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Erotica छाया ( अनचाहे रिश्तों में पनपती कामुकता एव उभरता प्रेम) (completed)

Alok

Well-Known Member
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Atayant Adhbudh Lovely Anand ji.........

Iss kahani ki jitni prashansa ki jaye woh bhi kam hai, bahut samay baad koi aise kahani padh rahe hai jis mein sambhog ka samay bhi pyaar jhalakta hain.........


Aise hi likhte rahiye........ :love3::love3::love3::love3::love3::love3::love3:
 

Lovely Anand

Love is life
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छाया भाग 2
सीमा की यादें
एक-दो दिन उदास रहने के बाद मैं धीरे-धीरे सामान्य हो गया मेरे वापस दिल्ली जाने का वक्त भी आ गया था. माया जी ने मेरे लिए कई सारे नाश्ते के सामान बनाए थे. छाया मेरे लिए अभी भी एक अपरिचित ही थी. इस बार में उसकी नजरें मुझसे सिर्फ दो बार मिली थी वह भी खेल के दौरान, वापस आते समय भी वह मुझे छोडने नहीं आयी आई. मैंने पापा के पैर छुए तथा माया जी को हाथ हिलाकर अभिवादन किया और दिल्ली के सफर पर रवाना हो गया. माया जी का पैर न छूना शायद पापा को अजीब लगा हो पर वह मेरी स्थिति समझते थे. माया जी मेरे पैर छूने का इंतजार नहीं था. इस एक महीने में उन्होंने मेरी काफी मदद की थी जैसे मेरे पसंद के पकवान बनाना तथा मेरे कपड़ों आदि का ख्याल रखना. दिल्ली पहुंच कर मैं अपने दोस्तों में मशगूल हो गया. मैं अपनी पढ़ाई पर वापस ध्यान देने लगा इस बार की छुट्टियां मेरे लिए यादगार छुट्टियां थी. मैं 19 वर्ष का हो चुका था और मुझे अपने युवा होने पर उचित इनाम भी मिल चुका था इसका सारा श्रेय सीमा को जाता था.
मेरा मन अब ब्लू फिल्मों से पूरी तरह हट चुका था. मशीनों की तरह एक दूसरे से संभोग करने वाले नायक और नायिका मुझे अब प्रभावित नहीं करते थे. नायक द्वारा नायिका का बेरहमी से योनि मर्दन अब मुझे हास्यास्पद लगता था. पर ब्लू फिल्मों से मुझे मुखमैथुन की शिक्षा मिली थी. मैंने इस इस विद्या का प्रयोग सीमा की राजकुमारी पर किया था और इसका परिणाम सुखद रहा था. उसे मेरी यह कला पसंद आई थी. इस बात की तस्दीक उसने अपने प्रत्युत्तर में कर दी थी.
सीमा के साथ बिताए पलों से मुझे लड़कियों के शर्म और हया का मूल्य समझ आ चुका था. लड़कियों की योनि इतनी कोमल होती है मैंने यह नहीं सोचा था. मेरी जीभ भी उसकी कोमलता से प्रभावित थी. सीमा के स्तनों का स्पर्श और उसकी कोमलता मुझे याद है परंतु उसका आकार अभी छोटा था. ब्लू फिल्मों की नायिकाओं की तरह उसके स्तन विकसित नहीं थे. मैं इस बात से लज्जित महसूस कर रहा हूं की मैंने सीमा की ब्लू फिल्म की नायिका के साथ तुलना की. सीमा की हाजिर जवाबी और कामुक परिस्थितियों में भी बिना साथी को दुखी किए अपने कौमार्य की रक्षा करने की कला अद्भुत थी.
मुझे दिल्ली आए 4 महीने बीत चुके थे इस दौरान ना तो मैंने कोई ब्लू फिल्म देखी नहीं ना कोई गंदे और कामुक साहित्य पढ़े. मैं अपनी पढ़ाई पर पूरी तरह ध्यान दे रहा था हां कभी-कभी सीमा को याद करके हस्तमैथुन कर लिया करता था. चंडीगढ़ यहां से बहुत दूर नहीं था पर सीमा से मिलने जाने की मेरी हिम्मत नहीं थी. वहां जाने का और उससे मिलने का रिस्क मैं नहीं ले सकता था. उस समय मोबाइल की उपलब्धता आम नहीं थी और सीमा से बात करने का कोई तरीका नहीं था. मुझे नहीं पता था कि सीमा मुझे कितना याद करती है पर मैं उसको अक्सर याद करता था सिर्फ हस्तमैथुन के समय ही नहीं अपितु उसकी बातें उसका राजकुमारी कहने का अंदाज यह हमेशा मेरे मन को गुदगुदाते रहते थे.

छायाचित्र “लम्हें”
सेमेस्टर एग्जाम खत्म होने के बाद मैं अपने दोस्तों के साथ “लम्हे” पिक्चर देखने गया. यह अनिल कपूर और श्रीदेवी द्वारा अभिनीत फिल्म थी. इसमें अनिल कपूर अपने से उम्र में काफी बड़ी युवती से प्यार करता है बाद में उसकी शादी उसी युवती की पुत्री से होती है,. फिल्म मुझे मेरे सभी दोस्तों को भी पसंद आई थी. परीक्षा खत्म होने के कारण मैं भी तनाव मुक्त था बिस्तर पर लेटते ही मुझे सिनेमा के दृश्य याद आने लगे. मैं श्रीदेवी जैसी मादक हीरोइन को अपनी कल्पना में नग्न करने लगा. साड़ी के पीछे श्रीदेवी के नितंबों की कल्पना करते करते अचानक मिले माया जी की याद आ गई. उनकी उम्र फिल्म की नायिका के करीब ही थी मैंने उससे ध्यान हटाने की कोशिश की. माना कि मेरे से उनसे कोई रिश्ता नहीं था फिर भी वह मेरे घर में रहती थी मुझे इस बात पर थोड़ी ग्लानि हुई और मैं श्रीदेवी को आगे नग्न नहीं कर पाया परंतु श्रीदेवी के उरोज और नितंब भुलने लायक नहीं थे. मैंने श्रीदेवी के दूसरे किरदार की ओर ध्यान लगाया जिसमें वह नायिका की बेटी बनी थी. वह मेरी उम्र के हिसाब से हस्तमैथुन के लिए उपयुक्त नायिका बन सकती थी. मैंने श्रीदेवी के वस्त्र उतारने शुरू किए और फिर माया जी का ध्यान वापस दिमाग में आ गया. दरअसल श्रीदेवी के नितंब और उरोज माया जी से हुबहू मिलते थे. मैंने हस्तमैथुन का विचार त्याग दिया और सो गया.

स्वप्नसुंदरी
एक बड़े से राजसी पलंग पर मैं पीठ के बल लेटा हुआ था पलंग पर सफेद रंग की मलमल की चादर पड़ी हुई थी. कमरे में कई सारी मोमबत्तियां जल रही थी कमरे में अद्भुत शांति थी. एक नव योजना जिसने सफेद रंग की लाल पाढ़ वाली साड़ी पहन रखी थी कमरे में प्रविष्ट हुई. उसके हाथ में एक बड़ा कटोरा था वह धीरे धीरे चलते हुए मेरे समीप आई. ज्यादा रोशनी ना होने की वजह से मैं उसका चेहरा नहीं देख पा रहा था. उसके उरोज पूर्णतयः विकसित थे कटी प्रदेश के उभार दर्शनीय थे. ऐसा लग रहा था जैसे उसने सिर्फ एक वस्त्र ही पहना है. स्तन अंदर से झांक रहे थे. उसकी नाभि स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही थी. उसने साड़ी नाभि से लगभग चार अंगुल नीचे बांधी हुई थी. उसके बाल खुले हुए थे एवं सामने की तरफ लटके हुए थे उसका कटी प्रदेश मादक तथा जांघें सुडौल थी. धीरे धीरे वह मेरे समीप आकर बैठ गई. उसने कटोरा पलंग पर रख दिया उसके दोनों घुटने मेरे मेरी जांघों से सटे हुए थे वह मुझे वज्रासन में बैठी हुई दिखाई दे रही थी.
इस अवस्था में मैं उसके स्तनों का उभार पूरी तरह देख पा रहा था. ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे किसी ने सांची के स्तूप को सफेद पारदर्शी चादर से ढक दिया था. कमर का खुला हुआ हिस्सा आकर्षक लग रहा था. उसकी जांघें घुटना और पिंडलियों सभी दिखाई पड़ रहे थे कभी वह नग्न दिखाई पड़ती कभी उसकी साड़ी सामने आ जाती. उसने पैर में आलता लगाया हुआ था तथा पैरों में पाजेब पहनी हुई थी. वह साक्षात रति लग रही थी. मैं उसका चेहरा अभी तक नहीं देख पा रहा था. मैं स्वयं एक सफेद रंग की धोती पहने हुए लेटा हुआ था. कमर के ऊपर मेरे शरीर पर कोई वस्त्र नहीं था. उसने कटोरी में से सुगंधित तेल निकालकर मेरे पैरों की उंगलियों में लगाना शुरू किया और धीरे-धीरे ऊपर की तरफ बढ़ने लगी. मैं बार-बार उसे पहचानने की असफल कोशिश कर रहा था. उसके हाथ अब मेरे घुटनों तक आ चुके थे वह बढ़ती गई तथा मेरी जाँघों तक पहुंच गई. उसने मेरी धोती की गाँठ खोल दी तथा अपने दोनों हाथों से धोती को मेरी कमर के दोनों तरफ गिरा दिया.
मैं उसके सामने पूरी तरह नग्न पड़ा हुआ था. मेरा लिंग तनाव से भर चुका था. उस नव योजना के मादकता ने मेरे लिंग में अभूतपूर्व तनाव पैदा कर दिया था. उसके हाथ मेरी कमर को तेल से सराबोर करते हुए नाभि प्रदेश तक पहुंच गए उसने मेरे लिंग को उपेक्षित साथ छोड़ दिया था. धीरे-धीरे वह मेरे सीने तक आ गई सीने की मालिश करते समय उसने मेरे छोटे-छोटे निप्पलों को अपनी उंगलियों से दबाया मेरा लिंग अब और भी उत्तेजित हो चुका था. वह मेरे बायीं तरफ बैठी थी. उसने मेरे बाएं कंधे और बाएं हाथ मैं तेल लगाया. जब वह दाहिने हाथ में तेल लगाने के लिए आगे की तरफ झुकी तो उसके स्तन मेरे सीने के बिल्कुल समीप आ गए.
मैं अपना कौतूहल बर्दाश्त नहीं कर पाया तथा अपने बाएं हाथ से उसके स्तनों को छूने की कोशिश की. पर पता नहीं मेरे हाथ क्यों नहीं उठ रहे थे. जैसे लग रहा था वह जड़ हो गए हैं. मैं चाह कर भी वह वो कोमल स्तन नहीं छू नहीं पा रहा था, बड़ी विषम परिस्थिति बन गई थी. मैंने अपने दाहिने हाथ को भी उठाना चाहा पर असफल रहा. उसके हाथ वापस मेरे सीने पर आ चुके थे और वह धीरे-धीरे मेरे नाभि की तरफ बढ़ रही थी. उसने अपनी उंगलियों से मेरे नाभि के अंदर तेल लगाया उसने अपनी हथेलियों से मेरे नाभि प्रदेश को सहलाते हुए अपने हाथ मेरे अंडकोष तक ले आई. मेरी व्यग्रता अब बढ़ती जा रही थी.
मेरे हाथ पैर अपनी जगह से नहीं उठ रहे थे. सिर्फ लिंग के तनाव का एहसास मुझे हो रहा था. अचानक मैंने अपने लिंग पर उसका हाथ महसूस किया. जैसे वह लिंग को मेरी नाभि की तरफ व्यवस्थित कर रही हो. उसने मेरी पीठ और मेरे नितंबों को भी तेल से सराबोर कर दिया मेरा पूरा शरीर तेल से डूबा हुआ था. आश्चर्यजनक रूप से मुझे अपने पूरे शरीर पर उसके हाथों और उंगलियों का दबाव महसूस हो रहा था परंतु मैं अपना हाथ और पैर उठाने में सक्षम नहीं था.
उसने मुझे फिर से मुझे पीठ के बल लिटा दिया और हाथों में तेल लेकर मेरे लिंग के चारों तरफ मलने लगी. मेरा लिंग भी उसके हाथों की प्रतीक्षा कर रहा था. मैंने फिर से उसे छूने की कोशिश की पर असफल रहा. अंततः उसने मेरे लिंग को अपने कोमल हाथों में ले लिया तथा अपनी उंगलियों से उसकी चमड़ी को पीछे किया. जैसे वह लिंग के मुख को देखना चाहती हो.
उसकी उंगलियां तरह-तरह के करतब दिखा रही थी. मैंने उससे पूछने की कोशिश की आप कौन हैं परंतु मुझे कोई जवाब नहीं मिला. उत्तर में उसने मेरे लिंग को प्यार से सहला दिया. अब वह अपने हाथ तेजी से चला रही थी. मेरा लिंग लावा उगलने के लिए तैयार हो चुका था .अचानक मैंने देखा उसके स्तन से साड़ी हट चुकी है वह कमर के ऊपर पूरी तरह नग्न दिखाई दे रही थी. फिर मैंने उसे पुकारा “सीमा” मुझे उसके हंसने की आवाज सुनाई दी. एक पल के लिए मुझे लगा जैसे वह कोई अप्सरा थी. उसने अपने हाथों को तेजी से चलाते हुए कहां
“मानस भैया मैं आपके मन में हूं आप मुझे क्यों नहीं पहचान पा रहे हैं?” मेरी धड़कनें तेज हो गयीं और उसकी उंगलियों की चाल भी. मैंने कहा “माया जी” वह हंस पड़ी और मेरे शिश्नाग्र को कसकर दबा दिया मेरे लिंग से वीर्य की धार फूट पड़ी. मुझे अब चेहरा साफ साफ दिखाई दे रहा था. माया जीके चेहरे और स्तनों पर मेरे वीर्य के धार दिखाई पड़ रही थी वह मुस्कुराते हुए बिस्तर से उठने लगीं मैं भी उनके पीछे-पीछे उठने लगा.
जमीन पर मेरे पैर पड़ते ही मेरी निद्रा भंग हो गयी. मेरी आंखें खुल चुकी थी और मैं अपने आप को हॉस्टल के कमरे में अकेला अपनी पजामी को नीचे किए स्खलित हुए लिंग के साथ असहाय सा खड़ा था. मेरा स्वप्न टूट चुका था. मैं माया जी को याद करते हुए पुनः सो गया. मन ही मन यह ख्वाहिश थी कि वह स्वप्न फिर से आए .
जीवन में कुछ विचार और भावनाएं सिर्फ सपनों में ही आते हैं हकीकत उन से भिन्न होती है.

घर की याद
पढ़ाई के बाद मुझे जब भी समय मिलता मैं रोमांटिक साहित्य पढ़ने लगा. मैंने कामसूत्र की पुस्तक पढ़ीं पर वह अत्यंत जटिल थी . लोलिता उपन्यास ने भी मुझे अंदर तक छू लिया था. मेरे मन में हमेशा नायिका के साथ जी गयी कामवासना एक पूजा स्वरूप थी. मैं हर हाल में अपनी नायिका को खुश और मदमस्त देखना चाहता था. नायिका की स्वीकृति होने पर मेरे लिए उसकी उम्र और यहां तक की रिश्तों की अहमियत भी नहीं रह गई थी. सपने में माया जी के आने के बाद मैंने कभी कभी उनके सपने खुली आंखों से भी देखे थे, मैं भी अब काम पिपासु हो चुका था, धीरे धीरे यह वर्ष बीत गया परीक्षा के बाद मुझे ट्रेनिंग में जाना था इसलिए मैं गांव नहीं जा सका, पापा मुझसे मिलने दिल्ली आए उन्होंने बताया कि सीमा गांव पर आई हुई है और उसका सिलेक्शन इंजीनियरिंग में हो गया है. उसने तुम्हें धन्यवाद बोला है.
मैंने अपनी कामुकता और कैरियर में से कैरियर को चुना था.
मैं पापा से मिलकर अपनी ट्रेनिंग पर चला गया. रास्ते में मुझे सीमा की बहुत याद आ रही थी. इस समय वह पूरी तरह तनाव मुक्त होती. और हम दोनों उन्मुक्त भाव से प्रेम रस में डूबे होते. पर नियत को यह मंजूर नहीं था. मेरी ट्रेनिंग उतनी ही जरूरी थी. अगले कुछ महीने मैंने खूब पढ़ाई कि अपने कोर्स की भी और कामुक साहित्य की भी. अपनी कामवासना को शांत करने के लिए मेरी मुख्य नायिका सीमा ही थी परंतु कभी-कभी मेरी सहपाठी राधिका और मेरी टीचर भी मेरा साथ दे देतीं थीं.
कॉलेज में मेरे दो वर्ष बीत चुके थे. इस दौरान मैं सिर्फ एक बार घर गया था जब मैं सीमा से मिला था.



