dagadu1985
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kuch bhi ho sakta haiMtlb suman outsider se chudegi ?
Superb update and lovely storyUpdate - 6
पहाड़ी पर बने उस मन्दिरनुमा हाल के भीतर लोगों की समस्याओ को सुनकर उसका निवारण करने के उपाय बटाने वाले बाबाजी एक कोने में चटाई बिछकार अपनी पत्नी कजरी के साथ भोग में लिप्त थे की तभी एक सेवक ने आकर दरवाजे पर दस्तक दी जिससे बाबाजी के भोग में विघ्न पड़ गया औऱ वो भोग से उठकर बैठ गए औऱ कजरी भी अपने नंगे बदन को चादर से ढककर बैठ गई. बाबाजी ने बाहर जाकर उस सेवक से इस विघ्न की वजह पूछने लगे..
बाबाजी - क्या हुआ किशोर? इस तरह आधी रात को यहां आने का क्या कारण है?
किशोर अपने घुटनो पर बैठ गया औऱ दंडवत प्रणाम कर बोला - बाबाजी बात ही कुछ ऐसी है कि मुझे जंगल छोड़कर यहां इस वक़्त आपके पास आना ही पड़ा..
बाबाजी - ऐसा क्या हो गया किशोर कि सुबह तक का इंतजार करना भी तेरे लिए मुश्किल हो गया?
किशोर - माफ़ी चाहता हूँ बाबाजी पर बड़े बाबाजी ने अविलम्ब आपको उनके समक्ष उपस्थित होने का आदेश दिया है..
बाबाजी हैरानी से किशोर को देखते है एक शॉल को कंधे पर लपेटकर - अचानक उनका मुझे बुलाना.. जरूर कोई बात है.. चल किशोर..
बाबाजी किशोर के साथ हॉल से निकल जाते है औऱ कच्चे रास्ते से होते हुए पहाड़ी के पीछे जंगल की ओर नीचे उतरने लगते है.. वही कजरी अपने वस्त्रो को वापस बहन लेती है और असमंजस में अचानक बाबाजी के जाने का कारण सोचने लगती है..
बाबाजी - कुछ ओर भी कहाँ था उन्होंने?
किशोर - नहीं बस साधना से निकले तो तुरंत आपको बुलाने का हुक्म दे दिया..
बाबाजी - किसी सेवक से कोई चूक तो नहीं हुई उनकी सेवा में?
किशोर - चूक कैसी बाबाजी? सब जानते है चूक का परिणाम क्या हो सकता है. हर दिन जैसा ही सब कुछ आज भी हुआ, पर साधना से उठते ही उनके चेहरे पर अजीब भाव थे.
बाबाजी - अच्छा चल..
बाबाजी ओर किशोर पहाड़ी से नीचे उतरकर जंगल में आ गए जहाँ आने से कोई भी डर सकता था.. और किसी का आना वहा सामान्य भी नहीं था. जंगल के अंदर कुछ दूर जाकर एक कुटिया दिखाई पड़ी जिसके बाहर दो लोग पहरा दे रहे थे. बाबाजी किशोर के साथ उस कुटिया तक आ पहुचे फिर बाबाजी ने किशोर को रुकने का कहा और कुटिया के अंदर जाने के लिए दरवाजे पर दस्तक देते हुए बोले - गुरुदेव..
बड़े बाबाज़ी - अंदर आजा विरम..
बाबाजी कुटिया में प्रवेश करते हुए कुटिया में एक तरफ बैठकर चिल्लम पीते बड़े बाबाज़ी के चरणों में अपना मस्तक रखकर सामने अपने दोनों पैरों पर उसी तरह बैठ गए जिस तरह सुबह सुबह खेतो में गाँव के लोग अपना मल त्यागने के लिए पानी का लोटा लेकर बैठते है..
बाबाजी - आधी रात को अचानक बुलावाया है गुरुदेव. जरूर कोई बहुत बड़ा कारण होगा. आदेश करें गुरुदेव आपका ये शिष्य आपकी किस तरह सेवा कर सकता है?
बड़े बाबाजी - विरम.. वक़्त आने वाला है.. सेकड़ों सालों पहले मेरे किये गलत निर्णय को बदलने का.. मुझे कोई मिल गया है जो मेरा काम कर सकता है..
बाबाजी - ऐसा कौन है गुरुदेव? मैंने इतने सालों में लाखों लोगों के माथे की लकीरें पढ़ी है.. इसी उम्मीद में की काश कोई आये जो अपने पिछले जन्म में जाकर आपकी मदद कर सके.. पर आज तक ऐसा नहीं हुआ..
बड़े बाबाज़ी - जो मुझे 300 सालों से कहीं नहीं मिला वो मुझे इसी कुटिया मैं बैठे बैठे मिल गया विरम.. बस कुछ दिनों का इंतज़ार और..
बाबाजी - पर क्या वो आपका काम कर पायेगा?
बड़े बाबाजी - अगर कारण हो तो आदमी सब कुछ कर गुजरता है विरम.. बस उसे एक वजह देनी होगी, मैं जल्दी ही उसे सब समझाकर इस काम के लिए सज्य कर लूंगा.. उसके मासूम चेहरे और सादगी भरे स्वाभाव से लगता है वो जरूर आसानी से अपने पिछले जन्म में जाकर मेरी गलती को सुधार सकता है. मेरे लिए बैरागी को ढूंढ़ सकता है. और मेरे हाथों उसका क़त्ल होने से बचा सकता है.
बाबाजी - इस अंधियारे में जो रौशनी आपने दिखाई है गुरुदेव, उससे नई उम्मीद मेरे ह्रदय के अंदर पनपने लगी है.. जिस जड़ीबूटी को अमर होने की लालच में अमृत मानकर आपने ग्रहण किया था अब उसी जड़ीबूटी से आपकी मुक्ति भी होगी..
बड़े बाबाजी - लालच नर्क की यातनाओ के सामान है विराम.. मेरे अमर होने के लालच ने मुझको उसकी सजा दी है.. मैं भूल बैठा था की जीवन और मृत्यु प्रकृति का अद्भुत श्रृंगार है जिसे रोकने पर प्रकृति की मर्यादा भंग होती है..
बाबाजी - आप सही कह रहे है गुरुदेव. जिस तरह पहले आप पर अमर होने का लालच हावी थी अब मृत्यु का लालच हावी है.. लेकिन गुरुदेव? जिसे आपने ढूंढा है वो अपने पिछले जन्म कौन था? उसका कुल गौत्र और लिंग क्या था? वो आपके जागीर की सीमा के भीतर का निवासी था या बाहर का? अपने उसका पिछला जन्म तो देखा होगा?
बड़े बाबाजी - वो मेरी ही जागीर की सीमा के भीतर का निवासी है विरम. मैंने अभी उसका पिछला जन्म देखा है. वो हमारी ही सेना में एक सैनिक धुप सिंह का पुत्र समर है.. मगर एक अड़चन है विरम..
बाबाजी - क्या गुरुदेव? कैसी अड़चन?
बड़े बाबाजी - प्रेम की अड़चन विरम.. मुझे साफ साफ दिखाई दिया है की उसे किसी से प्रेम हो सकता है जो हमारे कार्य के लिए अड़चन बन सकती है.. वो वही का होकर रह सकता है.. और बैरागी को ढूंढने से मना करके जड़ीबूटी लेकर वापस आने से भी इंकार कर सकता है..
बाबाजी - इसका उपाय भी तो हो सकता है गुरुदेव, अगर उसके पास वापस आने की बहुत ठोस वजह हो तो? अगर उसे वापस आना ही पड़े तो?
बड़े बाबाजी - इसीके वास्ते तुझे याद किया है विरम..
बाबाजी - मैं समझा नहीं गुरुदेव..
बड़े बाबाजी - बड़े दुख की बात है विरम की जो तुझे खुद से समझ जाना चाहिए वो तू मुझसे सुनना चाहता है.. मैंने पिछले 40 साल में तुझे इस प्रकर्ति के बहुत से रहस्य बताये है जिनसे तूने हज़ारो लोगों की मदद की. लेकिन तू अपनी मदद नहीं कर पाया. जब तू 16 साल की उम्र में घर से मरने की सोचके निकला था तब से लेकर आज तक मैंने हर बार तेरा मार्गदर्शन किया है. एकलौता तू ही है जिसे मैंने अपना रहस्य भी बताया है. पूरी दुनिया के सामने अपना छोटा भाई बनाकर रखा है.. मैंने अपनी पिछले 350 की जिंदगी में जितने भी रहस्य इस धरती और प्रकर्ति के बारे में जाने है उनमे से जो तेरे जानने लायक थे लगभग सही तुझे बता दिए है.. उनसे तो तुझे मालूम होना चाहिए था की मैं क्या कहा रहा हूँ..
बाबाजी - गुरुदेव. ये सत्य है की आज से 40 साल पहले जब मुझे मेरे घर से निकाल दिया गया था तब से लेकर आज तक आपने मुझे संभाला है. रास्ता दिखाया है. इस बार भी इस नादान को बताये गुरुदेव. मैं क्या कर सकता हूँ आपके लिए?
बड़े बाबाजी - विरम मैं जिस लड़के की बात कर रहा हूँ उसकी माँ तेरे मठ में आती है. तुझे उसे एक काम के लिए मनाना होगा.. क्युकी उसके बिना उस लड़के का वापस आना मुश्किल है..
बाबाजी - आप बताइये गुरुदेव, क्या करने के लिए मनाना होगा मुझे उस औरत को?
बड़े बाबाजी - ठीक है विरम, सुन..
बड़े बाबाज़ी अपनी बात कहना शुरुआत करते है जिसे बाबाजी उर्फ़ विरम ध्यान से सुनता है और समझ जाता है.. उसके बाद बड़े बाबाजी से विदा लेकर वापस मठ की और चला जाता है..
बड़े बाबाज़ी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह 325 साल पहले अजमेर की एक जागीर के जागीरदार थे और उनका अपना एक महल था सैकड़ो नौकरचाकर और इसीके साथ राजासाब की सेना की एक टुकड़ी भी हर दम बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह के महल की सुरक्षा में तनात रहती थी. 1699 में वीरेंद्र सिंह इस महल में एक राजा की तरह ही राज कर रहा था. वीरेंद्र सिंह का रुझान हकीमी और जादू टोने में बहुत ही ज्यादा था.. उसने सबसे छुपकर कई लोगों से इसका ज्ञान भी लेना शुरू कर दिया था और वैध की औषधियों के बारे में भी जानना जारी रखा..
बैरागी नाम के एक मुसाफिर आदमी की मदद से वीरेंद्र ने एक ऐसे पौधे को जमीन से उगवाया जो हज़ार साल में एक बार ही उग सकता है, जिससे आदमी अपनी उम्र के 11 गुना लम्बे समय तक ज़िंदा रह सकता है.. और अमर होने की लालच में आकर वीरेंद्र सिंह ने उस पौधे से मिली जड़ीबूटी का सेवन कर लिया..
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह ने जड़ीबूटी का सेवन तो कर लिया मगर उसकी उम्र बढ़ना नहीं रुकी. जब उसने जड़ीबूटी खाई थी तब उसकी उम्र 35 साल थी और उसे लगा था की अब वो अमर हो जाएगा मगर.. धीरे धीरे उसकी उम्र बढ़ती गई जिससे वीरेंद्र सिंह को लगा की इस जड़ीबूटी का कोई असर नहीं हुआ और ये उसे अमर नहीं कर पाई.. वीरेंद्र सिंह ने गुस्से में आकर जड़ीबूटी बनाने वाले आदमी जिसे सब बैरागी के नाम से जानते थे को मरवा दिया.
लेकिन जब धीरे धीरे बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह 73 साल का हुआ तो उसकी उम्र बढ़ना रुक गई और फिर उसे समझ आया की उस जड़ीबूटी का असर आदमी के मरने की उम्र गुजरने के बाद शुरू होता है और जितने साल उसकी जिंदगी होती है उसके गयराह गुना साल आगे वो और ज़िंदा रह सकता है.. वीरेंद्र पहले तो ये सोचके बहुत ख़ुशी हुई की अब वो अपनी उम्र 73 साल के 11 गुना मतलब लगभग 800 साल ज़िंदा रहेगा मगर कुछ दिनों बाद ही उसे समझ आ गया की बैरागी को मारवा कर उसने बहुत गलत किया है.. 73 साल इस उम्र में उसका 800 साल ज़िंदा रहना वरदान नहीं अभिश्राप था.. ना तो भोग कर सकता था ना ही जीवन के वो सुख भोग सकता था जो जवानी आदमी को भोगने का अवसर देती है..
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह अब अपने फैसले पर बहुत दुखी हुआ और फिर उसने अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया की उसे वही जड़ी बूटी वापस बनाकर अपनी ये जिंदगी समाप्त करनी है.. इसके लिए सालों साल वीरेंद्र सिंह उर्फ़ बड़े बाबाजी ने बड़े बड़े सिद्ध महात्मा, अघोरी और तांत्रिक की सेवा कर उनसे ज्ञान और रहस्य की जानकारी ली और हमारी धरती के बारे में बहुत सी बातें जानी. यहां जो आयाम है उसके बारे में जाना और बहुत बार भेस बदलकर लोगों से मिलते हुए वीरेंद्र सिंह ने इतनी जानकारी और ताकत हासिल कर ली और इस प्रकृति के कुछ रहस्य जान गया. वह अब ये जान गया था कि अगर कोई आदमी जिसका पिछला जन्म उसी वक़्त हो जब वीरेंद्र वो जड़ी बूटी बनवाने वाला था.. तभी उसका काम हो सकता है.. और वो इस अभिश्राप से बच सकता है..
वीरेंद्र सिंह उर्फ़ बड़े बाबाज़ी ने गौतम को ढूंढ़ लिया था गौतम पिछले जन्म में वीरेंद्र सिंह के सिपाही का लड़का था.. अब वीरेंद्र सिंह उर्फ़ बड़े बाबाजी यह चाहते थे कि गौतम अपने पिछले जन्म में जाकर बैरागी को ढूंढे और उससे वो जड़ीबूटी बनवा कर उसे वर्तमान में लाकर दे दे.. ताकि 350 सालों से इस उम्र में अटके बड़े बाबाजी के प्राण बह जाए और उनकी मुक्ति हो..
