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Adultery जब तक है जान

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
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“जो हो रहा है सही हो रहा है ” माँ ने कहा और चली गयी . रह गया मैं सोचते हुए की ये साला सही है या गलत. पर मैं ये नहीं जानता था की चुनोतिया असल में होती कैसी है ये वक्त बेक़रार था मुझे बताने को . कुछ अच्छा सा नहीं लग रहा था तो मैंने जोगन के पास जाने का सोचा और किस्मत देखो वो मुझे बड के पेड़ वाले चबूतरे पर बैठी मिल गयी.

“”तू यहाँ क्या कर रही है ” मैंने सवाल किया

जोगन- इंतज़ार

मैं- किसका

वो- वक्त का

मैं- क्या बकती रहती है तू , पल्ले ही नहीं पड़ती तेरी बाते

वो-तो तुझे नहीं दिख रहा क्या बैठी हूँ यहाँ पर

मैं- दिख तो रहा है खैर मत बता

जोगन- तुझे ना बताउंगी तो किस से कहूँगी अपने मन की

मैं- कुछ संजीदा सी है आज क्या बात है

जोगन- भला कौन संजीदा नहीं इस जहाँ में तुझे देख तेरे चेहरे का भी तो नूर गायब है .

मैं- क्या बताऊ तुझे, तुझसे कुछ छिपा भी तो नहीं. घर वालो से कलेश तय है देखना है की कब होगा कितना हो .खैर, मैंने इंतजाम कर लिया है दो चार दिन में मजदूर लोग पहुँच जायेगे खंडहर पर फिर तू जैसे चाहे निर्माण करवा लेना.

जोगन- तो कलेश करने का बीड़ा उठा लिया तूने . मेरे लिए क्यों अपने घर की शांति में आग लगाना चाहता है

मैं- वो घर भी अपना तू भी अपनी .

जोगन मुस्कुरा पड़ी पर बस पल दो पल के लिए

“एक बार फिर सोच ले , कदम बढ़ा तो वापस ना होगा ” बोली वो

मैं- तूने तो भाग्य देखा है मेरा, जब दुःख ही लिखा है तो क्या थोडा क्या ज्यादा कम से कम ख़ुशी तो रहेगी की अपनी दोस्त की ख्वाहिश पूरी की .

जोगन- तू समझता क्यों नहीं

मैं- तू समझाती भी तो नहीं

जोगण- डरती हु मैं

मैं- किस से

जोगन- अपने आप से अपने नसीब से ,

मैं- नसीब का तो पता नहीं पर मैं कर्म को मानता हु, तू भी मान अगर लड़ाई कर्म और नसीब की है तो फिर देखेंगे इन हाथो की लकीरों में लिखी बाते कितनी सच है .

जोगन ने मेरे माथे को चूमा और बोली- क्यों आया तू मेरी जिन्दगी में .जी तो रही थी ना तेरे बिना भी मैं

मैं-ये बात मुझसे नहीं तेरे हाथो की लकीरों से पूछ, तू तोदुनिया का भाग देखती है ना फिर देख ले क्या लिखा है तेरे भाग में

जोगन- इसीलिए तो पूछती हु की क्यों आया तू मेरी जिन्दगी में

मैं- तेरी जिन्दगी को जिन्दगी बनाने, तेरे वनवास को ख़त्म करने. पहली मुलाकात में तूने कहा था की तू घर को तलाशती है . मैं तुझे तेरे घर जरुर ले जाऊंगा

जोगन ने अपनी ऊँगली मेरे होंठो पर रखी और बोली- बस और कुछ मत बोल .

वापसी में मुझे पिस्ता मिली .

“कब से देख रही हु कहाँ गायब है तू ” बोली वो .

मैं- कुछ नहीं बस ऐसे ही

वो- बैठ पास मेरे

हम दोनों सडक किनारे ही बैठ गए.

पिस्ता- बोल कुछ तो

मैं- कम से कम बता तो सकती थी न की तेरा रिश्ता होने वाला है

पिस्ता- तेरी कसम , मुझे तो खुद तभी मालूम हुआ जब वो लोग घर आ गए. सब कुछ अचानक से हो गया.

