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Thanks bhaiLazwaab update
Thanks bhaiLazwaab update
nice update..!!#14
मैंने हौले से उसके हाथ को अपने हाथ में थाम लिया.
“”जाने दे मुझे “ उसने ठहरी आवाज में कहा .
मैं-मेरे रोकने से रुक जाएगी क्या तू , रात बहुत हुई है मैं छोड़ आता हूँ तुझे
वो- ये राते मुझे भी उतना ही जानती है जितना तुझे , इन अंधेरो से डर नहीं है मुझे.
मैं- ठीक है जा फिर, कल दोपहर को मैं तेरा इंतज़ार करूँगा.
जिंदगी में पहली बार वो मुझे देख कर मुस्कुराई. उसके जाने के बाद भी मैं वही पुलिया से पीठ टिकाये बैठा रहा सितारों को निहारते, न जाने कब मुझे वही नींद आ गयी. सुबह मेरी आँख खुली तो बदन अकड़ा हुआ था . मैंने हाथ मुह धोया और घर की तरफ चल गया . अलसाई भोर में जोबन की अंगड़ाई लेती चाची ने मुझे देखा और कुछ ही देर में मेरे लिए चाय ले आई . मैंने कप पकड़ा और वहीँ रसोई के दरवाजे के पास ही बैठ गया .
“आजकल न जाने कहा गायब रहने लगे हो तुम , ” चाची ने मुझसे कहा .
आज से पहले इतनी फ़िक्र उसने मेरी कभी नहीं की थी तो मुझे थोडा अजीब ही लगा.
मैं- बस ऐसे ही , दोस्त के घर था तो वही सो गया
चाची- मुझसे झूठ बोलकर शायद अच्छा लगेगा तुम्हे पर मैं बता दूँ की तुम्हारे सारे दोस्तों का कल ये ही जवाब था की तुम उनके साथ नहीं थी , और मुझे फर्क भी नहीं पड़ता तुम कहाँ थे
मैं- तो फिर पूछा क्यों .
चाची- क्योंकि मुझे तुमसे बेहद जरुरी बात करनी थी .
मैं- क्या बात
चाची- समय आ गया है की मैं खुल कर तुम्हे वो बताऊ जिसे बताने का समय आ गया है .
मैं- बताओ फिर पहेलियाँ न बुझाओ.
चाची-जैसा की तुमने सुना होगा एक ज़माने में तुम्हारे दादा का इस गाँव में आस पास के तमाम गाँवो में नाम था, उनकी कही बात किसी हुक्म से कम नहीं होती थी जनता के लिए. फिर तुम्हारे पिता के दौर में , दोनों बाप बेटो ने अपनी मर्जी का किया, और फिर अचानक से एक दिन सब ख़तम हो गया . तुम्हारे दादा का किसी ने क़त्ल कर दिया. जेठ जी उसके बाद फौज में भरती हो गए. एक बार जो गए वो लौटे ही नहीं .
तुम्हारे चाचा अपने बाप भाई जैसे नहीं है , ये बस खानदान के नाम को ढो रहे है , तुम नहीं जानते आजतक कैसे इन्होने ने इस परिवार को संभाला है पर अब मुझे उनकी फ़िक्र है , तुम समझो मेरे बच्चे छोटे है .
मैं-मैं समझता हूँ, सब कुछ आपका और आपके बच्चो का ही है वैसे भी मैं आपको बता चूका हूँ की जल्दी ही मैं ये घर छोड़ कर चला जाऊंगा. बस मेरी पढाई पूरी हो जाये.
चाची- तुम हमेशा मुझे गलत क्यों समझते हो, ये घर उतना ही तुम्हारा है जितना मेरा, ये सब ये दौलत, ये जमीने सब तुम्हारी ही है . तुम मेरी बात समझो
मैं- समझाओ फिर.
चाची- मुझे बस तुम्हारे चाचा की फ़िक्र है . गुजरा हुआ वक्त फिर लौट आया है . जेठ जी या ससुर जी होते तो मुझे चिंता नहीं थी पर तुम्हारे चाचा को कुछ हो गया तो मैं तो बर्बाद ही हो जाउंगी.
मैं- आप फ़िक्र न करे. सब ठीक होगा.
