाँव थी . मेरी नाक में अब कुछ खुशबु सी आने लगी थी .
ईमारत के अन्दर ईमारत अपने आप में ही गजब सा था . वो काला दरवाजा कोयले से भी काला था, जिसमे कोई कुण्डी नहीं थी बस दो बड़े बड़े लोहे के गोले लटक रहे थे. मैंने पूरी ताकत से दरवाजे को खोलने की कोशिश की पर वो टस से मस नहीं हुआ.
पुराना दरवाजा जिसकी लकड़ी जगह जगह से उखड़ी हुई थी,तीसरी कोशिश में वो दरवाजा खुला और अन्दर कदम रखते ही मैंने देखा की.............................................
Fantastic updated#12
मैंने देखा एक अद्भुद नजारा, कहने को कुछ भी नहीं और कहे तो बहुत कुछ हो जाए . मेरे सामने जलती राख थी जिसका धुआ भी अब धुआ धुआं हो चूका था . क्या मालूम कब यहाँ अलख जगी होगी पर अब कुछ नहीं था , या फिर कुछ नहीं होकर भी सब कुछ था . मैं समझ नहीं पा रहा था की ये जगह है क्या. क्या ये कोई मंदिर था, कोई मस्जिद थी , कोई आश्रम था , कोई शमशान था . मैं उस दिन नहीं जान पाया.
जब नजर उस धुएं के पार देखने लायक हुई तो मैंने देखा की एक मिटटी की मूर्ति ,जो करीब ढाई तीन फुट की रही होगी, उसके गले में दो धागे एक लाल एक काला और फिर चमकते हीरे, पन्ने . हाँ वो हीरे पन्ने ही थे . उस हलके अँधेरे में भी उनकी आभा चमक रही थी .
बड़ी बात ये नहीं थी की उस मूर्ति में जवाहरात जड़े थे , हैरत की बात थी की उस पर ऊपर से गिरती पानी की हलकी हलकी धारा ,जो लगातार गिरते हुए भी उस मिटटी को भिगो नहीं पा रही थी . पास में ही एक बेहद सुन्दर फूल था न जाने कैसा , किसका मैंने आज से पहले कभी ऐसा फूल नहीं देखा था . आकर्षण से वशीभूत मैंने उसकी तरफ उसे छूने के लिए हाथ बढाया ही था की
“उसे हाथ भी नहीं लगाना.” मेरे पीछे से एक उत्तेजित आवाज आई तो मेरी गर्दन एक दम से पीछे को घूमी .
मैंने देखा मेरे ठीक पीछे वो ही लड़की जिस से मैं दोपहरों में , अँधेरी रातो में मिला था खड़ी थी .
“डरा ही दिया था तुमने तो ” मैंने कलेजे पर हाथ रखते हुए कहा
वो- ये जहरीला है ,
मैं- ओह
वो बाहर को आई, मैं भी उसके पीछे उस कमरे से बाहर आया.
“तो हम एक बार फिर मिल गए ” मैंने कहा
वो- अजीब संयोग है न
मैं- तकदीरो का इशारा भी हो सकता है
वो किस किस्म का इशारा.
मैं- तुम जायदा जानो , देखो जरा क्या कहते है तुम्हारे सितारे.
वो मेरी बात पर मुस्कुरा पड़ी.
“ये क्या जगह है , मेरा मतलब ये ईमारत अपने आप में अनोखी है ” मैंने कहा
वो- जो तुम्हे दिख रहा है बस ये खंडहर ही है , गुजरे हुए वक्त की कोई खोयी कहानी.
मैं- कहानिया कभी अधूरी नहीं होती, किस्से बताने वाले कम हो जाते है .
वो- तो तलाश कर लो किसी ऐसे की जो तुम्हे बता सके.
मैं- तलाश क्या करना मेरे सामने ही तो है .
उसने घूर कर मेरी तरफ देखा और बोली- मेरे जाने का समय हो गया है .
मैं- फिर कब मिलोगी
वो- किसलिए भला.
मैं- मिलोगी नहीं तो हमारी कहानी कैसे शुरू होगी.
मेरी बात सुन कर वो हंसने लगी, इतना जोर से से की उसकी हंसी उस ईमारत में गूंजने लगी. मर्ग नयनी आँखे उसकी , हैरत से भरी मुझे देख रही थी .
