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Adultery गोकुलधाम सोसायटी की औरतें जेल में

Kabir190

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यह कहानी एक काल्पनिक कहानी है जिसका वास्तविक जीवन से कोई लेना-देना नही हैं। इसमे उपयोग की गई सभी फ़ोटो इंटरनेट से ली गई है।
 

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Update 1

“नाम बोल…”

‘बबिता अय्यर..’

“पति का नाम?”

‘मिस्टर कृष्णन अय्यर…’

“उमर कितनी हैं?”

‘थर्टी फाइव..’

बबिता के इतना कहते ही काँस्टेबल ने घूरती नजरो से उसकी ओर देखा और चिल्लाते हुए बोली - “हिंदी बोलने में शर्म आ रही हैं तुझे? हाँ।”

बबिता कुछ बोल नही पाई और चुपचाप सर झुकाए खड़ी रही। काँस्टेबल ने उससे इसी तरह के कुछ और सवाल पूछे और उसकी पूरी जानकारी रजिस्टर में दर्ज कर उस पर उसके साइन करवाये। उसके बाद उसे अगली टेबल पर बैठी काँस्टेबल के पास भेज दिया गया।

अगली टेबल पर जाने के बाद बबिता की हथकड़ी खोल दी गई और उसे उसके सारे गहने व सामान टेबल पर रखने को कहा गया। उसने अपने कान के बूंदे और अंगूठियाँ उतारकर टेबल पर रख दी जिसके बाद उसे आगे खड़ी दो लेडी काँस्टेबल्स के पास जाने को कहा गया। उनमे से एक काँस्टेबल ने बबिता को खींचकर दीवार से सटा दिया और उसकी ऊँचाई की जाँच करने लगी। इसके बाद उसका वजन देखा गया और फिर उसे तलाशी व शारीरिक जाँच के लिए दूसरी काँस्टेबल के सामने खड़ा करवाया गया।​

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“चल कपड़े उतार..” - काँस्टेबल ने कहा।

कपड़े उतारने की बात सुनकर बबिता एक पल के लिए तो बिल्कुल स्तब्ध रह गई लेकिन उसके पास कोई रास्ता नही था। वह एक कैदी के तौर पर जेल के जाँच कक्ष में खड़ी थी और वहाँ का माहौल उसके लिए डर से भरा हुआ था। कमरे में किसी प्रकार की कोई गोपनीयता नही थी। वह जिस जगह पर खड़ी थी, वहाँ पर कमरे में मौजूद सभी महिला पुलिसकर्मी व कैदी औरते उसे सीधे देख सकती थी। उसने थोड़ी हिम्मत की और काँस्टेबल से बोली -

‘मैडम, यहाँ सबके सामने कपड़े कैसे…’

तभी उस काँस्टेबल ने उसे बीच मे टोकते हुए कहा - “ए, क्या रे। सबके सामने कपड़े नही उतार सकती तू। हरामी साली। तेरे पास ऐसा क्या स्पेशल हैं जो हमारे पास नही हैं।”

‘अबे बूब्स देख ना साली के। पूरा पहाड़ है पहाड़।’ - पीछे से एक अन्य काँस्टेबल बोली।

वे लोग उसका मजाक उड़ाने लगी और उस पर हँसने लगी। बबिता मजबूर थी। ना चाहते हुए भी उसे चुप रहना पड़ा और काँस्टेबल के कहने पर अपने कपड़े उतारने पड़े। उसने सबसे पहले अपना टॉप उतारा और फिर एक-एक करके अपना जीन्स, ब्रा और पेंटी भी उतार दी। अब वह पूरी तरह से नग्न थी। बदन पर एक भी कपड़े नही थे। उसका बदन भरा-भूरा व आकर्षक था और उसके बड़े-बड़े सुडौल स्तन गुब्बारो की तरह उसके सीने से लटक रहे थे। उसके कूल्हे उभरे हुए थे और कमर भी बहुत ज्यादा पतली नही थी। शरीर पर वसा का जमाव अधिक था जिसकी वजह से वह और भी ज्यादा सेक्सी लगती थी। काँस्टेबल ने उसे नग्न करवाने के बाद उसकी तलाशी व जाँच शुरू की।

जाँच की शुरुआत उसके बालो से हुई। उसने उसके बालो पर हाथ फेरा और उन्हें बिखेर दिया। उसके बाद उसके मुँह, कान, नाक, गले व गर्दन की जाँच की और फिर उसे दोनों हाथों को ऊपर करने को कहा। बबिता ने जैसे ही अपने दोनों हाथ ऊपर किये, वह काँस्टेबल उसके करीब आई और उसके स्तनों को दबाने लगी।

“ये क्या कर रही है आप?” - बबिता ने झट से उसके हाथों को दूर करते हुए कहा।

‘ऐ, चुपचाप खड़ी रह और हमे अपना काम करने दे।’ - काँस्टेबल ने उसे डाँट लगाई।

बबिता आगे कुछ न बोल सकी और शांत खड़ी रही। उस काँस्टेबल ने उसके स्तनों को अपने हाथो से ऊपर उठाया और उन्हें दबाकर अच्छी तरह से चेक करने लगी। इसके बाद उसने उसे दोनो टाँगे फैलाने को कहा। उसके कहने पर बबिता को अपनी दोनों टाँगे फैलानी पड़ी और वह टाँगे फैलाकर खड़ी हो गई। फिर काँस्टेबल ने अपने हाथों में दस्ताने पहने और उसकी योनि में अपनी ऊँगली डालकर चेक करने लगी कि उसने अपनी योनि में कुछ छुपाया तो नही हैं। बबिता के लिए वह क्षण बहुत ही शर्मिंदगी भरा था और उसे ऐसा लग रहा था मानो किसी ने उसकी इज्जत ही लूट ली हो। काँस्टेबल यही नही रुकी। योनि की जाँच करने के बाद उसने उसे दीवार पर हाथ टिकाकर खड़े करवाया और उसके पीछे के छेद में ऊँगली घुसा दी। उसके लिए अब सब कुछ असहनीय होने लगा था और सहसा ही उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। इस तरह का व्यवहार किसी भी इंसान को अंदर तक झकझोर देता हैं। उस वक़्त बबिता का वही हाल था। वह एक अच्छे परिवार की पढ़ी-लिखी महिला थी। पति वैज्ञनिक थे जबकि वह खुद एक हाउसवाइफ थी। उसका रहन-रहन, पहनावा और बोलचाल का तरीका पूरी तरह से मॉडर्न था।