बदलते रिश्ते
छाया एक अप्सरा
इस बार दीपावली की छुट्टियां ज्यादा ही लंबी थी मुझे लगभग 7 दिनों का समय मिल गया था. सभी दोस्त अपने अपने घरों को जा रहे थे मैं भी घर जाने की तैयारी करने लगा. घर पर मुझे पापा से ही मिलने की खुशी थी. पर इस सीमा वहां नहीं थी. अचानक मुझे माया जी याद आई और मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई. मैं अगली सुबह अपने गांव पहुंच गया.
पापा मुझे लेने आए थे. घर पहुंच कर मैं सबसे पहले मंजुला चाची के यहां गया. उनसे बातें की और उनसे सीमा का हालचाल पूछा. उन्होंने बताया कि सीमा ने बेंगलुरु के किसी अच्छे कॉलेज में एडमिशन ले लिया है और वह वही रहती है. मैंने उनसे कॉलेज का नाम पूछा तो वह मुझे नहीं बता पायीं. मुझे पापा ने बाद में बताया की सीमा के पापा का उनके छोटे भाई से जमीन को लेकर कुछ विवाद हो गया है और वह शायद गांव नहीं आएंगे. उन्होंने अपने हिस्से की जमीन भी बेच दी है.
मेरे पास सीमा का हाल-चाल लेने के लिए कोई सूत्र नहीं बचा था. मैं मायूस होकर अपने कमरे में आ गया मेरे मन से सीमा की यादें नहीं जा रही थीं. अचानक मेरी नजर बिस्तर पर पड़ी माया जी ने आज वही चादर बिछाई थी जिस पर मैंने सीमा की राजकुमारी के दर्शन लिए थे. अचानक मुझे सीमा की दी गई गुरुदक्षिणा की याद आई. मैंने बिस्तर के नीचे रखे अपने पुराने संदूक का ताला खोला और सीमा द्वारा दी गई हमारे प्रेम रस में डूबी सीमा की पेंटी को बाहर निकाल लिया. पैंटी पूरी तरह सिकुड़ कर आपस में चिपक गई थी. मैंने उसे उसके पुराने स्वरूप में लाने की कोशिश की.
पैंटी का सुर्ख लाल रंग थोड़ा बदल चुका था उस पर जगह-जगह गहरे निशान पड़ चुके थे. मैंने अनायास ही उसे उठाकर चूम लिया और और उसकी खुशबू लेने की कोशिश की. उसमें से अभी भी सीमा द्वारा उस दिन लगाए गए परफ्यूम की खुशबू आ रही थी. मैं आज महसूस कर पाता हूं सीमा ने गुरुदाक्षिणा के लिए अपनी सुहागरात जैसी तैयारी की थी और मेरे मन में उस दिन की एक अमिट छाप छोड़ गई थी.
नित्य कर्मों से निवृत्त होकर मैं अपनी किताबें पलट रहा था तभी सीढ़ियों पर किसी के आने की आहट हुई. दरवाजा खुला और माया जी हाथ में थाली लिए हुए अंदर आयी. माया जी ने ठीक वैसी ही साड़ी पहनी थी जैसी मैंने अपने स्वप्न में देखी थी. बस साड़ी पहनने का ढंग पूर्ण व्यवस्थित था. थाली रख कर वो वापस जाने लगी इसी दौरान मैंने उनके स्तनों, कमर और जांघों की तुलना स्वप्न में देखी गई सुंदरी से कर डाली. माया जी शायद उस स्वप्न सुंदरी से ज्यादा आकर्षक थीं.
“लम्हे” फिल्म ने मुझे अपने से बड़ी तथा छोटी यौवनाओं में प्यार और कामुकता ढूंढने की इजाजत दे दी थी वह भी बिना आत्मग्लानि के.
थोड़ी देर में रोहन और रिया हाथ में लूडो लिए मेरे कमरे में आए. वह दोनों बहुत प्यारे बच्चे थे. उन्होंने मुझसे लूडो खेलने की जिद की. मैंने उसे स्वीकार कर लिया. हम लोग लूडो खेलने लगे. मैं बार-बार खिड़कियों से बाहर देख रहा था अचानक मुझे एक लड़की अपने बाल तौलिए से झड़ते हुए दिखाई दी. उसने गुलाबी रंग का घाघरा चोली पहना हुआ था. उसकी कद काठी बहुत आकर्षक थी. मैंने उसे पहचानने की बहुत कोशिश की पर असफल रहा. मैंने छोटे रोहन से पूछा ..
“ वो कौन है? छोटा रोहन हंसने लगा और बोला
“वह तो छाया दीदी हैं.” और अपने खेल में लग गया.
मेरी आंखों को यकीन नहीं हो रहा था. मेरे घर में आज से दो- ढाई साल पहले आई छाया इतनी बड़ी हो गई थी. मैं उसे देखने को लालायित हो रहा था. पिछले 2 सालों में मैंने जितना उसे नजरअंदाज किया था उतनी ही तड़प मुझे अब उसे देखने के लिए हो रही थी. मेरा खेल में बिल्कुल भी मन नहीं लग रहा था. पर सीधा छत पर जाने की हिम्मत नहीं थी. मन की बेचैनी बढ़ती जा रही थी.
शाम को नीचे मैं पापा के साथ बैठकर चाय पी रहा था तभी वहां पर माया जी आ गई. उन्होंने बताया इस बार छुट्टियों में जब सीमा आई थी तो वह तुम्हारी बहुत तारीफ करती थी. तुमने पिछली छुट्टियों में उसे जो पढ़ाया था उससे उसको बहुत फायदा हुआ था. और वह तुम्हारी बहुत शुक्रगुजार थी. इस बार आने के बाद उसने छाया को भी परीक्षा की तैयारी के बारे में सिखाया तथा अपनी किताबें भी दी गई है.
पापा ने कहा
“मानस पिछले 2 साल में छाया ने पढ़ाई में बहुत प्रगति की है. उसने 11 वीं की परीक्षा भी 85% अंकों से पास की है. तुम उसका मार्गदर्शन करो तो शायद इंजीनियरिंग में दाखिला पा सकती है.”
मैंने सहमति में सर हिला दिया. रात को लगभग 8:00 बजे मैं खाने की प्रतीक्षा कर रहा था. तभी दरवाजे से छाया ने हाथ में थाली लिए प्रवेश किया. मुझे एक पल के लिए विश्वास ही नहीं हुआ की छाया इतनी बड़ी हो गई है.
युवावस्था में लड़कियों में शारीरिक विकास तीव्रता से होता है.
मेरी पारखी निगाहों ने उसे बहुत ध्यान से देखा. मैंने मौन तोड़ते हुए कहा
“थाली टेबल पर रख दीजिए.” सुंदर लड़कियों के लिए मेरे मुख से सम्मान सूचक शब्द स्वयं ही निकलते थे.
उसने सहमति में सिर हिला दिया. वह दो कदम आगे बढ़ी और टेबल पर थाली रखकर वापस मुड़कर जाने लगी. मैंने उसे रुकने को कहा. वह वापस मुड़कर खड़ी हो गई. मैंने उससे इशारा कर स्टूल पर बैठने के लिए कहा. वह खुशी-खुशी बैठ गई. वह प्रसन्न दिखाई दे रही थी. मैंने हिचकिचाते हुए उसे पढ़ाई में अच्छे नंबरों के लिए बधाई दी और कहा कि वह मेरे पास कुछ भी पूछने आ सकती है. मैं बीच में तिरछी नजरों से छाया को देख रहा था. वह गर्दन झुका कर अपने घुटनों की तरफ देख रही थी. तथा अपनी उंगलियों को आपस में रगड़ रही थी. वह अभी भी सामान्य नहीं हो पा रही थी.
कुछ देर बाद वह चली गई. मैं बिस्तर पर आकर छाया के बारे में सोचने लगा. आज से लगभग ढाई साल पहले जब वह यहां आई थी तब एक ग्रामीण लड़की थी. पर अब वह एक आकर्षक युवती में परिवर्तित हो चुकी थी. मैंने कभी भी उसे अपनी छोटी बहन की संज्ञा नहीं दी थी. मेरी मुलाक़ात ही उससे बहुत कम होती थी बातचीत तो दूर की बात थी. जब मेरा संबंध माया जी से ही नहीं था तो छाया से होने का प्रश्न ही नहीं उठता था.
आज छाया को देखकर मुझे उसमें सीमा दिखाई दे रही थी. छाया सीमा की तुलना में पतली और छरहरी थी उसका रंग बेहद गोरा था तथा त्वचा बहुत ही कोमल एवं पतली थी. चेहरे पर नाक नक्श बेहद खूबसूरत थे. आंखें बड़ी बड़ी थी और होंठ गुलाबी थे. घागरा उसके नितंबो और जांघों का आकार अवश्य छुपा ले गया था पर चोली स्तनों का आकार छुपा पाने में नाकाम थी. छाया के स्तन विकसित हो चुके थे और उसके कोमल शरीर की शोभा बढ़ा रहे थे. उसके बाल थोड़े घुंघराले थे तथा उसके कंधे तक आ रहे थे. चेहरे पर मासूमियत कूट कूटकर भरी हुई थी. आज तक जितनी युवतियां मैने देखी थी उनमे छाया सबसे खूबसूरत, कोमल और मासूम थी. मैं उसे याद करते हुए नींद के आगोश में चल गया.
अगली सुबह मैं प्रसन्न मुद्रा में उठा. बाहर धूप खिली हुई थी. छत पर थोड़ी देर टहलने के बाद मैं वहीं धूप का आनंद लेते हुए फिर छाया के बारे में सोचने लगा. छाया ने अपने सौंदर्य से मुझे उसके बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया था.
छाया एवं सीमा
( मैं छाया )
आप सब मुझसे परिचित हो ही चुके हैं. जब से मैं इस घर में आई थी मुझे इस घर में सब कुछ मिला. मानस के पापा मुझे अपनी बेटी की तरह ही प्यार करते थे. उन्होंने मेरी पढ़ाई पर विशेष ध्यान दिया था. वह चाहते थे कि मैं पढ़ लिख कर अपने पैरों पर खड़ी हो जाऊं ताकि खुद का और अपनी मां का ख्याल रख सकूं. जब मैं यहां आई थी तब मानस भैया अपनी पढ़ाई में पूरी तरह मशगूल थे. वह मुझसे दूर दूर रहते थे यह मेरे लिए भी अच्छा था. मैं भी नए माहौल में अपने आप को ढालने की कोशिश कर रही थी. मैंने घर में इतनी संपन्नता कभी नहीं देखी थी. मानस भैया के दिल्ली जाने के बाद घर में हम 3 लोग ही बचे थे. मैं अब घर की लाडली बन चुकी थी. मैंने मन ही मन या निश्चय कर लिया था मैं अपनी आगे की पढ़ाई पूरी इमानदारी से और मेहनत से करूंगी. अपनी पुरानी जिंदगी में मैं पढ़ाई में पहले ही पीछे हो चुकी थी. पिछले साल जब सीमा दीदी और मानस भैया यहां आए थे तो सीमा दीदी से मेरी दोस्ती हो गयी थी. उन्होंने मुझे पढ़ाई के लिए प्रेरित किया और तरह-तरह की बातें की.
मैं सीमा दीदी से छोटी थी फिर भी मेरे स्तन उनसे थोड़े से बड़े थे. वह बार-बार मुझसे मजाक में इसे बदलने के लिए कहती और मेरी हंसी छूट जाती थी. मेरी त्वचा और उसका निखार भी उनके लिए कौतूहल का विषय था. वह बार-बार मुझसे पूछती कि तुम क्या लगाती हो मैं निरुत्तर थी. मैंने घरेलू चीजों के अलावा कभी किसी ब्यूटी प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल नहीं किया था. वह कहती कि तुम्हारी त्वचा बहुत कोमल है. एक बार उन्होंने अपने हाथों से मेरी कलाई को तेजी से पकड़कर मुझे खींचा. जब उन्होंने अपना हाथ हटाया तो उंगलियों के निशान मेरी कलाई पर साफ दिखाई दे रहे थे. उन्होंने हंसकर मुझे मेरी कलाई दिखाई और कहा छाया जब तुम लड़कों के हाथ लगोगी तब तो पूरी तरह चितकबरी हो जाओगी और कह कर जोर जोर से हंसने लगी,
छाया दीदी से बातें कर कभी-कभी मुझे अपनी योनि में गीलापन महसूस होता था. वो मुझसे पूरी तरह खुल गई थी. एक बार हम दोनों अकेले थे तब उन्होंने मुझे अपने स्तन दिखाए थे. वो मुझसे मेरे स्तनों को दिखाने की जिद की उनके बार-बार आग्रह करने पर मैंने अपने स्तन भी दिखा दिए थे. उन्हें अपने हाथों से छूने के बाद वह बहुत खुश लग रही थी. बार-बार यही कहती थी स्तन मुझे दे दे. मुझे शोले फ़िल्म का डायलाग याद आ जाता और हम दोनों हँस पड़ते.
एक बार वह मेरे स्तनों को देर तक सहलाती रही. उनके बार-बार छूने से मेरे योनि में गीलापन आ चुका था. उन्होंने मुझे मेरे नितंबों से पकड़ कर अपने आलिंगन में ले लिया और बोली वह कौन भाग्यशाली होगा जो मेरी सहेली का कौमार्य भंग करेगा. जैसे उन्हें पूरा विश्वास हो कि मेरा कौमार्य सुरक्षित है. उनके आलिंगन से मैं उत्तेजित होने लगी थी. उनका साथ मुझे बहुत अच्छा लगता था. एक दिन उन्होंने मुझसे मानस भैया के साथ चल रही उनकी रासलीला के बारे में भी बताया. जितना वह बताती उतना ही मैं उत्सुक होती.
जब श्रोता अच्छा हो तो वक्ता अपने मन की सारी बातें खुल कर बताता है.
सीमा दीदी ने छुप्पन छुपाई के दौरान की गई कामुक गतिविधियों की सारी कहानी मुझे सुना दी. गुरुदक्षिणा और राज कुमारी दर्शन का वह वृत्तांत मेरी योनि को प्रेम रस में भिगो दिया था. मुझे एसा महसूस हो रहा था जैसे मैं स्खलित हो गयी थी.
सीमा ने मुझे यह भी बताया था की उन्होंने मानस भैया के अलावा सोमिल ( जो उनका चंडीगढ़ में दोस्त था) के साथ भी इसी प्रकार मजे किये हैं.
मेरे मन में मानस भैया की छवि बदल चुकी थी उन्होंने मुझे शुरू से ही अपनी बहन का दर्जा नहीं दिया था अतः मैंने भी उन्हें इस बंधन से आजाद कर दिया था. अभी भी मैं उन्हें मानस भैया बुलाती थी पर यह सीमा द्वारा बुलाए गए मानस भैया से कहीं भी अलग न था. मैं जान चुकी थी कि
अपनी कामुकता को जीवंत रखते हुए अपने कौमार्य को सुरक्षित रखा जा सकता है.
. मैंने उन्हें अपना गुरु मान लिया था.
इस बार मानस भैया पूरे डेढ़ साल बाद आए थे मेरा शारीरिक विकास भी हो चुका था. मेरी योनि के आसपास सुनहरे बाल आ गए थे परंतु आश्चर्यजनक रूप से मेरे हाथ पैरों या शरीर के अन्य किसी हिस्से पर कोई बाल नहीं थे. मैंने अपने आप को आईने में नग्न देखती और भगवान द्वारा दी गई इस इस सुंदर काया के लिए उनकी कृतज्ञ होती.

छाया के मानस भैया
अगले दिन मैं मानस भैया के पास के पास अपनी किताबें लेकर गई. उन्होंने मुझसे कई सारे प्रश्न किए जैसे वह जानना चाहते हैं कि मैंने अभी तक कितना ज्ञान अर्जित किया है. उसके पश्चात मानस भैया ने मुझे हर हर विषय को पढ़ने का तरीका बताया. मैं उनकी बातों से मंत्रमुग्ध थी कब दो-तीन घंटे बीत गए यह पता ही नहीं चला. वह पूरी तन्मयता से मुझे पढ़ा रहे थे. मेरी मां के खाना लेने लेकर आने के बाद ही उन्होंने मेरी पढ़ाई बंद की. मैं बहुत खुश थी.
यह सिलसिला अगले दो दिनों तक चला. तीसरे दिन जब वह मुझे पढ़ा रहे थे तो मुझे झपकी आ रही थी. उन्होंने मुझसे ध्यान देकर पढ़ने के लिए कहा तभी उनके कुछ पुराने दोस्त नीचे आकर आवाज देने लगे. उन्होंने कहा तुम पढ़ाई जारी रखो मैं थोड़ी देर में आता हूं. मुझे नींद आ रही थी. उनके जाते ही मैं उनके बिस्तर पर झपकी लेने लगी और जाने मुझे कब नींद आ गई. कुछ देर बाद मुझे अपने घुटने के ऊपर ठंडक का एहसास हुआ मैंने अपनी पलकें थोड़ी थोड़ी ऊपर की तो देखा मानस भैया खड़े थे उनका हाथ मेरे लहंगे को ऊपर की तरफ उठा रहा था. मैं थरथर कांपने लगी वह मेरे घुटने और पैरों को लालायित नजरों से देख रहे थे. मेरा घाघरा अब मेरी जांघों तक आ चुका था. मैंने इस कामुक परिस्थिति को यहीं पर विराम देना उचित समझा और करवट लेने लगी. मैंने देखा मानस भैया ने तुरंत मेरा लहंगा नीचे कर दिया और बोले
“छाया उठो पढ़ाई नहीं करनी है क्या?”
उनकी इस बात में हक भी दिखाई दे रहा था. मैं आंखे मीचती हुई उठ खड़ी हुई. मेरी धड़कने अब सामान्य हो गई थी पर मैं आगे पढ़ पाने की स्थिति में नहीं थी. मानस भैया के साथ मेरे रिश्ते का नया अध्याय शुरू होने वाला था. मैं उनसे नजरें नहीं मिला पा रही थी. बाकी कल पढ़ेंगे यह कहकर में मानस भैया के कमरे से चली आयी.
मानस भैया कल वापस दिल्ली जाने वाले थे. माँ पड़ोस में होने वाले किसी सांस्कृतिक समारोह में जा रही थी. उन्होंने मानस भैया को आवाज देकर बोला यदि कोई जरूरत हो तो छाया को आवाज दे देना. पता नहीं क्यों मुझे अंदेशा हो रहा था कि वह मुझसे मिलने जरूर आएंगे. मैंने एक सुंदर सा घाघरा और चोली पहनी तथा अपने कमरे में बिस्तर पर लेट गई. दस मिनट बीत गए अचानक मानस भैया की आवाज सुनाई दी वह मुझे पुकार रहे थे. मैंने जानबूझकर उनकी बात को अनसुना किया कुछ ही देर में वह मुझे ढूंढते हुए मेरे कमरे में आ गए. मैंने जैसा सोचा था ठीक वैसा ही हुआ मैं सोने का नाटक करती रही. मेरा घाघरा मैंने स्वयं अपने घुटने तक उठा दिया था. मैं आंखें बंद कर मानस भैया के अगले कदम की प्रतीक्षा कर रही थी. तभी मैंने अपने घाघरे को ऊपर की तरफ उठता महसूस किया. उस दिन वाली घटना की पुनरावृत्ति हो रही थी.
मैंने अपनी धड़कनों पर काबू कर कर रखा था. मैं मानस भैया की तरफ पीठ करके लेटी हुई थी. मेरी चोली के पीछे से मेरी अधनंगी पीठ दिखाई पड़ रही थी. घाघरा अब जांघों तक आ गया था और मेरे नितंबों से कुछ ही नहीं नीचे रह गया था. इससे ऊपर वह घाघरे को नहीं ले जा पा रहे थे क्योंकि वह मेरे पैरों से दबा हुआ था. कुछ देर तक वह शांत रहे उन्हें आगे बढ़ने का कोई रास्ता नहीं दिखाई पड़ रहा था. मैं मुड़ते हुए पीठ के बल हो गई. मैंने उन्हें एहसास ना होने दिया कि मैं जाग रही हूं. फिर भी वह सहम गए मेरी जांघें सामने से दिखाई पड़ रही थी. मेरे चोली में बंद स्तन भी अब दिखाई देने लगे थे. कुछ देर में उन्होंने हिम्मत जुटाई और मेरे घागरे तक अपने हाथ लाये पर उसे छूने की हिम्मत नही जुटा पाए.
मैं उनके मन में चल रही भावनाओं को समझ रही थी पर पहल उनको ही करनी थी. मैं तो अपना मन बना ही चुकी थी.
मानस और छाया के बीच प्रेम पनप रहा था जो समाज द्वारा थोपे गए रिश्ते के ठीक विपरीत था.
आकस्मिक आगमन .
कॉलेज में वापस आने के बाद मुझे छाया का चेहरा हमेशा याद आता था. गांव में इस बार उसने मेरे साथ जो पल बिताए थे वह मेरे लिए यादगार बन गए थे. उसका सुंदर और प्यारा चेहरा तथा कोमल तन मुझे आकर्षित करने लगे थे. पता नहीं क्यों मुझे ऐसा महसूस होता जैसे मेरा उसके साथ कोई नया रिश्ता जुड़ने वाला था. मेरे मन में उसके प्रति कामुकता जरूरत थी पर वह उसकी खूबसूरती को देखने के बाद स्वाभाविक थी. मैंने छाया को केंद्र में रखते हुए कभी भी हस्तमैथुन नहीं किया. वह मेरे लिए प्यार की मूर्ति बन रही थी.
समय बीत रहा था और कुछ दिनों बाद होली आने वाली थी. मैंने छाया से मिलने की सोची. मुझे पता था यदि मैं पापा से बात करूंगा तो शायद वह मेरी पढ़ाई को ध्यान में रखते हुए मुझे आने के लिए रोक देंगे. होली के एक महीने बाद ही मेरी परीक्षा थी. मेरा मन छाया से मिलने के लिए उत्सुक हो उठा था. और अंततः मैं बिना किसी को बताए अपने गांव के लिए निकल पड़ा. स्टेशन पर उतरने के बाद मैंने ऑटो किया और घर पहुंच गया.
सुबह के लगभग 10:00 बज रहे थे मुझे दूर से ही छत पर छाया दिखाई पड़ गई. वह धूप में अपने बाल सुखा रही थी. मैंने घर में प्रवेश किया और देखा की पापा की स्कूटर घर पर नहीं थी. मैं समझ गया की वो कॉलेज गए हुए हैं. घर के अंदर प्रवेश करने पर मुझे माया जी कहीं दिखाई नहीं पड़ रहीं थीं. मेरे इस आकस्मिक आगमन के बारे में किसी को जानकारी नहीं थी. मैंने अपना बैग नीचे रखा और सीधा छत पर छाया से मिलने चला गया.
छत पर आते ही मैंने देखा छाया मेरी तरफ पीठ किए हुए खड़ी है. उसने एक घाघरा और चोली पहनी हुई थी. मैं धीरे-धीरे उसके पास गया और पीछे से उसकी आंखों पर अपनी हथेलियाँ रख दीं. वह मुझे पहचानने की कोशिश कर रही थी.
उसने अपनी कोमल उंगलियों से मेरी उंगलियों को छू कर पहचानने की कोशिस की और उन्हें अपने आंख से हटाने लगी. उसने खुश होकर कहा ...
“मानस भैया?” उसकी आवाज में प्रश्न छुपा हुआ था.
“ हां” मैं अपने हाथ नीचे की और ले गया और उसे उसके पेट से पकड़ कर हवा में उठा लिया उसकी कमर मेरी नाभि से सटी हुई थी. मेरा राजकुमार उसके नितंबों से सटा हुआ था. उसके पैर जमीन से ऊपर आ चुके थे मैं उसे गोल गोल घुमाने लगा. मेरा राजकुमार अब तक तनाव में आ चुका था वह छाया के नितंबों में निश्चय ही चुभन पैदा कर रहा होगा और अपनी उपस्थिति का एहसास दिला रहा होगा. उसे घुमाते समय मेरी हथेलियां छाया में पेट पर थी. उन्होंने घाघरा और चोली के बीच में अपनी जगह बना ली थी. अपनी हथेलियों से छाया के पेट की कोमलता को महसूस करते हुए मुझे काफी आनंद आ रहा था. कुछ देर बाद मैंने छाया को नीचे उतार दिया वह खिलखिला कर हंस रही थी. उसे भी इस तरह घूमने में आनंद का अनुभव हुआ था. नीचे उतरने के बाद वह मुझसे लिपट गई उसका शरीर मेरे शरीर से पूरी तरह सटा हुआ था. स्तन और पेट पूरी तरह से मुझसे चिपके हुए थे. एक दूसरे से चिपके होने के कारण मेरा राजकुमार उसके पेट पर कछु रहा था.
उसने कहा
“अच्छा हुआ आप होली पर आ गए मैं इस बार आपका इंतजार कर रही थी” यह कहते हुए वह मुझसे अलग हो गइ और भागती हुई नीचे गइ.
“मां देखो मानस भैया आए हैं” माया जी भी खुश हो गयीं. उन्होंने मेरा स्वागत किया और कहा
“होली के त्योहार पर घर आ गए अच्छा किया. छाया भी तुम्हें याद करती है.” शाम को पापा के आने के बाद वो भी खुश थे. मैं रात्रि में छाया को याद करते हुए सो गया .
अगले तीन-चार दिन मेरे लिए रोमांचक होने वाले थे. अगली सुबह मैं अपने दोस्तों से मिलने घर से बाहर गया था. लगभग 11:00 बजे वापस घर आया तो माया जी ने कहा छाया पढ़ने के लिए तुम्हारे कमरे में कब से इंतजार कर रही हैं. मैं खुश हो गया और अपने कमरे में जाकर देखा छाया वहां मेरे बिस्तर पर लेटी हुई थी. उसकी किताब उसके चेहरे के पास गिरी हुई थी. वह अत्यंत सुंदर और मासूम लग रही थी. वह करवट लेकर सोई हुई थी. त्योहार के अवसर पर उसके पैरों में आलता लगा हुआ था और एक छोटी सी पायल पहनी थी जिससे उसके पैर अत्यंत खूबसूरत लग रहे थे. मेरे मन में फिर एक बार उसकी जांघों को देखने की इच्छा प्रबल हो गई. मैंने घागरे को ऊपर करना शुरू कर दिया घागरा तुरंत ही घुटनों के ऊपर आ गया मैंने थोड़ा और प्रयास किया. घाघरा अब जांघों तक आ गया पर अभी भी उसकी राजकुमारी दूर थी. पर मेरे लिए दृश्य अत्यंत लुभावना था. आज तीन चार महीने बाद मुझे यह दृश्य मेरी आँखों के सामने था. पता नहीं मेरे मन में क्या आया मैंने अपने राजकुमार को छू लिया. वह शायद मेरी ही प्रतीक्षा कर रहहा था. मैंने अपने पजामे के अंदर ही उसे सहलाने लगा. छाया की नग्न जांघों को देखते हुए उसे छूने में एक अद्भुत आनंद आ रहा था. कुछ देर तक मैं ऐसे ही अपने राजकुमार को सहलाता रहा. अंततः मेरे राजकुमार में अपना वीर्य त्याग दिया. आज पहली बार मैंने छाया को ख्वाबों में कुछ और दूर तक नंगा कर दिया था. उसकी राजकुमारी की परिकल्पना मात्र से राजकुमार ने अपना वीर्य त्याग दिया था. मैं मजबूर था राजकुमार पर मेरा कोई बस नहीं था उसे अपनी राजकुमारी को याद कर अपना प्रेम जता दिया था. मैंने अपने आपको व्यवस्थित किया. सारा वीर्य मेरे पाजामें में ही लगा हुआ था. मैंने अपना कुर्ता नीचे किया और छाया की जांघों को उसके लहंगे से ढक दिया. मैंने छाया को पुकारा
“छाया उठो मैं आ गया.” वह आंखें मींचती हुई उठ खड़ी हुई. अगले दो-तीन घंटे तक हम लोग पढ़ाई की बातें करते रहे.
मेरे आकस्मिक आगमन का उपहार मुझे मिल चुका था.


