• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Adultery जब तक है जान

S M H R

Active Member
760
1,714
138
#32

सामने जो देखा तो तमाम नजाकत की बातो पर हकीकत का ऐसा तमाचा पड़ा की लेने-देने की तमाम बताए झट से गायब हो गयी, जो चाँद खूबसूरत बड़ा लग रहा था उसी चाँद की रौशनी अब जैसे काटने को लगी थी, सामने पिताजी के उस आदमी राजू की लाश पड़ी थी जिसने मुझे कोड़े मारे थे .सच कहूँ तो मेरी गांड फट गयी थी वो नजारा देख कर , बड़ी बेदर्दी से मारा गया था उसे, उसकी पीठ की खाल उधेडी हुई थी .बदन पर जहाँ तहां चाक़ू के वार थे .

“नहीं होना था ये ” मैंने कहा

पिस्ता कांपती रही डर के मारे .

मैंने उसका हाथ पकड़ा और जितनी तेजी से दौड़ सकते थे दौड़ लिए .

“चाहे कुछ भी हो जाये पिस्ता, किसी को भी ये मालूम नहीं होना चाहिए की हम लोग इसकी लाश के पास थे वर्ना पंगा बहुत बड़ा हो जायेगा और देने के लिए कोई जवाब नहीं रहेगा.समझ रही है न मेरी बात ” मैंने उसे कहा

पिस्ता-पर मारा किसने

मैं- जिसने भी मारा अपना कोई लेना देना नहीं है चाहे कुछ भी हो. अपना दूर रहना है इस सब से

पिस्ता- पर अपन ने तो कुछ किया ही नहीं

मैं- चुतियो की सरदार,पंचायत में चीख चीख कर तू ही कह रही थी ना की राजू की खाल उतार लुंगी

पिस्ता- अरे वो तो मौके की नजाकत ......

मैं- माँ चुदा गयी नजाकत लोडे लगने वाले है , जैसे ही गाँव में मालूम होगा सब यही सोचेंगे की हो न हो बदले की कार्यवाही हुई है .

पिस्ता ने अपना माथा पीट लिया

“आगे से सोच समझ कर ही बोलूंगी मैं तो ” उसने कहा
मैं- पानी पी थोडा और सो जा , सुबह कोई भी पूछे तो यही कहना है की घर पे ही थी.

उसे समझा कर मैं आगे तो बढ़ गया पर मेरे पैर कांप रहे थे ,कोई तो था जो इस खेल में अपनी रोटी सेंक रहा था . पर क्या मकसद था उसका अपना था पराया था कौन था कौन जाने. पर जो भी था उसे जानने की कोशिश करनी बहुत जरुरी थी , बाप की फैक्ट्री पर हमला होना, उसके आदमियों पर मारामारी और अब ये हत्या . दिल तो किया की बाप की मुसीबते बाप को ही सुलझाने दी जाये पर फिर वो बात याद आई की वो खून खून ही क्या जिसमे उबाल ना हो.

आँख खुली तो मैंने खुद को चौपाल के चबूतरे पर सोये हुए पाया. हाथ मुह धोकर मैं सीधा अपने घर गया . पिताजी सोये हुए थे पर मैंने उन्हें उठाया

“कल रात राजू की हत्या कर दी किसी ने ” मैंने बताया उनको .

“मेरा आदमी था मैं देखूंगा इस मामले को , तेरा काम नहीं है इन सब में पड़ना आराम कर ” पिताजी ने कहा

मैं- कौन है वो दुश्मन

पिताजी ने गहरी नजरो से मुझे देखा और बोले- तुझे फ़िक्र करने की जरुरत नहीं अभी मैं जिन्दा हु

पिताजी ने कुरता पहना और जीप लेकर बाहर चले गए.

“तो नवाब साहब घर लौट आये , मिट गयी अकड़ दो दिन में ही होश आ गए ठिकाने , इस घर बिना कोई नहीं तुम्हे पूछने वाला समझ आ गयी हो तो नाश्ता कर लो ” माँ ने मुझे देख कर कहा

मैं कुछ नहीं बोला . माँ ने मुझे खाने की थाली दी

“वैसे तो औलाद बड़ी हो जाये तो माँ का उसे कुछ कहना उचित नहीं और ये जानते हुए भी की तुझे माननी नहीं मेरी बात फिर भी कहती हु की उस छोरी से दूर रह. तेरे लिए भी ठीक रहेगी और इस घर के लिए भी ” माँ ने कहा

मैं- रोटी खा लेने दो न, उसका जिक्र कहा से आया अब
माँ- उसका जिक्र तो अब रोज ही होगा. हमारा लड़का जिसकी जुबान नहीं खुलती थी गाँव में आशिकी करते घूमेगा तो जिक्र होगा ही न, बाप दुनिया को सलीका सिखाते फिर रहा बेटा क्रांति का झंडा उठा लिया. बीच में माँ आ गयी . आदमी की न सुने तो परेशानी औलाद का पक्ष न ले तो आदमी के ताने सुने .

मैं- माँ , अपनी औलाद पर तुझे भरोसा नहीं क्या, तेरी परवरिश हूँ मैं , तू ही बता तेरी परवरिश क्या इतनी कमजोर है जो कुछ भी गलत करेगी.