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सुबह जब गौतम की आँख खुली तो सामने का नज़ारा देखकर उसका लंड रबर के ढीले पाईप से लोहे की टाइट रोड जैसा तन गया जिसे उसने सोने का नाटक करते हुए छीपा लिया..
आज गौतम की आँख औऱ दिनों के बनिस्पत जल्दी खुल गई थी औऱ उसने अभी अभी नहाकर आई अपनी माँ सुमन की टाइट बाहर निकली हुई नंगी गोरी गांड देखी जिसे सुमन ने चड्डी पहनकर अब ढक लिया था औऱ बाकी कपडे पहनने लगी थी.. गौतम सोने का नाटक करते हुए सारा नज़ारा देखने लगा जब सुमन कपडे पहन कर बाहर चली गई तो आपने लंड को मसलते हुए सुमन की गांड याद करने लगा.. करीब आधे घंटे वैसा ही करने के बाद गौतम उठ गया औऱ कमरे में जाकर बाथरूम करके वापस आपने बेड पर सो गया जिसे एक घंटे बाद चाय लेकर आई सुमन ने बड़े लाड प्यार औऱ नाजुकी से उठा दिया..
सुमन - उठ जा मेरी सल्तनत के बिगड़ैल शहजादे.. बाबाजी के भी चलना है.. चाय पीले औऱ नहा ले जाकर..
गौतम अंगड़ाई लेकर उठ खड़ा होता है औऱ चाय पीकर उसी तरह खिड़की से बाहर देखता है.. तभी उसका फोन बजने लगता है..
गौतम - हेलो.. ज़ी? MK ज्वेलर्स से? हां बोल रहा हूँ.. अच्छा अच्छा.. ज़ी रात को बात हुई थी.. मगर.. नहीं वापस बात कर सकते है उस बारे में.. सुनिए.. हेलो..
फ़ोन कट गया था..
गौतम मन में - अरे यार किस्मत में लोडे लिखें है. एक ऑफर आया था वो भी गया नाली में..
गौतम जैसे ही फ़ोन काटता है उसके फ़ोन पर किसी औऱ का फ़ोन आने लगता है..
गौतम - हेलो..
सामने से कोई औरत थी - हेलो ग़ुगु..?
गौतम - हाँ.. पिंकी बुआ बोलो..
पिंकी -35
पिंकी - ग़ुगु.. पापा कहाँ है?
गौतम - वो तो अभी थाने में है.. आजकल नाईट शिफ्ट है औऱ पोस्टिंग घर से थोडी दूर ग्रामीण इलाके में है तो घर देर से आते है.. 10 बजे तक आ जायेंगे..
पिंकी - ग़ुगु.. भईया से कहना मैं शाम को घर रही हूँ..
गौतम - क्यू मतलब कब? आज शाम की ट्रैन से?
पिंकी - ट्रैन से नहीं मेरे ग़ुगु.. गाडी से.. पर तू खुश नहीं है क्या मेरे आने से? लगता बहुत उल्टी सीधी पट्टी पढ़ा दी तेरी माँ ने तुझे अपनी बुआ के बारे में..
गौतम - अरे बुआ आप क्या बच्चों वाली बात कर रही हो.. मुझसे ज्यादा कोई खुश हो सकता है आपके आने पर? जल्दी से आ जाओ, आपसे ढेर सारी बात करनी है..
पिंकी - ओहो मेरा ग़ुगु इतना याद करता है अपनी बुआ को? पहले पता होता तो पहले आ जाती.. बता तुझे क्या चाहिए? क्या लाऊँ तेरे लिए?
गौतम - मुझे कुछ नहीं चाहिए बुआ? आप जल्दी से आकर मुझे मेरे गाल पर मेरी किस्सीया देदो उतना काफी है मेरे लिए..
पिंकी - ओह... मेरे ग़ुगु को हग भी मिलेगा औऱ किस्सी मिलेगी.. गाल पर भी औऱ लिप्स पर भी. तेरी बुआ कोई पुराने जमाने की थोड़ी है..
गौतम - बुआ माँ से बात करोगी?
पिंकी - अरे नहीं.. रहने दे ग़ुगु.. तेरी माँ पहले ही मुझसे चिढ़ती है.. तेरी माँ को तो मैं खुद आकर सरप्राइज दूंगी..
गौतम - सरप्राइज ही देना बुआ.. अटैक मत दे देना.. चलो मैं रखता हूँ,
पिंकी - ग़ुगु.. तू बस एड्रेस massage कर दे मुझे.. सरप्राइज तो देना है तेरी माँ को..
गौतम - ठीक है बुआ.. अभी करता हूँ..
पिंकी - ग़ुगु.. मन कर रहा है अभी फ़ोन में घुसके तुझे किस्सी कर लू..
गौतम - मैं वेट कर लूंगा शाम तक आपकी किस्सी का.. आप आराम से आ जाओ.. बाय बुआ..
पिंकी - बाये ग़ुगु.. अपना ख्याल रखना..
गौतम फ़ोन काटकर नहाने चला जाता है औऱ नहाकर एक डार्क नवी ब्लू शर्ट एंड लाइट ब्लू जीन्स के साथ वाइट शूज दाल लेटा है जिसमे आज बहुत प्यारा औऱ खूबसूरत लग रहा था.. उसे देखकर कोई भी कह सकता था की ग़ुगु आज भी स्कूल ही जाता होगा.. गौतम इतना मासूम औऱ मनभावन लग रहा था की सुमन ने आज घर से बाहर निकलने से पहले उसे कान के पीछे काला टिका लगा दिया था.. दोनों बाइक पर बैठके बाबाजी के पास चल पड़े थे..
सुमन - आज पेट्रोल नहीं भरवाना?
गौतम - नहीं माँ, है बाइक में तेल..
सुमन - अच्छा ज़ी.. औऱ कुछ खाना नहीं है रास्ते में?
गौतम - भूख नहीं है आपको खाना है?
सुमन - अगर मेरा ग़ुगु खायेगा तो मैं भी खा लुंगी..
गौतम थोड़ा आगे उसी कोटा कचोरी वाले की दूकान ओर बाइक रोक देता है औऱ जाकर कचोरी लेने लगता है तभी उसका फ़ोन बजता है..
गौतम - हेलो..
रूपा - मेरा बच्चा कहा है?
गौतम - अरे यार वो बाबाजी नहीं है *** पहाड़ी वाले? उनके पास जा रहा हूँ माँ को लेकर..
रूपा - अच्छा ज़ी माँ को लेकर जा रहे हो औऱ अपनी इस मम्मी से पूछा तक नहीं चलने के लिए?
गौतम - मैं नहीं मानता किसी बाबा-वाबा को.. माँ मुझे लेकर जा रही है.. वैसे सुबह सुबह कैसे याद कर लिया?
रूपा - अरे ये क्या बात हुई भला? अब मैं अपने बच्चे को याद भी नहीं कर सकती?
गौतम - मम्मी यार रास्ते में हूँ पहुँचके फ़ोन करता हूँ..
रूपा - अरे सुनो तो..
गौतम - जल्दी बोलो..
रूपा - कुछ नहीं रहने दो जाओ..
गौतम - ठीक है बाद में बात करता हूँ..
गौतम फ़ोन काट कर कचोरी ले आता है..
गौतम - माँ लो..
सुमन गौतम से कचोरी लेकर खाने लगती है औऱ कहती है..
सुमन - क्या बात है? कल रात को खाने का बिल औऱ आज गाडी में तेल फुल? कचोरी के पैसे भी नहीं मांगे तुने मुझसे? कोई लाटरी लगी है तेरी?
गौतम - कुछ नहीं माँ वो पुरानी कुछ सेविंग्स थी मेरे पास तो बस..
सुमन - अच्छा ज़ी? पर सेविंग तो आगे के काम के लिए बचा के रखते है ना? तू खर्चा क्यू कर रहा है?
गौतम - अब नहीं करुंगा माँ.. कितने सवाल पूछती हो आप इतनी छोटी बात के लिए?
सुमन - छोटी सी बात? तेरे छोटी बात होगी मेरे लिए नहीं है.. मुझे मेरा वही ग़ुगु चाहिए.. जो पेट्रोल से लेकर कचोरी तक चीज पर कमीशन खाता है..
गौतम - अच्छा ठीक है मेरी माँ.. अब चलो वैसे भी आज ज्यादा भीड़ मिलेगी आपके बाबाजी के.. अंधभगतो की गिनती बढ़ती जा रही है इस देश में..
सुमन - ठीक है मेरे ग़ुगु महाराज.. चलिए..
गौतम सुमन को बाइक पर बैठाकर बाबाजी की तरफ चल पड़ता है वही रूपा के मन में भी गौतम को देखने की तलब मचने लगती है और वो करीम को फ़ोन करती है..
रूपा - हेलो करीम..
करीम - सलाम बाजी..
रूपा - कहा है तू?
करीम - बाजी, सवारी लेने निकला हूँ स्टेशन छोडके आना है..
रूपा - आज तेरी बुक मेरे साथ है.. सबकुछ छोड़ औऱ कोठे पर आ जल्दी.. कहीं जाना है..
करीम - जैसा आप कहो बाजी.. अभी 5 मिनट में हाज़िर होता हूँ..
रूपा करीम से बात करके आईने के सामने खड़ी होकर आपने आपको निहारने लगती है.. सर से पैर तक बदन पर लदे कीमती कपडे औऱ जेबरात उसे ना जाने क्यू बोझ लगने लगे थे. आज उसका दिल कुछ साधारण औऱ आम सा पहनने का था. उसने अपने कमरे की दोनों अलमीराओ का दरवाजा खोल दिया औऱ कपडे देखने लगी, कुछ देर तलाशने के बाद उसे एक पुराना सूट जो कई बरस पहले करीम की इंतेक़ाल हो चुकी अम्मी ने उसे तोहफ़े में दिया था रूपा ने निकाल लिया औऱ अपने कीमती लिबास औऱ गहनो को उतारकर वो सूट पहन लिया.. फिर एक साधारण घरेलु महिलाओ की तरह माथे पर बिंदिया आँखों में काजल औऱ होंठों पर हलकी लाली लगाकर बाल बनाना शुरु कर दिया..
इतने में करीम का फ़ोन आ गया औऱ उसने नीचे खड़े होने की बात कही..
रूपा जब अपने कमरे से निकल कर बाहर जाने लगी तो रेखा काकी ने उसके इस रूप को देखकर अचंभित होते हुए कहा..
रेखा काकी - कहो रूपा रानी.. आज विलासयता त्याग कर ये क्या भेस बनाई हो?
रूपा - दीदी वो आज एक साधु बाबा के यहां जा रही हूँ तो सोचा कुछ साधारण पहन लू.
रेखा काकी - साधारण भी तुझपर महंगा लगता है रूपा रानी.. तेरा रूप तो इस लिबास में औऱ भी खिल कर सामने आ गया.. आज भी याद है, पहले पहल जब तू यहां आई थी तब इसी तरह के लिबास में अपने रूप से लोगों का मन मोह लिया करती थी.. मेरी चमक को कैसे तूने अपने इस हुस्न से फीका कर दिया था.
रूपा - आपकी चमक तो आज भी उसी तरह बरकरार है दीदी, जिस तरह जगताल के कोठो की ये बदनाम गालिया.. मैं तो कुछ दिनों की चांदनी थी अमावस आते आते बुझ गई..
रेखा काकी - ऐसा बोलकर मुझे गाली मत दे रूपा... मैं तेरा मर्ज़ तो जानती थी पर कभी तेरे मर्ज़ का मरहम तुझे नहीं दे पाई.. जो सपना तेरा है वो मैं भी कभी अपनी आँखों से देखा करती थी.. पर तवायफ के नसीब में सिर्फ कोठा ही होता है..
रूपा - मेरा सपना तो बहुत पहले टूट चूका है दीदी, कब रूपा रानी से रूपा मौसी बन गई पता ही नहीं चला.. अच्छा चलती हूँ आते आते शायद शाम हो जाएगी.
रूपा रेखा से विदा लेकर कोठे के बाहर करीम की रिक्शा में आ जाती है यहां करीम सादे लिबाज़ में रूपा को देखकर हैरात में पड़ जाता है मगर कुछ नहीं बोलता..
करीम - कहाँ चलना है बाजी?
रूपा - *** पहाड़ी पर कोई बाबा है उसके यहां..
करीम - पर आप तो मेरी तरह ऐसे बाबाओ औऱ खुदा पर यक़ीन ही नहीं करती थी..
रूपा - यक़ीन तो आज भी नहीं करीम.. पर सोचा मांग के देख लू शायद कोई चमत्कार हो जाए..
करीम - जैसा आप बोलो..
रूपा - करीम.
करीम - हाँ बाजी..
रूपा - तुझे बुरा तो नहीं लगा मैंने अचानक तुझे बुला लिया..
करीम - बुरा किस बात का बाजी, ये ऑटोरिक्शा आपने ही तो दिलवाया है अब आपके ही काम नहीं आएगा तो फिर इसका क्या मतलब? वैसे बाजी ये साधारण सा सूट भी आपके ऊपर बहुत खिल रहा है..
रूपा - हम्म.. कुछ साल पहले मुझे तोहफ़े में मिला था.. पाता है किसने दिया था?
करीम - नहीं.
रूपा - तेरी अम्मी ने. आज भी बहुत याद आती है वो.
करीम औऱ रूपा दोनों करीम की अम्मी खालीदा को याद करके भावुक हो चुके थे.. खालीदा भी उसी कोठे पर तवयाफ थी करीम को बहुत दिल से पाला था उसने. खालिदा की मौत के बाद करीम का ख्याल रूपा ने ही रखा था औऱ उसे ये ऑटोरिक्शा दिलाकर चलाने औऱ कोठे पर रंडियो की दलाली से दूर रहने के लिए कहा था.. थोड़ी सी रंजिश में करीम को उसीके दोस्तों ने नामर्द बना दिया था अब करीम अकेला था मगर खुश था.. उसे किसी चीज की जरुरत होती तो रूपा उसे मदद कर देती बदले में रूपा ने करीम की वफादारी खरीद ली थी..
