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Adultery चन्डीमल हलवाई की दो बीवियाँ और नौकर...........?

Sur281

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दोस्तो आपके लिए एक और कहानी हिन्दी फ़ॉन्ट मे ले कर आया हूँ उम्मीद करता हूँ आपको ये कहानी पसंद आएगी
 

Sur281

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ये 1910 के दौर की बात है, जब हमारे देश पर अंग्रजों का राज था।
उ.प्र. के एक छोटे से कस्बे में अंग्रेज सरकार की छावनी हुआ करती थी और उसी कस्बे में हलवाई चन्डीमल की दुकान थी।
चन्डीमल का घर पास के ही गाँव में था और दुकान काफ़ी अच्छी चलती थी।
दुकान पर उसने दो काम करने वाले लड़के भी रख हुए थे।
लगभग 45 साल के चन्डीमल के सपने इस उम्र में भी बहुत रंगीन थे।
चन्डीमल के अब तक तीन शादियाँ हो चुकी थीं। पहली पत्नी की मौत हो गई थी, जिससे एक लड़की भी थी।
लड़की के जन्म के 3 साल बाद ही उसकी पहली पत्नी चल बसी। चन्डीमल काफ़ी टूट गया, पर समय के साथ-साथ चन्डीमल सब भूल गया।
उस समय चन्डीमल की माँ जिंदा थी। उसके कहने पर चन्डीमल ने दूसरी शादी कर ली।
चन्डीमल छावनी के कमान्डर का ख़ास आदमी बन चुका था। क्योंकि चन्डीमल की दुकान पर जो भी मिठाई बनती थी, वो वहाँ के कमान्डर के पास सबसे पहले पहुँचती थी।
पैसा और रुतबा इतना हो गया था कि चन्डीमल के सामने सब सर झुकाते थे।
जब दूसरी पत्नी से कोई संतान नहीं हुई तो, बेटे की चाहत में चन्डीमल ने तीसरी शादी कर ली।
आज 15 जनवरी 1910 के दिन ट्रेन में चन्डीमल अपनी तीसरी बीवी से शादी करके लखनऊ से अपने गाँव वापिस आ रहा है।
लखनऊ में चन्डीमल का छोटा भाई रहता था। जिसके कहने पर चन्डीमल उसके नौकर के बेटे को जो 18 साल का है.. उसे भी अपने साथ लेकर अपने घर आ रहा है, साथ में दूसरी बीवी और पहली बीवी से जो बेटी थी, वो भी साथ में थी।
 

Sur281

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चन्डीमल- उम्र 45 साल, अधेड़ उम्र का ठरकी।
रजनी- चन्डीमल की दूसरी पत्नी, उम्र 33 साल। एकदम जवान और गदराया हुआ बदन, काले लंबे बाल, हल्का सांवला रंग, तीखे नैन-नक्श, हल्का सा भरा हुआ बदन।
सीमा- चन्डीमल की तीसरी और नई ब्याही हुई पत्नी, उम्र 23 साल, एकदम गोरा रंग, कद 5’4” इंच, लंबे बाल, गुलाबी होंठ और साँप सी बलखाती कमर।
दीपा- चन्डीमल की बेटी, उम्र 18 साल अभी जवानी ने दस्तक देनी शुरू की है।
सोनू- उम्र 18 साल चन्डीमल के भाई के नौकर का बेटा, जिसे चन्डीमल अपने घर के काम-काज के लिए ले जा रहा है।
 