मैं- मेरे बाप की साजिश है ये तुझे मुझसे दूर करने की

पिस्ता- बात तो सही है तेरी पर एक ना एक दिन तो ये सब होना ही था

मैं- जानता हु पर कुछ अच्छा सा नहीं लग रहा . लग रहा है की कुछ छूट रहा है , कुछ छीना जा रहा है मेरा.

पिस्ता- समझती हु देव, पर हर लड़की की जिंदगानी में ये दिन कभी ना कभी आता ही है जब वो किसी की दुल्हन बनती है अपनी गृहस्थी बसाती है . ये तो दस्तूर है जिन्दगी का .

“नहीं समझ पा रहा तू क्या कह रही है ” मैंने कहा

पिस्ता- तू भी जानता है की मैं क्या कह रही हु

ज़िन्दगी में पहली बार मैंने उसकी आँखों में पानी के कतरे देखे.

“ये मादरचोद दुनिया कभी नहीं समझ पायेगी देव इस दोस्ती को ” पिस्ता ने कहा

मैं- मना क्यों नहीं कर देती तू ब्याह के लिए

पिस्ता- इनको मना कर दूंगी पर कितनो को मना करुँगी एक न एक दिन तो ब्याह करवाना ही पड़ेगा न.

मैं- तू समझ नहीं रही

लगभग रो ही तो पड़ा था मैं

“न देव ना. रोक ले इन जज्बातों को . तेरे दिल को तुझसे ज्यादा जानती हु मैं दिल की बात को जुबान पर मत ला. मत बाँध मेरे पैरो में वो बेड़िया जिनका बोझ उठाया ना जा सके. ” पिस्ता ने कहा

“तू जानती है फिर भी ” मैंने कहा

“एक तुझे ही तो जाना है सरकार ” बोली वो .

“तुझसे जुदा न हो पाउँगा, तेरे बिना ना रह पाऊंगा. ”

पिस्ता- जानती हु , इसलिए तो समझा रही हु तुझे और फिर तुझसे मुझे भला कौन ही जुदा कर पायेगा. पिस्ता तो तेरी है , तेरी ही रहेगी.

मैं- फिर ये जुदाई क्यों

पिस्ता- जिस्म ही तो जुदा हो रहा है रूह तो तेरे पास ही है न

“तेरे बिना क्या ही वजूद रहेगा मेरा , ये जिन्दगी जीना तेरे साथ ही सीखा मैंने. ये हंसी- ये ख़ुशी सब तुझसे ही तो है ” मैंने कहा

पिस्ता-मेरे दिल से पूछ, मेरी धडकनों से पूछ कोई माने ना माने पर तुझमे ही रब देखा मैंने.

मैं- तो फिर सब जानते हुए भी क्यों अनजान बनती है तू

पिस्ता- मैं कहू फिर देव, तू ही बता क्या कहू कैसे समझाऊ तुझे

पिस्ता ने मुझे अपने सीने से लगा लिया और बहुत देर तक हम दोनों रोते ही रहे. शाम न जाने कब रात में बदल गयी , थके कदमो से हम लोग वापिस आये.

“ये चेहरा क्यों उतरा हुआ है तुम्हारा ” पुछा नाज ने

मैं-तबियत नासाज सी है कुछ

नाज- मालूम हुआ की मजदूरो से बात की तुमने खंडित मंदिर को दुबारा बनाने के लिए

मैं- तुम कैसे मालूम

नाज- घर पर आये थे वो चौधरी साहब से इजाजत मांगने

मैं- इसमें इजाजत की क्या बात है, मेरी इच्छा है मंदिर दुबारा बने.वैसे भी ऐसी जगह सूनी नहीं रहनी चाहिए.

नाज-देव, मुझे लगता है की तुम्हे एक बार अपने पिता से चर्चा कर लेनी चाहिए.उनकी सलाह लेने में कोई बुराई तो नहीं

मैं- निर्णय ले चूका हु मैं मासी

नाज-अपनी मासी की बात नहीं मानेगा

मैं- मासी के लिए तो जान भी दे दू

नाज ने मेरे सर को सहलाया और बोली- कल तू मेरे साथ चलेगा

मैं- कहा

नाज- उसी खंडित मंदिर में.


