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पढ़कर कमेंट करा करो?Bahut hee jabardast update diya hai![]()
अच्छा नहीं लगे तो भी चलेगा..
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Update 34
गौतम जैसे ही रूम के अंदर दाखिल होता हुआ जमीन पर गिरता है वह देखता है कि इस रूम में घनघोर अंधेरा था और कोई भी इस कमरे में नहीं था.
गौतम जैसे तैसे उठकर अपने आप को संभालते हुए पीछे मुड़कर बाहर जाने की तरफ होता है कि कोई औरत रूम के अंदर एक तरफ से आते हुए दरवाजे को बंद कर देती है औऱ अँधेरे में गौतम को कोई औऱ समझकर उसके हाथ में कंडोम देती हुई बेड पर अपनी साडी उठाकर घोड़ी बनती हुई गौतम से कहती है..
औरत - डायरेक्ट साहब.. आप भी कभी भी याद कर लेते है.. इंटरव्यू को बीच में छोड़कर ब्रेक लेके आई हूँ.. एक घंटे है जल्दी कीजिये..
कमरे में इतना अंधेरा था कि कोई एक दूसरे की शक्ल देखना तो दूर एक दूसरे को आसपास खड़ा हुआ भी देख कर नहीं पहचान सकता था कि वह कौन है.. सिर्फ लोग एकदूसरे की परछाई को ही देख सकते थे.. गौतम ने बिस्तर पर घोड़ी बनी हुई औरत की मोटी गांड देखी तो उसके लंड में अकड़न आने लगी.. उसे लगा कि मौका अच्छा है.. और गौतम मौके पर चौका मारे बिना नहीं रह सकता था..
गौतम ने जल्दी से जीन्स नीचे सरका कर बिना कंडोम पहने लंड पर थूक लगाया औऱ औरत के बाल पकड़ कर पीछे से उसकी चुत पर लोडा सेट करके एक जोरदार धक्का मार दिया..
जिससे गौतम का पूरा लंड औरत की चुत चिरता हुआ एक ही बार उसमें घुस गया मगर साथ में औरत की हालात भी खराब कर गया..
लंड घुसते ही औरत इतनी जोर से चीखी की गौतम घबरा गया.. होटल के रूम अगर साउंड प्रूफ नहीं होते तो औरत की आवाज होटल के बार खड़ी जनता को भी साफ साफ सुनाई दे जाती..
औरत चीखने के बाद दो तीन मिनट तकिये में मुंह देकर पड़ी रही फिर अपने फ़ोन की फ्लेशलाइट ऑन करके अपना चेहरा पीछे घूमती हुई गौतम को देखने लगी..
गौतम औऱ उस औरत ने फ्लेशलाइट में एकदूसरे की शकल देखी तो दोनों हैरानी से एकदूसरे को देखने लगे.. गौतम औरत का चेहरा देखकर हैरान औऱ रोमांचित हो उठा.. घोड़ी की जगह अब औरत पेट के बल बेड पर पड़ी हुई थी औऱ गौतम उसकी चुत में लंड डाले उसके ऊपर पड़ा हुआ था..
गौतम औरत का चहरा देखकर बोला..
गौतम - बिग फन ma'am...
औरत गौतम को ऊपर से धक्का देकर पलट जाती है औऱ एक जोरदार थप्पड़ गौतम को जमाती हुई कहती है - what the fuck who you are?
गौतम तप्पड़ खाने के बाद असंतुलित होकर वापस औरत पर गिर गया औऱ उसका लंड फिर से संयोगवश औरत की चुत में अपने आप घुस गया जिससे वापस औऱत की चिंख निकल गयी औऱ वो आह्ह.. करते हुए अपनी चुत में गौतम के तगड़े मोटे लंड को महसूस करती हुई सिसक उठी..
गौतम चुत की गर्माहट औऱ टाइटनेस महसूस करते हुए चोदे बिना नहीं रह सका औऱ चोदते हुए बोला - सॉरी ma'am.. गलती से चला गया.. मैं आपका बहुत बड़ा फन हूँ... आपकी सारी फिल्मे वेबसीरीज देखता हूँ.. आपकी तारे जमीन ओर तो मैंने 50 से ज्यादा बार देखी है..
औरत की चुत में गौतम के लंड से तहलका मच चूका था वो लंड की सख़्ती औऱ उसके घेराव को महसूस करते हुए कामुकता औऱ मादकता से भर चुकी थी.. गौतम बिना किसी का लाज शर्म या हया के उसी तरह औरत के ऊपर पड़ा हुआ उसे चोदने लगा था.
गौतम रोमांचित औऱ ख़ुशी से भरा हुआ था गौतम एक पल को भूल गया था की उसका शैतानी लंड औरत की गहराई में घुसा हुआ उसे चोद रहा है गौतम वापस बोला..
गौतम - tisca ma'am आप मेरी फेवरेट हो.. सच कहु तो आपके आगे करीना कटरीना दीपिका मुझे सब पानी कम चाय है...
(Tisca Chopra 51)
गौतम ने इतना कहा ही था की दरवाजे पर रिंग हुई..
Tisca ने गौतम को धक्का देकर बगल में गिरा दिया औऱ बेड से उठने लगी.. जैसे ही tisca उठी उसकी जांघ कापने लगी औऱ उसे चुत पर अजीब सा महसूस हुआ उसने हाथ लगाया औऱ देखा तो फ्लेशलाइट में उसे हल्का सा खून दिखा.. Tisca ने फलेश गौतम पर डाल कर गुस्से में एक नज़र गौतम को देखा फिर दरवाजा खोलने बढ़ गई.. गौतम डरकर बेड के पासअलमारी के अंदर छिप गया..
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Tisca लंगड़ती हुई धीरे धीरे दरवाजे तक पहुंची औऱ लाइट ऑन करके दरवाजा खोलकर बाहर देखने लगी..
कमरे के बाहर एक आदमी खड़ा हुआ था जिसने दरवाजा खुलने पर tisca से कहा - tisca it's an emergency.. I have to go to the airport.. Sorry i bothered you & ruin your interview.. इतना कहकर आदमी वहा से चला गया..
Tisca ने दरवाजे के बाहर डु नोट डिस्टर्ब का sign लटका दिया औऱ दरवाजा बंद करके वापस लंगड़ती हुई अंदर आ गई.. Tisca ने टेबल पर वाटर बोतल से पानी गिलास में डाला औऱ पूरा गिलास पानी पीकर वही पड़े सिगरेट के पैकेट से सिगरेट निकालकर लाइटर से सुलगाते हुए दो - तीन कश लेकर बेड को देखने लगी जहा सफ़ेद चादर पर खून की 3-4 बून्द गिरी हुई थी. tisca ने अपनी चुत को लाइट के उजाले में देखा तो पाया की चुत पर हल्का सा खून लगा हुआ था औऱ उसकी चुत में अब कुलबुलाहत हो रही थी जो इस बात का संकेत थी कि उसे गौतम के लंड पसंद आ गया था..
Tisca ने मुस्कुराते हुए अपनी चुत को सहलाया औऱ सिगरेट के अगले कश मारते हुए कुछ सोचने लगी फिर अलमीरा के सामने आकर अलमीरा खोलते हुए गौतम को अंदर बैठा हुआ देखती है जो अब अपनी जीन्स ठीक से पहन चूका था.. लाइट के उजाले में tisca को गौतम बहुत खूबसूरत औऱ प्यारा सा लड़का लगा था लेकिन जो हरकत उसने अभी उसके साथ की थी उस वजह से tisca गौतम को गुस्से भरी आँखों से देख रही थी..
गौतम tisca को देखकर अलमीरा से बाहर आते हुए - sorry ma'am.. गलती से आपके रूम आ गया था.. वैसे आप टीवी पर जितनी खूबसूरत दिखती हो उससे कहीं ज्यादा रियल में हो.. मैं अपने फ्रेंड्स को बताऊंगा तो उन्हें यक़ीन ही नहीं होगा..
Tisca गौतम को चुपचाप खड़ी हुई देख सुन रही थी औऱ सिगरेट के कश खींचते हुए धुआँ छोड़े जा रही थी..
गौतम आगे फिर कहता है - आपकी न्यू मूवी आ रही है ना सावन की रात? मैंने ट्रेलर देखा था उसका.. मूवी बहुत अमेज़िंग लग रही है...अच्छा ma'am मैं जाता हूँ.. Sorry for troubling you..
गौतम इतना कहकर जाने के लिए पीछे मुड़ा ही था कि tisca ने गौतम के कान पकड़कर वापस अपनी तरफ घुमा लिया औऱ सिगरेट का आखिरी कश लेकर सिगरेट बुझाते हुए गौतम को धक्का देकर बेड पर गिरा दिया औऱ उसके ऊपर चढ़ती हुई गौतम की जीन्स को पकड़कर खोलने लगी.. जीन्स का बटन खोलने के बाद चैन नीचे करके जीन्स नीचे सरका कर tisca ने गौतम को देखा तो पाया कि गौतम चुपचाप tisca को ऐसे देख रहा था जैसे कोई सपना हो..
Tisca गौतम का लंड एक हाथ में पकड़कर सहलाती हुई हैरानी से उसके लंड को देख रही थी औऱ बार बार गौतम के चेहरे को देखकर दूसरे हाथ से गौतम के गाल बाल औऱ गले पर उंगलियां फिरा रही थी..
Tisca ने अच्छे से गौतम के लंड का जायजा लिया फिर मुस्कुराते हुए गौतम के होंठ पर अपने होंठ रखकर एक प्यार से भरा हुआ चुम्बन करके बोली..
Tisca - क्या age है तेरी?
गौतम ऐसे tisca को देख रहा था जैसे उसे साँप सूंघ गया हो..
Tisca ने वापस पूछा - 18 का तो है ना तु?
गौतम में इस बार हाँ में सर हिला दिया औऱ tisca ने गौतम के लंड पर अपना मुंह लगा दिया..
Tisca ने गौतम के लंड को मुंह में लेकर चूमते हुए चूसना शुरु कर दिया औऱ गौतम अपनी पसंदीदा मिल्फ हीरोइन के मुंह से blowjob का सुख अनुभव करके सातवे आसमान पर पहुंच चूका था..
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Tisca लंड के साथ साथ दोनों बॉल्स भी मुंह में लेकर बड़ी आराम औऱ प्यार से चाट औऱ चूस रही थी.. इसके साथ ही वो बार बार प्यार औऱ काम वासना की निगाह से गौतम को देख रही थी जिससे गौतम भी अब लाज शर्म उतारने लगा था..
Tisca ने थोड़ी देर लंड चूसकर गौतम को पीछे धकेल दिया औऱ अपनी साडी उतारकर फेंकते हुए पटीकोत ऊपर करके गौतम के लंड के ऊपर बैठने लगी औऱ उसका लंड अपनी चुत में लेते हुए बोली..![]()
Tisca - नाम क्या है तेरा?
गौतम - ma'am गौतम..
Tisca कुछ सोचकर - गौतम... निक नेम ग़ुगु... तू वही है ना जो हर सुबह औऱ शाम मुझे इंस्टा पर गुडमॉर्निंग baby गुडनाइट baby का massage सेंड करता है हार्ट के साथ?
गौतम - ज़ी.. ma'am बहुत बड़ा फन हूँ आपका..
Tisca मुस्कुराते हुए लंड पूरी तरह चुत में लेकर अपनी गांड हिलाते हुए - बड़ा कहा इतना छोटा सा तो है तू.. बस तेरा ये सामान बहुत बड़ा है.. पहली बार किसी इंडियन के पास इतना बड़ा औऱ मजबूत सामान देखा है.. वो भी किसी बच्चे के पास..
गौतमआहे भरते हुए - बीस साल का हूँ ma'am.. बच्चा नहीं हूँ..
Tisca - मैं 51 की हूँ.. मेरे सामने तो छोटा सा baby ही है तू..
गौतम नीचे से झटके मारते हुए - आपको देखकर लगता नहीं की आप 51 साल की हो.. ऐसा लगता है आप अभी भी 25 की हो..
Tisca सिसकियाँ लेते हुए अपने ब्लाउज के बटन खोलती हुई - मेरे साथ फल्ट कर रहा है? तेरे सामान के साथ साथ तुझे भी अपनी चुत में अंदर डाल लुंगी.. समझा baby?
गौतम - ma'am सच में.. आप बहुत प्यारी लगती हो मुझे.. आप इतनी बड़ी एक्ट्रेस हो.. मेरा ड्रीम था आपसे मिलना.. मगर ऐसे मुलाक़ात होगी कभी सोचा नहीं था..
Tisca ब्लाउज बेड के एक तरफ पटक कर - कैसी बड़ी एक्ट्रेस baby... हर दिन किसी ना किसी डायरेक्ट प्रोडूसर का बिस्तर गर्म करना पड़ता है तब जाकर छोटा मोटा रोल मिलता.. हमारे जैसी एक्ट्रेस कॉलगर्ल के जैसी होती है.. किसी भी फंक्शन या इवेंट में आधी नंगी होकर पब्लिक को सेड़ूस करती है ताकि पब्लिक में डीमाड बनी रहे औऱ फिर किसी ना किसी मर्द के बिस्तर में जाकर उसे खुश करती है ताकि छोटा मोटा रोल या कोई काम मिल सके..
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गौतम - ma'am मुझे नहीं मालूम था आपकी लाइफ इतनी हार्ड है.. मैंने तो आजतक आपको टीवी पर देखा है या न्यूज़ पेपर में पढ़ा है..
Tisca मुस्कुराते हुए - रोज़ किसी ना किसी को देती हूँ आज देने की जगह तेरी लुंगी...
गौतम tisca का हाथ पकड़ कर साइड में गिरा देता है औऱ मिशनरी में उसके ऊपर आता हुआ लंड का धीमा झटका मारके कहता है - नहीं ma'am.. आज भी आपको देनी ही पड़ेगी..
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औऱ फिर मिशनरी में tisca की चुत को तबाह करने के मिशन पर लग जाता है, अपने झटको की रफ़्तार तेज़ करते हुए गौतम tisca को ताबड़तोड़ चोदने लगता है जिससे tisca की चुदाई की आवाज के साथ साथ उसकी सिस्कारिया भी पुरे कमरे में जोर जोर से गूंजने लगी थी..
इधर tisca के चुदने की शुरुआत हो चुकी थी उधर वसीम औऱ चेतन का एक राउंड कम्पलीट हो चूका था औऱ अब दूसरे राउंड में चेतन वसीम का लंड मुंह में लेकर चूस रहा था..
चेतन ने वसीम औऱ वसीम ने चेतन की गांड चोद कर गुलाब के जैसी खिला दी थी औऱ दोनों में आपसी समझ औऱ कामइच्छा भी पनपने लगी थी..
गौतम बिस्तर पर tisca को खिसका खिसका के चोद रहा था औऱ tisca किसी सस्ती रांड के जेसी टांगे चौड़ी करके गौतम के लंड के जोरदार झटके खाती हुई चिल्ला रही थी..
गौतम tisca को ऐसे चोद रहा था जैसे वो 50 साल की औरत नहीं बल्कि बाली उम्र की जवान कमसिन कली हो..
गौतम ने tisca की गांड पकड़कर डोमिनट करते हुए उसे घोड़ी बना लिया औऱ बाल पकड़ कर घोड़ी की सवारी करने लगा..
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Tisca लंड के आगे बेबस लाचार औऱ बेचारी सी बनाकर गौतम के झटके खाते हुए अह्ह्ह्ह... उह्ह्ह... की आवाजे निकालने के सिवा कुछ औऱ नहीं कर सकती थी..
गौतम tisca को घोड़ी बनाकर उसकी चुत में लोडा घुसाकर धक्के पर धक्के लगा रहा था जिसके कारण थप थप औऱ घप घप की मधुर आवाज दोनों के कानो में पड़ रही थी..
गौतम ने चोदते हुए tisca कि ब्रा का हुक खोल दिया जिससे अब tisca पूरी तरह नंगी हो चुकी थी..
गौतम ने बाल छोड़कर अब दोनों हाथों से tisca कि कमर को थाम लिया औऱ पूरे जोर से झटके मारने लगा जिससे tisca की पूरी ताकत के साथ चिल्लाती हुई पीछे गौतम को देखकर उसका हाथ पकड़ते हुए अपने आप को छुड़वाने लगी मगर गौतम ने झटके पर झटके मारकर tisca की चुत का जाइका लेने में कोई कसर नहीं छोडी..
Tisca बेबसी औऱ लाचारी से अपनी 51 साल पुरानी महल जैसी चुत को खंडर बनते हुए देख रही थी औऱ उसका दर्द महसूस करते हुए जो सुख मिल रहा था उसे भोग रही थी.. उसे लुटने में भी मज़ा आ रहा था..
गौतम ने चोदते चोदते tisca की कमर को अच्छे से पकड़ कर उठा लिया औऱ दिवार से चिपका कर छिपकली वाले पोज़ में पीछे से झटके मारते हुए चोदने लगा..
Tisca के पैरों में कम्पन था मगर गौतम उसकी कमर को अभी भी थामें हुए था औऱ अच्छे से सटा कर tisca को पेल रहा था.. Tisca अब झड़ने लगी थी औऱ झड़ने के साथ ही उसने मूत भी दिया था मगर गौतम को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा वो बस चोदे जा रहा था..
दोनों की चुदाई पिछले आधे घंटे से चल रही थी औऱ Tisca आंनद के अथाह सागर में डूबती हुई गौतम की चुदाई का स्वाद लेते हुए उसपर मोहित हो चुकी थी.. गौतम ने छिपकली बनाकर चोदते हुए tisca के पैर उठा दिए औऱ अब दिवार से स्टाकार tisca को चोदने लगा.. Tisca किसी बेजान खिलोने से गौतम के आगे बेबस होकर चुदवाए जा रही थी जिसमे मज़ा उसे भी आ रहा था.. गौतम में अब tisca को पलटकर अपनी तरफ घुमा लिया औऱ उछाल उछाल कर चोदने लगा
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गौतम के हर झटके पर tisca का बदन ऐसे हिल रहा था जैसे हवा की आंधी में पत्ते हिलते है.. Tisca अब गौतम को कसके पकड़ रही थी औऱ वापस कामुक निगाह से गौतम को देखकर अपनी चुदाई का मज़ा ले रही थी..
गौतम tisca को उछाल उछाल कर चोदता हुआ अपने चरम पर आने लगा था औऱ वो tisca को अब अपने ऊपर लेटाने के लिए खुद बेड पर गिर गया था औऱ tisca गौतम के ऊपर थी..
Tisca की चूत का चोबारा बन चूका था मगर उसे मिलते सुख के करण उसे इसका अंदाजा नहीं था.. Tisca ने गौतम के लंड पर अपनी चुत रगढ़ते हुए गांड हिलाना शुरु कर दिया औऱ जोर जोर गौतम के लंड को अपनी चुत में आगे पीछे करने लगी जिससे अब दोनों को झड़ने में ज्यादातर वक़्त नहीं लगा औऱ गौतम बिना कंडोम tisca की चुत में झड़ गया औऱ tisca भी गौतम के बाद झड़ गई..
गौतम औऱ tisca यूँ ही बहुत देर तक बिना कुछ बोले एक दूसरे की बाहों में पड़े रहे फिर tisca का फ़ोन बजा तो उसने फ़ोन उठाकर बात करना शुरु किया..
Tisca - हेलो..
एक आदमी - where are you? interview is pending.. They asking for you..
Tisca - i don't feel well.. can you postpone this till the night..
आदमी - are you okey?
Tisca - i am okey.. I just want some time.. You know? Please do it for me..
आदमी - okey tisca.. I'll manage..
Tisca फ़ोन काट कर साइड में रख देती है औऱ एक नज़र गौतम पर डाल कर कहती है..
Tisca मुस्कुराते हुए - कुछ चाहिए तुम्हे?
गौतम भोलेपन से - जो चाहिए था आपने दे दिया ma'am.. अच्छा मैं अब जाता हूँ..
Tisca गौतम के सीने के ऊपर अपनी छाती टिकाकर - लेटे रहो चुपचाप.. बाद में जाना.. And Give me your contact नंबर baby..
गौतम tisca के फ़ोन में अपना नंबर सेव करते हुए - सॉरी ma'am.. आपको दर्द हुआ..
Tisca - अच्छा ये बताओ मैं सच में तुम्हारी फेवरेट हूँ या बस ऐसे ही बोल रहे थे?
गौतम - no ma'am.. Seriously.. मैं बहुत बड़ा fan हूँ आपका.. मेरे सब दोस्तों को भी पता है.
Tisca - thanks baby.. तूने बहुत थका दिया मुझे.. मैं थोड़ी देर सो जाऊ ऐसे ही तेरे ऊपर?
गौतम - ज़ी ma'am.. You don't need to take my permission..
Tisca गौतम के होंठ चूमते हुए - such a good boy.. मैं washroom होके आती हूँ.. जाना नहीं.. Okey?
गौतम हाँ में सर हिलाता है औऱ tisca लंगड़ती हुई बाथरूम में चली जाती है..
सुमन फोन पर - कहा है ग़ुगु? आज वापस भी जाना है..
गौतम - माँ चिंटू भईया के साथ हूँ.. आज जाने का मन नहीं है कल सुबह चलते है वापस..
सुमन - तू भी ना.. चल ठीक है..
गौतम - बाय माँ..
सुमन - बाय बच्चा..
गौतम आदिल को फ़ोन करता है..
आदिल - बोल रंडी..
गौतम - अबे रंडी होगी माँ..
आदिल आह्ह करते हुए - वो तो है ही..
