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भाग ९८
अगली परेशानी - ननदोई जी, पृष्ठ १०१६
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अगली परेशानी - ननदोई जी, पृष्ठ १०१६
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और मजे देने को भी हरदम तैयार.....Ekdam sahi,.... aisi hi to hain Bhaui, vahi shape aur size aur sabse badh ke vahi muskaan aur iraade, ... school men vice principal Chhutaki ki aur Ghar men pakki Bhauji, Nanad ki lene ko hardam taiyar
कमी... अरे उत्कृष्ट.... और घर के हर कोने-कोने में....maine abhi INCEST likhana aap logon ke INSIST karne pe shuru kiya hai, ho skata hai kuch kami besi ho, par try kar rahi hun,...aap ka utsaahvardhan raha to jo aap kah rahe hain vahi hoga, Ghar kehar kone men, Ghar men bhi Bhaar bhi
सुबह-सवेरे खड़ा भी जबरदस्त होता है...भाग ३२ - इन्सेस्ट गाथा अरविन्द और गीता,
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सुबह सबेरे
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आलमोस्ट पूरा लंड बाहर और फिर रगड़ते दरेरते चूत फाड़ते पूरी ताकत से बहन की बच्चेदानी पे जबरदस्त चोट मारता और बहन काँप जाती, कुछ दर्द से लेकिन ज्यादा मजे से,... दस पंद्रह मिनट की जबरदस्त चुदाई के बाद जब गीता झड़ी तो साथ साथ उसका भाई अरविन्द भी उसकी चूत में
.दोनों थोड़ी देर में ही नींद में गोते लगा रहा थे, देस दुनिया से बेखबर। और भाई बहन तीन बार के मिलन के बाद खूब गहरी नींद,..
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गीता की नींद थोड़ी देर में खुली, तो उसने देखा की वो करवट लेटी थी थी, भइया उसके पीछे से उसे पकडे ,एक हाथ उसके उभार पे , थोड़ा सरक के नीचे,... गीता ने भैया का हाथ ठीक कर के एक बार फिर से उभार पर,... 'वो' भी पीछे से उसकी दरार में चिपका,... हलके से वो मुस्करायी , और खुद ही अपने को पीछे से सरका के और चिपका लिया , भैया से ,...
और फिर सो गयी,...
और जब उसकी नींद खुली , आँखे उसने तब भी नहीं खोली थी,... पीछे से ही ' वो ' अंदर से दरार में घुसने की कोशिश कर रहा , खूब मोटा तगड़ा , पूरा जगा,... गीता ने अपनी टांग को और उठा लिया , बस उसे मौका मिल गया और हलके हलके धक्के , ... अब बहन भी ,...जैसे दो सखियाँ सावन में झूले की पेंगे दे रही हों ,... बारी बारी से ,... बस हलके हलके ,..,
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तीन बार की मलाई अंदर अंदर ,... बहुत देर तक ,... और भैया बहन दोनों साथ साथ ही ,... और एक बार फिर से दोनों नींद में ,...
बहना बस यही मना रही थी आज सूरज खूब देर से निकले , रात खूब लम्बी हो ,...
पर सुबह हुयी और नींद गीता की ही पहले खुली भैया ने अभी भी पीछे से उसको पकड़ रखा था , बहुत हलके से वो हटी ,... बादल खूब थे , एक बार फिर बूंदे शुरू हो गयीं थी लेकिन आवाजों से पता चल रहा था सुबह हो गयी थी ,... गाय दुहने वाली आ गयी थीं, ग्वालिन भौजी।
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वो सम्हल के बिस्तर से उतरी, पलंग के नीचे उसकी समीज मुड़ी तुड़ी पड़ी थी ,... अब अपने को इस हालत में देख के एक पल के लिए वो शर्मा गयी और समीज पहन लिया , और उसी के ऊपर भैया की जांघिया ,... मुड़ के उसने देखा। ..
कित्ता प्यारा लग रहा था , भैया और भैया का ' वो ' सोते समय इत्ता सीधा और जागते ही ,... लेकिन वो मुस्करायी,
उस समय भी तो प्यारा ही लगता था था ,... भैया के जांघिए को भी उसने शरारत से उठा लिया ,... और अपने साथ बरामदे में ला के वहीँ टांग दिया और खुद रसोई में ,...
और थोड़ी देर में चाय बना के भैया के पास ,... उठो न भैया ,...सुबह हो गयी है कब तक सोओगे,...
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वो ऐसे बोल रही थी जैसे रात में कुछ हुआ ही न हो,...
पर उठते ही भैया ने खींच के अपनी गोद में बिठा लिया और जो चाय वो पी रही थी यही प्याला , जहाँ उसके होंठ लगे थे , वहीँ होठ लगा के पी गया,.... समीज एक बार फिर सिकुड़ मिकुड के ऊपर ,
दोनों उभार बाहर ,...
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और कभी वहां हाथ कभी होंठ , ...
