Raz-s9
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यह कहानी मैंने दो बार पढ़ी है. मैंने अपनी माँ को इतने सुंदर तरीके से खुश करने की कोशिश के बारे में कोई अन्य कहानी नहीं पढ़ी है।
JabardastUpdate 19
शादी की तैयारी लगभग हो चुकी थी और घर में आए हुए मेहमानों को आसपास के होटल और रिश्तेदारों के घर ठहरने की व्यवस्था भी करवा दी गई थी.. हर तरफ हंसी खुशी का माहौल था, हर कोई आने वाले पाल को लेकर उत्सुक था और भविष्य की संभावनाओं से रोमांचित था..
रचना और अनुराधा दोनों ही सुमित्रा कि मदद करवाने के लिए इधर से उधर घूम रही थी और बढ़ चढ़ कर काम मे हाथ बटवा रही थी.. अनुराधा तो आज इस तरह काम कर रही थी जैसे उसीने सारा काम अपने सर पर लेकर करने का ठेका ले रखा हो और रचना गोद मे अपने बच्चे को लेकर गर्भवती होने के बाद भी बहुत चाव से काम कर रही थी.. ये बच्चा भी सूरज और रचना के खिलाये गए गुल का ही परिणाम था.. सूरज ने नज़मा रचना और पिंकी तीनो को पेट से कर डाला था और तीनो ही इस वक़्त पेट से थी..
सूरज जब से घर आया था तब से सुमित्रा ने खुदको सूरज से दूर ही रखा था वो कभी सूरज को अकेले मिलने का मौका नहीं दे रही थी क्युकी उसे पता था अगर सूरज ने उसे अकेले मे ढूंढ़ लिया था तो वो कहीं उसके साथ हद ना पारकर दे.. सुमित्रा कि जो भी फंतासी हो मगर सूरज उसका बेटा और माँ होने के नाते सुमित्रा मे थोड़ी सी मर्यादा अब भी थी जिसके चलते वो सूरज से दूर भाग रही थी..
सुमित्रा.. ओ सुमित्रा..
हाँ दीदी.. मैं यहाँ बाहर हूँ..
अनुराधा ने सुमित्रा को पुकारा तो सुमित्रा ने जवाब देते हुए कहा..
अरे आँगन मे बिछाने के लिए चदार मंगवाई थी ना कहाँ गई?
दीदी वो विनोद छत पर ले गया था उसे लगा छत पर बिचाने के लिए मांगवाई हैं..
अच्छा.. तु जा और चदारों को निचे ले आ.. शाम को आस पास कि औरते आएँगी तो यही बैठ जाएंगी..
ठीक हैं दीदी..
चार दिन पहले सूरज ने अपने होने वाली भाभी गरिमा को चोदा था और तब से ही सूरज को गरिमा कि कच्ची चुत से मिले सुख और गरिमा की मीठी बाते याद आ रही थी.. वो छत के पीछे वाले कमरे मे था जहाँ वो सोच रहा था कि शादी के बाद क्या वो गरिमा से दूर रह पायेगा? सूरज ये सब सोच ही रहा था कि उसे पायल कि छन छन सुनाई दी तो ये यकीन हो गया कि सुमित्रा छत पर आ रही हैं.. वो कब से इसी इंतजार मे था कि कब उसे सुमित्रा के साथ अकेले मे समय मिले मगर सुमित्रा ना अकेले मे उसी मिली थी ना ही व्हाट्सप्प पर भेजे उसके अनगिनत मसेज का उसने जवाब दिया था..
दोपहर का समय था निचे बड़ी चहल पहल थी शोर गुल था मगर छत पर धुप होने के कारण कोई आना नहीं चाहता था ऐसे मे सूरज को मालूम था कि वो सुमित्रा से बात कर सकता हैं..
सुमित्रा ने जैसे ही कमरे के अंदर कदम रखा सूरज ने पीछे से दरवाजा लगा दिया और सुमित्रा को अपनी बाहो मे भरते हुए दिवार से सटा कर सुमित्रा के होंठो को चूमने लगा.. सुमित्रा के होंठो पर लगी लाली पूरी सूरज चाट चूका था और सुमित्रा को समझ ही नहीं आया कि उसके साथ ये सब क्या हुआ? ने कुछ पलो के बाद अपने होंठो को सूरज के होंठो के जाल से आजाद करवा लिया और गुस्से से बोली..
छोड़ मुझे वरना तुझे जान से मार दूंगी आज..