गौतम अटपटी आवाज सुनकर - अबे क्या कर रहा है गांडु? ये आवाज कैसी है?
आदिल - भाई अम्मी को पेल रहा हूँ..
गौतम - शबाना मान गई? क्या बात है यार.. झंडे गाड दिए तूने तो...
आदिल - झंडे तो तूने गाड़े थे रंडी.. अम्मी बता रही थी कैसे कैसे चोद के गया था तू.. बहुत तारीफ़ करती है तेरी.
गौतम हसते हुए - भाई तेरी अम्मी है ही चोदने लायक़ तो क्या करता? बहुत प्यार से चुदवा रही थी..
आदिल - वापस कब आ रहा है भाई?
गौतम - कल आऊंगा यार..
आदिल - अच्छा अम्मी को बात करनी है तुझसे.. ले बात कर.
शबाना - हेलो.. गौतम?
गौतम - हाँ अम्मी.. कैसी हो?
शबाना - बस बेटा.. अच्छी हूँ.. तुझे याद नहीं आती मेरी?
गौतम - याद तो बहुत आती है अम्मी पर क्या करू? मज़बूरी है.. वैसे आदिल ज्यादा तंग तो नहीं करता ना..
शबाना - क्या बताऊ बेटा.. ये तो इसके अब्बू के दूकान जाने के बाद फ़ौरन मेरी चुत में घुस जाता है औऱ फिर शाम तक घुसा ही रहता है.. पिछले 7 दिनों में 17 बार चोद चूका है फिर भी इसे आराम नहीं है..
आदिल - भाई अम्मी की चुत है 17 नहीं 70 बार भी चोद लु तब भी मन नहीं भरेगा..
गौतम हसते हुए - ये तो सच कहा तूने भाई.. मैं वापस आता हूँ फिर दोनों सैंडविच बनाकर तेरी अम्मी को साथ में चोदेगे.. क्यों अम्मी चुदेगी ना हम दोनों से साथ में?
शबाना - मेरी चुत को लंड की लत लगा दी तुने.. तुम जो बोलोगे मुझे करना ही पड़ेगा ना..
आदिल - अच्छा भाई फ़ोन रखता हूँ.. पहला राउंड है आज का..
गौतम - अरे रुक लोडे.. तुझे कुछ बताना है?
आदिल - क्या भाई?
गौतम - तुझे पता है मेरी फेवरेट..
आदिल - tisca chopra..
गौतम - हाँ.. अभी अभी उसे पेला है..
आदिल - चल ना रंडी.. सुबह सुबह में ही मिला हूँ तुझे? किसी औऱ को चुतीया बनाना..
गौतम - मत माने गांडु.. तेरी मर्ज़ी..
आदिल - कैसे मानु भोस्डिके? कोई सबूत है तेरे पास?
गौतम - अभी वीडियो कॉल पे तेरी बात करवाता हूँ रुक जा..
आदिल - ठीक है मैं इंतजार कर रहा हूँ.. देखता हूँ तू ने ली है या किसी औऱ को पेल के बकचोदी कर रहा है..
गौतम फ़ोन काट कर एक तरफ रख देता है औऱ tisca बाथरूम से वापस आकर गौतम के ऊपर चढ़कर उसे बाहों में भरके सोने लगती है..
गौतम - ma'am..
Tisca मुस्कुराते हुए - हम्म्म..
गौतम - ma'am.. मेरे एक फ़्रेंड को आप हेलो बोल दोगी तो सबको मैं बता सकता हूँ आप मुझसे मिली थी..
Tisca गौतम के गाल सहलाते हुए - बात कराओ..
गौतम वीडियो कॉल करता है..
आदिल - हेलो..
गौतम - ma'am..
Tisca फ़ोन लेकर - हेलो..
आदिल हैरानी से - हेलो.. आप..
Tisca - हाउ आर यू?
आदिल हाथ हिलाते हुए - मैं ठीक हूँ मैडम..
गौतम - अब तो यकीन आया?
आदिल - हाँ भाई..
गौतम - चल अब फ़ोन रख.. टाइम नहीं है मेरे पास..
आदिल - भाई सेल्फी लेकर आना..
गौतम - हां हां ठीक है.. फ़ोन काट देता है.. Thanks ma'am..
Tisca smile करती हुई - your welcome baby..
Tisca गौतम के सीने के ऊपर आराम करती हुई नींद में खो जाती है औऱ गौतम भी चेतन से बात करके उसी तरह सो जाता है..
गौतम की जब आँख खुलती है वो देखता है की वो अकेला बिस्तर पर नंगा लेटा हुआ था औऱ tisca आईने के सामने एक फ्रॉक पहनकर सिगरेट के कश लेते हुए तैयार हो रही थी. Tisca ने जब मुड़कर गौतम को देखा तो tisca बोली..
Tisca - उठ गए baby.. नींद कैसी आई?
गौतम - बहुत गहरी.. शाम हो गई?
Tisca सिगरेट पीती हुई - हाँ.. 5 घंटे सो कर उठे हो.. कुछ लोगे.. चाय कॉफ़ी जूस?
गौतम उठकर tisca को बाहों में भरते हुए - चुत ma'am... चुत दे दो एक बार औऱ..
Tisca हसते हुए - आधे घंटे बाद इंटरव्यू है.. दोपहर से बैठे है वो लोग..
गौतम tisca से सिगरेट छीनकर फेंक देता है औऱ tisca को उठाकर बिस्तर पर पटकते हुए - मैं ज्यादा टाइम नहीं लूंगा ma'am.. Promise..
Tisca अपनी फ्रॉक उठाकर पेंटी खिसकाते हुए - मुंबई बुलाऊंगी तो आओगे ना तुम?
गौतम चुत में लंड घुसते हुए - आप मांगोलिया बुलाओगी तब भी दौड़ा चला आऊंगा.. Ma'am..
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Tisca चुदवाते हुए - baby.. स्लोली.. दोपहर से तेरे कारण स्वलिंग हो रही है.. कितना हार्ड किया था तुने.. अब प्यार से करो वरना नहीं करने दूंगी..
गौतम - सॉरी ma'am.. मेरे कारण आपकी फुद्दी सूज गई.. Ma'am.. मुझे सेल्फी चाहिए आप दोगी ना..
Tisca हसते हुए - फ़ोन रख बुद्धू.. ऐसी हालात में सेल्फी लेगा क्या..
गौतम प्यार से चोदते हुए - सॉरी ma'am..
Tisca गौतम को kiss करते हुए - किसने नाजुक लब है तेरे..
गौतम - बच्चों जैसे ना? मेरी gf भी यही कहती है..
Tisca - बच्चा ही तो है तू.. वरना जो काम तुमने दोपहर में किया था अगर तेरी जगह कोई बड़ा होता तो जेल में डलवा देती.. अब जल्दी कर इंटरव्यू है औऱ फिर फ्लाइट भी..
गौतम मुस्कुराते हुए - ma'am एक बात बताऊ.. आपको बुरा तो नहीं लगेगा..
Tisca - बोल ना..
गौतम - आपके नाम पर बहुत मुट्ठी मारी है मैंने.. मेरे बाथरूम की दिवार का कलर बदल गया मेरे मुठ से.. मेरा ड्रीम था आपके साथ ये सब करने का..
Tisca हस्ती हुई - अब तो ड्रीम पूरा हो गया अब तो मास्टर्बशन नहीं करेगा ना.. मुझे याद करके..
गौतम - पक्का नहीं कह सकता ma'am.. याद आ गई तो करना भी पड़ सकता है..
Tisca - जब भी करें मुझे massage करके बता जरुर देना.. अब जल्दी कर.. मेरा तो हो भी गया लगता है..
गौतम - ma'am.. एक रिक्वेस्ट है...
Tisca - अब क्या रह गया baby?
गौतम धीरे धीरे चोदते हुए - ma'am.. Blowjob..
Tisca - नहीं baby.. लिपस्टिक खराब हो जायेगी.. बहुत टाइम लगेगा.. तू चुत से काम चला ले..
गौतम बच्चों सा मुंह बनाके - प्लीज ना..
Tisca एक नज़र गुस्से से देखकर - अच्छा ला..
गौतम बेड पर खड़ा हो जाता है औऱ tisca घुटनो पर बैठके लोडा चूसने लगती है..
गौतम - उफ्फ्फ.. Ma'am.. आपके ऊपरी होंठ तो नीचे के होंठों से भी मज़ेदार है.. कितना अच्छा blowjob देती हो आप..
Tisca पूरी मेहनत के साथ लंड चुस्ती है औऱ कुछ देर में गौतम का वीर्यपान कर लेती है..
Tisca - baby अब चल.. जा यहां से.. मुझे भी जाना है.. औऱ contact में रहना..
गौतम कपडे पहनकर प्यार से - जाने से पहले ma'am एक लव बाईट मिलेगी..
Tisca मुस्कुराते हुए गौतम की शर्ट हटाकर उसके निप्पल्स को मुंह में लेती हुई पहले चाटती औऱ चुस्ती है औऱ फिर दाँत से खींचती हुई निप्पल्स के बगल में एक lovebite कर देती है औऱ फिर कहती है..
Tisca अपनी लिपस्टिक ठीक करके - चल अब मैं निकलती हूँ.. बाय gugu baby..
गौतम भी जाते हुए - बाय ma'am...
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Update 35(रेशमा 23)
मैंने बुलाया तब नहीं आई.. अब किसकी शादी में आई हो?
मेरे बस में थोड़ी है आना जाना.. इस बार असलम लेके आया है मुझे..
अच्छा बताओ कोनसी जगह हो जयपुर में?
गौतम यहां खतरा है आने की सोचना भी मत..
तुझसे मिलने हर खतरा उठा सकता है तेरा आशिक रेशमा.. तू जगह बता..
बाबा समझो वहां सब लोग है जगह भी नहीं है मिलने की..
वो सब मैं देख लूंगा कुतिया तू अड्रेस सेंड कर.
अच्छा ठीक है पर दूर ही रहना यहां लोग बहुत खराब औऱ पुरानी सोच के है.. तेरे साथ मुझे भी सजा देंगे..
तू अड्रेस सेंड कर ना कुतिया.. औऱ किसीकी शादी में आ रहे हो तुम दोनों.. वो भी बताना..
ठीक है कुत्ते.. करती हूँ.. मुझे भी बहुत तलब है तुझे देखने की.. कल शाम को मिलती हूँ...
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सुमन कमरे में आती हुई - ग़ुगु? ग़ुगु?
गौतम बाथरूम से - हां माँ?
सुमन - सुबह तो नहाया था बेटा अब क्यों नहा रहा है फिर से..
गौतम - कहीं जाना है..
सुमन - अब कहा जाना है तुझे? कल पूरा दिन बाहर था घर से... आज वापस जाना है?
गौतम - अरे माँ कल तो सारा टाइम चिंटू भईया के साथ दूकान पर था.. आप उनसे पूछ लो..
सुमन - अच्छा ठीक है.. वैसे जाना कहा है.
गौतम - एक स्कूल फ्रेंड के यहां.. कल अचनाक मिल गया था.. उसने बुलाया है उसकी बहन की शादी है आज..
सुमन - अच्छा.. लड़की की शादी है.. कहा है शादी.. कोनसी जगह है?
गौतम - उनके घर पर है.. हबीबगंज में.. बेचारा गरीब दोस्त है माँ..
सुमन - अपने से भी ज्यादा गरीब है?
गौतम - बहुत ज्यादा..
सुमन - तो फिर लड़की को कुछ अच्छा तोहफा देकर आना.. कंजूसी मत करना..
गौतम बाथरूम का दरवाजा खोलकर सुमन का हाथ पकड़ते हुए उसे अंदर खींचकर - आप भी चलो..
सुमन - मुझे नहीं जाना.. तू ही जा.. औऱ बेशर्म कम से कम चड्डी तो पहन ले..
गौतम सुमन को बाहों में भरके - चड्डी पहन कर कौन नहाता है माँ..
सुमन - अरे छोड़ ग़ुगु.. गिला करेगा क्या मुझे भी?
गौतम - मैं तो कब से कहना चाहता हूँ माँ आप ही मना कर रही हो..
सुमन अपने आप को छुड़ाकर - चाय लेले.. बाहर टेबल पर रखी है.
गौतम - माँ हर बार चाय दोगी क्या? कभी अपनी चुत भी दे दो..
सुमन गौतम के गाल पर हलकी सी चपत लगाकर बाथरूम से बाहर जाते हुए - घर में सबकी चुत मिल तो रही है तुझे.. मेरी मारके क्या करेगा..
गौतम - सबमे औऱ आपमें फर्क है माँ..
सुमन अलमीरा से कपडे निकाल कर - क्या फर्क है? जैसे उन सबकी है वैसी मेरी है..
गौतम तौलिये से सर के गीले बाल पोंछता हुआ - तो फिर दे क्यों नहीं देती? कब से तड़पा रही हो.. औऱ क्या निकाला है? मैं सूट पहन कर नहीं जाऊँगा..
सुमन - अच्छा लगेगा तुझपर ग़ुगु..
गौतम तौलिये से बदन पोंछकर बेड पर ड़ालते हुए - अरे मुझे अजीब लगेगा यार माँ..
सुमन - ठीक ये कोट रहने दे.. अब खुश?
गौतम चड्डी पहनते हुए - ठीक है.. ये बेस्ट है..
सुमन जूते निकाल कर - ग़ुगु.. माधुरी से बात की तूने?
गौतम कपडे पहनते हुए - हाँ कल बात की थी.. हमें अपने घर बुला रही थी छोटी माँ..
सुमन मुंह बनाते हुए - उसका घर कैसे हुआ?
गौतम बेड पर बैठकर - अरे छोडो ना माँ.. घर उनके नाम पर हो या आपके.. क्या फर्क पड़ता है.. छोटी माँ कह रही थी कि वही आकर रहना पड़ेगा आपको औऱ मुझे.. आपसे बात भी करना चाहती थी..
सुमन अलमीरा से परफ्यूम निकालकर गौतम को लगाते हुए - तो क्यों नहीं बात करवाई तूने? औऱ उस कमीनी की तो नज़र है ही तुझपर.. तभी तो मान गई.. उस कमीनी को तो छूने तक नहीं दूंगी तुझे..
गौतम - जलन हो रही है आपको?
सुमन परफ्यूम लगाकर - मुझे क्यों उस चुड़ैल से जलन होगी भला? ऐसा है ही क्या उसके पास?
गौतम - छोटा ग़ुगु है ना..
सुमन गुस्से में - असली कमीना तो तू है.. कितना प्यारा सा है मगर सबको पागल करके रखा हुआ है.. रूपा भी फ़ोन पर सिर्फ तेरी बातें करती रहती है..
गौतम अपनी माँ का हाथ पकड़ कर सुमन को अपनी गोद में लंड पर अच्छे से टिका कर बैठाते हुए - अच्छा क्या क्या बातें करती है रूपा मेरे बारे में..
सुमन - यही कि तू कब सोया कब उठा? क्या पहना? क्या खाया? ठीक है या नहीं.. तुझे पैसे की जरुरत है क्या? फलाना डिमखाना.. मैंने तो कल कह दिया.. अरे मैं माँ हूँ ग़ुगु की.. उसका ख्याल रखना आता है मुझे..
गौतम मुस्कुराते हुए - पापा के बारे तो बात नहीं की ना आप दोनों ने..
सुमन - तेरे पापा में ऐसा है ही क्या जो कोई उसके बारे में बात करेगा? अब जाने दे..
गौतम - इतनी भी क्या जल्दी है माँ बैठी रहो ना कुछ देर..
सुमन - तू मुझे सारी रात भी अपने लंड पर बैठा के रखेगा तो भी चुदने के लिए हाँ नहीं करुँगी.. समझा? (होंठ चूमकर) तू मेरा बेटा है औऱ बेटा ही बनकर रहना पड़ेगा तुझे..
गौतम खड़ा होते हुए - माँ आप ना.. अपनी चुत पर ताला लगवा लो.. किसीको देनी तो है नहीं आपको..
सुमन हसते हुए गौतम को बाहो में भरके चूमती हुई - तू ही ले आ बाजार से एक ताला खरीद कर औऱ लगा दे अपनी माँ की चुत पर..
गौतम सुमन को पीछे करते हुए - छोडो यार माँ.. जाने दो..
सुमन मुस्कुराते हुए अपनी साडी उठाकर चूत दिखाती हुई - गुगु.. सुसु आ रहा है..
गौतम मुस्कुराते हुए सुमन को बेड पर धकेल कर उसकी चुत पर अपने होंठ लगाते हुए चूसने लगता है.. औऱ सुमन गौतम के बाल पकड़ कर उसके मुंह में मूत देती है मगर मूत पीने के बाद भी गौतम सुमन की चुत से अपना मुंह नहीं हटाता औऱ सुमन की चुत चाटने लगता है जिससे सुमन कामुक होती हुई अपनी चुत अपने बेटे को चुसवाने लगती है औऱ कुछ देर की चूसाईं के बाद अपना माल भी गौतम के मुंह में छोड़ देती है..
गौतम माल पीकर मुंह साफ करते हुए - सुबह क्या मूली खाई थी आपने.. कितना अजीब टेस्ट था आज आपकी चुत का..
सुमन गौतम की बात पे हसकर कमरे से जाते हुए - खाई नहीं थी ग़ुगु घुसाईं थी मैंने तो..
गौतम हैरानी से - अच्छा ज़ी.. अब ये सब करने लगी हो आप..
सुमन दरवाजे पर जाकर - क्यों.. नहीं कर सकती मैं?
गौतम पानी पीते हुए - कर सकती हो आपके नसीब में खीरे मूली ही है.. छोटी माँ के नसीब में है छोटा ग़ुगु तो..
सुमन गुस्से में - तेरी छोटी माँ की चिटनी बना दूंगी अगर अब मेरे छोटे ग़ुगु को हाथ भी लगाया तो..
गौतम सुमन की चुची पकड़कर उसको दरवाजे से हटाते हुए - वो तो आप जानो औऱ छोटी माँ जाने.. अभी मुझे जाने दो.. वरना आप इतनी सेक्सी लग रही हो मैं कोई काण्ड ना कर दू आज.. फिर उस न्यूज़ पेपर में हमारी न्यूज़ आ जाएगी..
सुमन प्यार से हसते हुए - ठीक है जा.. अपना ख्याल रखना..
गौतम जाते हुए - ठीक है..
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कहाँ तक पहुंची कुतिया?
क्या बताऊ यार रास्ते में बाइक खराब हो गई असलम की.. कब से यहां खड़े है..
असलम क्या कर रहा है?
क्या करेगा साला.. बाइक को देख रहा है औऱ सही करने में लगा हुआ है..
अड्रेस बता कुतिया.. कहा खड़ी है.. मैं निकल चूका हूँ घर से..
अरे ये vip रोड पर मदन स्वीट्स के पास.. पर तू यहाँ आके क्या करेगा?
तेरी चुत में उंगली करूंगा कुतिया..
असलम - फोन में क्या लगी हुई है बहनचोद.. इस वायर को पकड़ एक बार.. लगता है वायर में कुछ प्रॉब्लम है..
रेशमा आगे आकर वायर पकड़ती हुई - मैंने कहा था बस से चलते है पर आप नहीं माने..
असलम झाल्लाते हुए - तेरी माँ को चोदू रंडी.. मुंह बंद रखा कर अपना..
रेशमा बड़बड़ाते हुए - चोदने के लिए खड़ा भी होना चाहिए.. हिजरे..
असलम - क्या बोली?
रेशमा - कुछ नहीं.. ज्यादा बिगड़ गई है बाइक? अब क्या करें?
असलम - क्या करें क्या.. तू यही खड़ी रह.. मैं मैकनीक लेके आता हूँ..
रेशमा - मुझे अकेला छोड़ के जाओगे?
असलम - साली कोनसी सुनसान जगह है जो तू इतना डर ही है? खड़ी रह.. चुपचाप..
असलम इधर उधर घूमके वापस आ जाता है उसे कोई मकेनिक की शॉप नहीं मिलती..
रेशमा - क्या हुआ?
असलम गुस्से - होना क्या है.. आज साली तेरी शकल देख ली सुबह सुबह.. दिन तो खराब जाना ही था.. अब इसे हाथों से ले जाना पड़ेगा जब तक कोई मकेनिक नहीं मिल जाता..
असलम बाइक खींचकर ले जाते हुए औऱ रेशमा बैग हाथ में पकड़कर साथ चलते हुए..
रेशमा - अब्बू से बोलके इतनी अच्छी औऱ महंगी बाइक दिलवाई थी दहेज़ में मगर आपने 3-4 साल में ही बाइक की हालात ऐसी कर दी जैसे 20 साल पुरानी हो.. अपनी दारु औऱ ऐयाशी का पूरा ख्याल रहता है मगर कब बाइक की सर्विस करवानी है कब तेल बदलवाना है वो याद नहीं रहता...
असलम - बहन की लोड़ी.. मुंह बंद रख अपना.. वरना सडक पर ही पिटेगी तू..
रेशमा - औऱ कर भी क्या सकते हो आप.. औऱ कुछ तो होता नहीं है..
असलम गुस्से में बाइक गिराते हुए - साली रंडी जब से तू मिली तब से जिंदगी दोज़ख हो गई है.. एक लफ्ज़ औऱ बोला तो यही तलाक़ दे दूंगा..
रेशमा इस बार कुछ नहीं बोलती औऱ असलम वापस बाइक उठाने लगता है की साइड में एक कार आकर उनके पास रूकती है..