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वो कौन कम थी, ... अपने छोटे छोटे चूतड़ों से भैया के मूसल को रगड़ रही थी, अब उसे डर नहीं लगता था प्यार आता था , रात में तीन बार घोंट चुकी थी , जड़ तक , और उसके बाद एक बार सुबह सबेरे भी आधे सोते आधे जागे, कुल चार बार रबड़ी मलाई खा चुकी थी भैया की , अब तक उसके जाँघों में लिथड़ी थी,...
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यही तो बहन का प्यार है...नया दिन, नयी बात, नए रिश्ते
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लेकिन गाँव में सुबह सुबह काम भी फैला रहता है, माँ भी नहीं थी,... तब तक बाहर खट खट हुयी बस समीज सीधी कर के वो बाहर आ गयी , समझ रही थी , ग्वालिन भौजी होंगी, बहुत चिढ़ाती थीं , भौजी का रिश्ता,.. और माँ की मुंह लगी भी,... उन्होंने उसे दूध पकड़ाया,... अभी भैसों को दुह के ,... लेकिन दूध लेते समय, ... उसकी जाँघों पर फिसल के ,..
रात की मलाई का एक थक्का,... और उन्होंने जबरदस्त चिढ़ाया
" हे दूध मैंने दुहा, मलाई ननद रानी को बह रही है "
लेकिन रिश्ता ग्वालिन भौजी से ननद भौजाई का था तो कौन भौजाई ननद को छेड़ने का मौका छोड़ती है , रात भर जिस जुबना को गीता के भैया अरविन्द ने मसला था, उसे खुल के कस के रगड़ते मसलते ग्वालिन भौजी ने चिढ़ाया,
" हे ननद रानी, लेकिन दूध देना है तो मलाई तो घोंटना ही पड़ेगा। और अब दूध देने लायक तो ये हो गए हैं। "
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और भैया को भी निकलना था, ... रात में आंधी तूफ़ान में क्या नुक्सान हुआ,...और भी खेती किसानी,...
गीता भी किचेन में धंस गयी,.. और दो तीन घण्टे बाद जब भाई लौटा तो नाश्ता लेकर,...
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एक बार फिर वो गोद में थी
और अबकी खुद चढ़ के बैठ गयी थी और कभी अपने हाथ से कभी होने मुंह में ले के खिला रही थी, ... अच्चानक भैया को कुछ याद आया,... बोल पड़े,
' रात में कुछ गड़बड़ हुआ हो तो मैंने सब अंदर ही,... "
वो पहले तो बड़ी देर तक खिलखिलाती रही , ... फिर भैया को हड़का लिया,...
" हे खबरदार , जो कभी सोचा भी,.... बाहर एक बूँद भी गिराने को,.... बहन काहें को है,... घर में ,... "
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फिर चिढ़ाते हुए बोली,
" अरे तेरे बच्चे की माँ बन जाउंगी और क्या,... "
लेकिन उसे लगा की मज़ाक भाई को समझ में नहीं आया,... तो हंस के बोली,
" अरे घबड़ा मत,यार,...अभी तीन दिन पहले ही तो मेरी वो पांच दिन वाली लाल लाल सहेली गयीं है अपने घर ,... तो मैं बड़ी हो गयीं हूँ ,... मुझे भी मालूम है,... उनके जाने के बाद वो बोल के जातीं हैं , चल मैं जा रही हूँ , पांच छह दिन खुल के मस्ती कर, कोई खतरा नहीं ,... तो कोई डर नहीं ,... "
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अब भैया भी मुस्कराया और ऊपर से ही उसके जुबना दबाते बोला,..."मुझे मालूम है की मेरी बहन बड़ी हो गयी है ,... लेकिन अभी देख मैं इसे कित्ता और बड़ा करता हूँ , दबा दबा के,... पर सुन ,... अभी मुझे बाजार जाना है ,... तीन चार घंटे में लौटूंगा , वहां एक डाक्टर की दूकान है मेरी जान पहचान के वहां से गोली ,... "
अब एक फिर गीता खिलखिलाते हुए बोली,...
" ठीक है ठीक है , ले आना मुझे भी मालूम है उन गोलियों के बारे में , इस्तेमाल के बाद ले लो , २४ घंटे तक,... या फिर रोज वाली,... मेरे क्लास की आधी से ज्यादा लड़कियां लेती हैं ,कुछ तो बस्ते में भी रखती हैं ,... ले आना लेकिन गिरेगा अंदर ही औरवो रबड़,… रबड़ वो तो एकदम नहीं "
लेकिन कौन लड़का ऐसा मौका छोड़ देता है, वो गीता को पकड़ के अपनी गोद में दबोचता बोला,
" सुन बहना, तू ही कह रही है की पांच छह दिन तक तो कोई खतरा नहीं है , तो एक बार और हो जाये,... "
गीता ना नुकुर करती रही, घर का काम पडा है , खाना बनाना है , थोड़ी देर में ग्वालिन भौजी फिर आ जाएंगी,... लेकिन मन तो उसका भी कर रहा था , एक बार दिन दहाड़े भी ,
और दिन दहाड़े अरविन्द ने अपनी बहन चोद दी, वहीँ बरामदे में पड़ी बसखटिया पे लिटा के, ...