खैर, शारीरिक जाँच और तलाशी के बाद उसे एक स्लेट दी गई जिस पर उसका नाम, उम्र, अपराध व कैदी नंबर लिखा हुआ था। उसे 2392 कैदी नंबर दिया गया। जाँच के बाद उसने अपने कपड़े पहने और फिर उसका मगशॉट (जेल के रिकॉर्ड के लिए कैदी की तस्वीर) लिया गया। चूँकि वह एक अंडरट्रायल कैदी थी इसलिए उसे जेल के कपड़े नही दिए गए। उसकी तस्वीर लेने के बाद उसे कुछ सामान दिया गया जिसमें एक थाली, मग, कंबल, टॉवेल व एक बाल्टी शामिल थी। जाँच प्रक्रिया पूरी होने के बाद उसे एक तरफ दीवार से सटाकर खड़ा करवाया गया और तब तक खड़ा रखा गया जब तक उसके साथ लाई गई सभी कैदियों की जाँच पूरी नही हो गई।

बबिता के साथ उसी की सोसायटी की छः अन्य महिलाओ को भी जेल लाया गया था। इन आरोपी महिलाओं में अंजली मेहता, दया गढ़ा, रोशन कौर सोढ़ी, कोमल हाथी, माधवी भिड़े और उसकी बेटी सोनालिका भिड़े शामिल थी। इन सभी पर उन्ही की सोसायटी में रहने वाले एक व्यक्ति और उसकी पत्नी की हत्या का आरोप था। एक दिन पहले ही सभी को उनके घरों से गिरफ्तार किया गया था जिसके बाद अदालत ने किसी को भी जमानत ना देते हुए सभी को 14 दिनों की ज्यूडिशियल कस्टडी में जेल भेजने के आदेश दिए।​
 
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Update 2

बबिता की जाँच के बाद अगली बारी अंजली की थी। हाथो में हथकड़ी और पीले रंग की सलवार पहने अंजली जब पहले नंबर की टेबल के सामने खड़ी हुई तो काँस्टेबल ने सख्त लहजे में उससे पूछा - “नाम?”

‘अंजली मेहता’ - उसने जवाब दिया।

“पति का नाम?”

‘जी...तारक मेहता।’

“उमर कितनी हैं?”

‘छत्तीस साल।’

कुछ और जानकारियाँ पूछने के बाद उस काँस्टेबल ने रजिस्टर पर उसके साइन करवाये और उसे अगली टेबल पर जाने को कहा। प्रक्रिया के तहत अगली टेबल पर उसके गहने उतरवाए गए और सारा सामान जमा करवाया गया और फिर उसकी ऊँचाई व वजन की जाँच कर उसे तलाशी के लिए आगे भेज दिया गया।​

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बबिता की तरह ही काँस्टेबल ने उसे उसके कपड़े उतारने को कहा। वह बबिता की जाँच अपनी आँखों के सामने देख चुकी थी इसलिए उसने किसी तरह की कोई आनाकानी नही की और काँस्टेबल के कहते ही अपने कपड़े उतारने लगी।

उसने सबसे पहले अपना दुपट्टा सीने से हटाया और उसे नीचे जमीन पर रख दिया। फिर अपनी सलवार उतार दी और पजामे का नाड़ा खोलकर उसे भी नीचे सरका दिया। अंदर उसने काले रंग की ब्रा-पैंटी पहन रखी थी और उसमें भी वह कमाल की लग रही थी। फिर एक-एक करके उसने अपनी ब्रा व पैंटी भी उतार दी और पूर्ण नग्न अवस्था मे काँस्टेबल के सामने खड़ी हो गई।

काँस्टेबल ने उसके साथ भी वही प्रक्रिया दोहराई जो उसने बबिता के साथ किया था। उसके बालों से लेकर शरीर के सभी अंगों की जाँच की गई और फिर काँस्टेबल ने उसकी योनि और गाँड़ के छेद में ऊँगली डालकर यह सुनिश्चित किया कि उसने अपने पास कुछ छुपाया तो नही हैं। जब वह इस बात से पूरी तरह से आश्वस्त हो गई तब उसने अंजली को छोड़ा और फिर उसका मगशॉट (जेल के रिकॉर्ड के लिए कैदी की तस्वीर) लिया गया। अंजली का कैदी नंबर 2393 था। मगशॉट लेने के बाद उसे जेल का सामान दिया गया और उसे बबिता के साथ ही एक तरफ खड़ा करवा दिया गया।

बबिता और अंजली की जाँच प्रक्रिया सभी के सामने ही की जा रही थी। वहाँ ना तो कोई पर्दा था और ना ही नग्न होने के दौरान अलग कमरे की व्यवस्था थी। उन्हें कमरे में मौजूद महिलाओ के सामने ही नंगा होना पड़ रहा था जो उनके जैसी सभ्य परिवारों की महिलाओं के लिए बेहद ही अपमानजनक व शर्मिंदगी भरी बात थी। बबिता और अंजली ने अपने पतियों के अलावा किसी के भी सामने कभी अपने पूरे कपड़े नही उतारे थे। जेल में आने के बाद पहली बार था जब उन्हें किसी ने पूर्ण नग्न अवस्था मे देखा था। हालाँकि वहाँ पर केवल औरते ही औरते मौजूद थी लेकिन उन महिला पुलिसकर्मियों द्वारा उनके साथ किया जा रहा व्यवहार किसी उत्पीड़न से कम नही था। खैर, वे लोग अब आजाद नही थी और कैद में होने का अर्थ था कि वे जेल स्टॉफ की बातों व जेल के नियमो को मानने के लिए बाध्य थी।

बबिता और अंजली की जाँच के बाद क्रमशः दया, रोशन, कोमल, माधवी और सोनू की भी जाँच की गई। उन सभी के कपड़े उतरवाए गए और पूर्ण नग्न अवस्था मे उनकी जाँच की गई। उन पाँचो के लिए भी यह बिल्कुल आसान नही था। दया और माधवी ने उस वक़्त साड़ी पहनी हुई थी जबकि रोशन ने वन पीस वेस्टर्न ड्रेस, कोमल ने ओवरसाइज कुर्ती पजामा तथा सोनू ने जीन्स टॉप पहन रखा था। पाँचो को बारी-बारी से नंगा करवाया गया और उनकी जाँच की गई जिसके बाद उनका मगशॉट लिया गया। उनके घरवाले उनके कपड़ो का बैग जेल में जमा करा चुके थे जिसकी अच्छी तरह से जाँच करने के बाद उनके बैग उन्हें सौंप दिए गए। जाँच की प्रक्रिया पूरी होने के बाद उन्हें जेल का सामान दिया गया और सभी को एक कतार में अंदर वार्ड की तरफ ले जाया गया।​
 
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Update 3

जाँच कक्ष से अंदर जाने पर उन सभी को सबसे पहले जेलर के ऑफिस में ले जाया गया। अंदर जाते ही उनकी नजर सामने कुर्सी पर बैठी उस बेहद खूबसूरत सी औरत पर पड़ी जो संभवतः उस जेल की जेलर थी। गोरा-चिट्टा दूध जैसा रंग, तीखे नैन-नक्श और चेहरे पर गजब का निखार उसकी खूबसूरती बयाँ करने के लिए काफी थे। बदन पर मौजूद वर्दी उसकी खूबसूरती में चार चाँद लगा रही थी और उसके चेहरे से उसकी उम्र का अंदाजा लगाना लगभग नामुमकिन ही था। वह औरत कोई और नही बल्कि उस जेल की जेलर अदिति चौधरी थी।​

