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Update 48

जंगल के खंडर के जिस कमरे में गौतम औऱ सुमन ने हरिया औऱ मंजू को चुदाई करते हुए देखा था वहां अब हलकी सी सफाई कि जा चुकी थी.. एक खाट किसी ने लाकर रख दी थी जिसपर एक रुई का गद्दा भी पड़ा था औऱ साथ में एक फोल्डबल टेबल भी साइड में थी जिस पर शराब की एक बोतल सिगरेट के पैकेट लाइटर औऱ पानी की बोतल रखी हुई थी..

ये सब आज सुबह गौतम ने ही इस कमरे में रखे थे औऱ अब वो अपनी माँ को भी अपने साथ लेकर खंडर के बाहर आ चूका था औऱ गौतम सुमन का हाथ पकड़ कर उसे खंडर के अंदर ले आया.. सुमन को डर लग रहा था मगर गौतम के साथ में होने से उसका डर काफूर भी हो रहा था.. गौतम ने सुमन को अपनी गोद में उठा लिया औऱ सीढ़ियों से खंडर के ऊपरी मंज़िल पर आ पंहुचा..

सुमन के मन में इस वक्त अजीब अजीब ख्याल चल रहे थे और उसके बदन में सुरसुरी कौंध रही थी.. सुमन का दिल जोरो से धड़क रहा था और आने वाले पलों की कल्पना करके काम वासना के भाव से भरी जा रही थी.. सुमन की आंखों के सामने गौतम का चेहरा था जिसे वह बड़ी प्यार से देख रही थी और अपने हाथ से उसके प्यारे मुख को सहला भी रही थी..

सुमन को पता नहीं था कि गौतम के मन में क्या चल रहा है.. गौतम आज किसी भी कीमत पर सुमन को पा लेना चाहता था और इस नियत से वह सुमन को अपनी गोद में उठा खंडर के इस कमरे पर आ रहा था जहाँ उसने सारी तैयारी कर रही थी.. गौतम ने अपने सुहाग दिन को मनाने के लिए पूरा प्रबंध किया हुआ था..

गौतम ने सुमन को लाकर कमरे में बिछी उसी खत पर पटक दिया औऱ शराब कि बोतल खोलकर सुमन औऱ खुद के लिए एक एक पेग बना दिया..
गौतम पेग देते हुए - लो माँ..
सुमन पेग लेकर - यहां इस खंडर में करोगे अपनी ख्वाहिश पूरी?
गौतम पेग पीकर अपने लिए दूसरा पेग बनाते हुए - यहां तु खुलकर चीख-चिल्ला सकती है सुमन.. तेरी आवाजे सुनकर यहां कोई नहीं आएगा.. औऱ तु मुझसे बचकर कहीं भाग भी नहीं पाओगी..
सुमन पेग पीते हुए - मैं क्यों भागने लगी भला.. मैं भी अब तेरे साथ हर हद पार करना चाहती हूँ..
गौतम दूसरा पेग ख़त्म करके एक सिगरेट सुलगा लेता है औऱ सुमन अपना पहला पेग ख़त्म कर देती है.. गौतम सुमन के करीब खाट पर बैठ कर अपना एक हाथ सुमन के गले में डालकर उसका चुचा पकड़कर मसलते हुए सिगरेट के कश लेता हुआ कहता है..
गौतम - एक बात सच सच बतायेगी सुमन?
सुमन गौतम से सिगरेट लेकर कश मारती हुई - पूछ ना मेरी जान.. जो तुझे पूछना है.. आज तेरी माँ नहीं शर्माने वाली.. मेरे चुचे 34 कमर 28 गांड 36 है..
गौतम सुमन के निप्पल्स मरोड़ता हुआ - मेरा असली बाप कौन है?
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सुमन सिसकती हुई - आह्ह.. गौतम.. ये तू केसा सवाल कर रहा है.. जगमोहन तेरा बाप है..
गौतम सुमन से सिगरेट लेकर कश मारता हुआ वापस सुमन के चुचे पर उभरा हुआ चुचक मसल देता है औऱ बोलता है - सुमन मै मज़ाक़ नहीं कर रहा.. सच सच बता.. मेरा असली बाप कौन है?
सुमन दर्द से - अह्ह्ह्ह.. ग़ुगु मरोड़ मत मेरी निप्पल्स.. औऱ तू अचानक कैसी बात कर रहा है.. औऱ क्या बेतुका सवाल पूछ रहा है...
गौतम सिगरेट का कश लेकर सिगरेट फर्श पर फेंककर अपने जूते से बुझा देता है औऱ सुमन को धक्का देकर खाट पर पीठ के बल लिटाता हुआ उसके ऊपर चढ़कर उसके बालो को अपनी मुट्ठी में भींचकर पकड़ते हुए कहता है - मुझे चुतिया समझा है माँ तूने? चुपचाप मुझे मेरे असली बाप का नाम बता दे.. वरना आज चोदने के बाद तुझे हमेशा के लिए अकेला छोड़ जाऊँगा..

सुमन हैरानी परेशानी औऱ फ़िक्र से भरी हुई - ग़ुगु तू क्या बोले जा रहा है बेटा.. तू जो बोले रहा है मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा..
गौतम गुस्से में एक जोरदार तमाचा सुमन के गाल पर मार देता है औऱ कहता है - अब समझ आया तुझे रंडी? बंद कर अपना ये संस्कारी बनने का ढोंग.. मुझे पता चल गया तू कितनी बड़ी रांड रह चुकी है..
सुमन अपने गाल पर हाथ लगा कर - बेटा.. मैं सच कह रही हूँ तेरा बाप जगमोहन ही है..
गौतम हलके नशे में थोड़ा पीछे होता है औऱ सुमन की साडी का पल्लू हटाकर सुमने के चुचो पर अपने दोनों हाथ रखकर ब्लाउज को कस के पकड़ता है औऱ इतना जोर से खींचता है कि सुमन कि छाती पर से उसका ब्लाउज एक बार में फटकार अलग हो जाता है औऱ साथ में ब्रा भी उतर जाती है..

गौतम सुमन के दोनों चुचो को अपने दोनों हाथों के पंजो में पकड़कर दबा दबा के मसलते हुए - अब तो सच बोल दे रंडी.. मैं जान गया हूँ जगमोहन मेरा बाप नहीं है औऱ ना ही वो किसी औऱ का बाप बन सकता है.. ना ही कभी बन सकता था.. वो शुरु से बाप बनने के काबिल नहीं था.
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सुमन गोतम को हैरानी से देखती हुई सिसक कर - गौतम तुझे कैसे..
गौतम सुमन के तनकर खड़े हुई चुचक को मुंह में लेकर चूसता हुआ - मुझे कैसे पता? तू यही सोच रही है ना सुमन.. आज मुझे बहुत कुछ पता चला है तेरे बारे में.. अब मुझे सच सच बता कौन है मेरा असली बाप?
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सुमन गोतम के चेहरे को पकड़कर उसके होंठ पर अपने होंठ रखते हुए चूमती हुई - छोड़ ना गौतम.. अब क्या फर्क पड़ता है.. सालों पहले की बात है..
गौतम सुमन में बाल पकड़कर उसके होंठों को अपने होंठों से अलग करता हुआ उसकी आँखों में देखकर कहता है - फर्क पड़ता है माँ.. तू शादी से पहले जिस जिस के नीचे लेटी है मुझे उनसे कोई मतलब नहीं है.. बस तू इतना बता दे उनमे से मेरा बाप कौन था?
सुमन गौतम के हाथों से अपने बाल छुड़ाकर वापस उसके होंठों पर टूट पडती है औऱ गौतम को चूमती हुई कहती है - उन सब बातों का अब क्या फ़ायदा मेरे शहजादे.. देख तेरी माँ आज तुझे पूरी तरफ से अपनाने को तैयार है.. कर ले अपने मन कि हर ख्वाहिश पूरी बेटा.. होजा मेरे साथ एक जिस्म दो जान..
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गौतम फिर से सुमन के होंठों से अपने होंठ हटाते हुए - मुझे जानना है माँ.. कि कौन था वो जिसने तेरी टाँगे चौड़ी करके तेरी चुत में लंड घुसाकार अपना माल तेरी चुत में झाड़ा जिसके करण तूने मुझे अपनी चुत से निकला..
सुमन अपनी साडी निकालकर पटीकोट का नाड़ा खोलती हुई - गौतम तू कैसी बातें लेकर बैठ गया.. आज तेरा औऱ मेरा पहला मिलन है.. देख तेरी माँ ने तेरे लिए आज अपनी चुत के सारे बाल शेव करके चुत को कितना चिकना कर दिया है...
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गौतम सुमन के मुंह पर थूक देता है औऱ कहता है - हट माँ.. अगर तू मुझे उस आदमी का नाम नहीं बतायेगी तो तुझे चोदने से अच्छा है मैं कोठे पर कोई रंडी चोद लु..
सुमन गौतम का थूक चेहरे से साफ करके मुंह में भर लेटी है औऱ गटकते हुए गौतम का शर्ट खोलती हुई कहती है - मुझे कोठे की रांड समझकर ही चोद ले ग़ुगु.. मैं कोनसी कुछ कह रही हूँ.. तू तो फालतू की ज़िद पकड़ कर बैठ गया.. अब इतने साल बाद क्या मतलब इन बातों का..
गौतम शर्टलेस होकर उठकर कमरे की खिड़की से बाहर जंगल की तरफ देखने लगता है औऱ सुमन से कहता - मुझे मेरे असली बाप का नाम तक नहीं पता औऱ तू कहती है मैं फालतू की ज़िद पकड़ कर बैठा हूँ..
सुमन टेबल पर रखी शराब की बोतल से एक पेग बनती है औऱ पेग के साथ सिगरेट लाइटर हाथ में लेकर गौतम के पास आती है.. - नाम जानने से क्या हो जाएगा गौतम.. हम अब तक जैसे जी रहे थे वैसे ही जी सकते है ना.. तू कब से मेरे पीछे पडा था.. अब जब मैं तैयार हूँ तो तू ऐसे कर रहा है.. ये कहते हुए सुमन ने पेग गौतम के हाथ में दे दिया औऱ उसके होंठों पर एक सिगरेट लगाकर जलाते हुए अपने घुटने पर आ बैठी.. सुमन गौतम की जीन्स का हुक खोलकर उसके लंड को चूमने लगी..
गौतम सिगरेट का कश लेकर पेग पिने लगा औऱ फिर अपने आगे घुटनो पर बैठकर अपने लंड ओर चुम्मिया बरसाती हुई होनी माँ सुमन को देखता हुआ बोला - मैं तुझे औऱ कुछ नहीं कहूंगा सुमन.. तू बस मुझे इतना बता दे की मैं किसके लंड की पैदाईश हूँ?
सुमन लंड पर चुम्मियो की बरसात करने के बाद लंड को मुंह में भरती हुई - आज क्या हुआ है तेरे लंड को गौतम? इतनी चुम्मिया करने औऱ हिलाने के बाद भी खड़ा नहीं हो रहा..
गौतम पेग ख़त्म करके गिलास एक तरफ रख देता है औऱ सिगरेट का लम्बा कश खींचकर सुमन के बाल पकड़कर उसे खड़ा करके उसके मुंह पर सिगरेट का धुआँ छोड़ते हुए कहता है - जब तक इसे अपने बाप का नाम नहीं पता चलता ये खड़ा नहीं होने वाला.. समझी सुमन.. अब बता कौन है मेरा बाप? क्या वो बाबा मेरा असली बाप है जिसके पास जाकर तू कुछ ना कुछ मांगती रहती है..
सुमन हिचकती हुई - गौतम.. बाबाजी के साथ मेरा कोई रिश्ता नहीं रहा..
गौतम सिगरेट का कश लेकर सिगरेट खिड़की से बाहर फेंक देता है औऱ सुमन की चुत को अपनी मुट्ठी में पकड़कर मसलते हुए कहता है - रिश्ता कैसे नहीं रहा? उसने तुझे नंगा नहीं किया था रातों में? तेरी इस चुत में लंड तो उसका भी जा चूका है.. मैं जान चूका हूँ की बच्चे की मन्नत लेकर आई हर औरत को बाबाजी औऱ उसका साथी किशोर रात रात भर होने बिस्तर में चोदते है.. तुझे भी चोदा होगा ना वहा किसीने जब तू बच्चे की मन्नत लेकर वहा गई थी..

सुमन सिसकियाँ लेती हुई गौतम को बाहों में भरकर उसे चूमती हुई - नहीं मेरे शहजादे.. अह्ह्ह्ह... मैं तेरी कसम खाती हूँ.. मैं उस पहाड़ी पर बाबाजी के बिस्तर में नंगी जरुर हुई थी मगर वक़्त रहते मैंने अपना इरादा बदल लिया था औऱ मैं बीना चुदे ही वहा से वापस आ गई थी..

गौतम सुमन को चूमता हुआ खाट में आ जाता है औऱ उसके चुचो का मर्दन करता हुआ कहता है - वहा नहीं चुदी तो कय हुआ माँ? संजय मामा ने तो तुझे शादी के बाद भी बहुत बार चोदा था.. क्या मैं उसकी चुदाई से पैदा हुआ हूँ?
सुमन गौतम का लंड पकड़कर अपनी चुत पर रगडती हुई - नहीं बेटा.. तेरे मामा ने मेरी शादी के बाद कभी मेरी चुत में अपना माल नहीं झाड़ा.. तू तेरे मामा का बेटा नहीं है ग़ुगु..
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गौतम सुमन के चुचो को दांतो से खींचता हुआ चूसता है औऱ सुमन की आँखों में देखकर कहता है - तो क्या मैं तेरे उस पुराने आशिक विजय का बेटा हूँ, जो तुझे सिनेमा दिखाने के बाद अपने दोस्त कमल की पंचर की दूकान में लेजाकर चोदता था.. जिससे तू अब इतने सालों बाद फिर से इंस्टा पर बात करने लगी है..
सुमन गौतम का लंड चुत पर रगढ़ते हुए चौंककर - गौतम तुझे कैसे पता मैं इंस्टा चलाती हूँ औऱ विजय से बात करने लगी हूँ?

गौतम सुमन की गर्दन चाटता हुआ - पूराना अकाउंट डिलीट करके नया बना लेने से तुझे क्या लगा.. मुझे आता नहीं चलेगा.. शर्मीली सुमन नाम से अकाउंट बनाया है ना तूने नया.. उसपर अपनी चिकनी कमर की फोटो डालने से तुझे क्या लगा मुझे पता नहीं चलेगा? माँ.. तेरी कमर के तिल ने मुझे बता दिया कि ये तेरा अकाउंट है.. मैंने तेरे फ़ोन में इंस्टा के पास देखकर अपने फ़ोन में तेरा अकाउंट खोला था सुबह.. औऱ जिस जिस से तूने जो जो बात कि है सब पढ़ ली..
सुमन शर्माते हुए - गौतम तूने ऐसा क्यों किया.. मुझे शर्मिंदा करने से तुझे क्या मिल जाएगा.. मैं तेरी सगी माँ हूँ क्या ये तेरे लिए काफी नहीं?
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गौतम सुमन की टाँगे चौड़ी करके उसके चुत के दाने को चूमकर होंठों से खींचता हुआ - मुझे बस अपने बाप का नाम जानना है सुमन.. अगर तू मुझे उसका असली नाम बता देगी तो मैं वादा करता हूँ.. मैं अपने ईस लंड की छत्रछाया मैं तुझे हमेशा सुखी रखूँगा.. बता सुमन कौन है मेरा असली बाप? क्या वो विजय का दोस्त कमल है? जो विजय के चोदने के बाद तेरी चुदाई करता था..
सुमन गौतम का सर पकड़कर अपनी चुत में घुसाती हुई - नहीं.. गौतम.. वो ना विजय है ना कमल..
गौतम जोर जोर से सुमन की चुत चाटता हुआ - तो बता ना रंडी.. वो कौन है? कौन है मेरा असली बाप?
सुमन का बदन अकड़ने लगता है औऱ वो गौतम के मुंह में झड़ते हुए एक नाम लेती है - वो तेरे चाचा है गौतम.. बृजमोहन..
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गौतम के मुंह पर सुमन की चुत से जबरदस्त पिचकारी की धार निकलकर पडती है औऱ गौतम का सारा मुंह सुमन के पानी से भीग जाता है..
सुमन झड़ने के बाद तेज़ तेज़ सांस लेती हुई सिसकियाँ लेकर - वो तेरा चाचा है गौतम.. तेरा चाचा ही तेरा असली बाप है..
गौतम सुमन की चड्डी से अपना चेहरा साथ करता हुआ - बृजमोहन..
सुमन शरमाते हुए पछतावे से - हाँ गौतम हां.. बृजमोहन.. वही है तेरा असली बाप..
गौतम खाट से खड़ा होकर पानी की बोतल से पानी पीते हुए सुमन को देखकर - मुझे सारी बात बता माँ.. उसने कब औऱ कैसे क्या क्या किया तेरे साथ...
सुमन - वो सब जानकर तू क्या करेगा बेटा.. रहने दे उन बातों को..
गौतम वापस खाट पाकर सुमन की टाँगे चौड़ी करके चुत के छेद लड़ लंड टिका कर दबाव बनाते हुए - मुझे सब जानना है माँ.. तेरे साथ उसने कब कब औऱ क्या क्या किया है..
सुमन गौतम के लंड को चुत के अंदर लेने के लिए पकड़ लेती है चुत में घुसाने लगती है जिसमे उसे बहुत दर्द भी होने लगा था
सुमन सिसकियाँ लेती हुई - बता दूंगी बेटा.. सबकुछ बता दूंगी.. अब तुझसे छीपा कर करुँगी भी क्या?

फूलों का लेप लगाने से सुमन की चुत सिकुड़ चुकी थी और उसे गौतम का मोटा लंड लेने में बहुत तकलीफ होने लगी थी सुमन अभी तक केवल लंड का टोपा ही अपनी चुत में घुसा पाई थी कि उसकी आहे निकलने लगी वो तेज़ सिसकियाँ लेने लगी और किसी कुंवारी की तरह मचलने लगी..
सुमन को समझ नहीं आ रहा था कि अचानक उसे यह क्या हुआ है और वह कैसे इतनी सिकुड़ी हुई चुत की मालकिन बन गई है.. गौतम ने अपनी पूरी कोशिश और दबाव डालते हुए सुमन की सिकुड़ चुकी चुत में अपने लंड को टोपे से थोड़ा आगे औऱ प्रवेश करवा दिया औऱ सुमन के चेहरे पर आते कामुकता औऱ दर्द से भरपुर भावो को देखने लगा.. जिसमे उसे अद्भुत आनंद आ रहा था.. गौतम सोच रहा था ईसी योनि से सालों पहले दो बच्चे निकल चुके हैं लेकिन अभी यह योनि कितनी टाइट है और लेप लगाने के बाद कितनी सिकुड़ चुकी है..

सुमन सिसकियाँ भरती हुई - आराम से गौतम बहुत दर्द हो रहा है.. पता नहीं कैसे इतनी सिकुड़ गई..पता नहीं कैसे तेरे इतने बड़े लंड को अंदर ले पाऊँगी..
गौतम सुमन को देखता हुआ - माँ मुझे माफ़ कर दो..
सुमन - क्यों बेटा.. तूने कोनसी गलती कर दी जो तू माफी मांग रहा है.. सारी गलती तो मेरी है..
गौतम - गलती की नहीं माँ.. करने वाला हूँ..
सुमन - कैसी गलती गौतम..
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गौतम ने एक हाथ सुमन की गर्दन के नीचे लेजाकर उसका कन्धा पकड़ लिया औऱ दूसरे हाथ से सुमन की गांड औऱ पूरी ताकत से एक धमाकेदार झटके के साथ अपने लंड को सुमन की चुत के अंदर पूरा जड़ तक घुसेड़ दिया जिससे सुमन की चुत में गौतम का पूरा लंड घुस गया औऱ खून की कुछ बुँदे चुत से निकल कर बह गई.. इसीके साथ सुमन के गले से इतनी जोर से चीखे निकली की खंडर से दूर दूर तक हवा में उसकी आवाज सुनाई दे जा रही थी.. गौतम के चेहरे पर विजयी मुस्कान थी औऱ सुमन के चेहरे पर दर्द शिकायत औऱ रहम की उम्मीद करती आँखों के साथ दया के भाव.

सुमन गुस्से औऱ दर्द से चिल्लाते हुए गौतम के गाल पर थप्पड़ मारती हुई - गौतम मादरचोद..
गौतम सुमन के दोनों हाथ पकड़कर सुमन के होंठों पर अपने होंठ रखकर उसका मुंह बंद करता हुआ - सुमन बेटाचोद..

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सुमन की चुत में गौतम का लंड बच्चेदानी तक घुसा हुआ था औऱ उसके दोनों हाथ गौतम ने अपने हाथों से पकड़कर सर के ऊपर कर दिए थे.. उसके होंठों पर भी गौतम ने अपने होंठ चिपका दिए थे.. सुमन की आँखों से आंसू की बुँदे निकल कर बह रही थी.. गौतम सुमन की आँखों में रहम औऱ शिकवे के उठते भाव देख सकता था..

गौतम अब प्यार से सुमन के होंठ चूमने लगा था औऱ मगर फिर भी सुमन गौतम का साथ नहीं दे रही थी औऱ गौतम के होंठो की क़ैद से बार बार अपना मुंह इधर उधर घुमाकर अपने होंठों को रिहा करवा रही थी.
गोतम अपनी माँ की इस हरकत पर मुस्कुराते हुए उसे देख कर बार बार उसके होंठों को अपने होंठों में भरकर चुमने की कोशिश कर रहा था औऱ बार बार सुमन गौतम के होंठों से अपने होंठ छुड़वा रही थी.. सुमन जब मुंह घूमती तो गौतम उसके गाल औऱ गर्दन पर चुम लेटा औऱ प्यार से जीभ निकालकर चाट लेटा..

सुमन को अब इस छेदखानी में हल्का मीठा सा मज़ा आने लगा था औऱ उसकी चुत में घुसा हुआ गौतम का शैतानी लड उसे पहले की तुलना में कम दर्द दे रहा था.. 10-15 मिनट तक ऐसा ही चलता रहा औऱ गौतम सुमन के होंठों के बीच की जंग जारी रही जिसमे बार बार गौतम को सुमन से हार का सामना करना पड़ रहा था.
अब गौतम मुस्कुराते हुए सुमन को देखकर उसे छेड़े जारहा था जिससे सुमन को भी अच्छा लगने लगा था..
गौतमप्यार से - इतने नखरे? लगता है मेरी माँ को बहुत गुस्सा आ रहा है मेरी ऊपर..
सुमन गौतम की बात पर अपने हाथ गौतम के हाथों से छुड़वा कर गौतम के चेहरे को पकड़ लेती है औऱ गौतम के होंठों को अपने होंठों में भरके चूमती हुई दांतो से इतना जोर से काटती है की गौतम की आह्ह निकल जाती है औऱ वो दर्द से चीख उठता है औऱ कहता है..
गौतम - तेरी माँ को चोदू.. खा जायेगी क्या? दर्द होता है ना..

सुमन वापस गौतम के होंठ चूमते हुए - सिर्फ तुझे ही दर्द होता है क्या.. रंडी की औलाद.. एक झटके में इतना बड़ा लंड घुसाया है मेरे दर्द नहीं होता क्या? मेरी चुत से खून निकाल दिया तूने..
गौतम चुत से निकला हुआ खून जो गौतम औऱ सुमन की कटी हुई साफ झांटो पर लंड औऱ चुत के मिलन के आसपास चिपचिप कर रहा था, उसे ऊँगली में लगाकर सुमन के मांग में भर देता है औऱ कहता है - इसी खून से मैं तेरी मांग भर रहा हूँ माँ.. आज से तू मेरी हुई.. मुझे ख़ुशी है मेरी दुल्हन कुंवारी निकली.. आज से तेरी चुत पर सिर्फ मेरा हक़ है सुमन..

सुमन का दर्द अब बहुत कम हो चूका था औऱ मीठा मीठा अहसास हुए होने लगा था.. पिछले 20 मिनट से गौतम का लंड उसकी चुत में पूरा घुसा हुआ था औऱ गौतम उसके ऊपर लेटा हुआ था..
सुमन गौतम होंठ दांतो से खींचकर चूमती हुई अपना मगलसूत्र उतारकर उसे देती हुई - मांग तो भर दी तूने मेरी शहजादे.. मगलसूत्र भी पहना दे..
गौतम मगलसूत्र पहनाता हुआ - शादी मुबारक हो माँ..
सुमन - अब बेटा.. इस हालत में मैं तेरे पैर छूकर तेरा आशीर्वाद कैसे लूँ?
गौतम - चुदाई के बाद पैर छू लेना माँ.. मैं नहीं रोकूंगा.. अब बताओ मुझे वो सब कुछ.. जो तेरे औऱ चाचा के बीच हुआ था.. एक भी बात मुझसे मत छुपाना..
सुमन - मेरी चुत में लंड घुसा के तू मुझसे मेरी चुदाई की कहानी सुनेगा? मुझे शर्म आएगी बेटा..
गौतम सुमन के निप्पल्स से छेड़खानी करता हुआ - पति पत्नी में शर्म अच्छी बात नहीं है माँ.. जो हुआ था वो साफ साफ औऱ खुलके कहो.. मैं सुनने को बेताब हूँ..
सुमन - एक पेग पीके बताती हूँ.. एक बार निकाल ले..
गौतम खाट से थोड़ा दूर रखी टेबल को हाथ बढाकर अपने करीब खींचता है औऱ सुमन से कहता है - लंड नहीं निकलेगा माँ.. पेग मैं यही से बना देता हूँ..
गौतम पेग बनाकर सुमन को पीला देता है.. सुमन पेग पीके एक सिगरेट अपने होंठों पर लगा लेती है औऱ लाइटर से सुलगाते हुए पहला लम्बा कश लेकर धुआँ छोड़ते हुए कहती है..
सुमन - तो सुन मेरे शहजादे.. मैं आज तुझे वो बात बता देती हूँ जो अबतक किसी को नहीं पता.. तेरे चाचा बृजमोहन को भी नहीं..
गौतम - क्या? चाचा को भी नहीं पता मतलब?
सुमन - हाँ गौतम.. तेरे चाचा भी नहीं जामते कि तू उनका बेटा है..
गौतम - ये कैसे मुमकिन है माँ.. चाचा को भी नहीं पता कि मैं उनका बेटा हूँ..
सुमन - हुआ ही कुछ ऐसा था गौतम.. पता नहीं इसमें किसका दोष था..
गौतम - मुझे साफ साफ पूरी कहानी शुरुआत से बताओ माँ.. क्या हुआ था?

सुमन सिगरेट का अगला कश लेकर - बात तेरे पैदा होने से 9 महीने पहले की है जब मेरी शादी को 3 साल हो चुके थे औऱ मुझे कोई बच्चा नहीं हुआ था.. सब मुझे बाँझ समझने लगे थे मगर मैं जानती थी कि कमी मुझमे नहीं है क्युकी ऋतू भी मेरी ही कोख से जन्मी थी.. लेकिन फिर भी मैं सबकी बातें सुनकर बाबाजी के पास एक औलाद की मन्नत लेकर आने लगी.. औऱ हर तरह एक बच्चा पैदा करने के जतन करने लगी.. फिर एक दिन वो हुआ जिसकी मुझे उम्मीद नहीं थी..