“बरसो बाद किसी ने मजाक किया है मुझ से ” सीने पर हाथ रखे उसने कहा मुझसे.
“और यदि इसी पल मैं तुमसे कहूँ की मैं तुमसे दोस्ती करना चाहता हूँ तो क्या कहोगी तुम ” मैंने उस से सवाल किया.
वो- मेरा जवाब ना होगा, और भला कैसी दोस्ती मेरे तुम्हारे बीच , ये ख्याल भी क्यों आया तुम्हारे मन में
मैं- ये तो मन ही जाने मेरा. जो भी था तुम्हे बता दिया .
वो- आज दोस्ती , कल कहोगे मोहब्बत हो गयी है , परसों न जाने क्या फरमाइश होगी तुम्हारी.
मैं- देखो मैं बस आज की बात करता हूँ कल का क्या भरोसा कल हो न हो.
वो- और कल को तुम्हे मालूम हुआ मैं दोस्ती तोड़ गयी , निभा न पायी फिर
मैं- फिर क्या ,कुछ भी तो नहीं
वो- फिर बुरा नहीं लगेगा तेरे मन को
मैं- बुरा क्यों लगेगा. दोस्ती ही तो की है कौन सा तेरे संग प्रीत की डोर बाँधी है , तू नहीं थी जब भी तो जिन्दा था न मैं
वो- क्या तुझे इस ज़माने का भी डर नहीं
मैं- डर तो ज़माने को होना चाहिए और मैंने कौन सा आसमान माँगा है तुझसे
वो- काश तूने आसमान माँगा होता, माँगा भी तो क्या तूने
उसकी आवाज में एक फीकापन था.
“चलती हूँ , ” उसने कहा
मैं- जाती है तो जा बस इतना बता फिर कब मिलेगी.
वो- रब्ब जाने , मेरे जाने के थोड़ी देर बाद निकलना तू
मैंने हाँ में गर्दन हिलाई. ना जाने क्यों उसे जाते हुए देखना अच्छा नहीं लगता था . कुछ देर बाद मैं वहां से निकला . अपनी चप्पल पहन ही रहा था की कुछ ५-७ लडको का टोल उसी तरफ आ निकला. मुझे देख कर वो रुक गए.
“ओये तू क्या कर रहा है इधर, ” एक ने पूछा
मैं-कुछ नहीं बस ऐसे ही इस तरफ आया था तो ये ईमारत दिखी . प्यास लगी थी पानी पीकर आया हूँ
मैने कहा और अपने रस्ते चला ही था की उन्होंने मुझे रोक लिया.
“सोलह साल से इस गाँव ही क्या किसी के भी कदम यहाँ नहीं पड़े है और तू कहता है की पानी पीने आया था , बता क्या उद्देश्य था तेरा अन्दर जाने का ” उनमे से सबसे बड़े लड़के ने कहा .
मैं- तेरे गाँव में पानी पीना गुनाह है क्या, जाने दे मुझे
वो- जब तक तू बताता नहीं की तू अन्दर क्या करके आया है नहीं जाने दूंगा.
मेरा भी दिमाग पकने लगा था तो मैंने ऐसे ही कह दिया- धुना सुलगाने आया था सुलगा दिया अब बता जाऊ की न जाऊ, और नहीं जाने देगा तो अपने घर ले चल . दो रोटी तू दे देना .
अचानक ही उस लड़के का पूरा चेहरा पीला पड़ गया . जैसे की किसी ने उसका खून निचोड़ लिया हो .
“तुम लोग इसे पकड़ो , मैं अभी आता हूँ ” ऐसा कहकर उसने दौड़ लगा दी. अब वो लोग पांच- सात जने थे तो उनसे लड़ाई करना बेकार था और मैंने पहले कभी किसी से मारपीट की भी नहीं थी . मैं वही सीढियों के पास बैठ गया .
पांच- दस पंद्रह बीस तीस मिनट जाने कितना समय बीता फिर धुल उडाती तीन काली गाडिया एक के बाद एक आकर उतरी. कुछ मवाली टाइप लड़के थे गाडियों में और फिर उतरा वो जिसे देख कर उम्र का अंदाजा लगाना थोडा मुश्किल था मेरे लिए. एक दम सफ़ेद बाल. सफ़ेद दाढ़ी हाथो में अंगुठिया. लम्बी मूंछे . चेहरे से रौब झलके उस आदमी के , हाथो में बेंत लिए एक पैर से थोडा लंगड़ाते हुए वो मेरी तरफ आया. उसकी लाल आँखे घूर रही थी मुझे .
