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Erotica छाया ( अनचाहे रिश्तों में पनपती कामुकता एव उभरता प्रेम) (completed)

Alok

Well-Known Member
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Atayant Adhbudh Lovely Anand ji.........

Iss kahani ki jitni prashansa ki jaye woh bhi kam hai, bahut samay baad koi aise kahani padh rahe hai jis mein sambhog ka samay bhi pyaar jhalakta hain.........


Aise hi likhte rahiye........ :love3::love3::love3::love3::love3::love3::love3:
 

Lovely Anand

Love is life
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Super hot...... 🔥🔥🔥🔥🔥

Too much erotic and sensual..........


Just loved it......
धन्यवाद आपके सतत प्रोत्साहन के लिए
 
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Reactions: kamdev99008

Lovely Anand

Love is life
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भाग -12
छाया का मुझे मनाना
छाया ने वापस आते समय ने मुझसे कहा आपने मेरा बहुत ख्याल रखा है हमारे बीच जो फासला बन गया है उसे सिर्फ सीमा ही भर सकती है. सीमा एक अच्छी लड़की है मैं इस बात की गारंटी देती हूं. आप सीमा को स्वीकार कर सकते हैं. पर उसे आपको ही मनाना होगा. मैं छाया की समझदारी पर बहुत खुश था मैंने छाया से कहा
“मैं तुम्हारा गुनहगार हूं मैंने तुम्हारे साथ इतने दिनों तक अंतरंग वक्त बिताया है और हमें इस तरह अलग होना पड़ा यह मुझे अपराध बोध से ग्रसित रखता है”
उसने कहा
“उन अंतरंग पलों का जितना आनंद मैंने लिया है शायद आपने न लिया हो. वह मेरे लिए बहुमूल्य है मुझे उस बात का कोई अफसोस नहीं है. अपने कौमार्य को सुरक्षित रखते हुए यह संबंध मैं अब भी आपसे भी रख सकती हूँ मैं आपकी प्रेयसी न सही दोस्त तो अब भी हूँ.”
घर का दरवाजा आ चुका था और हम दोनों अपने अपने कमरों की तरफ चले गए.


अगले शनिवार को छाया ने सीमा को फोन करके फिर से बुला लिया था. अब हमारे पास दो रातें थी हम तीनों ने बहुत सारा वक्त एक साथ गुजारा था. छाया बीच-बीच में मुझे और सीमा को पास लाने का पूरा प्रयास कराती. हम दोनों का मन भी परिस्थितियों वश एक दुसरे का हो चला था.. धीरे धीरे एक दो मुलाकातों में सीमा ने अपनी रजामंदी दे दी.

