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Adultery जब तक है जान

park

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#41

दुधिया जांघो के बीच गहरे काले मुलायम बालो से ढकी नाज की चूत को देखना इतना मादक अनुभव था की मैंने कानो के पीछे से पसीने की बूंदों को बहते हुए महसूस किया. नाज की चूत वाकई में बहुत ही खूबसूरत थी .

“घाघरे को वापिस पहन लो मासी , मेरी दोस्ती इतनी सस्ती नहीं की तुम्हारी चूत उसका मोल लगा सके. और अपने ही घर की औरतो की चूत का मोल लगाया तो फिर मेरी क्या ही हसियत रहेगी. तुम्हे पाने के लिए मुझे ये सब करने की जरूरत नहीं है ,तुम पर तुम्हारी चूत पर वैसे ही हक़ है मेरा, जिस दिन मेरा मन हुआ हक़ से ले लूँगा और उस दिन मना भी नहीं कर पाओगी तुम ” कहते हुए मैंने झुककर घाघरे को ऊपर उठाया और नाज की कमर पर बाँध दिया.

“वैसे बहुत ही ज्यादा गदराई हुई हो तुम मासी ” मैंने नाज को अपनी बाँहों में भरते हुए उसके होंठ को हलके से चूमा


“तेरी दोस्ती की फ़िक्र नहीं देव ” कांपते हुए बोली वो

मैं- फिर क्यों ये घबराहट


नाज- क्योकि दोस्त नहीं वो तेरी, इश्क है वो . न तुझसे न पिस्ता से डर लगता है, डर उस इश्क से है जो तेरी आँखों में है . जो तू उस से करता है . डर उस आने वाले कल से है जो इस इश्क के साथ आएगा.

मैं- इश्क, अरे नहीं मासी. ऐसा तो कुछ नहीं है


मासी- तू बता फिर कैसा है

मैं- पता नहीं . फ़िलहाल दूध है तो दे दे, फिर मुझे जाना ही कहीं

नाज- उसके ही पास जाएगा न

मैं- जब तुम जानती ही हो तो फिर क्यों पूछती हो .

नाज- ठीक है ठीक है.

दूध पीने के बाद मैं पिस्ता के घर को चल दिया . एक रात और रंगीन होने वाली थी . अन्दर जाते ही मैंने पिस्ता को बाँहों में भर लिया और उसके लबो को चूसने लगा.

“थम जा बेसब्रे, ” उसने कहा


मैं-अब सब्र कहाँ सरकार.

“पिस्ता- रोटी भी ना खाई अभी तो ”

मैं- अब सब बाद में


मैंने फुर्ती से पिस्ता का नाडा खोला और आँगन में ही उसको झुका दिया. पिस्ता के गोल नितम्ब बहुत ही प्यारे और शानदार थे , चूँकि पिस्ता गोलमोल लड़की थी तो और भी मजेदार,लंड पर थूक लगाया और चूत में सरका दिया .

“आई, ऐसी भी क्या बेसब्री खसम ” घुटनों पर हाथ रखते हुए बोली वो .

“अब करार ही करार ” मैंने अपने हाथो से उसकी कमर थामी और चुदाई शुरू हो गयी .बीतते सावन की रात में खुले आँगन में चुदाई करने का अलग ही मजा था, हमारे गर्म होते बदनो को ठंडी हवा चूम रही थी .


“बहुत गर्म है तेरा भोसड़ा ” मैंने उसके पुट्ठो को मसलते हुए कहा

“” पिघल रहा है क्या तू बोली वो “

मैं- हाँ मेरी जान.

पिस्ता- मजा आ रहा है


मैं- बहुत

पिस्ता- तो जोर से चोदना , तोड़ कर रख दे मुझे आज

पिस्ता अपना हाथ जांघो के बीच ले गयी और मेरे अन्डकोशो को सहलाने लगी. कसम से उत्तेजना और बढ़ गयी . फिर ना कुछ वो बोली ना मैं बोला . आँगन में थप थप की आवाज गूँज रही थी , सांसे उफन रही थी . कुछ देर बाद मैंने चूत से लंड बाहर निकाल लिया और पिस्ता को खीच कर दिवार के जंगले से सटा दिया.

“चुतड चौड़े कर जरा ” मैंने कहा तो पिस्ता ने अपने हाथो से कुलहो को फैलाया और मैंने लंड फिर से चूत में सरका दिया. अब खड़े खड़े चुदाई शुरू थी मेरे हाथ उसकी चुचियो को मसल रहे थे . होंठ उसके गालो को चूम रहे थे .



“चीज है जानेमन तू ” मैंने कहा

पिस्ता- इसीलिए तो तुझे दे रही हु

पिस्ता की चूत से बहता काम रस उसकी जांघो तक को भिगोने लगा था .

“गाल पर मत काट, निशान पड़ जायेगा ” तुनक कर बोली वो .

मैं- तो कह देना तेरे यार ने चुसे ये गाल


पिस्ता- मैं तो ढोल बजा दूंगी इस बात का पर फिर सबसे ज्यादा नारजगी तेरे घर वालो को ही होगी, चौधरानी आज नाराज हो रही थी मुझ पर .

मैं- किसे परवाह है छोड़ उनको

पिस्ता- मैं तो झाट न समझू पर तू चुतिया है

मैं- अब जो भी हूँ तेरा हु

पिस्ता- हां खसम, अब जरा जोर लगा छूटने वाला है मेरा

मैं- हा मेरी सरकार.

गांड को आगे पीछे करते हुए कुछ झटको के बाद पिस्ता झड गयी और मैंने भी अपना पानी उसकी गांड पर गिरा दिया.

“सलवार देना मेरी जरा ” उसने कहा


मैं- उठा के ले ले. पानी पीने दे मुझे तो

पिस्ता- हाँ, काम निकलने के बाद तो कहेगा ही

मेरे वीर्य को सलवार से पोंछते हुए बोली वो .

मैं- काम कहाँ निकला, अभी तो रात बाकी है, काम बाकी है

पिस्ता- और नहीं करुँगी, एक बार बहुत है

मैं- एक बार और तो लूँगा ही पर पहले खाना परोस भूख लग आई .


पिस्ता और मैं खाना लेकर बैठ गए .

“दूध नहीं है क्या ” मैंने कहा


पिस्ता- थमेगा तो सब मिलेगा,

मैं- खाना बढ़िया बनाती है तू

पिस्ता- सो तो है तू बता क्या है नयी ताजा

मैं- छोड़, ये बात नाज मास्सी ने कुछ कहा था क्या तेरे को

पिस्ता- नहीं तो , कुछ हुआ क्या

मैं- कुछ नहीं वो जो बात माँ ने तुझे कही वो मुझे मासी ने कहा

पिस्ता- उन् लोगो की बात भी सही है अपनी जगह, तेरे मेरे रिश्ते का ढोल नहीं बजना चाहिए था गाँव में.

मैं- जो हुआ सो हुआ , मासी बोली की मैं इश्क करने लगा हु तुझसे

पिस्ता- पर तू नहीं करता ,

मैं- तुझे क्या लगता है

पिस्ता- देख, देव .मेरी बात को अच्छे से समझ ले. ये सब जो भी हम कर रहे है, मेरे दिल में बहुत कद्र है तेरी . तेरा मेरा जो रिश्ता है वो तू समझता है मैं समझती हूँ, इश्क मोहब्बत फिल्मो के किस्से होते है असली जिन्दगी में बस लेनी देनी होती है .