माँ- इसीलिए तो कहती हूँ उस छोरी का साथ छोड़ दे .

परवरिश तो कमजोर ही रही की मालूम ही न हुआ कब तू उसके चक्कर में आ गया.

मैं- माँ, मेरा उस से कुछ भी ऐसा वैसा रिश्ता नहीं है जिससे की कोई भी शर्मिंदा हो , पिस्ता बस दोस्त है मेरी .

माँ- गाँव में ऐसी दोस्ती नहीं होती , ऐसी दोस्ती को बस बदनामी मिलती है .

मैं- तो बदनामी ही सही माँ .

माँ- तरस आता है मुझे

मैं- तरस ही सही

माँ- तुझ पर नहीं अपने आप पर तरस आता है मुझे, आज तू मेरी बात नहीं समझेगा पर एक दिन आएगा जब तुझे ये दिन जरुर याद आएगा की तेरी माँ को कितनी परवाह थी तेरी, खैर तेरी अगर यही इच्छा है तो मैं आज के बाद तुझे कभी नहीं टोकुंगी पर तू इतना जरुर करना की हमेशा आँखों से आँखे मिला सके.


मेरे पास कहने को कुछ नहीं था , घर से निकल गया और जंगल में पहुँच गया . आजकल घर से जायदा घर तो ये जंगल लगने लगा था . भटकते भटकते मैं जोगन की झोपडी तक पहुँच गया मालूम हुआ की वो लौट आई है.

“कब आई तुम ” मैंने उस से कहा

जोगन- बसकुछ देर पहले ही ,आजा अन्दर बैठते है

मेरे अन्दर आते ही उसने झोले से कुछ मिठाई निकाली और मुझे दी.

मैं- ये बढ़िया किया , भूख भी लगी है

वो- खाले, तेरे लिए ही है ये सब

मैं- तू भी खाले,

जोगन- मुझे भूख नहीं थोड़ी थकान है आराम करुँगी
उसने चादर ओढ़ी और बिस्तर में घुस गयी मैं मिठाई का आनंद लेता रहा. बाहर देखा रुत मस्ताने को बेताब भी मैंने भी एक गुदड़ी निचे बिछाई और आँखों को मूँद लिया. जागा तो बदन में बहुत दर्द हो रहा था . चीस मार रही थी , बाहर अँधेरा हुआ पड़ा था मतलब की बहुत सोया था मैं .बाहर आकर देखा जोगन चूल्हे पर रोटी सेक रही थी .

मैं- उठाया क्यों नहीं मुझे

वो- गहरी नींद में थे तुम

मैं- फिर भी, कितनी रात हुई मुझे चले जाना था
जोगन- रात का क्या गिनना, कितनी गयी कितनी बाकी . खाना खाकर ही जाना अब तेरे हिस्से की रोटी भी बना ली है .

जलते चूल्हे के पास बैठ कर मैंने खाना खाया , जोगन के हाथ में कोई तो बात थी . एक रोटी फ़ालतू खा ली मैंने.

“कुछ परेशान सा लगता है ” उसने कहा

मैं- पीठ में दर्द हो रहा है

वो- देखू जरा

उसने मेरी पीठ देखी और बोली- पूरी शर्ट खून से भीगी हुई है तेरी तो क्या हुआ है ये

उसने मेरी पीठ देखी और बोली- किसने किया ये

मैं- जाने दे, कहानी ऐसी है की तू सुन नहीं पायेगी और मैं बता नहीं पाऊंगा.

“फिर भी गलत किया चाहे जो भी कारन रहा हो.तू रुक मैं आभी आती हु ” उसने कहा और जंगल की तरफ दौड़ पड़ी .
मैं आवाज देता रह गया. कुछ देर बाद वो हाथ में कुछ जड़ी लेकर आई

“इसके लेप से तुझे आराम मिलेगा ” उसने लेप मेरी पीठ पर लगाया . राहत सी मिली

जोगन- शहर में किसी बड़े डाक्टर को दिखा ले इसे, जख्म जल्दी ठीक नहीं होने वाले.

मैं- वैध से पट्ठी करवाई थी

जोगन- कहा न शहर जा

मैं- नाराज क्यों होती है , चला जाऊँगा. वैसे तू बता इतने दिन कहाँ गयी थी

जोगन- बताया तो था कुछ काम से बाहर थी

मैं- वही तो पूछ रहा हु बाहर कहा

जोगन- अगली बार जाउंगी तो तुझे साथ ले जाउंगी . चलेगा न

मैं- अरे ये भी कोई कहने की बात है

वो मुस्कुरा दी . मैं वहां से चल दिया. गुनगुनाते हुए मैं मस्ती में अपने रस्ते बढे जा रहा था .हालाँकि मुझे अँधेरे में थोडा डर भी लग रहा था पर मैं गाँव में पहुँच ही गया , आँगन में जीप खड़ी थी मतलब पिताजी घर पर ही थे , दबे पाँव मैं चोबारे के दरवाजे पर पहुंचा और जैसे ही मैंने दरवाजे को खोला..............................
Nice update
 

parkas

Well-Known Member
28,096
62,204
303
#32

सामने जो देखा तो तमाम नजाकत की बातो पर हकीकत का ऐसा तमाचा पड़ा की लेने-देने की तमाम बताए झट से गायब हो गयी, जो चाँद खूबसूरत बड़ा लग रहा था उसी चाँद की रौशनी अब जैसे काटने को लगी थी, सामने पिताजी के उस आदमी राजू की लाश पड़ी थी जिसने मुझे कोड़े मारे थे .सच कहूँ तो मेरी गांड फट गयी थी वो नजारा देख कर , बड़ी बेदर्दी से मारा गया था उसे, उसकी पीठ की खाल उधेडी हुई थी .बदन पर जहाँ तहां चाक़ू के वार थे .