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उसकी दोनों टांगों को ऊपर किया और कुछ तकिया लगा के चूतड़ों को खूब ऊपर,... फिर खुद खड़े खड़े अपना लंड बहिन की बुर पे सटा के कस के धक्का मार दिया, रात भर की मलाई का असर , अबकी बिना तेल के भी आराम से तो नहीं लेकिन रगड़ता दरेरता अंदर घुस गया ,
बस सुपाड़ा घुसने की देर थी उसके बाद भले बहन लाख चूतड़ पटके गाली दे , कौन भाई बिन चोदे छोड़ता है तो अरविन्द ने भी नहीं छोड़ा ,
और गीता ने भी अपनी समीज सरका के ऊपर कर ली , जिससे उसके दोनों जोबन खुल गए
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और भाई ने एक हाथ बहन के चूतड़ पे और दूसरा बहन की चूँची पे,... दिन की रौशनी में दोनों एक दूसरे को देख रहे थे, मजे ले रहे थे,...
जल्दी अरविन्द को भी थी बहुत काम था उसे लेकिन बिना रुके हर धक्का पूरी ताकत से मारने के बाद भी ,
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१५-२० मिनट उसे लगा और गीता उस बीच दो बार झड़ गयी। हाँ जब भाई ने मलाई छोड़ी तो इस बार फिर बहन ने चूत को भींच के एक एक बूँद अंदर रोप ली और देर तक भींचे रही। उसके जाने के बाद किसी तरह पहले वो पलंग का फिर दीवाल का सहारा लेकर दरवाजे तक आयी दरवाजा बंद किया , फिर वापस किचेन में।
रोज माँ का हाथ तो वो रसोई में बटाती थी पर आज पहली बार अकेले इस तरह,.. और बार बार वो दरवाजे की ओर भी देखती भैया कब आएगा।
वाह ... दाल भरी पूड़ी और सब्जी...बारिश में भैया प्यारा लगे,
तीन घंटे बाद, गीता बार बार आसमान की ओर देख रही थी। बादल एक बार फिर अच्छी तरह घिर आये थे , लग रहा था पानी अब बरसेगा तो दो तीन दिन रुकेगा नहीं,... और भैया अभी तक,... उसने भैया की पंसद की दालभरी पूड़ी , सब्जी और बखीर बनायी थी ,
खुद रगड़ के नहा के आज साड़ी चोली पहनी थी, हाँ चोली के नीचे कुछ नहीं , होंठलाली खूब जबरदस्त, नेलापलिश भी,.... और दर्जन भर चूड़ियां दोनों हाथों में ,... लेकिन जिसके लिए सब सिंगार वो अभी भी बाहर,... और बारिश कभी भी हो सकती थी,...
……………………
और बादल जैसे फट गए , मूसलाधार बारिश,... पट पट , सिक्के के बराबर बूँदें आंगन में पड़ रही थीं, कच्चा आंगन , बड़ा सा नीम का पेड़ , जिस पर जिद करके भैया से उसने झूला टंगवाया था,...
और तभी फट फट की आवाज हुयी, भैया की फटफटिया ,
ख़ुशी से भाग कर उसने दरवाजा खोला,.. अच्छी तरह भीगा पानी कपड़ों से चू रहा था,
उसका भाई अरविन्द एकदम अच्छी तरह भीग गया था, सारे कपडे उसकी देह से चिपके, एकदम गीला, भीगी बिल्ली, ...नहीं नहीं बिल्ला
और उसे देख के एक बार वो फिर गीली हो रही थी थी, अरविन्द को इस हालत में देख के उसकी चूत रानी फुदकने लगी थीं, रात में चार बार चुदवा के , और एक बार सुबह सुबह भी भाई अरविंद का लंड खा के गीता का मन नहीं भरा था,
किस बहन का मन भाई के लंड से भरता है, बस यही मन करता है , और , ...और
पहले इतनी परेशान अब मारे हंसी के,... उसकी हालत खराब, दरवाजा बाद में बंद किया , पहले भइया को पकड़ के खूब कस के वो चिपट गयी।
" हे चल पहले अपनी दवा खा " ... अरविन्द अपनी छुटकी बहिनिया गीता से बोला,
भीगे कपड़ों के बीच प्लास्टिक में लिपटी उसने दवा निकाली ,
माना उसकी बहन के पीरियड्स अभी ख़तम हुए थे , सेफ पिरीअड था लेकिन फिर भी और वो पूरे महीने की दवा ले आया था, जिससे अरविन्द अपनी बहिनिया को जब चाहे, जितना चाहे चोदे,..घर का माल , कौन उसे खेत खेताडी में जगह ढूंढनी है , गन्ने का खेत या बँसवाड़ी,.. माँ भी नहीं है, अब तो जब मन किया पटक के चोद देगा,...