छाया के साथ यादगार होली.
[मैं छाया]
मानस भैया ने इस बार कुछ नया कर दिया था. उस दिन छत पर मुझे गोल-गोल घुमाते समय उनके राजकुमार का तनाव मुझे स्पष्ट रूप से अपने नितंबों के बीच महसूस हुआ पर मैंने उस पर अपनी प्रतिक्रिया नहीं दी थी. उनसे गले लगते समय मेरे स्तन उनसे टकरा रहे थे तब मुझे अपनी राजकुमारी में उसकी अनुभूति हो रही थी. मैं भी मन ही मन उनसे निकटता बढ़ाने के आतुर थी. उस दिन उनके कमरे में जब उन्होंने मेरे लहंगे को ऊपर करना शुरू किया तो मुझे पूरा विश्वास था कि वह इसे और ऊपर तक ले जाएंगे पर शयद वो डर गए. पर उन्होंने मेरे सामने ही अपने राजकुमार को सहलाना शुरू किया. यह मेरे लिए एक अलग अनुभव था. मुझे राजकुमार की कद काठी तो नहीं दिखाई दे रही पर एक अलग अनुभव हो रहा था. मेरी राजकुमारी से निकलने वाला प्रेम रस मेरी पैंटी को गीला कर रहा था. यदि वह घाघरे को थोड़ा और ऊपर करते तो मेरी चोरी उस दिन पकड़ी जाती. पर ऐसा हो ना सका.

होली के दिन मैंने अपनी तरफ से भी स्वीकृति देने की सोच ली थी. होली के दिन मैंने सुबह-सुबह एक पतला लहंगा तथा एक पतला टॉप पहना था.
मुझे पता था की अगर मैं भीग गइ तो मेरे अंग प्रत्यंग के अर्ध दर्शन मानस को अवश्य हो जाएंगे. पर मैं इसके लिए मन ही मन तैयार थी. सुबह १० बजे के आसपास मैं मानस भैया के कमरे में कई. वह तौलिया पहने हुए थे और अपने कपड़े पहनने जा रहे थे. मैंने जाते ही उनकी पीठ पर रंग गिरा दिया और उन्हें कहा “हैप्पी होली”
वह इस अप्रत्याशित हमले के लिए तैयार नहीं थे.
“अरे रुको तो, पहले कपड़े तो पहन लेने दो”
मैं नहीं मानी और उनकी पीठ और छाती पर ढेर सारा रंग डाल दिया. मैंने उनकी तौलिया को भी पीछे की तरफ खीचा और उसमें भी रंग डाल दिया जो निश्चय ही उनके नितंबों से होता हुआ पैरों की तरफ जा रहा था. वह मुझे पकड़ने के लिए सामने की तरफ मुड़े पर छीना झपटी में उनका तौलिया नीचे गिर गया. वह पूरे तरह से नग्न हो गए थे. मैंने अपनी आँखे बाद कर ली. उनका राजकुमार एक झलक मुझे दिखाई पड़ गया. मैं कमरे से निकलकर छत पर भाग गयी. उन्होंने मुझे पकड़ने की कोशिश की पर वो नग्न अवस्था में बाहर नहीं आ सके..
वह अभी भी अपने कमरे में थे और शायद कपड़े पहनने की कोशिश कर रहे थे मैं उनके आने की प्रतीक्षा कर रही थी. मैं मन ही मन डर भी रही थी. हमारी अठखेलियाँ कहां तक जाएंगी यह तो समय ही बताता पर मैं मन ही मन उन सब के लिए तैयार भी थी. उनके राजकुमार के दर्शन मैं कर ही चुकी थी वो शायद अभी तैयार नहीं था. जैसा सीमा ने बताया था वैसा तो बिल्कुल भी नहीं था. शायद वह भी मानस भैया की तरह मेरे आगमन के लिए तैयार नहीं था.
होली का त्यौहार मिलन का प्रतीक होता है, प्रेमियों की लिए ये उनकी कामुकता को आगे बढ़ने में भी मदद करता है.
मानस भैया के छत पर आते ही मैं फिर भागने लगी. कुछ ही देर में उन्होंने मुझे पकड़ लिया. उनकी हथेलियां रंग से सराबोर थी. उन्होंने अपनी हथेलियां मेरे गालों पर मलीं और वह धीरे-धीरे मेरे कंधों तक आ गए. उनके हाथ रुक ही नहीं रहे थे. पर उन्होंने मेरे स्तनों को जरूर छोड़ दिया. पर अब उनके हाथ मेरे पेट तक पहुंच चुके थे. मेरे पेट और नाभि प्रदेश को पूरी तरह रंगने के बाद वह अपने हाथों को और नीचे ले जाने लगे. उनकी उंगलियां मेरे घाघरे के अंदर प्रवेश कर चुकीं थी पर पैंटी तक पहुंचते-पहुंचते उन्होंने अपनी उंगलियों को रोक लिया और वापस पेट की तरफ आ गए.
अब उन्होंने मुझे आगे की तरफ घुमा दिया. मैं उनके सामने आ चुकी थी. मेरा शरीर रंग से सराबोर हो चुका था. स्तनों और योनि प्रदेश को छोड़कर सामने से पूरा शरीर रंग से सना हुआ था. मैं अपने हाथों में रंग लेकर उनके चेहरे पर लगाने लगी. उनके चेहरे को अपने हाथों में लेते हुए मुझे एक अलग आनंद की अनुभूति हो रही थी. मेरे मन में इच्छा हुए की मैं उन्हें चूम लू पर मैंने अपने आप को रोक लिया. मैंने उनके गर्दन और सीने पर भी रंग लगाया. अपने कोमल हाथ उनके कुर्ते के अंदर ले जाते हुए मुझे एक अलग अनुभव हो रहा था. इसी दौरान उनके हाथ मेरी पीठ पर घूम रहे थे . कुछ ही देर में उनके हाथ मेरे नितंबों की तरफ बढ़ रहे थे. मैने अपने हाथों पर लगा हुआ रंग अनायास ही उनके राजकुमार पर न सिर्फ लगा दिया बल्कि कुछ देर तक उसे पकड़ी रह गई फिर उन्हें हैप्पी होली कहकर पीछे हट गयी. . राजकुमार पर रंग लगाते समय मैंने यह महसूस कर लिया था कि वह पूरी तरह तना हुआ है. उन्हें शायद इसकी उम्मीद नहीं थी. मेरे पीछे हटते ही एक बार उन्होंने फिर से मुझे खींच लिया और इस बार मेरे नितंबों के नीचे दोनों हाथ लगाकर मुझे ऊपर उठा लिया गोल गोल घुमाने लगे. मेरे स्तन उनके चेहरे के ठीक सामने थे.
कुछ देर यूं हीं अठखेलियां करने के बाद हम नीचे आ गए. नीचे सारे बच्चे हमारा इंतजार कर रहे थे छोटे रोहन ने बोला
“मानस भैया ने तो छाया दीदी को अपने रंग में सराबोर कर दिया है” उसकी बात बिल्कुल सही थी.
बच्चों की वाणी में भगवान बसते है यह बात सच ही थी.
रोहन ने अपनी पिचकारी से ढेर सारा रंग मेरे ऊपर डाल दिया. मानव द्वारा लगाया गया रंग बहते हुए मेरे शरीर के हर हिस्से पर पहुंचने लगा. कुछ देर रंग खेलने के बाद मानस ने पूरी बाल्टी मेरे सिर पर डाल दी. मैं पूरी तरह भीग गई मुझे हल्की ठंड लगी और मैं छत पर भाग गइ. मेरी चोली और घाघरा बहुत पतला था पानी से भीगने के बाद वह मेरे शरीर में चिपक गया मैं छत पर आ चुकी थी मेरे पीछे-पीछे मानस भी आ गए. मेरे कपड़े मेरे शरीर से चिपके हुए थे मेरे स्तनों का आकार पूरी तरह स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था. भीगने के बाद मेरा घाघरा मेरी जांघों से चिपक गया था दोनों पैरों के बीच की बनावट स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी. यहाँ तक की मेरी पैंटी का रंग और आकार भी दिखाई दे रहा था.
मैं मानस भैया के सामने अर्धनग्न अवस्था में खड़ी थी मेरी नजरे झुकी हुई थी वह मुझे एकटक देखे जा रहे थे धीरे-धीरे वह मेरे पास आ गए उन्होंने मुझे अपनी तरफ खींचा और अपने आलिंगन में ले लिया और कहां….
“छाया मैं तुमसे प्रेम करने लगा हूं मुझे अपना भाई मत समझना”
मैंने भी इस रिश्ते को सीमा से मुलाकात के बाद ही छोड़ दिया था. मैंने कहा...
“ जिस तरह आप सीमा दीदी के भैया थे उसी तरह मेरे भी रहिएगा” और मुस्कुराते हुए मैं नीचे आ गयी.
अगले एक-दो दिनों में उनसे अंतरंग मुलाकात ना हो पायी पर जाते समय मैं उनसे एक बार फिर आलिंगनबद्ध हुई. हमने एक दूसरे को वस्त्रों के ऊपर से ही छुआ और महसूस किया.
मानस भैया के विदा होने से पहले मैंने उनके राजकुमार को भी यह एहसास करा दिया था आखिर आने वाले समय में मेरे पास उसके लिए बहुत कुछ था.

नटखट छाया
मैं वापस अपने हॉस्टल आ चुका था. समय का पहिया तेजी से घूम रहा था मेरे केंद्र बिंदु में अब सिर्फ और सिर्फ छाया थी. छाया की सुंदरता देखकर मेरा मन मंत्रमुग्ध हो गया था उसकी जांघें कितनी कोमल और सुडौल थीं.. मैं अपनी कल्पना में उसकी योनि और नितम्बों को महसूस कर पा रहा था. उसके स्तन किसी परिचय के मोहताज नहीं थे. चोली में बंद होने के बाद भी वह अपनी उपस्थिति सबसे पहले दर्ज कराते थे. छाया की परिकल्पना के लिए आप अबोध सिनेमा की माधुरी दीक्षित को याद कर सकते हैं. मैं मन ही मन छाया को अपनी प्रेमिका मान चुका था.
सीमा से मेरे संबंध में दोस्ती और वासना का महत्व ज्यादा था. राजकुमारी दर्शन और होंटो के चुम्बन के दौरान मुझे उससे कुछ समय तक प्यार की अनुभूति हुई थी और उसके जाने के बाद मेरी आँखों मे आँसू भी आए थे पर छाया के साथ बात अलग थी. में उस पर मर मिटने को तैयार हो रहा था.
समय तेजी से बीत रहा था. छाया 12वी की परीक्षा दे चुकी थी. मेरा तीसरा वर्ष पूरे हो चुका था. मैं छुट्टियों घर आ गया था. अब छाया के समीप रहना मेरी पहली प्राथमिकता थी. कुछ ही दिनों में छाया का रिजल्ट भी आ गया वह बहुत अच्छे नंबरों से पास हुई थी. रिजल्ट आने के बाद वह मेरे पास आई और मेरे सीने से लिपट गई. मैंने उससे इंजीनियरिंग की तैयारी के लिए एक वर्ष तक तैयारी करने के लिए कहा वह मान गयी. मैंने उसे उसकी तैयारी में मदद करने की सहमति दी. इन पूरी छुट्टियों में मैंने छाया को सिर्फ और सिर्फ पढ़ाया उसे कामुक परिस्थितियों से बिल्कुल दूर रखा और स्वयं पर भी अपना नियंत्रण कायम रखा. जब भी मेरी छुट्टियां होतीं मैं छाया के पास आ जाता इस दौरान कामुकता सिर्फ मेरे मन जन्म लेती पर मैं उसे वहीं दफन कर देता,
इसी बीच एक दुर्घटना घट गई मेरे पापा हमें छोड़ कर चले गए. दीपावली के पहले हुई इस घटना ने मुझे और छाया को झकझोर दिया था. मैं दीपावली की छुट्टियों पर घर आया मैंने माया जी और छाया को सांत्वना दी तथा उन्हें संयम बरतने को कहा. घर में पैसों की कोई कमी न थी परंतु माया जी और छाया को अगले कुछ महीनों तक अकेले ही रहना था. मैंने छाया को अपनी तैयारी जारी रखने के लिए प्रेरित किया और वापस कॉलेज लौट आया.
मेरी इंजीनियरिंग खत्म होने के पहले ही बेंगलुरु की एक बड़ी कंपनी में मेरी नौकरी लग चुकी थी. मुझे 2 महीने बाद वहां जाना था मेरी कंपनी के द्वारा मुझे एक पूर्णतयः सुसज्जित दो कमरे का आवास दिया गया था. मैंने उस आवास को देखा तो नहीं था पर अपने वरिष्ठ साथियों से उसके बारे में सुना जरूर था. उस घर में रहने के लिए सिर्फ अपने कपड़ों की आवश्यकता थी बाकी उस घर में सभी साजो सामान उपलब्ध थे. इन 2 महीनों की छुट्टियों में मैं अपने घर वापस आ चुका था . अपनी नौकरी लगने के उपलक्ष में मैंने माया जी के लिए एक सुंदर साड़ी तथा छाया के लिए एक बहुत ही सुंदर गुलाबी रंग का लहंगा और चोली खरीदा था. यह लहंगा वास्तव में बहुत सुंदर था. मैंने छाया के लिए अपने अंदाज से अधोवस्त्र भी खरीदे थे.
जब उपहार लेकर मैं वापस गांव आ गया तो छाया वह लहंगा देखकर बहुत खुश हुई और मेरे सीने से लिपट गई. छाया की इंजीनियरिंग की परीक्षा 15 दिनों बाद थी. मैं छाया के साथ दिनभर रहकर उसकी पढ़ाई में मदद करता वह लगभग मेरे कमरे में ही रहती. माया जी मेरे आने से बहुत खुश थी. और छाया की इस तन्मयता से मदद करते देखकर बहुत खुश होती. शायद मैंने अपने समय पर भी इतनी मेहनत नहीं की थी जितनी इस समय कर रहा था.
छाया अपनी इंजीनियरिंग की परीक्षा दे आई थी. वह बहुत खुश थी उसे अच्छे नंबरों से पास होने की पूरी उम्मीद थी. परीक्षा खत्म होने के बाद वह पूर्णता तनाव मुक्त हो गई थी. अगले दिन उसने स्वयं आकर मेरा कमरा जो लगभग पुस्तकालय बना हुआ था उसे बहुत करीने से साफ किया. उसने सारी किताबें उठाकर एक बक्से में डाल दी. वह अब भी मेरे साथ समय गुजारती थी और अब मुझसे खुलकर बात करती थी. उसने मुझसे अपने कॉलेज के अनुभवों के बारे में पूछा फिर अचानक सीमा की बात छेड़ कर उसने मुझसे कहा
“सीमा दीदी छुपन छुपाई खेल को बहुत याद करती थी.” मैं उसकी बात सुनकर शरमा गया
“ उन्होंने शायद आपको कुछ गुरु दक्षिणा भी दी थी बताइए ना उन्होंने क्या दिया था”
मैं निरुत्तर था.
कभी मुझे लगता कि वह मुझे छेड़ रही है. शायद सीमा ने उसे सब कुछ खुल कर बता दिया था. पर मैं इस पर बात करने की स्थिति में नहीं था. कुछ दिनों बाद छाया का इंजीनियरिंग का रिजल्ट आ गया वह अच्छे नंबरों से पास हुई थी. माया जी और मैं बहुत खुश थे वह मेरे पास आई और मेरे सीने से लिपट गई मैंने पूछा ...
“अब तो खुश हो ना?”
वह दोबारा मेरे गले से लिपटी और मेरे गालों पर चुंबन देकर कहा
“सब आपके कारण ही हैं” मैं मन ही मन प्रसन्न हो गया था. अचानक मेरे मुंह से निकला
“छाया मुझे क्या मिलेगा” उसने अपनी गर्दन झुका ली और मुस्कुराते हुए बोली “राजकुमारी दर्शन” और पीछे मुड़कर हंसते हुए भाग गई.
 
