पात्र: नागेंद्र उसकी वृद्ध मां एवं पिता तीन भाई जितेंद्र, मुकेश और सबसे छोटा विनय, नागेंद्र की पत्नी सरोजा। दूसरे जिले की युवती बबिता और उसका परिवार व लखनऊ (मूलतः बाराबंकी का एक अन्य युवक कमलेश
दोनो मंझले भाई मुंबई में रहते थे और छोटा भाई विनय जो बचपन से मेरा दोस्त है वह एक बार रात में चार किलोमीटर दूर नौटंकी देखने गया था जिसके बाद से ही उसमे कुछ अचानक परिवर्तन हुए और वह हंसमुख, उत्साही और चंचल से वह अपने में खोया रहने लगा वैसे तो वह सारी चीजें पूर्व की भांति समझता था करता था लेकिन अब वह उतना सक्रिय नही रहता था जो भी उसकी मां कहती बिना कोई प्रश्न किए चुपचाप कर देता था। पढ़ाई में भी उसकी परफॉर्मेंस कोई खास नही थी इसलिए जब नागेंद्र लखनऊ में ड्यूटी देता तो वह घर पर अपने माता पिता के निर्देश पर थोड़ा बहुत खेती के काम कर देता था।
नागेंद्र एक सीधा साधा सादगी पसंद विद्यार्थी था साहित्य में रुचि थी इसलिए हिन्दी के गुरुजी से खूब बनती थी किंतु ग्रेजुएशन उसने लाइब्रेरी साइंस से कर ली थी क्योंकि उसका एक गांव का साथी भी यही कोर्स कर रहा था । खेती करने की वजह से शरीर उसका बलिष्ठ था घर में सबसे बड़ा था इसलिए पढ़ाई कम ही हो पाती थी। लेकिन फिर भी उसने पढ़ाई जारी रखी थी और भगवान की कृपा से 29 साल की उम्र में उसकी नौकरी एक सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज में लाइब्रेरियन पद पर लग गई थी। शादी उसकी तीन साल पहले ही हो चुकी थी। वह लखनऊ में किराए के मकान में रहता था और शनिवार को दोपहर में या कभी कभार शुक्रवार शाम को घर के लिए सीधे कॉलेज से ही निकल जाता था।
सरोजा ने भी बारहवीं तक पढ़ाई की थी उसके बाद उसके माता पिता ने 22 वर्ष की उम्र में 26 के नागेंद्र के साथ शादी कर दी थी ।सरोजा को शुक्रवार या शनिवार को नागेंद्र का खूब इंतजार रहता था क्योंकि सरोजा की जवानी की आग बुझाने वाला सप्ताह में पांच दिन तक कोई नही होता था। सरोजा जब पहली बार चुदी थी तब बहुत रोई थी उसकी चूत की फांकों के आस पास दरारें आ गई थी उससे पहले उसने किसी का भी लंड नही लिया था ।जब नागेंद्र घर आता तो दो दिन सरोजा को जी भर के चोदता ।
इस प्रकार सब कुछ सामान्य चल रहा था ।
इधर बबिता भी अपनी बारहवीं की पढ़ाई पूरी कर ली थी उसे नए उपकरण चलाना ,सीखना बहुत अच्छा लगता था और स्वावलंबी तो दसवीं से ही बनना चाहती थी और 12थ में अच्छे अंक प्राप्त होने के कारण सरकार की तरफ से उसे लैपटॉप भी मिल गया था और उसी के अनुसार वह जल्दी नौकरी पाने के चक्कर में ओ लेवल की पढ़ाई कर डाली और कंप्यूटर ऑपरेटर का एग्जाम क्लियर करके उसी लाइब्रेरी में ड्यूटी ज्वाइन कर लिया जिसमे नागेंद्र लाइब्रेरियन था। 