इस्तेमाल के बाद वाली भी और रोज खाने वाली भी,...
गीता झट से इस्तेमाल के बाद वाली गटक गयी,..
और फिर भैया के कपडे उतारने पर जुट गयी,... हे बनिआन भी निकाल , अंदर तक गीले हो गए हो , और पैंट भी ,... सिर्फ चड्ढी बची थी ,...और गीता को देख के चड्ढी में खूंटा अपने आप तन गया था
अब भाई गीता की बदमाशी समझ गया था ,
उसे खींच के वो आंगन में ले गया,
चल तू भी थोड़ी सी भीज , बहुत चिढ़ा रही है न मुझे , अच्छा चल तेरी साडी उतार देता हूँ , ..
अब वो पेटीकोट और चोली में ,...
और भाई सिर्फ चड्ढी में दोनों बारिश का मजा ले रहे थे जैसे छोटे बच्चे , ...
देह से एकदम चिपके कपडे, भाई बहन की चोली में से झांकते जोबन देखके ललचा रहा था , चोली भी आलमोस्ट ट्रांसपेरेंट हो गयी थी पानी में भीग के , ब्रा तो उसने पहना नहीं था और निपल और जुबना से चोली एकदम चिपकी ,
और भइया से नहीं रहा गया , तो पहले तो हलके से ऊपर से मसलता रहा , फिर एक झटके में चोली खींच के बरसते पानी में जमीन पर फेंक दिया , और उससे हँसते हुए पूछा,
हे झूला झुलेगी,...
लेकिन बहन को पहले तो भाई से बदला लेना चोली उतारने का और भैया की देह पे बस एक जांघिया थी , उसकी जाँघों से चिपकी और मोटू सर उठाये बौरा रहा था ,
बस एक झटका और बहन ने जांघिया खींच के जहाँ उसकी चोली भैया ने फेंकी थी ठीक वहीँ, और भाई का खड़ा मोटा मूसल , बित्ते से भी बड़ा उसके सामने,...लेकिन अब वो डरती नहीं थी , पांच बार तो कल से घोंट चुकी थी , एक बार आधा तिहा लेकिन उसके बाद हर बार अपनी कसम खिला के पूरा का पूरा
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और हँस के झूले की ओर बढ़ती बोली,
" एकदम भैया बहुत दिन से तूने मुझे झूला नहीं झुलाया खाली गाँव भर की भाभियों के साथ झूलते हो, पेंग मार मार के "
" अरे तो चल आज तुझे भी झुलाता हूँ , ... "
और गीता के पहुंचने से पहले वो झूले पे बैठ गया था और एक झटके में खींच के अपनी गोद में, पर उसके पहले भैया ने उसके पेटीकोट का नाड़ा खींच दिया और सरकता हुआ, सरसराता ,वो बरसते आंगन में कच्ची गीली मिटटी पर, दोनों टांगों से सरक कर, और बहन भाई एक जैसे , ...
भाई का खूंटा खड़ा बहन की बिल बारिश में भीगे आंगन से भी ज्यादा गीली,
और भाई ने बहना की दोनों टाँगे फैलायीं , अपनी टांगों से , खींच के उसे झूले पर अपनी गोद में,... और गच्च से खूंटा बिल में धंस गया।
पूरा नहीं, थोड़ा सा , और पेंग मार मार के भाई ने बहना को झूला झुलाना शुरू कर दिया , बारिश मूसलाधार हो रही थी, लग रहा था आज दिन रात नहीं रुकेगी,... झूले की रफ्तार बढ़ती गयी , खूंटा अंदर धंसता गया। और अब बहना भी पेंग मार रही थी,...गीता को बड़ा मज़ा आ रहा था,अपने अरविन्द भैया के लम्बे मोटे खड़े लंड पे इस तरह से बैठने का, गपागप गपागप, गीता अपने भैया का लंड बरसते पानी में घोंट रही थी, दिन दहाड़े अपने ही घर के आंगन में झूले पे बैठी
लेकिन थोड़ी देर बाद ही भाई ने झूले को रोका और पोजीशन थोड़ी सी बदली, बहुत ताकत थी उसके खूंटे में भी और हाथों में , ..
. एक झटके में गुड़िया की तरह बहन को खूंटे पर से उठाया , और अब बहन का मुंह भाई की तरफ,...
वो भी अब समझदार हो गयी थी , खुद उसने अपनी टाँगे फैला दी , जितना हो सकता था उससे भी ज्यादा, मुंह उसका अब भाई की ओर था , ..और सर सर सरकते हए , भाई का खूंटा अंदर,...