छाया अब घर के अभिभावक के रूप में काम कर रही थी. उसने माया आंटी को सारी बातें खुलकर बता दी. माया आंटी ने भी सीमा को सहर्ष स्वीकार कर लिया. वह हमारे घर के लिए सर्वथा उपयुक्त थी. वह छाया की एक बहुत अच्छी सहेली थी और मेरे से पूर्व परिचित भी थी. माया आंटी ने सीमा के माता-पिता से हमारे संबंधों की बात की वह मुझे अच्छे से जानते थे और उन्होंने अपनी रजामंदी तुरंत दे दी.
कुछ ही दिनों में मेरी और सीमा की मंगनी हो गई और 3 महीनों के बाद का शादी का दिन भी निर्धारित हो गया. मेरे और सीमा के शादी के फैसले में छाया का बहुत बड़ा योगदान था। उसने ही हम दोनों का मिलन कराया था. हम दोनों उसके बहुत शुक्रगुजार थे. हम दोनों ने ही उसके साथ एकांत में वक्त बिताया था और अपनी काम पिपासा को उसकी मदद से हर संभव तरीके से बुझाया था. वह हम दोनों को हर तरीके से खुश रखती आई थी पर अब हम एक हो चुके थे और वह अकेली थी.
मंगनी का समारोह समाप्त हो जाने के बाद सभी लोग अपने-अपने घर वापस चले गए सीमा भी अपने परिवार वालों के साथ कुछ दिनों के लिए चंडीगढ़ चली गई.
आयोजन से थका हुआ मैं अपने कमरे में आराम कर रहा था. छाया चाय लेकर मेरे कमरे में आई मैं समझ गया माया आंटी घर पर नहीं हैं. मैंने फिर भी पूछा
“तुम”
उसने कहा
“वह दोनों लोग बाहर गए हैं दो-तीन घंटे में लौटेंगे” मैं उठकर चाय पीने लगा और वह भी मेरा साथ देने लगी उसने दो कप चाय लायी थी. मैंने एक बार फिर से उसे धन्यवाद दिया. वह भी बहुत खुश थी. चाय खत्म होने के बाद उसने मेरी चादर खींची और बोला
“जल्दी से नहा लीजिए मैं नाश्ता लगा रही हूं” चादर के हटते ही मेरा राजकुमार बाहर आ गया. मैं राजकुमार से खेलते खेलते सो गया था और अपनी पजामी को ऊपर करना भूल गया था. छाया मेरे राजकुमार को कई दिनों बाद देख रही थी. उससे बर्दाश्त ना हुआ उसने उसे अपने हाथों में ले लिया और कहा
“तुमने मेरी और मेरी राजकुमारी की बहुत मदद की है” ऐसा कहकर उसे प्यार से सहलाने लगी और मेरी उत्तेजना बढ़ने लगी. मेरे हाथ छाया की तरफ बढ़ने लगे यह सब अपने आप होता चला गया. कुछ ही देर मे छाया मेरी बाहों में थी.
हम दोनों कई महीनो बाद नग्न होकर एक दूसरे को बेतहाशा चूम रहे थे. छाया की राजकुमारी को छूते समय मुझे बालों का एह्साह हुआ. राजकुमारी बालों से ढक गई थी. पिछले कई दिनों से छाया प्रूरी तरह व्यस्त थी. शयद छाया ने अपनी राजकुमारी को सजाया संवारा नहीं था. आखिर वह करती भी किसके लिए. राजकुमारी को बालों में डूबा देख मैं थोड़ा दुखी हो गया. मैंने कहा राजकुमारी का क्या हाल बना रखा है. वह मुस्कुराकर बोली
“राजकुमार के वियोग में उसकी दाढ़ी बढ़ गई कहकर वह हंस पड़ी.” कहते हुए उसने राजकुमार को सहला दिया.
उसकी हंसी पहले जैसी ही मादक थी. मैंने उसकी राजकुमारी देखना चाहा पर वो तैयार नहीं हुई शायद वह बालों की वजह से शर्मा रही थी.
कुछ ही देर में हम वापस एक दूसरे से लिपटे हुए अपने राजकुमार और राजकुमारी को एक दूसरे पर रगड़ रहे थे. हमारे होंठ एक दूसरे में फिर उलझे हुए थे. मैंने छाया के नितंबों को अपनी और खींच रखा था. कई महीनों बाद हम दोनों इस सुख का आनंद ले रहे थे. कुछ ही समय में मेरे राजकुमार ने राजकुमारी के कंपन महसूस कर लिए छाया के मुह से “मानस भैया ...........” की धीमी आवाज कई महीनो बाद आ रही थी.
मैं उसके चेहरे को चूम रहा था . मेरे राजकुमार ने भी वीर्यपात कर दिया। वीर्य हम दोनों के नाभि के आस पास फैल गया छाया अपना शरीर नीचे की तरफ ले गई अपने स्तनों से मेरी नाभि को छूकर वीर्य अपने स्तनों पर लगाया और नीचे झुकते हुए उसने मेरे राजकुमार को अपने होठों से चुंबन किया जिससे वीर्य की कुछ बूंदे उसके होठों पर लग गइ. वह वापस मेरे पास आयी और मेरे होठों पर किस करते हुए बोली
“हमारे बीच ज्यादा कुछ नहीं बदलेगा बस आपको सीमा को बहुत खुश रखना होगा. जब तक वह खुश रहेगी आपको मेरा प्यार मिलता रहेगा. मैं आपको मंगनी में आपको कोई उपहार ना दे पायी थी. उम्मीद करती हूं कि मेरा यह उपहार आपको अच्छा लगा होगा“
छाया की बातें सुनकर मन प्रफुल्लित हो गया. उसने मुझे माफ कर दिया था. मैं उसे खुश करना चाहता था और वह मुझे उसका यह प्रेम आगे भी कायम रहेगा यह मेरे लिए स्वर्गीय सुख की बात थी. मैंने उसे अपने सीने से सगा लिया और उसे जीवन भर खुश रखने के मन ही मन वचनबद्ध हो गया.
मैंने उससे कहा छाया तुम बहुत अच्छी हो. वह मुस्कराई और बोली
“अच्छी दोस्त हूँ.” उसने दोस्त पर विशेष जोर दिया था. मैं भी अब उसे अपना दोस्त मान चुका था.
कमरे से जाते समय भी वह नग्न ही थी. उसने अपने कपडे हाँथ में उठे हुए थे शायद वह नहाने जा रही थी. मैं उसके गोरे और मादक नग्न नितम्बों को हिलाते हुए देख रहा था. राजकुमारी के बढे हुए बाल भी जाँघों के बीच से दिखाई दे रहे थे.