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amit1975

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प्रस्तावना
कुछ रिश्ते जन्म के साथ ही मिलते हैं उन रिश्तो में एक अलग आत्मीयता होती है और कुछ रिश्ते सामाजिक मजबूरियों की वजह से थोप दिए जाते हैं पर कामुकता से उत्पन्न हुआ प्रेम इन थोपे गए रिश्तो को नजरअंदाज कर देता है. "छाया" इन्हीं थोपे गए रिश्तो के बीच पनपते प्रेम का चित्रण है.
भारतवर्ष में 80 और 90 के दशकों में लड़कियों के कौमार्य की बहुत अहमियत थी. विवाह पूर्व और विवाहेत्तर सेक्स समाज में था तो अवश्य पर आम नहीं था. इस प्रेम कथा के पात्रों ने इन्हीं परिस्थितियों में अपने आपसी सामंजस्य से अपनी सारी उचित या अनुचित कामुक कल्पनाओं को खूबसूरती से जीया है.
कथा के पात्र काल्पनिक हैं उनका किसी जीवित या मृत किसी व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है. कथा में वर्णित दृश्यों से यदि किसी पाठक की भावनाएं आहत हुयीं हो तो कथाकार क्षमा प्रार्थी है.
परिचय
हर इंसान के जीवन में अनचाहे रिश्तों हों यह जरूरी नहीं. मेरे जीवन में इनकी प्रमुख भूमिका रही है. आज उम्र के इस पड़ाव पर आकर पीछे देखने पर यह महसूस होता है कि कैसे कुछ अनचाहे रिश्ते प्यार और काम वासना के बीच झूलते रह जाते हैं.
मुझे आज भी दुर्गा अष्टमी का वो दिन याद है, जब मैं पहली बार इस कथा की नायिका से मिला था. दुर्गा पूजा घूम कर थका हुआ मैं अपने घर के अहाते में प्रवेश करते समय घर के बाहर और अंदर की दुनिया के बीच फर्क के बारे में सोच रहा था. एक तरफ जहां दोस्तों के साथ जीवन का आनंद आता था वहीँ घर पर एकदम एकांत था. जेब से घर की चाभी निकाल कर दरवाजे की ओर बढ़ा. दरवाजा खुला देखकर ये यकीन ही नहीं हुआ की पापा आज घर जल्दी आ गए थे. दरवाजा अन्दर से बंद नहीं था और मैं सीधा हाल में दाखिल हो गया जहां पापा के अलावा एक महिला को देखकर आश्चर्यचकित हो गया. कुछ कहने से पहले पापा बोले...
“बेटा ये माया जी हैं और आज से ये यहीं रहेंगी मैंने इनसे विवाह कर लिया है” .
मैं अनमने मन से उनको ध्यान से देखे बिना , नमस्ते कर सीधा अपने कमरे में चला गया. शायद इस जल्दी की वजह मुझे आई हुई लघुशंका थी. जैसे ही मैंने अपने बाथरूम के दरवाजे को खोलने की कोशिश की तभी अंदर किसी के होने की आवाज आई. मैं आश्चर्यचकित हो कर पीछे हटा पर लघुशंका जोर से लगे होने के कारण दरवाजे को तेजी से पीटने लगा. तभी अंदर से आवाज आई “एक मिनट”. आवाज किसी बच्ची जैसी थी. मैंने जैसे ही मुड़कर आपने बिस्तर की ओर देखा वहां पड़ा सूटकेस देख कर कुछ अंदाज लगाने की कोशिश की तभी बाथरूम के दरवाजे के खुलने की आवाज हुई और उसमे से लगभग १३ साल की एक लड़की को चहरे पर तौलिया डाले निकलते हुए देखकर मैं कुछ भी बोल नहीं पाया.
शायद आप सभी को यह इस समय मेरी मनोस्थिति का आभास हो रहा होगा. मुझे इस शादी की जानकारी पहले से ही थी और इस रिश्ते को मैं पहले ही अस्वीकार कर चुका था. पर यह सब इतनी जल्दी घटेगा और ये इतनी जल्दी यहाँ आ जाएंगी ये मैंने नहीं सोचा था.
जैसे जैसे मैं लघुशंका समाप्ति की ओर बढ़ रहा था वैसे वैसे घर में आये इस परिवर्तन के बारे में सोच रहा था. अभी अभी जो लड़की गयी थी वो कौन है ? कही ये माया जी की बेटी तो नहीं.
मैं तो इतनी जल्दी में घर में आया था कि उन्हें देख भी नहीं पाया था इसलिए इस निष्कर्ष पर पहुचना मुश्किल था. बाथरूम से बाहर आकर मैं अपने बिस्तर पर पड़ गया. मेरे दिमाग में बहुत हलचल थी. कुछ ही देर में पापा ने आवाज लगायी तो मैं धडकते हृदय से वापस हाल में प्रवेश किया.
सोफे पर एक ३०-३२ साल की एक खूबसूरत महिला बैठी हुई थी और उसके बगल में एक १४-१५ साल की बेहद मासूम लड़की बैठी थी. शायद यह वही लड़की थी जो अभी- अभी मेरे बाथरूम से निकल कर आयी थी.
आप सभी को मैं अपना और अपने परिवार का परिचय दे दूं. मेरा नाम मानस है और मेरी उम्र उस समय १८ बर्ष की थी. मैं उस समय १२वीं पास करने के बाद इंजीनीयरींग प्रवेश परीक्षा के लिए तैयारी कर रह१५था. मेरे पिता शासकीय कॉलेज में प्रोफेसर थे और उनकी उम्र लगभग ५० बर्ष थी. मेरी माँ का देहांत आज से १० वर्ष पूर्व हो गया था. हम लोग एक मध्यमवर्गीय परिवार से थे. मेरा गाँव शहर से ८ किलोमीटर दूर था. यह एक विकसित गाँव के जैसा था. माँ के जाने के बाद घरेलू कार्यों का सारा बोझ दादी पर आ गया था. दुर्भाग्यवश २ वर्ष पूर्व वो भी चल बसीं थी.
पापा, माँ के जाने के बाद अकेले तो थे पर दुबारा शादी की लिए कभी इच्छुक नहीं थे. उन्होंने अपना समय शराब के हवाले कर दिया था. हाँ दादी के जाने के बाद वो परेशान रहते थे. घर आने के बाद खाना बनाना और अन्य घरेलू कार्य करना ये सब बहुत कठिन हो रहा था. मैं अपनी पढ़ाई की वजह से उनका साथ कम ही दे पाता था. शायद इन्हीं परिस्थितियों की वजह से उन्होंने माया जी को पत्नी रूप में घर ले आये थे. मुझे पूरा विश्वास था की इसमें स्त्री सुख भोगने जैसी कोई बात नहीं थी. दरअसल वो पापा से उम्र में लगभग १५-२० वर्ष छोटी थी. उम्र का यह अंतर और पापा का सामाजिक कद एवं उनका स्वास्थ्य इस स्त्री सुख का भोग करने की इजाजत नहीं देता था. आस पास में सभी लोग यह जानते थे की मेरे पापा एक चरित्रवान व्यक्ति थे और उन्होंने माया जी को लाकर सिर्फ उनके सर पर एक छत दी थी और उन्हें एक सम्मान पूर्वक जीने का हक़ दिया था. इसके एवज में मेरे पिता को घरेलू कार्यौं से मुक्ति मिलनी थी.
शायद आप सब कहानी की नायिका के बारे में जानने को उत्सुक हो रहे है? धीरज रखिये. यदि आप इस कहानी को पढ़कर तुरंत निष्कर्ष पर पहुचने को लालायित हैं तो शायद आप को दूसरी कहानियों पढ़नी चाहिए. क्षमा कीजिएगा पर धीरज का फल हमेशा मीठा होता है.
इस कथा का नायक मैं, उस समय अपने भविष्य निर्माण के लिए पिछले कई वर्षों से अपनी पढ़ाई पूरी ईमानदारी से कर रहा था. लड़कियों में मेरी विशेष दिलचस्पी नही थी. ऐसा नहीं था कि मैंने उस समय तक सेक्स कभी अनुभव न किया हो पर मैं इसका आदि कभी नहीं था.
मेरे पड़ोस में रहने वाली मंजुला चाची की जेठानी चंडीगढ़ में रहतीं थीं. उनकी लड़की सीमा बहुत ही खूबसूरत थी. वह अक्सर छुट्टियों के समय अपने पैतृक निवास यानि गांव पर आया करती थी. इसी दौरान वह हर साल मेरे संपर्क में आती थी. हम सब अन्य पडोस के बच्चों रोहन, रिया, साहिल, सौरभ आदि के साथ खेलते कूदते थे और अपने बचपन का आनंद लेते थे.


पहला अनुभव
एक बार हम सब मेरी छत के सीढ़ी रूम में लूडो का गेम खेल रहे थे. खेल की शुरूआत में सीमा, मैं और दो अन्य बच्चे खेल रहे थे पर बाद में सिर्फ मैं और सीमा ही बचे. सीमा का बदन थोडा थुलथुल किस्म का था. उभरता यौवन एवं पेट में जैसे होड़ लगी हुई थी की कौन आगे निकलता है. वो गोरी और चेहरे पर नूर लिए थी.
आम तौर पर घर में सम्पन्नता और सुख को आप उस घर की लड़कियों के नूर से अंदाज सकते है.
खेलते खेलते बातें होने लगीं और अंत में लड़कों और लड़कियों में अंतर पर आ गयी। सीमा मेरे से ज्यादा समझदार थी और सेक्स के बारे में ज्यादा उत्सुक थी । उसने मुझसे पूछा की
“क्या तुम्हें अपने शरीर और मेरे शरीर के अंतर के बारे में पता है?” मैंने हाँ में सर हिलाया तो उसका साहस बढ़ गया और उसने पूछा
“अच्छा बताओ क्या क्या अंतर है?” उसके प्रश्न के उत्तर में मैं क्या जवाब दूं यह सोच नहीं पा रहा था फिर भी मैंने उसके स्तनों और जांघों की ओर इशारा किया. वह समझ गई और बोली..
“मानस मैंने आज तक किसी लड़के का वह भाग नहीं देखा है. क्या तुम मुझे एक बार दिखाओगे?”
मैं सकुचाया पर वह प्लीज प्लीज रटती रही. अंततः मैंने कहा
“ठीक है. पर बदले में मुझे क्या मिलेगा” तो उसने कहा कि
“मैं भी वही काम तुम्हारे लिए करूंगी.”
मैंने स्वयं आज तक कभी किसी लड़की का वह भाग नहीं देखा था यहां तक की किसी फोटो में भी नहीं. वह उतावली हो रही थी.
“दिखाओ ना... क्यों शर्मा रहे हो.”
उसके बार बार कहने पर मैंने धीरे से अपना पैजामा नीचे कर दिया और अपने लिंग को बाहर ले आया जो कि इन सब बातों के दौरान काफी कड़ा हो गया था. मेरा लिंग सामान्य युवा था पर एकदम साफ सुथरा था. लिंग का रंग गोरा था. सीमा अपनी उत्सुकता ना रोक पायी और बोली
“क्या मैं इसे छू सकती हूं?”
मेरे उत्तर का इंतज़ार किये बिना उसने अपना हाथ सीधा लिंग पर रख कर उसे महसूस करना शुरू कर दिया. थोड़ी ही देर में मेरा लिंग इतना कड़ा हो गया जैसे कि फट जाएगा. मेरे लिंग के ऊपरी भाग में मुझे हल्का दर्द का अनुभव हुआ. मुझे लगता है इसके पहले शायद दो या तीन बार मैंने अपने लिंग को इतना कड़ा महसूस किया था. उसके हाथों का स्पर्श पाकर आज जैसी अनुभूति शायद पहले कभी नहीं हुई थी. वह बार-बार मेरे लिंग की तारीफ करती और हल्के हल्के सहलाती जा रही थी. मुझसे अब बर्दाश्त नहीं हो रहा था. मैंने देखा कि सीमा का दूसरा हाथ उसकी जांघों के बीच है। मुझे अब विश्वास हो चुका था की सीमा ये काम पहले भी किसी के साथ कर चुकी है. मैंने उससे कहा...
“मुझे भी देखना है”
उसने कुछ देर सोचा और कहा...
“ठीक है रुको”
उसने धीरे से मेरे से लिंग के अग्रभाग पर अपनी हथेलियों का प्रेशर बढ़ा दिया. उसके इस कार्य से उत्तेजना की एक तीव्र लहर मेरे शरीर में दौड़ गई. मेरा शरीर बुरी तरह कांप रहा था. शायद उसे मेरी स्थिति का अंदाजा था. उसने अपना कार्य जारी रखा और धीरे-धीरे मेरे और पास आ गई. पास आने के बाद उसने अपना बाया हाथ अपनी जांघों के बीच से हटा लिया और मेरे कान में धीरे से कहा ...
“अपनी आँखें बंद कर लो.”
उसने मेरे लिंग को सहलाना जारी रखा। जब वह लिंग की चमड़ी को पीछे की तरफ खींचती थी तो शिश्नाग्र में बहुत सनसनाहट होती और हल्का दर्द भी होता। चमड़ी को पीछे करके उसने जब सुपाड़े को छुआ तो मेरी जान ही निकल गयी. अग्रभाग इतना संवेदनशील था की उसे सीधा सहलाना मुझे बर्दाश्त नहीं हो रहा था. मैंने सीमा का हाथ पकड़ लिया. वो यह जान चुकी थी की मेरे सुपाड़े को शायद पहली बार हस्तमैथुन के लिए छुआ गया था. वो अपने हथेली में मेरे कोमल पर अत्यंत सख्त हो चुके लिंग को पकड़कर आगे पीछे करने लगी. मैं आनंद की पराकाष्ठा में था. मैंने स्खलित होने के पहले सीमा को जोर से पकड़ लिया और लिंग के अन्दर धधक रहे ज्वालामुखी ने लावा उड़ेल दिया.
इससे पहले कि मैं यथार्थ में वापस आता, उसने हाथ में लगे वीर्य रस को मेरे बनियान में पोछा और “आती हूँ” कह कर भाग गयी.
सीमा इस कला में उस उम्र के हिसाब से शायद पारंगत थी. मुझे नहीं पता की उसे इस क्रिया में क्या मिला पर वो खुश थी.
सुनहरी यादों में एक खूबी होती है की उन्हें व्यक्त या याद करते समय समय तेजी से निकल जाता है.