“नहीं होना था ये ” मैंने कहा

पिस्ता कांपती रही डर के मारे .

मैंने उसका हाथ पकड़ा और जितनी तेजी से दौड़ सकते थे दौड़ लिए .

“चाहे कुछ भी हो जाये पिस्ता, किसी को भी ये मालूम नहीं होना चाहिए की हम लोग इसकी लाश के पास थे वर्ना पंगा बहुत बड़ा हो जायेगा और देने के लिए कोई जवाब नहीं रहेगा.समझ रही है न मेरी बात ” मैंने उसे कहा

पिस्ता-पर मारा किसने

मैं- जिसने भी मारा अपना कोई लेना देना नहीं है चाहे कुछ भी हो. अपना दूर रहना है इस सब से

पिस्ता- पर अपन ने तो कुछ किया ही नहीं

मैं- चुतियो की सरदार,पंचायत में चीख चीख कर तू ही कह रही थी ना की राजू की खाल उतार लुंगी

पिस्ता- अरे वो तो मौके की नजाकत ......

मैं- माँ चुदा गयी नजाकत लोडे लगने वाले है , जैसे ही गाँव में मालूम होगा सब यही सोचेंगे की हो न हो बदले की कार्यवाही हुई है .

पिस्ता ने अपना माथा पीट लिया

“आगे से सोच समझ कर ही बोलूंगी मैं तो ” उसने कहा
मैं- पानी पी थोडा और सो जा , सुबह कोई भी पूछे तो यही कहना है की घर पे ही थी.

उसे समझा कर मैं आगे तो बढ़ गया पर मेरे पैर कांप रहे थे ,कोई तो था जो इस खेल में अपनी रोटी सेंक रहा था . पर क्या मकसद था उसका अपना था पराया था कौन था कौन जाने. पर जो भी था उसे जानने की कोशिश करनी बहुत जरुरी थी , बाप की फैक्ट्री पर हमला होना, उसके आदमियों पर मारामारी और अब ये हत्या . दिल तो किया की बाप की मुसीबते बाप को ही सुलझाने दी जाये पर फिर वो बात याद आई की वो खून खून ही क्या जिसमे उबाल ना हो.

आँख खुली तो मैंने खुद को चौपाल के चबूतरे पर सोये हुए पाया. हाथ मुह धोकर मैं सीधा अपने घर गया . पिताजी सोये हुए थे पर मैंने उन्हें उठाया

“कल रात राजू की हत्या कर दी किसी ने ” मैंने बताया उनको .

“मेरा आदमी था मैं देखूंगा इस मामले को , तेरा काम नहीं है इन सब में पड़ना आराम कर ” पिताजी ने कहा

मैं- कौन है वो दुश्मन

पिताजी ने गहरी नजरो से मुझे देखा और बोले- तुझे फ़िक्र करने की जरुरत नहीं अभी मैं जिन्दा हु

पिताजी ने कुरता पहना और जीप लेकर बाहर चले गए.

“तो नवाब साहब घर लौट आये , मिट गयी अकड़ दो दिन में ही होश आ गए ठिकाने , इस घर बिना कोई नहीं तुम्हे पूछने वाला समझ आ गयी हो तो नाश्ता कर लो ” माँ ने मुझे देख कर कहा

मैं कुछ नहीं बोला . माँ ने मुझे खाने की थाली दी

“वैसे तो औलाद बड़ी हो जाये तो माँ का उसे कुछ कहना उचित नहीं और ये जानते हुए भी की तुझे माननी नहीं मेरी बात फिर भी कहती हु की उस छोरी से दूर रह. तेरे लिए भी ठीक रहेगी और इस घर के लिए भी ” माँ ने कहा

मैं- रोटी खा लेने दो न, उसका जिक्र कहा से आया अब
माँ- उसका जिक्र तो अब रोज ही होगा. हमारा लड़का जिसकी जुबान नहीं खुलती थी गाँव में आशिकी करते घूमेगा तो जिक्र होगा ही न, बाप दुनिया को सलीका सिखाते फिर रहा बेटा क्रांति का झंडा उठा लिया. बीच में माँ आ गयी . आदमी की न सुने तो परेशानी औलाद का पक्ष न ले तो आदमी के ताने सुने .

मैं- माँ , अपनी औलाद पर तुझे भरोसा नहीं क्या, तेरी परवरिश हूँ मैं , तू ही बता तेरी परवरिश क्या इतनी कमजोर है जो कुछ भी गलत करेगी.

माँ- इसीलिए तो कहती हूँ उस छोरी का साथ छोड़ दे .

परवरिश तो कमजोर ही रही की मालूम ही न हुआ कब तू उसके चक्कर में आ गया.

