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Adultery जब तक है जान

Tiger 786

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#४६

“क्या है वहां पर ” मैंने कहा

नाज- तू जाने क्या है वहां पर , मैं उस वजह को जानना चाहती हु जिसकी वजह से तू इस बात पर अड़ गया है

मैं- ऐसी कोई बात नहीं

नाज- इन हाथो में खेला है तू, मेरी सरपरस्ती में बड़ा हुआ है तुझे तुझसे बेहतर जानती हु.

आगे मैंने कोई बात नहीं की कोई फायदा ही नहीं था. वो मुझे देखती रही मैं उसे देखती रही. उसकी आँखों में मैंने ना जाने क्या देखा अचानक से वो उठी और मेरे माथो को चूम लिया.

“अगर मेरा बेटा हुआ होता तो वो बिलकुल तेरे जैसा होता ” बोली वो

मैं- अब भी तेरा बेटा ही हु मास्सी.

नाज ने मुझे अपने सीने से लगा लिया. जिन्दगी में पहली बार उसकी आँखों में मैंने पानी के कतरे देखे.

घर से निकल कर मैं पिस्ता से मिलना चाहता था पर घर के बहार ही मुझे मिल गयी.हमारी नजरे मिली और मिल कर रह गयी.

“अन्दर आजा ” बुआ ने शरमाते हुए कहा. अन्दर घुसते हुए मैंने आहिस्ता से बुआ की गांड को थपथपाया बुआ आह भर कर रह गयी. अन्दर पिताजी हुक्का पी रहे थे.

“आजकल पैर धरती पर नहीं पड़ रहे बरखुरदार के सुना है बड़े बड़े फैसले लिए जा रहे है ” पिताजी ने तंज कसा

मैं- मैंने तो बस निर्णय लिया बड़ा आपने बना दिया पिताजी

पिताजी- ये जो तुम्हारे तेवर है न , ये जो ऐंठ है तुम्हारी . ये तुम्हे बर्बाद कर देगी एक दिन और जब तक तुम इस बात को समझोगे देर हो चुकी होगी.

मैं- मेरे अन्दर कोई गुरुर नहीं

पिताजी- उस खंडहर में क्या दिलचस्पी है तुम्हारी

मैं- कोई दिलचस्पी नहीं , मेरा तो कोई वास्ता भी नहीं उस से पर इतनी हसरत जरुर है की , ऐसी जगह आबाद ही अच्छी लगती है. पर जिस तरह से आपने उन मजदूरो को काम करने से रोका है आपकी दिलचस्पी बखूबी है वहां पर

पिताजी- तुझे ऐसा लगता है तो मालूम कर ले वैसे भी गड़े मुर्दे उखाड़ने की धुन सवार है तुझ पर

मैं- मुझ पर नजर रख रहे है आप

पिताजी- अपनी औलाद की खैर-खबर रखना है पिता का फर्ज है खासकर जब औलाद तुम जैसी हो .

मैं- बहुत बढ़िया बात है ये तो

मैं ऊपर चला गया कुछ देर बात बुआ भी आ गयी.

“क्यों उलझता फिरता है भाईसाहब से तू ” बुआ बोली

पर मैंने बुआ की बात को कोई तवज्जो नहीं दी और सीधा बुआ को अपनी बाँहों में भर के बुआ के होंठो से अपने होंठो को जोड़ लिया. बुआ के मखनी होंठ जो जुड़े तो मेरा लंड सीधा बुआ की चूत पर टक्कर मारने को बेताब होने लगा.

“छोड़ , अभी समय नहीं है ये सब करने का ” बोली वो

|”कब करोगी फिर ” मैंने बुआ की गांड को मसलते हुए कहा

बुआ- आज रात को यही पर रुक जा

मैं- मन तो है पर पिताजी का हुकम है नाज के पास ही सोना है

बुआ- फिर तो नहीं मिल पायेगी, तुझे चाहिए तो आना पड़ेगा ही

मैं- कोशिश करता हु

बुआ और मैंने साथ ही खाना खाया , नाज के घर जाने से पहले न जाने क्यों मेरे मन में खेतो की तरफ जाने का विचार आया तो मैं उस तरफ चल दिया. बड़ा सा बरगद का पेड़ अँधेरे में खामोश खड़ा था , इसी चबूतरे पर मैंने नाज को चुदते देखा था .

“तुम्हारी भी कोई कहानी है क्या ” बेख्याली में मैंने पेड़ से पुछा

ये जंगल इतना मासूम नहीं था ये बात तहे दिल से मानता था मैं. मुनीम पर हमला भी इसी जंगल में हुआ था . इसी जंगल में वोमंदिर था जिसे मेरे पिता ने खंडित कर दिया था. इतने गंभीर हमले के बाद भी मुनीम ने जुबान नहीं खोली थी और सबसे अनोखी बात वो छिपा हुआ घर जो बेताब था की कोई आये और उसकी खामोश दास्तान को सुने. न जाने क्यों मुझे लगाव सा हो गया था उस घर से. और एक बार फिर मैं उस घर में मोजूद था. लालटेन की धीमे लौ में एक बार फिर से मैं उस अलमारी को खोले खड़ा था .

“बहुत अलग सा है इश्क का मिजाज, मेरी ये ख़ामोशी और तेरे लाख सवाल ”



बार बार बहुत बार मैंने कागज पर लिखी इन लाइनों को पढ़ा और यकीन किया की इस घर का राजदार मैं अकेला तो बिलकुल नहीं हु, इसके वारिस ने भुलाया तो हरगिज नहीं था इसे.पर वो कौन था ये बड़ी तलब थी अब मेरे लिए.

“कितना बेताब हु मैं तुम्हारी दास्ताँ सुनने के लिए , एक बार मुझे अपना तो मानो ” मैंने उन दीवारों से कहा . कौन था वो जिसे इन पैसो की चाहत नहीं थी, कौन था वो जिसने अपनी यादो को यहाँ छोड़ दिया था कौन था वो जो होकर भी अजनबी हो गया था . यही सोचते सोचते न जाने कब मेरी आँख लग गयी मालूम ही नहीं हुआ. आँख खुली तो सुबह बड़ी खूबसूरत थी पर कहाँ जानता था की ये सुबह मेरी किस्मत की शाम करने को बेताब थी . गाँव पहुंचा तो मोहल्ले में बहुत से लोग आजू बाजू खड़े थे , खुसर पुसर कर रहे थे , मेरा माथा ठनक गया .धड़कने बहुत जोरो से बढ़ गयी .

“क्या, क्या हुआ ” मैंने पुछा.

“मुनीम की लुगाई पर हमला हुआ कल रात ” भीड़ में से किसी एक ने कहा और अचानक से ही जैसे मेरे घुटने टूट से गए. हाँफते हुए मैं नाज के घर पहुंचा तो पाया की सब कुछ अस्त व्यस्त था , बिखरा हुआ .

“मासी कहाँ है ” मैंने पुछा

“वैध जी के यहाँ ले गए है ” सुनते ही मैं वैध की तरफ हो लिया. वहां पर सब कोई मोजूद थे

“मास्सी ,” मेरी आँखों से आंसू गिर पड़े.

“ठीक हु देव , ठीक हु ” मास्सी ने कहा

“सब मेरी गलती है मास्सी , मुझे तुम्हे अकेले नहीं छोड़ना चाहिए था, मैं कैसे माफ़ करूँगा खुद को ” रोते हुए बोला मैं

मास्सी- कुछ नहीं हुआ, हलकी फुलकी चोटे है, वैध जी ने कहा है की घबराने की कोई बात नहीं

मैं-कौन था ,मुझे बताओ मासी. आज उसकी जिन्दगी का आखिरी दिन होगा.