बहुत ही शानदार और जानदार अपडेट हैं भाई
मजा आ गया
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

Ouseph

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“जो हो रहा है सही हो रहा है ” माँ ने कहा और चली गयी . रह गया मैं सोचते हुए की ये साला सही है या गलत. पर मैं ये नहीं जानता था की चुनोतिया असल में होती कैसी है ये वक्त बेक़रार था मुझे बताने को . कुछ अच्छा सा नहीं लग रहा था तो मैंने जोगन के पास जाने का सोचा और किस्मत देखो वो मुझे बड के पेड़ वाले चबूतरे पर बैठी मिल गयी.

“”तू यहाँ क्या कर रही है ” मैंने सवाल किया

जोगन- इंतज़ार

मैं- किसका

वो- वक्त का

मैं- क्या बकती रहती है तू , पल्ले ही नहीं पड़ती तेरी बाते

वो-तो तुझे नहीं दिख रहा क्या बैठी हूँ यहाँ पर

मैं- दिख तो रहा है खैर मत बता

जोगन- तुझे ना बताउंगी तो किस से कहूँगी अपने मन की

मैं- कुछ संजीदा सी है आज क्या बात है

जोगन- भला कौन संजीदा नहीं इस जहाँ में तुझे देख तेरे चेहरे का भी तो नूर गायब है .

मैं- क्या बताऊ तुझे, तुझसे कुछ छिपा भी तो नहीं. घर वालो से कलेश तय है देखना है की कब होगा कितना हो .खैर, मैंने इंतजाम कर लिया है दो चार दिन में मजदूर लोग पहुँच जायेगे खंडहर पर फिर तू जैसे चाहे निर्माण करवा लेना.

जोगन- तो कलेश करने का बीड़ा उठा लिया तूने . मेरे लिए क्यों अपने घर की शांति में आग लगाना चाहता है

मैं- वो घर भी अपना तू भी अपनी .

जोगन मुस्कुरा पड़ी पर बस पल दो पल के लिए

“एक बार फिर सोच ले , कदम बढ़ा तो वापस ना होगा ” बोली वो

मैं- तूने तो भाग्य देखा है मेरा, जब दुःख ही लिखा है तो क्या थोडा क्या ज्यादा कम से कम ख़ुशी तो रहेगी की अपनी दोस्त की ख्वाहिश पूरी की .

जोगन- तू समझता क्यों नहीं

मैं- तू समझाती भी तो नहीं

जोगण- डरती हु मैं

मैं- किस से

जोगन- अपने आप से अपने नसीब से ,

मैं- नसीब का तो पता नहीं पर मैं कर्म को मानता हु, तू भी मान अगर लड़ाई कर्म और नसीब की है तो फिर देखेंगे इन हाथो की लकीरों में लिखी बाते कितनी सच है .

जोगन ने मेरे माथे को चूमा और बोली- क्यों आया तू मेरी जिन्दगी में .जी तो रही थी ना तेरे बिना भी मैं

मैं-ये बात मुझसे नहीं तेरे हाथो की लकीरों से पूछ, तू तोदुनिया का भाग देखती है ना फिर देख ले क्या लिखा है तेरे भाग में

जोगन- इसीलिए तो पूछती हु की क्यों आया तू मेरी जिन्दगी में

मैं- तेरी जिन्दगी को जिन्दगी बनाने, तेरे वनवास को ख़त्म करने. पहली मुलाकात में तूने कहा था की तू घर को तलाशती है . मैं तुझे तेरे घर जरुर ले जाऊंगा

जोगन ने अपनी ऊँगली मेरे होंठो पर रखी और बोली- बस और कुछ मत बोल .

वापसी में मुझे पिस्ता मिली .

“कब से देख रही हु कहाँ गायब है तू ” बोली वो .

मैं- कुछ नहीं बस ऐसे ही

वो- बैठ पास मेरे

हम दोनों सडक किनारे ही बैठ गए.

पिस्ता- बोल कुछ तो

मैं- कम से कम बता तो सकती थी न की तेरा रिश्ता होने वाला है

पिस्ता- तेरी कसम , मुझे तो खुद तभी मालूम हुआ जब वो लोग घर आ गए. सब कुछ अचानक से हो गया.