मैं- माँ, मेरा उस से कुछ भी ऐसा वैसा रिश्ता नहीं है जिससे की कोई भी शर्मिंदा हो , पिस्ता बस दोस्त है मेरी .

माँ- गाँव में ऐसी दोस्ती नहीं होती , ऐसी दोस्ती को बस बदनामी मिलती है .

मैं- तो बदनामी ही सही माँ .

माँ- तरस आता है मुझे

मैं- तरस ही सही

माँ- तुझ पर नहीं अपने आप पर तरस आता है मुझे, आज तू मेरी बात नहीं समझेगा पर एक दिन आएगा जब तुझे ये दिन जरुर याद आएगा की तेरी माँ को कितनी परवाह थी तेरी, खैर तेरी अगर यही इच्छा है तो मैं आज के बाद तुझे कभी नहीं टोकुंगी पर तू इतना जरुर करना की हमेशा आँखों से आँखे मिला सके.


मेरे पास कहने को कुछ नहीं था , घर से निकल गया और जंगल में पहुँच गया . आजकल घर से जायदा घर तो ये जंगल लगने लगा था . भटकते भटकते मैं जोगन की झोपडी तक पहुँच गया मालूम हुआ की वो लौट आई है.

“कब आई तुम ” मैंने उस से कहा

जोगन- बसकुछ देर पहले ही ,आजा अन्दर बैठते है

मेरे अन्दर आते ही उसने झोले से कुछ मिठाई निकाली और मुझे दी.

मैं- ये बढ़िया किया , भूख भी लगी है

वो- खाले, तेरे लिए ही है ये सब

मैं- तू भी खाले,

जोगन- मुझे भूख नहीं थोड़ी थकान है आराम करुँगी
उसने चादर ओढ़ी और बिस्तर में घुस गयी मैं मिठाई का आनंद लेता रहा. बाहर देखा रुत मस्ताने को बेताब भी मैंने भी एक गुदड़ी निचे बिछाई और आँखों को मूँद लिया. जागा तो बदन में बहुत दर्द हो रहा था . चीस मार रही थी , बाहर अँधेरा हुआ पड़ा था मतलब की बहुत सोया था मैं .बाहर आकर देखा जोगन चूल्हे पर रोटी सेक रही थी .

मैं- उठाया क्यों नहीं मुझे

वो- गहरी नींद में थे तुम

मैं- फिर भी, कितनी रात हुई मुझे चले जाना था
जोगन- रात का क्या गिनना, कितनी गयी कितनी बाकी . खाना खाकर ही जाना अब तेरे हिस्से की रोटी भी बना ली है .

जलते चूल्हे के पास बैठ कर मैंने खाना खाया , जोगन के हाथ में कोई तो बात थी . एक रोटी फ़ालतू खा ली मैंने.

“कुछ परेशान सा लगता है ” उसने कहा

मैं- पीठ में दर्द हो रहा है

वो- देखू जरा

उसने मेरी पीठ देखी और बोली- पूरी शर्ट खून से भीगी हुई है तेरी तो क्या हुआ है ये

उसने मेरी पीठ देखी और बोली- किसने किया ये

मैं- जाने दे, कहानी ऐसी है की तू सुन नहीं पायेगी और मैं बता नहीं पाऊंगा.

“फिर भी गलत किया चाहे जो भी कारन रहा हो.तू रुक मैं आभी आती हु ” उसने कहा और जंगल की तरफ दौड़ पड़ी .
मैं आवाज देता रह गया. कुछ देर बाद वो हाथ में कुछ जड़ी लेकर आई

“इसके लेप से तुझे आराम मिलेगा ” उसने लेप मेरी पीठ पर लगाया . राहत सी मिली

जोगन- शहर में किसी बड़े डाक्टर को दिखा ले इसे, जख्म जल्दी ठीक नहीं होने वाले.

मैं- वैध से पट्ठी करवाई थी

जोगन- कहा न शहर जा

मैं- नाराज क्यों होती है , चला जाऊँगा. वैसे तू बता इतने दिन कहाँ गयी थी

जोगन- बताया तो था कुछ काम से बाहर थी

मैं- वही तो पूछ रहा हु बाहर कहा

जोगन- अगली बार जाउंगी तो तुझे साथ ले जाउंगी . चलेगा न

मैं- अरे ये भी कोई कहने की बात है

वो मुस्कुरा दी . मैं वहां से चल दिया. गुनगुनाते हुए मैं मस्ती में अपने रस्ते बढे जा रहा था .हालाँकि मुझे अँधेरे में थोडा डर भी लग रहा था पर मैं गाँव में पहुँच ही गया , आँगन में जीप खड़ी थी मतलब पिताजी घर पर ही थे , दबे पाँव मैं चोबारे के दरवाजे पर पहुंचा और जैसे ही मैंने दरवाजे को खोला..............................
Bahut hi badhiya update diya hai HalfbludPrince bhai....
Nice and beautiful update....
 