नाज- कोई चोर था शायद,ये तो शुक्र है की पिस्ता ऐन वक्त पर पहुँच गयी तो बचाव हो गया

मैं- तुमने सूरत देखि उसकी

नाज- मैं तो नहीं देख पाई पर पिस्ता ने उसका पीछा किया था उसकी हाथापाई हुई थी

मैं- ये गलती दुबारा नहीं होगी. मैं तलाश कर लूँगा उसे चाहे वो जो कोई भी हो.

मैंने नाज के माथे को चूमा और पिस्ता से मिलने के लिए चल दिया.
Bohot badiya update
 
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Sanju@

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#42

“तू ठीक है न चोट तो नहीं लगी तुझे ” मैंने पिस्ता से कहा


पिस्ता- ठीक हु पर ये हुआ क्या

मैं- वही सोच रहा हूँ, आज तो मर ही गये थे

पिस्ता- जब तक मैं हु कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता तेरा

मैं- जानता हु, पर गाडी में बम लगाया गया है . जिसने भी ये कार्यवाही की है गांड तोडनी पड़ेगी उसकी

पिस्ता- सो तो है पर किसको इतना सटीक मालूम था की गाड़ी तू लेकर जायेगा

मैं- मालूम करना पड़ेगा . फिलहाल तो गाँव चलते है

रास्ते भर हमारे बीच ख़ामोशी छाई रही पर मन में सवालों का तूफान था. मरहम पट्टी करवाने के बाद पिस्ता को घर छोड़ा और मैं सीधा नाज के पास पहुंच गया .

“गाड़ी में बम किसने लगाया मासी ” मैंने कहा


नाज- कौन सी गाडी , कैसा बम

मैं- मैं और पिस्ता मरते मरते बचे है तुम्हारे सिवा किसको मालूम था की मैं गाड़ी ले जाने वाला था .

नाज- तू क्या कह रहा है मुझे समझ नहीं आ रहा देव

मैं- मुनीम जी की गाड़ी में बम था ठीक समय पर हम अगर नही उतरे होते तो आज राम नाम सत्य हो गया था . तुम पिस्ता के लिए इतना गिर जाओगी की इस हद तक जाओगी , कभी सोचा नहीं था मासी


नाज ने अपना माथा पीट लिया और सोफे पर बैठ गयी .

“उस बम का निशाना तुम या पिस्ता नहीं बल्कि मैं थी देव ” नाज ने कहा

“गाड़ी में मैं ही जाने वाली थी ,पर ऐन वक्त पर तुम मुझे यही छोड़ गए ” बोली वो


मैं- किसकी इतनी मजाल हो गयी जो यु खुलेआम मेरे परिवार पर हाथ डालेगा.

नाज- तुम्हे इन सब मामलो में पड़ने की जरूरत नहीं है


मैं- तुम्हारा नहीं रहा अब ये मामला , जान जाते जाते बची है मेरी .

“मामला बेहद ही गंभीर हो चला है, कुछ न कुछ करना ही होगा. मै तुम्हे आश्वस्त करती हु दुबारा नहीं होगा ऐसा कुछ ” नाज ने मेरे कंधे पर हाथ रखा


मैं- दुबारा बिलकुल नहीं होगा क्योंकि मैं होने नहीं दूंगा. तुम से, पिताजी से हो न हो मैं ही निपटाऊंगा इस मामले को अब
धमाके की गूँज अभी भी मेरे कानो में गूँज रही थी . जल्दी ही घर वालो को भी खबर हो ही गयी,माँ और बुआ हद से ज्यादा चिंतित थी . चल क्या रहा था किसी को भी मालूम नहीं था पर मैंने सोच लिया था की करना क्या है. मैं तुरंत ही शहर के लिए निकल गया , हॉस्पिटल में जाते ही मैंने मुनीम पर सवालो की बोछार कर दी.

“तुम्हारी गाड़ी की तलाश में मुझे एक स्टाम्प पेपर मिला था ” पुछा मैंने


मुनीम- हमारे धंधे में लेनदेन होता रहता है कुछ चीजे खरीदी जाती है कुछ बेचीं जाती है तो उनमे स्टाम्प लगते ही रहते है .

मैं- उस रात जंगल में इतनी गहराई में क्या कर रहे थे तुम. मैं जानता हु तुम जो भी कहो पर हमला करने वाले को तुम जानते हो क्योंकि वो भी तुम्हारे ही साथ गाड़ी में था


मुनीम- गाडी में अकेला ही था मैं

मैं- मुनीम जी, तुम सब के चुतियापे में आज मैं मर जाता . तुम्हारी तो पता नहीं पर मेरी जान कीमती है और तुम जैसो के चक्कर में मैं नहीं मरना चाहता. तुम्हारे ऊपर हमला हुआ , फिर दुबारा भी हो सकता है तुम जानो. उस रात तो तुम बच गए आगे क्या मालूम बचो न बचो. तो बिना देर किये मुझे बताओ उस रात कौन था साथ तुम्हारे.


मुनीम- तुम्हारा कोई लेना देना नहीं भाई जी इन सब से

मैं- कोई बात नहीं, मैं मालूम तो कर ही लूँगा पर हमलावर जो भी है कोई तो कारण रहा ही होगा जो इतनी शिद्दत से तुमको मारना चाहता है. वापसी में मुझे देर हो गयी थी बरगद के पेड़ निचे बैठ कर मैं गहन सोच में डूबा था, जो कड़ी इस कहानी में मुझे परेशान कर रही थी वो कड़ी नाज थी . जितना वो सरल दिख रही थी उतनी थी नहीं ये तो मैं समझ ही गया था .उस शाम मैंने नाज को यही चुदते देखा था पर कौन था वो अगर ये मालूम हो जाये तो कुछ नया मालूम हो सकता था. कुछ भी करके मुझे उस सख्स की तलाश करनी ही थी . नाज की नब्ज़ पकड़ने के लिए उसे शीशे में उतरना जरुरी था . इस मामले में मुझे पिस्ता की मदद लेनी ही थी. अचानक ही बारिश शुरू हो गयी , मेरे पास तीन रस्ते थे ,कुवे पर जाना, जोगन के पास जाना या फिर उसी घर में जो सबसे छिपा था .

एक बार फिर से मैं उस खामोश इमारत को वो मुझे देख रही थी .

“क्या कहानी है तुम्हारी ” कहते हुए मैंने दरवाजा खोला और अन्दर जाके लालटेन जलाई. ये चार दीवारे और दो कमरे .जंगल के बेहद अंदरूनी घने इलाके में कोई क्यों ही बनाएगा . और अब पता नहीं कबसे यहाँ कोई नहीं आया था शायद मेरे सिवाय .मैंने एक बार फिर अलमारी खोली, पैसे वैसे के वैसे ही रखे थे. आखिर यहाँ कोई आता जाता क्यों नहीं था,इस घर का मालिक क्यों भूल गया था इसे. नोटों की गड्डियो को सलीके से रखते हुए मेरी नजर अलमारी में बनी उस छोटी सी दराज पर पड़ी जिसमे एक लाकेट था. चांदी की चेन में जड़ा लाकेट बेहद खूबसूरत .


न चाहते हुए भी मैं अपने मन को रोक नहीं सका बेहद ही खूबसूरत उस लाकेट को मैंने अपनी जेब में रख लिया. निचे के खाने में रखे पैसे मैंने हटाये तो वहां पर मुझे एक छोटी सी डायरी मिली जिसमे कुछ लिखा था .