Sur281

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जैसे की आप जानते ही हैं कि चन्डीमल तीसरी शादी के बाद अपने गाँव लौट रहा है।
उसके साथ उसकी दूसरी पत्नी रजनी, नई ब्याही पत्नी सीमा और बेटी दीपा के अलावा उसके भाई के नौकर का बेटा सोनू भी है।
चन्डीमल और उसके परिवार को छोड़ने के लिए उसका भाई रेलवे स्टेशन पर आया और उसका नौकर भी साथ में था, जिसका बेटा चन्डीमल के साथ उसके गाँव जा रहा था।
सोनू का पिता- देख बेटा… मैं तुम पर भरोसा करके सेठ चन्डीमल के साथ नौकरी के लिए भेज रहा हूँ, वहाँ पर जाकर दिल लगा कर काम करना। मुझे शिकायत नहीं मिलनी चाहिए तुम्हारी…!
सोनू- जी बाबा… मैं पूरा मन लगा कर काम करूँगा, आप को शिकायत का मौका नहीं दूँगा।
अपने बेटे से विदा लेते समय, उसकी आँखें नम हो गईं।
सोनू चन्डीमल के साथ ट्रेन में चढ़ गया। आज ट्रेन में खूब भीड़ थी, बैठने की तो दूर.. खड़े रहने की जगह भी चन्डीमल और उसके परिवार के लिए मुश्किल से बन पाई थी।
ट्रेन में चढ़ने के बाद.. चन्डीमल ने किसी तरह अपने परिवार के लिए जगह बनाई।
सुबह के 10 बज रहे थे। ट्रेन अपने गंतव्य की ओर चल पड़ी।
सर्दी का मौसम था, इसलिए बाहर घना कोहरा छाया हुआ था।
चन्डीमल ने देखा, ट्रेन में बैठने के लिए कोई जगह नहीं थी, इसलिए उसने अपने संदूकों को नीचे रख कर एक पर रजनी को और दूसरे पर अपनी नई पत्नी सीमा को बैठा दिया।
तीसरे बक्से पर उसकी बेटी दीपा बैठ गई।
चन्डीमल अपनी नई पत्नी सीमा के पास उसकी तरफ मुँह करके खड़ा हो गया।
भीड़ बहुत ज्यादा थी। चन्डीमल के ठरकी दिमाग़ में कीड़े तभी से कुलबुला रहे थे, जब से उसने सीमा को देखा था।
अब वो और ज्यादा इंतजार नहीं कर सकता था, पर ट्रेन मैं वो कर भी क्या सकता था?
उसकी नज़र सोनू पर पड़ी, जो अभी भी खड़ा था।
चन्डीमल- तुम क्यों खड़े हो, बैठ जाओ…!
सोनू ने इधर-उधर देखा, पर जो बैठने की जगह थी, वो बिल्कुल उसकी बेटी दीपा के बगल में थी, जिस संदूक पर दीपा बैठी थी।
चन्डीमल- हाँ..हाँ.. इधर-उधर क्या देख रहा है..! वहीं पर बैठ जा… बहुत लंबा सफ़र है…!
चन्डीमल की बात को सुन कर सोनू थोड़ा झिझका, पर हिम्मत करके उसी संदूक पर दीपा के पास बैठ गया, जिस पर दीपा बैठी थी।
सोनू को बैठाने का चन्डीमल का अपना मकसद था।
ताकि सोनू उसकी हरकतों को देख ना पाए।
आख़िरकार नए जोड़े में उसकी नई पत्नी जो बैठी थी.. उसके सामने।
सोनू के बैठने के बाद चन्डीमल ने इधर-उधर नज़र दौड़ाई, सब अपनी ही धुन में मगन थे।
चन्डीमल की पहली पत्नी रजनी को तो बैठते ही नींद आने लगी थी, क्योंकि पिछली रात वो शोर-शराबे के कारण ठीक से सो नहीं पाई थी।
अधेड़ उम्र के चन्डीमल ने अपनी नई दुल्हन की तरफ देखा, जो लंबा सा घूँघट निकाले हुए संदूक पर बैठी थी।
सीमा अपने गोरे हाथों को आपस में मसल रही थी, जिस पर सुर्ख लाल मेहंदी लगी हुई थी।
चन्डीमल के पजामे में हलचल होने लगी।
उसने इधर-उधर देखा और अपने हाथ नीचे ले जाकर सीमा के हाथ के ऊपर अपना हाथ रख दिया।
सीमा बुरी तरह घबरा गई और उसने अपना हाथ पीछे खींच लिया और अपने घूँघट के अन्दर से ऊपर की तरफ देखा।
चन्डीमल अपने होंठों पर मुस्कान लाया और सीमा को कुछ इशारा किया और फिर अपना हाथ सीमा के हाथ की तरफ बढ़ाया।
सीमा का दिल जोरों से धड़क रहा था, उसने अपनी कनखियों से चारों तरफ देखा।
उसकी सौत रजनी तो बैठे-बैठे सो गई थी और उसकी बेटी दीपा नीचे सर झुकाए ऊंघ रही थी।
इतने में चन्डीमल ने अपना हाथ आगे बढ़ा कर सीमा के हाथ को पकड़ लिया।
एक अजीब सी झुरझुराहट उसके बदन में घूम गई।
 

