Bhai update zabardast hai par aapne pics or gif nahi dali ismeUpdate 18
सुमन दोनों कार पार्क करके नीचे उतर जाते है जहा गेट पर ही उनको संजय की पत्नी कोमल खड़ी दिखाई दे जाती है जो किसी डिलेवरी बॉय से कुछ ले रही होती है सुमन कोमल के पास चली आती है औऱ गौतम गाडी में सामान उतारने लगता है.
कोमल (44) सुमन को देखते ही - अरे सुमन.. तुम अब आ रही हो.. अब भी आने की क्या जरुरत थी? सीधा शादी में ही आ जाती.. कितने फ़ोन करवाए तुम्हारे भईया से, मगर तुम तो जैसे यहां ना आने की कसम खाकर बैठी हो..
सुमन - नहीं भाभी.. घर में काम ही इतना रहता है की कहीं आने जाने की फुर्सत ही नहीं रहती..
कोमल - अरे उस छोटे से पुलिस क्वाटर में कितना काम होता होगा सुमन.. तुम तो बहाने बनाने लगी हो..
सुमन - भाभी ग़ुगु का कॉलेज भी तो था.. औऱ अभी तो एक हफ्ता बच्चा है ना ऋतू की शादी को.. सब काम आराम से हो जाएगा..
कोमल - ग़ुगु आया है तेरे साथ?
सुमन - हाँ वो सामान उतार रहा है..
गौतम हाथ मे अपना औऱ सुमन का बेग लेकर कोमल औऱ सुमन के पास आ जाता है जहा कोमल देखते ही गौतम को अपनी छाती से लगा लेती है औऱ कहती है..
कोमल - ग़ुगु.. कितना बड़ा हो गया है तू.. कब से नहीं देखा तुझे.. बिलकुल चाँद सी शकल हो गई है तेरी.. सुमन क्या खिलाती हो इसे..
गौतम चुपचाप खड़ा रहता है औऱ कुछ देर बाद बोलता है..
गौतम - बॉक्स में क्या है?
कोमल - ये? ये तो मैंने शूज मांगवाए है जॉगिंग के लिए.. वो पुराने वाले एक महीने पुराने हो गए थे ना इसलिए.. (सुमन को देखकर) सिर्फ 15 हज़ार के है..
सुमन - भाभी माँ कहा है..
कोमल - अरे मैं भी ना.. आओ अंदर आओ.. ग़ुगु बेग यही रख दो.. नौकर ले आएगा.. (नौकर को आवाज लगाकर) अब्दुल.. सामान ऊपर पीछे वाले रूम रख दे.. आओ सुमन..
सुमन औऱ गौतम गायत्री से मिलते है औऱ फिर सुमन बाकी लोगों से मिलने लगती है लेकिन गौतम नौकर से कमरा पूछकर कमरे में आ जाता है..
गौतम - दूसरा बेग कहा है?
अब्दुल - भईया वो मैडम के कहने पर बगल वाले रूम में रख दिया है..
गौतम - ठीक है..
अब्दुल - कुछ लाना है?
गौतम - नहीं तुम जाओ..
गौतम रूम देखकर मन में - बहनचोद मामा ने घर नहीं महल बनवाया है.. बिस्तर तो साला ऐसा है दसवी मंज़िल से भी गिरो तो बचा लेगा..
गौतम ये सब सोच ही रहा था कि पीछे से गौतम को गौतम के मामा संजय औऱ मामी कोमल की बेटी ऋतू (24) ने ग़ुगु को आवाज दी..
ऋतू - ग़ुगु..
गौतम ने पीछे मुड़कर ऋतू को देखा औऱ चुपचाप खड़ा रहा.. उसने ऋतू से हेलो हाय करने की कोई कोशिश नहीं की, ऋतू ने कुछ देर ठहर कर आगे बात शुरू की..
ऋतू - अब तक नाराज़ है?
गौतम - मैं क्यों नाराज़ होने लगा?
ऋतू - तो फिर मुझे देखकर इतना रुखा रिएक्शन क्यों दिया? ना हाथ मिलाया ना गले लगा..
गौतम - मेरे जैसे चोर के गले लगने या हाथ मिलाने का शोक आपको कबसे होने लगा?
ऋतू - तू अब भी नाराज़ है ना.. 6 साल हो गए.. अब तक उस बात को नहीं भुला.. मुझसे गलती हो गई थी ग़ुगु.. मुझे तेरा झूठा चोरी ना नाम नहीं लगाना चाहिए था.. माफ़ नहीं करेगा..
गौतम - मैं कौन होता हूँ माफ़ करने वाला आपको.. वैसे बहुत बड़ा घर बनवाया है आप लोगों ने.. इसके एक कमरे की जगह में तो हमारा आधे से ज्यादा घर आ जाएगा..
ऋतू - मैं भाभी के साथ बाहर जा रही हूँ तू चल मेरे साथ.. तूझे शहर घूमाती हूँ..
गौतम - मुझे कहीं नहीं जाना..
ऋतू के पीछे उसकी भाभी औऱ संजय कोमल के बेटे चेतन की बीवी आरती (26) कमरे के अंदर आती हुई - ऋतू चल ना आने में देर हो जायेगी.. तुझे वैसे भी शॉपिंग में बहुत समय लगता है.. (गौतम को देखते हुए) ये सुमन बुआ का बेटा गौतम है ना..
ऋतू उदासी से - हम्म..
आरती गौतम के नजदीक आते हुए - हाय.. कितना सुन्दर चेहरा है.. पहली बार देख रही हूँ.. मेरी औऱ चेतन की शादी में क्यों नहीं आये तुम?
गौतम - मन नहीं था आने का..
आरती - इतने रूखेपन से क्यों बात कर रहे हो.. मैं कोई पराइ तो नहीं हूँ..
ऋतू - भाभी छोडो ना.. ग़ुगु सफर से आया है, थक गया होगा..
आरती - ठीक है.. ग़ुगु तू भी चल.. शादी की शॉपिंग करनी है.. तुझे जो खरीदना हो मैं दिलवा दूंगी..
गौतम - मेरे पास मेरी जरुरत का हर सामान है.. मुझपर अहसान करने की जरुरत नहीं..
आरती को गौतम का बर्ताव समझ नहीं आता कि क्यों गौतम उससे इस तरह रूखेपन औऱ परायेपन से बात कर रहा है मगर ऋतू को सब पता औऱ वो चाहती थी कि आरती गौतम से ज्यादा बात ना करें औऱ वहा से चली जाए..
ऋतू - भाभी चलो ना.. फिर आप ही बोलोगी कितनी देर लगा दी...
आरती का खिला हुआ चेहरा गौतम से बात करके थोड़ा उतर चूका था.. उसे लगा था वो गौतम के साथ हंसी मज़ाक़ औऱ हंसी ठिठोली कर सकती है औऱ देवर भाभी वाला एक मजबूत रिश्ता कायम कर सकती है मगर गौतम ने उसे अपनी दो चार बातों से ही इतनी दूर कर दिया था कि आरती वापस गौतम से बात करने में हिचक महसूस हो रही थी.. आरती ऋतू के कहने पर गौतम को अकेला छोड़कर ऋतू के साथ कमरे से बाहर आ गई औऱ अपनी सास कोमल औऱ सुमन के साथ ऋतू को शॉपिंग करवाने कार लेकर निकल पड़ी..
गौतम थोड़ी देर आराम करने के बाद अपने कमरे से निकल कर नीचे आ गया औऱ अपनी नानी गायत्री के कमरे में आ गया जहा गायत्री टीवी पर किसी सीरियल को देखते हुए उसमें ध्यान लगाए बैठी थी..
गौतम अपनी नानी के करीब आकर उसकी गोद में अपना सर रखकर लेट गया जिससे गायत्री का ध्यान टीवी से टूट गया औऱ वो गौतम के सर को सहलाती हुई गौतम को लाड प्यार करने लगी..
गायत्री - कम से कम अपनी नानी से तो मिलने आ सकता था ना ग़ुगु..
गौतम - आ गया ना नानी...
गायत्री - हाँ पुरे छः साल बाद.. एक दो साल औऱ देर करता तो नानी भगवान को प्यारी हो जाती..
गौतम - कैसी बातें कर रही हो नानी.. आप तो अभी भी जवान हो.. अभी से कहा भगवान् को याद कर रही हो..
गायत्री हसते हुए - 62 बरस की हो गई बेटा..
गौतम प्यार से गायत्री के गाल चूमकर - नानी दिखने में तो आज भी आप 22 साल से एक साल ज्यादा की नहीं लगती.. ऐसे लगता है मामी आपकी बहु नहीं सास है औऱ आप मामी की सास नहीं बहु हो..
गायत्री हस्ते हुए - तू इतनी बातें करना कब से सिख गया ग़ुगु? पहले तो बहुत चुपचाप औऱ अपने आप में रहता था अब देखो.. लग ही नहीं रहा तू मेरा पहले वाला ग़ुगु है..
गौतम - समय के साथ तो सबको बदलना पड़ता है ना नानी.. वैसे आप चाहो तो मैं फिर से वही आपका ग़ुगु बन सकता हूँ..
गायत्री - कोई जरुरत नहीं है बेटा.. सच कहु तो तू ऐसे ही हँसता खेलता ज्यादा अच्छा लगता है..
गौतम - नानी आप नहीं गई शॉपिंग पर?
गायत्री - तू तो जानता है तेरी मामी को, उसके साथ शॉपिंग पर जाने का मेरा बिलकुल मन नहीं था..
गौतम - क्यों?
गायत्री - तू तो जानता है उसका स्वाभाव केसा है.. अपनी अमीरी झाड़ने का कोई मौका नहीं छोड़ती.. ऐसा लगता है हर चीज की कीमत बताने की नौकरी करती हो..
गौतम - तो क्या हुआ? उनके पास पैसे है तो वो अपने पैसो का रोब झाड़ती है.. आप भी ये सब कर सकती हो..
गायत्री - मुझे तो इन सब दिखावे औऱ ढकोसले से दूर रहने दे बेटा.. मैं तो जैसी हूँ ठीक हूँ.. मुझे तो सुमन के लिए बुरा लगता है कोमल कहीं अपनी अमीरी दिखाने के चक्कर उसका दिल ना दुखा दे.. चल छोड़ इन बातों को ये बता.. इतना खूबसूरत औऱ जवाँ हो गया है तू.. कितनी गर्लफ्रेंड बनाई तूने?
गौतम - क्या फ़ायदा नानी इस शकल.. एक भी नहीं बनी..
गायत्री - हट झूठा... सच सच बता किसी को नहीं बताऊंगी..
गौतम - सच में नानी.. मुझे कोई लड़की पटती ही नहीं है.. पता नहीं क्या कमी है मुझमे..
गायत्री - कमी.. कमी तो है ही नहीं मेरे ग़ुगु में.. सब खूबी ही खूबी है.. तू बोल मैं बनवा देती हूँ तेरी गर्लफ्रेंड..
गौतम गायत्री के गले में हाथ डालकर - नानी आप ही बन जाओ ना मेरी गर्लफ्रेंड..
गायत्री प्यार से गौतम के गाल चूमकर - तू तो बहुत चालक हो गया है.. मुझे ही फंसाने के चक्कर में है..
गौतम गायत्री के गले में हाथ डालकर - नानी अब आप हो ही इतनी ब्यूटीफुल.. मैं क्या करू?
गायत्री हसते हुए गौतम का हाथ पकड़ कर चूमते हुए - लगता है अभी से लड़की ढूंढ़नी पड़ेगी तेरे लिए..
गौतम गायत्री को अपनी तरफ खींचकर गले लगाते हुए - ढूंढने की क्या जरुरत है नानी.. आप हो ना..
औऱ फिर से गायत्री के गाल पर चुम्बन कर देता है..
गायत्री को विधवा हुए 15 साल से ऊपर का समय बीत चूका था औऱ उसके बाद से उसे कभी किसी पुरुष का स्पर्श नहीं मिला था आज गौतम ने जैसे गायत्री से बात की थी औऱ उसे छुआ था उससे गायत्री
के मन में हलचल होने लगी थी औऱ उसके अंदर सालों से छुपी हुई औरत का वापस उदय होने लगा था गायत्री के साथ जिस तरह से मीठी बातें गौतम कर रहा था उससे गायत्री को अजीब सुख मिलने लगा था औऱ वो चाहने लगी थी गौतम उससे इसी तरह औऱ बातें करें..
गायत्री प्यार से - चल पीछे हट.. बदमाश कहीं का.. कुछ भी बोलता है.. बहुत बेशर्म हो गया है तू..
गौतम गायत्री को अपनी बाहों में औऱ कस लेता है - मैं तो आगे बढ़ना चाहता हूँ नानी, आप तो पीछे हटाने लगी..
गायत्री हसते हुए - न जाने तुझे मुझ बुढ़िया मैं क्या नज़र आ गया.. चल अब छोड़ मुझे कोई देख लेगा तो बात बनायेगा..
गौतम गायत्री को बिस्तर पर धकेल देता है औऱ उसके साथ खुद भी गिर जाता है औऱ कहता है - सब तो शॉपिंग गए है नानी.. हम कुछ भी करें.. हमें देखने वाला यहाँ बचा ही कौन है?
गायत्री - छी.. कैसी गन्दी बात कर रहा है तू.. छोड़ मुझे..
गौतम ने आगे कुछ भी ना बोलकर गायत्री के होंठों को अपने होंठों में भर लिया औऱ चूमने लगा.. गायत्री हैरान होकर बेसुध लेटी रही औऱ गौतम गायत्री को चूमता रहा साथ ही उसने अपना रखा हाथ गायत्री के साडी के अंदर डाल कर उसकी चुत को अपने हाथों के पंजे से पकड़ लिया औऱ मसलते हुए गायत्री की चुत में उंगलियां करने लगा जिससे गायत्री की काम इच्छा सुलग उठी.. औऱ वो भी धीरे धीरे गौतम के चुम्बन का प्रतिउतर चूमकर देने लगी..
गौतम ने पहले ही अपनी कलाई का धागा लाल होते देखकर गायत्री को अपने जाल में ले लिया था औऱ उसे भोगने की नियत से अपने आप को गायत्री के अनुरूप ढालते हुए उसके बदन को छेड़ने औऱ उससे खेलने लगा..
गायत्री की 62 साल पुरानी चुत गौतम के हाथ लगने पर 62 सेकंड में ही सुलगने लगी औऱ उसमे भारी गर्मी गौतम को अपने हाथ पर महसूस होने लगी.. गौतम ने कुछ मिनट में ही गायत्री चुत से नदी बहा दी जिससे गायत्री गौतम से लिपटकर गौतम को चूमने औऱ चाटने लगी उसे मालूम नहीं रहा की वो अपनी बेटी के बेटे के साथ ऐसा कर रही थी..
गौतम ने गायत्री के हाथ में अपना लंड रख दिया औऱ अपने हाथ से गायत्री का हाथ पकड़कर गायत्री के हाथ से अपना लंड हिलवाने लगा.. गायत्री के हाथ में जैसे ही गौतम का लंड आया वो चूमना छोड़कर एक नज़र गौतम के लंड पर डालकर उसे देखने लगी लेकिन अगले ही पल गौतम ने गायत्री के बाल पकड़ कर वापस अपने होंठों से उसे लगा लिया.. गायत्री को चूमकर उसने गायत्री को बेड पर बैठा दिया औऱ खुद फर्श पर खड़ा हो गया..
गायत्री कुछ समझ पाती इससे पहले ही गौतम ने उसके पककर सफ़ेद हो चुके बाल पकड़ कर उसके मुंह में अपने लंड का प्रवेश करवा दिया औऱ अपनी नानी गायत्री को अपना लोडा चूसाने लगा..
गायत्री के मन में उथल पुथल मची हुई थी औऱ उसके चेहरे पर रोमांच, डर, कामुकता, बेबसी, बेसब्री औऱ रिश्तो के मेले होने का दुख एक साथ झलक रहा था..
गायत्री ने गौतम के लंड को मुंह से नहीं निकाला औऱ धीरे धोरे चूसने लगी. गौतम ने भी कोई जल्दी नहीं की औऱ गायत्री को आराम आराम से लोडा चूसाने का सुख भोगने लगा..
गायत्री औऱ गौतम के बीच ये सब चल ही रहा था की उन दोनों को ऊपर से किसी के नीचे आने की आहट सुनाई दी.. औऱ गायत्री ने फ़ौरन गौतम का लंड अपने मुंह से बाहर निकाल दिया औऱ अपनेआप को ठीक करने लगी गौतम ने भी परिस्थिति समझते हुए अपना लंड पेंट में डाल लिया औऱ कमरे से बाहर आ गया जहा उसे घर का नोकर अब्दुल दिखाई दिया जो सीधा गायत्री के कमरे की तरफ चला गया औऱ उससे बोला..
अब्दुल - चाय बना दू बड़ी मालकिन...
गायत्री - नहीं.. तू रहने.. आज मैं खुद चाय बना लुंगी..
गायत्री ये कहते हुए बेड से उठ जाती है औऱ रसोई की तरफ चली जाती है..
गायत्री की मनोदशा को बयाँ करना मुश्किल था उसे अभी अभी जो सुख गौतम ने दिया था गायत्री उसे वो भूल ही चुकी थी.. सालों से बंजर होकर पड़ी जमीन पर अकाल के बाद जैसे बारिश के पानी से पौधे खिल उठते है उसी तरह सालों से गायत्री की वीरान औऱ अकेली जिंदगी में भी आज गौतम के कारण मादकता औऱ कामुकता ने अपने बीज को बोकर पौधे में बदल दिया था..
गायत्री का एक मन उसे कोस रहा था औऱ ये समझा रहा था की वो अपने नाती के साथ कैसे इस तरह की जलील हरकत कर सकती है औऱ उसके साथ जिस्मानी सम्भन्ध बनाने का प्रयास कर सकती है.. गायत्री चाय बनाते हुए अपनेआप को बुरा भला कहे जा रही थी.. मगर गायत्री का दूसरा मन चोरी छिपे गायत्री को बहका रहा था औऱ अब्दुल को गालिया देते हुए कोस रहा था कि क्यों वो बीच में आ गया.. क्या उसे आने में देर नहीं हो सकती थी? गायत्री की काम इच्छा ने तो उसके मन में दूसरा जन्म ले लिया था औऱ उसके दिमाग में चल रही बातों ने पहले मन को हरा दिया था.. गायत्री अब गौतम के करीब जाना चाहती थी औऱ सालों से सुखी पड़ी जिंदगी को थोड़ा काम के रस से गिला कर लेना चाहती थी..
गायत्री की चाय उसकी बची हुई जवानी के साथ उबाल मार चुकी थी औऱ उसने फैसला कर लिया था.. गायत्री ने चाई एक कप में छन्नी की औऱ कप लेकर गौतम के कमरे की तरह आने लगी..
दरवाजे पर पहुंचकर एक बार गायत्री रुकी जैसे कुछ सोच रही हो फिर गायत्री आगे बढकर दरवाजे के अंदर आ गई जहा गौतम बेड पर ऐसे बैठा हुए था जैसे गायत्री का ही इंतजार कर रहा हो.. आगे कुछ पहल करने की हिम्मत गायत्री में नहीं थी इसलिए उसने चाय को बेड की साइड टेबल पर रख दिया औऱ एक नज़र गौतम से मिलाकर वापस नज़र चुराते हुए उसे चाय पिने का बोलकर वापस जाने लगी..
गायत्री ने मुश्किल से दो कदम बढ़ाये होंगे की गौतम ने बेड से उठकर गायत्री की तरफ बढ़ते हुए अपना सीधा हाथ गायत्री की कमर में डालकर उसे अपने गले से लगा लिया औऱ दूसरे हाथ से दरवाजे को कुंदी मारकर गायत्री के साथ बिस्तर में कूद गया औऱ फिर से गायत्री औऱ गौतम का चुम्बन शुरू हो गया..
इस बार गायत्री अपने पुरे मन के साथ गौतम को ऐसे चुम रही थी जैसे गौतम उसका नाती नहीं पति हो..
गौतम ने थोड़ी देर चूमने के बाद वापस गायत्री की ड्यूटी अपने लंड पर लगा दी औऱ उसे बिस्तर पर झुकाते हुए अपना लंड चूसाने लगा..
गौतम - आहहह... नानी.. दाँत मत लगाओ यार.. आहहह... बहनचोद क्या मस्त मज़े देती हो नानी अभी भी.. (गायत्री के चुचे दबाते हुए) उफ्फ्फ नानी कितनी बड़ी औऱ मस्त है आपकी चूचियाँ.. ढीली पड़ने के बाद भी कहर ढा रही है..
गायत्री गौतम की बातें सुनती हुई उसके लोडा चूसे जा रही थी औऱ गौतम की वासना अपने चरम पर आने लगी थी वो लोडा चुस्ती गायत्री को देखकर बहकने लग गया था औऱ जल्दी ही झड़ने की कगार पर भी आ पंहुचा था..
गौतम - नानी.. आने वाला है चुसो जोर से थोड़ा.. आहहह... ऐसे ही नानी... हाय... आहहह...
गौतम गायत्री के मुंह में झड़ जाता है औऱ गायत्री बिना संकोच किये उसका वीर्यपान कर लेती है फिर गौतम का लंड साफ करके जाने लगती है मगर गौतम गायत्री को वापस बिस्तर पर गिरा देता है औऱ गायत्री की चुत के दर्शन करने के इरादे से उसकी साडी पकड़ के ऊपर कमर तक उठा देता है.. वो देखता है की गायत्री ने चड्डी नहीं पहनी थी.. औऱ उसके बालों से भरी चुत साफ सामने थी जो अब हलकी काली पड़ गई थी.. गौतम ने बिना किसी झिझक के गायत्री की चुत को अपने मुंह में भर लिया औऱ चूसने औऱ चाटने लगा.. जिस तरह से गौतम गायत्री की चाट रह था गायत्री को परम सुख की प्राप्ति होने लगी थी..
गायत्री गौतम के बाल पकड़ के जोर जोर उसे अपनी चुत चटवा रही थी औऱ अब उसने भी शर्म की चादर हटाते हुए बात करना शुरू कर दिया था..