“दम घुट रहा है जिन्दगी से खुल कर रो भी नही सकते,दर्द इतना है की की कुछ कह भी नहीं सकते ” कोरे पन्ने पर लिखी इस लाइन ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया. न जाने क्यों मुझे बहुत जायदा दिलचस्पी हो गयी थी इस घर के मालिक के बारे में . क्या कहानी थी उसकी क्या हुआ होगा उसके साथ .

वहां से लौटने के बाद मैं पिस्ता से मिला.

“क्या हाल है मेरी सरकार ” मैंने कहा


पिस्ता- गांड फटी पड़ी है,कोई पुन्य किया होगा जो बच गयी वर्ना अब तक तो मिटटी नसीब हो गयी होती

मैं- चिंता मत कर आगे से ऐसा कुछ नहीं होगा.

पिस्ता- माँ, लौट आई है . कल फॉर्म भरेगी सरपंची का

मैं- बढ़िया है

पिस्ता- मुझे तो ये सब फालतू का नाटक लगे है . हमारा क्या ही लेना देना राजनीती से

मैं- क्या पता इसमें ही तुम्हारा भला हो ना जाने कब सोया नसीब जाग जाये

पिस्ता- फिर भी मुझे जम नहीं रहा ये सब

मैं- सुन , गाँव में कोई ऐसा है क्या जो मुझे कुछ पुराणी बाते बता सके


पिस्ता- कैसी बाते

मैं- जानना चाहता हु की पिताजी ने जंगल वाले मंदिर को क्यों तोडा

पिस्ता- तेरे पिताजी से ही क्यों नही पूछ लेता

मैं- सीधे मुह बात तो करते नहीं वो , तुझे लगता है की वो मुझे बता देंगे


पिस्ता- सबके अपने अपने फ़साने होते है , जवानी के दिनों में सब कुछ न कुछ करते रहते है , हो सकता है किसी नादानी में ही उन्होंने वैसा कुछ कर दिया हो .

मैं- हो सकता है पर दिक्कत ये है की मैं वो मंदिर आबाद करना चाहता हु

पिस्ता- नेक ख्याल है , खैर मैं चलती हु.

मैं- देगी क्या

पिस्ता- नहीं, अभी नहीं


पिस्ता के जाने के बाद मैं घर गया तो मालूम हुआ की माँ- पिताजी अपने किसी मित्र के घर जा रहे है और अगले दिन ही लौटेंगे . पिताजी ने मुझे घर पर ही रहने को कहा और वो लोग चले गए. शाम रात में घिरने लगी थी . बिजली नहीं थी . लालटेन की रौशनी में अन्न्धेरा अजीब सा लग रहा था . सीढियों की तरफ गया ही था की तभी निचे को आती बुआ मुझसे टकराई और उसे गिरने से बचाने के लिए मैंने बुआ को अपनी बाँहों में ले लिया...............
बहुत ही शानदार और लाज़वाब अपडेट है नाज और मुनीम की खिचड़ी अलग ही पक रही है दोनों ही इतना सब कुछ होने के बाद देव को कुछ भी नहीं बता रहे हैं देव को पिस्ता से दूर रहने की हिदायत दी जा रही है
 

Sanju@

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#43

तंग सीढियों के दरमियाँ बुआ के यौवन से भरे गुदाज बदन को अपने आगोश में लिए मैं अपने हाथ को बुआ की गोल गांड पर महसूस कर रहा था बुआ की मचलती सांसे एक क्षण में काम पिपासा को बढ़ा गयी.

“देव ”हौले से फुसफुसाई बुआ पर मैंने बुआ को अपनी बलिष्ट भुजाओ में कस कर भींचा , इतना कस के की बुआ की ठोस चुचिया मेरे सीने में समाती चली गयी . बुआ ने अपना चेहरा उठा के मेरी तरफ देखा और तभी हमारे होंठ अपने आप एक दुसरे से मिल गए.


बुआ के मलाईदार होंठो को चूसते हुए मैं लगातार सलवार के ऊपर से उसके कुलहो को मसल रहा था. और मुझे यकीन था की मेरे लंड की दस्तक बुआ अपनी चूत पर भी जरुर महसूस कर रही होंगी. जी भर के मैंने बुआ के होंठ चुसे और फिर बिना कोई शर्म किये बुआ की सलवार का नाडा खोल दिया. केले के तने सी सुडौल जांघे उत्तेजना के मारे कांप रही थी , बुआ को मैंने पलटा और सीढियों पर ही झुका दिया. बुआ की गांड बहुत ही प्यारी थी , इतनी प्यारी की कच्छी के ऊपर से ही मैंने कुलहो को कई दफा चूमा और फिर कच्छी की इलास्टिक में अपनी उंगलिया लपेट ली.

पहले नाज और अब बुआ की कच्छी को महसूस करके मैंने जान लिया था की बड़े घरो की औरते लाजवाब अंगवस्त्र पहना करती है .बड़े ही प्यार से मैंने बुआ की कच्छी को उतारा और बुआ की गोरी गांड मेरी आँखों के सामने चमक उठी, बुआ लगभग घोड़ी बनी हुई थी.मैं निचे बैठा और बुआ के चूतडो को हाथो से फैलाया, कसम से बनाने वाले ने क्या चीज ही तो बनाई ये जो दुनिया पागल हुई पड़ी है . बुआ की चूत से जयादा मुझे उसकी गांड का छेद प्यारा लग रहा था और मैं खुद को रोक नहीं पाया उसे चूमने से , मेरे होंठो के स्पर्श को गांड के छेद पर महसूस करते ही बुआ के चुतड उत्तेजना के मारे हिलने लगे.


कुल्हो की दोनों फाको को मजबूती से खोले हुए मैं बुआ की गांड को चूस रहा था, मैंने अपनी बीच वाली ऊंगली बुआ की चूत में सरका दी . काम रस से भीगी चूत के अन्दर मेरी ऊँगली आगे पीछे होने लगी .

“उफ्फ्फ, देव ” बुआ आहे भरने लगी थी. कुछ देर गांड पर जीभ फिराने के बाद मैंने बुआ की चूत पर अपना मुह लगा दिया और चूत के रस को चाटने लगा. पिस्ता के साथ मैं सम्बन्ध बना चूका था पर बुआ की गर्मी भी कम नहीं थी . मैंने लंड को बाहर निकाल लिया और बुआ की गीली चूत के मुहाने पर टिका दिया. अब रुकना मुश्किल था ,मैंने बुआ की कमर को थामा और लंड को चूत में सरका दिया. बुआ की चूत के छल्ले को फैलाते हुए लंड चूत में जाने लगा और मैंने कमर हिलाते हुए अपनी गोलियों को बुआ की चूत से लगा दिया.

“सीईईईईइ ”बुआ सारी लाज छोड़ कर अब चुदने के लिए तैयार थी . लंड को मैंने बाहर खीचा और फिर तेज धक्का लगाते हुए वापिस से अन्दर घुसा दिया. दोनों हाथो से बुआ की कमर को थामे मैं बुआ को चोद रहा था . पच पच की आवाज सीढियों पर गूंजने लगी थी . बुआ की चूत की गर्मी तब और बढ़ गयी जब बुआ अपना हाथ अपनी जांघो के बीच से ले गयी और मेरे अन्डकोशो को सहलाने लगी. मेरे लिए तो ये बेहद ही मजेदार अहसास था , बुआ के स्पर्श ने चुदाई को और भी रसीली और मजेदार बना दिया था . मेरे हाथ अब बुआ के कंधो को मसल रहे थे .



