Update 21
सुबह की पहली किरण ने खिड़की से घर मे प्रवेश किया और अंकुश के चहेरे पर आ गिरी.. अंकुश ने जैसे ही आँख खोली उसके सामने उसकी माँ गोमती हाथ मे चाय का कप लिए खड़ी थी जो अंकुश के जागने पर चाय का कप आगे करते हुए बोली..
उठ गया.. ले चाय पिले..
माँ.. आज आप इतनी सुबह क्यूँ उठ गई?
बस आज यूँही आँख जल्दी खुल गई.. नीतू भी तो बाहर हैं.. फिर तेरे लिए चाय बनाने का मन हुआ तो बना दी.. ले.. उठा जा..
अंकुश चाय लेते हुए.. नीतू तो शाम तक आ जायेगी.. वैसे भी जब से घर बदला हैं और दूकान शुरू की हैं वो ऐसे बिजी रहने लगी जैसे सारा जिम्मा उसने ही अपने सर पर ले लिया हैं..
हम्म्म.. अब तेरा जैसा भाई होगा तो और क्या करेगी बेचारी? कब से शादी के लिए कह रही हैं पर तु हैं की हर बार टाल देता हैं.. कर क्यूँ नहीं लेता शादी? मेरा भी मन हैं घर मे बच्चा खेले उसकी खिलकारी गूंजे..
अंकुश चाय की चुस्की लेकर मज़ाकिया अंदाज़ मे गोमती को छेड़ते हुए बोला.. माँ वैसे एक आदा बच्चा तो आप भी कर सकती हो.. अगर मदद चाहिए तो मैं त्यार हूं..
गोमती शरमाते हुए शरीफाना तरीके से बोली.. शर्म कर नालायक.. अपनी माँ से ऐसी बात करता हैं.. अपनी बहन को तो अपने बिस्तर मे ले गया अब माँ को भी लेना चाहता हैं.. दिन ब दिन बहुत बेशर्म होता जा रहा हैं.. समाज से तो डर..
अंकुश चाय का कप एक तरफ रखकर बिस्तर से खड़ा हो गया और गोमती से बोला.. अरे जब माँ बेटा राज़ी तो क्या करेगा समाजी? जब वो अधेड़ उम्र का डॉक्टर चल सकता हैं आपको.. तो मैं तो फिर भी गबरू जवान हूँ.. आपको तो पता ही होगा.. आपने तो बहुत बार नीतू की सिसकियाँ सुनी हैं.. आप चाय देने के बहाने वही करने आती थी..
गोमती के पास इसका उत्तर ना था वो अपना सा मुँह लेके शर्म से लाल होकर वहाँ से चली गई और रसोई मे जाकर किसी काम मे लग गई.. अंकुश ने जो कहा सच भी था और सच के आगे बहाना हार मान लेता हैं...
अंकुश बाथरूम चला गया और मूतने के बाद बाहर आ गया.. बालकनी से बाहर का नज़र मनमोहक था सुबह की ठंडी हवा बाहर सडक पर टहलते और दौरते लोग पक्षियों की आवाज सब इतना अच्छा था की काफी देर तक अंकुश वही खड़ा रहा..
आज इतवार का दिन नीतू अपने दोस्त के यहाँ से शाम तक आने वाली थी अंकुश का मन दूकान खोलने का ना था वो वैसे भी नीतू की मदद ही करता.. दूकान नीतू की मेहनत और आस पास के लोगों के साथ उसके मिलसार व्यवहार के कारण अच्छी चलने लगी थी.. अंकुश अंदर आ गया और अब उसके पास करने को ज्यादा कुछ ना था पहले वो सुबह होते ही ऑफिस जाने की हड़बड़ी मे रहता मगर अब वो सुकून से सोता और जब जो मन करता वही करता..
अंकुश मुँह धोकर कमरे से बाहर आ गया और रसोई मे काम करती गोमती के करीब आकर पीछे से गोमती के गले लगते हुए बोला.. सॉरी.. मुझे वो डॉक्टर वाली बात नहीं दोहरानी चाहिए थी..