22 साल की उमर में नौकरी पाकर वह बहुत खुश थी । नागेंद्र भी आज खुश था क्योंकि जब तक ये पद खाली था तब तक नागेंद्र ही ये सब संभालता था। शुरुआत में बबिता और नागेंद्र की उतनी बनी नही क्योंकि वह गांव का सादगी पसंद युवक था और उसकी शादी भी हो चुकी थी तो वह बबिता पर ध्यान नहीं देता था और बबिता भी जवान तो पूरी हो गई थी लेकिन उसे पढ़ाई के लिए 6 किलोमीटर साइकिल से जाना घर के काम में हाथ बटाना और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने के कारण उसे कभी ऐसा वक्त ही नहीं मिला जिसमे उसकी जवानी के न रुकने वाले झोंके चलें, सिर्फ कभी शादी ब्याह में सहेलियों के साथ हंसी मजाक हो जाया करता था और इसके अलावा उसके भी दिमाग मे यही बात बैठ गई थी शादी से पहले चुदाई नही करनी चाहिए जब शादी होगी तब पति परमेश्वर के साथ ये सब किया जाता है। लेकिन उसे क्या पता था कि किस्मत को कुछ और ही मंजूर है तभी तो उसकी नौकरी पाने की खुशी धीरे धीरे चैलेंज का रूप लेने लगी। उसे कॉलेज में कंप्यूटर ऑपरेटर की नौकरी मिली थी यानी अब वह बदली करवाके अपने गृह जनपद नही जा सकती थी। बड़ी मुश्किल से किसी ने उसे रूम दिया था ज्यादातर मकान मालिक तो नहीं मना करते लेकिन उनकी पत्नी मना कर देती थीं कि अकेली लड़की को कौन रखे कुछ हो गया या इसने कर दिया तो वेवजह जी का जंजाल बनेगा। वह भी शनिवार को अपने घर वापिस निकल जाती क्योंकि बाराबंकी भी लखनऊ से सटा है । मगर अब धीरे धीरे नागेंद्र और बबिता में सामंजस्य स्थापित होने लगा था क्योंकि किसी सोमवार को नागेंद्र पहले आकर लाइब्रेरी खोल देता फिर बबिता आराम से घर से आती इसी तरह बबिता भी किसी सोमवार को पहले आ जाती और नागेंद्र को बोल देती मैं संभाल लूंगी आप आराम से आ जाना।यही सिलसिला जब शनिवार शाम को घर निकलना होता तब भी चलता। इसके अलावा जो इन दोनो के बीच तेजी से नजदीकियां बढ़ा रही थी वह थी लाइब्रेरी के छोटे केबिन में रखी गोलमेज जिस पर पहले तो नागेंद्र और लाइब्रेरी का चपरासी मोहन चाय पिया करते थे वैसे तो नागेंद्र लाइब्रेरियन था लेकिन गांव का था पढ़ा लिखा था सो वह पद का गुमान नहीं करता था और मोहन से कहता आवा मोहन चाय पिया जाय लेकिन जब से बबिता लाईब्रेरी में आती थी तब से नागेंद्र ने तो नही मना किया लेकिन मोहन खुद ही बाहर वाली टेबल पर बैठा करता था।नागेंद्र और बबिता दोनो साथ बैठकर चाय पीते छोटा केबिन था सो न चाहते हुए भी नागेंद्र की निगाहें बबिता की एकदम सुडौल और टाइट चूंचियों पर चली जाती।इधर बबिता जब शाम को खाना पीना करने के बाद बिस्तर पर जाती तो उसके साथ ही उसकी जवानी भी करवट लेने लगती अब उसके पास खाली समय था और लाइब्रेरी में एक 29 सवाल का जवान मरद वह भी शादीशुदा।अब बबिता को सहर की हवा लग चुकी थी हर महीने मोटी तनख्वाह आती थी कोई रोकटोक नही थी सो वह नए नए अनुभव कर रही थी कभी मॉल में जाती तो कभी सिनेमा हॉल में तो कभी पार्क या अन्य घूमने वाली जगहों पर। और ये इंजीनियरिंग कॉलेज था इसलिए मैडमें कपड़े भी अपनी मर्जी के पहन के आती थीं तो बबिता क्यों पीछे रहती वह तो बचपन से चुलबुली थी लेकिन गांव में आठवीं के बाद सूट सलवार के सिवा कुछ पहनने नही दिया गया इसलिए अब उसने नए नए कपड़े ट्राई करने शुरू कर दिए लेकिन