Sur281

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चन्डीमल ने एक बार फिर से अपनी नज़र चारों तरफ दौड़ाई, किसी की नज़र उन पर नहीं थी।
चन्डीमल ने सीमा के हाथ को पकड़ कर अपने पजामे के ऊपर से अपने लण्ड पर रख दिया।
सीमा एकदम चौंक गई, उसे अपनी हथेली में कुछ नरम और गरम सा अहसास हुआ, उसने अपना हाथ पीछे खींचना चाहा, पर चन्डीमल ने उसके हाथ नहीं छोड़ा और वो सीमा के हाथ को पकड़े हुए अपने लण्ड के ऊपर रगड़ने लगा।
नई-नई जवान हुई सीमा भी समझ चुकी थी कि उसका पति भले ही अधेड़ उम्र का है, पर है एक नम्बर का ठरकी।
जैसे ही सीमा का कोमल हाथ चन्डीमल के लण्ड पर पड़ा, उसके लण्ड में जान आने लगी।
सीमा का दिल जोरों से धड़क रहा था।
वो अपनी जिंदगी में पहली बार किसी मर्द के लण्ड को छू रही थी, जिसके कारण वो मदहोश होने लगी।
उसका हाथ खुद ब खुद चन्डीमल के पजामे के ऊपर से उसके लण्ड के ऊपर कस गया और वो धीरे-धीरे उसके लण्ड को सहलाने लगी।
चन्डीमल तो जैसे जन्नत की सैर कर रहा था।
उसकी आँखें बंद होने लगीं और सीमा भी अपनी तेज चलती साँसों के साथ अपने हाथ से उसके लण्ड को सहला रही थी।
कुछ ही पलों के बाद चन्डीमल का साढ़े 5 इंच का लण्ड तन कर खड़ा हो गया।
दूसरी तरफ उनके पीछे बैठे हुए सोनू का ध्यान अचानक से चन्डीमल और सीमा की तरफ गया, जिससे देखते ही उसकी आँखें खुली की खुली रह गईं।
सोनू उम्र के उस पड़ाव में था, जहाँ पर से जो भी कुछ देखता है, वही सीखता है।
सीमा का हाथ तेज़ी से चन्डीमल के पजामे के ऊपर से उसके लण्ड को सहला रहा था।
अब सीमा की पकड़ चन्डीमल के लण्ड के ऊपर मुठ्ठी मारने का रूप ले चुकी थी।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि सीमा चलती हुई ट्रेन में चन्डीमल की मुठ्ठ मार रही थी और वो भी सब की नज़रों से बच कर!
पर सोनू की नज़र उस पर पड़ चुकी थी, जिससे देखते-देखते उसका लण्ड भी उसके पजामे में कब तन कर खड़ा हो गया.. उसे पता भी नहीं चला।
चन्डीमल के विपरीत सोनू अभी अपनी जवानी के दहलीज पर था और उसका लण्ड चन्डीमल से 3 इंच बड़ा और कहीं ज्यादा मोटा था।
अपने सामने कामुक नज़ारा देख कर कब सोनू का लण्ड खड़ा हो गया और कब उसका हाथ खुद ब खुद लण्ड के पास पहुँच गया, उसे पता ही नहीं चला।
उसने अपने लण्ड को पजामे के ऊपर से भींच लिया और धीरे-धीरे सहलाना शुरू कर दिया।
वो अपने सामने हो रहे चन्डीमल और सीमा के कामुक खेल को देख कर ये भी भूल गया था कि उसके बगल में चन्डीमल की बेटी दीपा बैठी हुई है।
वो ये सब देखते हुए, धीरे-धीरे अपने लण्ड को हिलाने लगा, उसका लण्ड पजामे को ऊपर उठाए हुए.. पूरी तरह से तना हुआ था।
दीपा जो कि सर झुकाए और आँखें बंद किए हुए उसके पास बैठी थी, उसने अचानक से अपनी आँखें खोलीं और जो नज़ारा उसके आँखों के सामने था, उसे देख कर मानो उसके साँसें अटक गई हों।
उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं।
पजामे के ऊपर से सोनू का विशाल लण्ड देखते ही, उसकी दिल के धड़कनें बढ़ गईं।
उसके बदन में अजीब सी सरसराहट होने लगी।
दोनों एकदम पास-पास बैठे थे।
जब सोनू अपने लण्ड को हाथ से हिलाता था.. तब उसकी कोहनी दीपा के बगल से उसकी चूची के बिल्कुल पास रगड़ खाने लगी।
उसके पूरे बदन में अजीब सी मस्ती की लहर दौड़ गई।
सोनू इस बात से बिल्कुल अंजान सीमा और चन्डीमल की रासलीला को देखते हुए, अपने लण्ड को तेज़ी से हिलाए जा रहा था।
दीपा को एक और झटका तब लगा, जब उसने सोनू की नज़रों का पीछा किया और सोनू की नज़रों का पीछा करते हुए उसकी नज़रें जिस मुकाम पर पहुँची.. उसे देख कर तो जैसे दीपा के दिल की धड़कनें रुक गई हों।
वो अपनी नज़रें अपने पिता और नई सौतेली माँ से हटा नहीं पा रही थी।
अचानक से सोनू का हाथ हिलना बंद हो गया, जब इसका अहसास दीपा को हुआ तो, वो एकदम से चौंक गई।
उसने धीरे से अपने चेहरे को सोनू की तरफ घुमाया, जो उसकी तरफ ही देख रहा था। जैसे ही दोनों की नज़रें आपस में टकराईं, दीपा एकदम से झेंप गई।
उसने अपने सर को झुका लिया, ना चाहते हुए भी उसके होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई, पर नीचे सर झुकाए हुए, दीपा के सामने दूसरा अलग ही नजारा था।
नीचे सोनू का लण्ड उसके पजामे के अन्दर उभार बनाए हुए झटके खा रहा था।
जैसे-जैसे सोनू का लण्ड झटके ख़ाता, दीपा का मन उछल जाता।
माहौल इस कदर गरम हो चुका था कि सोनू को पता नहीं चला कि कब उसका हाथ पीछे से दीपा की कमर पर आ गया..!
जैसे ही दीपा की कमर पर सोनू का हाथ पड़ा, दीपा का पूरा बदन काँप गया।
सामने उसके पिता का लण्ड उसकी नई सौतेली माँ हिला रही थी और नीचे सोनू का लण्ड झटके खा रहा था। जिसे देख कर जवान कोरी चूत में सरसराहट होने लगी।
सोनू का हाथ दीपा की कमर पर रेंग रहा था और दीपा का पूरा बदन मस्ती भरे आलम में थरथर काँप रहा था।
 