गायत्री - चाट ग़ुगु.. जोर से चाट अपनी नानी की चुत को.. 16 साल हो गए किसी ने मेरी इस चुत की चिंता नहीं की.. तू ही पहला है ग़ुगु.. चाट बेटा.. आहहह... उम्म्म्म.. अह्ह्ह्ह..
गौतम गायत्री की बात सुनकर मन ही मन मुस्काता हुआ उसकी चुत को अपने मुंह से ठंडी करने लगा.. गायत्री तो जैसे हक़ीक़त औऱ ख़्वाब के बीच कहीं आँख बंद किये प्रकृति से मिले इस अदभुद सुख को भोग रही थी..
गौतम ने गायत्री की गांड में उंगलि करते हुए चुत को चाटना जारी रखा औऱ अपनी जीभ उसकी चुत में डाल उसे चाटने लगा.. गौतम चाहता था की वो गायत्री को शर्म लिहाज़ औऱ रिश्तो के बंधन से बाहर ले आये जिसमे वो सफल भी हो चूका था..
गायत्री अब वापस झड़ने वाली थी औऱ इस बार उसने बिना किसी झिझक के गौतम के मुंह में अपना पानी निकाल दिया औऱ उसके बालों को जोर से खींच कर गौतम को अपने ऊपर लेटा लिया औऱ फिर से गौतम औऱ गायत्री चुम्बन के मीठे अहसास को महसूस करने लगे..
कुछ देर बाद गौतम चुम्बन तोड़कर गायत्री से - मज़ा आया नानी..
गायत्री - तू तो जादूगर है ग़ुगु.. मैंने आज तक ऐसा कुछ महसूस नहीं किया..
गौतम अपना लंड गायत्री की चुत पर रगढ़ते हुए - असली मज़ाक़ तो आपको चुदाई में आएगा नानी.. आप बोलो तो डाल दू अंदर..
गायत्री - नहीं नहीं ग़ुगु.. तेरा बहुत बड़ा है औऱ मेरी चुत बहुत छोटी.. मैं झेल नहीं पाउंगी बेटा..
गौतम - मैं धीरे धीरे डालूंगा नानी.. सब आपकी मर्ज़ी से होगा.. आपको पसंद नहीं आये तो मैं कुछ नहीं करूँगा..
गायत्री - ठीक है बेटा.. पर बहुत ध्यान से मेरी चुत बिलकुल सिकुड़ चुकी है..
गौतम - ठीक है नानी..
गौतम अपने लंड पर थोड़ा सा थूक लगाकर गायत्री की चुत में उठेल देता है औऱ हल्का सा दबाब बनाता जिससे उसके लंड का टोपा गायत्री की चुत में घुस जाता है औऱ गायत्री की चिंख निकल जाती है औऱ वो जल बिन मछली जैसे तड़पने लगती है.. गौतम लंड का टोपा वापस बाहर निकाल लेता है औऱ गायत्री से कहता है..
गौतम - नानी सॉरी.. आप ठीक हो ना..
गायत्री - हाय मेरी माँ.. ग़ुगु मैं नहीं झेल पाउंगी बेटा.. माफ़ कर मुझे..
गौतम - कोई बात नहीं नानी.. मेरी गलती है आपके साथ ज़िद कर बैठा..
गायत्री उठकर अपने कपडे सही करते हुए - चाय ठंडी हो गई ग़ुगु.. मैं अभी दूसरी बना लाती हूँ..
गौतम पूरी बेशर्मी से गायत्री को देखकर अपना नंगा लोडा मसलते हुए - रहने दो नानी.. वैसे भी मेरा चाय पिने का नहीं सुट्टा फुकने का है..
गायत्री मुस्कुराते हुए गौतम को देखकर - तेरा मन नहीं भरा ना बेशर्म..
गौतम बेड से उठकर अपने सामान से भरे बेग की तरफ जाता है औऱ उसमे से सिगरेट का पैकेट औऱ लाइटर निकालकर एक सिगरेट जलाते हुए गायत्री से कहता है..
गौतम - मेरा मन तो तभी भरेगा नानी जब मेरे इस लंड से आपकी चुत पिटेगी..
गायत्री मुस्कुराते हुए गौतम के नज़दीक आकर - ग़ुगु मैं अगर तेरी ये इच्छा पूरी कर पाती तो मुझे बहुत ख़ुशी होती.. पर तू समझ ना..
गौतम सिगरेट का कश लेकर धुआँ गायत्री के मुंह पर छोड़ते हुए - आज नहीं तो कल मेरी इच्छा पूरी जरूर हो जायगी नानी.. आप उदास मत हो.. बस अब आप चुत में गाजर मूली डालना शुरू कर दो.. थोड़ा बड़ा हो जाएगा आपका छेद तो मेरे लंड को घुसने में आसानी होगी..
ये कहते हुए गौतम गायत्री के कंधे पर हाथ रखकर उसे नीचे बैठा लेता है औऱ उसके मुंह में अपना लंड वापस डाल देता है औऱ गायत्री के बाल पकड़ कर सिगरेट के कश लेटे हुए उसे लोडा फिर से चूसाने लगता है..
गौतम अपनी नानी गायत्री को अपने सामने घुटनो पर बैठाकर सिगरेट के कश मारते हुए अपना लंड चुसवा ही रहा था की उसका फ़ोन बजने लगा..
गौतम फ़ोन उठाकर - हेलो माँ...
सुमन - क्या कर रहा है ग़ुगु..
गौतम - कुछ नहीं माँ नानी के साथ थोड़ी सी मस्ती कर रहा था..
सुमन - अपनी नानी को परेशान तो नहीं कर रहा ना ग़ुगु तू?
गौतम - परेशान क्यों करूँगा माँ.. नानी तो अपने आप से ही मेरी हर बात मान लेती है..
सुमन - क्या कर रही है नानी..
गौतम - कुल्फी चूस रही है माँ...
सुमन - कुल्फी?
गौतम - हाँ माँ.. बाहर कुल्फी वाला आया था तो मैंने लेकर नानी को दे दी वो मेरे सामने चूस रही है बैठके...
सुमन - बेटा नानी को ज्यादा कुल्फी मत चूसाना वरना उनको ठंड लग जायेगी..
गौतम - उसकी चिंता आप मत करो ना.. मैं हूँ ना..
सुमन - अच्छा तुझे पिंक ज्यादा पसंद है या येल्लो?
गौतम - पहले बताओ क्यों पूछ रही हो? कुछ खरीद रही हो ना मेरे लिए?
सुमन - क्यों शादी में मेरा ग़ुगु जीन्स शर्ट ही पहनेगा क्या? एक सूट पसंद आया है.. जल्दी से कलर बता कोनसा लूँ?
गौतम सिगरेट का कश लेकर गायत्री के मुंह में लोडा आगे पीछे करते हुए - रहने दो माँ क्यों किसी औऱ का अहसान ले रही हो..
सुमन - अरे अहसान की क्या बात है इसमें? मैं अपने पैसो से ले रही हूँ.. तू बस कलर बता औऱ ज्यादा बात मत कर..
गौतम - ब्लैक.. पर साइज कैसे पता चलेगा आपको, सही है या नहीं?
सुमन - रोज़ अपनी छाती से लगा के सोती हूँ तुझे.. तेरी ऊपर से नीचे तक की नाप मुझे मुंह जबानी याद है..
गौतम सिगरेट का आखिरी कश लेकर - अपने लिए क्या ले रही हो?
सुमन - मेरे लिए क्या? मेरे पास तो पहले से इतना कुछ है..
गौतम - अगर अपने लिए कुछ नहीं ले रही हो तो मेरे लिए भी मत लेना.. मैं नहीं पहनूंगा समझी?
सुमन - अच्छा ठीक है मेरे शहजादे.. ले लुंगी अपने लिए भी कुछ..
गौतम - कुछ नहीं.. कुछ अच्छा लेना.. वरना मुझे जानती हो आप..
सुमन हस्ते हुए - अच्छा मेरे छोटे से ग़ुगु ज़ी.. ले लुंगी कुछ अच्छा सा.. तेरे लिए भी औऱ मेरे लिए भी..
गौतम - ठीक है आई लव यू माँ..
सुमन - लव यू मेरा बच्चा..
फ़ोन कट हो जाता है औऱ फिर गौतम दोनों हाथों से गायत्री के सफ़ेद बाल पकड़ कर उसके मुंह में लोडा जोर जोर से आगे पीछे करने लगता है जिससे थोड़ी देर बाद गायत्री के मुंह में गौतम झड़कर हल्का हो जाता है औऱ इस बार भी गायत्री बिना झिझक सारा वीर्य पी कर खड़ी हो जाती है..
गौतम - मज़ा आ गया नानी.. मुंह के साथ अलगी बात चुत भी चाहिए आपकी..
Shaandar jabardast Hot Emotional updateUpdate 17
गौतम की सुबह जब आँख खुली तो उसके सामने सुमन का चेहरा था, सुमन बिस्तर के किनारे बैठी हुई प्यार से गौतम को जगा रही थी. सुमन के जागने से ही गौतम की आंख खुली और उसने सामने अपनी मां के खूबसूरत चेहरे को दिखा. सुमन अपने साथ चाय का कप लाई थी जो उसने बेड के ऊपर की तरफ किनारे पर रख दिया था गौतम ने सुमन को देखते ही अपनी तरफ खींच लिया और बाहों में भर के सुमन को चूमने लगा.. सुमन प्यार से गौतम को अपने होठों का जाम पिलाकर बोली..
सुमन - उठ जा मेरे शहजादे.. संडे है तो क्या पूरा दिन सोता ही रहेगा? चल जा कर नहा ले..
गौतम - माँ आज चले टेटू बनवाने? छूटी का दिन है..
सुमन - ठीक है जैसा तू कहे मेरे शहजादे..
गौतम बिस्तर से उठ खड़ा होता है और चाय का कप हाथ में लेते हुए चाय की चुस्कियां लेते हुए सुमन को देखने लगता है जो वापस रसोई की तरफ जाकर अपने काम में लग जाती है. गौतम सुमन को ऊपर से नीचे तक कई बार देखता है और उसके बदन को निहारने लगता है गौतम को सुमन के ऊपर पूरी तरह से काम भाव पैदा हो रहा था जिसे वह खुद बखूबी की जानता था..
सुमन के बदन के उतार चढ़ाव बहुत ऊंचे नीचे थे जिससे उसकी सुंदरता में चार चांद लगते थे
गौतम उसीके जाल में फसता चला जा रहा था औऱ अब गौतम सुमन पर पूरी तरह से लड्डू था.. चाय पीने के बाद गौतम बाथरूम चला गया और नहाने लगा, नहाने के बाद गौतम ने कपड़े पहन लिए जो सुमन अभी-अभी निकल कर बिस्तर पर रख गई थी.
गौतम - माँ चले?
सुमन - पहले कुछ खा तो ले ग़ुगु..
गौतम - क्या बनाया है?
सुमन - तेरी मन पसंद बिरयानी..
गौतम - शकल दिखाओ जरा अपनी.. आप तो नॉनवेज छूना भी पसंद नहीं करती थी.. औऱ अब खाने के साथ बनने भी लगी हो..
सुमन - मेरे ग़ुगु के लिए तो मैं कुछ भी कर सकती हूँ..
गौतम - तो फिर खिला भी दो अपने हाथो से..
गौतम और सुमन ने खाना खाया और फिर दोनों ही घर को ताला मार कर घर से बाहर आ गए.. गौतम ने बाइक स्टार्ट की और सुमन उसके पीछे बैठ गई. सुमन बार-बार गौतम से कह रही थी कि टैटू में फालतू ज्यादा पैसे लग जाएंगे लेकिन गौतम बार-बार सुमन को समझा रहा था कि वह चिंता ना करें गौतम सब संभाल लेगा..
शहर की पुरानी गलियों से गुजरते हुए गौतम सुमन को एक वीराने से मकान के सामने ले आया जहां आसपास छोटी-छोटी गलियां गुजर रही थी और निकलने की कम ही जगह बची थी जगह को देखने से ऐसा लगता था जैसे यह जगह शहर से बिल्कुल इतर एक अलग ही दुनिया है पुराना शहर है जिसका अस्तित्व आप धीरे-धीरे खत्म होता जा रहा है.
सुमन - ग़ुगु कहा ले आया.. यहां कोनसी टेटू की दूकान है..
गौतम - माँ यार आप कितने सवाल करती हो.. चलो ना मेरे साथ.. सब पता चल जाएगा.. मैंने एक पुराने दोस्त से बात की थी उसने यहाँ का पता दिया है.. आप आओ मेरे साथ..
गौतम सुमन को लेकर उस मकान के अंदर दाखिल हो जाता है और सीढ़ियां चढ़ता हुआ ऊपर एक दरवाज के बाहर आकर, दरवाजे पर नॉक करता है..
गौतम के दरवाजा बजाने पर अंदर से एक आदमी निकाल कर दरवाजा खोलता है और सामने सुमन और गौतम को देखकर पूछता है कि उनको क्या काम है? आदमी के सवाल के जवाब में गौतम अपनी बात कहता हुआ बोलता है कि उसे टैटू बनवाना है और उसे किसी ने यहां का एड्रेस दिया था.. क्या उसका नाम अनवर है? आदमी हाँ में सर हिलता हुआ दोनों को कमरे के अंदर आने के लिए कहता है. कमरे में दाखिल होते ही गौतम और सुमन दोनों कमरे को देखकर हैरान हो जाते है.
साधारण से दिखने वाली इस जगह पर अनवर कमरे में टैटू बनाने का पूरा कारखाना खोले हुए था. अनवर की उम्र करीब 32 साल की लगभग थी और वह टैटू बनाने में एक्सपर्ट आदमी था.
अनवर - ज़ी किसे बनवाना है टेटू?
गौतम - मेरी माँ को बनवाना है..
अनवर हैरानी से सुमन को देखकर - केसा टैटू बनाना है भाभी ज़ी?
गौतम फ़ोन से एक पिक दिखाते हुए - ये वाला..
अनवर - ठीक है भाभी ज़ी आप यहां लेट जाइये मैं तैयारी करता हूँ.. हाथ पर ही बनवाना है ना..
गौतम - हाथ पर नहीं.. बूब्स पर बनवाना है..
अनवर एक पल के लिए शॉक हुआ मगर फिर बोला -
ठीक है... भाभी ज़ी आप यहां लेट जाओ आकर..
सुमन अनवर के कहे अनुसार उसकी बताई हुई जगह लेट जाती है और अनवर टैटू बनाने की तैयारी करने लगता है.. फिर सुमन के दाई औऱ आकर एक राउंड चेयर ओर बैठ जाता है वही गौतम बाई औऱ खड़ा रहता है..
अनवर - भाभी ज़ी ये साड़ी हटा दो..
गौतम सुमन का पल्लू हटाकर - ब्लाउज उतार दो माँ..
टेटू बनाने में आसानी रहेगी.
सुमन अनवर के सामने थोड़ा झिझकते हुए - बटन खोलके काम नहीं चलेगा?
अनवर - चल जाएगा भाभी पर बूब्स पर टेटू के लिए ब्लाउज को पूरा ओपन करना पड़ेगा.
गौतम सुमन के ब्लाउज के बटन खोलते हुए - मैं खोल देता हूँ माँ.. आप लेटी रहो.. गोतम सुमन का ब्लाउज उतार देता है औऱ सुमन कमर से ऊपर सिर्फ ब्रा में आ जाती है. सुमन को अनवर के सामने शर्म आ रही थी मगर गौतम पूरा बेशर्म बना हुआ था.
अनवर बूब्स को हल्का सा छूकर - यहां बनाना है?
गौतम - नहीं अनवर भाई.
अनवर - तो कहा?
गौतम सुमन की ब्रा को ऊपर खिसका कर उसके दोनों बूब्स आजाद कर देता है औऱ एक बूब्स के चुचक पकड़कर अनवर से कहता है - निप्पल्स के बगल में इस तरफ. सुमन गौतम की हरकत पर शर्म से आधी हो जाती है मगर उसे कुछ बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाती.
अनवर भी खुलने लगता है औऱ सुमन के बूब्स को बेझिझक पकड़ कर गौतम की बताई जगह पर टेटू बनाने लगता है.
गौतम सिगरेट पिने कमरे से बाहर आ जाता है वही अनवर सुमन के बूब्स के पुरे मज़े लेकर उसपर टैटू बनाने लगता है. सुमन अनवर की हरकत पहचान रही थी औऱ शर्म के कारण अनवर से कुछ भी नहीं बोल रही थी.. अनवर टैटू बनाने के बहाने सुमन के निप्पल्स को बार बार पकड़कर मसालार मरोड़ रहा था जिससे सुमन हलकी सी सिसक पडती थी.. अनवर का लंड औऱ सुमन के निप्पल्स दोनों कड़क होकर खड़े हो चुके थे.. गौतम बाहर खड़ा होकर सिगरेट के कश लगा रहा था औऱ अंदर अनवर बिना शर्म किया सुमन के बूब्स दबा रहा था औऱ टेटू बनाते हुए सुमन के मज़े ले रहा था.. अनवर ने सुमन से अब बात करना शुरू कर दिया था..
अनवर - भाभी ज़ी बूब्स तो बहुत टाइट है आपके. जिम जाती होंगी..
सुमन - नहीं.. बस घर का काम ही करती हूँ..
अनवर - भाभी ज़ी एक टेटू नीचे भी बनवा लो..
सुमन - नीचे फिर कभी बनवा लुंगी आप अभी यही बना दो..
अनवर ऐसे ही सुमन के मज़े लेटे हुए टेटू बनाता है औऱ सुमन के बूब्स पर टेटू बन जाता है, गौतम जब अनवर को टेटू के पैसे देता है तो अनवर टेटू के पैसे लेने से मना कर देता है फिर गौतम सुमन के साथ वहा से वापस आने के लिए निकल पड़ता है.
वापस आते हुए रास्ते में गौतम गाड़ी को एक ठेके के सामने रोकता है और सुमन ठेके के सामने गाड़ी रूकती देखकर सुमन गौतम से पूछता है कि उसने गाड़ी क्यों रोक है तो गौतम सुमन को ठेके की तरफ इशारा करते हुए कहता है कि एक बॉटल लेते हुए घर चलते हैं, इस पर सुमन गौतम को गुस्से की नजरों से देखती है मगर गौतम सुमन को प्यार से कहता है कि उसने कई बार सुमन और रूपा को एकसाथ शराब पीते हुए देखा है और सुमन उसके सामने भी शराब पी सकती है उसे कोई परेशानी है. सुमन गौतम की बातों से लरज जाती है औऱ कुछ नहीं बोलती वही गौतम ठेके से ब्लैक डॉग शराब की एक बोतल ले आता है औऱ फिर सुमन के हाथों पकड़ा कर बाइक स्टार्ट करते हुए घर आ जाता है.
गौतम - माँ यार चाय बना दो.
सुमन शराब की बोतल को रसोई में ऊपर छिपा कर रख देती है औऱ चाय बनाने लगती है तभी उसके फ़ोन ओर फ़ोन आता है..
सुमन फ़ोन उठाकर - हेलो
गौतम - माँ किसका फ़ोन है?
सुमन - संजू मामा (45) का.. सुमन बात करती हुई.. हाँ भईया..
संजू मामा उर्फ़ संजय - सुमन तू कल सुबह तक आ जायेगी ना?
सुमन - कल सुबह तक? भईया कल सुबह तक तो नहीं आ पाऊँगी..
संजय - सुमन तू तो जानती है शादी का घर है कितना काम होता है अगर लड़की (ऋतू 25) की बुआ भी एक हफ्ता पहले नहीं आएगी तो फिर काम कैसे होगा? औऱ कौन जिम्मेदारियां संभालेगा? तेरी भाभी का तुझे पता ही है..
सुमन - भईया मैं कोशिश करूंगी जल्दी आने की..
संजय - कोशिश नहीं सुमन आना है. ले माँ से बात कर..
गायत्री (62) - हेलो सुमन..
सुमन - कैसी हो माँ?
गायत्री - मैं ठीक हूँ बेटी तू कैसी है औऱ ग़ुगु केसा है?
सुमन - हम दोनों ही अच्छे माँ..
गायत्री - बेटी तू जल्दी आजा.. कितना टाइम हो गया तुझे देखे..
सुमन - माँ मैं तो आ जाऊ पर ग़ुगु का यहां कौन ख्याल रखेगा?
गायत्री - अरे तो ग़ुगु वहा क्यों छोड़ना है उसे लेके आ ना..
सुमन - माँ आप जानती तो हो उसे.. कितना ज़िद्दी है.. 6 साल हो गए तब तक पुरानी बात नहीं भुला.. अभी भी अपनी दीदी औऱ मामी से नाराज़ है..
गायत्री - बेटी तू समझा ना उसे. देख तू नहीं आएगी तो कितना सुना लगेगा घर..
सुमन - मैं तो कब से समझा रही हूँ माँ पर ग़ुगु समझता ही नहीं.. बस पहले की बात को दिल से लगाके बैठा है.. कहता है वापस चेहरा तक नहीं देखा किसीका..
गायत्री - सुमन बेटी तू कैसे भी करके ग़ुगु को ले आ बस.. शादी बार बार नहीं होती औऱ वो कब तक अपनी मामी औऱ दीदी से नाराज़ रहेगा? चेतन (26) औऱ आरती (24) की शादी मैं भी नहीं आया था ग़ुगु..
सुमन - मैं देखती हूँ माँ..
गायत्री - सुमन मैं कुछ नहीं जानती कल सुबह अगर तू नहीं आई तो मैं फिर तुझसे बात नहीं करुँगी..
सुमन - ठीक है माँ.. मैं मनाती हूँ ग़ुगु को.. फ़ोन कट जाता है..
गौतम - माँ आप चली जाओ मैं रह लूंगा अकेला.. मेरी चिंता मत करो..
सुमन - तू जब तक मेरे साथ नहीं चलेगा मैं कहीं नहीं जाने वाली समझा..
गौतम - माँ आप जानती हो मुझे उन लोगों की शकल तक नहीं देखनी..
सुमन - बेटा कितनी पुरानी बात है तू भूल क्यों नहीं जाता? आखिर तेरी मामी औऱ दीदी ने ही तो तुझे डांटा था.. कोई पराया तो नहीं था..