मैं- मेरे बाप की साजिश है ये तुझे मुझसे दूर करने की

पिस्ता- बात तो सही है तेरी पर एक ना एक दिन तो ये सब होना ही था

मैं- जानता हु पर कुछ अच्छा सा नहीं लग रहा . लग रहा है की कुछ छूट रहा है , कुछ छीना जा रहा है मेरा.

पिस्ता- समझती हु देव, पर हर लड़की की जिंदगानी में ये दिन कभी ना कभी आता ही है जब वो किसी की दुल्हन बनती है अपनी गृहस्थी बसाती है . ये तो दस्तूर है जिन्दगी का .

“नहीं समझ पा रहा तू क्या कह रही है ” मैंने कहा

पिस्ता- तू भी जानता है की मैं क्या कह रही हु

ज़िन्दगी में पहली बार मैंने उसकी आँखों में पानी के कतरे देखे.

“ये मादरचोद दुनिया कभी नहीं समझ पायेगी देव इस दोस्ती को ” पिस्ता ने कहा

मैं- मना क्यों नहीं कर देती तू ब्याह के लिए

पिस्ता- इनको मना कर दूंगी पर कितनो को मना करुँगी एक न एक दिन तो ब्याह करवाना ही पड़ेगा न.

मैं- तू समझ नहीं रही

लगभग रो ही तो पड़ा था मैं

“न देव ना. रोक ले इन जज्बातों को . तेरे दिल को तुझसे ज्यादा जानती हु मैं दिल की बात को जुबान पर मत ला. मत बाँध मेरे पैरो में वो बेड़िया जिनका बोझ उठाया ना जा सके. ” पिस्ता ने कहा

“तू जानती है फिर भी ” मैंने कहा

“एक तुझे ही तो जाना है सरकार ” बोली वो .

“तुझसे जुदा न हो पाउँगा, तेरे बिना ना रह पाऊंगा. ”

पिस्ता- जानती हु , इसलिए तो समझा रही हु तुझे और फिर तुझसे मुझे भला कौन ही जुदा कर पायेगा. पिस्ता तो तेरी है , तेरी ही रहेगी.

मैं- फिर ये जुदाई क्यों

पिस्ता- जिस्म ही तो जुदा हो रहा है रूह तो तेरे पास ही है न

“तेरे बिना क्या ही वजूद रहेगा मेरा , ये जिन्दगी जीना तेरे साथ ही सीखा मैंने. ये हंसी- ये ख़ुशी सब तुझसे ही तो है ” मैंने कहा

पिस्ता-मेरे दिल से पूछ, मेरी धडकनों से पूछ कोई माने ना माने पर तुझमे ही रब देखा मैंने.

मैं- तो फिर सब जानते हुए भी क्यों अनजान बनती है तू

पिस्ता- मैं कहू फिर देव, तू ही बता क्या कहू कैसे समझाऊ तुझे

पिस्ता ने मुझे अपने सीने से लगा लिया और बहुत देर तक हम दोनों रोते ही रहे. शाम न जाने कब रात में बदल गयी , थके कदमो से हम लोग वापिस आये.

“ये चेहरा क्यों उतरा हुआ है तुम्हारा ” पुछा नाज ने

मैं-तबियत नासाज सी है कुछ

नाज- मालूम हुआ की मजदूरो से बात की तुमने खंडित मंदिर को दुबारा बनाने के लिए

मैं- तुम कैसे मालूम

नाज- घर पर आये थे वो चौधरी साहब से इजाजत मांगने

मैं- इसमें इजाजत की क्या बात है, मेरी इच्छा है मंदिर दुबारा बने.वैसे भी ऐसी जगह सूनी नहीं रहनी चाहिए.

नाज-देव, मुझे लगता है की तुम्हे एक बार अपने पिता से चर्चा कर लेनी चाहिए.उनकी सलाह लेने में कोई बुराई तो नहीं

मैं- निर्णय ले चूका हु मैं मासी

नाज-अपनी मासी की बात नहीं मानेगा

मैं- मासी के लिए तो जान भी दे दू

नाज ने मेरे सर को सहलाया और बोली- कल तू मेरे साथ चलेगा

मैं- कहा

नाज- उसी खंडित मंदिर में.