Sur281

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ये सब सोनू के लिए भी बिल्कुल नया था, जिसने आज तक किसी लड़की या औरत को छूना तो दूर, आज तक आँख उठा कर बुरी नज़र से देखा तक नहीं था।
आज अपने सामने चल रहे कामुक खेल को देख कर वो भी बहक गया था..!
इस बात से अंजान कि वो सेठ की बेटी की कमर को सहला रहा है। अगर दीपा इस बात की शिकायत अपने पिता चन्डीमल से कर देती तो, शायद सोनू के खैर नहीं होती।
पर दीपा का हाल भी कुछ सोनू जैसा ही था, आज जिंदगी में पहली बार वो किसी मर्द और औरत के कामुक खेल को अपनी आँखों से साफ़-साफ़ अपने सामने देख रही थी और दूसरी तरफ सोनू का तना हुआ लण्ड उसके पजामे में फुंफकार रहा था।
दीपा अपनी कनखियों से नीचे सोनू के लण्ड की तरफ देख रही थी। वो भी अपना आपा खोने लगी थी।
सोनू के हाथ का स्पर्श उसे अन्दर तक हिला चुका था।
न ज़ाने क्यों.. पर उसका हाथ खुद ब खुद सोनू की जांघ पर रेंगने लगा।
उसने अपने आप को रोकने की बहुत कोशिश कि पर कामुकता से अधीर हो चुकी दीपा का भी अपने पर बस नहीं चल रहा था।
उसकी सलवार के अन्दर उसकी चूत में सरसराहट बढ़ गई थी।
जैसे ही उसके काँपते हुए हाथों के ऊँगलियाँ सोनू के लण्ड से टकराईं… सोनू के मुँह से मस्ती भरी ‘आह’ निकल गई।
जिसे चन्डीमल और सीमा तो नहीं सुन पाए, पर उसकी ये मस्ती भरी आवाज़ सुन कर रजनी जो कि ऊंघ रही थी.. उसकी आँखें खुल गईं और जब उसकी नज़र सोनू और दीपा पर पड़ी, तो उसकी आँखें खुली की खुली रह गईं।
दीपा का हाथ सोनू की जांघ पर था और उसकी हाथों की काँप रही ऊँगलियाँ धीरे-धीरे सोनू के लण्ड पर रगड़ खा रही थीं।
वो एकदम हैरान रह गई.. उसे यकीन नहीं हो रहा था कि ये दीपा इतनी शरमाती है, वो खुले आम ट्रेन में ही, एक नौकर के लण्ड को अपने हाथ से छूने की कोशिश कर रही है।
आख़िर इतनी जल्दी उस नौकर ने दीपा पर क्या जादू कर दिया था, जो दीपा उससे इतना चिपक कर बैठी थी।
जब रजनी ने दोनों की नज़रों का पीछा किया तो, उससे भी एक और झटका लगा। चन्डीमल सीमा के सामने खड़ा हुआ अपने लण्ड को उससे रगड़वा रहा था।
‘कमीना साला..!’
रजनी ने दिल ही दिल में चन्डीमल को गाली दी- इसे ज़रा भी शरम नहीं है… ये भी नहीं देखता कि पास में जवान बेटी बैठी हुई है..!
पर अगले ही पल रजनी के होंठों पर भी मुस्कान फ़ैल गई।
उसका कारण ये था कि रजनी दीपा के सौतेली माँ ही थी और जब से चन्डीमल ने तीसरी शादी करने का फैसला किया था, तब से वो चन्डीमल के खिलाफ थी, पर उससे चुप करवा दिया गया था।
चन्डीमल के रुतबे के आगे किसी की बोलने की हिम्मत नहीं हुई थी।
चन्डीमल को वारिस देने में नाकामयाब हो चुकी रजनी के लिए ये सबसे बड़ी हार थी।
रजनी जानती थी कि चन्डीमल अपनी बेटी दीपा को जी-जान से प्यार करता है। उसकी हर जरूरत को पूरा करता है और रजनी यह देख कर बहुत खुश थी कि उसकी बेटी एक नौकर के साथ अपना मुँह काला करवा रही थी।
रजनी को ना तो सोनू की कोई परवाह थी और ना ही दीपा की उससे तो अपने साथ हुई ज्यादती का बदला लेना था।
चाहे वो कैसे भी हो…!
उधर दीपा का चेहरा सुर्ख लाल होकर दहक रहा था। इतनी सर्दी होने के बावजूद भी उसके चेहरे पर पसीना आ रहा था।
एक साइड बैठी रजनी दीपा की हालत को बखूबी समझ रही थी। सोनू का हाथ दीपा के कमर से थिरकता हुआ, उसके चूतड़ों पर आ गया।
दीपा के पूरे बदन में मस्ती के लहर दौड़ गई। उसकी आँखों की पलकें भारी होकर बंद होने लगीं।
जिसे देख कर रजनी के होंठों की मुस्कान बढ़ती जा रही थी।
दीपा का बदन थरथर काँप रहा था।
सोनू ने अपने हाथ फैला कर उसके चूतड़ को अपनी हथेली में भर कर ज़ोर से दबा दिया।
“उंह..”
दीपा के मुँह से मस्ती भरी ‘आह’ निकल गई।
भले ही दीपा ये सब कुछ करना नहीं चाहती थी, पर उससे समय हालत ही कुछ ऐसे हो गए थे कि वो कुछ कर नहीं पा रही थी।
वो यह भी जानती थी कि अगर यह बात उसके पिता चन्डीमल को पता चली, तो उसके पिता सोनू को रास्ते में ट्रेन से नीचे फेंक देंगे। जिसके चलते दीपा थोड़ा सहम गई थी और दूसरा कुछ माहौल भी गर्म हो चुका था।
सोनू ने अपने हाथ से धीरे-धीरे दीपा के चूतड़ों को मसलते हुए, अपने हाथ की उँगलियों को चूतड़ों के नीचे ले जाना शुरू कर दिया।
जैसे-जैसे सोनू के हाथों की ऊँगलियाँ दीपा के चूतड़ों और संदूक के बीच घुस रही थीं, दीपा के बदन में नाचते हुए भी मस्ती के लहरें उमड़ने लगतीं, पर दीपा का पूरा वजन संदूक पर था।
जिसके कारण सोनू अपने हाथ की उँगलियों को उसके चूतड़ों के नीचे नहीं लेजा पा रहा था। दूसरी तरफ बैठी सीमा ये मंज़र देख कर मुस्करा रही थी।
सीमा ने अपना पहला दाँव खेला, उसने दीपा को आवाज़ लगाई- दीपा वो पानी की सुराही देना..!
रजनी की आवाज़ सुन कर दीपा एकदम से हड़बड़ा गई। उसके चेहरे का रंग एकदम से उड़ गया।
‘जी…जी.. अभी देती हूँ..!
यह कह कर दीपा पानी की सुराही को उठाने के लिए जैसे ही झुकी, उसके चूतड़ों और संदूक के बीच में जगह बन गई, जिसका फायदा काम-अधीर हो चुके सोनू ने बखूबी उठाया और अपनी उँगलियों को दीपा के चूतड़ों के नीचे सरका दिया।
जैसे ही पानी की सुराही को उठा कर दीपा सीधी हुई, उसकी साँसें मानो अटक गईं।
उसके चूतड़ों के ठीक नीचे सोनू का हाथ था।
रजनी ने आगे बढ़ कर दीपा के हाथ से सुराही ली और जानबूझ कर दूसरी तरफ देखने लगी ताकि दीपा और सोनू को शक ना हो कि वो उन दोनों की रंगरेलियाँ देख रही है।
दूसरी तरफ चन्डीमल और सीमा अपने काम में मशरूफ थे। उन्हें तो जैसे दीन-दुनिया की कोई खबर ही नहीं थी, पर इधर दीपा का बुरा हाल था।
सोनू ने अपने हाथों की उँगलियों को दीपा के चूतड़ों की दरार में चलाना शुरू कर दिया।
दीपा एकदम मस्त हो चुकी थी। उसकी चूत की फाँकें कुलबुलाने लगीं। सोनू की ऊँगलियाँ दीपा के गाण्ड के छेद और चूत की फांकों से रगड़ खा रही थीं।
दीपा के आँखें मस्ती में बंद हो गईं और वो अपनी आवाज़ को दबाने के लिए कोशिश कर रही थी।
रजनी के होंठों पर जीत की ख़ुशी साफ़ झलक रही थी। उधर दीपा की चूत की फांकों में आग लगी हुई थी।
 