चूत ने खुद मुंह फैला दिया था लंड घोंटने के लिए
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उसके सगे भाई का मस्त मोटा लंड था , बहन नहीं घोंटेंगी तो कौन घोंटेंगा,...
अब दोनों पेंग मार रहे थे , झूला झूल रहे थे दोनों के हाथ तो झूले की रस्सी को कस के पकडे तो गीता खुद ही अपने उभार भाई के सीने पे रगड़ रही थी,
पर आज भैया से ज्यादा गीता मस्ती कर रही थी ,खूब चुहुल।
बचपन से ही भैया को छेड़ने में उसे मज़ा आता था और आज फिर वही,...
उसे वो चिढ़ा रही थी , कभी चूम लेती कभी होनी छोटी छोटी बस आ रही चूँचियाँ बार बार भैया के सीने पे रगड़ देती, टाँगे उसकी खुली खूंटा अंदर धंसा, लेकिन जा भैया पेंग मारता कस के तो उसी ताकत से खूंटा बिल में धंस जाता , पर जब बहना का नंबर आता तो पेंग मारते हुए वो बाहर की ओर अपनी कमर कर लेती , और खूंटा थोड़ा बाहर हो जाता,...
१०-१५ मिनट तक झूले पे मस्ती , गीता की छेड़छाड़ चलती रही, पर अब भाई बहन की हचक हचक कर , पटक पटक कर चुदाई करना चाहता था , जित्त वो छेड़ रही थी उसकी आग उतनी ही भड़क रही थी,
झूले में पहली बार किसी को अरविन्द अपनी गोद में बिठा के चोद रहा था, लेकिन उसका मन ललचा रहा था कच्चे आंगन में लिटा के बरसते पानी में रगड़ रगड़ के इस कच्ची कली को, अपनी छुटकी बहिनिया को चोदने का,... वो बड़ी चुदवासी हो रही थी न बहन उसकी तो आज उसे पता चल जाए की उसका भैया भी कितना बड़ा चुदककड़ है,
फिर अपने ही आंगन में , वो भी दिन में अपनी सगी बहिनिया को चोदने का मजा ही अलग है लेकिन ऐसी मस्त बहिनिया को उसका भाई नहीं चोदेगा तो कौन चोदेगा,
यही बात अरविन्द भी सोच रहा था और गीता भी
घनघोर बारिश...ऊपर चढ़ा भैया, लुटे मजा सावन का,
बहिन के जोबन का
और उसे लिए दिए आंगन में ही सीधे नीम के पेड़ के नीचे, कच्चा आंगन, मिट्टी खूब गीली हो गयी थी, पानी अभी भी बरस रहा था, पेड़ों के पत्तों से छन छन कर पानी की धार गिर रही थी , और वहीं मिट्टी पर गीता को लिटाकर उसने जबरदस्त चुदाई शुरू कर दी,
एकदम कसी कच्ची टाइट चूत, अभी कल रात को ही तो अरविन्द ने अपनी बहिनिया की कोरी चूत फाड़ी थी, पर वो जानता था की वो कित्ता भो चोदेगा उसे, बहिन की चूत उसकी ऐसी ही टाइट रहेगी, ये सोच के वो और गिनगीना गया और अरविन्द ने अपने बहन के जस्ट आते, अभी बस २८ नंबर वाले जोबन पकड़ के वो करारा धक्का मारा की उसकी बहनिया चीख उठी, पर ऐसे तेज बरसते पानी में चुदाई की चीख कौन सुनता है और इस समय तो हर घर में यही चल रहा होगा,
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दोनों हाथों से कस के उसने चूड़ी भरी बहन की कलाई पकड़ रखी थी और कमर के पूरे जोर से धक्के पर धक्का , और थोड़ी देर में बहन भी मस्ता के हर धक्के का जवाब धक्के से दे रही थी /
और अपने ऊपर चढ़े भैया को चिढ़ा रही थी, छेड़ रही थी, उकसा रही थी.
पर वो भी कम शातिर नहीं था , घाट घाट का पानी पीया, और बस उसने चुदाई रोक दी, लंड आलमोस्ट बाहर।अब अरविन्द अपनी बहिनिया को तड़पाना चाहता था, वो जानता था लंड के धक्के खा खा के, अब उसकी चूत अपने भैया के लंड के लिए पागल हो रही होगी, और यही समय है उसकी बची खुची शरम लाज की आखिरी दीवार को भी तोड़ देने का, जिससे उसकी बहन गीता खुद अपने भाई अरविन्द का लंड खाने के लिए अपने आप अपनी चूत खोल के उसके लंड पे बैठ जाए, ...