MST update intzar rahega agle update kaUpdate - 6
पहाड़ी पर बने उस मन्दिरनुमा हाल के भीतर लोगों की समस्याओ को सुनकर उसका निवारण करने के उपाय बटाने वाले बाबाजी एक कोने में चटाई बिछकार अपनी पत्नी कजरी के साथ भोग में लिप्त थे की तभी एक सेवक ने आकर दरवाजे पर दस्तक दी जिससे बाबाजी के भोग में विघ्न पड़ गया औऱ वो भोग से उठकर बैठ गए औऱ कजरी भी अपने नंगे बदन को चादर से ढककर बैठ गई. बाबाजी ने बाहर जाकर उस सेवक से इस विघ्न की वजह पूछने लगे..
बाबाजी - क्या हुआ किशोर? इस तरह आधी रात को यहां आने का क्या कारण है?
किशोर अपने घुटनो पर बैठ गया औऱ दंडवत प्रणाम कर बोला - बाबाजी बात ही कुछ ऐसी है कि मुझे जंगल छोड़कर यहां इस वक़्त आपके पास आना ही पड़ा..
बाबाजी - ऐसा क्या हो गया किशोर कि सुबह तक का इंतजार करना भी तेरे लिए मुश्किल हो गया?
किशोर - माफ़ी चाहता हूँ बाबाजी पर बड़े बाबाजी ने अविलम्ब आपको उनके समक्ष उपस्थित होने का आदेश दिया है..
बाबाजी हैरानी से किशोर को देखते है एक शॉल को कंधे पर लपेटकर - अचानक उनका मुझे बुलाना.. जरूर कोई बात है.. चल किशोर..
बाबाजी किशोर के साथ हॉल से निकल जाते है औऱ कच्चे रास्ते से होते हुए पहाड़ी के पीछे जंगल की ओर नीचे उतरने लगते है.. वही कजरी अपने वस्त्रो को वापस बहन लेती है और असमंजस में अचानक बाबाजी के जाने का कारण सोचने लगती है..
बाबाजी - कुछ ओर भी कहाँ था उन्होंने?
किशोर - नहीं बस साधना से निकले तो तुरंत आपको बुलाने का हुक्म दे दिया..
बाबाजी - किसी सेवक से कोई चूक तो नहीं हुई उनकी सेवा में?
किशोर - चूक कैसी बाबाजी? सब जानते है चूक का परिणाम क्या हो सकता है. हर दिन जैसा ही सब कुछ आज भी हुआ, पर साधना से उठते ही उनके चेहरे पर अजीब भाव थे.
बाबाजी - अच्छा चल..
बाबाजी ओर किशोर पहाड़ी से नीचे उतरकर जंगल में आ गए जहाँ आने से कोई भी डर सकता था.. और किसी का आना वहा सामान्य भी नहीं था. जंगल के अंदर कुछ दूर जाकर एक कुटिया दिखाई पड़ी जिसके बाहर दो लोग पहरा दे रहे थे. बाबाजी किशोर के साथ उस कुटिया तक आ पहुचे फिर बाबाजी ने किशोर को रुकने का कहा और कुटिया के अंदर जाने के लिए दरवाजे पर दस्तक देते हुए बोले - गुरुदेव..
बड़े बाबाज़ी - अंदर आजा विरम..
बाबाजी कुटिया में प्रवेश करते हुए कुटिया में एक तरफ बैठकर चिल्लम पीते बड़े बाबाज़ी के चरणों में अपना मस्तक रखकर सामने अपने दोनों पैरों पर उसी तरह बैठ गए जिस तरह सुबह सुबह खेतो में गाँव के लोग अपना मल त्यागने के लिए पानी का लोटा लेकर बैठते है..
बाबाजी - आधी रात को अचानक बुलावाया है गुरुदेव. जरूर कोई बहुत बड़ा कारण होगा. आदेश करें गुरुदेव आपका ये शिष्य आपकी किस तरह सेवा कर सकता है?
बड़े बाबाजी - विरम.. वक़्त आने वाला है.. सेकड़ों सालों पहले मेरे किये गलत निर्णय को बदलने का.. मुझे कोई मिल गया है जो मेरा काम कर सकता है..
बाबाजी - ऐसा कौन है गुरुदेव? मैंने इतने सालों में लाखों लोगों के माथे की लकीरें पढ़ी है.. इसी उम्मीद में की काश कोई आये जो अपने पिछले जन्म में जाकर आपकी मदद कर सके.. पर आज तक ऐसा नहीं हुआ..
बड़े बाबाज़ी - जो मुझे 300 सालों से कहीं नहीं मिला वो मुझे इसी कुटिया मैं बैठे बैठे मिल गया विरम.. बस कुछ दिनों का इंतज़ार और..
बाबाजी - पर क्या वो आपका काम कर पायेगा?
बड़े बाबाजी - अगर कारण हो तो आदमी सब कुछ कर गुजरता है विरम.. बस उसे एक वजह देनी होगी, मैं जल्दी ही उसे सब समझाकर इस काम के लिए सज्य कर लूंगा.. उसके मासूम चेहरे और सादगी भरे स्वाभाव से लगता है वो जरूर आसानी से अपने पिछले जन्म में जाकर मेरी गलती को सुधार सकता है. मेरे लिए बैरागी को ढूंढ़ सकता है. और मेरे हाथों उसका क़त्ल होने से बचा सकता है.
बाबाजी - इस अंधियारे में जो रौशनी आपने दिखाई है गुरुदेव, उससे नई उम्मीद मेरे ह्रदय के अंदर पनपने लगी है.. जिस जड़ीबूटी को अमर होने की लालच में अमृत मानकर आपने ग्रहण किया था अब उसी जड़ीबूटी से आपकी मुक्ति भी होगी..
बड़े बाबाजी - लालच नर्क की यातनाओ के सामान है विराम.. मेरे अमर होने के लालच ने मुझको उसकी सजा दी है.. मैं भूल बैठा था की जीवन और मृत्यु प्रकृति का अद्भुत श्रृंगार है जिसे रोकने पर प्रकृति की मर्यादा भंग होती है..
बाबाजी - आप सही कह रहे है गुरुदेव. जिस तरह पहले आप पर अमर होने का लालच हावी थी अब मृत्यु का लालच हावी है.. लेकिन गुरुदेव? जिसे आपने ढूंढा है वो अपने पिछले जन्म कौन था? उसका कुल गौत्र और लिंग क्या था? वो आपके जागीर की सीमा के भीतर का निवासी था या बाहर का? अपने उसका पिछला जन्म तो देखा होगा?
बड़े बाबाजी - वो मेरी ही जागीर की सीमा के भीतर का निवासी है विरम. मैंने अभी उसका पिछला जन्म देखा है. वो हमारी ही सेना में एक सैनिक धुप सिंह का पुत्र समर है.. मगर एक अड़चन है विरम..
बाबाजी - क्या गुरुदेव? कैसी अड़चन?
बड़े बाबाजी - प्रेम की अड़चन विरम.. मुझे साफ साफ दिखाई दिया है की उसे किसी से प्रेम हो सकता है जो हमारे कार्य के लिए अड़चन बन सकती है.. वो वही का होकर रह सकता है.. और बैरागी को ढूंढने से मना करके जड़ीबूटी लेकर वापस आने से भी इंकार कर सकता है..
बाबाजी - इसका उपाय भी तो हो सकता है गुरुदेव, अगर उसके पास वापस आने की बहुत ठोस वजह हो तो? अगर उसे वापस आना ही पड़े तो?
बड़े बाबाजी - इसीके वास्ते तुझे याद किया है विरम..
बाबाजी - मैं समझा नहीं गुरुदेव..
बड़े बाबाजी - बड़े दुख की बात है विरम की जो तुझे खुद से समझ जाना चाहिए वो तू मुझसे सुनना चाहता है.. मैंने पिछले 40 साल में तुझे इस प्रकर्ति के बहुत से रहस्य बताये है जिनसे तूने हज़ारो लोगों की मदद की. लेकिन तू अपनी मदद नहीं कर पाया. जब तू 16 साल की उम्र में घर से मरने की सोचके निकला था तब से लेकर आज तक मैंने हर बार तेरा मार्गदर्शन किया है. एकलौता तू ही है जिसे मैंने अपना रहस्य भी बताया है. पूरी दुनिया के सामने अपना छोटा भाई बनाकर रखा है.. मैंने अपनी पिछले 350 की जिंदगी में जितने भी रहस्य इस धरती और प्रकर्ति के बारे में जाने है उनमे से जो तेरे जानने लायक थे लगभग सही तुझे बता दिए है.. उनसे तो तुझे मालूम होना चाहिए था की मैं क्या कहा रहा हूँ..
बाबाजी - गुरुदेव. ये सत्य है की आज से 40 साल पहले जब मुझे मेरे घर से निकाल दिया गया था तब से लेकर आज तक आपने मुझे संभाला है. रास्ता दिखाया है. इस बार भी इस नादान को बताये गुरुदेव. मैं क्या कर सकता हूँ आपके लिए?
बड़े बाबाजी - विरम मैं जिस लड़के की बात कर रहा हूँ उसकी माँ तेरे मठ में आती है. तुझे उसे एक काम के लिए मनाना होगा.. क्युकी उसके बिना उस लड़के का वापस आना मुश्किल है..
बाबाजी - आप बताइये गुरुदेव, क्या करने के लिए मनाना होगा मुझे उस औरत को?
बड़े बाबाजी - ठीक है विरम, सुन..
बड़े बाबाज़ी अपनी बात कहना शुरुआत करते है जिसे बाबाजी उर्फ़ विरम ध्यान से सुनता है और समझ जाता है.. उसके बाद बड़े बाबाजी से विदा लेकर वापस मठ की और चला जाता है..
बड़े बाबाज़ी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह 325 साल पहले अजमेर की एक जागीर के जागीरदार थे और उनका अपना एक महल था सैकड़ो नौकरचाकर और इसीके साथ राजासाब की सेना की एक टुकड़ी भी हर दम बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह के महल की सुरक्षा में तनात रहती थी. 1699 में वीरेंद्र सिंह इस महल में एक राजा की तरह ही राज कर रहा था. वीरेंद्र सिंह का रुझान हकीमी और जादू टोने में बहुत ही ज्यादा था.. उसने सबसे छुपकर कई लोगों से इसका ज्ञान भी लेना शुरू कर दिया था और वैध की औषधियों के बारे में भी जानना जारी रखा..
बैरागी नाम के एक मुसाफिर आदमी की मदद से वीरेंद्र ने एक ऐसे पौधे को जमीन से उगवाया जो हज़ार साल में एक बार ही उग सकता है, जिससे आदमी अपनी उम्र के 11 गुना लम्बे समय तक ज़िंदा रह सकता है.. और अमर होने की लालच में आकर वीरेंद्र सिंह ने उस पौधे से मिली जड़ीबूटी का सेवन कर लिया..
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह ने जड़ीबूटी का सेवन तो कर लिया मगर उसकी उम्र बढ़ना नहीं रुकी. जब उसने जड़ीबूटी खाई थी तब उसकी उम्र 35 साल थी और उसे लगा था की अब वो अमर हो जाएगा मगर.. धीरे धीरे उसकी उम्र बढ़ती गई जिससे वीरेंद्र सिंह को लगा की इस जड़ीबूटी का कोई असर नहीं हुआ और ये उसे अमर नहीं कर पाई.. वीरेंद्र सिंह ने गुस्से में आकर जड़ीबूटी बनाने वाले आदमी जिसे सब बैरागी के नाम से जानते थे को मरवा दिया.
लेकिन जब धीरे धीरे बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह 73 साल का हुआ तो उसकी उम्र बढ़ना रुक गई और फिर उसे समझ आया की उस जड़ीबूटी का असर आदमी के मरने की उम्र गुजरने के बाद शुरू होता है और जितने साल उसकी जिंदगी होती है उसके गयराह गुना साल आगे वो और ज़िंदा रह सकता है.. वीरेंद्र पहले तो ये सोचके बहुत ख़ुशी हुई की अब वो अपनी उम्र 73 साल के 11 गुना मतलब लगभग 800 साल ज़िंदा रहेगा मगर कुछ दिनों बाद ही उसे समझ आ गया की बैरागी को मारवा कर उसने बहुत गलत किया है.. 73 साल इस उम्र में उसका 800 साल ज़िंदा रहना वरदान नहीं अभिश्राप था.. ना तो भोग कर सकता था ना ही जीवन के वो सुख भोग सकता था जो जवानी आदमी को भोगने का अवसर देती है..
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह अब अपने फैसले पर बहुत दुखी हुआ और फिर उसने अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया की उसे वही जड़ी बूटी वापस बनाकर अपनी ये जिंदगी समाप्त करनी है.. इसके लिए सालों साल वीरेंद्र सिंह उर्फ़ बड़े बाबाजी ने बड़े बड़े सिद्ध महात्मा, अघोरी और तांत्रिक की सेवा कर उनसे ज्ञान और रहस्य की जानकारी ली और हमारी धरती के बारे में बहुत सी बातें जानी. यहां जो आयाम है उसके बारे में जाना और बहुत बार भेस बदलकर लोगों से मिलते हुए वीरेंद्र सिंह ने इतनी जानकारी और ताकत हासिल कर ली और इस प्रकृति के कुछ रहस्य जान गया. वह अब ये जान गया था कि अगर कोई आदमी जिसका पिछला जन्म उसी वक़्त हो जब वीरेंद्र वो जड़ी बूटी बनवाने वाला था.. तभी उसका काम हो सकता है.. और वो इस अभिश्राप से बच सकता है..
वीरेंद्र सिंह उर्फ़ बड़े बाबाज़ी ने गौतम को ढूंढ़ लिया था गौतम पिछले जन्म में वीरेंद्र सिंह के सिपाही का लड़का था.. अब वीरेंद्र सिंह उर्फ़ बड़े बाबाजी यह चाहते थे कि गौतम अपने पिछले जन्म में जाकर बैरागी को ढूंढे और उससे वो जड़ीबूटी बनवा कर उसे वर्तमान में लाकर दे दे.. ताकि 350 सालों से इस उम्र में अटके बड़े बाबाजी के प्राण बह जाए और उनकी मुक्ति हो..
