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Incest घर की ज़िमेदारी

आप की पंसदीता लड़की/औरत

  • सुमित्रा

    Votes: 5 55.6%
  • पारुल

    Votes: 4 44.4%
  • नेहा

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Underground Life

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जैसे की आप ने देखा सूरज की मां को कल रात भरपूर यौन सुख का आनंद मिला...और वही अब मुंबई में ट्रेन से पारुल और सूरज पहुंच चुके थे...जैसे की आप ने पड़ा सूरज अपनी पड़ोस वाली आंटी को जूठ बोल दिया की पारुल उसकी भाभी है और वो उसे घुमाने लाया है...इस बात से पारुल का दिल बैठ गया था की सूरज उसे बस उसकी भाभी मान रहा था...वही दूसरी और अब धीरे धीरे पारुल ने ये स्वीकार कर लिया था की जैसे भी हालत में ये शादी हुए हो लेकिन ये वो शादी की कसमें.... उसके गले में पहना हुआ सूरज के नाम का मंगलसूत्र और मांग में सिन्दूर उसे न चाहते हुए भी वो अब सूरज की अर्द्धांगिनी थी... और पारुल अब सूरज को अपने पति न दिल से लेकिन दिमाग से तो मान ही चुकी थी....वही उसे बहोत बुरा भी लगा था लेकिन जता नही रही थी की उसे नेहा से मन ही मन न चाहते हुए भी एक चीड़ चढ़ रही थी...वही पारुल का दिल इतना साफ था की वो ये भी चाहती थी की चाहे उसे कुछ भी करना पड़े लेकिन खुद की खुसी के लिए वो सूरज के पहले प्यार को उस से दूर नही होने देगी...वो मन ही मन ये भी निश्चय कर बैठी थी की घर जाते ही अपन सास ससुर से बात करेगी इस बारे में....

सूरज का प्लान था की लंच वो नेहा के पाप के साथ करे और उनकी बात भी हो... 25 साल का होते हुए भी सूरज जैसे किसी 16 साल के बच्चे जैसा मालूम होता था जब बात जिम्मेदारी की आती थी... नहीं तो कोई मर्द कैसे अपनी दो रात पुरानी शादी को भूल एक नई रिश्ते की बात करने उतावला हो रहा था...क्या सुराज के मन में एक पल के लिए भी अपने भाई की विधवा और अब उसकी पत्नी के दुख का अंदाजा न लगा...क्या उसे छोटी सी परी का भी एक पल के लिए खयाल नहीं आया जो उसे चाचू चाचू करती उसकी गोद में बैठ जाती है... कया सूरज को अपने परिवार के मान सम्मान का कोई विचार नहीं था....

सायद सूरज अपने प्यार में पूरी तरह से अंधा हो गया था...होता भी क्यों नहीं जब उसे इस मुबई जैसे सहारे में किसी का सहारा नहीं मिल रहा था तब न जाने कहा से नेहा उसके जीवन में आई... चुलबुली नटखट बदमाश नेहा ने जैसे साधारण और छोटे से गांव के लड़के पर ऐसा जादू किया की सुरज चारो खानों चिढ़ हो गया... अपनी उम्र से 6 साल छोटी नेहा से सूरज पागलों जैसे प्यार करने लगा...(नेहा 19 साल) नेहा भी एक साफ दिल की लड़की थी तभी तो एक अमीर बाप की बेटी होते हुए भी वो एक आम लड़के के प्यार में पड़ गई थी... सूरज के प्यार ने नेहा को काफी बदल दिया था... अब वो पहले वाली नेहा न थी जिसे अपने पापा की दौलत की अकड़ थी... धीरे धीरे नेहा पे सूरज का रंग चढ़ रहा गया था.... सूरज के नजरिए से देखें थे नेहा तब केवल 18 साल की थी और अपने पतले शरीर और छोटे कद काठी के कारण वो बस 13 14 साल की बच्ची लगती थी...गोरा रंग... गुलाबी होठ.. घने लम्बे बाल... उसे नेहा काफी क्यूट लगती वो उसे इसे ट्रीट जैसे वो किसी छोटी बच्ची हो...

*.....एक साल पहले...जब नेहा स्कूल में पड़ती थी.......*

इस दौरान सूरज नया नया मुंबई में नौकरी करने आया था... पहली ही जॉब होने से उसे इस सहर का कोई अनुभव न था दोस्त थे पर सब इतने दूर रहते थे की वो एक दम अकेला हो चुका था...वो एक अच्छे एरिया में रहा करते था शेयरिंग रूम में...वही उसके पास की एक बिल्डिंग में नेहा रहती थी...