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
21,057
55,894
259
Foji bhai agley update ka besabri se intzaar
 

Ajju Landwalia

Well-Known Member
3,516
13,773
159
#32

सामने जो देखा तो तमाम नजाकत की बातो पर हकीकत का ऐसा तमाचा पड़ा की लेने-देने की तमाम बताए झट से गायब हो गयी, जो चाँद खूबसूरत बड़ा लग रहा था उसी चाँद की रौशनी अब जैसे काटने को लगी थी, सामने पिताजी के उस आदमी राजू की लाश पड़ी थी जिसने मुझे कोड़े मारे थे .सच कहूँ तो मेरी गांड फट गयी थी वो नजारा देख कर , बड़ी बेदर्दी से मारा गया था उसे, उसकी पीठ की खाल उधेडी हुई थी .बदन पर जहाँ तहां चाक़ू के वार थे .

“नहीं होना था ये ” मैंने कहा

पिस्ता कांपती रही डर के मारे .

मैंने उसका हाथ पकड़ा और जितनी तेजी से दौड़ सकते थे दौड़ लिए .

“चाहे कुछ भी हो जाये पिस्ता, किसी को भी ये मालूम नहीं होना चाहिए की हम लोग इसकी लाश के पास थे वर्ना पंगा बहुत बड़ा हो जायेगा और देने के लिए कोई जवाब नहीं रहेगा.समझ रही है न मेरी बात ” मैंने उसे कहा

पिस्ता-पर मारा किसने

मैं- जिसने भी मारा अपना कोई लेना देना नहीं है चाहे कुछ भी हो. अपना दूर रहना है इस सब से

पिस्ता- पर अपन ने तो कुछ किया ही नहीं

मैं- चुतियो की सरदार,पंचायत में चीख चीख कर तू ही कह रही थी ना की राजू की खाल उतार लुंगी

पिस्ता- अरे वो तो मौके की नजाकत ......

मैं- माँ चुदा गयी नजाकत लोडे लगने वाले है , जैसे ही गाँव में मालूम होगा सब यही सोचेंगे की हो न हो बदले की कार्यवाही हुई है .

पिस्ता ने अपना माथा पीट लिया

“आगे से सोच समझ कर ही बोलूंगी मैं तो ” उसने कहा
मैं- पानी पी थोडा और सो जा , सुबह कोई भी पूछे तो यही कहना है की घर पे ही थी.

उसे समझा कर मैं आगे तो बढ़ गया पर मेरे पैर कांप रहे थे ,कोई तो था जो इस खेल में अपनी रोटी सेंक रहा था . पर क्या मकसद था उसका अपना था पराया था कौन था कौन जाने. पर जो भी था उसे जानने की कोशिश करनी बहुत जरुरी थी , बाप की फैक्ट्री पर हमला होना, उसके आदमियों पर मारामारी और अब ये हत्या . दिल तो किया की बाप की मुसीबते बाप को ही सुलझाने दी जाये पर फिर वो बात याद आई की वो खून खून ही क्या जिसमे उबाल ना हो.

आँख खुली तो मैंने खुद को चौपाल के चबूतरे पर सोये हुए पाया. हाथ मुह धोकर मैं सीधा अपने घर गया . पिताजी सोये हुए थे पर मैंने उन्हें उठाया

“कल रात राजू की हत्या कर दी किसी ने ” मैंने बताया उनको .

“मेरा आदमी था मैं देखूंगा इस मामले को , तेरा काम नहीं है इन सब में पड़ना आराम कर ” पिताजी ने कहा

मैं- कौन है वो दुश्मन

पिताजी ने गहरी नजरो से मुझे देखा और बोले- तुझे फ़िक्र करने की जरुरत नहीं अभी मैं जिन्दा हु

पिताजी ने कुरता पहना और जीप लेकर बाहर चले गए.

“तो नवाब साहब घर लौट आये , मिट गयी अकड़ दो दिन में ही होश आ गए ठिकाने , इस घर बिना कोई नहीं तुम्हे पूछने वाला समझ आ गयी हो तो नाश्ता कर लो ” माँ ने मुझे देख कर कहा

मैं कुछ नहीं बोला . माँ ने मुझे खाने की थाली दी

“वैसे तो औलाद बड़ी हो जाये तो माँ का उसे कुछ कहना उचित नहीं और ये जानते हुए भी की तुझे माननी नहीं मेरी बात फिर भी कहती हु की उस छोरी से दूर रह. तेरे लिए भी ठीक रहेगी और इस घर के लिए भी ” माँ ने कहा

मैं- रोटी खा लेने दो न, उसका जिक्र कहा से आया अब
माँ- उसका जिक्र तो अब रोज ही होगा. हमारा लड़का जिसकी जुबान नहीं खुलती थी गाँव में आशिकी करते घूमेगा तो जिक्र होगा ही न, बाप दुनिया को सलीका सिखाते फिर रहा बेटा क्रांति का झंडा उठा लिया. बीच में माँ आ गयी . आदमी की न सुने तो परेशानी औलाद का पक्ष न ले तो आदमी के ताने सुने .

मैं- माँ , अपनी औलाद पर तुझे भरोसा नहीं क्या, तेरी परवरिश हूँ मैं , तू ही बता तेरी परवरिश क्या इतनी कमजोर है जो कुछ भी गलत करेगी.

माँ- इसीलिए तो कहती हूँ उस छोरी का साथ छोड़ दे .

परवरिश तो कमजोर ही रही की मालूम ही न हुआ कब तू उसके चक्कर में आ गया.

मैं- माँ, मेरा उस से कुछ भी ऐसा वैसा रिश्ता नहीं है जिससे की कोई भी शर्मिंदा हो , पिस्ता बस दोस्त है मेरी .