“दद्दा, यही है वो ” उसी लड़के ने मेरी तरफ ऊँगली करते हुए कहा.
“साहब , मुझे नहीं मालूम था की यहाँ आना मना है प्यास लगी थी तो मैंने बस पानी पिया और वापिस आया ही था की ये मुझसे उलझने लगे ” मैंने अपना पक्ष रखा .
दद्दा- मेरे साथ आओ .
उसने हाथ से बाकी लोगो को वही रुकने का इशारा किया और मैं उसके साथ वापिस ईमारत में दाखिल हो गया .
“कहाँ था पानी ” उसने गला खंखारते हुए कहा .
मैं दौड़ कर बावड़ी के पास गया और जब मैंने उसमे झांक कर देखा ,,,,,,,,, देखा तो .....................
आखिर बावड़ी में क्या था पानी पीने के बाद हाथो में राख लगा रहना ????#13
मैंने देखा बावड़ी में पानी उसी तरह लहरा रहा था .
“ये पानी नहीं तो क्या है ” मैंने निचे जाकर हथेली में पानी भरा और उसके पास लाया. मैंने हथेली उसके आगे की . उसने हिकारत से मुझे देखा और बोला- चला जा यहाँ से .दुबारा मत आना .
मैं- वो मेरा मामला है दुबारा आना या न आना तुम्हे इससे क्या लेना देना
“उम्र छोटी है और बाते आसमान जितनी, जिसे तू खेल समझ रहा है न वो .......” उसने बात अधूरी छोड़ दी .
मैं - वो क्या ..
उसने अपनी बेंत मेरी छाती पर लगाई और बोला- निकल जा यहाँ से
मैंने भी बात आगे नहीं बढाई और वहां से बाहर निकल आया. बाहर खड़े तमाम लोगो की नजरे मुझ पर थी पर किसी ने मुझे रोका नहीं . कुछ दूर चल कर मैंने माथे का पसीना पोंछा तो कुछ रुखा सा महसूस हुआ मैंने अपने हाथ देखे, हथेलिया राख में सनी हुई थी .
मैंने अपने मुह पर हाथ रख लिया , हाथो पर ये राख कैसे आई, हलकी सी तपिश महसूस की . मैंने शर्ट से ही हाथ साफ़ किये और रुद्रपुर से अपने गाँव वापिस आ गया. शाम ढलने लगी थी . दिल में मेरे न जाने कितने सवाल थे जिनके जवाब दे सके ऐसे इन्सान को तलाश करना ही मेरा मकसद था अब .
चोबारे की छत पर लेटे हुए मैं रीना के बारे में सोच रहा था , आज वो उदयपुर चली गयी थी . बचपन से ऐसा कोई लम्हा नहीं था जो हमने साथ नहीं बिताया हो. इस दुनिया में सबसे पहले मेरे लिए कोई था तो वो बस . जबसे उसने उसकी माँ से हुई बात बताई थी , दिल में हलचल सी मची हुई थी . बहुत सी बाते थी जो उससे कहनी थी , हर सुबह जब वो तालाब पर पानी भरने आती थी , तो ग्राम देवता के मंदिर में समाधी के साथ चक्कर लगाना, थोड़ी देर हम सीढियों पर बैठते . वो मुझे मैं उसे देखता .उसके गेहुवे रंग पर लाल चुन्नी बड़ी फब्ती . कानो में सोने की बालिया गले में ॐ का लाकेट जो मैंने मेले में खरीद कर दिया था उसे.
ये रात भी जाने क्यों बेवफाई पर उतर आई थी , आँखे मूंदु तो भी आँखों को रीना की सूरत ही दिखे . हालत जब काबू से बाहर हो गयी तो मैंने शर्ट पहनी और घर से बाहर आ गया. चारो दिशाए सन्नाटे में डूबी थी . पैदल चलते चलते मैं खेतो को पार करके पुलिया की तरफ आ पहुंचा था की मैंने देखा की इकतारा लिए वही लड़की पुलिया पर बैठी है . हमारी नजरे मिली, उसने इकतारा साइड में रख दिया.