गौतम - चोरी का नाम लगाकर, क्या कुछ नहीं बोला था उन दोनों ने मुझे.. आप वहा होती तो क्या सहती ये सब? बहुत घमंड है उन लोगों को अपनी रइसी पर, उनको उनके घमंड में रहने दो.. मैं तो नहीं जाने वाला..
सुमन - मगर बेटा पर उस दिन मामी औऱ दीदी ने तुझसे माफ़ी भी तो मांगी थी..
गौतम - हाँ जब उनको पर्स औऱ सामान उनके पास ही मिल गया था तब मांगी थी.. वो भी कितनी आसानी सॉरी बोलकर खिसक गई थी.. कितना रोब झड़ती है मामी अपनी रइसी का.. जाते ही वापस अपने गहने औऱ कपडे की कीमत बताकर निचा दिखाने लगेगी.. मैं नहीं जाने वाला माँ..
सुमन - छः साल हो गए उस बात को ग़ुगु.. अगर तू सुबह मेरे साथ नहीं चला तो मैं तुझसे रूठ जाउंगी..
गौतम मुस्कुराते हुए - आप औऱ मुझसे रूठ जाओगी? ठीक है रूठ जाओ..
सुमन - ग़ुगु चल ना.. मुझे भी 2 साल हो गए भईया और माँ से मिले.. आखिरी बार चेतन औऱ आरती की शादी में मिली थी.. मेरे लिए इतना नहीं कर सकता.. अब क्या मैं हाथ जोड़कर तुझसे कहु?
गौतम - माँ क्यों मुझे वहां ले जाना चाहती हो.. मेरा मन नहीं है.. आप चली जाओ ना..
सुमन मुंह बनाकर - ठीक है मैं भी नहीं जाती.. तुझे नहीं माननी ना मेरी बात तो ठीक है.. मैं वैसे भी कोनसी तेरे लिए जरुरी हूँ जो तू मेरी बात मानेगा..
गौतम सुमन की बात सुनकर उसे बाहों में भरते हुए - अच्छा ठीक है मेरी माँ.. आप ना बहुत नाटक करने लगी हो..
सुमन गौतम का चेहरा चूमकर - सब तुझ से ही सीखा है मेरे दिल के टुकड़े.. चल पैकिंग कर ले सुबह जल्दी जाना है..
गौतम - आराम से कर लेना माँ.. छोटा सा ही तो रास्ता है.. अजमेर से जयपुर कोनसा दूर है?
सुमन - तेरे कपडे मैं पैक करुँगी.. वरना तू कुछ भी, जो मिलेगा वो पैक कर लेगा..
गौतम - कर लो.. पर पहले चाय तो पीला दो.. कब से उबाल मार रही है..
सुमन चाय कप में डाल कर गौतम को दे देती है..
सुमन - लो मेरे गौतम ज़ी आपकी चाय..
गौतम - थैंक्यू सुमन..
सुमन - बेशर्म नाम से बुलाता है अपनी माँ को..
गौतम चाय पीते हुए - आपने भी तो नाम से बुलाया..
सुमन - बहुत बातें बनाना सिख गया है.. चल मैं पैकिंग करती हूँ फिर खाना भी बनाना है..
सुमन पैकिंग पूरी कर लेती है और उसके बाद खाना बनाकर गौतम के साथ खाना खा लेती है और रात को गौतम के साथ इस तरह जिस तरह वह पहले कुछ राते सो रही थी सोने लगती है.. गौतम सुमन आज भी कमर से ऊपर पूरी तरह निर्वास्त्र होकर एकदूसरे के साथ लिपटे हुए लेटे थे.. सुमन बच्चों की तरह गौतम के सीने पर लेटी हुई थी उसे नींद आ चुकी थी औऱ नींद की गहरी खाई में उतर चुकी थी मगर गौतम की आँखों में नींद का कोई अक्स नहीं था वो सुमन की जुल्फ संवारता हुआ सुमन का चेहरा देखे जा रहा जैसे जोहरी हिरे को देखता है..
सुमन का फ़ोन बजा तो गौतम ने सुमन को जगाने की कोशिश की मगर सुमन गहरी नींद में थी गौतम ने उसे जगाने की ज्यादा कोशिश नहीं की औऱ सुमन का फ़ोन उठा के देखा जिसमे रूपा का फ़ोन आ रहा था..
गौतम फ़ोन उठाकर - हेलो..
रूपा - कैसे हो मेरे नन्हे शैतान..
गौतम - वैसा ही जैसा आपने कल देखा था..
रूपा - आज क्यों नहीं आये मिलने.. औऱ दीदी कहा बिजी है?
गौतम - माँ तो सो गई.. औऱ आज थोड़ा बिजी था..
रूपा - अभी तो सिर्फ 10 ही बजे है.. दीदी को अभी नींद आ गई..
गौतम - हाँ वो कल मामा के यहां जाना है शादी में.. आपको तो बताया होगा माँ ने..
रूपा - पर तू तो नहीं जाने वाला था ना ग़ुगु..
सुमन - मैं तो अब भी नहीं जाना चाहता मम्मी.. पर माँ ने अपनी कसम दे रखी है.. कैसे मना करू?
रूपा - शादी एक हफ्ते बाद है ना..
सुमन - हाँ.. आप भी चलो ना.. साथ में मज़ा आएगा..
रूपा - नहीं ग़ुगु.. मैं नहीं आ सकती.. तुम जाओ औऱ खूब मज़े करना, औऱ दीदी से कहना तुम्हारा ख्याल रखे..
गौतम - माँ को ये कहने की जरुरत है? वो तो हमेशा मेरा ख्याल रखती है.. पापा के जाने के बाद तो औऱ भी ज्यादा..
रूपा - हम्म.. बताया था दीदी ने.. ग़ुगु तुम दीदी से कहो ना यहां आकर मेरे साथ रहने के लिए.. मैं कल से समझा रही हूँ पर वो है की मानने को त्यार नहीं..
गौतम - पर..
रूपा - क्या पर.. हम्म? मैंने कहा था तुम्हे मुझे अपना मानो.. पर लगता है तुम भी मुझे पराया समझते हो..
गौतम - ठीक है मम्मी.. मैं बात करूंगा माँ से इस बारे में.. औऱ उन्हें राजी करूंगा आपके साथ रहने के लिए..
रूपा - ग़ुगु..
गौतम - हाँ..
रूपा - याद आ रही है तुम्हारी..
गौतम - आपने ही मना किया था..
रूपा - हाँ वो बाबाजी ने कहा है दूर रहने के लिए..
गौतम - अब इसमें मेरी क्या गलती? मैं आपके लिए हमेशा तैयार हूँ..
रूपा - अच्छा.. सुबह कितनी बजे निकलोगे?
गौतम - 8 बजे वाली बस से..
रूपा - बस से क्यों?
गौतम - इतनी दूर बाइक चलाने में मुझे नींद आती है..
रूपा - तो मुझे कहना था ना ग़ुगु.. मैं कल सुबह घर पर कार भिजवा दूंगी.. उसे लेकर चले जाना..
गौतम - पर आपके पास कार कहा है?
रूपा - तू अभी अपनी मम्मी को ठीक से जानता नहीं है मेरे नन्हे शैतान..
गौतम - अच्छा ज़ी.. ऐसी बात है? फिर तो कोशिश करूँगा जल्दी जान जाऊ..
रूपा - मन कर रहा है तुझे फ़ोन में घुस कर अपने गले से लगा लू.. बहुत याद आ रही है तेरी..
गौतम - मुझे भी..
रूपा - चल अब रखती हूँ.. तू भी सोजा..
गौतम - गुडनाइट मम्मी...
रूपा - गुडनाईट मेरे नन्हे शैतान..
सुबह हो चुकी थी औऱ सुमन नहाने के बाद काले पेटीकोट औऱ ब्लाउज को पहनकर रसोई में चाय बना रही थी उसके बाल गीले थे जिसे उसने तौलिये से बाँधा हुआ था उसे देखने से लगता था वो अभी अभी नहा के आई है औऱ चाय बनाने लगी है.. गौतम भी अभी अभी बाथरूम से नहाके निकलकर अपने कपडे पहन चूका था.. गौतम रसोई में आकर पीछे से सुमन को अपनी बाहों में भरते हुए सुमन की गर्दन चुम लेता है कहता है..
गौतम - गुडमॉर्निंग माँ..
सुमन - गुडमॉर्निंग मेरे बच्चा.. क्या बात है आज तो जगाने बिना ही उठ गया तू.. औऱ नहा भी लिया..
गौतम - आप कहो तो वापस सो जाता हूँ..
सुमन - कोई जरुरत नहीं है.. मैंने तेरा बैग पैक दिया है कुछ औऱ चीज लेनी हो तो तू अभी रख ले.. बाद में तू मत बोलना.. आपने ये तो पैक ही नहीं किया.
गौतम - नहीं बोलूंगा.. अच्छा रात को आपकी रूपा रानी का massage फ़ोन आया था..
सुमन - ग़ुगु वो भी तेरी माँ जैसी है.. रेस्पेक्ट से नाम लिया कर उनका बेटू..
गौतम - इतना प्यार से नाम ले रहा हूँ.. रूपा.. रानी.. औऱ कितनी रेस्पेक्ट करू उनकी.. वैसे एक बात बोलू.. मुझे बहुत सेक्सी लगती है आपकी रूपा रानी.. कहो तो बहु बनाके ले आउ आपकी रूपा को..
सुमन गौतम के कान पकड़ते हुए - देख रही हूँ बहुत बदमाश हो रहा है तू.. तुझे बस बड़ी औरत ही पसंद आती है, है ना? वैसे क्या कह रही थी रूपा?
गौतम अपना कान छुड़वाते हुए - आई लव यू बोल रही थी मुझे.. कह रही थी मेरी याद आती है उनको.. नींद भी नहीं आती मेरे बिना..
सुमन - तूने आज मार खाने का इरादा कर लिया है क्या?
गौतम - मज़ाक़ कर रहा था माँ.. रूपा आंटी गाडी भिजवा रही है.. बोल रही थी बस से मत जाना..
सुमन - तूने मना नहीं किया रूपा को? औऱ तुझे कार चलाना आता है?
गौतम - मना किया था पर वो मानी नहीं, बोली.. अगर मुझे अपना समझते हो तो मना मत करना.. औऱ आप तो जानती हो मैं रूपा आंटी को कितना अपना समझता हूँ.. औऱ माँ कार क्या आपका ग़ुगु ट्रक भी चला सकता है..
सुमन - हम्म.. सब पता है मुझे.. तू किसको क्या समझता है.. ले चाय पिले मैं साडी पहन लेती हूँ..
गौतम - माँ कोई अच्छी साडी पहना..
सुमन - चल ही बता दे क्या पहनू..
गौतम - मैरून अच्छा लगेगा आप पर..
सुमन - मैरून कलर की साडी पहन लेती हूँ.. बस..
गौतम चाय की चुस्कीया लेने लगता है और कुछ औऱ चीज़े अपने बेग में डाल लेता है.. सुमन अंदर जाकर साड़ी पहन लेती है, इतने में कोई आदमी बाहर दरवाजे पर बेल बजाता है और गौतम बाहर जाकर देखता है तो एक आदमी उसे कार की चाबी दे देता है औऱ चला जाता है.. गौतम देखता है की रूपा ने वाइट कलर स्विफ्ट कार भिजवाई है.. वो चाबी लेकर अंदर आ जाता है औऱ सुमन ने जो बेग पैक किये थे उन्हें कार में रख देता है..
गौतम - माँ कितना टाइम लगेगा? साडी पहन रही हो या बना रही हो..
सुमन - बस ग़ुगु 5 मिनट..
गौतम - आधा घंटा हो गया आपकी 5 मिनट ख़त्म नहीं हो रही..
सुमन - बेटू बस आ गई..
गौतम - 5 मिनट में आप बाहर नहीं आई तो मैं अंदर आ जाऊंगा साडी पहनाने..
सुमन हस्ते हुए - तुझे रोका किसने है अंदर आने से बेटू..
गौतम 5 मिनट बाद कमरे में घुस जाता है देखता है की सुमन आईने के सामने बैठकर अपने होंठों पर लिपस्टिक लगा रही है.. उसने आज अद्भुत श्रृंगार किया था उसका चेहरा चाँद की लालिमा के सामान प्रजव्वल था माथे पर बिंदिया आँखों में काजल औऱ होंठों पर लाली के साथ साथ.. सुमन ने पहनी मेरून साडी भी उसके रूप को औऱ बढ़ा रही थी..
सुमन - बस ग़ुगु.. हो गया चलते है..
गौतम सुमन को बस देखे जा रहा था..
सुमन - चल ना ग़ुगु अब खड़ा क्यों है..
गौतम - कमाल लग रही हो माँ आज.. लगता है आफत आने वाली है.. मन कर रहा है आपको अपनी दुल्हन बना लू..
सुमन मुस्कराते गौतम का मुंह पकड़कर हुए - माँ को दुल्हन बनाएगा बेशर्म.. चल.. अब लेट नहीं हो रहा?
गौतम सुमन को बाहों में भरते हुए - लिपस्टिक ख़त्म तो नहीं हुई ना माँ आपकी?
सुमन - क्यों?
गौतम - क्योंकि जो लिपस्टिक आपने अपने होंठों पर लगाईं है उसे तो मैं खाने वाला हूँ..
इतना कहकर गौतम सुमन के होंठों पर टूट पड़ता है औऱ सुमन को बेतहाशा चूमने लगता है जिससे सुमन हक्कीबक्की रह जाती है औऱ गौतम को चूमने से नहीं रोक पाती औऱ चुपचाप खड़ी रहकर गौतम के चुम्बन का मोन समर्थन कर देती है.. गौतम सुमन को बाहों में जकड कर चूमे जा रहा था औऱ लम्बे समय बाद सुमन के मना करने पर चुम्बन तोड़ देता है..
सुमन - ग़ुगु.. तू भी ना..
गौतम - सॉरी माँ.. आप इतनी प्यारी लग रही है कण्ट्रोल नहीं कर पाया आपको चूमने से..
सुमन रुमाल से गौतम के होंठों पर लगी अपने होंठों कि लिपस्टिक साफ करती है औऱ अपने होंठों कि लिपस्टिक ठीक कर गौतम से चलने के लिए कहती है.
गौतम औऱ सुमन कार मैं बैठ जाते है औऱ जयपुर के लिए निकल जाते है..
रास्ते में पड़ने वाली कच्ची सडक पर हिलती गाडी में सुमन के हिलते चुचे देखकर गौतम का मन काम कि भावना से भरने लगता है औऱ वो अपना एक हाथ सुमन के चुचे पर रखकर दबाता हुआ सुमन से पूछता है..
गौतम - माँ ब्रा नहीं पहनी क्या आपने?
सुमन - ग़ुगु ये ब्लाउज बहुत टाइट था तो नहीं पहन पाई..
गौतम - दूसरा ब्लाउज पहन लेती ना माँ.. ब्रा नहीं पहनोगी तो आपके बूब्स ढीले होकर लटक जाएंगे.. औऱ मैं नहीं चाहता आप अभी से ढीली पड़ो..
सुमन - ग़ुगु इस साड़ी पर यही ब्लाउज मैचिंग था तो पहन लिया.. मामा के घर बदल लुंगी..
गौतम - मामा के घर क्यों माँ.. रास्ते में कहीं बदल लेना..
सुमन - रास्ते में कहा जगह मिलेगी बेटा?
गौतम - उसकी चिंता आप मत करो.. आगे हाईवे से गाडी नीचे उतार लूंगा.. वहा दूर दूर तक कोई भी नहीं है..
सुमन - बेटा पर खुले में?
गौतम - मैंने कहा ना माँ वहा कोई नहीं आता जाता आप चिंता मत करो..
गौतम गाडी को कुछ देर हाईवे पर चला कर एक कट से नीचे उतार लेता है जहा जंगल जैसी जगाह थी.. थोड़ा आगे गाडी चला कर एक पेड़ के नीचे रोक देता है..
गौतम - आप ब्लाउज बदल लो माँ मैं बाथरूम कर लेता हूँ..
इतना कहकर गौतम गाडी से नीचे उतर जाता है औऱ गाडी के पास ही पेड़ के नीचे मूतने लगता है सुमन बेग से दूसरा ब्लाउज निकालकर पहनने लगती है मगर सुमन का ध्यान गौतम के लंड पर था जिसे गौतम जानभूझ गाडी के बिलकुल पास सुमन को दिखाते हुए मूत रहा था.. सुमन औऱ गौतम दोनों के मन में चुदाई कि काम इच्छा फलने फूलने लगी थी..
गौतम मूतने के बाद अपने लंड को दो चार बार ऐसे हिलता है जैसे वो मुठ मार रहा हो फिर लंड को पेंट में कर लेता है औऱ गांड़ी में आकर बैठ जाता है.. सुमन ये देखकर औऱ भी कामुक हो उठी थी..
गौतम सुमन के पर्स में से सिगरेट निकालकर सुलगा लेता औऱ एक कश मारके सुमन का ब्लाउज देखकर कहता है - ध्यान कहा है माँ आपका?
सुमन - क्यों.. क्या हुआ ग़ुगु?
गौतम सिगरेट का अगला कश लेकर - ब्लाउज उल्टा पहना है आपने..
सुमन हसते हुए अपना ब्लाउज खोल देती है औऱ उसे सीधा करने लगती है गौतम सुमन के हाथो से ब्लाउज ले लेता है औऱ सुमन को सिगरेट देते हुए कहता है - बाद में पहन लेना माँ.. क्या जल्दी है..
सुमन सिगरेट लेकर कश मारती हुई गौतम से कहती है - तेरा बस चले तो तू मुझे नंगा ही कर दे.. बहुत बिगड़ गया है तू.. तेरा कॉलेज ख़त्म होते ही तेरी शादी करवा दूंगी अच्छी सी लड़की देखकर..
गौतम सुमन के सामने अपना लंड मसलते हुए - पर मुझे तो आपके अलावा कोई औऱ पसंद ही नहीं आता माँ.. आप ही कर लो ना मुझसे शादी.. बहुत खुश रखूँगा में आपको.. कभी छोडके नहीं जाऊंगा.. हमेशा प्यार करूंगा आपसे..
सुमन सिगरेट का कश लेकर धुआँ छोडते हुए मुस्कुराकर - माँ हूँ मैं तेरी.. मुझसे ऐसी बातें करेगा तो एक थप्पड़ खायेगा तू.. देख रही हूँ बहुत आग लगी हुई है तेरे अंदर..
गौतम सुमन से सिगरेट लेकर कश मारता हुआ - आप तो हमेशा दिल तोड़ने कि बातें करती हो माँ.. अब आग लगी हुई तो इसमें क्या दोष? मैं अपने मन से थोड़ी जवान हुआ हूँ.. आपको देखकर मेरे दिल में कुछ कुछ होता है तो इसमें मेरी क्या गलती?
सुमन मुस्कुराते हुए - मैं समझती हूँ मेरे शहजादे.. पर मैं माँ हूँ तेरी.. तेरे साथ कुछ भी वैसा नहीं कर सकती..
गौतम सुमन को सिगरेट देते हुए - मैं कब कह रहा हूँ कि आप मेरे साथ सेक्स करो माँ.. पर आप अपने हाथो से तो कभी कभी मुझे प्यार कर सकती हो..
सुमन गौतम का इशारा समझ गई थी औऱ उसके चेहरे पर हलकी शर्म लिहाज़ औऱ गौतम के लंड को साफ साफ देखने कि बेसब्री साफ दिखाई दे रही थी..
सुमन सिगरेट का आखिरी कश लेकर सिगरेट बाहर फेंक देती है औऱ दो घूंट पानी पीकर गौतम से कहती है - ठीक है ग़ुगु.. अगर तू चाहता है तो मैं अपने हाथों से तुझे ठंडा कर देती हूँ, लेकिन तू भी मुझसे वादा कर कि ये बात किसी को नहीं बताएगा औऱ मेरी हर बात चुपचाप मानेगा..
गौतम सुमन का हाथ पकड़ कर अपने लंड पर रख देता है औऱ दबाते हुए कहता है - आप जैसा बोलोगी मैं वैसा ही करूगा माँ.. बस आप उसे ठंडा कर दो.. बहुत परेशान करता है ये मुझे...
सुमन मुस्कुराते हुए - नीचे कर अपनी जीन्स..
गौतम एक झटके मैं जीन्स औऱ चड्डी नीचे सरका देता है औऱ सुमन के सामने साफ साफ अपने खड़े लंड को नंगा कर देता है.. सुमन पहले भी गौतम का लंड देख चुकी थी मगर अब उसके सामने मात्र कुछ इंच दूर ही गौतम का लंड पूरा खड़ा हुआ था जिसे देखकर सुमन के मन में सावन कि बारिश होने लगी औऱ मोर नाचने लगे..
सुमन - हाय दइया ग़ुगु..
गौतम - पसंद आया माँ?
सुमन शर्मा जाती है औऱ अपने हाथ में गौतम का लंड पकड़ कर उसे नापते हुएधीरे धीरे ऊपर नीचे करने लगती है गौतम भी सुमन कि ब्रा निकाल देता है औऱ उसके चुचे दबाते हुए सुमन को अपनी तरफ खींचकर चूमने लगता है..
सुमन गौतम के ऊपर झुकी हुई उसे अपने होंठों का स्वाद चखा रही थी वही गौतम सुमन के चुचे औऱ खड़े चुचक मसलते हुए सुमन से हस्तमैथुन का मज़ा ले रहा था बहुत देर तक ये कार्यक्रम ऐसे ही चलता रहा..
सुमन - कब निकलेगा ग़ुगु? कब से हिला रही हूँ..
गौतम - माँ मुंह में लेके ट्राय करो ना जल्दी निकल जाएगा..
सुमन इतराते हुए - मैं मुंह नहीं लुंगी.. मुझे अजीब लगता है
गौतम - ले लो ना माँ.. कुछ नहीं होता.. आगे आपको जूस पीला दूंगा.. सब ठीक हो जाएगा..