माँ- गाँव में ऐसी दोस्ती नहीं होती , ऐसी दोस्ती को बस बदनामी मिलती है .

मैं- तो बदनामी ही सही माँ .

माँ- तरस आता है मुझे

मैं- तरस ही सही

माँ- तुझ पर नहीं अपने आप पर तरस आता है मुझे, आज तू मेरी बात नहीं समझेगा पर एक दिन आएगा जब तुझे ये दिन जरुर याद आएगा की तेरी माँ को कितनी परवाह थी तेरी, खैर तेरी अगर यही इच्छा है तो मैं आज के बाद तुझे कभी नहीं टोकुंगी पर तू इतना जरुर करना की हमेशा आँखों से आँखे मिला सके.


मेरे पास कहने को कुछ नहीं था , घर से निकल गया और जंगल में पहुँच गया . आजकल घर से जायदा घर तो ये जंगल लगने लगा था . भटकते भटकते मैं जोगन की झोपडी तक पहुँच गया मालूम हुआ की वो लौट आई है.

“कब आई तुम ” मैंने उस से कहा

जोगन- बसकुछ देर पहले ही ,आजा अन्दर बैठते है

मेरे अन्दर आते ही उसने झोले से कुछ मिठाई निकाली और मुझे दी.

मैं- ये बढ़िया किया , भूख भी लगी है

वो- खाले, तेरे लिए ही है ये सब

मैं- तू भी खाले,

जोगन- मुझे भूख नहीं थोड़ी थकान है आराम करुँगी
उसने चादर ओढ़ी और बिस्तर में घुस गयी मैं मिठाई का आनंद लेता रहा. बाहर देखा रुत मस्ताने को बेताब भी मैंने भी एक गुदड़ी निचे बिछाई और आँखों को मूँद लिया. जागा तो बदन में बहुत दर्द हो रहा था . चीस मार रही थी , बाहर अँधेरा हुआ पड़ा था मतलब की बहुत सोया था मैं .बाहर आकर देखा जोगन चूल्हे पर रोटी सेक रही थी .

मैं- उठाया क्यों नहीं मुझे

वो- गहरी नींद में थे तुम

मैं- फिर भी, कितनी रात हुई मुझे चले जाना था
जोगन- रात का क्या गिनना, कितनी गयी कितनी बाकी . खाना खाकर ही जाना अब तेरे हिस्से की रोटी भी बना ली है .

जलते चूल्हे के पास बैठ कर मैंने खाना खाया , जोगन के हाथ में कोई तो बात थी . एक रोटी फ़ालतू खा ली मैंने.

“कुछ परेशान सा लगता है ” उसने कहा

मैं- पीठ में दर्द हो रहा है

वो- देखू जरा

उसने मेरी पीठ देखी और बोली- पूरी शर्ट खून से भीगी हुई है तेरी तो क्या हुआ है ये

उसने मेरी पीठ देखी और बोली- किसने किया ये

मैं- जाने दे, कहानी ऐसी है की तू सुन नहीं पायेगी और मैं बता नहीं पाऊंगा.

“फिर भी गलत किया चाहे जो भी कारन रहा हो.तू रुक मैं आभी आती हु ” उसने कहा और जंगल की तरफ दौड़ पड़ी .
मैं आवाज देता रह गया. कुछ देर बाद वो हाथ में कुछ जड़ी लेकर आई

“इसके लेप से तुझे आराम मिलेगा ” उसने लेप मेरी पीठ पर लगाया . राहत सी मिली

जोगन- शहर में किसी बड़े डाक्टर को दिखा ले इसे, जख्म जल्दी ठीक नहीं होने वाले.

मैं- वैध से पट्ठी करवाई थी

जोगन- कहा न शहर जा

मैं- नाराज क्यों होती है , चला जाऊँगा. वैसे तू बता इतने दिन कहाँ गयी थी

जोगन- बताया तो था कुछ काम से बाहर थी

मैं- वही तो पूछ रहा हु बाहर कहा

जोगन- अगली बार जाउंगी तो तुझे साथ ले जाउंगी . चलेगा न

मैं- अरे ये भी कोई कहने की बात है

वो मुस्कुरा दी . मैं वहां से चल दिया. गुनगुनाते हुए मैं मस्ती में अपने रस्ते बढे जा रहा था .हालाँकि मुझे अँधेरे में थोडा डर भी लग रहा था पर मैं गाँव में पहुँच ही गया , आँगन में जीप खड़ी थी मतलब पिताजी घर पर ही थे , दबे पाँव मैं चोबारे के दरवाजे पर पहुंचा और जैसे ही मैंने दरवाजे को खोला..............................

Behad umda update he HalfbludPrince Fauji Bhai,

Dev aur pista ne Raju ki lash dekh li...........dono ki hi fat ke chaar ho gayi...........

Lekin sawal ye he ki use mara kisne??? Jogan ne? Bua ya fir dev ki Maa ne??

Jogan ka kirdar bahi bhi mysterious hhi he............uska koi bhi past nahi he, na jane kaha se aayi he

Ab chaubare me kya dekh liya Dev ne???

