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Adultery जब तक है जान

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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फौजी भाई आपकी बिमारी क्या है जिसको डाक्टर ठीक नहीं कर पा रहे।
आपका कमेन्ट कुण्डलीनी भाग्य पर पढ़ा आप दवाइयां ले रहे हैं फिर भी सही नहीं हो रहे
मैनू ईशक था लग्या रोग मेरी बचने दी ना उम्मीद ♥️
 

dhparikh

Well-Known Member
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#53

मेरे हाथो में केवल वो नकाब ही नहीं आया था बल्कि सामने उस सख्श को देख कर मैं बस हैरान ही नहीं परेशान भी हो गया था .

”क्यों काकी क्यों ” मैंने पिस्ता की माँ से सवाल किया

काकी- करना पड़ा और कोई रास्ता नहीं था

मैं- सोचा नहीं था तुम इतनी नफरत पाले हुए हो हमारे परिवार के लिए . तभी मैं सोचु की अनजान हमलावर को चाह कर भी क्यों नहीं पकड़ पा रहे थे हम , दुश्मन तो घर के अन्दर ही था .

काकी- नही देव, मैं वो दुश्मन नहीं . नाज पर हमला करने के मेरे अपने कारन है

मैं- और वो क्या है

काकी- चाह कर भी मैं तुम्हे नहीं बता सकती

मैं- तुम्हे क्या लगता है बिना जाने मैं तुम्हे जाने दूंगा.

काकी- चाहो तो कोशिश कर लो

मैं- पिस्ता की माँ ना होती तो तुम ये ना कहते

काकी- चौधरी के बेटे ना होते तो तुम ये ना कहते

मैं- मजबूर कर रही हो तुम मुझे

काकी- जो चाहे समझो तुम

मैंने काकी की बाह पकड़ कर मरोड़ी और बोला- इस से पहले की मैं लिहाज भूल जाऊ , सब बता दो काकी क्यों किया नाज पर हमला

काकी- उसे मरना ही होगा आज नहीं तो कल..

“तड़क ”अगले ही पल मेरा थप्पड़ काकी के गाल पर आ लगा. हालातो ने मुझे ना जाने कहा लाकर खड़ा कर दिया. गुस्से में मैंने पेड़ के तने पर मुक्का मारा .

“मजबूर मत कर काकी , कही मेरे हाथो से अनर्थ न हो जाये. ”मैंने कहा

काकी- इस से बड़ी खुशनसीबी क्या ही होगी



अगले ही पल मेरे हाथ काकी के गले पर कस गए , काकी की आँखे बाहर निकलने को बेताब होने लगी पर उसके होंठो पर जो मुस्कराहट थी उसने मुझे बेचैन कर दिया था . इस से पहले की मैं पकड़ कम करता . “धाय ” की आवाज हुई और काकी मेरी बाँहों में झूल गयी . काकी को किसी ने गोली मार दी थी , ये मचलती रात बहन की लौड़ी अजीब आँख मिचौली खेल रही थी. कोई और भी था जो हम पर नजर रखे हुए था . मैंने पाया की काकी की सांसे चल रही थी , उसे बचाना बहुत जरुरी था . मैंने काकी को कंधे पर उठाया और दौड़ पड़ा .

“बैध जी , बैध जी ” मैंने किवाड़ को पीटते हुए आवाज लगाईं

“कौन है ” बैध ने किवाड़ खोलते हुए कहा

और जैसे ही बैध ने मुझे देखा , उसने तुरंत काकी को लिटाया और जांच करने लगा.

“बड़े हॉस्पिटल ले जाना होगा इसे अभी के अभी ” उसने कहा

मैं- जीप लाता हु मै

मैं दौड़ कर गया और हम लोग शहर की तरफ चल दिए. बैध बार बार देख रहा था की नब्ज़ चल रही है या नहीं . खैर, काकी का उपचार शुरू हुआ . मालूम हुआ की घाव गहरा होने के बावजूद जान तो बच गयी पर वो होश में नहीं आई थी . इस तमाम घटना के बीच मुझे नाज का ध्यान आया उसे तो मैं मंदिर में ही छोड़ आया था . बैध को हॉस्पिटल में ही छोड़ कर मैं तुरंत मंदिर की तरफ मुड गया .