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कुछ देर तक गीता ने इंतजार किया की भैया अब धक्के मारना शुरू करे , अब करे , बहुत जोर से उसकी कुँवारी चूत में खुजली मची हुयी थी। जब नहीं रहा गया तो वो बोल पड़ी,
" भैया करो न , रुक क्यों गए "
" क्या करूँ मेरी मीठी मीठी गुड़िया " उसके गाल चूम के बड़े प्यार से भैया ने पूछा।
सिर्फ सुपाड़ा अंदर धंसा था, बाकी का ७ इंच से ज्यादा मूसल बाहर , जोर जोर से चींटे काट रहे थे बहन के बिल ने बस अब कुछ भी हो जाए , उसे घोंटना था, पूरा लेना था , ...
गीता भी समझ गयी , भैया उसके मुंह से क्या सुनना चाहते हैं , बचपन से ही कामवाली , शादी ब्याह में माँ बूआ और भाभियाँ तो उसका नाम ले ले के,...
पर अपने मुंह से भाई के सामने बोलने में हिचक रही थी, पर मन भी कर रहा था, भैया करे , वो बस झड़ने के कगार पे थी , जब उसने ब्रेक लगा दिया,... उसका बहुत मन कर रहा था पर बोलने की भी,...
वो अरविन्द से बोली,...
" वही जो अभी तक कर रहे थे , रुक क्यों गए, करो न , भैया प्लीज मेरे अच्छे भैया। "
वो बोली और उसे अपनी ओर खींच लिया। पर भाई हिला नहीं , वो जानता था उसकी बहिनिया कितनी गरमाई है , एकदम झड़ने के कगार पे और अभी उसके मुंह से अगर उसने कहलवा लिया न तो फिर हर बार,..और चुदाई का मज़ा ही , एक दूसरे को छेड़ के चुदाई की बातें कर कर के चोदने का है,... बोला
" नहीं तुम बोलो न साफ़ साफ़ , मैं क्या कर रहा था अब तक , मेरी अच्छी बहना बोल न , भाई से क्या शर्माना। "
" तुम भी न, अच्छा चल तू बोल दे " वो ठुनक कर बोली।
अब भइया को लग गया था बस थोड़ा सा धक्का और ,... और उसने कान में बुदबुदाया ,...
और बोला , चल अब बोल।
बड़ी मुश्किल से गीता के बोल फूटे,... " चु,... चु,..चुदाई" बहुत धीमे से बोली,...
अरे जरा जोर से बोल न मैंने नहीं सुना,.. उसने चढ़ाया और फिर , नहीं नहीं पांच बार ,...
और जब तक उसकी किशोरी कच्ची कली बहना ने खूब जोर से पांच बार चुदाई चुदाई ,चुदाई चुदाई ,चुदाई नहीं बोली,...
और फिर उसने बस एक हल्का सा धक्का और फिर रोक के बोला ,...
" अच्छा मैं अपनी बहना की क्या चोद रहा हूँ बस ये बोल दे ,... "
" तू अपनी बहन की ,... तू अपनी बहन की चूत चोद रहा है " बहन बोली ,.
" नहीं पूरा बोल, बस एक बार उसके बाद तो तेरी दिन भर रात , बोल न "
अब तक गीता भी गरम हो गयी थी , मुस्करा के अपने चूतड़ कस के उठाती बोली,...
" चोद बहनचोद, मेरे बहनचोद भाई , चोद अपनी बहन की चूत हचक के दिखा दे तू कित्ता बहनचोद है "
![]()
" चोद बहनचोद, मेरे बहनचोद भाई , चोद अपनी बहन की चूत हचक के दिखा दे तू कित्ता बहनचोद है "" हे देगी "
अब तक गीता भी गरम हो गयी थी , मुस्करा के अपने चूतड़ कस के उठाती बोली,...
" चोद बहनचोद, मेरे बहनचोद भाई , चोद अपनी बहन की चूत हचक के दिखा दे तू कित्ता बहनचोद है "
बस इतना काफी था,... और उसके भाई ने बहन को दोनों चूँचियों को कस के पकड़ा, और जोर जोर से दबाते मसलते , पहले तो पूरा का पूरा ८ इंच बाहर निकाला और पूरी ताकत लगा के , एक धक्के में ही सुपाड़े ने बहन की बच्चेदानी पे वो जबरदस्त चोट मारी की गीता झड़ने लगी ,
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ऊपर से बादल झड़ रहे थे नीचे से बहन, ... काँप रही थी , हिल रही थी और भाई का मूसल जड़ तक धंसा , वो चुपचाप उसके ऊपर लेटा,... लेकिन उसके हाथ आज जैसे बदला ले रहे हों , बहन के इन उभारों ने जिसे देखे ही न जाने कितने दिनों से उसकी पैंट टाइट हो जाती थी, आज उसके हाथों में थे। खूब कस के रगड़ रहा था मसल रहा था,....
और धक्के एक बार फिर चालू हो गए जैसे बहन का झड़ना रुका और अब वो शुरू से ही चौथे गियर में और उकसा के जो बहन के मुंह से सुनना चाहता था , अब वो खुल के बोल रही थी,...