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अदिति दिखने में जितनी खूबसूरत थी, वास्तव में उतनी ही अधिक सख़्त और क्रूर महिला थी। जेल में बंद औरतो के लिए वह किसी यमराज से कम नही थी। चाहे 18 साल की लड़की हो या 70 साल की बूढ़ी औरत, उसका रवैया सबके साथ एक जैसा ही होता था।

“मैडम जी। यही हैं गोकुलधाम मर्डर केस वाली औरते।” - उन्हें लेकर आई काँस्टेबल ने कहा।

अदिति उस वक़्त कुछ फाइलें पढ़ रही थी लेकिन उन्हें देखकर उसने फाइलों को एक तरफ रखा और उन लोगो को ध्यान से देखने लगी। उसने उन सातो को ऊपर से नीचे तक देखा और फिर सोनू से बोली - ‘तू आगे आ..”

सोनू बेहद घबरा गई। जाहिर सी बात थी। वह एक शरीफ और सीधे-सादे परिवार की लड़की थी जिसने अपनी जिंदगी में पहली बार जेल जैसी जगह पर कदम रखा था। वह जेलर के सामने खड़ी थी और उसे जरा भी अंदाजा नही था कि वह उसके साथ क्या करने वाली थी। उसने अपनी माँ माधवी की तरफ देखा और डरते हुए कदम आगे बढ़ा दिए।

“ऐज क्या है तेरी?” - जेलर ने पूछा।

‘ट्वेंटी टू इयर्स..’ - सोनू ने जवाब दिया।

“कॉलेज में है?”

‘जी। लास्ट ईयर चल रहा हैं।’

तभी पीछे से माधवी उत्सुकतावश बोल पड़ी - “टॉपर है मैडम। सांग बाड़ा।”

‘जी मैडम। टॉप…’ - सोनू आगे कुछ बोल पाती, उससे पहले ही जेलर ने उसे ऊँगली के इशारे से चुप करा दिया। उसे माधवी का यूँ बीच मे बोलना बिल्कुल पसंद नही आया और वह इतनी सी बात पर गुस्से से आग बबूला हो उठी। वह अपनी कुर्सी से उठकर माधवी के पास आई और उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोली - "बीच मे बोलने का बहुत शौक हैं तुझे..."

जेलर की आवाज में गुस्सा था और माधवी को एहसास था कि वह उसके साथ कुछ भी कर सकती हैं। डर के मारे उसका दिल तेजी से धड़कने लगा लेकिन वह एक शब्द भी नही बोल पाई। जेलर उसे कुछ कदम आगे लेकर आई और सोनू के सामने खड़ा करवा दिया।

'तेरी बेटी माल तो एक नंबर हैं। पर इसको चुदाई वुदाई सिखाई है या नही?' - उसने माधवी पर तंज कसते हुए कहा।

किसी भी माँ की तरह माधवी को भी जेलर की यह बात बहुत बुरी लगी। अपनी बेटी के लिए इतनी अपमानजनक बाते भला किस माँ को मंजूर होगी। उसका मन गुस्से से भरा हुआ था लेकिन उसकी मजबूरी थी कि वह जेलर को कुछ बोल नही सकती थी। उसने शर्म के मारे अपना सर नीचे कर लिया और चुपचाप खड़ी रही।

जेलर एक-एक करके बबिता, अंजली, दया, रोशन और कोमल के पास भी गई और उनके साथ आपत्तिजनक हरकते करने लगी। उसने उनके कूल्हों पर हाथ लगाया, उनके स्तनों को दबाया और उनके शरीर को यहाँ-वहाँ छूने लगी। वे लोग उसे ऐसा करने से इंकार तो नही कर पाई लेकिन उनकी असहजता उनके चेहरों पर साफ नजर आ रही थी।

उसके बाद उसने बारी-बारी से उन सभी का परिचय लिया और उन्हें कुछ जरूरी हिदायते दी। उसने उन सभी को नियमो का पालन करने, सीनियर कैदियों की बाते मानने, जेल स्टॉफ से बदतमीजी ना करने व कुछ अन्य बातो के लिए सख्त चेतावनी दी और साथ ही यह भी कहा कि यदि वे लोग एक भी नियम तोड़ती हैं तो उन्हें कड़ी सजा दी जाएगी। उसके बाद उसने कमरे में मौजूद काँस्टेबल्स से उन सभी को अंदर ले जाने को कहा। जेलर के आदेशानुसार उन लोगो को एक कतार में अंदर सर्कल की ओर ले जाया गया।​

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जेलर के ऑफिस से अंदर जाने पर रास्ते के दोनों तरफ ऊँची-ऊँची दीवारे थी। इन्ही दीवारों के कुछ दूर आगे जाते ही एक बड़ा सा गेट था जिसके सामने कुछ बंदूकधारी महिला सिपाही तैनात थी। कैदियों के लिए यही गेट एक तरह से जेल का अंतिम गेट था क्योंकि एक बार अंदर जाने पर किसी भी कैदी को बिना अनुमति के इस गेट से बाहर आने की इजाजत नही होती थी। बबिता और बाकी सभी को गेट से अंदर ले जाया गया। जब वे लोग गेट के दूसरी तरफ पहुँची तो उन्होंने देखा कि दूसरी तरफ भी कुछ महिला पुलिसकर्मी बंदूक और डंडे थामे पहरा दे रही थी। उन लोगो की धड़कने तेज होने लगी और उन्हें घबराहट सी होने लगी थी। ऐसा होना स्वाभाविक भी था। आखिरकार वे लोग हत्या जैसे संगीन आरोप में जेल में थी और उन्हें ज़रा भी अंदाजा नही था कि आगे उनकी जिंदगी कितनी तकलीफदेय होने वाली थी।

जेल में कैदियों को रखे जाने के लिए दो सर्कल बने हुए थे। इन्ही सर्कलों के भीतर सेल व बैरकों की व्यवस्था थी तथा दोनो सर्कलों की बनावट व क्षमता एक समान थी। गेट से अंदर जाने के बाद उन सातो को सर्कल 1 में ले जाया गया।

“मैडम, ये नई कैदी लोग हैं।” - उन्हें सर्कल तक लेकर गई काँस्टेबल ने सर्कल इंचार्ज मनीषा से कहा।