सवान के बाद भादो ने गाँव की उस धरती को बारिश की तेज़ तर्रार बूंदो से सराबोर कर रखा था शाम के वक़्त की बात थी जब जगमोहन तेरे दादा के साथ खेत की जुताई के लिए खाद लेने गया था औऱ बारिश का पानी भर जाने से आने जाने वाला रास्ता पानी के भराव से बंद हो चूका था औऱ जगमोहन तेरे दादाजी के साथ वही फंस गया था.. तेरी दादी पड़ोस के गाँव में तेरी दादी हेमा की मुंह बोली बहन माला के यहां उसके बेटे के लगन में गयी थी औऱ वो भी बारिश के करण वही फंस गई थी.. मानसी की तबियत खराब थी और वो गलती से मेरे कमरे में आकर सो गई थी..
मौसम की बरसात, ठंडी बहती हवा औऱ जोबन का बाईसवा साल.. मेरा अंग अंग नई तरंग से भरकर मुझे कामोतेजना में खींच रहा थ.. मैं उस वक़्त मेरे शरीर की आग बुझाना चाहती थी.. शाम से रात का समय हो चला था अमावस की रात में घर के कई कोनो में मैंने दिए जला के रख दिए थे.. लाइट का कोई नामो निशान नहीं था. मैं तेरे चाचा बृजमोहन के कमरे में दिया रखने गई थी कि तभी बाहर से मुझे किसी के आने की आहट सुनाई दी औऱ मैं इससे पहले की पीछे देख पाती किसीने मुझे पीछे से अपनी बाहों में भर लिया. मेरी हाथ से दिया नीचे गिरकर बुझ गया था औऱ अब कमरे में अंधेरा ही अंधेरा था.. अमावस की उस काली रात में अन्धकार इस तरह फैला हुआ था जैसे दिल्ली की हवाओ में ज़हर...

मैं शराब की आती बू से समझ गई थी की ये ब्रिजमोहन ही है.. उसने मुझे सीधा बिस्तर पर लिटा दिया औऱ मेरी साडी ऊपर करके पीछे से उसने सीधा लंड मेरी चुत में डाल दिया औऱ कुछ देर चोदा.. वो नशे में धुत मुझे मानसी समझकर मुझे चोदे जा रहा था औऱ मैं काम भावना से भरी हुई चुपचाप उससे चुदे जारही थी.. मैं झड़ गई थी औऱ कुछ पलों में वो भी झड़ गया था.. नशे की हालत में बृजमोहन पूरी तरह उतर हुआ था औऱ मुझे चोदने के बाद वो बिस्तर पर ही उल्टा मुंह करके सो गया था.. उसे अँधेरे में ये भी नहीं दिखा कि जिसे वो मानसी समझ रहा था वो मानसी नहीं थी..
चुदने के बाद मैं वहा से बाहर आ गयी जब मौसम ठीक हुआ औऱ तेरे दादा दादी औऱ जगमोहन घर आये तो सब कुछ पहले की तरह ही था.. दिन बीतने लगे औऱ कुछ समय बाद मुझे एक दिन पता चला कि मैं पेट से हूँ.. फिर तू पैदा हुआ औऱ उसके 2 साल बाद कुसुम.. कुसुम के पैदा होने के छः महीने बाद ही हमने मीलकर तेरी औऱ कुसुम कि शादी करवा दी.. मगर फिर बटवारे का विवाद खड़ा हो गया औऱ हमें यहां आना पड़ा..
सुमन आखिरी कश लेकर मुंह से धुआँ छोड़ती हुई - बस गौतम.. यही सब हुआ था..

गौतम सुमन की गांड पकड़कर बिना लंड चुत से निकाले सुमन को खाट के बीच में लाते हुए - टाँगे चौड़ी कर ले माँ.. मैं शुरु कर रहा हूँ..
सुमन टाँगे फैलाती हुई - धीरे धीरे करना बेटा.. अभी भी दर्द बाकी है..
गौतम लंड को आधा बाहर निकालकर वापस अंदर डाल देता है औऱ अब ऐसे ही सुमन को चोदने लगता है..
गौतम चोदते हुए - आज किसी रहम की उम्मीद मत कर मुझसे सुमन..
सुमन खुलकर मादक सिसकियाँ भरती हुई - अह्ह्ह्ह... अह्ह्ह्ह.... अह्ह्ह्ह... गौतम.. आह्ह.. अह्ह्ह्ह... बेटा धीरे... अह्ह्ह्ह... गौतम... अह्ह्ह्ह अह्ह्ह.. आराम से बेटा.. अह्ह्ह्ह.. दर्द हो रहा है.. अह्ह्ह्ह... गौतम... अह्ह्ह्ह... bbc-porn-gif-46
दिन के तीन बजे का समय था जब गौतम ने सुमन को खंडर के उस कमरे में चोदना शुरु किया औऱ खाट पर लेटाकर मिशनरी में सुमन की चुत की खुदाई शुरु कर दी.. गौतम पुरे जोश में धक्के पर धक्के मारता हूँ सुमन को चोद रहा था औऱ सुमन गौतम का लंड झेलती हुई किसी कुत्तिया की तरह उसके सीने में अपने नाख़ून गड़ाकर दहाड़े मार मार चिल्ला रही थी औऱ गौतम से आराम से चोदने की गुहार लगा रही थी मगर गौतम अपनी माँ को ऐसे चोद रहा जैसे वो कोई बाज़ारू रांड हो.. गौतम के मन कोई पछतावा औऱ दुख नहीं था वो आज सुमन की चुत पर अपने लंड की सील लगा देना चाहता था औऱ उसके लिए पूरी जोशओखरोश से सुमन को चोद रहा था..
मिशनरी पोज़ में गौतम के मारे हर एक झटके पर सुमन ऊपर से नीचे तक पत्ते की तरफ फड़फड़ाती हुई हिल रही थी औऱ चीखते हुए आह्ह कर रही थी....
गौतम चोदते हुए - औऱ जोर से चिल्ला माँ.. यहां तेरी कोई नहीं सुनने वाला..
सुमन चिल्लाते हुए - आराम से गौतम.. अह्ह्ह्ह.. अह्ह्ह्ह... माँ हूँ तेरी.. अह्ह्ह्ह... धीरे... आराम से..
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गौतम सुमकी दोनों टांग अपने कंधे पर रखकर चुत में ताबड़तोड़ झटके मारते हुए - माँ के साथ दुल्हन भी तो है तू मेरी सुमन.. झटके तो ऐसे ही पड़ेगे तेरी चुत में मेरी जान.. जितना जोर से चिल्लाना है चिल्ला..
सुमन सिसकती हुई हाथ जोड़कर - अह्ह्ह्ह... गौतम.. भगवान के लिए.. आराम से बेटा.. मेरे वापस दर्द होने लगा है.. चुत में.. धीरे चोद मुझे.. धीरे चोद बेटा..
गौतम जब सुमन को हाथ जोड़ता देखता है तो वो सुमन के दोनों हाथ अपने हाथ में पकड़ लेता है औऱ जोर से पूरी रफ़्तार से झटके मारने लगता है जिससे सुमन कुतिया की तरह अह्ह्ह... अह्ह्ह.. करती हुई गला फाड़ फाड़ कर चिल्ला है.. औऱ गौतम को देखकर रोने जैसा मुंह बनाकर चुदती है..
सुमन - अब नहीं गौतम.. अब नहीं.. बहुत दर्द हो रहा है. अह्ह्ह्ह... छोड़ मुझे.. आराम से.. गौतम...
गौतम हाथ छोड़कर सुमन की चुत से लंड निकाल लेता है औऱ सुमन की गांड पकड़ कर उसे पलटकर खाट पर अपने आगे घोड़ी बना लेता है औऱ मजबूती से उसकी कमर थाम कर लंड वापस चुत में घुसा देता है जिससे वापस सुमन की आह्ह निकल जाती है.. इस बार चुत औऱ लंड के मिलन की मधुर आवाज से कमरा औऱ खंडर का कुछ हिस्सा गूंजने लगता है..
सुमन - अह्ह्ह.. गौतम.. अह्ह्ह्ह...
गौतम सुमन की कमर पकड़कर चुदाई के मीठे झटके मारता हुआ - अब मज़ा आ रहा है ना माँ? अब तो दर्द नहीं हो रहा ना तेरी चुत में?
सुमन घोड़ी बनी हुई - अह्ह्ह.. बेटा.. आह्ह... अह्ह्ह्ह.. गौतम आराम से... अह्ह्ह.. आराम से.. ऐसे ही.. धीरे धीरे... अह्ह्ह्ह...
गौतम - अब तो नहीं रोकेगी ना माँ मुझे अपनी इस चुत की सवारी करने से
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सुमन - नहीं ग़ुगु... तू ऐसे ही प्यार से करता रह बेटा.. बहुत मज़ा आ रहा है.. सालों बाद आ जाकर मुझे ठंडक मिल रही है.. अह्ह्ह्ह...
गौतम सुमन के बाल अपनी मुट्ठी में भींचकर पीछे से झटके मारते हुए - बहुतो को चोदा माँ.. पर तेरे जैसी कोई नहीं.. परफेक्ट अरेबियन घोड़ी है तू.. तेरी सवारी करने में लंड को मज़ा आ रहा है..
सुमन - ऐसे ही चोद अपनी माँ को घोड़ी बनाके गौतम.. आह्ह.. चोद मुझे..
गौतम सुमन की बात सुनकर चोदने की स्पीड बढ़ा देता है औऱ रफ़्तार से सुमन की चुत मारने लगरा है..
सुमन - अह्ह्ह.. गौतम.. आराम से दर्द हो रहा है आह्ह.. बेटा.. धीरे...
गौतम सुमन की बात नहीं सुनता औऱ झटके मारता हुआ सुमन के बाल खींचकर मज़े से उसकी चुदाई करता है औऱ सुमन अह्ह्ह करती हुई जोर से चिल्लाने लगती है..
सुमन - गौतम दर्द हो रहा है... आह्ह... धीरे कर.. अह्ह्ह.. आराम से कर गौतम...
गौतम सुमन के बाल छोड़कर उसकी कमर में हाथ डालकर आगे से उसका पेट पकड़ लेता है औऱ उसे अपने ऊपर लेते हुए खुद खाट पर पीठ के बल लेट जाता है औऱ सुमन की चुत में नीचे से धक्के पर धक्के मारते हुए उसकी चुत के दाने को रगडकर मसलने लगता है..
सुमन पूरी कामुकता की नदी में बहती हुई - अह्ह्ह्ह.. बेटा.. उम्म्म्म... अह्ह्ह्ह.... ऐसे ही... अह्ह्ह्ह... चोद गौतम.. उम्म्म्म... अह्ह्ह्ह... उह्ह....
गौतम - मज़ा आ रहा है ना माँ?
सुमन - बहुत मज़ा आ रहा है बेटा.. ऐसे ही चोद अपनी माँ..
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गौतम सुमन के चुचे पर हाथ रखते हुए - माँ तेरे चुचे कितने तेज़ हिल रहे है..
सुमन - मेरे कहा है बेटा. अब सब तेरा है.. मेरा चुचा मेरी चुत औऱ मैं.. सब.. तेरी है...
गौतम रफ़्तार से झटके मारते हुए चुत के दाने को ऊँगली से तेज़ रगढ़ता है औऱ सुमन को चोदता है..
सुमन मादकता भरी सिस्कारी लेती हुई झड़ जाती है औऱ साथ में तेज़ तेज़ धार निकाल कर चुत से मूत भी देती है जिसमे गौतम का हाथ मूत से गिला हो जाता है औऱ उसका लंड बाहर निकल जाता है..

गौतम का लंड अब भी तनकर योद्धा की तरह खड़ा था औऱ सुमन झड़कर गोतम के सीने के ऊपर से हटकर खाट से उतरती हुई खड़ी होने की कोशिश में लड़खड़ा कर फर्श पर गिर जाती है औऱ खाट पकड़कर वापस खड़ी होने की कोशिश करने लगती है मगर बहुत जोर लगाने पर भी हिलती हुई टांगो से खड़ी होकर काँपती हुई खाट पर वापस बैठ जाती है.. चुदाई में लगी मेहनत औऱ बहे पसीने से शराब का नशा उतरकर पूरा हल्का हो चूका था..
सुमन गौतम को देखती हुई शिकायत भरी आवाज में - प्यार से भी तो कर सकता है तू..
गौतम शराब के दो लार्ज़ पेग बनाकर एक पेग सुमन को देदेता है औऱ दूसरा खुद पिने लगता है.. शराब का पेग ख़त्म होने के बाद गौतम फिर से सुमन को पकड़ लेटा है औऱ खड़ा होते हुए खाट से उतरकर सुमन को अपने आगे झुका लेता औऱ चुत में लंड घुसाकर हलके झटके मारता हुआ उसे चोदता हुआ खिड़की के पास ले आता है जहा से बाहर जंगल का नज़ारा दिख रहा था.. सुमन होने दोनों हाथ खींडकी की दिवार पर रख देती है औऱ पीछे से गौतम सुमन को वापस चोदने लगता है..
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सुमन - एक घंटा हो गया गौतम.. तूने मुझे चोद चोद कर थका दिया.. तेरा कब निकलेगा? अब तक मैं 2 बार झड़ चुकी हूँ.. तू कब झडेगा बेटा..
गौतम पीछे से झटके मारते हुए - इतनी भी क्या जल्दी है माँ.. कितना इंतजार किया है तेरी चुत का.. बहुत सब्र किया है मैंने.. चोदने दे आराम से मुझे...
सुमन - एक ही बार में चोद चोद कर मेरी चुत को ढीली कर देगा क्या?
गौतम सुमन को दोनों हाथ पकड़ कर लंड के झटके मारते हुए - ढीली हो गई तो टाइट करनी मुझे आती माँ.. तू चिंता मत कर.. मेरे लंड को तेरी चुत का नशा हो गया है.. अब ये किसी की बात नहीं सुनने वाला..
सुमन - अह्ह्ह्ह गौतम.. आराम से... अह्ह्ह्ह... उफ्फ्फ.. देख सामने पेड़ पर बन्दर हमें कैसे देख रहा है.. अह्ह्ह्ह...
गौतम सुमन को चोदते हुए बन्दर से चिल्लाकर कहता है - क्या देख रहा है साले.. माँ है मेरी... है ना सेक्सी? बिलकुल सनी लियॉन जैसी... देख साले मेरी माँ के चुचे पर ये टैटू.. है ना मस्त..
सुमन चुदते हुए हलकी सी हस्ती हुई - गौतम.. पागल हो गया क्या तू? बन्दर से क्या बात कर रहा है..
गौतम रफ़्तार में आता हुआ - जो तू सुन रही है माँ..
सुमन - अह्ह्ह्ह... आराम से गौतम.. दर्द होता है जब तू रफ़्तार से चोदता है.
गौतम सुमन के बाल खींचकर - आदत डाल ले माँ...
सुमन - अह्ह्ह.. रंडी की औलाद... धीरे.. आराम से..
गौतम सुमन को अपनी तरफ पलटकर गोद में उठाकर चोदता हुआ - तुझे रोज़ सपनो में इसी तरह गोद में उठा उठाके चोदता था माँ.. अब जाकर हुई है मेरी ख्वाहिश पूरी..
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सुमन अपने दोनों हाथ गौतम के गले में डालकर नीचे से गौतम के झटके खाती हुई - पहली बार ऐसा मज़ा आ रहा है बेटा... अह्ह्ह.. मैं तो फिर से झड़ने वाली लगती हूँ.. अह्ह्ह्ह... अह्ह्ह्ह.. उफ्फ्फ.. अह्ह्ह...
गौतम - पसंद आया ना माँ तुझे मेरा लंड?
सुमन - मैं तो दिवानी हो गई बेटा.. तेरे लंड की.. अब तो तुझे हरदम खुश रखूंगी.. अह्ह्ह्ह... गौतम.. आई love you.. मेरे शहजादे...
गौतम - आई love you too मेरी शहजादी...
सुमन - अह्ह्ह.. गौतम मेरा होने वाला है वापस...
गौतम सुमन को खाट पर पटककर चोदता हुआ - बस माँ.. मैं भी झड़ने वाला हूँ.. आज तेरी चुत को मैं अपने वीर्य से इतना भर दूंगा कि नो महीने बाड़ तू मेरा बच्चा पैदा करेगी..
सुमन - भर दे मेरे शहजादे.. डाल दे होना माल होनी माँ की चुत में.. झड़ जा..
गौतम गाना गाता हुआ - माँ तेरी जांघो का पसीना बन गया तेल चमेली का.. ओ माँ तेरी जांघो का पसीना बन गया तेल चमेली का..
सुमन चुदवाते हुये हस्ती हुई गाती है - बेटा चोद दे अपनी माँ को खाके गुड़ बरेली का.. ओ बेटा चोद दे अपनी माँ को खाके गुड़ बरेली का..
गौतम - माँ तेरी मोटी मोटी गांड तू रांड बन जा कोठा पे.. ओ माँ तेरी मोटी मोटी गांड तू रांड बन जा कोठा पे..
सुमन - बेटा रांड भी बन जाउंगी तू आजा चोदने कोठे पे.. ओ बेटा रांड भी बन जाउंगी तू आजा चोदने कोठे पे..
गौतम चुत में लंड धीरे धीरे हिलता हुआ - माँ तू मत दबवाये बोबा ब्लाउज हो जाएगा टाइट रे.. ओ माँ तू मत दबवाये बोबा ब्लाउज हो जाएगा टाइट रे..
सुमन झड़ते हुए - बेटा तू मुंह लगा के चूस दे बोबा कर दे ढीला रे.. ओ बेटा तू मुंह लगा के चूस दे बोबा कर दे ढीला रे..
गौतम झड़ते हुए - माँ तेरी चुत में लंड घुसाते ही निकली पिचकारी की धार.. ओ माँ तेरी चुत में लंड घुसाते ही निकली पिचकारी की धार..
सुमन गौतम के होंठ पकड़कर चूमती हुई - चोद के अपनी माँ को तू खुश है ना मेरी यार..
गौतम सुमन की चुत में लंड डाल के लेटा हुआ - बहुत खुश माँ..


दिन के पांच बज चुके थे.. गौतम औऱ सुमन अब खाट पर एक साथ ऊपर नीचे लेटे हुए एकदूसरे को देख रहे थे..
सुमन - शाम होने वाली है गौतम.. अब घर ले चल मुझे..
गौतम - इतनी जल्दी क्या है माँ.. अभी वक़्त है..
सुमन - खंडर है बेटा.. कोई आ गया तो अनर्थ हो जाएगा..
गौतम - कुछ नहीं होगा माँ.. कोई नहीं आने वाला.. औऱ ये बार बार अपनी चुत को कपडे से ढकना बंद कर.. खुला छोड़ दे इसे..
सुमन चुत सहलाती हुई - कितनी बेरहमी से चोदा है तूने मेरी चुत को.. फूलकर लाल हो गई है बेचारी.. मैं तेरी कितनी परवाह करती हूँ मगर तुझे जरा भी तरस नहीं आता मुझपर...
गौतम शराब डालकर पेग बनाते हुए - आता है पर क्या करू माँ.. तेरे बदन का नशा ऐसा है कि बहक जाता हूँ..
सुमन सिगरेट उठाकर सुलगाती हुई कश लेकर - अभी तो तूने मुझे डेढ़ घंटा चोदा है औऱ वापस तेरा लंड खड़ा हो गया..
गौतम पेग पीकर सुमन के होंठों पर लगी सिगरेट का एक कश लेकर सिगरेट फेंक देता है औऱ सुमन की टांग फिर से चौड़ी करके लंड घुसाने लगता है...-
सुमन अजीब ओ गरीब हाव भाव चेहरे पर लाकर - गौतम अब नहीं.. बहुत दर्द होगा.. अब नहीं.. दुखेगा.. बेटा... अह्ह्ह्ह... गौतम.. अह्ह्ह्ह..
गौतम लंड घुसाके चोदना शुरु करते हुए - उफ्फ्फ माँ तेरा ये नखरा.. कहीं मेरी जान ही ना लेले..
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सुमन - जान तो तू मेरी लेने पर तुला हुआ है.. मैंने हां क्या की तूने तो रंडी ही समझ लिया.. कैसे नॉनस्टॉप चोदे जा रहा है...
गौतम सुमन की कमर में एक हाथ डालकर उसे गोद में उठा लेता है औऱ खाट से खड़ा होता हुआ शराब की आधी खाली बोतल को दुसरे हाथ में उठाकर सुमन को लंड पर उछालकर चोदता हुआ शराब के घूंट लगाते हुए खंडर के उस कमरे से बाहर आ जाता है औऱ सीढ़ियों से ऊपर छत की ओर चला जाता है.. जहा खुले आसमान के नीचे गौतम नंगा अपनी नंगी माँ को अपने लंड पर उछाल उछाल कर चोदता हुआ शराब की बोतल से शराब के घूंट लगाता है..

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सुमन गौतम लंड पर उछलते हुए - अह्ह्ह्ह.. हे भगवान.. अह्ह्ह... उफ्फ्फ.. केसा बेटा पैदा किया है मैने.. मुझे रंडियो की तरह खुले में लंड पर उछालते हुए चोदकर शराब पी रहा है..
गौतम सुमन के सर पर बोतल से शराब ढ़ोलता हुआ बोतल खाली कर देता है ओर कहता है - माँ तूने मर्द पैदा किया है.. मर्द...
सुमन लंड पर उछलती हुई - हाँ हां.. अह्ह्ह.. मान गई तू मर्द है.. अह्ह्ह्ह.. अब चल यहां से..
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गौतम खाली बोतल फेंक कर सुमन को लंड पर से नीचे उतार देता है मगर सुमन खड़ी भी नहीं हो पाती ओर गौतम का सहारा लेकर नीचे बैठने लगती है मगर गौतम सुमन को पलट कर अपने आगे झुका लेटा है ओर सुमन की गांड के चुत पर थूक लगा कर अपने लंड सेट करते हुए कहता है..
गौतम नशे में - आखिरी बार गांड कब मरवाई थी तूने?
सुमन अपनी गांड पर लंड महसूस करके गौतम को गांड चोदने से रोकने ही वाली होती है की गौतम उसकी कमर पकड़कर गांड के छेद में थूक लगाकर लंड का इतना जोरदार झटका देता है की लंड आधा गांड में घुस जाता है ओर सुमन पूरी ताकत से चिल्लाती है - गौतम मादरचोद...
सुमन की चीख सुनकर गौतम हसते हुए गांड में धक्के पर धक्का देकर चोदते हुए चिल्लाता है - सुमन बेटाचोद...

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सुमन गांड मरवाते हुए - गौतम मेरी गांड के साथ खिलवाड़ मत कर...
गौतम नशे में - खिलवाड़ कहा कररहा हूँ माँ.. मैं चोद रहा हूँ.. गांड भी एक नम्बर है तेरी तो.. अह्ह्ह..
सुमन पूरी आवाज के साथ चिल्लाती हुई सिसकियाँ लेकर - अह्ह्ह्ह.. अह्ह्ह्ह.. गौतम.. नहीं.. अह्ह्ह.. गौतम.. छोड़ दे मेरी गांड..
गौतम - चोद के छोड़ दूंगा माँ.. क्यों परेशान हो रही हो..
सुमन - बहुत दर्द हो रहा है बेटा..
गौतम गांड में झेटके पे झेटके मारता हुआ - माँ तू मेरी लिए नहीं सह सकती थोड़ा दर्द..
सुमन गांड मरवाती हुई - तू बहुत बड़ा मादरचोद है गौतम..
गौतम गांड मारता हुआ - तूने ही तो मादरचोद बनाया है माँ.. अब तुझे तेरा ये मादरचोद मुबारक हो..
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शाम के छः बजने वाले थे ओर खंडर की छत ओपर गौतम सुमन की अच्छे से गांड मारके उसे लंड चूसा रहा था..
सुमन लंड चुस्ती हुई - कब निकलेगा तेरा.. चुत ओर गांड के बाद अब मुंह भी दुखने लगा है.... मुझे अब डर भी लगने लगा है यहां..
गौतम - डरने की क्या बात है सुमन? तेरा बेटा है ना तेरे साथ.. तू बस मेरी लंड की सेवा कर बाकी सब भूल जा...
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सुमन लंड को गले तक लेकर जोर जोर से चुस्ती हुई गौतम को देखती है ओर उसके आंड भी हाथ से सहलाती है जिससे गौतम झड़ने के मूंड में आ जाता है ओर सुमन के मुंह से अपना लंड निकलकर हिलाते हुए सुमन के मुंह पर अपने वीर्य की धार मार कर झड़ जाता है..

अपनी माँ के मुंह पर लंड से वीर्य के गाढ़ी पिचकारी की धार मारने के बाद गौतम थोड़ा ठंडा हुआ ओर उसने सुमन की एक चूची पकड़कर उसे खड़ा करते हुए अपने कंधे पर उठा लिया और खंडर की छत से नशे में झूलते हुए कदमो की साथ वापस उसी कक्ष में आ गया जहा चुदाई का शुभारम्भ हुआ था..
गौतम ने सुमन को खाट पर पटक दिया और सुमन खाट पर आते ही आस पास बिखरे अपने कपड़ो को समेटकर बिना खाट से उतरे एक तरफ करने लगी..
गौतम नशे में चूर था उसने अपना लंड अपने हाथ में थाम लिया और खाट पर बैठकर कपडे समेटती हुई अपनी माँ की मुंह पर लंड से निशाना लगाकर मूतना शुरु कर दिया..
गौतम की मूत की धार सीधी सुमन की माथे की बिंदिया पर पड़ी फिर उसके चेहरे की बाकी हिस्सों पर.. सुमन ने जब देखा की उसका बेटा एक हाथ से अपना लंड पकड़ कर उसके ऊपर मूत रहा है वो कपड़ो को एक गिला होने की डर से एक तरफ रख देती है और अपने चेहरे से होकर अपने बदन पर पडती मूत की धार को अनदेखा करके आगे बढ़ते हुए अपने हाथ से गौतम का लंड पकड़ कर झट से अपने मुंह में भर लेती है और उसका मूत पिने लगती है...

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गौतम अपनी माँ की मुंह में मूत देता है और सुमन उसका मूत आसानी पी जाती है और पिने की बाद उसके लंड को साफ करके उसे कपडे देते हुए पहनने को कहती है और खुद भी पहनने लगती है..

सुमन फ़िक्र से - तूने ब्लाउज फाड़ दिया अब क्या पहनू मैं?
गौतम नशे में - आजकल ब्लाउज के साथ साड़ी नहीं पहनते माँ.. ब्रा के साथ पहनते है.

गौतम जीन्स शर्ट पहनकर सुमन की पास खाट पर बैठ जाता है और सुमन खाट पर घुटने की बल खड़ी हुई साडी बाँधने लगती है खड़े होने पर उसके पैर काँप रहे थे और चलने में उसे दर्द महसूस हो रहा था सुमन बार बार गौतम को शिकायत भरी नज़रो से देख रही थी और गौतम नशे की सुरूर में अपनी ही दुनिया में खोया था उसे जो सुकून और संतुष्ट सुमन ने आज दे दी थी उसका परिणाम था की गौतम को अब और किसी की याद नहीं आ रही थी..

सुमन खाट से उतरकर चलने को हुई तो लड़खड़ा गई और गौतम की तरफ गिरते हुए उसे पकड़ लिया गौतम समझ चूका था कि सुमन अब कुछ दिनों तक ठीक से चल नहीं पाएगी उसने सुमन को अपनी गोद में उठा लिया और खंडर से बाहर कार में लाकर बैठा दिया.. एक पल की लिए उसे लगा कि कोई उसे देख रहा है मगर जब उसने पीछे देखा तो वहा कोई नहीं था.. गौतम भी सुमन के साथ कार में बैठ गया और अंधेरा होते होते दोनों खंडर से निकल कर घर की लिए चल दिये..

सुमन की चुत और गांड में भले ही दर्द अब तक हो रहा था मगर उसके दिल में एक सुकून और संतुस्टी से घुला हुआ मीठा मीठा अहसास भी था वो गौतम को देखकर मुस्कुराते जा रही थी अब उसे गौतम में बेटे के साथ साथ अपने हवस मिटाकर प्यार देने वाला मर्द भी नज़र आ रहा था..
गौतम ने कार चलाते हुए बार बार रोककर रास्ते में कई बार उल्टिया की हाईवे पर पहुंचते पहुंचते उसका नशा कम हो चूका था गौतम ने सुमन की साथ एक शिकंजी वाले की पास गाडी रोककर 2-3 गलास निम्बू पानी भी पिया जिससे उसका नशा शहर में पहुंचते पहुंचते बिलकुल हल्का हो चूका था...
सुमन ने चुत देकर गौतम का दिल चुरा लिया था वो रास्ते में जहा भी चाट पकोड़ी की दूकान देखती गौतम से कहकर गाडी रुकवाती और बिना गाडी से उतरे मज़े ले लेकर चाट खाती.. सुमन ने साड़ी से बदन इस तरह ढक लिया था कि किसीको उसके ब्लाउज न पहने का पता नहीं चल सकता था.. Cरास्ते में दोनों ने सुमन की पसंद की अलग अलग चाट खाई और एक दूसरे की साथ प्यार भरी बातें करते हुए खाना एन्जॉय किया..


बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर खतरनाक अपडेट है भाई मजा आ गया
गौतम के सुमन की चुद और गांड को बडी ही बेरहमी से चोद चोद कर बेहाल कर दिया लेकीन सुमन उसकी इस जंगली चुदाई से पुरी तरहा से तृप्त हो गई
बडा ही जबरदस्त और खतरनाक अपडेट है
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
 

Napster

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घर पहुंचते पहुंचते दोनों को रात के 10 बज गए.. गौतम सुमन को गोद में उठा कर घर के अंदर ले गया और दरवाजा बंद कर दिया.. सुमन ने खुदको गौतम की गोद से नीचे उतरवाकर दिवार का सहारा लेती हुई बाथरूम की अंदर जा घुसी.. गौतम भी दूसरे बाथरूम में नहाने चला गया..

काफी देर तक गौतम शावर के ठन्डे पानी की नीचे खड़ा रहा और धीरे धीरे ब्रश करके नहा कर बाहर निकला उसके होंठों पर मुस्कान शाम से ही सजी हुई थी जो अब भी थी.. वो मुस्कुराते हुए ख्यालो में खोया हुआ प्रेम गीत गुन गुना रहा था और जब वो नहा कर बाथरूम से निकला और अपने बाल तौलिये से पोछ कर एक टीशर्ट और लोअर में कमरे से बाहर निकला तो उसने देखा की सुमन रसोई में चाय बना रही थी..

गौतम अपनी माँ को पीछे से बाहों में जकड़ लिया और पीछे से सुमन की गर्दन और गाल चूमता हुआ बोला..
गौतम - चाय की साथ चुत भी चाहिए माँ..
सुमन अपने आप को छुड़वाते हुआ - पेट नहीं भरा क्या तेरा अबतक? दर्द हो रहा है.. लाल होके सुजी पड़ी है पूरी.. अब तो कुछ दिन भूल ही जा मेरी चुत को..
गौतम चुत पर हाथ रखकर प्यार से सहलाते हुए - ज्यादा दर्द हो रहा है?
सुमन - मेरे दर्द से तुझे क्या? केसा जालिम बना हुआ था.. मैं चीख रही थी और तू बस मुझे चोदे जा रहा था.. जरा भी तरस नहीं आया तुझे अपनी माँ पर..
गौतम सुमन को अपनी तरफ पलटकर - गलती हो गई माँ.. माफ़ नहीं करेंगी तू अपने बेटे को?
सुमन - माफ़? खंडर की छत पर खुले आसमान के नीचे मुझे ऐसे लंड पर उछाल उछाल के चोद रहा था जैसे मैं तेरी माँ नहीं कोई रखैल हूँ.. मेरे ऊपर शराब गिरा दी मेरे ऊपर मूत दिया जैसे मैं कोई टके पर चुदाने वाली छिनाल हूँ.. बेशर्मी की सारी हद पार कर दी.. चुत और गांड में दर्द के साथ जलन हो रही है और अब वापस चोदना है शहजादे को..
गौतम सुमन के बंधे हुए बाल खोलकर - अच्छा ठीक है माँ.. पर तू ऐसे मुंह फुला के नाराज़ तो मत हो मुझसे..
गौतम जिस तरह से सुमन को देख रहा था उससे सुमन का दिल अब वापस जोरो से धड़कने लगा था और चुत में दर्द होने के बावजूद उसकी चुत में सरसरी मचने लगी थी और चुत गीली होने लगी थी.. मगर सुमन के लिए गौतम से ऐसी हालात में चुदना मतलब असहनीय दर्द को सहन करना था..

सुमन चाय छन्नी करती हुई - कैसे ना होउ नाराज़.. मेरे ही बेटे ने मेरी इज़्ज़त जो लूटी है आज..
गौतम - अब माँ भी तेरे जैसी पतली कमर और मोटी गांड वाली हो तो बेटा भी क्या करें? लंड तो उसके पास भी होता है..
सुमन चाय देते हुए - माँ सुन्दर हो तो क्या बेटे को चोद देना चाहिए?
गौतम पीते हुए - मैंने तो चोद दी मेरी माँ.. बाकियों का मुझे पता नहीं.
सुमन - चोद दी तो अब सो जा सुकून से.. अब क्यों पीछे पड़ा है.. मुझे तो चैन लेने दे अब..
गौतम सुमन की कमर में हाथ डालकर उसे अपने सीने से लगाते हुए - मैं तभी सोऊंगा जब मेरी बीवी मेरे साथ बिस्तर होगी..
सुमन गैस के पास पड़ा हुआ चाक़ू उठाके गौतम को दिखाते हुए - बीवी से पहले माँ हूँ तेरी.. अगर जबरदस्ती करने की कोशिश की तो ऐसा सबक सिखाउंगी कि याद रखेगा तू..
गौतम - पहले तो कभी ऊँगली तक नहीं दिखाई अब सीधा चाक़ू दिखाने लगी.. ले चुम लिया तेरे होंठों को अब कहो.. क्या सबक सिखाऊगी मुझे..

सुमन चाकू रखते हुए - होंठों को चूमने से कब रोका मैंने? कुछ और किया तब देखना क्या करती हूँ..
गौतम सुमन को गोद में उठाकर अंदर कमरे में बिस्तर पर ले जाता है..
सुमन - क्या कर रहा है.. छोड़ वरना मारूंगी तुझे.. आज बहुत बदतमीजी कर ली तूने मेरे साथ अब और नहीं..
गौतम सुमन के पास बैठकर - एक कविता लिखी है माँ.. तेरे लिए.. सुना दू..
सुमन - अच्छा तू लेखक भी बन गया? सुना क्या लिखा है तूने..
गौतम कमरे की लाइट्स ऑफ करके बेड पर आ जाता है और सुमन के बगल में बैठ जाता है..
सुमन एक सिगरेट जलाकर कश लेती हुई गौतम को देखने लगती है जो एक नोटबुक और पेन लेकर उसके बगल में आ बैठा था और फोन के टोर्च की रौशनी में नोटबुक पर लिखा हुआ पढ़ने लगा था...
गौतम - सुनो...
सुमन सिगरेट का एक कश लेकर - सुना..
गौतम - लिखा है कि...

कितनी प्यारी प्यारी है..
माँ तू सबसे न्यारी है..
तुझे देखकर सब कहते है..
कि तू बहुत ही संस्कारी है..

सुमन - वाह.. मेरा गौतम तो बहुत अच्छा लिखता है..
गौतम सिगरेट छीनकर बुझाते हुए - आगे सुनो.. और ये सिगरेट रहने दो.. आजकल बहुत सिगरेट पिने लगी हो तुम.. अब बोलना मत बीच में..

तेरे रेशम जैसे बाल है माँ..
सूरत भी क्या कमाल है माँ..
गर्दन सुराहीदार है तेरी..
और होंठ भी लाल लाल है माँ..

तेरी छाती पर चुचक खड़े हुए..
चुचे से चुचे अड़े हुए..
कोहिनूर से ज्यादा कीमती है..
तेरे चुचो पर तिल माँ जड़े हुए..

तेरी चिकनी चिकनी कमर है माँ..
और चालिस के पार उमर है माँ..
जो कहती है दुनिया कहने दे..
तेरा और मेरा प्यार अमर है माँ..

अगर कमर से नीचे आउ मैं..
फिर क्या माँ तुझे बताऊ मैं..
तेरी जांघे पनघट के पत्थर सी..
जिनपे फिसलके गिर जाऊ मैं..

तेरी जांघो के जोड़ पर जंगल है..
तूने साफ किया है मंगल है..
अब हर दिन होगा माँ युद्ध यहां..
जमकर होगा अब दंगल है..

तेरी सुर्ख गुलाबी चुत है माँ..
इससे निकला तेरा सपूत है माँ..
कुछ पवित्र है तो इस दुनिया में..
तेरी चुत से निकला मूत है माँ..

माँ मैं तुझको पाना चाहता हूँ..
दिल से अपनाना चाहता हूँ..
तेरे साथ यहाँ इस बिस्तर में..
माँ मैं उम्र बिताना चाहता हूँ..

गौतम - केसा लिखा है?
सुमन गौतम के हाथ से नोटबुक और पेन लेकर साइड में रख देती है फिर गौतम को पीछे धकेल कर उसकी टीशर्ट उतारते हुए अपना ब्लाउज खोलकर अपनी नंगी छाती गौतम के नंगे सीने से चिपका देती है और कहती है - अगर तू कभी छोड़कर गया तो जान से मार दूंगी तुझे.. समझा? इतना कहकर गौतम के होंठ चूमने लगती है...
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गौतम सुमन के होंठों को चूमते हुए अपने मुंह कि लार सुमन के मुंह कि लार से मिला कर चुम्बन को प्रगाड़ करके चुम्बन का आंनद लूटने लगता है..
सुमन चुम्बन तोड़कर - फ़ोन आ रहा है ना..
गौतम - हां.. तेरा है मेरी जान..
सुमन फ़ोन उठाकर - हेलो..
जगमोहन - सुमन.. कल गाँव जाना है रीत निभाने.. सुबह मैं जल्दी आ जाऊंगा.. गौतम को फिर से कहीं मत भेज देना..
सुमन गुस्से से - मुझे सिखाने कि जरुरत नहीं है.. तुम आये तो ठीक है वरना मैं और मेरा ग़ुगु दोनों कल सुबह 9 बजे गाँव चले जायेंगे..
जगमोहन - मैं आ जाऊंगा.. हर वक़्त गुस्से में रहती हो.. फ़ोन कट जाता है..
गौतम - मैं कुसुम से शादी नहीं करूँगा..
सुमन अपनी साडी कमर तक उठाकर चड्डी नीचे सरका देती है और गौतम के लोअर को भी नीचे सरका कर उसका लंड पकड़कर अपनी सूजी हुई चुत के छेद पर टिका कर धीरे से अंदर करती हुई कहती है - शादी तो करनी पड़ेगी मेरे शहजादे...
गौतम सुमन का हाथ पकड़कर - क्या कर रही है दर्द होगा तुझे..
सुमन हाथ छुड़वा कर गौतम का लंड धीरे से अपनी चुत में घुसा लेती है और कहती है - चोदने के लिए मना किया है.. घुसाने के लिए नहीं.. और कुसुम से तो तुझे शादी करनी ही पड़ेगी.. समझा..
गौतम - मैं तेरे अलावा और किसी से शादी नहीं करूँगा..
सुमन मज़ाकिया अंदाज़ में - क्यों? तेरा ये लंड दो बीविया नहीं संभाल सकता?
गौतम - दो नहीं चार संभाल सकता है.. पर मैं नहीं करूंगा शादी..
सुमन गौतम को अपने नीचे पूरी तरह खींचकर करवट लेते हुए - मुझे नींद आ रही है..
गौतम सुमन को अपने ऊपर सुलाते हुए - मैंने कह दिया तो कह दिया.. समझी.. और कल मैं जाऊँगा भी नहीं गाँव..

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सुमन - हम्म..
गौतम - क्या हम्म..
सुमन - सो जा मेरे पतिदेव.. कल मेरी सौतन से भी मिलना है तुझे...
गौतम - तू सुन रही है मैं क्या कह रहा हूँ?
सुमन आँख बंद किये हुए - हम्म..
गौतम - फिर हम्म..
सुमन - सो जा ना ग़ुगु..
गौतम सुमन को थोड़ा ठीक से अपने ऊपर करते हुए चादर ओढ़कर सुलाते हुए - ऐसे चुत में लंड डाल के सोउ?
सुमन उसी तरह आँख बंद किये हुए - हम्म..
गौतम आगे कुछ नहीं कहता और सुमन के सर पर प्यार से हाथ फेरता हुआ उसे सुला देता है और कुछ देर बाद खुद भी सो जाता है..

सुबह जब उसकी आँख खुलती है तो वो देखता है उसका लंड अभी भी उसकी माँ सुमन कि चुत में घुसा हुआ था और वो उसी तरह गौतम के साथ स्टी हुई सो रही थी.. उसके हाथ का धागा सफ़ेद हो चूका था.. और गौतम समझ जाता है कि बाबाजी के कार्य का वक़्त आ चूका है..

सुमन की जब आंख खुली तो उसने देखा कि गौतम उसके बाल संवारते हुए उसे ही देखे जा रहा था.. सुमन ने भी मुस्कुराते हुए गौतम को देखा और गौतम के ऊपर से अपनी चुत से उसका लंड निकालती हुई उठकर बेड पर एक तरफ बैठ गई और पास पड़े ब्लाउज को पहनने लगी...


गौतम ने बेड से खड़े होते हुए अपनी मां को गुड मॉर्निंग बोला और पूछा..
गौतम - चाय बना दू?
सुमन ब्लाउज के बटन बंद करती हुई मुस्कुराकर - हम्म..
गौतम रसोई की तरफ जाते हुए - अब भी हम्म..
गौतम रसोई में जाकर चाय बनाने और सुमन लंगड़ती हुई बाथरूम में नहाने चली जाती है..
बाथरूम से नहा कर वापस आती है तो देखती है कि गौतम उसके सामने हाथों में चाय लिए खड़ा है और उसी को बाथरूम से बाहर आते हुए देख रहा है..
सुमन का बदन गिला था और उसने अपने गीले बालों को भी ऐसे ही बंधा हुआ था.. सुमन ने अपने बदन पर काले कलर का ब्लाउज और पेटीकोट पहना था मगर उसने ब्रा नहीं पहनी थी जिससे उसका कमर से ऊपर बदन साफ साफ नज़र आ रहा था.. ब्लाउज की पारदर्शिता बहुत ज्यादा थी सुमन के खड़े हुए चुचक गौतम को ही देख रहे थे..

सुमन में चाय लेते हुए गौतम से कहा - तू भी नहा ले. जगमोहन आता होगा.. और लंगड़ती हुई अलमीरा की तरफ चली गई.. उसकी चाल देखकर गौतम हसता हुआ बोला..
गौतम - लंगड़ी घोड़ी..
सुमन गौतम की बात सुनकर - लंगड़ी भी तूने ही किया है मुझे.. बिगड़ैल शहजादे..
गौतम बाथरूम में जाते हुए - अच्छा सुन ना सुमन.. मेरे कपड़े निकल देना.. मैं नहाके आता हूँ..
सुमन मुस्कुराते हुए - जैसा आप कहो मेरे पतिदेव...
गौतम नहाने घुस जाता है और सुमन गौतम के कपड़े निकाल कर एक बैग पैक कर लेती जिसमे उसका और गौतम का सामान भरा होता है..
गौतम नहाने के बाद कपड़े पहनकर तैयार हो जाता है और सुमन रसोई में नास्ता बनाने लगती है उसने एक आसमानी शाडी पहनी थी और अब उसके बदन पर पुरे कपड़े थे जिसमे ब्रा ब्लाउज और बाकी चीज़े भी शमील थी..

गौतम कमरे से रसोई में आता हुआ - क्या बना रही हो?
सुमन अंडा फोड़ते हुए - ऑमलेट बना रही हूँ..
गौतम अपने फ़ोन पर किसी का फ़ोन आता देखकर - ब्रेड भी सेक देना माँ..
सुमन बिना पीछे देखे - ठीक है मेरे शहजादे..
गौतम फोन उठाकर बात करता हुआ छत ओर चला जाता है वही नीचे जगमोहन आ जाता है..

जगमोहन - लो.. तुमने नो बजे कहा था मैं आठ पर ही आ गया..
सुमन चाय का कप देते हुए - बहुत बड़ा बहादुरी का काम कर दिया.. 26 जनवरी को सरकार से कहकर मैडल दिलवा दूंगी..
जगमोहन - अरे सुबह सुबह तो मूंड सही रखो.. अब तो घर भी मिल गया तुम्हे.. और पैरों में क्या हुआ?
सुमन - सीढ़ियों से गिर गई.. और घर तुमने तो नहीं दिलवाया.. बात करते हो..
जगमोहन - अंडे? तुम अंडे बना रही हो?
सुमन - तो? ऐसे चौंक क्यों रहे हो.. गौतम को छुप छुप के बाहर खाना पड़ता था तो अब उसकी पसंद का खाना यही घर ही बना रही हूँ.. तुम्हे कोई परेशानी तो कहो..
जगमोहन - हम शाकाहारी लोग है.. और तुम ये सब बना रही हो..
सुमन - तुम्हारे लिए नहीं है.. मैने और मेरे बेटे ने खाना शुरु कर दिया.. अब तुम मना करो या ना करो.. तुम्हरी कोई नहीं सुनने वाला..
जगमोहन - सुमन.. तुम्हारे कारण हुआ है ये.. गौतम पर ध्यान देती तो वो ये सब ना करता.. इतना ना बिगड़ता..
सुमन जगमोहन की बात अनसुनी करते हुए - खुद तीन तीन शादी करके बैठो हो और गौतम के बिगड़ने की बात कर रहे हो..

यहां ये सब चल रहा था कि छत पर गौतम फ़ोन उठाते हुए बोला - गुडमॉर्निंग बुआ..
पिंकी - गुडमॉर्निंग बाबू.. क्या कर रहा है?
गौतम - बस आपको याद कर रहा था..
पिंकी - हाय.. मुझे भी तेरी याद आ रही थी बाबू.. एक खुशखबरी सुननी है तुझे..
गौतम - कैसी खुसखबरी बुआ? माँ बनने वाली हो क्या?
पिंकी - हाँ मेरे बाबू.. तेरी बुआ के पेट में तेरा बच्चा लग गया है.. तू बाप बनने वाला है..
गौतम - क्या जबरदस्त खुशखबरी दी है बुआ सुबह सुबह.. मन कर रहा है आपके पास उड़ के आ जाऊ और गले से लगा के इतना चूमु की होंठ दर्द करने लग जाए..
पिंकी - तो आजा ना बाबू.. मैं सर से पैर तक तेरी ही तो हूँ.. जो करना है वो कर लेना..
गौतम - गाँव जा रहा हूँ बुआ माँ के साथ.. वरना पक्का आ जाता आज आपके पास..
पिंकी - अच्छा मैं ही आ जाउंगी तेरे पास जल्दी..
गौतम - बुआ कुसुम कैसी लड़की है?
पिंकी - अच्छा तो ये बात है.. तेरी माँ मान गई रीत निभाने के लिए.. तभी गाँव की सैर पर निकले हो तुम सब...
गौतम - बताओ ना बुआ.. मैंने कभी देखा तक नहीं उसे.. और अब शादी करने वाला हूँ...
पिंकी - बहुत अच्छी लड़की है बाबू.. तोड़ी सी गुस्सैल है पर तुझे बिस्तर में पूरा खुश रखेगी.. हर सुख देगी..
गौतम - कोई और तो नहीं है उसकी लाइफ में?..
पिंकी - अरे तू जाके खुद ही पता कर लेना अपनी होने वाली दुल्हन के बारे में..
गौतम - मैं शादी भी नहीं करना चाहता बुआ.. मेरे साथ तो माँ जबरदस्ती कर रही है.. अगर उनकी बात ना मानु तो मुझसे रूठ जाएंगी...
पिंकी हसते हुए - अरे भाभी से इतना प्यार है मेरे बाबू को.. उनके रूठने के डर से शादी कर रहा है..
गौतम - छोडो यार बुआ.. इतनी सी उम्र में शादी हो रही है..
पिंकी - बाबू अभी शादी नहीं करनी तो रीत निभा ले बंधन में दो साल बाद ले लेना.. तब तक मगेतर बनाकर रख कुसुम को..
गौतम - ऐसा हो सकता है..
पिंकी हसते हुए - हाँ तू कुसुम को मना ले.. जो कुसुम कहेगी वही होगा.. और कुसुम को शादी से पहले पेट से मत मर देना..
गौतम - मैं तो छूने भी नहीं वाला उसे बुआ..
पिंकी - वो छू लेगी तुझे.. जो उसका होता है उसे वो दिल से लगा के रखती है..
गौतम - इतनी गले पड़ने वाली है लड़की है?
पिंकी - अब तू कुछ समझ.. एक बात तय है वो प्यार बहुत करेगी तुझे.. पलकों पर सजा कर रखेगी तुझे.. तेरी हर बात मानेगी.. 4 साल पहले आखिरी बार जब मैंने उसे देखा तब उसका जोबन फूल सा खिलने लगा था.. अब अठरा की हो गई.. जोबन को तेरे लिए सजा के रखी होगी..
गौतम - मुझे क्या करना है बुआ उसके जोबन से.. मुझे तो आप पसंद हो..
पिंकी - कुसुम होने वाली पत्नी है तेरी बाबू.. तुझे भी उसे खुश रखना होगा समझा.. नहीं तो वो बहुत परेशान करेगी तुझे..
गौतम - देखा जाएगा बुआ.. छोडो.. वैसे आपके पति फ़कीर चंद को पता है आप माँ बनने वाली हो..
पिंकी - वो तो ये खबर सुनते ही ख़ुशी से उछल पड़े थे.. अब भी ख़ुशी से इधर उधर घूम रहे होंगे.. उनको लगता है ये उनका बच्चा है..
गौतम - सही है बुआ.. अच्छा माँ बुला रही है.. बाद में बात करता हूँ..
पिंकी - चल बाय मेरा बाबू...
गौतम - बाय बुआ.. Love you..
पिंकी - love you too बाबू...

जगमोहन - मुझे बात ही नहीं करनी तुमसे.. मैं बाहर इंतजार कर रहा हूँ.. जब चलना हो तो बता देना.
जगमोहन बाहर चला जाता है और गौतम नीचे आ जाता है..
गौतम - तुम्हारे पतिदेव कहा है?
सुमन नाश्ता देकर गौतम के गाल चूमती हुई - वो तो यही पर है..
गौतम नास्ता करते हुए - अरे दूसरे वाले..
सुमन - बाहर चले गए.. इतनी बेज्जती की कि अपनेआप उठकर बाहर चले गए..
गौतम - कभी प्यार से बात कर लो उनसे..
सुमन लंगड़ती हुई कमरे में जाकर बेग उठाकर लाती हुई - तू है ना प्यार करने के लिए और किसी कि क्या जरुरत..
गौतम - तुम्हारा नाश्ता?
सुमन मुस्कुराते हुए - वो तो कल ही हो गया था.. आज भूक नहीं है..
गौतम सुमन को खिलाते हुए - थोड़ा तो खा लो.. आओ.. मैं खिला देता हूँ अपने हाथों से..
सुमन खाते हुए - बस बस.. और नहीं..
गौतम - एक और.. बस..
सुमन - बस गौतम.. पेट भरा हुआ है..
गौतम - ठीक है.. हो गया मेरा भी.. चले..
सुमन - तू बेग लेजाकर रख मैं आती हूँ ये सब साफ करके..
गौतम सुमन के गाल चूमता हुआ - ठीक है मेरी लंगड़ी घोड़ी..
गौतम बेग दिग्गी में रखता है.. वही पास खड़ा जगमोहन कहता है..

जगमोहन - पिंकी बड़ा ख्याल रखती है तेरा.. कार भी दिलवा दी तुझे...
गौतम - आपने तो आजतक कुछ नहीं दिलवाया मुझे.. एक बार बुआ से बात कर लो.. आपको नोकरी भी दिलवा देगी.. कब तक हवलदारी करोगे..
जगमोहन - ये घर मेरी कमाई से बना है बेटा.. और क्या चाहिए तुझे?
गौतम हसते हुए - माँ ने लिया आपकी दूसरी पत्नियों से.. सुना है आपसे रिश्ता भी तोड़ दिया उन्होंने..
जगमोहन - छोड़ उन बातों को..
गौतम - मैं सही कह रहा हूँ.. बुआ से बात कर लो.. लोग मुझे ठुल्ले कि औलाद कहते है बहुत शर्म आती है..
जगमोहन - बेटा पुलिस वाला है तेरा बाप..
गौतम - काहे का पुलिस वाला.. इतने सालों से कांस्टेबल के कांस्टेबल हो..
जगमोहन - मेरी ड्यूटी जयपुर में ips के पास लगने वाली है..
गौतम हसते हुए - वो तो फिर कपड़े धुलवायेगा आपसे.. हो सकता है आपको उसके घर में झाडू भी लगानी पड़े.. मैंने जैसा देखा वैसा बता रहा हूँ..
जगमोहन - मत बता.. अपनी माँ को बुला.. चलना भी है..
गौतम - आ रही है..
जगमोहन - तेरा कोई चक्कर तो नहीं है ना किसी के साथ.. कुसुम से ही तेरी शादी होनी है याद रखना..
गौतम - आप चिंता मत करो.. चक्कर चला के मैं शादी नहीं करता आपकी तरह...
जगमोहन - तू भी तेरी माँ का सिखाया हुआ है क्या? बात बात में ताने मार रहा है..
गौतम - माँ आ गई..

गौतम ड्राइविंग सीट पर बैठ जाता है और उसके बगल में जगमोहन बैठ जाता है और पीछे सुमन बैठ जाती है.. गौतम गाड़ी चला कर हाईवे पर ले लेता है और गांव चलने के लिए निकल पड़ता है.. रास्ते में किसीने भी ज्यादा बात नहीं की और अगले तीन घंटे में गौतम सुमन और जगमोहन के साथ गांव पहुंच गया था..


मानसी - आओ सुमन.. तुम्हे क्या हुआ?
सुमन - कुछ नहीं हलकी सी मोच आई है पैरों में ठीक हो जायेगी कुछ दिनों में..
हेमा - अरे आ गया मेरा पोता.. हाय किसी की नज़र ना लगे मेरे ग़ुगु को.. कितना प्यारा मुखड़ा है.. बिलकुल राजकुमार लगता है..
जगमोहन - इतना लाड प्यार मत करो माँ.. पहले ही बहुत बिगड़ा हुआ है और बिगड़ जाएगा..
मानसी - भाईसाब अब इसके सिवा कौन है जिसे लाड प्यार करें.. माँ अंदर लेकर चलो हमारे ग़ुगु को.. बाहर किसी की नज़र ना लग जाए..
बृजमोहन - भाईसाब शाम को पंचायत की हाज़िरी में कुसुम और गौतम की रित निभाने की बात है..
जगमोहन - ठीक है बृज.. सब तैयारी तो हो चुकी है ना..
बृजमोहन - हाँ.. रीत निभाने की सारी तैयारी हो चुकी है..
हेमा चाय लेते हुए - कुसुम कहा है? अभी तो इधर उधर घूम रही थी अब नज़र नहीं आ रही..
मानसी - अपने कमरे में होगी माँ.. बाहर आने से शर्मा रही है..
हेमा - और गौतम कहा गया?
सुमन - छत पर गया है.. छत से गाँव दीखता है ना..
मानसी - मैं चाय देके आती हूँ ग़ुगु को..
हेमा - अरे तू क्यों जाती है? कुसुम को भेज.. मिलेंगे तो कुछ बात होगी.. साथ रहना है अब उनको..
मानसी कुसुम के कमरे में जाती हुई - ठीक है माँ जी..
मानसी - कुसुम..
कुसुम - हाँ माँ..
मानसी - ले चाय दे आ तेरे दूल्हे राजा को.. छत पर है..
कुसुम शरमाते हुए - माँ.. आप दे आओ ना..
मानसी - ठीक है तुझे नहीं जाना तो मैं ही दे आती हूँ..
कुसुम - माँ..
मानसी - अब क्या है?
कुसुम चाय लेते हुए - मैं दे आती हूँ..
मानसी मुस्कुराते हुए - अच्छा जी.. सिर्फ चाय देके आना.. समझी..
कुसुम - माँ..

कुसुम चाय लेके छत पर आ जाती है और गौतम को पीछे लहलहाते खेत की और देखते हुए अपनी बढ़ी हुई दिल की धड़कन के साथ उसके पास पीछे की तरफ आ कर खड़ी हो जाती है..

कुसुम नज़र झुका कर - जी चाय...
गौतम जब पीछे मुड़कर देखता है तो फिर देखता ही रह जाता है.. उसके मुंह में जैसे जबान ही नहीं थी उसे कुसुम को देखकर किसी की याद आ गई जिसे वो पहले भी देख चूका था वही चेहरा वही रंग रूप वही आवाज.. गौतम ऐसे खड़ा हुआ कुसुम को देख रहा था जैसे उसने कोई अजूबा देख लिया हो..