गौतम कार का शीशा नीचे करके असलम से - भाईजान ये हबीबगंज कहा पड़ेगा..
असलम गौतम को देखकर - यहां से एक घंटा दूर है.. आगे टूटी पुलिया से लेफ्ट हो जाना..
गौतम मुस्कुराते हुए - बाइक बिगड़ गई है?
असलम - हाँ.. लगता है वायर टूट गया है.. स्टार्ट नहीं हो रही..
गौतम कार से उतरकर - तो कोई मकेनिक क्यों नहीं बुला लेते..
असलम - आस पास कोई मकेनिक नहीं है.. मैं देख चूका हूँ..
गौतम - अरे यार कहा तुम बाबा आदम के जमाने में ज़ी रहे हो.. ये अप्प है ना.. इसमें आप अपनी लोकेशन डाल कर मकेनिक को यही बुला लो.. इस तरह कहा तक इस बाइक को खींच कर ले जाओगे..
असलम - भाईजान मेरा पुराना फ़ोन है आप ही मकेनिक को बुला दीजिये..
गौतम - पर भाईजान मुझे शादी में जाना है..
असलम - भाईजान.. हमें भी हबीबगंज ही जाना है.. मकेनिक आते ही आप चले जाना..
रेशमा मुस्कुराते हुए - कर दीजिये ना मदद.. आपको सबाब मिलेगा..
गौतम असलम से - अब भाभी ज़ी कह रही तो मैं बुला देता हूँ मकेनिक को..
असलम - वैसे आप हबीबगंज में किसके यहां जा रहे है..
गौतम - वो रहमत मिया है ना..
असलम - हाँ अलीगढ वाले..
गौतम - हां वही.. उनकी लड़की से मेरे दूर के भाई का निकाह है आज.. वैसे तो बाराती हूँ पर बारात से अलग ही जा रहा हूँ..
असलम हसते हुए - अरे भाईजान.. क्या इत्तेफाक है.. हम भी वही जा रहे है.. रहमत मिया मेरे खालू के भाई है.. उनकी लड़की के निकाह में शरीक होने के लिए ही हम जा रहे थे.. वो भी क्या इत्तेफाक करता है..
गौतम - सच में भाईजान.. अच्छा आओ.. कब तक यहां खड़े रहोगे.. गाडी में बैठ जाओ.. लाओ भाभी ज़ी बेग मैं रख देता हूँ..
रेशमा - सुक्रिया..
असलम गौतम के साथ कार में आगे बैठ जाता है औऱ रेशमा पीछे..
गौतम गाडी का ac बढ़ा देता है..
गौतम गाडी में गाने चलाते हुए..
असलम - आप ये अंग्रेजी गाने समने के शौकीन है?
गौतम - नहीं ये तो fm चल गया.. मैं गज़ले सुनने का शौकीन हूँ.. आप अपनी तरफ से उस रेक को ओपन कीजिये उनमे पेन ड्राइव पड़ी होगी..
असलम रेक ओपन करते हुए पेन ड्राइव निकालकर गौतम को दे देता है औऱ रेक में रखी हुई एक शराब की खाली बोतल देखकर कहता है - कमाल है भाईजान सब भरी हुई शराब की बोतल गाडी में रखते है आप खाली रखते है..
गौतम कोई ग़ज़ल लगाकर - अरे ये तो पहले की है फेंकना भूल गया शायद.. फेंक दीजिये..
असलम बोतल फेंककर - वैसे आपने नाम तो बताया ही नहीं अपना?
गौतम एक दम से सोचकर - ग़ालिब..
असलम हसते हुए - तालिब सुना है भाईजान पर ग़ालिब?
गौतम मुस्कुराते हुए बैक मीरर में रेशमा का चेहरा देखकर - अब क्या करे साहेब.. अपनों मेरा नाम मिर्ज़ा रखा औऱ दुनिया वालों ने ग़ालिब.. तो बन गया मैं मिर्ज़ा ग़ालिब..
असलम - शेरो शायरी के भी शौकीन लगते है..
गौतम - बेशक़.. लिखते भी औऱ सुनते भी है.. आपका नाम?
असलम - असलम..
गौतम - अच्छा शायद आपका मकेनिक आ गया..
गौतम औऱ असलम गाडी से उतरकर - हां यही बाइक है..
मकेनिक गाडी चेक करके - इसका तो इंजन बैठा हुआ है भाईजान? पूरा खोलना पड़ेगा..
असलम - अरे ऐसे कैसे इंजन बैठ गया..
मकेनिक - लास्ट बार सर्विस कब करवाई थी?
असलम - यही कुछ 2-3 महीने पहले..
मकेनिक - औऱ ओइल चेंज?
असलम - उसका पता नहीं वो भी शायद 4-5 महीने पहले करवाया था..
मकेनिक - महीने में कितना चलती है बाइक?
असलम - पता नहीं.. चलती होगी 3-4 हज़ार किलोमीटर..
मकेनिक हसते हुए - तो क्या टायर बैठेगा? भाईजान किस्मत अच्छी है आपकी.. बाइक अभी तक चल रही थी.. वरना जैसे आप बता रहे हो ये तो कब का हो जाना चाहिए था. हर चीज का ख्याल भी रखना जरुरी है..
रेशमा - अपने अलावा किसी औऱ का ख्याल हो तो ना..
असलम रेशमा को घूरते हुए - अच्छा छोड़ दो.. हम देख लेंगे..
गौतम - क्या देखोगे असलम मिया? मकेनिक ठीक कह रहा है.. अब इंजन बैठ गया तो बैठ गया.. ले जाने दो बाइक कल बनाके दे देगा..
असलम - अरे नहीं.. मैं अच्छे से जानता हूँ इन लोगों को.. लम्बा चौड़ा बिल बना के दे देंगे..
गौतम - अरे उसकी चिंता आप क्यों करते है.. आप औऱ हम तो सम्बधी है.. भाई तुम ले जाओ बाइक औऱ पूरी नई करके दो.. जो खर्चा होगा मुझसे लेना..
असलम - पर ग़ालिब भाई..
गौतम - अरे छोडो ना.. बिगड़ी हुई बाइक कहा कहा लिए फिरोगे मिया.. निकाह है.. चलकर एन्जॉय करते है.. देखो आपके चक्कर में बेचारी भाभी कब से ऐसे ही खड़ी है.. चलो साथ में चलते है..
गौतम औऱ असलम वापस गाडी मैं बैठ जाते है औऱ रेशमा भी बैठ जाती है..
असलम - ग़ालिब भाई अब रुखा सफर न कटने पायेगा.. कुछ गला गिला किया जाए..
गौतम असलम को देखकर - पर भाभी..
असलम - अरे रेशमा क्या बोलेगी... औऱ अब नहीं लेंगे तो कब लेंगे..
गौतम आगे ठेके पर गाडी रोककर - बताओ असलम मिया क्या पीना पसंद करोगे?
असलम - तुम ही कुछ पीला दो ग़ालिब भाई.. हम तो देसी से विलायेति सब पी जाते है..
गौतम - ठीक है..
गौतम गाडी से उतर जाता है औऱ ठेके पर जाकर एक ब्लैक डॉग की बोतल औऱ पानी ले आता है औऱ असलम को बोतल देकर कहता है..
गौतम वापस धीरे धीरे गाडी चलता हुआ - लो असलम मिया करो शुरुआत..
असलम दो पेग बनाकर - लो ग़ालिब भाई..
असलम औऱ गौतम पेग को चिर्स करके पिने लगते है..
असलम - भाई आज तो मज़ा आ गया आपसे मिलके..
गौतम रेशमा को मीरर से देखकर - मुझे भी..
असलम - अच्छा आप बता रहे थे कुछ लिखते हो.. हमें भी सुनाओ कुछ..
गौतम पेग ख़त्म करके - अजी बस थोड़ा बहुत कोशिश करके है..
असलम द्वारा पेग बनाकर देते हुए - थोड़ा बहुत ही सुना दो यार..
गौतम गाडी सडक के किनारे लगाकर - हम्म्म... तो लिखा है..
कोई हसीन दिलरुबा आँखों में घर कर गई..
असलम - वाह.. क्या लिखा है ग़ालिब भाई..
गौतम - शुक्रिया मिया..
कोई हसीन दिलरुबा आँखों में घर कर गई..
इश्क़ की मिठास वो दिल में उतरकर भर गई
असलम - वाह्ह.. क्या मिसरा कहा है ग़ालिब भाई..
गौतम - बहुत शुक्रिया भाई..
असलम - आगे सुनाइए..
गौतम - सुनिये..
कोई हसीन दिलरुबा आँखों में घर कर गई..
इश्क़ की मिठास वो दिल में उतरकर भर गई
सोचा कि उसको चुम लूँगा अगली मुलाक़ात में
वो पारियों की शहजादी चूमके होंठ ही कुतर गई
असलम - अरे वाह ग़ालिब भाई.. मान गए आपको..
गौतम रेशमा को देखकर -शुक्रिया.. आपको केसा लगा भाभी..
रेशमा मुस्कुराते हुए - अभी कहा कुतरा है.. कुतरना तो अभी बाकी है..
असलम - लो ग़ालिब भाई..
गौतम - भाई अब रहने दो.. वरना सब कहने लगेंगे.. शराबी आ गए..
असलम हसते हुए - ये आखिरी है ग़ालिब मिया लो..
एक शेर मेरा भी सुनो..
गौतम पेग लेते हुए - इरशाद..
असलम - तो शेर कुछ ऐसा है..
मैं नहीं हूँ वो जिसकी तुम्हे तलाश है
कुछ नहीं है मेरे पास सिर्फ ये गिलास है
इस गिलास में घुले हुए है मेरे दर्द औऱ ग़म
औऱ पीछे बैठी हुई ये गले में चुबती फांस है
गौतम हसते हुए - लगता है भाभी प्यार नहीं करती आपसे..
रेशमा - प्यार करने लायक़ हो भी तो..
असलम नशे में - सिगरेट है आपके आप?
गौतम - रेक में देखो..
असलम सिगरेट जलाते हुए - एक औऱ सुनो..
ऊगा लूंगा मैं भी फसल जमीन को खोद कर
बना दूंगा तस्वीर इस कागज पे कलम गोद कर
(रेशमा को देखकर)
मेरी जान की दुश्मन बस इतनी बात बता मुझे
तेरे बाप को क्या मिला मेरी अम्मी चोद कर..
गौतम हसते हुए - अरे असलम मिया.. ये क्या था..
असलम - किसी से सवाल था ग़ालिब मिया..
रेशमा - मुझे गाना चलाना है..
गौतम - भाभी फ़ोन कनेक्टेड है आप इसमें चला लो.. चल जाएगा..
असलम नशे में - गाना क्यों चलाना है तुझे..
रेशमा - सवाल का जवाब नहीं चाहिए?
रेशमा गाना चला देती है.. मेरा बुढ़ा बलम करें छेड़खानी.. मेरी चढ़ती जवानी मांगे पानी पानी..
गाना सुनकर असलम का मुंह उतर जाता है..
गौतम हसते हुए - अच्छा बहुत हो गया असलम मिया.. चलो अब चलते है..
असलम गाना बंद करके - ठीक है ग़ालिब भाई..
गौतम गाडी चलाकर शादी वाली जगह ले आता है..
गौतम - लगता है बारात आ चुकी है..
असलम नशे में - हाँ.. आ गई है.. चलिए..
गौतम असलम औऱ रेशमा के साथ गाडी से उतारकर बाहर आ जाता है औऱ शादी वाले घर में आ जाता है जहा बहुत भीड़ थी औऱ घर छोटा था.. पीछे खाली प्लाट पर तम्बू खड़ा करके बारात का स्वागत चल रहा था..
असलम गौतम से - अरे ग़ालिब भाई आप कहा जारहे हो.. चलो ऊपर चलते है.. असलम गौतम को छत पर ले आता है..
गौतम - अरे असलम मिया आप तो इसे भी साथ ले आये..
असलम - इसके बिना कैसे काम चलेगा.. अभी तो आधी भी खाली नहीं हुई.. एक एक पेग औऱ पीते है फिर नीचे जाके dj पर तहलका मचाते है..
गौतम - ठीक है मिया बनाओ पर मेरा वाला पेग बिलकुल लाइट रखना..
गौतम पीछे नीचे की तरफ तम्बू में स्टेज के पास किसी को देखकर फ़ोन करता है..
गौतम - गांडु ऊपर देख..
आदिल ऊपर गौतम को देखता हुआ - अबे साली रंडी तू यहां क्या कर रहा है..
गौतम थोड़ा दूर जाकर - असलम के साथ आया हूँ.. मेरा नाम मिर्जा ग़ालिब बताया है असली नाम मत बताइयो उसे.. आजा ऊपर जल्दी..
आदिल - आता हूँ रंडी..
गौतम - पानी की ठंडी बीतल भी ले आइओ..
असलम - क्या हुआ भाई किस्से बात कर रहे थे..
गौतम - अरे एक दोस्त था.. पानी की बोतल मगवाई है ठंडी.. आ रह है.. आप तो नीट ही बनाने लगे..
असलम - अरे क्या फर्क पड़ता है ग़ालिब भाई..
गौतम - पक्के शराबी हो मिया..
आदिल पानी की बोतल रखकर - क्या हाल है जीजा ज़ी..
असलम - तू भी आया है..
आदिल - हाँ अकेला आया था.. सब घर पर ही है.. आपा कहा है..
असलम नशे में - नीचे होगी कहीं, मुझे क्या मालूम..
गौतम - अच्छा आप लोग बैठो आता हूँ.. आदिल के कान में - पीला पीलाके भंड कर दे मादरचोद को..
आदिल इशारे से - ठीक है..
गौतम नीचे चला जाता है औऱ आदिल बड़े बड़े पेग बनाकर असलम को पिलाने लगता है...
गौतम नीचे आ जाता है औऱ रेशमा को ढूंढने लगता है मगर उसे रेशमा कहीं नहीं नज़र आती.. गौतम जब रेशमा को कॉल करता है तो रेशमा कॉल नहीं उठती औऱ व्हाट्सप्प पर massage करती है.. अभी नहीं उठा सकती..
गौतम बदले में कहता है - औऱ कितना तड़पायेगी.. कुतिया..
रेशमा इस बार अपनी लाइव लोकेशन भेज देती है औऱ massage करती है आजा मेरे कुत्ते मेरे पास..
गौतम लाइव लोकेशन देखकर चल पड़ता है..
गौतम शादी के घर से थोड़ा दूर एक सुनसान मकान के पीछे उस लाइव लोकेशन को देखता हुआ आ जाता है औऱ उस खाली मकान में आकर इधर उधर देखने लगता है.. अंदर में उसे कुछ नहीं दीखता मगर कोई उसका हाथ पकड़ कर खाली मकान के एक कोने में ले जाता है औऱ गौतम हाथ की छुअन की कोमलता से समझ जाता है ये औऱ कोई नहीं बल्कि रेशमा ही है..
रेशमा सीधा गौतम के होठो पर टूट पडती है औऱ उसके होंठों से अपने होंठ से मिलाकर उसे बेतहाशा चूमने लगती है..
गौतम भी अँधेरे में रेशमा को होंठों को पूरी शिद्दत औऱ मोहब्बत के साथ चूमने लगता है..
रेशमा चूमते हुए गौतम के लबों को दांतो से कुतरने लगती है औऱ गौतम को दर्द देती हुई उसके होंठों को खींच खींच कर गौतम को बेबाकी से अपने मुंह की मिठास औऱ लार के स्वाद से रूबरू करवा देती है..
गौतम आँख बंद करके रेशमा को अपनी बाहों में भरे हुए चूमता हुआ उसके पतले औऱ गुलाबी होंठों को अपने होंठों में भर भरके चूमता हुआ अपने हाथों से उसके बदन की उतार चढाव भरी नकाशी टटोलता है..
10-12 मिनट एकदूसरे को जमकर चूमने के बाद दोनों का चुम्बन किसी की आहट सुनकर टूट जाता है..
औऱ उनको ऐसा लगता है जैसे कोई आया है.. दोनों चुपचाप बाहर की तरफ देखते है जहा एक लड़का एक लड़की के साथ अभी अभी अंदर घुसा था.. गौतम औऱ रेशमा बिना किसी शोर के उनकी तरफ देखते है...
लड़का - मैं तुम्हारे बिना मर जाऊँगा शमा..
शमा - तू समझता क्यों नहीं नीरज.. मैं अगर तेरे साथ यहां से चली गई तो बबाल हो जाएगा.. मेरे अब्बू हमें जान से मार देंगे.
नीरज - बिछड़कर जीने से तो मर जाना अच्छा है शमा.. क्या हमने कसमे वादे इसीलिए खाये थे की एक दिन तू मुझे यूँ छोड़कर चली जाए? तू मुझे प्यार करती है ना.. तो क्यों किसी औऱ के साथ शादी कर रही है.. चल शमा में तुझे लेने आया हूँ..
शमा - तू समझता क्यों नहीं निरज.. आज मेरी शादी है कितनी बदनामी होगी हर जगह..
नीरज - तू बदनामी से डरती है.. मगर मुझसे बिछड़ने से नहीं.. क्या वो आदमी तुझे मुझसे ज्यादा खुश रख पायेगा? बोल जवाब दे..
शमा नीरज को चूमती है औऱ कहती है - मैं तुझे दिल औऱ जान से प्यार करती हूँ.. मगर तू ही बता ऐसे सब कुछ छोड़छाड़ कर भागना सही है? अब्बू अम्मी भाई सबकी नज़र शर्म से झुक जायेगी..
नीरज - उनकी नज़र शर्म से तब नहीं झुकी जब उन्होंने तुझसे 18 साल बड़े आदमी के साथ शादी तय कर दी.. बोल शमा? देख मैं तुझे लेने आया हूँ.. अगर तू मेरे साथ नहीं चली तो मैं यही अपनी जान दे दूंगा..
शमा रोते हुए - ज़िद मत कर नीरज.. जा यहां से.. मुझमे भागने की हिम्मत नहीं है.. मैं बहुत कमजोर हूँ..
इसबार रेशमा की चुडी की आवाज आ जाती है औऱ नीरज औऱ शमा को किसी के यहां होने की आहट मिल जाती है..
नीरज - कौन? कौन है वहा?
गौतम फ़ोन की फलेश लाइट सामने on करके - डरो मत.. हम दोनों शादी में आये..
रेशमा - शमा.. तू ये शादी नहीं करना चाहती?
शमा - मेरे चाहने से क्या होता है रेशमा आपा.. आज तक मेरी पसंद नापसंद घर में किसने सुनी है?
गौतम - देखो अगर तुम दोनों प्यार करते हो औऱ शादी करना चाहते हो तो मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूँ..
शमा - पर अब्बू?
रेशमा - शमा मैं तेरे अब्बू को अच्छे से जानती हूँ.. वो अपने मतलब के लिए तेरा निकाल उस 38 साल के आदमी से करवाना चाहते है.. अभी भी मौका है..
नीरज - मैं कब से कह रहा हूँ शमा.. तुझे बहुत प्यार से रखूँगा.. चल मेरे साथ.. औऱ नहीं चलना तो ले इस पिस्तौल से मुझे गोली मार दे..
गौतम पिस्तौल छीनते हुए - अबे ये पिस्तौल कहा से खरीद लाया तू..
रेशमा - शमा पागल मत बन तेरी लाइफ का सवाल है..
शमा - ठीक है चलो.. मैं त्यार हूँ.. मगर तुम्हारे घरवाले क्या मुझे अपनाएंगे?
नीरज - नहीं अपनाएंगे तो मैं घर छोड़ दूंगा.. पर तुझे हमेशा अपने साथ रखूँगा.. चल रेशमा..
गौतम - अबे ओ मजनू.. घर छोड़ देगा तो रखेगा कहा लड़की को सडक पर? घरवालों से लड़ झगड़ मर घर में ही रखना.. रहता कहा है तू..
नीरज - अजमेर..
गौतम - अजमेर में कहा?
नीरज - पुराना चौखट.. गली नम्बर 22.. उलटे हाथ पर तीसरा मकान..
गौतम - विधयाक मालिराम है ना वहा का?
निरज - हां मालीराम खत्री है..
गौतम - नम्बर दे तेरे..
नीरज नम्बर देकर - अब चल शमा चलते है..
गौतम - मेरी बात सुन.. लड़की का ख्याल रखना.. पुलिस में है मेरा बाप.. इसपर जरा सी खरोच आई तो खानदान चोद के पटक दूंगा तेरा..
नीरज - प्यार करता हूँ अपनी जान से ज्यादा.. उम्र भर साथ रखूँगा..
गौतम - शमा अपनी सारी id औऱ डॉक्यूमेंट साथ लेकर जाना.. कोर्ट मैरिज में जरुरत पड़ेगी..
रेशमा - हाँ शमा..
शमा - नीरज मैं अभी घर जाती हूँ.. थोड़ी देर बाद तुझे बस स्टेण्ड पर मिलूंगी..
नीरज - मैं तेरा इंतजार करूंगा शमा.. शुक्रिया तुम्हारा..
दोनों चले जाते है..
Update 38
क्या हुआ बैरागी?
कुछ नहीं हुकुम.. बस आपके भय का निवारण होने ही वाला है.. आज आपको आपके भय से मुक्ति दिलाने के लिए मैं उस औषधि को तैयार कर दूंगा जिससे आपका भय समाप्त हो जाएगा..