" चोद, बहनचोद चोद , चोद अपनी एकलौती सगी छोटी बहन की चूत, फाड़ दे ,... बहुत अच्छा लग रहा है , चोद, चोद ,... "
और साथ में बूंदो का संगीत, उन दोनों की देह पर सावन की बरसती रिमझिम की धुन, तेज हवा में सर हिलाते झूमते साथ में जैसे ताल देते आंगन का पुराना नीम का पेड़
, जिसके नीचे कितनी बार दोनों भाई बहन खेलते थे, गीता अपनी गुड़िया की शादी की तैयारी रच रच के करती थी और उसका भाई उसे बिगाड़ने पे तुला रहता था,...
उसके नीचे दबी आंगन के कीचड़ में लथपथ, ...दो दो बार झड़ने के बाद , एकदम चुद चुद के थेथर होने पर भी,
अपने भाई के हर धक्के की ताल पर नीचे से चूतड़ उछालती, उसे बाहों में कस कस के भींच के कभी चीखती कभी सिसकती तो कभी अपने दांतों से भाई के कंधो काटती, नाखूनों से उसके पीठ को नोचती
अगर, भाई के धक्के एक पल के लिए भी धीमे होते या जान बूझ के वो रोकता,...
अब रिश्तों में हसीन बदलाव एकदम पूरा था अब सिर्फ एक रिश्ता था , दुनिया का सबसे मीठा ,
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कभी खुद सर उठा के अपने ऊपर चढ़े भाई के होंठों को चूम लेती, चूस लेती , भाई के चेहरे को भिगो कर, भाई के देह से रस से भीगी बारिश की बूंदों को होंठो की अंजुली बना, चुल्लू चुल्लू पी लेती,
कितनी प्यासी थी वो, पर अब उसके भाई के देह की हर बूँद अब सीधे उसके भीतर उसकी देह में समाएगी, जैसे भाई के ऊपर हो रही सावन की बारिश,... की हर बूँद छलक के उसकी देह पर पड़ रही थीं,... और वो अपनी बांह पाश में बांधे भाई को और कस कस के अपनी ओर, अपने अंदर खींच रही थी, अपने अंदर घुसे भाई को अपनी योनि भींच भींच के बता रही थी अब नहीं छोड़ने वाली वो उसे,...
सावन अब तक कितनी बार बरसा था, कितनी बार माँ के मना करने पर भी भीगी थी वो,
पर आज सावन की बात ही और थी, देह पर बरसता सावन और देह के अंदर बरसता भाई का,...
गीता की देह के हर अंग भाई से हजार हजार बातें बिन बोले कर रहे थे, अब तक की तपन, प्यास, चढ़ती जवानी की चुभन, अगन
और उस की हर बात का जवाब आज उस केभाई अरविन्द के धक्के दे रहे थे , जैसे इस बरसते पानी में गीली मिट्टी और कीचड़ में बहन की चूत वो फाड़ के रख देगा।
औरअरविन्द ने साथ में कचकचा के उसके निप्स काटे और बोला, सुन आज के बाद से से अगर तूने मेरे सामने चूत, बुर लंड गाँड़ चुदाई के अलावा कुछ बोला न ,... "
नहीं बोलूंगी , भैया , बस तो ऐसे ही चोदता रह , ओह्ह भैया कित्ता अच्छा लग रहा है ,... "
उसने माना और थोड़ी देर बाद बरसते पानी में वो दोनों बरस रहे थे,...
और झड़ने के बाद भी एक दूसरे की बाँहों में गीली मिट्टी पे बहुत देर तक पड़े रहे,... और उठने के बाद दोनों ने बारिश की पानी से ही एक दूसरे को साफ़ किया ,...
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वो तो और देर तक भीगती रहती बारिश में इत्ता अच्छा लग रहा था, बिना कपड़ों के साथ साथ इस तरह भीगना,
पर भाई ने खींच के उसे बरामदे में किया, और तौलिये से उसे साफ़ किया रगड़ रगड़ के ( बदमाश, ... जो कटोरी भर मलाई उसकी ताल तलैया में छोड़ा था, और रिस रिस के उसकी गोरी मांसल जाँघों पे बूँद बूँद बह रहा था, उसे भैया ने वैसे ही छोड़ दिया ),
बारिश बंद हो गयी थी, बस छज्जों से, आँगन के नीम के पेड़ की डालियों, पत्तों से, पुनगियों से अभी भी बची हुयी बूंदे रह रह के टप टप गिर रही थीं,...
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मुंडेर के पास एक गौरइया, आंगन में झाँक रहे पीपल की के पत्ते की छतरी बना अभी भी बैठी थी,....
" हे चल भूख बहुत लगी है, खाना निकाल , अभी बारिश बंद है, थोड़ी देर जा के खेत का बाग़ बगीचे का हाल देख लूँ, अगर ग्वालिन भौजी आएँगी तो गाय गोरु का भी,... "
और वह तैयार होने अपने कमरे में, गीता भी अपने कमरे में, कपडे पहनते ही जो लाज अभी आँगन में बह कर कीचड़ माटी के साथ धुल गयी थी, थोड़ी थोड़ी वापस आ गयी,... और फिर वो रसोई में, ... सच में भैया को निकलने की जल्दी होगी,...