सीमा मेरी मंगेतर
[ मैं छाया ]
कुछ दिनों बाद सीमा वापस बेंगलुरु आ चुकी थी. अब वह मानस की मंगेतर थी. आज से कुछ महीनों पहले तक मैंने मानस की मंगेतर के रूप में मानस के कमरे में कई महीने व्यतीत किए थे. उसकी सुनहरी यादें अभी भी मन को गुदगुदा जाती और मुझे रुला जाती है. पर मैं स्थिति को मन से स्वीकार कर चुकी थी. मुझे पता था मानस मुझसे बहुत प्यार करते है मैं उनकी दोस्त बनकर भी सारा जीवन काट सकती थी. वह मेरे लिए समय समय पर दोस्त, प्रेमी, सखा, भाई, पिता सबकी भूमिका में आते और उसे बखूबी निभाते.
सीमा इस बार भी वीकेंड पर हमारे घर आई. मैंने उसके लिए आज विशेष इंतजाम कर रखा था. मानस को मैरून कलर की नाइटी बहुत पसंद थी. मैंने उनकी पसंद को ध्यान रखते हुए एक ट्रांसपेरेंट नाइटी खरीद ली थी. नाइटी के ऊपर एक गाउन भी था जिसे पहन लेने पर नाइटी की पारदर्शिता खत्म हो जाती थी . शाम को मैं सीमा को लेकर अपने कमरे के बाथरूम में गई और हम दोनों ने एक दूसरे को शावर के नीचे खूब प्यार किया. बाहर आने के बाद मैंने उसे नाइटी पहनाई जिसे देखकर वह बहुत खुश हो गयी.
वह अत्यंत सुंदर लग रही थी. उसने मुझसे कहा
*लगता है तुमने आज रात के लिए विशेष तैयारी कर रखी है. मेरी ननद मेरा इतना ख्याल रखेगी यह मैंने कभी नहीं सोचा था”
ननद शब्द सुनकर मेरे मन में बिजली दौड़ गई. मेरे और मानस के बीच बन चुके संबंधों में इस शब्द की कोई गुंजाइश नहीं थी पर यह सीमा के शब्द थे जो इससे पूरी तरह अनभिज्ञ थी. मैंने उसे सजाया. पैर्रों में आलता लगाया, पायल पहनाई बाल सवारे. मानस को सजे हुए पैर अच्छे लगते थे.
हम सब खाने की टेबल पर आ चुके थे. टेबल पर दो अत्यंत खूबसूरत नवयुवतियों को नाइटी में देखकर मानस के चेहरे पर खुशी स्पष्ट दिखाई दे रही थी. खाना खाने के पश्चात हम सब हमेशा की तरह मानस की बालकनी में चले गए. कुछ देर बात करने के बाद मैंने कहा
"अच्छा सीमा मैं चलती हूं तुम्हारे कपड़े मानस भैया के कमरे मैं ही रखे हैं तुम रात में यहीं सो जाना." इतना कहकर मैं मानस के कमरे से वापस आने लगी सीमा भी मुझे छोड़ने दरवाजे तक आई और बार-बार बोल रही थी
“यह ठीक नहीं रहेगा माया आंटी भी है कितना खराब लगेगा” मैंने उसकी राजकुमारी को ऊपर से छुआ और बोली
“एक बार इसको राजकुमार से मिला तो लो. पता नहीं इतने दिनों में राजकुमार का क्या हुआ होगा? आखिर विवाह तो राजकुमारी का भी होना है। उसे अपने होने वाले राजकुमार को देखने का पूरा हक है” मैं हंसते हुए वापस आ गइ सीमा भी हंसते हुए दरवाजा बंद कर रहे थी.


वर्षो बाद सीमा के साथ.

[मैं मानस ]
बालकनी से उठकर मैं भी कमरे में आ गया था. सीमा दरवाजे की चिटकिनी लगाकर मुड़ी ही थी कि मुझसे नजरें मिलते ही उसने अपनी नजरें झुका ली. उसे चिटकिनी लगाते देखकर मैंने हमारे बीच होने वाले घटनाक्रम को अंदाज़ कर लिया था. वह नजरें झुकाए खड़ी थी. मैं धीरे-धीरे उसके पास गया और उसका हाथ पकड़ लिया. इससे पहले कि वह कुछ बोल पाती मैंने उसके माथे पर चुंबन जड़ दिया. कुछ ही देर में हम दोनों एक दूसरे के आलिंगन में थे.