सुमन - नहीं ग़ुगु.. हाथों से ही हिला दूंगी.. मैंने कभी मुंह में नहीं लिया.. मुझे उल्टी आती है..
गौतम - माँ हाथों से तो बहुत टाइम लग जाएगा.. कब तक हिलाती रहोगी? एक करो मैं कंडोम पहन लेता हूँ फिर मुंह में लेके निकाल दो..
सुमन शरमाते हुए - ग़ुगु नहीं ना..
गौतम - प्लीज ना माँ.. कंडोम से मान जाओ..
सुमन - कंडोम है तुम्हारे पास?
गौतम अपने बटुए से कंडोम निकालते हुए - बहुत सारे है माँ.. आपको कोनसा फ्लैवर पसंद है?
सुमन शरमाते हुए - कोई सा भी देदे..
गौतम - स्ट्रॉबेरी लेलो माँ.. ज्यादातर औरतो को वही पसंद आता है.. लो पहना दो..
सुमन कंडोम लेकर गौतम के लंड पर पहना देती है..
गौतम सुमन के सर पर हाथ रख देता है औऱ उसे लंड पर झुकाते हुए कहता है - बच्चों जैसे क्या शर्मा रही हो माँ आप भी.. चलो अब ले भी ली मुंह में.. कुछ नहीं होता..
सुमन गौतम के लंड को मुंह में भरने लगती है औऱ गौतम अपनी माँ के मुंह में लंड जाने से औऱ भी ज्यादा उत्तेजित होने लगता है..
गौतम सुमन के पर्स से एक औऱ सिगरेट निकाल कर लाइटर से सुलगा लेता है औऱ सिगरेट के कश लेटे हुए लंड चुस्ती अपनी माँ सुमन को देखने लगता है..
गौतम सुमन के सर पर दबाव डालकर - माँ थोड़ा अंदर लेकर चुसो ना.. आप तो बस मेरे लंड के टोपे को ही चूस रही हो..
सुमन गौतम के लंड को मुंह में औऱ भरकर चूसे जा रही थी औऱ अपने हाथ से गौतम के दोनों टट्टे सहला रही थी..
गौतम को तो जैसे सुमन ने अफीम खिला दी थी गौतम उतना नशे में मदहोश होने लगा था औऱ सिगरेट के कश लेता हुआ सुमन के blowjob से तृप्त होने लगा था.
सुमन ने मुंह लेकर बस 5 मिनट के अंदर ही गौतम का माल निकाल दिया.. औऱ उसके लंड से कंडोम उतार कर कंडोम के गाँठ लगाकर गाडी से बाहर फेंक दिया..
सुमन - बस हो गई तेरी इच्छा पूरी? हो गया ठंडा?
गौतम - आई लव यू सुमन..
सुमन हसते हुए - मुझे नाम से मत बुला बेशर्म..
गौतम - माँ छोटे ग़ुगु को साफ तो कर दो..
सुमन गौतम का लंड पकड़ कर अपनी साडी के पल्लू से लंड का चिपचिपापन साफ कर देती है औऱ अपनी ब्रा औऱ ब्लाउज पहनने लगती है औऱ गौतम से कहती है - अब मेरे इस छोटे ग़ुगु को अंदर तो डाल ले..
गौतम लंड अंदर करता हुआ - छोटा ग़ुगु तो नाराज़ है आपसे..
सुमन - क्यों मज़ा नहीं आया मेरे छोटे ग़ुगु को?
गौतम - मज़ा कैसे आता? अपने छोटे ग़ुगु को छाता जो पहना दिया..
सुमन गौतम कि बात पर जोर से हँसने लगी औऱ फिर गौतम से बोली - अगली बार मेरे छोटे ग़ुगु को बिना छाते के मुंह में ले लुंगी बस..
गौतम सुमन कि जांघ पर हाथ रखकर सुमन कि जांघ सहलाते हुए - माँ अपने तो मेरी आग बुझा दी.. अब मेरी बारी..
इतना कहते हुए गौतम सुमन कि साडी को ऊपर करता हुआ उसकी चुत पर हाथ लगा देता है जिससे सुमन सिसक उठती है औऱ गौतम को मना करने लगती है मगर गौतम सुमन कि बात नहीं सुनता औऱ सुमन की चड्डी के अंदर हाथ डाल कर उसकी चुत को मुठी में भर लेता औऱ मसलने लगता है..
सुमन - ग़ुगु नहीं.. छोड़ दे.. ग़ुगु.. बेटा छोड़ दे ना..
गौतम - छोड़ दूंगा माँ.. बस थोड़ी देर चुप रहो औऱ मज़े लो..
इतना कहकर गौतम सुमन की चड्डी नीचे सरका देता है औऱ उसकी चुत पर अपना मुंह लगा देता है जिससे सुमन की सिसक सिसकारियों में बदल जाती है औऱ वो गौतम के सर को पकड़ कर अब खुदसे अपनी चुत पर दबाने लगती है..
गौतम कुत्ते की तरह सुमन की चुत चाट रहा था औऱ बिना शर्म किये सुमन की चुत फैला कर अपनी जीभ अंदर तक डाल रहा था..
सुमन भी कुछ ही मिनटों में अपनी नदी बहा देती है जिसे गौतम बिना शर्म किये अपने मुंह में भरकर पी लेता है औऱ चाट चाट कर सुमन की झांटो से भारी हुई गुलाबी चुत साफ करके अपनी सीट पर आराम से बैठ जाता है..
सुमन को तो जैसे विश्वास ही नहीं हो रहा था की उसके साथ अभी अभी गौतम ने क्या किया है सुमन झड़ने के बाद इतना हल्का महसूस कर रही थी जैसे हवा मैं परिंदे महसूस करते है.. सुमन शर्म से पानी पानी हो रही थी औऱ गौतम से नज़र तक मिलाने में शर्मा रही थी उसने अपनी चड्डी वापस पहनी औऱ एक नज़र प्यार से गौतम की तरह देखा.. गौतम भी प्यार की नज़र से सुमन को ही देख रहा था..
सुमन ने अब शर्म का पर्दा हटाकर गौतम के होंठों पर चिपका अपनी झांट का एक बाल अपने हाथ से हटाकर साफ कर दिया औऱ अपनी सीट से उठकर गौतम के ऊपर चढ़ गई औऱ बिना कुछ कहे उसके मुंह से लग गई..
दोनों की जापानी चुम्मा चाटी वापस शुरू हो चुकी थी जिसे गायत्री के फ़ोन ने तोड़ा..
सुमन फ़ोन उठाकर - हाँ माँ..
गायत्री - सुमन कहा है अभी तक आई नहीं..
सुमन - बस माँ रास्ते में है..
गायत्री - कहा तक पहुंची औऱ ग़ुगु भी आ रहा है ना?
गौतम फ़ोन लेकर - आधे रास्ते आ गए नानी.. मैं भी माँ के साथ आ रहा हूँ..
गायत्री - ग़ुगु.. केसा है मेरा बच्चा? नानी से भी नाराज़ है तू? कभी बात भी नहीं करता..
गौतम - नहीं नानी.. आपसे कैसी नाराज़गी.. मैं आ रहा हूँ ज़ी भरके आपसे बात करूंगा.. ठीक है?
गायत्री - आजा मेरा बच्चा.. नानी बहुत इंतजार कर रही है तेरा..
गौतम - ठीक है नानी रखता हूँ.. फ़ोन कट हो जाता है..
सुमन - अब चल यहां से ग़ुगु..
गोतम - पहले मुझे आई लव यू बोलो..
सुमन गौतम को चूमकर - आई लव यू बेटू.. अब चल ना..
गौतम गाडी को वापस हाईवे पर चढ़ा देता है औऱ दोनों दो घंटे बाद जयपुर पहुंच जाते है जहा एक रिहायशी कॉलोनी में आ जाते है..
गौतम - क्या एड्रेस था माँ..
सुमन फ़ोन दिखा कर - ये वाला..
गौतम बाहर देखकर - जगह तो बहुत महँगी लगती है..
सुमन - हाँ.. माँ बता रही थी तेरे मामा ने बहुत महँगी जमीन ख़रीदी थी औऱ घर भी बड़ा बनवाया है..
गौतम - सही है.. देखना अब मामी कैसे हर चीज की रेट बता कर हमें जलाने की कोशिश करेंगी..
सुमन - ग़ुगु तुझे मेरी कसम जो तूने किसीको यहां उल्टा सीधा कुछ भी बोला था तो..
गौतम सुमन की जांघ पर हाथ रखकर - बेफिक्र रहो माँ.. मैं किसीसे कुछ नहीं कहने वाला..
सुमन - शायद वो वाला घर लगता है ग़ुगु..
गौतम फ़ोन में एड्रेस देखकर - वही है माँ.. चलो..
Update 16
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह - कौन? कौन है बाहर?
किशोर - बड़े बाबाजी.. मैं किशोर..
बड़े बाबाजी - किशोर.. तुम.. आज दोपहर मैं ही आ गए.. कहो कैसे आना हुआ?
किशोर - बड़े बाबाजी वो बाबाजी पूछ रहे थे कि क्या वो आपसे मिल सकते है?
बड़े बाबाजी - अचानक विरम को मुझसे क्या काम पड़ गया?
किशोर - बड़े बाबाजी सेठ धनीराम भी है बाबाजी के साथ.. आपसे मिलने कि आज्ञा चाहते है.. पूछ रहे थे जब आप उचित समझें तब वो आ जाए..
बड़े बाबाजी - किशोर विरम से बोल कि वो अभी मुझसे मिलने आ सकता है.. मैं मिलने को सज्य हूँ..
किशोर - जैसे आप कहे बड़े बाबाजी..
किशोर - बाबाजी बड़े बाबाजी ने अभी मिलने के लिए कहा है..
बाबाजी उर्फ़ विरम - किशोर तू सच कह रहा है? आज मिल सकते है हम..
किशोर - ज़ी बाबाजी.. बड़े बाबाजी ने अभी ही आपको सेठ धनीराम के साथ उपस्थित होने को कहा है..
बाबाजी उर्फ़ विरम - अच्छा तो फिर हमें बिना देरी किये यहां से गुरुदेव के पास पहुंचना चाहिए..
धनीराम - आज तो नसीब पुरे उफान पर लगता है बाबाजी.. वरना दिन हफ्ते या महीने ना जाने कितना टाइम लगता बड़े बाबाजी के दर्शन करने के लिए..
बाबाजी उर्फ़ विरम, धनिराम औऱ धनिराम के पीछे एक नौकर अपने हाथ में कई डब्बे लिए हुए चल देते है..
बाबाजी - इन डब्बो में क्या ले आये हो धनिराम...
धनिराम - इनमे शहर के सबसे नामी हलवाई के दूकान की ताज़ा बनी मिठाईया है बाबाजी.. आपके लिए जो लाया तो वो नोकर से कहकर आपकी धर्मपत्नी के पास भिजवा दी औऱ ये बड़े बाबा ज़ी के लिए है..
किशोर - मगर बड़े बाबाजी तो ताज़ा मिठाई छोडो ताज़ा दाल रोती तक नहीं खाते.. सन्यासी इतने बड़े है कि क्या बताया जाए? कल जो बना था आज खाते है औऱ आज जो बना है वो कल खाते है.. हमेशा बासी खाना ही खाते है बड़े बाबाजी..
बाबाजी उर्फ़ विरम, धनीराम औऱ किशोर बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह की कुटिया के बाहर आ जाते है..
बाबाजी उर्फ़ वीरम आवाज लगाते हुए - गुरुदेव...
अंदर से बड़े बाबाजी - आजा वीरम.. ले आ धनिराम को..
बाबाजी औऱ धनीराम कुटिया में आते हुए - प्रणाम बाबाजी.. प्रणाम गुरुदेव..
बड़े बाबाजी - कहो धनिराम.. इस बार क्या चाहते हो..
धनीराम नोकर को इशारे से मिठाई के डब्बे बड़े बाबाजी के सामने रखने के लिए कहता है औऱ नौकर धनीराम के कहे अनुसार बड़े बाबाजी के सामने मिठाई के डब्बे रख देता है जिसमे से उठती महक उस मिठाई की गुणवत्ता औऱ किस्म को उजागर कर रही होती है..
बड़े बाबाजी - मैं तो रूखी सुखी खाने का आदि हूँ धनिराम मुझे ये सब लालच क्यों दे रहा है.. तू बता तुझे क्या चाहिए?
धनिराम - बाबाजी.. आप तो जानते ही है सब.. फिर मेरा सवाल भी जानते ही होंगे तो आप ही बता दीजिये.. क्या मैं जो नया काम शुरू करने जारहा हूँ वो मेरे हित में रहेगा या मुझे नुकसान पहुचायेगा?
बड़े बाबाजी - हित तेरे धैर्य पर निर्भर है औऱ नुक्सान तेरी अधीरता पर.. अभी उचित समय की प्रतीक्षा कर धनिराम.. तेरी पुत्रवधु के गर्भ से अगले माह कन्या जन्म लेगी जिसके हाथ से तू जो भी कार्य शुरू करेगा सब फुले फलेगा.. कुछ चाहता है तो बता नहीं तो अब जा यहां से..
बड़े बाबाजी के कहने पर बाबाज़ी औऱ धनीराम कुटिया से बाहर आकर वापस पहाड़ी ओर जाने लगते है औऱ इधर बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह सामने रखी मिठाईया देखकर मुंह से लार टपकाने लगता है औऱ बाबाजी औऱ धनिराम के जाने के बाद डब्बे में से मिठाई निकालकर जल्दी से अपने मुंह में भर लेता है मगर जैसे ही बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह मिठाई अपने ने मुंह में डालता है मिठाई राख़ में बदल जाती है औऱ बड़े बाबाजी जोर जोर से थूकते हुए घड़े से पानी निकाल कर पिने लगता है औऱ अपने बगल में लेटे वैरागी के साये से कहता है..
बड़े बाबाजी - एक टुकड़ा तो खाने दे बैरागी.. कितना समय बीत गया बस बासी खाना ही खा रहा हूँ.. बहुत मन करता है कुछ स्वादिस्ट खाने का..
बैरागी - पर मैंने तो आपको कभी कुछ खाने से रोका ही नहीं हुकुम..
बड़े बाबा उर्फ़ वीरेंद्र सिंह - याद है बैरागी जब हमने एक साथ भोजन किया था.. तब तूने मुझसे क्या कहा था..
बैरागी - मुझे तो आज भी एक एक पल याद है हुकुम.. मुझे जब आपके पहरेदार उस बैठक से एक आलीशान कश में ले गए थे औऱ मैं वहा टहल रहा रहा.....
फलेशबैक शुरू
पहरेदार बैरागी को वीरेंद्र सिंह की बैठक से अपने पीछे पीछे महल के एक अलीशान कमरे में ले आता है जो काफ़ी बड़ा औऱ सुन्दर था साथ में ही पहरेदार बैरागी के लिए साफ कपडे औऱ नहाने की व्यवस्था भी कर देता औऱ बढ़ेबाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह का संदेसा सुनाते हुए बैरागी से कहता है की जागीरदार ने उसे शाम के भोजन पर आमंत्रित किया है. बैरागी को नहाने औऱ हज़ाम से अपनी हज़ामत करवाने का कहकर पहरेदार उसके कमरे के बाहर आकर दो लोगों को पहरेदारी करने के लिए लगाता है औऱ खुद वापस वीरेंद्र सिंह के बैठक की तरफ चला जाता है..
बैरागी कई हफ्तों से नहीं नहाया था औऱ आज उसके नहाने औऱ अपने बड़े बड़े बाल औऱ दाढ़ी मुछ कटवाने औऱ वीरेंद्र सिंह के भिजवाए वस्त्र पहनकर उसका रूप पहले की तरह खिल उठा था.. उसके चेहरे से उसके दर्द का अंदाजा लगा पाना मुश्किल था औऱ उसकी पीड़ा को भाँपना मुश्किल था..
बैरागी ने दिन में उसके सामने लाया गया भोजन करने से इंकार कर दिया था औऱ स्वच्छन्द भाव से अपने कमरे से बाहर आ गया औऱ महल के बाग़ की तरफ टहलने लगा..
बाग़ में खिले हुए फूल औऱ उन फूलों से उठती हुई महक बाग़ के आस पास का वातावरण को अपनी खुशबु से सराबोर कर रही थी..
बैरागी महल से बाग़ में उतरती सीढ़ियों पर बैठ गया औऱ सामने खिलते हुए फूलों का जोड़ा देखकर अपने औऱ मृदुला के साथ बिताये उन हसीन तरीन पलो को याद करने लगा जिसमे दोनों ने साथ में जीवन के उस सुख को अनुभव किया था जिसे परमात्मा ने मनुष्य को वरदान के रूप में दिया है..
बैरागी बैठा हुआ अपने अतीत के पन्ने बदल रहा था की उसके कानो में मिठास घोल देने वाली मधुर आवाज सुनाई देने लगी औऱ वो अपने अतीत से वर्तमान में आ गया.. किसी औरत के गाने की इस आवाज ने बैरागी को अपनी जगह से उठने पर मजबूर कर दिया औऱ बैरागी आवाज का पीछा करते हुए बाग़ को पार करके एक मंदिर के पास आ गया मगर मंदिर के अंदर जाने की हिम्मत उसकी नहीं हुई औऱ वो मंदिर के बाहर ही खड़ा होकर उस गाने को सुनने लगा..
औरत ने बैरागी के मंदिर तक आने के कुछ देर बाद गाना बंद कर दिया. औरत के हाथ में थाली थी जिसमे पूजा का सामान रखा हुआ था औऱ साथ में प्रसाद.. औरत ने मंदिर में खड़े लोगों को प्रसाद बाँटा औऱ अपनी सेविकाओं को साथ लेकर मंदिर से बाहर आ गई..
औरत का नाम सुजाता था जो जागीरदार वीरेंद्र सिंह
की पत्नी थी.. सुजाता ने मंदिर से बाहर आने के बाद बैरागी को बाहर खड़े देखा तो सुजाता की सेविका ने सुजाता को बैरागी के बारे मे बताते हुए कहा कि बैरागी वीरेंद्र सिंह के मेहमान है औऱ आज ही महल में अतिथि बनकर आये है..
सुजाता अपनी सेविका से ये जानकार बैरागी की औऱ बढ़ी औऱ अपने साथ से प्रसाद देने लगी औऱ बोली..
सुजाता - मंदिर के बाहर खड़े होकर क्या कर रहे हो? मंदिर के अंदर क्यों नहीं आये? सब लोगों ने भगवान के दर्शन किये एक तुम ही उनके दर्शन से वंचित रह गए..
बैरागी ने सुजाता के पहनावे औऱ भाषा की शालीनता औऱ मुख पर तेज़ देखते हुए पहचान लिया कि ये इस जागीर के मालिक वीरेंद्र सिंह की पत्नी है..
बैरागी प्रसाद लेने से मना करते हुए - माफ़ करना रानी माँ.. मैं ईश्वर की परिकल्पना में विश्वास नहीं करता इसलिए ये प्रसाद मेरे लिए केवल मिठाई मात्र ही है.. मैं इसे प्रसाद के रूप में स्वीकार नहीं कर सकता.. औऱ रही बात मेरे मंदिर के अंदर आने की है तो मैं पहले ही आपको अपने कुल गौत्र से अवगत करवा देता हूँ.. मैं एक नीच जाती मैं पैदा हुआ हूँ जिसका छुआ आप खाना भी पसंद नहीं करते..
सुजाता मुस्कुराते हुए अपने हाथों से बैरागी को प्रसाद खिला देती है औऱ कहती है - जात पात औऱ उच नीच तो समाज में रहने वाले लोगों के बनाये जाल है बेटा.. ईश्वर के सामने तो क्या राजा क्या रंक सभी सामान है.. मैंने प्रसाद समझकर दिया है तू मिठाई समझकर खा ले..
बैरागी हाथ फैलाते हुए - अगर ऐसी बात है तो एक औऱ लड्डू खिला दो रानी माँ.. कई दिन हो गए पेट में अन्न डाले.. अब तो जैसे बदन में खून सूखने लगा है..
सुजाता बैरागी के हाथ में लड्डू देते हुए - इतनी सी उम्र में ये मायूसी? कोई बात है जो दिल में चुबती है? बता दे.. बताने से मन हल्का हो जाएगा..
बैरागी लड्डू खाते हुए - अपनी पीड़ा औऱ दुख मनुष्य अगर अकेला भोग ले तो अच्छा है.. बताने से व्यथा बन जाती है जिसे सुन पाना सबके बस में नहीं होता..
सुजाता - तेरी आँखों में विराह का दुख नज़र आता है.. कोई ऐसा छोड़कर चला गया है जिसका वापस पाना संभव है.. सही कहा ना मैंने?
बैरागी - छोड़कर जाने वाले की विराह में जलना तो बहुत साधारण बात है रानी माँ.. मेरी प्रीत तो गंगा के पानी की तरह पवित्र है जो मेरे प्रियतम को हमेशा मेरे साथ रखती है.. मैं जब चाहु उससे बात करता हूँ.. उससे रूठता हूँ उसे मनाता हूँ..
सुजाता की सेविका - आपको अब महल में वापस चलना चाहिए.. हुकुम ने आपसे शीघ्र आने का आग्रह किया था..
सुजाता बैरागी से - प्रेम अंधे की आँख है बेटा.. प्रेम तो वासना को जानता भी नहीं.. प्रेम से वासना लाखों कोस दूर ही रहती है.. मैं तेरे अंदर झांककर देख सकती हूँ कि तू अपने प्रेमी से अब भी कितना प्रेम करता है..
बैरागी - प्रेम तो अविरल चलने वाली हवा का नाम है रानी माँ.. वक़्त के साथ कम ज्यादा होना प्रेम नहीं.. मेरा प्रेम मेरी मृदुला के लिए मेरे अंत तक ऐसे ही बना रहेगा.. इसे कोई भी मेरे ह्रदय से नहीं निकाल सकता..
सुजाता मुस्कुराते हुए - मृदुला.. जिसके स्वभाव में शालीनता हो.. हम्म्म.. मैं तेरी पीड़ा तो नहीं मिटा सकती.. ना ही तेरी मृदुला को ये बता सकती हूँ कि तू उससे कितना प्रेम करता है.. पर इतना जरूर कर सकती हूँ कि आज रात रात्रिभोज पर अपने हाथ से खाना पका कर खिलाऊ.. रात्रिभोज पर प्रतीक्षा रहेगी..