“मेरा पीछा क्यों करता है ” उसने उलाहना दिया.
मैं- क्यों इन रातो पर बस तेरा हक़ है क्या.
वो- हक़ तो नहीं है , पर इन रातो से बढ़िया कोई साथी भी तो नहीं
मैं- तेरी बाते मेरे जैसी क्यों है
मैं उसके पास बैठ गया .
वो- बाते है बातो का क्या . तू बता कुछ परेशां सा लगता है .
मैं - चलो तुमने इसी बहाने मेरा हाल तो पूछा
वो- क्या परेशानी हुई तुझे
मैं- जब से तुझे देखा है , नजरे हट टी नहीं तेरे चेहरे से, दिन हो या रात हो तेरा ख्याल मेरे मन से जाता नहीं . जी करता है बस तुझे देखता रहूँ
वो- कुछ नया बोल , ये लाइन पुरानी हुई , आजकल की लडकिया इन फ़िल्मी बातो से नहीं बहलती .
मैं- तो तू ही बता तुझे कैसे मना पाउँगा
वो- भला किसलिए
मैं- तुझसे दोस्ती करनी है
वो- दोपहर को मैंने तुझे कहा था न की हम में दोस्ती नहीं हो सकती
मैं- तो क्या हो सकता है
वो- कुछ नहीं , कुछ भी नहीं आखिर हम एक दुसरे को जानते ही कितना है .
मैं- चार मुलाकातों से जानते है .
वो- मैं क्या दोस्ती करू तुझसे, , मैं कौन हूँ ये भी नहीं जानता . चल बता मैं तुझसे दोस्ती कर भी लू तो तू क्या कर सकता है मेरे लिए.
मैं- दोस्ती में शर्ते नहीं होती सरकार. तू क्या है मैं कौन हु ये नहीं देखा जाता दोस्ती में ओई उम्मीद नहीं होती, दोस्ती में उम्मीद हुई तो वो लालच हुआ, दोस्ती निस्वार्थ है, मैंने तुझसे मोहब्बत नहीं मांगी , वादे मोहब्बत में किये जाते है की चाँद तारे तोड़ लाऊंगा .
वो- मैं कैसे मानु की तू मेरा सच्चा दोस्त बनेगा. कल को तूने मेरा फायदा उठाया . मुझे बदनाम किया तो .
मैं- तो फिर रहने दे . तेरे बस की नहीं है . मैंने अपने मन की बात तुझे बताई,अब तेरी मर्जी है जब तेरा दिल करे तो मुझे बता देना बाकी तेरी किस्मत तू जाने तूने क्या खोया .
वो- हाँ मेरी किस्मत.
उसने एक ठंडी साँस छोड़ी और बोली- ये किस्मत भी बड़ी अजीब होती है न राजा के घर पैदा हुए तो किस्मत, गरीब के घर पैदा हुए तो किस्मत. सुख मिले तो किस्मत, दुःख मिले तो किस्मत.
मैं- तू मुझे मिली ये भी तो किस्मत ही है न .
“तुझसे दोस्ती नहीं कर सकती ये भी तो किस्मत ही है न , ” उसने कहा
मैं- इस दुनिया, इस समाज का डर है क्या तुझे .
वो- मुझे डर होता तो यहाँ इस समय तेरे साथ न बैठी होती .
मैं- तो क्या रोक रहा है तेरे मन को
वो- मेरा मन ही रोक रहा है मुझे .
मैं- चल कोई न , हम भी क्या बाते लेके बैठ गए ये बता आज ये सितारे क्या कहते है .
उसने आसमान में देखा और बोली- खून बहने वाला है .
मैं- किसका
वो- ये तो वो ही जाने .
उसने आसमान में सितारों को देखते हुए बोला .
मैं- तेरी बाते समझ में कम आती है मुझे .अपने बारे में बता कुछ
वो- क्या बताऊँ कहने को सब कुछ है कहने को कुछ भी नहीं . मैं भी तेरे जैसी ही हूँ .कल दोपहर तू मुझे ग्यारह पीपल के पास मिलना मैं तब तुझे बताउंगी मैं कौन हूँ .
उसकी आँख से गिरते आंसू के कतरे को अपनी कलाई पर गिरते महसूस किया मैंने