[मैं सीमा ]
आज लगभग 4-5 वर्ष बाद मैं मानस के साथ थी. हम दोनों ही काफी बदल गए थे. सोमिल से मेरी आखिरी मुलाकात आज से लगभग २-३ वर्ष पहले हुई थी. मैंने उसके बाद किसी और पुरुष से कोई संबंध नहीं रखा था. सोमिल की यादें मेरे जेहन में अभी भी ताजा थी. धीरे-धीरे हम दोनों एक दूसरे से प्यार कर बैठे थे. पर शायद नियति को यह मंजूर नहीं था. वह अचानक मेरी जिंदगी से दूर चला गया था और मैं चाह कर भी उसको नहीं ढूंढ पाई. मुझे नहीं पता कि वह मुझे ढूंढ रहा था या नहीं पर इस दूरी को खत्म करने का कोई उपाय नहीं बचा था . मेरे माता-पिता का दबाव मुझ पर लगातार बढ़ रहा था. उनकी इच्छा थी कि मैं शादी कर लूं. हालांकि मेरी उम्र अभी बाईस वर्ष की ही थी पर माता-पिता की नजरों में बेटियां शायद जल्दी बड़ी हो जाती है. वह मेरी शादी के लिए बहुत ही उत्सुक थे. उन्हें सोमिल से कोई दिक्कत नहीं थी परंतु वह तो ईद की चांद की तरह गायब हो गया था. मानस को अपना जीवनसाथी बनाना मेरे लिए गर्व की बात थी. पर वह मुझे किस प्रकार की लड़की समझते थे यह मेरे लिए प्रश्न चिन्ह था? मैंने किशोरावस्था में ही उसके साथ आगे बढ़कर सेक्स संबंध कायम किए थे यह मुझे अब लगता था कि लड़कियों को ऐसा नहीं करना चाहिए. मुझे लगता था मानस मुझे थोड़ी बदमाश टाइप की लड़की समझते होंगे. परंतु इस शादी के लिए उसने मुझे स्वीकार कर लिया था. मैं बहुत खुश थी और आज उसकी बाहों में लिपटी हुए उसके चुम्बनों का जवाब दे रही थी.
कुछ ही पलों में हमारे कपड़े एक दूसरे के शरीर से अलग होते चले गए. कौन किसके कपड़े कब खोल रहा था इसका हम दोनों को होश न था. शायद मानस को भी अपनी प्रेमिका से बिछड़े काफी समय हो चुका था और मैं तो किसी पुरुष शरीर को लगभग २-३ साल बाद छू रही थी. आगे क्या होने वाला था मुझे खुद नहीं पता पर मैंने दृढ़निश्चय किया हुआ था कि अपना कौमार्य विवाह के पहले भंग नहीं होने दूँगी. कुछ ही पलों में हम पूर्ण नग्न अवस्था में थे. मेरा हाथ मानस के राजकुमार को अपने आगोश में लिया हुआ था. परंतु मैं उसे देख नहीं पा रही थी क्योंकि हम दोनों के होंठ एक दूसरे में अभी भी सटे हुए थे.
अचानक “मानस भैया” ने मुझे को अपनी गोद में उठा लिया क्षमा कीजिएगा अब वह मेरे लिए “मानस भैया” नहीं थे. मैं उनकी मंगेतर बन चुकी थी.
उनका एक हाथ मेरी कमर को सहारा दिया हुआ था तथा दूसरा मेरी जांघों के नीचे था मैंने अपने हाथ उनकी गर्दन पर रख कर उन्हें पकड़ी हुयी थी. मेरा दाहिना स्तन उनके स्तन से से छू रहा था. उनका राजकुमार मेरे नितंबों के निचले भाग पर छूने लगा. वह मुझे गोद में लिए हुए धीरे-धीरे बिस्तर की ओर बढ़ने लगे. मुझे यह दृश्य बेड के साथ लगे हुए आईने में दिखाई पड़ा. अत्यंत कामुक दृश्य था. मैं खुद भी शर्मा गई. उन्होंने मुझे बिस्तर पर लाकर रख दिया. बिस्तर पर एक सुंदर सी सफेद रंग की चादर बिछी हुई थी जिस पर 2 गोल्डन कलर के तकिए पड़े हुए थे. मुझे बिस्तर पर लिटाने के बाद उन्होंने मेरे सिर के नीचे तकिया रख दी और बहुत देर तक मुझे यूं ही निहारते रहे. मेरी आंखें शर्म से झुक गई थीं. उन्होंने मेरे हर भाग को बड़े प्रेम से देखा उनकी नजरें मेरे मुख मंडल से होते हुए स्तनों, कमर. नाभि मेरी जाँघों से होते हुए मेरे पैरों तक गयीं. हर भाग को वह अपनी कामुक निगाहों से देख रहे थे. मुझे लगता है वह पुरानी सीमा को आज नए रूप में देखकर खुश हो रहे थे. मेरी नजरें भी राजकुमार पर पड़ चुकी थी. राजकुमार पहले की तुलना में ज्यादा बलिष्ठ और युवा हो चुका था. उसकी कोमलता पहले से कुछ कम हो गई थी. राजकुमार पर तनी हुई नसें साफ साफ दिखाई पड़ रहीं थीं. उसका मुखड़ा आधे से ज्यादा खुला हुआ था और एकदम लाल दिखाई पड़ रहा था. राजकुमार रह-रहकर उछल रहा था मुझे उसे अपने हाथों में लेने का बहुत मन कर रहा था. पर आज मैं सब कुछ मानस के इशारे पर ही करना चाह रही थी. उनसे नजरें मिलते ही मैं अपनी आंखें बंद कर लेती थी। वह धीरे-धीरे