कल तो गीता ने गुड़ वाली बखीर बना के पूए के साथ भैया को खिलाया था, लेकन उसे मालूम था की भैया को दाल भरी पूड़ी बहुत पसंद है , तो उसने दाल भरी पूड़ी के साथ चावल की खीर, आलू की रसे की सब्जी, चटनी, सब कुछ भैया की पसंद का ही बनाया था।
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और फिर भैया की पसंद का जो खाना बनाया था , उसकी गोद में बैठ के कभी बहन ने अपने कभी होंठों से बहुत प्यार से भैया को खिलाया,... बारिश रुकी हुयी थी लेकिन बादल अभी भी घिरे थे और आज रात फिर जम के बरसने के आसार थे ...
और भाई एक बार फिर बाहर खेती किसानी की हाल चाल लेने और बहन रसोई में ,...
जल्दी जल्दी बर्तन वर्त्तन साफ़ करके रसोई समेट के रात के खाने का इंतजाम भी भैया के आने के पहले कर लेना चाहती थी, रसोइ में वो लगी थी पर मन में बस एक बार उमड़ घुमड़ रही थी,
माँ एक दो दिन और न आये,... वैसे भी मामा के यहाँ से वो देर रात को ही आती थी और अगर एक बार पानी बरसना शुरू हो गया तो,... अक्सर तो उन के गाँव की बस भी एक दो दिन बंद हो जाती थी तेज बारिश में कहीं कच्ची सड़क कट गयी, ... बस एक दो दिन और भैया के साथ , कम से कम आज रात को,... लेकिन उसके चाहने से क्या होता है , अगर कहीं माँ न आये तो,... पर तू तो अपना काम जल्दी समेट, तेरा भाई आ गया न तो उसे एक ही काम सूझता है , उसने अपने मन से बोला,
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घंटे दो घंटे बाद जब, अरविन्द उसका भाई खेत का काम धाम देख के लौटा तो लौटा तो बहन ,.
.क्या सेक्सी माल लग रही थी,...
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उसे मालूम था की उसके भैया को क्या पसंद है ,
लड़के भले ने समझे, सोचें वो चोरी चुपके अपने माल को ताड़ रहे हैं, लेकिन लड़कियाँ बिना उनकी ओर देखे , नजर का खेल समझ लेती हैं, ...और साल भर से वो देख रही थी,... उसके स्कूल के टॉप से झांकते छलकते उसके उभार,...
और अभी उसने जान बूझ के दो साल पहले की स्कूल ड्रेस की सफेद टॉप,... कब से उसने नहीं पहनी थी,... उस समय तो बस उभार आने ही ही शुरू हुए थे, ब्रा भी नहीं पहनती थी,.. बड़ी मुश्किल से उसके अंदर घुसी,...
बिना ब्रा के भी उन कबूतरों को बंद करना मुश्किल था , और उसे ऊपर की दो बटने भी खोलनी पड़ीं, गोरी गोरी गोलाइयों का उभार , गहराई सब एकदम साफ़ साफ़ दिख रही थी,...
और स्कर्ट भी उसी के साथ की,... तब से वो लम्बी भी हो गयी थी , गदरा भी गयी थी,... स्कर्ट घुटनों से बहुत ऊपर ख़तम हो जाती थी और उसकी गुलाबो से बस बित्ते भर नीचे, हाँ घेर बहुत था,...
भैया जब घर आया, बारिश तो कब की बंद हो चुकी थी , लेकिन बादल उसी तरह घिरे,...
शाम होने थी,काले काले बादलों में हों रही शाम की सिंदूरी आभा बस जब तब झलक उठती थी , जैसे खूब गहने श्यामल बालों के बीच नयी दुल्हन की मांग,...
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वो आते ही मूड में था और गीता को देख के उसका अपने आप टन्नाने लगा,...
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उसकी निगाहें बहन के छोटे छोटे जुबना पे,.. वो हिरणी मुस्करा रही थी और उसकी चिढ़ाती निगाहें , भैया के खड़े प्यासे खूंटे पे एकदम बेशर्मी से चिपकी,...
भाई बहन में क्या शरम , बचपन में डाक्टर नर्स खेलते , कित्ती बार एक दूसरे का देखा भी है , छुआ भी है , पकड़ा भी है ,...
" हे देगी " ... भाई ने छेड़ा,...
" क्या भैया,... " अपने उभारों को हलके से उभारते, निगाहों से चिढ़ाते, उकसाते , बहुत भोलेपन से उसने पूछा
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अरे दोनों .. बल्कि तीनों बहनें एक से बढ़ कर एक हैं...
ये जुड़वा लग रही हैं...