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जब से सुराज यहां आया था ऑफिस से आते हुए वो नेहा को स्कूल जाते और जब वो खाना खाने बाहर जाया करता तब नेहा वही खेल रही होती...वो इतना ध्यान नहीं देता था पर फिर भी उसकी नजर न चाहते हुए भी नेहा की खिलखिलाहट भरी आवाज उसके कानो तक तो जाति...और एक दो पल किए सूरज नेहा की और देख मन ही मन खुश होता...

खाने के बाद सूरज रोज वही आस पास चक्कर लगाता.. वहा चलन के लिए रोड के एक तरफ काफी जगा थी कहा पेड़ पोथे भी लगे थे...कुछ लड़के लड़कियां भी वहा बैठ के प्यार की बाते करते... यहां के लोग गांव जैसे नही थे सब खुले विचार रखते थे... लड़किया वेस्टर्न कल्चर के कपड़े ही पहना करती थी नेहा भी खेलते हुए बस एक छोटी सी शॉर्ट्स और उपर बस बिना स्लीव वाली टी शर्ट या स्पोर्ट्स ब्रा पहन के आती...उसकी आधे से अधिक बॉडी साफ खुली होती... ये कोई बड़ी बात नहीं थी यहां...और ये सूरज भी अच्छे से समझ चुका था अपने कॉलेज के दिनों से ही....

पता नही कैसे लेकिन नेहा भी अब सूरज की मौजूदगी महसूस कर रही थी...उसके अंदर हो रहे बदलाव उसे सूरज जैसे उस से बड़े लड़के की और अपने आप खीच रही थी...अब नेहा जब सूरज को अपने आस पास पाती वो शर्म से लाल हो जाती...अब दोनो की नजरे मिल जाती सूरज को नेहा अभी तक बस एक क्यूट बच्ची से अधिक नहीं लगती थी...लेकिन उसका दिल नेहा को देख बस खुस हो उठता...

वही नेहा की हालत कुछ और नेहा अपने अंदर हो रहे बदलाव से अभी अभी वाकिफ हुए थी...उसे बस अभी यौन उत्तेजना सुरु हुए थी...उसकी योनि पे अब हल्के हल्के बाल आ चुके थे... नेहा को सूरज अच्छा लगने लगा था...लेकिन ये ये सिर्फ उसका यौन उत्तेजना का परिणाम था या कहे तो पहले पहले शारीरिक आकर्षण का नतीजा...

एक दिन आया जब सूरज तहल रहा था और नेहा के साथ उसके कोई दोस्त नहीं थे... नेहा एक और से आ रही थी और सूरज दूसरी और से... संजोग से आस पास कोई नही था....नेहा का दिल जोरो से धड़क रहा था...उसके दिमाग में बहोत कुछ चल रहा था पर उसे आज अपने क्रश से बात करनी ही थी...वो ये मोका जाने नही देना चाहती थी...नेहा वही रुक गई... जैसे जैसे सूरज पास आ रहा था नेहा की दिल की धड़कन बढ़ रही थी...नेहा की दो छोटी छोटी चूचियां उपर नीचे होने लगी...जब सूरज उसके करीब से गुजरा सूरज ने उसे एक स्माइल दी...सूरज भी थोड़ा असहज हुआ अपने आगे एक लड़की को खड़ा हुआ ब्लश करते देख....

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लेकिन नेहा उसे अभी तक कोई 13 14 साल की बच्ची ही मालूम होती थी...

तभी नेहा बड़ी हिम्मत कर अपनी सहद से मीठी आवाज में बोली..और सूरज की और चल के जानें लगी...

नेहा – (नेहा थी एक दम नटखट बदमाश लड़की लेकिन अपने से बड़े लड़के को देख सरामा भी रही थी) में नेहा...क्या आप मेरी मदद करोगे....

सूरज के लिए बेशक वो एक बच्ची ही थी पर उसके सामने इतनी खुसबूरत लड़की थी जिसे देख सूरज भी थोड़ा हड़बड़ी में बोला " हा बोला ना...आप यही रहते होना"

दोनो के बिच काफी गरमाहट बड़ गई थी दोनों की दिल की धड़कन बढ़ चुकी थी...लेकिन कुछ देर में दोनों सहज हो गई... दोनो को लगा कि एक जगा इस खड़ा रहना बड़ा अजीब है तो दोनो साथ में चकते हुए बाते करने लगे...