Agli update ki pratiksha rahegi Bhai
 

Luckyloda

Well-Known Member
2,459
8,077
158
#32

सामने जो देखा तो तमाम नजाकत की बातो पर हकीकत का ऐसा तमाचा पड़ा की लेने-देने की तमाम बताए झट से गायब हो गयी, जो चाँद खूबसूरत बड़ा लग रहा था उसी चाँद की रौशनी अब जैसे काटने को लगी थी, सामने पिताजी के उस आदमी राजू की लाश पड़ी थी जिसने मुझे कोड़े मारे थे .सच कहूँ तो मेरी गांड फट गयी थी वो नजारा देख कर , बड़ी बेदर्दी से मारा गया था उसे, उसकी पीठ की खाल उधेडी हुई थी .बदन पर जहाँ तहां चाक़ू के वार थे .

“नहीं होना था ये ” मैंने कहा

पिस्ता कांपती रही डर के मारे .

मैंने उसका हाथ पकड़ा और जितनी तेजी से दौड़ सकते थे दौड़ लिए .

“चाहे कुछ भी हो जाये पिस्ता, किसी को भी ये मालूम नहीं होना चाहिए की हम लोग इसकी लाश के पास थे वर्ना पंगा बहुत बड़ा हो जायेगा और देने के लिए कोई जवाब नहीं रहेगा.समझ रही है न मेरी बात ” मैंने उसे कहा

पिस्ता-पर मारा किसने

मैं- जिसने भी मारा अपना कोई लेना देना नहीं है चाहे कुछ भी हो. अपना दूर रहना है इस सब से

पिस्ता- पर अपन ने तो कुछ किया ही नहीं

मैं- चुतियो की सरदार,पंचायत में चीख चीख कर तू ही कह रही थी ना की राजू की खाल उतार लुंगी

पिस्ता- अरे वो तो मौके की नजाकत ......

मैं- माँ चुदा गयी नजाकत लोडे लगने वाले है , जैसे ही गाँव में मालूम होगा सब यही सोचेंगे की हो न हो बदले की कार्यवाही हुई है .

पिस्ता ने अपना माथा पीट लिया

“आगे से सोच समझ कर ही बोलूंगी मैं तो ” उसने कहा
मैं- पानी पी थोडा और सो जा , सुबह कोई भी पूछे तो यही कहना है की घर पे ही थी.

उसे समझा कर मैं आगे तो बढ़ गया पर मेरे पैर कांप रहे थे ,कोई तो था जो इस खेल में अपनी रोटी सेंक रहा था . पर क्या मकसद था उसका अपना था पराया था कौन था कौन जाने. पर जो भी था उसे जानने की कोशिश करनी बहुत जरुरी थी , बाप की फैक्ट्री पर हमला होना, उसके आदमियों पर मारामारी और अब ये हत्या . दिल तो किया की बाप की मुसीबते बाप को ही सुलझाने दी जाये पर फिर वो बात याद आई की वो खून खून ही क्या जिसमे उबाल ना हो.

आँख खुली तो मैंने खुद को चौपाल के चबूतरे पर सोये हुए पाया. हाथ मुह धोकर मैं सीधा अपने घर गया . पिताजी सोये हुए थे पर मैंने उन्हें उठाया

“कल रात राजू की हत्या कर दी किसी ने ” मैंने बताया उनको .

“मेरा आदमी था मैं देखूंगा इस मामले को , तेरा काम नहीं है इन सब में पड़ना आराम कर ” पिताजी ने कहा

मैं- कौन है वो दुश्मन

पिताजी ने गहरी नजरो से मुझे देखा और बोले- तुझे फ़िक्र करने की जरुरत नहीं अभी मैं जिन्दा हु

पिताजी ने कुरता पहना और जीप लेकर बाहर चले गए.

“तो नवाब साहब घर लौट आये , मिट गयी अकड़ दो दिन में ही होश आ गए ठिकाने , इस घर बिना कोई नहीं तुम्हे पूछने वाला समझ आ गयी हो तो नाश्ता कर लो ” माँ ने मुझे देख कर कहा

मैं कुछ नहीं बोला . माँ ने मुझे खाने की थाली दी

“वैसे तो औलाद बड़ी हो जाये तो माँ का उसे कुछ कहना उचित नहीं और ये जानते हुए भी की तुझे माननी नहीं मेरी बात फिर भी कहती हु की उस छोरी से दूर रह. तेरे लिए भी ठीक रहेगी और इस घर के लिए भी ” माँ ने कहा

मैं- रोटी खा लेने दो न, उसका जिक्र कहा से आया अब
माँ- उसका जिक्र तो अब रोज ही होगा. हमारा लड़का जिसकी जुबान नहीं खुलती थी गाँव में आशिकी करते घूमेगा तो जिक्र होगा ही न, बाप दुनिया को सलीका सिखाते फिर रहा बेटा क्रांति का झंडा उठा लिया. बीच में माँ आ गयी . आदमी की न सुने तो परेशानी औलाद का पक्ष न ले तो आदमी के ताने सुने .

मैं- माँ , अपनी औलाद पर तुझे भरोसा नहीं क्या, तेरी परवरिश हूँ मैं , तू ही बता तेरी परवरिश क्या इतनी कमजोर है जो कुछ भी गलत करेगी.

माँ- इसीलिए तो कहती हूँ उस छोरी का साथ छोड़ दे .

