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Romance चैन आपको मिला मुझे दीवानगी मिली

ajey11

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चेतावनी- 1. इस कहानी के सम्पूर्ण पात्र व स्थान काल्पनिक हैं।
2. यह कहानी आगे चलकर कौटुंभिक व्यभिचार का रूप ले सकती है अतः इसे नापसंद करने वाले पाठक इससे दूरी बनाए रखें।
 

ajey11

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पात्र: नागेंद्र उसकी वृद्ध मां एवं पिता तीन भाई जितेंद्र, मुकेश और सबसे छोटा विनय, नागेंद्र की पत्नी सरोजा। दूसरे जिले की युवती बबिता और उसका परिवार व लखनऊ (मूलतः बाराबंकी का एक अन्य युवक कमलेश​
दोनो मंझले भाई मुंबई में रहते थे और छोटा भाई विनय जो बचपन से मेरा दोस्त है वह एक बार रात में चार किलोमीटर दूर नौटंकी देखने गया था जिसके बाद से ही उसमे कुछ अचानक परिवर्तन हुए और वह हंसमुख, उत्साही और चंचल से वह अपने में खोया रहने लगा वैसे तो वह सारी चीजें पूर्व की भांति समझता था करता था लेकिन अब वह उतना सक्रिय नही रहता था जो भी उसकी मां कहती बिना कोई प्रश्न किए चुपचाप कर देता था। पढ़ाई में भी उसकी परफॉर्मेंस कोई खास नही थी इसलिए जब नागेंद्र लखनऊ में ड्यूटी देता तो वह घर पर अपने माता पिता के निर्देश पर थोड़ा बहुत खेती के काम कर देता था।​
नागेंद्र एक सीधा साधा सादगी पसंद विद्यार्थी था साहित्य में रुचि थी इसलिए हिन्दी के गुरुजी से खूब बनती थी किंतु ग्रेजुएशन उसने लाइब्रेरी साइंस से कर ली थी क्योंकि उसका एक गांव का साथी भी यही कोर्स कर रहा था । खेती करने की वजह से शरीर उसका बलिष्ठ था घर में सबसे बड़ा था इसलिए पढ़ाई कम ही हो पाती थी। लेकिन फिर भी उसने पढ़ाई जारी रखी थी और भगवान की कृपा से 29 साल की उम्र में उसकी नौकरी एक सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज में लाइब्रेरियन पद पर लग गई थी। शादी उसकी तीन साल पहले ही हो चुकी थी। वह लखनऊ में किराए के मकान में रहता था और शनिवार को दोपहर में या कभी कभार शुक्रवार शाम को घर के लिए सीधे कॉलेज से ही निकल जाता था।​
सरोजा ने भी बारहवीं तक पढ़ाई की थी उसके बाद उसके माता पिता ने 22 वर्ष की उम्र में 26 के नागेंद्र के साथ शादी कर दी थी ।सरोजा को शुक्रवार या शनिवार को नागेंद्र का खूब इंतजार रहता था क्योंकि सरोजा की जवानी की आग बुझाने वाला सप्ताह में पांच दिन तक कोई नही होता था। सरोजा जब पहली बार चुदी थी तब बहुत रोई थी उसकी चूत की फांकों के आस पास दरारें आ गई थी उससे पहले उसने किसी का भी लंड नही लिया था ।जब नागेंद्र घर आता तो दो दिन सरोजा को जी भर के चोदता ।​
इस प्रकार सब कुछ सामान्य चल रहा था ।​
इधर बबिता भी अपनी बारहवीं की पढ़ाई पूरी कर ली थी उसे नए उपकरण चलाना ,सीखना बहुत अच्छा लगता था और स्वावलंबी तो दसवीं से ही बनना चाहती थी और 12थ में अच्छे अंक प्राप्त होने के कारण सरकार की तरफ से उसे लैपटॉप भी मिल गया था और उसी के अनुसार वह जल्दी नौकरी पाने के चक्कर में ओ लेवल की पढ़ाई कर डाली और कंप्यूटर ऑपरेटर का एग्जाम क्लियर करके उसी लाइब्रेरी में ड्यूटी ज्वाइन कर लिया जिसमे नागेंद्र लाइब्रेरियन था। 