मैं- और अगर कभी इश्क हो गया तो

पिस्ता- नहीं होगा यार

मैं- ठीक है सरकार, कल शहर जाऊंगा मुनीम से मिलने तू भी चल .

पिस्ता- कल माँ आ जाएगी मुश्किल होगा

मैं- सुबह चलेंगे दोपहर तक आ जायेगे

पिस्ता- चल फिर .

खाना खाने के बाद मैंने और पिस्ता ने एक राउंड और लिया . सुबह नाज भी मेरे साथ हॉस्पिटल जाना चाहती थी पर मैंने बहाना मारा और पिस्ता को लेकर शहर की तरफ चल दिया.

“गाडी ले आया वाह जी वाह ” पिस्ता बोली


मैं- मुनीम की है , जब तक वो हॉस्पिटल में रहेगा मैं ही चलाऊंगा इसे सोच लिया मैंने

पिस्ता- बढ़िया है

बाते करते हुए हम गाँव से काफी आगे निकल आये थे, की तभी पिस्ता ने गाड़ी रोकने को बोला

“क्या हुआ ” मैंने कहा


पिस्ता- मूत आया है

मैं- गाड़ी में ही मूत दे

पिस्ता- रोक न यार


मैं- ठीक है

गाड़ी साइड में रोकते ही पिस्ता झाड़ियो की तरफ गयी मूतने. मुझे तो चुल थी तो मैं उसके पीछे हो लिया

“चैन से मूत तो लेने दे न ” बोली वो


मैं- सुन यहाँ देगी की कसम से मजा आ जायेगा

पिस्ता- यहाँ नहीं सड़क के बीचोबीच करते है फुल मजा आयेगा

मैं- क्या कह रही है

पिस्ता- चूतिये बेहूदा बाते क्यों करता है हर समय तू . मेरे कोई झांतो में आग लगी है जो कहीं भी पसर जाऊ

पिस्ता की बात का मैं कोई भी जवाब देता उस से पहले ही मेरे कानो के परदे हिल गए. इतने जोर से धमाका हुआ की मैं और पिस्ता झाड़ियो में आगे को गिर गए. कुछ देर तो समझ ही नहीं आया की हुआ क्या है . खुद को सँभालते हुए हम सड़क पर आये तो देखा की गाडी धू-धू करके जल रही थी ......................
Nice and superb update....
 

Napster

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दुधिया जांघो के बीच गहरे काले मुलायम बालो से ढकी नाज की चूत को देखना इतना मादक अनुभव था की मैंने कानो के पीछे से पसीने की बूंदों को बहते हुए महसूस किया. नाज की चूत वाकई में बहुत ही खूबसूरत थी .

“घाघरे को वापिस पहन लो मासी , मेरी दोस्ती इतनी सस्ती नहीं की तुम्हारी चूत उसका मोल लगा सके. और अपने ही घर की औरतो की चूत का मोल लगाया तो फिर मेरी क्या ही हसियत रहेगी. तुम्हे पाने के लिए मुझे ये सब करने की जरूरत नहीं है ,तुम पर तुम्हारी चूत पर वैसे ही हक़ है मेरा, जिस दिन मेरा मन हुआ हक़ से ले लूँगा और उस दिन मना भी नहीं कर पाओगी तुम ” कहते हुए मैंने झुककर घाघरे को ऊपर उठाया और नाज की कमर पर बाँध दिया.

“वैसे बहुत ही ज्यादा गदराई हुई हो तुम मासी ” मैंने नाज को अपनी बाँहों में भरते हुए उसके होंठ को हलके से चूमा


“तेरी दोस्ती की फ़िक्र नहीं देव ” कांपते हुए बोली वो

मैं- फिर क्यों ये घबराहट


नाज- क्योकि दोस्त नहीं वो तेरी, इश्क है वो . न तुझसे न पिस्ता से डर लगता है, डर उस इश्क से है जो तेरी आँखों में है . जो तू उस से करता है . डर उस आने वाले कल से है जो इस इश्क के साथ आएगा.

मैं- इश्क, अरे नहीं मासी. ऐसा तो कुछ नहीं है


मासी- तू बता फिर कैसा है

मैं- पता नहीं . फ़िलहाल दूध है तो दे दे, फिर मुझे जाना ही कहीं

नाज- उसके ही पास जाएगा न

मैं- जब तुम जानती ही हो तो फिर क्यों पूछती हो .

नाज- ठीक है ठीक है.

दूध पीने के बाद मैं पिस्ता के घर को चल दिया . एक रात और रंगीन होने वाली थी . अन्दर जाते ही मैंने पिस्ता को बाँहों में भर लिया और उसके लबो को चूसने लगा.

“थम जा बेसब्रे, ” उसने कहा


मैं-अब सब्र कहाँ सरकार.

“पिस्ता- रोटी भी ना खाई अभी तो ”

मैं- अब सब बाद में


मैंने फुर्ती से पिस्ता का नाडा खोला और आँगन में ही उसको झुका दिया. पिस्ता के गोल नितम्ब बहुत ही प्यारे और शानदार थे , चूँकि पिस्ता गोलमोल लड़की थी तो और भी मजेदार,लंड पर थूक लगाया और चूत में सरका दिया .

“आई, ऐसी भी क्या बेसब्री खसम ” घुटनों पर हाथ रखते हुए बोली वो .

“अब करार ही करार ” मैंने अपने हाथो से उसकी कमर थामी और चुदाई शुरू हो गयी .बीतते सावन की रात में खुले आँगन में चुदाई करने का अलग ही मजा था, हमारे गर्म होते बदनो को ठंडी हवा चूम रही थी .


“बहुत गर्म है तेरा भोसड़ा ” मैंने उसके पुट्ठो को मसलते हुए कहा

“” पिघल रहा है क्या तू बोली वो “

मैं- हाँ मेरी जान.

पिस्ता- मजा आ रहा है


मैं- बहुत

पिस्ता- तो जोर से चोदना , तोड़ कर रख दे मुझे आज

पिस्ता अपना हाथ जांघो के बीच ले गयी और मेरे अन्डकोशो को सहलाने लगी. कसम से उत्तेजना और बढ़ गयी . फिर ना कुछ वो बोली ना मैं बोला . आँगन में थप थप की आवाज गूँज रही थी , सांसे उफन रही थी . कुछ देर बाद मैंने चूत से लंड बाहर निकाल लिया और पिस्ता को खीच कर दिवार के जंगले से सटा दिया.

“चुतड चौड़े कर जरा ” मैंने कहा तो पिस्ता ने अपने हाथो से कुलहो को फैलाया और मैंने लंड फिर से चूत में सरका दिया. अब खड़े खड़े चुदाई शुरू थी मेरे हाथ उसकी चुचियो को मसल रहे थे . होंठ उसके गालो को चूम रहे थे .



“चीज है जानेमन तू ” मैंने कहा

पिस्ता- इसीलिए तो तुझे दे रही हु

पिस्ता की चूत से बहता काम रस उसकी जांघो तक को भिगोने लगा था .

“गाल पर मत काट, निशान पड़ जायेगा ” तुनक कर बोली वो .