सूरज – अरे आप कुछ मदद करने के लिए पूछ रही थी...मेरे तो दिमाग से निकल गया...

नेहा एक दम से डर गए की अब क्या बोले लेकिन कुछ सोच सच ही बोल दिया.. हा कुछ हद तक...

नेहा – वो...वो में अकेली थी तो सोचा की आप आज बात की जाय... वैसे तो हम रोज मिलते ही बस बात नही हुए कभी...(नेहा शर्म से लाल हो गई)

सूरज – चलो अच्छा हुआ वैसे मुझे भी आज एक छोटी सी प्यारी दोस्त मिल गई... तुम सब को देख मुझे भी मेरे बचपन के दिन याद आ जाते है...खास कर के जब तुम और तुम्हारी दोस्त साइकिल लेके घुमती हो बहोत प्यारी लगती हो....(और सूरज ने नेहा के सर ले हाथ रख उसे सहला दिया..)

नेहा को सूरज का पहला स्पर्श भा गया पर उसे अच्छा नही लगा कि सूरज उसे एक छोटी बच्ची समझ रहा था....

नेहा – (थोड़ा मुंह फुला के जो उसे देख साफ पता चल रहा था की वो नजर थी) (उसका बड़बोलापन अब बाहर आने को तैयार था) (वो अपने जूते जमीन पे जोर से मार के नाराजगी दिखाते हुए बोली) प्लीज में कोई छोटी बच्ची नहीं...और पहले तो में आप से चोटी हु तो मुझे आप आप मत बोलो...(गुस्सा हो के) समझे....

सूरज मन ही मन सोच रहा था ये कैसी लड़की ही एक घंटा नही हुआ बात करे और ये इसे हुकुम दे रही है जैसे मेरी बीबी हो....और सूरज थोड़ा हस दिया...(नेहा और गुस्सा हो गई)

सूरज – अच्छा तो आप बड़ी हो गई हो...लेकिन मुझे तो नही लगता....(और वो इस बार नेहा के गाल को खींच दिया)

सूरज में इतनी हिम्मत बस इस बात से आ रही क्यू कि एक तो वो नेहा को बस एक छोटी बच्ची समझ रहा था और दूसरी वजह थी नेहा खुद...जो इतना हक जता रही थी..और दोनो एक दुसरे को काफी दिन से बिना बात किए ही जानते थे...एक दुसरे को बस रोज देख के...

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नेहा का गोरा गाल एक दम से उस जगा से जहा सूरज ने गाल खींचा था पूरा लाल रंग का हो उठा...अब नेहा सूरज को और प्यारी लग रही थी....

नेहा नाराज होके वहा से चली गई...लेकिन ये मुलाकाते अब रोजाना होने लगी.. सूरज को ये भी पता चल गया कि वो 18 साल की है...लेकिन फिर भी उसके मन में नेहा के लिए कोई वैसा ख्याल न आया...धीरे धीरे नेहा दोस्तो मे साथ कम और सूरज के साथ ज्यादा टहलने लगी...

और दिन बीतते गई नेहा के साथ साम को बिताए हुए बस कुछ पल अब सूरज की सारी थकान दिन कर देती..वो अब सारा दिन बस साम होने का इंतजार में रहता... नेहा तो अब दिल दिमाग सब तरह से सूरज की हो चुकी थी...पर सूरज नेहा को बस एक दोस्त की तरह ही पसंद करता था...

 

Achin_Saha18

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सूरज अपनी ऑफिस में काम करने में व्यस्त अपनी कंप्यूटर स्क्रीन से एक पल पल के लिए भी नजरें नही हटा रहा था.. डेस्क पे पड़ा उसका फोन पिछले 5 मीन से बज रहा था.. आखिर में सूरज के सामने ही बैठे उसके मैनेजर ने तंग आले बोला..."सूरज अपना फोन साइलेंट करो या उठा लो परेशान कर दिया अब है आवाज ने..."

