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जज साहब, बैरिस्टर विश्वनाथ, शहजाद राय, इंस्पेक्टर अक्षय, बुन्दू, रमन, अंतर जैन, सुमित्रा, संगम, राकेश, कमल और शेखर मल्होत्रा के साथ मौजूद थे उसका आपरेशन _करने वाले सीनियर सर्जन ।
शेखर मल्होत्रा के अलावा सभी लोग कुर्सियों पर पक्तिबद्ध बैठे थे---.उस तरफ़ थे जिधर एक मेज पडी हुई और मेज के पार थी वह कुर्सी जिस पर किरन को बैठना था ।
अन्य सारा फर्नीचर हॉल से हटा दिया गया था । शेखर किरन की कुर्सी के नजदीक एक पहियों वाले बेड पर लेटा था---डॉकटर की राय के मुताबिक शेखर की हालत में काफी सुथार था-अब बह ठीक से बोल सकता था, देख और समझ सकता था ।
केवल उसी के नहीं बल्कि हाल में मौजूद सभी लोगो के चेहरों पर हत्यारे का नाम जानने की बेचैनी के भाव नाच रहे थे.
सुर्ख बूटों वाली सफेद साडी में सजी किरन उस वक्त शेखर मल्होत्रा से बातें कर रही थी जब देखमुख ने कहा-----" अपने मेहमानों के धैर्य की और ज्यादा परीक्षा न लो वेटी, बताओ कि हत्यारा कौन है----
-----चक्रब्यूह क्या है?"
"ओ. कै. अंकल ।" कहने के बाद अपनी कुर्सी पर बेठते ही कहा उसने ----""हत्यारा सुब्रत जैन का लड़का है !"
जज साहब ने पुछा----"कौन सुव्रत जैन है"'
"सुब्रत जैन का परिचय मिस्टर अंतर जैन देंगे ।"
किरन ने कहा ।
अंतर हिचका किन्तु सबके अनुरोध के बाद उसे वह सब बताना पड़ा--जो शेखर मल्होत्रा ने किरन को बताया था ।
उसके चुप होते ही किरन बोली------“पन्द्रह साल पहले हुआ वह पारिवारिक कलह इस हत्याकांड का मुख्य कारण है----- हस्तिनापुर से चले जाने के कुछ दिन बाद एक ट्रेन दुर्घटना में सुब्रत जैन और उसकी पत्न्नी की मृत्यु हो गई मगर मरने से पहले अपने बेटे के दिलो-दिमाग में. सुव्रत जैन अपने पिता और गुलाब चन्द के प्रति इतना जहर भर चुका था कि बेटे ने पिता द्वारा खाई गई कसम को पुुुरा करने की कसम खाई-जव तक वह बदला लेने लायक यानि बड़ा हुआ तब तक उसके दादा यानि सुव्रत जैन के पिता की मृत्यु स्वत: हो चुकी थी------अब उसके शिकार थे गुलाब चन्द और संगीता-पहले उसने गुलाव चन्द को चुना-गुलाव चन्द शराब के शौकीन थे मगर इतने 'गाफिल' कभी नहीं होते थे कि "बैक-पैडिल समझकर' एक्सीलेटर को दबाते रहे---उस दिन हुआ यह कि हिल स्टेशन से लौटते वक्त दुर्धटना-स्थल से ही पहले एक बार में व्हिस्की पी-पूरी एक बोतल ली थी उन्होंने, जितनी पी सके पी और बाकी गाडी में रख ली-सुव्रत जैन का लडका बहुत दिन से ऐसे मौके की तलाश में था, जिसका लाभ उठाकर गुलाब चन्द को खत्म भी कर दे और पकडा भी न जाये ------साये की तरह गुलाब चन्द के पीछे लगे सुब्रत के लड़के को लगा कि मौका अच्छा है…गुलाब चन्द बार में तीन धन्टे रहे क्योंकि पीने के बाद लंच भी लिया था उन्होंने और इन तीन घन्टों में सुब्रत जैन के लड़के ने फियेट के चारों "ब्रेक-ड्रम' खोले, उसमें से "ब्रेक-शू' निकाले और ड्रम बन्द करके चारों पहिए पुन: लगा दिये----कार से अागे की यात्रा गुलाब चन्द ने बगैर 'बेक-शु' के गाडी से जारी की और परिणाम बहीं हुआ जो होना था-ढलान पर गाडी रुक नहीं रही थी----सो गुलाव चन्द ब्रेक मारने के बावजूद बौखला गये मगर उस अवस्था में कर भी क्या सकते वे-लिहाजा गाडी सहित सैकडों फुट गहरी खाई में जा गिरे ।“
"तुम कैसे कह सकती हो कि उस गाडी के ब्रेक-ड्रमों के ब्रेक गायब थे ?" बैरिस्टर साहब ने पूछा।