कुसुम नज़र झुका कर शरमाते हुए - जी चाय ले लीजिये.. ठंडी हो जायेगी..

गौतम ख्याल से बाहर आता हुआ चाय का कप कुसुम से ले लेता है और कुसुम पहली बार गौतम के चेहरे को देखती है अपनी आँखों में गौतम के सुन्दर चेहरे को बसाने लगती है वही गौतम भी कुसुम के प्यारे से भोले चेहरे को देखे जा रहा था..

गौतम - शुक्रिया..
कुसुम धीमी आवाज में - कुछ और चाहिए?
गौतम - नहीं.. तुम कौन हो?
कुसुम शरमाते हुए - कुसुम..

ये कहते हुए कुसुम नीचे जाने के लिए मुड़ गई और तेज़ कदमो के साथ नीचे अपने कमरे में वापस आ गई.. उसकी होंठों पर मुस्कुराहट, दिल की बढ़ी हुई धड़कन और तेज़ चल रही सांस उसके मन का हाल बयाँ कर रही थी..

गौतम चाय पीते हुए कुछ और सोच रहा था.. कैसे ऐसा मुमकिन है कि एक जैसे दो लोग हो सकते है.. मगर उसने इस बात को छोड़ते हुए गाँव के मनभावन और मनोहर दृश्य को देखते हुए चाय का आंनद लेना ज्यादा जरुरी समझा..

शाम हो चुकी थी और गाँव की चौखट पर पंचायत के सामने अपनी बनाई रीति से कुसुम और गौतम आमने सामने खड़े थे..

पंचायत ने दोनों की रित निभाने का कार्य शुरु कर दिया और सब हंसी ख़ुशी से संपन्न भी हो गया.. आखिर में बंधन जिसमे लड़का लड़की को अपने साथ लेजाकर पति पत्नी की तरह रखता है उसकी तारीख तय करने के लिए दोनों को बात करने के लिए कहा..

गौतम - मुझे थोड़ा समय चाहिए..
कुसुम - मंजूर है..
पंचायत का एक आदमी - कितना समय चाहिए? कोई तारीख कहो..
गौतम - 2-3 साल..
पंच का आदमी - बेटी बोल.. मंजूर है कि नहीं?
कुसुम - नहीं..
पंच का आदमी - तो कितना समय देगी अपने मर्द को बंधन के लिए?
कुसुम - 2-3 हफ्ते दे दूंगी..
गौतम - पागल है क्या? 2-3 हफ्ते? कम से कम दो साल तो चाहिए मुझे.. एक दम से कैसे बंधन में ले लु..
कुसुम - 1 महीना.. बस उससे ज्यादा नहीं..
पंच का आदमी - अरे ये तो पहले से तय करना था ना बृजमोहन और जगमोहन को.. लड़का और लड़की एक मत है ही नहीं..
गौतम - मैं इतना जल्दी ये सब नहीं कर सकता.. मुझे समय चाहिए..
पंच का आदमी - बेटी बोल क्या कहती है.. आखिरी में लड़के को लड़की की ही बात माननी पड़ेगी तू कितना समय देगी अपने दूल्हे को साथ ले जाने के लिए..
कुसुम - उन्हें समय चाहिए तो 2 महीने दे दूंगी...
गौतम - मुझे मंजूर नहीं है..
पंच का आदमी - बेटा तेरे मंजूर करने से कुछ नहीं होता..
गौतम कुसुम से - 6 महीने तो दे कम से कम..
कुसुम गौतम को देखकर - 3 महीने बस.. और नहीं..
पंच का आदमी - तो ठीक है आज से तीन महीने बाद इसी तारीख को यही बंधन होगा और फिर लड़का लड़की को अपने साथ ले जाएगा और पत्नी की तरह रखेगा..

बृजमोहन - पंचो पहले आप लोग खाने की शुरुआत करो..
जगमोहन - हाँ.. रसोई तैयार है..
गौतम वापस घर आ जाता है और उसके पीछे पीछे सुमन भी घर आ जाती है..
मानसी और सुमन घर जाने लगती है तो हेमा उन दोनों को रोक लेती है और कहती है..
हेमा - तुम दोनों कहा चली.. जाने दो उन दोनों को अकेले में बात करेंगे तो अच्छा रहेगा..
सुमन - दोनों झगड़ा ना करें..
मानसी - हां माँ देखा नहीं दोनों कैसे बात कर रहे थे..
हेमा - करते है तो करने दो.. झगडे से प्यार बढ़ता है..
गौतम फिर से छत पर चला जाता है और कुसुम भी उसके पीछे पीछे छत पर आ जाती है..
गौतम गुस्से से - पीछे पीछे क्यों आ रही हो? क्या चाहिए तुम्हे?
कुसुम प्यार से - इतना क्यों बिगड़ते हो..
गौतम - बिगडू नहीं तो क्या करू? तुम्हे बड़ी जल्दी है शादी की.. मैं मना तो नहीं कर रहा शादी से..
कुसुम उसी प्रेम से - हामी भी कहा भर रहे हो.. पहली नज़र में भा गए हो तुम.. कैसे रहूंगी इतना समय दूर मैं?
गौतम पलटकर सिगरेट निकलकर लाइटर से जलाकर कश लेते हुए - अच्छी मुसीबत है..
कुसुम नजदीक आकर गौतम के होंठों से सिगरेट छीनकर फेंक देती है और कहती है - पूरी रात तुम्हारी तस्वीर गले लगाकर तुम्हारे ख्याब देखें है मैंने.. इतना बिगड़ोगे तो अपनी जान दे दूंगी.. फिर तुम्हारी मुसीबत ख़त्म..

गौतम - सिर्फ 21 साल का हूँ मैं.. अभी से शादी कैसे करूंगा? मैं खुद बच्चा हूँ..
कुसुम गले लगते हुए - मैं संभल लुंगी तुम्हे.. शादी कर लेते बच्चा जब तुम कहोगे तब करेंगे..
गौतम - यार कैसी बातें कर रही है शर्म नहीं आती तुझे?
कुसुम मुस्कुराते हुए - आती है ना.. पर तुम्हे देखकर प्यार भी बहुत आता है.. इतने सुन्दर हो मेरी तो नज़र ही नहीं हट रही.. मैं तो चाहती हूँ आज ही हमारा बंधन हो जाए और तुम मुझे ले जाओ अपने साथ.. और खूब सारा प्यार करो..
गौतम कुसुम को देखते हुए - मैंने तो सुना था गाँव की लड़किया बहुत शर्मीली होती है पर तुम तो बहुत अलग हो... तुम्हे तो लड़का होना चाहिए था..
कुसुम - अगर मैं लड़का होती तो तुम लड़की होते.. मेरे साथ में तो तब भी रहना पड़ता तूम्हे.. और मैं तो बहुत बुरा लड़का होती.. रोज़ शराब पीकर तुम्हारे साथ मार पिट करती.. और तुम्हे अपने पैरों में रखती.. और तुम रोज़ मेरे सामने सर झुका कर सुनो जी.. सुनो जी.. करते..
गौतम हसते हुए - अच्छा है तुम लड़का नहीं हो..
कुसुम - हम्म.. माँ भी मेरा गुस्सा देखकर यही कहती है.. तुम्हे भी मुझे झेलना होगा.. मेरे गुस्से को भी संभालना होगा..

गौतम दिवार का सहारा लेकर बैठते हुए - सब मेरे नखरे उठाते है मैं तेरे उठाऊंगा? तू कितनी गलतफहमी में है.. मैं अपनी मर्ज़ी का मालिक हूँ..
कुसुम बगल में बैठती हुई - एक बार मुझे साथ ले जाओ.. फिर देखना मेरी मर्ज़ी से सब करोगे..
गौतम - अच्छा? जादू टोना जानती हो..
कुसुम - हाँ.. दादी कहती है जरुर पिछले जन्म में मैं जादूगरनी थी.. मैं जिसे गुस्से दे देखु वो फूल भी मुरझा जाता है और प्यार से देखु तो मुरझाया हुआ फूल भी खिल उठता है..
गौतम कुछ सोचकर - ऐसी बात है?
कुसुम - हाँ.. कोई शक है तुम्हे?
गौतम कुसुम को घूर कर उसके हाथ पकड़ते हुए - घर में कोई नहीं है..
कुसुम शर्म से नज़र चुराते हुए - बंधन से पहले कुछ करने की सोचना भी नहीं..
गौतम - अगर कुछ कर दू तो...
कुसुम गौतम को देखकर - चूमने की इज़ाज़त है उससे ज्यादा करोगे तो छत से धक्का दे दूंगी..
गौतम - क्या चूमने की..
कुसुम शरमाते हुए - होंठ...
गौतम छेड़ते हुए - कोनसे? ऊपर वाले या नीचे वाले?

कुसुम समझ जाती है गौतम किन होंठों की बात कर रहा है और वो शर्मा कर धत.. कहते हुए गौतम से अपना हाथ छुड़वा कर छत से नीचे चली जाती है और गौतम मुस्कुराते हुए कुसुम के बारे में कुछ सोचने लगता है..

गौतम छत पर खड़ा हुआ ये सब सोच ही रहा था कि उसके फ़ोन पर किसी का फ़ोन आता है..
हेलो..
हेलो गौतम..
हाँ.. तुम कौन?
मैं किशोर.. बड़े बाबाजी बात करना चाहते है तुमसे..
बड़े बाबाजी - गौतम..
गौतम - प्रणाम बाबाजी..
बड़े बाबाजी - मेरे कार्य का समय आ गया है बेटा..
गौतम - बाबाजी मैं कल ही आपके पास आ जाऊंगा..
बड़े बाबाजी - कल नहीं गौतम दो दिन बाद.. अमावस के दिन मेरा कार्य शुरु होगा जो अगली अमावस तक चलेगा..
गौतम - ठीक है बाबाजी मैं आ जाऊंगा..
बड़े बाबाजी - बेटा.. तुम अपने साथ अपनी जरुरत का सारा सामान लेकर आना.. तुम्हे कुछ दिन यही रुकना होगा.. जिसे भी तुम बताना चाहते हो उसे कोई और कारण बताकर आना..
गौतम - टेंशन मत लो बाबाजी मैं कह दूंगा वर्ल्ड टूर पर जा रहा हूँ.. मैं आपके पास आ जाऊंगा..
बड़े बाबाजी - ये मज़ाक नहीं है बेटा.. जैसा कहता हूँ वैसा ही करना..
गौतम - जी बाबाजी.. मैं कोई बहाना बनाकर आपके पास आ जाऊंगा कुछ दिनों के लिए..
बड़े बाबाजी - मैं प्रतीक्षा करूँगा बेटा.. समय से उपस्थित हो जाना वरना तुम्हे जो भी मुझसे मिला है वो तुमसे छीन जाएगा...
गौतम - क्या बात कर रहे हो बाबाजी.. मैं आ जाऊंगा.. आप कुछ भी मत छीनना.. अच्छा अब रखता हूँ..
बड़े बाबाजी - ठीक है बेटा..


बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया
ये कुसुम और गौतम के बीच की नोंकझोंक बडी ही मस्त और लाजवाब हैं
अब बडे बाबाजी का काम गौतम कैसे करता हैं
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
 

insotter

Member
290
488
64
N
Update 53

सरदार... सरदार..

क्या हुआ ढोला.. सुबह सुबह क्यों आये हो? क्या बात है?

सरदार.. नदी का प्रवाह बढ़ने लगा है.. इस बार बारिश में नदी के आसपास की सारी जगह डूबने की सम्भावना है.. आस पास के काबिले अपना पड़ाव यहां से उठाकर कहीं और डालने की बात कर रहे है.. हमें भी कोई कदम उठाना होगा..

हाक़िम - ठीक है ढोला.. तुम आज काबिले का अगला पड़ाव डालने के लिए कोई और जगह देखो और रात को मुझे बताओ... कल हम यहां से अपना पड़ाव उठा लेंगे और नदी के बहाव क्षेत्र से दूर चले जाएंगे.. मंगरू को भी अपने साथ ले जाना..

ढोला - सरदार... कल पढ़ाव उठाना अशुभ होगा.. कल अमावस्या है.. और नदी का प्रवाह कभी भी असामान्य रूप से बढ़ सकता है..

हाक़िम चौंकते हुए - कल अमावस्या है?

ढोला - हाँ सरदार.. कल अमावस्या है.. और मैंने काबिले का अगला पड़ाव डालने के लिए जगह भी देख ली है जो यहां से 12 मिल दूर पूर्बमें है.. हमें आज ही यहां से अगले पढ़ाव के लिए निकलना होगा..

हाक़िम गहरी सोच में खो जाता है जिसे उस सोच से बाहर निकालते हुए ढोला आगे कहता है - क्या हुआ सरदार? किस स्वप्न में चले गए.. हमें आज ही अगले पढ़ाव के लिए निकलना होगा..

हाक़िम - ठीक है.. तुम मंगरू के साथ पुरे काबिले को कह दो कि हम अगले पढ़ाव के लिए सूरज चढ़ते ही निकलेंगे..

ढोला - ठीक है सरदार..

हाक़िम - ढोला..

ढोला - जी सरदार...

हाक़िम - मैं जागीरदार से मिलने जा रहा हूँ तुम मंगरू के साथ मिलकर पुरे काबिले को अगले पढ़ाव तक ले जाओ.. मगर ध्यान रहे.. अगले पढ़ाव पर पानी कि उचित व्यवस्था हो..

ढोला - मैं सब देख चूका हूँ सरदार.. वहा एक छोटा पानी का स्रोत है जो नदी से निकलता है और अविरल बहता है.. आप निश्चित होकर जागीरदार से मिल आइये मगर सरदार पौखा बता रहा था आज जागीरदार किसी पर हमले के लिए सेना लेकर निकल चूका है.. सरदार.. जागीरदार वीरेंद्र सिंह ने आस पास की सारी रियासत तो पहले ही जीत ली अब पता नहीं किसपर हमले के लिए सेना लेकर जा रहा है...

हाक़िम - ढोला क्या कह रहा है? ये कब हुआ?

ढोला - सरदार आप पिछले एक महीने से आपकी पत्नियों के साथ थे.. मंगरू ने आपको बताना भी चाहा मगर आपने उसे जाने को कह दिया.. मैंने भी इन गतिविधियों से आपको सचेत करने का प्रयास किया किन्तु ऐसा करने में नाकाम रहा..

हाक़िम - मतलब बैरागी...

ढोला - बैरागी की मृत्यु हो चुकी है सरदार.. अफवाह है की जागीरदार ने उसकी हत्या कर दी.. रानी सुजाता भी मारी गई..

हाक़िम सर पकड़ के बैठता हुआ - इसका मतलब.. अब मैं बैरागी से नहीं मिल पाऊंगा..

ढोला - सरदार ये आप क्या कर रहे है.. हमें अभीकुछ देर में निकलना होगा..

हाक़िम - वीरेंद्र सिंह.. उसके पास जदिबूती की सारी जानकारी होगी.. इससे पहले की जोगी उससे नर्क दिखाए.. मुझे अब उससे ही मिलकर मुझे वो जदिबूती हासिल करनी पड़ेगी..

ढोला - कोनसी जदिबूती.. और कौन जोगी सरदार..

हाक़िम - कुछ नहीं ढोला.. तुम पुरे काबिले को कह दो की पढ़ाव की जगह बदलने वाली है सब अपना सामान बाँध ले..

ढोला जाते हुए - जी सरदार..



मंगरू - आपने बुलाया सरदार..

हाक़िम - मंगरू मैं जागीरदार के पास जा रहा हूँ.. ढोला ने एक नई जगह देखी है जहाँ अगला पढ़ाव डाला जाएगा.. उर्मि के साथ माँ और मौसी सकुशल अगले पड़ाव तक पहुंच जाए ये तुम्हारा काम है..

मंगरू - जी सरदार.. मैं समझा गया.. मगर आपका जागीर जाना उचित नहीं होगा.. पौखा ने कहा है जागीरदार बदल गया है अब वो काबिले के सरदारो से नहीं मिलता..

हाक़िम - वो सब तू मुझपर छोड़ दे मंगरू.. तू बस वही कर जो मैं कहता हूँ..

मंगरू - जी सरदार..



हाक़िम काबिले से चल देता है और जागीरदार के महल के पास पहुंचते पहुंचते सूरज चढ़ आया था और महल के आस पास हाक़िम लोगों को भागता हुआ देखता है.. हर तरफ अफरा तफरी मची हुई थी.. ऐसा लगता था की लोग अपनी जान बचा के वहा से भाग रहे है..



हाक़िम जब तक महल के दरवाजे पर पंहुचा उसने देखा की वहा कोई नहीं था और हर तरफ उजाड़ और ताबही का मंजर था.. वीरेंद्र सिंह को उसने महल के हर कोने में और आस पास की हर जगह देखा मगर उसे कहीं नहीं पाया.. हाक़िम सोच रहा था की अब वो क्या करेगा? कैसे जड़ी बूटी हासिल करेगा?



हाक़िम वीरेंद्र सिंह को ढूंढ़ते हुए दुपहर की शाम कर चूका था मगर उसका कहीं पता नहीं था और अब हाक़िम यही सोच रहा था की वो वापस जाकर वीरेंद्र सिंह और बैरागी को क्या जवाब देगा?



हाक़िम अपने आप को इस सब का दोष देने लगा की वो भोग विलास में इतना डूब गया की उसे अपने लक्ष्य की याद ही नहीं रही..



हाक़िम काबिले के अगले पड़ाव की और चल दिया था की रास्ते में उसे जोगी की याद आई और वो सोचने लगा की जोगी को वीरेंद्र का पता होगा और वो वीरेंद्र सिंह को जरुर ढूंढ़कर उसे बता सकता है मगर अब जोगी उसे कहा मिलेगा? हाक़िम को उसी जगह की याद आई जागा जोगी की कुटीया थी.. हाक़िम तेज़ी से अपने कदम बढ़ाता हुआ जोगी की उस कुटिया के पास आ गया जहाँ उसने देखा की जोगी घोर विलाप के आंसू अपनी आँखों से बहा रहा है और वो जहाँ बैठा है वो मृदुला की क़ब्र थी..



हाक़िम - एक्सक्यूज़ मी अंकल...

जोगी अपनी रूआसी आँखों मी गुस्सा भरके हाक़िम की तरफ देखकर - कौन है तू और यहां क्या कर रहा है?

हाक़िम - अंकल मैं फ्यूचर.. मतलब भविष्य से आया हूँ और आपकी मदद चाहता हूँ..

जोगी - मैं तेरी कोई मदद नहीं कर सकता लड़के चला जा यहां नहीं तो मेरा क्रोध मुझे तेरे प्राण लेने पर विवश कर देगा.. चला जा अपने प्राण बचाके यहां से..

हाक़िम - देखो अंकल.. मैं चला जाऊँगा तो बहुत गलत हो जाएगा.. जिन लोगों ने मुझे यहां भेजा है उन्होंने कुछ काम देकर भेजा था मगर मैं वो काम नहीं कर पाया.. अगर वापस जाऊँगा तो मुझसे मेरा बड़ा लंड... मतलब मेरी शक्तियां छीन लेंगे और मुझे वापस दुख दर्द तकलीफ के साथ जीने को मजबूर कर देंगे.. आप प्लीज मेरी मदद करिये..

जोगी - लड़के तू मेरी बात मान और चला जा यहां से नहीं तो तेरे लिए ये घड़ी जीवन की अंतिम घड़ी हो जायेगी..

हाक़िम - मैं बिना आपसे मदद लिए नहीं जाऊँगा अंकल..

जोगी अपने क्रोध पर नियंत्रण रखते हुए - तू ऐसे नहीं मानेगी.. बता तुझे क्या चाहिए..

हाक़िम - अंकल.. वीरेंद्र सिंह का पता चाहिए..

जोगी क्रोध से - तू वीरेंद्र सिंह के साथ है? मैं तुझे जीवित नहीं छोडूंगा..

ये कहते हुए जोगी ने अपने सुला हाक़िम की तरफ फेंका मगर जोगी का सुला हाक़िम के ऊपर आकर बेअसर हो गया और जोगी हाक़िम को रहस्य की निगाहो से देखने लगा.. जोगी ने हाक़िम के गले में वही ताबिज़ देखा जो उसने बैरागी के गले में देखा था जब उसने बैरागी की क़ब्र के पास पड़ा हुआ देखा था.. और जोगी समझा चूका था की ये ताबिज़ वही है और इसके करण ही हाक़िम की रक्षा हुई है..

जोगी गुस्से में - तू वीरेंद्र सिंह को क्यों पूछ रहा है?

हाक़िम - जदिबूती के लिए..

जोगी - कोनसी जदिबूती?

हाक़िम - अरे वही जिसे खाकर वो अगले 800 सालों के लिए अमर हो गया.. मगर आपने उससे सारा भौतिक सुख छीनकर उसे धरती पर नर्क भोगने के लिए आजाद के दिया.. मैं उस जदिबूती के बारे में वीरेंद्र सिंह से पूछना चाहता हूँ जिससे मे वापस भविष्य में जा सकूँ.. और वापस भविष्य में जाकर वीरेंद्र सिंह को वही जड़ीबूटी खिला सकूँ जिससे वीरेंद्र सिंह मर कर मुक्त हो सके और बैरागी आगे आयाम पर जा सके..

जोगी - तू कैसे जानता है आज बैरागी को मैंने वीरेंद्र सिंह के सर पर बाँध दिया है..

हाक़िम आगे आते हुए - देखो अंकल... मैंने कहा मैं भविष्य से आया हूँ..

जोगी का शेर दहाड़ने लगता है..

हाक़िम - अंकल संभालो इस शेर को.. कहीं काट वात लेगा तो मैं जान और जहान दोनों से चला जाऊँगा..

जोगी - मैं तेरी मदद नहीं करूँगा लड़के.. तू जा यहां से वरना मैं तेरे गले से ये ताबिज़ निकालकर तेरी जान ले लूंगा..

हाक़िम पास आकर बैठते हुए - अंकल.. मैं जानता हूँ आपको दुख है तकलीफ है और मृदुला के जाने की बहुत पीड़ा है.. पर आपने वीरेंद्र सिंह के साथ बैरागी को भी सजा दे दी.. जो उन्होंने 300 सालों तक भोगा है.. अब और नहीं अंकल.. आप अपना गुस्सा शांत करके मेरी मदद करो अंकल...

जोगी - तू मुझसे झूठ कहता है.. तू भविष्य से कैसे आ सकता है.. भूतकाल और भविष्य पर किसका जोर चलता है..

हाक़िम - आज नहीं चलता मगर हो सकता है आगे चलकर चले.. देखो.. मैं झूठ नहीं बोल रहा है.. मेरा विश्वास करो... वीरेंद्र सिंह अब हर साधू सन्यासी और तांत्रिक के पास जाकर आपके बंधन को काटने की विद्या सीखेगा मगर उसे सफलता नहीं मिलेगी और आखिर में वो मुझे भविष्य से यहां अपने पिछले जन्म में भेजेगा..

जोगी हाक़िम के सर पर हाथ रखकर उसकी सारी यादे देखता है... और जब वापस आता है उसके मुंह से आवाज आती है - मृदुला..

जोगी - मृदुला??

हाक़िम - क्या हुआ? मृदुला... अंकल ओ अंकल.. प्लीज मुझे वीरेंद्रसिंह के पास वापस वो जदिबूती लेकर जाने में मेरी मदद करें..

जोगी - मुझे ले चल बेटा... अगले जन्म में मुझे ले चल..

हाक़िम - मुझे जड़ी बूटी लेकर जाना है अंकल... आपको लेजाकर क्या करूँगा...

जोगी - अगर तू मुझे नहीं ले जाएगा तो मैं तुझे यही समाप्त कर दूंगा.. मुझे मेरी मृदुला से मिलना है.. मैंने जाते हुए उससे वादा किया था..

हाक़िम - पर मृदुला तो आपको छोडके जा चुकी है.. आप कैसे उसे मिलोगे?

जोगी - मृदुला ने कुसुम बनकर जन्म लिया है.. और अगर तू मुझे अपने साथ लेकर नहीं गया और मुझे मेरी मृदुला से नहीं मिलवाया तो मैं तेरा काबिला समाप्त कर दूंगा...

हाक़िम - ठीक है ठीक है.. पर वीरेंद्र सिंह का क्या? बैरागी? वो कैसे मुक्त होंगे?

जोगी - तू मुझे उनके पास ले जा मैं उसका बंधन खुद ही काट दूंगा और वो मेरे बंधन से आजाद हो जाएंगे..

हाक़िम - पर मेरी शर्त है..

जोगी - क्या?

हाक़िम - मुझे ये पावर चाहिए जैसे आप सर पर हाथ रखकर सब देख लेते हो मुझे भी सीखना है..

जोगी - ये एक सिद्धि है बेटा.. अगर तू मुझे वापस ले गया तो मैं तुझे ये सिद्धि दे दूंगा..

हाक़िम - ठीक है.. कल सुबह मुझे जंगल पूर्व वाली झील पर मिलना..

जोगी - और एक बात सिर्फ मृदुला का ही नहीं मुन्नी का भी अगला जन्म हुआ है तेरे ही समकालीन..

हाक़िम - कौन?

जोगी - प्रमिला..

हाक़िम - मेरी माँ मुन्नी अगले जन्म में मेरी बुआ पिंकी है...

जोगी - हाँ... अब जा कल मैं तुझे झील के पास मिलूंगा सुबह समय से आ जाना...



*************



इतना समय क्यों लग गया तुम्हे..

हाक़िम रोते हुए - कुछ नहीं अंकल... बस ऐसे ही.. चलो उस पेड़ के नीचे आपको गाड़ना होगा फिर मैं इस झील में उतर जाऊँगा और हम दोनों अगले जन्म में पहुंच जाएंगे...

जोगी - रुको मैं खड्डा का निर्माण करता हूँ..

हाक़िम - ठीक है.. फ़ालतू मेहनत नहीं करनी पड़ेगी..

जोगी खड्डा बना देता है और उसमे बैठ जाता वही हाक़िम जोगी के ऊपर मिट्टी डालकर उसके दबा देता है और नंगा होकर रोते हुए झील में उतर जाता है..



वीरेंद्र सिंह गौतम को होश में आते देखकर - बैरागी ये देखो.. गौतम वापस आ गया है.. लगता है इसने हमारा कार्य सफल कर दिया है..

बैरागी - हुकुम पहले इसे पूरी तरफ होश में आने दो और पूछो कि क्या ये जदिबूती लाने में सफल हो भी पाया है या नहीं..

वीरेंद्र सिंह - गौतम... गौतम..

गौतम होश में आते हुए - बड़े बाबाजी.. प्रणाम..

वीरेंद्र सिंह उत्सुकता से - बोल बेटा.. क्या तुम वो जड़ी बूटी लाये हो.. क्या मेरा कार्य सफल हुआ है?

बोलो बेटा..

गौतम - जदिबूती तो नहीं ला पाया बाबाजी.. मैं जब तक महल पंहुचा सब बर्बाद हो चूका था..

वीरेंद्र सिंह क्रोध से - क्या?

बैरागी - तुमसे जो कहा गया था तुमने जरुरत उससे विपरीत कुछ किया होगा तभी ये कार्य सफल नहीं हुआ.. अब हमने हमेशा ऐसे ही रहना पड़ेगा..

गौतम - नहीं.. नहीं रहना पड़ेगा.. मैं कुछ ऐसा लाया हूँ जो बाबाजी के समस्या का समाधान करके मुक्ति दे देगा.. और तुमको भी आजाद कर देगा..

वीरेंद्र सिंह क्रोध को भूलकर ख़ुशी से - क्या? क्या लाया है जो मुझे मृत्यु दे देगा.. और मुक्त कर देगा उस अभिश्राप से..

गौतम - वो आप खुद ही पेड़ के नीचे खोद कर देख लो..

वीरेंद्र सिंह - नहीं वो तुम्हे खोदना पड़ेगा.. तभी तुम्हारी गाडी हुई चीज यहां आ पाएगी..

गौतम - ठीक चलते है.. मगर मेरी एक शर्त है..

वीरेंद्र सिंह - क्या?

गौतम - आपको मुक्ति मिलने मेरे पास जो है वो तो नहीं छीन जायेगा ना..