परवरिश तो कमजोर ही रही की मालूम ही न हुआ कब तू उसके चक्कर में आ गया.

मैं- माँ, मेरा उस से कुछ भी ऐसा वैसा रिश्ता नहीं है जिससे की कोई भी शर्मिंदा हो , पिस्ता बस दोस्त है मेरी .

माँ- गाँव में ऐसी दोस्ती नहीं होती , ऐसी दोस्ती को बस बदनामी मिलती है .

मैं- तो बदनामी ही सही माँ .

माँ- तरस आता है मुझे

मैं- तरस ही सही

माँ- तुझ पर नहीं अपने आप पर तरस आता है मुझे, आज तू मेरी बात नहीं समझेगा पर एक दिन आएगा जब तुझे ये दिन जरुर याद आएगा की तेरी माँ को कितनी परवाह थी तेरी, खैर तेरी अगर यही इच्छा है तो मैं आज के बाद तुझे कभी नहीं टोकुंगी पर तू इतना जरुर करना की हमेशा आँखों से आँखे मिला सके.


मेरे पास कहने को कुछ नहीं था , घर से निकल गया और जंगल में पहुँच गया . आजकल घर से जायदा घर तो ये जंगल लगने लगा था . भटकते भटकते मैं जोगन की झोपडी तक पहुँच गया मालूम हुआ की वो लौट आई है.

“कब आई तुम ” मैंने उस से कहा

जोगन- बसकुछ देर पहले ही ,आजा अन्दर बैठते है

मेरे अन्दर आते ही उसने झोले से कुछ मिठाई निकाली और मुझे दी.

मैं- ये बढ़िया किया , भूख भी लगी है

वो- खाले, तेरे लिए ही है ये सब

मैं- तू भी खाले,

जोगन- मुझे भूख नहीं थोड़ी थकान है आराम करुँगी
उसने चादर ओढ़ी और बिस्तर में घुस गयी मैं मिठाई का आनंद लेता रहा. बाहर देखा रुत मस्ताने को बेताब भी मैंने भी एक गुदड़ी निचे बिछाई और आँखों को मूँद लिया. जागा तो बदन में बहुत दर्द हो रहा था . चीस मार रही थी , बाहर अँधेरा हुआ पड़ा था मतलब की बहुत सोया था मैं .बाहर आकर देखा जोगन चूल्हे पर रोटी सेक रही थी .

मैं- उठाया क्यों नहीं मुझे

वो- गहरी नींद में थे तुम

मैं- फिर भी, कितनी रात हुई मुझे चले जाना था
जोगन- रात का क्या गिनना, कितनी गयी कितनी बाकी . खाना खाकर ही जाना अब तेरे हिस्से की रोटी भी बना ली है .

जलते चूल्हे के पास बैठ कर मैंने खाना खाया , जोगन के हाथ में कोई तो बात थी . एक रोटी फ़ालतू खा ली मैंने.

“कुछ परेशान सा लगता है ” उसने कहा

मैं- पीठ में दर्द हो रहा है

वो- देखू जरा

उसने मेरी पीठ देखी और बोली- पूरी शर्ट खून से भीगी हुई है तेरी तो क्या हुआ है ये

उसने मेरी पीठ देखी और बोली- किसने किया ये

मैं- जाने दे, कहानी ऐसी है की तू सुन नहीं पायेगी और मैं बता नहीं पाऊंगा.

“फिर भी गलत किया चाहे जो भी कारन रहा हो.तू रुक मैं आभी आती हु ” उसने कहा और जंगल की तरफ दौड़ पड़ी .
मैं आवाज देता रह गया. कुछ देर बाद वो हाथ में कुछ जड़ी लेकर आई

“इसके लेप से तुझे आराम मिलेगा ” उसने लेप मेरी पीठ पर लगाया . राहत सी मिली

जोगन- शहर में किसी बड़े डाक्टर को दिखा ले इसे, जख्म जल्दी ठीक नहीं होने वाले.

मैं- वैध से पट्ठी करवाई थी

जोगन- कहा न शहर जा

मैं- नाराज क्यों होती है , चला जाऊँगा. वैसे तू बता इतने दिन कहाँ गयी थी

जोगन- बताया तो था कुछ काम से बाहर थी

मैं- वही तो पूछ रहा हु बाहर कहा

जोगन- अगली बार जाउंगी तो तुझे साथ ले जाउंगी . चलेगा न

मैं- अरे ये भी कोई कहने की बात है

वो मुस्कुरा दी . मैं वहां से चल दिया. गुनगुनाते हुए मैं मस्ती में अपने रस्ते बढे जा रहा था .हालाँकि मुझे अँधेरे में थोडा डर भी लग रहा था पर मैं गाँव में पहुँच ही गया , आँगन में जीप खड़ी थी मतलब पिताजी घर पर ही थे , दबे पाँव मैं चोबारे के दरवाजे पर पहुंचा और जैसे ही मैंने दरवाजे को खोला..............................
Bhut shandaar update..... khel shuru kar diya hai past m.....



Wah fozi sahab
 

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
21,057
55,894
259
Foji bhai agley update ka besabri se intzaar rahega 👍
 

Iron Man

Try and fail. But never give up trying
42,952
111,656
304
Waiting for next update
 

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
21,057
55,894
259
Update please
Bored Cabin Fever GIF
 
Top