गोमती एक पल के जैसे घबराहट से भर गई मगर फिर अंकुश की बात पर बोली.. जो किया हैं वो भुगतना तो पड़ेगा ही.. इसमें तेरा क्या दोष?
अंकुश ने अपने दोनों हाथ से गोमती की कमर अच्छे से पकड़ा और अपने करीब खींचते हुए अपने होंठ गोमती के कानो के पास लेजाकर बोला.. इसमें आपका भी क्या दोष? सबकी अपनी जरुरत होती हैं.. सब अपने तरह से उसे पूरा करते हैं.. समाज किसीको को मान्यता दे देता हैं किसीको को नहीं.. पर जरुरत पूरा करने का हक़ तो सबको हैं चाहे वो शादीशुदा हो या विधवा.. पापा के जाने के बाद आपने इतने साल बिना किसी सहारे के काट दिए हर बार अपनी जरुरत को दबाया.. मगर अब आपको वैसा करने की जरुरत नहीं हैं.. अंकुश ने अपनी बात कहकर अपने होंठ गोमती के कान से निचे लेजाकर उसके गर्दन पर रख दिए और गर्दन चुम लीं जिससे गोमती के बदन मे संसनाहट की लहर दौड़ गई और वो तुरंत बोली..
अक्कू नहीं.. मैं तेरे साथ ये सब.. नहीं.. कभी नहीं..
अंकुश की बाहो मे पिठ किये गोमती खड़ी हुई अब भी सही गलत के फेर मे पड़ी हुई थी और अंकुश अच्छे से ये बात जानता था..
अंकुश ने गोमती को अपनी बाहो से आजाद कर दिया और फ्रीज मे से पानी की बोतल निकालकर पीते हुए बोला.. जैसी आपकी मर्ज़ी.. आपका बेटा हूँ आपकी बात मानना मेरा काम हैं मगर आपको याद हैं.. जब मामा के घर जाते थे तब रास्ते मे जंगल पड़ता हैं..
गोमती अपने आप को समेट कर बोली.. हाँ.. तुझे जंगल देखने का कितना मन होता था बचपन मे.. एक बार नाना जी तुझे लेकर भी तो गए थे..
हाँ.. मेरे साथ आप भी तो थी... नाना जी ने बहुत करीब से जंगल दिखाया था और बहुत कुछ सीखलाया भी था.. मुझे आज भी उनकी बाते याद हैं..
गोमती ने उत्सुकता से पूछा.. कोनसी बाते?
याद हैं जब जंगल मे जानवर के एक जोड़े को साहवास करते देखकर मैंने नानाजी से उसके बार मे पूछा तो नानाजी ने क्या जवाब दिया था.. कि जंगल मे जानवर का समाज या सामाजिक रिस्ता नहीं होता.. जिसे जो अच्छा लगता हैं वो उसीके साथ रहता हैं और साहवास करता हैं.. तो फिर ये समाज और रिश्ते की बात इंसान पर लागू क्यूँ होती हैं माँ? मैं जानता हूँ आपको बहुत जरुरत हैं एक मर्द की.. फिर भी आप अपने आप को रोक रही हो.. वो भी इस समाज के डर से?
अक्कू.. मैंने अपना फैसला बता दिया हैं.. मैं तेरे साथ कोई भी गलत काम नहीं कर सकती.. मैं अपने मतलब के लिए तेरे और नीतू के बीच कोई दिवार नहीं खड़ी करना चाहती.. अच्छा होगा तु बार बार ये बात करना छोड़ दे..
ठीक हैं जैसी आपकी मर्ज़ी.. मैं तो बस आपकी ख़ुशी के लिए कह रहा था.. अंकुश वापस अपने कमरे मे आ गया और गोमती अपने दिल को संभाल कर रसोई की दिवार से पीठ सटा कर बैठ गई.. वो कुछ सोच रही थी और जो सोच रही उसके बारे मे बात तक ना करना चाहती थी.. बहुत देर तक वो अपने ख्यालों मे खोई रही तभी उसकी कान मे अंकुश की आवाज सुनाई दी..