22 साल की उमर में नौकरी पाकर वह बहुत खुश थी । नागेंद्र भी आज खुश था क्योंकि जब तक ये पद खाली था तब तक नागेंद्र ही ये सब संभालता था। शुरुआत में बबिता और नागेंद्र की उतनी बनी नही क्योंकि वह गांव का सादगी पसंद युवक था और उसकी शादी भी हो चुकी थी तो वह बबिता पर ध्यान नहीं देता था और बबिता भी जवान तो पूरी हो गई थी लेकिन उसे पढ़ाई के लिए 6 किलोमीटर साइकिल से जाना घर के काम में हाथ बटाना और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने के कारण उसे कभी ऐसा वक्त ही नहीं मिला जिसमे उसकी जवानी के न रुकने वाले झोंके चलें, सिर्फ कभी शादी ब्याह में सहेलियों के साथ हंसी मजाक हो जाया करता था और इसके अलावा उसके भी दिमाग मे यही बात बैठ गई थी शादी से पहले चुदाई नही करनी चाहिए जब शादी होगी तब पति परमेश्वर के साथ ये सब किया जाता है। लेकिन उसे क्या पता था कि किस्मत को कुछ और ही मंजूर है तभी तो उसकी नौकरी पाने की खुशी धीरे धीरे चैलेंज का रूप लेने लगी। उसे कॉलेज में कंप्यूटर ऑपरेटर की नौकरी मिली थी यानी अब वह बदली करवाके अपने गृह जनपद नही जा सकती थी। बड़ी मुश्किल से किसी ने उसे रूम दिया था ज्यादातर मकान मालिक तो नहीं मना करते लेकिन उनकी पत्नी मना कर देती थीं कि अकेली लड़की को कौन रखे कुछ हो गया या इसने कर दिया तो वेवजह जी का जंजाल बनेगा। वह भी शनिवार को अपने घर वापिस निकल जाती क्योंकि बाराबंकी भी लखनऊ से सटा है । मगर अब धीरे धीरे नागेंद्र और बबिता में सामंजस्य स्थापित होने लगा था क्योंकि किसी सोमवार को नागेंद्र पहले आकर लाइब्रेरी खोल देता फिर बबिता आराम से घर से आती इसी तरह बबिता भी किसी सोमवार को पहले आ जाती और नागेंद्र को बोल देती मैं संभाल लूंगी आप आराम से आ जाना।यही सिलसिला जब शनिवार शाम को घर निकलना होता तब भी चलता। इसके अलावा जो इन दोनो के बीच तेजी से नजदीकियां बढ़ा रही थी वह थी लाइब्रेरी के छोटे केबिन में रखी गोलमेज जिस पर पहले तो नागेंद्र और लाइब्रेरी का चपरासी मोहन चाय पिया करते थे वैसे तो नागेंद्र लाइब्रेरियन था लेकिन गांव का था पढ़ा लिखा था सो वह पद का गुमान नहीं करता था और मोहन से कहता आवा मोहन चाय पिया जाय लेकिन जब से बबिता लाईब्रेरी में आती थी तब से नागेंद्र ने तो नही मना किया लेकिन मोहन खुद ही बाहर वाली टेबल पर बैठा करता था।नागेंद्र और बबिता दोनो साथ बैठकर चाय पीते छोटा केबिन था सो न चाहते हुए भी नागेंद्र की निगाहें बबिता की एकदम सुडौल और टाइट चूंचियों पर चली जाती।इधर बबिता जब शाम को खाना पीना करने के बाद बिस्तर पर जाती तो उसके साथ ही उसकी जवानी भी करवट लेने लगती अब उसके पास खाली समय था और लाइब्रेरी में एक 29 सवाल का जवान मरद वह भी शादीशुदा।अब बबिता को सहर की हवा लग चुकी थी हर महीने मोटी तनख्वाह आती थी कोई रोकटोक नही थी सो वह नए नए अनुभव कर रही थी कभी मॉल में जाती तो कभी सिनेमा हॉल में तो कभी पार्क या अन्य घूमने वाली जगहों पर। और ये इंजीनियरिंग कॉलेज था इसलिए मैडमें कपड़े भी अपनी मर्जी के पहन के आती थीं तो बबिता क्यों पीछे रहती वह तो बचपन से चुलबुली थी लेकिन गांव में आठवीं के बाद सूट सलवार के सिवा कुछ पहनने नही दिया गया इसलिए अब उसने नए नए कपड़े ट्राई करने शुरू कर दिए लेकिन​
 