"कल दिन में मैं वहीं गई थी पापा-------गुलाब चन्द की गाडी का मलबा अाज भी उसी खाई में पड़ा है-उस इलाके का पुलिस इंस्पेक्टर भी मेरे साथ था और वह गवाह है कि मेरे आदेश पर एक हवलदार तथा दो सिपाहियों ने जब ब्रेक-ड्रम खोले तो उनमे 'ब्रेक-शू' नहीं थे --- दुर्घटना की जांच करने वाले इंस्पेक्टर यानि इंस्पेक्टर ने ड्रम खोलने की जरूरत नहीं समझी थी ---- ब्रेक पैडिल -- ब्रेक आयल और ब्रेक-पाइप को चैक करने के बाद वह ,इस नतीजे पर पहुचा कि ब्रेक' बिल्कुल ठीक काम कर रहे थे और चश्मदीद गवाहों के बयान के आधार पर उसकी यह थ्योंरी वनी कि नशे की ज्यादती के कारण गुलाब चन्द ब्रेक के स्थान पर एक्सीलेटर दबाता रहा-जिस 'बार' में गुलाब चन्द ने लंच और व्हिस्की लिए थे वहां का कायदा कि लोग विल पर ग्राहक के साईन कराते हैं-पन्द्रह नवम्बर के दिन कटे एक विल की कार्बन कॉपी पर गुलाव चन्द के साइन मौजूद हैं---- इन सब बातों की पुष्टि विना किसी बाधा के की जा सकती है ।"
अक्षय ने पूछा“मगर आपको यह कैसे पता लगा कि "बेक-शू' सुब्रत जैन के लड़के ने गायब किये थे ?"
"क्योंकि बेक-शू सुब्रत जैन के लड़के ने अाज भी सम्भालकर अपने घर में रखे हैं ।"
"धर कहां है उसका ?" रमन आहूजा ने पूछा ।
" घर बाद में पूछना मिस्टर रमन, पहले इसे देखो ।” कहने के साथ किरन ने एक ब्रेक 'शू' निकालकर सबको दिखाते हुए कहा ---गुलाब चन्द की गाडी के चार में से एक शू ये है ।"
कमल ने पूछा --" पर शू कहां से आ गया ?"
"परसों रात उसके घर से चुराया था मैंने ।"
“घर ...... घर ...... घर ! "
"खबरदार .........खबरदार !" कोई खतरनाक स्वर में दहाड़ा------""अगर किसी ने हिलने-की कोशिश की तो भूनकर..... रख दूगा ।"
सबने चौंककर उसकी तरफें देखा ।
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इंस्पेक्टर अक्षय के हाथ में उसका रिवॉल्वर था, आंखों में खून" और चेहरा लोहार की भटृठी की मानिन्द धधक रहा था ।
सभी सहम गये !
अवाक रह गये ।
जिस्मों में सनसनी दौड़ रही थी-हरेक के चेहरे को, खूंखार नजरों से घूरता इंस्पेक्टर अक्षय पुन: गर्जा --- "अगर किसी ने अंगुली भी हिलाई तो मैं उसका भेजा उड़ा दूंगा ।। म-मुझे कोई नहीं रोक सकता, कोई गिरफ्तार नहीं कर सकता - जा रहा हूं मैं याद रहे ---हिलना नहीं है किसी को !
धीरे-धीरे वह दरवाजे की तरफ़ बढने लगा ।
किरन ने कहा-"अपने हाथों में दबे रिवॉल्वर के बूते पर तुम इस हॉल से भले ही निकल जाओं इंस्पेक्टर, मगर कानून के लम्बे हाथों की रेंजं से बाहर नहीं जा. सकोगे…तुम्हारी एक-एक करतूत का मैं न सिर्फ भेद जान गई हूं बल्कि मुकम्मल सबूत भी हैं मेरे पास-बेहतर यह होगा कि रिवॉल्वर फेंककर खुद को कानून के हंवाले कर दो ।"
"मैँने तुम्हें एक बेवकूफ़ लडकी समझा था…स्वप्न में भी कल्पना न कर पाया था कि तुम मेरे भेद तक पहुंच सकती हो------अगर जरा भी इत्म हो गया होता तो मैं यहां न आत्ता बल्कि,कल रात ही खत्म कर देता तुम्ह्हे् रात तक मुझें भ्रम में रखा लेकिन अगर यह सोच रही हो कि इतने सारे लोगों की मौजूदगी के कारण यहां तुम्हें छोड दूंगा तो यह तुम्हारी भूल है----मैं अपना खेल बिगाड़ने वालों , का खेल नहीं चलने दे सकता ।"
सबकी आँखों में खौफ मंडरा रहा था-बैरिस्टर विश्वनाथ की आंखों में चिंता के लक्षण भी नजर आने लगे, मगर किरन के होंठों पर नृत्य करती मुस्कराहट और गहरी हो गई--- उस वक्त अक्षय हॉल के दरबाजे पर पहुंच चुका था जब किरन ने कहा-“ट्रेगर दबाने से पहले चैक कर लेना इंस्पेक्टर कि तुम्हारे रिवॉल्वर में गोलियां भी है या नहीं ?