नए मेहमान
मेरे लिए माया जी और उनकी बेटी का कोई महत्व नहीं था. मैं उस समय पूरी तरह अपनी पढ़ाई में मशगूल था. अतत: मैं शांति से हाल में आकर बैठ गया. पापा ने एक बार फिर माया जी को मेरे बारे में बताया और बाद में उस प्यारी लड़की की तरफ इशारा करके बोले ये छाया है माया जी की बेटी. वो तुरंत उठकर मेरे पास आई और मेरे पैर छूए. मुझे कुछ अटपटा सा लगा, मैं “ठीक है” कह कर थोड़ा पीछे हटा.
बाद में मुझे पता चला की माया जी पापा के ससुराल के गांव की थी. पति के देहांत के बाद माया जी और उनकी बेटी का गाँव में कोई न था. पापा के ससुराल पक्ष वालों की सहमति से मंदिर में शादी कर वे उनके साथ चली आयीं थीं. शायद यही नियति को मंजूर था. मैं और पापा दोनों ही उनको माया जी कहकर ही संबोधित करते थे. यह इस बात का भी परिचायक था की वो हमारे घर में जरूर थीं पर हमारे मन में उनका कोई विशेष स्थान नहीं था.
जैसे माया जी घरेलू कार्य में निपुण थी और वैसे ही उनकी बेटी छाया. पापा भी खुश रहने लगे और घर एक में एक बार फिर रौनक हो गयी.
नारी की उपस्थिति घर के सजीव और निर्जीव दोनों में जान डाल देती है.
घर की कुर्सियां परदे एवं अन्य साजो सामान चमकने लगे. पापा और मैं भी खुश थे हमें घर का कोई काम नहीं करना पड़ता था. पापा को अब घर की कोई चिंता नहीं थी. वक्त काटने के लिए शराब अपनी जगह थी ही. मैं उस समय न तो माया जी से न ही छाया से कोई रिश्ता रखने को उत्सुक था. दरअसल मेरे पास पढाई के अलावा वक्त ही नहीं था खास कर इस नए रिश्ते के लिए.
माया जी समय से मेरे रूम में ही नाश्ता व खाना दे जाया करतीं थी. इसके अलावा उनसे बात करने का कोई तुक भी नहीं था.
जब स्वीकार्यता नहीं होती तो अक्सर आदमी बातचीत से दूर भागता है यही हाल मेरा था.
परीक्षा अच्छे से देने के बाद मैं बहुत खुश था और घर आने पर उस दिन मैंने माया जी से पहली बार बात की. उन्होंने अपने गाँव के बारे में बताया और अपने पहले पति को याद कर दुखी ही गयीं. मैंने बात बदल कर वापस उन्हें वर्तमान में ले आया. छाया की बात करते हुए उन्होंने कहा कि उसे भी अपने जैसा होशियार बना दो. छाया कक्षा ८ की परीक्षा अपने गाँव में दे कर आई थी और उसे कक्षा १० में प्रवेश लेना था. मैंने बात को सुनकर भी अनसुना कर दिया वैसे भी ये सब पापा को ही करना था. छाया भी मुझसे दूर ही रहती थी.
पनपती कामुकता
अगले कुछ दिनों में मैंने सीमा को बहुत याद किया उसका स्पर्श और उसके कोमल हाथों में मेरे लिंग के एहसास मात्र से मेरा लिंग उत्तेजित हो जाता था. अब जब पढाई का तनाव न था तो सिर्फ सीमा के साथ एक बार किया गया हस्तमैथुन ही एक सुनहरी याद थी. मैंने उसे याद कर कर के कई बार हस्तमैथुन किया. मैंने उस समय तक कभी किसी लड़की के उपरी या निचले भाग को नही देखा था. सीमा ने मुझसे वादा तो किया पर वो बिना पूरा किये ही चली गयी थी.
जब आप स्त्री अंगों से परिचित न हो तो आपकी कल्पना भी अजीब होती है. मैं चाहकर भी योनि की बनावट और कोमलता की कल्पना नहीं कर पा रहा था.
पर युवावस्था में अपना हाथ ही किसी काल्पनिक योनि की तरह चरमावस्था देने में निपुण होता है. अगले एक महीने में मैंने कई बार अपने लिंग को सुखद एहसास दिलाया जैसे उसे आने वाली जिन्दगी के लिए तैयार कर रहा था. कई बार हस्तमैथुन करने से मेरे लिंग की चमड़ी आसानी से आगे पीछे होने लगी थी और अब हस्तमैथुन करते समय होने वाला हल्का दर्द आनंद में बदल चुका था. शिश्नाग्र की सवेंदना भी कुछ कम हो गयी थी.
कुछ ही दिनों में मेरा एडमिशन दिल्ली के एक प्रतिष्ठित कालेज में हो गया. घर से जाते समय छाया भी मुझे छोड़ने आई थी. मैंने पहली बार उसे ध्यान से देखा था. वो बहुत मासूम थी और थोडा दुखी भी लग रही थी. सुनहरे सपने लिए मैं दिल्ली के लिए निकल चुका था.
होस्टल की दुनिया निराली थी. मेरे लिए यहाँ सब कुछ नया था. नए वातावरण में ढलने में मुझे १० – १५ दिन लगे. जिंदगी को जैसे पर लग गए थे. दोस्तों के साथ घूमना फिरना, शहर की लड़कियों को देखना एक अलग ही अनुभव था. कुछ दोस्त अपने सेक्स के अनुभव भी शेयर करते थे पर मैंने कभी भी सीमा के साथ हुए अपने छोटे अनुभव को साझा नहीं किया था.
होस्टल के टीवी रूम में एक रात काफी लोगों के होने की आवाज आ रही थी. मैं और मेरा रूम पार्टनर उत्सुकता वश उधर की तरफ गए तो देखा कि टीवी रूम खचाखच भरा हुआ था. टीवी पर एक ब्लू फ़िल्म चल रही थी जिसमे सम्भोग क्रिया जारी थी. मेरी तो आंखें फटी रह गयीं. मैंने आज तक यह दृश्य नहीं देखा था न ही कभी कल्पना कर पाया था. पर आज नारी शरीर के नग्न अवस्था में साक्षात दर्शन कर समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या देखूं क्या छोडू. ह्रदय की धड़कन तेज हो गयी थी. पर लिंग में कोई हलचल नहीं थी. दिमाग में तरह तरह के ख्याल आ रहे थे. सामाजिक वर्जनाएं एक झटके में खंडित हो रही थी. बायोलॉजी की क्लास से स्तन और योनि के बारे में ज्ञान तो था पर इस तरह विदेशी नायिका के नग्न अंगो का दर्शन अप्रत्याशित था. चार पांच मिनट बाद मन की ग्लानि को मिटा कर नायिका के अंगों को मैंने भावविभोर होकर नहाना शुरू किया तो साक्षात कामदेव लिंग में प्रवेश कर गए. बिना हाँथ लगाये ही लिंग की धड़कन बढती गयी और वीर्य प्रवाह हो गया. इसके बाद मैं वहां से चला आया पर इन १० - १५ मिनट में मेरे जेहन में नग्नता की इतनी तश्वीरें कैद हो गई थी जो २ -४ महीने तक मेरे हस्तमैथुन को जीवंत बनाए रखती.
फ़िल्म की वयस्क नायिका को नग्न देखने के उपरांत मेरी कल्पना सातवे आसमान पर पहुच गई. नायक के साथ सम्भोग करते हुए नायिका को देखकर अविस्मरणीय अनुभूति हुई थी. अब मेरा एकांत मेरे लिए सुखद होता था तथा मैं अपनी सेक्स की कल्पनाओ को नयी नयी ऊंचाइयां देने लगा. दोस्तों से प्राप्त नग्न किताबें एवं कामुक साहित्य ने छ; सात महीनों में मुझे मेरी नजर में आज का वात्स्यायन ( कामसूत्र के रचयिता) बना दिया. मैंने नायिका के शरीर और उससे की जाने वाली छेड़छाड़ के बारे में इतना सोचने लगा की प्रतिदिन एक या दो बार हस्तमैथुन अवस्य करता था. इस दौरान मेरी सेहत भी गिरने लगी थी.
धीरे धीरे मेरी कल्पनाओं में आसपास के लोगो ने अपनी जगह बनाई.
ब्लू फ़िल्मो का एक ख़राब असर यह भी है कि सुन्दर और सुडौल नायिका की उस मदमस्त जवानी के सामने आसपास की लड़कियां या युवतियां फीकी दिखाई पड़ती है. आप चाह कर भी उन्हें अपने विचारों में नग्न नहीं कर सकते आपका मन खट्टा हो जाएगा.
मैं तो और भी भावुक था. सेक्स अब मेरे लिए जीवन में एक अहम् भाग हो गया था. मेरी कल्पना आसमान छू रही थी. एक साल बीतने को आ रहा था. इस साल भर में मैंने सिर्फ अपनी एक प्यारी सहपाठी राधिका और एक टीचर को अपने ख्वाबों में नग्न किया था और उनके साथ शरमाते हुए जमकर संभोग किया था. वो दोनों मुझसे बात चीत करती थी पर शायद उन्हें इस बात का इल्म भी न हो की एक सीधा साधा लड़का न जाने अपनी कल्पना में कितनी बार उनका योनि मर्दन कर चुका है.
सीमा और गुरुदक्षिणा
पहली छुट्टियाँ
परीक्षाओ के बाद मैं वापस अपने घर आया. एक सीधा साधा लड़का अब बदल चूका था. सफर में मिलने वाली सुन्दर युवतियों को अपनी कल्पना में नग्न कर उनके यौवन एवं योनि प्रदेश की कोमलता का मन में अनुभव करते हुए सफर का समय तेजी से बीत गया. अब नारी अंगों को छूने का मन तो बहुत करता था पर हिम्मत नहीं होती थी. जितना मैं अपने खयालों में नंगा था शायद वो मासूम सी युवतियां एवं लड़कियां नहीं होंगी यह मुझे पूरा विश्वाश था.
मैं अब १९ वर्ष का हो चुका था. चेहरे पर मासूमियत कायम थी पर कद काठी ठीक हो चली थी. लम्बाई ५ फुट ११ इंच, रंग भी साफ था. ज्यादा हस्तमैथुन से लिंग अब समय से पहले वयस्क हो गया तथा उस पर नसें अब साफ दिखाई पड़ती थी. इन साल भर में सबसे ज्यादा किसी ने मेहनत की थी तो वह यही बहादुर था. जितना वीर्यदान इसने साल भर में किया था उसमें तो मेरी प्यारी सहपाठी राधिका आराम के एक बार स्नान कर लेती.
घर पहुँचने पर सभी खुश थे . माया जी ने मेरे पसंदीदा पकवान बनाए थे. मैंने उन्हें शुक्रिया कहा तथा दिल्ली से लायी मिठाई उन्हें दी जो उन्होने छाया को दे दी. छाया भी खुश थी. छाया से अभी तक मेरी कोई बातचीत नहीं थी. वो फिर मेरे पैर छूने आई और मैं “ठीक है, ठीक है” कहकर पीछे हटा. पापा से मिलकर मैंने कॉलेज के बारे में कई बातें की. मैं उनका अभिमान था वो मुझे बहुत मानते थे.
‘’मानस भैया चाय ले आऊं’’ रसोई से आवाज आई तो मैं आश्चर्यचकित था की किसने मुझे आवाज दी वो भी मानस भैया कहकर? “भैया” शब्द अपने से छोटे लड़कों के नाम के साथ लगाना सम्मान देने के लिए एक आम बात थी. पर माया जी से ये शब्द मुझे अच्छे नहीं लगे. मुझे अचानक उनके चार की कामवाली जैसे होने का अहसास हुआ. वो चाय लेकर आयीं तो मैंने उनसे कहा “आप मुझे मानस ही बुला सकती है.”
दो तीन दिनों में मैं नए परिवेश में अपने आप को व्यवस्थित कर लिया. पापा ने छत पर एक नया कमरा भी बनवा दिया था जिसमे मेरे पसंद की सारी चीजें थी. खिड़की घर के आगन में खुलती थी. वहां से नीचे किसी से भी आसानी से बात हो सकती थी. मेरा कमरा वास्तव में बहुत सुन्दर हो गया था. मेरे पुराने कमरे में माया और छाया साथ में रहतीं थी. छाया ने उसे अपने अनुसार व्यवस्थित कर लिया था. उसका कमरा पुराना होने के बावजूद सुन्दर लग रहा था.
वैसे भी काबिल लड़कियों का कमरा हमेशा साफसुथरा और सजा हुआ होता है.
मुझे राजकुमार जैसा महसूस हो रहा था. छत का खुला खुला वातावरण मुझे बहुत पसंद था. पापा अब भी अपने कमरे में एकांत में रहते थे तथा अपनी किताबों और शराब में मस्त रहते थे. छाया का एडमिशन भी पापा ने अपने ही कॉलेज में करा दिया था. वो समय निकल का उसे पढ़ा भी दिया करते थे. कुल मिलाकर अब घर घर जैसा लगने लगा था.
रात्रि में खाना खाकर सोने गया तो इस घर में बिताए सारे पल एक एक कर याद आते गए. माँ को याद कर मन रुआंसा भी हुआ पर धीरे धीरे वर्तमान में वापस आ गया. आज मैं नए कमरे में बहुत खुश था. यहाँ गर्मियों में ही मौषम खुशनुमां होता था और जाड़े में कडाके की ठण्ड पड़ती थी.
मानसिक सुख और एकांत दिमाग में सेक्स को जीवंत कर देते है.
धीरे धीरे मेरा हाथ अपने लिंग का हाल चाल लेने लगा. उसका साथ देने के लिए चंचल मन एक वयस्क नायिका की तलाश में भटकने लगा जिसे मैं अपनी कल्पना में निर्वस्त्र कर अपनी काम पिपासा को शांत कर सकूं.
घटना या दुर्घटना
मुझे सीमा की याद आई. काश वो भी यहाँ छुट्टियाँ मनाने आई होती. मैंने उसे आज अपनी नायिका बनाने की कोशिश की पर वो मेरी यादों में बहुत छोटी थी. मैंने उसे भूल कर आज रात की नायिका के लिए कई और चेहरों को दिमाग में लाया पर अंततः वीर्यस्खलन का श्रेय मेरी सहपाठी राधिका को ही मिला.
अगले दिन मैं बहाने से पड़ोस में मंजुला चाची से मिलने गया. उन्होंने कहा आओ मानस बेटा हम लोग अभी तुम्हारी ही बात कर रहे थे. सीमा की मम्मी का फ़ोन आया था वो लोग भी परसों आ रहे हैं. सीमा आगे की पढाई के बारे में तुम्हारा मार्गदर्शन चाह रही थी. तुमने तो हम सब का नाम रोशन कर दिया है. थोडा ज्ञान सीमा को भी दे देना.
यही होता है तकदीर जब मेहरबान होती है तो खुशियाँ आपको खोजती हुई आ जाती हैं.
सीमा मुझसे मिलने आ रही थी वो भी अपने परिवार वालों की सहमति से. यहाँ मिलने का उद्देश्य अलग अलग हो सकता है मेरा उद्देश्य आप समझते ही होंगे. परिवार वालों की मंशा स्पष्ट थी पर सीमा के उद्देश्य पर अभी प्रश्नचिन्ह था.
दो दिनों के बाद सीमा आ गई. शाम को अपनी मां के साथ हमारे घर आई इस बार सीमा को देखकर एक नया अनुभव हो रहा था. अब मेरी आंखें लड़कियों को देखने का नजरिया बदल चुकीं थीं. यौवन का उतार चढाव वरीयता प्राप्त कर चुका था. सीमा जो पहले एक थुलथुली लड़की थी अब वह काफी सुंदर हो गई थी. उसमें काफी शारीरिक बदलाव आ चुका था. उसका पेट और वक्षस्थल अब अलग दिखाई दे रहे थे. वक्षस्थल उभरा हुआ और पेट सपाट था. उसका कद लगभग 5 फीट 2 इंच था. अभी भी वह सामान्य लड़कियों से थोड़ी मोटी थी, पर अब शरीर उसका व्यवस्थित लग रहा था.
मैं उसे देख कर मुस्कुराया और वो भी मुझे देखकर वैसे ही मुस्कुराई. उसकी मां ने कहा…
“बेटा मानस, सीमा भी तुम्हारी तरह इंजीनियर बनाना चाहती है जब तक वो यहाँ है तुम उसकी मदद कर देना वो तुम्हें बहुत मानती है.”
हम उसकी पढाई के बारे में बात करने लगे. कुछ देर बाद सीमा की मम्मी माया जी के साथ किचन में चली गई. सीमा बात करते करते काफी खुल चुकी थी. हम सब हंसी मजाक की बात भी कर रहे थे. मैंने बात ही बात में उसके साथ छत पर बिताए उन पलों का भी जिक्र कर दिया. वह बहुत शर्मा गई और अपनी नजरें नीची कर ली. मैंने उसके अधूरे वादे का भी जिक्र किया जिसे सुनकर वह उठ गई और सीधा किचन में चली गई.
मैं मन ही मन सोच रहा था कि यह मैंने क्या कर दिया. इतना उतावलापन शायद ठीक नहीं था.
पर जब सेक्स दिमाग में भरा हो तो उतावलापन स्वाभाविक रूप से आ जाता है.
वैसे भी मैं अभी इस क्षेत्र का नया खिलाड़ी था. तीर कमान से निकल चुका था अब उसकी प्रतिक्रिया ही आगे का मार्ग प्रशस्त करती. वह अपनी मम्मी और माया जी के साथ चाय और स्नैक्स लेकर आई. हम सब ने चाय पी इस दौरान दो तीन बार मेरी नजरें सीमा से मिली पर वह नजर हटा लेती थी. आखिर में जाते समय सीमा की मम्मी ने कहा बेटा दिन में जब भी खाली रहो तो सीमा को बुला लिया करो तुमसे मिलकर कुछ सीख लेगी. मैं उसकी तरफ देख कर मुस्कुराया तो इस बार वह भी मुस्कुरा दी.
मेरे दिल से एक बहुत बड़ा बोझ उतर गया और आशा की एक नई किरण जाग उठी. रात बड़ी बेचैनी से कटी . रात में मैंने पिछले साल सीमा के साथ बिताए गए उन अंतरंग पलों को याद किया तो मेरा लिंग अपनी मालकिन सीमा को सलामी देने को उठ खड़ा हुआ. उसकी नसें तन गई उसके कष्ट को कम करने के लिए हाथ स्वयं ही उसे सहलाने लगे . परंतु जितना ही हाथ उसे सहलाते वह और तन जाता. मैंने अपने दिमाग में सीमा को निर्वस्त्र करना शुरू कर दिया था. सीमा ब्रा का प्रयोग करती थी या यह प्रश्नचिन्ह था, परंतु मेरे दिमाग में एक नई तस्वीर बन रही थी. मैं उसके छोटे छोटे स्तनों की खूबसूरती की पूरी कल्पना तो नहीं कर पा रहा था तुरंत उसका एहसास बड़ा सुखद था. इसका कारण शायद इस बात की आशा थी कि शायद उन के साक्षात दर्शन हो सके. वक्षस्थल से नाभि प्रदेश होते हुए कमर तक पहुंचने के पूर्व ही लिंग लावा उगलने के लिए के लिए तैयार हो गया था. मैंने उसे शांत करने के लिए अपना ध्यान सीमा की कमर से हटाकर उसके चेहरे की तरफ ले गया. मुझे लगा उसकी मासूमियत मेरे लिंग को थोड़ा नरम कर देगी पर सीमा की हंसी और उसके बाद करने के अंदाज ने मेरे सब्र का बांध तोड़ दिया. मेरा लिंग के अंदर का लावा एकदम मुहाने पर आ गया. मेरे हाथों ने लिंग को कसकर दबाया ताकि वह शांत हो सके पर हुआ उसका उल्टा ही. निकलने वाले वीर्य की गति दोगुनी हो गई और उसकी धार लगभग चार फुट उपर जाने के बाद वापस मेरे ही चेहरे पर आ गिरी.
चेहरे पर वीर्य गिरने कि यह घटना मुझे ताउम्र याद रहेगी. वीर्य स्खलन के दौरान ही दरवाजे पर नॉक हुआ. सामान्यतः इतनी रात को कोई मेरे कमरे में कोई नहीं आता था. मैं फटाफट अपने बिस्तर से उठा और अपने लिंग (जो अभी भी उछल रहा था) को व्यवस्थित करने के बाद जल्दी जल्दी अपने चेहरे को पोछा एवं दरवाजे को खोला . माया जी कटोरी में दो रसगुल्ले लेकर खड़ी थी. मैंने पूछा ….
“इतनी रात को?”
उन्होंने कहा आपके पापा आपके लिए लाए थे . उन्होंने ही जिद की कि अभी ही मानस को दे दो वह सोया नहीं होगा. माया जी ने मेरी झल्लाहट को पहचान लिया था. रसगुल्ले की कटोरी देने के बाद अचानक उन्हें मेरे माथे पर मेरे वीर्य की एक मोटी लकीर दिखाई दी. उन्होंने कहा…
“माथे पर यह क्या लगा है?” मेरे कहने से पहले ही उन्होंने हाथ बढ़ाकर उसे पोंछ लिया. हे भगवान यह क्या हो गया ? उन्हें एहसास भी नहीं था ली उन्होंने क्या छू लिया था. माया जी ने अपना हाथ अपनी साड़ी के पल्लू में पोछ लिया. वापस जाते समय मैंने देखा की वो अपनी उंगलियों को नाक के पास ले गयीं जैसे पहचानने की कोशिश कर रही हो कि वो क्या चीज थी. मुझे यह बात दो तीन वर्षों बाद मालुम चली कि माया जी ने उसे सूंघने के बाद पहचान लिया था कि वो मेरा वीर्य ही था.
हस्तमैथुन के दौरान कुछ घटनाएं या दुर्घटनाएं इस तरह घट जाती है की हमेशा याद रहतीं है. यह उन्हीं में से एक थी.
छुपन- छुपाई
हमारे यहाँ ज्यादा जगह होने के कारण मोहल्ले के छोटे बच्चे खेलने के लिए आया करते थे. उनमे सीमा का भाई सौरभ , साहिल, पड़ोस में रहने वाला रोहन, रिया मुख्य थे और बाद में छाया भी जुड़ गई थी. बचपन में मैं और सीमा भी इसी टोली का हिस्सा थे. हालाँकि, अब हम लोग थोडा बड़े हो चुके थे पर बच्चे अभी भी हम लोगों को अपने साथ खेलने के लिए आग्रह करते रहते थे.
गांवों से संबंध रखने वाले सभी लोग यह जानते होंगे कि दोपहर में खाना खाने के पश्चात सभी बड़े लोग आराम करते हैं और यही समय हम बच्चों के लिए खेलने के लिए उपयुक्त होता है. हम सब इसी समय इकट्ठा होकर कई प्रकार के खेल खेलते. कभी लूडो, कभी चाइनीस चेकर तो कभी कभी छुपन छुपाई खेलने का भी आनंद लेते. सीमा के भाई सौरभ और साहिल की उम्र क्रमशः 8 और 10 वर्ष होगी दोनों बहुत ही मासूम थे. उन्हें छुपन छुपाई में ज्यादा मजा आता था. बच्चों में रोहन सबसे छोटा था.
अगले दिन मैं नाश्ता करके अपने बेड पर लेटा हुआ था और सीमा के बारे में ही सोच रहा था तभी नीचे से नमस्ते आंटी की मधुर आवाज आई.
“ मानस कहां है ?”
बेटा वह ऊपर अपने कमरे में ही होगा.
“ठीक है आंटी, मैं वहीं चली जाती हूँ.” मुझे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि सीमा इतनी जल्दी चली जाएगी. मैंने तुरंत अपने हाथ में पड़ी पुस्तक को तकिए के नीचे रखा और उसका इंतजार करने लगा.
सीमा ने दरवाजे पर दस्तक दी. मैंने कहा...
“आ जाओ”
उसने कमरे में घुसते ही कहा
“कमरा तो बहुत ही खूबसूरत है”
मैंने भी उसे छेड़ा
“तुमसे ज्यादा नहीं” वह हंसने लगी.
वह अपने हाथ में एक डायरी और एक किताब लेकर आई थी . मैंने उसे अपनी कुर्सी खींच कर बैठने के लिए दी. और मैं भी उसके पास एक स्टूल खींच कर बैठ गया. वह बोली
“आप कुर्सी पर बैठ जाइए”
“नहीं नहीं तुम आराम से बैठो. मैं ठीक हूं.” मैंने लड़कियों को सम्मान देना सीख लिया था.
“ मुझे बताइए ना इंजीनीयरिंग की तैयारी में मुझे किन चैप्टर्स पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए.”
मैं समझ गया कि वह अभी पढ़ाई की बातों को लेकर संजीदा है. मैंने उसे कई सारी टिप्स दीं तथा जितना मेरा ज्ञान था उसके हिसाब से उसे भरपूर मदद की. उसने मेरी टिप्स को अपनी डायरी में लिखा. धीरे-धीरे वह अपने बारे में बताने लगी. वह अब बातूनी हो चुकी थी. उसने मुझे अपने स्कूल, अपनी सहेलियां और जाने क्या क्या बताया. बातचीत के दौरान अधिकतर उसका चेहरा खिड़की की तरफ रहता कभी-कभी वह मेरी तरफ देखती पर तुरंत ही अपना चेहरा वापस खिड़की की तरफ घुमा लेती. शायद वो नजरें मिलाकर बात करने में सहज नहीं हो पा रही थी. जब वह खिड़की की तरफ देख रही होती तब मेरी निगाहें उसके शरीर का नाप ले रहीं होती.
सीमा के बाल कंधे तक आ रहे थे उसने एक पिंक टॉप तथा काले रंग की पजामी पहनी थी. उसके वक्ष स्थल पर निगाह पड़ते ही मैंने अपनी निगाहों से यह जानने की कोशिश की कि क्या वह ब्रा का उपयोग करती है?
साथ बैठकर आपस में बात कर रहे दो इंसानो की मानसिक अवस्था अलग अलग हो सकती है.
जहां सीमा अभी पढ़ाई पर केंद्रित थी पर मैं कामुक हो रहा था. सीमा की जांघें थोड़ी मोटी लग रही थी. शायद कुर्सी पर बैठने की वजह से जांघों की चौड़ाई बढ़ गई थी. अचानक सीमा ने मेरी तरफ नजर घुमाई और मेरी निगाहों को नीचे देखते हुए पकड़ लिया. उसने सीधा प्रश्न किया
“आप वहां क्या देख रहे हैं?”
मेरे मुंह से अचानक निकला
“जिसे तुमने दिखाने का वादा किया था.”
यह उत्तर अप्रत्याशित था. मैंने भी यह सोच समझकर नहीं बोला था. वह बुरी तरह झेंप गई. न वह कुछ बोल पा रही थी न मैं.
हम हम दोनों लगभग एक मिनट तक मौन रहे. अचानक सीढ़ियों पर बच्चों के आने की आवाज आई. साहिल दरवाजे के पास पहुंचते ही बोला..
“अरे सीमा दीदी भी यहीं पर है. चलिए सब लोग नीचे , हम लोग छुपन छुपाई खेलेंगे.”
उस बच्चे का आर्डर सुनकर सीमा खुश हो गई और उठ कर नीचे जाने लगी और मौन तोड़ते हुए बोली आप भी चलिए.
हम दोनों में काफी कुछ बदल चुका था. सीमा का मन और तन जवान हो चुका था. वो समझदार हो चुकी थी. मैं स्वयं सेक्स और उससे संबंधित क्रियाकलापों में काफी ज्ञान प्राप्त कर चुका था. सीमा द्वारा किया गया हस्तमैथुन एक सुनहरी याद थी पर आज की परिस्थितियों में दोबारा यह अवसर मिलेगा या नहीं यह प्रश्न चिन्ह था. हम सब नीचे आ गए थे.
आप में से शायद कुछ लोगों ने गांव में अपना समय बिताया हो. वे लोग गांव के घरों और उनके आसपास की जगह जैसे दालान गौशाला आदि से परिचित होंगे. मेरे घर के सामने एक बड़ी सी दालान थी इसमें कुल तीन कमरे थे दो कमरे आपस में जुड़े हुए थे तथा एक कमरा अलग था. जुड़े हुए कमरों में से एक कमरे में भूसा और पुवाल रखा रहता था तथा उस कमरे में काफी अंधेरा रहता था. उसके साथ वाले कमरे में पुरानी अलमारियां पड़ी हुई थी. दालान के सामने आम और नीम के पेड़ थे. सीमा का घर हमारी दालान के ठीक पीछे था.
छुपन छुपाई में छुपने के लिए दालान के दोनों कमरे , पेड़ की ओट, छत, आँगन एवं सीमा के घर का बाहरी कमरा था. इसमें भी बड़ी-बड़ी अलमारियां पड़ी थी जिनके पीछे आदमी आसानी से छुप सकता था एक पुरानी खाट भी थी जिसे खड़ा किया हुआ था उसके पीछे भी छुपा जा सकता था. सीमा दालान की परिस्थितियों से परिचित थी. यह खेल हम बचपन में भी खेला करते थे. यह खेल मैं और सीमा बचपन से खेलते आ रहे थे. भूसा वाले अंधेरे कमरे के बगल वाला कमरा छुपने के लिए मेरी और सीमा की पसंदीदा जगह थी.

