Update 8
“उठ जाओ रे साली रंडियों। ये जेल हैं। तुम्हारे बाप का घर नही साली हराम की जनियो…” सुबह के पाँच बजते ही वार्डन व कुछ महिला पुलिसकर्मी दनदनाती हुई वार्ड में घुसी और कैदियों पर चिल्लाने लगी। उनका कैदियों को जगाने का तरीका बेहद ही बुरा व असभ्यतापूर्ण था और जो कैदी उनके आने के बाद भी सोती रही, उन्हें उनके लातो व डंडो का स्वाद भी चखना पड़ा।
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वार्डन के चिल्लाने से बबिता और बाकी सभी की नींद भी खुल गई। वे लोग रात में नीचे फर्श पर ही सोई थी जिस वजह से उन्हें ठीक से नींद भी नही आ पाई। रात भर उनके मन मे अनेक तरह ही चीजे चल रही थी। जेल से बाहर निकलने की बेचैनी और घरवालो की याद ने उन्हें रात भर सोने नही दिया।
‘ऐ, तुम लोगो को अलग से बोलना पड़ेगा क्या? बाहर निकलो।’ - वार्डन ने उन पर चिल्लाते हुए कहा।
वार्डन की डाँट पड़ते ही उन्होंने अपनी चादरे फोल्ड की और नित्यक्रिया के लिए सेल से बाहर आ गई। उन्होंने देखा कि प्रत्येक सेल के ताले खोल दिये गए थे और कैदी औरते अपनी-अपनी सेलो से बाहर निकलने लगी थी। वार्डन कैदियों पर लगातार चिल्लाये जा रही थी और उन्हें डंडे भी मारती जा रही थी। कई औरते वार्डन की मार से बचने के लिए बहुत ही हड़बड़ी में बाहर निकलने लगी। बबिता और बाकी सभी भी, अन्य कैदियों के साथ ही बाहर आ गई।
बाहर शौचालय के लिए कैदी औरतो की लंबी-लंबी लाइने लगी हुई थी। अभी सूरज भी पूरी तरह से नही निकला था लेकिन जेल की दिनचर्या शुरू हो चुकी थी। वे सातो भी शौचालय की एक लाइन में जाकर खड़ी हो गई और काफी देर तक इंतजार करने के बाद उनका नंबर आया। शौचालय की हालत बहुत खराब थी। अंदर बदबू की वजह से साँस लेना भी दूभर था। अंदर एक बाल्टी और मग रखा था जबकि पानी के लिए एक नल की भी सुविधा थी। उनके पास कोई और विकल्प मौजूद नही था जिस वजह से उन्हें मजबूरीवश उसी शौचालय में जाना पड़ा।
शौच के बाद उन्होंने अपने हाथ धोये और वापस अपनी सेल में आ गई। उन लोगो को जेल की तरफ से टूथपेस्ट व ब्रश भी दिया गया था। उन्होंने अपने-अपने ब्रश लिए और दोबारा बाहर आ गई। उन्हें इस बात की कोई जानकारी नही थी कि किस जगह पर ब्रश करना हैं इसलिए बबिता ने वहाँ मौजूद एक काँस्टेबल से पूछा - “मैडम, ब्रश कहाँ करना हैं?”
‘जा, संडास में जाकर कर ले। हरामजादी साली। वो दिख नही रह है तेरे को उधर। चल जा उधर बाथरूम में।’ - उसने चिढ़ते हुए कहा।
‘ऐ, तुम लोगो को अलग से बोलना पड़ेगा क्या? बाहर निकलो।’ - वार्डन ने उन पर चिल्लाते हुए कहा।
वार्डन की डाँट पड़ते ही उन्होंने अपनी चादरे फोल्ड की और नित्यक्रिया के लिए सेल से बाहर आ गई। उन्होंने देखा कि प्रत्येक सेल के ताले खोल दिये गए थे और कैदी औरते अपनी-अपनी सेलो से बाहर निकलने लगी थी। वार्डन कैदियों पर लगातार चिल्लाये जा रही थी और उन्हें डंडे भी मारती जा रही थी। कई औरते वार्डन की मार से बचने के लिए बहुत ही हड़बड़ी में बाहर निकलने लगी। बबिता और बाकी सभी भी, अन्य कैदियों के साथ ही बाहर आ गई।
बाहर शौचालय के लिए कैदी औरतो की लंबी-लंबी लाइने लगी हुई थी। अभी सूरज भी पूरी तरह से नही निकला था लेकिन जेल की दिनचर्या शुरू हो चुकी थी। वे सातो भी शौचालय की एक लाइन में जाकर खड़ी हो गई और काफी देर तक इंतजार करने के बाद उनका नंबर आया। शौचालय की हालत बहुत खराब थी। अंदर बदबू की वजह से साँस लेना भी दूभर था। अंदर एक बाल्टी और मग रखा था जबकि पानी के लिए एक नल की भी सुविधा थी। उनके पास कोई और विकल्प मौजूद नही था जिस वजह से उन्हें मजबूरीवश उसी शौचालय में जाना पड़ा।
शौच के बाद उन्होंने अपने हाथ धोये और वापस अपनी सेल में आ गई। उन लोगो को जेल की तरफ से टूथपेस्ट व ब्रश भी दिया गया था। उन्होंने अपने-अपने ब्रश लिए और दोबारा बाहर आ गई। उन्हें इस बात की कोई जानकारी नही थी कि किस जगह पर ब्रश करना हैं इसलिए बबिता ने वहाँ मौजूद एक काँस्टेबल से पूछा - “मैडम, ब्रश कहाँ करना हैं?”
‘जा, संडास में जाकर कर ले। हरामजादी साली। वो दिख नही रह है तेरे को उधर। चल जा उधर बाथरूम में।’ - उसने चिढ़ते हुए कहा।
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बबिता को उसका ऐसा बर्ताव बहुत ही बुरा लगा लेकिन वह मन मारकर रह गई और कुछ नही बोल पाई। वे लोग अन्य औरतो के साथ ही बाथरूम में गई और ब्रश किया। हालाँकि बाथरूम में भी कैदियों की बहुत भीड़ थी जिस वजह से उन्हें वहाँ भी काफी इंतजार करना पड़ा। बाथरूम में अन्य कैदी औरते उन्हें तंग करने लगी थी और कई औरते उनके साथ छेड़खानी भी करने लगी। किसी ने उनके कूल्हों पर हाथ मारे तो किसी ने उनके स्तनों को दबाया। किसी ने उन्हें गालियाँ दी तो किसी ने उनके साथ हल्की-फुल्की मारपीट भी की। जेल में यह सब बहुत ही सामान्य बात थी। खासकर नई कैदियों को तो बहुत ज्यादा परेशान किया जाता था और उनकी जमकर रैगिंग की जाती थी।