बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर मदमस्त समापन है कहानी का
अब बेहिचक वह अपनी बीवी की बाहों में जकडे उस पट पडे बेहोश कोमल शरीर पर चढ गया. अपनी बाहों में भर के वह पटापट मुन्नी के कोमल गाल चूमने लगा. मुन्नी का मुंह मेनका के स्तन से भरा होने से वह उसके होंठों को नहीं चूम सकता था इसलिये बेतहाशा उसके गालों, कानों और आँखों को चूमते हुए उसने आखिर अपने प्यारे शिकार की गांड मारना शुरू की.
मेनका ने पूछा "कैसा लग रहा है डार्लिंग?" विवेक सिर्फ़ मुस्कुराया और उसकी आँखों मे झलकते सुख से मेनका को जवाब मिल गया. उसकी भी बुर अब इतनी चू रही थी कि मुन्नी के शरीर पर बुर रगडते हुए वह स्वमैथुन करने लगी. "मारो जी, गांड मारो, खूब हचक हचक कर मारो, अब क्या सोचना, अपनी तमन्ना पूरी कर लो" और विवेक बीवी के कहे अनुसार मजा ले ले कर अपनी बहन की गांड चोदने लगा.
पहले तो वह अपना लंड सिर्फ़ एक दो इंच बाहर निकालता और फ़िर घुसेड देता. मक्खन भरी गांड में से ’पुच पुच पुच’ की आवाज आ रही थी. इतनी टाइट होने पर भी उसका लंड मस्ती से फ़िसल फ़िसल कर अन्दर बाहर हो रहा था. इसलिये उसने अब और लंबे धक्के लगाने शुरू किये. करीब ६ इंच लंड अन्दर बाहर करने लगा. अब आवाज ’पुचुक, पुचुक, पुचुक’ ऐसी आने लगी. विवेक को ऐसा लग रहा था मानों वह एक गरम गरम चिकनी बडी संकरी मखमली म्यान को चोद रहा है. उसके धैर्य का बांध आखिर टूट गया और वह उछल उछल कर पूरे जोर से मुन्नी की गांड मारने लगा.
अब तो ’पचाक, पचाक पचाक’ आवाज के साथ बच्ची मस्त चुदने लगी. विवेक ने अब अपना मुंह अपनी पत्नी के दहकते होंठों पर रख दिया और बेतहाशा चूमा चाटी करते हुए वे दोनों अपने शरीरों के बीच दबी उस किशोरी को भोगने लगे.
विवेक को बिलकुल ऐसा लग रहा था जैसे कि वह किसी नरम नरम रबर की गुड़िया की गांड मार रहा है. वह अपने आनंद की चरम सीमा पर कुछ ही मिनटों में पहुँच गया और इतनी जोर से स्खलित हुआ जैसा वह जिन्दगी में कभी नहीं झडा था. झडते समय वह मस्ती से घोडे जैसा चिल्लाया. फ़िर लस्त पडकर मुन्नी की गांड की गहरायी में अपने वीर्यपतन का मजा लेने लगा. मेनका भी मुन्नी के चिकने शरीर को अपनी बुर से रगड कर झड चुकी थी. विवेक का उछलता लंड करीब पाँच मिनट अपना उबलता हुआ गाढ़ा गाढ़ा वीर्य मुन्नी की आंतों में उगलता रहा.
झड कर विवेक मेनका को चूमता हुआ तब तक आराम से पडा रहा जब तक मुन्नी को होश नहीं आ गया. लंड उसने बालिका की गांड में ही रहने दिया. कुछ ही देर में कराह कर उस मासूम लडकी ने आँखें खोलीं. विवेक का लंड अब सिकुड गया था पर फ़िर भी मुन्नी को दर्द हो रहा था। उसकी पूरी गांड ऐसे दुख रही थी जैसे किसी ने एक बडी ककडी से उसकी गांड चोद दी हो.
उसकी फड़फड़ाहट से विवेक की वासना फ़िर से जागृत हो गयी. पर अब वह मुन्नी का मुंह चूमना चाहता था. मेनका उस के मन की बात समझ कर मुन्नी से बोली "मेरी ननद बहना, उठ गयी? अगर तू वादा करेगी कि चीखेगी नहीं तो तेरे मुंह में से मैं अपनी चूची निकाल लेती हूँ." मुन्नी ने सिर हिलाकर वादा किया कि कम से कम उसके ठूँसे हुए मुंह को कुछ तो आराम मिले.