चाची- किसी ने रुद्रपुर में धुना सुलगाया है , अगली पूनम को मेला लगेगा वहां
मैं- ये तो ख़ुशी की बात है न
चाची- काश ,,,,,,,,,,, काश ये ख़ुशी की बात होती. अंतिम बार धुने को जेठ जी ने सुलगाया था . और तब ग्यारह लोगो के सर कटे थे . जेठ जी ने ग्यारह सर देवता को बलि दी दिए थे . पर वो शायद आखिरी बार था जब इस खानदान में किसी ने हथियार उठाया हो . पुरे गाँव में जश्न था ,दावत थी . जेठ जी उस रात भरी महफ़िल छोड़ कर गए थे और जब वो लौटे तो उसके बाद वो कभी मुस्कुराये नहीं, उस रात के बाद उन्होंने कभी हथियार नहीं उठाया. महीने दो महीने बाद वो फौज में भरती हो गए , जेठानी के जाने के बाद वो भी इस घर को इस गाँव को छोड़ गए ऐसे गए की लौटे ही नहीं , ससुर जी की चिता को अग्नि देने भी नहीं आये.
मैं- क्या हुआ था ऐसा उस रात, और ये बलि की क्या कहानी है .
चाची- बलि की कहानी के बारे में किसी को ठीक ठीक नहीं पता. जो भी कुछ जो जानता है बस कही सुनी बाते है . एक ज़माने में हमारे परिवार और रुद्रपुर के बड़े ठाकुर के परिवार में बड़ा गहरा रिश्ता था , पर फिर न जाने क्या हुआ , न जाने कहाँ से वो मनहूस दिन आया जब दो गाँवो की जिन्दगी जैसे बिखर गयी . सोलह साल पहले ऐसे ही किसी पूनम को वो मनहूस मेला लगा था जिसके जख्म आज तक नहीं भरे है .
मैं- तो फिर क्यों ये मेला लगाया जा रहा है .
चाची- धुना सुलगा है देवता है रक्त की आहुति मांगी जा रही है . परिवार की तरफ से किसी को ये चुनोती उठानी पड़ेगी. और नहीं उठाई तो अपनी पगड़ी बड़े ठाकुर के चरणों में रखनी पड़ेगी.
मैं- अगर ये खुनी खेल ख़त्म होता है तो हम लोग झुक जाते है , उनको बड़ा होने देते है .
चाची- तुम्हारे चाचा ने मना कर दिया है , कहते है मौत तो एक न एक दिन आनी है ,सारी उम्र हो गयी कायरो के जैसे जीते हुए पर मरेंगे शेर की मौत
मैं- पागल हुआ है क्या चाचा. उन्हें कुछ भी करने की जरुरत नहीं , मैं देखूंगा इस मामले को . मैं आपको वचन देता हूँ की आपकी ग्रहस्थी पर कोई आंच नहीं आएगी, मैं जाऊंगा मेले में . जो भी होगा , जो भी करना होगा मैं करूँगा. ये बात हमारे बीच में ही रहेगी और उस दिन कैसे भी करके चाचा को आपको रोकना होगा.
मैंने चाय का कप निचे रखा और घर से बाहर की तरफ निकल ही रहा था की मैं सीधा ताई जी से टकरा गया, क्या मालूम वो दिवार से सटे हुए हमारी ही बाते सुन रही हो. ........
Bhai un कहानियों के pura hone ke इंतजार में to main bhi hun ,thanks bhai, ab main laut aaya hun un kahaniyo ko bhi pura karne ki kosish karunga
मतलब अब एक्शन शुरू होने वाला है और suspense तो बढ़ता ही जा रहा है, अब इकतारा वाली के राज का बम और फटना बाकी है, शानदार भाग मुसाफिर भाई , अगले भाग की प्रतीक्षा में...#14
मैंने हौले से उसके हाथ को अपने हाथ में थाम लिया.
“”जाने दे मुझे “ उसने ठहरी आवाज में कहा .
मैं-मेरे रोकने से रुक जाएगी क्या तू , रात बहुत हुई है मैं छोड़ आता हूँ तुझे
वो- ये राते मुझे भी उतना ही जानती है जितना तुझे , इन अंधेरो से डर नहीं है मुझे.