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सुबह जब गौतम की आँख खुली तो सामने का नज़ारा देखकर उसका लंड रबर के ढीले पाईप से लोहे की टाइट रोड जैसा तन गया जिसे उसने सोने का नाटक करते हुए छीपा लिया..
आज गौतम की आँख औऱ दिनों के बनिस्पत जल्दी खुल गई थी औऱ उसने अभी अभी नहाकर आई अपनी माँ सुमन की टाइट बाहर निकली हुई नंगी गोरी गांड देखी जिसे सुमन ने चड्डी पहनकर अब ढक लिया था औऱ बाकी कपडे पहनने लगी थी.. गौतम सोने का नाटक करते हुए सारा नज़ारा देखने लगा जब सुमन कपडे पहन कर बाहर चली गई तो आपने लंड को मसलते हुए सुमन की गांड याद करने लगा.. करीब आधे घंटे वैसा ही करने के बाद गौतम उठ गया औऱ कमरे में जाकर बाथरूम करके वापस आपने बेड पर सो गया जिसे एक घंटे बाद चाय लेकर आई सुमन ने बड़े लाड प्यार औऱ नाजुकी से उठा दिया..
सुमन - उठ जा मेरी सल्तनत के बिगड़ैल शहजादे.. बाबाजी के भी चलना है.. चाय पीले औऱ नहा ले जाकर..
गौतम अंगड़ाई लेकर उठ खड़ा होता है औऱ चाय पीकर उसी तरह खिड़की से बाहर देखता है.. तभी उसका फोन बजने लगता है..
गौतम - हेलो.. ज़ी? MK ज्वेलर्स से? हां बोल रहा हूँ.. अच्छा अच्छा.. ज़ी रात को बात हुई थी.. मगर.. नहीं वापस बात कर सकते है उस बारे में.. सुनिए.. हेलो..
फ़ोन कट गया था..
गौतम मन में - अरे यार किस्मत में लोडे लिखें है. एक ऑफर आया था वो भी गया नाली में..
गौतम जैसे ही फ़ोन काटता है उसके फ़ोन पर किसी औऱ का फ़ोन आने लगता है..
गौतम - हेलो..
सामने से कोई औरत थी - हेलो ग़ुगु..?
गौतम - हाँ.. पिंकी बुआ बोलो..
पिंकी -35
पिंकी - ग़ुगु.. पापा कहाँ है?
गौतम - वो तो अभी थाने में है.. आजकल नाईट शिफ्ट है औऱ पोस्टिंग घर से थोडी दूर ग्रामीण इलाके में है तो घर देर से आते है.. 10 बजे तक आ जायेंगे..
पिंकी - ग़ुगु.. भईया से कहना मैं शाम को घर रही हूँ..
गौतम - क्यू मतलब कब? आज शाम की ट्रैन से?
पिंकी - ट्रैन से नहीं मेरे ग़ुगु.. गाडी से.. पर तू खुश नहीं है क्या मेरे आने से? लगता बहुत उल्टी सीधी पट्टी पढ़ा दी तेरी माँ ने तुझे अपनी बुआ के बारे में..
गौतम - अरे बुआ आप क्या बच्चों वाली बात कर रही हो.. मुझसे ज्यादा कोई खुश हो सकता है आपके आने पर? जल्दी से आ जाओ, आपसे ढेर सारी बात करनी है..
पिंकी - ओहो मेरा ग़ुगु इतना याद करता है अपनी बुआ को? पहले पता होता तो पहले आ जाती.. बता तुझे क्या चाहिए? क्या लाऊँ तेरे लिए?
गौतम - मुझे कुछ नहीं चाहिए बुआ? आप जल्दी से आकर मुझे मेरे गाल पर मेरी किस्सीया देदो उतना काफी है मेरे लिए..
पिंकी - ओह... मेरे ग़ुगु को हग भी मिलेगा औऱ किस्सी मिलेगी.. गाल पर भी औऱ लिप्स पर भी. तेरी बुआ कोई पुराने जमाने की थोड़ी है..
गौतम - बुआ माँ से बात करोगी?
पिंकी - अरे नहीं.. रहने दे ग़ुगु.. तेरी माँ पहले ही मुझसे चिढ़ती है.. तेरी माँ को तो मैं खुद आकर सरप्राइज दूंगी..
गौतम - सरप्राइज ही देना बुआ.. अटैक मत दे देना.. चलो मैं रखता हूँ,
पिंकी - ग़ुगु.. तू बस एड्रेस massage कर दे मुझे.. सरप्राइज तो देना है तेरी माँ को..
गौतम - ठीक है बुआ.. अभी करता हूँ..
पिंकी - ग़ुगु.. मन कर रहा है अभी फ़ोन में घुसके तुझे किस्सी कर लू..
गौतम - मैं वेट कर लूंगा शाम तक आपकी किस्सी का.. आप आराम से आ जाओ.. बाय बुआ..
पिंकी - बाये ग़ुगु.. अपना ख्याल रखना..
गौतम फ़ोन काटकर नहाने चला जाता है औऱ नहाकर एक डार्क नवी ब्लू शर्ट एंड लाइट ब्लू जीन्स के साथ वाइट शूज दाल लेटा है जिसमे आज बहुत प्यारा औऱ खूबसूरत लग रहा था.. उसे देखकर कोई भी कह सकता था की ग़ुगु आज भी स्कूल ही जाता होगा.. गौतम इतना मासूम औऱ मनभावन लग रहा था की सुमन ने आज घर से बाहर निकलने से पहले उसे कान के पीछे काला टिका लगा दिया था.. दोनों बाइक पर बैठके बाबाजी के पास चल पड़े थे..
सुमन - आज पेट्रोल नहीं भरवाना?
गौतम - नहीं माँ, है बाइक में तेल..
सुमन - अच्छा ज़ी.. औऱ कुछ खाना नहीं है रास्ते में?
गौतम - भूख नहीं है आपको खाना है?
सुमन - अगर मेरा ग़ुगु खायेगा तो मैं भी खा लुंगी..
गौतम थोड़ा आगे उसी कोटा कचोरी वाले की दूकान ओर बाइक रोक देता है औऱ जाकर कचोरी लेने लगता है तभी उसका फ़ोन बजता है..
गौतम - हेलो..
रूपा - मेरा बच्चा कहा है?
गौतम - अरे यार वो बाबाजी नहीं है *** पहाड़ी वाले? उनके पास जा रहा हूँ माँ को लेकर..
रूपा - अच्छा ज़ी माँ को लेकर जा रहे हो औऱ अपनी इस मम्मी से पूछा तक नहीं चलने के लिए?
गौतम - मैं नहीं मानता किसी बाबा-वाबा को.. माँ मुझे लेकर जा रही है.. वैसे सुबह सुबह कैसे याद कर लिया?
रूपा - अरे ये क्या बात हुई भला? अब मैं अपने बच्चे को याद भी नहीं कर सकती?
गौतम - मम्मी यार रास्ते में हूँ पहुँचके फ़ोन करता हूँ..
रूपा - अरे सुनो तो..
गौतम - जल्दी बोलो..
रूपा - कुछ नहीं रहने दो जाओ..
गौतम - ठीक है बाद में बात करता हूँ..
गौतम फ़ोन काट कर कचोरी ले आता है..
गौतम - माँ लो..
सुमन गौतम से कचोरी लेकर खाने लगती है औऱ कहती है..
सुमन - क्या बात है? कल रात को खाने का बिल औऱ आज गाडी में तेल फुल? कचोरी के पैसे भी नहीं मांगे तुने मुझसे? कोई लाटरी लगी है तेरी?
गौतम - कुछ नहीं माँ वो पुरानी कुछ सेविंग्स थी मेरे पास तो बस..
सुमन - अच्छा ज़ी? पर सेविंग तो आगे के काम के लिए बचा के रखते है ना? तू खर्चा क्यू कर रहा है?
गौतम - अब नहीं करुंगा माँ.. कितने सवाल पूछती हो आप इतनी छोटी बात के लिए?
सुमन - छोटी सी बात? तेरे छोटी बात होगी मेरे लिए नहीं है.. मुझे मेरा वही ग़ुगु चाहिए.. जो पेट्रोल से लेकर कचोरी तक चीज पर कमीशन खाता है..
गौतम - अच्छा ठीक है मेरी माँ.. अब चलो वैसे भी आज ज्यादा भीड़ मिलेगी आपके बाबाजी के.. अंधभगतो की गिनती बढ़ती जा रही है इस देश में..
सुमन - ठीक है मेरे ग़ुगु महाराज.. चलिए..
गौतम सुमन को बाइक पर बैठाकर बाबाजी की तरफ चल पड़ता है वही रूपा के मन में भी गौतम को देखने की तलब मचने लगती है और वो करीम को फ़ोन करती है..
रूपा - हेलो करीम..
करीम - सलाम बाजी..
रूपा - कहा है तू?
करीम - बाजी, सवारी लेने निकला हूँ स्टेशन छोडके आना है..
रूपा - आज तेरी बुक मेरे साथ है.. सबकुछ छोड़ औऱ कोठे पर आ जल्दी.. कहीं जाना है..
करीम - जैसा आप कहो बाजी.. अभी 5 मिनट में हाज़िर होता हूँ..
रूपा करीम से बात करके आईने के सामने खड़ी होकर आपने आपको निहारने लगती है.. सर से पैर तक बदन पर लदे कीमती कपडे औऱ जेबरात उसे ना जाने क्यू बोझ लगने लगे थे. आज उसका दिल कुछ साधारण औऱ आम सा पहनने का था. उसने अपने कमरे की दोनों अलमीराओ का दरवाजा खोल दिया औऱ कपडे देखने लगी, कुछ देर तलाशने के बाद उसे एक पुराना सूट जो कई बरस पहले करीम की इंतेक़ाल हो चुकी अम्मी ने उसे तोहफ़े में दिया था रूपा ने निकाल लिया औऱ अपने कीमती लिबास औऱ गहनो को उतारकर वो सूट पहन लिया.. फिर एक साधारण घरेलु महिलाओ की तरह माथे पर बिंदिया आँखों में काजल औऱ होंठों पर हलकी लाली लगाकर बाल बनाना शुरु कर दिया..
इतने में करीम का फ़ोन आ गया औऱ उसने नीचे खड़े होने की बात कही..
रूपा जब अपने कमरे से निकल कर बाहर जाने लगी तो रेखा काकी ने उसके इस रूप को देखकर अचंभित होते हुए कहा..
रेखा काकी - कहो रूपा रानी.. आज विलासयता त्याग कर ये क्या भेस बनाई हो?
रूपा - दीदी वो आज एक साधु बाबा के यहां जा रही हूँ तो सोचा कुछ साधारण पहन लू.
रेखा काकी - साधारण भी तुझपर महंगा लगता है रूपा रानी.. तेरा रूप तो इस लिबास में औऱ भी खिल कर सामने आ गया.. आज भी याद है, पहले पहल जब तू यहां आई थी तब इसी तरह के लिबास में अपने रूप से लोगों का मन मोह लिया करती थी.. मेरी चमक को कैसे तूने अपने इस हुस्न से फीका कर दिया था.
रूपा - आपकी चमक तो आज भी उसी तरह बरकरार है दीदी, जिस तरह जगताल के कोठो की ये बदनाम गालिया.. मैं तो कुछ दिनों की चांदनी थी अमावस आते आते बुझ गई..
रेखा काकी - ऐसा बोलकर मुझे गाली मत दे रूपा... मैं तेरा मर्ज़ तो जानती थी पर कभी तेरे मर्ज़ का मरहम तुझे नहीं दे पाई.. जो सपना तेरा है वो मैं भी कभी अपनी आँखों से देखा करती थी.. पर तवायफ के नसीब में सिर्फ कोठा ही होता है..
रूपा - मेरा सपना तो बहुत पहले टूट चूका है दीदी, कब रूपा रानी से रूपा मौसी बन गई पता ही नहीं चला.. अच्छा चलती हूँ आते आते शायद शाम हो जाएगी.
रूपा रेखा से विदा लेकर कोठे के बाहर करीम की रिक्शा में आ जाती है यहां करीम सादे लिबाज़ में रूपा को देखकर हैरात में पड़ जाता है मगर कुछ नहीं बोलता..
करीम - कहाँ चलना है बाजी?
रूपा - *** पहाड़ी पर कोई बाबा है उसके यहां..
करीम - पर आप तो मेरी तरह ऐसे बाबाओ औऱ खुदा पर यक़ीन ही नहीं करती थी..
रूपा - यक़ीन तो आज भी नहीं करीम.. पर सोचा मांग के देख लू शायद कोई चमत्कार हो जाए..
करीम - जैसा आप बोलो..
रूपा - करीम.
करीम - हाँ बाजी..
रूपा - तुझे बुरा तो नहीं लगा मैंने अचानक तुझे बुला लिया..
करीम - बुरा किस बात का बाजी, ये ऑटोरिक्शा आपने ही तो दिलवाया है अब आपके ही काम नहीं आएगा तो फिर इसका क्या मतलब? वैसे बाजी ये साधारण सा सूट भी आपके ऊपर बहुत खिल रहा है..
रूपा - हम्म.. कुछ साल पहले मुझे तोहफ़े में मिला था.. पाता है किसने दिया था?
करीम - नहीं.
रूपा - तेरी अम्मी ने. आज भी बहुत याद आती है वो.
करीम औऱ रूपा दोनों करीम की अम्मी खालीदा को याद करके भावुक हो चुके थे.. खालीदा भी उसी कोठे पर तवयाफ थी करीम को बहुत दिल से पाला था उसने. खालिदा की मौत के बाद करीम का ख्याल रूपा ने ही रखा था औऱ उसे ये ऑटोरिक्शा दिलाकर चलाने औऱ कोठे पर रंडियो की दलाली से दूर रहने के लिए कहा था.. थोड़ी सी रंजिश में करीम को उसीके दोस्तों ने नामर्द बना दिया था अब करीम अकेला था मगर खुश था.. उसे किसी चीज की जरुरत होती तो रूपा उसे मदद कर देती बदले में रूपा ने करीम की वफादारी खरीद ली थी..