Sur281

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रजनी के दिल में आज सुकून था, जब से उसे चन्डीमल की तीसरी शादी की बात का पता चला था, तब से वो अन्दर ही अन्दर सुलग रही थी और आज अपने घर की इज़्ज़त के रूप में चन्डीमल की इज़्ज़त को एक नौकर के हाथ का खिलौना बना देख कर रजनी का मन सुकून से भरा हुआ था।
चन्डीमल एकदम मस्त होकर अपनी नई पत्नी से अपने लण्ड की मुठ्ठ मरवा रहा था और वो झड़ने के बेहद करीब था।
उसने अपना एक हाथ नीचे ले जाकर सीमा के हाथ को कस कर पकड़ लिया और उसके हाथ को तेज़ी से हिलाते हुए अपनी मुठ्ठ मरवाने लगा।
चन्डीमल की आँखों के सामने जन्नत सा नशा तैर गया।
उसके लण्ड ने वीर्य की बौछार कर दी।
चन्डीमल का पूरा बदन हल्का हो गया, सीमा को जब अहसास हुआ कि उसका पति झड़ गया है, तो उसने अपना हाथ उसके लण्ड से हटा लिया।
बाकी का सफ़र आराम से कट गया।
शाम के 5 बजे चन्डीमल अपने परिवार के साथ अपने गाँव में पहुँच गया।
चन्डीमल का घर पूरे गाँव में सबसे बड़ा था और होता भी क्यों ना…!
आख़िर उसकी दुकान आसपास के इलाक़े में सबसे मशहूर थी।
ऊपर से चन्डीमल सूद पर पैसे भी देता था।
चन्डीमल के घर में कुल 7 कमरे थे।
एक रसोईघर और नहाने-धोने के लिए घर के पीछे एक बड़ा सा गुसलखाना था।
घर के सभी लोग पीछे बने गुसलखाने में ही नहाते थे।
चन्डीमल के घर मैं एक कुआं भी था, जो उस समय घर में होना शान की बात माना जाता था।
यूँ तो चन्डीमल के घर का काम करने के लिए और साफ़-सफाई करने के लिए एक नौकरानी और थी, जिसका नाम बेला था।
पर अगर घर वालों को बाजार से कुछ सामान मंगवाना होता तो, उन्हें चन्डीमल को सुबह-सुबह ही बताना पड़ता था.. या फिर अगर चन्डीमल का दोपहर को घर में चक्कर लगता, तब उस सामान को मंगाया जा सकता था।
चन्डीमल के घर में एक कमरा चन्डीमल और उसकी दूसरी पत्नी इस्तेमाल करते थे..
पर अब चन्डीमल ने तीसरी शादी कर ली थी, इसलिए चन्डीमल ने अपने कमरे के साथ वाले कमरे में रजनी का सामान रखवा दिया था। बस इसी बात से रजनी आग में जल रही थी।
उसकी नई सौत के आने से पहले ही उससे उसका कमरा भी छिन गया था।
पिछले 10 साल से रजनी किसी रानी की तरह उस घर पर राज करती आई थी, पर अब उससे अपनी सत्ता खत्म होते हुए महसूस हो रही थी।
रजनी को जो कमरा दिया गया था, उसके बगल वाला कमरा दीपा का था। इन तीनों कमरों के सामने दूसरी तरफ 3 कमरे और थे।
जिसमें से एक उसके माता-पिता का था, जो अब चल बसे थे।
सामने के 3 कमरे खाली थे।
जैसे ही चन्डीमल का परिवार घर में दाखिल हुआ, तो कुछ दिनों से सुनसान पड़े घर में जैसे बहार आ गई हो।
चारों तरफ चहल-पहल सी हो गई थी।
बेला भी आ गई थी और चन्डीमल के परिवार के लिए खाना और चाय बनाने में लग गई थी।
सब अपना-अपना सामान अपने कमरों में रख कर बाहर आँगन में इकठ्ठे होकर बैठ गए।
सोनू भी बाहर ही खड़ा था.. उस बेचारे पर तो किसी का ध्यान नहीं था।
वो अपना थैला अभी भी उठाए खड़ा था।
जब चन्डीमल ने उसकी तरफ देखा तो बोला- अरे भाई… तुम ये अपना झोला उठाए अभी तक खड़े हो…! हम तो कब के घर पहुँच गए।
सोनू- बाबू जी, आप बताईए मैं इसे कहाँ रखूं?
सोनू की बात सुन कर चन्डीमल कुछ देर सोचने के बाद बोला- बेला ओ बेला..!
इतने में बावर्चीखाने से बेला बाहर आई- जी सेठ जी..!
बेला ने आदर सहित कहा।
 