सूरज गड़बड़ाता हुआ फोन उठा लेता है और थोड़ा

गुस्सा करता हुआ बोला " मां आप को बोला था ना कि ऑफिस के समय कॉल मत किया करो बाद में बाद करता हू"

सामने से उसकी मां की रोती हुई आवाज आती है और मां के शब्द सुन सूरज सुन पड़ गया... उसकी आखों से अचानक आशु बहन लगे...वो फोन रख तुरत बाहर निकलने लगा...पीछे से मैनेजर उसे आवाज दे रहा था लेकिन सूरज को जैसे कुछ सुनाई ही न रहा हो वैसे वो ऑफिस से निकल गया...

सूरज ट्रेन में बैठे हुए गहरी सोच में चला गया...

कुछ साल पहले....

सूरज के बड़े भाई (चाचा के लड़के) – अरे छोटे ये क्या है...

सूरज के बड़े भाई रिषभ के हाथ में सूरज का ऑफर लेटर था...

सूरज – कुछ नहीं भईया बस एक कंपनी में इंटरव्यू हुआ था...

रिषभ – अरे तेरी जॉब लग गई...(पड़ के ) अरे क्या बात है छोटे मुंबई में और 15 LPA ... क्या बात है अभी सब को खुशखबरी देता हू...

सूरज – भईया रहने दो में नही जा रहा... वहा यही कुछ करने का सोच रहा हू...

रिषभ – अरे पागल है क्या इतना पड़ के यहां क्या करेगा..

सूरज की चुप्पी देख जैसे रिषभ सब समझ गया...दोनो भाई का रिश्ता ही ऐसा था की एक दूसरे की मन की बात समझ जाते थे... वो सूरज के पास एक उसके पास बैठ के उसे बोला....

रिसभ – अरे पागल तू यहां की कोई फिकर मत कर यहां में हु ना... छोटी मां और छोटे पापा की बिलकुल फिकर ना कर और वैसे अभी से इतना मत सोच अभी तू छोटा है कुछ साल आराम से अपनी लाइफ एंजॉय कर ले फिर तुझे जो सही लगे....

प्रेसेंट समय में.....

सूरज अपने गांव पहुंचा तब तक अंतिम संस्कार हो चुका था... सूरज को बड़ा अफसोस हो रहा था की वो एक आखरी बार भी उसके बड़े भाई से मिल न पाया... कास वो घर से इतना दूर न होता...

सूरज आंगन में ही गांव वालो के साथ बैठ गया और वहां उसे कुछ कुछ बाते पता चली लेकिन अभी तक वो कुछ ठीक से समझ पाने की हालत में नहीं था...रात हो गए...सब अपने अपने घर चले गई थे...

तभी परी (रिषभ की बेटी) सूरज घर में बुलाने आती है.. परी अपने चाचा से मिल उनके गले लग जाती है और सूरज के आखों से फिर से आसू बहने लगे... परी को गोद में उठा कर वो घर में आता है...अपनी मां के साथ बैठ सूरज भावुक हो उठा और मां की गोद में सर रख खुट खूट के रो पड़ा... छोटी सी परी को कुछ समझ नहीं आ रहा...

अगले दिन सुबह गांव वाले सूरज के घर कुछ खाने के लिए ले जाते है...जैसे तैसे सब को गांव वाले थोड़ा थोड़ा खाना खिला देते है...पर पारुल (सूरज की भाभी) ने कुछ नही खाया था...

सब के जाने के बाद सुमित्रा उसके पास गई कुछ खाना ले कर...सूरज भी अपनी मां के पीछे पीछे अपनी भाभी के कमरे में जाने लगा.... पारुल कमरे में सफेद सारी में एक कोने में बैठी थी...

(रिसभ के मा कुछ साल पहले ही चल बसी थी)

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पारुल सूरज से 4 साल बड़ी थी वो 28 की और सूरज 25 का होंगे.. दोनो के बीच बहुत गहरा और पवित्रा रिश्ता था... सूरज के लिए उसकी भाभी जैसे बड़ी बहन थी और पारुल तो सूरज को अपने बेटे जैसे प्यार करती...

हर वक्त हंसती खेलती चुलबुली भाभी को इसे देख सूरज वहा से जाने ही वाला था की उसकी मां बोली.."बेटा अब तू ही खिला अपनी भाभी को मेरी तो एक नही सुन रही पगली खाएंगी नही तो कैसे चलेगा...अपना नही तो परी के बारे में तो सोच उसे तो कुछ समझ भी नही रहा...और सुमित्रा के आखों से आसू निकल गई" और वो बाहर चली गई...