Update - 6
पहाड़ी पर बने उस मन्दिरनुमा हाल के भीतर लोगों की समस्याओ को सुनकर उसका निवारण करने के उपाय बटाने वाले बाबाजी एक कोने में चटाई बिछकार अपनी पत्नी कजरी के साथ भोग में लिप्त थे की तभी एक सेवक ने आकर दरवाजे पर दस्तक दी जिससे बाबाजी के भोग में विघ्न पड़ गया औऱ वो भोग से उठकर बैठ गए औऱ कजरी भी अपने नंगे बदन को चादर से ढककर बैठ गई. बाबाजी ने बाहर जाकर उस सेवक से इस विघ्न की वजह पूछने लगे..
बाबाजी - क्या हुआ किशोर? इस तरह आधी रात को यहां आने का क्या कारण है?
किशोर अपने घुटनो पर बैठ गया औऱ दंडवत प्रणाम कर बोला - बाबाजी बात ही कुछ ऐसी है कि मुझे जंगल छोड़कर यहां इस वक़्त आपके पास आना ही पड़ा..
बाबाजी - ऐसा क्या हो गया किशोर कि सुबह तक का इंतजार करना भी तेरे लिए मुश्किल हो गया?
किशोर - माफ़ी चाहता हूँ बाबाजी पर बड़े बाबाजी ने अविलम्ब आपको उनके समक्ष उपस्थित होने का आदेश दिया है..
बाबाजी हैरानी से किशोर को देखते है एक शॉल को कंधे पर लपेटकर - अचानक उनका मुझे बुलाना.. जरूर कोई बात है.. चल किशोर..
बाबाजी किशोर के साथ हॉल से निकल जाते है औऱ कच्चे रास्ते से होते हुए पहाड़ी के पीछे जंगल की ओर नीचे उतरने लगते है.. वही कजरी अपने वस्त्रो को वापस बहन लेती है और असमंजस में अचानक बाबाजी के जाने का कारण सोचने लगती है..
बाबाजी - कुछ ओर भी कहाँ था उन्होंने?
किशोर - नहीं बस साधना से निकले तो तुरंत आपको बुलाने का हुक्म दे दिया..
बाबाजी - किसी सेवक से कोई चूक तो नहीं हुई उनकी सेवा में?
किशोर - चूक कैसी बाबाजी? सब जानते है चूक का परिणाम क्या हो सकता है. हर दिन जैसा ही सब कुछ आज भी हुआ, पर साधना से उठते ही उनके चेहरे पर अजीब भाव थे.
बाबाजी - अच्छा चल..
बाबाजी ओर किशोर पहाड़ी से नीचे उतरकर जंगल में आ गए जहाँ आने से कोई भी डर सकता था.. और किसी का आना वहा सामान्य भी नहीं था. जंगल के अंदर कुछ दूर जाकर एक कुटिया दिखाई पड़ी जिसके बाहर दो लोग पहरा दे रहे थे. बाबाजी किशोर के साथ उस कुटिया तक आ पहुचे फिर बाबाजी ने किशोर को रुकने का कहा और कुटिया के अंदर जाने के लिए दरवाजे पर दस्तक देते हुए बोले - गुरुदेव..
बड़े बाबाज़ी - अंदर आजा विरम..
बाबाजी कुटिया में प्रवेश करते हुए कुटिया में एक तरफ बैठकर चिल्लम पीते बड़े बाबाज़ी के चरणों में अपना मस्तक रखकर सामने अपने दोनों पैरों पर उसी तरह बैठ गए जिस तरह सुबह सुबह खेतो में गाँव के लोग अपना मल त्यागने के लिए पानी का लोटा लेकर बैठते है..
बाबाजी - आधी रात को अचानक बुलावाया है गुरुदेव. जरूर कोई बहुत बड़ा कारण होगा. आदेश करें गुरुदेव आपका ये शिष्य आपकी किस तरह सेवा कर सकता है?
बड़े बाबाजी - विरम.. वक़्त आने वाला है.. सेकड़ों सालों पहले मेरे किये गलत निर्णय को बदलने का.. मुझे कोई मिल गया है जो मेरा काम कर सकता है..
बाबाजी - ऐसा कौन है गुरुदेव? मैंने इतने सालों में लाखों लोगों के माथे की लकीरें पढ़ी है.. इसी उम्मीद में की काश कोई आये जो अपने पिछले जन्म में जाकर आपकी मदद कर सके.. पर आज तक ऐसा नहीं हुआ..
बड़े बाबाज़ी - जो मुझे 300 सालों से कहीं नहीं मिला वो मुझे इसी कुटिया मैं बैठे बैठे मिल गया विरम.. बस कुछ दिनों का इंतज़ार और..
बाबाजी - पर क्या वो आपका काम कर पायेगा?
बड़े बाबाजी - अगर कारण हो तो आदमी सब कुछ कर गुजरता है विरम.. बस उसे एक वजह देनी होगी, मैं जल्दी ही उसे सब समझाकर इस काम के लिए सज्य कर लूंगा.. उसके मासूम चेहरे और सादगी भरे स्वाभाव से लगता है वो जरूर आसानी से अपने पिछले जन्म में जाकर मेरी गलती को सुधार सकता है. मेरे लिए बैरागी को ढूंढ़ सकता है. और मेरे हाथों उसका क़त्ल होने से बचा सकता है.
बाबाजी - इस अंधियारे में जो रौशनी आपने दिखाई है गुरुदेव, उससे नई उम्मीद मेरे ह्रदय के अंदर पनपने लगी है.. जिस जड़ीबूटी को अमर होने की लालच में अमृत मानकर आपने ग्रहण किया था अब उसी जड़ीबूटी से आपकी मुक्ति भी होगी..
बड़े बाबाजी - लालच नर्क की यातनाओ के सामान है विराम.. मेरे अमर होने के लालच ने मुझको उसकी सजा दी है.. मैं भूल बैठा था की जीवन और मृत्यु प्रकृति का अद्भुत श्रृंगार है जिसे रोकने पर प्रकृति की मर्यादा भंग होती है..
बाबाजी - आप सही कह रहे है गुरुदेव. जिस तरह पहले आप पर अमर होने का लालच हावी थी अब मृत्यु का लालच हावी है.. लेकिन गुरुदेव? जिसे आपने ढूंढा है वो अपने पिछले जन्म कौन था? उसका कुल गौत्र और लिंग क्या था? वो आपके जागीर की सीमा के भीतर का निवासी था या बाहर का? अपने उसका पिछला जन्म तो देखा होगा?
बड़े बाबाजी - वो मेरी ही जागीर की सीमा के भीतर का निवासी है विरम. मैंने अभी उसका पिछला जन्म देखा है. वो हमारी ही सेना में एक सैनिक धुप सिंह का पुत्र समर है.. मगर एक अड़चन है विरम..
बाबाजी - क्या गुरुदेव? कैसी अड़चन?
बड़े बाबाजी - प्रेम की अड़चन विरम.. मुझे साफ साफ दिखाई दिया है की उसे किसी से प्रेम हो सकता है जो हमारे कार्य के लिए अड़चन बन सकती है.. वो वही का होकर रह सकता है.. और बैरागी को ढूंढने से मना करके जड़ीबूटी लेकर वापस आने से भी इंकार कर सकता है..
बाबाजी - इसका उपाय भी तो हो सकता है गुरुदेव, अगर उसके पास वापस आने की बहुत ठोस वजह हो तो? अगर उसे वापस आना ही पड़े तो?
बड़े बाबाजी - इसीके वास्ते तुझे याद किया है विरम..
बाबाजी - मैं समझा नहीं गुरुदेव..
बड़े बाबाजी - बड़े दुख की बात है विरम की जो तुझे खुद से समझ जाना चाहिए वो तू मुझसे सुनना चाहता है.. मैंने पिछले 40 साल में तुझे इस प्रकर्ति के बहुत से रहस्य बताये है जिनसे तूने हज़ारो लोगों की मदद की. लेकिन तू अपनी मदद नहीं कर पाया. जब तू 16 साल की उम्र में घर से मरने की सोचके निकला था तब से लेकर आज तक मैंने हर बार तेरा मार्गदर्शन किया है. एकलौता तू ही है जिसे मैंने अपना रहस्य भी बताया है. पूरी दुनिया के सामने अपना छोटा भाई बनाकर रखा है.. मैंने अपनी पिछले 350 की जिंदगी में जितने भी रहस्य इस धरती और प्रकर्ति के बारे में जाने है उनमे से जो तेरे जानने लायक थे लगभग सही तुझे बता दिए है.. उनसे तो तुझे मालूम होना चाहिए था की मैं क्या कहा रहा हूँ..
बाबाजी - गुरुदेव. ये सत्य है की आज से 40 साल पहले जब मुझे मेरे घर से निकाल दिया गया था तब से लेकर आज तक आपने मुझे संभाला है. रास्ता दिखाया है. इस बार भी इस नादान को बताये गुरुदेव. मैं क्या कर सकता हूँ आपके लिए?
बड़े बाबाजी - विरम मैं जिस लड़के की बात कर रहा हूँ उसकी माँ तेरे मठ में आती है. तुझे उसे एक काम के लिए मनाना होगा.. क्युकी उसके बिना उस लड़के का वापस आना मुश्किल है..
बाबाजी - आप बताइये गुरुदेव, क्या करने के लिए मनाना होगा मुझे उस औरत को?
बड़े बाबाजी - ठीक है विरम, सुन..
बड़े बाबाज़ी अपनी बात कहना शुरुआत करते है जिसे बाबाजी उर्फ़ विरम ध्यान से सुनता है और समझ जाता है.. उसके बाद बड़े बाबाजी से विदा लेकर वापस मठ की और चला जाता है..
बड़े बाबाज़ी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह 325 साल पहले अजमेर की एक जागीर के जागीरदार थे और उनका अपना एक महल था सैकड़ो नौकरचाकर और इसीके साथ राजासाब की सेना की एक टुकड़ी भी हर दम बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह के महल की सुरक्षा में तनात रहती थी. 1699 में वीरेंद्र सिंह इस महल में एक राजा की तरह ही राज कर रहा था. वीरेंद्र सिंह का रुझान हकीमी और जादू टोने में बहुत ही ज्यादा था.. उसने सबसे छुपकर कई लोगों से इसका ज्ञान भी लेना शुरू कर दिया था और वैध की औषधियों के बारे में भी जानना जारी रखा..
बैरागी नाम के एक मुसाफिर आदमी की मदद से वीरेंद्र ने एक ऐसे पौधे को जमीन से उगवाया जो हज़ार साल में एक बार ही उग सकता है, जिससे आदमी अपनी उम्र के 11 गुना लम्बे समय तक ज़िंदा रह सकता है.. और अमर होने की लालच में आकर वीरेंद्र सिंह ने उस पौधे से मिली जड़ीबूटी का सेवन कर लिया..
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह ने जड़ीबूटी का सेवन तो कर लिया मगर उसकी उम्र बढ़ना नहीं रुकी. जब उसने जड़ीबूटी खाई थी तब उसकी उम्र 35 साल थी और उसे लगा था की अब वो अमर हो जाएगा मगर.. धीरे धीरे उसकी उम्र बढ़ती गई जिससे वीरेंद्र सिंह को लगा की इस जड़ीबूटी का कोई असर नहीं हुआ और ये उसे अमर नहीं कर पाई.. वीरेंद्र सिंह ने गुस्से में आकर जड़ीबूटी बनाने वाले आदमी जिसे सब बैरागी के नाम से जानते थे को मरवा दिया.
लेकिन जब धीरे धीरे बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह 73 साल का हुआ तो उसकी उम्र बढ़ना रुक गई और फिर उसे समझ आया की उस जड़ीबूटी का असर आदमी के मरने की उम्र गुजरने के बाद शुरू होता है और जितने साल उसकी जिंदगी होती है उसके गयराह गुना साल आगे वो और ज़िंदा रह सकता है.. वीरेंद्र पहले तो ये सोचके बहुत ख़ुशी हुई की अब वो अपनी उम्र 73 साल के 11 गुना मतलब लगभग 800 साल ज़िंदा रहेगा मगर कुछ दिनों बाद ही उसे समझ आ गया की बैरागी को मारवा कर उसने बहुत गलत किया है.. 73 साल इस उम्र में उसका 800 साल ज़िंदा रहना वरदान नहीं अभिश्राप था.. ना तो भोग कर सकता था ना ही जीवन के वो सुख भोग सकता था जो जवानी आदमी को भोगने का अवसर देती है..
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह अब अपने फैसले पर बहुत दुखी हुआ और फिर उसने अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया की उसे वही जड़ी बूटी वापस बनाकर अपनी ये जिंदगी समाप्त करनी है.. इसके लिए सालों साल वीरेंद्र सिंह उर्फ़ बड़े बाबाजी ने बड़े बड़े सिद्ध महात्मा, अघोरी और तांत्रिक की सेवा कर उनसे ज्ञान और रहस्य की जानकारी ली और हमारी धरती के बारे में बहुत सी बातें जानी. यहां जो आयाम है उसके बारे में जाना और बहुत बार भेस बदलकर लोगों से मिलते हुए वीरेंद्र सिंह ने इतनी जानकारी और ताकत हासिल कर ली और इस प्रकृति के कुछ रहस्य जान गया. वह अब ये जान गया था कि अगर कोई आदमी जिसका पिछला जन्म उसी वक़्त हो जब वीरेंद्र वो जड़ी बूटी बनवाने वाला था.. तभी उसका काम हो सकता है.. और वो इस अभिश्राप से बच सकता है..
वीरेंद्र सिंह उर्फ़ बड़े बाबाज़ी ने गौतम को ढूंढ़ लिया था गौतम पिछले जन्म में वीरेंद्र सिंह के सिपाही का लड़का था.. अब वीरेंद्र सिंह उर्फ़ बड़े बाबाजी यह चाहते थे कि गौतम अपने पिछले जन्म में जाकर बैरागी को ढूंढे और उससे वो जड़ीबूटी बनवा कर उसे वर्तमान में लाकर दे दे.. ताकि 350 सालों से इस उम्र में अटके बड़े बाबाजी के प्राण बह जाए और उनकी मुक्ति हो..