माँ.. माँ..
अंकुश गोमती को बुला रहा था..
गोमती खड़ी हुई और अंकुश के कमरे मे आ गई.. देखा की आवाज बाथरूम से आ रही हैं उसने जवाब दिया.. क्या हुआ?
माँ वो तोलिया बाहर बेड पर ही रह गया प्लीज दे दो..
गोमती ने तोलिया उठाकर कमरे के कोने मे बने बाथरूम के दरवाजे पर दस्तक दी और बोली.. ले..
अंकुश ने दरवाजा खोलकर तोलिए की जगह गोमती का हाथ पकड़ कर गोमती को अंदर खींच लिया और दरवाजा अंदर से बंद कर लिया..
अंकुश बिना किसी कपडे के सिर्फ चड्डी मे था और गोमती इससे पहले की कुछ कह पाती या अंकुश का विरोध कर पाती अंकुश ने गोमती की छाती पर से साडी का पल्लू खींच कर हटा दिया और कमर मे दांया हाथ डालकर गोमती की कमर को कसकर पकड़ते हुए अपने सीने से चिपका लिया साथ ही गोमती को शवार के निचे ले गया जहाँ गोमती पानी मे भीग गई..
गोमती इससे पहले की बोल पाती अंकुश ने गोमती के होंठो को अपने होंठो की गिरफ्त मे ले लिया और ऐसे चूमने लगा जैसे गोमती उसकी माँ ना होकर कोई गर्लफ्रेंड हो.. गोमती ने अपने हाथ से अंकुश का विरोध करना चाहा मगर अंकुश गोमती का हाथ पकड़ कर बिना चुम्मा तोड़े अपनी चड्डी के अंदर डाल दिया जहाँ अंकुश के खड़े हुए लंड का स्पर्श पाकर गोमती के मन बदन मे उमंग और तरंग की लहर दौड़ गई..
अंकुश शावर के निचे गोमती के होंठो का रस पी रहा था और गोमती शर्म और असमंजस मे पड़ी हुई उसका विरोध कर पाने मे असमर्थ थी उसके मन की दशा की किसी विराह मे पड़ी मगनैनी के मन की दशा से अलग ना थी..
अंकुश चुम्बन को जितना गहरा बना सकता था उसने बनाया और बार बार गोमती के ऊपरी और निचले होंठ को चूमकर जीभ से अटखेली करते अपनी और गोमती के मुँह की लार को एकदूसरे के मुँह मे डालने लगा..
गोमती का मन अब जैसे अंकुश के बस मे था वो कुछ देर पहले जो बाते कर रही थी और अंकुश को अपनी असमर्थता के बारे मे बता रही थी वो बात अब कहीं गायबसी हो गई थी.. गोमती बस खड़ी हुई अंकुश के आगे बेबस थी और ये बेबसी अंकुश से ज्यादा उसकी शारीरिक जरुरत के हाथों मजबूर थी..
अंकुश ने करीब 10 मिनट चूमने के बाद गोमती के होंठो को अपनी क़ैद से आज़ादी दे दी और फिर गर्दन कंधे चूमने लगा उसके बाद उसने गोमती को एक पल के छोड़ कर शावर बंद कर दिया.. गोमती सर निचे किये अंकुश के सामने खड़ी थी..
अंकुश ने गोमती की साडी का पल्लू जो जमीन पर गिरा हुआ था उठाकर हाथ मे पकड़ लिया और खींचने लगा.. अंकुश के पल्लू खींचने से गोमती 2-3 बार गोल घूम गई और उसकी साडी पूरी तरह से उतर कर अंकुश के हाँथ मे आ गई.. अंकुश ने साडी को जमीन पर फेंक दिया और सामने पेटीकोट और ब्लाउज मे खड़ी गोमती को ऊपर से निचे देखने लगा..
गोमती जो चालीस पार की उम्र मे भी असीम खूबसूरती और उतार चढ़ाव से भरे बदन की मालकिन थी अंकुश के सामने सर झुकाये खड़ी थी.. उसका मन उसे किसी भी मंजिल पर पहुंचने नहीं दे रहा था ना वो विरोध कर पा रही थी ना ही अंकुश का साथ देने का निश्चय कर सकती थी.. अंकुश और गोमती दोनों बिलकुल भीगे हुए थे..