मैं- तो कह देना तेरे यार ने चुसे ये गाल


पिस्ता- मैं तो ढोल बजा दूंगी इस बात का पर फिर सबसे ज्यादा नारजगी तेरे घर वालो को ही होगी, चौधरानी आज नाराज हो रही थी मुझ पर .

मैं- किसे परवाह है छोड़ उनको

पिस्ता- मैं तो झाट न समझू पर तू चुतिया है

मैं- अब जो भी हूँ तेरा हु

पिस्ता- हां खसम, अब जरा जोर लगा छूटने वाला है मेरा

मैं- हा मेरी सरकार.

गांड को आगे पीछे करते हुए कुछ झटको के बाद पिस्ता झड गयी और मैंने भी अपना पानी उसकी गांड पर गिरा दिया.

“सलवार देना मेरी जरा ” उसने कहा


मैं- उठा के ले ले. पानी पीने दे मुझे तो

पिस्ता- हाँ, काम निकलने के बाद तो कहेगा ही

मेरे वीर्य को सलवार से पोंछते हुए बोली वो .

मैं- काम कहाँ निकला, अभी तो रात बाकी है, काम बाकी है

पिस्ता- और नहीं करुँगी, एक बार बहुत है

मैं- एक बार और तो लूँगा ही पर पहले खाना परोस भूख लग आई .


पिस्ता और मैं खाना लेकर बैठ गए .

“दूध नहीं है क्या ” मैंने कहा


पिस्ता- थमेगा तो सब मिलेगा,

मैं- खाना बढ़िया बनाती है तू

पिस्ता- सो तो है तू बता क्या है नयी ताजा

मैं- छोड़, ये बात नाज मास्सी ने कुछ कहा था क्या तेरे को

पिस्ता- नहीं तो , कुछ हुआ क्या

मैं- कुछ नहीं वो जो बात माँ ने तुझे कही वो मुझे मासी ने कहा

पिस्ता- उन् लोगो की बात भी सही है अपनी जगह, तेरे मेरे रिश्ते का ढोल नहीं बजना चाहिए था गाँव में.

मैं- जो हुआ सो हुआ , मासी बोली की मैं इश्क करने लगा हु तुझसे

पिस्ता- पर तू नहीं करता ,

मैं- तुझे क्या लगता है

पिस्ता- देख, देव .मेरी बात को अच्छे से समझ ले. ये सब जो भी हम कर रहे है, मेरे दिल में बहुत कद्र है तेरी . तेरा मेरा जो रिश्ता है वो तू समझता है मैं समझती हूँ, इश्क मोहब्बत फिल्मो के किस्से होते है असली जिन्दगी में बस लेनी देनी होती है .

मैं- और अगर कभी इश्क हो गया तो

पिस्ता- नहीं होगा यार

मैं- ठीक है सरकार, कल शहर जाऊंगा मुनीम से मिलने तू भी चल .

पिस्ता- कल माँ आ जाएगी मुश्किल होगा

मैं- सुबह चलेंगे दोपहर तक आ जायेगे

पिस्ता- चल फिर .

खाना खाने के बाद मैंने और पिस्ता ने एक राउंड और लिया . सुबह नाज भी मेरे साथ हॉस्पिटल जाना चाहती थी पर मैंने बहाना मारा और पिस्ता को लेकर शहर की तरफ चल दिया.

“गाडी ले आया वाह जी वाह ” पिस्ता बोली


मैं- मुनीम की है , जब तक वो हॉस्पिटल में रहेगा मैं ही चलाऊंगा इसे सोच लिया मैंने

पिस्ता- बढ़िया है

बाते करते हुए हम गाँव से काफी आगे निकल आये थे, की तभी पिस्ता ने गाड़ी रोकने को बोला

“क्या हुआ ” मैंने कहा


पिस्ता- मूत आया है

मैं- गाड़ी में ही मूत दे

पिस्ता- रोक न यार


मैं- ठीक है

गाड़ी साइड में रोकते ही पिस्ता झाड़ियो की तरफ गयी मूतने. मुझे तो चुल थी तो मैं उसके पीछे हो लिया

“चैन से मूत तो लेने दे न ” बोली वो


मैं- सुन यहाँ देगी की कसम से मजा आ जायेगा

पिस्ता- यहाँ नहीं सड़क के बीचोबीच करते है फुल मजा आयेगा

मैं- क्या कह रही है

पिस्ता- चूतिये बेहूदा बाते क्यों करता है हर समय तू . मेरे कोई झांतो में आग लगी है जो कहीं भी पसर जाऊ

पिस्ता की बात का मैं कोई भी जवाब देता उस से पहले ही मेरे कानो के परदे हिल गए. इतने जोर से धमाका हुआ की मैं और पिस्ता झाड़ियो में आगे को गिर गए. कुछ देर तो समझ ही नहीं आया की हुआ क्या है . खुद को सँभालते हुए हम सड़क पर आये तो देखा की गाडी धू-धू करके जल रही थी ......................
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत मदमस्त अपडेट है भाई मजा आ गया
पिस्ता को मुत ना लगती तो देव के साथ पिस्ता का भी टिकीट कट गया होता गाडी के विस्फोट में
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

Tiger 786

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दुधिया जांघो के बीच गहरे काले मुलायम बालो से ढकी नाज की चूत को देखना इतना मादक अनुभव था की मैंने कानो के पीछे से पसीने की बूंदों को बहते हुए महसूस किया. नाज की चूत वाकई में बहुत ही खूबसूरत थी .

“घाघरे को वापिस पहन लो मासी , मेरी दोस्ती इतनी सस्ती नहीं की तुम्हारी चूत उसका मोल लगा सके. और अपने ही घर की औरतो की चूत का मोल लगाया तो फिर मेरी क्या ही हसियत रहेगी. तुम्हे पाने के लिए मुझे ये सब करने की जरूरत नहीं है ,तुम पर तुम्हारी चूत पर वैसे ही हक़ है मेरा, जिस दिन मेरा मन हुआ हक़ से ले लूँगा और उस दिन मना भी नहीं कर पाओगी तुम ” कहते हुए मैंने झुककर घाघरे को ऊपर उठाया और नाज की कमर पर बाँध दिया.

“वैसे बहुत ही ज्यादा गदराई हुई हो तुम मासी ” मैंने नाज को अपनी बाँहों में भरते हुए उसके होंठ को हलके से चूमा


“तेरी दोस्ती की फ़िक्र नहीं देव ” कांपते हुए बोली वो

मैं- फिर क्यों ये घबराहट


नाज- क्योकि दोस्त नहीं वो तेरी, इश्क है वो . न तुझसे न पिस्ता से डर लगता है, डर उस इश्क से है जो तेरी आँखों में है . जो तू उस से करता है . डर उस आने वाले कल से है जो इस इश्क के साथ आएगा.

मैं- इश्क, अरे नहीं मासी. ऐसा तो कुछ नहीं है


मासी- तू बता फिर कैसा है

मैं- पता नहीं . फ़िलहाल दूध है तो दे दे, फिर मुझे जाना ही कहीं

नाज- उसके ही पास जाएगा न

मैं- जब तुम जानती ही हो तो फिर क्यों पूछती हो .

नाज- ठीक है ठीक है.

दूध पीने के बाद मैं पिस्ता के घर को चल दिया . एक रात और रंगीन होने वाली थी . अन्दर जाते ही मैंने पिस्ता को बाँहों में भर लिया और उसके लबो को चूसने लगा.