बिस्तर पर आ गए और मेरी दोनों जांघों के बीच आने के बाद उन्होंने मेरे जांघों को फैलाना शुरू किया. मैं उनका इशारा समझ गई. मैंने अपने हाथों से जांघों को ऊपर की तरफ ले गयी. कुछ ही देर में मेरी दोनों जांघे मेरे पेट से सटी हुई थीं और पूरी तरह फैली थी. मेरी राजकुमारी कि दोनों होंठ अब अलग हो रहे थे. मैं अपनी राजकुमारी को इस तरह मानस के सामने खुला हुआ देखकर शर्म से पानी पानी हो रही थी. पर यह तो होना ही था राजकुमारी से निकलने वाला प्रेम रस दोनों होठों के बीच लबालब भर चुका था और धीरे धीरे नीचे की तरफ बहने को तैयार था. और अंततः वही हुआ प्रेम रस की बूंद होंठों से उतर कर नीचे की ओर बढ़ने लगी और देखते ही देखते मेरी दासी पर रुक गयी. मैं मानस के अगले कदम का इंतजार कर रही थी परंतु वह सिर्फ इस अद्भुत दर्शन का आनंद ले रहे थे. अचानक उनकी आवाज मेरे कानों तक आई
“सीमा तुम बहुत ही खूबसूरत हो” मैं तुम्हें अपनी मंगेतर के रूप में पाकर बहुत प्रसन्न हूँ. अपनी आंखें बंद कर लो और जब तक मैं ना कहूं आंखें मत खोलना. मैंने अपनी आंखें बंद कर ली अचानक मुझे अपनी राजकुमारी के होठों पर किसी चीज के रेंगने का एहसास हुआ मुझे लगा की मानस अपनी उंगलियां फिरा रहे हैं पर जल्दी ही मुझे एहसास हो गया कि यह उनकी जीभ थी.
मुझे मानस द्वारा किशोरावस्था में किया गया मुख मैथुन याद आ गया. वह वास्तव में एक दिव्य अनुभूति थी और आज लग रहा था वही अनुभूति दोबारा प्राप्त होने वाली थी. मेरी राजकुमारी को चूमने वाले वह पहले पुरुष थे. मेरे इतना सोचते सोचते उनकी जीभ दोनों होठों के अंदर काफी तेजी से घूमने लगी. जब वह मेरी राजकुमारी के मुख तक आती और अंदर तक प्रवेश कर जाती. उनके होंठ मेरी राजकुमारी के होठों से छूने लगते. पर एक स्थिति के बाद वह बाद रुक जाते. वो अपनी जीभ से मेरी राजकुमारी मुकुट को भी सहला रहे थे. राजकुमारी अत्यंत उत्तेजित हो रही थी. मुझसे अब बर्दाश्त नहीं हो रहा था. अचानक उन्होंने अपने हाथ मेरे स्तनों की तरफ बढ़ाएं. मेरे स्तन जो पहले छोटे हुआ करते थे अब वह सुडौल और पर्याप्त बड़े हो चुके थे. मानस के हाथों में आते ही मेरे निप्पल एकदम कड़क हो गए. उन्होंने अपनी उंगलियों के बीच में मेरे निप्पल को जैसे ही लिया मेरी राजकुमारी के कंपन शुरू हो गए अगले 10- 15 सेकंड तक मेरी राजकुमारी कांपती रही और प्रेम रस बहता रहा. मानस ने स्थिति भापकर मेरी राजकुमारी को अपने होठों से यथासंभव घेर रखा था. राजकुमारी के स्खलित होते ही मेरी जांघें ढीली पड़ गयी. मैंने अपने दोनों पैर नीचे कर लिए. मानस भी अब अपना चेहरा मेरी जांघों के बीच से निकाल चुके थे. मेरी नजर उन पर पढ़ते ही ऐसा प्रतीत हुआ जैसे कोई शेर अपना शिकार खाकर मुंह हटाया था. उनके होठों और नाक पर मेरा प्रेम रस लिपटा हुआ था. वह मेरी तरफ चुंबन करने आ रहे थे. मुझे पता था मुझे अपने ही प्रेम रस का स्वाद चखने को मिलेगा और हुआ भी यही उन्होंने अपने होंठ मेरे होंठों पर लगा दिए. उन्होंने कहा
“आज चार-पांच वर्षो बाद अपनी प्यारी राजकुमारी से मिला हूं मुझे बहुत अच्छा लगा सीमा. मेरी जिंदगी में तुम्हारा स्वागत है” होठों पर चुंबन के दौरान उनका राजकुमार मेरी राजकुमारी के होठों पर अपनी दस्तक दे रहा था. वह कभी दरारों में प्रवेश करता और राजकुमारी के मुख तक पहुंचता कभी वह मेरी भग्नाशा को छूने के बाद वापस अपनी जगह पर पहुंच जाता. वो यह बार-बार कर रहे थे. लिंग का उछलना जारी था. जब वह मेरी राजकुमारी के मुख पर पहुंचते एक बार के लिए मैं डर जाती कि कहीं मेरा कौमार्य तो नहीं भंग हो जाएगा पर वह इस बात को समझते थे. विवाह पूर्व किया गया कौमार्य भंग उन्हें बिल्कुल नापसंद था. कुछ ही पलों में उनके राजकुमार कि आगे पीछे होने की गति बढ़ती गई और राजकुमार का लावा फूट पड़ा. एक बार फिर मैंने अपने स्तनों और चेहरे पर उनके वीर्य की धार महसूस की वह भी कई वर्षों बाद. हम दोनों इसी अवस्था में लिपट कर सो गए
 

