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♥ ? ? ? घर की जवान बूरें और मोटे लंड - [ Incest - घरेलू चुदाई की कहानी ] ???♥ ***INDEX*** |
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♥ ? ? ? घर की जवान बूरें और मोटे लंड - [ Incest - घरेलू चुदाई की कहानी ] ???♥ ***INDEX*** |
Jabardast lekhni please continueअपडेट ९:
पायल बाथरूम से बाहर आती है. एक बार फिर वो अपने आप को आईने के सामने खड़े हो कर निहारती है. अपनी बड़ी बड़ी चुचियाँ देख कर मुस्कुराते हुए वो एक दुपट्टा लेती है और अपने कंधो पर डाल लेती है. तेज़ क़दमों से चलते हुए वो ड्राइंग रूम के पास आती है. सामने सोफे पर उमा देवी, सोनू और उर्मिला अपनी अपनी जगह पर बैठे है और चाय पी रहे है. पापा को वहां ना पाकर पायल की नज़रें उन्हें ढूंढने लगती है. नज़रे चारों तरफ घुमाते हुए पायल सोफे के पास जाती है और धीरे से बैठ जाती है.
उर्मिला : क्या देख रही हो पायल?
पायल : कुछ नहीं भाभी. वो पापा कहीं दिखाई नहीं दे रहे?
उमा :लो आ गई अपने पापा की लाड़ली..... बाथरूम गए हैं. अभी आ जायेंगे.
पायल मम्मी की तरफ देख के मुहँ बना देती है. उर्मिला किसी तरह अपनी हँसी को रोकती है. तभी उसकी नज़र सोनू पर जाती है. सोनू तिरछी नज़रों से दुपट्टे के निचे से पायल का उभरा हुआ सीना देखने की कोशिश कर रहा था. "शुरू हो गया बहनचोद , उर्मिला मन में सोचती है. तभी बाबूजी बाथरूम से बाहर आते है. उर्मिला उन्हें देख कर रसोई से उनके लिए चाय लेने के लिए उठने लगती है. तभी पायल उर्मिला का हाथ पकड़ के निचे बिठा देती है.
पायल : भाभी आप चाय पीजिये. पापा के लिए मैं चाय ले कर आती हूँ. (पायल रसोई में चली जाती है).
बाबूजी सोफे पर अपनी जगह आकर बैठ जाते है. उन्हें देख के उमा कहती है.
उमा : अरे ...!! आप यहाँ क्यूँ बैठ रहें हैं? जाईये...अपनी पहलवानी कीजिये..
रमेश: देखो उमा..!! तुम मेरी कसरत पर नज़र मत लगाया करो मैं बोले दे रहा हूँ...
उमा : अजी मैं कहाँ नज़र लगा रही हूँ? मैं तो बस ये कह रहीं हूँ की सर के सारे बाल सफ़ेद होने को आ गए हैं, (सोनू के सर पर हाथ फेरते हुए) एक घोड़े और (रसोई की तरफ मुहँ बना के देखते हुए) एक गधी के बाप हो फिर भी आपकी जवानी ख़तम नहीं होती.
रमेश : (थोड़ी ऊँची आवाज़ में) गधा होगा तुम्हारा ये लाड़ला .... मेरी पायल बिटिया के बारें में कुछ मत बोलना....
उर्मिला : (हँसते हुए) बात तो बाबूजी की सही है मम्मी जी. पायल बेहद समझदार और सायानी लड़की है.
उमा : (हँसते हुए) ठीक है, फिर गधी नहीं तो घोड़ी हे सही...
उमा की इस बात पे सब हँस पड़ते है. उर्मिला रसोई में देखती है तो पायल चुप चाप एक कोने में खड़ी है.
उर्मिला : मम्मी जी main २ मिनट में आयी...
उर्मिला रसोई में पायल के पास आती है. उसके कंधे पर हाँथ रखते हुए कहती है.
उर्मिला : पायल...!! क्या हुआ? तू तो बाबूजी के लिए चाय लेने आई थी? यहाँ ऐसे सर झुकाए क्यूँ खड़ी है?