अंकुश ने आगे बढ़कर गोमती के ब्लाउज के बटन खोलना शुरू कर दिया और कुछ ही पालो मे गोमती के बदन से ब्लाउज को उतार कर जमीन और पड़ी साडी के ऊपर ही फेंक दिया गोमती अब सिर्फ ब्रा और पेटीकोट मे जमीन की तरफ सर करके खड़ी थी.. उसके उभार उससे कहीं ज्यादा बड़े और सुडोल थे जितना अंकुश ने अनुमान लगाया था..
अंकुश ने गोमती को थोड़ा पीछे करके झट गोमति की कच्छी उतार दी और दिवार के सहारे खड़ा कर दिया साथ ही अपना हाथ गोमती की जांघ पर रखकर उसकी एक टांग उठा कर निचे बैठ गया फिर अपने जन्मद्वार के दर्शन करते हुए उसकी महक से मदहोश होने लगा.. गोमती ने भी अब समाज और मर्यादा की परवाह करना छोड़ दिया था और अंकुश के प्रेम प्रवाह मे बहने लगी थी..
अंकुश ने गोमती की चुत पर अपने होंठ सटा दिया और ऐसे चाटने लगा जैसे कुत्ता बोटी चाटता हैं.. अब गोमती का मन समाज के डरको ख़त्म कर सही गलत का फर्क करना छोड़ चूका था वो काम के सागर मे समा जाने को आतुर थी और अब कामसुःख मे बही जारही थी..
अंकुश ने कुछ ही देर मे गोमती के झरने का पानी बहा दिया और गोमती को कुछ हल्का महसूस करवा दिया.. गोमती झड़ने के बाद हाँफ्ते हुए शर्म से पलट कर अपना मुँह छीपाने लगी और अंकुश के देखने का साहस नहीं जुटा पाई.. अंकुश मुस्कुराते हुए पेटीकोट का नाड़ा खींच लिया और गोमती का पेटीकोट अपनेआप निचे उतर कर गिर गया.. अंकुश खड़ा हुआ और गोमती की ब्रा का हुक खोलते हुए बोला..
माँ.. मैं वादा करता हूँ आज के बाद आपको किसी गैर मर्द की तरफ देखने की जरुरत नहीं पड़ेगी.. मैं आपको बदन की आग मे जलने भी नहीं दूंगा..
ये कहते हुए अंकुश ने अपनी चड्डी उतार दी और दिवार की तरफ मुँह करके दोनों हाथों से अपने चुचे छुपा कर मोन खड़ी अपनी माँ गोमती को दोनों हाथों से अपनी बाहो मे उठा लिया और बाथरूम का दरवाजा खोलकर बाहर आ गया..
गोमती शर्म से आँख बंद कर मोन समर्थन दे चुकी थी और अंकुश गोमती की शर्म को दूर करना चाहता था उसने गोमती को बिस्तर पर लेटा दिया और गोमती के ऊपर आ गया..
अंकुश ने गोमती के दोनों हाथ पकड़ कर खोल दिए और गोमती जो अपने दोनों हाथों से अपने चुचे छिपा कर शर्म से लाल थी अब अंकुश के आगे किसी व्यंजन की तरह परोसी जा चुकी थी..
अंकुश ने अपना मुँह गोमती के चुचे पर लगा दिया और उसके उभार को चूमने और चुचक को चूसने लगा.. गोमती अदखुली आँख से ये सब देखकर शर्म और कामतृप्ति से बस चुपचाप जो हो रहा था होने दे रही थी.. अंकुश ने एक के बाद एक दोनों चुचो को मन भरकर चूसा और कई लव बाईट भी कर डाली मगर गोमती के मुँह से उफ़ तक ना निकली..
त्यार हो माँ? हमारे पहले मिलन के लिए? अंकुश ने गोमती से पूछा तो गोमती कुछ बोल पाने की हिम्मत ना जुटा पाई और शर्म से मुँह फेर कर चुप ही रही...