मनीषा शुक्ला सर्कल 1 की इंचार्ज थी। दिखने में खूबसूरत थी लेकिन स्वभाव से उतनी ही ज्यादा सख्त व क्रूर। वैसे तो जेल में तैनात ज्यादातर महिला पुलिसकर्मी स्वभाव से सख्त व क्रूर ही थी लेकिन कैदियों को ग़ुलाम और नौकर समझने की प्रवत्ति उन्हें और भी ज्यादा अत्याचारी बना देती थी। जेल स्टॉफ की महिलाओं के अंदर कैदियों के प्रति एक अलग ही नफरत थी। उनकी नजर में कैदी औरते इंसान नही बल्कि जानवरो की तरह थी। मनीषा की मानसिकता भी कुछ इसी तरह की थी। उसकी उम्र 50 साल से अधिक थी और वह कई सालों से जेल डिपार्टमेंट में नौकरी कर रही थी।

खैर, बबिता और बाकी औरतो को मनीषा के हवाले कर दिया गया और उन्हें लेकर आई काँस्टेबल्स वहाँ से वापस लौट गई। शाम के पौने पाँच बज चुके थे और सर्कल के अंदर बने मैदान में कैदी औरतो की भारी भीड़ थी। मनीषा ने कुछ लेडी काँस्टेबल्स को अपने पास बुलाया और उन्हें उन सातो को पकड़कर वार्ड नंबर 4 में ले जाने को कहा। उसके कहते ही काँस्टेबल्स उन्हें पकडकर वार्ड नंबर 4 में लेकर गई।

वार्ड के सामने जाने पर एक लोहे का दरवाजा लगा हुआ था। यह दरवाजा केवल लोहे की सलाखों से बना हुआ था जो ठीक वैसा ही था जैसी किसी हवालात की सलाखें होती हैं। दरवाजे के बाहर तैनात सिपाही आसानी से इसके अंदर यानि कोठरियों (सेल) पर नजर रख सकती थी। बबिता और बाकी औरतो को दरवाजे के सामने ले जाकर खड़ा करवाया गया और तब तक खड़ा रखा गया जब तक वार्डन शोभना ठाकुर वहाँ नही आ गई।

मनीषा के बाद उनका अगला सामना हुआ वार्ड 4 की वार्डन शोभना ठाकुर से। दिखने में बेहद खूबसूरत और हट्टे-कट्टे व मजबूत शरीर की मालकिन शोभना पिछले तेरह सालो से इसी जेल में वार्डन के पद पर तैनात थी। वह जेल की सबसे क्रूर वार्डनों में से एक थी जिसे उसके वार्ड की कैदियों का अनुशासनहीनता करना बिल्कुल पसंद नही था। कैदियों के साथ वह जानवरो की तरह बर्ताव करती थी और अपने से बड़ी उम्र की कैदियों के साथ भी मारपीट करने में बिल्कुल संकोच नही करती थी। उन सातो की बुरी किस्मत ही थी कि उन्हें शोभना के वार्ड में भेजा गया था।

शोभना ने उन सभी को ऊपर से नीचे तक अच्छी तरह से देखा और फिर मनीषा से बोली - “कहाँ से लाये है रे इन मालो को? सब की सब टोटा है साली।"

‘अरे वो गोकुलधाम मर्डर केस पढ़ा था ना तूने..” - मनीषा ने कहा।

“हाँ।”

‘उसी केस में आई है।’

“क्या बात कर रही है? एक आदमी को सात औरतो ने मिलकर निपटा दिया। माँ की आँख। ऐ, ठुकाई करता था क्या तुम लोगो की...” - वह उन लोगो पर हँसने लगी और उनका मजाक उड़ाने लगी।

'एक थोड़ी ना हैं। उसकी बीवी को भी निपटाया है।' - मनीषा बोली।

"हाँ तो बराबर है ना। उसको पता चल गया होगा कि उसका पति इन रंडियों को ठोकता है। मर गई बेचारी फोकट में।"

उन सभी के लिए यह सब बहुत ही शर्मिंदगी भरा था लेकिन वे लोग चाहकर भी कुछ नही कर सकती थी। शर्म के मारे उन्होंने अपना सर नीचे कर लिया और शांत खड़ी रही। थोड़ी देर बाद उन्हें वार्ड के अंदर ले जाया गया और शोभना के आदेशानुसर सभी को सेल नंबर 9 में बंद कर दिया गया। वार्ड के भीतर कुल 15 सेल थी और यह पूरी तरह शोभना पर निर्भर था कि वह उन लोगो को किस सेल में रखती हैं। हालाँकि उन लोगो के साथ एक बात अच्छी जरूर हुई कि उन्हें अलग-अलग सेल में ना डालते हुए एक साथ एक ही सेल में रखा गया। उन्हें सेल में डालने के बाद मनीषा और शोभना वहाँ से चली गई और वे लोग अन्य अपराधी महिलाओ के साथ सेल के अंदर कैद हो गई।​
 
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“आइये आइये…मैडम जी। आइये।” - उन लोगो ने सेल के अंदर कदम रखा ही था कि पुरानी व सीनियर कैदियों ने उन्हें तंग करना शुरू कर दिया। उनमे से एक कैदी ने उनके हाथों से उनका सामान छीन लिया और सेल का दरवाजा बंद कर दिया। उन्हें सेल में बंद किये जाने के बाद सेल में ताला नही लगाया गया था क्योंकि शाम के छः बजे तक सभी सेलो के ताले खुले रहते थे और इस दौरान अंडरट्रायल कैदियों को सर्कल परिसर के भीतर ही घूमने और टहलने की इजाजत होती थी।

सेल के अंदर किसी तरह की कोई साधन-सुविधा नही थी। सामने की ओर लोहे ही सलाखें लगी हुई थी जबकि तीन तरफ केवल दीवारे थी। इन्ही सलाखों के बीच मे लोहे का एक दरवाजा बना था जिसमे केवल बाहर से ताला लगाया जा सकता था। सेल के अंदर गर्मी के लिए एक पंखा तथा रोशनी के लिए एक पीले रंग का बल्ब लगा हुआ था। पीने के पानी के लिए एक मटका रखा था जबकि शौच के लिए सेल के अंदर ही एक कोने में टॉयलेट शीट लगी हुई थी। गोपनीयता के लिए टॉयलेट शीट के आसपास छोटी सी दीवार बना दी गई थी। सेल की दीवारो की हालत भी बहुत ज्यादा अच्छी नही थी। उनका पेंट उखड़ने लगा था और ऐसा लग रहा था जैसे कई सालों से दीवारों पर पेंट नही किया गया हो। हालाँकि फर्श अच्छी अवस्था मे थी लेकिन उस पर सोना किसी भी इंसान के लिए बेहद मुश्किल था।​

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‘ऐ चलो रे तुम सब। नाम बताओ अपने-अपने।’ - सेल की हेड कैदी रेणुका ने उनसे पूछा।

वे लोग बेहद घबराई हुई थी लेकिन एक-दूसरे के साथ ने उनके अंदर थोड़ी हिम्मत पैदा कर रखी थी। रेणुका के पूछने पर उन्होंने अपने-अपने नाम बतायें और फिर उसी जगह पर बैठने लगी। लेकिन यह क्या? वे लोग नीचे बैठ पाती, उससे पहले ही रेणुका ने दया की जाँघ पर एक जोर की लात मारी।

“साली कमिनियो। मैंने बैठने को कहा। कहा बैठने को..”