मेनका ने अपना उरोज उसके मुंह से निकाला. वह देख कर हैरान रह गयी कि वासना के जोश में करीब करीब पूरी पपीते जितनी बडी चूची उसने मुन्नी के मुंह में ठूंस दी थी. "मजा आया मेरी चूची चूस कर?" मेनका ने उसे प्यार से पूछा. घबराये हुई मुन्नी ने मरी सी आवाज में कहा "हाँ, भाभी" असल में उसे मेनका के स्तन बहुत अच्छे लगते थे और इतने दर्द के बावजूद उसे चूची चूसने में काफ़ी आनंद मिला था.
मेनका अब धीरे से मुन्नी के नीचे से निकल कर बिस्तर पर बैठ गयी और विवेक अपनी बहन को बाहों में भरकर उसपर चढ़ कर पलंग पर लेट गया. उसने अपनी बहन के स्तन दोनों हाथों के पंजों में पकडे और उन छोटे छोटे निप्पलों को दबाता हुआ मुन्नी का मुंह जबरदस्ती अपनी ओर घुमाकर उसके गुलाबी होंठ चूमने लगा. बच्ची के मुंह के मीठे चुंबनों से विवेक का फ़िर खडा होने लगा.
विवेक ने अब अपने पंजों में पकडे हुए कोमल स्तन मसले और उन्हें रीक्शा के हॉर्न जैसा जोर जोर से दबाने लगा. हंसते हुए मेनका को बोला "डार्लिन्ग, मेरी नई स्कूटर देखी, बडी प्यारी सवारी है, और हॉर्न दबाने में तो इतना मजा आता है कि पूछो मत." मेनका भी उसकी इस बात पर हंसने लगी.
चूचियाँ मसले जाने से मुन्नी छटपटायी और सिसकने लगी. विवेक को मजा आ गया और अपनी छोटी बहन की परवाह न करता हुआ वह अपनी पूरी शक्ति से उन नाजुक उरोजों को मसलने लगा. धीरे धीरे उसका लंड लंबा होकर मुन्नी की गांड में उतरने लगा. मुन्नी फ़िर छटपटाने को आ गयी पर डर के मारे चुप रही कि भाभी फ़िर उसका मुंह न बांध दे.
लौडा पूरा खडा होने पर विवेक ने गांड मारना फ़िर शुरू कर दिया. जैसे उसका लंबा तन्नाया लंड अन्दर बाहर होना शुरू हुआ, मुन्नी सिसकने लगी पर चिल्लाई नही. मेनका मुस्कायी और मुन्नी से बोली. "शाबाश बेटी, बहुत प्यारी गांडु लडकी है तू, अब भैया के लंड से चुदने का मजा ले, वे रात भर तुझे चोदने वाले हैं."
मेनका उठ कर अब विवेक के आगे खडी हो गयी. "मेरी चूत की भी कुछ सेवा करोगे जी? बुरी तरह से चू रही है" विवेक ने मेनका का प्यार से चुंबन लिया और कहा. "आओ रानी, तुमने मुझे इतना सुख दिया है, अब अपनी रसीली बुर का शरबत भी पिला दो, मैं तो तुम्हें इतना चुसूँगा कि तेरी चूत तृप्त कर दूंगा" मेनका बोली "यह तो शहद है बुर का, शरबत नहीं, बुर का शरबत तो मैं तुम्हें कल बाथरूम में पिलाऊँगी." मेनका की बात विवेक समझ गया और उस कल्पना से की इतना उत्तेजित हुआ कि अपनी पत्नी की चूत चूसते हुए वह मुन्नी की गांड उछल उछल कर मारने लगा.
अब उसने अपनी वासना काफ़ी काबू में रखी और हचक हचक कर अपनी छोटी बहन की गांड चोदने लगा. स्तनमर्दन उसने एक सेकंड को भी बंद नहीं किया और मुन्नी को ऐसा लगने लगा जैसे उसकी चूचियाँ चक्की के पाटों में पिस रही हों. इतना ही नहीं, उसके निप्पल उंगलियों में लेकर वह बेरहमी से कुचलता और खींचता.
"हफ़्ते भर में मूंगफली सी कर दूंगा तेरे निप्पल मुन्नी. चूसने में बहुत मजा आता है अगर लंबे निप्पल हों." वह बोला. बीच बीच में विवेक मेनका की चूत छोड कर प्यार से मुन्नी के गुलाबी होंठ अपने दांतों में दबाकर हल्के काटता और चूसने लगता. कभी उसके गाल काट लेता और कभी गरदन पर अपने दाँत जमा देता. फ़िर अपनी बीवी की बुर पीने मे लग जाता.