बैरागी - रानी माँ..
बैरागी सुजाता के रास्ते से परे हट जाता है औऱ सुजाता महल की औऱ चली जाती है उसके पीछे पीछे सुजाता की सेविकाऐ भी चली जाती है औऱ बैरागी मंदिर से वापस बाग़ की तरफ आकर बाग़ पार करते हुए महल में घूमने लगता है जहा गलती से वह कोषागार की तरफ आ जाता है औऱ उसमे प्रवेश करने वाला होता है की तभी पीछे से एक लड़का उसके कंधे पर हाथ रखकर बैरागी को पीछे खींच केता है औऱ दिवार से सटा के अपनी तलवार बैरागी के गले पर रख देता है..
लड़का - कौन है तू? और यहा क्या कर है?
बैरागी लड़के की सूरत देखकर हैरान हो गया था उसे जैसे अपनी आँखों पर यक़ीन ही नहीं हो रहा था कि वो क्या देख रहा है.. औऱ जो वो देख रहा है, वो सच है भी कि नहीं..
लड़का- बता.. वरना अभी तेरे कांधे से सर उतार लूंगा..
बैरागी मुस्कुराते हुए - साधारण सा आदमी हूँ.. दिखाई नहीं देता?
लड़का - मसखरी बंद कर नहीं तो तेरी जीवन लीला यही समाप्त हो जायेगी..
एक पहरेदार आते हुए - समर छोड़ उसे.. समर.. ये तो हमारे हुकुम के मेहमान है आज ही पधारे है.. छोड़ समर...
पहरेदार समर के हाथों की तलवार से बैरागी को बचा लेता है मगर पहरेदार के समर को पीछे धकेलने पर समर की तलवार की हलकी सी खरोच बैरागी के गले पर लग जाती है जिससे बैरागी के गले से खून की एक बून्द निकल पडती है.. पहरेदार बैरागी को वहा से बाहर ले जाता है मगर समर जैसे वही जम जाता है.. समर चाहकर भी अपनी जगह से नहीं हिल पाता औऱ अचरज से इधर उधर देखने लगता है, उसके आस पास कोई नहीं था मगर उसे महसूस हो रहा था जैसे कोई उसके सर पर मंडरा रहा है.. समर ने फिर से अपनी तलवार मजबूत पकड़ ली औऱ अपनी पूरी ताकत से अपनी जगह से हिलते हुए पीछे घूम गया जहा उसे एक परछाई दिखी.. समर ने आगे बढ़कर परछाई के पास जाने की कोशिश की मगर समर ने जैसे ही उस परछाई के पास जाने के लिए पहला कदम बढ़ाया एक हवा का झोंखा समर को पीछे उड़ा के ले गया औऱ समर दिवार से टकरा गया जिससे उसके सर से हल्का सा खून निकलने लगा..
परछाई समर के करीब आने लगी औऱ समर भी अपने आप को सँभालते हुए फिर से खड़ा होने लगा मगर इस बार परछाई में समर को एक लड़की की छवि दिखी औऱ उसके हाथों की तलवार उठने की जगह अपनेआप नीचे झुक गई.. समर ने गौर से उस छवि को देखा तो उसे उस छवि में अपना ही अक्स दिखाई दिया.. बिलकुल उसीके जैसे नयन नक्श औऱ चेहरा परछाई की छवि में समर को दिखा.. परछाई ने आगे बढ़कर जैसे समर को जान से मारने की नियत से प्रहार करना चाहा बैरागी वापस आते हुए समर का हाथ पकड़ कर समर को उसकी जगह से खींच लेता है औऱ परछाई का वार बेकार हो जाता है..
इससे पहले की परछाई अपना दूसरा वार करती बैरागी परछाई के पास जाता है औऱ उसे अपने गले से लगाकर अपने आप में समाहित कर लेता है औऱ वो परछाई लुप्त हो जाती है..
समर अभी तक उस परछाई की सूरत में ही अटका हुआ था उसे अपने सामने हो रही किसी भी चीज का कोई होश नहीं था.. उसने अभी अभी कुछ ऐसा देखा था जो देखना किसी भी आम इंसान के लिए संभव नहीं था उसके सामने एक परछाई थी जिसने लगभग उसके प्राण ले ही लिए थे. मगर एन मोके पर बैरागी ने आकर उसके प्राण बचा लिए..
बैरागी परछाई को अपने आप में समाकर वापस समर के करीब आ जाता है औऱ उसे सहारा देते हुए उठा कर वहा से बाहर ले आता है जहा दूसरे पहरेदार समर को देखते ही उसे एक जगह बैठा देते है.. बैरागी समर के सर पर गली चोट को देखते हुए उसका उपचार करने लगता है तभी उसे समर की गर्दन पर वैसा ही तिल नज़र आता है जैसा उसने प्रेम प्रसंग के समय मृदुला की गर्दन पर देखा था.. बैरागी कै मन में उसी तरह कई प्रश्न घूम रहे थे जैसे समर के मन में घूम रहे थे दोनों को ही अपने सवाल के जवाब नहीं मिले.. बैरागी सोच रहा था क्यों समर की शकल सूरत मृदुला से इतनी मेल खाती है औऱ उसके गर्दन पर वो तिल के निशान जो मृदुला के भी थे कैसे बने हुए है? बैरागी ने समर का उपचार कर दिया औऱ वहां से चला गया समर भी अपनी जगह बैठा रहा औऱ बैरागी कब वहा से गया उसे पता ही नहीं चला..
बैरागी अपने कमरे में था की एक पहरेदार ने उसके कमरे के दरवाजे पर दस्तक देते हुए रात्रिभोज के लिए साथ आने का कहा.. जिसपर बैरागी उस पहरेदार के साथ साथ होकर चल दिया.. पहरेदार उसे लेकर जागीरदार के निवास स्थान पर ले आया जहा एक बड़े से कमरे में जागीरदार वीरेंद्र सिंह सामने की तरफ एक बड़े से आसान पर बैठा हुआ था..
वीरेंद्र सिंह - आओ बैरागी बैठो..
वीरेंद्र सिंह ने वैरागी को अपने सामने कुछ दूर नीचे जमीन पर बिछी चटाई पर बैठने को कहा जहा चौकी पर खाली खाने की थाली रखी हुई थी..
बैरागी उस थाली के सामने बैठ जाता है तभी वीरेंद्र सिंह पहरेदार को कुछ इशारा करता है औऱ पहरेदार समर को उस बड़े से कमरे में ले आता है.. समर के हाथ में बेड़िया थी औऱ उससे उसकी तलवार भी छीन ली गई थी..
वीरेंद्र सिंह - कोषागार में इस पहरेदार ने तुम्हारे साथ जो किया उसकी सुचना हमे मिल चुकी है.. तुम्हारा दोषी तुम्हारे सामने है बैरागी जो सजा इसे देना चाहो दे सकते हो.. चाहो तो इसकी तलवार से इसका सर अलग कर दो..
बैरागी अपनी जगह से खड़ा हो कर समर के करीब जाता है औऱ वीरेंद्र सिंह से कहता है..
बैरागी - मेरे साथ जो हुआ वो मेरी भूल का परिणाम था हुकुम.. मगर ये तो अपना कर्तव्य का निर्वाहन कर रहा था.. इसे इस तरह बाँध कर लाना तो आपका न्याय नहीं हो सकता..
सुजाता कमरे में प्रवेश करते हुए - बिलकुल सही कहा तुमने.. जिसका सम्मान होना चाहिए उसका अपमान करना उचित नहीं..
समर औऱ बैरागी झुककर प्रणाम करते हुए - रानी माँ..
वीरेंद्र सिंह - मगर इसने हमारे अतिथि के गले पर अपनी तलवार रखी है.. सजा तो इसे मिलनी ही चाहिए..
सुजाता समर के हाथों की बेड़िया खोलती हुई - अतिथि अगर वर्जित जगह पर प्रवेश करें तो पहरेदार का कर्तव्य है उस अतिथि को सही रास्ता दिखाए.. इससे जो कुछ हुआ वो भूलवश हुआ अगर इसे पता होता की ये आपका अतिथि है तो कभी ऐसी भूल नहीं करता..
बैरागी - रानी माँ.. सत्य कहती है हुकुम.. समर से जो कुछ हुआ वो उसके अज्ञान औऱ मेरी भूल के कारण हुआ.. जिसका फल हम दोनों को मिल चूका है.. इस तरह इसे सजा देना न्यायसंगत कैसे हो सकता है?
वीरेंद्र सिंह - अज्ञान में ही सही मगर इस लड़के ने हमारे अतिथि पर तलवार उठाई है कुछ तो सजा इसे मिलनी ही चाहिए..
सुजाता - आपके अतिथि के अपमान की सजा, हम इस लड़के को देते है.. आज ये लड़का कोषागार की पहरेदारी से हटाकर महल के उस हिस्से की पहरेदारी करेगा जहा हम निवास करते है.. अब से ये हमारी रक्षा करेगा..
वीरेंद्र सिंह - ये तो कोई सजा नहीं हुई..
सुजाता अपने साथ आई सेविकाओ को खाना परोसने का इशारा करते हुए - एक योद्धा से उसकी जगह छीन लेना उसकी जान लेने से ज्यादा कहीं बड़ी सजा है.. आप तो अच्छे से जानते है.. अब भोजन करिये..
वीरेंद्र सिंह आगे कोई औऱ बात नहीं करता औऱ सेविकाओं के द्वारा परोसा गया भोजन बैरागी को खाने के लिए बोलकर स्वम भी खाने लगता है..
सुजाता समर को उसकी तलवार लोटा देती है औऱ समर सुजाता के पीछे पीछे उस कमरे से बाहर आ जाता है औऱ थोड़ा दूर सुजाता के पीछे चल कर सुजाता से कहता है..
समर - मेरी जान बचाने के लिए धन्यवाद रानी माँ...
सुजाता मुस्कुराते हुए - इसमें धन्यवाद केसा? तू अपना कर्तव्य का पालन कर रहा था.. तेरी जान लेना जागीरदार का पाप होता औऱ मैं कैसे ये पाप होने दे सकती थी..
वीरेंद्र सिंह - तुम्हारे सामने खाने की कितनी ही स्वादिस्ट वस्तुए पड़ी है बैरागी.. मगर तुम हो की बस ये साधारण सी चीज खाये जा रहे हो..
बैरागी - मेरा भोजन तो मेरे प्रियतम के बिना अधूरा है हुकुम.. मेरे भोजन करने का उद्देश्य मात्र इतना की मैं अपने शारीर को तब तक जिन्दा रख सकूँ जब तक मुझे वो नहीं मिल जाता जिसे में खोज रहा हूँ.. मेरे लिए इन सब व्यंजनो का कोई महत्त्व नहीं..
वीरेंद्र सिंह - जैसा तुम चाहो बैरागी.. कल मैं तुम्हे कुछ ऐसा दिखाऊंगा जिसकी तुम्हे तलाश है.. मगर अभी मुझे भोजन का स्वाद लेने की इच्छा है.. इस तरह का स्वादिस्ट भोजन सबके भाग्य में नहीं...
बैरागी - सही कहा आपने हुकुम ऐसा भोजन सबके भाग्य में कहा.. आप आराम से भोजन करिये.. आगे भविष्य के घर्भ में क्या छीपा है किसको पता?
फ़्लैशबैक ख़त्म
भविष्य के गर्भ में क्या छीपा है किसीको क्या पता...
बड़े बाबाजी उफ़ वीरेंद्र सिंह - सही कहा था तूने बैरागी.. मुझे कहा पता था कि भविष्य ने मेरे लिए अपने गर्भ में क्या छीपा रखा था.. रोज़ पचासो तरह के व्यंजन खाने का अभ्यास मैं साधारण खाने के एक निवाले को भी तरस जाऊँगा.. रोज़ बासी खाना खाते हुए सैकड़ो साल बीत गए मगर मेरी ये सजा है की ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेती.. मृत्यु मोक्ष लगने लगी है वैरागी..
बैरागी - अगर आपने वो जदिबूती नहीं खाई होती तो मैं ही आपको मुक्ति दे देता हुकुम.. मुझसे भी आपकी ये दशा नहीं देखी जाती.. आपके साथ ही मेरी मुक्ति भी जुडी हुई है.. मैं भी कब से आपके साथ आपकी परछाई बनकर रहता आया हूँ..
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह - एक बात सच बताऊ बैरागी.. उस दिन जब तू मेरे सामने चटाई पर बैठकर सारा भोजन छोड़कर सिर्फ सादा खाना खाने लगा था तब मैंने सोचा था कि तू बस कुछ दिन ही अपनी पत्नी का शोक मनायेगा औऱ आनंद से जीवन बिताएगा.. मगर तु तो आज साढ़े तीन सो साल बीत जाने के बाद भी अपनी पत्नी को ऐसे याद करता है जैसे तेरी विराह अभी शुरू हुई हो.. तेरे गीत सुनकर तो मुझे भी सुजाता की याद आने लगती है.. कितना उज्वल प्रकाश से भरा हुआ चेहरा था उसका..
बैरागी - सही कहा आपने हुकुम.. रानी माँ की करुणा सब पर बनी हुई थी.. आपके लिए उन्होंने अपने प्राण तक दे दिए..
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह - उसी बात का तो मुझे अब भी दुख है बैरागी.. काश उसदिन मेरे ही प्राण चले गए होते..
बैरागी - बार बार उस पाल को याद करके क्यों उदास हो रहे हो हुकुम.. चलिए जंगल में चलते है.. खुली हवा में सांस लोगे तो अच्छा लगेगा..
Update 17
गौतम की सुबह जब आँख खुली तो उसके सामने सुमन का चेहरा था, सुमन बिस्तर के किनारे बैठी हुई प्यार से गौतम को जगा रही थी. सुमन के जागने से ही गौतम की आंख खुली और उसने सामने अपनी मां के खूबसूरत चेहरे को दिखा. सुमन अपने साथ चाय का कप लाई थी जो उसने बेड के ऊपर की तरफ किनारे पर रख दिया था गौतम ने सुमन को देखते ही अपनी तरफ खींच लिया और बाहों में भर के सुमन को चूमने लगा.. सुमन प्यार से गौतम को अपने होठों का जाम पिलाकर बोली..
सुमन - उठ जा मेरे शहजादे.. संडे है तो क्या पूरा दिन सोता ही रहेगा? चल जा कर नहा ले..
गौतम - माँ आज चले टेटू बनवाने? छूटी का दिन है..
सुमन - ठीक है जैसा तू कहे मेरे शहजादे..
गौतम बिस्तर से उठ खड़ा होता है और चाय का कप हाथ में लेते हुए चाय की चुस्कियां लेते हुए सुमन को देखने लगता है जो वापस रसोई की तरफ जाकर अपने काम में लग जाती है. गौतम सुमन को ऊपर से नीचे तक कई बार देखता है और उसके बदन को निहारने लगता है गौतम को सुमन के ऊपर पूरी तरह से काम भाव पैदा हो रहा था जिसे वह खुद बखूबी की जानता था..
सुमन के बदन के उतार चढ़ाव बहुत ऊंचे नीचे थे जिससे उसकी सुंदरता में चार चांद लगते थे
गौतम उसीके जाल में फसता चला जा रहा था औऱ अब गौतम सुमन पर पूरी तरह से लड्डू था.. चाय पीने के बाद गौतम बाथरूम चला गया और नहाने लगा, नहाने के बाद गौतम ने कपड़े पहन लिए जो सुमन अभी-अभी निकल कर बिस्तर पर रख गई थी.
गौतम - माँ चले?
सुमन - पहले कुछ खा तो ले ग़ुगु..
गौतम - क्या बनाया है?
सुमन - तेरी मन पसंद बिरयानी..
गौतम - शकल दिखाओ जरा अपनी.. आप तो नॉनवेज छूना भी पसंद नहीं करती थी.. औऱ अब खाने के साथ बनने भी लगी हो..
सुमन - मेरे ग़ुगु के लिए तो मैं कुछ भी कर सकती हूँ..
गौतम - तो फिर खिला भी दो अपने हाथो से..
गौतम और सुमन ने खाना खाया और फिर दोनों ही घर को ताला मार कर घर से बाहर आ गए.. गौतम ने बाइक स्टार्ट की और सुमन उसके पीछे बैठ गई. सुमन बार-बार गौतम से कह रही थी कि टैटू में फालतू ज्यादा पैसे लग जाएंगे लेकिन गौतम बार-बार सुमन को समझा रहा था कि वह चिंता ना करें गौतम सब संभाल लेगा..
शहर की पुरानी गलियों से गुजरते हुए गौतम सुमन को एक वीराने से मकान के सामने ले आया जहां आसपास छोटी-छोटी गलियां गुजर रही थी और निकलने की कम ही जगह बची थी जगह को देखने से ऐसा लगता था जैसे यह जगह शहर से बिल्कुल इतर एक अलग ही दुनिया है पुराना शहर है जिसका अस्तित्व आप धीरे-धीरे खत्म होता जा रहा है.
सुमन - ग़ुगु कहा ले आया.. यहां कोनसी टेटू की दूकान है..
गौतम - माँ यार आप कितने सवाल करती हो.. चलो ना मेरे साथ.. सब पता चल जाएगा.. मैंने एक पुराने दोस्त से बात की थी उसने यहाँ का पता दिया है.. आप आओ मेरे साथ..
गौतम सुमन को लेकर उस मकान के अंदर दाखिल हो जाता है और सीढ़ियां चढ़ता हुआ ऊपर एक दरवाज के बाहर आकर, दरवाजे पर नॉक करता है..
गौतम के दरवाजा बजाने पर अंदर से एक आदमी निकाल कर दरवाजा खोलता है और सामने सुमन और गौतम को देखकर पूछता है कि उनको क्या काम है? आदमी के सवाल के जवाब में गौतम अपनी बात कहता हुआ बोलता है कि उसे टैटू बनवाना है और उसे किसी ने यहां का एड्रेस दिया था.. क्या उसका नाम अनवर है? आदमी हाँ में सर हिलता हुआ दोनों को कमरे के अंदर आने के लिए कहता है. कमरे में दाखिल होते ही गौतम और सुमन दोनों कमरे को देखकर हैरान हो जाते है.
साधारण से दिखने वाली इस जगह पर अनवर कमरे में टैटू बनाने का पूरा कारखाना खोले हुए था. अनवर की उम्र करीब 32 साल की लगभग थी और वह टैटू बनाने में एक्सपर्ट आदमी था.
अनवर - ज़ी किसे बनवाना है टेटू?
गौतम - मेरी माँ को बनवाना है..
अनवर हैरानी से सुमन को देखकर - केसा टैटू बनाना है भाभी ज़ी?
गौतम फ़ोन से एक पिक दिखाते हुए - ये वाला..
अनवर - ठीक है भाभी ज़ी आप यहां लेट जाइये मैं तैयारी करता हूँ.. हाथ पर ही बनवाना है ना..
गौतम - हाथ पर नहीं.. बूब्स पर बनवाना है..
अनवर एक पल के लिए शॉक हुआ मगर फिर बोला -
ठीक है... भाभी ज़ी आप यहां लेट जाओ आकर..
सुमन अनवर के कहे अनुसार उसकी बताई हुई जगह लेट जाती है और अनवर टैटू बनाने की तैयारी करने लगता है.. फिर सुमन के दाई औऱ आकर एक राउंड चेयर ओर बैठ जाता है वही गौतम बाई औऱ खड़ा रहता है..
अनवर - भाभी ज़ी ये साड़ी हटा दो..
गौतम सुमन का पल्लू हटाकर - ब्लाउज उतार दो माँ..
टेटू बनाने में आसानी रहेगी.
सुमन अनवर के सामने थोड़ा झिझकते हुए - बटन खोलके काम नहीं चलेगा?
अनवर - चल जाएगा भाभी पर बूब्स पर टेटू के लिए ब्लाउज को पूरा ओपन करना पड़ेगा.
गौतम सुमन के ब्लाउज के बटन खोलते हुए - मैं खोल देता हूँ माँ.. आप लेटी रहो.. गोतम सुमन का ब्लाउज उतार देता है औऱ सुमन कमर से ऊपर सिर्फ ब्रा में आ जाती है. सुमन को अनवर के सामने शर्म आ रही थी मगर गौतम पूरा बेशर्म बना हुआ था.
अनवर बूब्स को हल्का सा छूकर - यहां बनाना है?
गौतम - नहीं अनवर भाई.
अनवर - तो कहा?
गौतम सुमन की ब्रा को ऊपर खिसका कर उसके दोनों बूब्स आजाद कर देता है औऱ एक बूब्स के चुचक पकड़कर अनवर से कहता है - निप्पल्स के बगल में इस तरफ. सुमन गौतम की हरकत पर शर्म से आधी हो जाती है मगर उसे कुछ बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाती.
अनवर भी खुलने लगता है औऱ सुमन के बूब्स को बेझिझक पकड़ कर गौतम की बताई जगह पर टेटू बनाने लगता है.
गौतम सिगरेट पिने कमरे से बाहर आ जाता है वही अनवर सुमन के बूब्स के पुरे मज़े लेकर उसपर टैटू बनाने लगता है. सुमन अनवर की हरकत पहचान रही थी औऱ शर्म के कारण अनवर से कुछ भी नहीं बोल रही थी.. अनवर टैटू बनाने के बहाने सुमन के निप्पल्स को बार बार पकड़कर मसालार मरोड़ रहा था जिससे सुमन हलकी सी सिसक पडती थी.. अनवर का लंड औऱ सुमन के निप्पल्स दोनों कड़क होकर खड़े हो चुके थे.. गौतम बाहर खड़ा होकर सिगरेट के कश लगा रहा था औऱ अंदर अनवर बिना शर्म किया सुमन के बूब्स दबा रहा था औऱ टेटू बनाते हुए सुमन के मज़े ले रहा था.. अनवर ने सुमन से अब बात करना शुरू कर दिया था..
अनवर - भाभी ज़ी बूब्स तो बहुत टाइट है आपके. जिम जाती होंगी..