Lovely Anand

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Bhai kaumarya na hua ki Olympic ka gold medal ho gaya kahin Fateh hi nahi ho raha..chahe long jump ho ya high jump...bhaiya bina seal tute maza nhi aa raha
माया जी की टुटी तो थी😂😂😂
 

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यह कहानी मेरी सर्वकालिक प्रियतमा छाया की है जो मेरे जीवन में एक अनचाहे रिश्ते में आई थी पर उसने मुझे प्रेम की पराकाष्ठा, संभोग कला और सुख के अप्रतिम आनंद से परिचय कराया जो सामान्यतयः कल्पना में ही प्राप्त हो सकता है। इस अद्भुत सुख के लिए मैं उसका सदैव ऋणी रहूंगा....

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छाया। भाग -13
विवाह की तैयारी
(मैं मानस)

हम लोगों ने तय किया की विवाह बेंगलुरु से ही किया जाए. सीमा के घर वाले चंडीगढ़ में थे पर वह बेंगलुरु आने के लिए तैयार हो गये थे. हम लोगों ने एक शादी का बड़ा हॉल बुक कर लिया था जिसमें वर वधू पक्ष के रहने के लिए अलग-अलग अवस्थाएं थी. मैरिज हाल खूबसूरत और अच्छी लोकेशन पर था तथा सर्व सुविधा सम्पन्न था.