इस बार वह घंटे भर बिना झडे मुन्नी की मारता रहा. जब वह आखिर झडा तो मध्यरात्रि हो गयी थी. मेनका भी बुर चुसवा चुसवा कर मस्त हो गयी थी और उसकी चूत पूरी तरह से तृप्त हो गई थी.
अपने शरीर का यह भोग सहन न होने से आखिर थकी-हारी सिसकती हुई मुन्नी एक बेहोशी सी नींद में सो गयी. बीच बीच में गांड में होते दर्द से उसकी नींद खुल जाती तो वह विवेक को अपनी गांड मारते हुए और मेनका की चूत चूसते हुए पाती.
अन्त में जब सुबह आठ बजे गांड में फ़िर दर्द होने से उसकी नींद खुली तो देखा कि विवेक भैया फ़िर हचक हचक कर उसकी गांड मार रहे हैं. मुन्नी चुपचाप मरवाते हुए पडी रही. भाभी वहाँ नहीं थी, शायद चाय बनाने गयी थी. आखिर में विवेक झडा और मजा लेते हुए काफ़ी देर उसपर पडा रहा. मेनका जब चाय लेकर आयी तब वह उठा और लंड को आखिर मुन्नी की गांड में से बाहर निकाला.
लंड निकलते हुए ’पाम्क’ की आवाज हुई. मेनका ने देखा कि एक ही रात में उस संकरी कोमल गांड का छेद खुल गया था और गांड का छेद अब चूत जैसा लग रहा था. विवेक को देख कर वह बोली "हो गयी शांति? अब सब लोग नहाने चलो, वहाँ देखो मैं तुमसे क्या करवाती हूँ. आखिर इतनी प्यारी कुंवारी गांड मारने की कीमत तो तुम्हें देनी ही पडेगी डार्लिंग" विवेक मुस्कुराया और बोला "आज तो जो तुम और मुन्नी कहोगी, वह करूंगा, मैं तो तुम दोनों चूतों और गांडों का दास हूँ"
"चलो अब नहाने चलो" मेनका बोली. मुन्नीने चलने की कोशिश की तो गांड में ऐसा दर्द हुआ कि बिलबिला कर रो पडी. "हाय भाभी, बहुत दुखता है, लगता है भैया ने मार मार के फ़ाड दी."
मेनका के कहने पर विवेक ने उसे उठा लिया और बाथरूम में ले गया. दोनो ने मिलकर पहले मुन्नी के मसले कुचले हुए फ़ूल जैसे बदन को सहलाया, तेल लगाकर मालिश की और फ़िर नहलाया. विवेक ने एक क्रीम मुन्नी की गांड के छेद में लगाई जिससे उसका दर्द गायब हो गया और साथ ही ठंडक भी महसूस हुई. मुन्नी अब फ़िर खिल गई थी और धीरे धीरे फ़िर अपने नग्न भैया और भाभी को देखकर मजा लेने लगी थी. पर उसे यह मालूँ नहीं था कि वह क्रीम उसकी गुदा को फ़िर संकरा बना देगी और गांड मरवाते हुए फ़िर उसे बहुत दर्द होगा. विवेक अपनी छोटी बहन की गांड टाइट रखकर ही उसे मारना चाहता था. अगर लडकी रोए नहीं, तो गांड मारने का मजा आधा हो जायेगा ऐसा उसे लगता था.
मेनका ने विवेक से कहा. "चलो जी अब अपना वायदा पूरा करो. बोले थे कि जो मैं कहूँगी वह करोगे." विवेक बोला "बोलो मेरी रानी, तेरे लिये और इस गुड़िया के लिये मैं कुछ भी करूंगा."
मेनका ने विवेक को नीचे लिटा दिया और अपना मुंह खोलने को कहा. विवेक समझ गया कि क्या होने वाला है, पर वह इन दोनों चुदैलो का गुलाम सा हो चुका था. कुछ भी करने को तैयार था. मेनका को खुश रखने में ही उसका फ़ायदा था. मेनका मुन्नी से बोली. "चल मेरी प्यारी ननद, रात भर गांड मराई है, मूती भी नहीं है, अपने भाई के मुंह में पिशाब कर दे." मुन्नी शरमा गई पर मन में लड्डू फ़ूटने लगे. विवेक की ओर उसने शरमा कर देखा तो वह भी मुस्कुराया. साहस करके मुन्नी विवेक के मुंह पर बैठ गई और मूतने लगी.