“थम जा बेसब्रे, ” उसने कहा


मैं-अब सब्र कहाँ सरकार.

“पिस्ता- रोटी भी ना खाई अभी तो ”

मैं- अब सब बाद में


मैंने फुर्ती से पिस्ता का नाडा खोला और आँगन में ही उसको झुका दिया. पिस्ता के गोल नितम्ब बहुत ही प्यारे और शानदार थे , चूँकि पिस्ता गोलमोल लड़की थी तो और भी मजेदार,लंड पर थूक लगाया और चूत में सरका दिया .

“आई, ऐसी भी क्या बेसब्री खसम ” घुटनों पर हाथ रखते हुए बोली वो .

“अब करार ही करार ” मैंने अपने हाथो से उसकी कमर थामी और चुदाई शुरू हो गयी .बीतते सावन की रात में खुले आँगन में चुदाई करने का अलग ही मजा था, हमारे गर्म होते बदनो को ठंडी हवा चूम रही थी .


“बहुत गर्म है तेरा भोसड़ा ” मैंने उसके पुट्ठो को मसलते हुए कहा

“” पिघल रहा है क्या तू बोली वो “

मैं- हाँ मेरी जान.

पिस्ता- मजा आ रहा है


मैं- बहुत

पिस्ता- तो जोर से चोदना , तोड़ कर रख दे मुझे आज

पिस्ता अपना हाथ जांघो के बीच ले गयी और मेरे अन्डकोशो को सहलाने लगी. कसम से उत्तेजना और बढ़ गयी . फिर ना कुछ वो बोली ना मैं बोला . आँगन में थप थप की आवाज गूँज रही थी , सांसे उफन रही थी . कुछ देर बाद मैंने चूत से लंड बाहर निकाल लिया और पिस्ता को खीच कर दिवार के जंगले से सटा दिया.

“चुतड चौड़े कर जरा ” मैंने कहा तो पिस्ता ने अपने हाथो से कुलहो को फैलाया और मैंने लंड फिर से चूत में सरका दिया. अब खड़े खड़े चुदाई शुरू थी मेरे हाथ उसकी चुचियो को मसल रहे थे . होंठ उसके गालो को चूम रहे थे .



“चीज है जानेमन तू ” मैंने कहा

पिस्ता- इसीलिए तो तुझे दे रही हु

पिस्ता की चूत से बहता काम रस उसकी जांघो तक को भिगोने लगा था .

“गाल पर मत काट, निशान पड़ जायेगा ” तुनक कर बोली वो .

मैं- तो कह देना तेरे यार ने चुसे ये गाल


पिस्ता- मैं तो ढोल बजा दूंगी इस बात का पर फिर सबसे ज्यादा नारजगी तेरे घर वालो को ही होगी, चौधरानी आज नाराज हो रही थी मुझ पर .

मैं- किसे परवाह है छोड़ उनको

पिस्ता- मैं तो झाट न समझू पर तू चुतिया है

मैं- अब जो भी हूँ तेरा हु

पिस्ता- हां खसम, अब जरा जोर लगा छूटने वाला है मेरा

मैं- हा मेरी सरकार.

गांड को आगे पीछे करते हुए कुछ झटको के बाद पिस्ता झड गयी और मैंने भी अपना पानी उसकी गांड पर गिरा दिया.

“सलवार देना मेरी जरा ” उसने कहा


मैं- उठा के ले ले. पानी पीने दे मुझे तो

पिस्ता- हाँ, काम निकलने के बाद तो कहेगा ही

मेरे वीर्य को सलवार से पोंछते हुए बोली वो .

मैं- काम कहाँ निकला, अभी तो रात बाकी है, काम बाकी है

पिस्ता- और नहीं करुँगी, एक बार बहुत है

मैं- एक बार और तो लूँगा ही पर पहले खाना परोस भूख लग आई .


पिस्ता और मैं खाना लेकर बैठ गए .

“दूध नहीं है क्या ” मैंने कहा


पिस्ता- थमेगा तो सब मिलेगा,

मैं- खाना बढ़िया बनाती है तू

पिस्ता- सो तो है तू बता क्या है नयी ताजा

मैं- छोड़, ये बात नाज मास्सी ने कुछ कहा था क्या तेरे को

पिस्ता- नहीं तो , कुछ हुआ क्या

मैं- कुछ नहीं वो जो बात माँ ने तुझे कही वो मुझे मासी ने कहा

पिस्ता- उन् लोगो की बात भी सही है अपनी जगह, तेरे मेरे रिश्ते का ढोल नहीं बजना चाहिए था गाँव में.

मैं- जो हुआ सो हुआ , मासी बोली की मैं इश्क करने लगा हु तुझसे

पिस्ता- पर तू नहीं करता ,

मैं- तुझे क्या लगता है

पिस्ता- देख, देव .मेरी बात को अच्छे से समझ ले. ये सब जो भी हम कर रहे है, मेरे दिल में बहुत कद्र है तेरी . तेरा मेरा जो रिश्ता है वो तू समझता है मैं समझती हूँ, इश्क मोहब्बत फिल्मो के किस्से होते है असली जिन्दगी में बस लेनी देनी होती है .

मैं- और अगर कभी इश्क हो गया तो

पिस्ता- नहीं होगा यार

मैं- ठीक है सरकार, कल शहर जाऊंगा मुनीम से मिलने तू भी चल .

पिस्ता- कल माँ आ जाएगी मुश्किल होगा

मैं- सुबह चलेंगे दोपहर तक आ जायेगे

पिस्ता- चल फिर .

खाना खाने के बाद मैंने और पिस्ता ने एक राउंड और लिया . सुबह नाज भी मेरे साथ हॉस्पिटल जाना चाहती थी पर मैंने बहाना मारा और पिस्ता को लेकर शहर की तरफ चल दिया.

“गाडी ले आया वाह जी वाह ” पिस्ता बोली


मैं- मुनीम की है , जब तक वो हॉस्पिटल में रहेगा मैं ही चलाऊंगा इसे सोच लिया मैंने

पिस्ता- बढ़िया है

बाते करते हुए हम गाँव से काफी आगे निकल आये थे, की तभी पिस्ता ने गाड़ी रोकने को बोला

“क्या हुआ ” मैंने कहा


पिस्ता- मूत आया है

मैं- गाड़ी में ही मूत दे

पिस्ता- रोक न यार


मैं- ठीक है

गाड़ी साइड में रोकते ही पिस्ता झाड़ियो की तरफ गयी मूतने. मुझे तो चुल थी तो मैं उसके पीछे हो लिया

“चैन से मूत तो लेने दे न ” बोली वो


मैं- सुन यहाँ देगी की कसम से मजा आ जायेगा

पिस्ता- यहाँ नहीं सड़क के बीचोबीच करते है फुल मजा आयेगा

मैं- क्या कह रही है

पिस्ता- चूतिये बेहूदा बाते क्यों करता है हर समय तू . मेरे कोई झांतो में आग लगी है जो कहीं भी पसर जाऊ

पिस्ता की बात का मैं कोई भी जवाब देता उस से पहले ही मेरे कानो के परदे हिल गए. इतने जोर से धमाका हुआ की मैं और पिस्ता झाड़ियो में आगे को गिर गए. कुछ देर तो समझ ही नहीं आया की हुआ क्या है . खुद को सँभालते हुए हम सड़क पर आये तो देखा की गाडी धू-धू करके जल रही थी ......................
Fantastic update
 

kas1709

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#41

दुधिया जांघो के बीच गहरे काले मुलायम बालो से ढकी नाज की चूत को देखना इतना मादक अनुभव था की मैंने कानो के पीछे से पसीने की बूंदों को बहते हुए महसूस किया. नाज की चूत वाकई में बहुत ही खूबसूरत थी .