मैंने गांव से सभी परिचित लोगों को निमंत्रित किया जो कमजोर लोग थे उनको फ्लाइट की टिकट तक भेज दी. निमंत्रण से बहुत खुश थे. सही समय पर गांव से सभी परिचित लोग आ चुके थे. गांव वालों की उपस्थिति ही विवाह कार्यक्रम में एक अलग किस्म का आनंद जोड़ देती है. उन्हें इन बड़ी शादियों की प्रतीक्षा होती है. शहर में रहने वाले लोग तो सिर्फ कुछ घंटों के लिए विवाह कार्यक्रम का आनंद लेते हैं और रात्रिभोज के बाद अपने अपने रास्ते चले जाते हैं पर गांव से आए लोग पूरे कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति दर्ज कराए रखते हैं और विवाह को रंगीन बनाए रखते हैं.

सीमा की ओर से मंजुला चाची ने कमान संभाल रही थी. थी और हमारी तरफ से माया आंटी ने. छाया इस क्कार्यक्रम की मुख्य निर्देशिका थी. सब उसकी राय से कार्यक्रम को आगे बढ़ाते. शर्मा जी भी अपनी विदेश यात्रा से आकर इस विशेष कार्यक्रम के शामिल थे. गांव वालों से उनका परिचय मेरे सीनियर अधिकारी के रूप में कराया गया था. वह इस कार्यक्रम में मेरे पिता की भूमिका में दिखाई पड़ रहे थे. वह पूरे जोर-शोर से इस कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे थे.

गांव की शादियों में महिलाओं के झुण्ड का बड़ा योगदान होता है वह सब तरह तरह की रस्में करतीं हैं और इन रस्मो का भी एक अपना आनंद होता है. हमारा विवाह अंततः सभी की सहमति से हो रहा था. मुझे सिर्फ छाया की चिंता थी पर वह अब परिपक्व हो चुकी थी। उसका दुःख कभी उसके चेहरे पर नहीं आता. रस्मों के दौरान वह मेरे पास आती तो मुझे कभी कभी उसके चेहरे के पीछे उसके आंसू दिखाई दे जाते.

लड़कियां कितनी भी परिपक्व हो जाए अपनी भावनाएं नहीं छुपा पाती. आखिर मेरी प्यारी छाया भी एक लड़की ही थी।

इस विवाह में एकमात्र दुख मुझे छाया को लेकर ही था. पर धीरे-धीरे कार्यक्रम आगे बढ़ रहे थे. भविष्य में क्या होने वाला था मैं नहीं जानता पर मैं कहीं न कहीं इस बात को लेकर थोड़ा दुखी अवश्य था. महिलाओं का झुंड जब भी आता अलग-अलग प्रकार की रस्में करता इतनी सारी महिलाओं को एक साथ देख कर मन में अजीब अनुभूति होती अपने इस शादी में मैं मुख्य अतिथि जैसा महसूस कर रहा था. गांव के सभी लोग मुझे इज्जत और सम्मान की निगाहों से देख रहे थे मेरी प्रतिष्ठा शिखर पर थी. छाया को सजा धजा और खुश देख कर सब उसकी खुशी में मेरी उपलब्धता देखते. छाया अपनी पढ़ाई पूरी कर चुकी थी उसकी नौकरी के बारे में जानकर सब गांव वाले मुझे ही बधाई देते. पिछले कुछ दिनों में छाया ने अपना दुख को छुपाने के लिए अपनी कामुकता को और जीवंत कर दिया था. वह मुझे हर मौके पर खुश करने के लिए कुछ नया करती और मैं उसे अपनी पत्नी न बना पाने की लिए थोड़ा दुखी हो जाता.

अनूठा उपहार
(मैं छाया)

मानस भैया के तिलक का कार्यक्रम संपन्न हो चुका था. विवाह तींन दिन बाद होने वाला था. जिस विवाह की कल्पना में हम दोनों ने पिछले 3-4 वर्ष निकाले थे वो दिन आ चुका था. पर नियत की विडंबना थी मेरी जगह वहां सीमा दीदी को बैठना था. मानस और मैं एक दूसरे से अभी भी बहुत प्यार करते थे पर जो होना था वह हो रहा था. मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं मानस को क्या उपहार दूं पर मैं उसे यादगार बनाना चाहती थी. अंततः दृढ़ निश्चय करने के बाद मैंने मानस से कुछ घंटे एकांत में बिताने का समय मांगा. वह बोले
“ इस शादी के बीच में यह कैसे संभव होगा “
“ मैंने कहा यह आप देखिए.”
"तुम खुद भी कैसे फ्री हो पाओगी सब तैयारी तुम्हारे ही मार्गदर्शन में हो रही है”
"मैं ब्यूटी पार्लर के नाम पर समय निकाल लूंगी”
मेरी बातों में जिद थी वो मान गये. मेरी बात टालना उनके लिए असंभव था. वो मुझे बहुत प्यार करते थे.