ये तो बहुत अच्छी बात बताई तुमने बैरागी.. आखिकार मैं अपने भय औऱ पीड़ा से मुक्त हो ही जाऊँगा.. मैं बहुत खुश हूँ बैरागी.. मैं तुझे ये सारे पौधे औऱ औषधिया इस जगह के साथ देता हूँ तू जो चाहे कर मगर मुझे आज मेरा माँगा हुआ उपहार बनाकर दे दे..
आप निश्चिन्त रहिये हुकुम अभी रात के भोजन के साथ आपको उस औषधि का भी सेवन करना होगा.. मैं उसे बनाकर आपकी सेवा में प्रस्तुत कर दूंगा..
बैरागी ने औषधि का निर्माण कर दिया और उसे वीरेंद्र सिंह को खिलाने के लिए रात के खाने के साथ पेश कर दिया जिसे वीरेंद्र सिंह खाता हुआ बड़े चाव से अपने ख्यालों में गुम हो गया और अब उसे किसी बात का और कोई भय नहीं रहा अब वह हमेशा के लिए जीवित रहेगा और अपने जीवन को यूं ही राज करते हुए बरकरार रखेगा..
बैरागी ने औषधि बनाने के बाद वीरेंद्र सिंह को खिला दी थी और अब वह वीरेंद्र सिंह के महल में ही औषधालय में रहकर नई नई औषधि का निर्माण कर लोगों के रोगों का और कष्ट का निवारण करने लगा था वह कई रोगों का उपचार मात्रा देखने से ही कर देता और उसका नुस्खा सुझा देता..
बैरागी दिन ब दिन बहुत ही गुणी औऱ प्रसिद्ध होने लगा था. इसी के साथ उसका मेलझोल वीरेंद्र सिंह की धर्मपत्नी सुजाता से बढ़ने लगा था सुजाता और बैरागी एक साथ मिलकर कई बार घंटे तक लंबी-लंबी बातें करते और अपने बारे में और दूसरे के बारे में यानी एक दूसरे के बारे में नई-नई बातें जानते और पूछते हैं दोनों का मेल मिलाप इस कदर पड़ चुका था कि दोनों के मन में अब एक दूसरे के प्रति आकर्षण जागने लगा था महीनों गुजर गए थे और अब बैरागी और सुजाता का यह प्रेम संवाद अब वास्तविक प्रेम का रूप लेने लगा था बैरागी के मन में अभी भी मृदुला के लिए अकूत प्रेम था जो उसे सुजाता से प्रेम करने से रोक रहा था.
मगर अब सुजाता बैरागी के बिना एक पल भी जीने को तैयार नहीं थी वह चाहती थी कि बैरागी उसे अपना ले और वीरेंद्र सिंह की पीठ पीछे बैरागी और वह एक साथ संबंध बनाकर खुशी से जीवन जी सके और यह बात किसी और के सामने प्रकट नहीं हो.. जिसके लिए बैरागी कभी भी तैयार नहीं था..
समर भी पहरेदारी करते हुए रुकमा के प्यार में पड़ ही चुका था रुक्मा उसे अपने हुस्न और बातों से इस कदर अपने प्यार में उलझा लिया कि वह अब रुकमा के साथ प्रेम के मीठे बोल बोलने लगा था और उसके साथ जीवन बिताने को लालायता मगर घर पर समर का संबंध लीलावती से भी मधुरता था.. वह हर रात लीलावती को अपनी अर्धांगिनी की तरह ही प्यार करता और अब दोनों उसे घर में मां और बेटे की जगह पति और पत्नी की तरह रहने लगे थे..
लीलावती अपनी कोमकला से समर को मोहित कर चुकी थी और हर रात समर की भूख के साथ उसके बदन की भूख को भी ठंडा करती थी उनका प्रेम एक नया मोड़ ले चुका था..
लीलावती औऱ समर जब भी घर में होते दोनों के बदन पर एक भी कपड़ा नहीं होता और दोनों घर के भीतर नंगे ही एक दूसरे के बदन से लिपट मिलते..
वीरेंद्र सिंह औषधि का सेवन करके अब अपने आप को एक अजीत योद्धा समझता था जिसे कोई जीत नहीं सकता था उसने जयसिंह की मदद से अब जागीर के आसपास की जगह भी अपना अधिकार करना शुरू कर दिया था और वह बहुत गर्व से शासन करने लगा था उसे अब अपने घर परिवार की चिंता न होकर अपने साम्राज्य की चिंता ज्यादा होने लगी थी और उसकी वह और पीड़ा समाप्त हो चुकी थी वह बैरागी का सम्मान करता था मगर अब बैरागी उसकी आंखों में चुभने लगा था जिस तरह से बैरागी और सुजाता के बीच नजदीकी बढ़ने लगी थी वीरेंद्र सिंह की नजर उन पर बनी हुई थी वीरेंद्र सिंह सुजाता और वह बैरागी को अपने सामने ही कई बार लंबी-लंबी वार्तालाप करते हुए देखा तो जलन से सिकुड़ जाता और सोचता कि सुजाता उसकी पत्नी होकर एक नीचे कुल के लड़के के साथ इतनी लंबी लंबी बातें क्यों कर रही है और क्यों वह उसके काम में अब उसकी सहायता कर रही है सुजाता का स्वभाव और व्यवहार वीरेंद्र सिंह की तुलना में अब बैरागी के साथ बहुत ही मधुर और शालीन हो चुका था..
सुजाता के मन में बैरागी के प्रति एक अलग प्रेम का भी उद्धव हो चुका था जिसे वह मन ही मन बैरागी को बटा कर उसका प्रेम पाना चाहती थी और उसके साथ नया रिश्ता कायम करना चाहती थी मगर बैरागी इसके के लिए कते भी तैयार नहीं था.. मगर सुजाता ने इतना जरूर कर दिया था कि अब बैरागी मृदुला को याद करता था मगर फिर से प्रेम के बंधन में बंधने को भी आतुर होने लगा था..
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वीरेंद्र सिंह की नजर सुजाता पर थी मगर उसे क्या पता था कि उसकी बेटी राजकुमारी रुकमा एक सिपाही के प्रेम में पड़ी हुई है और वह उसके साथ अब अकेले मिलने भी मिलने लगी है..
वीरेंद्र सिंह के सिपाही जो उसके गुप्तचर थे उन्होंने वीरेंद्र सिंह को सुजाता और बैरागी के पनपते प्रेम और रुकमा और समर के पनपते हुए प्रेम के बारे में अवगत करवाया तो वीरेंद्र सिंह गुस्से से भरकर अपने सिंहासन से खड़ा हुआ और अपनी तलवार लेकर समर की तरफ चलता हुआ क्रोध से भर गया और सोचने लगा कि आज वह समर की जान ले लेगा और उसे बैरागी को भी यहां से निकल बाहर करेगा यह सोचते हुए वीरेंद्र सिंह जा ही रहा था कि उसे किसी गुप्तचर के आने की सूचना हुई..
गुप्तचर ने वीरेंद्र सिंह को बताया कि बैरागी और सुजाता औषधालय में एकांत में कुछ निजी पर गुजर रहे हैं और अब उनके बीच में जो फासला होना चाहिए था वह समाप्त हो चुका है. वीरेंद्र सिंह और गुस्से से भर गया और उसने फिर समर का ख्याल छोड़कर पहले बैरागी से निपटने का फैसला किया और बैरागी की तरफ चलने लगा वीरेंद्र सिंह औषधि में जैसे ही पहुंचा उसने देखा कि सुजाता और बैरागी के मध्य चुंबन हो रहा है..
दोनों के बीच उम्र का फैसला था मगर मन का फैसला मिट चुका था दोनों एक दूसरे को प्रेम करने लगे थे और इसी प्रेम का यह नतीजा था कि बैरागी और सुजाता ने एक दूसरे के होठों को आपस में मिल लिया था और दोनों एक दूसरे को प्रेम से चूमने लगे थे वीरेंद्र सिंह ने जैसे ही उनका चुंबन देखा वह गुस्से से चिल्लाता हुआ बैरागी की तरफ बड़ा और अपनी तलवार से बैरागी पर प्रहार करने लगा बैरागी वीरेंद्र सिंह के प्रहार से बच गया और उसे विनती करते हुए बोला कि मुझे माफ कर दो हुकुम मैं आपका दोषी हूं किंतु मैं रानी मां से प्रेम करने लगा हूं आप मेरी इस गलती को क्षमा कर दो... मगर वीरेंद्र सिंह गुस्से में था उसने बैरागी की एक बात नहीं मानी और उस पर दूसरा प्रहार किया जिससे भी बैरागी ने खुद को बचा लिया और फिर अपने गले में बंधा हुआ ताबीज उतरते हुए कहा कि हुकुम मुझे यह ताबीज उतार लेने दो लेकिन इस बार वीरेंद्र सिंह ने इतना सटीक और सीधा वार किया कि बैरागी के ताबिज़ उतारने से पहले ही उसका गला तलवार से एक ही झटके में अलग हो गया..
जैसे ही बैरागी की गर्दन कटी उसके खून से बहती हुई रक्त ने परछाई का रूप ले लिया जो वीरेंद्र सिंह की तरफ अपने विकराल स्वरूप को लेकर वीरेंद्र सिंह को मारने बढ़ी और उसे मारने वाली थी कि सुजाता बीच में आ गई और सुजाता ने परछाई से वीरेंद्र सिंह को बचाते हुआ अपनी जान दे दी.. वीरेंद्र सिंह की जगह परछाई सुजाता पर आ बड़ी और सुजाता की जान चली गई.. वीरेंद्र सिंह ने जब ऐसा होते देखा उसकी आंखों ने इस दृश्य पर विश्वास नहीं किया और वह सोचने लगा कि बैरागी ने आखिर ऐसा क्या ताबीज़ पहना था और क्यों यह परछाई उसके शरीर से निकालकर उसकी तरफ बड़ी थी लेकिन इसी के साथ अब उसे सुजाता के मरने का बहुत दुख हो रहा था और वह विलाप करते हुए जोर-जोर से सुजाता को देखकर रोने लगा और उसे अपनी गोद में उठाकर दहाड़े मारता हुआ चीखता हुआ रोने लगा...
सिपाहियों ने आकर जब यह हाल देखा तो वह वीरेंद्र सिंह को समझाते हुए उठाने लगे जयसिंह ने वीरेंद्र सिंह को संभालते हुए सारी परिस्थितियों समझी और फिर परिस्थितियों को समझने के बाद वीरेंद्र सिंह को वहां से ले जाकर एक कक्ष में बैठा दिया और बैरागी की लाश को वहां से ले जाकर महल से थोड़ा दूर ही पीछे एक खाली जगह में दफना दिया.. इसी के साथ में सुजाता का भी पूरी रीती और नीति के अनुसार क्रियाकर्म करते हुए अंतिम विदाई दी..
वीरेंद्र सिंह को अपनी हालत पर बहुत रोना आ रहा था उसकी की गई गलती अब उसे पछतावा दे रही थी और उसे बहुत पछतावा हो रहा था वीरेंद्र सिंह के हाथ में अब कुछ भी नहीं बचा था..
वीरेंद्र सिंह ने इसी के साथ में अपने गुस्से में एक औऱ निर्णय लिया औऱ समर को खत्म कर देने के लिए काफी सारे सिपाही उसके घर पर भेजें और जब समर अपनी मां लीलावती के साथ घर पर था तब वीरेंद्र सिंह के सिपाहियों ने उसके घर पर आक्रमण कर दिया और समर के साथ लीलावती को भी मौत के घाट उतार दिया..
समर और लीलावती अपनी मृत्यु को प्राप्त हो चुके थे. समर की खबर सुनकर रुक्मा ने भी आत्महत्या कर ली और उसका प्रेम अधूरा ही रह गया..
वीरेंद्र सिंह ने जब रुक्मा की खबर सुनी तो वो पूरी तरह से पत्थर दिल बन गया औऱ अब उसने अकेले ही जागीर पर शासन करने का निर्णय लिया और केवल अपने विश्वासपात्र सैनिकों को अपने करीब रखने लगा उसने जागीर के आसपास के इलाकों पर अपना कब्जा कर लिया और आसपास की जगीर भी जीत ली जिससे उसका कद और बढ़ चुका था..
वीरेंद्र सिंह अपने महल में आराम से शासन कर रहा था और अब उसने अकेले ही जीवन बिताने का फैसला कर लिया इसी के साथ वह अब नए-नए शौक पलने लगा था उसने वेश्याओं का सहारा लेकर सुजाता को बुलाने का निर्णय किया. इसी के साथ वह भोग विलास में जुट गया था वह अपने जीवन का पूरा आनंद लेना चाहता था इसलिए वह किसी और की परवाह किए बिना अपने ही बारे में सोचने लगा था और उसको अब सुजाता और अपनी पुत्री जो आत्महत्या करके मर चुकी थी उसके भी याद नहीं रही थी..
वीरेंद्र सिंह अब सत्ता के नशे में इतना चूर हो चुका था कि उसे और किसी की परवाह नहीं थी वह आसपास की जगीरो को जीत कर उन पर शासन करने में और भोग विलास करने में ही अपने दिन गुजरने लगा था वह अपनी सत्ता और बढ़ाना चाहता था और शासन बढाकर रियासत पर कब्जा करना चाहता था उसने आसपास और जागीर को जीत लिया था.. आसपास की 8 जागीर को जीतकर वीरेंद्र सिंह अब रियासत पर आक्रमण करने का प्लान बना रहा था और ऐसा ही वह करना चाहता था वीरेंद्र सिंह के मोसेरे भाई जो रियासत के राजा थे उनको वीरेंद्र सिंह का डर सताने लगा था और वह सोचने लगे थे कि वीरेंद्र सिंह रियासत पर कभी भी आक्रमण करके उनको गद्दी से हटा देगा और खुद अब रियासत पर शासन करके पूरी रियासत पर कब्जा जमा लगा..
वीरेंद्र सिंह भी इसी प्रयास में लगा हुआ था. उसने भोग विलास करते हुए और अपने शौक पूरे करते हुए जयसिंह से कहकर सेना को तैयार कर लिया था और अब वह रियासत पर आक्रमण करने ही वाला था..
वीरेंद्र सिंह की शक्तियां बढ़ गई थी उसने द्वन्द युद्ध में कई जागीरदारों को और सरदारों को मार गिराया था जिससे सारे जगह उसकी वाहवाही और बलवान होने की चर्चा थी.. वीरेंद्र सिंह अपनी सेना तैयार करके रियासत पर आक्रमण करने वाला था लेकिन उससे एक रात पहले वह हुआ जो होने की कल्पना किसी ने भी नहीं की थी और ना ही वीरेंद्र सिंह को इस बात का अंदाजा था कि ऐसा उसके साथ हो सकता है और कोई ऐसा भी है जो उसे कीड़ो की मरने के लिए छोड़ सकता है..
मृदुला को अपनी पुत्री मानकर पालने वाला आदमी जिसका नाम जोगी था वापस आ चुका था उसकी सिद्धियां पूरी हो चुकी थी और उसके साथ उसका शेर बालम भी जंगल में उसी जगह आ चुके थे जहां से वह मृदुला और बैरागी को छोड़कर गया था..
जोगी ने जब वापस वहां आकर स्थिति देखी तो पाया कि अब वहां कोई नहीं था और वहा जो कुटिया थी वह भी अब पुरानी सी हो गई थी.. किसी के नहीं रहने से वहां की हालत अब जंगल के बाकी हिस्सों जैसे ही हो गई थी.. आदमी ने जब कुटिया के पास बना हुआ कब्रनुमा खड्डे को देखा तो उसे अंदाजा हुआ कि कुछ ना कुछ अनहोनी जरूर हुई है उसने खड्डे को खोदना शुरू किया और जब उसने खड़े को खुदा तो उसमें मृदुल को पाया.. आदमी का मन इतना हताश निराश और दुखी पीड़ा से भर गया कि उसकी चीख से जंगल की सारी हवाएं ठहर गई और परिंदे पेड़ों से उड़ कर आकाश में इस तरह लहरा गए कि मानो कोई अनहोनी होने ही वाली हो..
जोगी ने मृदुल के सर पर हाथ रखकर उसके पीछे जो कुछ हुआ उसकी सारी कहानी जान ली और उसे पता चल गया कि उसकी जान कैसे गई है..
जोगी ने बैरागी से मिलने की ठानी और वह मृदुला को वापस वही उस कब्र में दफनाकर वहां से चला गया और जाते हुए लोगों से बैरागी के बारे में पूछने लगा पूछते पूछते उसे एक आदमी ने बताया कि उसने बैरागी को जागीरदार वीरेंद्र सिंह के महल में देखा था जहां वह कुछ महीने रहा था..
लोगों ने आदमी को बताया कि कैसे बैरागी ने नए-नए लोगों का उपचार करके लोगों को ठीक किया और उसकी प्रसिद्धि पूरी जागीर में इस तरफ फैली जैसे घास में आग फैल जाती है मगर एक दिन अचानक उसकी कोई खैर खबर नहीं मिली.. जोगी ने जब आगे पूछा तो लोगों ने उसे बताया कि उन्होंने अफवाह सुनी है कि वीरेंद्र सिंह ने बैरागी को मार कर महल के बाहर पीछे वाले खाली जगह में दफना दिया है..
आदमी को पहले ही क्रोध की अग्नि ने प्रज्वलित कर रखा था और बैरागी की खबर सुनकर वह और ज्यादा गुस्से से भर गया उसने महल के पीछे वाली खाली जगह पर जाकर बैरागी को कब्र से निकाल कर उसके सर पर हाथ रखा और उसके साथ हुई हर घटना को जान लिया जैसे ही उसने इस बात को जाना कि वीरेंद्र सिंह ने बैरागी को मारा है वह गुस्से से तिलमिला उठा..
जोगी मृदुला को बेटी मानता था और बेटी के पति को अपना बेटा.. और दोनों की मौत पर आदमी इतना गुस्से से भरा हुआ था कि उसने सारा गुस्सा वीरेंद्र सिंह और उसकी जागीर पर निकलने का तय कर लिया..
वीरेंद्र सिंह जिस सुबह रियासत पर हमला करने के लिए निकलने वाला था उसी सुबह जोगी ने वीरेंद्र सिंह को मारने के लिए उसपर चढ़ाई शुरू कर दी..
जोगी के रास्ते में जितने भी लोग आए जितने भी सैनिक आए जितने भी योद्धा है सभी जोगी के शेर बालम के द्वारा मारे गए..
जब जोगी के सामने एक सेना की एक टुकड़ी खड़ी हुई सी आई तो जोगी ने गुस्से से अपने पैर से ठोकर जमीन पर मारी और उनकी तरफ मिट्टी उड़ा दी.. आदमी की ठोकर मारने से उड़ी हुई मिट्टी का एक एक कण एक-एक परछाई में बदल गया और उन परछाईयों ने सामने खड़ी हुई संपूर्ण सेना की टुकड़ी को पलक झपकते ही एक ही बार में मार दिया..
जोगी को ऐसा करते देखकर बाकी लोग भय से भरकर भागने लगे और सोचने लगे कि वह कौन है और क्यों वीरेंद्र सिंह को मारना चाहता है.. महल औऱ आस पास के लोग जोगी से डरकर भाग निकले औऱ सब के सब जागीर छोड़कर भाग गए..
एक बार में सारी सेना को मारने के बाद में जोगी आगे बढ़ा और महल के भीतर घुस गया...
वीरेंद्र सिंह अपने भोग विलास में डूबा हुआ था कि उसे किसी भागते हुए सैनिक ने आकर इसकी सूचना दी कि किसी आदमी ने उसके सभी सैनिक और पूरी सेना को एक बार में मार दिया है और ऐसा लग रहा है कि वो आदमी उसे भी मार डालेगा..
वीरेंद्र सिंह वैश्याओ के पास से उठ खड़ा हुआ औऱ कश से बाहर निकला उसने देखा की सभी लोग अपनी जान बचाकार भाग रहे है.. अमर होने के नशे में चूर वीरेंद्र सिंह तलवार लेकर उस आदमी की तरफ बढ़ गया..
जोगी ने जैसे ही वीरेंद्र सिंह को देखा उसने वीरेंद्र सिंह के पैरों को किसी मन्त्र की सहायता से वही जकड़ दिया जहा वो खड़ा था..
जोगी वीरेंद्र सिंह के पास आया और उसे घूर कर देखने लगा.. जोगी ने वीरेंद्र सिंह से कहा कि उसने बैरागी को मार कर अच्छा नहीं किया.. वीरेंद्र सिंह ने आदमी का जवाब देते हुए कहा.. कि वह अमर है उसे कोई नहीं मार सकता..
जोगी ने वीरेंद्र सिंह से कहा कि वह उसे मारने नहीं आया बल्कि वह उसे जिंदा रखकर उसके जीवन को जहाँन्नुम बनाने आया है और उसे उसके किए हुए पापों की सजा देने आया है..
आज तक वीरेंद्र सिंह को मरने का डर था अब उसे जीने का डर लगेगा वह मौत को पाना चाहेगा मगर मौत उसे कभी हासिल नहीं होगी और वह कभी मर नहीं पाएगा.. इसी के साथ ही उसका जीवन अब इतना बड़ा और पीड़ादायक हो जाएगा कि उसे हर दिन एक साल के बराबर लगेगा..
वीरेंद्र सिंह को आदमी की बातें सुनकर अजीब लग रहा था और वह सोच रहा था कि यह आदमी कैसे उसके जीवन को नर्क बना सकता है और कैसे उसके वरदान को अभिशाप में बदल सकता है..