अत्यंत रोमांचक और रूमानी
 
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park

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“जो हो रहा है सही हो रहा है ” माँ ने कहा और चली गयी . रह गया मैं सोचते हुए की ये साला सही है या गलत. पर मैं ये नहीं जानता था की चुनोतिया असल में होती कैसी है ये वक्त बेक़रार था मुझे बताने को . कुछ अच्छा सा नहीं लग रहा था तो मैंने जोगन के पास जाने का सोचा और किस्मत देखो वो मुझे बड के पेड़ वाले चबूतरे पर बैठी मिल गयी.

“”तू यहाँ क्या कर रही है ” मैंने सवाल किया

जोगन- इंतज़ार

मैं- किसका

वो- वक्त का

मैं- क्या बकती रहती है तू , पल्ले ही नहीं पड़ती तेरी बाते

वो-तो तुझे नहीं दिख रहा क्या बैठी हूँ यहाँ पर

मैं- दिख तो रहा है खैर मत बता

जोगन- तुझे ना बताउंगी तो किस से कहूँगी अपने मन की

मैं- कुछ संजीदा सी है आज क्या बात है

जोगन- भला कौन संजीदा नहीं इस जहाँ में तुझे देख तेरे चेहरे का भी तो नूर गायब है .

मैं- क्या बताऊ तुझे, तुझसे कुछ छिपा भी तो नहीं. घर वालो से कलेश तय है देखना है की कब होगा कितना हो .खैर, मैंने इंतजाम कर लिया है दो चार दिन में मजदूर लोग पहुँच जायेगे खंडहर पर फिर तू जैसे चाहे निर्माण करवा लेना.

जोगन- तो कलेश करने का बीड़ा उठा लिया तूने . मेरे लिए क्यों अपने घर की शांति में आग लगाना चाहता है

मैं- वो घर भी अपना तू भी अपनी .

जोगन मुस्कुरा पड़ी पर बस पल दो पल के लिए

“एक बार फिर सोच ले , कदम बढ़ा तो वापस ना होगा ” बोली वो

मैं- तूने तो भाग्य देखा है मेरा, जब दुःख ही लिखा है तो क्या थोडा क्या ज्यादा कम से कम ख़ुशी तो रहेगी की अपनी दोस्त की ख्वाहिश पूरी की .

जोगन- तू समझता क्यों नहीं

मैं- तू समझाती भी तो नहीं

जोगण- डरती हु मैं

मैं- किस से

जोगन- अपने आप से अपने नसीब से ,

मैं- नसीब का तो पता नहीं पर मैं कर्म को मानता हु, तू भी मान अगर लड़ाई कर्म और नसीब की है तो फिर देखेंगे इन हाथो की लकीरों में लिखी बाते कितनी सच है .

जोगन ने मेरे माथे को चूमा और बोली- क्यों आया तू मेरी जिन्दगी में .जी तो रही थी ना तेरे बिना भी मैं

मैं-ये बात मुझसे नहीं तेरे हाथो की लकीरों से पूछ, तू तोदुनिया का भाग देखती है ना फिर देख ले क्या लिखा है तेरे भाग में

जोगन- इसीलिए तो पूछती हु की क्यों आया तू मेरी जिन्दगी में

मैं- तेरी जिन्दगी को जिन्दगी बनाने, तेरे वनवास को ख़त्म करने. पहली मुलाकात में तूने कहा था की तू घर को तलाशती है . मैं तुझे तेरे घर जरुर ले जाऊंगा

जोगन ने अपनी ऊँगली मेरे होंठो पर रखी और बोली- बस और कुछ मत बोल .

वापसी में मुझे पिस्ता मिली .

“कब से देख रही हु कहाँ गायब है तू ” बोली वो .

मैं- कुछ नहीं बस ऐसे ही

वो- बैठ पास मेरे

हम दोनों सडक किनारे ही बैठ गए.

पिस्ता- बोल कुछ तो

मैं- कम से कम बता तो सकती थी न की तेरा रिश्ता होने वाला है

पिस्ता- तेरी कसम , मुझे तो खुद तभी मालूम हुआ जब वो लोग घर आ गए. सब कुछ अचानक से हो गया.