रेणुका गुस्से से आग बबूला थी। उसका बस चलता तो वह उन्हें जिंदा गाढ़ देती। आखिरकार वह अपनी सेल की हेड जो थी। उसने उन सभी को तब तक खड़े रहने को कहा, जब तक उन्हें बैठने को ना कहा जाये। बबिता और बाकी औरते मजबूर थी। नई जगह थी, नए लोग थे। ना तो उन्हें जेल के नियमो की जानकारी थी और ना ही जेल में रहने का सलीका पता था। भले ही उन पर हत्या का आरोप था लेकिन आखिर वे लोग शरीफ घरो से ही ताल्लुक रखती थी।

डर और घबराहट के मारे उन्हें कुछ समझ नही आ रहा था। सेल में रेणुका के अलावा चार कैदी और भी बंद थी जिनमे नीलिमा (40 वर्ष), प्रमिला (46 वर्ष), रेहाना (46 वर्ष) तथा सुधा (74 वर्ष) शामिल थी। रेणुका चार हत्याओ की आरोपी थी और पिछले छः सालो से जेल में बंद थी। उसे आजीवन कारावास की सजा हुई थी।

रेणुका के अलावा रेहाना और सुधा पर पर भी हत्या का आरोप था जबकि प्रमिला फ्रॉड केस में और नीलिमा ड्रग केस में जेल में कैद थी। रेहाना इसी जेल में हत्या के आरोप में चौदह साल की सजा काट चुकी थी लेकिन रिहा होने के बाद उसने दोबारा हत्या की वारदात को अंजाम दिया और फिर से जेल पहुँच गई। इस बार उसे मरते दम तक जेल में रहने की सजा मिली थी।

रेणुका अपनी सेल की हेड कैदी थी। जेल में प्रत्येक सेल में एक कैदी को हेड बनाया जाता था जो अपनी सेल की अन्य कैदियों पर निगरानी रखने का काम करती थी। हेड कैदी एक तरह से अपनी सेल की बॉस होती थी जो सेल की अन्य कैदियों के साथ जो चाहे वो कर सकती थी। सेल की सभी कैदियों को हेड कैदी की बात मानना जरूरी होता था और ऐसा ना करने पर उन्हें सजा के तौर पर थर्ड डिग्री टॉर्चर तक दिया जाता था। आमतौर पर हेड कैदी उस कैदी को बनाया जाता था जो सेल में सबसे सीनियर हो या शारीरिक रूप से हट्टी-कट्टी व स्वभाव से बेहद सख्त हो।

रेणुका द्वारा दया को लात मारे जाने के बाद वे लोग बहुत ज्यादा डर गई और डर के मारे खड़ी ही रही। रेणुका यही नही रुकी। उसने बबिता के बालों को जोर से पकड़ा और उसे खींचते हुए इधर-उधर घुमाने लगी।

‘आँ...क्या कर रही हैं आप? छोड़ो। आँह।’ - बबिता लगातार अपने आपको छुड़ाने की कोशिश कर रही थी लेकिन वह असमर्थ थी। बाकी औरते भी रेणुका से बबिता को छोड़ने की विनती करती रही लेकिन उसने किसी की एक नही सुनी। उसने बबिता की गर्दन को हाथो से पकड़ा और उसे घुटनो पर बिठाते हुए उसकी गर्दन को नीचे जमीन पर दबा दिया। बबिता के लिए दर्द असहनीय हो रहा था और उसकी आँखों से आँसू निकलने लगे। रेणुका उसे छोड़ने का नाम नही ले रही थी लेकिन तभी पीछे से सुधा ने उसे आवाज लगाई -

“अरे छोड़ दे रेणुका। अभी-अभी तो आई है बेचारी। अब क्या जान लेगी उसकी।”

‘तेरे को पता है ना काकी। मेरी सेल में मेरे से पूछे बिना कोई काम नही होता। और ये साली मेरे बोले बिना बैठ कैसे गई।’ - रेणुका ने गुस्से में कहा।

“उनको थोड़ी पता है कि तू सेल की हेड हैं। धीरे-धीरे पता चल जायेगा। चल अब छोड़ उसको। जो करना है रात में कर लेना।”

रेणुका सुधा की बात को मना नही कर पाई। उसने बबिता को छोड़ दिया और गुस्से में सेल से बाहर निकल गई। उसके साथ ही नीलिमा, प्रमिला और रेहाना भी बाहर चली गई। उनके जाते ही सुधा ने उन सातो को अपने पास बुलाया और बैठने को कहा।

“तुम लोग लगती नही हो अपराधी। कौन से केस में आई हो?” - उसने पूछा।

उसके पूछते ही वे लोग एक-दूसरे की तरफ देखने लगी। मानो किसी ने उनकी डूबती रग पर हाथ रख दिया हो। हालाँकि सुधा ने उनकी मनोस्थिति भाँप ली और फिर से बोली -

‘घबराओ नही। ये जेल हैं। यहाँ सब किसी ना किसी अपराध में बंद हैं। चलो बताओ। कौन से केस में लाये है तुमको?’

‘जी, मर्डर केस में।’ - अंजली ने जवाब दिया।

‘आप कौन से केस में हो आँटी?’ - बबिता ने पूछा।

‘मैं भी हत्या के केस में ही अंदर हूँ बेटा। अपने बेटे को मारा था मैंने।’

वे लोग स्तब्ध रह गई। आखिर कोई माँ अपने बेटे को कैसे मार सकती हैं? सुधा की आवाज में दर्द था लेकिन उसे अपने किये का कोई पछतावा नही था। वह 74 साल की एक बूढ़ी औरत थी जो अब शारीरिक रूप से कमजोर हो चुकी थी। हालाँकि जेल में उसे किसी तरह की कोई सहूलियत नही थी और उसके साथ अन्य कैदियों की तरह ही बर्ताव किया जाता था।

“आपने अपने बेटे को क्यूँ मारा काकी?” - दया ने पूछा।

‘मेरी कहानी फिर कभी बताऊँगी बेटा। खाने का समय होने वाला हैं। अपना सामान रख दो और थाली लेके बाहर चलो।’

सुधा के कहते ही एक तेज सायरन की आवाज आई। यह सायरन खाने के समय का था। शाम के पाँच बज चुके थे और रात के खाने का समय हो चुका था। जेल में कैदियों को रात का खाना पाँच बजे ही दे दिया जाता था। हालाँकि कैदी चाहे तो खाने को सेल में ले जा सकते थे और रात में किसी भी वक़्त खा सकते थे। सायरन के बजते ही बबिता और बाकी औरतो ने अपनी-अपनी थालियाँ उठाई और खाने के लिए अन्य कैदियों के साथ सेल से बाहर चली आई।​
 