“आई आई आई ईईईईइ ” बुआ अपनी गांड को जोर से हिलाते हुए चुदाई का पूरा आनंद ले रही थी. कई देर तक ऐसे ही चलता रहा और फिर बुआ का बदन अकड़ गया बुआ की चूत ने लंड को इस कदर खींचा की मैं भी पिघलने को हो गया. दो चार जोरो के धक्के लगाने के बाद मैंने लंड को चूत से बाहर निकाला और बुआ की कमर पर अपना वीर्य गिरा दिया.

मैं वही सीढियों पर बैठ गया और बुआ को अपनी गोदी में बिठा लिया. बुआ ने अपना चेहरा मेरे सीने में छिपा लिया और मैं उसकी गांड को सहलाने लगा. कुछ देर तक ऐसे ही हम बदन की गर्मी को महसूस करते रहे . फिर बुआ उठी और गुसलखाने में घुस गयी मैंने आंगन में लगे नलके को चलाया और अपने लंड को साफ़ करके चौबारे में चला गया. कुछ देर बाद बुआ भी उपर आ गयी और मेरी बगल में लेट गयी .

“ये जो हमने किया किसी को भी इसके बारे में पता नहीं होना चाहिए.वर्ना अंजाम् ठीक नहीं होगा.” बोली वो


मैंने बुआ को अपने आगोश में लिया और बोला- समझता हु

मैंने फिर से बुआ के होठ पीने शुरू कर दिए . बुआ भी मेरा साथ देने लगी . बुआ ने खुद मेरे लंड को अपने हाथ में लिया और बड़े प्यार से सहलाने लगी .

“मुह में लो इसे ” मैंने बुआ को अपनी ख्वाहिश बताई तो बुआ ने अपने चेहरे को मेरे लंड पर झुकाया और सुपाडे को मुह में भर लिया. कसम से बदन पुरे का पूरा ही तो हिल गया. बुआ बड़ी शिद्दत से मेरी आँखों में देखते हुए लंड चूस रही थी .

“मजा आ रहा है तुझे ” बुआ ने नशीली नजर से देखते हुए मुझसे पुछा

“बहुत ज्यादा ” मैंने कहा


बुआ- और मजा लेगा

मैंने हां में सर हिलाया तो बुआ मेरे ऊपर लेट गयी ,बुआ की चूत मेरे चेहरे पर आ गयी थी .

“तुम भी चूसो इसे ” बुआ ने कहा और मेरे अन्डकोशो पर अपनी जीभ फिराने लगी. एक बार फिर से मैंने बुआ के कुलहो को थामा और बुआ की चूत को चूसने लगा. इस तरह हम दोनों एक दुसरे के अंगो को चूसने लगे और चूसते चूसते ही एक दुसरे के काम रस को पी गए. बुआ ने मेरे पुरे वीर्य को अपने गले के निचे उतार लिया. सुबह एक बार फिर से हमने सेक्स किया और घर वालो के आने से पहले इस घटना के तमाम निशान मिटा दिए. मेरे मन में ये सवाल तो था की बुआ संग बना ये अनैतिक रिश्ता क्या रंग लायेगा.
बहुत ही शानदार लाज़वाब अपडेट है देव के तो मजे हो गए आज तो बुआ भी मिल गई बुआ के साथ भी रासलीला कर ली
 
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#४६

“क्या है वहां पर ” मैंने कहा

नाज- तू जाने क्या है वहां पर , मैं उस वजह को जानना चाहती हु जिसकी वजह से तू इस बात पर अड़ गया है

मैं- ऐसी कोई बात नहीं

नाज- इन हाथो में खेला है तू, मेरी सरपरस्ती में बड़ा हुआ है तुझे तुझसे बेहतर जानती हु.

आगे मैंने कोई बात नहीं की कोई फायदा ही नहीं था. वो मुझे देखती रही मैं उसे देखती रही. उसकी आँखों में मैंने ना जाने क्या देखा अचानक से वो उठी और मेरे माथो को चूम लिया.

“अगर मेरा बेटा हुआ होता तो वो बिलकुल तेरे जैसा होता ” बोली वो

मैं- अब भी तेरा बेटा ही हु मास्सी.

नाज ने मुझे अपने सीने से लगा लिया. जिन्दगी में पहली बार उसकी आँखों में मैंने पानी के कतरे देखे.

घर से निकल कर मैं पिस्ता से मिलना चाहता था पर घर के बहार ही मुझे मिल गयी.हमारी नजरे मिली और मिल कर रह गयी.

“अन्दर आजा ” बुआ ने शरमाते हुए कहा. अन्दर घुसते हुए मैंने आहिस्ता से बुआ की गांड को थपथपाया बुआ आह भर कर रह गयी. अन्दर पिताजी हुक्का पी रहे थे.

“आजकल पैर धरती पर नहीं पड़ रहे बरखुरदार के सुना है बड़े बड़े फैसले लिए जा रहे है ” पिताजी ने तंज कसा

मैं- मैंने तो बस निर्णय लिया बड़ा आपने बना दिया पिताजी

पिताजी- ये जो तुम्हारे तेवर है न , ये जो ऐंठ है तुम्हारी . ये तुम्हे बर्बाद कर देगी एक दिन और जब तक तुम इस बात को समझोगे देर हो चुकी होगी.

मैं- मेरे अन्दर कोई गुरुर नहीं

पिताजी- उस खंडहर में क्या दिलचस्पी है तुम्हारी

मैं- कोई दिलचस्पी नहीं , मेरा तो कोई वास्ता भी नहीं उस से पर इतनी हसरत जरुर है की , ऐसी जगह आबाद ही अच्छी लगती है. पर जिस तरह से आपने उन मजदूरो को काम करने से रोका है आपकी दिलचस्पी बखूबी है वहां पर

पिताजी- तुझे ऐसा लगता है तो मालूम कर ले वैसे भी गड़े मुर्दे उखाड़ने की धुन सवार है तुझ पर

मैं- मुझ पर नजर रख रहे है आप

पिताजी- अपनी औलाद की खैर-खबर रखना है पिता का फर्ज है खासकर जब औलाद तुम जैसी हो .

मैं- बहुत बढ़िया बात है ये तो

मैं ऊपर चला गया कुछ देर बात बुआ भी आ गयी.

“क्यों उलझता फिरता है भाईसाहब से तू ” बुआ बोली

पर मैंने बुआ की बात को कोई तवज्जो नहीं दी और सीधा बुआ को अपनी बाँहों में भर के बुआ के होंठो से अपने होंठो को जोड़ लिया. बुआ के मखनी होंठ जो जुड़े तो मेरा लंड सीधा बुआ की चूत पर टक्कर मारने को बेताब होने लगा.

“छोड़ , अभी समय नहीं है ये सब करने का ” बोली वो

|”कब करोगी फिर ” मैंने बुआ की गांड को मसलते हुए कहा

बुआ- आज रात को यही पर रुक जा

मैं- मन तो है पर पिताजी का हुकम है नाज के पास ही सोना है

बुआ- फिर तो नहीं मिल पायेगी, तुझे चाहिए तो आना पड़ेगा ही

मैं- कोशिश करता हु

बुआ और मैंने साथ ही खाना खाया , नाज के घर जाने से पहले न जाने क्यों मेरे मन में खेतो की तरफ जाने का विचार आया तो मैं उस तरफ चल दिया. बड़ा सा बरगद का पेड़ अँधेरे में खामोश खड़ा था , इसी चबूतरे पर मैंने नाज को चुदते देखा था .