उस बच्ची का खारा खारा गरम गरम मूत विवेक को इतना मादक लगा कि वह गटागट उसे पीने लगा. मुन्नी की बुर अब फ़िर पसीजने लगी थी. अपने बडे भाई को अपनी पिशाब पिला कर वह बहुत उत्तेजित हो गई थी. मूतना खतम करके मुन्नी उठने लगी तो विवेक ने फ़िर उसे अपने मुंह पर बिठा लिया और उसकी चूत चूसने लगा. उधर मेनका ने अपनी चूत में विवेक का तन्नाया लंड डाल लिया और उसके पेट पर बैठ कर उछल उछल कर उसे चोदने लगी. पीछे से वह मुन्नी को लिपटाकर उसे चूमने लगी और उसके स्तन दबाने लगी.
जब मुन्नी और मेनका दोनों झड गए तो मुन्नी उठी और बाजू में खडी हो गई. बोली "भाभी, तुम भी अपना मूत भैया को पिलाओ ना, मेरा उन्हों ने इतने स्वाद से पिया है, तुम्हारा पी कर तो झूम उठेंगे." मेनका को विवेक ने भी आग्रह किया. "आ जा मेरी रानी, अपना मूत पिला दे, तू तो मेरी जान है, तू अपने शरीर का कुछ भी मेरे मुंह में देगी तो मैं निगल लूँगा." मेनका हंसने लगी. अपने पति के मुंह में मूतने लगी।
विवेक अब तक उत्तेजित हो चुका था. बोला "मैं तैयार हूँ अपनी दोनों चुदैलो की कोई भी सेवा करने को, बस मुझे अपनी चूत का अमृत पिलाती रहो, चुदवाती रहो और गांड मराती रहो. खास कर इस नन्ही की तो मैं खूब मारूँगा."
मेनका मूतने के बाद उठी और बोली. "इसे तो अब रोज चुदना या गांड मराना है. एक दिन छोड कर बारी बारी इसके दोनों छेद चोदोगे तो दोनों टाइट रहेंगे और तुम्हें मजा आएगा."
"तो चलो अब मुन्नी को चोदूँगा." कह कर विवेक उसे उठा कर ले गया. मेनका भी बदन पोछती हुई पीछे हो ली. उस बच्ची की फ़िर मस्त भरपूर चुदाई की गई. मुन्नी अब पूरा सिहर कर चुदाई में सहयोग करने लगी थी।
रविवार था इसलिये दिन भर विवेक ने उसे तरह तरह के आसनो में चोदा और मेनका मुन्नी से अपनी चूत चुसवाती रही.
दूसरे दिन से यह एक नित्यक्रम बन गया. विवेक रात को मुन्नी को चोदता या उसकी गांड मारता. कॉलेज से वापस आने पर दिन भर मेनका उस बच्ची को भोगती. उसकी चूत चूसती और अपनी चुसवाती.
विवेक रात को ब्लू फ़िल्म देखते समय मुन्नी की गांड में लंड घुसेडकर अपनी गोद में बिठा लेता और उसे चूमते हुए, उसकी छोटी छोटी मुलायम चूचियाँ मसलते हुए उछल उछल कर नीचे से गांड मारते हुए पिक्चर देखा करता. उधर मेनका उसके सामने बैठ कर उसकी कमसिन बुर चूसती. एक भी मिनट बिचारी मुन्नी के किसी भी छेद को आराम नहीं मिलता. आखिर मुन्नी चुद चुद कर ऐसी हो गई कि बिना गांड या चूत में लंड लिये उसे बडा अटपटा लगता था.
धीरे धीरे मेनका ने उसे करीब करीब गुलाम सा बना लिया और वह लडकी भी अपनी खूबसूरत भाभी को इतना चाहती थी कि बिना झिझक भाभी की हर बात मानने लगी.
चोद चोद कर उस लडकी की यह हालत हो गई कि वह कपडे सिर्फ़ कॉलेज जाते समय पहनती थी. बाकी अब दिन रात नंगी ही रहती थी और लगातार चुदती, रात को बडे भाई से और दिन में अपनी भाभी से. उसके बिना उसे अच्छा ही नहीं लगता था. उसके लंड की प्यास इतनी बढ़ गई कि आखिर विवेक ने मेनका को एक रबर का लंड/डिल्डो ला दिया जिससे उसकी चुदैल पत्नी भी दिन में अपनी ननद को चोद सके और उसकी गांड मार सके.
सच में मुन्नी अब अपने भैया भाभी की पूरी लाडली बन गई थी.
--- समाप्त ----
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भाई मजा आ गया