वीरेंद्र सिंह के वापस जवाब न देने पर आदमी ने कहा कि उसने प्रकृति के नियम से छेड़छाड़ कि है जो कि उसके दुखों का कारण बनेगा और उसके किए हुए पाप उसके साथ ही रहेंगे..
जोगी का किया विध्वंस इतना भीषण था की जागीर के सभी लोग अपनी जान बचाकर निकले थे महल सुनसान पड़ा हुआ था जहां बस अब एक वीरेंद्र सिंह खड़ा हुआ था और सामने जोगी जिसे अब और कोई धुन सवार नहीं थी..
जोगी ने बैरागी के शरीर के साथ क्रिया करके बैरागी की आत्मा को वीरेंद्र सिंह के ऊपर छोड़ दिया और उसे पाबंद कर दिया कि वह वीरेंद्र सिंह को कभी चैन से सोने और चैन से रहने नहीं देगा..
इसी के साथ ही जोगी ने वीरेंद्र सिंह को भी अपने ज्ञान कला और सिद्धि के माध्यम से औषधि को निषफल किये बिना ही जीने के लिए बाध्य कर दिया.. आदमी ने वीरेंद्र सिंह की दुर्गति करने के लिए उस पर जो सिद्धियों का उपयोग किया उससे अब वीरेंद्र सिंह ना ठीक से खा सकता था ना ही सो सकता था ना ही भोग विलास कर सकता था उसकी उम्र भी अब उसके मृत्यु के समय वाली अवस्था में आ गई थी..
जोगी ने वीरेंद्र सिंह ऐसी दुर्गति की जो वह सपने में भी नहीं सोच सकता था.. वीरेंद्र सिंह अब अपनी उम्र की 11 गुनी लम्बी जिंदगी जीने वाला था.. मगर जिंदा रहने के लिए ना वो कुछ अच्छा खा सकता था.. ना ही भोगविलास कर सकता था.. ना किसी महल में रह सकता था ना ही उसे पूरी नींद आ सकती थी.. ऊपर से उसके सर पर अब बैरागी का भूत भी बैठ गया था जो अक्सर उसे उसकी नींद से जगा देता उसे चैन से सोने नहीं देता.. ना ही उसे चैन से खाने देता.. वीरेंद्र सिंह कोई भी चीज खाता तो रख बन जाती है उसे सड़ा गला ही खाना पड़ता और उसे अब इस तरह जीना पड़ता है जैसे कोई बेसहारा बेबस लाचार तड़पकर जीता है..
वीरेंद्र सिंह ने इस बंधन को खोलने के लिए और इस बंधन से मुक्ति पाने के लिए बड़े से बड़े सिद्ध ज्ञानी पुरुष की शरण में जाकर सिद्धियां और ज्ञान हासिल करने की ठान ली और आसपास जितने भी महापुरुष और महासाधु लोग थे उनकी शरण में जाकर इस बंधन से आजाद होने का उपाय करने लगा लेकिन उसे कहीं भी इसका उपाय नहीं मिला..
वीरेंद्र सिंह जागीर के बाहर भी दूर दूर तक जाकर वापस आ गया.. बहुत सी सिद्धियां और ज्ञान हासिल किये जो समय के साथ उसके साथ ही रहे..
वीरेंद्र सिंह के साथ बैरागी की आत्मा होने के कारण बैरागी को भी उन ज्ञान की प्राप्ति हुई और वह वीरेंद्र सिंह के साथ-साथ सभी संतो महापुरुषों और सिद्ध बाबोओ और शानो तांत्रिको के चरणों में बैठकर वीरेंद्र सिंह के साथ ही ज्ञान प्राप्त कर रहा था.. इसी के साथ वह वीरेंद्र सिंह को कभी चैन से नहीं रहने दे रहा था वीरेंद्र सिंह अब मौत को तरस रहा था..
वीरेंद्र सिंह को जिंदगी का भय लगने लगा था और वह इसी तरह अपने दिन गुजरने लगा था.. देखते ही देखते दिन गुजरने लगे और फिर महीने साल बीतने लगे साल दर साल बीतने के बाद में बैरागी और वीरेंद्र सिंह साथ में ही रहे..
आखिर में बैरागी ने ही वीरेंद्र सिंह पर तरस खाकर उसे उसकी मुक्ति का राज़ बताया औऱ कहा की यदि कोई उसी जड़ी बूटी को जो बैरागी ने बनाई थी लाकर आपको खिला दे तो वीरेंद्र सिंह की मुक्ति हो जायेगी.. औऱ वीरेंद्र सिंह की मृत्यु के साथ बैरागी भी मुक्त हो जाएगा..
गौतम ये सब सपने में देखकर देखकर सुबह उठा तो उसने सपने के बारे में देर तक सोचा.. उसे समझ नहीं आ रहा था की उसे एक ही कहानी से जुड़े हुए सपने बार बार क्यों आ रहे है?
आज गौतम सुमन के साथ वापस आने वाला था सो उसने वापस सपने के बारे में सोचना छोड़कर नहाने का सोचा औऱ तैयार होकर गायत्री कोमल आरती शबनम सब से मिलकर वापस आने के लिए सुमन के साथ निकल पड़ा..
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प्रणाम बड़े बाबा जी...
किशोर.. तू इस वक़्त यहां? अभी तो सांझ होने में समय है फिर अचानक आने का कारण?
किशोर - बड़े बाबाजी.. बाबाजी के आश्रम में एक आदमी अपनी अंतिम साँसे ले रहा है अजीब रोग हो उसे उसके रोग के उपचार हेतु युक्ति पूछने को भिजवाया है..कहा है यदि आप आज्ञा दे तो बाबाजी आपके पास इसी समय आने को आतुर है..
बड़े बाबाजी - इस वक़्त? जानते नहीं एकान्त में हम अपने साथ समय व्यतीत कर रहे है.. विरम से कह देना अगली बार हम उसे बुलाएंगे.. तब तक वो किसी औऱ को हमारे पास ना भेजे.. किशोर.. तुमको भी नहीं..
किशोर - जो आदेश बड़े बाबाजी.. किशोर जाने लगता है तभी बैरागी वीरेंद्र से कहता है..
बैरागी - मरने वाले के प्राण अगर बच सकते है तो उसे बचाने में कोई परहेज नहीं होना चाहिए हुकुम.. जीवन अनमोल है उसकी सही कीमत मरने से पहले ही समझ आती है.. जब सारा जीवन आँखों के सामने आता है औऱ जीवन में किये अपने सही गलत कामो का तुलनात्मक अध्ययन होता है..
बड़े बाबाजी उफ़ वीरेंद्र सिंह - तू कहना क्या चाहता है बैरागी कि मुझे उस मरते हुए आदमी के जीवन की रक्षा करनी चाहिए? अरे प्रतिदिन सेकड़ो मनुष्य अपने प्राण त्याग कर इस दुनिया से अगले आयाम में चले जाते है.. वो भी यहां से वहा चला जाएगा तो क्या हो जाएगा?
बैरागी - प्रतिदिन मरने वाले सैकड़ो लोगो कि किस्मत में बचना नहीं लिखा होता हुकुम.. उनकी मृत्यु उनकी नियति है मगर जिसके प्राण बच सकते है औऱ आपके करण जा रहे है उसका मरना आपकी हठधर्मिता..
बड़े बाबाजी उफ़ वीरेंद्र सिंह - समझ गया बैरागी.. तू सही कहता है.. मेरे ही समझने का फेर था..
बड़े बाबाजी किशोर को बुलाते है औऱ बाबाजी उर्फ़ विरम तक ये सन्देश पहूँचवाते है की उस रोगी को उनके पास लाया जाए..
विरम उर्फ़ बड़े बाबाजी किशोर औऱ कुछ अन्य लोगों के साथ उस आदमी को बड़े बाबाजी की कुटीया के बाहर लाकर जंजीर से बाँध देते है..
बड़े बाबाजी कुटीया से बाहर आकर रोगी को देखते हुए - क्या हुआ है इसे?
बाबाजी बाकी लोगों को जाने का इशारा करते हुए - गुरुदेव कोई साया लगता है.. मैंने बहुत कोशिश की समझने की मगर समझ नहीं पाया.. इसलिए किशोर को आपके पास भेजा.. इसकी पत्नी औऱ एक बच्ची भी है जो ऊपर आश्रम में रोती हुई मुझसे इसके ठीक होने का गुहार लगा रही है.. अब ये आपकी शरण में है गुरुदेव.. आप इसका उद्धार करें...
बड़े बाबाजी उस आदमी को देखते हुए - साया तो जरूर है.. पर कोनसा? ये समझने में मैं चूक रहा हूँ विरम.. इसकी दशा किसी जंगल के उजड़े हुए बरगद की तरह है औऱ आँखे किसी बांधे हुए तीलीस्म की तरह.. मैं दोनों में अंतर समझने में चूक रहा हूँ..
विरम - अब आप ही आखिरी उम्मीद है गुरुदेव.. आप ही तय करें..
बड़े बाबाजी बैरागी की तरफ देखकर - क्या लगता है?
बैरागी - समझने का फेर तो आपसे पहले भी हो चूका है हुकुम.. मगर इस बार में आपकी मदद किये देता हूँ.. इसके गले के नीचे सीने से ऊपर तीलीस्म की निशानी है.. ये किसी का बाँधा हुआ तीलीस्म है हुकुम..
बड़े बाबाजी बैरागी की बात सुनकर उस रोगी के सर के बाल पकड़ कर उसके मुंह में मिट्टी के कुछ कण डालकर सर पर अपने हाथ में पानी लेकर छिड़काव करते है औऱ उस रोगी का बंधा हुआ तीलीस्म खोल देते है जिससे वो रोगी उस बांधे हुए तीलीस्म से आजाद हो जाता है..
विरम उर्फ़ बाबाजी उस रोगी को संभालते हुए - गुरुदेव ये क्या हो रहा है?
बडेबाबाज़ी उर्फ़ विरम - तेरा रोगी तीलीस्म से आजाद हो रहा है विरम.. इसे ले जा.. औऱ 3 दिन तक पीपल के पेड़ की छाया से भी दूर रख..
विरम उर्फ़ बाबाजी - जैसी आपकी आज्ञा गुरुदेव..
किशोर - आज्ञा बड़े बाबाजी..
विरम उर्फ़ बाबाजी किशोर के साथ उस रोगी को उन आदमियों की मदद से वापस ऊपर आश्रम में ले आता है औऱ उसकी बीवी औऱ बच्ची को 3 दिनों तक उस आदमी को पीपल से दूर रखने की सलाह देता हुआ उसी आश्रम में रहने का सुझाव देता है जिस पर सब राजी हो जाते है...
सबके जाने के बाद वीरेंद्र सिंह बैरागी से पूछता है - मुझसे पहले कब समझने में चूक हुई बैरागी? मैंने तो अब तक सब सटीक ही अनुमान लगाया है..
बैरागी - सबसे जरुरी अनुमान ही अगर गलत लग जाए तो पुरे इतिहास का क्या महत्त्व रह जाएगा हुकुम...
बड़े बाबाजी - मैं समझा नहीं बैरागी?
बैरागी - आपने उस लड़के का पिछला जन्म देखा था याद है आपको..
बड़े बाबाजी - कौन गौतम?
बैरागी - हाँ हुकुम..
बड़े बाबाजी - तो? उसमे क्या गलत अनुमान लगाया मैंने बैरागी? गौतम अपने पिछले जन्म में धुपसिंह का बेटा समर ही तो है..
बैरागी - नहीं हुकुम.. गौतम अपने पहले जन्म में अपने धुपसिंह का असली बेटा था.. समर तो गज सिंह औऱ लीलावती की संतान थी..
बड़े बाबाजी हैरानी से - मतलब धुपसिंह का समर के अलावा भी एक बेटा है.. मुझसे इतना बड़ी गलती हो गई?
बैरागी - अब आपने बिलकुल सही अनुमान लगाया हुकुम.. जो कीच आपने इतने बर्षो में सीधा है मैंने भी सीखा है हुकुम.. जिस तरह आपने ध्यान लगाकर गौतम का पुराना जन्म देखने की नाकाम कोशिश की है.. मैंने भी आपका पूरा इतिहास देखा है...याद है एक बार आप माघ की रात में जंगल से गुजर रहे थे औऱ आपके पीछे जयसिंह औऱ धुपसिंह के साथ कई औऱ सैनिक भी थे.. उस वक़्त आपके पिता कुशल सिंह जागीरदार हुआ करते थे..
बड़े बाबाजी - याद है.. हमने जंगल के बीच दरिया किनारे जमाव डाला था...
बैरागी - हाँ हुकुम.. उस वक़्त जमाव के करीब बनजारों औऱ अन्य काबिलो की बस्तीया भी आबाद थी जहा रात को अपना मन बहलाने धुपसिंह औऱ उसके साथ कई सैनिक गए थे..
बड़े बाबाजी - तो इसमें क्या बड़ी बात है बैरागी.. ये तो कई बार होता आया है.. जंगल से गुजरते वक़्त कबिलो की औरतों से सैनिक सम्बन्ध बनाते ही रहते है..
बैरागी - मगर प्यार नहीं करते हुकुम.. धुपसिंह ने यही किया.. काबिले में ना जाकर बंजारों की बस्ती में चला गया औऱ एक बंजारन से प्रेम कर बैठा.. उस प्रेम का परिणाम ये हुआ कि एक लड़के का जन्म हुआ.. जो धुपसिंह की असली संतान थी औऱ गौतम का पिछला जन्म भी..
बड़े बाबाजी - बैरागी इतनी बड़ी भूल.. मैं कैसे इतनी बड़ी भूल कर सकता हूँ? मेरा मस्तिक गौतम के मिलने के बाद बहुत विचलित रहने लगा है.. मैं ध्यान भी नहीं कर पा रहा हूँ..
बैरागी - आज तृत्या है हुकुम.. मेरा प्रभाव आप पर कमजोर है.. आप थोड़ा आराम कर लीजिये..
बड़े बाबाजी कूटया में जाकर चटाई पर लेटते हुए सो जाते है...
Matlab Gugu ab koi kaam ka nahi rahegaUpdate 38
क्या हुआ बैरागी?
कुछ नहीं हुकुम.. बस आपके भय का निवारण होने ही वाला है.. आज आपको आपके भय से मुक्ति दिलाने के लिए मैं उस औषधि को तैयार कर दूंगा जिससे आपका भय समाप्त हो जाएगा..
ये तो बहुत अच्छी बात बताई तुमने बैरागी.. आखिकार मैं अपने भय औऱ पीड़ा से मुक्त हो ही जाऊँगा.. मैं बहुत खुश हूँ बैरागी.. मैं तुझे ये सारे पौधे औऱ औषधिया इस जगह के साथ देता हूँ तू जो चाहे कर मगर मुझे आज मेरा माँगा हुआ उपहार बनाकर दे दे..
आप निश्चिन्त रहिये हुकुम अभी रात के भोजन के साथ आपको उस औषधि का भी सेवन करना होगा.. मैं उसे बनाकर आपकी सेवा में प्रस्तुत कर दूंगा..
बैरागी ने औषधि का निर्माण कर दिया और उसे वीरेंद्र सिंह को खिलाने के लिए रात के खाने के साथ पेश कर दिया जिसे वीरेंद्र सिंह खाता हुआ बड़े चाव से अपने ख्यालों में गुम हो गया और अब उसे किसी बात का और कोई भय नहीं रहा अब वह हमेशा के लिए जीवित रहेगा और अपने जीवन को यूं ही राज करते हुए बरकरार रखेगा..
बैरागी ने औषधि बनाने के बाद वीरेंद्र सिंह को खिला दी थी और अब वह वीरेंद्र सिंह के महल में ही औषधालय में रहकर नई नई औषधि का निर्माण कर लोगों के रोगों का और कष्ट का निवारण करने लगा था वह कई रोगों का उपचार मात्रा देखने से ही कर देता और उसका नुस्खा सुझा देता..
बैरागी दिन ब दिन बहुत ही गुणी औऱ प्रसिद्ध होने लगा था. इसी के साथ उसका मेलझोल वीरेंद्र सिंह की धर्मपत्नी सुजाता से बढ़ने लगा था सुजाता और बैरागी एक साथ मिलकर कई बार घंटे तक लंबी-लंबी बातें करते और अपने बारे में और दूसरे के बारे में यानी एक दूसरे के बारे में नई-नई बातें जानते और पूछते हैं दोनों का मेल मिलाप इस कदर पड़ चुका था कि दोनों के मन में अब एक दूसरे के प्रति आकर्षण जागने लगा था महीनों गुजर गए थे और अब बैरागी और सुजाता का यह प्रेम संवाद अब वास्तविक प्रेम का रूप लेने लगा था बैरागी के मन में अभी भी मृदुला के लिए अकूत प्रेम था जो उसे सुजाता से प्रेम करने से रोक रहा था.
मगर अब सुजाता बैरागी के बिना एक पल भी जीने को तैयार नहीं थी वह चाहती थी कि बैरागी उसे अपना ले और वीरेंद्र सिंह की पीठ पीछे बैरागी और वह एक साथ संबंध बनाकर खुशी से जीवन जी सके और यह बात किसी और के सामने प्रकट नहीं हो.. जिसके लिए बैरागी कभी भी तैयार नहीं था..
समर भी पहरेदारी करते हुए रुकमा के प्यार में पड़ ही चुका था रुक्मा उसे अपने हुस्न और बातों से इस कदर अपने प्यार में उलझा लिया कि वह अब रुकमा के साथ प्रेम के मीठे बोल बोलने लगा था और उसके साथ जीवन बिताने को लालायता मगर घर पर समर का संबंध लीलावती से भी मधुरता था.. वह हर रात लीलावती को अपनी अर्धांगिनी की तरह ही प्यार करता और अब दोनों उसे घर में मां और बेटे की जगह पति और पत्नी की तरह रहने लगे थे..
लीलावती अपनी कोमकला से समर को मोहित कर चुकी थी और हर रात समर की भूख के साथ उसके बदन की भूख को भी ठंडा करती थी उनका प्रेम एक नया मोड़ ले चुका था..
लीलावती औऱ समर जब भी घर में होते दोनों के बदन पर एक भी कपड़ा नहीं होता और दोनों घर के भीतर नंगे ही एक दूसरे के बदन से लिपट मिलते..
वीरेंद्र सिंह औषधि का सेवन करके अब अपने आप को एक अजीत योद्धा समझता था जिसे कोई जीत नहीं सकता था उसने जयसिंह की मदद से अब जागीर के आसपास की जगह भी अपना अधिकार करना शुरू कर दिया था और वह बहुत गर्व से शासन करने लगा था उसे अब अपने घर परिवार की चिंता न होकर अपने साम्राज्य की चिंता ज्यादा होने लगी थी और उसकी वह और पीड़ा समाप्त हो चुकी थी वह बैरागी का सम्मान करता था मगर अब बैरागी उसकी आंखों में चुभने लगा था जिस तरह से बैरागी और सुजाता के बीच नजदीकी बढ़ने लगी थी वीरेंद्र सिंह की नजर उन पर बनी हुई थी वीरेंद्र सिंह सुजाता और वह बैरागी को अपने सामने ही कई बार लंबी-लंबी वार्तालाप करते हुए देखा तो जलन से सिकुड़ जाता और सोचता कि सुजाता उसकी पत्नी होकर एक नीचे कुल के लड़के के साथ इतनी लंबी लंबी बातें क्यों कर रही है और क्यों वह उसके काम में अब उसकी सहायता कर रही है सुजाता का स्वभाव और व्यवहार वीरेंद्र सिंह की तुलना में अब बैरागी के साथ बहुत ही मधुर और शालीन हो चुका था..
सुजाता के मन में बैरागी के प्रति एक अलग प्रेम का भी उद्धव हो चुका था जिसे वह मन ही मन बैरागी को बटा कर उसका प्रेम पाना चाहती थी और उसके साथ नया रिश्ता कायम करना चाहती थी मगर बैरागी इसके के लिए कते भी तैयार नहीं था.. मगर सुजाता ने इतना जरूर कर दिया था कि अब बैरागी मृदुला को याद करता था मगर फिर से प्रेम के बंधन में बंधने को भी आतुर होने लगा था..
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वीरेंद्र सिंह की नजर सुजाता पर थी मगर उसे क्या पता था कि उसकी बेटी राजकुमारी रुकमा एक सिपाही के प्रेम में पड़ी हुई है और वह उसके साथ अब अकेले मिलने भी मिलने लगी है..
वीरेंद्र सिंह के सिपाही जो उसके गुप्तचर थे उन्होंने वीरेंद्र सिंह को सुजाता और बैरागी के पनपते प्रेम और रुकमा और समर के पनपते हुए प्रेम के बारे में अवगत करवाया तो वीरेंद्र सिंह गुस्से से भरकर अपने सिंहासन से खड़ा हुआ और अपनी तलवार लेकर समर की तरफ चलता हुआ क्रोध से भर गया और सोचने लगा कि आज वह समर की जान ले लेगा और उसे बैरागी को भी यहां से निकल बाहर करेगा यह सोचते हुए वीरेंद्र सिंह जा ही रहा था कि उसे किसी गुप्तचर के आने की सूचना हुई..
गुप्तचर ने वीरेंद्र सिंह को बताया कि बैरागी और सुजाता औषधालय में एकांत में कुछ निजी पर गुजर रहे हैं और अब उनके बीच में जो फासला होना चाहिए था वह समाप्त हो चुका है. वीरेंद्र सिंह और गुस्से से भर गया और उसने फिर समर का ख्याल छोड़कर पहले बैरागी से निपटने का फैसला किया और बैरागी की तरफ चलने लगा वीरेंद्र सिंह औषधि में जैसे ही पहुंचा उसने देखा कि सुजाता और बैरागी के मध्य चुंबन हो रहा है..