अब कमरे बस सूरज और उसकी भाभी थे...सूरज अपनी भाभी के पास जाता है और आगे क्या करे उसे कुछ सूझ नही रहा था की पारुल उठ खड़ी हुई और सूरज को कस के आलिंगन करते हुए रोने लगी...सूरज की हिम्मत न हुए की अपनी भाभी को वो अपनी बाहों me भर उन्हे सहला के शांत करे... वो बस किसी मूर्ति के जैसे खड़ा रहा... पारुल ने अपनी सारा दुख सूरज को फिर से कह सुनाया और सूरज भी रोने लगा और भावुक होके अपनी भाभी को अपनी बाहों में भर सहलाने लगा...दोनो के मन में कोई खोट न थी... दोनो अपना दुख साझा करने लगे... सूरज ने भाभी को बेड पे बैठा के खाने खिलाने की नाकाम कोशिश की... सूरज के साथ पारुल रिषभ के बाद सब से करीब थी...इन कुछ सालो में पारुल सूरज से एक पवित्र रिश्ते से जुड़ गई थी...भाभी को तंग करना मजाक मस्ती करना सूरज को बड़ा पसंद था और पारुल भी सूरज के साथ खुल ke मस्ती करती....पर न तो कभी सूरज के दिल दिमाग एम कोई गलत ख्याल आया ना तो पारुल के....

अपनी भाभी की न खाने की जिद से परेशान हो उठा...तभी वो बाहर गया और परी को ले आया...और परी के हाथो से खाना दिया तब जैसे तैसे पारुल को न चाहते हुए भी खाना पड़ा...

इसे ही कुछ दिन हफ्ते निकल गई और सारी विधि पूरी हो गई... पारुल भाभी अभितक गुमसुम रहती थी पर परी की वजह से थोड़ी चहर पहर रहती...

एक साम गांव के कुछ बड़े बुजुर्क और पारुल के माता पिता घर आई और सूरज के माता पिता और चाचा से बात की और बाद में सूरज को बुलाया गया...

सूरज के पिताजी बोले – देखिए ये ही मेरा बेटा सूरज अभी मुंबई में काम करता है.. अगर आप को सही लगे तो.. में पारुल बेटी को अपने घर की बहु बनाना चाहूगा...(पारुल के माता पिता की और देख)

सूरज का दिमाग घूम गया...जिस भाभी ने इतने साल उसे राखी बांधी थी उस के साथ शादी और वो भी अपन बड़े भाई की विधवा से...सूरज के हाथ पैर सुन पड़ गई...न वो अपने पिता को इसे सब के सामने टोक सकता था न उसके दिमाग में कुछ सूझ रहा था...

गांव वाले – देखिए आप की बेटी अभी जवान है पर उसकी बेटी को कोई दूसरा घर यहां जैसा प्यार नही सब का परी के साथ रिश्ता जुड़ गया है और रिषभ के पिताजी के पास तो बस उनकी पोती ही रही है..

पारुल के पिताजी – देखिए हमारे लिए तो ये खुशी की बात है की उसी घर में हमारी बेटी रहे पर क्या आप का लड़का जोकि पारुल से उम्र में छोटा है और बड़े सहर मै काम करता है वो...क्या वो एक गांव की विधवा लड़की से शादी करेगा...

सूरज के पिताजी – देखिए अब तो उसे यही रहना है...और रही बात पसंद न पसंद की तो सूरज अपने भाई और परी से बहोत प्यार करता है उनके लिए शादी तो बहुत छोटी बात है..और आप तो सब जानते ही हो ऐसा कोई पहली बार तो हो नहीं रहा गांव में... आप बिलकुल निश्चित रहिए...और बस हा बोलिए पारुल बेटियां हमारे घर की बहू थी और रहेगी....

पारुल के पिताजी और गांव वाले– सूरज बेटा आप को कोई एतराज़ तो नही???

सूरज बिचारा न वो हा बोलना चाहता था ना वो मना कर सकता था... पिताजी से पूछना तो संभव ही न था..वो अपनी मां की ओर किसी आश से दिखाता जो उसे इसारे में कह रही थी की हा बोल दे...और बिचारे को आखिर बोलना ही पड़ा..पर वो आखिरी कोसिस कर लेता है...

सूरज – जी मुझे कोई दिक्कत नही पर भाभी की का फैसला आखरी होगा.. अगर उनकी हा हो तो मुझे भी कोई दिक्कत नही....

सब चले जाते है... सूरज बस इस आश में था की उसकी भाभी कभी राजी नहीं होगी और शादी नही हो पाएगी...