“घाघरे को वापिस पहन लो मासी , मेरी दोस्ती इतनी सस्ती नहीं की तुम्हारी चूत उसका मोल लगा सके. और अपने ही घर की औरतो की चूत का मोल लगाया तो फिर मेरी क्या ही हसियत रहेगी. तुम्हे पाने के लिए मुझे ये सब करने की जरूरत नहीं है ,तुम पर तुम्हारी चूत पर वैसे ही हक़ है मेरा, जिस दिन मेरा मन हुआ हक़ से ले लूँगा और उस दिन मना भी नहीं कर पाओगी तुम ” कहते हुए मैंने झुककर घाघरे को ऊपर उठाया और नाज की कमर पर बाँध दिया.

“वैसे बहुत ही ज्यादा गदराई हुई हो तुम मासी ” मैंने नाज को अपनी बाँहों में भरते हुए उसके होंठ को हलके से चूमा


“तेरी दोस्ती की फ़िक्र नहीं देव ” कांपते हुए बोली वो

मैं- फिर क्यों ये घबराहट


नाज- क्योकि दोस्त नहीं वो तेरी, इश्क है वो . न तुझसे न पिस्ता से डर लगता है, डर उस इश्क से है जो तेरी आँखों में है . जो तू उस से करता है . डर उस आने वाले कल से है जो इस इश्क के साथ आएगा.

मैं- इश्क, अरे नहीं मासी. ऐसा तो कुछ नहीं है


मासी- तू बता फिर कैसा है

मैं- पता नहीं . फ़िलहाल दूध है तो दे दे, फिर मुझे जाना ही कहीं

नाज- उसके ही पास जाएगा न

मैं- जब तुम जानती ही हो तो फिर क्यों पूछती हो .

नाज- ठीक है ठीक है.

दूध पीने के बाद मैं पिस्ता के घर को चल दिया . एक रात और रंगीन होने वाली थी . अन्दर जाते ही मैंने पिस्ता को बाँहों में भर लिया और उसके लबो को चूसने लगा.

“थम जा बेसब्रे, ” उसने कहा


मैं-अब सब्र कहाँ सरकार.

“पिस्ता- रोटी भी ना खाई अभी तो ”

मैं- अब सब बाद में


मैंने फुर्ती से पिस्ता का नाडा खोला और आँगन में ही उसको झुका दिया. पिस्ता के गोल नितम्ब बहुत ही प्यारे और शानदार थे , चूँकि पिस्ता गोलमोल लड़की थी तो और भी मजेदार,लंड पर थूक लगाया और चूत में सरका दिया .

“आई, ऐसी भी क्या बेसब्री खसम ” घुटनों पर हाथ रखते हुए बोली वो .

“अब करार ही करार ” मैंने अपने हाथो से उसकी कमर थामी और चुदाई शुरू हो गयी .बीतते सावन की रात में खुले आँगन में चुदाई करने का अलग ही मजा था, हमारे गर्म होते बदनो को ठंडी हवा चूम रही थी .


“बहुत गर्म है तेरा भोसड़ा ” मैंने उसके पुट्ठो को मसलते हुए कहा

“” पिघल रहा है क्या तू बोली वो “

मैं- हाँ मेरी जान.

पिस्ता- मजा आ रहा है


मैं- बहुत

पिस्ता- तो जोर से चोदना , तोड़ कर रख दे मुझे आज

पिस्ता अपना हाथ जांघो के बीच ले गयी और मेरे अन्डकोशो को सहलाने लगी. कसम से उत्तेजना और बढ़ गयी . फिर ना कुछ वो बोली ना मैं बोला . आँगन में थप थप की आवाज गूँज रही थी , सांसे उफन रही थी . कुछ देर बाद मैंने चूत से लंड बाहर निकाल लिया और पिस्ता को खीच कर दिवार के जंगले से सटा दिया.

“चुतड चौड़े कर जरा ” मैंने कहा तो पिस्ता ने अपने हाथो से कुलहो को फैलाया और मैंने लंड फिर से चूत में सरका दिया. अब खड़े खड़े चुदाई शुरू थी मेरे हाथ उसकी चुचियो को मसल रहे थे . होंठ उसके गालो को चूम रहे थे .



“चीज है जानेमन तू ” मैंने कहा

पिस्ता- इसीलिए तो तुझे दे रही हु

पिस्ता की चूत से बहता काम रस उसकी जांघो तक को भिगोने लगा था .

“गाल पर मत काट, निशान पड़ जायेगा ” तुनक कर बोली वो .

मैं- तो कह देना तेरे यार ने चुसे ये गाल


पिस्ता- मैं तो ढोल बजा दूंगी इस बात का पर फिर सबसे ज्यादा नारजगी तेरे घर वालो को ही होगी, चौधरानी आज नाराज हो रही थी मुझ पर .

मैं- किसे परवाह है छोड़ उनको

पिस्ता- मैं तो झाट न समझू पर तू चुतिया है

मैं- अब जो भी हूँ तेरा हु

पिस्ता- हां खसम, अब जरा जोर लगा छूटने वाला है मेरा

मैं- हा मेरी सरकार.

गांड को आगे पीछे करते हुए कुछ झटको के बाद पिस्ता झड गयी और मैंने भी अपना पानी उसकी गांड पर गिरा दिया.

“सलवार देना मेरी जरा ” उसने कहा


मैं- उठा के ले ले. पानी पीने दे मुझे तो

पिस्ता- हाँ, काम निकलने के बाद तो कहेगा ही

मेरे वीर्य को सलवार से पोंछते हुए बोली वो .

मैं- काम कहाँ निकला, अभी तो रात बाकी है, काम बाकी है

पिस्ता- और नहीं करुँगी, एक बार बहुत है

मैं- एक बार और तो लूँगा ही पर पहले खाना परोस भूख लग आई .


पिस्ता और मैं खाना लेकर बैठ गए .

“दूध नहीं है क्या ” मैंने कहा


पिस्ता- थमेगा तो सब मिलेगा,

मैं- खाना बढ़िया बनाती है तू

पिस्ता- सो तो है तू बता क्या है नयी ताजा

मैं- छोड़, ये बात नाज मास्सी ने कुछ कहा था क्या तेरे को

पिस्ता- नहीं तो , कुछ हुआ क्या

मैं- कुछ नहीं वो जो बात माँ ने तुझे कही वो मुझे मासी ने कहा

पिस्ता- उन् लोगो की बात भी सही है अपनी जगह, तेरे मेरे रिश्ते का ढोल नहीं बजना चाहिए था गाँव में.

मैं- जो हुआ सो हुआ , मासी बोली की मैं इश्क करने लगा हु तुझसे

पिस्ता- पर तू नहीं करता ,

मैं- तुझे क्या लगता है

पिस्ता- देख, देव .मेरी बात को अच्छे से समझ ले. ये सब जो भी हम कर रहे है, मेरे दिल में बहुत कद्र है तेरी . तेरा मेरा जो रिश्ता है वो तू समझता है मैं समझती हूँ, इश्क मोहब्बत फिल्मो के किस्से होते है असली जिन्दगी में बस लेनी देनी होती है .