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सुबह जब गौतम की आँख खुली तो सामने का नज़ारा देखकर उसका लंड रबर के ढीले पाईप से लोहे की टाइट रोड जैसा तन गया जिसे उसने सोने का नाटक करते हुए छीपा लिया..
आज गौतम की आँख औऱ दिनों के बनिस्पत जल्दी खुल गई थी औऱ उसने अभी अभी नहाकर आई अपनी माँ सुमन की टाइट बाहर निकली हुई नंगी गोरी गांड देखी जिसे सुमन ने चड्डी पहनकर अब ढक लिया था औऱ बाकी कपडे पहनने लगी थी.. गौतम सोने का नाटक करते हुए सारा नज़ारा देखने लगा जब सुमन कपडे पहन कर बाहर चली गई तो आपने लंड को मसलते हुए सुमन की गांड याद करने लगा.. करीब आधे घंटे वैसा ही करने के बाद गौतम उठ गया औऱ कमरे में जाकर बाथरूम करके वापस आपने बेड पर सो गया जिसे एक घंटे बाद चाय लेकर आई सुमन ने बड़े लाड प्यार औऱ नाजुकी से उठा दिया..
सुमन - उठ जा मेरी सल्तनत के बिगड़ैल शहजादे.. बाबाजी के भी चलना है.. चाय पीले औऱ नहा ले जाकर..
गौतम अंगड़ाई लेकर उठ खड़ा होता है औऱ चाय पीकर उसी तरह खिड़की से बाहर देखता है.. तभी उसका फोन बजने लगता है..
गौतम - हेलो.. ज़ी? MK ज्वेलर्स से? हां बोल रहा हूँ.. अच्छा अच्छा.. ज़ी रात को बात हुई थी.. मगर.. नहीं वापस बात कर सकते है उस बारे में.. सुनिए.. हेलो..
फ़ोन कट गया था..
गौतम मन में - अरे यार किस्मत में लोडे लिखें है. एक ऑफर आया था वो भी गया नाली में..
गौतम जैसे ही फ़ोन काटता है उसके फ़ोन पर किसी औऱ का फ़ोन आने लगता है..
गौतम - हेलो..
सामने से कोई औरत थी - हेलो ग़ुगु..?
गौतम - हाँ.. पिंकी बुआ बोलो..
पिंकी -35
पिंकी - ग़ुगु.. पापा कहाँ है?
गौतम - वो तो अभी थाने में है.. आजकल नाईट शिफ्ट है औऱ पोस्टिंग घर से थोडी दूर ग्रामीण इलाके में है तो घर देर से आते है.. 10 बजे तक आ जायेंगे..
पिंकी - ग़ुगु.. भईया से कहना मैं शाम को घर रही हूँ..
गौतम - क्यू मतलब कब? आज शाम की ट्रैन से?
पिंकी - ट्रैन से नहीं मेरे ग़ुगु.. गाडी से.. पर तू खुश नहीं है क्या मेरे आने से? लगता बहुत उल्टी सीधी पट्टी पढ़ा दी तेरी माँ ने तुझे अपनी बुआ के बारे में..
गौतम - अरे बुआ आप क्या बच्चों वाली बात कर रही हो.. मुझसे ज्यादा कोई खुश हो सकता है आपके आने पर? जल्दी से आ जाओ, आपसे ढेर सारी बात करनी है..
पिंकी - ओहो मेरा ग़ुगु इतना याद करता है अपनी बुआ को? पहले पता होता तो पहले आ जाती.. बता तुझे क्या चाहिए? क्या लाऊँ तेरे लिए?
गौतम - मुझे कुछ नहीं चाहिए बुआ? आप जल्दी से आकर मुझे मेरे गाल पर मेरी किस्सीया देदो उतना काफी है मेरे लिए..
पिंकी - ओह... मेरे ग़ुगु को हग भी मिलेगा औऱ किस्सी मिलेगी.. गाल पर भी औऱ लिप्स पर भी. तेरी बुआ कोई पुराने जमाने की थोड़ी है..
गौतम - बुआ माँ से बात करोगी?
पिंकी - अरे नहीं.. रहने दे ग़ुगु.. तेरी माँ पहले ही मुझसे चिढ़ती है.. तेरी माँ को तो मैं खुद आकर सरप्राइज दूंगी..
गौतम - सरप्राइज ही देना बुआ.. अटैक मत दे देना.. चलो मैं रखता हूँ,
पिंकी - ग़ुगु.. तू बस एड्रेस massage कर दे मुझे.. सरप्राइज तो देना है तेरी माँ को..
गौतम - ठीक है बुआ.. अभी करता हूँ..
पिंकी - ग़ुगु.. मन कर रहा है अभी फ़ोन में घुसके तुझे किस्सी कर लू..
गौतम - मैं वेट कर लूंगा शाम तक आपकी किस्सी का.. आप आराम से आ जाओ.. बाय बुआ..
पिंकी - बाये ग़ुगु.. अपना ख्याल रखना..
गौतम फ़ोन काटकर नहाने चला जाता है औऱ नहाकर एक डार्क नवी ब्लू शर्ट एंड लाइट ब्लू जीन्स के साथ वाइट शूज दाल लेटा है जिसमे आज बहुत प्यारा औऱ खूबसूरत लग रहा था.. उसे देखकर कोई भी कह सकता था की ग़ुगु आज भी स्कूल ही जाता होगा.. गौतम इतना मासूम औऱ मनभावन लग रहा था की सुमन ने आज घर से बाहर निकलने से पहले उसे कान के पीछे काला टिका लगा दिया था.. दोनों बाइक पर बैठके बाबाजी के पास चल पड़े थे..
सुमन - आज पेट्रोल नहीं भरवाना?
गौतम - नहीं माँ, है बाइक में तेल..
सुमन - अच्छा ज़ी.. औऱ कुछ खाना नहीं है रास्ते में?
गौतम - भूख नहीं है आपको खाना है?
सुमन - अगर मेरा ग़ुगु खायेगा तो मैं भी खा लुंगी..
गौतम थोड़ा आगे उसी कोटा कचोरी वाले की दूकान ओर बाइक रोक देता है औऱ जाकर कचोरी लेने लगता है तभी उसका फ़ोन बजता है..
गौतम - हेलो..
रूपा - मेरा बच्चा कहा है?
गौतम - अरे यार वो बाबाजी नहीं है *** पहाड़ी वाले? उनके पास जा रहा हूँ माँ को लेकर..
रूपा - अच्छा ज़ी माँ को लेकर जा रहे हो औऱ अपनी इस मम्मी से पूछा तक नहीं चलने के लिए?
गौतम - मैं नहीं मानता किसी बाबा-वाबा को.. माँ मुझे लेकर जा रही है.. वैसे सुबह सुबह कैसे याद कर लिया?
रूपा - अरे ये क्या बात हुई भला? अब मैं अपने बच्चे को याद भी नहीं कर सकती?
गौतम - मम्मी यार रास्ते में हूँ पहुँचके फ़ोन करता हूँ..
रूपा - अरे सुनो तो..
गौतम - जल्दी बोलो..
रूपा - कुछ नहीं रहने दो जाओ..
गौतम - ठीक है बाद में बात करता हूँ..
गौतम फ़ोन काट कर कचोरी ले आता है..
गौतम - माँ लो..
सुमन गौतम से कचोरी लेकर खाने लगती है औऱ कहती है..
सुमन - क्या बात है? कल रात को खाने का बिल औऱ आज गाडी में तेल फुल? कचोरी के पैसे भी नहीं मांगे तुने मुझसे? कोई लाटरी लगी है तेरी?
गौतम - कुछ नहीं माँ वो पुरानी कुछ सेविंग्स थी मेरे पास तो बस..
सुमन - अच्छा ज़ी? पर सेविंग तो आगे के काम के लिए बचा के रखते है ना? तू खर्चा क्यू कर रहा है?
गौतम - अब नहीं करुंगा माँ.. कितने सवाल पूछती हो आप इतनी छोटी बात के लिए?
सुमन - छोटी सी बात? तेरे छोटी बात होगी मेरे लिए नहीं है.. मुझे मेरा वही ग़ुगु चाहिए.. जो पेट्रोल से लेकर कचोरी तक चीज पर कमीशन खाता है..
गौतम - अच्छा ठीक है मेरी माँ.. अब चलो वैसे भी आज ज्यादा भीड़ मिलेगी आपके बाबाजी के.. अंधभगतो की गिनती बढ़ती जा रही है इस देश में..
सुमन - ठीक है मेरे ग़ुगु महाराज.. चलिए..
गौतम सुमन को बाइक पर बैठाकर बाबाजी की तरफ चल पड़ता है वही रूपा के मन में भी गौतम को देखने की तलब मचने लगती है और वो करीम को फ़ोन करती है..
रूपा - हेलो करीम..
करीम - सलाम बाजी..
रूपा - कहा है तू?
करीम - बाजी, सवारी लेने निकला हूँ स्टेशन छोडके आना है..
रूपा - आज तेरी बुक मेरे साथ है.. सबकुछ छोड़ औऱ कोठे पर आ जल्दी.. कहीं जाना है..
करीम - जैसा आप कहो बाजी.. अभी 5 मिनट में हाज़िर होता हूँ..
रूपा करीम से बात करके आईने के सामने खड़ी होकर आपने आपको निहारने लगती है.. सर से पैर तक बदन पर लदे कीमती कपडे औऱ जेबरात उसे ना जाने क्यू बोझ लगने लगे थे. आज उसका दिल कुछ साधारण औऱ आम सा पहनने का था. उसने अपने कमरे की दोनों अलमीराओ का दरवाजा खोल दिया औऱ कपडे देखने लगी, कुछ देर तलाशने के बाद उसे एक पुराना सूट जो कई बरस पहले करीम की इंतेक़ाल हो चुकी अम्मी ने उसे तोहफ़े में दिया था रूपा ने निकाल लिया औऱ अपने कीमती लिबास औऱ गहनो को उतारकर वो सूट पहन लिया.. फिर एक साधारण घरेलु महिलाओ की तरह माथे पर बिंदिया आँखों में काजल औऱ होंठों पर हलकी लाली लगाकर बाल बनाना शुरु कर दिया..
इतने में करीम का फ़ोन आ गया औऱ उसने नीचे खड़े होने की बात कही..
रूपा जब अपने कमरे से निकल कर बाहर जाने लगी तो रेखा काकी ने उसके इस रूप को देखकर अचंभित होते हुए कहा..
रेखा काकी - कहो रूपा रानी.. आज विलासयता त्याग कर ये क्या भेस बनाई हो?
रूपा - दीदी वो आज एक साधु बाबा के यहां जा रही हूँ तो सोचा कुछ साधारण पहन लू.
रेखा काकी - साधारण भी तुझपर महंगा लगता है रूपा रानी.. तेरा रूप तो इस लिबास में औऱ भी खिल कर सामने आ गया.. आज भी याद है, पहले पहल जब तू यहां आई थी तब इसी तरह के लिबास में अपने रूप से लोगों का मन मोह लिया करती थी.. मेरी चमक को कैसे तूने अपने इस हुस्न से फीका कर दिया था.
रूपा - आपकी चमक तो आज भी उसी तरह बरकरार है दीदी, जिस तरह जगताल के कोठो की ये बदनाम गालिया.. मैं तो कुछ दिनों की चांदनी थी अमावस आते आते बुझ गई..
रेखा काकी - ऐसा बोलकर मुझे गाली मत दे रूपा... मैं तेरा मर्ज़ तो जानती थी पर कभी तेरे मर्ज़ का मरहम तुझे नहीं दे पाई.. जो सपना तेरा है वो मैं भी कभी अपनी आँखों से देखा करती थी.. पर तवायफ के नसीब में सिर्फ कोठा ही होता है..
रूपा - मेरा सपना तो बहुत पहले टूट चूका है दीदी, कब रूपा रानी से रूपा मौसी बन गई पता ही नहीं चला.. अच्छा चलती हूँ आते आते शायद शाम हो जाएगी.
रूपा रेखा से विदा लेकर कोठे के बाहर करीम की रिक्शा में आ जाती है यहां करीम सादे लिबाज़ में रूपा को देखकर हैरात में पड़ जाता है मगर कुछ नहीं बोलता..
करीम - कहाँ चलना है बाजी?
रूपा - *** पहाड़ी पर कोई बाबा है उसके यहां..
करीम - पर आप तो मेरी तरह ऐसे बाबाओ औऱ खुदा पर यक़ीन ही नहीं करती थी..
रूपा - यक़ीन तो आज भी नहीं करीम.. पर सोचा मांग के देख लू शायद कोई चमत्कार हो जाए..
करीम - जैसा आप बोलो..
रूपा - करीम.
करीम - हाँ बाजी..
रूपा - तुझे बुरा तो नहीं लगा मैंने अचानक तुझे बुला लिया..
करीम - बुरा किस बात का बाजी, ये ऑटोरिक्शा आपने ही तो दिलवाया है अब आपके ही काम नहीं आएगा तो फिर इसका क्या मतलब? वैसे बाजी ये साधारण सा सूट भी आपके ऊपर बहुत खिल रहा है..
रूपा - हम्म.. कुछ साल पहले मुझे तोहफ़े में मिला था.. पाता है किसने दिया था?
करीम - नहीं.
रूपा - तेरी अम्मी ने. आज भी बहुत याद आती है वो.
करीम औऱ रूपा दोनों करीम की अम्मी खालीदा को याद करके भावुक हो चुके थे.. खालीदा भी उसी कोठे पर तवयाफ थी करीम को बहुत दिल से पाला था उसने. खालिदा की मौत के बाद करीम का ख्याल रूपा ने ही रखा था औऱ उसे ये ऑटोरिक्शा दिलाकर चलाने औऱ कोठे पर रंडियो की दलाली से दूर रहने के लिए कहा था.. थोड़ी सी रंजिश में करीम को उसीके दोस्तों ने नामर्द बना दिया था अब करीम अकेला था मगर खुश था.. उसे किसी चीज की जरुरत होती तो रूपा उसे मदद कर देती बदले में रूपा ने करीम की वफादारी खरीद ली थी..
Writer ji readers ki kewal ek request suman ko kewal gugu ka rahne do plz,baki sbb apki marziAdultery me story likhi hai bro incest me nhi..