सूरज कानो पर जैसे जु तक भी नहीं रंगी थी उसने सुमित्रा कि बात को नज़र अंदाज़ करते हुए फिर से एक बार अपनी माँ सुमित्रा के होंठो पर धाबा बोल दिया और सुमित्रा के होंठो के दांतो से खींचकर चूमते हुए अपनी जीभ सुमित्रा के मुँह मे डाल कर उसकी जीभ को छेड़ते हुए चूमने लगा..
सुमित्रा ने फिर से अपने होंठो को आजाद करवाने कि कोशिश कि मगर इस बार उसे तब तक सफलता नहीं मिली जब तक सूरज ने अपने आप अपनी माँ के होंठो को अपने होंठो से आजाद नहीं कर दिया और उसकी गर्दन चूमना शुरुआत नहीं कर दिया..
सूरज छोड़ मुझे वरना अच्छा नहीं होगा.. सुमित्रा ने दबी हुई आवाज मे कहा तो सूरज ने अपनी माँ की एक चूची को अपने हाथ मे पकड़कर मसलते हुए जवाब दिया.. क्या अच्छा नहीं होगा? बोलो? जब से वापस आया हूं तब से मुझसे दूर भाग रही हो आप.. कहा ना प्यार करता हूं आपसे? मैं जानता हूँ पापा अब किसी काम के नहीं हैं लेकिन मैं तो आपकी हार जरुरत पूरी कर सकता हूं ना? फिर आप अब शरीफी का नाटक क्यूँ कर रही हो.. मैं जानता हूँ आप भी मुझे चाहती हो पर फिर ये नाटक जरुरी है?
सुमित्रा ने दबी हुई आवाज मे अह्ह्ह भरते हुए सूरज के हाथ को अपनी चूची पर से हटाना चाहा मगर नाकाम रही और सूरज को देखकर बोली..
सूरज छोड़ मुझे.. माँ हूं मैं तेरी.. कुछ तो शर्म कर.. परसो शादी हैं तेरे भाई की, इतने मेहमान हैं घर मे कोई भी आ सकता हैं यहाँ.. छोड़.. वरना तेरे पापा से बोल दूंगी तेरे बारे मे..
सूरज ने हाथ चूची से हटाकर साडी के अंदर डाल दिया और मुट्ठी मे सुमित्रा की चुत को पकड़ लिया और बोला.. जो कहना हैं कह देना.. मुझे किसी का डर नहीं हैं.. वैसे भी जो औरत अपने बेटे के साथ sex कहानियाँ पढ़ती हो वो क्या ही किसी कुछ बताएगी..
सुमित्रा की नज़र शर्म से निचे थी उसके साथ जो हो रहा था उसे उसका पहले से अंदाजा था मगर अब वो शर्म से पानी पानी थी.. उसने नज़र चुराते हुए कहा..
देख सूरज.. तुझे मेरी कसम मुझे छोड़ दे.. कोई आ गया तो अनर्थ हो जाएगा..
सूरज ने बिच की ऊँगली चुत की दरार पर रगढ़ते हुए कहा.. ठीक हैं छोड़ दूंगा.. पर पहले मुझे मेरे ई लव यू का जवाब चाहिए.. ये कहते हुए उसने ऊँगली चुत मे डाल दी..
सुमित्रा कामइच्छा रोमांच और शर्म के मारे सूरज का विरोध ना कर पाई और दोनों हाथ से उसका हाथ पकड़ कर बोली.. अह्ह्ह.. सूरज निकाल बाहर..
पहले मुझे जवाब चाहिए..
सुमित्रा ने आँख बंद करके सूरज से कहा.. लव यू.. बस अब निकाल अपना हाथ बाहर..
सूरज ने चुत को जोर से मसलते हुए हाथ बाहर निकाल लिया जिससे सुमित्रा की चीख निकल गई और सूरज सुमित्रा को बिलकुल टाइट पकड़ के चुत मे घुसाईं ऊँगली सुमित्रा के सामने ही अपने मुँह मे डालकर चूसते हुए बोला.. उम्म्म.. बहुत स्वादिस्ट हैं.. अगर इज़ाज़त हो तो निचे मुँह लगा लू?
सुमित्रा शर्म से पानी पानी थी उस ने बालो से पिन निकाल कर सूरज के सीने मे चुभो दी जिससे सूरज कि पकड़ ढीली पड़गई और सुमित्रा अपने आप को सूरज की क़ैद से आजाद करवाकर कमरे मे रखी उन चादर को उठाते हुए तेज़ी से कमरे से बाहर निकल गई..