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Update 5

बाहर मैदान में कैदी औरतो की भारी भीड़ थी। खाने के लिए लंबी-लंबी लाइने लगी हुई थी और औरते लाइन में लगने के लिए धक्का-मुक्की करने से भी पीछे नही हट रही थी।

“हे काय आहे? ऐसे कैसे हम लोग खाना लेंगे?” - माधवी ने टेंशन भरी आवाज में कहा।

‘लेना तो पड़ेगा माधवी भाभी। भूखे तो नही रह सकते ना।’ - अंजली ने कहा।

दया - “हाँ अंजली भाभी सही कह रही है। खाना तो लेना पड़ेगा।”

मजबूरन वे लोग एक लाइन में जाकर खड़ी हो गई। लाइन लंबी थी और वे लोग किसी को भी नही जानते थे। काफी देर तक लाइन में लगने के बाद उन्हें खाना नसीब हुआ। खाना बाँटने का काम कैदी औरते ही कर रही थी लेकिन खाने की क्वालिटी बहुत ही बेकार थी। कच्चे चावल, जली हुई रोटियाँ, पानी जैसी दाल और अजीब तरह के पत्तो की सब्जियाँ। थाली में खाना पड़ते ही पूरी दाल पानी की तरह थाली में तैरने लगी। खाना देखकर उन्हें खाना खाने का बिल्कुल मन नही हुआ लेकिन भूख की वजह से मजबूर होकर उन्हें वही खाना खाना पड़ा।​

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“आई, मेरा बिल्कुल मन नही कर रहा हैं खाने का।” - सोनू ने कहा।

‘खा ले बेटा, तूने सुबह से कुछ नही खाया हैं। पता नही हमसे कौन सा पाप हो गया है जो ऐसी जगह पर रहना पड़ रहा हैं।’ - माधवी ने उसे ढाँढस बँधाते हुए कहा।

माधवी की बात सुनकर सभी के चेहरों पर मायूसी छा गई लेकिन वे लोग जानती थी कि अब वे लोग ही एक-दूसरे का सहारा थी। सबसे ज्यादा मुश्किल सोनू के लिए थी। मात्र बाईस साल की छोटी सी उम्र में उसे जेल आना पड़ा था। जेल का माहौल बहुत ही खराब था और अपराधी औरतो के बीच मे रहना उनके लिए कतई भी आसान नही था। खैर, जो भी था लेकिन अब वे लोग कैद में थी। वे लोग बाहर के लोगो की तरह आजाद जिंदगी जीने का हक खो चुकी थी। उन्हें जेल में आये हुए एक घंटा भी नही बिता था कि उन्हें घुटन सी महसूस होने लगी थी। जेल की ऊँची-ऊँची दीवारे और दीवारों से पार जाने की लालसा उन्हें बेचैन कर रही थी। बड़ी मुश्किल से उन्होंने जैसे-तैसे खाना खाया और फिर वापस अपनी सेल में चली आई।​
 
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Update 6

शाम के पौने छः बज चुके थे और सभी कैदी अपनी-अपनी सेलो में वापस आने लगी थी। बबिता और बाकी औरते तो पहले ही सेल में आ चुकी थी जबकि रेणुका, नीलिमा, प्रमिला, रेहाना और सुधा भी सेल में आ गई थी। उन पाँचो ने अपना खाना सेल में ही ला लिया था। शाम के छः बजते ही जेल में एक और सायरन बजा जिसके बजते ही महिला सिपाहियों ने सभी सेलो में ताले लगाने शुरू कर दिए और कुछ ही देर में जेल की प्रत्येक सेल व बैरक में ताले जड़ दिए गए।​

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“ऐ, अप्सरा टॉकीज़। अभी वार्डन मैडम आएगी हाजिरी लेने को। इधर खड़े रहने का।” - रेणुका ने उन सातो से कहा।

जेल में दिन में दो बार गिनती की जाती थी। पहली सुबह प्रार्थना के दौरान तथा दूसरी शाम को कैदियों को सेलो में बंद किये जाने के बाद। उन लोगो को बहुत ज्यादा इंतजार नही करना पड़ा और कुछ देर बाद ही वार्डन कुछ महिला सिपाहियों के साथ कैदियों की गिनती करने पहुँच गई।

‘‘रेणुका…’’ - वार्डन ने नाम पुकारा।

‘यस मैडम।’’

“नीलिमा…प्रमिला…रेहाना…सुधा…”​

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इन पाँचो के नाम पुकारे जाने के बाद बबिता का नाम पुकारा गया और उसके बाद बारी-बारी से अंजली, दया, रोशन, कोमल, माधवी और सोनू का नाम लिया गया। हाजिरी लेते समय वार्डन उन सातो को ध्यान से देखती रही। ना जाने उसके मन मे क्या चल रहा था लेकिन वह उन्हें ऐसे देख रही थी जैसे मानो उन्हें कच्चा चबा जाएगी। जब वार्ड की सभी कैदियों की गिनती पूरी हो गई, उसके बाद वार्डन तथा वार्ड के भीतर पहरा दे रही सभी काँस्टेबल्स वहाँ से बाहर चली गई और वार्ड के दरवाजे को बाहर से बंद कर दिया गया। सभी कैदी सुबह के पाँच बजे तक सेलो व बैरकों में बंद हो चुकी थी और किसी को भी बाहर निकलने की इजाजत नही थी।​
 
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Update 7

वे सातो अब तक उन्ही कपड़ो में थी जिनमे उन्हें जेल लाया गया था। गिरफ्तारी के बाद से ना तो उन्होंने नहाया था और ना ही कपड़े बदले थे। शाम को जब उनकी सेल में ताला लगा दिया गया तब उन्होंने अपने कपड़े बदले और नाइट ड्रेस पहनी।

सेल में किसी तरह की कोई गोपनीयता नही थी। कैदियों को अन्य कैदियों के सामने ही अपने कपड़े बदलने पड़ते थे। जो औरते काफी समय से जेल में कैद थी, उन्हें इस चीज की आदत हो चुकी थी लेकिन उन सातो के लिए यह बहुत ही असहजतापूर्ण था। उस छोटी सी सेल में इतनी भी जगह नही थी कि वे लोग आसानी से अपने कपड़े बदल पाये। उन्होंने अपने कपड़े तो बदले लेकिन उनके लिए यह बेहद मुश्किल था।

उनके कपड़े बदलने के दौरान सेल की सीनियर औरते उन पर गंदी-गंदी फब्तियाँ कसने लगी और उन्हें रंडी, छिनाल, कुतिया और ना जाने क्या-क्या कहने लगी। एक ही सेल में रहते हुए उनकी बातों को नजरअंदाज करना आसान नही था लेकिन फिर भी उन सातो ने काफी देर तक उनकी बातों पर ध्यान नही दिया। उनके कपड़े बदलते ही हेड कैदी रेणुका अपनी जगह से उठी और उनके पास आकर बोली - “चलो महारानियो, खड़े हो जाओ और कपड़े उतारो अपने-अपने..”