अक्षय के चेहरे पर बौखलाहट के भाव उभरे !
पर्स से गोलियां निकालकर मेज पर बिखेरती हुई ---किरन बेली---मुझे मालूम था कि कहानी के बीचच में ही तुम समझ जाओगे कि मैं सारा भेद जान चुकी हूं---- यह कल्पना भी कर ली थी कि अपने चेहरे से नकाब नुचते ही तुम्हारा 'एक्शन' क्या होगा, अत: आज सुबह तुम्हारे घर घुसकर मैंने तुम्हारा रिवॉल्वर खाली कर दिया था ! "
अक्षय का चेहरा पीला पड़ गया ।
बुरी तरह हड़बड़ा उठा वह ।
बौखलाहट में वह दनादन हाथ में दवे रिवॉल्वर का ट्रेगर दबाता चला गया ।
परन्तु ! कोई गोली नहीं चली ।
केवल "क्लिक...... क्लिक' की आवाजे गूंजकर रह गई ।
किरन खिलखिलाकर हँसी बोली---- यह खेल बन्द करो इंस्पेक्टर, दरअसल तुम यहां से भाग नहीं सकते ।"
मगर ! . .
किरन की बात पर ध्यान न देकर अक्षय तेजी से पलटा और दरवाजे के पार जम्प लगा दी-----उसने--- एक क्षण भी नहीं गुजरा था कि दर्दनाक चीख के साथ हवा में उछलता हुआ वापस हॉल के फर्श पर आ गिरा !
नाक से खून बह रहा था ।
जाहिर था कि किसी ने उसकी नाक पर घूंसा मारा था ।
शेखर मल्होत्रा के अलावा सभी लोग कुर्सियों पर पक्तिबद्ध बैठे थे---.उस तरफ़ थे जिधर एक मेज पडी हुई और मेज के पार थी वह कुर्सी जिस पर किरन को बैठना था ।
अन्य सारा फर्नीचर हॉल से हटा दिया गया था । शेखर किरन की कुर्सी के नजदीक एक पहियों वाले बेड पर लेटा था---डॉकटर की राय के मुताबिक शेखर की हालत में काफी सुथार था-अब बह ठीक से बोल सकता था, देख और समझ सकता था ।
केवल उसी के नहीं बल्कि हाल में मौजूद सभी लोगो के चेहरों पर हत्यारे का नाम जानने की बेचैनी के भाव नाच रहे थे.
सुर्ख बूटों वाली सफेद साडी में सजी किरन उस वक्त शेखर मल्होत्रा से बातें कर रही थी जब देखमुख ने कहा-----" अपने मेहमानों के धैर्य की और ज्यादा परीक्षा न लो वेटी, बताओ कि हत्यारा कौन है----
-----चक्रब्यूह क्या है?"
"ओ. कै. अंकल ।" कहने के बाद अपनी कुर्सी पर बेठते ही कहा उसने ----""हत्यारा सुब्रत जैन का लड़का है !"