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Rahul

Kingkong
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badhiya update
 
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Romeo 22

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Sandip2021

दीवाना चूत का
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कहानी की शुरुआत अच्छी है लेकिन 23 मई से कोई अपडेट नहीं 🤐
 

ajey11

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अद्यतन-२ (Update-2)​
.....लेकिन बबिता के नए-2 कपड़े ट्राई करने के चक्कर में न चाहते हुए भी नागेंद्र की हालत खराब होती जा रही थी आखिर वह भी कितना संयम बरते अगर कुंवारी लड़की सहकर्मी हो और तो और वह कंप्यूटर ऑपरेटर हो क्योंकि जब कंप्यूटर ऑपरेटर काम कर रहा हो तो उसका पूरा ध्यान मॉनिटर पर रहता है चाहे बगल से उसकी जवानी का कोई निराकरण ही क्यों न कर रहा हो यही हाल नागेंद्र का था। न चाहते हुए भी नागेंद्र की निगाहें बबिता की गोल, मुलायम से थोड़ा कठोर, स्पष्ट किनारों वाली चूंचियों का लंबे समय तक अवलोकन करतीं।​
अब चाय पीने के बाद दोनो काफी देर तक बातें करते एक दूसरे के घर का हाल चाल लेते। इसी बातचीत में नागेंद्र को पता चला कि बबीता तो वहां रहती है जिधर से जाने पर नागेंद्र को घर पहुंचने में 5 मिनट अधिक लगते हैं, सो उसने कहा मैं आपके रूम के नजदीक वाले चौराहे पर छोड़ दिया करूंगा । अब जो हॉट माहौल चाय वाले केबिन में बनता था वो और ज्यादा गरम हो गया बबीता बाइक की ब्रेक लगने पर नागेंद्र से चिपक जाती और उसकी रबड़ जैसी दोनो गेंदे नागेंद्र की पीठ पर कांग्रेस हो जातीं । अब चाय वाले केबिन में लंड को ऊपर से मसलकर काम चलाने वाले नागेंद्र का लंड बाइक चलाते समय दर्द करने लगता।​
एक बार बबीता फोन पर बात किसी से बात कर रही थी और उसी दौरान उसे पेशाब लग गई वह सोचती रही थोड़ी देर बात करके फोन रख कर ही जाऊंगी और इसी चक्कर में फोन रखने तक उसे तेज पेशाब लग गई दिमाग भी बातों में खोया हुआ था सो वह गलती से पुरुष स्टॉफ वाले वाशरूम में घुस गई जिसमे गेट के पास ही वाश बेसिन, उसके बाद पुरुष के लिए मूतने की व्यवस्था मामूली दीवार और टॉयलेट की व्यवस्था और तेजी से जाकर सलवार खोलकर मूतने लगी फिर भी कुछ नहीं हुआ था लेकिन ये सब इतनी तेजी से हुआ कि नागेंद्र हड़बड़ा गया और लंड से पेशाब की अंतिम बूंदे झाड़ते हुए ही घूमा और बोला बबीता तुम ! उसके इस तरह घूमने के कारण लंड बबीता के मुंह के पास झूल गया जो कि खड़ा नही था किंतु सवा दो इंच मोटा और पौने पांच इंच लंबा, लगभग पूरा सुपाड़ा अंदर था बबीता को इसकी सिरफ एक झलक मात्र दिखी बोली सॉरी! सॉरी! .... और नागेंद्र तुरंत जिप बंद करते हुए बाहर आ गया। बबीता जब घर जाती तो मकान मालिक भी उसे कामुक नजरों से घूरता था, जिससे बबीता की सोई जवानी जाग जाती थी और अकेलेपन में उफान मारने लगती इसलिए वह रूम पर कभी कभी चूत में उंगली कर लेती। लेकिन अब उसने मोटे लंड का वास्तविक दर्शन कर लिया था जिससे उसकी चूत बिन उंगली के ही रात को रिसने लगी थी। उधर नागेंद्र का लंड तो हफ्ते में पांच दिन भूखा रहता ही था उसे तो सिर्फ इशारे की देर थी उसका तीन इंच मोटा और साढ़े आठ इंची लौड़ा ऐसी कुंवारी चूत को तो फाड़ कर भोसड़ा बना देता ।​