सुमन - नहीं.. बस घर का काम ही करती हूँ..
अनवर - भाभी ज़ी एक टेटू नीचे भी बनवा लो..
सुमन - नीचे फिर कभी बनवा लुंगी आप अभी यही बना दो..
अनवर ऐसे ही सुमन के मज़े लेटे हुए टेटू बनाता है औऱ सुमन के बूब्स पर टेटू बन जाता है, गौतम जब अनवर को टेटू के पैसे देता है तो अनवर टेटू के पैसे लेने से मना कर देता है फिर गौतम सुमन के साथ वहा से वापस आने के लिए निकल पड़ता है.
वापस आते हुए रास्ते में गौतम गाड़ी को एक ठेके के सामने रोकता है और सुमन ठेके के सामने गाड़ी रूकती देखकर सुमन गौतम से पूछता है कि उसने गाड़ी क्यों रोक है तो गौतम सुमन को ठेके की तरफ इशारा करते हुए कहता है कि एक बॉटल लेते हुए घर चलते हैं, इस पर सुमन गौतम को गुस्से की नजरों से देखती है मगर गौतम सुमन को प्यार से कहता है कि उसने कई बार सुमन और रूपा को एकसाथ शराब पीते हुए देखा है और सुमन उसके सामने भी शराब पी सकती है उसे कोई परेशानी है. सुमन गौतम की बातों से लरज जाती है औऱ कुछ नहीं बोलती वही गौतम ठेके से ब्लैक डॉग शराब की एक बोतल ले आता है औऱ फिर सुमन के हाथों पकड़ा कर बाइक स्टार्ट करते हुए घर आ जाता है.
गौतम - माँ यार चाय बना दो.
सुमन शराब की बोतल को रसोई में ऊपर छिपा कर रख देती है औऱ चाय बनाने लगती है तभी उसके फ़ोन ओर फ़ोन आता है..
सुमन फ़ोन उठाकर - हेलो
गौतम - माँ किसका फ़ोन है?
सुमन - संजू मामा (45) का.. सुमन बात करती हुई.. हाँ भईया..
संजू मामा उर्फ़ संजय - सुमन तू कल सुबह तक आ जायेगी ना?
सुमन - कल सुबह तक? भईया कल सुबह तक तो नहीं आ पाऊँगी..
संजय - सुमन तू तो जानती है शादी का घर है कितना काम होता है अगर लड़की (ऋतू 25) की बुआ भी एक हफ्ता पहले नहीं आएगी तो फिर काम कैसे होगा? औऱ कौन जिम्मेदारियां संभालेगा? तेरी भाभी का तुझे पता ही है..
सुमन - भईया मैं कोशिश करूंगी जल्दी आने की..
संजय - कोशिश नहीं सुमन आना है. ले माँ से बात कर..
गायत्री (62) - हेलो सुमन..
सुमन - कैसी हो माँ?
गायत्री - मैं ठीक हूँ बेटी तू कैसी है औऱ ग़ुगु केसा है?
सुमन - हम दोनों ही अच्छे माँ..
गायत्री - बेटी तू जल्दी आजा.. कितना टाइम हो गया तुझे देखे..
सुमन - माँ मैं तो आ जाऊ पर ग़ुगु का यहां कौन ख्याल रखेगा?
गायत्री - अरे तो ग़ुगु वहा क्यों छोड़ना है उसे लेके आ ना..
सुमन - माँ आप जानती तो हो उसे.. कितना ज़िद्दी है.. 6 साल हो गए तब तक पुरानी बात नहीं भुला.. अभी भी अपनी दीदी औऱ मामी से नाराज़ है..
गायत्री - बेटी तू समझा ना उसे. देख तू नहीं आएगी तो कितना सुना लगेगा घर..
सुमन - मैं तो कब से समझा रही हूँ माँ पर ग़ुगु समझता ही नहीं.. बस पहले की बात को दिल से लगाके बैठा है.. कहता है वापस चेहरा तक नहीं देखा किसीका..
गायत्री - सुमन बेटी तू कैसे भी करके ग़ुगु को ले आ बस.. शादी बार बार नहीं होती औऱ वो कब तक अपनी मामी औऱ दीदी से नाराज़ रहेगा? चेतन (26) औऱ आरती (24) की शादी मैं भी नहीं आया था ग़ुगु..
सुमन - मैं देखती हूँ माँ..
गायत्री - सुमन मैं कुछ नहीं जानती कल सुबह अगर तू नहीं आई तो मैं फिर तुझसे बात नहीं करुँगी..
सुमन - ठीक है माँ.. मैं मनाती हूँ ग़ुगु को.. फ़ोन कट जाता है..
गौतम - माँ आप चली जाओ मैं रह लूंगा अकेला.. मेरी चिंता मत करो..
सुमन - तू जब तक मेरे साथ नहीं चलेगा मैं कहीं नहीं जाने वाली समझा..
गौतम - माँ आप जानती हो मुझे उन लोगों की शकल तक नहीं देखनी..
सुमन - बेटा कितनी पुरानी बात है तू भूल क्यों नहीं जाता? आखिर तेरी मामी औऱ दीदी ने ही तो तुझे डांटा था.. कोई पराया तो नहीं था..
गौतम - चोरी का नाम लगाकर, क्या कुछ नहीं बोला था उन दोनों ने मुझे.. आप वहा होती तो क्या सहती ये सब? बहुत घमंड है उन लोगों को अपनी रइसी पर, उनको उनके घमंड में रहने दो.. मैं तो नहीं जाने वाला..
सुमन - मगर बेटा पर उस दिन मामी औऱ दीदी ने तुझसे माफ़ी भी तो मांगी थी..
गौतम - हाँ जब उनको पर्स औऱ सामान उनके पास ही मिल गया था तब मांगी थी.. वो भी कितनी आसानी सॉरी बोलकर खिसक गई थी.. कितना रोब झड़ती है मामी अपनी रइसी का.. जाते ही वापस अपने गहने औऱ कपडे की कीमत बताकर निचा दिखाने लगेगी.. मैं नहीं जाने वाला माँ..
सुमन - छः साल हो गए उस बात को ग़ुगु.. अगर तू सुबह मेरे साथ नहीं चला तो मैं तुझसे रूठ जाउंगी..
गौतम मुस्कुराते हुए - आप औऱ मुझसे रूठ जाओगी? ठीक है रूठ जाओ..
सुमन - ग़ुगु चल ना.. मुझे भी 2 साल हो गए भईया और माँ से मिले.. आखिरी बार चेतन औऱ आरती की शादी में मिली थी.. मेरे लिए इतना नहीं कर सकता.. अब क्या मैं हाथ जोड़कर तुझसे कहु?
गौतम - माँ क्यों मुझे वहां ले जाना चाहती हो.. मेरा मन नहीं है.. आप चली जाओ ना..
सुमन मुंह बनाकर - ठीक है मैं भी नहीं जाती.. तुझे नहीं माननी ना मेरी बात तो ठीक है.. मैं वैसे भी कोनसी तेरे लिए जरुरी हूँ जो तू मेरी बात मानेगा..
गौतम सुमन की बात सुनकर उसे बाहों में भरते हुए - अच्छा ठीक है मेरी माँ.. आप ना बहुत नाटक करने लगी हो..
सुमन गौतम का चेहरा चूमकर - सब तुझ से ही सीखा है मेरे दिल के टुकड़े.. चल पैकिंग कर ले सुबह जल्दी जाना है..
गौतम - आराम से कर लेना माँ.. छोटा सा ही तो रास्ता है.. अजमेर से जयपुर कोनसा दूर है?
सुमन - तेरे कपडे मैं पैक करुँगी.. वरना तू कुछ भी, जो मिलेगा वो पैक कर लेगा..
गौतम - कर लो.. पर पहले चाय तो पीला दो.. कब से उबाल मार रही है..
सुमन चाय कप में डाल कर गौतम को दे देती है..
सुमन - लो मेरे गौतम ज़ी आपकी चाय..
गौतम - थैंक्यू सुमन..
सुमन - बेशर्म नाम से बुलाता है अपनी माँ को..
गौतम चाय पीते हुए - आपने भी तो नाम से बुलाया..
सुमन - बहुत बातें बनाना सिख गया है.. चल मैं पैकिंग करती हूँ फिर खाना भी बनाना है..
सुमन पैकिंग पूरी कर लेती है और उसके बाद खाना बनाकर गौतम के साथ खाना खा लेती है और रात को गौतम के साथ इस तरह जिस तरह वह पहले कुछ राते सो रही थी सोने लगती है.. गौतम सुमन आज भी कमर से ऊपर पूरी तरह निर्वास्त्र होकर एकदूसरे के साथ लिपटे हुए लेटे थे.. सुमन बच्चों की तरह गौतम के सीने पर लेटी हुई थी उसे नींद आ चुकी थी औऱ नींद की गहरी खाई में उतर चुकी थी मगर गौतम की आँखों में नींद का कोई अक्स नहीं था वो सुमन की जुल्फ संवारता हुआ सुमन का चेहरा देखे जा रहा जैसे जोहरी हिरे को देखता है..
सुमन का फ़ोन बजा तो गौतम ने सुमन को जगाने की कोशिश की मगर सुमन गहरी नींद में थी गौतम ने उसे जगाने की ज्यादा कोशिश नहीं की औऱ सुमन का फ़ोन उठा के देखा जिसमे रूपा का फ़ोन आ रहा था..
गौतम फ़ोन उठाकर - हेलो..
रूपा - कैसे हो मेरे नन्हे शैतान..
गौतम - वैसा ही जैसा आपने कल देखा था..
रूपा - आज क्यों नहीं आये मिलने.. औऱ दीदी कहा बिजी है?
गौतम - माँ तो सो गई.. औऱ आज थोड़ा बिजी था..
रूपा - अभी तो सिर्फ 10 ही बजे है.. दीदी को अभी नींद आ गई..
गौतम - हाँ वो कल मामा के यहां जाना है शादी में.. आपको तो बताया होगा माँ ने..
रूपा - पर तू तो नहीं जाने वाला था ना ग़ुगु..
सुमन - मैं तो अब भी नहीं जाना चाहता मम्मी.. पर माँ ने अपनी कसम दे रखी है.. कैसे मना करू?
रूपा - शादी एक हफ्ते बाद है ना..
सुमन - हाँ.. आप भी चलो ना.. साथ में मज़ा आएगा..
रूपा - नहीं ग़ुगु.. मैं नहीं आ सकती.. तुम जाओ औऱ खूब मज़े करना, औऱ दीदी से कहना तुम्हारा ख्याल रखे..
गौतम - माँ को ये कहने की जरुरत है? वो तो हमेशा मेरा ख्याल रखती है.. पापा के जाने के बाद तो औऱ भी ज्यादा..
रूपा - हम्म.. बताया था दीदी ने.. ग़ुगु तुम दीदी से कहो ना यहां आकर मेरे साथ रहने के लिए.. मैं कल से समझा रही हूँ पर वो है की मानने को त्यार नहीं..
गौतम - पर..
रूपा - क्या पर.. हम्म? मैंने कहा था तुम्हे मुझे अपना मानो.. पर लगता है तुम भी मुझे पराया समझते हो..
गौतम - ठीक है मम्मी.. मैं बात करूंगा माँ से इस बारे में.. औऱ उन्हें राजी करूंगा आपके साथ रहने के लिए..
रूपा - ग़ुगु..
गौतम - हाँ..
रूपा - याद आ रही है तुम्हारी..
गौतम - आपने ही मना किया था..
रूपा - हाँ वो बाबाजी ने कहा है दूर रहने के लिए..
गौतम - अब इसमें मेरी क्या गलती? मैं आपके लिए हमेशा तैयार हूँ..
रूपा - अच्छा.. सुबह कितनी बजे निकलोगे?
गौतम - 8 बजे वाली बस से..
रूपा - बस से क्यों?
गौतम - इतनी दूर बाइक चलाने में मुझे नींद आती है..
रूपा - तो मुझे कहना था ना ग़ुगु.. मैं कल सुबह घर पर कार भिजवा दूंगी.. उसे लेकर चले जाना..
गौतम - पर आपके पास कार कहा है?
रूपा - तू अभी अपनी मम्मी को ठीक से जानता नहीं है मेरे नन्हे शैतान..
गौतम - अच्छा ज़ी.. ऐसी बात है? फिर तो कोशिश करूँगा जल्दी जान जाऊ..
रूपा - मन कर रहा है तुझे फ़ोन में घुस कर अपने गले से लगा लू.. बहुत याद आ रही है तेरी..
गौतम - मुझे भी..
रूपा - चल अब रखती हूँ.. तू भी सोजा..
गौतम - गुडनाइट मम्मी...
रूपा - गुडनाईट मेरे नन्हे शैतान..
सुबह हो चुकी थी औऱ सुमन नहाने के बाद काले पेटीकोट औऱ ब्लाउज को पहनकर रसोई में चाय बना रही थी उसके बाल गीले थे जिसे उसने तौलिये से बाँधा हुआ था उसे देखने से लगता था वो अभी अभी नहा के आई है औऱ चाय बनाने लगी है.. गौतम भी अभी अभी बाथरूम से नहाके निकलकर अपने कपडे पहन चूका था.. गौतम रसोई में आकर पीछे से सुमन को अपनी बाहों में भरते हुए सुमन की गर्दन चुम लेता है कहता है..
गौतम - गुडमॉर्निंग माँ..
सुमन - गुडमॉर्निंग मेरे बच्चा.. क्या बात है आज तो जगाने बिना ही उठ गया तू.. औऱ नहा भी लिया..
गौतम - आप कहो तो वापस सो जाता हूँ..
सुमन - कोई जरुरत नहीं है.. मैंने तेरा बैग पैक दिया है कुछ औऱ चीज लेनी हो तो तू अभी रख ले.. बाद में तू मत बोलना.. आपने ये तो पैक ही नहीं किया.
गौतम - नहीं बोलूंगा.. अच्छा रात को आपकी रूपा रानी का massage फ़ोन आया था..
सुमन - ग़ुगु वो भी तेरी माँ जैसी है.. रेस्पेक्ट से नाम लिया कर उनका बेटू..
गौतम - इतना प्यार से नाम ले रहा हूँ.. रूपा.. रानी.. औऱ कितनी रेस्पेक्ट करू उनकी.. वैसे एक बात बोलू.. मुझे बहुत सेक्सी लगती है आपकी रूपा रानी.. कहो तो बहु बनाके ले आउ आपकी रूपा को..
सुमन गौतम के कान पकड़ते हुए - देख रही हूँ बहुत बदमाश हो रहा है तू.. तुझे बस बड़ी औरत ही पसंद आती है, है ना? वैसे क्या कह रही थी रूपा?
गौतम अपना कान छुड़वाते हुए - आई लव यू बोल रही थी मुझे.. कह रही थी मेरी याद आती है उनको.. नींद भी नहीं आती मेरे बिना..
सुमन - तूने आज मार खाने का इरादा कर लिया है क्या?
गौतम - मज़ाक़ कर रहा था माँ.. रूपा आंटी गाडी भिजवा रही है.. बोल रही थी बस से मत जाना..
सुमन - तूने मना नहीं किया रूपा को? औऱ तुझे कार चलाना आता है?
गौतम - मना किया था पर वो मानी नहीं, बोली.. अगर मुझे अपना समझते हो तो मना मत करना.. औऱ आप तो जानती हो मैं रूपा आंटी को कितना अपना समझता हूँ.. औऱ माँ कार क्या आपका ग़ुगु ट्रक भी चला सकता है..
सुमन - हम्म.. सब पता है मुझे.. तू किसको क्या समझता है.. ले चाय पिले मैं साडी पहन लेती हूँ..
गौतम - माँ कोई अच्छी साडी पहना..
सुमन - चल ही बता दे क्या पहनू..
गौतम - मैरून अच्छा लगेगा आप पर..
सुमन - मैरून कलर की साडी पहन लेती हूँ.. बस..
गौतम चाय की चुस्कीया लेने लगता है और कुछ औऱ चीज़े अपने बेग में डाल लेता है.. सुमन अंदर जाकर साड़ी पहन लेती है, इतने में कोई आदमी बाहर दरवाजे पर बेल बजाता है और गौतम बाहर जाकर देखता है तो एक आदमी उसे कार की चाबी दे देता है औऱ चला जाता है.. गौतम देखता है की रूपा ने वाइट कलर स्विफ्ट कार भिजवाई है.. वो चाबी लेकर अंदर आ जाता है औऱ सुमन ने जो बेग पैक किये थे उन्हें कार में रख देता है..
गौतम - माँ कितना टाइम लगेगा? साडी पहन रही हो या बना रही हो..
सुमन - बस ग़ुगु 5 मिनट..
गौतम - आधा घंटा हो गया आपकी 5 मिनट ख़त्म नहीं हो रही..
सुमन - बेटू बस आ गई..
गौतम - 5 मिनट में आप बाहर नहीं आई तो मैं अंदर आ जाऊंगा साडी पहनाने..
सुमन हस्ते हुए - तुझे रोका किसने है अंदर आने से बेटू..
गौतम 5 मिनट बाद कमरे में घुस जाता है देखता है की सुमन आईने के सामने बैठकर अपने होंठों पर लिपस्टिक लगा रही है.. उसने आज अद्भुत श्रृंगार किया था उसका चेहरा चाँद की लालिमा के सामान प्रजव्वल था माथे पर बिंदिया आँखों में काजल औऱ होंठों पर लाली के साथ साथ.. सुमन ने पहनी मेरून साडी भी उसके रूप को औऱ बढ़ा रही थी..
सुमन - बस ग़ुगु.. हो गया चलते है..
गौतम सुमन को बस देखे जा रहा था..
सुमन - चल ना ग़ुगु अब खड़ा क्यों है..
गौतम - कमाल लग रही हो माँ आज.. लगता है आफत आने वाली है.. मन कर रहा है आपको अपनी दुल्हन बना लू..
सुमन मुस्कराते गौतम का मुंह पकड़कर हुए - माँ को दुल्हन बनाएगा बेशर्म.. चल.. अब लेट नहीं हो रहा?
गौतम सुमन को बाहों में भरते हुए - लिपस्टिक ख़त्म तो नहीं हुई ना माँ आपकी?
सुमन - क्यों?
गौतम - क्योंकि जो लिपस्टिक आपने अपने होंठों पर लगाईं है उसे तो मैं खाने वाला हूँ..
इतना कहकर गौतम सुमन के होंठों पर टूट पड़ता है औऱ सुमन को बेतहाशा चूमने लगता है जिससे सुमन हक्कीबक्की रह जाती है औऱ गौतम को चूमने से नहीं रोक पाती औऱ चुपचाप खड़ी रहकर गौतम के चुम्बन का मोन समर्थन कर देती है.. गौतम सुमन को बाहों में जकड कर चूमे जा रहा था औऱ लम्बे समय बाद सुमन के मना करने पर चुम्बन तोड़ देता है..
सुमन - ग़ुगु.. तू भी ना..
गौतम - सॉरी माँ.. आप इतनी प्यारी लग रही है कण्ट्रोल नहीं कर पाया आपको चूमने से..
सुमन रुमाल से गौतम के होंठों पर लगी अपने होंठों कि लिपस्टिक साफ करती है औऱ अपने होंठों कि लिपस्टिक ठीक कर गौतम से चलने के लिए कहती है.
गौतम औऱ सुमन कार मैं बैठ जाते है औऱ जयपुर के लिए निकल जाते है..
रास्ते में पड़ने वाली कच्ची सडक पर हिलती गाडी में सुमन के हिलते चुचे देखकर गौतम का मन काम कि भावना से भरने लगता है औऱ वो अपना एक हाथ सुमन के चुचे पर रखकर दबाता हुआ सुमन से पूछता है..
गौतम - माँ ब्रा नहीं पहनी क्या आपने?
सुमन - ग़ुगु ये ब्लाउज बहुत टाइट था तो नहीं पहन पाई..
गौतम - दूसरा ब्लाउज पहन लेती ना माँ.. ब्रा नहीं पहनोगी तो आपके बूब्स ढीले होकर लटक जाएंगे.. औऱ मैं नहीं चाहता आप अभी से ढीली पड़ो..
सुमन - ग़ुगु इस साड़ी पर यही ब्लाउज मैचिंग था तो पहन लिया.. मामा के घर बदल लुंगी..
गौतम - मामा के घर क्यों माँ.. रास्ते में कहीं बदल लेना..
सुमन - रास्ते में कहा जगह मिलेगी बेटा?
गौतम - उसकी चिंता आप मत करो.. आगे हाईवे से गाडी नीचे उतार लूंगा.. वहा दूर दूर तक कोई भी नहीं है..
सुमन - बेटा पर खुले में?
गौतम - मैंने कहा ना माँ वहा कोई नहीं आता जाता आप चिंता मत करो..
गौतम गाडी को कुछ देर हाईवे पर चला कर एक कट से नीचे उतार लेता है जहा जंगल जैसी जगाह थी.. थोड़ा आगे गाडी चला कर एक पेड़ के नीचे रोक देता है..
गौतम - आप ब्लाउज बदल लो माँ मैं बाथरूम कर लेता हूँ..
इतना कहकर गौतम गाडी से नीचे उतर जाता है औऱ गाडी के पास ही पेड़ के नीचे मूतने लगता है सुमन बेग से दूसरा ब्लाउज निकालकर पहनने लगती है मगर सुमन का ध्यान गौतम के लंड पर था जिसे गौतम जानभूझ गाडी के बिलकुल पास सुमन को दिखाते हुए मूत रहा था.. सुमन औऱ गौतम दोनों के मन में चुदाई कि काम इच्छा फलने फूलने लगी थी..
गौतम मूतने के बाद अपने लंड को दो चार बार ऐसे हिलता है जैसे वो मुठ मार रहा हो फिर लंड को पेंट में कर लेता है औऱ गांड़ी में आकर बैठ जाता है.. सुमन ये देखकर औऱ भी कामुक हो उठी थी..
गौतम सुमन के पर्स में से सिगरेट निकालकर सुलगा लेता औऱ एक कश मारके सुमन का ब्लाउज देखकर कहता है - ध्यान कहा है माँ आपका?