दोनों के बीच उम्र का फैसला था मगर मन का फैसला मिट चुका था दोनों एक दूसरे को प्रेम करने लगे थे और इसी प्रेम का यह नतीजा था कि बैरागी और सुजाता ने एक दूसरे के होठों को आपस में मिल लिया था और दोनों एक दूसरे को प्रेम से चूमने लगे थे वीरेंद्र सिंह ने जैसे ही उनका चुंबन देखा वह गुस्से से चिल्लाता हुआ बैरागी की तरफ बड़ा और अपनी तलवार से बैरागी पर प्रहार करने लगा बैरागी वीरेंद्र सिंह के प्रहार से बच गया और उसे विनती करते हुए बोला कि मुझे माफ कर दो हुकुम मैं आपका दोषी हूं किंतु मैं रानी मां से प्रेम करने लगा हूं आप मेरी इस गलती को क्षमा कर दो... मगर वीरेंद्र सिंह गुस्से में था उसने बैरागी की एक बात नहीं मानी और उस पर दूसरा प्रहार किया जिससे भी बैरागी ने खुद को बचा लिया और फिर अपने गले में बंधा हुआ ताबीज उतरते हुए कहा कि हुकुम मुझे यह ताबीज उतार लेने दो लेकिन इस बार वीरेंद्र सिंह ने इतना सटीक और सीधा वार किया कि बैरागी के ताबिज़ उतारने से पहले ही उसका गला तलवार से एक ही झटके में अलग हो गया..
जैसे ही बैरागी की गर्दन कटी उसके खून से बहती हुई रक्त ने परछाई का रूप ले लिया जो वीरेंद्र सिंह की तरफ अपने विकराल स्वरूप को लेकर वीरेंद्र सिंह को मारने बढ़ी और उसे मारने वाली थी कि सुजाता बीच में आ गई और सुजाता ने परछाई से वीरेंद्र सिंह को बचाते हुआ अपनी जान दे दी.. वीरेंद्र सिंह की जगह परछाई सुजाता पर आ बड़ी और सुजाता की जान चली गई.. वीरेंद्र सिंह ने जब ऐसा होते देखा उसकी आंखों ने इस दृश्य पर विश्वास नहीं किया और वह सोचने लगा कि बैरागी ने आखिर ऐसा क्या ताबीज़ पहना था और क्यों यह परछाई उसके शरीर से निकालकर उसकी तरफ बड़ी थी लेकिन इसी के साथ अब उसे सुजाता के मरने का बहुत दुख हो रहा था और वह विलाप करते हुए जोर-जोर से सुजाता को देखकर रोने लगा और उसे अपनी गोद में उठाकर दहाड़े मारता हुआ चीखता हुआ रोने लगा...
सिपाहियों ने आकर जब यह हाल देखा तो वह वीरेंद्र सिंह को समझाते हुए उठाने लगे जयसिंह ने वीरेंद्र सिंह को संभालते हुए सारी परिस्थितियों समझी और फिर परिस्थितियों को समझने के बाद वीरेंद्र सिंह को वहां से ले जाकर एक कक्ष में बैठा दिया और बैरागी की लाश को वहां से ले जाकर महल से थोड़ा दूर ही पीछे एक खाली जगह में दफना दिया.. इसी के साथ में सुजाता का भी पूरी रीती और नीति के अनुसार क्रियाकर्म करते हुए अंतिम विदाई दी..
वीरेंद्र सिंह को अपनी हालत पर बहुत रोना आ रहा था उसकी की गई गलती अब उसे पछतावा दे रही थी और उसे बहुत पछतावा हो रहा था वीरेंद्र सिंह के हाथ में अब कुछ भी नहीं बचा था..
वीरेंद्र सिंह ने इसी के साथ में अपने गुस्से में एक औऱ निर्णय लिया औऱ समर को खत्म कर देने के लिए काफी सारे सिपाही उसके घर पर भेजें और जब समर अपनी मां लीलावती के साथ घर पर था तब वीरेंद्र सिंह के सिपाहियों ने उसके घर पर आक्रमण कर दिया और समर के साथ लीलावती को भी मौत के घाट उतार दिया..
समर और लीलावती अपनी मृत्यु को प्राप्त हो चुके थे. समर की खबर सुनकर रुक्मा ने भी आत्महत्या कर ली और उसका प्रेम अधूरा ही रह गया..
वीरेंद्र सिंह ने जब रुक्मा की खबर सुनी तो वो पूरी तरह से पत्थर दिल बन गया औऱ अब उसने अकेले ही जागीर पर शासन करने का निर्णय लिया और केवल अपने विश्वासपात्र सैनिकों को अपने करीब रखने लगा उसने जागीर के आसपास के इलाकों पर अपना कब्जा कर लिया और आसपास की जगीर भी जीत ली जिससे उसका कद और बढ़ चुका था..
वीरेंद्र सिंह अपने महल में आराम से शासन कर रहा था और अब उसने अकेले ही जीवन बिताने का फैसला कर लिया इसी के साथ वह अब नए-नए शौक पलने लगा था उसने वेश्याओं का सहारा लेकर सुजाता को बुलाने का निर्णय किया. इसी के साथ वह भोग विलास में जुट गया था वह अपने जीवन का पूरा आनंद लेना चाहता था इसलिए वह किसी और की परवाह किए बिना अपने ही बारे में सोचने लगा था और उसको अब सुजाता और अपनी पुत्री जो आत्महत्या करके मर चुकी थी उसके भी याद नहीं रही थी..
वीरेंद्र सिंह अब सत्ता के नशे में इतना चूर हो चुका था कि उसे और किसी की परवाह नहीं थी वह आसपास की जगीरो को जीत कर उन पर शासन करने में और भोग विलास करने में ही अपने दिन गुजरने लगा था वह अपनी सत्ता और बढ़ाना चाहता था और शासन बढाकर रियासत पर कब्जा करना चाहता था उसने आसपास और जागीर को जीत लिया था.. आसपास की 8 जागीर को जीतकर वीरेंद्र सिंह अब रियासत पर आक्रमण करने का प्लान बना रहा था और ऐसा ही वह करना चाहता था वीरेंद्र सिंह के मोसेरे भाई जो रियासत के राजा थे उनको वीरेंद्र सिंह का डर सताने लगा था और वह सोचने लगे थे कि वीरेंद्र सिंह रियासत पर कभी भी आक्रमण करके उनको गद्दी से हटा देगा और खुद अब रियासत पर शासन करके पूरी रियासत पर कब्जा जमा लगा..
वीरेंद्र सिंह भी इसी प्रयास में लगा हुआ था. उसने भोग विलास करते हुए और अपने शौक पूरे करते हुए जयसिंह से कहकर सेना को तैयार कर लिया था और अब वह रियासत पर आक्रमण करने ही वाला था..
वीरेंद्र सिंह की शक्तियां बढ़ गई थी उसने द्वन्द युद्ध में कई जागीरदारों को और सरदारों को मार गिराया था जिससे सारे जगह उसकी वाहवाही और बलवान होने की चर्चा थी.. वीरेंद्र सिंह अपनी सेना तैयार करके रियासत पर आक्रमण करने वाला था लेकिन उससे एक रात पहले वह हुआ जो होने की कल्पना किसी ने भी नहीं की थी और ना ही वीरेंद्र सिंह को इस बात का अंदाजा था कि ऐसा उसके साथ हो सकता है और कोई ऐसा भी है जो उसे कीड़ो की मरने के लिए छोड़ सकता है..
मृदुला को अपनी पुत्री मानकर पालने वाला आदमी जिसका नाम जोगी था वापस आ चुका था उसकी सिद्धियां पूरी हो चुकी थी और उसके साथ उसका शेर बालम भी जंगल में उसी जगह आ चुके थे जहां से वह मृदुला और बैरागी को छोड़कर गया था..
जोगी ने जब वापस वहां आकर स्थिति देखी तो पाया कि अब वहां कोई नहीं था और वहा जो कुटिया थी वह भी अब पुरानी सी हो गई थी.. किसी के नहीं रहने से वहां की हालत अब जंगल के बाकी हिस्सों जैसे ही हो गई थी.. आदमी ने जब कुटिया के पास बना हुआ कब्रनुमा खड्डे को देखा तो उसे अंदाजा हुआ कि कुछ ना कुछ अनहोनी जरूर हुई है उसने खड्डे को खोदना शुरू किया और जब उसने खड़े को खुदा तो उसमें मृदुल को पाया.. आदमी का मन इतना हताश निराश और दुखी पीड़ा से भर गया कि उसकी चीख से जंगल की सारी हवाएं ठहर गई और परिंदे पेड़ों से उड़ कर आकाश में इस तरह लहरा गए कि मानो कोई अनहोनी होने ही वाली हो..
जोगी ने मृदुल के सर पर हाथ रखकर उसके पीछे जो कुछ हुआ उसकी सारी कहानी जान ली और उसे पता चल गया कि उसकी जान कैसे गई है..
जोगी ने बैरागी से मिलने की ठानी और वह मृदुला को वापस वही उस कब्र में दफनाकर वहां से चला गया और जाते हुए लोगों से बैरागी के बारे में पूछने लगा पूछते पूछते उसे एक आदमी ने बताया कि उसने बैरागी को जागीरदार वीरेंद्र सिंह के महल में देखा था जहां वह कुछ महीने रहा था..
लोगों ने आदमी को बताया कि कैसे बैरागी ने नए-नए लोगों का उपचार करके लोगों को ठीक किया और उसकी प्रसिद्धि पूरी जागीर में इस तरफ फैली जैसे घास में आग फैल जाती है मगर एक दिन अचानक उसकी कोई खैर खबर नहीं मिली.. जोगी ने जब आगे पूछा तो लोगों ने उसे बताया कि उन्होंने अफवाह सुनी है कि वीरेंद्र सिंह ने बैरागी को मार कर महल के बाहर पीछे वाले खाली जगह में दफना दिया है..
आदमी को पहले ही क्रोध की अग्नि ने प्रज्वलित कर रखा था और बैरागी की खबर सुनकर वह और ज्यादा गुस्से से भर गया उसने महल के पीछे वाली खाली जगह पर जाकर बैरागी को कब्र से निकाल कर उसके सर पर हाथ रखा और उसके साथ हुई हर घटना को जान लिया जैसे ही उसने इस बात को जाना कि वीरेंद्र सिंह ने बैरागी को मारा है वह गुस्से से तिलमिला उठा..
जोगी मृदुला को बेटी मानता था और बेटी के पति को अपना बेटा.. और दोनों की मौत पर आदमी इतना गुस्से से भरा हुआ था कि उसने सारा गुस्सा वीरेंद्र सिंह और उसकी जागीर पर निकलने का तय कर लिया..
वीरेंद्र सिंह जिस सुबह रियासत पर हमला करने के लिए निकलने वाला था उसी सुबह जोगी ने वीरेंद्र सिंह को मारने के लिए उसपर चढ़ाई शुरू कर दी..
जोगी के रास्ते में जितने भी लोग आए जितने भी सैनिक आए जितने भी योद्धा है सभी जोगी के शेर बालम के द्वारा मारे गए..
जब जोगी के सामने एक सेना की एक टुकड़ी खड़ी हुई सी आई तो जोगी ने गुस्से से अपने पैर से ठोकर जमीन पर मारी और उनकी तरफ मिट्टी उड़ा दी.. आदमी की ठोकर मारने से उड़ी हुई मिट्टी का एक एक कण एक-एक परछाई में बदल गया और उन परछाईयों ने सामने खड़ी हुई संपूर्ण सेना की टुकड़ी को पलक झपकते ही एक ही बार में मार दिया..
जोगी को ऐसा करते देखकर बाकी लोग भय से भरकर भागने लगे और सोचने लगे कि वह कौन है और क्यों वीरेंद्र सिंह को मारना चाहता है.. महल औऱ आस पास के लोग जोगी से डरकर भाग निकले औऱ सब के सब जागीर छोड़कर भाग गए..
एक बार में सारी सेना को मारने के बाद में जोगी आगे बढ़ा और महल के भीतर घुस गया...
वीरेंद्र सिंह अपने भोग विलास में डूबा हुआ था कि उसे किसी भागते हुए सैनिक ने आकर इसकी सूचना दी कि किसी आदमी ने उसके सभी सैनिक और पूरी सेना को एक बार में मार दिया है और ऐसा लग रहा है कि वो आदमी उसे भी मार डालेगा..
वीरेंद्र सिंह वैश्याओ के पास से उठ खड़ा हुआ औऱ कश से बाहर निकला उसने देखा की सभी लोग अपनी जान बचाकार भाग रहे है.. अमर होने के नशे में चूर वीरेंद्र सिंह तलवार लेकर उस आदमी की तरफ बढ़ गया..
जोगी ने जैसे ही वीरेंद्र सिंह को देखा उसने वीरेंद्र सिंह के पैरों को किसी मन्त्र की सहायता से वही जकड़ दिया जहा वो खड़ा था..
जोगी वीरेंद्र सिंह के पास आया और उसे घूर कर देखने लगा.. जोगी ने वीरेंद्र सिंह से कहा कि उसने बैरागी को मार कर अच्छा नहीं किया.. वीरेंद्र सिंह ने आदमी का जवाब देते हुए कहा.. कि वह अमर है उसे कोई नहीं मार सकता..
जोगी ने वीरेंद्र सिंह से कहा कि वह उसे मारने नहीं आया बल्कि वह उसे जिंदा रखकर उसके जीवन को जहाँन्नुम बनाने आया है और उसे उसके किए हुए पापों की सजा देने आया है..
आज तक वीरेंद्र सिंह को मरने का डर था अब उसे जीने का डर लगेगा वह मौत को पाना चाहेगा मगर मौत उसे कभी हासिल नहीं होगी और वह कभी मर नहीं पाएगा.. इसी के साथ ही उसका जीवन अब इतना बड़ा और पीड़ादायक हो जाएगा कि उसे हर दिन एक साल के बराबर लगेगा..
वीरेंद्र सिंह को आदमी की बातें सुनकर अजीब लग रहा था और वह सोच रहा था कि यह आदमी कैसे उसके जीवन को नर्क बना सकता है और कैसे उसके वरदान को अभिशाप में बदल सकता है..
वीरेंद्र सिंह के वापस जवाब न देने पर आदमी ने कहा कि उसने प्रकृति के नियम से छेड़छाड़ कि है जो कि उसके दुखों का कारण बनेगा और उसके किए हुए पाप उसके साथ ही रहेंगे..
जोगी का किया विध्वंस इतना भीषण था की जागीर के सभी लोग अपनी जान बचाकर निकले थे महल सुनसान पड़ा हुआ था जहां बस अब एक वीरेंद्र सिंह खड़ा हुआ था और सामने जोगी जिसे अब और कोई धुन सवार नहीं थी..
जोगी ने बैरागी के शरीर के साथ क्रिया करके बैरागी की आत्मा को वीरेंद्र सिंह के ऊपर छोड़ दिया और उसे पाबंद कर दिया कि वह वीरेंद्र सिंह को कभी चैन से सोने और चैन से रहने नहीं देगा..
इसी के साथ ही जोगी ने वीरेंद्र सिंह को भी अपने ज्ञान कला और सिद्धि के माध्यम से औषधि को निषफल किये बिना ही जीने के लिए बाध्य कर दिया.. आदमी ने वीरेंद्र सिंह की दुर्गति करने के लिए उस पर जो सिद्धियों का उपयोग किया उससे अब वीरेंद्र सिंह ना ठीक से खा सकता था ना ही सो सकता था ना ही भोग विलास कर सकता था उसकी उम्र भी अब उसके मृत्यु के समय वाली अवस्था में आ गई थी..
जोगी ने वीरेंद्र सिंह ऐसी दुर्गति की जो वह सपने में भी नहीं सोच सकता था.. वीरेंद्र सिंह अब अपनी उम्र की 11 गुनी लम्बी जिंदगी जीने वाला था.. मगर जिंदा रहने के लिए ना वो कुछ अच्छा खा सकता था.. ना ही भोगविलास कर सकता था.. ना किसी महल में रह सकता था ना ही उसे पूरी नींद आ सकती थी.. ऊपर से उसके सर पर अब बैरागी का भूत भी बैठ गया था जो अक्सर उसे उसकी नींद से जगा देता उसे चैन से सोने नहीं देता.. ना ही उसे चैन से खाने देता.. वीरेंद्र सिंह कोई भी चीज खाता तो रख बन जाती है उसे सड़ा गला ही खाना पड़ता और उसे अब इस तरह जीना पड़ता है जैसे कोई बेसहारा बेबस लाचार तड़पकर जीता है..
वीरेंद्र सिंह ने इस बंधन को खोलने के लिए और इस बंधन से मुक्ति पाने के लिए बड़े से बड़े सिद्ध ज्ञानी पुरुष की शरण में जाकर सिद्धियां और ज्ञान हासिल करने की ठान ली और आसपास जितने भी महापुरुष और महासाधु लोग थे उनकी शरण में जाकर इस बंधन से आजाद होने का उपाय करने लगा लेकिन उसे कहीं भी इसका उपाय नहीं मिला..
वीरेंद्र सिंह जागीर के बाहर भी दूर दूर तक जाकर वापस आ गया.. बहुत सी सिद्धियां और ज्ञान हासिल किये जो समय के साथ उसके साथ ही रहे..
वीरेंद्र सिंह के साथ बैरागी की आत्मा होने के कारण बैरागी को भी उन ज्ञान की प्राप्ति हुई और वह वीरेंद्र सिंह के साथ-साथ सभी संतो महापुरुषों और सिद्ध बाबोओ और शानो तांत्रिको के चरणों में बैठकर वीरेंद्र सिंह के साथ ही ज्ञान प्राप्त कर रहा था.. इसी के साथ वह वीरेंद्र सिंह को कभी चैन से नहीं रहने दे रहा था वीरेंद्र सिंह अब मौत को तरस रहा था..
वीरेंद्र सिंह को जिंदगी का भय लगने लगा था और वह इसी तरह अपने दिन गुजरने लगा था.. देखते ही देखते दिन गुजरने लगे और फिर महीने साल बीतने लगे साल दर साल बीतने के बाद में बैरागी और वीरेंद्र सिंह साथ में ही रहे..
आखिर में बैरागी ने ही वीरेंद्र सिंह पर तरस खाकर उसे उसकी मुक्ति का राज़ बताया औऱ कहा की यदि कोई उसी जड़ी बूटी को जो बैरागी ने बनाई थी लाकर आपको खिला दे तो वीरेंद्र सिंह की मुक्ति हो जायेगी.. औऱ वीरेंद्र सिंह की मृत्यु के साथ बैरागी भी मुक्त हो जाएगा..
गौतम ये सब सपने में देखकर देखकर सुबह उठा तो उसने सपने के बारे में देर तक सोचा.. उसे समझ नहीं आ रहा था की उसे एक ही कहानी से जुड़े हुए सपने बार बार क्यों आ रहे है?
आज गौतम सुमन के साथ वापस आने वाला था सो उसने वापस सपने के बारे में सोचना छोड़कर नहाने का सोचा औऱ तैयार होकर गायत्री कोमल आरती शबनम सब से मिलकर वापस आने के लिए सुमन के साथ निकल पड़ा..
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प्रणाम बड़े बाबा जी...
किशोर.. तू इस वक़्त यहां? अभी तो सांझ होने में समय है फिर अचानक आने का कारण?
किशोर - बड़े बाबाजी.. बाबाजी के आश्रम में एक आदमी अपनी अंतिम साँसे ले रहा है अजीब रोग हो उसे उसके रोग के उपचार हेतु युक्ति पूछने को भिजवाया है..कहा है यदि आप आज्ञा दे तो बाबाजी आपके पास इसी समय आने को आतुर है..
बड़े बाबाजी - इस वक़्त? जानते नहीं एकान्त में हम अपने साथ समय व्यतीत कर रहे है.. विरम से कह देना अगली बार हम उसे बुलाएंगे.. तब तक वो किसी औऱ को हमारे पास ना भेजे.. किशोर.. तुमको भी नहीं..
किशोर - जो आदेश बड़े बाबाजी.. किशोर जाने लगता है तभी बैरागी वीरेंद्र से कहता है..
बैरागी - मरने वाले के प्राण अगर बच सकते है तो उसे बचाने में कोई परहेज नहीं होना चाहिए हुकुम.. जीवन अनमोल है उसकी सही कीमत मरने से पहले ही समझ आती है.. जब सारा जीवन आँखों के सामने आता है औऱ जीवन में किये अपने सही गलत कामो का तुलनात्मक अध्ययन होता है..
बड़े बाबाजी उफ़ वीरेंद्र सिंह - तू कहना क्या चाहता है बैरागी कि मुझे उस मरते हुए आदमी के जीवन की रक्षा करनी चाहिए? अरे प्रतिदिन सेकड़ो मनुष्य अपने प्राण त्याग कर इस दुनिया से अगले आयाम में चले जाते है.. वो भी यहां से वहा चला जाएगा तो क्या हो जाएगा?
बैरागी - प्रतिदिन मरने वाले सैकड़ो लोगो कि किस्मत में बचना नहीं लिखा होता हुकुम.. उनकी मृत्यु उनकी नियति है मगर जिसके प्राण बच सकते है औऱ आपके करण जा रहे है उसका मरना आपकी हठधर्मिता..
बड़े बाबाजी उफ़ वीरेंद्र सिंह - समझ गया बैरागी.. तू सही कहता है.. मेरे ही समझने का फेर था..