“तुम्हारी भी कोई कहानी है क्या ” बेख्याली में मैंने पेड़ से पुछा

ये जंगल इतना मासूम नहीं था ये बात तहे दिल से मानता था मैं. मुनीम पर हमला भी इसी जंगल में हुआ था . इसी जंगल में वोमंदिर था जिसे मेरे पिता ने खंडित कर दिया था. इतने गंभीर हमले के बाद भी मुनीम ने जुबान नहीं खोली थी और सबसे अनोखी बात वो छिपा हुआ घर जो बेताब था की कोई आये और उसकी खामोश दास्तान को सुने. न जाने क्यों मुझे लगाव सा हो गया था उस घर से. और एक बार फिर मैं उस घर में मोजूद था. लालटेन की धीमे लौ में एक बार फिर से मैं उस अलमारी को खोले खड़ा था .

“बहुत अलग सा है इश्क का मिजाज, मेरी ये ख़ामोशी और तेरे लाख सवाल ”



बार बार बहुत बार मैंने कागज पर लिखी इन लाइनों को पढ़ा और यकीन किया की इस घर का राजदार मैं अकेला तो बिलकुल नहीं हु, इसके वारिस ने भुलाया तो हरगिज नहीं था इसे.पर वो कौन था ये बड़ी तलब थी अब मेरे लिए.

“कितना बेताब हु मैं तुम्हारी दास्ताँ सुनने के लिए , एक बार मुझे अपना तो मानो ” मैंने उन दीवारों से कहा . कौन था वो जिसे इन पैसो की चाहत नहीं थी, कौन था वो जिसने अपनी यादो को यहाँ छोड़ दिया था कौन था वो जो होकर भी अजनबी हो गया था . यही सोचते सोचते न जाने कब मेरी आँख लग गयी मालूम ही नहीं हुआ. आँख खुली तो सुबह बड़ी खूबसूरत थी पर कहाँ जानता था की ये सुबह मेरी किस्मत की शाम करने को बेताब थी . गाँव पहुंचा तो मोहल्ले में बहुत से लोग आजू बाजू खड़े थे , खुसर पुसर कर रहे थे , मेरा माथा ठनक गया .धड़कने बहुत जोरो से बढ़ गयी .

“क्या, क्या हुआ ” मैंने पुछा.

“मुनीम की लुगाई पर हमला हुआ कल रात ” भीड़ में से किसी एक ने कहा और अचानक से ही जैसे मेरे घुटने टूट से गए. हाँफते हुए मैं नाज के घर पहुंचा तो पाया की सब कुछ अस्त व्यस्त था , बिखरा हुआ .

“मासी कहाँ है ” मैंने पुछा

“वैध जी के यहाँ ले गए है ” सुनते ही मैं वैध की तरफ हो लिया. वहां पर सब कोई मोजूद थे

“मास्सी ,” मेरी आँखों से आंसू गिर पड़े.

“ठीक हु देव , ठीक हु ” मास्सी ने कहा

“सब मेरी गलती है मास्सी , मुझे तुम्हे अकेले नहीं छोड़ना चाहिए था, मैं कैसे माफ़ करूँगा खुद को ” रोते हुए बोला मैं

मास्सी- कुछ नहीं हुआ, हलकी फुलकी चोटे है, वैध जी ने कहा है की घबराने की कोई बात नहीं

मैं-कौन था ,मुझे बताओ मासी. आज उसकी जिन्दगी का आखिरी दिन होगा.

नाज- कोई चोर था शायद,ये तो शुक्र है की पिस्ता ऐन वक्त पर पहुँच गयी तो बचाव हो गया

मैं- तुमने सूरत देखि उसकी

नाज- मैं तो नहीं देख पाई पर पिस्ता ने उसका पीछा किया था उसकी हाथापाई हुई थी

मैं- ये गलती दुबारा नहीं होगी. मैं तलाश कर लूँगा उसे चाहे वो जो कोई भी हो.

मैंने नाज के माथे को चूमा और पिस्ता से मिलने के लिए चल दिया.
Ab ye kon tees maarkha aa gaya jo naaj ke ghar me ghus ke uske sath hatapai kar gaya? Maarne to aaya nahi tha, warna maarkar hi jaata, ye hua bhi tab jab dev waha nahi tha, kahani me pech badhte hi ja rahe hain, or door koi dhikai nahi de rahi jaha se kuch sulajh sake? Kuch bhi to khula nahi hai? Wo kala patthar wala makaan? Wo kis ka hai?, wo mandir kyu toda gaya? Ye jogan kon hai? Iski kya kahani hai? Or jungle me kyu padi hai? Kya dev iske sath bhi प्रेम karega? Vagarah vagarah, aise or bhi sawaal hai bhai? Or jabaab sirf foji bhaiya😁
 

Sanju@

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#44

कुछ दिन ऐसे ही गुजर गए आपाधापी में , पिस्ता की माँ ने परचा भर दिया था चुनाव की तैयारी हो रही थी . पिस्ता से मिलने का मौका कम ही लग रहा था ,नाज भी चुप चुप सी रहती थी . पिताजी ने गाडी में बम वाली बात का जिक्र तक नहीं किया था मुझसे अभी तक. समझ से बहार था सब कुछ , ऐसे ही एक दोपहर मैं जोगन संग जोहड़ के पानी में पैर डाले बैठा था .

“कम से कम तू तो कुछ बोल, सबकी तरह तेरे चेहरे पर भी नूर गायब सा है ” मैंने कहा


जोगन- ऐसी तो कोई बात नहीं

मैं- मुझसे नहीं छुपा सकती तू .कोई तो परेशानी है तुझे


जोगन- पिछले कुछ दिनों से अजीब सी कशमकश में उलझी हु.एक तरफ ये जिंदगानी है जो विरासत में मिली है एक तरफ वो राह है जो मुझे घर ले जाती है .

मैं- कितनी बार कहा है तुझसे इतना मत सोच, चल घर चल . पर तू सुनती कहा है मेरी.

जोगन- तेरी ही तो सुनती हु.

मैं- तो फिर क्यों छुपाती है मुझसे


जोगन- न जाने तुझे ऐसा क्यों लगता है .

मैं- मुझे अच्छा नहीं लगता तू यहाँ बियाबान में अकेली रहती है .कितनी बार कहा है गाँव में रह ले पर तू सुनती नहीं


जोगन- मना कहा किया, कहा तो तुझसे जब मन होगा कह दूंगी घर के लिए

मैं - चल छोड़ इन बातो को . कुछ नयी बात कर

जोगन- नयी बाते तो तू ही बता, चुनावो में क्या चल रहा है

मैं- क्या ख़ाक चल रहा है , तुझे बताया तो सही पिताजी ने इस बार काकी को सरपंची में उतारा है जीत जाएगी आराम से बल्कि यु कहूँ की जीती पड़ी है

जोगन- कहने को तो चुनाव का मतलब कुछ और होता है पर असल जीवन में वोट की कोई कद्र ही नहीं , गाँव का दबंग जिसे चाहे कठपुतली बना कर नचा सकता है


मैं- कहती तो तू सही है ,पर ये बाते महज बाते है असल जीवन में कोई क्रांति का झंडा नहीं उठाता

जोगन- यही तो बात है गुलामी,नसों में भरी पड़ी है

“लोग चाहते ही नहीं अपने हक़ की आवाज उठाना ” मैंने कहा


जोगन- पर तू तो हक़ की बात करता है

मैं- हक़ की बात,जानती है कभी कभी सोचता हूँ मैं और तू एक ही है. तू दुनिया से बेगानी मैं घर से बेगाना .लगता है तेरा मेरा नाता है कोई जो एक सी बात करते है


जोगन- नाता तो है

मैं मुस्कुरा दिया.उसकी आँखों में देखना एक अलग ही तरह का सकून था . दिन पर दिन बीत रहे थे ,चुनाव नजदीक आ चूका था . पर किसे परवाह थी ,मैं और पिस्ता जब देखो चुदाई में लगे रहते है जंगल में, खेतो में हमने हद से जायदा चुदाई कर डाली थी .पिस्ता का जोबन बहुत गदरा गया था . हम दोनों के परिवारों को इस बात से बहुत नफरत थी पर वो लोग चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहे थे . कम से कम मैं तो ऐसा ही समझता था . जब तक की उस दोपहर पिस्ता के घर दो चार गाडिया आकर खड़ी नहीं हो गयी.