मैं- मेरे बाप की साजिश है ये तुझे मुझसे दूर करने की

पिस्ता- बात तो सही है तेरी पर एक ना एक दिन तो ये सब होना ही था

मैं- जानता हु पर कुछ अच्छा सा नहीं लग रहा . लग रहा है की कुछ छूट रहा है , कुछ छीना जा रहा है मेरा.

पिस्ता- समझती हु देव, पर हर लड़की की जिंदगानी में ये दिन कभी ना कभी आता ही है जब वो किसी की दुल्हन बनती है अपनी गृहस्थी बसाती है . ये तो दस्तूर है जिन्दगी का .

“नहीं समझ पा रहा तू क्या कह रही है ” मैंने कहा

पिस्ता- तू भी जानता है की मैं क्या कह रही हु

ज़िन्दगी में पहली बार मैंने उसकी आँखों में पानी के कतरे देखे.

“ये मादरचोद दुनिया कभी नहीं समझ पायेगी देव इस दोस्ती को ” पिस्ता ने कहा

मैं- मना क्यों नहीं कर देती तू ब्याह के लिए

पिस्ता- इनको मना कर दूंगी पर कितनो को मना करुँगी एक न एक दिन तो ब्याह करवाना ही पड़ेगा न.

मैं- तू समझ नहीं रही

लगभग रो ही तो पड़ा था मैं

“न देव ना. रोक ले इन जज्बातों को . तेरे दिल को तुझसे ज्यादा जानती हु मैं दिल की बात को जुबान पर मत ला. मत बाँध मेरे पैरो में वो बेड़िया जिनका बोझ उठाया ना जा सके. ” पिस्ता ने कहा

“तू जानती है फिर भी ” मैंने कहा

“एक तुझे ही तो जाना है सरकार ” बोली वो .

“तुझसे जुदा न हो पाउँगा, तेरे बिना ना रह पाऊंगा. ”

पिस्ता- जानती हु , इसलिए तो समझा रही हु तुझे और फिर तुझसे मुझे भला कौन ही जुदा कर पायेगा. पिस्ता तो तेरी है , तेरी ही रहेगी.

मैं- फिर ये जुदाई क्यों

पिस्ता- जिस्म ही तो जुदा हो रहा है रूह तो तेरे पास ही है न

“तेरे बिना क्या ही वजूद रहेगा मेरा , ये जिन्दगी जीना तेरे साथ ही सीखा मैंने. ये हंसी- ये ख़ुशी सब तुझसे ही तो है ” मैंने कहा

पिस्ता-मेरे दिल से पूछ, मेरी धडकनों से पूछ कोई माने ना माने पर तुझमे ही रब देखा मैंने.

मैं- तो फिर सब जानते हुए भी क्यों अनजान बनती है तू

पिस्ता- मैं कहू फिर देव, तू ही बता क्या कहू कैसे समझाऊ तुझे

पिस्ता ने मुझे अपने सीने से लगा लिया और बहुत देर तक हम दोनों रोते ही रहे. शाम न जाने कब रात में बदल गयी , थके कदमो से हम लोग वापिस आये.

“ये चेहरा क्यों उतरा हुआ है तुम्हारा ” पुछा नाज ने

मैं-तबियत नासाज सी है कुछ

नाज- मालूम हुआ की मजदूरो से बात की तुमने खंडित मंदिर को दुबारा बनाने के लिए

मैं- तुम कैसे मालूम

नाज- घर पर आये थे वो चौधरी साहब से इजाजत मांगने

मैं- इसमें इजाजत की क्या बात है, मेरी इच्छा है मंदिर दुबारा बने.वैसे भी ऐसी जगह सूनी नहीं रहनी चाहिए.

नाज-देव, मुझे लगता है की तुम्हे एक बार अपने पिता से चर्चा कर लेनी चाहिए.उनकी सलाह लेने में कोई बुराई तो नहीं

मैं- निर्णय ले चूका हु मैं मासी

नाज-अपनी मासी की बात नहीं मानेगा

मैं- मासी के लिए तो जान भी दे दू

नाज ने मेरे सर को सहलाया और बोली- कल तू मेरे साथ चलेगा

मैं- कहा

नाज- उसी खंडित मंदिर में.
Nice and superb update.....
 

parkas

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“जो हो रहा है सही हो रहा है ” माँ ने कहा और चली गयी . रह गया मैं सोचते हुए की ये साला सही है या गलत. पर मैं ये नहीं जानता था की चुनोतिया असल में होती कैसी है ये वक्त बेक़रार था मुझे बताने को . कुछ अच्छा सा नहीं लग रहा था तो मैंने जोगन के पास जाने का सोचा और किस्मत देखो वो मुझे बड के पेड़ वाले चबूतरे पर बैठी मिल गयी.