राजकुमार और घायल राजकुमारी
खेल शुरू हुआ, सबसे पहले मैंने खुद ही चोर बनना स्वीकार किया. सब बच्चे अलग-अलग जगहों पर छुप गए. मैंने खेल का आनन्द लेते हुए सबसे पहले छोटे रोहन को फिर बाकी सबको ढूंढ लिया.
सबसे छोटा रोहन इस बार चोर बना था और हम सब की छिपने की बारी थी. सारे बच्चे अपनी अपनी जगहों पर छिपने चले गए. मैंने सीमा को दालान के दूसरे वाले कमरे की तरफ जाते हुए देख लिया था. यह ऐसी जगह थी कि कोई भी छोटा बच्चा उधर जाने की हिम्मत नहीं करता था. मैं भी सीमा के पीछे हो लिया. सीमा ने मुझे आते हुए देख लिया था पर फिर भी वो चुपचाप रही. मुझे बड़ी अलमारी के पीछे थोड़ी हलचल सी लगी. मैं पीछे से गया और सीमा को पकड़ लिया. मैंने अपना एक हाथ उसके मुंह पर रखा ताकि वह आवाज न निकाल दे. सीमा ने कहा..
“आप यहां कैसे आ गए?” मैंने कहा..
“कुछ मत बोलो रोहन आता ही होगा”
इस समय मेरा एक हाथ सीमा के मुंह पर था तथा दूसरा हाथ उसके पेट पर था. कुछ ही सेकंड में हमें अपनी स्थिति का एहसास हुआ. मैंने महसूस किया कि सीमा भी असहज थी. सीमा के नितंब मेरे लिंग से सटे हुए थे. सीमा मुझसे सटी हुयी थी. इसका एहसास होते हुए ही मेरे लिंग में तनाव उत्पन्न हो गया. इस तनाव की अनुभूति सीमा को बखूबी हो रही थी पर वह कुछ नहीं बोल रही थी. धीमे-धीमे यह तनाव असहनीय हो गया. मैंने अपनी कमर को थोड़ा पीछे कर अपने लिंग को आरामदायक स्थिति में लाने की कोशिश की. पर लिंग और तन चुका था. सीमा से चिपकने पर लिंग सीधा सीमा की कमर में छेद करने को आतुर दिखा. सीमा ने हँसते हुए कहा…
“राजा जी जाग गए हैं क्या?”
“राजा जी” मैं सोच नहीं पा रहा था कि सीमा ने किसे राजा जी कहा. मैंने धीरे से कान में पूछा…
“कौन राजा जी” इस पर वह अपना हाथ पीछे ले गई और मेरे लिंग को अपनी उंगलियों से दबा दिया. मैं भी हँस पड़ा. मैंने उसके कान में धीरे से कह..
“राजा जी अपनी रानी खोज रहे हैं.”
बात करते समय मैंने अपनी पजामी को थोड़ा नीचे कर दिया अब लिंग खुल खुल बाहर आ चुका था. मैंने अपनी कमर को और नीचे किया ताकि वो सीमा के की जांघों के बीच आ जाए. बाहर बच्चों की आवाज आ रही थी अब सीमा से यह स्थिति बर्दाश्त नहीं हो रही थी. उसने भी अपनी कमर को हिलाया तथा मेरे लिंग को अपनी जांघों के बीच जगह दे दी. उसकी जांघों और मेरे लिंग के बीच में उसकी पजामी थी. मेरा लिंग सीमा की जांघों के बीच से होते हुए बाहर की तरफ आ गया था. सीमा की जांघों का तनाव मेरे लिंग पर पड़ रहा था. वो मेरे इरादे जान चुकी थी तभी रोहन के दरवाजे पर आने की आवाज हुई.
सीमा में मुझे चिकोटी काटकर अपनी पकड़ से छुड़ाया और धीरे से रोहन की नजर में आ गयी और बाहर आकर खुद बोली
“चलो अब मानस भैया को ढूंढते हैं”.
सारे बच्चे उस कमरे से बाहर चले आए. मैंने भी अपनी पजामी ठीक की और मौका देख कर कमरे से बाहर आ गया और एक पेड़ के पीछे छुप गया.
अगली बार में मैं सीमा को देख नहीं पाया कि वह किधर छुपी है. वो अलमारी के पीछे नहीं थी. अतः मुझे भी किसी दूसरी जगह पर छुपना पड़ा. दूसरी बार का खेल समाप्त हो गया. तीसरे दौर में मैंने सीमा को फिर उसी कमरे की तरफ जाते देखा और मैं भी उसके पीछे हो लिया. मैंने बिना समय गवाएं फिर से सीमा को पीछे से पकड़ लिया. सीमा के सहयोग से पहले वाली स्थिति पुनः बन चुकी थी. लिंग पूर्ण तनाव में था सिर्फ उसे सीमा के सहलाने का इंतजार था. सीमा ने मेरा इंतजार खत्म करते हुए अपनी हथेली मेरे लिंग पर पर रख दी और प्यार से सहलाने लगी. मैं सातवें आसमान पर पहुंच चुका था. मैंने अपना हाथ उसके पेट पर से हटा कर उसके स्तनों पर रखने की कोशिश की तो उसने मेरा हाथ रोक लिया. शायद वह निर्णय नहीं कर पा रही थी पर उसने मेरे लिंग को सहलाना जारी रखा. मैंने सीमा को छेड़ते हुए कहा
“ “राजा जी” अपनी “रानी” को खोज रहे है.” मेरे इस संबोधन से वो हँस पड़ी.
सीमा ने मुस्कुराते हुए कहा…
“यदि रानी की तलाश है तो आपको शादीशुदा महिलाओं के पास जाना पड़ेगा. यहां पर तो सिर्फ राजकुमारी है”
मैं उसकी बात समझ गया. मैंने उससे कहा..
“तुम चाहोगी तो राजकुमारी को रानी बना देते हैं”
“अभी राजकुमारी को रानी बनने में समय है”
“इस हिसाब से तो मेरा राजा भी अभी राजकुमार ही है” वह खिलखिला कर हंस पड़ी और अपनी हथेली से शिश्नाग्र पर दबाव बढ़ा दिया. मैंने फिर आग्रह किया किया कि राजकुमार राजकुमारी से मिल तो सकता है राजा रानी की तरह ना सही दोस्त की तरह ही सही. वह मेरा आशय समझ रही थी. उसने कहा..
“ठीक है.. पर अभी राजकुमारी घायल है. तीन-चार दिन बाद मुलाकात कराएंगे.”
मैं स्खलित होने ही वाला था तभी रोहन के आने की आहट हुई. सीमा मुझे छोड़कर पहले की भांति अलग हो गयी. रोहन ने फिर से उसे पहचान लिया. वह रोहन को लेकर कमरे से बाहर आ गयी, ताकि हम दोनों एक साथ थे यह बच्चे न जान सकें और मुझे समय मिल सके अपने आप को व्यवस्थित करने का. सीमा की यह समझदारी मुझे बहुत प्रभावित कर गई थी.
हम सब बाहर आ गए थे. खेल खत्म हो गया था, सब लोग जाने लगे मैंने सीमा को रोकना चाहा पर वह हंसते-हंसते जाने लगी. मैं उसके पीछे भागा और बिलकुल पास पहुचने पर वो रुकी. मैंने उससे पूछ लिया
“राजकुमारी घायल कैसे हो गयी?”
उसने मुझे पलट कर देखा और हंस कर बोली..
“आप बुद्धू हैं…..आराम से सोचियेगा” कह कर वो अपने घर भाग गई.

गुरुदक्षिणा की तैयारी
मैं मन मसोसकर रह गया पर आज सीमा के साथ गुजारे पलों ने मुझे गर्मियों की छुट्टियों के यादगार बनने की उम्मीदें बढ़ा दी.
मैं वापस अपने कमरे में आकर सीमा द्वारा दिए गए इन नए संबोधनों के बारे में सोचने लगा. मैं मन ही मन खुश भी हो रहा था कि सीमा मुझसे खुलकर बात कर रही थी. राजकुमारी के घायल होने की बात मैं अभी भी नहीं समझ पा रहा था. अचानक मुझे महिलाओं के रजस्वला होने की बात याद आई. मुझे अब पूरी बात समझ में आ गई. सीमा का यह अंदाज निराला था. मेरे लिए आज का दिन बहुत अच्छा था. धीरे-धीरे दिन गुजर गया अगले 2 दिन 3 दिनों तक सीमा रोज मेरे पास आती. मैं उसकी पढ़ाई में दिल से मदद करता और कभी कभी हम इधर उधर की बातें करते और बच्चों के साथ खेलते. कभी-कभी बातों ही बातों में राजकुमार और राजकुमारी का जिक्र हो जाता. मैंने भी अपने आपको नियंत्रित कर लिया था कि जब तक राजकुमारी पूरी तरह स्वस्थ नहीं हो जाती तब तक इंतजार करूंगा. मेरे राजकुमार का क्या था उसकी तो रोज रात में मालिश हो जाया करती थी और वह वीर्य दान कर सो जाया करता था. मैंने सीमा को अपने नोट्स एवं अपनी किताबें भी दी ताकि वह पढ़कर इसका लाभ ले सके. वह मेरे से बहुत प्रभावित थी. उसने मुझसे कहा…
“आपने मेरी पढ़ाई में इतनी मदद की है. आप मेरे गुरु है.”
मैंने मुस्कुराकर पूछा
“गुरुदक्षिणा कब मिलेगी?” उसने सर झुका लिया और अपनी उंगलियों पर कुछ गिन कर बोली..
“परसों” इतना कह कर वो मुस्कुराते हुए सीढियों की तरफ बढ़ गई. परसों का दिन मेरे लिए क़यामत का दिन होने वाला था.
आपको यह जानकर हर्ष होगा की इस उपन्यास को लिखते समय सीमा मेरे साथ थी. उसने उस समय अपने मन में चल रही भावनाओं को मुझे बताया . आगे की कहानी को मैं उसकी उसकी यादों के अनुसार प्रस्तुत करता हूँ.

[मैं सीमा]
सोमवार का दिन था. मेरी राजकुमारी अब पूरी तरह ठीक हो चुकी थी. पिछली दोपहर से ही मैं सामान्य हो चुकी थी. आज सुबह नहाने के पश्चात मैंने बहुत ध्यान से अपनी राजकुमारी का निरीक्षण किया. कहीं पर भी लालिमा नहीं थी. मैं खुश थी और आज होने वाले नए अनुभव के लिए अपने आप को मानसिक रूप से तैयार कर रही थी.
अभी दोपहर होने में दो-तीन घंटे का वक्त था. मेरी राजकुमारी के चारों तरफ हल्के हल्के बाल आ गए थे जैसे उसकी दाढ़ी मूछ आ गई हो. बाल बहुत कोमल थे. मैंने आज तक इन बालों को नहीं हटाया था. पर आज राजकुमारी, राजकुमार से मुलाकात करने वाली थी. एक बार के लिए मैंने सोचा कि इन्हें हटा दूँ पर संसाधनों की कमी की वजह से यह विचार त्याग दिया। मैंने मानस भैया के राजकुमार के लिए एक अलग ही गुरुदाक्षिणा सोच रखी थी.

राजकुमारों को काबू में रखने की कला मुझे बखूबी आती थी. दरअसल चंडीगढ़ में मेरा एक दोस्त सोमिल था. (आज के समय में आप उसे ब्याय फ्रेंड कह सकते हैं) वो मेरे स्कूल में ही पढ़ता था एवं मेरे पड़ोस में रहता था.. मैंने उसके राजकुमार की पिछले २ सालों में बहुत सेवा की थी. लेकिन मैंने उसे अपनी राजकुमारी से नहीं मिलवाया था. उसने मुझे हर जगह छुआ था पर हमेशा कपड़ो के साथ. मैंने उससे यही करार किया हुआ था. दरअसल वो इन मामलों में संयम खो बैठता था. मुझे हमेशा डर लगता था की कही वो मेरी राजकुमारी को देख कर उग्र न हो जाए और मेरा कौमार्य भंग कर दे. मेरी राजकुमारी पिछले दो वर्षों से अक्सर समय-समय पर लार टपकाती रहती थी और मुझे उस समय बहुत अच्छा भी लगता था. इस दौरान मैं तकिया या रजाई को अपने पैरों के बीच फंसा लेती और थोड़ा बहुत उछल कूद करने से मेरी राजकुमारी ख़ुशी के आसूं बहती और मैं आनंदित हो जाती.

मानस मानस भैया अपेक्षाकृत शांत स्वभाव के थे. वो सामाजिक ताने बाने को समझते थे. पहले भी जब मैंने मानस भैया के राजकुमार को हाथ लगाया था तभी मैं जान गयी थी की वो उस समय तक हस्तमैथुन भी नहीं करते थे. उस दिन भी उनका सुपाडा ठीक से नहीं खुल पाया था. आज भी मेरे मन का कौतूहल वैसा ही था. अब मानस भैया का राजकुमार कैसा होगा इसकी मैं कल्पना नहीं कर पा रही थी.

मैं अच्छे से तैयार हुई. मैने रेड कलर की टॉप और ब्लैक कलर की एंकल लेंथ स्कर्ट पहनी. अलमारी से जाकर लाल रंग की पेंटी निकाली और मन ही मन मुस्कुराने लगी. मम्मी के कमरे में जाकर अपने बाल बनाएं परफ्यूम लगाया और सजधज कर तैयार हो गइ. अभी दोपहर में समय था . मैं अभी भी मानस भैया से मिलने के लिए उचित जगह की तलाश कर रही थी. मानव भैया का कमरा एक आदर्श जगह थी परंतु वह मेरी राजकुमारी के साक्षात दर्शन करते मैं इसके लिए तैयार नहीं थी. मैंने अभी तक सेक्स करने का मन नहीं बनाया था. मैं अपने कौमार्य को मैं हर हाल में सुरक्षित रखना चाहती थी. उनके राजकुमार को अपने हाथों में लेने के बाद मुझे यह महसूस हो गया था कि सारे राजकुमार एक जैसे नहीं होते और इस राजकुमार के लिए मुझे कुछ खास करना पडेगा.

चार पांच दिन पहले आलमारी के पीछे मानस भैया के राजकुमार से मुलाकात को याद करते समय मुझे नया विचार आया. और मैं उठकर मुस्कुराते हुए मानस भैया के घर की तरफ बढ़ चली . मैंने सबकी नजर से बचकर दालान में पड़ी अलमारी के पीछे वाली जगह को थोड़ा साफ किया. वहां पर एक पुराना ड्रम ( स्टूल की उचाई का) पड़ा हुआ था जिसे साफ कर मैंने अलमारी के पीछे रख दिया. मैं खुश होकर मुस्कुराते हुए मानस भैया के कमरे में गई मानस भैया मुझे बहुत अच्छे लगते थे मैं मन ही मन उन्हें बहुत प्यार करती थी पर इस समय मेरे ऊपर सिर्फ हवस हावी थी.