बड़े बाबाजी किशोर को बुलाते है औऱ बाबाजी उर्फ़ विरम तक ये सन्देश पहूँचवाते है की उस रोगी को उनके पास लाया जाए..
विरम उर्फ़ बड़े बाबाजी किशोर औऱ कुछ अन्य लोगों के साथ उस आदमी को बड़े बाबाजी की कुटीया के बाहर लाकर जंजीर से बाँध देते है..
बड़े बाबाजी कुटीया से बाहर आकर रोगी को देखते हुए - क्या हुआ है इसे?
बाबाजी बाकी लोगों को जाने का इशारा करते हुए - गुरुदेव कोई साया लगता है.. मैंने बहुत कोशिश की समझने की मगर समझ नहीं पाया.. इसलिए किशोर को आपके पास भेजा.. इसकी पत्नी औऱ एक बच्ची भी है जो ऊपर आश्रम में रोती हुई मुझसे इसके ठीक होने का गुहार लगा रही है.. अब ये आपकी शरण में है गुरुदेव.. आप इसका उद्धार करें...
बड़े बाबाजी उस आदमी को देखते हुए - साया तो जरूर है.. पर कोनसा? ये समझने में मैं चूक रहा हूँ विरम.. इसकी दशा किसी जंगल के उजड़े हुए बरगद की तरह है औऱ आँखे किसी बांधे हुए तीलीस्म की तरह.. मैं दोनों में अंतर समझने में चूक रहा हूँ..
विरम - अब आप ही आखिरी उम्मीद है गुरुदेव.. आप ही तय करें..
बड़े बाबाजी बैरागी की तरफ देखकर - क्या लगता है?
बैरागी - समझने का फेर तो आपसे पहले भी हो चूका है हुकुम.. मगर इस बार में आपकी मदद किये देता हूँ.. इसके गले के नीचे सीने से ऊपर तीलीस्म की निशानी है.. ये किसी का बाँधा हुआ तीलीस्म है हुकुम..
बड़े बाबाजी बैरागी की बात सुनकर उस रोगी के सर के बाल पकड़ कर उसके मुंह में मिट्टी के कुछ कण डालकर सर पर अपने हाथ में पानी लेकर छिड़काव करते है औऱ उस रोगी का बंधा हुआ तीलीस्म खोल देते है जिससे वो रोगी उस बांधे हुए तीलीस्म से आजाद हो जाता है..
विरम उर्फ़ बाबाजी उस रोगी को संभालते हुए - गुरुदेव ये क्या हो रहा है?
बडेबाबाज़ी उर्फ़ विरम - तेरा रोगी तीलीस्म से आजाद हो रहा है विरम.. इसे ले जा.. औऱ 3 दिन तक पीपल के पेड़ की छाया से भी दूर रख..
विरम उर्फ़ बाबाजी - जैसी आपकी आज्ञा गुरुदेव..
किशोर - आज्ञा बड़े बाबाजी..
विरम उर्फ़ बाबाजी किशोर के साथ उस रोगी को उन आदमियों की मदद से वापस ऊपर आश्रम में ले आता है औऱ उसकी बीवी औऱ बच्ची को 3 दिनों तक उस आदमी को पीपल से दूर रखने की सलाह देता हुआ उसी आश्रम में रहने का सुझाव देता है जिस पर सब राजी हो जाते है...
सबके जाने के बाद वीरेंद्र सिंह बैरागी से पूछता है - मुझसे पहले कब समझने में चूक हुई बैरागी? मैंने तो अब तक सब सटीक ही अनुमान लगाया है..
बैरागी - सबसे जरुरी अनुमान ही अगर गलत लग जाए तो पुरे इतिहास का क्या महत्त्व रह जाएगा हुकुम...
बड़े बाबाजी - मैं समझा नहीं बैरागी?
बैरागी - आपने उस लड़के का पिछला जन्म देखा था याद है आपको..
बड़े बाबाजी - कौन गौतम?
बैरागी - हाँ हुकुम..
बड़े बाबाजी - तो? उसमे क्या गलत अनुमान लगाया मैंने बैरागी? गौतम अपने पिछले जन्म में धुपसिंह का बेटा समर ही तो है..
बैरागी - नहीं हुकुम.. गौतम अपने पहले जन्म में अपने धुपसिंह का असली बेटा था.. समर तो गज सिंह औऱ लीलावती की संतान थी..
बड़े बाबाजी हैरानी से - मतलब धुपसिंह का समर के अलावा भी एक बेटा है.. मुझसे इतना बड़ी गलती हो गई?
बैरागी - अब आपने बिलकुल सही अनुमान लगाया हुकुम.. जो कीच आपने इतने बर्षो में सीधा है मैंने भी सीखा है हुकुम.. जिस तरह आपने ध्यान लगाकर गौतम का पुराना जन्म देखने की नाकाम कोशिश की है.. मैंने भी आपका पूरा इतिहास देखा है...याद है एक बार आप माघ की रात में जंगल से गुजर रहे थे औऱ आपके पीछे जयसिंह औऱ धुपसिंह के साथ कई औऱ सैनिक भी थे.. उस वक़्त आपके पिता कुशल सिंह जागीरदार हुआ करते थे..
बड़े बाबाजी - याद है.. हमने जंगल के बीच दरिया किनारे जमाव डाला था...
बैरागी - हाँ हुकुम.. उस वक़्त जमाव के करीब बनजारों औऱ अन्य काबिलो की बस्तीया भी आबाद थी जहा रात को अपना मन बहलाने धुपसिंह औऱ उसके साथ कई सैनिक गए थे..
बड़े बाबाजी - तो इसमें क्या बड़ी बात है बैरागी.. ये तो कई बार होता आया है.. जंगल से गुजरते वक़्त कबिलो की औरतों से सैनिक सम्बन्ध बनाते ही रहते है..
बैरागी - मगर प्यार नहीं करते हुकुम.. धुपसिंह ने यही किया.. काबिले में ना जाकर बंजारों की बस्ती में चला गया औऱ एक बंजारन से प्रेम कर बैठा.. उस प्रेम का परिणाम ये हुआ कि एक लड़के का जन्म हुआ.. जो धुपसिंह की असली संतान थी औऱ गौतम का पिछला जन्म भी..
बड़े बाबाजी - बैरागी इतनी बड़ी भूल.. मैं कैसे इतनी बड़ी भूल कर सकता हूँ? मेरा मस्तिक गौतम के मिलने के बाद बहुत विचलित रहने लगा है.. मैं ध्यान भी नहीं कर पा रहा हूँ..
बैरागी - आज तृत्या है हुकुम.. मेरा प्रभाव आप पर कमजोर है.. आप थोड़ा आराम कर लीजिये..
बड़े बाबाजी कूटया में जाकर चटाई पर लेटते हुए सो जाते है...
Update 38
क्या हुआ बैरागी?
कुछ नहीं हुकुम.. बस आपके भय का निवारण होने ही वाला है.. आज आपको आपके भय से मुक्ति दिलाने के लिए मैं उस औषधि को तैयार कर दूंगा जिससे आपका भय समाप्त हो जाएगा..
ये तो बहुत अच्छी बात बताई तुमने बैरागी.. आखिकार मैं अपने भय औऱ पीड़ा से मुक्त हो ही जाऊँगा.. मैं बहुत खुश हूँ बैरागी.. मैं तुझे ये सारे पौधे औऱ औषधिया इस जगह के साथ देता हूँ तू जो चाहे कर मगर मुझे आज मेरा माँगा हुआ उपहार बनाकर दे दे..
आप निश्चिन्त रहिये हुकुम अभी रात के भोजन के साथ आपको उस औषधि का भी सेवन करना होगा.. मैं उसे बनाकर आपकी सेवा में प्रस्तुत कर दूंगा..
बैरागी ने औषधि का निर्माण कर दिया और उसे वीरेंद्र सिंह को खिलाने के लिए रात के खाने के साथ पेश कर दिया जिसे वीरेंद्र सिंह खाता हुआ बड़े चाव से अपने ख्यालों में गुम हो गया और अब उसे किसी बात का और कोई भय नहीं रहा अब वह हमेशा के लिए जीवित रहेगा और अपने जीवन को यूं ही राज करते हुए बरकरार रखेगा..
बैरागी ने औषधि बनाने के बाद वीरेंद्र सिंह को खिला दी थी और अब वह वीरेंद्र सिंह के महल में ही औषधालय में रहकर नई नई औषधि का निर्माण कर लोगों के रोगों का और कष्ट का निवारण करने लगा था वह कई रोगों का उपचार मात्रा देखने से ही कर देता और उसका नुस्खा सुझा देता..
बैरागी दिन ब दिन बहुत ही गुणी औऱ प्रसिद्ध होने लगा था. इसी के साथ उसका मेलझोल वीरेंद्र सिंह की धर्मपत्नी सुजाता से बढ़ने लगा था सुजाता और बैरागी एक साथ मिलकर कई बार घंटे तक लंबी-लंबी बातें करते और अपने बारे में और दूसरे के बारे में यानी एक दूसरे के बारे में नई-नई बातें जानते और पूछते हैं दोनों का मेल मिलाप इस कदर पड़ चुका था कि दोनों के मन में अब एक दूसरे के प्रति आकर्षण जागने लगा था महीनों गुजर गए थे और अब बैरागी और सुजाता का यह प्रेम संवाद अब वास्तविक प्रेम का रूप लेने लगा था बैरागी के मन में अभी भी मृदुला के लिए अकूत प्रेम था जो उसे सुजाता से प्रेम करने से रोक रहा था.
मगर अब सुजाता बैरागी के बिना एक पल भी जीने को तैयार नहीं थी वह चाहती थी कि बैरागी उसे अपना ले और वीरेंद्र सिंह की पीठ पीछे बैरागी और वह एक साथ संबंध बनाकर खुशी से जीवन जी सके और यह बात किसी और के सामने प्रकट नहीं हो.. जिसके लिए बैरागी कभी भी तैयार नहीं था..
समर भी पहरेदारी करते हुए रुकमा के प्यार में पड़ ही चुका था रुक्मा उसे अपने हुस्न और बातों से इस कदर अपने प्यार में उलझा लिया कि वह अब रुकमा के साथ प्रेम के मीठे बोल बोलने लगा था और उसके साथ जीवन बिताने को लालायता मगर घर पर समर का संबंध लीलावती से भी मधुरता था.. वह हर रात लीलावती को अपनी अर्धांगिनी की तरह ही प्यार करता और अब दोनों उसे घर में मां और बेटे की जगह पति और पत्नी की तरह रहने लगे थे..
लीलावती अपनी कोमकला से समर को मोहित कर चुकी थी और हर रात समर की भूख के साथ उसके बदन की भूख को भी ठंडा करती थी उनका प्रेम एक नया मोड़ ले चुका था..
लीलावती औऱ समर जब भी घर में होते दोनों के बदन पर एक भी कपड़ा नहीं होता और दोनों घर के भीतर नंगे ही एक दूसरे के बदन से लिपट मिलते..
वीरेंद्र सिंह औषधि का सेवन करके अब अपने आप को एक अजीत योद्धा समझता था जिसे कोई जीत नहीं सकता था उसने जयसिंह की मदद से अब जागीर के आसपास की जगह भी अपना अधिकार करना शुरू कर दिया था और वह बहुत गर्व से शासन करने लगा था उसे अब अपने घर परिवार की चिंता न होकर अपने साम्राज्य की चिंता ज्यादा होने लगी थी और उसकी वह और पीड़ा समाप्त हो चुकी थी वह बैरागी का सम्मान करता था मगर अब बैरागी उसकी आंखों में चुभने लगा था जिस तरह से बैरागी और सुजाता के बीच नजदीकी बढ़ने लगी थी वीरेंद्र सिंह की नजर उन पर बनी हुई थी वीरेंद्र सिंह सुजाता और वह बैरागी को अपने सामने ही कई बार लंबी-लंबी वार्तालाप करते हुए देखा तो जलन से सिकुड़ जाता और सोचता कि सुजाता उसकी पत्नी होकर एक नीचे कुल के लड़के के साथ इतनी लंबी लंबी बातें क्यों कर रही है और क्यों वह उसके काम में अब उसकी सहायता कर रही है सुजाता का स्वभाव और व्यवहार वीरेंद्र सिंह की तुलना में अब बैरागी के साथ बहुत ही मधुर और शालीन हो चुका था..
सुजाता के मन में बैरागी के प्रति एक अलग प्रेम का भी उद्धव हो चुका था जिसे वह मन ही मन बैरागी को बटा कर उसका प्रेम पाना चाहती थी और उसके साथ नया रिश्ता कायम करना चाहती थी मगर बैरागी इसके के लिए कते भी तैयार नहीं था.. मगर सुजाता ने इतना जरूर कर दिया था कि अब बैरागी मृदुला को याद करता था मगर फिर से प्रेम के बंधन में बंधने को भी आतुर होने लगा था..
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वीरेंद्र सिंह की नजर सुजाता पर थी मगर उसे क्या पता था कि उसकी बेटी राजकुमारी रुकमा एक सिपाही के प्रेम में पड़ी हुई है और वह उसके साथ अब अकेले मिलने भी मिलने लगी है..
वीरेंद्र सिंह के सिपाही जो उसके गुप्तचर थे उन्होंने वीरेंद्र सिंह को सुजाता और बैरागी के पनपते प्रेम और रुकमा और समर के पनपते हुए प्रेम के बारे में अवगत करवाया तो वीरेंद्र सिंह गुस्से से भरकर अपने सिंहासन से खड़ा हुआ और अपनी तलवार लेकर समर की तरफ चलता हुआ क्रोध से भर गया और सोचने लगा कि आज वह समर की जान ले लेगा और उसे बैरागी को भी यहां से निकल बाहर करेगा यह सोचते हुए वीरेंद्र सिंह जा ही रहा था कि उसे किसी गुप्तचर के आने की सूचना हुई..
गुप्तचर ने वीरेंद्र सिंह को बताया कि बैरागी और सुजाता औषधालय में एकांत में कुछ निजी पर गुजर रहे हैं और अब उनके बीच में जो फासला होना चाहिए था वह समाप्त हो चुका है. वीरेंद्र सिंह और गुस्से से भर गया और उसने फिर समर का ख्याल छोड़कर पहले बैरागी से निपटने का फैसला किया और बैरागी की तरफ चलने लगा वीरेंद्र सिंह औषधि में जैसे ही पहुंचा उसने देखा कि सुजाता और बैरागी के मध्य चुंबन हो रहा है..
दोनों के बीच उम्र का फैसला था मगर मन का फैसला मिट चुका था दोनों एक दूसरे को प्रेम करने लगे थे और इसी प्रेम का यह नतीजा था कि बैरागी और सुजाता ने एक दूसरे के होठों को आपस में मिल लिया था और दोनों एक दूसरे को प्रेम से चूमने लगे थे वीरेंद्र सिंह ने जैसे ही उनका चुंबन देखा वह गुस्से से चिल्लाता हुआ बैरागी की तरफ बड़ा और अपनी तलवार से बैरागी पर प्रहार करने लगा बैरागी वीरेंद्र सिंह के प्रहार से बच गया और उसे विनती करते हुए बोला कि मुझे माफ कर दो हुकुम मैं आपका दोषी हूं किंतु मैं रानी मां से प्रेम करने लगा हूं आप मेरी इस गलती को क्षमा कर दो... मगर वीरेंद्र सिंह गुस्से में था उसने बैरागी की एक बात नहीं मानी और उस पर दूसरा प्रहार किया जिससे भी बैरागी ने खुद को बचा लिया और फिर अपने गले में बंधा हुआ ताबीज उतरते हुए कहा कि हुकुम मुझे यह ताबीज उतार लेने दो लेकिन इस बार वीरेंद्र सिंह ने इतना सटीक और सीधा वार किया कि बैरागी के ताबिज़ उतारने से पहले ही उसका गला तलवार से एक ही झटके में अलग हो गया..
जैसे ही बैरागी की गर्दन कटी उसके खून से बहती हुई रक्त ने परछाई का रूप ले लिया जो वीरेंद्र सिंह की तरफ अपने विकराल स्वरूप को लेकर वीरेंद्र सिंह को मारने बढ़ी और उसे मारने वाली थी कि सुजाता बीच में आ गई और सुजाता ने परछाई से वीरेंद्र सिंह को बचाते हुआ अपनी जान दे दी.. वीरेंद्र सिंह की जगह परछाई सुजाता पर आ बड़ी और सुजाता की जान चली गई.. वीरेंद्र सिंह ने जब ऐसा होते देखा उसकी आंखों ने इस दृश्य पर विश्वास नहीं किया और वह सोचने लगा कि बैरागी ने आखिर ऐसा क्या ताबीज़ पहना था और क्यों यह परछाई उसके शरीर से निकालकर उसकी तरफ बड़ी थी लेकिन इसी के साथ अब उसे सुजाता के मरने का बहुत दुख हो रहा था और वह विलाप करते हुए जोर-जोर से सुजाता को देखकर रोने लगा और उसे अपनी गोद में उठाकर दहाड़े मारता हुआ चीखता हुआ रोने लगा...
सिपाहियों ने आकर जब यह हाल देखा तो वह वीरेंद्र सिंह को समझाते हुए उठाने लगे जयसिंह ने वीरेंद्र सिंह को संभालते हुए सारी परिस्थितियों समझी और फिर परिस्थितियों को समझने के बाद वीरेंद्र सिंह को वहां से ले जाकर एक कक्ष में बैठा दिया और बैरागी की लाश को वहां से ले जाकर महल से थोड़ा दूर ही पीछे एक खाली जगह में दफना दिया.. इसी के साथ में सुजाता का भी पूरी रीती और नीति के अनुसार क्रियाकर्म करते हुए अंतिम विदाई दी..
वीरेंद्र सिंह को अपनी हालत पर बहुत रोना आ रहा था उसकी की गई गलती अब उसे पछतावा दे रही थी और उसे बहुत पछतावा हो रहा था वीरेंद्र सिंह के हाथ में अब कुछ भी नहीं बचा था..
वीरेंद्र सिंह ने इसी के साथ में अपने गुस्से में एक औऱ निर्णय लिया औऱ समर को खत्म कर देने के लिए काफी सारे सिपाही उसके घर पर भेजें और जब समर अपनी मां लीलावती के साथ घर पर था तब वीरेंद्र सिंह के सिपाहियों ने उसके घर पर आक्रमण कर दिया और समर के साथ लीलावती को भी मौत के घाट उतार दिया..
समर और लीलावती अपनी मृत्यु को प्राप्त हो चुके थे. समर की खबर सुनकर रुक्मा ने भी आत्महत्या कर ली और उसका प्रेम अधूरा ही रह गया..
वीरेंद्र सिंह ने जब रुक्मा की खबर सुनी तो वो पूरी तरह से पत्थर दिल बन गया औऱ अब उसने अकेले ही जागीर पर शासन करने का निर्णय लिया और केवल अपने विश्वासपात्र सैनिकों को अपने करीब रखने लगा उसने जागीर के आसपास के इलाकों पर अपना कब्जा कर लिया और आसपास की जगीर भी जीत ली जिससे उसका कद और बढ़ चुका था..
वीरेंद्र सिंह अपने महल में आराम से शासन कर रहा था और अब उसने अकेले ही जीवन बिताने का फैसला कर लिया इसी के साथ वह अब नए-नए शौक पलने लगा था उसने वेश्याओं का सहारा लेकर सुजाता को बुलाने का निर्णय किया. इसी के साथ वह भोग विलास में जुट गया था वह अपने जीवन का पूरा आनंद लेना चाहता था इसलिए वह किसी और की परवाह किए बिना अपने ही बारे में सोचने लगा था और उसको अब सुजाता और अपनी पुत्री जो आत्महत्या करके मर चुकी थी उसके भी याद नहीं रही थी..
वीरेंद्र सिंह अब सत्ता के नशे में इतना चूर हो चुका था कि उसे और किसी की परवाह नहीं थी वह आसपास की जगीरो को जीत कर उन पर शासन करने में और भोग विलास करने में ही अपने दिन गुजरने लगा था वह अपनी सत्ता और बढ़ाना चाहता था और शासन बढाकर रियासत पर कब्जा करना चाहता था उसने आसपास और जागीर को जीत लिया था.. आसपास की 8 जागीर को जीतकर वीरेंद्र सिंह अब रियासत पर आक्रमण करने का प्लान बना रहा था और ऐसा ही वह करना चाहता था वीरेंद्र सिंह के मोसेरे भाई जो रियासत के राजा थे उनको वीरेंद्र सिंह का डर सताने लगा था और वह सोचने लगे थे कि वीरेंद्र सिंह रियासत पर कभी भी आक्रमण करके उनको गद्दी से हटा देगा और खुद अब रियासत पर शासन करके पूरी रियासत पर कब्जा जमा लगा..
वीरेंद्र सिंह भी इसी प्रयास में लगा हुआ था. उसने भोग विलास करते हुए और अपने शौक पूरे करते हुए जयसिंह से कहकर सेना को तैयार कर लिया था और अब वह रियासत पर आक्रमण करने ही वाला था..
वीरेंद्र सिंह की शक्तियां बढ़ गई थी उसने द्वन्द युद्ध में कई जागीरदारों को और सरदारों को मार गिराया था जिससे सारे जगह उसकी वाहवाही और बलवान होने की चर्चा थी.. वीरेंद्र सिंह अपनी सेना तैयार करके रियासत पर आक्रमण करने वाला था लेकिन उससे एक रात पहले वह हुआ जो होने की कल्पना किसी ने भी नहीं की थी और ना ही वीरेंद्र सिंह को इस बात का अंदाजा था कि ऐसा उसके साथ हो सकता है और कोई ऐसा भी है जो उसे कीड़ो की मरने के लिए छोड़ सकता है..