लेकिन हुआ जो सूरज ने सोचा नही था.. पारुल भी अपनी मजबूरी में हा कर देती है...और वैसे भी उसकी हा या ना से ये शादी नही रुकने वाली थी... इस लिए पारुल को भी न चाहते हुए भी हा करनी पड़ी....पारुल का भी दिल दिमाग काम नही कर रहा था...

दोनो की ऐसी हालत में ही कुछ घर के बड़ो की मौजूदगी में शादी करवा दी गई...

और अब पारुल सूरज की भाभी से जीवनसंगिनी बन गई... दोनो की सुहागरात की रात भी आ गई और अभी तक दोनो ने एक दूसरे से बात तक नहीं की थी न दोनो मे से किसी ने हम्मत हो रही थी..

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पारुल कमरे में दुल्हन बनी बैठी थी...पारुल किसी अप्सरा सी खूबसूरत लग रही थी...
Nice start
 
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जैसे की आप ने देखा सूरज की मां को कल रात भरपूर यौन सुख का आनंद मिला...और वही अब मुंबई में ट्रेन से पारुल और सूरज पहुंच चुके थे...जैसे की आप ने पड़ा सूरज अपनी पड़ोस वाली आंटी को जूठ बोल दिया की पारुल उसकी भाभी है और वो उसे घुमाने लाया है...इस बात से पारुल का दिल बैठ गया था की सूरज उसे बस उसकी भाभी मान रहा था...वही दूसरी और अब धीरे धीरे पारुल ने ये स्वीकार कर लिया था की जैसे भी हालत में ये शादी हुए हो लेकिन ये वो शादी की कसमें.... उसके गले में पहना हुआ सूरज के नाम का मंगलसूत्र और मांग में सिन्दूर उसे न चाहते हुए भी वो अब सूरज की अर्द्धांगिनी थी... और पारुल अब सूरज को अपने पति न दिल से लेकिन दिमाग से तो मान ही चुकी थी....वही उसे बहोत बुरा भी लगा था लेकिन जता नही रही थी की उसे नेहा से मन ही मन न चाहते हुए भी एक चीड़ चढ़ रही थी...वही पारुल का दिल इतना साफ था की वो ये भी चाहती थी की चाहे उसे कुछ भी करना पड़े लेकिन खुद की खुसी के लिए वो सूरज के पहले प्यार को उस से दूर नही होने देगी...वो मन ही मन ये भी निश्चय कर बैठी थी की घर जाते ही अपन सास ससुर से बात करेगी इस बारे में....

सूरज का प्लान था की लंच वो नेहा के पाप के साथ करे और उनकी बात भी हो... 25 साल का होते हुए भी सूरज जैसे किसी 16 साल के बच्चे जैसा मालूम होता था जब बात जिम्मेदारी की आती थी... नहीं तो कोई मर्द कैसे अपनी दो रात पुरानी शादी को भूल एक नई रिश्ते की बात करने उतावला हो रहा था...क्या सुराज के मन में एक पल के लिए भी अपने भाई की विधवा और अब उसकी पत्नी के दुख का अंदाजा न लगा...क्या उसे छोटी सी परी का भी एक पल के लिए खयाल नहीं आया जो उसे चाचू चाचू करती उसकी गोद में बैठ जाती है... कया सूरज को अपने परिवार के मान सम्मान का कोई विचार नहीं था....

सायद सूरज अपने प्यार में पूरी तरह से अंधा हो गया था...होता भी क्यों नहीं जब उसे इस मुबई जैसे सहारे में किसी का सहारा नहीं मिल रहा था तब न जाने कहा से नेहा उसके जीवन में आई... चुलबुली नटखट बदमाश नेहा ने जैसे साधारण और छोटे से गांव के लड़के पर ऐसा जादू किया की सुरज चारो खानों चिढ़ हो गया... अपनी उम्र से 6 साल छोटी नेहा से सूरज पागलों जैसे प्यार करने लगा...(नेहा 19 साल) नेहा भी एक साफ दिल की लड़की थी तभी तो एक अमीर बाप की बेटी होते हुए भी वो एक आम लड़के के प्यार में पड़ गई थी... सूरज के प्यार ने नेहा को काफी बदल दिया था... अब वो पहले वाली नेहा न थी जिसे अपने पापा की दौलत की अकड़ थी... धीरे धीरे नेहा पे सूरज का रंग चढ़ रहा गया था.... सूरज के नजरिए से देखें थे नेहा तब केवल 18 साल की थी और अपने पतले शरीर और छोटे कद काठी के कारण वो बस 13 14 साल की बच्ची लगती थी...गोरा रंग... गुलाबी होठ.. घने लम्बे बाल... उसे नेहा काफी क्यूट लगती वो उसे इसे ट्रीट जैसे वो किसी छोटी बच्ची हो...