मैं- और अगर कभी इश्क हो गया तो

पिस्ता- नहीं होगा यार

मैं- ठीक है सरकार, कल शहर जाऊंगा मुनीम से मिलने तू भी चल .

पिस्ता- कल माँ आ जाएगी मुश्किल होगा

मैं- सुबह चलेंगे दोपहर तक आ जायेगे

पिस्ता- चल फिर .

खाना खाने के बाद मैंने और पिस्ता ने एक राउंड और लिया . सुबह नाज भी मेरे साथ हॉस्पिटल जाना चाहती थी पर मैंने बहाना मारा और पिस्ता को लेकर शहर की तरफ चल दिया.

“गाडी ले आया वाह जी वाह ” पिस्ता बोली


मैं- मुनीम की है , जब तक वो हॉस्पिटल में रहेगा मैं ही चलाऊंगा इसे सोच लिया मैंने

पिस्ता- बढ़िया है

बाते करते हुए हम गाँव से काफी आगे निकल आये थे, की तभी पिस्ता ने गाड़ी रोकने को बोला

“क्या हुआ ” मैंने कहा


पिस्ता- मूत आया है

मैं- गाड़ी में ही मूत दे

पिस्ता- रोक न यार


मैं- ठीक है

गाड़ी साइड में रोकते ही पिस्ता झाड़ियो की तरफ गयी मूतने. मुझे तो चुल थी तो मैं उसके पीछे हो लिया

“चैन से मूत तो लेने दे न ” बोली वो


मैं- सुन यहाँ देगी की कसम से मजा आ जायेगा

पिस्ता- यहाँ नहीं सड़क के बीचोबीच करते है फुल मजा आयेगा

मैं- क्या कह रही है

पिस्ता- चूतिये बेहूदा बाते क्यों करता है हर समय तू . मेरे कोई झांतो में आग लगी है जो कहीं भी पसर जाऊ

पिस्ता की बात का मैं कोई भी जवाब देता उस से पहले ही मेरे कानो के परदे हिल गए. इतने जोर से धमाका हुआ की मैं और पिस्ता झाड़ियो में आगे को गिर गए. कुछ देर तो समझ ही नहीं आया की हुआ क्या है . खुद को सँभालते हुए हम सड़क पर आये तो देखा की गाडी धू-धू करके जल रही थी ......................
Nice update....
 

dhparikh

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#41

दुधिया जांघो के बीच गहरे काले मुलायम बालो से ढकी नाज की चूत को देखना इतना मादक अनुभव था की मैंने कानो के पीछे से पसीने की बूंदों को बहते हुए महसूस किया. नाज की चूत वाकई में बहुत ही खूबसूरत थी .

“घाघरे को वापिस पहन लो मासी , मेरी दोस्ती इतनी सस्ती नहीं की तुम्हारी चूत उसका मोल लगा सके. और अपने ही घर की औरतो की चूत का मोल लगाया तो फिर मेरी क्या ही हसियत रहेगी. तुम्हे पाने के लिए मुझे ये सब करने की जरूरत नहीं है ,तुम पर तुम्हारी चूत पर वैसे ही हक़ है मेरा, जिस दिन मेरा मन हुआ हक़ से ले लूँगा और उस दिन मना भी नहीं कर पाओगी तुम ” कहते हुए मैंने झुककर घाघरे को ऊपर उठाया और नाज की कमर पर बाँध दिया.

“वैसे बहुत ही ज्यादा गदराई हुई हो तुम मासी ” मैंने नाज को अपनी बाँहों में भरते हुए उसके होंठ को हलके से चूमा


“तेरी दोस्ती की फ़िक्र नहीं देव ” कांपते हुए बोली वो

मैं- फिर क्यों ये घबराहट


नाज- क्योकि दोस्त नहीं वो तेरी, इश्क है वो . न तुझसे न पिस्ता से डर लगता है, डर उस इश्क से है जो तेरी आँखों में है . जो तू उस से करता है . डर उस आने वाले कल से है जो इस इश्क के साथ आएगा.

मैं- इश्क, अरे नहीं मासी. ऐसा तो कुछ नहीं है


मासी- तू बता फिर कैसा है

मैं- पता नहीं . फ़िलहाल दूध है तो दे दे, फिर मुझे जाना ही कहीं

नाज- उसके ही पास जाएगा न

मैं- जब तुम जानती ही हो तो फिर क्यों पूछती हो .

नाज- ठीक है ठीक है.

दूध पीने के बाद मैं पिस्ता के घर को चल दिया . एक रात और रंगीन होने वाली थी . अन्दर जाते ही मैंने पिस्ता को बाँहों में भर लिया और उसके लबो को चूसने लगा.

“थम जा बेसब्रे, ” उसने कहा


मैं-अब सब्र कहाँ सरकार.

“पिस्ता- रोटी भी ना खाई अभी तो ”

मैं- अब सब बाद में


मैंने फुर्ती से पिस्ता का नाडा खोला और आँगन में ही उसको झुका दिया. पिस्ता के गोल नितम्ब बहुत ही प्यारे और शानदार थे , चूँकि पिस्ता गोलमोल लड़की थी तो और भी मजेदार,लंड पर थूक लगाया और चूत में सरका दिया .

“आई, ऐसी भी क्या बेसब्री खसम ” घुटनों पर हाथ रखते हुए बोली वो .

“अब करार ही करार ” मैंने अपने हाथो से उसकी कमर थामी और चुदाई शुरू हो गयी .बीतते सावन की रात में खुले आँगन में चुदाई करने का अलग ही मजा था, हमारे गर्म होते बदनो को ठंडी हवा चूम रही थी .


“बहुत गर्म है तेरा भोसड़ा ” मैंने उसके पुट्ठो को मसलते हुए कहा

“” पिघल रहा है क्या तू बोली वो “

मैं- हाँ मेरी जान.

पिस्ता- मजा आ रहा है


मैं- बहुत

पिस्ता- तो जोर से चोदना , तोड़ कर रख दे मुझे आज

पिस्ता अपना हाथ जांघो के बीच ले गयी और मेरे अन्डकोशो को सहलाने लगी. कसम से उत्तेजना और बढ़ गयी . फिर ना कुछ वो बोली ना मैं बोला . आँगन में थप थप की आवाज गूँज रही थी , सांसे उफन रही थी . कुछ देर बाद मैंने चूत से लंड बाहर निकाल लिया और पिस्ता को खीच कर दिवार के जंगले से सटा दिया.

“चुतड चौड़े कर जरा ” मैंने कहा तो पिस्ता ने अपने हाथो से कुलहो को फैलाया और मैंने लंड फिर से चूत में सरका दिया. अब खड़े खड़े चुदाई शुरू थी मेरे हाथ उसकी चुचियो को मसल रहे थे . होंठ उसके गालो को चूम रहे थे .



“चीज है जानेमन तू ” मैंने कहा

पिस्ता- इसीलिए तो तुझे दे रही हु

पिस्ता की चूत से बहता काम रस उसकी जांघो तक को भिगोने लगा था .

“गाल पर मत काट, निशान पड़ जायेगा ” तुनक कर बोली वो .