रात और दिन के भी अपने ही खेल होते है , कौन कह सकता था की अब इतना शांत दिख रहे इस स्थान पर रात के अँधेरे में क्या हुआ था . कमरे में नाज नहीं थी अलबत्ता खून के निशान यूँ के यूँ थे . एक बात और मैंने नोटिस की, की कमरे से वो धुल चढ़ी तस्वीरे हटा दी गयी थी . दो बाते, एक पिस्ता को उसकी माँ के बारे में बताना दूजा नाज के हालात जानना . गाड़ी से उतरा ही था की मुझे नाज मिली. हमेशा के जैसे मुस्कुराते हुए, जैसे कल रात कुछ हुआ ही नहीं हो. मैंने उसे पकड़ा और जीप से सटा दिया.

“धीरे देव दुखता है ” बोली वो

मैं- कैसी हो , ठीक तो हो न

नाज- धीरे बोलो देव .

मैं- बहुत सी बाते करनी है

नाज- अभी नहीं , दोपहर को मैं तुम्हे वहीँ मिलूंगी जहाँ कोई आता जाता नहीं . यहाँ बात करने का कोई औचित्य नहीं हम आज भी अपनी परेशानियों को इस चोखट से बहार रखते है .

मैंने उसे छोड़ा और पिस्ता के घर चल पड़ा. घर के बाहर ही वो कपडे धो रही थी . मैंने उसे अन्दर आने को कहा

“क्या हुआ देव ” उसने हाथ पोंछते हुए कहा .

समझ नहीं आ रहा था पर उसे बताना तो था, तो जी पर पत्थर रख कर मैंने उसे कल रात की घटना बताई बस ये छुपा लिया की नाज पर हमला उसकी माँ ने किया था . पिस्ता बहुत घबरा गयी , आखिर माँ पर हमला हुआ था .

“मुझे अभी ले चल शहर ” बोली वो

मैं- हाँ , मेरी सरकार .

पिस्ता बहुत रोई उसकी माँ को देख कर मैंने रोका नहीं उसे , कभी कभी आंसुओ को बह ही जाना चाहिए. खबर लगते लगते पिताजी और माँ सा भी आ पहुंचे थे . पिताजी ने डॉक्टर लोगो से बहुत देर तक बात की और फिर वो मुझसे मुखातिब हुए.

“कहाँ मिली परमेश्वरी तुझे ” पिताजी ने पुछा

मैंने कहानी में थोड़ी हेराफेरी करके पिताजी को सारी कहानी बताई .पर मुझे मालूम था की पिताजी को मेरी बात का जरा भी यकीन नहीं था .

“चाय ” मैंने पिस्ता को कप दिया .

पिस्ता- किसने किया ये देव

मैं- मालूम होता तो चीर नहीं दिया होता उसे अब तक

पिस्ता- जो भी हो छोडूंगी नहीं उसे मैं

मैं- फ़िक्र ना कर, वो जो भी है उसके दिन गिनती के ही रह गए है .

पिस्ता वही रुक गयी मैं लौट आया. ढलती दोपहर में एक बार फिर काले पत्थरो का वो मकान मेरा आशियाना था और नाज मुझसे पहले ही मोजूद थी .

“घाव कैसा है तुम्हारा ” मैंने कहा

नाज- इतनी जल्दी नहीं मरने वाली. ये खेल तो चलता ही रहेगा जब तक मैं ख़त्म करना नहीं चाहू

मैं- तो करती क्यों नहीं इसे ख़तम

नाज- तुम्हे क्या लगता है देव, इस दुनिया में क्या महत्वपूर्ण है अतीत की गलतिया या फिर ये आज जो हम जी रहे है .

मैं- बेशक आज पर अगर अतीत दुश्मन बन जाये तो फिर वर्तमान का फर्ज है की सुलझाया जाये मामले को

नाज- सब ख़त्म हो जायेगा .

मैं- साथ तो कुछ नहीं जाना मासी .

नाज- पर मैं अपने साथ ले जाउंगी, अपनी दौलत को

मैं- दौलत , तो ये सब दौलत के लिए हो रहा है

नाज- दुनिया, जर जोरू और जमींन के पार क्यों नहीं देखती

मैं- तो फिर किस दौलत की बात करती हो

नाज- जिसे खो दिया मैंने . जो होकर भी मेरी ना हो सकी

इस से पहले की मैं नाज़ से कुछ और सवाल कर पाता गोलियों की आवाजो ने जंगल में शोर मचा दिया. मैं और नाज हैरान हो गए. शोर इतना जोरदार था की जंगल कांप उठा था . मैं बहार आया और दौड़ पड़ा उस तरफ और जब मैं वहां पंहुचा तो उठते धुए के बीच जो मैंने देखा पैरो तले जमीन खिसक गयी . मेरे सामने, मेरे सामने.............
Nice update....
 
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