पायल का सर झुका है और नज़रें निचे रखे चाय के प्याले पर. वो कुछ क्षण वैसे ही प्याले को देखती है और कहती है...
पायल : कहानी और रियल लाइफ में बहुत फर्क होता है भाभी....
इतना कहते ही पायल की आँखे बड़ी हो जाती है. वो झट से बड़ी आँखों से उर्मिला की ओर देखने लगती है. उर्मिला पायल को देख मुस्कुरा रही है. पायल को अपनी गलती का एहसास होता है. उसने अनजाने में ही शायद पापा के लिए अपने जज़्बात को भाभी के सामने ज़ाहीर कर दिया था. वो जानती थी की जिस कहानी की किताब को पढ़ के उसके दिल में पापा के लिए भावनायें जागी थीं, वो किताब उसे उर्मिला ने ही दी थीं. पायल बड़ी बड़ी आँखों से उर्मिला को देख रहीं थीं. उर्मिला ने भी उसकी हालत समझते हुए उसे अपने सीने से लगा लिया. पायल भी भाभी के सीने में मुहँ छुपा लेती है. वो जानती है की इस वक़्त उसके मन में जो उथल पुथल हो रही है वो सिर्फ उर्मिला ही समझ सकती है.
उर्मिला : (पायल को अपने सीने से लगा लेती है) कोई बात नहीं पायल. ऐसा होता है. हर बात का एक समय होता है. शायद जो तू अभी चाह रही हो, उसका अभी ना तो समय हो और ना ही जगह.
पायल : (उर्मिला की बात सुन कर भाभी को देखते हुए) मैं कुछ समझी नहीं भाभी...
उर्मिला पायल को देख के मुस्कुराती है. फिर उर्मिला पायल को उस दिशा में घुमा देती है जहाँ सोफे पर रमेश, उमा और सोनू बैठे हैं. पायल उन्हें देखने लगती है. उर्मिला अपना चेहरा पायल की कंधे पर लाती है और धीरे से उसके कान में कहती है.
उर्मिला : देख पायल, बहादुरी दिखाना अच्छी बात है लेकिन ये जरुरी नहीं की बहादुरी सबके सामने दिखाई जाए...(उर्मिला पायल की ठोड़ी पकड़ के सोनू और उमा की तरफ उसका चेहरा घुमाते हुए कहती है. फिर वो उसका चेहरा बाबूजी की तरफ घुमा कर कहती है) अगर अपनी मंजिल को पाना हो तो तू बहादुरी अकेले में दिखा, चालाकी के साथ.
पायल के लिए उर्मिला की वो बात किसी ब्र्हम्ज्ञान से कम ना थीं. बात समझते ही पायल के उदास चेहरे पर एक मुस्कराहट आ जाती है. वो शर्माते हुए फिर से अपना चेहरा उर्मिला के सीने में घुसा देती है.
पायल : भाभी....!!!
उर्मिला : (उर्मिला पायल का चेहरा हाथों से उठा के कहती है) समझ गई ना बन्नों?
पायल नज़रें झुकाये अपना सर हिला कर हामी भर देती है. उर्मिला उसका दुपट्टा ठीक करते हुए कहती है.
उर्मिला : अब जा और बाबूजी को चाय दे दे. और हाँ... बहादुरी अकेले में. सबके सामने वाला मोर्चा तेरी भाभी संभाल लेगी.
पायल भाभी को देख के हँस देती है और चाय का प्याला ले कर बाबूजी के पास जाती है. वो अब दुपट्टे को बिना गिराए बाबूजी को चाय देती है.
पायल : पापा... आपकी चाय...
रमेश : थैंक्यू बिटिया....क्या बात है? बड़ी देर लगा दी चाय लाने में?
पायल : वो पापा...वो...वो...
पायल समझ नहीं पा रही थीं की वो क्या जवाब दे. तभी उर्मिला पायल का हाथ पकड़ कर उसे अपनी गोद में बिठा लेती है.
उर्मिला : वो वो क्या कर रही है? बता दे ना.... वो क्या है बाबूजी...पायल ने आपकी चाय में थोड़ा दूध डाल दिया था (उर्मिला दुपट्टे के निचे से पायल की चूची दबा देती है), इसलिए चाय गरम करने में देरी हो गई...