“अरे देवा, तू तैयार नहीं हुआ अभी तक ” नाज ने मुझसे कहा

मैं- किसलिए

“तुझे नहीं पता क्या ” नाज बोली

मैं- क्या नहीं पता

नाज- आज तेरी रांड की सगाई है

नाज ने मुझ पर हँसते हुए ताना मारा .

“रांड तो तुम भी हो मासी ” मैंने कहा और पिस्ता के घर की तरफ दौड़ पड़ा. दरवाजे पर ही मुझे पिस्ता मिल गयी. काले सूट में साली क्या ही जोर की लग रही थी .

“क्या हो रहा है ये पिस्ता ” मैंने कहा


पिस्ता- देव, मुझे खुद नहीं पता .थोड़ी देर पहले ही मुझे बताया गया की रिश्ते वाले आने वाले है .

मैं कुछ कहता की तभी पीछे पीछे नाज भी आ पहुंची थी .

“किसी भी तरह का तमाशा करने की जरूरत नहीं है मेहमानों के सामने . रिश्ता तुम्हारे पिताजी करवा रहे है ” नाज ने कहा


न चाहते हुए भी मैं अन्दर चला गया. मालूम हुआ की पिस्ता के रिश्ते की बात पिताजी ने ही चलवाई थी . बहुत ही बड़े लोग थे वो राजनीती में नाम था , जिस लड़के से पिस्ता की शादी होनी थी वो भी आगे जाकर विधायक बनने वाला था .

“देव, वहां क्यों खड़े हो . यहाँ आकर बैठो .नए रिश्तेदारों से मिलो .कुछ नाश्ता पानी करो ” पिताजी ने मुझे कहा


मुस्कुराते हुए मैंने दो टुकड़े बर्फी उठा ली और चाय के साथ खाने लगा. मैंने महसूस किया की नाज की नजरे मुझ पर ही जमी पड़ी थी . बातो बातो में मेरा परिचय पड़ोसी गाँव के लाला हरदयाल से करवाया गया जो पिताजी और पिस्ता के होने वाले ससुराल वालो के बीच में था, कहने का मतलब इस रिश्ते का असली बिचोलिया .

“देव कभी आओं हमारे गरीबखाने पर भी ” लाला ने कहा


मैं- मैं जरुर आऊंगा लाला जी नियति मुझे जरुर मौका देगी आपका मेहमान बनने का

लाला कुछ और कहता उस से पहले ही पिस्ता आ गयी रोके की रस्म के लिए . साली को इतनी खूबसूरत तो पहले कभी नहीं देखा था .उस एक लम्हे में मैंने कायनात को देखा ,दिल को धड़कते हुए महसूस किया.मैंने इश्क किया. जब पिस्ता को रोके में मांग टीका दिया गया तो मेरी आँखों से दो आंसू निकल कर गिर गए. उस दिन मैंने इतना तो जाना की नमक की इन बूंदों का कोई वजूद नहीं होता. दिल में बसाकर उस प्यारी सी सूरत को मैं नाज के घर आया .कुछ बोझ सा लग रहा था ,थोडा पानी पिया और चादर ओढ़ ली.

“उठ रे देवा, कितना सोयेगा ” ये आवाज मेरी माँ की थी .

माँ- उठ तो सही


मैं- तबियत थोड़ी नासाज सी है मा सोने दो

माँ- उठ तो सही कुछ बात करनी है तुझसे

मैं-मुझे भी बात करनी है अभी करनी है . क्या जरुरत थी पिताजी को पिस्ता का रिश्ता करवाने की


माँ- तो क्या करते, तुम लोगो ने तो शर्म लिहाज बेच खाई थी . शुक्र मना रिश्ता ही करवाया ये तो मैं बीच में हु वर्ना ना जाने क्या क्या हो सकता था . गाँव में परिवार की इज्जत का जो फलूदा तुम दोनों ने किया है ये तो कुछ भी नहीं है . और तू तो गर्व कर तेरी दोस्त का रिश्ता इतने बड़े घर में हुआ है .

“रिश्ता ही तो हुआ है मा. .”..............................
देव के पिताजी ने पिस्ता का रिश्ता एक बड़े रसूखदार के यहां कर दिया है जिसका राजनीति में एक नाम था जिसकी बदौलत पिस्ता विधायक बनती है
 
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Sanju@

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#45



“जो हो रहा है सही हो रहा है ” माँ ने कहा और चली गयी . रह गया मैं सोचते हुए की ये साला सही है या गलत. पर मैं ये नहीं जानता था की चुनोतिया असल में होती कैसी है ये वक्त बेक़रार था मुझे बताने को . कुछ अच्छा सा नहीं लग रहा था तो मैंने जोगन के पास जाने का सोचा और किस्मत देखो वो मुझे बड के पेड़ वाले चबूतरे पर बैठी मिल गयी.

“”तू यहाँ क्या कर रही है ” मैंने सवाल किया

जोगन- इंतज़ार

मैं- किसका

वो- वक्त का

मैं- क्या बकती रहती है तू , पल्ले ही नहीं पड़ती तेरी बाते

वो-तो तुझे नहीं दिख रहा क्या बैठी हूँ यहाँ पर

मैं- दिख तो रहा है खैर मत बता

जोगन- तुझे ना बताउंगी तो किस से कहूँगी अपने मन की

मैं- कुछ संजीदा सी है आज क्या बात है

जोगन- भला कौन संजीदा नहीं इस जहाँ में तुझे देख तेरे चेहरे का भी तो नूर गायब है .

मैं- क्या बताऊ तुझे, तुझसे कुछ छिपा भी तो नहीं. घर वालो से कलेश तय है देखना है की कब होगा कितना हो .खैर, मैंने इंतजाम कर लिया है दो चार दिन में मजदूर लोग पहुँच जायेगे खंडहर पर फिर तू जैसे चाहे निर्माण करवा लेना.

जोगन- तो कलेश करने का बीड़ा उठा लिया तूने . मेरे लिए क्यों अपने घर की शांति में आग लगाना चाहता है

मैं- वो घर भी अपना तू भी अपनी .

जोगन मुस्कुरा पड़ी पर बस पल दो पल के लिए

“एक बार फिर सोच ले , कदम बढ़ा तो वापस ना होगा ” बोली वो

मैं- तूने तो भाग्य देखा है मेरा, जब दुःख ही लिखा है तो क्या थोडा क्या ज्यादा कम से कम ख़ुशी तो रहेगी की अपनी दोस्त की ख्वाहिश पूरी की .