मैं- ठीक है जा फिर, कल दोपहर को मैं तेरा इंतज़ार करूँगा.
जिंदगी में पहली बार वो मुझे देख कर मुस्कुराई. उसके जाने के बाद भी मैं वही पुलिया से पीठ टिकाये बैठा रहा सितारों को निहारते, न जाने कब मुझे वही नींद आ गयी. सुबह मेरी आँख खुली तो बदन अकड़ा हुआ था . मैंने हाथ मुह धोया और घर की तरफ चल गया . अलसाई भोर में जोबन की अंगड़ाई लेती चाची ने मुझे देखा और कुछ ही देर में मेरे लिए चाय ले आई . मैंने कप पकड़ा और वहीँ रसोई के दरवाजे के पास ही बैठ गया .
“आजकल न जाने कहा गायब रहने लगे हो तुम , ” चाची ने मुझसे कहा .
आज से पहले इतनी फ़िक्र उसने मेरी कभी नहीं की थी तो मुझे थोडा अजीब ही लगा.
मैं- बस ऐसे ही , दोस्त के घर था तो वही सो गया
चाची- मुझसे झूठ बोलकर शायद अच्छा लगेगा तुम्हे पर मैं बता दूँ की तुम्हारे सारे दोस्तों का कल ये ही जवाब था की तुम उनके साथ नहीं थी , और मुझे फर्क भी नहीं पड़ता तुम कहाँ थे
मैं- तो फिर पूछा क्यों .
चाची- क्योंकि मुझे तुमसे बेहद जरुरी बात करनी थी .
मैं- क्या बात
चाची- समय आ गया है की मैं खुल कर तुम्हे वो बताऊ जिसे बताने का समय आ गया है .
मैं- बताओ फिर पहेलियाँ न बुझाओ.
चाची-जैसा की तुमने सुना होगा एक ज़माने में तुम्हारे दादा का इस गाँव में आस पास के तमाम गाँवो में नाम था, उनकी कही बात किसी हुक्म से कम नहीं होती थी जनता के लिए. फिर तुम्हारे पिता के दौर में , दोनों बाप बेटो ने अपनी मर्जी का किया, और फिर अचानक से एक दिन सब ख़तम हो गया . तुम्हारे दादा का किसी ने क़त्ल कर दिया. जेठ जी उसके बाद फौज में भरती हो गए. एक बार जो गए वो लौटे ही नहीं .
तुम्हारे चाचा अपने बाप भाई जैसे नहीं है , ये बस खानदान के नाम को ढो रहे है , तुम नहीं जानते आजतक कैसे इन्होने ने इस परिवार को संभाला है पर अब मुझे उनकी फ़िक्र है , तुम समझो मेरे बच्चे छोटे है .
मैं-मैं समझता हूँ, सब कुछ आपका और आपके बच्चो का ही है वैसे भी मैं आपको बता चूका हूँ की जल्दी ही मैं ये घर छोड़ कर चला जाऊंगा. बस मेरी पढाई पूरी हो जाये.
चाची- तुम हमेशा मुझे गलत क्यों समझते हो, ये घर उतना ही तुम्हारा है जितना मेरा, ये सब ये दौलत, ये जमीने सब तुम्हारी ही है . तुम मेरी बात समझो
मैं- समझाओ फिर.
चाची- मुझे बस तुम्हारे चाचा की फ़िक्र है . गुजरा हुआ वक्त फिर लौट आया है . जेठ जी या ससुर जी होते तो मुझे चिंता नहीं थी पर तुम्हारे चाचा को कुछ हो गया तो मैं तो बर्बाद ही हो जाउंगी.
मैं- आप फ़िक्र न करे. सब ठीक होगा.