गुरुदक्षिणा
मैं मानस भैया के कमरे में पहुंची वो मुझे देखते ही बोले.. .
“सीमा मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था.”
मैंने मजाक किया
“सच में मेरा या राजकुमारी का?” वो हँस पड़े.
“सच में आज तुम बहुत खूबसूरत लग रही हो.”
मैं मुस्कुरा दी. मैंने यह बात नोटिस की थी इस बार मेरे गांव आने के बाद से मानस भैया मेरे ऊपर बहुत ध्यान देते थे. हम सब इधर-उधर की बातें करने लगे. तभी मेरा छोटा भाई साहिल जल्दी-जल्दी सीढ़ियां चढ़ता हुआ आया और बोला आप लोग नीचे चलिए सब लोग आपका इंतजार कर रहे हैं.
छुपन छुपाई का खेल शुरू हो रहा था. पहले दौर में छाया चोर बनी सभी बच्चे इधर उधर छुपने चले गए. मैं भी मानस से नजर बचाकर दालान की जगह सीढ़ी रूम में जाकर छुप गई . मैंने मानस को दालान की तरफ जाते देखा मुझे हंसी छूट गयी. वो अधीर हो रहे थे. धीरे-धीरे छाया ने सब को ढूंढ लिया. मानस मुझे अलमारी के पीछे न पा कर बगल वाले कमरे में छुप गए. छाया ने अंत में उन्हें भी ढूंढ लिया . अगले दौर के लिए सबका प्यारा रोहन चोर बना. रोहन बहुत छोटा था और सब को ढूंढने में ज्यादा समय लगाता था यही मानस भैया और मेरे लिए उपयुक्त समय था . बच्चों के इधर-उधर छुपने के बाद मैं अलमारी की तरफ गई मानस ने मुझे जाते हुए देख लिया था और वो धीरे से मेरे पीछे पीछे आ गए. मैं अलमारी के पीछे धड़कते ह्रदय के साथ खड़ी थी. उन्होंने पीछे से आकर बिना कुछ कहे मुझे पकड़ लिया. आज उनके दोनों हाथ मेरे पेट पर ही थे मेरा मुंह ढकने की कोई आवश्यकता नहीं थी. वह भी जान रहे थे कि मैं स्वेक्छा से यहां आई हूं. यहाँ पर्याप्त अँधेरा था.
वासना अँधेरे में जवान होती है.
वह मेरी पीठ और गले को चूमने लगे मैं भी भाव विभोर हो गई थी. धीरे-धीरे उनके हाँथ एक दूसरे से दूर होने लगे. एक हाथ ऊपर की तरफ तो दूसरा नीचे की तरफ बढ़ने लगा. उनका बाया हाथ मेरे दाहिने स्तन पर आ चुका था और दूसरा मेरी राजकुमारी की तलाश कर रहा था. उनके उतावलेपन को देख कर ऐसा लग रहा था जैसे यह उनके लिए भी पहली बार था. उनका राजकुमार अब पूरी तरह तन चुका था और मेरी कमर में गड रहा था. उन्होंने पिछली बार की तरह अपनी कमर पीछे की. मैं समझ रही थी कि वह अपने राजकुमार को आजाद कर रहे हैं. ठीक वैसा ही हुआ और उनका राजकुमार मेरे नितम्बों में अपने लिए उपयुक्त जगह ढूंढने लगा. मानस भैया ने अपने घुटने मोड़े. पर इस बार राजकुमार का मेरी जांघों के बीच आ पाना इतना आसान नहीं था. इस बार मैंने स्कर्ट पहनी हुई थी. वह परेशान थे मेरी स्कर्ट को ऊपर कर पाने की हिम्मत नहीं थी. मैंने उनकी मदद करने के लिए अपने ही हाथों से अपने स्कर्ट को ऊपर किया.
मानस में अपनी कमर को थोड़ा और नीचे किया अब उनका राजकुमार मेरी नंगी जांघों के स्पर्श से उछलने लगा. उसकी धड़कन मुझे अपने जांघो पर महसूस हो रही थी. मानस भैया ने मुझे अपनी तरफ और तेजी से चिपका लिया था. धीरे-धीरे उनका राजकुमार मेरी जांघों के बीच से होते हुए सामने की तरफ आ चुका था. मेरी राजकुमारी और उसके बीच लगभग थोड़ी जगह ही बची होगी .
उनका बायां हाथ मेरे दाहिने स्तन को धीरे-धीरे सहला रहा था तथा दाहिना हाथ राजकुमारी को तलाश करते हुए उनके उनके राजकुमार से टकरा गया जहां पर मेरी उंगलियां उसे पहले से ही सहला रही थी. मैंने उनकी उँगलियों को अपनी राजकुमारी के सिर पर रखा और उनकी उंगलियों से उसे धीरे धीरे सहलाया ताकि वह समझ सके कि उन्हें क्या करना है. वो अंदाज़ पर ही अपनी उंगलियों को मेरी राजकुमारी के उपर फिराने लगे. पैंटी पहने होने के कारण उन्हें राजकुमारी का एहसास नहीं हो पा रहा था. परन्तु मैं नंगे राजकुमार के सुपाडे को अपनी उँगलियों से सहला कर आनंदित हो रही थी. राजकुमार और राजकुमारी दोनों ही लगातार खुशी के आंसू बहा रहे थे. मेरी पेंटी अब गीली हो चुकी थी तथा जांघों के बीच का हिस्सा भी चिपचिपा और गीला हो गया था. राजकुमार को सहलाने से मेरी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी. मानस ने अपना हाथ बारी-बारी से दोनों स्तनों पर घूमना शुरू कर दिया था. मेरा मन हुआ कि उनका हाथ पकड़ कर अपनी टॉप के नीचे से अपने स्तनों पर रख दूं पर मेरी हिम्मत नहीं हुई. धीरे-धीरे उनके लिंग का तनाव चरम पर पहुंच रहा था और उनकी धड़कन बढ़ती जा रही थी. जैसे जैसे उनके लिंग में उत्तेजना बढ़ रही थी उसी तरह उनके हृदय की गति भी बढ़ रही थी. मेरे पीठ पर उनकी धड़कन का एहसास लगातार हो रहा था.
थोड़ी ही देर में मैंने उनकी उंगलियों को अपनी पेंटी के इलास्टिक को पकड़कर नीचे खींचते हुए पाया. मैं घबरा रही थी पर मैंने उन्हें इस बात का एहसास नहीं होने दिया. जैसे ही पैंटी मेरे नितंबों से नीचे आई मैंने उनका हाथ पकड़ लिया. उन्होंने बिना किसी जोर-जबर्दस्ती के पैंटी को वापस ऊपर कर दिया और वापस मेरी राजकुमारी को सहलाने लगे. मैं उनके इस व्यवहार से बहुत खुश थी. उपहार स्वरूप मैंने उनका बाया हाथ स्तनों पर से हटा कर अपने टॉप के अंदर कर दिया. इससे पहले कि वह मेरे नग्न स्तन छू पाते बाहर रोहन के आने की आहट हुई. मैं बहुत अस्त व्यस्त थी मैंने मानस को बोला आप जाइए मैं रुकती हूँ. उन्होंने अपने राजकुमार को अंडरवियर में व्यवस्थित किया और अपने कपड़े ठीक करते हुए रोहन की निगाह में आ गए. रोहन पकड़ लिया - पकड़ लिया करते हुए खुश हो गया. वह सब बच्चों को लेकर बाहर चले गए मैंने अपने आप को ठीक किया. आधी चढ़ी पैंटी के बारे में सोचने लगी. मेरे मन में मानस की शराफत नया उत्साह भर रही थी. मैंने हिम्मत करके अपनी पेंटी उतार दी और उसे वहीं स्टूल जैसे पुराने ड्रम पर रख दिया. अपने टॉप को नीचे और उसके सिलवटों को दूर करने के बाद मैं भी बाहर आ गई. पहली बार बिना पैंटी के सिर्फ स्कर्ट में मैं दालान के बाहर खड़ी थी मेरी राजकुमारी और जांघों के बीच का हिस्सा गीला हो चुका था. बाहर चलने वाली हल्की हल्की हवा वहां ठंडक का अहसास करा रही थी.
इस बार मेरा छोटा भाई साहिल चोर बना था. सारे बच्चे फिर अपनी अपनी जगह पर छिपने चले गए. और मैं भी वापस अलमारी के पीछे आ गई. मानस भी बिना देर किए वापस मेरे पास आ गए. आने के पश्चात उन्होंने अपने दोनों हाथ मेरी टॉप के नीचे से मेरे स्तनों पर ले गए तथा दोनों स्तनों को पकड़ लिया. उनके हाथों का नग्न स्पर्श पाकर स्तन और कड़े हो गए. स्तनों के निप्पल पत्थर की तरह हो गए थे. जब उनकी उंगलियों निप्पलों से टकराती मेरी राजकुमारी कांप उठती तथा शरीर में एक अजीब सी लहर दौड़ जाती. नग्न स्तनों की संवेदना से उनका लिंग वापस पूरे उफान पर आ चुका था और मेरी जांघों के बीच आने की कोशिश कर रहा था. उनके दोनों स्तनों पर व्यस्त थे. मैं नहीं चाहती थी कि वह अपना हाथ हटाए इसलिए मैंने खुद ही अपनी स्कर्ट ऊपर कर दी. अब उनका लिंग मेरी जांघों के बीच से सामने की तरफ आने लगा. पैंटी हट जाने की वजह से लिंग का रास्ता बिल्कुल आसान हो गया था वह मेरी योनि से सटते हुए आगे की तरफ आ गया था. उनके लिंग से निकल रहे द्रव्य ने मेरी जांघों के बीच के उस हिस्से को पूरी तरह गीला कर दिया था. राजकुमार राजकुमारी के बिल्कुल समीप पहुंच चुका था. अभी तक मानस को मेरी पैंटी हटाने का एहसास नहीं था पर लिंग के चारो ओर मिल रही चिकनाहट से वो उत्तेजित थे.
मानस अपना एक हाथ स्तनों से हटाकर राजकुमारी के समीप ला रहे थे. नाभि के नीचे आते आते मेरी धड़कनें तेज हो गई. जैसे ही उनकी उँगलियाँ ने आगे का सफर किया उन्हें कोई रूकावट नहीं मिली. पैंटी पहले ही हट चुकी थी. पैंटी के हटने का एह्साह होते ही मानस ने मेरे गाल पर चुम्बनों की बारिश कर दी तथा कान में धीरे से कहा “ थैंक यू”. मैंने भी अपनी उंगलियों से राजकुमार को सहलाकर उन्हें खुस किया. उनकी उंगलियां मेरी राजकुमारी के बिल्कुल समीप पहुंच चुकीं थी. धीरे-धीरे यह इंतजार खत्म हो गया उनकी उंगलियां मेरे दरार के बीच में पहुंच गयीं. उत्तेजना अपने चरम पर थी इस अद्भुत और नई चीज को उनकी उंगलियां महसूस करना चाह रहीं थीं.. जैसे ही वह दरार में थोड़ा नीचे गए उनकी तर्जनी मेरी राजकुमारी के मुह में चली गयी. मैंने उन्हें धीरे से कहा…
“अन्दर मत ले जाइएगा.” वो समझ गए. मैं भी उनके लिंग को प्यार से सहलाने लगी. मुझे याद आया की मानस अभी तक अपने घुटने मोड़े हुए थे. मैंने “एक मिनट” कहकर अपने आप को उनसे अलग किया. तथा उनकी तरफ घूमी. उनका राजकुमार अब काफी बड़ा हो गया था. वह अँधेरे में भी आकर्षक लग रहा था. मैंने उन्हें स्टूल पर बैठने को कहा.
मानस स्टूल पर बैठ चुके थे. उन्होंने अपने राजकुमार को व्यवस्थित कर लिया था. मानस भैया ने अपनी पीठ दीवाल से लगा ली थी और वह आरामदायक स्थिति में आ गए थे उनकी कमर अब स्टूल पर थी. उनका नाभि प्रदेश बिल्कुल सपाट था. उनका राजकुमार उर्ध्व स्थिति में छत की तरफ देख रहा था. मैंने वापस अपनी पीठ मानस भैया की तरफ की तथा अपना एक पैर उठाकर उन्हें अपने दोनों पैरों के बीच ले लिया. अपने आप को संतुलित करते हुए मैंने अपनी कमर को नीचे करना शुरू किया. जैसे जैसे मैं नीचे आ रही थी मेरी धड़कन तेज हो रही थी. और नीचे आने पर राजकुमार ने मेरी राजकुमारी को छू लिया. राजकुमारी पूरी तरह प्रेम रस में डूबी हुई थी. राजकुमार भी अपने चेहरे पर प्रेम रस लपेटे हुए था. मैंने राजकुमार का मुखड़ा अपनी राजकुमारी के मुंह में जाने दिया. दोनों ने एक दूसरे का स्पर्श किया. मैंने महसूस किया की मानस भैया का हाथ मेरे नितंबों को सहला रहा है. इस उत्तेजना की घड़ी में भी मैं पूरी तरह सतर्क थी. मैं किसी भी स्थिति में अपना कौमार्य नहीं खोना चाहती थी .
कुछ ही देर में राजकुमारी के प्रेम रस में राजकुमार पूरी तरह डूब चुका था. मेरी जांघों पर भी चिपचिपपा सा महसूस हो रहा था. मेरे पैर अब दर्द करने लगे थे. मैंने राजकुमार को थोड़ा आगे किया और मानस की नाभि और लिंग के बीच के भाग में बैठ गई. मैंने पीछे मुड़ कर मानस की तरफ देखा वह आनंद में डूबे हुए थे. उन्होंने अपने दोनों पैर आपस में सटा लिए थे ताकि मुझे अपने पैर ज्यादा न फैलाने पड़े. उनके हाथ वापस मेरे स्तनों तक आ चुके थे. मेरी उंगलियां उनके राजकुमार को छू रही थी. मैंने अपनी हथेली और योनि के बीच में एक रास्ता जैसा बना दिया था. उनका राजकुमार इसी पतली गली में उछल कूद कर रहा था. मैं इस गली की चौड़ाई कम ज्यादा करती और वह खुद उछलने लगता. बीच-बीच में मैं उसे राजकुमारी के पास भी ले जाती तथा दोनों की मुलाकात कराती. मिलन के समय राजकुमार का उछलना तेजी से बढ़ जाता. (जिन्दा मछली पकड़ते समय मुझे कभी कभी इस समय की याद आती है.)
मुझसे और बर्दाश्त नहीं हो रहा था मैंने राजकुमार को अपनी राजकुमारी के मुख पर रगड़ना शुरु कर दिया. अपनी हथेली से राजकुमार को सहारा देकर अपनी राजकुमारी को आगे पीछे करने लगी. मेरी कमर में हरकत देख कर मानस सतर्क हो गए थे. राजकुमार मेरे हाथों से भी ज्यादा मुलायम था उसके स्पर्श से राजकुमारी बहुत प्रफुल्लित थी और थोड़ी देर में उसका कंपन भी अतिरेक तक पहुंच गया. मेरे पैर तनने लगे थे. मैंने मानस भैया के पैरों में भी तनाव देखा. उनकी पकड़ मेरे स्तनों पर और ज्यादा हो गई थी. कुछ ही पलों में राजकुमार में लावा उड़ेल दिया. राजकुमारी से भी खुशी के आंसू झर झर बह रहे थे. मेरे छोटे हाथ इतने सारे काम रस को समेट पाने में असमर्थ थे. मानस का भी हाथ भी कुरुक्षेत्र में आ गया था उनका हाथ भी प्रेम रस से सराबोर हो चुका था. उन्होंने राजकुमारी के चेहरे पर उंगलियां फेरी पर मैंने उनका हाथ पकड़ लिया. राजकुमारी बहुत संवेदनशील हो गई थी. आज उसके साथ कुछ अद्भुत हुआ था. वह अभी तक फड़क रही थी.
मैं धीरे से उठी. मानस भी उठ गए. मैंने स्टूल पर पड़ी अपनी पेंटी को उठाया. मैंने उससे मानस के राजकुमार को पोछा इसके बाद मैंने अपनी राजकुमारी तथा जांघों को साफ किया. पेंटी लगभग आधी गीली हो चुकी थी. मेरे हाथ पोछे के बाद मानस ने भी पैंटी मांगी. हाथ पोछने के बाद वह पेंटी को अपनी जेब में रखने लगे. मैंने उनका हाथ पकड़ने की कोशिश की तो वह बोले…
“ मैं इसे रख लेता हूं” मैंने पूछा ..
“क्यों “ तो उन्होंने कहा
“गुरु दक्षिणा”
यह सुनकर मैं निरुत्तर हो गयी तथा बाहर आ गई. साहिल मुझे देख कर खुस हो गया मैंने खेल समाप्ति की घोषणा की तथा अपने घर आ गई.
ग्रामीण परिवेश में भी काम वासना उसी तरह फलती फूलती है जिस तरह शहरों और विदेशों में. अंतर सिर्फ इतना होता है की गांवों में सेक्स में इतना नंगापन नहीं होता.