उर्मिला की इस हरकत से पायल के चेहरे का रंग उड़ जाता है. पर सबके सामने वो बेचारी करती भी क्या?
रमेश : (हँसते हुए) ओह अच्छा....
उर्मिला :चाय पी कर बताइए बाबूजी, दूध सही मात्रा में डाला हैं ना पायल ने?
रमेश : (चाय की एक चुस्की ले कर) वाह...!! मज़ा आ गया. दूध की मात्र बिलकुल सही है और स्वाद भी बहुत अच्छा है.
उर्मिला : देखा पायल..! दूध की मात्र भी सही है और स्वाद भी (उर्मिला एक बार फिर दुपट्टे के निचे से पायल की चूची दबा देती है. बेचारी पायल चुप चाप कसमसा के रह जाती है) बाबूजी, पायल अब बड़ी और सायानी हो गई है. कल मुझसे कह रही थी की, भाभी अब मैं पापा को भी बोझ उठा सकती हूँ...
ये सुन कर पायल हक्कि-बक्की रह जाती है. वो समझ नहीं पाती की क्या बोले और क्या करे. तभी उमा बोल पड़ती है.
उमा : बड़ी और सायानी नहीं, बड़ी घोड़ी कह उर्मिला. बड़ी घोड़ी है ये....
उर्मिला : तो ठीक है मम्मी जी... पायल घोड़ी बन के बाबूजी का बोझ उठा लेगी (उर्मिला धीरे से पायल की चुतड पर चुटकी काट लेती है)
इस बात पर सभी हँसने लगते है और पायल का बुरा हाल हो जाता है. उर्मिला के बात की गहराई और असली मतलब वो अच्छी तरह से समझ रही थी. वो चेहरे पर बनावटी हँसी ला कर सबका साथ देती है.
रमेश : देखो भाई..!! पायल घोड़ी बन के बोझ उठाये या कुछ और... मैं तो बस इतना जानता हूँ की मेरी पायल मेरा बोझ उठाने लायक हो गई हैं...
उर्मिला : (पायल के सर पर हाथ फेरते हुए) क्यूँ पायल? उठा लेगी ना पापा का बोझ?
पायल : जी ..जी भाभी...!! (पायल झट से खड़ी हो जाती है). अच्छा भाभी मुझे कॉलेज का कुछ काम याद आ गया. अब मैं चलती हूँ...(और पायल नज़रें झुका के तेज़ क़दमों से अपने कमरे की तरफ बढ़ने लगती है)
पायल के जाने के बाद सभी चाय पीते हुए हँसी मजाक करने लगते हैं. इधर पायल अपने कमरे में आती है. दरवाज़ा बंद करके वो बिस्तर के पास आती है. साँसे तेज़ है, चेहरे पर थोड़ी शर्म और मुस्कराहट. भाभी की दूध वाली बात याद कर के एक हाथ से अपनी चूची दबाते हुए वो हँस देती है. बिस्तर पर बैठते हे उसे भाभी की घोड़ी वाली बात याद आती है. वो धीरे से बिस्तर पर चढ़ती है और घोड़ी के अंदाज़ में बैठ जाती है. दिवार पर टंगे बड़े से आईने में वो अपने आप को देखती है. आईने में देखते हुए धीरे से वो अपनी चुतड को थोड़ा ऊँचा करती है. "हाँ पापा... मैं घोड़ी बन के आपका बोझ उठा सकती हूँ", और वो शर्मा के बिस्तर पर गिर जाती है और अपना चेहरा तकिये में छुपा लेती है. कुछ देर वैसे ही वो बिस्तर पर पड़ी रहती है फिर तकिये के निचे से किताब निकाल के पन्ने पलटने लगती है. "पापा के लंड की सवारी" - पायल के चेहरे पर मुस्कान छा जाती है. धीरे धीरे समय के साथ पायल की टॉप उसकी बड़ी बड़ी चुचियों के ऊपर उठ जाती है और हाथ उन्हें मसलने लगते हैं और पायल उस कहानी की रंगीन दुनिया में खो जाती है.
(कहानी जारी है. अब तक कैसी लगी कृपया कर के बतायें )