सुमित्रा जाते जाते सूरज के लंड को खड़ा करगई थी और सूरज का मन अब अपने लंड को अपने हाथ से ठंडा करने के मूंड मे बिलकुल नहीं था उसने एक बार रचना को बुला कर लंड को ठंडा करने की सोची मगर फिर रचना के गर्भवती होने की बात याद आने पर ये ख्याल छोड़ दिया..
सूरज ने जैसे तैसे अपने लंड पर काबू रखा और वापस मौका देखने लगा जब उसे सुमित्रा अकेले मे मिल सकती थी Uसने अपनी माँ पर चढ़ाई करने का पूरा मन बना लिया था मगर सुमित्रा रोमांच भय और काम के मिश्रित भाव से भरी हुई सूरज से दूर भाग रही थी और शादी के माहौल मे किसी ना किसी के साथ कुछ ना कुछ बात या काज मे लगी हुई थी..
दिन के बाद जब शाम को खाना होने के बाद रात आई और सबके सोने का समय हुआ तो शादी के घर मे बहुत से लोगो होने के कारण सबको यहाँ वहाँ सोना पड़ रहा था कुछ लोगों को होटल तो कुछ को आस पास के रिस्तेदार के यहाँ ठहरा दिया गया था.. सूरज के कमरे मे भी यही हाल था वहाँ आजु बाजू गद्दे लगा कर रचना अनुराधा सुमित्रा और एक बूढ़ी काकी जो गाँव से आई थी सोने के लिए आ गई थी और अपने अपने गद्दे पर लेट गई थी.. रात मे लाइट्स बंद थी कमरे मे घना अंधेरा था सूरज जब कमरे मे आया तो उसने टोर्च की रोशनी मे सबको सोते देखा और सुमित्रा के पास कोने मे खाली पड़े गद्दे पर जाकर लेट गया.. गर्मी मे पंखे और कूलर की तेज़ आवाज ने छोटे मोटे शोर को दबा दिया था रात के करीब 2 बजे का वक़्त हो गया था और सबको लगभग नींद आ चुकी थी सब अपनी चादर को ओढ़े नींद के आगोश मे मधुर स्वप्न के दर्पण को देख रहे थे..
सूरज से रहा ना गया और वो अँधेरे मे धीरे धीरे बगल के गद्दे पर सो रही सुमित्रा के करीब आने लगा और निचे सरककर सुमित्रा की चादर के अंदर घुसकर उसकी साडी और पेटीकोट को हल्का सा ऊपर करके अंदर घुसने लगा.. सूरज चादर मे साडी और पेटीकोट ऊपर करके सुमित्रा की जांघ तक आया था की सुमित्रा की नींद हलकी होने लगी और सूरज के छूने से उसकी नींद टूटने लगी..
सूरज ने सुमित्रा की चड्डी उतारने की कोशिश की मादर वो कामयाब ना रहा.. उसने पहले चड्डी के ऊपर से चुत पर मुँह लगा कर अपनी माँ की चुत की खुशबु ली और नशे की तरह नाक मे खींचते हुए मदहोश होने लगा उसने अनगिनत चुम्मे चुत पर कर डाले और फिर चड्डी को ऊँगली से सरका कर सुमित्रा की चुत पर होंठ रख दिये और जैसे ही चाटना शुरु किया सुमित्रा की नींद खुल गई और उसने ये सामने मे ज़रा भी देर नहीं की की उसके साथ क्या हो रहा हैं और कौन कर रहा हैं? जागने के साथ ही उसने मुँह अह्ह्ह.. निकल गई थी जो थोड़ी तेज़ थी जिसकी वजह से कमरे मे साथ सो रही अनुराधा की भी आँख खुल गई और उसने सुमित्रा से अँधेरे मे ही पूछा?
क्या हुआ सुमित्रा?
सुमित्रा ने अपने हाथ से सूरज के सर को पकड़कर हटाने की कोशिश करते हुए जवाब दिया..
कुछ नहीं दीदी.. एक मच्छर ने काट लिया था.. आप सो जाओ..
अनुराधा ने वापस कोई जवाब नहीं दिया और सो गई.. बाकी रचना और सुमित्रा के बगल मे सो रही बूढ़ी काकी की नींद तो जस की तस थी..
सूरज और सुमित्रा की आपसी खींचातानी चल रही थी सुमित्रा को सबका दर था और सूरज आज हर कीमत पर सुमित्रा के यौवन का रस पी लेना चाहता था..
सूरज ने थोड़ा जोर लगा कर चड्डी खींचते हुए सुमित्रा की चड्डी उतार दी और फट से अपना मुँह सुमित्रा की चुत पर लगा दिया और कुत्ते की तरह उसे चाटने लगा..