सुमन - क्यों.. क्या हुआ ग़ुगु?
गौतम सिगरेट का अगला कश लेकर - ब्लाउज उल्टा पहना है आपने..
सुमन हसते हुए अपना ब्लाउज खोल देती है औऱ उसे सीधा करने लगती है गौतम सुमन के हाथो से ब्लाउज ले लेता है औऱ सुमन को सिगरेट देते हुए कहता है - बाद में पहन लेना माँ.. क्या जल्दी है..
सुमन सिगरेट लेकर कश मारती हुई गौतम से कहती है - तेरा बस चले तो तू मुझे नंगा ही कर दे.. बहुत बिगड़ गया है तू.. तेरा कॉलेज ख़त्म होते ही तेरी शादी करवा दूंगी अच्छी सी लड़की देखकर..
गौतम सुमन के सामने अपना लंड मसलते हुए - पर मुझे तो आपके अलावा कोई औऱ पसंद ही नहीं आता माँ.. आप ही कर लो ना मुझसे शादी.. बहुत खुश रखूँगा में आपको.. कभी छोडके नहीं जाऊंगा.. हमेशा प्यार करूंगा आपसे..
सुमन सिगरेट का कश लेकर धुआँ छोडते हुए मुस्कुराकर - माँ हूँ मैं तेरी.. मुझसे ऐसी बातें करेगा तो एक थप्पड़ खायेगा तू.. देख रही हूँ बहुत आग लगी हुई है तेरे अंदर..
गौतम सुमन से सिगरेट लेकर कश मारता हुआ - आप तो हमेशा दिल तोड़ने कि बातें करती हो माँ.. अब आग लगी हुई तो इसमें क्या दोष? मैं अपने मन से थोड़ी जवान हुआ हूँ.. आपको देखकर मेरे दिल में कुछ कुछ होता है तो इसमें मेरी क्या गलती?
सुमन मुस्कुराते हुए - मैं समझती हूँ मेरे शहजादे.. पर मैं माँ हूँ तेरी.. तेरे साथ कुछ भी वैसा नहीं कर सकती..
गौतम सुमन को सिगरेट देते हुए - मैं कब कह रहा हूँ कि आप मेरे साथ सेक्स करो माँ.. पर आप अपने हाथो से तो कभी कभी मुझे प्यार कर सकती हो..
सुमन गौतम का इशारा समझ गई थी औऱ उसके चेहरे पर हलकी शर्म लिहाज़ औऱ गौतम के लंड को साफ साफ देखने कि बेसब्री साफ दिखाई दे रही थी..
सुमन सिगरेट का आखिरी कश लेकर सिगरेट बाहर फेंक देती है औऱ दो घूंट पानी पीकर गौतम से कहती है - ठीक है ग़ुगु.. अगर तू चाहता है तो मैं अपने हाथों से तुझे ठंडा कर देती हूँ, लेकिन तू भी मुझसे वादा कर कि ये बात किसी को नहीं बताएगा औऱ मेरी हर बात चुपचाप मानेगा..
गौतम सुमन का हाथ पकड़ कर अपने लंड पर रख देता है औऱ दबाते हुए कहता है - आप जैसा बोलोगी मैं वैसा ही करूगा माँ.. बस आप उसे ठंडा कर दो.. बहुत परेशान करता है ये मुझे...
सुमन मुस्कुराते हुए - नीचे कर अपनी जीन्स..
गौतम एक झटके मैं जीन्स औऱ चड्डी नीचे सरका देता है औऱ सुमन के सामने साफ साफ अपने खड़े लंड को नंगा कर देता है.. सुमन पहले भी गौतम का लंड देख चुकी थी मगर अब उसके सामने मात्र कुछ इंच दूर ही गौतम का लंड पूरा खड़ा हुआ था जिसे देखकर सुमन के मन में सावन कि बारिश होने लगी औऱ मोर नाचने लगे..
सुमन - हाय दइया ग़ुगु..
गौतम - पसंद आया माँ?
सुमन शर्मा जाती है औऱ अपने हाथ में गौतम का लंड पकड़ कर उसे नापते हुएधीरे धीरे ऊपर नीचे करने लगती है गौतम भी सुमन कि ब्रा निकाल देता है औऱ उसके चुचे दबाते हुए सुमन को अपनी तरफ खींचकर चूमने लगता है..
सुमन गौतम के ऊपर झुकी हुई उसे अपने होंठों का स्वाद चखा रही थी वही गौतम सुमन के चुचे औऱ खड़े चुचक मसलते हुए सुमन से हस्तमैथुन का मज़ा ले रहा था बहुत देर तक ये कार्यक्रम ऐसे ही चलता रहा..
सुमन - कब निकलेगा ग़ुगु? कब से हिला रही हूँ..
गौतम - माँ मुंह में लेके ट्राय करो ना जल्दी निकल जाएगा..
सुमन इतराते हुए - मैं मुंह नहीं लुंगी.. मुझे अजीब लगता है
गौतम - ले लो ना माँ.. कुछ नहीं होता.. आगे आपको जूस पीला दूंगा.. सब ठीक हो जाएगा..
सुमन - नहीं ग़ुगु.. हाथों से ही हिला दूंगी.. मैंने कभी मुंह में नहीं लिया.. मुझे उल्टी आती है..
गौतम - माँ हाथों से तो बहुत टाइम लग जाएगा.. कब तक हिलाती रहोगी? एक करो मैं कंडोम पहन लेता हूँ फिर मुंह में लेके निकाल दो..
सुमन शरमाते हुए - ग़ुगु नहीं ना..
गौतम - प्लीज ना माँ.. कंडोम से मान जाओ..
सुमन - कंडोम है तुम्हारे पास?
गौतम अपने बटुए से कंडोम निकालते हुए - बहुत सारे है माँ.. आपको कोनसा फ्लैवर पसंद है?
सुमन शरमाते हुए - कोई सा भी देदे..
गौतम - स्ट्रॉबेरी लेलो माँ.. ज्यादातर औरतो को वही पसंद आता है.. लो पहना दो..
सुमन कंडोम लेकर गौतम के लंड पर पहना देती है..
गौतम सुमन के सर पर हाथ रख देता है औऱ उसे लंड पर झुकाते हुए कहता है - बच्चों जैसे क्या शर्मा रही हो माँ आप भी.. चलो अब ले भी ली मुंह में.. कुछ नहीं होता..
सुमन गौतम के लंड को मुंह में भरने लगती है औऱ गौतम अपनी माँ के मुंह में लंड जाने से औऱ भी ज्यादा उत्तेजित होने लगता है..
गौतम सुमन के पर्स से एक औऱ सिगरेट निकाल कर लाइटर से सुलगा लेता है औऱ सिगरेट के कश लेटे हुए लंड चुस्ती अपनी माँ सुमन को देखने लगता है..
गौतम सुमन के सर पर दबाव डालकर - माँ थोड़ा अंदर लेकर चुसो ना.. आप तो बस मेरे लंड के टोपे को ही चूस रही हो..
सुमन गौतम के लंड को मुंह में औऱ भरकर चूसे जा रही थी औऱ अपने हाथ से गौतम के दोनों टट्टे सहला रही थी..
गौतम को तो जैसे सुमन ने अफीम खिला दी थी गौतम उतना नशे में मदहोश होने लगा था औऱ सिगरेट के कश लेता हुआ सुमन के blowjob से तृप्त होने लगा था.
सुमन ने मुंह लेकर बस 5 मिनट के अंदर ही गौतम का माल निकाल दिया.. औऱ उसके लंड से कंडोम उतार कर कंडोम के गाँठ लगाकर गाडी से बाहर फेंक दिया..
सुमन - बस हो गई तेरी इच्छा पूरी? हो गया ठंडा?
गौतम - आई लव यू सुमन..
सुमन हसते हुए - मुझे नाम से मत बुला बेशर्म..
गौतम - माँ छोटे ग़ुगु को साफ तो कर दो..
सुमन गौतम का लंड पकड़ कर अपनी साडी के पल्लू से लंड का चिपचिपापन साफ कर देती है औऱ अपनी ब्रा औऱ ब्लाउज पहनने लगती है औऱ गौतम से कहती है - अब मेरे इस छोटे ग़ुगु को अंदर तो डाल ले..
गौतम लंड अंदर करता हुआ - छोटा ग़ुगु तो नाराज़ है आपसे..
सुमन - क्यों मज़ा नहीं आया मेरे छोटे ग़ुगु को?
गौतम - मज़ा कैसे आता? अपने छोटे ग़ुगु को छाता जो पहना दिया..
सुमन गौतम कि बात पर जोर से हँसने लगी औऱ फिर गौतम से बोली - अगली बार मेरे छोटे ग़ुगु को बिना छाते के मुंह में ले लुंगी बस..
गौतम सुमन कि जांघ पर हाथ रखकर सुमन कि जांघ सहलाते हुए - माँ अपने तो मेरी आग बुझा दी.. अब मेरी बारी..
इतना कहते हुए गौतम सुमन कि साडी को ऊपर करता हुआ उसकी चुत पर हाथ लगा देता है जिससे सुमन सिसक उठती है औऱ गौतम को मना करने लगती है मगर गौतम सुमन कि बात नहीं सुनता औऱ सुमन की चड्डी के अंदर हाथ डाल कर उसकी चुत को मुठी में भर लेता औऱ मसलने लगता है..
सुमन - ग़ुगु नहीं.. छोड़ दे.. ग़ुगु.. बेटा छोड़ दे ना..
गौतम - छोड़ दूंगा माँ.. बस थोड़ी देर चुप रहो औऱ मज़े लो..
इतना कहकर गौतम सुमन की चड्डी नीचे सरका देता है औऱ उसकी चुत पर अपना मुंह लगा देता है जिससे सुमन की सिसक सिसकारियों में बदल जाती है औऱ वो गौतम के सर को पकड़ कर अब खुदसे अपनी चुत पर दबाने लगती है..
गौतम कुत्ते की तरह सुमन की चुत चाट रहा था औऱ बिना शर्म किये सुमन की चुत फैला कर अपनी जीभ अंदर तक डाल रहा था..
सुमन भी कुछ ही मिनटों में अपनी नदी बहा देती है जिसे गौतम बिना शर्म किये अपने मुंह में भरकर पी लेता है औऱ चाट चाट कर सुमन की झांटो से भारी हुई गुलाबी चुत साफ करके अपनी सीट पर आराम से बैठ जाता है..
सुमन को तो जैसे विश्वास ही नहीं हो रहा था की उसके साथ अभी अभी गौतम ने क्या किया है सुमन झड़ने के बाद इतना हल्का महसूस कर रही थी जैसे हवा मैं परिंदे महसूस करते है.. सुमन शर्म से पानी पानी हो रही थी औऱ गौतम से नज़र तक मिलाने में शर्मा रही थी उसने अपनी चड्डी वापस पहनी औऱ एक नज़र प्यार से गौतम की तरह देखा.. गौतम भी प्यार की नज़र से सुमन को ही देख रहा था..
सुमन ने अब शर्म का पर्दा हटाकर गौतम के होंठों पर चिपका अपनी झांट का एक बाल अपने हाथ से हटाकर साफ कर दिया औऱ अपनी सीट से उठकर गौतम के ऊपर चढ़ गई औऱ बिना कुछ कहे उसके मुंह से लग गई..
दोनों की जापानी चुम्मा चाटी वापस शुरू हो चुकी थी जिसे गायत्री के फ़ोन ने तोड़ा..
सुमन फ़ोन उठाकर - हाँ माँ..
गायत्री - सुमन कहा है अभी तक आई नहीं..
सुमन - बस माँ रास्ते में है..
गायत्री - कहा तक पहुंची औऱ ग़ुगु भी आ रहा है ना?
गौतम फ़ोन लेकर - आधे रास्ते आ गए नानी.. मैं भी माँ के साथ आ रहा हूँ..
गायत्री - ग़ुगु.. केसा है मेरा बच्चा? नानी से भी नाराज़ है तू? कभी बात भी नहीं करता..
गौतम - नहीं नानी.. आपसे कैसी नाराज़गी.. मैं आ रहा हूँ ज़ी भरके आपसे बात करूंगा.. ठीक है?
गायत्री - आजा मेरा बच्चा.. नानी बहुत इंतजार कर रही है तेरा..
गौतम - ठीक है नानी रखता हूँ.. फ़ोन कट हो जाता है..
सुमन - अब चल यहां से ग़ुगु..
गोतम - पहले मुझे आई लव यू बोलो..
सुमन गौतम को चूमकर - आई लव यू बेटू.. अब चल ना..
गौतम गाडी को वापस हाईवे पर चढ़ा देता है औऱ दोनों दो घंटे बाद जयपुर पहुंच जाते है जहा एक रिहायशी कॉलोनी में आ जाते है..
गौतम - क्या एड्रेस था माँ..
सुमन फ़ोन दिखा कर - ये वाला..
गौतम बाहर देखकर - जगह तो बहुत महँगी लगती है..
सुमन - हाँ.. माँ बता रही थी तेरे मामा ने बहुत महँगी जमीन ख़रीदी थी औऱ घर भी बड़ा बनवाया है..
गौतम - सही है.. देखना अब मामी कैसे हर चीज की रेट बता कर हमें जलाने की कोशिश करेंगी..
सुमन - ग़ुगु तुझे मेरी कसम जो तूने किसीको यहां उल्टा सीधा कुछ भी बोला था तो..
गौतम सुमन की जांघ पर हाथ रखकर - बेफिक्र रहो माँ.. मैं किसीसे कुछ नहीं कहने वाला..
सुमन - शायद वो वाला घर लगता है ग़ुगु..
गौतम फ़ोन में एड्रेस देखकर - वही है माँ.. चलो..
Awesome updateUpdate 18
सुमन दोनों कार पार्क करके नीचे उतर जाते है जहा गेट पर ही उनको संजय की पत्नी कोमल खड़ी दिखाई दे जाती है जो किसी डिलेवरी बॉय से कुछ ले रही होती है सुमन कोमल के पास चली आती है औऱ गौतम गाडी में सामान उतारने लगता है.
कोमल (44) सुमन को देखते ही - अरे सुमन.. तुम अब आ रही हो.. अब भी आने की क्या जरुरत थी? सीधा शादी में ही आ जाती.. कितने फ़ोन करवाए तुम्हारे भईया से, मगर तुम तो जैसे यहां ना आने की कसम खाकर बैठी हो..
सुमन - नहीं भाभी.. घर में काम ही इतना रहता है की कहीं आने जाने की फुर्सत ही नहीं रहती..
कोमल - अरे उस छोटे से पुलिस क्वाटर में कितना काम होता होगा सुमन.. तुम तो बहाने बनाने लगी हो..
सुमन - भाभी ग़ुगु का कॉलेज भी तो था.. औऱ अभी तो एक हफ्ता बच्चा है ना ऋतू की शादी को.. सब काम आराम से हो जाएगा..
कोमल - ग़ुगु आया है तेरे साथ?
सुमन - हाँ वो सामान उतार रहा है..
गौतम हाथ मे अपना औऱ सुमन का बेग लेकर कोमल औऱ सुमन के पास आ जाता है जहा कोमल देखते ही गौतम को अपनी छाती से लगा लेती है औऱ कहती है..
कोमल - ग़ुगु.. कितना बड़ा हो गया है तू.. कब से नहीं देखा तुझे.. बिलकुल चाँद सी शकल हो गई है तेरी.. सुमन क्या खिलाती हो इसे..
गौतम चुपचाप खड़ा रहता है औऱ कुछ देर बाद बोलता है..
गौतम - बॉक्स में क्या है?
कोमल - ये? ये तो मैंने शूज मांगवाए है जॉगिंग के लिए.. वो पुराने वाले एक महीने पुराने हो गए थे ना इसलिए.. (सुमन को देखकर) सिर्फ 15 हज़ार के है..
सुमन - भाभी माँ कहा है..
कोमल - अरे मैं भी ना.. आओ अंदर आओ.. ग़ुगु बेग यही रख दो.. नौकर ले आएगा.. (नौकर को आवाज लगाकर) अब्दुल.. सामान ऊपर पीछे वाले रूम रख दे.. आओ सुमन..
सुमन औऱ गौतम गायत्री से मिलते है औऱ फिर सुमन बाकी लोगों से मिलने लगती है लेकिन गौतम नौकर से कमरा पूछकर कमरे में आ जाता है..
गौतम - दूसरा बेग कहा है?
अब्दुल - भईया वो मैडम के कहने पर बगल वाले रूम में रख दिया है..
गौतम - ठीक है..
अब्दुल - कुछ लाना है?
गौतम - नहीं तुम जाओ..
गौतम रूम देखकर मन में - बहनचोद मामा ने घर नहीं महल बनवाया है.. बिस्तर तो साला ऐसा है दसवी मंज़िल से भी गिरो तो बचा लेगा..
गौतम ये सब सोच ही रहा था कि पीछे से गौतम को गौतम के मामा संजय औऱ मामी कोमल की बेटी ऋतू (24) ने ग़ुगु को आवाज दी..
ऋतू - ग़ुगु..
गौतम ने पीछे मुड़कर ऋतू को देखा औऱ चुपचाप खड़ा रहा.. उसने ऋतू से हेलो हाय करने की कोई कोशिश नहीं की, ऋतू ने कुछ देर ठहर कर आगे बात शुरू की..
ऋतू - अब तक नाराज़ है?
गौतम - मैं क्यों नाराज़ होने लगा?
ऋतू - तो फिर मुझे देखकर इतना रुखा रिएक्शन क्यों दिया? ना हाथ मिलाया ना गले लगा..
गौतम - मेरे जैसे चोर के गले लगने या हाथ मिलाने का शोक आपको कबसे होने लगा?
ऋतू - तू अब भी नाराज़ है ना.. 6 साल हो गए.. अब तक उस बात को नहीं भुला.. मुझसे गलती हो गई थी ग़ुगु.. मुझे तेरा झूठा चोरी ना नाम नहीं लगाना चाहिए था.. माफ़ नहीं करेगा..
गौतम - मैं कौन होता हूँ माफ़ करने वाला आपको.. वैसे बहुत बड़ा घर बनवाया है आप लोगों ने.. इसके एक कमरे की जगह में तो हमारा आधे से ज्यादा घर आ जाएगा..
ऋतू - मैं भाभी के साथ बाहर जा रही हूँ तू चल मेरे साथ.. तूझे शहर घूमाती हूँ..
गौतम - मुझे कहीं नहीं जाना..
ऋतू के पीछे उसकी भाभी औऱ संजय कोमल के बेटे चेतन की बीवी आरती (26) कमरे के अंदर आती हुई - ऋतू चल ना आने में देर हो जायेगी.. तुझे वैसे भी शॉपिंग में बहुत समय लगता है.. (गौतम को देखते हुए) ये सुमन बुआ का बेटा गौतम है ना..
ऋतू उदासी से - हम्म..
आरती गौतम के नजदीक आते हुए - हाय.. कितना सुन्दर चेहरा है.. पहली बार देख रही हूँ.. मेरी औऱ चेतन की शादी में क्यों नहीं आये तुम?
गौतम - मन नहीं था आने का..
आरती - इतने रूखेपन से क्यों बात कर रहे हो.. मैं कोई पराइ तो नहीं हूँ..
ऋतू - भाभी छोडो ना.. ग़ुगु सफर से आया है, थक गया होगा..
आरती - ठीक है.. ग़ुगु तू भी चल.. शादी की शॉपिंग करनी है.. तुझे जो खरीदना हो मैं दिलवा दूंगी..
गौतम - मेरे पास मेरी जरुरत का हर सामान है.. मुझपर अहसान करने की जरुरत नहीं..
आरती को गौतम का बर्ताव समझ नहीं आता कि क्यों गौतम उससे इस तरह रूखेपन औऱ परायेपन से बात कर रहा है मगर ऋतू को सब पता औऱ वो चाहती थी कि आरती गौतम से ज्यादा बात ना करें औऱ वहा से चली जाए..
ऋतू - भाभी चलो ना.. फिर आप ही बोलोगी कितनी देर लगा दी...
आरती का खिला हुआ चेहरा गौतम से बात करके थोड़ा उतर चूका था.. उसे लगा था वो गौतम के साथ हंसी मज़ाक़ औऱ हंसी ठिठोली कर सकती है औऱ देवर भाभी वाला एक मजबूत रिश्ता कायम कर सकती है मगर गौतम ने उसे अपनी दो चार बातों से ही इतनी दूर कर दिया था कि आरती वापस गौतम से बात करने में हिचक महसूस हो रही थी.. आरती ऋतू के कहने पर गौतम को अकेला छोड़कर ऋतू के साथ कमरे से बाहर आ गई औऱ अपनी सास कोमल औऱ सुमन के साथ ऋतू को शॉपिंग करवाने कार लेकर निकल पड़ी..
गौतम थोड़ी देर आराम करने के बाद अपने कमरे से निकल कर नीचे आ गया औऱ अपनी नानी गायत्री के कमरे में आ गया जहा गायत्री टीवी पर किसी सीरियल को देखते हुए उसमें ध्यान लगाए बैठी थी..
गौतम अपनी नानी के करीब आकर उसकी गोद में अपना सर रखकर लेट गया जिससे गायत्री का ध्यान टीवी से टूट गया औऱ वो गौतम के सर को सहलाती हुई गौतम को लाड प्यार करने लगी..
गायत्री - कम से कम अपनी नानी से तो मिलने आ सकता था ना ग़ुगु..
गौतम - आ गया ना नानी...
गायत्री - हाँ पुरे छः साल बाद.. एक दो साल औऱ देर करता तो नानी भगवान को प्यारी हो जाती..
गौतम - कैसी बातें कर रही हो नानी.. आप तो अभी भी जवान हो.. अभी से कहा भगवान् को याद कर रही हो..
गायत्री हसते हुए - 62 बरस की हो गई बेटा..
गौतम प्यार से गायत्री के गाल चूमकर - नानी दिखने में तो आज भी आप 22 साल से एक साल ज्यादा की नहीं लगती.. ऐसे लगता है मामी आपकी बहु नहीं सास है औऱ आप मामी की सास नहीं बहु हो..