*.....एक साल पहले...जब नेहा स्कूल में पड़ती थी.......*

इस दौरान सूरज नया नया मुंबई में नौकरी करने आया था... पहली ही जॉब होने से उसे इस सहर का कोई अनुभव न था दोस्त थे पर सब इतने दूर रहते थे की वो एक दम अकेला हो चुका था...वो एक अच्छे एरिया में रहा करते था शेयरिंग रूम में...वही उसके पास की एक बिल्डिंग में नेहा रहती थी...

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जब से सुराज यहां आया था ऑफिस से आते हुए वो नेहा को स्कूल जाते और जब वो खाना खाने बाहर जाया करता तब नेहा वही खेल रही होती...वो इतना ध्यान नहीं देता था पर फिर भी उसकी नजर न चाहते हुए भी नेहा की खिलखिलाहट भरी आवाज उसके कानो तक तो जाति...और एक दो पल किए सूरज नेहा की और देख मन ही मन खुश होता...

खाने के बाद सूरज रोज वही आस पास चक्कर लगाता.. वहा चलन के लिए रोड के एक तरफ काफी जगा थी कहा पेड़ पोथे भी लगे थे...कुछ लड़के लड़कियां भी वहा बैठ के प्यार की बाते करते... यहां के लोग गांव जैसे नही थे सब खुले विचार रखते थे... लड़किया वेस्टर्न कल्चर के कपड़े ही पहना करती थी नेहा भी खेलते हुए बस एक छोटी सी शॉर्ट्स और उपर बस बिना स्लीव वाली टी शर्ट या स्पोर्ट्स ब्रा पहन के आती...उसकी आधे से अधिक बॉडी साफ खुली होती... ये कोई बड़ी बात नहीं थी यहां...और ये सूरज भी अच्छे से समझ चुका था अपने कॉलेज के दिनों से ही....

पता नही कैसे लेकिन नेहा भी अब सूरज की मौजूदगी महसूस कर रही थी...उसके अंदर हो रहे बदलाव उसे सूरज जैसे उस से बड़े लड़के की और अपने आप खीच रही थी...अब नेहा जब सूरज को अपने आस पास पाती वो शर्म से लाल हो जाती...अब दोनो की नजरे मिल जाती सूरज को नेहा अभी तक बस एक क्यूट बच्ची से अधिक नहीं लगती थी...लेकिन उसका दिल नेहा को देख बस खुस हो उठता...

वही नेहा की हालत कुछ और नेहा अपने अंदर हो रहे बदलाव से अभी अभी वाकिफ हुए थी...उसे बस अभी यौन उत्तेजना सुरु हुए थी...उसकी योनि पे अब हल्के हल्के बाल आ चुके थे... नेहा को सूरज अच्छा लगने लगा था...लेकिन ये ये सिर्फ उसका यौन उत्तेजना का परिणाम था या कहे तो पहले पहले शारीरिक आकर्षण का नतीजा...

एक दिन आया जब सूरज तहल रहा था और नेहा के साथ उसके कोई दोस्त नहीं थे... नेहा एक और से आ रही थी और सूरज दूसरी और से... संजोग से आस पास कोई नही था....नेहा का दिल जोरो से धड़क रहा था...उसके दिमाग में बहोत कुछ चल रहा था पर उसे आज अपने क्रश से बात करनी ही थी...वो ये मोका जाने नही देना चाहती थी...नेहा वही रुक गई... जैसे जैसे सूरज पास आ रहा था नेहा की दिल की धड़कन बढ़ रही थी...नेहा की दो छोटी छोटी चूचियां उपर नीचे होने लगी...जब सूरज उसके करीब से गुजरा सूरज ने उसे एक स्माइल दी...सूरज भी थोड़ा असहज हुआ अपने आगे एक लड़की को खड़ा हुआ ब्लश करते देख....

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लेकिन नेहा उसे अभी तक कोई 13 14 साल की बच्ची ही मालूम होती थी...

