चन्डीमल- बेला, इसे घर के पीछे जो कमरा है.. वो दिखा दो..ये वहीं रहेगा…!
इससे पहले कि कोई कुछ बोलता या कहता, रजनी बीच में बोल पड़ी- जी.. उसमें तो जगह ही कहाँ हैं… वो तो पुराने सामान से भरा पड़ा है और वैसे भी पीछे इतनी दूर इसको बुलाने कौन जाएगा.. आगे तीन कमरे खाली हैं तो…!
रजनी की बात सुन कर चन्डीमल कुछ देर के लिए सोच में पड़ गया, पर चन्डीमल जानता था कि सोनू नौकर है और नौकर का घर के बीच में रहना ठीक नहीं है।
इसलिए चन्डीमल ने ये कह कर मना कर दिया कि जिस सामान की ज़रूरत नहीं है.. उससे फेंक दिया जाए या जलावन के लिए इस्तेमाल किया जाए..!
चन्डीमल की बात सुन कर रजनी थोड़ा हताश ज़रूर हुई, पर सोनू को पीछे वाले कमरे में ठहरने से भी रजनी को कुछ अलग ही सूझ रहा था।
आख़िरकार घर की सभी औरतें पीछे जाकर ही तो नहाती थीं।
घर में सबसे पहले चन्डीमल नहाता था और चन्डीमल के दुकान पर जाने के बाद दीपा और रजनी नहाती थीं और अब सीमा भी शामिल हो गई थी।
चन्डीमल ने फैसला सुना दिया था।
बेला ने सोनू को अपने साथ चलने के लिए कहा।
जैसे ही बेला सोनू को लेकर घर के पीछे की तरफ गई, उसने पीछे मुड़ कर एक बार सोनू को देखा।
उसकी आँखों में अजीब सी चमक थी, जब से उसने सोनू को देखा था।
बेला का पति सेठ चन्डीमल की दुकान पर ही काम करता था, वो एक नम्बर का पियक्कड़ था, कोई काम-काज नहीं करता था।
बस सारा दिन गाँव के आदमियों के साथ इधर-उधर घूमता रहता, दारू पीता और घर आकर सो जाता।
इसलिए चन्डीमल से कह कर बेला ने अपने पति को दुकान पर लगवा दिया था और चन्डीमल ने भी बेला के पति को खूब फटकारा था, जिससे वो काफ़ी हद तक सुधर गया था।
अब वो दुकान में ही रहता था, बस 7-8 दिन में एक बार गाँव आता था।
चन्डीमल उसकी तनखाह बेला को ही देता था और कुछ पैसे उसके पति को भी देता था।
जब बेला उसे पीछे बने कमरा की तरफ ले जा रही थी, तो वो बार-बार पीछे मुड़ कर उसकी तरफ देख रही थी।
बेला की उम्र 30 साल थी और एक बेटे और बेटी की माँ भी थी.. बेटी बड़ी थी।
बेला की शादी छोटी उम्र में हुई थी और एक साल बाद ही उसने बेटी को जन्म दिया था, जिसका नाम बिंदया था।
बिंदया दीपा से उम्र में एक समान थी।
सोनू को बेला का यूँ बार-बार मुड़ कर देखना और देख कर मुस्कराना अजीब सा लग रहा था क्योंकि बेला सोनू से दुगनी उम्र की थी और सोनू इन सब बातों और इशारों को समझने के लिए परिपक्व नहीं था।
कमरे की तरफ जाते हुए, बेला अपने चूतड़ों को कुछ ज्यादा ही मटका कर चल रही थी, बेला और उसके पति के बीच चुदाई का खेल अब खत्म हो चुका था।
जब से बेला ने चन्डीमल से अपने पति को फटकार लगवाई थी, तब से उसने बेला से चुदाई करना बंद कर दिया था। बेला को चुदाए हुए कई साल हो चुके थे।
जब बेला ने कमरे के सामने जाकर दरवाजा खोला और सोनू के तरफ पलटी और अपने होंठों पर मुस्कान लाते हुए कहा- ये लो… आज से ये तुम्हारा कमरा है।
सोनू सर झुकाए हुए कमरे में घुस गया और इधर-उधर देखने लगा।
कमरा पुराने सामान से भरा हुआ था।
इतने में पीछे से चन्डीमल भी आ गया और कमरे के अन्दर झांकता हुआ बोला- हाँ.. सच में अन्दर तो पुराना सामान भरा हुआ है… ऐसा करो, अपना झोला यहीं रखो… कल यहाँ से बेकार सामान बाहर निकलवा देते हैं और आज रात का तुम्हारे सोने का इंतज़ाम कहीं और करवा देता हूँ।।
चन्डीमल की बात सुन कर बेला ने झट से कहा- सेठ जी… अगर आप बोलें तो, ये आज हमारे घर पर ही सो जाता है।
चन्डीमल को बेला की बात ठीक लगी और चन्डीमल ने बेला को ‘हाँ’ कह दी।
रात ढल चुकी थी, सब खाना खा चुके थे और अपने कमरों में जाकर सोने की तैयारी कर रहे थी।
चन्डीमल तो इस घड़ी के लिए पहले से ही बहुत उतावला था।