जज साहब ने पुछा----"कौन सुव्रत जैन है"'
"सुब्रत जैन का परिचय मिस्टर अंतर जैन देंगे ।"
किरन ने कहा ।
अंतर हिचका किन्तु सबके अनुरोध के बाद उसे वह सब बताना पड़ा--जो शेखर मल्होत्रा ने किरन को बताया था ।
उसके चुप होते ही किरन बोली------“पन्द्रह साल पहले हुआ वह पारिवारिक कलह इस हत्याकांड का मुख्य कारण है----- हस्तिनापुर से चले जाने के कुछ दिन बाद एक ट्रेन दुर्घटना में सुब्रत जैन और उसकी पत्न्नी की मृत्यु हो गई मगर मरने से पहले अपने बेटे के दिलो-दिमाग में. सुव्रत जैन अपने पिता और गुलाब चन्द के प्रति इतना जहर भर चुका था कि बेटे ने पिता द्वारा खाई गई कसम को पुुुरा करने की कसम खाई-जव तक वह बदला लेने लायक यानि बड़ा हुआ तब तक उसके दादा यानि सुव्रत जैन के पिता की मृत्यु स्वत: हो चुकी थी------अब उसके शिकार थे गुलाब चन्द और संगीता-पहले उसने गुलाव चन्द को चुना-गुलाव चन्द शराब के शौकीन थे मगर इतने 'गाफिल' कभी नहीं होते थे कि "बैक-पैडिल समझकर' एक्सीलेटर को दबाते रहे---उस दिन हुआ यह कि हिल स्टेशन से लौटते वक्त दुर्धटना-स्थल से ही पहले एक बार में व्हिस्की पी-पूरी एक बोतल ली थी उन्होंने, जितनी पी सके पी और बाकी गाडी में रख ली-सुव्रत जैन का लडका बहुत दिन से ऐसे मौके की तलाश में था, जिसका लाभ उठाकर गुलाब चन्द को खत्म भी कर दे और पकडा भी न जाये ------साये की तरह गुलाब चन्द के पीछे लगे सुब्रत के लड़के को लगा कि मौका अच्छा है…गुलाब चन्द बार में तीन धन्टे रहे क्योंकि पीने के बाद लंच भी लिया था उन्होंने और इन तीन घन्टों में सुब्रत जैन के लड़के ने फियेट के चारों "ब्रेक-ड्रम' खोले, उसमें से "ब्रेक-शू' निकाले और ड्रम बन्द करके चारों पहिए पुन: लगा दिये----कार से अागे की यात्रा गुलाब चन्द ने बगैर 'बेक-शु' के गाडी से जारी की और परिणाम बहीं हुआ जो होना था-ढलान पर गाडी रुक नहीं रही थी----सो गुलाव चन्द ब्रेक मारने के बावजूद बौखला गये मगर उस अवस्था में कर भी क्या सकते वे-लिहाजा गाडी सहित सैकडों फुट गहरी खाई में जा गिरे ।“
"तुम कैसे कह सकती हो कि उस गाडी के ब्रेक-ड्रमों के ब्रेक गायब थे ?" बैरिस्टर साहब ने पूछा।
"कल दिन में मैं वहीं गई थी पापा-------गुलाब चन्द की गाडी का मलबा अाज भी उसी खाई में पड़ा है-उस इलाके का पुलिस इंस्पेक्टर भी मेरे साथ था और वह गवाह है कि मेरे आदेश पर एक हवलदार तथा दो सिपाहियों ने जब ब्रेक-ड्रम खोले तो उनमे 'ब्रेक-शू' नहीं थे --- दुर्घटना की जांच करने वाले इंस्पेक्टर यानि इंस्पेक्टर ने ड्रम खोलने की जरूरत नहीं समझी थी ---- ब्रेक पैडिल -- ब्रेक आयल और ब्रेक-पाइप को चैक करने के बाद वह ,इस नतीजे पर पहुचा कि ब्रेक' बिल्कुल ठीक काम कर रहे थे और चश्मदीद गवाहों के बयान के आधार पर उसकी यह थ्योंरी वनी कि नशे की ज्यादती के कारण गुलाब चन्द ब्रेक के स्थान पर एक्सीलेटर दबाता रहा-जिस 'बार' में गुलाब चन्द ने लंच और व्हिस्की लिए थे वहां का कायदा कि लोग विल पर ग्राहक के साईन कराते हैं-पन्द्रह नवम्बर के दिन कटे एक विल की कार्बन कॉपी पर गुलाव चन्द के साइन मौजूद हैं---- इन सब बातों की पुष्टि विना किसी बाधा के की जा सकती है ।"
अक्षय ने पूछा“मगर आपको यह कैसे पता लगा कि "बेक-शू' सुब्रत जैन के लड़के ने गायब किये थे ?"
"क्योंकि बेक-शू सुब्रत जैन के लड़के ने अाज भी सम्भालकर अपने घर में रखे हैं ।"
"धर कहां है उसका ?" रमन आहूजा ने पूछा ।
" घर बाद में पूछना मिस्टर रमन, पहले इसे देखो ।” कहने के साथ किरन ने एक ब्रेक 'शू' निकालकर सबको दिखाते हुए कहा ---गुलाब चन्द की गाडी के चार में से एक शू ये है ।"
कमल ने पूछा --" पर शू कहां से आ गया ?"