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चन्डीमल- बेला, इसे घर के पीछे जो कमरा है.. वो दिखा दो..ये वहीं रहेगा…!
इससे पहले कि कोई कुछ बोलता या कहता, रजनी बीच में बोल पड़ी- जी.. उसमें तो जगह ही कहाँ हैं… वो तो पुराने सामान से भरा पड़ा है और वैसे भी पीछे इतनी दूर इसको बुलाने कौन जाएगा.. आगे तीन कमरे खाली हैं तो…!
रजनी की बात सुन कर चन्डीमल कुछ देर के लिए सोच में पड़ गया, पर चन्डीमल जानता था कि सोनू नौकर है और नौकर का घर के बीच में रहना ठीक नहीं है।
इसलिए चन्डीमल ने ये कह कर मना कर दिया कि जिस सामान की ज़रूरत नहीं है.. उससे फेंक दिया जाए या जलावन के लिए इस्तेमाल किया जाए..!
चन्डीमल की बात सुन कर रजनी थोड़ा हताश ज़रूर हुई, पर सोनू को पीछे वाले कमरे में ठहरने से भी रजनी को कुछ अलग ही सूझ रहा था।
आख़िरकार घर की सभी औरतें पीछे जाकर ही तो नहाती थीं।
घर में सबसे पहले चन्डीमल नहाता था और चन्डीमल के दुकान पर जाने के बाद दीपा और रजनी नहाती थीं और अब सीमा भी शामिल हो गई थी।
चन्डीमल ने फैसला सुना दिया था।
बेला ने सोनू को अपने साथ चलने के लिए कहा।
जैसे ही बेला सोनू को लेकर घर के पीछे की तरफ गई, उसने पीछे मुड़ कर एक बार सोनू को देखा।
उसकी आँखों में अजीब सी चमक थी, जब से उसने सोनू को देखा था।
बेला का पति सेठ चन्डीमल की दुकान पर ही काम करता था, वो एक नम्बर का पियक्कड़ था, कोई काम-काज नहीं करता था।
बस सारा दिन गाँव के आदमियों के साथ इधर-उधर घूमता रहता, दारू पीता और घर आकर सो जाता।
इसलिए चन्डीमल से कह कर बेला ने अपने पति को दुकान पर लगवा दिया था और चन्डीमल ने भी बेला के पति को खूब फटकारा था, जिससे वो काफ़ी हद तक सुधर गया था।
अब वो दुकान में ही रहता था, बस 7-8 दिन में एक बार गाँव आता था।
चन्डीमल उसकी तनखाह बेला को ही देता था और कुछ पैसे उसके पति को भी देता था।
जब बेला उसे पीछे बने कमरा की तरफ ले जा रही थी, तो वो बार-बार पीछे मुड़ कर उसकी तरफ देख रही थी।
बेला की उम्र 30 साल थी और एक बेटे और बेटी की माँ भी थी.. बेटी बड़ी थी।
बेला की शादी छोटी उम्र में हुई थी और एक साल बाद ही उसने बेटी को जन्म दिया था, जिसका नाम बिंदया था।
बिंदया दीपा से उम्र में एक समान थी।
सोनू को बेला का यूँ बार-बार मुड़ कर देखना और देख कर मुस्कराना अजीब सा लग रहा था क्योंकि बेला सोनू से दुगनी उम्र की थी और सोनू इन सब बातों और इशारों को समझने के लिए परिपक्व नहीं था।
कमरे की तरफ जाते हुए, बेला अपने चूतड़ों को कुछ ज्यादा ही मटका कर चल रही थी, बेला और उसके पति के बीच चुदाई का खेल अब खत्म हो चुका था।
जब से बेला ने चन्डीमल से अपने पति को फटकार लगवाई थी, तब से उसने बेला से चुदाई करना बंद कर दिया था। बेला को चुदाए हुए कई साल हो चुके थे।
जब बेला ने कमरे के सामने जाकर दरवाजा खोला और सोनू के तरफ पलटी और अपने होंठों पर मुस्कान लाते हुए कहा- ये लो… आज से ये तुम्हारा कमरा है।
सोनू सर झुकाए हुए कमरे में घुस गया और इधर-उधर देखने लगा।
कमरा पुराने सामान से भरा हुआ था।
इतने में पीछे से चन्डीमल भी आ गया और कमरे के अन्दर झांकता हुआ बोला- हाँ.. सच में अन्दर तो पुराना सामान भरा हुआ है… ऐसा करो, अपना झोला यहीं रखो… कल यहाँ से बेकार सामान बाहर निकलवा देते हैं और आज रात का तुम्हारे सोने का इंतज़ाम कहीं और करवा देता हूँ।।
चन्डीमल की बात सुन कर बेला ने झट से कहा- सेठ जी… अगर आप बोलें तो, ये आज हमारे घर पर ही सो जाता है।
चन्डीमल को बेला की बात ठीक लगी और चन्डीमल ने बेला को ‘हाँ’ कह दी।
रात ढल चुकी थी, सब खाना खा चुके थे और अपने कमरों में जाकर सोने की तैयारी कर रहे थी।
चन्डीमल तो इस घड़ी के लिए पहले से ही बहुत उतावला था।
बेला अपना सारा काम निपटा कर सोनू के पास गई.. जो खाना खा कर आँगन में ज़मीन पर ही लेटा हुआ था।
‘चलो अब चलते हैं… सारा काम खत्म हो गया है।’
सोनू ने बेमन से बेला की तरफ देखा।
जो उसकी तरफ देखते हुए कातिल मुस्कान अपने होंठों पर लाए हुए थी और फिर सोनू उठ कर खड़ा हो गया।
बेला रजनी के कमरे में गई और बोली- दीदी, मैंने सारा काम कर दिया है… अब मैं जा रही हूँ… बाहर का दरवाजा बंद कर लो।
उसके बाद बेला सोनू को लेकर चन्डीमल के घर से निकल कर अपने घर की तरफ जाने लगी।
रात घिर चुकी थी।
आप सब लोग तो जानते ही होंगे।
उस समय में बिजली नहीं होती थी, ख़ासतौर पर गाँवों में, इसलिए चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ था।
रास्ते में किसी-किसी घर के अन्दर से लालटेन की रोशनी नज़र आ जाती थी।
गाँव के गलियों में सन्नाटा छाया हुआ था।
बेला सोनू के आगे-आगे कुछ गुनगुनाते हुए चल रही थी।
अंधेरे की वजह से सोनू ठीक से देख भी नहीं पा रहा था।
गाँव की गलियों से गुज़रते हुए बेला और सोनू गाँव के बाहर आ चुके थे।
अंधेरे और अंजान जगह के कारण सोनू थोड़ा डर रहा था।
आख़िरकार उसने बेला से पूछ ही लिया- गाँव तो खत्म हो गया.. आप का घर कहाँ है?’
बेला ने पीछे मुड़ कर सोनू की तरफ देखा और पीछे की तरफ इशारा करते हुए कहा- वो उधर.. वो वाला घर है।
सोनू ने एक बार पीछे मुड़ कर उस घर की तरफ देखा, जहाँ पर लालटेन जल रही थी।
सोनू- पर फिर आप यहाँ क्यों आ गईं?
बेला- वो दरअसल मुझे बहुत तेज पेशाब लगी थी। इसलिए यहाँ पर आई हूँ और सुनो तुम भी यहीं मूत लो.. घर पर पेशाब करने के लिए जगह नहीं है।
यह कह कर बेला अपनी गाण्ड मटकाते हुए थोड़ा आगे होकर रुकी और एक बार पीछे मुड़ कर 6-7 फुट दूर खड़े सोनू की तरफ देखा और अपने लहँगे को ऊपर उठाने लगी।
यह देख कर पीछे खड़े सोनू के हाथ-पाँव काँपने लगे और वो झेंपते हुए इधर-उधर देखने लगा।
हल्का चारों तरफ अंधेरा था पर आसमान में आधा चाँद निकला हुआ था, जिससे कुछ रोशनी तो चारों तरफ फैली हुई थी।
जैसे ही बेला ने अपने लहँगे को कमर तक ऊपर उठाया, मानो जैसे सोनू के हलक में कुछ अटक गया हो।
उसकी आँखें बेला के हल्के साँवले रंग के मांसल और गुंदाज चूतड़ों पर जम गई।
बेला आगे की तरफ देखते हुए मुस्करा रही थी।
यह सोच कर कि उसकी गाण्ड देख कर पीछे खड़ा सोनू बेहाल हो रहा होगा और सोनू था भी बेहाल।
बेला के मोटी और गुंदाज गाण्ड को देखते ही, सोनू का लण्ड उसके पजामे में एकदम तन कर खड़ा हो गया।
बेला ने अपने एक हाथ से अपने लहँगे को पकड़ा हुआ था और उसने एक दूसरे हाथ से एक बार अपनी चूत की फांकों को खुज़ाया और धीरे-धीरे नीचे पंजों के बल बैठ गई और फिर ‘सर्र’ की तेज आवाज़ से उसकी चूत से पेशाब के धार निकलने लगी।
जिसे सुन कर सोनू का और बुरा हाल हो गया। बेला का दिल भी जोरों से धड़क रहा था।
वो मन में सोच रही थी कि सोनू अभी उसे यहीं पटक कर चोद दे, पर अब वो ये सीधा-सीधा अपने मुँह से तो नहीं कह सकती थी।
सोनू का हाथ खुद ब खुद ही पजामे के ऊपर से उसके लण्ड पर पहुँच चुका था और वो बेला की गाण्ड को देखते हुए, अपने लण्ड को मसल रहा था।
बेला पेशाब करने के बाद उठी और अपनी टाँगों को थोड़ा सा फैला कर अपनी चूत की फांकों को अपनी ऊँगली से रगड़ कर साफ़ करने लगी।
अपना लहंगा नीचे करने की उसे कोई जल्दी नहीं थी, भले ही उसकी बेटी की उम्र का लड़का पीछे खड़ा उसकी गुंदाज गाण्ड देख रहा था।
बेला की झाँटों से भरी चूत का कुछ हिस्सा सोनू को भी दिखाई देने लगा।
सोनू का लण्ड तो बगावत पर उतर आया था.. वो उसके पजामे में ऐसे झटके मार रहा था, जैसे अभी उसका पजामा फाड़ कर बाहर आ जाएगा।
 