मैं- तो कह देना तेरे यार ने चुसे ये गाल


पिस्ता- मैं तो ढोल बजा दूंगी इस बात का पर फिर सबसे ज्यादा नारजगी तेरे घर वालो को ही होगी, चौधरानी आज नाराज हो रही थी मुझ पर .

मैं- किसे परवाह है छोड़ उनको

पिस्ता- मैं तो झाट न समझू पर तू चुतिया है

मैं- अब जो भी हूँ तेरा हु

पिस्ता- हां खसम, अब जरा जोर लगा छूटने वाला है मेरा

मैं- हा मेरी सरकार.

गांड को आगे पीछे करते हुए कुछ झटको के बाद पिस्ता झड गयी और मैंने भी अपना पानी उसकी गांड पर गिरा दिया.

“सलवार देना मेरी जरा ” उसने कहा


मैं- उठा के ले ले. पानी पीने दे मुझे तो

पिस्ता- हाँ, काम निकलने के बाद तो कहेगा ही

मेरे वीर्य को सलवार से पोंछते हुए बोली वो .

मैं- काम कहाँ निकला, अभी तो रात बाकी है, काम बाकी है

पिस्ता- और नहीं करुँगी, एक बार बहुत है

मैं- एक बार और तो लूँगा ही पर पहले खाना परोस भूख लग आई .


पिस्ता और मैं खाना लेकर बैठ गए .

“दूध नहीं है क्या ” मैंने कहा


पिस्ता- थमेगा तो सब मिलेगा,

मैं- खाना बढ़िया बनाती है तू

पिस्ता- सो तो है तू बता क्या है नयी ताजा

मैं- छोड़, ये बात नाज मास्सी ने कुछ कहा था क्या तेरे को

पिस्ता- नहीं तो , कुछ हुआ क्या

मैं- कुछ नहीं वो जो बात माँ ने तुझे कही वो मुझे मासी ने कहा

पिस्ता- उन् लोगो की बात भी सही है अपनी जगह, तेरे मेरे रिश्ते का ढोल नहीं बजना चाहिए था गाँव में.

मैं- जो हुआ सो हुआ , मासी बोली की मैं इश्क करने लगा हु तुझसे

पिस्ता- पर तू नहीं करता ,

मैं- तुझे क्या लगता है

पिस्ता- देख, देव .मेरी बात को अच्छे से समझ ले. ये सब जो भी हम कर रहे है, मेरे दिल में बहुत कद्र है तेरी . तेरा मेरा जो रिश्ता है वो तू समझता है मैं समझती हूँ, इश्क मोहब्बत फिल्मो के किस्से होते है असली जिन्दगी में बस लेनी देनी होती है .

मैं- और अगर कभी इश्क हो गया तो

पिस्ता- नहीं होगा यार

मैं- ठीक है सरकार, कल शहर जाऊंगा मुनीम से मिलने तू भी चल .

पिस्ता- कल माँ आ जाएगी मुश्किल होगा

मैं- सुबह चलेंगे दोपहर तक आ जायेगे

पिस्ता- चल फिर .

खाना खाने के बाद मैंने और पिस्ता ने एक राउंड और लिया . सुबह नाज भी मेरे साथ हॉस्पिटल जाना चाहती थी पर मैंने बहाना मारा और पिस्ता को लेकर शहर की तरफ चल दिया.

“गाडी ले आया वाह जी वाह ” पिस्ता बोली


मैं- मुनीम की है , जब तक वो हॉस्पिटल में रहेगा मैं ही चलाऊंगा इसे सोच लिया मैंने

पिस्ता- बढ़िया है

बाते करते हुए हम गाँव से काफी आगे निकल आये थे, की तभी पिस्ता ने गाड़ी रोकने को बोला

“क्या हुआ ” मैंने कहा


पिस्ता- मूत आया है

मैं- गाड़ी में ही मूत दे

पिस्ता- रोक न यार


मैं- ठीक है

गाड़ी साइड में रोकते ही पिस्ता झाड़ियो की तरफ गयी मूतने. मुझे तो चुल थी तो मैं उसके पीछे हो लिया

“चैन से मूत तो लेने दे न ” बोली वो


मैं- सुन यहाँ देगी की कसम से मजा आ जायेगा

पिस्ता- यहाँ नहीं सड़क के बीचोबीच करते है फुल मजा आयेगा

मैं- क्या कह रही है

पिस्ता- चूतिये बेहूदा बाते क्यों करता है हर समय तू . मेरे कोई झांतो में आग लगी है जो कहीं भी पसर जाऊ

पिस्ता की बात का मैं कोई भी जवाब देता उस से पहले ही मेरे कानो के परदे हिल गए. इतने जोर से धमाका हुआ की मैं और पिस्ता झाड़ियो में आगे को गिर गए. कुछ देर तो समझ ही नहीं आया की हुआ क्या है . खुद को सँभालते हुए हम सड़क पर आये तो देखा की गाडी धू-धू करके जल रही थी ......................
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दुधिया जांघो के बीच गहरे काले मुलायम बालो से ढकी नाज की चूत को देखना इतना मादक अनुभव था की मैंने कानो के पीछे से पसीने की बूंदों को बहते हुए महसूस किया. नाज की चूत वाकई में बहुत ही खूबसूरत थी .

“घाघरे को वापिस पहन लो मासी , मेरी दोस्ती इतनी सस्ती नहीं की तुम्हारी चूत उसका मोल लगा सके. और अपने ही घर की औरतो की चूत का मोल लगाया तो फिर मेरी क्या ही हसियत रहेगी. तुम्हे पाने के लिए मुझे ये सब करने की जरूरत नहीं है ,तुम पर तुम्हारी चूत पर वैसे ही हक़ है मेरा, जिस दिन मेरा मन हुआ हक़ से ले लूँगा और उस दिन मना भी नहीं कर पाओगी तुम ” कहते हुए मैंने झुककर घाघरे को ऊपर उठाया और नाज की कमर पर बाँध दिया.

“वैसे बहुत ही ज्यादा गदराई हुई हो तुम मासी ” मैंने नाज को अपनी बाँहों में भरते हुए उसके होंठ को हलके से चूमा


“तेरी दोस्ती की फ़िक्र नहीं देव ” कांपते हुए बोली वो

मैं- फिर क्यों ये घबराहट


नाज- क्योकि दोस्त नहीं वो तेरी, इश्क है वो . न तुझसे न पिस्ता से डर लगता है, डर उस इश्क से है जो तेरी आँखों में है . जो तू उस से करता है . डर उस आने वाले कल से है जो इस इश्क के साथ आएगा.

मैं- इश्क, अरे नहीं मासी. ऐसा तो कुछ नहीं है


मासी- तू बता फिर कैसा है

मैं- पता नहीं . फ़िलहाल दूध है तो दे दे, फिर मुझे जाना ही कहीं

नाज- उसके ही पास जाएगा न

मैं- जब तुम जानती ही हो तो फिर क्यों पूछती हो .

नाज- ठीक है ठीक है.

दूध पीने के बाद मैं पिस्ता के घर को चल दिया . एक रात और रंगीन होने वाली थी . अन्दर जाते ही मैंने पिस्ता को बाँहों में भर लिया और उसके लबो को चूसने लगा.

“थम जा बेसब्रे, ” उसने कहा


मैं-अब सब्र कहाँ सरकार.