सुमित्रा ने पहले विरोध और बाद मे बेबस और लाचार बनकर सूरज की चुत चटाइ का आनद भोगने लगी.. सुमित्रा का खुद पर नियंत्रण नहीं था वो मोन थी और सब उसके बस से बाहर था उसने कब पेशाब करना शुरु कर दिया था उसे पता भी नहीं लगा था सूरज ने अपनी माँ का मूत अमृत समझ के पी लिया और और अब सुमित्रा के झड़ने पर उसका मादक रस भी पी रहा था..
सुमित्रा शर्म के मारे मुँह छीपा कर लेटी हुई थी और अब मन मे मन चुकी थी की सूरज आज उसे चोदे बिना नहीं मानेगा और उसके लिए सुमित्रा ने खुदको मानसिक और शारीरिक रूप से त्यार नहीं कर पा रही थी सुमित्रा बस डर था वो कमरे मे सो रहे बाकी लोगों के जागने का..
सूरज सुमित्रा की चुत गीली करके अब धीरे धीरे ऊपर आ गया था.. सूरज ने धीरे से सुमित्रा के कान मे कहा..
छत पर कोई नहीं हैं.. मैं जा रहा हूँ जल्दी आ जाओ.. वरना यहां किसीने हमें पकड़ लिया तो आप अच्छे से जानती हो क्या होगा..
सूरज धीरे से उठा और हाथ मे सुमित्रा की चड्डी लेकर अपना मुँह पोछते हुए ऊपर छत पर चला गया.. सुमित्रा कुछ देर तक चुपचाप लेटी रही और सूरज की बातो को सोचती रही.. वो हमेशा से कुछ ऐसा ही चाहती थी और सपनो मे ऐसा ही सोचा करती जो उसे उत्तेजित करता था आज हक़ीक़त मे भी उसके साथ कुछ ऐसा ही हो रहा था जो उसे उतजना से कहीं ज्यादा और अलग फीलिंग्स दे रहा था..
सुमित्रा के मन चल रहा था की अगर किसीने उसे और सूरज को कुछ करते पकड़ लिया तो क्या होगा? शादी का घर इतने लोग.. सुमित्रा धीरे धीरे यही सब सोचते हुए खड़ी हुई और उसने तय किया कि वो सूरज को रोक नहीं सकेगी तो कुछ दिनों के लिए समझा लेगी..
सुमित्रा दबे पाँव से कमरे से बाहर निकली और छत कि तरफ मूड गई.. धीरे धीरे वो ऊपर सूरज के कहे मुताबिक छत पर बने कमरे मे जहाँ सारा फालतू सामान रखा था आ गई..
सूरज ने जैसे ही सुमित्रा को देखा उसके होंठो पर मुस्कान आ गई सुमित्रा सूरज से नज़र चुरा रही थी और सूरज समझ चूका था कि पहले उसे सुमित्रा कि शर्म खोलनी होंगी वरना चुदाई का पूरा मज़ा वो नहीं ले पायेगा..
सुमित्रा ने ज़मीन कि तरफ देखते हुए कहा.. सूरज..
सुमित्रा ने हनी के बदले सूरज कहकर बुलाया तो सूरज समझ गया कि क्या माज़रा हैं.. वो सुमित्रा के करीब आया और प्यार से बोला..
जी.. बोलो?
कहते हुए उसने सुमित्रा के चेहरे को दोनों हाथ से पकड़ कर ऊपर उठाया और अपनी माँ कि आँखों मे आँखें डालकर देखते हुए कहा..
शर्म आ रही हैं? आनी भी चाहिए? अब एक माँ अपने बेटे से प्यार करेगी तो शर्म आना लाज़मी हैं.. वैसे मुझे एक बार निचे जाना पड़ेगा.. तक तक आप ये लो.. एक सुट्टा मार लो.. शर्म और झिझक दोनों काम हो जायेगी..
सूरज ने सिगरेट का पैकेट और लाइटर देते हुए कहा और निचे चला गया.. सुमित्रा कुछ बोल हो नहीं पाई थी मगर सूरज के जाने के बाद उसने बिना देर किये एक सिगरेट अपने होंठो पर लगा कर लाइटर से जला लीं और दो - तीन लम्बे लम्बे कश लेते हुए आगे क्या होने वाला हैं वो सोचने लगी मगर उसे कुछ सूझ ही नहीं रहा था..