तभी नेहा बड़ी हिम्मत कर अपनी सहद से मीठी आवाज में बोली..और सूरज की और चल के जानें लगी...

नेहा – (नेहा थी एक दम नटखट बदमाश लड़की लेकिन अपने से बड़े लड़के को देख सरामा भी रही थी) में नेहा...क्या आप मेरी मदद करोगे....

सूरज के लिए बेशक वो एक बच्ची ही थी पर उसके सामने इतनी खुसबूरत लड़की थी जिसे देख सूरज भी थोड़ा हड़बड़ी में बोला " हा बोला ना...आप यही रहते होना"

दोनो के बिच काफी गरमाहट बड़ गई थी दोनों की दिल की धड़कन बढ़ चुकी थी...लेकिन कुछ देर में दोनों सहज हो गई... दोनो को लगा कि एक जगा इस खड़ा रहना बड़ा अजीब है तो दोनो साथ में चकते हुए बाते करने लगे...

सूरज – अरे आप कुछ मदद करने के लिए पूछ रही थी...मेरे तो दिमाग से निकल गया...

नेहा एक दम से डर गए की अब क्या बोले लेकिन कुछ सोच सच ही बोल दिया.. हा कुछ हद तक...

नेहा – वो...वो में अकेली थी तो सोचा की आप आज बात की जाय... वैसे तो हम रोज मिलते ही बस बात नही हुए कभी...(नेहा शर्म से लाल हो गई)

सूरज – चलो अच्छा हुआ वैसे मुझे भी आज एक छोटी सी प्यारी दोस्त मिल गई... तुम सब को देख मुझे भी मेरे बचपन के दिन याद आ जाते है...खास कर के जब तुम और तुम्हारी दोस्त साइकिल लेके घुमती हो बहोत प्यारी लगती हो....(और सूरज ने नेहा के सर ले हाथ रख उसे सहला दिया..)

नेहा को सूरज का पहला स्पर्श भा गया पर उसे अच्छा नही लगा कि सूरज उसे एक छोटी बच्ची समझ रहा था....

नेहा – (थोड़ा मुंह फुला के जो उसे देख साफ पता चल रहा था की वो नजर थी) (उसका बड़बोलापन अब बाहर आने को तैयार था) (वो अपने जूते जमीन पे जोर से मार के नाराजगी दिखाते हुए बोली) प्लीज में कोई छोटी बच्ची नहीं...और पहले तो में आप से चोटी हु तो मुझे आप आप मत बोलो...(गुस्सा हो के) समझे....

सूरज मन ही मन सोच रहा था ये कैसी लड़की ही एक घंटा नही हुआ बात करे और ये इसे हुकुम दे रही है जैसे मेरी बीबी हो....और सूरज थोड़ा हस दिया...(नेहा और गुस्सा हो गई)

सूरज – अच्छा तो आप बड़ी हो गई हो...लेकिन मुझे तो नही लगता....(और वो इस बार नेहा के गाल को खींच दिया)

सूरज में इतनी हिम्मत बस इस बात से आ रही क्यू कि एक तो वो नेहा को बस एक छोटी बच्ची समझ रहा था और दूसरी वजह थी नेहा खुद...जो इतना हक जता रही थी..और दोनो एक दुसरे को काफी दिन से बिना बात किए ही जानते थे...एक दुसरे को बस रोज देख के...

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नेहा का गोरा गाल एक दम से उस जगा से जहा सूरज ने गाल खींचा था पूरा लाल रंग का हो उठा...अब नेहा सूरज को और प्यारी लग रही थी....

नेहा नाराज होके वहा से चली गई...लेकिन ये मुलाकाते अब रोजाना होने लगी.. सूरज को ये भी पता चल गया कि वो 18 साल की है...लेकिन फिर भी उसके मन में नेहा के लिए कोई वैसा ख्याल न आया...धीरे धीरे नेहा दोस्तो मे साथ कम और सूरज के साथ ज्यादा टहलने लगी...

और दिन बीतते गई नेहा के साथ साम को बिताए हुए बस कुछ पल अब सूरज की सारी थकान दिन कर देती..वो अब सारा दिन बस साम होने का इंतजार में रहता... नेहा तो अब दिल दिमाग सब तरह से सूरज की हो चुकी थी...पर सूरज नेहा को बस एक दोस्त की तरह ही पसंद करता था...
Bahut hi mast update bhai aise hi aage badate rahi story agle update ki pratiksha hai 👍👍
 
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