“पिस्ता- रोटी भी ना खाई अभी तो ”

मैं- अब सब बाद में


मैंने फुर्ती से पिस्ता का नाडा खोला और आँगन में ही उसको झुका दिया. पिस्ता के गोल नितम्ब बहुत ही प्यारे और शानदार थे , चूँकि पिस्ता गोलमोल लड़की थी तो और भी मजेदार,लंड पर थूक लगाया और चूत में सरका दिया .

“आई, ऐसी भी क्या बेसब्री खसम ” घुटनों पर हाथ रखते हुए बोली वो .

“अब करार ही करार ” मैंने अपने हाथो से उसकी कमर थामी और चुदाई शुरू हो गयी .बीतते सावन की रात में खुले आँगन में चुदाई करने का अलग ही मजा था, हमारे गर्म होते बदनो को ठंडी हवा चूम रही थी .


“बहुत गर्म है तेरा भोसड़ा ” मैंने उसके पुट्ठो को मसलते हुए कहा

“” पिघल रहा है क्या तू बोली वो “

मैं- हाँ मेरी जान.

पिस्ता- मजा आ रहा है


मैं- बहुत

पिस्ता- तो जोर से चोदना , तोड़ कर रख दे मुझे आज

पिस्ता अपना हाथ जांघो के बीच ले गयी और मेरे अन्डकोशो को सहलाने लगी. कसम से उत्तेजना और बढ़ गयी . फिर ना कुछ वो बोली ना मैं बोला . आँगन में थप थप की आवाज गूँज रही थी , सांसे उफन रही थी . कुछ देर बाद मैंने चूत से लंड बाहर निकाल लिया और पिस्ता को खीच कर दिवार के जंगले से सटा दिया.

“चुतड चौड़े कर जरा ” मैंने कहा तो पिस्ता ने अपने हाथो से कुलहो को फैलाया और मैंने लंड फिर से चूत में सरका दिया. अब खड़े खड़े चुदाई शुरू थी मेरे हाथ उसकी चुचियो को मसल रहे थे . होंठ उसके गालो को चूम रहे थे .



“चीज है जानेमन तू ” मैंने कहा

पिस्ता- इसीलिए तो तुझे दे रही हु

पिस्ता की चूत से बहता काम रस उसकी जांघो तक को भिगोने लगा था .

“गाल पर मत काट, निशान पड़ जायेगा ” तुनक कर बोली वो .

मैं- तो कह देना तेरे यार ने चुसे ये गाल


पिस्ता- मैं तो ढोल बजा दूंगी इस बात का पर फिर सबसे ज्यादा नारजगी तेरे घर वालो को ही होगी, चौधरानी आज नाराज हो रही थी मुझ पर .

मैं- किसे परवाह है छोड़ उनको

पिस्ता- मैं तो झाट न समझू पर तू चुतिया है

मैं- अब जो भी हूँ तेरा हु

पिस्ता- हां खसम, अब जरा जोर लगा छूटने वाला है मेरा

मैं- हा मेरी सरकार.

गांड को आगे पीछे करते हुए कुछ झटको के बाद पिस्ता झड गयी और मैंने भी अपना पानी उसकी गांड पर गिरा दिया.

“सलवार देना मेरी जरा ” उसने कहा


मैं- उठा के ले ले. पानी पीने दे मुझे तो

पिस्ता- हाँ, काम निकलने के बाद तो कहेगा ही

मेरे वीर्य को सलवार से पोंछते हुए बोली वो .

मैं- काम कहाँ निकला, अभी तो रात बाकी है, काम बाकी है

पिस्ता- और नहीं करुँगी, एक बार बहुत है

मैं- एक बार और तो लूँगा ही पर पहले खाना परोस भूख लग आई .


पिस्ता और मैं खाना लेकर बैठ गए .

“दूध नहीं है क्या ” मैंने कहा


पिस्ता- थमेगा तो सब मिलेगा,

मैं- खाना बढ़िया बनाती है तू

पिस्ता- सो तो है तू बता क्या है नयी ताजा

मैं- छोड़, ये बात नाज मास्सी ने कुछ कहा था क्या तेरे को

पिस्ता- नहीं तो , कुछ हुआ क्या

मैं- कुछ नहीं वो जो बात माँ ने तुझे कही वो मुझे मासी ने कहा

पिस्ता- उन् लोगो की बात भी सही है अपनी जगह, तेरे मेरे रिश्ते का ढोल नहीं बजना चाहिए था गाँव में.

मैं- जो हुआ सो हुआ , मासी बोली की मैं इश्क करने लगा हु तुझसे

पिस्ता- पर तू नहीं करता ,

मैं- तुझे क्या लगता है

पिस्ता- देख, देव .मेरी बात को अच्छे से समझ ले. ये सब जो भी हम कर रहे है, मेरे दिल में बहुत कद्र है तेरी . तेरा मेरा जो रिश्ता है वो तू समझता है मैं समझती हूँ, इश्क मोहब्बत फिल्मो के किस्से होते है असली जिन्दगी में बस लेनी देनी होती है .

मैं- और अगर कभी इश्क हो गया तो

पिस्ता- नहीं होगा यार

मैं- ठीक है सरकार, कल शहर जाऊंगा मुनीम से मिलने तू भी चल .

पिस्ता- कल माँ आ जाएगी मुश्किल होगा

मैं- सुबह चलेंगे दोपहर तक आ जायेगे

पिस्ता- चल फिर .

खाना खाने के बाद मैंने और पिस्ता ने एक राउंड और लिया . सुबह नाज भी मेरे साथ हॉस्पिटल जाना चाहती थी पर मैंने बहाना मारा और पिस्ता को लेकर शहर की तरफ चल दिया.

“गाडी ले आया वाह जी वाह ” पिस्ता बोली


मैं- मुनीम की है , जब तक वो हॉस्पिटल में रहेगा मैं ही चलाऊंगा इसे सोच लिया मैंने

पिस्ता- बढ़िया है

बाते करते हुए हम गाँव से काफी आगे निकल आये थे, की तभी पिस्ता ने गाड़ी रोकने को बोला

“क्या हुआ ” मैंने कहा


पिस्ता- मूत आया है

मैं- गाड़ी में ही मूत दे

पिस्ता- रोक न यार


मैं- ठीक है

गाड़ी साइड में रोकते ही पिस्ता झाड़ियो की तरफ गयी मूतने. मुझे तो चुल थी तो मैं उसके पीछे हो लिया

“चैन से मूत तो लेने दे न ” बोली वो


मैं- सुन यहाँ देगी की कसम से मजा आ जायेगा

पिस्ता- यहाँ नहीं सड़क के बीचोबीच करते है फुल मजा आयेगा

मैं- क्या कह रही है

पिस्ता- चूतिये बेहूदा बाते क्यों करता है हर समय तू . मेरे कोई झांतो में आग लगी है जो कहीं भी पसर जाऊ

पिस्ता की बात का मैं कोई भी जवाब देता उस से पहले ही मेरे कानो के परदे हिल गए. इतने जोर से धमाका हुआ की मैं और पिस्ता झाड़ियो में आगे को गिर गए. कुछ देर तो समझ ही नहीं आया की हुआ क्या है . खुद को सँभालते हुए हम सड़क पर आये तो देखा की गाडी धू-धू करके जल रही थी ......................
Ohh 1 or kand hote hote bach gaya
Pista ki chut or mut ne Dev ki jaan bacha li
 
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