मृदुला को अपनी पुत्री मानकर पालने वाला आदमी जिसका नाम जोगी था वापस आ चुका था उसकी सिद्धियां पूरी हो चुकी थी और उसके साथ उसका शेर बालम भी जंगल में उसी जगह आ चुके थे जहां से वह मृदुला और बैरागी को छोड़कर गया था..
जोगी ने जब वापस वहां आकर स्थिति देखी तो पाया कि अब वहां कोई नहीं था और वहा जो कुटिया थी वह भी अब पुरानी सी हो गई थी.. किसी के नहीं रहने से वहां की हालत अब जंगल के बाकी हिस्सों जैसे ही हो गई थी.. आदमी ने जब कुटिया के पास बना हुआ कब्रनुमा खड्डे को देखा तो उसे अंदाजा हुआ कि कुछ ना कुछ अनहोनी जरूर हुई है उसने खड्डे को खोदना शुरू किया और जब उसने खड़े को खुदा तो उसमें मृदुल को पाया.. आदमी का मन इतना हताश निराश और दुखी पीड़ा से भर गया कि उसकी चीख से जंगल की सारी हवाएं ठहर गई और परिंदे पेड़ों से उड़ कर आकाश में इस तरह लहरा गए कि मानो कोई अनहोनी होने ही वाली हो..
जोगी ने मृदुल के सर पर हाथ रखकर उसके पीछे जो कुछ हुआ उसकी सारी कहानी जान ली और उसे पता चल गया कि उसकी जान कैसे गई है..
जोगी ने बैरागी से मिलने की ठानी और वह मृदुला को वापस वही उस कब्र में दफनाकर वहां से चला गया और जाते हुए लोगों से बैरागी के बारे में पूछने लगा पूछते पूछते उसे एक आदमी ने बताया कि उसने बैरागी को जागीरदार वीरेंद्र सिंह के महल में देखा था जहां वह कुछ महीने रहा था..
लोगों ने आदमी को बताया कि कैसे बैरागी ने नए-नए लोगों का उपचार करके लोगों को ठीक किया और उसकी प्रसिद्धि पूरी जागीर में इस तरफ फैली जैसे घास में आग फैल जाती है मगर एक दिन अचानक उसकी कोई खैर खबर नहीं मिली.. जोगी ने जब आगे पूछा तो लोगों ने उसे बताया कि उन्होंने अफवाह सुनी है कि वीरेंद्र सिंह ने बैरागी को मार कर महल के बाहर पीछे वाले खाली जगह में दफना दिया है..
आदमी को पहले ही क्रोध की अग्नि ने प्रज्वलित कर रखा था और बैरागी की खबर सुनकर वह और ज्यादा गुस्से से भर गया उसने महल के पीछे वाली खाली जगह पर जाकर बैरागी को कब्र से निकाल कर उसके सर पर हाथ रखा और उसके साथ हुई हर घटना को जान लिया जैसे ही उसने इस बात को जाना कि वीरेंद्र सिंह ने बैरागी को मारा है वह गुस्से से तिलमिला उठा..
जोगी मृदुला को बेटी मानता था और बेटी के पति को अपना बेटा.. और दोनों की मौत पर आदमी इतना गुस्से से भरा हुआ था कि उसने सारा गुस्सा वीरेंद्र सिंह और उसकी जागीर पर निकलने का तय कर लिया..
वीरेंद्र सिंह जिस सुबह रियासत पर हमला करने के लिए निकलने वाला था उसी सुबह जोगी ने वीरेंद्र सिंह को मारने के लिए उसपर चढ़ाई शुरू कर दी..
जोगी के रास्ते में जितने भी लोग आए जितने भी सैनिक आए जितने भी योद्धा है सभी जोगी के शेर बालम के द्वारा मारे गए..
जब जोगी के सामने एक सेना की एक टुकड़ी खड़ी हुई सी आई तो जोगी ने गुस्से से अपने पैर से ठोकर जमीन पर मारी और उनकी तरफ मिट्टी उड़ा दी.. आदमी की ठोकर मारने से उड़ी हुई मिट्टी का एक एक कण एक-एक परछाई में बदल गया और उन परछाईयों ने सामने खड़ी हुई संपूर्ण सेना की टुकड़ी को पलक झपकते ही एक ही बार में मार दिया..
जोगी को ऐसा करते देखकर बाकी लोग भय से भरकर भागने लगे और सोचने लगे कि वह कौन है और क्यों वीरेंद्र सिंह को मारना चाहता है.. महल औऱ आस पास के लोग जोगी से डरकर भाग निकले औऱ सब के सब जागीर छोड़कर भाग गए..
एक बार में सारी सेना को मारने के बाद में जोगी आगे बढ़ा और महल के भीतर घुस गया...
वीरेंद्र सिंह अपने भोग विलास में डूबा हुआ था कि उसे किसी भागते हुए सैनिक ने आकर इसकी सूचना दी कि किसी आदमी ने उसके सभी सैनिक और पूरी सेना को एक बार में मार दिया है और ऐसा लग रहा है कि वो आदमी उसे भी मार डालेगा..
वीरेंद्र सिंह वैश्याओ के पास से उठ खड़ा हुआ औऱ कश से बाहर निकला उसने देखा की सभी लोग अपनी जान बचाकार भाग रहे है.. अमर होने के नशे में चूर वीरेंद्र सिंह तलवार लेकर उस आदमी की तरफ बढ़ गया..
जोगी ने जैसे ही वीरेंद्र सिंह को देखा उसने वीरेंद्र सिंह के पैरों को किसी मन्त्र की सहायता से वही जकड़ दिया जहा वो खड़ा था..
जोगी वीरेंद्र सिंह के पास आया और उसे घूर कर देखने लगा.. जोगी ने वीरेंद्र सिंह से कहा कि उसने बैरागी को मार कर अच्छा नहीं किया.. वीरेंद्र सिंह ने आदमी का जवाब देते हुए कहा.. कि वह अमर है उसे कोई नहीं मार सकता..
जोगी ने वीरेंद्र सिंह से कहा कि वह उसे मारने नहीं आया बल्कि वह उसे जिंदा रखकर उसके जीवन को जहाँन्नुम बनाने आया है और उसे उसके किए हुए पापों की सजा देने आया है..
आज तक वीरेंद्र सिंह को मरने का डर था अब उसे जीने का डर लगेगा वह मौत को पाना चाहेगा मगर मौत उसे कभी हासिल नहीं होगी और वह कभी मर नहीं पाएगा.. इसी के साथ ही उसका जीवन अब इतना बड़ा और पीड़ादायक हो जाएगा कि उसे हर दिन एक साल के बराबर लगेगा..
वीरेंद्र सिंह को आदमी की बातें सुनकर अजीब लग रहा था और वह सोच रहा था कि यह आदमी कैसे उसके जीवन को नर्क बना सकता है और कैसे उसके वरदान को अभिशाप में बदल सकता है..
वीरेंद्र सिंह के वापस जवाब न देने पर आदमी ने कहा कि उसने प्रकृति के नियम से छेड़छाड़ कि है जो कि उसके दुखों का कारण बनेगा और उसके किए हुए पाप उसके साथ ही रहेंगे..
जोगी का किया विध्वंस इतना भीषण था की जागीर के सभी लोग अपनी जान बचाकर निकले थे महल सुनसान पड़ा हुआ था जहां बस अब एक वीरेंद्र सिंह खड़ा हुआ था और सामने जोगी जिसे अब और कोई धुन सवार नहीं थी..
जोगी ने बैरागी के शरीर के साथ क्रिया करके बैरागी की आत्मा को वीरेंद्र सिंह के ऊपर छोड़ दिया और उसे पाबंद कर दिया कि वह वीरेंद्र सिंह को कभी चैन से सोने और चैन से रहने नहीं देगा..
इसी के साथ ही जोगी ने वीरेंद्र सिंह को भी अपने ज्ञान कला और सिद्धि के माध्यम से औषधि को निषफल किये बिना ही जीने के लिए बाध्य कर दिया.. आदमी ने वीरेंद्र सिंह की दुर्गति करने के लिए उस पर जो सिद्धियों का उपयोग किया उससे अब वीरेंद्र सिंह ना ठीक से खा सकता था ना ही सो सकता था ना ही भोग विलास कर सकता था उसकी उम्र भी अब उसके मृत्यु के समय वाली अवस्था में आ गई थी..
जोगी ने वीरेंद्र सिंह ऐसी दुर्गति की जो वह सपने में भी नहीं सोच सकता था.. वीरेंद्र सिंह अब अपनी उम्र की 11 गुनी लम्बी जिंदगी जीने वाला था.. मगर जिंदा रहने के लिए ना वो कुछ अच्छा खा सकता था.. ना ही भोगविलास कर सकता था.. ना किसी महल में रह सकता था ना ही उसे पूरी नींद आ सकती थी.. ऊपर से उसके सर पर अब बैरागी का भूत भी बैठ गया था जो अक्सर उसे उसकी नींद से जगा देता उसे चैन से सोने नहीं देता.. ना ही उसे चैन से खाने देता.. वीरेंद्र सिंह कोई भी चीज खाता तो रख बन जाती है उसे सड़ा गला ही खाना पड़ता और उसे अब इस तरह जीना पड़ता है जैसे कोई बेसहारा बेबस लाचार तड़पकर जीता है..
वीरेंद्र सिंह ने इस बंधन को खोलने के लिए और इस बंधन से मुक्ति पाने के लिए बड़े से बड़े सिद्ध ज्ञानी पुरुष की शरण में जाकर सिद्धियां और ज्ञान हासिल करने की ठान ली और आसपास जितने भी महापुरुष और महासाधु लोग थे उनकी शरण में जाकर इस बंधन से आजाद होने का उपाय करने लगा लेकिन उसे कहीं भी इसका उपाय नहीं मिला..
वीरेंद्र सिंह जागीर के बाहर भी दूर दूर तक जाकर वापस आ गया.. बहुत सी सिद्धियां और ज्ञान हासिल किये जो समय के साथ उसके साथ ही रहे..
वीरेंद्र सिंह के साथ बैरागी की आत्मा होने के कारण बैरागी को भी उन ज्ञान की प्राप्ति हुई और वह वीरेंद्र सिंह के साथ-साथ सभी संतो महापुरुषों और सिद्ध बाबोओ और शानो तांत्रिको के चरणों में बैठकर वीरेंद्र सिंह के साथ ही ज्ञान प्राप्त कर रहा था.. इसी के साथ वह वीरेंद्र सिंह को कभी चैन से नहीं रहने दे रहा था वीरेंद्र सिंह अब मौत को तरस रहा था..
वीरेंद्र सिंह को जिंदगी का भय लगने लगा था और वह इसी तरह अपने दिन गुजरने लगा था.. देखते ही देखते दिन गुजरने लगे और फिर महीने साल बीतने लगे साल दर साल बीतने के बाद में बैरागी और वीरेंद्र सिंह साथ में ही रहे..
आखिर में बैरागी ने ही वीरेंद्र सिंह पर तरस खाकर उसे उसकी मुक्ति का राज़ बताया औऱ कहा की यदि कोई उसी जड़ी बूटी को जो बैरागी ने बनाई थी लाकर आपको खिला दे तो वीरेंद्र सिंह की मुक्ति हो जायेगी.. औऱ वीरेंद्र सिंह की मृत्यु के साथ बैरागी भी मुक्त हो जाएगा..
गौतम ये सब सपने में देखकर देखकर सुबह उठा तो उसने सपने के बारे में देर तक सोचा.. उसे समझ नहीं आ रहा था की उसे एक ही कहानी से जुड़े हुए सपने बार बार क्यों आ रहे है?
आज गौतम सुमन के साथ वापस आने वाला था सो उसने वापस सपने के बारे में सोचना छोड़कर नहाने का सोचा औऱ तैयार होकर गायत्री कोमल आरती शबनम सब से मिलकर वापस आने के लिए सुमन के साथ निकल पड़ा..
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प्रणाम बड़े बाबा जी...
किशोर.. तू इस वक़्त यहां? अभी तो सांझ होने में समय है फिर अचानक आने का कारण?
किशोर - बड़े बाबाजी.. बाबाजी के आश्रम में एक आदमी अपनी अंतिम साँसे ले रहा है अजीब रोग हो उसे उसके रोग के उपचार हेतु युक्ति पूछने को भिजवाया है..कहा है यदि आप आज्ञा दे तो बाबाजी आपके पास इसी समय आने को आतुर है..
बड़े बाबाजी - इस वक़्त? जानते नहीं एकान्त में हम अपने साथ समय व्यतीत कर रहे है.. विरम से कह देना अगली बार हम उसे बुलाएंगे.. तब तक वो किसी औऱ को हमारे पास ना भेजे.. किशोर.. तुमको भी नहीं..
किशोर - जो आदेश बड़े बाबाजी.. किशोर जाने लगता है तभी बैरागी वीरेंद्र से कहता है..
बैरागी - मरने वाले के प्राण अगर बच सकते है तो उसे बचाने में कोई परहेज नहीं होना चाहिए हुकुम.. जीवन अनमोल है उसकी सही कीमत मरने से पहले ही समझ आती है.. जब सारा जीवन आँखों के सामने आता है औऱ जीवन में किये अपने सही गलत कामो का तुलनात्मक अध्ययन होता है..
बड़े बाबाजी उफ़ वीरेंद्र सिंह - तू कहना क्या चाहता है बैरागी कि मुझे उस मरते हुए आदमी के जीवन की रक्षा करनी चाहिए? अरे प्रतिदिन सेकड़ो मनुष्य अपने प्राण त्याग कर इस दुनिया से अगले आयाम में चले जाते है.. वो भी यहां से वहा चला जाएगा तो क्या हो जाएगा?
बैरागी - प्रतिदिन मरने वाले सैकड़ो लोगो कि किस्मत में बचना नहीं लिखा होता हुकुम.. उनकी मृत्यु उनकी नियति है मगर जिसके प्राण बच सकते है औऱ आपके करण जा रहे है उसका मरना आपकी हठधर्मिता..
बड़े बाबाजी उफ़ वीरेंद्र सिंह - समझ गया बैरागी.. तू सही कहता है.. मेरे ही समझने का फेर था..
बड़े बाबाजी किशोर को बुलाते है औऱ बाबाजी उर्फ़ विरम तक ये सन्देश पहूँचवाते है की उस रोगी को उनके पास लाया जाए..
विरम उर्फ़ बड़े बाबाजी किशोर औऱ कुछ अन्य लोगों के साथ उस आदमी को बड़े बाबाजी की कुटीया के बाहर लाकर जंजीर से बाँध देते है..
बड़े बाबाजी कुटीया से बाहर आकर रोगी को देखते हुए - क्या हुआ है इसे?
बाबाजी बाकी लोगों को जाने का इशारा करते हुए - गुरुदेव कोई साया लगता है.. मैंने बहुत कोशिश की समझने की मगर समझ नहीं पाया.. इसलिए किशोर को आपके पास भेजा.. इसकी पत्नी औऱ एक बच्ची भी है जो ऊपर आश्रम में रोती हुई मुझसे इसके ठीक होने का गुहार लगा रही है.. अब ये आपकी शरण में है गुरुदेव.. आप इसका उद्धार करें...
बड़े बाबाजी उस आदमी को देखते हुए - साया तो जरूर है.. पर कोनसा? ये समझने में मैं चूक रहा हूँ विरम.. इसकी दशा किसी जंगल के उजड़े हुए बरगद की तरह है औऱ आँखे किसी बांधे हुए तीलीस्म की तरह.. मैं दोनों में अंतर समझने में चूक रहा हूँ..
विरम - अब आप ही आखिरी उम्मीद है गुरुदेव.. आप ही तय करें..
बड़े बाबाजी बैरागी की तरफ देखकर - क्या लगता है?
बैरागी - समझने का फेर तो आपसे पहले भी हो चूका है हुकुम.. मगर इस बार में आपकी मदद किये देता हूँ.. इसके गले के नीचे सीने से ऊपर तीलीस्म की निशानी है.. ये किसी का बाँधा हुआ तीलीस्म है हुकुम..
बड़े बाबाजी बैरागी की बात सुनकर उस रोगी के सर के बाल पकड़ कर उसके मुंह में मिट्टी के कुछ कण डालकर सर पर अपने हाथ में पानी लेकर छिड़काव करते है औऱ उस रोगी का बंधा हुआ तीलीस्म खोल देते है जिससे वो रोगी उस बांधे हुए तीलीस्म से आजाद हो जाता है..
विरम उर्फ़ बाबाजी उस रोगी को संभालते हुए - गुरुदेव ये क्या हो रहा है?
बडेबाबाज़ी उर्फ़ विरम - तेरा रोगी तीलीस्म से आजाद हो रहा है विरम.. इसे ले जा.. औऱ 3 दिन तक पीपल के पेड़ की छाया से भी दूर रख..
विरम उर्फ़ बाबाजी - जैसी आपकी आज्ञा गुरुदेव..
किशोर - आज्ञा बड़े बाबाजी..
विरम उर्फ़ बाबाजी किशोर के साथ उस रोगी को उन आदमियों की मदद से वापस ऊपर आश्रम में ले आता है औऱ उसकी बीवी औऱ बच्ची को 3 दिनों तक उस आदमी को पीपल से दूर रखने की सलाह देता हुआ उसी आश्रम में रहने का सुझाव देता है जिस पर सब राजी हो जाते है...
सबके जाने के बाद वीरेंद्र सिंह बैरागी से पूछता है - मुझसे पहले कब समझने में चूक हुई बैरागी? मैंने तो अब तक सब सटीक ही अनुमान लगाया है..
बैरागी - सबसे जरुरी अनुमान ही अगर गलत लग जाए तो पुरे इतिहास का क्या महत्त्व रह जाएगा हुकुम...
बड़े बाबाजी - मैं समझा नहीं बैरागी?
बैरागी - आपने उस लड़के का पिछला जन्म देखा था याद है आपको..
बड़े बाबाजी - कौन गौतम?
बैरागी - हाँ हुकुम..
बड़े बाबाजी - तो? उसमे क्या गलत अनुमान लगाया मैंने बैरागी? गौतम अपने पिछले जन्म में धुपसिंह का बेटा समर ही तो है..
बैरागी - नहीं हुकुम.. गौतम अपने पहले जन्म में अपने धुपसिंह का असली बेटा था.. समर तो गज सिंह औऱ लीलावती की संतान थी..
बड़े बाबाजी हैरानी से - मतलब धुपसिंह का समर के अलावा भी एक बेटा है.. मुझसे इतना बड़ी गलती हो गई?
बैरागी - अब आपने बिलकुल सही अनुमान लगाया हुकुम.. जो कीच आपने इतने बर्षो में सीधा है मैंने भी सीखा है हुकुम.. जिस तरह आपने ध्यान लगाकर गौतम का पुराना जन्म देखने की नाकाम कोशिश की है.. मैंने भी आपका पूरा इतिहास देखा है...याद है एक बार आप माघ की रात में जंगल से गुजर रहे थे औऱ आपके पीछे जयसिंह औऱ धुपसिंह के साथ कई औऱ सैनिक भी थे.. उस वक़्त आपके पिता कुशल सिंह जागीरदार हुआ करते थे..
बड़े बाबाजी - याद है.. हमने जंगल के बीच दरिया किनारे जमाव डाला था...
बैरागी - हाँ हुकुम.. उस वक़्त जमाव के करीब बनजारों औऱ अन्य काबिलो की बस्तीया भी आबाद थी जहा रात को अपना मन बहलाने धुपसिंह औऱ उसके साथ कई सैनिक गए थे..
बड़े बाबाजी - तो इसमें क्या बड़ी बात है बैरागी.. ये तो कई बार होता आया है.. जंगल से गुजरते वक़्त कबिलो की औरतों से सैनिक सम्बन्ध बनाते ही रहते है..
बैरागी - मगर प्यार नहीं करते हुकुम.. धुपसिंह ने यही किया.. काबिले में ना जाकर बंजारों की बस्ती में चला गया औऱ एक बंजारन से प्रेम कर बैठा.. उस प्रेम का परिणाम ये हुआ कि एक लड़के का जन्म हुआ.. जो धुपसिंह की असली संतान थी औऱ गौतम का पिछला जन्म भी..
बड़े बाबाजी - बैरागी इतनी बड़ी भूल.. मैं कैसे इतनी बड़ी भूल कर सकता हूँ? मेरा मस्तिक गौतम के मिलने के बाद बहुत विचलित रहने लगा है.. मैं ध्यान भी नहीं कर पा रहा हूँ..
बैरागी - आज तृत्या है हुकुम.. मेरा प्रभाव आप पर कमजोर है.. आप थोड़ा आराम कर लीजिये..
बड़े बाबाजी कूटया में जाकर चटाई पर लेटते हुए सो जाते है...
भाई ठीक से पढ़ो .. समर नहीं है धुपसिंह का बेटा.. वो लीलावती औऱ गजसिंह का बेटा है..Bahut hi shandar updates he moms_bachha Bro,
To bairagi ki hatya ka asli karan yah tha..............
Virender singh ne hi samar ki bhi hatya karwayi thi...........
Samar dhupsingh aur banjaran ka ladka he.............na ki leelawati aur dhupsingh ka..............
Gazab Bhai, keep rocking