बैरागी - नहीं गौतम.. ऐसा कुछ नहीं होगा..

गौतम पेड़ के नीचे आते हुए - आप सच कह रहे है?

वीरेंद्र सिंह - हाँ.. सच है गौतम.. यकीन आ ये तो मैं तुझे अपनी सारी सिद्धिया और ज्ञान देकर मुक्ति लूंगा..

गौतम खड्डा खोदते हुए - ठीक है कोई पुराना मिलने वाला है आपका जिसमे में लाया हूँ..

वीरेंद्र सिंह - ऐसा कौन मेरा पुराना मिलने वाला हो सकता है जो मेरी मुक्ति कर सके..

गौतम खड्डे खोड़कर - खुद देख लो..

वीरेंद्र सिंह जोगी को देखकर उसके पैरों में गिरता हुआ - माफ़ी... माफ़ी... माफ़ी... दे दो मुझे.. मेरी गलती की माफ़ी दे दो महाराज...

जोगी - मैं तुझे मुक्ति देने ही आया हूँ वीरेंद्र सिंह..

बैरागी - मुझे भी माफ़ी चाहिए बाबा..

जोगी - तुझे नहीं मुझे तुझसे माफ़ी मांगनी चाहिए रागी... मैं इतना क्रोध में था कि मृदुला के मरने का क्रोध तेरे ऊपर भी उतार दिया.. और तुझे वीरेंद्र सिंह के साथ बाँध दिया.. लेकिन अब मैं तुम्हे इस बंधन से मुक्त करने आ गया हूँ...

गौतम - अंकल बाबाजी को मुक्त करने से पहले बाबाजी मुझे अपनी सिद्धिया देना चाहते है..

जोगी - बेटा तू प्रकृति से खिलवाड़ मत कर.. वीरेंद्र सिंह ने जो हासिल किया है वो आम विद्या नहीं है.. और ना ही तू इसे संभाल पायेगा..

गौतम - तो क्या अब आप वो सर ओर हाथ रखकर यादे देखने वाला मंतर भी नहीं सिखाओगे मुझे? मतलब आपने मुझे चुतिया बना दिया..

जोगी - मैं तुझे वो दूंगा जिसकी तुझे जरुरत है.. मगर उसकी मांग मत कर जो तेरे किसी काम का नहीं..

गौतम उदासी से - ठीक है.. अब जल्दी मुक्ति दो बाबाजी और बैरागी को.. बेचारे 300साल से लटके हुए है..

जोगी बीरेंद्र सिंह और बैरागी पर से अपने बंधन को वापस ले लेता है जिसके कारण बैरागी कि आत्मा अपने नए आयाम में चली जाती है और पुनर्जन्म के लिए आगे बढ़ जाती है वही वीरेंद्र सिंह के ऊपर से बामधन हटते ही वो फिर से एक आम इंसान बन जाता है जो 73 वर्ष का वृद्ध होता है.. मगर अब वो अपनी मर्ज़ी का खा सकता था पहन सकता था और सो भी सकता था..



वीरेंद्र सिंह हाथ जोड़ कर - मुझे माफ़ कर दो..

जोगी - अब जो हुआ उसे भूल जाओ वीरेंद्र सिंह.. तुम्हारे करण बहुत लोगों का कल्याण भी हुआ जिसका फल तुम्हे मिलेगा.. तुम चाहो तो मृत्यु को गले लगा सकते हो या कुछ और साल जीवित रहकर मन मुताबित जीवन जी सकते हो..

वीरेंद्र सिंह हाथ जोड़कर - मुंहे तो मृत्यु ही चाहिए.. बहुत तरसा हूँ मैं मृत्यु के लिए अब जीने की लालसा ख़त्म हो गई है.. मगर एक बार में विरम से मिलना चाहता हूँ और उसे अपने जाने की बात बतलाना चाहता हूँ...

जोगी - जैसा तुम चाहो वीरेंद्र सिंह.. आज तुम्हरे प्राण स्वाहा हो जायेगे...



गौतम - देखो अंकल अब चलो.. और ये भेस नहीं चलेगा.. बाबाजी आश्रम में कुछ अच्छे कपड़े होंगे?

वीरेंद्र सिंह - विरम सबकी व्यवस्था कर देगा..



गौतम जोगी को आश्रम में ले आता है और जोगी नहा कर वर्तमान के कपड़े पहन लेता है गौतम भी नहा कर नये कपड़े पहन लेता है..



गौतम - आज रात यही रहो अंकल.. कल सुबह में कुसुम से मिलवाने ले जाऊँगा आपको..

जोगी - ठीक है बेटा..





***********





तू नहीं आता वही अच्छा था.. दोपहर से मेरी चुत में घुसा हुआ है मन नहीं भरता क्या तेरा? मैं कितना झेल पाउंगी तुझे.. मेरी चुत फिर पहले जैसी कर दी तूने.. कमीने तेरी माँ हूँ थोड़ी तो शर्म कर.. जिस चुत से निकला है उसीको चोद चोद के सुजा दिया है.. पहले तेरी शकल देखकर प्यार आता था अब शर्म आती है..

गौतम मिशनरी में पेलते हुए - शर्म तो औरत का गहना होता है माँ.. तू शरमाते हुए इतनी प्यारी लगती है कि क्या कहु.. माँ जब तू चुदवाते हुए मुंह बनाती है ना दिल कि धड़कन बढ़ जाती है.. मन करता है तुझे ऐसे ही चोदता रहू..

सुमन - हां.. तू तो मुझे चोदता रहेगा मगर मेरा क्या? मुश्किल से चाल सही हुई थी तूने आते ही वापस मुझे लंगड़ी घोड़ी बना दिया.. दोपहर से बस नंगा करके लिटा रखा है.. ना खाना खाया है ना कुछ और..

गौतम चुत में झाड़ता हुआ - मतलब भूक लगी है मेरी माँ को? अभी तो रात के 10 बजे कोई ना कोई रेस्टोरेंट खुला होगा.. बाहर चलके खाते है..

सुमन गुस्से से आँख दिखाती हुई - लंगड़ी करके बाहर ले जाएगा खाना खिलाने? तूझे बिलकुल शर्म नहीं है ना.. और अब निकाल अपने लंड को मेरी चुत से बाहर.. कैसी लाल कर दी है..

गौतम लंड निकालता हुआ - ठीक है माँ.. अच्छा यही आर्डर कर लेते है रुको.. बताओ क्या खाओगी?

सुमन अपनी चुत से निकलता वीर्य साफ करते हुए - कुछ मगा ले..

गौतम - ठीक है हांडी मटन और नान मगा लेता हूँ.. रायते के साथ..

सुमन ब्रा पेंटी पहनते हुए - नहीं.. आज मंगलवार है.. तू कुछ वेज मंगा..

गौतम - मिक्स वेज कर देता हूँ चपाती के साथ.. और कुछ?

सुमन बेड से खड़ी होती हुई - नहीं..

और लचकती हुई बाथरूम चली जाती है..



हेलो बुआ?

हां मेरे बाबू..

कैसी हो?

मैं अच्छी.. तू तो टूर ओर क्या गया गायब ही हो गया.. पता नहीं कैसे निकला है ये महीना तुझसे बात किये बिना..

अब नहीं जाऊँगा बुआ.. I love you.. पता है किसी ने मुझे बताया है कि पिछले जन्म में आप मेरी माँ थी..

काश इस जन्म में भी होती मेरे बाबू..

मेरी नहीं तो क्या हुआ मेरे बच्चे ही तो हो बुआ..

कल आ रही हूँ मैं तेरे पास.. अब मिले भी ना रहा जाता मेरे बाबू..

बुआ गाँव आना.. कल गाँव जा रहा हूँ मैं..

क्यों?

बुआ कल कुसुम को बंधन में लेने वाला हूँ..

अरे पर तीन महीने बोला था ना अभी तो एक ही हुआ है..

बुआ वो नाराज़ है एक महीने उससे भी बात नहीं कि थी तो मेरा फ़ोन तक नहीं उठा रही.. लगता है मेरी शामत आने वाली है..

अरे अरे.. इतना भी क्या अपनी होने वाली पत्नी से डरना..

डरना तो पड़ेगा बुआ वो कोई आम लड़की थोड़ी है.. शैतान है उसके अंदर अगर उसे खुश नहीं रखूँगा तो मेरा पता नहीं क्या हाल करेगी वो..

ठीक है.. वो तो खुश हो जायेगी..

फ़ोन तो उठाये मेरा..

अरे तू चिंता मत कर मैं बोल देती हूँ उठा लेगी फ़ोन..

थैंक्स बुआ.. यू आर बेस्ट..

सुमन - किसका फ़ोन है?

गौतम - बुआ का.. बात करोगी..

सुमन - मैं क्या बात करूंगी.. तू कर ले..

गौतम सुमन का हाथ पकड़ कर खींचते हुए - अरे बुआ माँ बनने वाली है..

सुमन - पता है.. बताया था जगमोहन ने..

गौतम - मेरे बच्चे की...

सुमन हैरात से - क्या?

पिंकी - ग़ुगु..

गौतम फ़ोन स्पीकर पर डाल कर - बुआ माँ को सब पता है हमारे बारे में..

पिंकी - क्या कह रहा है तू.. पागल हो गया है क्या..

गौतम - लगता है खाना आ गया.. बुआ माँ से बात करो..

सुमन - पिंकी..

पिंकी - भाभी ग़ुगु की बात को सीरियस मत लेना वो मज़ाक़ कर रहा है..

सुमन - मैं सब जानती हूँ पिंकी.. अब मुझसे छिपाने की जरुरत नहीं है तुम्हे.. मुझे तेरे और गौतम के रिश्ते से कोई ऐतराज़ नहीं है..

पिंकी - भाभी क्या आप भी..

सुमन - अब मैं कुछ छिपाना नहीं चाहती तुझसे पिंकी.. मैं भी गौतम के साथ वैसे ही रिश्ते में हूँ जैसे कि तू..

पिंकी - भाभी ग़ुगु आपका बेटा है.. उसके साथ आप.. ये सही नहीं है..

सुमन - ये बात तुम कर रही हो पिंकी.. हवस में अंधी होकर अपने भतीजे के साथ सोने में तुम्हे शर्म नहीं आई और मुझे सही गलत समझा रही हो.. पिंकी मैं जानती हूँ तुम भी गौतम से बहुत प्यार करती हो.. मैं तुम्हे कुछ नहीं कहूँगी..

पिंकी - भाभी.. ग़ुगु के साथ आपका वो रिश्ता समाज के लिए पाप है.. आपने मुझे अपने बारे में बता दिया है पर आप और किसीसे इस बात का जिक्र तक नहीं करना.. कुसुम से तो बिलकुल नहीं..

सुमन - मैं अच्छे से जानती हूँ पिंकी.. मुझे किसके साथ क्या बात करनी है.. तूम उसकी चिंता मत करो..



गौतम - खाना तैयार है माँ.. आ जाओ..

सुमन - लो बात करो अपनी बुआ से..

गौतम - हाँ बुआ..

पिंकी - कमीने कुत्ते अपनी माँ के साथ ही सो गया तू.. भाभी ने सब बता दिया कैसे तूने भाभी के साथ अपना रिश्ता बनाया..

गौतम हसते हुए - बुआ अब मैं क्या करू.. आपकी तरफ माँ से भी बहुत प्यार करता हूँ..

पिंकी - अच्छा.. तो क्या भाभी को नंगा ही रखेगा घर में.. बेचारी तुझे इतना प्यार करती है और तू उनके साथ पता नहीं क्या क्या करता है.

गौतम खाना खाते हुए - आप आ जाओ ना.. बचा लो अपनी भाभी को मुझसे..

पिंकी - जल्दी आउंगी.. अब खाना खा..

गौतम - अच्छा किस्सी तो दे दो गीली वाली..

पिंकी - उम्महां... अब मिलूंगी ना भाभी के साथ मिलकर तेरा चीरहरण करूंगी.. चल बाय..

गौतम - love you बुआ..

पिंकी - love you too बाबू..

सुमन - बाय पिंकी..

पिंकी - बाय भाभी.. ज्यादा तंग करें तो एक थप्पड़ रख देना इस शैतान के..

सुमन हसते हुए - अच्छा ठीक है.. बाय...



सुमन और गौतम खाना ख़ाकर वापस बेड ओर आ जाते है..

सोने दे ना ग़ुगु..

मैं कहा रोक रहा हूँ सोने से माँ..

ऐसे छेड़खानी करेगा तो कैसे सो पाउंगी.. तू वापस शुरू हो गया.. देख सोने वरना सच में एक थप्पड़ मार दूंगी..

अच्छा ठीक है मेरी माँ.. सो जाओ..

तू कहा जा रहा है?

कहीं नहीं.. छत पर..

क्यों?

बस ऐसे ही..

नहीं जाना.. यहां आ.. मेरे पास.. सो जा तू भी..

गौतम सुमन को बाहों में भरकर लेट जाता है..

अरे अब किसका फ़ोन आ गया तेरे फ़ोन पर?

कुसुम का है माँ..

बात कर क्या कहती है..

कहेगी क्या.. मुझे ताने मारेगी..

बात तो कर..

हेलो...

बोलो?

क्या बोलू?

बुआ ने कहा तुम कुछ बोलना चाहते हो तो बोलो..

इतना गुस्से में क्यों है तू? एक महीने बात नहीं कि तो इतनी नाराज़गी?

एक महीना... तुम्हारे लिए सिर्फ एक महीना है.. पता है मेरा कितना बुरा हाल हुआ है.. रोज़ तुम्हे याद करके.. मन तो कररहा है फ़ोन में घुसकर तुम्हारा वो हाल करू कि याद रखो तुम..

अच्छा सॉरी ना कुसुम..

सॉरी.. सोरी से सब ठीक नहीं होता.. कितने फ़ोन और massage किये पर तुम हो कि.. छोडो.. जो कहना है कहो मुझे सोना है..

अकेले सोना है? मेरे साथ नहीं सोना चाहती?

मसखरी करने के लिए फ़ोन किया है? कितने बुरे तो तुम.. जरा भी अंदाजा नहीं है तुम्हे मेरे मन का.. क्या बीत रही है मेरे ऊपर.. और तुम्हे इस रात में मसखारी करनी है..

ठीक है मेरी प्यारी कुसुम.. कल आ रहा हूँ मैं तुझे लेने.. मैं भी तेरे बिना नहीं रह पाऊंगा अब...

फिर से मसखरी.. देखो ऐसा करोगे ना तो याद रखना मैं भी बहुत सताऊंगी तुम्हे..

मज़ाक़ नहीं कर रहा पागल.. सच में कल आ रहा हूँ मैं माँ को लेकर.. यक़ीन ना हो तो बात कर लो..

सुमन - हेलो कुसुम...

कुसुम - हाँ बड़ी माँ..

सुमन - गौतम मज़ाक़ नहीं कर रहा बेटा.. कल वो सच में आ रहा है.. और कल ही तेरे साथ बंधन करके तुझे अपने साथ ले आएगा..

कुसुम ख़ुशी से - सच..

गौतम सुमन से फ़ोन लेकर - और क्या मज़ाक़ कर रहा हूँ?

कुसुम - हाय.. मुझे तो लाज आ रही है..

गौतम - अभी से.. अभी तो कुछ हुआ भी नहीं..

कुसुम फ़ोन काटते हुए - छी...



सुमन मुस्कुराते हुए - बेचारी...

गौतम बिन बताये सुमन कि पेंटी सरकाकर लंड अंदर घुसाते हुए - माँ गलती से चला गया..

सुमन सिसकते हुए - अह्ह्ह.. बार बार यही गलती करता है ना तू..

गौतम - माँ गलती से अंदर फिसल गया सच्ची..

सुमन - अह्ह्ह.. बेशर्म.. अब चोद भी गलती से रहा है क्या?

गौतम - माँ.. पता नहीं.. अपने आप लंड अंदर बाहर हो रहा है..

सुमन - झूठे मक्कार.. बहाने बहाने से चुत में घुसा देता है.. कहता है गलती से हो गया. अह्ह्ह.. आराम से मदरचोद..

गौतम चोदते हुए - गाली कितनी प्यारी लगती है तुम्हारे मुहसे माँ...

सुमन - कमीने मेरा बेटा नहीं होता ना.. बहुत मार खाता तू..

गौतम - घोड़ी बनो ना..

सुमन - बाल नहीं खींचेगा..

गौतम - ठीक है..

सुमन घोड़ी बनती हुई - प्यार से कर..

गौतम चुत में ड़ालते हुए - आराम से करूँगा माँ तुझे भी मज़ा आएगा..

सुमन चुदवाते हुए - अह्ह्ह... अह्ह्ह... अह्ह्ह...

गौतम टीवी पर एक ब्लू फ़िल्म चला देता है और अपनी माँ को घोड़ी वाले पोज़ में चोदता रहता है..

सुमन - अब झड़ भी जा.. मैं कितना झेलू तुझे.. तू तो बस चोदना ही जानता है.. झड़ने का नाम ही नहीं लेता..

गौतम - माँ यार मैं क्या करू? आप जल्दी झड़ जाती हो तो.. मेरा होने में टाइम लगता है..

सुमन मिशनरी में चुदवाती हुई - एक घंटा हो गया.. जलन सूजन और अब दर्द भी होने लगा है मुझे.. और तू है कि बस..

गौतम चुत में झड़ते हुए - अच्छा बस हो गया माँ...

सुमन - अह्ह्ह... महीने भर से दूर तो बहुत याद आता था अब आ गया है तो ऐसा लगता है दूर ही अच्छा था.. कितना गन्दा चोदता है तू.. कुसुम का तो पता नहीं क्या हाल होगा.. देख... कितना सूज गई है फिर से..

गौतम - चाटकर सूजन कम करदु.. आप कहो तो?

सुमन - अब सो जा शहजादे.. कल जाना भी है गाँव...

गौतम - ठीक है माँ..





अह्ह्ह...

क्या हुआ? ठीक तो हो माँ...

कल इतना बुरा किया और पूछ रहा है ठीक हूँ या नहीं.. वापस लंगड़ी कर दिया तूने..

अच्छा सॉरी माँ.. लो आओ मैं गोद में उठाके ले चलता हूँ..

नहीं रहने दे मैं चलकर ही गाडी में बैठ जाउंगी..

गौतम सुमन को उठाते हुए - ज्यादा नखरे मत किया करो... समझी..

सुमन - अरे दरवाजा तो बंद कर दे.. और लॉक भी कर दे..

गौतम - ठीक है..

गौतम रास्ते में उसी पहाड़ी के नीचे आजाता है..

सुमन - बाबाजी के पास क्यों लाया है? गाँव जाना था ना..

गौतम किसीको फ़ोन करता हुआ - एक और आदमी है जो गाँव चलेगा..

हेलो... हाँ.. नीचे बरगद के पास.. ठीक आ जाओ...

सुमन - कौन आदमी गौतम?

गौतम - है कोई बाबाजी चाहते है बंधन के समय वो उपस्थित रहे...

सुमन - मुझसे तो कुछ नहीं कहा बाबाजी ने..

गौतम - पर मुझसे कहा था... लो वो आ गया.. कैसे हो अंकल...

किशोर जोगी को गाडी में बैठाते हुए - गौतम बड़े बाबाजी और बैरागी...

गौतम - जानता हूँ...

जोगी - बहुत तरक्की कर ली है दुनिया ने..

गौतम गाडी चलाता हुआ - हाँ अंकल..

जोगी - ये तुम्हारी माँ है..

गौतम - हाँ... आप तो सब जानते हो..

सुमन - ये कौन है गौतम?

गौतम - माँ ये बाबाजी के पापा जी है.. जो बाबाजी नहीं कर सकते वो सब ये कर सकते है.. उन्होंने बताया है कि बुआ पिछले जन्म में मेरी माँ थी.. अंकल माँ के बारे में बताओ ना कुछ.. अगले पिछले जन्म में माँ कौन थी..

जोगी - क्या करेगा ये जानकार बेटा...

सुमन - नहीं नहीं.. मुझे कुछ ऐसी पहेली बुझा दो कि ये मुझसे झूठ ना कह पाए कभी..

जोगी - तेरा बेटा जब भी झूठ बोलेगा तुझे पता चल जाएगा बेटी...

सुमन - कैसे?

जोगी - तेरा मन तुझे बता देगा..

गौतम - अंकल ऐसा मत करो... यार..

सुमन - अब बोल बच्चू...

गौतम - अंकल ठीक नहीं किया आपने.. अब आपको मृदुला से नहीं मिलवा सकता..

सुमन - कौन मृदुला?

गौतम - कुसुम पिछले जन्म में इनकी बेटी मृदुला थी.. और ये 300 साल पहले से यहां आये है..

सुमन हसते हुए - चल झूठा..

गौतम - अंकल आप ही समझा दो..

जोगी - बेटी ये सच कह रहा है...

सुमन - अच्छा..

गौतम - हाँ.. और मैं कोई टूर पर नहीं गया था.. पिछले जन्म में गया था बड़े बाबाजी के काम से..

सुमन - बड़े बाबाजी तुझसे मिले थे?

गौतम - सिर्फ मिले नहीं थे.. उन्होंने ही मुझे पिछले जन्म में भेजा था.. ताकि मैं जदिबूती लाकर उनको दे सकूँ और वो मर सके.. बड़े बाबाजी को अंकल ने ही जागीरदार से एक फ़कीर बना दिया था.. और 300 साल से बड़े बाबाजी अपनी सजा काटरहे थे..

सुमन - क्या कह रहा है ग़ुगु...

गौतम - सच कह रहा हूँ माँ.. मैं जदिबूती कि जगह अंकल को ले आया और अंकल ने बड़े बाबाजी और उनके ऊपर जो बैरागी की आत्मा थी दोनों को मुक्ति दे दी..

जोगी - और कितना समय है बेटा..

गौतम - बस आधे घंटे में पहुंच जायेंगे अंकल.. वैसे कुसुम तो आपको पहचानेगी नहीं फिर आप क्या करोगे?

जोगी - मैंने मृदुला से वादा किया था बेटा.. मैं उसे मिलने जरुर आऊंगा.. वो जैसे ही मुझे देखेगी उसे सब याद आ जाएगा..

गौतम - बैरागी भी?

जोगी - इस जन्म में उसके लिए अब तू ही बैरागी है बेटा..

सुमन - क्या बात हो रही मेरी तो कुछ समझ नहीं आता..

गौतम - आप मत समझो.. लो अंकल आ गया गाँव भी.. मिल लो आपकी मृदुला से...

हेमा - आओ बेटा... ये बहुत अच्छा फैसला किया तुमने जो बंधन जल्दी करने की हामी भर ली.. आज रात बहुत धूमधाम से सब होगा..

मानसी - आओ जमाई राजा.. बड़ा इंतजार हो रहा है तुम्हारा.. आओ सुमन..

गौतम - कुसुम कहा है?

मानसी - थोड़ा सब्र रखो जमाई राजा.. कुसुम अपने कमरे में है.. शाम को बंधन के बाद आराम से मिल लेना और ले जाना अपने साथ..



शाम को पंचायत के सामने बंधन की सारी रस्मे हो जाती है और गौतम कुसुम को पत्नी के रूप में स्वीकार कर लेता है..



कुसुम - छत ओर क्या कर रहे हो?

गौतम - किसीको मिलना है तुमसे..

कुसुम - कौन?

गौतम - तुम्हारे बाबा..

कुसुम - बाबा?

गौतम - हाँ.. देखो..

कुसुम जोगी को देखकर आंसू बहती हुई - बाबा...

जोगी - रोते हुए - मृदुला..

सुमन नीचे से ऊपर छत पर आती हुई - गौतम??

जोगी - मैंने वादा किया था ना मृदुला.. मैं तुमसे मिलने जरुर आऊंगा..

कुसुम - बाबा... आप कहा चले गए थे..

जोगी - मृदुला.. तूने व्यर्थ ही हठ करके जान गवा दी.. अगर बैरागी की बात मानकर जंगल से बाहर चली जाती तो शायद मुझे और तुझे मिलने के लिए इतना इंतेज़ार नहीं करना होता..

कुसुम - बाबा.. आप अब कहीं नहीं जाएंगे ना..

जोगी - जाना तो पड़ेगा मृदुला.. प्रकृति के नियम तोड़कर मैं यहां नहीं रह सकता मुझे वापस उस दुनिया में जाना होगा...

कुसुम - मैं भी आपके साथ चलूंगी बाबा...

जोगी कुसुम के सर ओर हाथ रखकर - नहीं मृदुला.. मैं तुझे तेरी सारी विद्या जो पिछले जन्म में तेरे पास थी उसे तुझे स्मरण करवा रहा हूँ.. अब तू साधारण नहीं है..

गौतम - ओ अंकल ये सब मत करो.. ये पहले ही मुझे बहुत तंग करती है इतना ताक़त और शक्ति पाने के बाद तो ये पागल हो जायेगी..

कुसुम हस्ती हुई - बाबा... ये बहुत मनमौजी है..

जोगी - इसका उपचार तो तू ही कर सकती है मृदुला... अब मुझे जाने दे.. अब मैं सुख से रह पाऊंगा वहा..

कुसुम गले लगते हुए - बाबा..

सुमन हैरात से - मतलब... सच में..

गौतम सुमन - और क्या मैं मज़ाक़ कर रहा था..

जोगी - अपना ख्याल रखना मेरी बच्ची...

जोगी ये कहकर जने लगता है..

गौतम - वापस जाओगे कैसे ससुर जी?

जोगी - मरने से पहले वीरेंद्र सिंह से मैंने आयामों के मध्य का रहस्य जान लिया था.. मेरे लिए वापस जाना कठिन नहीं.. लेकिन अब मेरी मृदुला की रक्षा और सुख तेरे ऊपर है बेटा..

गौतम - टेंशन मत लो.. ससुर जी..

कुसुम - बाबा.. मेरी चिंता मत करो..

जोगी जाते हुए - सुखी रह मेरी बच्ची..



जोगी के जाने के बाद..

सुमन - कुसुम सँभालना अपने गौतम को.. मुंह मारने की आदत है इसे...

कुसुम गौतम को पकड़कर उसके लंड ओर हाथ लगती हुई - आप फ़िक्र मर करो बड़ी माँ.. घर के अलावा अगर ये किसी और के साथ मुंह काला करना भी चाहेगा तो इसका सामान खड़ा नहीं होगा..

गौतम - ऐ जादूगरनी... ये फालतू का जादूगर टोना मुझे ओर मत करना समझी ना..

कुसुम मुस्कुराते हुए - जादू तो हो चूका है..

सुमन - घर की मतलब?

कुसुम - मैं आपका मन पढ़ सकती हूँ बड़ी माँ.. मैं गौतम का मन भी पढ़ सकती हूँ.. घर की मतलब घर की..

सुमन - कुसुम.. तू?

कुसुम - हाँ बड़ी माँ.. आप और बुआ सब..

गौतम - और भाभी..

कुसुम - हम्म भाभी भी घर की है..

गौतम कुसुम और सुमन को बाहों में भरकर - मतलब दोनों दुल्हन आज मेरे साथ.....


*******************

एक जोर का थप्पड़ सो रहे गौतम के गाल पर पड़ता है....
गोतम नींद से जागता हुआ - हा.... क्या.. क्या हुआ..
सुमन गुस्से में - खड़ा हो जा.. कब तक सोता रहेगा.. ऊपर से नींद में अनाप शनाप बोले जा रहा है... जल्दी से तैयार हो जा... आज बाबाजी के जाना है.. तेरे पापा भी आज जल्दी थाने चले गए..

गौतम. - ये पुलिस क्वाटर?
सुमन - तो और क्या महल में रहता है तू... उठा जा.. और ये सपने देखना बंद कर...
गौतम - मतलब ये सब सपना था...
सुमन गुस्से से - ओ सपनो के सौदागर... उठता है या और एक जमाउ तेरे गाल पर... बस सपने ही देखता रहता है दिन रात...

गौतम सोच रहा था की कितना हसीन सपना था.. जिसमे उसकी सारी ख्वाहिश और इच्छाएं पूरी हो रही थी.. वो उठकर बाथरूम में चला जाता है और आम दिनों की तरह मुट्ठी मारके नहाता है और फिर अपना कीपेड फ़ोन उठाकर अपनी माँ सुमन को उसी पुरानी और बाबा आदम के जामने की बाइक जिसे उसके बाप जगमोहन ने दिलवाया था उसपर बैठाकर बाबाजी के चल पड़ता है..