गायत्री हस्ते हुए - तू इतनी बातें करना कब से सिख गया ग़ुगु? पहले तो बहुत चुपचाप औऱ अपने आप में रहता था अब देखो.. लग ही नहीं रहा तू मेरा पहले वाला ग़ुगु है..
गौतम - समय के साथ तो सबको बदलना पड़ता है ना नानी.. वैसे आप चाहो तो मैं फिर से वही आपका ग़ुगु बन सकता हूँ..
गायत्री - कोई जरुरत नहीं है बेटा.. सच कहु तो तू ऐसे ही हँसता खेलता ज्यादा अच्छा लगता है..
गौतम - नानी आप नहीं गई शॉपिंग पर?
गायत्री - तू तो जानता है तेरी मामी को, उसके साथ शॉपिंग पर जाने का मेरा बिलकुल मन नहीं था..
गौतम - क्यों?
गायत्री - तू तो जानता है उसका स्वाभाव केसा है.. अपनी अमीरी झाड़ने का कोई मौका नहीं छोड़ती.. ऐसा लगता है हर चीज की कीमत बताने की नौकरी करती हो..
गौतम - तो क्या हुआ? उनके पास पैसे है तो वो अपने पैसो का रोब झाड़ती है.. आप भी ये सब कर सकती हो..
गायत्री - मुझे तो इन सब दिखावे औऱ ढकोसले से दूर रहने दे बेटा.. मैं तो जैसी हूँ ठीक हूँ.. मुझे तो सुमन के लिए बुरा लगता है कोमल कहीं अपनी अमीरी दिखाने के चक्कर उसका दिल ना दुखा दे.. चल छोड़ इन बातों को ये बता.. इतना खूबसूरत औऱ जवाँ हो गया है तू.. कितनी गर्लफ्रेंड बनाई तूने?
गौतम - क्या फ़ायदा नानी इस शकल.. एक भी नहीं बनी..
गायत्री - हट झूठा... सच सच बता किसी को नहीं बताऊंगी..
गौतम - सच में नानी.. मुझे कोई लड़की पटती ही नहीं है.. पता नहीं क्या कमी है मुझमे..
गायत्री - कमी.. कमी तो है ही नहीं मेरे ग़ुगु में.. सब खूबी ही खूबी है.. तू बोल मैं बनवा देती हूँ तेरी गर्लफ्रेंड..
गौतम गायत्री के गले में हाथ डालकर - नानी आप ही बन जाओ ना मेरी गर्लफ्रेंड..
गायत्री प्यार से गौतम के गाल चूमकर - तू तो बहुत चालक हो गया है.. मुझे ही फंसाने के चक्कर में है..
गौतम गायत्री के गले में हाथ डालकर - नानी अब आप हो ही इतनी ब्यूटीफुल.. मैं क्या करू?
गायत्री हसते हुए गौतम का हाथ पकड़ कर चूमते हुए - लगता है अभी से लड़की ढूंढ़नी पड़ेगी तेरे लिए..
गौतम गायत्री को अपनी तरफ खींचकर गले लगाते हुए - ढूंढने की क्या जरुरत है नानी.. आप हो ना..
औऱ फिर से गायत्री के गाल पर चुम्बन कर देता है..
गायत्री को विधवा हुए 15 साल से ऊपर का समय बीत चूका था औऱ उसके बाद से उसे कभी किसी पुरुष का स्पर्श नहीं मिला था आज गौतम ने जैसे गायत्री से बात की थी औऱ उसे छुआ था उससे गायत्री
के मन में हलचल होने लगी थी औऱ उसके अंदर सालों से छुपी हुई औरत का वापस उदय होने लगा था गायत्री के साथ जिस तरह से मीठी बातें गौतम कर रहा था उससे गायत्री को अजीब सुख मिलने लगा था औऱ वो चाहने लगी थी गौतम उससे इसी तरह औऱ बातें करें..
गायत्री प्यार से - चल पीछे हट.. बदमाश कहीं का.. कुछ भी बोलता है.. बहुत बेशर्म हो गया है तू..
गौतम गायत्री को अपनी बाहों में औऱ कस लेता है - मैं तो आगे बढ़ना चाहता हूँ नानी, आप तो पीछे हटाने लगी..
गायत्री हसते हुए - न जाने तुझे मुझ बुढ़िया मैं क्या नज़र आ गया.. चल अब छोड़ मुझे कोई देख लेगा तो बात बनायेगा..
गौतम गायत्री को बिस्तर पर धकेल देता है औऱ उसके साथ खुद भी गिर जाता है औऱ कहता है - सब तो शॉपिंग गए है नानी.. हम कुछ भी करें.. हमें देखने वाला यहाँ बचा ही कौन है?
गायत्री - छी.. कैसी गन्दी बात कर रहा है तू.. छोड़ मुझे..
गौतम ने आगे कुछ भी ना बोलकर गायत्री के होंठों को अपने होंठों में भर लिया औऱ चूमने लगा.. गायत्री हैरान होकर बेसुध लेटी रही औऱ गौतम गायत्री को चूमता रहा साथ ही उसने अपना रखा हाथ गायत्री के साडी के अंदर डाल कर उसकी चुत को अपने हाथों के पंजे से पकड़ लिया औऱ मसलते हुए गायत्री की चुत में उंगलियां करने लगा जिससे गायत्री की काम इच्छा सुलग उठी.. औऱ वो भी धीरे धीरे गौतम के चुम्बन का प्रतिउतर चूमकर देने लगी..
गौतम ने पहले ही अपनी कलाई का धागा लाल होते देखकर गायत्री को अपने जाल में ले लिया था औऱ उसे भोगने की नियत से अपने आप को गायत्री के अनुरूप ढालते हुए उसके बदन को छेड़ने औऱ उससे खेलने लगा..
गायत्री की 62 साल पुरानी चुत गौतम के हाथ लगने पर 62 सेकंड में ही सुलगने लगी औऱ उसमे भारी गर्मी गौतम को अपने हाथ पर महसूस होने लगी.. गौतम ने कुछ मिनट में ही गायत्री चुत से नदी बहा दी जिससे गायत्री गौतम से लिपटकर गौतम को चूमने औऱ चाटने लगी उसे मालूम नहीं रहा की वो अपनी बेटी के बेटे के साथ ऐसा कर रही थी..
गौतम ने गायत्री के हाथ में अपना लंड रख दिया औऱ अपने हाथ से गायत्री का हाथ पकड़कर गायत्री के हाथ से अपना लंड हिलवाने लगा.. गायत्री के हाथ में जैसे ही गौतम का लंड आया वो चूमना छोड़कर एक नज़र गौतम के लंड पर डालकर उसे देखने लगी लेकिन अगले ही पल गौतम ने गायत्री के बाल पकड़ कर वापस अपने होंठों से उसे लगा लिया.. गायत्री को चूमकर उसने गायत्री को बेड पर बैठा दिया औऱ खुद फर्श पर खड़ा हो गया..
गायत्री कुछ समझ पाती इससे पहले ही गौतम ने उसके पककर सफ़ेद हो चुके बाल पकड़ कर उसके मुंह में अपने लंड का प्रवेश करवा दिया औऱ अपनी नानी गायत्री को अपना लोडा चूसाने लगा..
गायत्री के मन में उथल पुथल मची हुई थी औऱ उसके चेहरे पर रोमांच, डर, कामुकता, बेबसी, बेसब्री औऱ रिश्तो के मेले होने का दुख एक साथ झलक रहा था..
गायत्री ने गौतम के लंड को मुंह से नहीं निकाला औऱ धीरे धोरे चूसने लगी. गौतम ने भी कोई जल्दी नहीं की औऱ गायत्री को आराम आराम से लोडा चूसाने का सुख भोगने लगा..
गायत्री औऱ गौतम के बीच ये सब चल ही रहा था की उन दोनों को ऊपर से किसी के नीचे आने की आहट सुनाई दी.. औऱ गायत्री ने फ़ौरन गौतम का लंड अपने मुंह से बाहर निकाल दिया औऱ अपनेआप को ठीक करने लगी गौतम ने भी परिस्थिति समझते हुए अपना लंड पेंट में डाल लिया औऱ कमरे से बाहर आ गया जहा उसे घर का नोकर अब्दुल दिखाई दिया जो सीधा गायत्री के कमरे की तरफ चला गया औऱ उससे बोला..
अब्दुल - चाय बना दू बड़ी मालकिन...
गायत्री - नहीं.. तू रहने.. आज मैं खुद चाय बना लुंगी..
गायत्री ये कहते हुए बेड से उठ जाती है औऱ रसोई की तरफ चली जाती है..
गायत्री की मनोदशा को बयाँ करना मुश्किल था उसे अभी अभी जो सुख गौतम ने दिया था गायत्री उसे वो भूल ही चुकी थी.. सालों से बंजर होकर पड़ी जमीन पर अकाल के बाद जैसे बारिश के पानी से पौधे खिल उठते है उसी तरह सालों से गायत्री की वीरान औऱ अकेली जिंदगी में भी आज गौतम के कारण मादकता औऱ कामुकता ने अपने बीज को बोकर पौधे में बदल दिया था..
गायत्री का एक मन उसे कोस रहा था औऱ ये समझा रहा था की वो अपने नाती के साथ कैसे इस तरह की जलील हरकत कर सकती है औऱ उसके साथ जिस्मानी सम्भन्ध बनाने का प्रयास कर सकती है.. गायत्री चाय बनाते हुए अपनेआप को बुरा भला कहे जा रही थी.. मगर गायत्री का दूसरा मन चोरी छिपे गायत्री को बहका रहा था औऱ अब्दुल को गालिया देते हुए कोस रहा था कि क्यों वो बीच में आ गया.. क्या उसे आने में देर नहीं हो सकती थी? गायत्री की काम इच्छा ने तो उसके मन में दूसरा जन्म ले लिया था औऱ उसके दिमाग में चल रही बातों ने पहले मन को हरा दिया था.. गायत्री अब गौतम के करीब जाना चाहती थी औऱ सालों से सुखी पड़ी जिंदगी को थोड़ा काम के रस से गिला कर लेना चाहती थी..
गायत्री की चाय उसकी बची हुई जवानी के साथ उबाल मार चुकी थी औऱ उसने फैसला कर लिया था.. गायत्री ने चाई एक कप में छन्नी की औऱ कप लेकर गौतम के कमरे की तरह आने लगी..
दरवाजे पर पहुंचकर एक बार गायत्री रुकी जैसे कुछ सोच रही हो फिर गायत्री आगे बढकर दरवाजे के अंदर आ गई जहा गौतम बेड पर ऐसे बैठा हुए था जैसे गायत्री का ही इंतजार कर रहा हो.. आगे कुछ पहल करने की हिम्मत गायत्री में नहीं थी इसलिए उसने चाय को बेड की साइड टेबल पर रख दिया औऱ एक नज़र गौतम से मिलाकर वापस नज़र चुराते हुए उसे चाय पिने का बोलकर वापस जाने लगी..
गायत्री ने मुश्किल से दो कदम बढ़ाये होंगे की गौतम ने बेड से उठकर गायत्री की तरफ बढ़ते हुए अपना सीधा हाथ गायत्री की कमर में डालकर उसे अपने गले से लगा लिया औऱ दूसरे हाथ से दरवाजे को कुंदी मारकर गायत्री के साथ बिस्तर में कूद गया औऱ फिर से गायत्री औऱ गौतम का चुम्बन शुरू हो गया..
इस बार गायत्री अपने पुरे मन के साथ गौतम को ऐसे चुम रही थी जैसे गौतम उसका नाती नहीं पति हो..
गौतम ने थोड़ी देर चूमने के बाद वापस गायत्री की ड्यूटी अपने लंड पर लगा दी औऱ उसे बिस्तर पर झुकाते हुए अपना लंड चूसाने लगा..
गौतम - आहहह... नानी.. दाँत मत लगाओ यार.. आहहह... बहनचोद क्या मस्त मज़े देती हो नानी अभी भी.. (गायत्री के चुचे दबाते हुए) उफ्फ्फ नानी कितनी बड़ी औऱ मस्त है आपकी चूचियाँ.. ढीली पड़ने के बाद भी कहर ढा रही है..
गायत्री गौतम की बातें सुनती हुई उसके लोडा चूसे जा रही थी औऱ गौतम की वासना अपने चरम पर आने लगी थी वो लोडा चुस्ती गायत्री को देखकर बहकने लग गया था औऱ जल्दी ही झड़ने की कगार पर भी आ पंहुचा था..
गौतम - नानी.. आने वाला है चुसो जोर से थोड़ा.. आहहह... ऐसे ही नानी... हाय... आहहह...
गौतम गायत्री के मुंह में झड़ जाता है औऱ गायत्री बिना संकोच किये उसका वीर्यपान कर लेती है फिर गौतम का लंड साफ करके जाने लगती है मगर गौतम गायत्री को वापस बिस्तर पर गिरा देता है औऱ गायत्री की चुत के दर्शन करने के इरादे से उसकी साडी पकड़ के ऊपर कमर तक उठा देता है.. वो देखता है की गायत्री ने चड्डी नहीं पहनी थी.. औऱ उसके बालों से भरी चुत साफ सामने थी जो अब हलकी काली पड़ गई थी.. गौतम ने बिना किसी झिझक के गायत्री की चुत को अपने मुंह में भर लिया औऱ चूसने औऱ चाटने लगा.. जिस तरह से गौतम गायत्री की चाट रह था गायत्री को परम सुख की प्राप्ति होने लगी थी..
गायत्री गौतम के बाल पकड़ के जोर जोर उसे अपनी चुत चटवा रही थी औऱ अब उसने भी शर्म की चादर हटाते हुए बात करना शुरू कर दिया था..
गायत्री - चाट ग़ुगु.. जोर से चाट अपनी नानी की चुत को.. 16 साल हो गए किसी ने मेरी इस चुत की चिंता नहीं की.. तू ही पहला है ग़ुगु.. चाट बेटा.. आहहह... उम्म्म्म.. अह्ह्ह्ह..
गौतम गायत्री की बात सुनकर मन ही मन मुस्काता हुआ उसकी चुत को अपने मुंह से ठंडी करने लगा.. गायत्री तो जैसे हक़ीक़त औऱ ख़्वाब के बीच कहीं आँख बंद किये प्रकृति से मिले इस अदभुद सुख को भोग रही थी..
गौतम ने गायत्री की गांड में उंगलि करते हुए चुत को चाटना जारी रखा औऱ अपनी जीभ उसकी चुत में डाल उसे चाटने लगा.. गौतम चाहता था की वो गायत्री को शर्म लिहाज़ औऱ रिश्तो के बंधन से बाहर ले आये जिसमे वो सफल भी हो चूका था..
गायत्री अब वापस झड़ने वाली थी औऱ इस बार उसने बिना किसी झिझक के गौतम के मुंह में अपना पानी निकाल दिया औऱ उसके बालों को जोर से खींच कर गौतम को अपने ऊपर लेटा लिया औऱ फिर से गौतम औऱ गायत्री चुम्बन के मीठे अहसास को महसूस करने लगे..
कुछ देर बाद गौतम चुम्बन तोड़कर गायत्री से - मज़ा आया नानी..
गायत्री - तू तो जादूगर है ग़ुगु.. मैंने आज तक ऐसा कुछ महसूस नहीं किया..
गौतम अपना लंड गायत्री की चुत पर रगढ़ते हुए - असली मज़ाक़ तो आपको चुदाई में आएगा नानी.. आप बोलो तो डाल दू अंदर..
गायत्री - नहीं नहीं ग़ुगु.. तेरा बहुत बड़ा है औऱ मेरी चुत बहुत छोटी.. मैं झेल नहीं पाउंगी बेटा..
गौतम - मैं धीरे धीरे डालूंगा नानी.. सब आपकी मर्ज़ी से होगा.. आपको पसंद नहीं आये तो मैं कुछ नहीं करूँगा..
गायत्री - ठीक है बेटा.. पर बहुत ध्यान से मेरी चुत बिलकुल सिकुड़ चुकी है..
गौतम - ठीक है नानी..
गौतम अपने लंड पर थोड़ा सा थूक लगाकर गायत्री की चुत में उठेल देता है औऱ हल्का सा दबाब बनाता जिससे उसके लंड का टोपा गायत्री की चुत में घुस जाता है औऱ गायत्री की चिंख निकल जाती है औऱ वो जल बिन मछली जैसे तड़पने लगती है.. गौतम लंड का टोपा वापस बाहर निकाल लेता है औऱ गायत्री से कहता है..
गौतम - नानी सॉरी.. आप ठीक हो ना..
गायत्री - हाय मेरी माँ.. ग़ुगु मैं नहीं झेल पाउंगी बेटा.. माफ़ कर मुझे..
गौतम - कोई बात नहीं नानी.. मेरी गलती है आपके साथ ज़िद कर बैठा..
गायत्री उठकर अपने कपडे सही करते हुए - चाय ठंडी हो गई ग़ुगु.. मैं अभी दूसरी बना लाती हूँ..
गौतम पूरी बेशर्मी से गायत्री को देखकर अपना नंगा लोडा मसलते हुए - रहने दो नानी.. वैसे भी मेरा चाय पिने का नहीं सुट्टा फुकने का है..
गायत्री मुस्कुराते हुए गौतम को देखकर - तेरा मन नहीं भरा ना बेशर्म..
गौतम बेड से उठकर अपने सामान से भरे बेग की तरफ जाता है औऱ उसमे से सिगरेट का पैकेट औऱ लाइटर निकालकर एक सिगरेट जलाते हुए गायत्री से कहता है..
गौतम - मेरा मन तो तभी भरेगा नानी जब मेरे इस लंड से आपकी चुत पिटेगी..
गायत्री मुस्कुराते हुए गौतम के नज़दीक आकर - ग़ुगु मैं अगर तेरी ये इच्छा पूरी कर पाती तो मुझे बहुत ख़ुशी होती.. पर तू समझ ना..
गौतम सिगरेट का कश लेकर धुआँ गायत्री के मुंह पर छोड़ते हुए - आज नहीं तो कल मेरी इच्छा पूरी जरूर हो जायगी नानी.. आप उदास मत हो.. बस अब आप चुत में गाजर मूली डालना शुरू कर दो.. थोड़ा बड़ा हो जाएगा आपका छेद तो मेरे लंड को घुसने में आसानी होगी..
ये कहते हुए गौतम गायत्री के कंधे पर हाथ रखकर उसे नीचे बैठा लेता है औऱ उसके मुंह में अपना लंड वापस डाल देता है औऱ गायत्री के बाल पकड़ कर सिगरेट के कश लेटे हुए उसे लोडा फिर से चूसाने लगता है..
गौतम अपनी नानी गायत्री को अपने सामने घुटनो पर बैठाकर सिगरेट के कश मारते हुए अपना लंड चुसवा ही रहा था की उसका फ़ोन बजने लगा..
गौतम फ़ोन उठाकर - हेलो माँ...
सुमन - क्या कर रहा है ग़ुगु..
गौतम - कुछ नहीं माँ नानी के साथ थोड़ी सी मस्ती कर रहा था..
सुमन - अपनी नानी को परेशान तो नहीं कर रहा ना ग़ुगु तू?
गौतम - परेशान क्यों करूँगा माँ.. नानी तो अपने आप से ही मेरी हर बात मान लेती है..
सुमन - क्या कर रही है नानी..
गौतम - कुल्फी चूस रही है माँ...
सुमन - कुल्फी?
गौतम - हाँ माँ.. बाहर कुल्फी वाला आया था तो मैंने लेकर नानी को दे दी वो मेरे सामने चूस रही है बैठके...
सुमन - बेटा नानी को ज्यादा कुल्फी मत चूसाना वरना उनको ठंड लग जायेगी..
गौतम - उसकी चिंता आप मत करो ना.. मैं हूँ ना..
सुमन - अच्छा तुझे पिंक ज्यादा पसंद है या येल्लो?
गौतम - पहले बताओ क्यों पूछ रही हो? कुछ खरीद रही हो ना मेरे लिए?
सुमन - क्यों शादी में मेरा ग़ुगु जीन्स शर्ट ही पहनेगा क्या? एक सूट पसंद आया है.. जल्दी से कलर बता कोनसा लूँ?
गौतम सिगरेट का कश लेकर गायत्री के मुंह में लोडा आगे पीछे करते हुए - रहने दो माँ क्यों किसी औऱ का अहसान ले रही हो..
सुमन - अरे अहसान की क्या बात है इसमें? मैं अपने पैसो से ले रही हूँ.. तू बस कलर बता औऱ ज्यादा बात मत कर..
गौतम - ब्लैक.. पर साइज कैसे पता चलेगा आपको, सही है या नहीं?
सुमन - रोज़ अपनी छाती से लगा के सोती हूँ तुझे.. तेरी ऊपर से नीचे तक की नाप मुझे मुंह जबानी याद है..
गौतम सिगरेट का आखिरी कश लेकर - अपने लिए क्या ले रही हो?
सुमन - मेरे लिए क्या? मेरे पास तो पहले से इतना कुछ है..
गौतम - अगर अपने लिए कुछ नहीं ले रही हो तो मेरे लिए भी मत लेना.. मैं नहीं पहनूंगा समझी?
सुमन - अच्छा ठीक है मेरे शहजादे.. ले लुंगी अपने लिए भी कुछ..
गौतम - कुछ नहीं.. कुछ अच्छा लेना.. वरना मुझे जानती हो आप..
सुमन हस्ते हुए - अच्छा मेरे छोटे से ग़ुगु ज़ी.. ले लुंगी कुछ अच्छा सा.. तेरे लिए भी औऱ मेरे लिए भी..
गौतम - ठीक है आई लव यू माँ..
सुमन - लव यू मेरा बच्चा..
फ़ोन कट हो जाता है औऱ फिर गौतम दोनों हाथों से गायत्री के सफ़ेद बाल पकड़ कर उसके मुंह में लोडा जोर जोर से आगे पीछे करने लगता है जिससे थोड़ी देर बाद गायत्री के मुंह में गौतम झड़कर हल्का हो जाता है औऱ इस बार भी गायत्री बिना झिझक सारा वीर्य पी कर खड़ी हो जाती है..
गौतम - मज़ा आ गया नानी.. मुंह के साथ अलगी बात चुत भी चाहिए आपकी..