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बेला ने अपना मुँह घुमा कर पीछे देखा, सोनू की नज़रें बेला की गाण्ड पर ही टिकी हुई थीं और उसका हाथ अपने 8 इंच के लण्ड को पजामे के ऊपर से मसल रहा था।
जब बेला ने ये सब देखा तो उसके होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई, उसने अपने लहंगा नीचे किया और सोनू की तरफ मुड़ी।
जैसे ही बेला की गाण्ड को लहँगे ने ढका.. सोनू जैसे सपनों की हसीन दुनिया से बाहर आया और उसने बेला की तरफ देखा।
बेला उसकी तरफ देखते हुए, मंद-मंद मुस्करा रही थी।
सोनू ने अपना ध्यान दूसरी तरफ कर लिया, जैसे उसने कुछ देखा ही ना हो।
बेला अपनी गाण्ड को मटकाते हुए सोनू के पास आई और बोली- तुम्हें नहीं मूतना?
बेला की बात सुन कर सोनू हड़बड़ाया- जी नहीं..
सोनू की हालत देख कर बेला के होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई।
‘अच्छा ठीक है चलो… रात बहुत हो गई है… सुबह सेठजी के घर वापिस भी जाना है।’
यह कह कर बेला अपने घर की तरफ जाने लगी।
सोनू बेचारा अपने लण्ड को छुपाते हुए बेला के पीछे चल पड़ा।
बेला ने अपने घर के सामने जाकर लकड़ी से बने दरवाजे को खटखटाया, थोड़ी देर बाद बेला की बेटी बिंदया ने दरवाजा खोला।
वो अपनी नींद से भरी हुई आँखों को मलते हुए बोली- क्या माँ.. इतनी देर लगा दी… मैं तो सो ही गई थी।
जब उसने अपनी आँखों को खोल कर बेला की तरफ देखा तो बेला के पीछे खड़े सोनू को देख कर थोड़ा हैरान होकर बोली- यह कौन है माँ?
बेला ने सोनू की तरफ देखा और बोली- यह सोनू है, यह सेठ जी के घर में रहेगा.. उनका नौकर है। आज ही शहर से आया है।
बेला और सोनू अन्दर आ गईं।
बेला का घर ज्यादा बड़ा नहीं था…
उसके घर में आगे की तरफ एक कमरा था और पीछे की तरफ एक कमरा था, जिसमें बेला और उसकी बेटी सोते थी।
आगे वाले कमरे में जलावन का सामान रखा हुआ था और पिछले कमरे के आगे एक छोटा सा बरामदा था, पूरा घर कच्चा था.. नीचे ज़मीन भी कच्ची थी।
बेला सोनू को लेकर पिछले कमरे में आ गई, पिछले कमरे में एक चारपाई दीवार के साथ खड़ी थी।
शायद ग़रीब बेला के घर वो ही एक चारपाई थी और नीचे टाट के ऊपर दो बिस्तर लगे हुए थे।
बेला ने अन्दर आते ही अपनी बेटी बिंदया को साथ में एक और बिस्तर लगाने के लिए कहा।
सोनू एक दीवार के साथ खड़ा था, लालटेन की रोशनी में अब उसे बेला और बेटी साफ़-साफ़ दिखाई दे रही थीं।
बेला के बेटी का बदन बेला से भी अधिक भरा-पूरा था।
 