Suman ke sath kuch bhi ho sakta hai
Mast update bhaiUpdate - 6
पहाड़ी पर बने उस मन्दिरनुमा हाल के भीतर लोगों की समस्याओ को सुनकर उसका निवारण करने के उपाय बटाने वाले बाबाजी एक कोने में चटाई बिछकार अपनी पत्नी कजरी के साथ भोग में लिप्त थे की तभी एक सेवक ने आकर दरवाजे पर दस्तक दी जिससे बाबाजी के भोग में विघ्न पड़ गया औऱ वो भोग से उठकर बैठ गए औऱ कजरी भी अपने नंगे बदन को चादर से ढककर बैठ गई. बाबाजी ने बाहर जाकर उस सेवक से इस विघ्न की वजह पूछने लगे..
बाबाजी - क्या हुआ किशोर? इस तरह आधी रात को यहां आने का क्या कारण है?
किशोर अपने घुटनो पर बैठ गया औऱ दंडवत प्रणाम कर बोला - बाबाजी बात ही कुछ ऐसी है कि मुझे जंगल छोड़कर यहां इस वक़्त आपके पास आना ही पड़ा..
बाबाजी - ऐसा क्या हो गया किशोर कि सुबह तक का इंतजार करना भी तेरे लिए मुश्किल हो गया?
किशोर - माफ़ी चाहता हूँ बाबाजी पर बड़े बाबाजी ने अविलम्ब आपको उनके समक्ष उपस्थित होने का आदेश दिया है..
बाबाजी हैरानी से किशोर को देखते है एक शॉल को कंधे पर लपेटकर - अचानक उनका मुझे बुलाना.. जरूर कोई बात है.. चल किशोर..
बाबाजी किशोर के साथ हॉल से निकल जाते है औऱ कच्चे रास्ते से होते हुए पहाड़ी के पीछे जंगल की ओर नीचे उतरने लगते है.. वही कजरी अपने वस्त्रो को वापस बहन लेती है और असमंजस में अचानक बाबाजी के जाने का कारण सोचने लगती है..
बाबाजी - कुछ ओर भी कहाँ था उन्होंने?
किशोर - नहीं बस साधना से निकले तो तुरंत आपको बुलाने का हुक्म दे दिया..
बाबाजी - किसी सेवक से कोई चूक तो नहीं हुई उनकी सेवा में?
किशोर - चूक कैसी बाबाजी? सब जानते है चूक का परिणाम क्या हो सकता है. हर दिन जैसा ही सब कुछ आज भी हुआ, पर साधना से उठते ही उनके चेहरे पर अजीब भाव थे.
बाबाजी - अच्छा चल..
बाबाजी ओर किशोर पहाड़ी से नीचे उतरकर जंगल में आ गए जहाँ आने से कोई भी डर सकता था.. और किसी का आना वहा सामान्य भी नहीं था. जंगल के अंदर कुछ दूर जाकर एक कुटिया दिखाई पड़ी जिसके बाहर दो लोग पहरा दे रहे थे. बाबाजी किशोर के साथ उस कुटिया तक आ पहुचे फिर बाबाजी ने किशोर को रुकने का कहा और कुटिया के अंदर जाने के लिए दरवाजे पर दस्तक देते हुए बोले - गुरुदेव..
बड़े बाबाज़ी - अंदर आजा विरम..
बाबाजी कुटिया में प्रवेश करते हुए कुटिया में एक तरफ बैठकर चिल्लम पीते बड़े बाबाज़ी के चरणों में अपना मस्तक रखकर सामने अपने दोनों पैरों पर उसी तरह बैठ गए जिस तरह सुबह सुबह खेतो में गाँव के लोग अपना मल त्यागने के लिए पानी का लोटा लेकर बैठते है..
बाबाजी - आधी रात को अचानक बुलावाया है गुरुदेव. जरूर कोई बहुत बड़ा कारण होगा. आदेश करें गुरुदेव आपका ये शिष्य आपकी किस तरह सेवा कर सकता है?
बड़े बाबाजी - विरम.. वक़्त आने वाला है.. सेकड़ों सालों पहले मेरे किये गलत निर्णय को बदलने का.. मुझे कोई मिल गया है जो मेरा काम कर सकता है..
बाबाजी - ऐसा कौन है गुरुदेव? मैंने इतने सालों में लाखों लोगों के माथे की लकीरें पढ़ी है.. इसी उम्मीद में की काश कोई आये जो अपने पिछले जन्म में जाकर आपकी मदद कर सके.. पर आज तक ऐसा नहीं हुआ..
बड़े बाबाज़ी - जो मुझे 300 सालों से कहीं नहीं मिला वो मुझे इसी कुटिया मैं बैठे बैठे मिल गया विरम.. बस कुछ दिनों का इंतज़ार और..
बाबाजी - पर क्या वो आपका काम कर पायेगा?
बड़े बाबाजी - अगर कारण हो तो आदमी सब कुछ कर गुजरता है विरम.. बस उसे एक वजह देनी होगी, मैं जल्दी ही उसे सब समझाकर इस काम के लिए सज्य कर लूंगा.. उसके मासूम चेहरे और सादगी भरे स्वाभाव से लगता है वो जरूर आसानी से अपने पिछले जन्म में जाकर मेरी गलती को सुधार सकता है. मेरे लिए बैरागी को ढूंढ़ सकता है. और मेरे हाथों उसका क़त्ल होने से बचा सकता है.
बाबाजी - इस अंधियारे में जो रौशनी आपने दिखाई है गुरुदेव, उससे नई उम्मीद मेरे ह्रदय के अंदर पनपने लगी है.. जिस जड़ीबूटी को अमर होने की लालच में अमृत मानकर आपने ग्रहण किया था अब उसी जड़ीबूटी से आपकी मुक्ति भी होगी..
बड़े बाबाजी - लालच नर्क की यातनाओ के सामान है विराम.. मेरे अमर होने के लालच ने मुझको उसकी सजा दी है.. मैं भूल बैठा था की जीवन और मृत्यु प्रकृति का अद्भुत श्रृंगार है जिसे रोकने पर प्रकृति की मर्यादा भंग होती है..
बाबाजी - आप सही कह रहे है गुरुदेव. जिस तरह पहले आप पर अमर होने का लालच हावी थी अब मृत्यु का लालच हावी है.. लेकिन गुरुदेव? जिसे आपने ढूंढा है वो अपने पिछले जन्म कौन था? उसका कुल गौत्र और लिंग क्या था? वो आपके जागीर की सीमा के भीतर का निवासी था या बाहर का? अपने उसका पिछला जन्म तो देखा होगा?
बड़े बाबाजी - वो मेरी ही जागीर की सीमा के भीतर का निवासी है विरम. मैंने अभी उसका पिछला जन्म देखा है. वो हमारी ही सेना में एक सैनिक धुप सिंह का पुत्र समर है.. मगर एक अड़चन है विरम..
बाबाजी - क्या गुरुदेव? कैसी अड़चन?
बड़े बाबाजी - प्रेम की अड़चन विरम.. मुझे साफ साफ दिखाई दिया है की उसे किसी से प्रेम हो सकता है जो हमारे कार्य के लिए अड़चन बन सकती है.. वो वही का होकर रह सकता है.. और बैरागी को ढूंढने से मना करके जड़ीबूटी लेकर वापस आने से भी इंकार कर सकता है..
बाबाजी - इसका उपाय भी तो हो सकता है गुरुदेव, अगर उसके पास वापस आने की बहुत ठोस वजह हो तो? अगर उसे वापस आना ही पड़े तो?
बड़े बाबाजी - इसीके वास्ते तुझे याद किया है विरम..
बाबाजी - मैं समझा नहीं गुरुदेव..
बड़े बाबाजी - बड़े दुख की बात है विरम की जो तुझे खुद से समझ जाना चाहिए वो तू मुझसे सुनना चाहता है.. मैंने पिछले 40 साल में तुझे इस प्रकर्ति के बहुत से रहस्य बताये है जिनसे तूने हज़ारो लोगों की मदद की. लेकिन तू अपनी मदद नहीं कर पाया. जब तू 16 साल की उम्र में घर से मरने की सोचके निकला था तब से लेकर आज तक मैंने हर बार तेरा मार्गदर्शन किया है. एकलौता तू ही है जिसे मैंने अपना रहस्य भी बताया है. पूरी दुनिया के सामने अपना छोटा भाई बनाकर रखा है.. मैंने अपनी पिछले 350 की जिंदगी में जितने भी रहस्य इस धरती और प्रकर्ति के बारे में जाने है उनमे से जो तेरे जानने लायक थे लगभग सही तुझे बता दिए है.. उनसे तो तुझे मालूम होना चाहिए था की मैं क्या कहा रहा हूँ..
बाबाजी - गुरुदेव. ये सत्य है की आज से 40 साल पहले जब मुझे मेरे घर से निकाल दिया गया था तब से लेकर आज तक आपने मुझे संभाला है. रास्ता दिखाया है. इस बार भी इस नादान को बताये गुरुदेव. मैं क्या कर सकता हूँ आपके लिए?
बड़े बाबाजी - विरम मैं जिस लड़के की बात कर रहा हूँ उसकी माँ तेरे मठ में आती है. तुझे उसे एक काम के लिए मनाना होगा.. क्युकी उसके बिना उस लड़के का वापस आना मुश्किल है..
बाबाजी - आप बताइये गुरुदेव, क्या करने के लिए मनाना होगा मुझे उस औरत को?
बड़े बाबाजी - ठीक है विरम, सुन..
बड़े बाबाज़ी अपनी बात कहना शुरुआत करते है जिसे बाबाजी उर्फ़ विरम ध्यान से सुनता है और समझ जाता है.. उसके बाद बड़े बाबाजी से विदा लेकर वापस मठ की और चला जाता है..
बड़े बाबाज़ी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह 325 साल पहले अजमेर की एक जागीर के जागीरदार थे और उनका अपना एक महल था सैकड़ो नौकरचाकर और इसीके साथ राजासाब की सेना की एक टुकड़ी भी हर दम बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह के महल की सुरक्षा में तनात रहती थी. 1699 में वीरेंद्र सिंह इस महल में एक राजा की तरह ही राज कर रहा था. वीरेंद्र सिंह का रुझान हकीमी और जादू टोने में बहुत ही ज्यादा था.. उसने सबसे छुपकर कई लोगों से इसका ज्ञान भी लेना शुरू कर दिया था और वैध की औषधियों के बारे में भी जानना जारी रखा..
बैरागी नाम के एक मुसाफिर आदमी की मदद से वीरेंद्र ने एक ऐसे पौधे को जमीन से उगवाया जो हज़ार साल में एक बार ही उग सकता है, जिससे आदमी अपनी उम्र के 11 गुना लम्बे समय तक ज़िंदा रह सकता है.. और अमर होने की लालच में आकर वीरेंद्र सिंह ने उस पौधे से मिली जड़ीबूटी का सेवन कर लिया..
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह ने जड़ीबूटी का सेवन तो कर लिया मगर उसकी उम्र बढ़ना नहीं रुकी. जब उसने जड़ीबूटी खाई थी तब उसकी उम्र 35 साल थी और उसे लगा था की अब वो अमर हो जाएगा मगर.. धीरे धीरे उसकी उम्र बढ़ती गई जिससे वीरेंद्र सिंह को लगा की इस जड़ीबूटी का कोई असर नहीं हुआ और ये उसे अमर नहीं कर पाई.. वीरेंद्र सिंह ने गुस्से में आकर जड़ीबूटी बनाने वाले आदमी जिसे सब बैरागी के नाम से जानते थे को मरवा दिया.
लेकिन जब धीरे धीरे बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह 73 साल का हुआ तो उसकी उम्र बढ़ना रुक गई और फिर उसे समझ आया की उस जड़ीबूटी का असर आदमी के मरने की उम्र गुजरने के बाद शुरू होता है और जितने साल उसकी जिंदगी होती है उसके गयराह गुना साल आगे वो और ज़िंदा रह सकता है.. वीरेंद्र पहले तो ये सोचके बहुत ख़ुशी हुई की अब वो अपनी उम्र 73 साल के 11 गुना मतलब लगभग 800 साल ज़िंदा रहेगा मगर कुछ दिनों बाद ही उसे समझ आ गया की बैरागी को मारवा कर उसने बहुत गलत किया है.. 73 साल इस उम्र में उसका 800 साल ज़िंदा रहना वरदान नहीं अभिश्राप था.. ना तो भोग कर सकता था ना ही जीवन के वो सुख भोग सकता था जो जवानी आदमी को भोगने का अवसर देती है..
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह अब अपने फैसले पर बहुत दुखी हुआ और फिर उसने अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया की उसे वही जड़ी बूटी वापस बनाकर अपनी ये जिंदगी समाप्त करनी है.. इसके लिए सालों साल वीरेंद्र सिंह उर्फ़ बड़े बाबाजी ने बड़े बड़े सिद्ध महात्मा, अघोरी और तांत्रिक की सेवा कर उनसे ज्ञान और रहस्य की जानकारी ली और हमारी धरती के बारे में बहुत सी बातें जानी. यहां जो आयाम है उसके बारे में जाना और बहुत बार भेस बदलकर लोगों से मिलते हुए वीरेंद्र सिंह ने इतनी जानकारी और ताकत हासिल कर ली और इस प्रकृति के कुछ रहस्य जान गया. वह अब ये जान गया था कि अगर कोई आदमी जिसका पिछला जन्म उसी वक़्त हो जब वीरेंद्र वो जड़ी बूटी बनवाने वाला था.. तभी उसका काम हो सकता है.. और वो इस अभिश्राप से बच सकता है..
वीरेंद्र सिंह उर्फ़ बड़े बाबाज़ी ने गौतम को ढूंढ़ लिया था गौतम पिछले जन्म में वीरेंद्र सिंह के सिपाही का लड़का था.. अब वीरेंद्र सिंह उर्फ़ बड़े बाबाजी यह चाहते थे कि गौतम अपने पिछले जन्म में जाकर बैरागी को ढूंढे और उससे वो जड़ीबूटी बनवा कर उसे वर्तमान में लाकर दे दे.. ताकि 350 सालों से इस उम्र में अटके बड़े बाबाजी के प्राण बह जाए और उनकी मुक्ति हो..