"परसों रात उसके घर से चुराया था मैंने ।"
“घर ...... घर ...... घर ! "
"खबरदार .........खबरदार !" कोई खतरनाक स्वर में दहाड़ा------""अगर किसी ने हिलने-की कोशिश की तो भूनकर..... रख दूगा ।"
सबने चौंककर उसकी तरफें देखा ।
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इंस्पेक्टर अक्षय के हाथ में उसका रिवॉल्वर था, आंखों में खून" और चेहरा लोहार की भटृठी की मानिन्द धधक रहा था ।
सभी सहम गये !
अवाक रह गये ।
जिस्मों में सनसनी दौड़ रही थी-हरेक के चेहरे को, खूंखार नजरों से घूरता इंस्पेक्टर अक्षय पुन: गर्जा --- "अगर किसी ने अंगुली भी हिलाई तो मैं उसका भेजा उड़ा दूंगा ।। म-मुझे कोई नहीं रोक सकता, कोई गिरफ्तार नहीं कर सकता - जा रहा हूं मैं याद रहे ---हिलना नहीं है किसी को !
धीरे-धीरे वह दरवाजे की तरफ़ बढने लगा ।
किरन ने कहा-"अपने हाथों में दबे रिवॉल्वर के बूते पर तुम इस हॉल से भले ही निकल जाओं इंस्पेक्टर, मगर कानून के लम्बे हाथों की रेंजं से बाहर नहीं जा. सकोगे…तुम्हारी एक-एक करतूत का मैं न सिर्फ भेद जान गई हूं बल्कि मुकम्मल सबूत भी हैं मेरे पास-बेहतर यह होगा कि रिवॉल्वर फेंककर खुद को कानून के हंवाले कर दो ।"
"मैँने तुम्हें एक बेवकूफ़ लडकी समझा था…स्वप्न में भी कल्पना न कर पाया था कि तुम मेरे भेद तक पहुंच सकती हो------अगर जरा भी इत्म हो गया होता तो मैं यहां न आत्ता बल्कि,कल रात ही खत्म कर देता तुम्ह्हे् रात तक मुझें भ्रम में रखा लेकिन अगर यह सोच रही हो कि इतने सारे लोगों की मौजूदगी के कारण यहां तुम्हें छोड दूंगा तो यह तुम्हारी भूल है----मैं अपना खेल बिगाड़ने वालों , का खेल नहीं चलने दे सकता ।"
सबकी आँखों में खौफ मंडरा रहा था-बैरिस्टर विश्वनाथ की आंखों में चिंता के लक्षण भी नजर आने लगे, मगर किरन के होंठों पर नृत्य करती मुस्कराहट और गहरी हो गई--- उस वक्त अक्षय हॉल के दरबाजे पर पहुंच चुका था जब किरन ने कहा-“ट्रेगर दबाने से पहले चैक कर लेना इंस्पेक्टर कि तुम्हारे रिवॉल्वर में गोलियां भी है या नहीं ?
अक्षय के चेहरे पर बौखलाहट के भाव उभरे !
पर्स से गोलियां निकालकर मेज पर बिखेरती हुई ---किरन बेली---मुझे मालूम था कि कहानी के बीचच में ही तुम समझ जाओगे कि मैं सारा भेद जान चुकी हूं---- यह कल्पना भी कर ली थी कि अपने चेहरे से नकाब नुचते ही तुम्हारा 'एक्शन' क्या होगा, अत: आज सुबह तुम्हारे घर घुसकर मैंने तुम्हारा रिवॉल्वर खाली कर दिया था ! "
अक्षय का चेहरा पीला पड़ गया ।
बुरी तरह हड़बड़ा उठा वह ।
बौखलाहट में वह दनादन हाथ में दवे रिवॉल्वर का ट्रेगर दबाता चला गया ।
परन्तु ! कोई गोली नहीं चली ।
केवल "क्लिक...... क्लिक' की आवाजे गूंजकर रह गई ।
किरन खिलखिलाकर हँसी बोली---- यह खेल बन्द करो इंस्पेक्टर, दरअसल तुम यहां से भाग नहीं सकते ।"
मगर ! . .
किरन की बात पर ध्यान न देकर अक्षय तेजी से पलटा और दरवाजे के पार जम्प लगा दी-----उसने--- एक क्षण भी नहीं गुजरा था कि दर्दनाक चीख के साथ हवा में उछलता हुआ वापस हॉल के फर्श पर आ गिरा !
नाक से खून बह रहा था ।
जाहिर था कि किसी ने उसकी नाक पर घूंसा मारा था ।