गौतम उदासी से - पेट्रोल नहीं है..
सुमन - 500 का नोट देती हुई.. डलवा ले..

गौतम 200 का पेट्रोल डलवा कर 300 जेब में डाल लेता है और सुमन को बाबाजी के पास उसी पहाड़ी के नीचे बरगद के पास ले आता है..

सुमन - चल ऊपर..
गौतम - नहीं जाना आप जाओ..

सुमन - सुबह से देख रही हूँ जब से जागा है अजीब बर्ताव कर रहा है.. क्या बात है..
गौतम कुछ नहीं... आप जाओ मैं यही इंतेज़ार कर लूंगा..
सुमन - ठीक है तेरी मर्ज़ी पर यही मिलना.. समझा..

सुमन चली जाती है और गौतम के फ़ोन ओर आदिल का फ़ोन आता है..

आदिल - क्या कर रहा था रंडी?
गौतम - नींद में तेरी अम्मी शबाना को चोद रहा था..
आदिल - अबे लोड़ू.. फालतू बात मत कर..
गौतम - तो बोल ना रंडी के क्या बात है..
आदिल - रांड चोदने चलेगा रात को..
गौतम - पैसे तू दे तो चल...

आदिल - आज तक कौन तेरा बाप ठुल्ला दे रहा था.. रात को 7 बजे घर आ जाना..
गौतम - ठीक है गांडू... फ़ोन कट हो जाता है...


गौतम मन में - कितना हसीन सपना था यार... काश वो सब सच होता...

Nice update bro 👍
 

Iron Man

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क्या हुआ बैरागी?
कुछ नहीं हुकुम.. बस आपके भय का निवारण होने ही वाला है.. आज आपको आपके भय से मुक्ति दिलाने के लिए मैं उस औषधि को तैयार कर दूंगा जिससे आपका भय समाप्त हो जाएगा..
ये तो बहुत अच्छी बात बताई तुमने बैरागी.. आखिकार मैं अपने भय औऱ पीड़ा से मुक्त हो ही जाऊँगा.. मैं बहुत खुश हूँ बैरागी.. मैं तुझे ये सारे पौधे औऱ औषधिया इस जगह के साथ देता हूँ तू जो चाहे कर मगर मुझे आज मेरा माँगा हुआ उपहार बनाकर दे दे..
आप निश्चिन्त रहिये हुकुम अभी रात के भोजन के साथ आपको उस औषधि का भी सेवन करना होगा.. मैं उसे बनाकर आपकी सेवा में प्रस्तुत कर दूंगा..

बैरागी ने औषधि का निर्माण कर दिया और उसे वीरेंद्र सिंह को खिलाने के लिए रात के खाने के साथ पेश कर दिया जिसे वीरेंद्र सिंह खाता हुआ बड़े चाव से अपने ख्यालों में गुम हो गया और अब उसे किसी बात का और कोई भय नहीं रहा अब वह हमेशा के लिए जीवित रहेगा और अपने जीवन को यूं ही राज करते हुए बरकरार रखेगा..

बैरागी ने औषधि बनाने के बाद वीरेंद्र सिंह को खिला दी थी और अब वह वीरेंद्र सिंह के महल में ही औषधालय में रहकर नई नई औषधि का निर्माण कर लोगों के रोगों का और कष्ट का निवारण करने लगा था वह कई रोगों का उपचार मात्रा देखने से ही कर देता और उसका नुस्खा सुझा देता..
बैरागी दिन ब दिन बहुत ही गुणी औऱ प्रसिद्ध होने लगा था. इसी के साथ उसका मेलझोल वीरेंद्र सिंह की धर्मपत्नी सुजाता से बढ़ने लगा था सुजाता और बैरागी एक साथ मिलकर कई बार घंटे तक लंबी-लंबी बातें करते और अपने बारे में और दूसरे के बारे में यानी एक दूसरे के बारे में नई-नई बातें जानते और पूछते हैं दोनों का मेल मिलाप इस कदर पड़ चुका था कि दोनों के मन में अब एक दूसरे के प्रति आकर्षण जागने लगा था महीनों गुजर गए थे और अब बैरागी और सुजाता का यह प्रेम संवाद अब वास्तविक प्रेम का रूप लेने लगा था बैरागी के मन में अभी भी मृदुला के लिए अकूत प्रेम था जो उसे सुजाता से प्रेम करने से रोक रहा था.

मगर अब सुजाता बैरागी के बिना एक पल भी जीने को तैयार नहीं थी वह चाहती थी कि बैरागी उसे अपना ले और वीरेंद्र सिंह की पीठ पीछे बैरागी और वह एक साथ संबंध बनाकर खुशी से जीवन जी सके और यह बात किसी और के सामने प्रकट नहीं हो.. जिसके लिए बैरागी कभी भी तैयार नहीं था..

समर भी पहरेदारी करते हुए रुकमा के प्यार में पड़ ही चुका था रुक्मा उसे अपने हुस्न और बातों से इस कदर अपने प्यार में उलझा लिया कि वह अब रुकमा के साथ प्रेम के मीठे बोल बोलने लगा था और उसके साथ जीवन बिताने को लालायता मगर घर पर समर का संबंध लीलावती से भी मधुरता था.. वह हर रात लीलावती को अपनी अर्धांगिनी की तरह ही प्यार करता और अब दोनों उसे घर में मां और बेटे की जगह पति और पत्नी की तरह रहने लगे थे..

लीलावती अपनी कोमकला से समर को मोहित कर चुकी थी और हर रात समर की भूख के साथ उसके बदन की भूख को भी ठंडा करती थी उनका प्रेम एक नया मोड़ ले चुका था..
लीलावती औऱ समर जब भी घर में होते दोनों के बदन पर एक भी कपड़ा नहीं होता और दोनों घर के भीतर नंगे ही एक दूसरे के बदन से लिपट मिलते..


वीरेंद्र सिंह औषधि का सेवन करके अब अपने आप को एक अजीत योद्धा समझता था जिसे कोई जीत नहीं सकता था उसने जयसिंह की मदद से अब जागीर के आसपास की जगह भी अपना अधिकार करना शुरू कर दिया था और वह बहुत गर्व से शासन करने लगा था उसे अब अपने घर परिवार की चिंता न होकर अपने साम्राज्य की चिंता ज्यादा होने लगी थी और उसकी वह और पीड़ा समाप्त हो चुकी थी वह बैरागी का सम्मान करता था मगर अब बैरागी उसकी आंखों में चुभने लगा था जिस तरह से बैरागी और सुजाता के बीच नजदीकी बढ़ने लगी थी वीरेंद्र सिंह की नजर उन पर बनी हुई थी वीरेंद्र सिंह सुजाता और वह बैरागी को अपने सामने ही कई बार लंबी-लंबी वार्तालाप करते हुए देखा तो जलन से सिकुड़ जाता और सोचता कि सुजाता उसकी पत्नी होकर एक नीचे कुल के लड़के के साथ इतनी लंबी लंबी बातें क्यों कर रही है और क्यों वह उसके काम में अब उसकी सहायता कर रही है सुजाता का स्वभाव और व्यवहार वीरेंद्र सिंह की तुलना में अब बैरागी के साथ बहुत ही मधुर और शालीन हो चुका था..

सुजाता के मन में बैरागी के प्रति एक अलग प्रेम का भी उद्धव हो चुका था जिसे वह मन ही मन बैरागी को बटा कर उसका प्रेम पाना चाहती थी और उसके साथ नया रिश्ता कायम करना चाहती थी मगर बैरागी इसके के लिए कते भी तैयार नहीं था.. मगर सुजाता ने इतना जरूर कर दिया था कि अब बैरागी मृदुला को याद करता था मगर फिर से प्रेम के बंधन में बंधने को भी आतुर होने लगा था..

**********

वीरेंद्र सिंह की नजर सुजाता पर थी मगर उसे क्या पता था कि उसकी बेटी राजकुमारी रुकमा एक सिपाही के प्रेम में पड़ी हुई है और वह उसके साथ अब अकेले मिलने भी मिलने लगी है..

वीरेंद्र सिंह के सिपाही जो उसके गुप्तचर थे उन्होंने वीरेंद्र सिंह को सुजाता और बैरागी के पनपते प्रेम और रुकमा और समर के पनपते हुए प्रेम के बारे में अवगत करवाया तो वीरेंद्र सिंह गुस्से से भरकर अपने सिंहासन से खड़ा हुआ और अपनी तलवार लेकर समर की तरफ चलता हुआ क्रोध से भर गया और सोचने लगा कि आज वह समर की जान ले लेगा और उसे बैरागी को भी यहां से निकल बाहर करेगा यह सोचते हुए वीरेंद्र सिंह जा ही रहा था कि उसे किसी गुप्तचर के आने की सूचना हुई..

गुप्तचर ने वीरेंद्र सिंह को बताया कि बैरागी और सुजाता औषधालय में एकांत में कुछ निजी पर गुजर रहे हैं और अब उनके बीच में जो फासला होना चाहिए था वह समाप्त हो चुका है. वीरेंद्र सिंह और गुस्से से भर गया और उसने फिर समर का ख्याल छोड़कर पहले बैरागी से निपटने का फैसला किया और बैरागी की तरफ चलने लगा वीरेंद्र सिंह औषधि में जैसे ही पहुंचा उसने देखा कि सुजाता और बैरागी के मध्य चुंबन हो रहा है..

दोनों के बीच उम्र का फैसला था मगर मन का फैसला मिट चुका था दोनों एक दूसरे को प्रेम करने लगे थे और इसी प्रेम का यह नतीजा था कि बैरागी और सुजाता ने एक दूसरे के होठों को आपस में मिल लिया था और दोनों एक दूसरे को प्रेम से चूमने लगे थे वीरेंद्र सिंह ने जैसे ही उनका चुंबन देखा वह गुस्से से चिल्लाता हुआ बैरागी की तरफ बड़ा और अपनी तलवार से बैरागी पर प्रहार करने लगा बैरागी वीरेंद्र सिंह के प्रहार से बच गया और उसे विनती करते हुए बोला कि मुझे माफ कर दो हुकुम मैं आपका दोषी हूं किंतु मैं रानी मां से प्रेम करने लगा हूं आप मेरी इस गलती को क्षमा कर दो... मगर वीरेंद्र सिंह गुस्से में था उसने बैरागी की एक बात नहीं मानी और उस पर दूसरा प्रहार किया जिससे भी बैरागी ने खुद को बचा लिया और फिर अपने गले में बंधा हुआ ताबीज उतरते हुए कहा कि हुकुम मुझे यह ताबीज उतार लेने दो लेकिन इस बार वीरेंद्र सिंह ने इतना सटीक और सीधा वार किया कि बैरागी के ताबिज़ उतारने से पहले ही उसका गला तलवार से एक ही झटके में अलग हो गया..

जैसे ही बैरागी की गर्दन कटी उसके खून से बहती हुई रक्त ने परछाई का रूप ले लिया जो वीरेंद्र सिंह की तरफ अपने विकराल स्वरूप को लेकर वीरेंद्र सिंह को मारने बढ़ी और उसे मारने वाली थी कि सुजाता बीच में आ गई और सुजाता ने परछाई से वीरेंद्र सिंह को बचाते हुआ अपनी जान दे दी.. वीरेंद्र सिंह की जगह परछाई सुजाता पर आ बड़ी और सुजाता की जान चली गई.. वीरेंद्र सिंह ने जब ऐसा होते देखा उसकी आंखों ने इस दृश्य पर विश्वास नहीं किया और वह सोचने लगा कि बैरागी ने आखिर ऐसा क्या ताबीज़ पहना था और क्यों यह परछाई उसके शरीर से निकालकर उसकी तरफ बड़ी थी लेकिन इसी के साथ अब उसे सुजाता के मरने का बहुत दुख हो रहा था और वह विलाप करते हुए जोर-जोर से सुजाता को देखकर रोने लगा और उसे अपनी गोद में उठाकर दहाड़े मारता हुआ चीखता हुआ रोने लगा...

सिपाहियों ने आकर जब यह हाल देखा तो वह वीरेंद्र सिंह को समझाते हुए उठाने लगे जयसिंह ने वीरेंद्र सिंह को संभालते हुए सारी परिस्थितियों समझी और फिर परिस्थितियों को समझने के बाद वीरेंद्र सिंह को वहां से ले जाकर एक कक्ष में बैठा दिया और बैरागी की लाश को वहां से ले जाकर महल से थोड़ा दूर ही पीछे एक खाली जगह में दफना दिया.. इसी के साथ में सुजाता का भी पूरी रीती और नीति के अनुसार क्रियाकर्म करते हुए अंतिम विदाई दी..

वीरेंद्र सिंह को अपनी हालत पर बहुत रोना आ रहा था उसकी की गई गलती अब उसे पछतावा दे रही थी और उसे बहुत पछतावा हो रहा था वीरेंद्र सिंह के हाथ में अब कुछ भी नहीं बचा था..

वीरेंद्र सिंह ने इसी के साथ में अपने गुस्से में एक औऱ निर्णय लिया औऱ समर को खत्म कर देने के लिए काफी सारे सिपाही उसके घर पर भेजें और जब समर अपनी मां लीलावती के साथ घर पर था तब वीरेंद्र सिंह के सिपाहियों ने उसके घर पर आक्रमण कर दिया और समर के साथ लीलावती को भी मौत के घाट उतार दिया..
समर और लीलावती अपनी मृत्यु को प्राप्त हो चुके थे. समर की खबर सुनकर रुक्मा ने भी आत्महत्या कर ली और उसका प्रेम अधूरा ही रह गया..

वीरेंद्र सिंह ने जब रुक्मा की खबर सुनी तो वो पूरी तरह से पत्थर दिल बन गया औऱ अब उसने अकेले ही जागीर पर शासन करने का निर्णय लिया और केवल अपने विश्वासपात्र सैनिकों को अपने करीब रखने लगा उसने जागीर के आसपास के इलाकों पर अपना कब्जा कर लिया और आसपास की जगीर भी जीत ली जिससे उसका कद और बढ़ चुका था..

वीरेंद्र सिंह अपने महल में आराम से शासन कर रहा था और अब उसने अकेले ही जीवन बिताने का फैसला कर लिया इसी के साथ वह अब नए-नए शौक पलने लगा था उसने वेश्याओं का सहारा लेकर सुजाता को बुलाने का निर्णय किया. इसी के साथ वह भोग विलास में जुट गया था वह अपने जीवन का पूरा आनंद लेना चाहता था इसलिए वह किसी और की परवाह किए बिना अपने ही बारे में सोचने लगा था और उसको अब सुजाता और अपनी पुत्री जो आत्महत्या करके मर चुकी थी उसके भी याद नहीं रही थी..

वीरेंद्र सिंह अब सत्ता के नशे में इतना चूर हो चुका था कि उसे और किसी की परवाह नहीं थी वह आसपास की जगीरो को जीत कर उन पर शासन करने में और भोग विलास करने में ही अपने दिन गुजरने लगा था वह अपनी सत्ता और बढ़ाना चाहता था और शासन बढाकर रियासत पर कब्जा करना चाहता था उसने आसपास और जागीर को जीत लिया था.. आसपास की 8 जागीर को जीतकर वीरेंद्र सिंह अब रियासत पर आक्रमण करने का प्लान बना रहा था और ऐसा ही वह करना चाहता था वीरेंद्र सिंह के मोसेरे भाई जो रियासत के राजा थे उनको वीरेंद्र सिंह का डर सताने लगा था और वह सोचने लगे थे कि वीरेंद्र सिंह रियासत पर कभी भी आक्रमण करके उनको गद्दी से हटा देगा और खुद अब रियासत पर शासन करके पूरी रियासत पर कब्जा जमा लगा..

वीरेंद्र सिंह भी इसी प्रयास में लगा हुआ था. उसने भोग विलास करते हुए और अपने शौक पूरे करते हुए जयसिंह से कहकर सेना को तैयार कर लिया था और अब वह रियासत पर आक्रमण करने ही वाला था..

वीरेंद्र सिंह की शक्तियां बढ़ गई थी उसने द्वन्द युद्ध में कई जागीरदारों को और सरदारों को मार गिराया था जिससे सारे जगह उसकी वाहवाही और बलवान होने की चर्चा थी.. वीरेंद्र सिंह अपनी सेना तैयार करके रियासत पर आक्रमण करने वाला था लेकिन उससे एक रात पहले वह हुआ जो होने की कल्पना किसी ने भी नहीं की थी और ना ही वीरेंद्र सिंह को इस बात का अंदाजा था कि ऐसा उसके साथ हो सकता है और कोई ऐसा भी है जो उसे कीड़ो की मरने के लिए छोड़ सकता है..

मृदुला को अपनी पुत्री मानकर पालने वाला आदमी जिसका नाम जोगी था वापस आ चुका था उसकी सिद्धियां पूरी हो चुकी थी और उसके साथ उसका शेर बालम भी जंगल में उसी जगह आ चुके थे जहां से वह मृदुला और बैरागी को छोड़कर गया था..
जोगी ने जब वापस वहां आकर स्थिति देखी तो पाया कि अब वहां कोई नहीं था और वहा जो कुटिया थी वह भी अब पुरानी सी हो गई थी.. किसी के नहीं रहने से वहां की हालत अब जंगल के बाकी हिस्सों जैसे ही हो गई थी.. आदमी ने जब कुटिया के पास बना हुआ कब्रनुमा खड्डे को देखा तो उसे अंदाजा हुआ कि कुछ ना कुछ अनहोनी जरूर हुई है उसने खड्डे को खोदना शुरू किया और जब उसने खड़े को खुदा तो उसमें मृदुल को पाया.. आदमी का मन इतना हताश निराश और दुखी पीड़ा से भर गया कि उसकी चीख से जंगल की सारी हवाएं ठहर गई और परिंदे पेड़ों से उड़ कर आकाश में इस तरह लहरा गए कि मानो कोई अनहोनी होने ही वाली हो..

जोगी ने मृदुल के सर पर हाथ रखकर उसके पीछे जो कुछ हुआ उसकी सारी कहानी जान ली और उसे पता चल गया कि उसकी जान कैसे गई है..

जोगी ने बैरागी से मिलने की ठानी और वह मृदुला को वापस वही उस कब्र में दफनाकर वहां से चला गया और जाते हुए लोगों से बैरागी के बारे में पूछने लगा पूछते पूछते उसे एक आदमी ने बताया कि उसने बैरागी को जागीरदार वीरेंद्र सिंह के महल में देखा था जहां वह कुछ महीने रहा था..
लोगों ने आदमी को बताया कि कैसे बैरागी ने नए-नए लोगों का उपचार करके लोगों को ठीक किया और उसकी प्रसिद्धि पूरी जागीर में इस तरफ फैली जैसे घास में आग फैल जाती है मगर एक दिन अचानक उसकी कोई खैर खबर नहीं मिली.. जोगी ने जब आगे पूछा तो लोगों ने उसे बताया कि उन्होंने अफवाह सुनी है कि वीरेंद्र सिंह ने बैरागी को मार कर महल के बाहर पीछे वाले खाली जगह में दफना दिया है..

आदमी को पहले ही क्रोध की अग्नि ने प्रज्वलित कर रखा था और बैरागी की खबर सुनकर वह और ज्यादा गुस्से से भर गया उसने महल के पीछे वाली खाली जगह पर जाकर बैरागी को कब्र से निकाल कर उसके सर पर हाथ रखा और उसके साथ हुई हर घटना को जान लिया जैसे ही उसने इस बात को जाना कि वीरेंद्र सिंह ने बैरागी को मारा है वह गुस्से से तिलमिला उठा..
जोगी मृदुला को बेटी मानता था और बेटी के पति को अपना बेटा.. और दोनों की मौत पर आदमी इतना गुस्से से भरा हुआ था कि उसने सारा गुस्सा वीरेंद्र सिंह और उसकी जागीर पर निकलने का तय कर लिया..

वीरेंद्र सिंह जिस सुबह रियासत पर हमला करने के लिए निकलने वाला था उसी सुबह जोगी ने वीरेंद्र सिंह को मारने के लिए उसपर चढ़ाई शुरू कर दी..
जोगी के रास्ते में जितने भी लोग आए जितने भी सैनिक आए जितने भी योद्धा है सभी जोगी के शेर बालम के द्वारा मारे गए..
जब जोगी के सामने एक सेना की एक टुकड़ी खड़ी हुई सी आई तो जोगी ने गुस्से से अपने पैर से ठोकर जमीन पर मारी और उनकी तरफ मिट्टी उड़ा दी.. आदमी की ठोकर मारने से उड़ी हुई मिट्टी का एक एक कण एक-एक परछाई में बदल गया और उन परछाईयों ने सामने खड़ी हुई संपूर्ण सेना की टुकड़ी को पलक झपकते ही एक ही बार में मार दिया..

जोगी को ऐसा करते देखकर बाकी लोग भय से भरकर भागने लगे और सोचने लगे कि वह कौन है और क्यों वीरेंद्र सिंह को मारना चाहता है.. महल औऱ आस पास के लोग जोगी से डरकर भाग निकले औऱ सब के सब जागीर छोड़कर भाग गए..

एक बार में सारी सेना को मारने के बाद में जोगी आगे बढ़ा और महल के भीतर घुस गया...

वीरेंद्र सिंह अपने भोग विलास में डूबा हुआ था कि उसे किसी भागते हुए सैनिक ने आकर इसकी सूचना दी कि किसी आदमी ने उसके सभी सैनिक और पूरी सेना को एक बार में मार दिया है और ऐसा लग रहा है कि वो आदमी उसे भी मार डालेगा..

वीरेंद्र सिंह वैश्याओ के पास से उठ खड़ा हुआ औऱ कश से बाहर निकला उसने देखा की सभी लोग अपनी जान बचाकार भाग रहे है.. अमर होने के नशे में चूर वीरेंद्र सिंह तलवार लेकर उस आदमी की तरफ बढ़ गया..
जोगी ने जैसे ही वीरेंद्र सिंह को देखा उसने वीरेंद्र सिंह के पैरों को किसी मन्त्र की सहायता से वही जकड़ दिया जहा वो खड़ा था..

जोगी वीरेंद्र सिंह के पास आया और उसे घूर कर देखने लगा.. जोगी ने वीरेंद्र सिंह से कहा कि उसने बैरागी को मार कर अच्छा नहीं किया.. वीरेंद्र सिंह ने आदमी का जवाब देते हुए कहा.. कि वह अमर है उसे कोई नहीं मार सकता..
जोगी ने वीरेंद्र सिंह से कहा कि वह उसे मारने नहीं आया बल्कि वह उसे जिंदा रखकर उसके जीवन को जहाँन्नुम बनाने आया है और उसे उसके किए हुए पापों की सजा देने आया है..
आज तक वीरेंद्र सिंह को मरने का डर था अब उसे जीने का डर लगेगा वह मौत को पाना चाहेगा मगर मौत उसे कभी हासिल नहीं होगी और वह कभी मर नहीं पाएगा.. इसी के साथ ही उसका जीवन अब इतना बड़ा और पीड़ादायक हो जाएगा कि उसे हर दिन एक साल के बराबर लगेगा..

वीरेंद्र सिंह को आदमी की बातें सुनकर अजीब लग रहा था और वह सोच रहा था कि यह आदमी कैसे उसके जीवन को नर्क बना सकता है और कैसे उसके वरदान को अभिशाप में बदल सकता है..
वीरेंद्र सिंह के वापस जवाब न देने पर आदमी ने कहा कि उसने प्रकृति के नियम से छेड़छाड़ कि है जो कि उसके दुखों का कारण बनेगा और उसके किए हुए पाप उसके साथ ही रहेंगे..

जोगी का किया विध्वंस इतना भीषण था की जागीर के सभी लोग अपनी जान बचाकर निकले थे महल सुनसान पड़ा हुआ था जहां बस अब एक वीरेंद्र सिंह खड़ा हुआ था और सामने जोगी जिसे अब और कोई धुन सवार नहीं थी..

जोगी ने बैरागी के शरीर के साथ क्रिया करके बैरागी की आत्मा को वीरेंद्र सिंह के ऊपर छोड़ दिया और उसे पाबंद कर दिया कि वह वीरेंद्र सिंह को कभी चैन से सोने और चैन से रहने नहीं देगा..

इसी के साथ ही जोगी ने वीरेंद्र सिंह को भी अपने ज्ञान कला और सिद्धि के माध्यम से औषधि को निषफल किये बिना ही जीने के लिए बाध्य कर दिया.. आदमी ने वीरेंद्र सिंह की दुर्गति करने के लिए उस पर जो सिद्धियों का उपयोग किया उससे अब वीरेंद्र सिंह ना ठीक से खा सकता था ना ही सो सकता था ना ही भोग विलास कर सकता था उसकी उम्र भी अब उसके मृत्यु के समय वाली अवस्था में आ गई थी..

जोगी ने वीरेंद्र सिंह ऐसी दुर्गति की जो वह सपने में भी नहीं सोच सकता था.. वीरेंद्र सिंह अब अपनी उम्र की 11 गुनी लम्बी जिंदगी जीने वाला था.. मगर जिंदा रहने के लिए ना वो कुछ अच्छा खा सकता था.. ना ही भोगविलास कर सकता था.. ना किसी महल में रह सकता था ना ही उसे पूरी नींद आ सकती थी.. ऊपर से उसके सर पर अब बैरागी का भूत भी बैठ गया था जो अक्सर उसे उसकी नींद से जगा देता उसे चैन से सोने नहीं देता.. ना ही उसे चैन से खाने देता.. वीरेंद्र सिंह कोई भी चीज खाता तो रख बन जाती है उसे सड़ा गला ही खाना पड़ता और उसे अब इस तरह जीना पड़ता है जैसे कोई बेसहारा बेबस लाचार तड़पकर जीता है..

वीरेंद्र सिंह ने इस बंधन को खोलने के लिए और इस बंधन से मुक्ति पाने के लिए बड़े से बड़े सिद्ध ज्ञानी पुरुष की शरण में जाकर सिद्धियां और ज्ञान हासिल करने की ठान ली और आसपास जितने भी महापुरुष और महासाधु लोग थे उनकी शरण में जाकर इस बंधन से आजाद होने का उपाय करने लगा लेकिन उसे कहीं भी इसका उपाय नहीं मिला..

वीरेंद्र सिंह जागीर के बाहर भी दूर दूर तक जाकर वापस आ गया.. बहुत सी सिद्धियां और ज्ञान हासिल किये जो समय के साथ उसके साथ ही रहे..
वीरेंद्र सिंह के साथ बैरागी की आत्मा होने के कारण बैरागी को भी उन ज्ञान की प्राप्ति हुई और वह वीरेंद्र सिंह के साथ-साथ सभी संतो महापुरुषों और सिद्ध बाबोओ और शानो तांत्रिको के चरणों में बैठकर वीरेंद्र सिंह के साथ ही ज्ञान प्राप्त कर रहा था.. इसी के साथ वह वीरेंद्र सिंह को कभी चैन से नहीं रहने दे रहा था वीरेंद्र सिंह अब मौत को तरस रहा था..

वीरेंद्र सिंह को जिंदगी का भय लगने लगा था और वह इसी तरह अपने दिन गुजरने लगा था.. देखते ही देखते दिन गुजरने लगे और फिर महीने साल बीतने लगे साल दर साल बीतने के बाद में बैरागी और वीरेंद्र सिंह साथ में ही रहे..

आखिर में बैरागी ने ही वीरेंद्र सिंह पर तरस खाकर उसे उसकी मुक्ति का राज़ बताया औऱ कहा की यदि कोई उसी जड़ी बूटी को जो बैरागी ने बनाई थी लाकर आपको खिला दे तो वीरेंद्र सिंह की मुक्ति हो जायेगी.. औऱ वीरेंद्र सिंह की मृत्यु के साथ बैरागी भी मुक्त हो जाएगा..

गौतम ये सब सपने में देखकर देखकर सुबह उठा तो उसने सपने के बारे में देर तक सोचा.. उसे समझ नहीं आ रहा था की उसे एक ही कहानी से जुड़े हुए सपने बार बार क्यों आ रहे है?
आज गौतम सुमन के साथ वापस आने वाला था सो उसने वापस सपने के बारे में सोचना छोड़कर नहाने का सोचा औऱ तैयार होकर गायत्री कोमल आरती शबनम सब से मिलकर वापस आने के लिए सुमन के साथ निकल पड़ा..