अंकुश ने गोमती के पैर फैलाकर अपने लंड को चुत के द्वार पर सटा दिया और वापस गोमती से बोला.. माँ.. डालने वाला हूं..
गोमती का मन रोमांचित था और अब अंकुश ने पूरी तयारी कर लीं थी.. अंकुश जानता था की गोमती की चुत मे लोडा आराम से चला जाएगा मगर उसने पहले 3-4 झटके इतने तेज़ मारे की गोमती की चुत मे जड़ तक अंकुश का लंड उतर गया और लहू की 1-2 बून्द निकल पड़ी.. गोमती जो अब तक मोन थी एक दम से चीखते हुए अंकुश से लिपट गई और सिसकारिया लेने लगी..
अंकुश ने झटके मारना रोकने की जगह जारी रखा और टॉप गियर मे चुदाई शुरू कर दी.. मिशनरी पोज़ मे गोमती की चुत अब अंकुश के लंड से पिट रही थी और गोमती आह्ह.. उह्ह्ह.. की आवाज करते हुए कामसुःख की हवा मे उड़ने लगी थी पूरा कमरा इसी आवाज से सराबोर था.. गोमती आज पहली बार इस तरह चुद रही थी और वो बारबार अंकुश से स्पीड स्लो करने और थोड़ा रुकने की गुहार लगा रही थी मगर अंकुश तो जैसे गोमती पर अपनी विजय प्राप्त चाहता था उसने लगातार पूरी स्पीड मे चोदमपट्टी चालू रखी और काफी देर तक उसी पोज़ मे गोमती की चुत मारता रहा.. गोमती की गीली चुत हर झटके पर घप घप की आवाज करती..
गोमती की आँखें बंद थी मगर अंकुश अपनी दोनों आँखों से अपनी माँ गोमती के चेहरे पर काम सुख और बड़े लंड से चुदने की मीठी पीड़ा का मिश्रित भाव देखकर जोश से भरा जा रहा था और हर झटके पर जोर लगा कर गोमती को चोद रहा था..
अंकुश इतना जोश मे था की उससे सब्र ना हो सका और उसने अपना सारा माल गोमती की चुत मे लम्बी लम्बी धार के साथ छोड़ दिया जो गोमती के कामरस से मिलकर चुत से बहने लगा..
झड़ने के बाद गोमती जैसे वापस कामसुःख के आसमान से निचे उतर आयी और अपना होश संभालते हुए दबी हुई आवाज मे अपने ऊपर लेते अंकुश को बिना देखे बोली..
अंदर क्यू निकाला? अब.. पता नहीं क्या होगा?
अंकुश ने गोमती के चेहरे को अपनी तरफ करते हुए कहा.. कुछ नहीं होगा माँ.. तुम चिंता मत करो.. ये कहते हुए अंकुश ने गोमती के होंठ पर अपने होंठ रख दिए और एक मीठा सा चुम्बन कर दिया जिसका विरोध अब गोमती के लिए व्यर्थ था..
पहली चुदाई ने अंकुश को आप से तुम पर ला दिया था जो गोमती को भी समझ आ गया था और वो आगे कुछ बोल ना सकी..
अंकुश गोमती के ऊपर से खड़ा हो गया और पास रखी पानी की बोतल से पानी पिने लगा तो गोमती झट से उठी और लड़खड़ाते हुए निचे गिर गई उसके पैर मे कम्पन था वो वापस खड़ी हुई और लचक कर बाथरूम चली गई फिर अपने कपडे समेटकर जल्दी से अपने कमरे मे जाने लगी तभी अंकुश बोतल रखते हुए बोला..
माँ.. एक कप चाय और बना दो..
गोमती ये सुनते हुए अपने सारे कपडे बाहो मे समेटे नंगे ही अपने कमरे मे आकर बाथरूम मे घुस गई और दरवाजा बंद कर लिया वही अंकुश भी नहाने के लिए चला गया आज उसे बहन के बाद माँ भी मिल गई थी..