राजकुमारी दर्शन
अपने रूम में पहुंचने के बाद मैं बिस्तर पर लेट गया. आज जो हुआ था उसकी कल्पना भी मुझे नहीं थी. लड़कियों का वह अंग इतना कोमल होता है मैं नहीं जानता था. उसकी राजकुमारी अत्यंत कोमल तथा रसभरी थी तथा दोनों स्तन भी अत्यंत कोमल थे. मैंने अपनी हाथ की उंगलियों को चुम्मा जो अभी-अभी राजकुमारी से मिलकर आयीं थीं. उंगलियों पर राजकुमारी के खुशी के आंसू तथा मेरा लावा दोनों मिले हुए थे. ब्लू फिल्मों में मैंने देखा था की नायिका वीर्य को अपने मुंह में ले लेती है तथा नायक नायिका की योनि अपनी जिह्वा से छूता है. मेरे लिए यह एक घृणास्पद क्रिया थी परंतु आज सीमा की योनि छूने के बाद उससे एक अजीब किस्म के आत्मीयता हो रही थी ना चाहते हुए भी मैंने उसका स्वाद को जानने की कोशिश की. मेरी उंगलियां गीली होकर वापस चिपचिपी हो गयीं पर स्वाद के बारे में मैं कोई राय नहीं बना पाया.
अगली सुबह सीमा नहीं आई. मैं समझ गया था कि वह कल की घटना के बाद मुझसे मिलने में कुछ समय अंतराल चाह रही थी. सीमा ने कल जो किया था वह उस उम्र की लड़की के लिए बहुत बड़ी बात थी. मुझे इस बात का पूरा एहसास था कि मेरे राजकुमार के अलावा उसने और भी राजकुमारों की सेवा की थी परंतु उसका कौमार्य सुरक्षित था ऐसा मुझे प्रतीत होता था. उसका पढ़ाई में संजीदा होना भी इस बात का परिचायक था. 2 दिनों बाद सीमा फिर आई अपनी पढ़ाई के संबंध में और कुछ बातें की. मैंने पूरी तन्मयता से उस विषय को समझाया वह खुश हो गयी. उसके संतुष्ट होने के बाद मैंने उसे छेड़ा “राजकुमारी कुशल मंगल से तो है ना?” वह हंसने लगी और बोली…
“आपके राजकुमार ने उसे इतनी चुम्मियाँ ली है कि वह बार-बार खुशी के आंसू बहाती रहती है” मैं उसकी भाषा समझने लगा था. आज वह फिर से स्कर्ट और टॉप पहन कर आई थी छोटा रोहन सीढ़ियों से आकर सीमा से बोला….
“दीदी आप 2 दिनों से खेलने नहीं आयीं. आज चलिए ना. मानस भैया आप भी आइए”
“ चलिए आइए बच्चों का मन रख लेते हैं” हम सब नीचे आ गए. सीमा को फिर अलमारी की तरफ छुपते देख मन प्रफुल्लित हो उठा था आज भी मैं उसी उत्साह के साथ सीमा के पीछे हो लिया. अब हम दोनों इस खेल के खिलाड़ी हो चुके थे. हमने 2 - 3 बार खेल के दौरान अपनी काम पिपासा बुझाई और वापस आ गए. सीमा ने इस बार हमारे प्रेम रस को अपनी स्कर्ट में ही पोछ लिया आज वह पैंटी नहीं पहने हुयी थी.
अगले कुछ दिनों तक सीमा लगातार मेरे पास आती रही और अपनी पढ़ाई के बारे में मुझसे कई चीजें समझती रही. कई बार वह पजामी पहन कर आती थी तो कई बार स्कर्ट पहनकर. मैंने नोटिस किया कि जब वह पजामी पहन कर आती थी तो छुपन छुपाई खेल से बचती थी और जब स्कर्ट पहन कर आती थी तो खुशी-खुशी छुपन छुपाई खेलने को तैयार हो जाती. मेरे लिए या इशारा बन चुका था कि यदि मैंने उसे स्कर्ट में आते हुए देखा तो मेरे राजकुमार को आज सुख मिलना पक्का लगता था. कुछ ही दिनों में हमारा यह सुख ख़त्म होने वाला था.
सीमा के दिल्ली जाने का वक्त करीब आ रहा था. सीमा ने बताया कि 3 दिनों के बाद वह वापस जा रही है. मैं दुखी हो गया मैंने कहा ….
“सीमा तीन-चार दिन और रुक जाओ मैं भी तुम्हारे साथ वापस चलूंगा”..
“उसने कहा मानस भैया पापा टिकट करा चुके हैं” उसने मुझे खुश करने के लिए मेरे साथ बिताए पलों को याद किया और कहा ..
“आपके राजकुमार ने तो राजकुमारी से मुलाकात कर ली”
मैंने उसे याद दिलाया कि उसने मुझे राजकुमारी को दिखाने का वचन 2 वर्ष पूर्व दिया था. वह पशोपेश में पड़ गयी. हमारे पास बहुत कम वक्त बचा था सीमा ने कहा अच्छा मैं कोशिश करूंगी . 2 दिन बाद अचानक सुबह-सुबह माया जी की तबीयत खराब हो गई उनके पेट में दर्द हो रहा था. पापा उनको शहर में डॉक्टर से दिखाने ले गए छाया भी साथ में जाने की जिद करने लगी और वह भी गाड़ी में बैठ कर चली गयी. पापा ने कहा…
“ बेटा कुछ बना कर खा लेना हम लोग दोपहर तक लौट आएंगे” जाते समय मंजुला चाची भी वहां थीं. वो पापा की बात सुनकर यह समझ गयीं थीं कि मैंने नाश्ता नहीं किया है .
[मैं सीमा]
चाची ने कहा…
“ मानस ने नाश्ता नहीं किया है. तुम जाकर मानस को नाश्ता दे आवो वह घर पर अकेला है” मैं यह सुनकर बहुत खुश हो गई और बोली.. “चाची मैं नहा कर जाती हूं उन्होंने कहा बेटा वह भूखा होगा मैंने कहा बस 5 मिनट लगेगा”
“ ठीक है” मैं फटाफट बाथरूम में चली गयी. बाथरूम जाने के बाद मैंने यह निर्णय कर लिया कि आज अपनी राजकुमारी के दर्शन मानस भैया को करा ही दूंगी पता नहीं फिर कभी मौका मिले ना मिले. अपनी राजकुमारी की दाढ़ी मूछें मैं 2 दिन पहले ही साफ कर चुकी थी. मेरी राजकुमारी अब अत्यंत सुंदर और चमकदार लग रही थी. शीशे में मैं खुद को देखकर शरमा गयी. मैंने अपनी राजकुमारी को साबुन से धोया और नहाकर वापस बाहर आ गयी. मैं सीधा मम्मी के कमरे में गई अपनी पहले दिन वाली स्कर्ट और टॉप पहनी. मम्मी का वही परफ्यूम लगाया और चाची के पास आकर बोली..
“लाइए चाची दीजिए” चाची ने मानस भैया के लिए नाश्ता निकाल कर रखा था जिसे लेकर में धड़कते ह्रदय के साथ मानस भैया के पास पहुंच गयी. मानस भैया थोड़े दुखी थे क्योंकि माया जी और उनके पापा सभी लोग शहर गए हुए थे. मैं उनकी स्थिति समझ सकती थी. मैंने कहा…
“छोटी मोटी तकलीफ होगी. वह जल्दी ठीक हो जाएंगीं आप प्रेम से नाश्ता कर लीजिए.” मैंने उन्हें अपने हाथों से एक रोटी खिलाई. मैं अभी अभी नहा कर आई थी वह मुझे एकटक देख रहे थे. नाश्ता करने के बाद मैंने उनसे कहा कि कल मैं चली जाऊंगी. वो मेरे जाने की बात से ज्यादा दुखी हो गए. मैंने उनके हांथों को अपने हाँथ में ले लिया और उनसे कहा…
“मेरी राजकुमारी आपको दर्शन देना चाहती है” उनका गम एक पल में गायब हो गया. तभी फ़ोन की घंटी बजी. मानस नीचे गए और वापस आकर बताया ..
“पापा का फोन था. माया जी ठीक हैं. ड्रिप लग रहा है एक दो घंटे में वापस घर आ जाएंगें.” वो खुश हो गए थे. उन्होंने मुझे अपने आलिंगन में खींच लिया. मैंने उनसे कहा ..
“आप आखें बंद कर लीजिए जब मैं कहूं तब खोलिएगा.”
उन्होंने अपनी आखें बंद कर लीं. मैंने अपनी स्कर्ट उतार दी पता नहीं मेरे मन में क्या आया कि मैंने अपना टॉप भी उतार दिया अब मैं उनके सामने पूर्ण नग्न खड़ी थी. मेरे मन में एक और शरारत सूची मैंने मानस भैया से कहा अपनी आंख बंद किए रहिए और अपने राजकुमार को भी आजाद कर दीजिए. उन्होंने मुस्कुराते हुए अपनी पजामी को अलग कर दिया. मैंने उनसे कहा आप अपना कुर्ता भी हटा दीजिए.मेरे कहने पर अब वह पूरी तरह मेरे सामने नग्न खड़े थे. मैं उन्हें देख कर मन ही मन उत्तेजित हो रही थी. वो नग्न अवस्था में और भी सुन्दर लग रहे थे. मैं भी नग्न थी पर वह मुझे देख नहीं पा रहे थे. उन्होंने ईमानदारी से अपनी आंखें बंद की थी. मैं बिस्तर पर बैठी हुई थी. मैं खड़ी हुई और उनसे कहा आप अपनी आंखें खोल सकते हैं.
आंखें खोलने के पश्चात उन्होंने अपने जीवन में पहली बार किसी लड़की को नग्न देखा था. उनका राजकुमार तो इस परिस्थिति की कल्पना में पहले ही तन कर खड़ा हो चुका था. राजकुमार पहले से बड़ा हो चुका था यह मैंने पहले ही नोटिस कर लिया था. वह मुझे एकटक देखते रहे मैं शर्म से अपनी आंखें नीचे की हुई थी पर मेरी आंखें उनके राजकुमार पर ही टिकी थी. लगभग एक मिनट तक देखने के बाद वह धीरे धीरे मेरे पास आए और बोले “सीमा तुम बहुत ही खूबसूरत हो मैं तुम्हें जी भर कर देखना चाहता हूँ.” मैंने फिर वही प्रश्न किया ..
“मैं या राजकुमारी?”
“ दोनों” उन्होंने मुझे सहारा देकर बिस्तर पर लिटा दिया. उन्होंने मेरे पैरों को छुआ. धीरे-धीरे उनके हाथ मेरी जांघों तक आ गए. उन्होंने अपने गाल मेरी जांघों पर सटा दिए. उन्होंने मुझसे पूछा ..
“ क्या लड़कियां इतनी कोमल होती है?” यह कहते हुए वह धीरे धीरे मेरे राजकुमारी के पास आ गये.
राजकुमारी को देखकर वह अपनी नजरें नहीं हटा पा रहे थे. वो बहुत देर तक उसे देखते रहे फिर मेरी अनुमति से उन्होंने उसे छुआ. मैंने जानबूझकर अपनी जांघें अलग कर दी. वह आश्चर्य से मेरी राजकुमारी को देखते रहे राजकुमारी अपनी लार टपका रही थी. वह धीरे धीरे अपना ध्यान नाभि प्रदेश से होते हुए स्तनों की ओर तरफ ले आये. मेरे दोनों स्तन तने हुए थे. मेरे स्तनों को वह पहले भी छू चुके थे इसलिए उन्होंने मेरी इजाजत के बिना ही उन दोनों को छू लिया. कुछ देर उन्हें सहलाने के बाद उन्होंने मेरे दोनों निप्पलों को भी अपनी उंगलियों में लेकर महसूस किया. वो अपने हाथ मेरी गर्दन से होते हुए मेरे चेहरे पर ले गए और दोनों हाथों में मेरा चेहरा लेकर मुझे माथे पर चूम लिया और बोले..
“ सीमा तुम मेरे जीवन की पहली लड़की हो जिसे मैंने नग्न देखा है मैं तुम्हारा ऋणी हूँ. काश तुम मेरी जीवनसंगिनी बन पाती.” उन्होंने मुझे होठों पर चुम्बन नहीं दिया. वह वापस मेरी राजकुमारी की तरफ गए तथा अपनी हथेलियों के दबाव से मेरी जाँघों को अलग कर रहे थे. मैं समझ गई थी वह क्या चाहते है मैंने उनका सहयोग करने के लिए अपने दोनों हाथों से अपने पैरों को पकड़ लिया और जितना संभव हो सकता था उसे फैला दिया. . राजकुमारी की दरार अब बढ़ गई थी वो पूरी तरह रस में डूबी हुई थी ठीक उसी तरह जिस तरह
किसी ताजे फल में चीरा लगाने के बाद उस का रस छलक कर बाहर आ जाता है. मानस ने मेरी तरफ देखा और अपनी उंगलियों को मेरी राजकुमारी के पास ले आये और मेरी इजाजत के लिए धीमी आवाज में पूछा…
“क्या मैं इसे छू सकता हूं?” मैंने सिर हिला कर इसकी सहमति दे दी. वह अपनी उंगलियों से राजकुमारी का मुआयना करने लगे. पहले उन्होंने अपनी तर्जनी से मेरी दरार को ऊपर से नीचे तक छुआ. ऐसा लग रहा था जैसे वो उसके रस को बराबर से बांट देना चाहते हैं. उनकी तर्जनी पूरी तरह गीली हो गई थी. अगली बार उन्होंने तर्जनी का दबाव बढ़ाया तो दरार अपने आप फैल गई उन्हें अंदर और भी गीलापन महसूस हुआ. हमारी उंगलियों के 3 भाग होते हैं उन्होंने उन्होंने अपनी तर्जनी का पहला भाग मेरी दरार के अंदर डाल दिया था. अब उनकी तर्जनी नीचे से ऊपर की तरफ आ रही थी. जैसे ही उनकी उंगली मेरी भग्नासा से टकराई मैं तड़प उठी. मेरे पैरों की हरकत से उन्हें मेरे इस भाग की अहमियत का अंदाजा हुआ. उन्होंने अपनी उंगली पीछे कर ली. भग्नासा से नीचे आने के बाद तर्जनी राजकुमारी के मुख में प्रविष्ट होने लगी. वह आगे बढ़ना चाह रहे थे उन्होंने अपनी तर्जनी का दबाव बढ़ाया. यदि मैं उन्हें न रुकती तो वह अपनी अज्ञानता में अपनी तर्जनी से ही मेरा कौमार्य भेदन कर देते. वह अपनी इन क्रियाओं के दौरान बीच-बीच में मेरी तरफ देखते थे शायद मेरी रजामंदी के लिए.
मैंने उन्हें सिर हिला कर मना कर दिया था उन्होंने मेरी दरार के दोनों होंठों को अब अपने दोनों हाथों के अंगूठे और तर्जनी तर्जनी से और फैलाने की कोशिश की ताकि वह अनजानी गुफा के रहस्य से परिचित हो सकें. दरार को फैलाते ही अंदर गुलाबी गुफा दिखाई दे गई.
गुफा के शीर्ष पर स्थित भग्नासा को भी उन्होंने बहुत ध्यान से देखा. उनका अंगूठा गुफा में प्रवेश करने को आतुर हो रहा था. मैंने इशारे से उन्हें रोक दिया. उन्होंने अपने हाथों के सहारे मुझे करवट लेटने को कहा. फिर धीरे-धीरे मुझे पेट के बल लिटा दिया. कभी कभी मुझे ऐसा एहसास हो रहा था जैसे कोई डॉक्टर मेरा मुआयना कर रहा हो. लड़कियों के शरीर में कोमलता हर जगह होती है. मेरे नितंब देखकर बिना कहे उन्होंने अपने गाल उससे सटा दिए. उन्होंने अपने दोनों हाथों से नितंबों को नापा तथा उन को अलग कर अलग करके देखने की कोशिश. मेरे दूसरे द्वार को देखते ही उन्होंने अपेक्षाकृत तेज आवाज में बोला…
“दासी भी राजकुमारी जितनी ही खूबसूरत है” उन्होंने उसे छुआ नहीं और मेरी पीठ से सहलाते और गर्दन पर चुंबन करते हुए बालों के पास आ गए और मेरे कान में धीरे से कहा….
“सीमा मैं राजकुमारी को एक अभूतपूर्व उपहार देना चाहता हूं” मैंने कुछ नहीं बोला बस सहमति में सर हिला दिया. मानस भैया पर मुझे पूरा विश्वास था.
इस वक्त मैं भी वासना में पूरी तरह घिरी हुई थी. स्वीकृति पाकर वह मेरी पीठ सहलाते हुए नितंबों तक आ गए और मेरी कमर को पकड़ कर मुझे एक बार फिर पीठ के बल लिटा दिया. उन्होंने मुझे आंखे बाद करने के लिये कहा और अगले दो मिनट तक आंखें खोलने के लिए मना किया. मै उनके चमत्कारी उपहार की प्रतीक्षा करने लगी.
अचानक मेरी राजकुमारी की दरार में में किसी मोटी पर चिपचिपी चीज के रेंगनें का एहसास हुआ. वह दरारों के बीच से होते हुए मेरी भग्नासा तक गयी और वापस लौट आयी. यह बड़ा ही उत्तेजक एहसास था. एक दो बार इस यही क्रिया को दोहराने की बाद उस रहस्यमई चीजें ने गुफा के द्वार पर दस्तक दी और प्रवेश करने की कोशिश की. यह इतनी मुलायम थी कि मेरा कि मेरा कौमार्य भेदन इसके बस का नहीं था. मैं निश्चिंत थी. उसने मेरी गुफा में मैं प्रवेश पाने की भरसक कोशिश की तथा कुछ देर प्रयास करने के पश्चात मेरी भग्नासा पर थिरकने लगी. मेरी राजकुमारी के लिए यह बिल्कुल नई चीज थी. इस स्पर्श से राजकुमारी के अंदर धड़कन बढ़ गई थी. मुझसे अब बर्दाश्त नहीं हो रहा था. मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे उसका साथ देने के लिए उसके साथी भी आ गए हैं. मेरी राजकुमारी पर तीन तरफ से वार हो रहा था. वह रहस्यमई चीज कभी मेरी दरारों को फैलाती कभी भग्नाशा पर थिरकती. मैं उत्तेजना के चरम पर थी मेरी राजकुमारी स्खलित होने लगी. मैं अपने पैरों को अपने सीने की तरफ तेजी से खींचे हुए थी. उत्तेजना के अंतिम पड़ाव पर मैं अपने पैरों को छोड़कर अपने हाथ अपनी राजकुमारी तक ले जा रही थी ताकि उसकी मदद कर सकूं. . मेरे हाथ वहां तक मेरे हाथ वहां तक पहुंचते, इससे पहले वह मानस भैया के बालों से टकरा गए. मैं सारी बात समझ चुकी थी.
मैंने उनका सिर अपनी जांघों के बीच से हटाने की. उन्होंने अंत में मेरी राजकुमारी को दोनों होठों से चुंबन लिया एवं एवं अपनी जीभ को दरारों के बीच से ले जाते हुए मेरी भग्नासा को छू लिया. मैं एक फिर उछल पड़ी. उत्तेजना के बाद भग्नासा बहुत संवेदनशील हो जाती है. मैंने अपनी जाँघों को वापस सटा लिया और धीरे से उठ कर बैठ गयी.
मानस की आखों में वासना थी. उनके होठों पर मेरा प्रेम रस दिखाई पड़ रहा था. वह कमरे से सटे बाथरूम में चले गए मैं बिस्तर पर अभी भी नग्न बैठी थी. अब मेरी राजकुमारी की धड़कन शांत हो चुकी थी.
मैंने आज तक सोमिल ( मेरा चंडीगढ़ वाला दोस्त) के साथ इतने खुले मन से सेक्स नहीं किया था. हमने आज तक एक दूसरे को नग्न नहीं देखा था मैंने उसका हस्तमैथुन कई तरीकों से किया था तथा इसमें महारत हासिल कर चुकी थी. वह बार-बार अपना वीर्य मेरे शरीर पर गिराने को उत्सुक रहता पर मैं हमेशा उसे अपनी रुमाल या उसकी रुमाल में गिरा देती थी. कभी कभार लापरवाही बरतने पर उसने अपना वीर्य मेरे कपड़ों पर गिरा दिया था. दरअसल सोमिल में धीरज नहीं था. वह सेक्स को बहुत जल्दी जी लेना चाहता था. उसने मुझे नग्न करने के लिए कई प्रकार के प्रलोभन दिए थे पर मैं हमेशा टाल जाती थी. वह मुझसे बहुत प्यार करता था और मुझे सर आंखों पर बिठाये रखता था. उसने आज तक मेरी कोई बात नहीं टाली. मैं अपनी सोच में डूबी हुयी थी तभी बाथरूम का दरवाजा खुला और मानस भैया बाहर आ गये.
उनके लिंग का तनाव कुछ कम हो गया था वह चेहरा धोकर वापस आए थे. वापस आकर वह वापस कुर्सी पर बैठ गए मुझे अभी तक नग्न देखकर उनकी उम्मीदें जाग उठी थी. मैंने अपने कपड़े क्यों नहीं पहने थे शायद वो यही सोच रहे थे. मैं धीरे से उठ कर उनके पास गई. पास पहुंच कर मैंने बिना उनसे पूछे उनके राजकुमार को अपने हाथों में ले लिया. राजकुमार तुरंत अपनी तनी हुई अवस्था में आ गया. मैंने देखा कि राजकुमार 2 सालों में पर्याप्त बड़ा हो गया था. सुनील के जितना तो नहीं पर उससे थोड़ा ही कम था. यह राजकुमार बहुत ही कोमल था. मैंने उसे प्यार से आगे पीछे करना शुरू किया. मैं स्टूल लेकर उनके दोनों पैरों के बीच बैठ गई और अपने हाथों से राजकुमार को खिलाने लगी मैंने अपनी सारी कार्यकुशलता और अनुभव जो सोमिल ने मुझे सिखाया था उसका प्रयोग करने लगी. हर बार नए अंदाज से मानस भैया खुश हो जाते तथा स्खलित होने के लिए तैयार हो जाते . फिर मैं उनका तनाव कम करती.
इस प्रक्रिया में राजकुमार के दोनों अन्डकोशों के वीर्य उत्पादन की गति बढ़ती जा रही थी. कुछ वीर्य तो राजकुमार के मुंह से लार की तरह टपक रहा था यही राजकुमार को सहलाने में मेरी मदद कर रहा था. जरूरत पड़ने पर मैं अपनी राजकुमारी के प्रेम रस का उपयोग भी कर ले रही थी. मानस भैया अपने हाथ कभी मेरे पीठ पर रखते कभी स्तनों पर. राजकुमार का उछलना बढ़ चुका था मानव भैया का चेहरा लाल हो चुका था और वह अपनी गर्दन को इधर-उधर कर रहे थे तथा कमर को ऊंचा कर राजकुमार को मेरी तरफ लाने का प्रयास कर रहे थे. मैं समझ गयी मैंने भी उन्हें ज्यादा परेशान ना करते हुए राजकुमार के शिश्नाग्र के नीचे वाले भाग पर अपनी रगड़ बढ़ा थी.
ज्वालामुखी का विस्फोट हो गया वीर्य की पहली धार मेरे गालों पर पड़ी. इस अप्रत्याशित विस्फोट से लिंग पर मेरी पकड़ ढीली हुई. उसके मुख पर जब तक मैं अपना हाथ लगाती तब तक वह वीर्य वर्षा प्रारंभ कर चुका था मैंने तुरंत ही अपनी हथेली राजकुमार के मुख पर रख दी अब वीर्य मेरी हथेलियों से टकराकर वापस राजकुमार पर ही गिर रहा था ऐसा लग रहा था जैसे उसका दुग्ध स्नान हो रहा हो. मानस भैया मेरे एक स्तन को तेजी से दबाए हुए थे तथा मेरे कंधे पर उनका हाथ कसा हुआ था. लिंग से हो रहे वीर्य प्रवाह के रुकने के पश्चात मैंने अपना हाथ लिंग पर से हटा लिया.
मानस भैया के चेहरे पर संतुष्टि थी. उनकी आंखें बंद थी मेरे हाथ हटाने के बाद उन्होंने आंखें खोलीं और मुस्कुराते हुए मुझे देखा उनका वीर्य मेरे गाल गर्दन तथा स्तनों पर गिरा हुआ था. मैं उसे पोछने के लिए किसी उचित वस्त्र की तलाश में इधर उधर देख रही थी तभी मानस भैया ने हाथ पकड़ कर मुझे अपनी जांघ पर बैठा लिया. उन्होंने अपने हाथों से मेरे शरीर पर गिरे हुए वीर्य को पोछा और स्तनों पर मलने लगे. मुझे थोड़ी असमंजस हो रही थी. मेरे गाल पर गिरा हुआ वीर्य मेरे होठों तक आ चुका था मानस भैया की नजर पड़ते ही तुरंत उन्होंने अपने हाथों से पोछा पर तब तक वीर्य मेरे होठों के रास्ते अंदर प्रवेश कर चुका था. वीर्य का अजीब सा स्वाद मेरे चेहरे घृणा का भाव उत्पन्न करता इससे पहले ही उनके होंठ मेरे होंठों पर आकर चिपक गए. जैसे अपने वीर्य की इस गुस्ताखी पर वह उसे सजा देना चाह रहे हैं और उसे मेरे मुख में प्रवेश करने से पहले ही रोक लेना चाहते हैं. मैं इस अप्रत्याशित कदम से हतप्रभ थी. इतने दिनों में कभी भी होठों पर चुंबन की स्थिति नहीं आई थी. मानस भैया मेरे होंठ चूस रहे थे मैं खुद को रोक नहीं पाई और इसमें सहयोग करने लगी.
राजकुमारी में एक अजीब सी हलचल हुई राजकुमार का तनाव भी मुझे महसूस होने लगा था. कुछ ही पलों में मैंने अपने आपको उनसे दूर किया. मेरी नजरें अभी भी झुकी हुई थी. मैंने अपने वस्त्रों की तरफ देखा जो उपेक्षित से पड़े हुए थे. शायद इस रासलीला में उनकी अहमियत नहीं रह गई थी.
मैं अपने वस्त्र लेकर बाथरूम में चली गई. वापस आकर मैंने देखा मानस भैया ने भी अपने कपड़े पहन लिए थे. अभी मैं बात कर पाने की स्थिति में नहीं थी. अतः मैंने नाश्ते की थाली उठाई बिना कुछ बोले अपने घर की तरफ आ गई . मानस भैया ने भी कुछ नहीं बोला पर मुझे छोड़ने सीढ़ियों तक आए. अंततः आज उन्होंने राजकुमारी के दर्शन उसके प्रेम रस एवं स्पर्श का पूर्ण आनंद लिया था.
युवाओं का शांत और सौम्य व्यवहार चंचल युवतियों की उत्तेजना जगाने में मददगार होता है. वो जब अपने साथी पर पूर्ण विश्वास कर लेतीं हैं तो नग्नता का उतना ही आनंद लेतीं है जितना कि उनके साथी युवा .

मंजुला चाची ने मुझे देखते ही पूछा
“बेटा कितनी देर लगा दी” मुझे लगा मेरी चोरी पकड़ी गई. मैंने तुरंत अपने कपड़े ठीक करते हुए कहा.
“चाची वह भैया से कुछ पढ़ाई की बातें होने लगी” मेरी यह दलील उन्हें पसंद ना आयी पर मानस भैया पे शक करने का कोई कारण नहीं था. मैं अपने कमरे में जाकर बिस्तर पर लेट गई . आज की घटना से मेरे हृदय में मानस भैया के लिए प्रेम उत्पन्न हो गया था. मेरे मन में सोमिल और मानस को लेकर पशोपेश की स्थिति हो गई थी. मुझे यह भी नहीं पता था कि इसके बाद मानस भैया से अगले साल ही मुलाकात होगी कि नही .
मानस से 1 महीने में हुई अंतरंग मुलाकातों मैं उनका कामुक परंतु सहज व्यवहार मेरे दिल को प्रभावित कर गया था.
प्रेम में बिताए गए कुछ पल आपके दिल पर एक गहरी छाप छोड़ जाते हैं. कामुकता से जन्म लिए इस प्यार का अपना महत्व था.

[मैं मानस]
सीमा को छोड़कर आने के बाद मेरा ध्यान सिर्फ होंठों के चुम्बन पर केंद्रित हो गया था. होठों के चुम्बनों के दौरान सीमा ने मेरा बराबरी से साथ दिया था. मेरे मन में उसके प्रति प्यार पनप रहा था. 1 महीने में उसने मेरी काम पिपासा को एक अलग ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया था. पिछले 1 महीने में वह कई बार मेरा वीर्य प्रवाह कर चुकी थी. क्या उसकी भी कामुकता मेरे ही जितनी थी प्रबल थी? परंतु सीमा को यह सब कैसे पता था? यह मेरे लिए प्रश्न चिन्ह था.
मुझे ऐसा प्रतीत होता था कि वह किसी और के साथ भी यह सब करती है. परंतु राजकुमारी को छूने के दौरान उसकी प्रतिक्रिया अलग ही थी. इससे भ्रम होता था जैसे यह सब उसके लिए पहली बार हुआ था. . उसका कौमार्य सुरक्षित था यह बात अलग थी परंतु उसे अपनी प्रेमिका का स्थान दे पाना पाना कठिन था. लेकिन सीमा ने मेरे हृदय में अपना स्थान बना लिया था.
माया जी दोपहर के पश्चात डॉक्टर से मिलने के बाद घर वापस आ चुकी थी. उनकी तबीयत अब ठीक लग रही थी शाम तक सब कुछ सामान्य हो गया.
सीमा को वापस जाना था मैं बहुत दुखी था. अगले दिन मैं बाजार गया और उसके लिए कुछ गिफ्ट खरीदे. सीमा जाने से पहले मुझसे मिलने आई आज भी उसने स्कर्ट पहनी थी पर मुझे पता था आज हम दोनों को वह सुख नहीं मिलने वाला था. मैंने उसे अगले साल होने वाले एग्जाम के लिए शुभकामनाएं दीं और मुस्कुराते हुए राजकुमारी दर्शन के लिए उसका धन्यवाद क्या. उसनें मुस्कुराते हुए कहा..
“ आपने तो दासी के भी दर्शन कर लिए थे” मैं भी मुस्कुरा पड़ा. मैंने उसे गिफ्ट वाला बैग पकड़ाया. इससे पहले कि वह वापस मुड़ती मैंने उसे अपने आलिंगन में ले लिया तथा उसके गालों को चुमते हुए होठों पर आ गया. होठों पर चुंबन लेने के पश्चात वह मुझसे अलग हुई आज कामुकता का कोई स्थान नहीं था. हमारी आंखें नाम थीं. मैं सीमा के साथ नीचे आ गया. सब सीमा का ही इंतजार कर रहे थे. वह अपनी जीप में पीछे बैठी और जीप धूल उड़ आती हुई नजरों से ओझल हो गई. मेरी सीमा भी इसी धूल में खो गई.. मै रुवांसा हो कर अपने कमरे में वापस आ गया

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Thanks
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इस शानदार लेखनी के लिए तहे दिल से धन्यवाद🙏
 

Alok

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Superb story........

Just loving it...... :heart::heart::heart:
 

Alok

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Superb writing skills bro......

Hum to aapke FAN ho gaye...... :yourock: :yourock: :yourock: :yourock: :yourock:

Eagerly waiting for next update.....
 

Lovely Anand

Love is life
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Can any one suggest that where can I post balance part of this story. I have posted second part as reply whether it is correct or there is another way
 
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