*************

प्रणाम बड़े बाबा जी...
किशोर.. तू इस वक़्त यहां? अभी तो सांझ होने में समय है फिर अचानक आने का कारण?
किशोर - बड़े बाबाजी.. बाबाजी के आश्रम में एक आदमी अपनी अंतिम साँसे ले रहा है अजीब रोग हो उसे उसके रोग के उपचार हेतु युक्ति पूछने को भिजवाया है..कहा है यदि आप आज्ञा दे तो बाबाजी आपके पास इसी समय आने को आतुर है..
बड़े बाबाजी - इस वक़्त? जानते नहीं एकान्त में हम अपने साथ समय व्यतीत कर रहे है.. विरम से कह देना अगली बार हम उसे बुलाएंगे.. तब तक वो किसी औऱ को हमारे पास ना भेजे.. किशोर.. तुमको भी नहीं..
किशोर - जो आदेश बड़े बाबाजी.. किशोर जाने लगता है तभी बैरागी वीरेंद्र से कहता है..

बैरागी - मरने वाले के प्राण अगर बच सकते है तो उसे बचाने में कोई परहेज नहीं होना चाहिए हुकुम.. जीवन अनमोल है उसकी सही कीमत मरने से पहले ही समझ आती है.. जब सारा जीवन आँखों के सामने आता है औऱ जीवन में किये अपने सही गलत कामो का तुलनात्मक अध्ययन होता है..
बड़े बाबाजी उफ़ वीरेंद्र सिंह - तू कहना क्या चाहता है बैरागी कि मुझे उस मरते हुए आदमी के जीवन की रक्षा करनी चाहिए? अरे प्रतिदिन सेकड़ो मनुष्य अपने प्राण त्याग कर इस दुनिया से अगले आयाम में चले जाते है.. वो भी यहां से वहा चला जाएगा तो क्या हो जाएगा?
बैरागी - प्रतिदिन मरने वाले सैकड़ो लोगो कि किस्मत में बचना नहीं लिखा होता हुकुम.. उनकी मृत्यु उनकी नियति है मगर जिसके प्राण बच सकते है औऱ आपके करण जा रहे है उसका मरना आपकी हठधर्मिता..
बड़े बाबाजी उफ़ वीरेंद्र सिंह - समझ गया बैरागी.. तू सही कहता है.. मेरे ही समझने का फेर था..

बड़े बाबाजी किशोर को बुलाते है औऱ बाबाजी उर्फ़ विरम तक ये सन्देश पहूँचवाते है की उस रोगी को उनके पास लाया जाए..

विरम उर्फ़ बड़े बाबाजी किशोर औऱ कुछ अन्य लोगों के साथ उस आदमी को बड़े बाबाजी की कुटीया के बाहर लाकर जंजीर से बाँध देते है..
बड़े बाबाजी कुटीया से बाहर आकर रोगी को देखते हुए - क्या हुआ है इसे?
बाबाजी बाकी लोगों को जाने का इशारा करते हुए - गुरुदेव कोई साया लगता है.. मैंने बहुत कोशिश की समझने की मगर समझ नहीं पाया.. इसलिए किशोर को आपके पास भेजा.. इसकी पत्नी औऱ एक बच्ची भी है जो ऊपर आश्रम में रोती हुई मुझसे इसके ठीक होने का गुहार लगा रही है.. अब ये आपकी शरण में है गुरुदेव.. आप इसका उद्धार करें...

बड़े बाबाजी उस आदमी को देखते हुए - साया तो जरूर है.. पर कोनसा? ये समझने में मैं चूक रहा हूँ विरम.. इसकी दशा किसी जंगल के उजड़े हुए बरगद की तरह है औऱ आँखे किसी बांधे हुए तीलीस्म की तरह.. मैं दोनों में अंतर समझने में चूक रहा हूँ..
विरम - अब आप ही आखिरी उम्मीद है गुरुदेव.. आप ही तय करें..
बड़े बाबाजी बैरागी की तरफ देखकर - क्या लगता है?
बैरागी - समझने का फेर तो आपसे पहले भी हो चूका है हुकुम.. मगर इस बार में आपकी मदद किये देता हूँ.. इसके गले के नीचे सीने से ऊपर तीलीस्म की निशानी है.. ये किसी का बाँधा हुआ तीलीस्म है हुकुम..
बड़े बाबाजी बैरागी की बात सुनकर उस रोगी के सर के बाल पकड़ कर उसके मुंह में मिट्टी के कुछ कण डालकर सर पर अपने हाथ में पानी लेकर छिड़काव करते है औऱ उस रोगी का बंधा हुआ तीलीस्म खोल देते है जिससे वो रोगी उस बांधे हुए तीलीस्म से आजाद हो जाता है..

विरम उर्फ़ बाबाजी उस रोगी को संभालते हुए - गुरुदेव ये क्या हो रहा है?
बडेबाबाज़ी उर्फ़ विरम - तेरा रोगी तीलीस्म से आजाद हो रहा है विरम.. इसे ले जा.. औऱ 3 दिन तक पीपल के पेड़ की छाया से भी दूर रख..
विरम उर्फ़ बाबाजी - जैसी आपकी आज्ञा गुरुदेव..
किशोर - आज्ञा बड़े बाबाजी..

विरम उर्फ़ बाबाजी किशोर के साथ उस रोगी को उन आदमियों की मदद से वापस ऊपर आश्रम में ले आता है औऱ उसकी बीवी औऱ बच्ची को 3 दिनों तक उस आदमी को पीपल से दूर रखने की सलाह देता हुआ उसी आश्रम में रहने का सुझाव देता है जिस पर सब राजी हो जाते है...

सबके जाने के बाद वीरेंद्र सिंह बैरागी से पूछता है - मुझसे पहले कब समझने में चूक हुई बैरागी? मैंने तो अब तक सब सटीक ही अनुमान लगाया है..
बैरागी - सबसे जरुरी अनुमान ही अगर गलत लग जाए तो पुरे इतिहास का क्या महत्त्व रह जाएगा हुकुम...
बड़े बाबाजी - मैं समझा नहीं बैरागी?
बैरागी - आपने उस लड़के का पिछला जन्म देखा था याद है आपको..
बड़े बाबाजी - कौन गौतम?
बैरागी - हाँ हुकुम..
बड़े बाबाजी - तो? उसमे क्या गलत अनुमान लगाया मैंने बैरागी? गौतम अपने पिछले जन्म में धुपसिंह का बेटा समर ही तो है..
बैरागी - नहीं हुकुम.. गौतम अपने पहले जन्म में अपने धुपसिंह का असली बेटा था.. समर तो गज सिंह औऱ लीलावती की संतान थी..
बड़े बाबाजी हैरानी से - मतलब धुपसिंह का समर के अलावा भी एक बेटा है.. मुझसे इतना बड़ी गलती हो गई?
बैरागी - अब आपने बिलकुल सही अनुमान लगाया हुकुम.. जो कीच आपने इतने बर्षो में सीधा है मैंने भी सीखा है हुकुम.. जिस तरह आपने ध्यान लगाकर गौतम का पुराना जन्म देखने की नाकाम कोशिश की है.. मैंने भी आपका पूरा इतिहास देखा है...याद है एक बार आप माघ की रात में जंगल से गुजर रहे थे औऱ आपके पीछे जयसिंह औऱ धुपसिंह के साथ कई औऱ सैनिक भी थे.. उस वक़्त आपके पिता कुशल सिंह जागीरदार हुआ करते थे..
बड़े बाबाजी - याद है.. हमने जंगल के बीच दरिया किनारे जमाव डाला था...
बैरागी - हाँ हुकुम.. उस वक़्त जमाव के करीब बनजारों औऱ अन्य काबिलो की बस्तीया भी आबाद थी जहा रात को अपना मन बहलाने धुपसिंह औऱ उसके साथ कई सैनिक गए थे..
बड़े बाबाजी - तो इसमें क्या बड़ी बात है बैरागी.. ये तो कई बार होता आया है.. जंगल से गुजरते वक़्त कबिलो की औरतों से सैनिक सम्बन्ध बनाते ही रहते है..
बैरागी - मगर प्यार नहीं करते हुकुम.. धुपसिंह ने यही किया.. काबिले में ना जाकर बंजारों की बस्ती में चला गया औऱ एक बंजारन से प्रेम कर बैठा.. उस प्रेम का परिणाम ये हुआ कि एक लड़के का जन्म हुआ.. जो धुपसिंह की असली संतान थी औऱ गौतम का पिछला जन्म भी..
बड़े बाबाजी - बैरागी इतनी बड़ी भूल.. मैं कैसे इतनी बड़ी भूल कर सकता हूँ? मेरा मस्तिक गौतम के मिलने के बाद बहुत विचलित रहने लगा है.. मैं ध्यान भी नहीं कर पा रहा हूँ..
बैरागी - आज तृत्या है हुकुम.. मेरा प्रभाव आप पर कमजोर है.. आप थोड़ा आराम कर लीजिये..

बड़े बाबाजी कूटया में जाकर चटाई पर लेटते हुए सो जाते है...

Shaandar jabardast Romanchak Update 👌 👌
Karan parabhaw punajanm ka achhe se vrnan Kiya hai ab bahut kuchh saff ho gaya hai 😊
 
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Rajpoot MS

I love my family and friends ....
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Update 53

सरदार... सरदार..

क्या हुआ ढोला.. सुबह सुबह क्यों आये हो? क्या बात है?

सरदार.. नदी का प्रवाह बढ़ने लगा है.. इस बार बारिश में नदी के आसपास की सारी जगह डूबने की सम्भावना है.. आस पास के काबिले अपना पड़ाव यहां से उठाकर कहीं और डालने की बात कर रहे है.. हमें भी कोई कदम उठाना होगा..

हाक़िम - ठीक है ढोला.. तुम आज काबिले का अगला पड़ाव डालने के लिए कोई और जगह देखो और रात को मुझे बताओ... कल हम यहां से अपना पड़ाव उठा लेंगे और नदी के बहाव क्षेत्र से दूर चले जाएंगे.. मंगरू को भी अपने साथ ले जाना..

ढोला - सरदार... कल पढ़ाव उठाना अशुभ होगा.. कल अमावस्या है.. और नदी का प्रवाह कभी भी असामान्य रूप से बढ़ सकता है..

हाक़िम चौंकते हुए - कल अमावस्या है?

ढोला - हाँ सरदार.. कल अमावस्या है.. और मैंने काबिले का अगला पड़ाव डालने के लिए जगह भी देख ली है जो यहां से 12 मिल दूर पूर्बमें है.. हमें आज ही यहां से अगले पढ़ाव के लिए निकलना होगा..

हाक़िम गहरी सोच में खो जाता है जिसे उस सोच से बाहर निकालते हुए ढोला आगे कहता है - क्या हुआ सरदार? किस स्वप्न में चले गए.. हमें आज ही अगले पढ़ाव के लिए निकलना होगा..

हाक़िम - ठीक है.. तुम मंगरू के साथ पुरे काबिले को कह दो कि हम अगले पढ़ाव के लिए सूरज चढ़ते ही निकलेंगे..

ढोला - ठीक है सरदार..

हाक़िम - ढोला..

ढोला - जी सरदार...

हाक़िम - मैं जागीरदार से मिलने जा रहा हूँ तुम मंगरू के साथ मिलकर पुरे काबिले को अगले पढ़ाव तक ले जाओ.. मगर ध्यान रहे.. अगले पढ़ाव पर पानी कि उचित व्यवस्था हो..

ढोला - मैं सब देख चूका हूँ सरदार.. वहा एक छोटा पानी का स्रोत है जो नदी से निकलता है और अविरल बहता है.. आप निश्चित होकर जागीरदार से मिल आइये मगर सरदार पौखा बता रहा था आज जागीरदार किसी पर हमले के लिए सेना लेकर निकल चूका है.. सरदार.. जागीरदार वीरेंद्र सिंह ने आस पास की सारी रियासत तो पहले ही जीत ली अब पता नहीं किसपर हमले के लिए सेना लेकर जा रहा है...

हाक़िम - ढोला क्या कह रहा है? ये कब हुआ?

ढोला - सरदार आप पिछले एक महीने से आपकी पत्नियों के साथ थे.. मंगरू ने आपको बताना भी चाहा मगर आपने उसे जाने को कह दिया.. मैंने भी इन गतिविधियों से आपको सचेत करने का प्रयास किया किन्तु ऐसा करने में नाकाम रहा..

हाक़िम - मतलब बैरागी...

ढोला - बैरागी की मृत्यु हो चुकी है सरदार.. अफवाह है की जागीरदार ने उसकी हत्या कर दी.. रानी सुजाता भी मारी गई..

हाक़िम सर पकड़ के बैठता हुआ - इसका मतलब.. अब मैं बैरागी से नहीं मिल पाऊंगा..

ढोला - सरदार ये आप क्या कर रहे है.. हमें अभीकुछ देर में निकलना होगा..

हाक़िम - वीरेंद्र सिंह.. उसके पास जदिबूती की सारी जानकारी होगी.. इससे पहले की जोगी उससे नर्क दिखाए.. मुझे अब उससे ही मिलकर मुझे वो जदिबूती हासिल करनी पड़ेगी..

ढोला - कोनसी जदिबूती.. और कौन जोगी सरदार..

हाक़िम - कुछ नहीं ढोला.. तुम पुरे काबिले को कह दो की पढ़ाव की जगह बदलने वाली है सब अपना सामान बाँध ले..

ढोला जाते हुए - जी सरदार..



मंगरू - आपने बुलाया सरदार..

हाक़िम - मंगरू मैं जागीरदार के पास जा रहा हूँ.. ढोला ने एक नई जगह देखी है जहाँ अगला पढ़ाव डाला जाएगा.. उर्मि के साथ माँ और मौसी सकुशल अगले पड़ाव तक पहुंच जाए ये तुम्हारा काम है..

मंगरू - जी सरदार.. मैं समझा गया.. मगर आपका जागीर जाना उचित नहीं होगा.. पौखा ने कहा है जागीरदार बदल गया है अब वो काबिले के सरदारो से नहीं मिलता..

हाक़िम - वो सब तू मुझपर छोड़ दे मंगरू.. तू बस वही कर जो मैं कहता हूँ..

मंगरू - जी सरदार..



हाक़िम काबिले से चल देता है और जागीरदार के महल के पास पहुंचते पहुंचते सूरज चढ़ आया था और महल के आस पास हाक़िम लोगों को भागता हुआ देखता है.. हर तरफ अफरा तफरी मची हुई थी.. ऐसा लगता था की लोग अपनी जान बचा के वहा से भाग रहे है..



हाक़िम जब तक महल के दरवाजे पर पंहुचा उसने देखा की वहा कोई नहीं था और हर तरफ उजाड़ और ताबही का मंजर था.. वीरेंद्र सिंह को उसने महल के हर कोने में और आस पास की हर जगह देखा मगर उसे कहीं नहीं पाया.. हाक़िम सोच रहा था की अब वो क्या करेगा? कैसे जड़ी बूटी हासिल करेगा?



हाक़िम वीरेंद्र सिंह को ढूंढ़ते हुए दुपहर की शाम कर चूका था मगर उसका कहीं पता नहीं था और अब हाक़िम यही सोच रहा था की वो वापस जाकर वीरेंद्र सिंह और बैरागी को क्या जवाब देगा?



हाक़िम अपने आप को इस सब का दोष देने लगा की वो भोग विलास में इतना डूब गया की उसे अपने लक्ष्य की याद ही नहीं रही..



हाक़िम काबिले के अगले पड़ाव की और चल दिया था की रास्ते में उसे जोगी की याद आई और वो सोचने लगा की जोगी को वीरेंद्र का पता होगा और वो वीरेंद्र सिंह को जरुर ढूंढ़कर उसे बता सकता है मगर अब जोगी उसे कहा मिलेगा? हाक़िम को उसी जगह की याद आई जागा जोगी की कुटीया थी.. हाक़िम तेज़ी से अपने कदम बढ़ाता हुआ जोगी की उस कुटिया के पास आ गया जहाँ उसने देखा की जोगी घोर विलाप के आंसू अपनी आँखों से बहा रहा है और वो जहाँ बैठा है वो मृदुला की क़ब्र थी..



हाक़िम - एक्सक्यूज़ मी अंकल...

जोगी अपनी रूआसी आँखों मी गुस्सा भरके हाक़िम की तरफ देखकर - कौन है तू और यहां क्या कर रहा है?

हाक़िम - अंकल मैं फ्यूचर.. मतलब भविष्य से आया हूँ और आपकी मदद चाहता हूँ..

जोगी - मैं तेरी कोई मदद नहीं कर सकता लड़के चला जा यहां नहीं तो मेरा क्रोध मुझे तेरे प्राण लेने पर विवश कर देगा.. चला जा अपने प्राण बचाके यहां से..

हाक़िम - देखो अंकल.. मैं चला जाऊँगा तो बहुत गलत हो जाएगा.. जिन लोगों ने मुझे यहां भेजा है उन्होंने कुछ काम देकर भेजा था मगर मैं वो काम नहीं कर पाया.. अगर वापस जाऊँगा तो मुझसे मेरा बड़ा लंड... मतलब मेरी शक्तियां छीन लेंगे और मुझे वापस दुख दर्द तकलीफ के साथ जीने को मजबूर कर देंगे.. आप प्लीज मेरी मदद करिये..

जोगी - लड़के तू मेरी बात मान और चला जा यहां से नहीं तो तेरे लिए ये घड़ी जीवन की अंतिम घड़ी हो जायेगी..

हाक़िम - मैं बिना आपसे मदद लिए नहीं जाऊँगा अंकल..

जोगी अपने क्रोध पर नियंत्रण रखते हुए - तू ऐसे नहीं मानेगी.. बता तुझे क्या चाहिए..

हाक़िम - अंकल.. वीरेंद्र सिंह का पता चाहिए..

जोगी क्रोध से - तू वीरेंद्र सिंह के साथ है? मैं तुझे जीवित नहीं छोडूंगा..

ये कहते हुए जोगी ने अपने सुला हाक़िम की तरफ फेंका मगर जोगी का सुला हाक़िम के ऊपर आकर बेअसर हो गया और जोगी हाक़िम को रहस्य की निगाहो से देखने लगा.. जोगी ने हाक़िम के गले में वही ताबिज़ देखा जो उसने बैरागी के गले में देखा था जब उसने बैरागी की क़ब्र के पास पड़ा हुआ देखा था.. और जोगी समझा चूका था की ये ताबिज़ वही है और इसके करण ही हाक़िम की रक्षा हुई है..

जोगी गुस्से में - तू वीरेंद्र सिंह को क्यों पूछ रहा है?

हाक़िम - जदिबूती के लिए..

जोगी - कोनसी जदिबूती?

हाक़िम - अरे वही जिसे खाकर वो अगले 800 सालों के लिए अमर हो गया.. मगर आपने उससे सारा भौतिक सुख छीनकर उसे धरती पर नर्क भोगने के लिए आजाद के दिया.. मैं उस जदिबूती के बारे में वीरेंद्र सिंह से पूछना चाहता हूँ जिससे मे वापस भविष्य में जा सकूँ.. और वापस भविष्य में जाकर वीरेंद्र सिंह को वही जड़ीबूटी खिला सकूँ जिससे वीरेंद्र सिंह मर कर मुक्त हो सके और बैरागी आगे आयाम पर जा सके..

जोगी - तू कैसे जानता है आज बैरागी को मैंने वीरेंद्र सिंह के सर पर बाँध दिया है..

हाक़िम आगे आते हुए - देखो अंकल... मैंने कहा मैं भविष्य से आया हूँ..

जोगी का शेर दहाड़ने लगता है..

हाक़िम - अंकल संभालो इस शेर को.. कहीं काट वात लेगा तो मैं जान और जहान दोनों से चला जाऊँगा..

जोगी - मैं तेरी मदद नहीं करूँगा लड़के.. तू जा यहां से वरना मैं तेरे गले से ये ताबिज़ निकालकर तेरी जान ले लूंगा..

हाक़िम पास आकर बैठते हुए - अंकल.. मैं जानता हूँ आपको दुख है तकलीफ है और मृदुला के जाने की बहुत पीड़ा है.. पर आपने वीरेंद्र सिंह के साथ बैरागी को भी सजा दे दी.. जो उन्होंने 300 सालों तक भोगा है.. अब और नहीं अंकल.. आप अपना गुस्सा शांत करके मेरी मदद करो अंकल...

जोगी - तू मुझसे झूठ कहता है.. तू भविष्य से कैसे आ सकता है.. भूतकाल और भविष्य पर किसका जोर चलता है..

हाक़िम - आज नहीं चलता मगर हो सकता है आगे चलकर चले.. देखो.. मैं झूठ नहीं बोल रहा है.. मेरा विश्वास करो... वीरेंद्र सिंह अब हर साधू सन्यासी और तांत्रिक के पास जाकर आपके बंधन को काटने की विद्या सीखेगा मगर उसे सफलता नहीं मिलेगी और आखिर में वो मुझे भविष्य से यहां अपने पिछले जन्म में भेजेगा..

जोगी हाक़िम के सर पर हाथ रखकर उसकी सारी यादे देखता है... और जब वापस आता है उसके मुंह से आवाज आती है - मृदुला..

जोगी - मृदुला??

हाक़िम - क्या हुआ? मृदुला... अंकल ओ अंकल.. प्लीज मुझे वीरेंद्रसिंह के पास वापस वो जदिबूती लेकर जाने में मेरी मदद करें..

जोगी - मुझे ले चल बेटा... अगले जन्म में मुझे ले चल..

हाक़िम - मुझे जड़ी बूटी लेकर जाना है अंकल... आपको लेजाकर क्या करूँगा...

जोगी - अगर तू मुझे नहीं ले जाएगा तो मैं तुझे यही समाप्त कर दूंगा.. मुझे मेरी मृदुला से मिलना है.. मैंने जाते हुए उससे वादा किया था..

हाक़िम - पर मृदुला तो आपको छोडके जा चुकी है.. आप कैसे उसे मिलोगे?

जोगी - मृदुला ने कुसुम बनकर जन्म लिया है.. और अगर तू मुझे अपने साथ लेकर नहीं गया और मुझे मेरी मृदुला से नहीं मिलवाया तो मैं तेरा काबिला समाप्त कर दूंगा...

हाक़िम - ठीक है ठीक है.. पर वीरेंद्र सिंह का क्या? बैरागी? वो कैसे मुक्त होंगे?

जोगी - तू मुझे उनके पास ले जा मैं उसका बंधन खुद ही काट दूंगा और वो मेरे बंधन से आजाद हो जाएंगे..

हाक़िम - पर मेरी शर्त है..

जोगी - क्या?

हाक़िम - मुझे ये पावर चाहिए जैसे आप सर पर हाथ रखकर सब देख लेते हो मुझे भी सीखना है..

जोगी - ये एक सिद्धि है बेटा.. अगर तू मुझे वापस ले गया तो मैं तुझे ये सिद्धि दे दूंगा..

हाक़िम - ठीक है.. कल सुबह मुझे जंगल पूर्व वाली झील पर मिलना..

जोगी - और एक बात सिर्फ मृदुला का ही नहीं मुन्नी का भी अगला जन्म हुआ है तेरे ही समकालीन..

हाक़िम - कौन?

जोगी - प्रमिला..

हाक़िम - मेरी माँ मुन्नी अगले जन्म में मेरी बुआ पिंकी है...

जोगी - हाँ... अब जा कल मैं तुझे झील के पास मिलूंगा सुबह समय से आ जाना...



*************



इतना समय क्यों लग गया तुम्हे..

हाक़िम रोते हुए - कुछ नहीं अंकल... बस ऐसे ही.. चलो उस पेड़ के नीचे आपको गाड़ना होगा फिर मैं इस झील में उतर जाऊँगा और हम दोनों अगले जन्म में पहुंच जाएंगे...

जोगी - रुको मैं खड्डा का निर्माण करता हूँ..

हाक़िम - ठीक है.. फ़ालतू मेहनत नहीं करनी पड़ेगी..

जोगी खड्डा बना देता है और उसमे बैठ जाता वही हाक़िम जोगी के ऊपर मिट्टी डालकर उसके दबा देता है और नंगा होकर रोते हुए झील में उतर जाता है..



वीरेंद्र सिंह गौतम को होश में आते देखकर - बैरागी ये देखो.. गौतम वापस आ गया है.. लगता है इसने हमारा कार्य सफल कर दिया है..

बैरागी - हुकुम पहले इसे पूरी तरफ होश में आने दो और पूछो कि क्या ये जदिबूती लाने में सफल हो भी पाया है या नहीं..

वीरेंद्र सिंह - गौतम... गौतम..

गौतम होश में आते हुए - बड़े बाबाजी.. प्रणाम..

वीरेंद्र सिंह उत्सुकता से - बोल बेटा.. क्या तुम वो जड़ी बूटी लाये हो.. क्या मेरा कार्य सफल हुआ है?

बोलो बेटा..

गौतम - जदिबूती तो नहीं ला पाया बाबाजी.. मैं जब तक महल पंहुचा सब बर्बाद हो चूका था..

वीरेंद्र सिंह क्रोध से - क्या?

बैरागी - तुमसे जो कहा गया था तुमने जरुरत उससे विपरीत कुछ किया होगा तभी ये कार्य सफल नहीं हुआ.. अब हमने हमेशा ऐसे ही रहना पड़ेगा..

गौतम - नहीं.. नहीं रहना पड़ेगा.. मैं कुछ ऐसा लाया हूँ जो बाबाजी के समस्या का समाधान करके मुक्ति दे देगा.. और तुमको भी आजाद कर देगा..

वीरेंद्र सिंह क्रोध को भूलकर ख़ुशी से - क्या? क्या लाया है जो मुझे मृत्यु दे देगा.. और मुक्त कर देगा उस अभिश्राप से..

गौतम - वो आप खुद ही पेड़ के नीचे खोद कर देख लो..

वीरेंद्र सिंह - नहीं वो तुम्हे खोदना पड़ेगा.. तभी तुम्हारी गाडी हुई चीज यहां आ पाएगी..

गौतम - ठीक चलते है.. मगर मेरी एक शर्त है..

वीरेंद्र सिंह - क्या?

गौतम - आपको मुक्ति मिलने मेरे पास जो है वो तो नहीं छीन जायेगा ना..

बैरागी - नहीं गौतम.. ऐसा कुछ नहीं होगा..

गौतम पेड़ के नीचे आते हुए - आप सच कह रहे है?

वीरेंद्र सिंह - हाँ.. सच है गौतम.. यकीन आ ये तो मैं तुझे अपनी सारी सिद्धिया और ज्ञान देकर मुक्ति लूंगा..

गौतम खड्डा खोदते हुए - ठीक है कोई पुराना मिलने वाला है आपका जिसमे में लाया हूँ..

वीरेंद्र सिंह - ऐसा कौन मेरा पुराना मिलने वाला हो सकता है जो मेरी मुक्ति कर सके..

गौतम खड्डे खोड़कर - खुद देख लो..

वीरेंद्र सिंह जोगी को देखकर उसके पैरों में गिरता हुआ - माफ़ी... माफ़ी... माफ़ी... दे दो मुझे.. मेरी गलती की माफ़ी दे दो महाराज...

जोगी - मैं तुझे मुक्ति देने ही आया हूँ वीरेंद्र सिंह..

बैरागी - मुझे भी माफ़ी चाहिए बाबा..

जोगी - तुझे नहीं मुझे तुझसे माफ़ी मांगनी चाहिए रागी... मैं इतना क्रोध में था कि मृदुला के मरने का क्रोध तेरे ऊपर भी उतार दिया.. और तुझे वीरेंद्र सिंह के साथ बाँध दिया.. लेकिन अब मैं तुम्हे इस बंधन से मुक्त करने आ गया हूँ...

गौतम - अंकल बाबाजी को मुक्त करने से पहले बाबाजी मुझे अपनी सिद्धिया देना चाहते है..

जोगी - बेटा तू प्रकृति से खिलवाड़ मत कर.. वीरेंद्र सिंह ने जो हासिल किया है वो आम विद्या नहीं है.. और ना ही तू इसे संभाल पायेगा..