जोगन- तू समझता क्यों नहीं

मैं- तू समझाती भी तो नहीं

जोगण- डरती हु मैं

मैं- किस से

जोगन- अपने आप से अपने नसीब से ,

मैं- नसीब का तो पता नहीं पर मैं कर्म को मानता हु, तू भी मान अगर लड़ाई कर्म और नसीब की है तो फिर देखेंगे इन हाथो की लकीरों में लिखी बाते कितनी सच है .

जोगन ने मेरे माथे को चूमा और बोली- क्यों आया तू मेरी जिन्दगी में .जी तो रही थी ना तेरे बिना भी मैं

मैं-ये बात मुझसे नहीं तेरे हाथो की लकीरों से पूछ, तू तोदुनिया का भाग देखती है ना फिर देख ले क्या लिखा है तेरे भाग में

जोगन- इसीलिए तो पूछती हु की क्यों आया तू मेरी जिन्दगी में

मैं- तेरी जिन्दगी को जिन्दगी बनाने, तेरे वनवास को ख़त्म करने. पहली मुलाकात में तूने कहा था की तू घर को तलाशती है . मैं तुझे तेरे घर जरुर ले जाऊंगा

जोगन ने अपनी ऊँगली मेरे होंठो पर रखी और बोली- बस और कुछ मत बोल .

वापसी में मुझे पिस्ता मिली .

“कब से देख रही हु कहाँ गायब है तू ” बोली वो .

मैं- कुछ नहीं बस ऐसे ही

वो- बैठ पास मेरे

हम दोनों सडक किनारे ही बैठ गए.

पिस्ता- बोल कुछ तो

मैं- कम से कम बता तो सकती थी न की तेरा रिश्ता होने वाला है

पिस्ता- तेरी कसम , मुझे तो खुद तभी मालूम हुआ जब वो लोग घर आ गए. सब कुछ अचानक से हो गया.

मैं- मेरे बाप की साजिश है ये तुझे मुझसे दूर करने की

पिस्ता- बात तो सही है तेरी पर एक ना एक दिन तो ये सब होना ही था

मैं- जानता हु पर कुछ अच्छा सा नहीं लग रहा . लग रहा है की कुछ छूट रहा है , कुछ छीना जा रहा है मेरा.

पिस्ता- समझती हु देव, पर हर लड़की की जिंदगानी में ये दिन कभी ना कभी आता ही है जब वो किसी की दुल्हन बनती है अपनी गृहस्थी बसाती है . ये तो दस्तूर है जिन्दगी का .

“नहीं समझ पा रहा तू क्या कह रही है ” मैंने कहा

पिस्ता- तू भी जानता है की मैं क्या कह रही हु

ज़िन्दगी में पहली बार मैंने उसकी आँखों में पानी के कतरे देखे.

“ये मादरचोद दुनिया कभी नहीं समझ पायेगी देव इस दोस्ती को ” पिस्ता ने कहा

मैं- मना क्यों नहीं कर देती तू ब्याह के लिए

पिस्ता- इनको मना कर दूंगी पर कितनो को मना करुँगी एक न एक दिन तो ब्याह करवाना ही पड़ेगा न.

मैं- तू समझ नहीं रही

लगभग रो ही तो पड़ा था मैं

“न देव ना. रोक ले इन जज्बातों को . तेरे दिल को तुझसे ज्यादा जानती हु मैं दिल की बात को जुबान पर मत ला. मत बाँध मेरे पैरो में वो बेड़िया जिनका बोझ उठाया ना जा सके. ” पिस्ता ने कहा

“तू जानती है फिर भी ” मैंने कहा

“एक तुझे ही तो जाना है सरकार ” बोली वो .

“तुझसे जुदा न हो पाउँगा, तेरे बिना ना रह पाऊंगा. ”

पिस्ता- जानती हु , इसलिए तो समझा रही हु तुझे और फिर तुझसे मुझे भला कौन ही जुदा कर पायेगा. पिस्ता तो तेरी है , तेरी ही रहेगी.

मैं- फिर ये जुदाई क्यों

पिस्ता- जिस्म ही तो जुदा हो रहा है रूह तो तेरे पास ही है न

“तेरे बिना क्या ही वजूद रहेगा मेरा , ये जिन्दगी जीना तेरे साथ ही सीखा मैंने. ये हंसी- ये ख़ुशी सब तुझसे ही तो है ” मैंने कहा

पिस्ता-मेरे दिल से पूछ, मेरी धडकनों से पूछ कोई माने ना माने पर तुझमे ही रब देखा मैंने.

मैं- तो फिर सब जानते हुए भी क्यों अनजान बनती है तू

पिस्ता- मैं कहू फिर देव, तू ही बता क्या कहू कैसे समझाऊ तुझे

पिस्ता ने मुझे अपने सीने से लगा लिया और बहुत देर तक हम दोनों रोते ही रहे. शाम न जाने कब रात में बदल गयी , थके कदमो से हम लोग वापिस आये.

“ये चेहरा क्यों उतरा हुआ है तुम्हारा ” पुछा नाज ने

मैं-तबियत नासाज सी है कुछ

नाज- मालूम हुआ की मजदूरो से बात की तुमने खंडित मंदिर को दुबारा बनाने के लिए

मैं- तुम कैसे मालूम

नाज- घर पर आये थे वो चौधरी साहब से इजाजत मांगने

मैं- इसमें इजाजत की क्या बात है, मेरी इच्छा है मंदिर दुबारा बने.वैसे भी ऐसी जगह सूनी नहीं रहनी चाहिए.

नाज-देव, मुझे लगता है की तुम्हे एक बार अपने पिता से चर्चा कर लेनी चाहिए.उनकी सलाह लेने में कोई बुराई तो नहीं

मैं- निर्णय ले चूका हु मैं मासी

नाज-अपनी मासी की बात नहीं मानेगा

मैं- मासी के लिए तो जान भी दे दू

नाज ने मेरे सर को सहलाया और बोली- कल तू मेरे साथ चलेगा

मैं- कहा

नाज- उसी खंडित मंदिर में.
बहुत ही शानदार और लाज़वाब अपडेट है देव जोगन के लिए खंडहर इमारत को दुबारा बनवाना चाहता है जोगन एक पहेली बनी हुई है वह भी अपने राज नहीं खोल रही है पिस्ता देव को छोड़ कर जाने वाली है मंदिर का अतीत शायद बहुत ही बुरा है
 

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#४६

“क्या है वहां पर ” मैंने कहा

नाज- तू जाने क्या है वहां पर , मैं उस वजह को जानना चाहती हु जिसकी वजह से तू इस बात पर अड़ गया है

मैं- ऐसी कोई बात नहीं

नाज- इन हाथो में खेला है तू, मेरी सरपरस्ती में बड़ा हुआ है तुझे तुझसे बेहतर जानती हु.

आगे मैंने कोई बात नहीं की कोई फायदा ही नहीं था. वो मुझे देखती रही मैं उसे देखती रही. उसकी आँखों में मैंने ना जाने क्या देखा अचानक से वो उठी और मेरे माथो को चूम लिया.

“अगर मेरा बेटा हुआ होता तो वो बिलकुल तेरे जैसा होता ” बोली वो

मैं- अब भी तेरा बेटा ही हु मास्सी.

नाज ने मुझे अपने सीने से लगा लिया. जिन्दगी में पहली बार उसकी आँखों में मैंने पानी के कतरे देखे.

घर से निकल कर मैं पिस्ता से मिलना चाहता था पर घर के बहार ही मुझे मिल गयी.हमारी नजरे मिली और मिल कर रह गयी.