सूरज निचे अपने जेब से कंडोम लेने आया था और साथ मे रसोई से पानी कि बोतल भी साथ लेकर वापस छत पर आ गया था.. जब उसने कमरे मे कदम रखा उसने देखा कि सुमित्रा सिगरेट के कश लेती हुई दिवार का सहारा लेकर खड़ी थी और सुमित्राने सूरज के बिछाए जमीन पर बिछे गद्दे को समेट कर एक तरफ रख दिया था..
सूरज ने सुमित्रा से पूछा.. गद्दा क्यूँ समेट दिया?
सुमित्रा ने सिगरेट का लम्बा कश लेकर सिगरेट बुझाते हुए कहा.. मैं यहाँ तेरी ख्वाहिश पूरी करने नहीं आई हूँ सूरज.. मैं यहाँ बस तुझे ये बताने आई थी कि तूने अगर विनोद कि शादी होने तक मुझे छुआ भी तो मैं तुझसे कभी बात नहीं करुँगी..
पर मा मैं आपसे प्यार करता हूं.. और आप जानती मैं अब आपके बिना नहीं रह सकता.. चाहो तो आज़मा लो.. पापा से ज्यादा प्यार मे करता हूं आप से..
तेरा प्यार बस मेरे बदन से हैं सूरज.. अगर सच मे प्यार करता हैं तो वादा कर बिना मेरी मर्ज़ी के तु मुझे नहीं छुएगा..
मैं ऐसा वादा नहीं कर सकता.. मैं आपके बिना नहीं रह सकता.. समझी आप?
तु वादा नहीं कर सकता तो याद रख.. मैं भी तेरी माँ हूँ.. तूने मेरे साथ जबरदस्ती करने कि कोशिश भी कि तो वो हाल करुँगी जिंदगी भर याद रहेगा तुझे.. और मैं इस बार झूठ नहीं बोल रही हूं..
सुमित्रा ने ये कहकर सूरज को एक नज़र इस तरह देखा जैसे शेरनी घूरती हैं और फिर कमरे से बाहर निचे की तरफ चली गई..
सूरज ने सुमित्रा को ना रोका ना कुछ और आगे बोलना चाहा वो तो बस जेब मे रखे कंडोम को जेब से निकाल कर जोर से दार पर फेककर कमरे मे रखी एक पुरानी कुर्सी पर बैठ गया और सुमित्रा के बारे मे सोचने लगा..
सुमित्रा निचे आई तो देखा की सभी लाइट्स ऑन हैं और गली मे भी बहुत से लोगो सड़को पड़ हैं.. घर मे भी सभी की नींद खुल चुकी थी..
क्या हुआ दीदी? सुमित्रा ने अनुराधा से पूछा तो घर की बालकोनी मे खड़ी अनुराधा ने जवाब देते हुए कहा..
अरे तु कहा चली गई थी तब से.. पता नहीं इतनी रात गए कोनसा चोर घुस आया हैं सब मिलके उसे ही ढूंढ़ रहे हैं.. अभी पड़ोस के घर मे घुसा था तब से पता नहीं कहा गायब हो गया..
दीदी पुलिस को बुलाया?
और पुलिस और चोर मे क्या अंतर हैं? अगर पुलिस वाले पकड़भी लिए तो थाने लेजाकर छोड़ देंगे..
दीदी.. देखो.. वही तो नहीं हैं.. पकड़ लिया लगता हैं..
अच्छा हुआ.. अब पड़ने दो जूते कमीने को.. मार खाने के बाद अकल आएगी इसे.. चलो अब सो जाओ.. कल बहुत काम है.. कहते हुए अनुराधा अंदर आ गई और सुमित्रा के गद्दे पर लेट गई बदल मे बूढ़ी काकी जो अब भी नींद मे ही थी जैसे उसे किसी चीज से कोई मतलब ही ना हो.. रचना भी वापस आकर सुमित्रा के बदल मे सो गई थी.. अब अनुराधा और सुमित्रा की जगह बदल चुकी थी..
सूरज पिछले एक घंटे से कुछ ना कुछ सोचे जा रहा था कभी गरिमा तो कभी सुमित्रा उसके मन मे दोनों ने अपनी जगह बना लीं थी गरिमा की देह के सुख को वो भोग चूका था मगर सुमित्रा ने उसे आज अधूरे मे रोक दिया था..
सूरज उठाकर वापस निचे आया तो सब सो चुके थे और कमरे मे अंधेरा पसरा हुआ था सूरज टॉच की रौशनी मे वापस अपने गद्दे पर आ गया और सोने लगा मगर उसकी नींद उड चुकी थी..