नागेंद्र शादीशुदा था उसने शुरुआत की और बबीता की ओर से पॉजिटिव रिएक्शन नहीं आया तो ख्वामखाह ही तनाव पैदा होता इसलिए नागेंद्र ने अपनी ओर से पहल न करने का निर्णय लिया। किंतु बबीता के छोटे-2 पंख नही मान रहे थे उसे उड़ान भरने के लिए उकसा रहे थे चूत का पानी ईंधन का काम कर रहा था।​
दोनो के लिए अच्छी बात ये थी कि लाइब्रेरी में जो स्टॉफ केबिन था उसमे बाहर से अंदर नहीं दिखता था किंतु अंदर से बाहर जरूर दिखता था वरना स्टूडेंट लाइब्रेरी पढ़ने आया करते थे।​
मौसम सितंबर का तीसरा सफ्ताह था दिन थोड़ा छोटा ही होता था अब बबीता ने चाल चली और बिना ब्रा के टाइट टी शर्ट या कमीज में आने लगी और पांच बजे के बाद भी थोड़ा काम का बहाना करके रुकने लगी। चूंकि नागेंद्र उसके रूम के पास छोड़ता था इसलिए उसे भी रुकना पड़ता, कॉलेज के सारे स्टूडेंट पांच बजे के बाद बाहर, चौकीदार भी इनसे ऊब गया और इन्हे आप खुद ही ताला लगाके नीचे ग्राउंड फ्लोर पर मेरी दराज में रख दिया करो बोल दिया।​
एक दिन मौसम ठंडा था शाम का दूध बचा था बबीता ने बोला रुको चाय बनाती हूं पीकर आराम से चलेंगे। उसने चाय बनाई और दोनो पी रहे थे कि अचानक बबीता को किसी बात पर हंसी आई उसके हाथ से चाय छलक गई, आधी चाय चूंचियों में जा गिरी । नागेंद्र ने समझदारी दिखाई और झपट कर बबीता का टी शर्ट उतार दिया और उसी से चाय पोंछने लगा वरना चूंची पर छाले पड़ जाते । जब लगी हुई चाय ठंडी हुई और नागेंद्र के हाथ लगने से बबीता की चूंची जैसे गुब्बारे की तरह फूल कर टाइट हो गई नागेंद्र ने नजर नीचे झुका ली और उसका टी शर्ट उसकी चूंची को ढकते हुए वापिस कर दिया।​
बबीता: क्या कर रहे हो आप, इसे सूखने दो वरना घर कैसे जाउंगी और अपनी चूचियों को आजाद कर दिया।​
पहली बार तो नागेंद्र दुर्घटनावश चूंचियों के दर्शन कर रहा था लेकिन इस बार निस्तब्ध हो गया लंड बाहर आने का रास्ता ढूंढने लगा ।​
नागेंद्र: अब चलते हैं छः बज गए।​
बबीता: लेकिन मेरी टी शर्ट तो नही सूखी । चूंचियों का इशारा करते हुए सुनो नागेंद्र मेरे यहां पर जलन हो रही है प्लीज थोड़ा सा सहला दो यहां पर तो आटा भी नही है।​
नागेंद्र: तुम स्वयं सहला लो।​
बबीता: मुझसे नही बन पाएगा प्लीज सहला दो , शर्म आती है तो पीछे आ जाओ और सामने देखते हुए सहला दो।​
नागेंद्र: अच्छा ठीक है।​
नागेंद्र पीछे खड़ा होकर चूचियों को अच्छे से हाथों में लेकर मसाज करने लगा ।​
बबीता: आह! ऐसे ही करते रहो।​
नागेंद्र का लंड जींस पैंट में दर्द करने लगा उसने चुपके से जींस का बटन खोल दिया और मसाज करता रहा। उसका लंड अंडर वियर में तन गया और बबीता के गले में पीछे से टच करने लगा। बबीता को बहुत गरम महसूस हुआ लेकिन चुप रही।​
शाम के साढ़े छः बज गए थे बबीता ने टी शर्ट पहनी और आनन फानन में दोनो घर निकल गए।​
बबीता ने घर पर बहुत कोसिस की लेकिन बिना चूत में उंगली करके पानी निकाले नींद नहीं आई।यही हाल नागेंद्र का था उसका लंड आज बैठ ही नही रहा था लेकिन उसने मुट्ठ नही मारी उसने मन ही मन सोचा अब मौका मिला तो इस गांडचोदी की चूत का भरता बनाऊंगा और उसी दिन इस पानी को उसकी चूत में भरूंगा ।
 
