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Erotica जोरू का गुलाम उर्फ़ जे के जी

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komaalrani

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जोरू का गुलाम भाग २४५ , गीता और गाजर वाला, पृष्ठ १५२४

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vakharia

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जोरू का गुलाम भाग २४३ -

मिस एक्स और उनकी रिपोर्ट्स

३५,६६,६४२

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तीन कैरेक्टर्स और उनके कुछ साथी सहयोगी आएंगे कहानी में, नाम बताना अभी ठीक नहीं होगा, हाँ कुछ इशारा तो करना ही पड़ेगा, कहानी को आगे चलाने के लिए.



तीन लोगों में दो महिलायें और एक पुरुष



महिलाओं में एक फ्रेंच अमेरिकन और एक शुद्ध देसी देहाती हिन्दुस्तानी पूरब की लेकिन अब मिडल ईस्ट में और पुरुष मिक्स्ड नेशनलिटी के,...



पुरुष को हम लोग एम् ( M), फ्रेंच अमेरिकन लेडी को मिस एक्स ( X) और हिंदुस्तानी महिला को एन (N) के नाम से सम्बोधित करेंगे।



एन तो कहानी में काफी आगे आएँगी लेकिन अभी मिस एक्स का रोल काफी होगा, और बीच बीच में एम् भी

तो चलिए आप सब को मिलवाता हूँ मिस एक्स से, असल में मैं कभी उनसे मिला नहीं था हाँ फोटो देखी थी, उनके बारे में बहुत सुना था और उन लोगों से मिला था जो उनके साथ काम करते थे या कर चुके थे , बस उसी के आधार पर,


उमर उनकी, हर आदमी कहता है महिलाओं से उम्र पूछी नहीं जानी चाहिए पर जानना हर कोई चाहता है। उम्र उनकी देखने में ३५ -३६ के आसपास की यानी इत्ती मेच्योर भी नहीं हुयी थीं की एम् आई एल ऍफ़ वाली कैटगरी में आ जाए और न उस पड़ाव पर थीं की जबरदस्ती यंग लगने की कोशिश करें।

मिस एक्स डायवोर्सी थीं , एक साल भर की शादी के बाद की,... अकेडमिक क्वॉलिफैक्शन जबरदस्त थी और एक्सपीरियंस भी और एक्सपर्टीज भी।

फारवर्ड ट्रेडिंग, डेरिवेटिवस और शार्ट सेलिंग पर उन्होंने डॉक्टरेट प्रिंसटन यूनिवर्सिटी से किया था, फिर हावर्ड से ला,... कम्पनी ला में।

शेल कम्पनीज, हवाला ट्रांजैक्शन को पकड़ने में उनकी महारत के कारण २६ साल की उम्र में वो फाइनेंशियल एक्शन टास्क फ़ोर्स (FATF) की चार साल डिप्टी एक्जीक्यूटिव सेक्रेटरी मिस एक्स बन गयी, उसके पहले वो यू एस ट्रेजरी के फायनेंसियल क्राइम इंफोर्स्मेंट नेटवर्क (FinCEN) में सीनियर एनलिस्ट का काम किया था और मनी लांड्रिंग , टेरर फंडिंग में महारत हासिल की थी।

ऍफ़ टी ऍफ़ में मिस एक्स की पहल से तीन देश ग्रे लिस्ट में चले गए थे।

जैसा मैंने पहले ही कहा था, मैंने मिस एक्स को नहीं देखा था, लेकिन उनके बारे में सुना था, रिपोर्ट्स पढ़ी थीं और उनके वीडियो और टेड पर उनके लेक्चर सुने थे, और मैं इम्प्रेस नहीं बल्कि महा इम्प्रेस था और मैं अकेला नहीं था, हमारे ग्रुप में सभी, जो हमारा ग्लोबल बिजनेस स्ट्रेटजी ग्रुप था,

और मैं दो व्यक्तिगत क्वालिटी और दो प्रोफेशनल क्वालिटी से प्रभावित था। एक तो उनकी इंटिग्रिटी और दूसरी उनकी हिम्मत,


एक से एक बड़ी ट्रिलयन डालर कारपोरेट का वो जबरदस्त विश्लेषण वो करती थीं, और निश्चित रूप से उनकी रिपोर्ट को प्रभावित करने की कोशिश की जाती थी, पर आज तक कोई सफल नहीं रहा। और ऍफ़ ऐ टीएफ ( फाएंसियल एक्शन टास्क फोर्स ) में काम करते हुए कितने देशो, बैंको को जो छद्म तरीके से आतंकी संगठनों को फंडिंग करते हैं, उन्हें मिस एक्स ने पकड़ा था और उन्हें हर तरह की धमकियां मिली थीं।

लेकिन फिर उन्हें लगा की बड़े कारपोरेट भी कम बड़े फ्राड नहीं करते, तो उन्होंने ये रिपोर्ट का काम शुरू किया, हालांकि अब कहा जा रहा है की कई देशो के दबाव के बाद हो सकता है वो टास्क फ़ोर्स में लौट जाएँ।