गौतम - तो क्या अब आप वो सर ओर हाथ रखकर यादे देखने वाला मंतर भी नहीं सिखाओगे मुझे? मतलब आपने मुझे चुतिया बना दिया..

जोगी - मैं तुझे वो दूंगा जिसकी तुझे जरुरत है.. मगर उसकी मांग मत कर जो तेरे किसी काम का नहीं..

गौतम उदासी से - ठीक है.. अब जल्दी मुक्ति दो बाबाजी और बैरागी को.. बेचारे 300साल से लटके हुए है..

जोगी बीरेंद्र सिंह और बैरागी पर से अपने बंधन को वापस ले लेता है जिसके कारण बैरागी कि आत्मा अपने नए आयाम में चली जाती है और पुनर्जन्म के लिए आगे बढ़ जाती है वही वीरेंद्र सिंह के ऊपर से बामधन हटते ही वो फिर से एक आम इंसान बन जाता है जो 73 वर्ष का वृद्ध होता है.. मगर अब वो अपनी मर्ज़ी का खा सकता था पहन सकता था और सो भी सकता था..



वीरेंद्र सिंह हाथ जोड़ कर - मुझे माफ़ कर दो..

जोगी - अब जो हुआ उसे भूल जाओ वीरेंद्र सिंह.. तुम्हारे करण बहुत लोगों का कल्याण भी हुआ जिसका फल तुम्हे मिलेगा.. तुम चाहो तो मृत्यु को गले लगा सकते हो या कुछ और साल जीवित रहकर मन मुताबित जीवन जी सकते हो..

वीरेंद्र सिंह हाथ जोड़कर - मुंहे तो मृत्यु ही चाहिए.. बहुत तरसा हूँ मैं मृत्यु के लिए अब जीने की लालसा ख़त्म हो गई है.. मगर एक बार में विरम से मिलना चाहता हूँ और उसे अपने जाने की बात बतलाना चाहता हूँ...

जोगी - जैसा तुम चाहो वीरेंद्र सिंह.. आज तुम्हरे प्राण स्वाहा हो जायेगे...



गौतम - देखो अंकल अब चलो.. और ये भेस नहीं चलेगा.. बाबाजी आश्रम में कुछ अच्छे कपड़े होंगे?

वीरेंद्र सिंह - विरम सबकी व्यवस्था कर देगा..



गौतम जोगी को आश्रम में ले आता है और जोगी नहा कर वर्तमान के कपड़े पहन लेता है गौतम भी नहा कर नये कपड़े पहन लेता है..



गौतम - आज रात यही रहो अंकल.. कल सुबह में कुसुम से मिलवाने ले जाऊँगा आपको..

जोगी - ठीक है बेटा..





***********





तू नहीं आता वही अच्छा था.. दोपहर से मेरी चुत में घुसा हुआ है मन नहीं भरता क्या तेरा? मैं कितना झेल पाउंगी तुझे.. मेरी चुत फिर पहले जैसी कर दी तूने.. कमीने तेरी माँ हूँ थोड़ी तो शर्म कर.. जिस चुत से निकला है उसीको चोद चोद के सुजा दिया है.. पहले तेरी शकल देखकर प्यार आता था अब शर्म आती है..

गौतम मिशनरी में पेलते हुए - शर्म तो औरत का गहना होता है माँ.. तू शरमाते हुए इतनी प्यारी लगती है कि क्या कहु.. माँ जब तू चुदवाते हुए मुंह बनाती है ना दिल कि धड़कन बढ़ जाती है.. मन करता है तुझे ऐसे ही चोदता रहू..

सुमन - हां.. तू तो मुझे चोदता रहेगा मगर मेरा क्या? मुश्किल से चाल सही हुई थी तूने आते ही वापस मुझे लंगड़ी घोड़ी बना दिया.. दोपहर से बस नंगा करके लिटा रखा है.. ना खाना खाया है ना कुछ और..

गौतम चुत में झाड़ता हुआ - मतलब भूक लगी है मेरी माँ को? अभी तो रात के 10 बजे कोई ना कोई रेस्टोरेंट खुला होगा.. बाहर चलके खाते है..

सुमन गुस्से से आँख दिखाती हुई - लंगड़ी करके बाहर ले जाएगा खाना खिलाने? तूझे बिलकुल शर्म नहीं है ना.. और अब निकाल अपने लंड को मेरी चुत से बाहर.. कैसी लाल कर दी है..

गौतम लंड निकालता हुआ - ठीक है माँ.. अच्छा यही आर्डर कर लेते है रुको.. बताओ क्या खाओगी?

सुमन अपनी चुत से निकलता वीर्य साफ करते हुए - कुछ मगा ले..

गौतम - ठीक है हांडी मटन और नान मगा लेता हूँ.. रायते के साथ..

सुमन ब्रा पेंटी पहनते हुए - नहीं.. आज मंगलवार है.. तू कुछ वेज मंगा..

गौतम - मिक्स वेज कर देता हूँ चपाती के साथ.. और कुछ?

सुमन बेड से खड़ी होती हुई - नहीं..

और लचकती हुई बाथरूम चली जाती है..



हेलो बुआ?

हां मेरे बाबू..

कैसी हो?

मैं अच्छी.. तू तो टूर ओर क्या गया गायब ही हो गया.. पता नहीं कैसे निकला है ये महीना तुझसे बात किये बिना..

अब नहीं जाऊँगा बुआ.. I love you.. पता है किसी ने मुझे बताया है कि पिछले जन्म में आप मेरी माँ थी..

काश इस जन्म में भी होती मेरे बाबू..

मेरी नहीं तो क्या हुआ मेरे बच्चे ही तो हो बुआ..

कल आ रही हूँ मैं तेरे पास.. अब मिले भी ना रहा जाता मेरे बाबू..

बुआ गाँव आना.. कल गाँव जा रहा हूँ मैं..

क्यों?

बुआ कल कुसुम को बंधन में लेने वाला हूँ..

अरे पर तीन महीने बोला था ना अभी तो एक ही हुआ है..

बुआ वो नाराज़ है एक महीने उससे भी बात नहीं कि थी तो मेरा फ़ोन तक नहीं उठा रही.. लगता है मेरी शामत आने वाली है..

अरे अरे.. इतना भी क्या अपनी होने वाली पत्नी से डरना..

डरना तो पड़ेगा बुआ वो कोई आम लड़की थोड़ी है.. शैतान है उसके अंदर अगर उसे खुश नहीं रखूँगा तो मेरा पता नहीं क्या हाल करेगी वो..

ठीक है.. वो तो खुश हो जायेगी..

फ़ोन तो उठाये मेरा..

अरे तू चिंता मत कर मैं बोल देती हूँ उठा लेगी फ़ोन..

थैंक्स बुआ.. यू आर बेस्ट..

सुमन - किसका फ़ोन है?

गौतम - बुआ का.. बात करोगी..

सुमन - मैं क्या बात करूंगी.. तू कर ले..

गौतम सुमन का हाथ पकड़ कर खींचते हुए - अरे बुआ माँ बनने वाली है..

सुमन - पता है.. बताया था जगमोहन ने..

गौतम - मेरे बच्चे की...

सुमन हैरात से - क्या?

पिंकी - ग़ुगु..

गौतम फ़ोन स्पीकर पर डाल कर - बुआ माँ को सब पता है हमारे बारे में..

पिंकी - क्या कह रहा है तू.. पागल हो गया है क्या..

गौतम - लगता है खाना आ गया.. बुआ माँ से बात करो..

सुमन - पिंकी..

पिंकी - भाभी ग़ुगु की बात को सीरियस मत लेना वो मज़ाक़ कर रहा है..

सुमन - मैं सब जानती हूँ पिंकी.. अब मुझसे छिपाने की जरुरत नहीं है तुम्हे.. मुझे तेरे और गौतम के रिश्ते से कोई ऐतराज़ नहीं है..

पिंकी - भाभी क्या आप भी..

सुमन - अब मैं कुछ छिपाना नहीं चाहती तुझसे पिंकी.. मैं भी गौतम के साथ वैसे ही रिश्ते में हूँ जैसे कि तू..

पिंकी - भाभी ग़ुगु आपका बेटा है.. उसके साथ आप.. ये सही नहीं है..

सुमन - ये बात तुम कर रही हो पिंकी.. हवस में अंधी होकर अपने भतीजे के साथ सोने में तुम्हे शर्म नहीं आई और मुझे सही गलत समझा रही हो.. पिंकी मैं जानती हूँ तुम भी गौतम से बहुत प्यार करती हो.. मैं तुम्हे कुछ नहीं कहूँगी..

पिंकी - भाभी.. ग़ुगु के साथ आपका वो रिश्ता समाज के लिए पाप है.. आपने मुझे अपने बारे में बता दिया है पर आप और किसीसे इस बात का जिक्र तक नहीं करना.. कुसुम से तो बिलकुल नहीं..

सुमन - मैं अच्छे से जानती हूँ पिंकी.. मुझे किसके साथ क्या बात करनी है.. तूम उसकी चिंता मत करो..



गौतम - खाना तैयार है माँ.. आ जाओ..

सुमन - लो बात करो अपनी बुआ से..

गौतम - हाँ बुआ..

पिंकी - कमीने कुत्ते अपनी माँ के साथ ही सो गया तू.. भाभी ने सब बता दिया कैसे तूने भाभी के साथ अपना रिश्ता बनाया..

गौतम हसते हुए - बुआ अब मैं क्या करू.. आपकी तरफ माँ से भी बहुत प्यार करता हूँ..

पिंकी - अच्छा.. तो क्या भाभी को नंगा ही रखेगा घर में.. बेचारी तुझे इतना प्यार करती है और तू उनके साथ पता नहीं क्या क्या करता है.

गौतम खाना खाते हुए - आप आ जाओ ना.. बचा लो अपनी भाभी को मुझसे..

पिंकी - जल्दी आउंगी.. अब खाना खा..

गौतम - अच्छा किस्सी तो दे दो गीली वाली..

पिंकी - उम्महां... अब मिलूंगी ना भाभी के साथ मिलकर तेरा चीरहरण करूंगी.. चल बाय..

गौतम - love you बुआ..

पिंकी - love you too बाबू..

सुमन - बाय पिंकी..

पिंकी - बाय भाभी.. ज्यादा तंग करें तो एक थप्पड़ रख देना इस शैतान के..

सुमन हसते हुए - अच्छा ठीक है.. बाय...



सुमन और गौतम खाना ख़ाकर वापस बेड ओर आ जाते है..

सोने दे ना ग़ुगु..

मैं कहा रोक रहा हूँ सोने से माँ..

ऐसे छेड़खानी करेगा तो कैसे सो पाउंगी.. तू वापस शुरू हो गया.. देख सोने वरना सच में एक थप्पड़ मार दूंगी..

अच्छा ठीक है मेरी माँ.. सो जाओ..

तू कहा जा रहा है?

कहीं नहीं.. छत पर..

क्यों?

बस ऐसे ही..

नहीं जाना.. यहां आ.. मेरे पास.. सो जा तू भी..

गौतम सुमन को बाहों में भरकर लेट जाता है..

अरे अब किसका फ़ोन आ गया तेरे फ़ोन पर?

कुसुम का है माँ..

बात कर क्या कहती है..

कहेगी क्या.. मुझे ताने मारेगी..

बात तो कर..

हेलो...

बोलो?

क्या बोलू?

बुआ ने कहा तुम कुछ बोलना चाहते हो तो बोलो..

इतना गुस्से में क्यों है तू? एक महीने बात नहीं कि तो इतनी नाराज़गी?

एक महीना... तुम्हारे लिए सिर्फ एक महीना है.. पता है मेरा कितना बुरा हाल हुआ है.. रोज़ तुम्हे याद करके.. मन तो कररहा है फ़ोन में घुसकर तुम्हारा वो हाल करू कि याद रखो तुम..

अच्छा सॉरी ना कुसुम..

सॉरी.. सोरी से सब ठीक नहीं होता.. कितने फ़ोन और massage किये पर तुम हो कि.. छोडो.. जो कहना है कहो मुझे सोना है..

अकेले सोना है? मेरे साथ नहीं सोना चाहती?

मसखरी करने के लिए फ़ोन किया है? कितने बुरे तो तुम.. जरा भी अंदाजा नहीं है तुम्हे मेरे मन का.. क्या बीत रही है मेरे ऊपर.. और तुम्हे इस रात में मसखारी करनी है..

ठीक है मेरी प्यारी कुसुम.. कल आ रहा हूँ मैं तुझे लेने.. मैं भी तेरे बिना नहीं रह पाऊंगा अब...

फिर से मसखरी.. देखो ऐसा करोगे ना तो याद रखना मैं भी बहुत सताऊंगी तुम्हे..

मज़ाक़ नहीं कर रहा पागल.. सच में कल आ रहा हूँ मैं माँ को लेकर.. यक़ीन ना हो तो बात कर लो..

सुमन - हेलो कुसुम...

कुसुम - हाँ बड़ी माँ..

सुमन - गौतम मज़ाक़ नहीं कर रहा बेटा.. कल वो सच में आ रहा है.. और कल ही तेरे साथ बंधन करके तुझे अपने साथ ले आएगा..

कुसुम ख़ुशी से - सच..

गौतम सुमन से फ़ोन लेकर - और क्या मज़ाक़ कर रहा हूँ?

कुसुम - हाय.. मुझे तो लाज आ रही है..

गौतम - अभी से.. अभी तो कुछ हुआ भी नहीं..

कुसुम फ़ोन काटते हुए - छी...



सुमन मुस्कुराते हुए - बेचारी...

गौतम बिन बताये सुमन कि पेंटी सरकाकर लंड अंदर घुसाते हुए - माँ गलती से चला गया..

सुमन सिसकते हुए - अह्ह्ह.. बार बार यही गलती करता है ना तू..

गौतम - माँ गलती से अंदर फिसल गया सच्ची..

सुमन - अह्ह्ह.. बेशर्म.. अब चोद भी गलती से रहा है क्या?

गौतम - माँ.. पता नहीं.. अपने आप लंड अंदर बाहर हो रहा है..

सुमन - झूठे मक्कार.. बहाने बहाने से चुत में घुसा देता है.. कहता है गलती से हो गया. अह्ह्ह.. आराम से मदरचोद..

गौतम चोदते हुए - गाली कितनी प्यारी लगती है तुम्हारे मुहसे माँ...

सुमन - कमीने मेरा बेटा नहीं होता ना.. बहुत मार खाता तू..

गौतम - घोड़ी बनो ना..

सुमन - बाल नहीं खींचेगा..

गौतम - ठीक है..

सुमन घोड़ी बनती हुई - प्यार से कर..

गौतम चुत में ड़ालते हुए - आराम से करूँगा माँ तुझे भी मज़ा आएगा..

सुमन चुदवाते हुए - अह्ह्ह... अह्ह्ह... अह्ह्ह...

गौतम टीवी पर एक ब्लू फ़िल्म चला देता है और अपनी माँ को घोड़ी वाले पोज़ में चोदता रहता है..

सुमन - अब झड़ भी जा.. मैं कितना झेलू तुझे.. तू तो बस चोदना ही जानता है.. झड़ने का नाम ही नहीं लेता..

गौतम - माँ यार मैं क्या करू? आप जल्दी झड़ जाती हो तो.. मेरा होने में टाइम लगता है..

सुमन मिशनरी में चुदवाती हुई - एक घंटा हो गया.. जलन सूजन और अब दर्द भी होने लगा है मुझे.. और तू है कि बस..

गौतम चुत में झड़ते हुए - अच्छा बस हो गया माँ...

सुमन - अह्ह्ह... महीने भर से दूर तो बहुत याद आता था अब आ गया है तो ऐसा लगता है दूर ही अच्छा था.. कितना गन्दा चोदता है तू.. कुसुम का तो पता नहीं क्या हाल होगा.. देख... कितना सूज गई है फिर से..

गौतम - चाटकर सूजन कम करदु.. आप कहो तो?

सुमन - अब सो जा शहजादे.. कल जाना भी है गाँव...

गौतम - ठीक है माँ..





अह्ह्ह...

क्या हुआ? ठीक तो हो माँ...

कल इतना बुरा किया और पूछ रहा है ठीक हूँ या नहीं.. वापस लंगड़ी कर दिया तूने..

अच्छा सॉरी माँ.. लो आओ मैं गोद में उठाके ले चलता हूँ..

नहीं रहने दे मैं चलकर ही गाडी में बैठ जाउंगी..

गौतम सुमन को उठाते हुए - ज्यादा नखरे मत किया करो... समझी..

सुमन - अरे दरवाजा तो बंद कर दे.. और लॉक भी कर दे..

गौतम - ठीक है..

गौतम रास्ते में उसी पहाड़ी के नीचे आजाता है..

सुमन - बाबाजी के पास क्यों लाया है? गाँव जाना था ना..

गौतम किसीको फ़ोन करता हुआ - एक और आदमी है जो गाँव चलेगा..

हेलो... हाँ.. नीचे बरगद के पास.. ठीक आ जाओ...

सुमन - कौन आदमी गौतम?

गौतम - है कोई बाबाजी चाहते है बंधन के समय वो उपस्थित रहे...

सुमन - मुझसे तो कुछ नहीं कहा बाबाजी ने..

गौतम - पर मुझसे कहा था... लो वो आ गया.. कैसे हो अंकल...

किशोर जोगी को गाडी में बैठाते हुए - गौतम बड़े बाबाजी और बैरागी...

गौतम - जानता हूँ...

जोगी - बहुत तरक्की कर ली है दुनिया ने..

गौतम गाडी चलाता हुआ - हाँ अंकल..

जोगी - ये तुम्हारी माँ है..

गौतम - हाँ... आप तो सब जानते हो..

सुमन - ये कौन है गौतम?

गौतम - माँ ये बाबाजी के पापा जी है.. जो बाबाजी नहीं कर सकते वो सब ये कर सकते है.. उन्होंने बताया है कि बुआ पिछले जन्म में मेरी माँ थी.. अंकल माँ के बारे में बताओ ना कुछ.. अगले पिछले जन्म में माँ कौन थी..

जोगी - क्या करेगा ये जानकार बेटा...

सुमन - नहीं नहीं.. मुझे कुछ ऐसी पहेली बुझा दो कि ये मुझसे झूठ ना कह पाए कभी..

जोगी - तेरा बेटा जब भी झूठ बोलेगा तुझे पता चल जाएगा बेटी...

सुमन - कैसे?

जोगी - तेरा मन तुझे बता देगा..

गौतम - अंकल ऐसा मत करो... यार..

सुमन - अब बोल बच्चू...

गौतम - अंकल ठीक नहीं किया आपने.. अब आपको मृदुला से नहीं मिलवा सकता..

सुमन - कौन मृदुला?

गौतम - कुसुम पिछले जन्म में इनकी बेटी मृदुला थी.. और ये 300 साल पहले से यहां आये है..

सुमन हसते हुए - चल झूठा..

गौतम - अंकल आप ही समझा दो..

जोगी - बेटी ये सच कह रहा है...

सुमन - अच्छा..

गौतम - हाँ.. और मैं कोई टूर पर नहीं गया था.. पिछले जन्म में गया था बड़े बाबाजी के काम से..

सुमन - बड़े बाबाजी तुझसे मिले थे?

गौतम - सिर्फ मिले नहीं थे.. उन्होंने ही मुझे पिछले जन्म में भेजा था.. ताकि मैं जदिबूती लाकर उनको दे सकूँ और वो मर सके.. बड़े बाबाजी को अंकल ने ही जागीरदार से एक फ़कीर बना दिया था.. और 300 साल से बड़े बाबाजी अपनी सजा काटरहे थे..

सुमन - क्या कह रहा है ग़ुगु...

गौतम - सच कह रहा हूँ माँ.. मैं जदिबूती कि जगह अंकल को ले आया और अंकल ने बड़े बाबाजी और उनके ऊपर जो बैरागी की आत्मा थी दोनों को मुक्ति दे दी..

जोगी - और कितना समय है बेटा..

गौतम - बस आधे घंटे में पहुंच जायेंगे अंकल.. वैसे कुसुम तो आपको पहचानेगी नहीं फिर आप क्या करोगे?

जोगी - मैंने मृदुला से वादा किया था बेटा.. मैं उसे मिलने जरुर आऊंगा.. वो जैसे ही मुझे देखेगी उसे सब याद आ जाएगा..

गौतम - बैरागी भी?

जोगी - इस जन्म में उसके लिए अब तू ही बैरागी है बेटा..

सुमन - क्या बात हो रही मेरी तो कुछ समझ नहीं आता..

गौतम - आप मत समझो.. लो अंकल आ गया गाँव भी.. मिल लो आपकी मृदुला से...

हेमा - आओ बेटा... ये बहुत अच्छा फैसला किया तुमने जो बंधन जल्दी करने की हामी भर ली.. आज रात बहुत धूमधाम से सब होगा..

मानसी - आओ जमाई राजा.. बड़ा इंतजार हो रहा है तुम्हारा.. आओ सुमन..

गौतम - कुसुम कहा है?

मानसी - थोड़ा सब्र रखो जमाई राजा.. कुसुम अपने कमरे में है.. शाम को बंधन के बाद आराम से मिल लेना और ले जाना अपने साथ..



शाम को पंचायत के सामने बंधन की सारी रस्मे हो जाती है और गौतम कुसुम को पत्नी के रूप में स्वीकार कर लेता है..



कुसुम - छत ओर क्या कर रहे हो?

गौतम - किसीको मिलना है तुमसे..

कुसुम - कौन?

गौतम - तुम्हारे बाबा..

कुसुम - बाबा?

गौतम - हाँ.. देखो..

कुसुम जोगी को देखकर आंसू बहती हुई - बाबा...

जोगी - रोते हुए - मृदुला..

सुमन नीचे से ऊपर छत पर आती हुई - गौतम??

जोगी - मैंने वादा किया था ना मृदुला.. मैं तुमसे मिलने जरुर आऊंगा..

कुसुम - बाबा... आप कहा चले गए थे..

जोगी - मृदुला.. तूने व्यर्थ ही हठ करके जान गवा दी.. अगर बैरागी की बात मानकर जंगल से बाहर चली जाती तो शायद मुझे और तुझे मिलने के लिए इतना इंतेज़ार नहीं करना होता..

कुसुम - बाबा.. आप अब कहीं नहीं जाएंगे ना..

जोगी - जाना तो पड़ेगा मृदुला.. प्रकृति के नियम तोड़कर मैं यहां नहीं रह सकता मुझे वापस उस दुनिया में जाना होगा...

कुसुम - मैं भी आपके साथ चलूंगी बाबा...

जोगी कुसुम के सर ओर हाथ रखकर - नहीं मृदुला.. मैं तुझे तेरी सारी विद्या जो पिछले जन्म में तेरे पास थी उसे तुझे स्मरण करवा रहा हूँ.. अब तू साधारण नहीं है..

गौतम - ओ अंकल ये सब मत करो.. ये पहले ही मुझे बहुत तंग करती है इतना ताक़त और शक्ति पाने के बाद तो ये पागल हो जायेगी..

कुसुम हस्ती हुई - बाबा... ये बहुत मनमौजी है..

जोगी - इसका उपचार तो तू ही कर सकती है मृदुला... अब मुझे जाने दे.. अब मैं सुख से रह पाऊंगा वहा..

कुसुम गले लगते हुए - बाबा..

सुमन हैरात से - मतलब... सच में..

गौतम सुमन - और क्या मैं मज़ाक़ कर रहा था..

जोगी - अपना ख्याल रखना मेरी बच्ची...

जोगी ये कहकर जने लगता है..

गौतम - वापस जाओगे कैसे ससुर जी?

जोगी - मरने से पहले वीरेंद्र सिंह से मैंने आयामों के मध्य का रहस्य जान लिया था.. मेरे लिए वापस जाना कठिन नहीं.. लेकिन अब मेरी मृदुला की रक्षा और सुख तेरे ऊपर है बेटा..

गौतम - टेंशन मत लो.. ससुर जी..

कुसुम - बाबा.. मेरी चिंता मत करो..

जोगी जाते हुए - सुखी रह मेरी बच्ची..



जोगी के जाने के बाद..

सुमन - कुसुम सँभालना अपने गौतम को.. मुंह मारने की आदत है इसे...

कुसुम गौतम को पकड़कर उसके लंड ओर हाथ लगती हुई - आप फ़िक्र मर करो बड़ी माँ.. घर के अलावा अगर ये किसी और के साथ मुंह काला करना भी चाहेगा तो इसका सामान खड़ा नहीं होगा..

गौतम - ऐ जादूगरनी... ये फालतू का जादूगर टोना मुझे ओर मत करना समझी ना..

कुसुम मुस्कुराते हुए - जादू तो हो चूका है..

सुमन - घर की मतलब?

कुसुम - मैं आपका मन पढ़ सकती हूँ बड़ी माँ.. मैं गौतम का मन भी पढ़ सकती हूँ.. घर की मतलब घर की..

सुमन - कुसुम.. तू?

कुसुम - हाँ बड़ी माँ.. आप और बुआ सब..

गौतम - और भाभी..

कुसुम - हम्म भाभी भी घर की है..

गौतम कुसुम और सुमन को बाहों में भरकर - मतलब दोनों दुल्हन आज मेरे साथ.....


*******************

एक जोर का थप्पड़ सो रहे गौतम के गाल पर पड़ता है....
गोतम नींद से जागता हुआ - हा.... क्या.. क्या हुआ..
सुमन गुस्से में - खड़ा हो जा.. कब तक सोता रहेगा.. ऊपर से नींद में अनाप शनाप बोले जा रहा है... जल्दी से तैयार हो जा... आज बाबाजी के जाना है.. तेरे पापा भी आज जल्दी थाने चले गए..

गौतम. - ये पुलिस क्वाटर?
सुमन - तो और क्या महल में रहता है तू... उठा जा.. और ये सपने देखना बंद कर...
गौतम - मतलब ये सब सपना था...
सुमन गुस्से से - ओ सपनो के सौदागर... उठता है या और एक जमाउ तेरे गाल पर... बस सपने ही देखता रहता है दिन रात...

गौतम सोच रहा था की कितना हसीन सपना था.. जिसमे उसकी सारी ख्वाहिश और इच्छाएं पूरी हो रही थी.. वो उठकर बाथरूम में चला जाता है और आम दिनों की तरह मुट्ठी मारके नहाता है और फिर अपना कीपेड फ़ोन उठाकर अपनी माँ सुमन को उसी पुरानी और बाबा आदम के जामने की बाइक जिसे उसके बाप जगमोहन ने दिलवाया था उसपर बैठाकर बाबाजी के चल पड़ता है..

गौतम उदासी से - पेट्रोल नहीं है..
सुमन - 500 का नोट देती हुई.. डलवा ले..

गौतम 200 का पेट्रोल डलवा कर 300 जेब में डाल लेता है और सुमन को बाबाजी के पास उसी पहाड़ी के नीचे बरगद के पास ले आता है..

सुमन - चल ऊपर..
गौतम - नहीं जाना आप जाओ..

सुमन - सुबह से देख रही हूँ जब से जागा है अजीब बर्ताव कर रहा है.. क्या बात है..
गौतम कुछ नहीं... आप जाओ मैं यही इंतेज़ार कर लूंगा..
सुमन - ठीक है तेरी मर्ज़ी पर यही मिलना.. समझा..

सुमन चली जाती है और गौतम के फ़ोन ओर आदिल का फ़ोन आता है..

आदिल - क्या कर रहा था रंडी?
गौतम - नींद में तेरी अम्मी शबाना को चोद रहा था..
आदिल - अबे लोड़ू.. फालतू बात मत कर..
गौतम - तो बोल ना रंडी के क्या बात है..
आदिल - रांड चोदने चलेगा रात को..
गौतम - पैसे तू दे तो चल...

आदिल - आज तक कौन तेरा बाप ठुल्ला दे रहा था.. रात को 7 बजे घर आ जाना..
गौतम - ठीक है गांडू... फ़ोन कट हो जाता है...


गौतम मन में - कितना हसीन सपना था यार... काश वो सब सच होता...

O तेरे की गौतम के तो लोडे लग गए यारा
हा हा हा ♥️♥️♥️♥️♥️
Shandar
 
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