बेला अपना सारा काम निपटा कर सोनू के पास गई.. जो खाना खा कर आँगन में ज़मीन पर ही लेटा हुआ था।
‘चलो अब चलते हैं… सारा काम खत्म हो गया है।’
सोनू ने बेमन से बेला की तरफ देखा।
जो उसकी तरफ देखते हुए कातिल मुस्कान अपने होंठों पर लाए हुए थी और फिर सोनू उठ कर खड़ा हो गया।
बेला रजनी के कमरे में गई और बोली- दीदी, मैंने सारा काम कर दिया है… अब मैं जा रही हूँ… बाहर का दरवाजा बंद कर लो।
उसके बाद बेला सोनू को लेकर चन्डीमल के घर से निकल कर अपने घर की तरफ जाने लगी।
रात घिर चुकी थी।
आप सब लोग तो जानते ही होंगे।
उस समय में बिजली नहीं होती थी, ख़ासतौर पर गाँवों में, इसलिए चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ था।
रास्ते में किसी-किसी घर के अन्दर से लालटेन की रोशनी नज़र आ जाती थी।
गाँव के गलियों में सन्नाटा छाया हुआ था।
बेला सोनू के आगे-आगे कुछ गुनगुनाते हुए चल रही थी।
अंधेरे की वजह से सोनू ठीक से देख भी नहीं पा रहा था।
गाँव की गलियों से गुज़रते हुए बेला और सोनू गाँव के बाहर आ चुके थे।
अंधेरे और अंजान जगह के कारण सोनू थोड़ा डर रहा था।
आख़िरकार उसने बेला से पूछ ही लिया- गाँव तो खत्म हो गया.. आप का घर कहाँ है?’
बेला ने पीछे मुड़ कर सोनू की तरफ देखा और पीछे की तरफ इशारा करते हुए कहा- वो उधर.. वो वाला घर है।
सोनू ने एक बार पीछे मुड़ कर उस घर की तरफ देखा, जहाँ पर लालटेन जल रही थी।
सोनू- पर फिर आप यहाँ क्यों आ गईं?
बेला- वो दरअसल मुझे बहुत तेज पेशाब लगी थी। इसलिए यहाँ पर आई हूँ और सुनो तुम भी यहीं मूत लो.. घर पर पेशाब करने के लिए जगह नहीं है।
यह कह कर बेला अपनी गाण्ड मटकाते हुए थोड़ा आगे होकर रुकी और एक बार पीछे मुड़ कर 6-7 फुट दूर खड़े सोनू की तरफ देखा और अपने लहँगे को ऊपर उठाने लगी।
यह देख कर पीछे खड़े सोनू के हाथ-पाँव काँपने लगे और वो झेंपते हुए इधर-उधर देखने लगा।
हल्का चारों तरफ अंधेरा था पर आसमान में आधा चाँद निकला हुआ था, जिससे कुछ रोशनी तो चारों तरफ फैली हुई थी।
जैसे ही बेला ने अपने लहँगे को कमर तक ऊपर उठाया, मानो जैसे सोनू के हलक में कुछ अटक गया हो।
उसकी आँखें बेला के हल्के साँवले रंग के मांसल और गुंदाज चूतड़ों पर जम गई।
बेला आगे की तरफ देखते हुए मुस्करा रही थी।
यह सोच कर कि उसकी गाण्ड देख कर पीछे खड़ा सोनू बेहाल हो रहा होगा और सोनू था भी बेहाल।
बेला के मोटी और गुंदाज गाण्ड को देखते ही, सोनू का लण्ड उसके पजामे में एकदम तन कर खड़ा हो गया।
बेला ने अपने एक हाथ से अपने लहँगे को पकड़ा हुआ था और उसने एक दूसरे हाथ से एक बार अपनी चूत की फांकों को खुज़ाया और धीरे-धीरे नीचे पंजों के बल बैठ गई और फिर ‘सर्र’ की तेज आवाज़ से उसकी चूत से पेशाब के धार निकलने लगी।
जिसे सुन कर सोनू का और बुरा हाल हो गया। बेला का दिल भी जोरों से धड़क रहा था।
वो मन में सोच रही थी कि सोनू अभी उसे यहीं पटक कर चोद दे, पर अब वो ये सीधा-सीधा अपने मुँह से तो नहीं कह सकती थी।
सोनू का हाथ खुद ब खुद ही पजामे के ऊपर से उसके लण्ड पर पहुँच चुका था और वो बेला की गाण्ड को देखते हुए, अपने लण्ड को मसल रहा था।
बेला पेशाब करने के बाद उठी और अपनी टाँगों को थोड़ा सा फैला कर अपनी चूत की फांकों को अपनी ऊँगली से रगड़ कर साफ़ करने लगी।
अपना लहंगा नीचे करने की उसे कोई जल्दी नहीं थी, भले ही उसकी बेटी की उम्र का लड़का पीछे खड़ा उसकी गुंदाज गाण्ड देख रहा था।
बेला की झाँटों से भरी चूत का कुछ हिस्सा सोनू को भी दिखाई देने लगा।
सोनू का लण्ड तो बगावत पर उतर आया था.. वो उसके पजामे में ऐसे झटके मार रहा था, जैसे अभी उसका पजामा फाड़ कर बाहर आ जाएगा।