चाची- किसी ने रुद्रपुर में धुना सुलगाया है , अगली पूनम को मेला लगेगा वहां
मैं- ये तो ख़ुशी की बात है न
चाची- काश ,,,,,,,,,,, काश ये ख़ुशी की बात होती. अंतिम बार धुने को जेठ जी ने सुलगाया था . और तब ग्यारह लोगो के सर कटे थे . जेठ जी ने ग्यारह सर देवता को बलि दी दिए थे . पर वो शायद आखिरी बार था जब इस खानदान में किसी ने हथियार उठाया हो . पुरे गाँव में जश्न था ,दावत थी . जेठ जी उस रात भरी महफ़िल छोड़ कर गए थे और जब वो लौटे तो उसके बाद वो कभी मुस्कुराये नहीं, उस रात के बाद उन्होंने कभी हथियार नहीं उठाया. महीने दो महीने बाद वो फौज में भरती हो गए , जेठानी के जाने के बाद वो भी इस घर को इस गाँव को छोड़ गए ऐसे गए की लौटे ही नहीं , ससुर जी की चिता को अग्नि देने भी नहीं आये.
मैं- क्या हुआ था ऐसा उस रात, और ये बलि की क्या कहानी है .
चाची- बलि की कहानी के बारे में किसी को ठीक ठीक नहीं पता. जो भी कुछ जो जानता है बस कही सुनी बाते है . एक ज़माने में हमारे परिवार और रुद्रपुर के बड़े ठाकुर के परिवार में बड़ा गहरा रिश्ता था , पर फिर न जाने क्या हुआ , न जाने कहाँ से वो मनहूस दिन आया जब दो गाँवो की जिन्दगी जैसे बिखर गयी . सोलह साल पहले ऐसे ही किसी पूनम को वो मनहूस मेला लगा था जिसके जख्म आज तक नहीं भरे है .
मैं- तो फिर क्यों ये मेला लगाया जा रहा है .
चाची- धुना सुलगा है देवता है रक्त की आहुति मांगी जा रही है . परिवार की तरफ से किसी को ये चुनोती उठानी पड़ेगी. और नहीं उठाई तो अपनी पगड़ी बड़े ठाकुर के चरणों में रखनी पड़ेगी.
मैं- अगर ये खुनी खेल ख़त्म होता है तो हम लोग झुक जाते है , उनको बड़ा होने देते है .
चाची- तुम्हारे चाचा ने मना कर दिया है , कहते है मौत तो एक न एक दिन आनी है ,सारी उम्र हो गयी कायरो के जैसे जीते हुए पर मरेंगे शेर की मौत
मैं- पागल हुआ है क्या चाचा. उन्हें कुछ भी करने की जरुरत नहीं , मैं देखूंगा इस मामले को . मैं आपको वचन देता हूँ की आपकी ग्रहस्थी पर कोई आंच नहीं आएगी, मैं जाऊंगा मेले में . जो भी होगा , जो भी करना होगा मैं करूँगा. ये बात हमारे बीच में ही रहेगी और उस दिन कैसे भी करके चाचा को आपको रोकना होगा.
मैंने चाय का कप निचे रखा और घर से बाहर की तरफ निकल ही रहा था की मैं सीधा ताई जी से टकरा गया, क्या मालूम वो दिवार से सटे हुए हमारी ही बाते सुन रही हो. ........
Chachi ka aisa karna koi jhol bhi ho sakta hai ye dunia masoom bhi kahan hai bhainice update..!!
chachi ka character kuchh samajh nahi aaya..ek taraf bolti hai muze tumhari koi fikr nahi hai aur fir bolti hai yeh sab tumhara hi hai..iska matlab ek hi hota hai ki chachi chacha ki jagah apne bhatije ko bhejna chahti hai aur apne pti ki jaan bachana chahti hai..aur apna nayak bhi chachi ki grahasthi bachane ke liye khud mele me jane ke liye maan gaya hai..iss se chachi ko samajh na chahiye ki jis bhatije ka woh hamesha tiraskar karti aayi hai aaj wahi apne chacha chachi ki grahsthi thik rehne ke liye khud mout se ladne jane wala hai..!!
Thanks bhaiAwesome update
उम्मीद है कि जल्दी ही कोई रास्ता निकलेBhai un कहानियों के pura hone ke इंतजार में to main bhi hun ,
इकतारा वाली का कोई राज नहीं है भाईमतलब अब एक्शन शुरू होने वाला है और suspense तो बढ़ता ही जा रहा है, अब इकतारा वाली के राज का बम और फटना बाकी है, शानदार भाग मुसाफिर भाई , अगले भाग की प्रतीक्षा में...