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बिंदया का कद 5’ 4′ इंच के करीब था, उसका बदन अभी से भर चुका था।
हर अंग उसकी जवानी को बयान करता था, 32 साइज़ की चूचियां एकदम कसी हुई थीं।
बेला ने अपनी बेटी के साथ बिस्तर लगाते हुए, सोनू की तरफ देखा।
उसका लण्ड उसके पजामे में बड़ा सा उभार बना हुआ था।
बेला के होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई और अगले ही पल वो सोनू के पजामे में आए हुए उभार को देख कर उसके लण्ड की कल्पना करने लगी।
‘आज सर्दी बहुत है।’
बेला ने सोनू के तरफ देखते हुए कहा।
बेला की बात सुन कर बिंदया भी बोली- हाँ माँ.. आज तो कुछ ज्यादा ही सर्दी ही… मुझे तो बहुत ठंड लग रही है।
बेला (मुस्कुराते हुए)- हाँ.. ठंड तो लग रही है, पर ठंड का अपना ही मज़ा है।
यह कहते हुए वो लगातार सोनू की तरफ देख रही थी।
बिस्तर लगाने के बाद बिंदया अपने बिस्तर पर पसर गई, उसे घर में सोनू जैसे अंजान लड़के के होने से कोई फरक नहीं पड़ रहा था ऐसा शायद नींद की वजह से था।
बिंदया बिस्तर पर पेट के बल लेट गई, जिसके कारण पीछे से उसकी भरी हुई गाण्ड बाहर की ओर आ गई थी।
वो उस समय सलवार-कमीज़ पहने हुए थी।
उसकी सलवार उसके चूतड़ों पर एकदम कसी हुई थी, जिसे देखे वगैर सोनू से रहा नहीं गया।
अपनी बेटी की गाण्ड को यूँ घूरता देख कर बेला ने सोनू की तरफ तीखी आँखों से देखा और फिर बिंदया के ऊपर रज़ाई उढ़ा दी और बुदबुदाते हुए बिस्तर पर लेट गई।
सोनू वहाँ ठगा सा खड़ा था।
जब बेला ने अपने ऊपर रज़ाई ओढ़ते हुए सोनू की तरफ देखा तो वो अभी भी बिंदया की तरफ ही देख रहा था।
‘अब तूँ क्यों वहाँ खड़ा है? चल लेट जा.. सुबह सेठ के घर जाकर बहुत काम करना है।’ बेला ने तीखी आवाज में कहा।
सोनू- जी।
सोनू बेला के साथ वाले बिस्तर पर लेट गया, उसके लण्ड पर आज बहुत ज़ुल्म हो रहा था।
अभी भी उसका लण्ड एकदम तना हुआ था।
उसने अपने ऊपर रज़ाई ओढ़ी और अपने पजामे का नाड़ा खोल कर अपना हाथ अन्दर सरका कर अपने लण्ड को पकड़ कर हिलाना चालू कर दिया।
रज़ाई के अन्दर चलते हाथ से थोड़ी सरसराहट होने लगी।
बेला पीठ के बल लेटी हुई थी। जब उसने वो आवाज़ सुनी तो उसने कनखियों से सोनू की तरफ देखा।
उसकी रज़ाई कमर वाले हिस्से से थोड़ा हिल रही थी।
बेला समझ गई कि छोरा अपना लण्ड को हिलाते हुए मुठ्ठ मार रहा है।
यह बात दिमाग़ में आते ही उसके दिल के धड़कनें बढ़ गईं।
उसकी चूत की फाँकें यह सोच कर कुलबुलाने लगीं कि उसके बगल में एक जवान लड़का लेटा हुआ अपना लण्ड हिला कर मुठ्ठ मार रहा है।
यह सब बेला के बर्दाश्त से बाहर था।
 
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