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ajey11

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अद्यतन-३ (अपडेट-3)​
... अब यह निश्चित हो गया था कि बबीता और नागेंद्र का मिलन में दोनो में से कोई पीछे नहीं हटेगा । मै कॉलेज के बारे में बताना भूल गया कॉलेज हाईवे से सटा हुआ था दो आमने सामने बड़ी बिल्डिंग थीं एक पुरानी थी एक नई ।नई वाली में टॉप फ्लोर पर लाइब्रेरी थी ग्राउंड फ्लोर पर एक तरफ एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की लैब दूसरी तरफ खाली स्पेस था क्योंकि इस कोर्स को हाल ही में मान्यता मिली थी, फर्स्ट फ्लोर पर एक तरफ डायरेक्टर और कुछ अन्य स्टॉफ के रूम तथा दूसरी तरफ Placement cell थी बीच के फ्लोर और टॉप फ्लोर का दाहिना पक्ष शैक्षणिक कार्य के लिए यूज होता था। इसी तरह सामने वाली पुरानी बिल्डिंग शैक्षणिक कार्य और सारी प्रयोगशालाएं थी जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन, कंप्यूटर साइंस, MATLAB, इंजीनियरिंग ड्राइंग आदि। और हां पुरानी बिल्डिंग में ही अकाउंट शाखा थी जो फीस वगैरह का मैटर देखती थी, दूसरे फ्लोर पर परीक्षा प्रकोष्ठ (एग्जामिनेशन सेल) भी था और CCTV जो कि यूनिवर्सिटी ने एग्जाम में अनिवार्य कर दिया था और स्टूडेंट और कॉलेज की सेफ्टी के लिए भी CCTV लगाया गया था की मॉनिटरिंग करने के लिए एक बाबू मोहित नियुक्त था ।​
पुरानी बिल्डिंग के बाएं तरफ गर्ल्स हॉस्टल और नई बिल्डिंग के बाएं तरफ बॉयज हॉस्टल था। गर्ल्स हॉस्टल के दाएं साइड कुछ दूर चलने पर बड़ा प्ले ग्राउंड क्रिकेट या कोई आयोजन के लिए था। जबकि बैडमिंटन वगैरह के लिए तो बॉयज हॉस्टल के सामने ही प्लेइंग प्लेस था।​
26 सितंबर की शाम चार बजे दोनो काम में लगे हुए थे कि अचानक घने काले बादल छाने लगे ऐसा लग रहा था ये जाते हुए मानसून की घनघोर बारिश करेंगे। पूरा स्टॉफ तो पौने पांच बजे तक ही निकल गया अब तक बूंदा बांदी हो रही थी स्टूडेंट भी अपने हॉस्टल और जो दिवा छात्र थे वे पांच बजे से पहले ही अपने घर के लिए चल दिए। जब पांच बजे नागेंद्र बाहर लाइब्रेरी से बाहर निकला आवाज लगाई मोहन ! वो मोहन! कोई आवाज नही आई मोहन भी लाइब्रेरी के सामने वाली साइड और बीच में लगी लाइटों को बुझाकर घर चला गया था । गेट पर गार्ड के लिए जो केबिन बना था वह इस बिल्डिंग से थोड़ा सा पीछे लेकिन इसी दिशा में बना था यानी अगर गार्ड पुरानी बिल्डिंग के बरामदों को तो देख सकता था। लेकिन नई बिल्डिंग के बरामदे वो झांक कर भी नहीं देख सकता था बशर्ते वह निकलकर दूसरी तरफ न आ जाए। नागेंद्र ने देखा तेज मूसलाधार बारिश शुरू हो गई थी हाईवे पर तेज वाहन बारिश में रोड के साथ आवाज करते हुए निकल रहे थे ।​
नागेंद्र: बबिता! हमे बीस मिनट पहले निकल जाना चाहिए था।​
बबिता: क्या हुआ? क्यों निकल जाना चाहिए था?​
नागेंद्र: बाहर चल के देखो ।​