“”तू यहाँ क्या कर रही है ” मैंने सवाल किया

जोगन- इंतज़ार

मैं- किसका

वो- वक्त का

मैं- क्या बकती रहती है तू , पल्ले ही नहीं पड़ती तेरी बाते

वो-तो तुझे नहीं दिख रहा क्या बैठी हूँ यहाँ पर

मैं- दिख तो रहा है खैर मत बता

जोगन- तुझे ना बताउंगी तो किस से कहूँगी अपने मन की

मैं- कुछ संजीदा सी है आज क्या बात है

जोगन- भला कौन संजीदा नहीं इस जहाँ में तुझे देख तेरे चेहरे का भी तो नूर गायब है .

मैं- क्या बताऊ तुझे, तुझसे कुछ छिपा भी तो नहीं. घर वालो से कलेश तय है देखना है की कब होगा कितना हो .खैर, मैंने इंतजाम कर लिया है दो चार दिन में मजदूर लोग पहुँच जायेगे खंडहर पर फिर तू जैसे चाहे निर्माण करवा लेना.

जोगन- तो कलेश करने का बीड़ा उठा लिया तूने . मेरे लिए क्यों अपने घर की शांति में आग लगाना चाहता है

मैं- वो घर भी अपना तू भी अपनी .

जोगन मुस्कुरा पड़ी पर बस पल दो पल के लिए

“एक बार फिर सोच ले , कदम बढ़ा तो वापस ना होगा ” बोली वो

मैं- तूने तो भाग्य देखा है मेरा, जब दुःख ही लिखा है तो क्या थोडा क्या ज्यादा कम से कम ख़ुशी तो रहेगी की अपनी दोस्त की ख्वाहिश पूरी की .

जोगन- तू समझता क्यों नहीं

मैं- तू समझाती भी तो नहीं

जोगण- डरती हु मैं

मैं- किस से

जोगन- अपने आप से अपने नसीब से ,

मैं- नसीब का तो पता नहीं पर मैं कर्म को मानता हु, तू भी मान अगर लड़ाई कर्म और नसीब की है तो फिर देखेंगे इन हाथो की लकीरों में लिखी बाते कितनी सच है .

जोगन ने मेरे माथे को चूमा और बोली- क्यों आया तू मेरी जिन्दगी में .जी तो रही थी ना तेरे बिना भी मैं

मैं-ये बात मुझसे नहीं तेरे हाथो की लकीरों से पूछ, तू तोदुनिया का भाग देखती है ना फिर देख ले क्या लिखा है तेरे भाग में

जोगन- इसीलिए तो पूछती हु की क्यों आया तू मेरी जिन्दगी में

मैं- तेरी जिन्दगी को जिन्दगी बनाने, तेरे वनवास को ख़त्म करने. पहली मुलाकात में तूने कहा था की तू घर को तलाशती है . मैं तुझे तेरे घर जरुर ले जाऊंगा

जोगन ने अपनी ऊँगली मेरे होंठो पर रखी और बोली- बस और कुछ मत बोल .

वापसी में मुझे पिस्ता मिली .

“कब से देख रही हु कहाँ गायब है तू ” बोली वो .

मैं- कुछ नहीं बस ऐसे ही

वो- बैठ पास मेरे

हम दोनों सडक किनारे ही बैठ गए.

पिस्ता- बोल कुछ तो

मैं- कम से कम बता तो सकती थी न की तेरा रिश्ता होने वाला है

पिस्ता- तेरी कसम , मुझे तो खुद तभी मालूम हुआ जब वो लोग घर आ गए. सब कुछ अचानक से हो गया.