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सुबह जब गौतम की आँख खुली तो सामने का नज़ारा देखकर उसका लंड रबर के ढीले पाईप से लोहे की टाइट रोड जैसा तन गया जिसे उसने सोने का नाटक करते हुए छीपा लिया..
आज गौतम की आँख औऱ दिनों के बनिस्पत जल्दी खुल गई थी औऱ उसने अभी अभी नहाकर आई अपनी माँ सुमन की टाइट बाहर निकली हुई नंगी गोरी गांड देखी जिसे सुमन ने चड्डी पहनकर अब ढक लिया था औऱ बाकी कपडे पहनने लगी थी.. गौतम सोने का नाटक करते हुए सारा नज़ारा देखने लगा जब सुमन कपडे पहन कर बाहर चली गई तो आपने लंड को मसलते हुए सुमन की गांड याद करने लगा.. करीब आधे घंटे वैसा ही करने के बाद गौतम उठ गया औऱ कमरे में जाकर बाथरूम करके वापस आपने बेड पर सो गया जिसे एक घंटे बाद चाय लेकर आई सुमन ने बड़े लाड प्यार औऱ नाजुकी से उठा दिया..
सुमन - उठ जा मेरी सल्तनत के बिगड़ैल शहजादे.. बाबाजी के भी चलना है.. चाय पीले औऱ नहा ले जाकर..
गौतम अंगड़ाई लेकर उठ खड़ा होता है औऱ चाय पीकर उसी तरह खिड़की से बाहर देखता है.. तभी उसका फोन बजने लगता है..
गौतम - हेलो.. ज़ी? MK ज्वेलर्स से? हां बोल रहा हूँ.. अच्छा अच्छा.. ज़ी रात को बात हुई थी.. मगर.. नहीं वापस बात कर सकते है उस बारे में.. सुनिए.. हेलो..
फ़ोन कट गया था..
गौतम मन में - अरे यार किस्मत में लोडे लिखें है. एक ऑफर आया था वो भी गया नाली में..
गौतम जैसे ही फ़ोन काटता है उसके फ़ोन पर किसी औऱ का फ़ोन आने लगता है..
गौतम - हेलो..
सामने से कोई औरत थी - हेलो ग़ुगु..?
गौतम - हाँ.. पिंकी बुआ बोलो..
पिंकी -35
पिंकी - ग़ुगु.. पापा कहाँ है?
गौतम - वो तो अभी थाने में है.. आजकल नाईट शिफ्ट है औऱ पोस्टिंग घर से थोडी दूर ग्रामीण इलाके में है तो घर देर से आते है.. 10 बजे तक आ जायेंगे..
पिंकी - ग़ुगु.. भईया से कहना मैं शाम को घर रही हूँ..
गौतम - क्यू मतलब कब? आज शाम की ट्रैन से?
पिंकी - ट्रैन से नहीं मेरे ग़ुगु.. गाडी से.. पर तू खुश नहीं है क्या मेरे आने से? लगता बहुत उल्टी सीधी पट्टी पढ़ा दी तेरी माँ ने तुझे अपनी बुआ के बारे में..
गौतम - अरे बुआ आप क्या बच्चों वाली बात कर रही हो.. मुझसे ज्यादा कोई खुश हो सकता है आपके आने पर? जल्दी से आ जाओ, आपसे ढेर सारी बात करनी है..
पिंकी - ओहो मेरा ग़ुगु इतना याद करता है अपनी बुआ को? पहले पता होता तो पहले आ जाती.. बता तुझे क्या चाहिए? क्या लाऊँ तेरे लिए?
गौतम - मुझे कुछ नहीं चाहिए बुआ? आप जल्दी से आकर मुझे मेरे गाल पर मेरी किस्सीया देदो उतना काफी है मेरे लिए..
पिंकी - ओह... मेरे ग़ुगु को हग भी मिलेगा औऱ किस्सी मिलेगी.. गाल पर भी औऱ लिप्स पर भी. तेरी बुआ कोई पुराने जमाने की थोड़ी है..
गौतम - बुआ माँ से बात करोगी?
पिंकी - अरे नहीं.. रहने दे ग़ुगु.. तेरी माँ पहले ही मुझसे चिढ़ती है.. तेरी माँ को तो मैं खुद आकर सरप्राइज दूंगी..
गौतम - सरप्राइज ही देना बुआ.. अटैक मत दे देना.. चलो मैं रखता हूँ,
पिंकी - ग़ुगु.. तू बस एड्रेस massage कर दे मुझे.. सरप्राइज तो देना है तेरी माँ को..
गौतम - ठीक है बुआ.. अभी करता हूँ..
पिंकी - ग़ुगु.. मन कर रहा है अभी फ़ोन में घुसके तुझे किस्सी कर लू..
गौतम - मैं वेट कर लूंगा शाम तक आपकी किस्सी का.. आप आराम से आ जाओ.. बाय बुआ..
पिंकी - बाये ग़ुगु.. अपना ख्याल रखना..
गौतम फ़ोन काटकर नहाने चला जाता है औऱ नहाकर एक डार्क नवी ब्लू शर्ट एंड लाइट ब्लू जीन्स के साथ वाइट शूज दाल लेटा है जिसमे आज बहुत प्यारा औऱ खूबसूरत लग रहा था.. उसे देखकर कोई भी कह सकता था की ग़ुगु आज भी स्कूल ही जाता होगा.. गौतम इतना मासूम औऱ मनभावन लग रहा था की सुमन ने आज घर से बाहर निकलने से पहले उसे कान के पीछे काला टिका लगा दिया था.. दोनों बाइक पर बैठके बाबाजी के पास चल पड़े थे..
सुमन - आज पेट्रोल नहीं भरवाना?
गौतम - नहीं माँ, है बाइक में तेल..
सुमन - अच्छा ज़ी.. औऱ कुछ खाना नहीं है रास्ते में?
गौतम - भूख नहीं है आपको खाना है?
सुमन - अगर मेरा ग़ुगु खायेगा तो मैं भी खा लुंगी..
गौतम थोड़ा आगे उसी कोटा कचोरी वाले की दूकान ओर बाइक रोक देता है औऱ जाकर कचोरी लेने लगता है तभी उसका फ़ोन बजता है..
गौतम - हेलो..
रूपा - मेरा बच्चा कहा है?
गौतम - अरे यार वो बाबाजी नहीं है *** पहाड़ी वाले? उनके पास जा रहा हूँ माँ को लेकर..
रूपा - अच्छा ज़ी माँ को लेकर जा रहे हो औऱ अपनी इस मम्मी से पूछा तक नहीं चलने के लिए?
गौतम - मैं नहीं मानता किसी बाबा-वाबा को.. माँ मुझे लेकर जा रही है.. वैसे सुबह सुबह कैसे याद कर लिया?
रूपा - अरे ये क्या बात हुई भला? अब मैं अपने बच्चे को याद भी नहीं कर सकती?
गौतम - मम्मी यार रास्ते में हूँ पहुँचके फ़ोन करता हूँ..
रूपा - अरे सुनो तो..
गौतम - जल्दी बोलो..
रूपा - कुछ नहीं रहने दो जाओ..
गौतम - ठीक है बाद में बात करता हूँ..
गौतम फ़ोन काट कर कचोरी ले आता है..
गौतम - माँ लो..
सुमन गौतम से कचोरी लेकर खाने लगती है औऱ कहती है..
सुमन - क्या बात है? कल रात को खाने का बिल औऱ आज गाडी में तेल फुल? कचोरी के पैसे भी नहीं मांगे तुने मुझसे? कोई लाटरी लगी है तेरी?
गौतम - कुछ नहीं माँ वो पुरानी कुछ सेविंग्स थी मेरे पास तो बस..
सुमन - अच्छा ज़ी? पर सेविंग तो आगे के काम के लिए बचा के रखते है ना? तू खर्चा क्यू कर रहा है?
गौतम - अब नहीं करुंगा माँ.. कितने सवाल पूछती हो आप इतनी छोटी बात के लिए?
सुमन - छोटी सी बात? तेरे छोटी बात होगी मेरे लिए नहीं है.. मुझे मेरा वही ग़ुगु चाहिए.. जो पेट्रोल से लेकर कचोरी तक चीज पर कमीशन खाता है..
गौतम - अच्छा ठीक है मेरी माँ.. अब चलो वैसे भी आज ज्यादा भीड़ मिलेगी आपके बाबाजी के.. अंधभगतो की गिनती बढ़ती जा रही है इस देश में..
सुमन - ठीक है मेरे ग़ुगु महाराज.. चलिए..
गौतम सुमन को बाइक पर बैठाकर बाबाजी की तरफ चल पड़ता है वही रूपा के मन में भी गौतम को देखने की तलब मचने लगती है और वो करीम को फ़ोन करती है..
रूपा - हेलो करीम..
करीम - सलाम बाजी..
रूपा - कहा है तू?
करीम - बाजी, सवारी लेने निकला हूँ स्टेशन छोडके आना है..
रूपा - आज तेरी बुक मेरे साथ है.. सबकुछ छोड़ औऱ कोठे पर आ जल्दी.. कहीं जाना है..
करीम - जैसा आप कहो बाजी.. अभी 5 मिनट में हाज़िर होता हूँ..
रूपा करीम से बात करके आईने के सामने खड़ी होकर आपने आपको निहारने लगती है.. सर से पैर तक बदन पर लदे कीमती कपडे औऱ जेबरात उसे ना जाने क्यू बोझ लगने लगे थे. आज उसका दिल कुछ साधारण औऱ आम सा पहनने का था. उसने अपने कमरे की दोनों अलमीराओ का दरवाजा खोल दिया औऱ कपडे देखने लगी, कुछ देर तलाशने के बाद उसे एक पुराना सूट जो कई बरस पहले करीम की इंतेक़ाल हो चुकी अम्मी ने उसे तोहफ़े में दिया था रूपा ने निकाल लिया औऱ अपने कीमती लिबास औऱ गहनो को उतारकर वो सूट पहन लिया.. फिर एक साधारण घरेलु महिलाओ की तरह माथे पर बिंदिया आँखों में काजल औऱ होंठों पर हलकी लाली लगाकर बाल बनाना शुरु कर दिया..
इतने में करीम का फ़ोन आ गया औऱ उसने नीचे खड़े होने की बात कही..
रूपा जब अपने कमरे से निकल कर बाहर जाने लगी तो रेखा काकी ने उसके इस रूप को देखकर अचंभित होते हुए कहा..
रेखा काकी - कहो रूपा रानी.. आज विलासयता त्याग कर ये क्या भेस बनाई हो?
रूपा - दीदी वो आज एक साधु बाबा के यहां जा रही हूँ तो सोचा कुछ साधारण पहन लू.
रेखा काकी - साधारण भी तुझपर महंगा लगता है रूपा रानी.. तेरा रूप तो इस लिबास में औऱ भी खिल कर सामने आ गया.. आज भी याद है, पहले पहल जब तू यहां आई थी तब इसी तरह के लिबास में अपने रूप से लोगों का मन मोह लिया करती थी.. मेरी चमक को कैसे तूने अपने इस हुस्न से फीका कर दिया था.
रूपा - आपकी चमक तो आज भी उसी तरह बरकरार है दीदी, जिस तरह जगताल के कोठो की ये बदनाम गालिया.. मैं तो कुछ दिनों की चांदनी थी अमावस आते आते बुझ गई..
रेखा काकी - ऐसा बोलकर मुझे गाली मत दे रूपा... मैं तेरा मर्ज़ तो जानती थी पर कभी तेरे मर्ज़ का मरहम तुझे नहीं दे पाई.. जो सपना तेरा है वो मैं भी कभी अपनी आँखों से देखा करती थी.. पर तवायफ के नसीब में सिर्फ कोठा ही होता है..
रूपा - मेरा सपना तो बहुत पहले टूट चूका है दीदी, कब रूपा रानी से रूपा मौसी बन गई पता ही नहीं चला.. अच्छा चलती हूँ आते आते शायद शाम हो जाएगी.
रूपा रेखा से विदा लेकर कोठे के बाहर करीम की रिक्शा में आ जाती है यहां करीम सादे लिबाज़ में रूपा को देखकर हैरात में पड़ जाता है मगर कुछ नहीं बोलता..
करीम - कहाँ चलना है बाजी?
रूपा - *** पहाड़ी पर कोई बाबा है उसके यहां..
करीम - पर आप तो मेरी तरह ऐसे बाबाओ औऱ खुदा पर यक़ीन ही नहीं करती थी..
रूपा - यक़ीन तो आज भी नहीं करीम.. पर सोचा मांग के देख लू शायद कोई चमत्कार हो जाए..
करीम - जैसा आप बोलो..
रूपा - करीम.
करीम - हाँ बाजी..
रूपा - तुझे बुरा तो नहीं लगा मैंने अचानक तुझे बुला लिया..
करीम - बुरा किस बात का बाजी, ये ऑटोरिक्शा आपने ही तो दिलवाया है अब आपके ही काम नहीं आएगा तो फिर इसका क्या मतलब? वैसे बाजी ये साधारण सा सूट भी आपके ऊपर बहुत खिल रहा है..
रूपा - हम्म.. कुछ साल पहले मुझे तोहफ़े में मिला था.. पाता है किसने दिया था?
करीम - नहीं.
रूपा - तेरी अम्मी ने. आज भी बहुत याद आती है वो.
करीम औऱ रूपा दोनों करीम की अम्मी खालीदा को याद करके भावुक हो चुके थे.. खालीदा भी उसी कोठे पर तवयाफ थी करीम को बहुत दिल से पाला था उसने. खालिदा की मौत के बाद करीम का ख्याल रूपा ने ही रखा था औऱ उसे ये ऑटोरिक्शा दिलाकर चलाने औऱ कोठे पर रंडियो की दलाली से दूर रहने के लिए कहा था.. थोड़ी सी रंजिश में करीम को उसीके दोस्तों ने नामर्द बना दिया था अब करीम अकेला था मगर खुश था.. उसे किसी चीज की जरुरत होती तो रूपा उसे मदद कर देती बदले में रूपा ने करीम की वफादारी खरीद ली थी..