“अन्दर आजा ” बुआ ने शरमाते हुए कहा. अन्दर घुसते हुए मैंने आहिस्ता से बुआ की गांड को थपथपाया बुआ आह भर कर रह गयी. अन्दर पिताजी हुक्का पी रहे थे.

“आजकल पैर धरती पर नहीं पड़ रहे बरखुरदार के सुना है बड़े बड़े फैसले लिए जा रहे है ” पिताजी ने तंज कसा

मैं- मैंने तो बस निर्णय लिया बड़ा आपने बना दिया पिताजी

पिताजी- ये जो तुम्हारे तेवर है न , ये जो ऐंठ है तुम्हारी . ये तुम्हे बर्बाद कर देगी एक दिन और जब तक तुम इस बात को समझोगे देर हो चुकी होगी.

मैं- मेरे अन्दर कोई गुरुर नहीं

पिताजी- उस खंडहर में क्या दिलचस्पी है तुम्हारी

मैं- कोई दिलचस्पी नहीं , मेरा तो कोई वास्ता भी नहीं उस से पर इतनी हसरत जरुर है की , ऐसी जगह आबाद ही अच्छी लगती है. पर जिस तरह से आपने उन मजदूरो को काम करने से रोका है आपकी दिलचस्पी बखूबी है वहां पर

पिताजी- तुझे ऐसा लगता है तो मालूम कर ले वैसे भी गड़े मुर्दे उखाड़ने की धुन सवार है तुझ पर

मैं- मुझ पर नजर रख रहे है आप

पिताजी- अपनी औलाद की खैर-खबर रखना है पिता का फर्ज है खासकर जब औलाद तुम जैसी हो .

मैं- बहुत बढ़िया बात है ये तो

मैं ऊपर चला गया कुछ देर बात बुआ भी आ गयी.

“क्यों उलझता फिरता है भाईसाहब से तू ” बुआ बोली

पर मैंने बुआ की बात को कोई तवज्जो नहीं दी और सीधा बुआ को अपनी बाँहों में भर के बुआ के होंठो से अपने होंठो को जोड़ लिया. बुआ के मखनी होंठ जो जुड़े तो मेरा लंड सीधा बुआ की चूत पर टक्कर मारने को बेताब होने लगा.

“छोड़ , अभी समय नहीं है ये सब करने का ” बोली वो

|”कब करोगी फिर ” मैंने बुआ की गांड को मसलते हुए कहा

बुआ- आज रात को यही पर रुक जा

मैं- मन तो है पर पिताजी का हुकम है नाज के पास ही सोना है

बुआ- फिर तो नहीं मिल पायेगी, तुझे चाहिए तो आना पड़ेगा ही

मैं- कोशिश करता हु

बुआ और मैंने साथ ही खाना खाया , नाज के घर जाने से पहले न जाने क्यों मेरे मन में खेतो की तरफ जाने का विचार आया तो मैं उस तरफ चल दिया. बड़ा सा बरगद का पेड़ अँधेरे में खामोश खड़ा था , इसी चबूतरे पर मैंने नाज को चुदते देखा था .

“तुम्हारी भी कोई कहानी है क्या ” बेख्याली में मैंने पेड़ से पुछा

ये जंगल इतना मासूम नहीं था ये बात तहे दिल से मानता था मैं. मुनीम पर हमला भी इसी जंगल में हुआ था . इसी जंगल में वोमंदिर था जिसे मेरे पिता ने खंडित कर दिया था. इतने गंभीर हमले के बाद भी मुनीम ने जुबान नहीं खोली थी और सबसे अनोखी बात वो छिपा हुआ घर जो बेताब था की कोई आये और उसकी खामोश दास्तान को सुने. न जाने क्यों मुझे लगाव सा हो गया था उस घर से. और एक बार फिर मैं उस घर में मोजूद था. लालटेन की धीमे लौ में एक बार फिर से मैं उस अलमारी को खोले खड़ा था .

“बहुत अलग सा है इश्क का मिजाज, मेरी ये ख़ामोशी और तेरे लाख सवाल ”



बार बार बहुत बार मैंने कागज पर लिखी इन लाइनों को पढ़ा और यकीन किया की इस घर का राजदार मैं अकेला तो बिलकुल नहीं हु, इसके वारिस ने भुलाया तो हरगिज नहीं था इसे.पर वो कौन था ये बड़ी तलब थी अब मेरे लिए.

“कितना बेताब हु मैं तुम्हारी दास्ताँ सुनने के लिए , एक बार मुझे अपना तो मानो ” मैंने उन दीवारों से कहा . कौन था वो जिसे इन पैसो की चाहत नहीं थी, कौन था वो जिसने अपनी यादो को यहाँ छोड़ दिया था कौन था वो जो होकर भी अजनबी हो गया था . यही सोचते सोचते न जाने कब मेरी आँख लग गयी मालूम ही नहीं हुआ. आँख खुली तो सुबह बड़ी खूबसूरत थी पर कहाँ जानता था की ये सुबह मेरी किस्मत की शाम करने को बेताब थी . गाँव पहुंचा तो मोहल्ले में बहुत से लोग आजू बाजू खड़े थे , खुसर पुसर कर रहे थे , मेरा माथा ठनक गया .धड़कने बहुत जोरो से बढ़ गयी .

“क्या, क्या हुआ ” मैंने पुछा.

“मुनीम की लुगाई पर हमला हुआ कल रात ” भीड़ में से किसी एक ने कहा और अचानक से ही जैसे मेरे घुटने टूट से गए. हाँफते हुए मैं नाज के घर पहुंचा तो पाया की सब कुछ अस्त व्यस्त था , बिखरा हुआ .

“मासी कहाँ है ” मैंने पुछा

“वैध जी के यहाँ ले गए है ” सुनते ही मैं वैध की तरफ हो लिया. वहां पर सब कोई मोजूद थे

“मास्सी ,” मेरी आँखों से आंसू गिर पड़े.

“ठीक हु देव , ठीक हु ” मास्सी ने कहा

“सब मेरी गलती है मास्सी , मुझे तुम्हे अकेले नहीं छोड़ना चाहिए था, मैं कैसे माफ़ करूँगा खुद को ” रोते हुए बोला मैं

मास्सी- कुछ नहीं हुआ, हलकी फुलकी चोटे है, वैध जी ने कहा है की घबराने की कोई बात नहीं

मैं-कौन था ,मुझे बताओ मासी. आज उसकी जिन्दगी का आखिरी दिन होगा.

नाज- कोई चोर था शायद,ये तो शुक्र है की पिस्ता ऐन वक्त पर पहुँच गयी तो बचाव हो गया

मैं- तुमने सूरत देखि उसकी

नाज- मैं तो नहीं देख पाई पर पिस्ता ने उसका पीछा किया था उसकी हाथापाई हुई थी

मैं- ये गलती दुबारा नहीं होगी. मैं तलाश कर लूँगा उसे चाहे वो जो कोई भी हो.

मैंने नाज के माथे को चूमा और पिस्ता से मिलने के लिए चल दिया.
बहुत ही शानदार लाज़वाब अपडेट है जंगल की अपनी एक कहानी है जंगल में कई राज दफन हैं मंदिर ,जंगल में रखे पैसे जोगन सब एक दूसरे से जुड़े हुए हैं उस दिन तो नाज बच गई थी लेकिन आज तो उसके घर पर ही हमला कर दिया लगता है चोर मुनीम के पास से कुछ तो ऐसा है जिसे लेने आया था
 
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