हमने विवाह मंडप के अलावा कुछ होटलों में भी कमरे से ले रखे थे. एक होटल के कमरे के गेस्ट को आने में समय था. मानस ने दो दिन बाद दोपहर में ३.०० बजे का समय निर्धारित किया. मेरे पास २ दिन का वक्त था. मैंने अपनी पूरी तैयारी कर ली और हम तय वक्त पर होटल के लिए निकल चुके थे. मानस बार-बार मुझे प्रश्नवाचक निगाहों से देख रहे थे वह समझ नहीं पा रहे थे कि मैं उनके साथ क्या करने वाली हूँ. आपसी प्यास तो हम समारोह के बीच भी बुझा ही लेते थे. कार की सीट पर पीछे बैठे बैठे हैं वह मेरे हाथों को सहला रहे थे. मेरे चेहरे पर भी घबराहट भी और मन में भी. एक कुछ ही देर में हम होटल के कमरे में थे.

[मैं मानस]

कमरे में पहुंचते ही छाया ने मुझे अपने आलिंगन में ले लिया और मेरे राजकुमार को अपने हाथों सहलाते हुए कहा
“इस राजकुमार को मैंने बहुत प्यार किया है और कल से यह किसी और का हो जाएगा” मैं इसे एक अनूठा उपहार देना चाहती हूँ. आपको मुझे इसमें सहयोग करना होगा.”
मैं अभी भी उसकी मंशा समझ नहीं पा रहा था पर उसके हाथों में आते ही राजकुमार स्वयं उठ खड़ा होता था इसमें मेरा कंट्रोल बिल्कुल भी नहीं होता था.
जैसे छोटे बच्चे अपनी माँ को देखते ही उसके गोद में आने के लिए अपना हाँथ आगे बढ़ा देते हैं वैसे ही मेरा राजकुमार तन कर छाया के हाँथ में आ जाता था.
मैंने उसे अपने आगोश में ले लिया मैंने कहा
“ ठीक है जो तुम्हें लगता है वह करो” उस दिन उसने एक सुंदर सा सलवार सूट पहना हुआ था. उसने दुपट्टे से मेरी आंखों पर पट्टी बांध दी और मुझे बिस्तर पर लिटा दिया. मेरे कपड़े उसने पहले ही खोल दिए थे मैं बिस्तर पर नग्न लेटा हुआ था. मेरा राजकुमार पूरी तरह अपना छाया के हाथो अपना स्खलन कराने के लिए तैयार था. मेरी आंखों पर पट्टी बंधी होने की वजह से मैं छाया को नहीं देख पा रहा था. छाया अब मेरे ऊपर आ चुकी थी और मुझे उसके स्तनों का एहसास हो रहा था. मेरे हाथ उसके स्तनों को सहला रहे थे. उसके होंठ मेरे होंठों पर थे. राजकुमार राजकुमारी के होंठो में अपना स्थान तलाश रहा था. कुछ ही देर में छाया धीरे-धीरे मेरे छाती को चुमती हुई नीचे की तरफ बढ़ी. अब राजकुमार उसके मुख में अठखेलियां कर रहा था. उसने अबकी बार अपने मुख से एक कृत्रिम योनि का निर्माण किया और राजकुमार को वह सुख देने लगी. राजकुमार को यह क्रिया बहुत पसंद थी और वह उछल रहा था अचानक मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे छाया उसके ऊपर कोई चीज लपेट रही थी. राजकुमार उस अनजाने आवरण के अंदर आ गया था. एक बार के लिए मैं डर गया की कही छाया ने बदला लेने के लिए कुछ और तो नहीं सोचा है?
पर वह मेरी प्यारी छाया थी. बदला ? यह असंभव था. हम दोनों एक दुसरे के लिए जान भी दे सकते थे.
मेरी आंखें बंद थी और कौतुहल चरम पर. राजकुमार का तनाव कुछ कम जरूर हुआ पर वह वापस सामान्य रूप से तन गया था. छाया अपने हाथों से राजकुमार को सहला रही थी कुछ ही देर में मुझे अपनी कमर पर छाया के बैठने का एहसास हुआ. उसके दोनों पैर मेरी जांघों के दोनों ओर थे. उसकी राजकुमारी राजकुमार के संपर्क में थी. पर उस लिपटी हुए चीज की वजह से दोनों में सीधा संपर्क नहीं हो पा रहा था. मैं अपने हाथ उस चीज को हटाने के लिए बढाया पर उसे छाया ने रोक लिया छाया. वह एक बार फिर मेरे होठों तक आई और मुझे प्यार से चूम लिया.
कुछ ही देर में मुझे अपने राजकुमार के मुख पर किसी पतले और सकरे रास्ते का अनुभव हुआ. छाया का वजन मेरे राजकुमार पर बढ़ता जा रहा था. राजकुमार अब दर्द में था पर वह उस पतले रास्ते में प्रवेश कर रहा था. जैसे जैसे छाया की कमर धीरे-धीरे नीचे आ रही थी राजकुमार उस अनजानी सकरी और तंग गुफा में जा रहा था. छाया हांफ रही थी. मैं समझ नहीं पा रहा था की छाया यह क्या कर रही हैं. मैं तो अद्भुत आनद में था. राजकुमार ने यह अनुभव पहली बार प्राप्त किया था. मुझे लगा कहीं ऐसा तो नहीं कि वह अपना कौमार्य आज ही परित्याग कर रही हो. यह मेरे लिए पीड़ादायक चीज होती मैंने उसे वचन दिया था कि उसका कौमार्य भंग नहीं होने दूंगा. कहीं ऐसा तो नहीं कि वह भावावेश में आकर ऐसा कर रही हो. मैं इतना सोच ही रहा था की तभी छाया के नितंबों का एहसास मुझे अपनी जाँघों पर हुआ. राजकुमार अनजानी गुफा में पूरी तरह प्रवेश कर चुका था. छाया की कोई और गतिविधि मुझे महसूस नही ही रही थी।
राजकुमार उस गहरी गुफा में जाने के बाद पूरी तरह तन चुका था. अचानक छाया मेरी तरफ झुकी और मेरे होठों को अपने होंठों के बीच ले लिया और मेरी आंखों पर पड़ी हुई पट्टी स्वयं ही हटा दी. मैंने आंखें खोली और अपनी उसकी आंखों में आंसू थे. आंसू की एक बूंद मेरे गाल पर भी गिरी. मैंने अपने हाथों से उसके आंसू पोछे और उसके गाल अपने गाल से सटा लिए . मैं उससे यह भी नहीं पूछ पा रहा था उसने मेरे राजकुमार के साथ क्या किया. कुछ ही देर में वह सामान्य हो गई और वापस मेरे होठों को चूमने लगी. अब वह अपनी कमर को आगे पीछे कर रही थी. मेरा राजकुमार उस अनजानी और गहरी गुफा मैं आगे पीछे हो रहा था. वह तो इन्हीं गुफाओं की प्रतीक्षा में पिचले २५ वर्षों से था. उसे पतले और तंग रास्ते हमेशा से पसंद थे. उसकी उछल कूद बढ़ रही थी. मैं इस अद्भुत आनंद के लिए छाया का ऋणी हो रहा था. मुझे बार-बार चूमती जा रही थी. उसने कमर हिलाने की गति बढ़ा दी. कुछ ही देर में मेरे राजकुमार ने गहरी गुफा की चाल से अपनी गति मिला ली. अब मेरी कमर भी उसी गति में हिलने लगी. छाया मुझे चूमती जा रही. कुछ ही देर में राजकुमार स्खलित होने के लिए तैयार था मैं अपने राजकुमार को उस गुफा से बाहर निकालना चाहता था और हमेशा की तरह अपनी प्यारी छाया को भिगोना चाहता था पर मैंने राजकुमारी के कंपन अभी तक महसूस नहीं किये थे. राजकुमार राजकुमारी को छोड एक अलग ही दुनिया में आनंद ले रहा था. एक बार के लिए मुझे लगा जैसे छाया ने कोई कृत्रिम योनी लायी थी. पर छाया मुझसे सटी हुए थी मैं नीचे नहीं देख पा रहा था. राजकुमार का लावा फूटने वाला था मैं उसे बाहर निकालना चाह रहा था पर बिना छाया के सहयोग के बाद संभव नहीं था. वह अपनी गति को विराम नहीं दे रही थी अंततः राजकुमार ने अपना वीर्य उसी गहरी गुफा में छोड़ दिया. इसका आनंद भी अद्भुत था. वीर्य प्रवाह के दौरान थे मैं अपनी कमर को बड़ी तेजी से हिला रहा था. राजकुमार भी गहरे तक उतर जाना चाह रहा था.
वीर्य स्खलन समाप्त होते ही मैं सुस्त हो गया. छाया मुझे अभी भी चूम रही थी. कुछ देर बाद छाया उठ रही थी. मेरा राजकुमार उसकी इस अनजानी गुफा से बाहर आ रहा था. मुझे उसकी राजकुमारी मुझे स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी. और मेरा राजकुमार अभी भी अनजानी गुफा के अंदर था.
मुझे समझते देर न लगी कि आज छाया ने मेरे वचन की लाज रखते हुए मेरे राजकुमार को उपहार में अपनी प्रिय दासी को समर्पित किया था. छाया की दासी से राजकुमार अब बाहर आ रहा था वह पूर्णता स्वच्छ और साफ दिखाई दे रहा था. छाया ने अपने हाथों से उस रबड़ नुमा चीज को बाहर निकाला. मेरा सारा वीर्य उस रबड़ नुमा थैली में एकत्रित हो गया था. छाया उसे लेकर बाथरूम की तरफ चल पड़ी. वापस आने के बाद उसने मुझे फिर से चुमाँ और राजकुमार को अपने हाथों से सलाया राजकुमार बहुत खुश था. उसने उछल कर अपने अंदाज में छाया को धन्यवाद दिया.
मैंने छाया की राजकुमारी को सहलाने की कोशिश की उसने रोक दिया और कहा
“चलिए देर हो रही है कुछ ही देर में हम दोनों वापस टैक्सी में थे” मैंने छाया का हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहा
“ छाया तुम अनूठी हो और तुम्हारा उपहार भी अनूठा था” मेरी बातें सुनकर वह बहुत खुश हो गई थी उसने मेरा हाथ चूम लिया और कहां
“मानस भैया मुझे भूख लगी है. मैंने दो दिन से अन्न नहीं खाया है.”
मैं समझ गया और फिर से उसे चूम लिया. मैंने उसकी पसंद का पिज्जा लिया वो उसे खाते हुए बोली
“मैं आपकी और अपने राजकुमार की खुशी के लिए किसी हद तक जा सकती हूँ” मैं मुस्कुरा रहा था पर मेरी आँखों में आसू थे. कुछ ही देर में हमारी गाड़ी विवाह मंडप के पोर्च में थी.
 
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