वे लोग थोड़ी देर के लिए तो बिल्कुल स्तब्ध रह गई और एक-दूसरे की तरफ देखती रही। फिर कोमल ने एकाएक रेणुका से कहा - “कपड़े क्यूँ उतारे हम?”

‘साली मादरचोद। मेरे से ज़बान लड़ाएगी।’ - रेणुका गुस्से से लाल हो चुकी थी और उसे कोमल का जोर से बोलना इतना बुरा लगा कि उसने कोमल को अपनी तरफ खींचकर उसकी पीठ पर दो बार कोहनी से वार किया। कोमल दर्द के मारे चीखने लगी। बबीता और बाकी औरते अपनी आँखों के सामने यह सब देख रही थी और कोमल को पिटता देखकर वे लोग उसे बचाने के लिए दौड़ पड़ी। उन्होंने रेणुका का हाथ पकड़ लिया और उसके साथ ही धक्का-मुक्की करने लगी। धीरे-धीरे उनका झगड़ा बढ़ने लगा जिसे देखकर अन्य सेलो की कैदी औरते शोर मचाने लगी। कैदियों का शोर सुनकर बाहर तैनात काँस्टेबल्स और वार्डन दौड़ी-दौड़ी वार्ड में आई और उनकी सेल का ताला खोलकर उनका झगड़ा शांत करवाया।

“ऐ, क्या हो रहा है ये?” - वार्डन शोभना ने पूछा।

‘मैडम, मैंने इनको कपड़े उतारने बोली तो ये साली मारपीट पे आ गई।’ - रेणुका ने बताया।

रेणुका की बात सुनकर शोभना उनके करीब आई और उन सबके चेहरों पर अपने डंडे को घुमाते हुए बड़े प्यार से बोली - “जेल में आये हुए एक दिन भी नही हुआ और झगड़े करने लगी हो।”

‘मैडम, हमारी कोई गलती नही हैं। हम जब से आये हैं, तब से ये लोग हमें परेशान कर रहे हैं।’ - बबिता ने रेणुका की शिकायत करते हुए कहा।

वार्डन - “ये तो गलत बात हैं ना रेणुका। देख। बेचारी शरीफ घरो की औरते हैं। अब तू ऐसे सीधे कपड़े उतारने बोलेगी तो कैसे उतारेगी। बता।”

रेणुका - ‘जी मैडम।’

वार्डन - “लेकिन मेरी बात को मना नही करेगी। देखना है तुझे?”

इतना कहकर उसने उन सातो की ओर देखा और बोली - ‘उतारो कपड़े..’

“जी?” - बबिता आश्चर्य भरी नजरों से उसकी ओर देखते हुए बोली।

बबिता ने इतना कहा ही था कि वार्डन ने अपने पास पड़ा डंडा उठाया और उसकी जांघो पर दे मारा। उसने बबिता और बाकी सभी को दो-तीन बार तेज डंडे मारे और फिर बबिता की गर्दन पकड़ते हुए बोली -

‘साली हरामजादियो, मैडम ने समझाया था ना कि इधर सीनियरों की किसी भी बात को मना नही करते। जेल को अपने बाप का घर समझ रखा हैं क्या साली छिनालो।’

उसने गुस्से में आगे कहा - “चलो, ज्यादा नाटक नही। दो मिनट का टाइम दे रही हूँ। दो मिनट में तूम लोग नंगी नही हुई तो माँ कसम, आज तुम्हारी गाँड़ मारके रख दूँगी।”

जाहिर सी बात थी। उसकी चेतावनी से उनकी घबराहट बढ़ने लगी थी और वे लोग अपने कपड़े उतारने को मजबूर हो गई। उन सातो ने एक साथ अपने कपड़े उतारने शुरू किये और दया ने अपनी साड़ी व बाकी सभी ने अपनी नाइट ड्रेस उतार दी। वे लोग अब ब्रा व पैंटी में वार्डन के सामने खड़ी थी।​

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वार्डन शोभना उनके करीब आई और बबिता को पैंटी से पकड़कर अपनी ओर खींच लिया। उसके होंठ बबिता के होंठो के ठीक सामने थे और दोनों की छाती एक-दूसरे की छाती से टकराने को आतुर थी। बबिता कुछ समझ पाती, उससे पहले ही शोभना ने उसे अपनी बाहों में जकड़ लिया और एकाएक उसके होठो पर किस करने लगी। यह दृश्य देखकर बाकी सभी ने शर्म के मारे अपना सर नीचे कर लिया और चेहरे को दूसरी तरफ घुमा लिया। हालाँकि बबिता मजबूर थी और वह शोभना को ऐसा करने से इंकार नही कर सकती थी।

शोभना ने पुलिस की साड़ी पहन रखी थी जबकि बबिता ब्रा-पैंटी में थी। किस करते हुए ही उसने अपनी साड़ी का पल्लू नीचे सरका दिया और बबिता के बूब्स पर अपने बूब्स को रगड़ने लगी। शोभना के स्तन भी बबिता की तरह ही बड़े-बड़े व सुडौल थे। धीरे-धीरे वह बबिता के बदन को अपने हाथों से सहलाने लगी और उसकी ब्रा व पैंटी उतार दी। बबिता अब पूरी तरह से नग्न हो चुकी थी। शोभना ने अपना एक हाथ उसकी योनि पर रखा और दूसरे हाथ से उसके बूब्स को दबाने लगी।

उस सेल में बबिता और शोभना के अलावा उस वक़्त 11 कैदी और कुछ महिला काँस्टेबल्स भी मौजूद थी जो अपनी आँखों के सामने सब कुछ देख रही थी। उन लोगो के लिए यह सब बिल्कुल सामान्य बात थी लेकिन बबिता सहित गोकुलधाम सोसायटी की सातो महिलाओं के लिए यह बहुत ही गंदा काम था। वे लोग सभ्य परिवारो व सोसायटी से थी लेकिन जेल की दुनिया बाहरी दुनिया से पूरी तरह अलग थी।

शोभना ने बबिता की वजाइना को अपनी ऊँगली से सहलाना शुरू कर दिया जिस वजह से उसके अंदर भी अब उत्तेजना पैदा होने लगी थी। बबिता की आंखे चढ़ने लगी और वह सेक्स के नशे में डूबने लगी। उस वक़्त उसे किसी मर्द की सख्त जरूरत थी जो अपने लिंग के प्रकोप से उसे यौन सुख का आनंद दे सके। मगर वह एक महिला जेल में कैद थी जहाँ दूर-दूर तक कोई मर्द नही था। उसके आसपास केवल और केवल महिलाएँ ही मौजूद थी।