आगे आगे बबिता निकली पीछे पीछे नागेंद्र बबिता जाकर रेलिंग से सटकर खड़ी हो गई , जिससे उसकी चूंचियों का निचला भाग ठंडी रेलिंग से छूकर सिहरन पैदा कर दिया । ठंडी हवा के थपेड़े और हल्की बौछार ने नागेंद्र के खड़े होते लंड को अचानक मुरझा दिया और बबिता की भी चूत एकदम से ठंड लगने से सिकुड़कर रबड़ हो गई । लेकिन जब लंड में दोबारा प्रसार शुरू तो वो बेकाबू था इसी तरह बबीता की चूत सिकुड़ने के बात जब गरम हुई तो मानने को तैयार ही नहीं थी । मौसम ही ऐसा था पांच बजे ही घना अंधेरा तेज बारिश खाली बिल्डिंग ।​
बबीता: मुझे ठंड लग रही है दोनो साथ खड़े हो जाते हैं।​
दोनो एक दूसरे से सटकर खड़े हो गए बातचीत करते करते कब नागेंद्र बबीता के पीछे खड़ा हो गया पता ही नही चला। वास्तव में नागेंद्र तो थोड़ा ही शिफ्ट हुआ था लेकिन बबीता भी दूसरी तरफ शिफ्ट हुई थी ।​
अब नागेंद्र का लंड बबीता की चूत में और हाथ बबीता की चूंची पकड़ने के लिए उतारू थे। नागेंद्र का नाग पैंट में फन फुलाकर खड़ा था जिससे पैंट बंद होने के कारण दर्द होने लगा सो नागेंद्र ने पैंट की जिप खोल दी । अब नागेंद्र का लंड बीच बीच में बबीता की गांड़ में छू रहा था जिससे बबिता की भी चूत सीटी मार रही थी। उसे मजा आ रहा था । तभी हवा के झोंके के साथ एक बौछार आई जिससे बबिता थोड़ा पीछे हटी और नागेंद्र वहीं खड़ा रहा। उसका लंड चढ्ढी सहित बबीता की गांड़ में फंस गया । नागेंद्र उसे निकालने की बजाय जब बबिता फिर अपनी पोजीशन पर आई तो उसके साथ ही थोड़ा आगे बढ़ गया । अब उसका नाग गांड़ के पास था और बिल खोजने लगा यानी झटके देने लगा। बबिता भी काबू को बैठी और चुपके से एक हाथ अपनी चूत में डाल दिया और सहलाने लगी। इस चक्कर में उसका नाड़ा खुल गया और सलवार नीचे गिर गई। अब क्या करती कैसे उठाती चूत से हाथ हटाया और पावभाजी जैसी चूत को दीवार पर दबाने लगी। इधर नागेंद्र ने नाग को अंडर वियर से निकालकर आजाद कर दिया था अब उसके स्पर्श मात्र से बबीता की चूत से आंसू निकलने लगे। और नाग तो फिलहाल बिल ही ढूंढता रहा जिसे काली बिल यानी गांड़ ही दिख रही थी। एक बार नागेंद्र पीछे हट गया तो बबिता के हाथ ने खुद ही उसके लंड को पकड़कर फिर उसी स्थिति में खड़ा कर दिया। इस बार सब्र का बांध टूट गया और नागेंद्र ने बबिता की दोनो चूंचियां पकड़कर कसकर भींच दी। पैंटी उसने पहनी नहीं थी।​
बबीता: अब मत तड़पाओ। डाल दो प्लीज।​
लेकिन नागेंद्र दस मिनट तक उसकी चूंचियों को अंदर से हाथ डालकर मसलता रहा। बबीता भीख मांगने लगी प्लीज़ डाल दो।​
नागेंद्र ने बबिता की रीढ़ पर हाथ रख कर दबाया, बबिता थोड़ा झुकी जिससे उसकी चूत जो बिल्कुल नीचे की ओर थी पीछे आई आते ही नागराज ने पहचान लिया और बुर से बह रह दूध को पिया और फिर उसी में डुबकी लगा दी। नागेंद्र ने साढ़े आठ इंच लंबे और तीन इंच मोटे लंड को नीचे चूत में लगाकर कसकर ऊपर उठाया।​
बबीता: अरे मम्मी रे.... जान ले ली​