मैं- मेरे बाप की साजिश है ये तुझे मुझसे दूर करने की

पिस्ता- बात तो सही है तेरी पर एक ना एक दिन तो ये सब होना ही था

मैं- जानता हु पर कुछ अच्छा सा नहीं लग रहा . लग रहा है की कुछ छूट रहा है , कुछ छीना जा रहा है मेरा.

पिस्ता- समझती हु देव, पर हर लड़की की जिंदगानी में ये दिन कभी ना कभी आता ही है जब वो किसी की दुल्हन बनती है अपनी गृहस्थी बसाती है . ये तो दस्तूर है जिन्दगी का .

“नहीं समझ पा रहा तू क्या कह रही है ” मैंने कहा

पिस्ता- तू भी जानता है की मैं क्या कह रही हु

ज़िन्दगी में पहली बार मैंने उसकी आँखों में पानी के कतरे देखे.

“ये मादरचोद दुनिया कभी नहीं समझ पायेगी देव इस दोस्ती को ” पिस्ता ने कहा

मैं- मना क्यों नहीं कर देती तू ब्याह के लिए

पिस्ता- इनको मना कर दूंगी पर कितनो को मना करुँगी एक न एक दिन तो ब्याह करवाना ही पड़ेगा न.

मैं- तू समझ नहीं रही

लगभग रो ही तो पड़ा था मैं

“न देव ना. रोक ले इन जज्बातों को . तेरे दिल को तुझसे ज्यादा जानती हु मैं दिल की बात को जुबान पर मत ला. मत बाँध मेरे पैरो में वो बेड़िया जिनका बोझ उठाया ना जा सके. ” पिस्ता ने कहा

“तू जानती है फिर भी ” मैंने कहा

“एक तुझे ही तो जाना है सरकार ” बोली वो .

“तुझसे जुदा न हो पाउँगा, तेरे बिना ना रह पाऊंगा. ”

पिस्ता- जानती हु , इसलिए तो समझा रही हु तुझे और फिर तुझसे मुझे भला कौन ही जुदा कर पायेगा. पिस्ता तो तेरी है , तेरी ही रहेगी.

मैं- फिर ये जुदाई क्यों

पिस्ता- जिस्म ही तो जुदा हो रहा है रूह तो तेरे पास ही है न

“तेरे बिना क्या ही वजूद रहेगा मेरा , ये जिन्दगी जीना तेरे साथ ही सीखा मैंने. ये हंसी- ये ख़ुशी सब तुझसे ही तो है ” मैंने कहा

पिस्ता-मेरे दिल से पूछ, मेरी धडकनों से पूछ कोई माने ना माने पर तुझमे ही रब देखा मैंने.

मैं- तो फिर सब जानते हुए भी क्यों अनजान बनती है तू

पिस्ता- मैं कहू फिर देव, तू ही बता क्या कहू कैसे समझाऊ तुझे

पिस्ता ने मुझे अपने सीने से लगा लिया और बहुत देर तक हम दोनों रोते ही रहे. शाम न जाने कब रात में बदल गयी , थके कदमो से हम लोग वापिस आये.

“ये चेहरा क्यों उतरा हुआ है तुम्हारा ” पुछा नाज ने

मैं-तबियत नासाज सी है कुछ

नाज- मालूम हुआ की मजदूरो से बात की तुमने खंडित मंदिर को दुबारा बनाने के लिए

मैं- तुम कैसे मालूम

नाज- घर पर आये थे वो चौधरी साहब से इजाजत मांगने

मैं- इसमें इजाजत की क्या बात है, मेरी इच्छा है मंदिर दुबारा बने.वैसे भी ऐसी जगह सूनी नहीं रहनी चाहिए.

नाज-देव, मुझे लगता है की तुम्हे एक बार अपने पिता से चर्चा कर लेनी चाहिए.उनकी सलाह लेने में कोई बुराई तो नहीं

मैं- निर्णय ले चूका हु मैं मासी

नाज-अपनी मासी की बात नहीं मानेगा

मैं- मासी के लिए तो जान भी दे दू

नाज ने मेरे सर को सहलाया और बोली- कल तू मेरे साथ चलेगा

मैं- कहा

नाज- उसी खंडित मंदिर में.
Bahut hi shaandar update diya hai HalfbludPrince bhai....
Nice and lovely update....
 
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