शोभना उसे दीवार के पास से खींचकर सलाखों के पास ले आई और उसे आगे की ओर झुकाकर उसके दोनों हाथों को हथकड़ी से सलाखों में बाँध दिया। बबिता किसी कुतिया की तरह आगे झुककर बँधी हुई थी और फिर शोभना ने अंजली व गोकुलधाम सोसायटी की बाकी औरते को एक-एक कर उसकी चूत चाटने को कहा।​

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शोभना की बात सुनकर वे लोग दंग रह गई। आखिर भला वार्डन उनके साथ ऐसा कैसे कर सकती थी। छि! कितना गंदा है यह। एक औरत हमेशा एक आदमी की ओर आकर्षित होती हैं और सेक्स के दौरान वह आदमी का लिंग और गाँड़ चाटने से भी पीछे नही रहती। मगर यहाँ तो एक औरत द्वारा दूसरी औरत की चूत चाटने की बात हो रही थी। उन लोगो को यह सब बहुत ही गंदा लग रहा था और उन्हें घिन्न आने लगी थी। वे लोग कोई लेस्बियन तो थी नही जो सब कुछ अपनी इच्छा से कर लेती।

फिर शुरू हुआ उन लोगो से जबरन बबिता की चूत चटवाने का सिलसिला। अंजली आगे आई और बबिता की फैली हुई टाँगों के नीचे बैठकर उसकी वजाइना पर अपनी जीभ टिका दी। बबिता की चिकनी गुलाबी चूत किसी मर्द के लिए स्वर्ग का खजाना होती लेकिन अंजली के लिए वह कोई खास चीज नही थी। आखिर अंजली भी एक औरत ही थी और उसके पास भी वह सब कुछ था जो बबिता के पास था। अंजली के बाद दया, रोशन, कोमल और माधवी ने भी बारी-बारी से बबिता की चूत चाटी और फिर सबसे आखिरी में बारी आई सोनू की।

सोनू के लिए यह आसान नही था। उसने अपनी जिंदगी में पहले कभी भी सेक्स नही किया था और ना ही उसका कोई बॉयफ्रेंड था। बबिता को पूरी तरह नंगी देखकर वैसे ही उसे गंदा महसूस हो रहा था और जब उसे उसकी चूत चाटने के लिए आगे बुलाया गया तो उसे घिन्न आने लगी थी। हालाँकि मजबूरन उसे बबिता की चूत चाटनी पड़ी लेकिन बीच मे उसे कई बार उल्टी जैसे महसूस हुआ।

वार्डन शोभना ने आगे वह किया जिसकी उन लोगो ने कल्पना तक नही की थी। उसने अपना डंडा उठाया और बबिता के पीछे के छेद में घुसा दिया। बबिता दर्द के मारे चीख उठी लेकिन शोभना उसके दर्द की परवाह किये बिना डंडे को लगातार अंदर बाहर करने लगी। बबिता का दर्द अब दर्द के साथ आनंद में बदलने लगा और वह “आँह आँह” की तेज सिसकियाँ लेने लगी। कुछ देर बाद शोभना ने उसकी हथकड़ी खोल दी और उसे बाकी औरतो के साथ एक तरफ खड़ा करवा दिया।
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शोभना ने अंजली, दया, रोशन, कोमल, माधवी और सोनू की भी ब्रा व पैंटी उतरवा दी और उन्हें सेल की उन पाँचो सीनियर कैदियों के हवाले कर वहाँ से चली गई। सुधा को छोड़कर चारो सीनियरों ने उनके साथ काफी देर तक लेस्बियन सेक्स किया और उनकी जमकर रैगिंग की। उन्हें नग्न अवस्था मे ही मुर्गा बनाया गया, एक पैर पर खड़े करवाया गया, उठक-बैठक करवाई गई, दीवार और जमीन पर नाक रगड़वाई गई और कई तरह से प्रताड़ित किया गया। यहाँ तक कि उन्हें एक-दुसरे के स्तनों से दूध पीने के लिए भी मजबूर किया गया।

सबसे ज्यादा शर्मिंदगी माधवी और सोनू को महसूस हो रही थी। एक माँ का अपनी बेटी को और एक बेटी का अपनी माँ को इस तरह प्रताड़ित होते देखना वाकई में बेहद शर्मिंदगी भरा था। एक माँ कभी नही चाहती कि उसकी बेटी के साथ इस तरह का बर्ताव हो लेकिन माधवी चाहकर भी सोनू के लिए कुछ नही कर सकती थी। जेल में आने के बाद उन दोनों में कोई फर्क नही रह गया था। जेल स्टॉफ को इस बात से कोई मतलब नही था कि उन दोनों का आपस मे क्या रिश्ता हैं। उनके लिए वे दोनों केवल कैदी थी और वे लोग उनके साथ अन्य कैदियों की तरह ही बर्ताव कर रही थी।

काफी देर तक रैगिंग किये जाने के बाद पाँचो सीनियर कैदियों ने उन्हें अपनी-अपनी सेवा में लगा दिया और उनसे अपने हाथ-पैर दबवाने लगी। बबिता और रोशन को छोड़कर बाकी सभी को सीनियरों की सेवा करनी पड़ रही थी जबकि इस दौरान उन दोनों को जमकर नचवाया गया। वे सातो अब भी पूरी तरह से नंगी थी। सीनियर कैदी उन्हें अपनी स्लेव की तरह उपयोग कर रही थी और उनके शरीर के साथ खेलती जा रही थी। हाथ-पैर दबाते वक़्त वे लोग उनके स्तनों और कूल्हों को दबाने लगी, उनकी योनि के साथ छेड़छाड़ करने लगी और उन्हें अनेक तरह से परेशान करने लगी। इतना सब कुछ होने के बाद भी उन सातो को रोना मना था। यदि उनकी आँखों से आँसू निकलते तो वे लोग उन्हें मारने लगती। जेल की पहली रात ही उनके लिए किसी भयानक सपने की तरह थी जिस पर यकीन करना मुश्किल था कि जो हो रहा था, वह वास्तविक था।

देर रात तक उनके साथ रैगिंग, मारपीट और सेक्स किया गया और आखिरकार रात के साढ़े ग्यारह बजे सीनियरों ने उन्हें परेशान करना बंद किया। उन सातो ने अपने-अपने कपड़े पहने और एक-दूसरे के गले मिलकर रोने लगी। पहली रात ही उन्हें इस बात का एहसास हो चुका था कि उनके लिए जेल में रहना कतई भी आसान नही है और जेल में उन्हें कई सारी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। उन्होंने सपने में भी नही सोचा था कि जेल में कैदियों के साथ इस तरह का बर्ताव किया जाता हैं और जेल की दुनिया बाहरी दुनिया से इतनी अलग होती हैं। जो चीजे बाहर की दुनिया मे अपराध थी, वही चीजे जेल में बिल्कुल सामान्य थी। हालाँकि अभी उनका सामना जेल की अन्य कैदियों से बिल्कुल नही हुआ था जिनमे एक से बढ़कर एक अपराधी महिलाएँ शामिल थी।​
 
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