नागेंद्र: लंड को निकालकर पीछे खड़ा हो गया।​
बबीता: प्लीज डाल प्लीज प्लीज भट्टी गरम है जल जाऊंगी।​
नागेंद्र ने फिर लंड को सेट किया और ऊपर की ओर उठा दिया ।​
बबीता: मार दिया रे, कैसे चोद रहा है रे जानवर की तरह आई ईईई, हट पीछे हट निकाल जल्दी मर जाऊंगी आई सी ईई....।​
नागेंद्र मंझा हुआ खिलाड़ी था उसने काबू करके एक बार फिर लंड बाहर निकाल लिया।​
बबीता जैसे कच्ची मछली उछलने लगी​
बबीता: डाल मादरचोद डाल दे इस हथियार को इस भट्टी में एक साल से तड़प रही है(पहली बार उसके मुंह से गाली निकली थी) ।​
नागेंद्र अब समझ गया कि लोहा गरम है। उसने लंड को चूत से सेट किया और सटासट सटासट चोदने लगा।​
बबीता: आई ईई ईई मार गई आराम से ..आह आईओ आराम से।​
नागेंद्र: चुप गांडचोदी तेरी आज चूत खोल रहा हूं आज के बाद चाहे जिसका लंड ले लेगी तो दर्द नही होगा।​
बबीता: आई रे ममऽऽऽऽऽमी हमार बुर फाड़ दिहिस।​
नागेंद्र लगातार तेज गति से चोदे जा रहा था और बड़बड़ाए जा रहा था।​
नागेंद्र: ले बुरचोदी रण्डी ले ।​
अब बबिता को भी मजा आने लगा।​
बबीता: आह आह आई आह ऊइ आज सी ईईईई आह और जोर से। आह​
नागेंद्र ने जोर लगाकर लंड को पूरा बच्चेदानी तक उतारा तो उसकी फटी हुई चूत और ज्यादा छिल गई किनारों पर जिससे बबिता चिल्लाने छटपटाने लगी लेकिन नागेंद्र लगातार चोदता रहा और बबिता की चूत का भर्ता बना ही दिया।​
इस तरह आधे घंटे ताबड़ तोड़ चुदाई के बाद नागेंद्र झड़ गया इस बीच बबीता चार बार झड़ी और नीचे गिरी उसकी सलवार खून से लथपथ हो गई।​
दोनो घर के लिए निकले, नागेंद्र बबिता को चौराहे पर छोड़कर अपने रूम चला गया।​
सचदेवा अंकल (मकान मालिक): बबिता इतनी देर से क्यों आ रही हो आज रोज तो पौने छः तक आ ही जाती थी।​
बबीता: अंकल वो आज तेज बारिश हो रही थी।​
सचदेवा अंकल: ठीक है बेटी कोई बात नही, अपने कपड़े बदल लो नही तो बुखार आ जाएगा।​
बबीता: ठीक है अंकल।​
अंकल: लेकिन ये बेटी तुम्हारे सलवार में खून कैसे लगा हुआ है।​
बबीता: कुछ नहीं अंकल ये वो कुछ नही है और अपने रूम की ओर भागी।​
अंकल: (कामुक नजरों से मुस्कुराते हुए) कोई बात नहीं बेटी चेंज कर लो जल्दी।​
यहां तो कुछ हद तक उसने कंट्रोल कर लिया लेकिन कुछ ही देर में नागेंद्र का फोन आया।​
नागेंद्र: बबीता एक गड़बड़ हो गई ।​
बबीता: क्या हुआ।​
नागेंद्र: जहां हम लोग चुदाई कर रहे थे वहां एक cctv चौबीसों घंटे ऑन रहता है।​
बबीता: अब क्या करें?​
नागेंद्र : सुबह मोहित नौ बजे ही आ जाता है उसे कोई काम तो होता नहीं इसलिए कभी कभी रैंडम वीडियो देखता रहता है। वीडियो क्लियर तो नहीं होगी लेकिन हम दोनो के फसने के लिए काफी होगी। सुबह नौ बजे से पहले ही चलकर वीडियो डिलीट करनी पड़ेगी।​
मोहित: एक नंबर का ठरकी है लंड सात इंच ही मोटा है लेकिन चौड़ाई चार इंच है मगर ये केवल गांड़ मारने का शौकीन है इसे बस गांड़ चाहिए।​
 
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