दो प्रोफेशनल क्वालिटी उनकी थी, की वो कितना भी डाटा का जाल क्यों न हो, बिना उसमें उलझे उसके तह में पहुँच जाती थीं और जैसे कोई जासूस किसी क्राइम सीन को एक बार देख कर अंदाजा लगा ले, उसी तरह सारे निगेटिव प्वाइंट को वो हाइलाइट कर देती थीं

मिस एक्स

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लेकिन वहां से निकलने के बाद उन्होंने पूरा समय शेल कम्पनी, फोरेंसिक अकाउंटिंग और बड़ी कंपनियों की गड़बड़ियों को उजागर करने में लगा दिया। स्टॉक मार्केट के स्कैम, इनसाइडर ट्रेडिंग, सब, और वो उनकी कम्पनी जिसमें मुश्किल से ८-१० लोग थे ३ साल में ११ कंपनियों की उन्होंने रिपोर्ट पब्लिश की जिसमें से चार इन्सॉल्वेंसी बोर्ड के पास चली गयी, तीन के शेयर क्रैश हो गए और दो पर फायनेंसियल इर्रेगुलरिटी के केस चले, वो शेयर ट्रेडिंग से डी बार हो गयीं।

सिर्फ एक कम्पनी थी जिसे टेम्पोरेरी नुक्सान हुआ।

उनके इस काम में दो और लोग थे साथ जो बोर्ड आफ डायरेक्टर में थे, एक औडिटिंग में एक्सपर्ट, कई मल्टीनेशनल के बोर्ड ओर डायरेक्टर्स में और दूसरे ऍफ़ बी आई की फायनेंसियल फ्राड डिवीजन को हेड करने वाले।


पिछले दिनों जो शेयरों की उठापटक हुयी , हम लोगो की कम्पनी डूबते डूबते बाल बाल बची, और जो अमेरिकन पैरेंट कम्पनी थी उसकी भी हालत डांवाडोल थी , तो कई फाइनेंश्यल एनलिस्ट की निगाह हम लोगों के ऊपर पड़ी और विशेष रूप से अमेरिकन पैरेंट कम्पनी के ऊपर।

तभी मुझे ब्रेन वेव आयी,...


असल में ये बात थोड़ी पहले की है, इस क्राइसिस के शुरू होने के पहले की, हम लोगों के ग्लोबल स्ट्रेटजी ग्रुप में यह बार उठी थी, फिर क्राइसिस ग्रुप में।

ये हवा में बात घूम रही थी की कोई कंपनी हम लोगो की कंपनी को कमजोर करने की कोशिश कर रही है, लेकिन वो कौन है, क्यों है उसका एम क्या है, कुछ भी साफ़ नहीं था। और यह भी नहीं की हमला कहाँ होगा,

और तभी यह बात उठी की खुद अपने बारे में रिपोर्ट बनवाने की, और मिस एक्स की कम्पनी की ओर से अगर रिपोर्ट बने तो क्रेडिबिलिटी बहुत होगी। और उस रिपोर्ट के बेसिस पर जो अटैक होगा तो अटैकर को पहचानना आसान होगा।

खतरे भी बहुत थे लेकिन और कोई आसान रास्ता भी तो नहीं था, और उस दिशा में काम शुरू हो गया।



लेकिन मुझे क्या पता था की हमला हम लोगो की कम्पनी पर ही होगा, वैसे तो ये एक तरह अलग सी थी, लेकिन उसकी नाल तो पैरेंट कम्पनी से जुडी ही थी, और दिल्ली और मुम्बई की बैठकों में मुझे पता चल गया था की, कुछ तो था जो कम्पनी के ग्लोबल हेडक्वार्टस और यहाँ के पावर कॉरिडोर में चल रहा है जो इस तरह से, पीछे से ही सही सरकार का और सरकारी आर्थिक संस्थाओं का सहयोग मिला।

और कल वो मुश्किल जंग जीतने के बाद जब मैं अमेरिकन कौंसुलेट में गया और ग्लोबल क्राइसिस ग्रुप के लोगों से मीटिंग हुयी तो पता चला की मिस एक्स की रिपोर्ट को उन्होंने ग्रीन लाइट कर दिया है और थोड़े बहुत और डिटेल भी।



लेकिन सुबह सुबह एयरपोर्ट पर पता चला की मेरा जबरदस्त सर्वेलेंस हो रहा है और मुझे अब सब गतिविधायों से दूर रहना होगा और बहुत हुआ तो एकदम बच बच कर

तो चलिए थोड़ा सा फ्लैशबैक, थोड़ा सा मिस एक्स की कंपनी के बारे में और हमारी कम्पनी ने कैसे उस काम को अंजाम दिया

जेनेवा-स्विट्जरलैंड

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मिस एक्स की कम्पनी के दो हेडक्वार्टस थे, एक तो मैनहटन में और दूसरा जेनेवा स्विट्जरलैंड में।

यूरोप, एशिया और अफ्रीका का काम जेनेवा का आफिस देखता था और अमेरिका और बाकी दुनिया का मैनहट्टन का आफिस। कारपोरेट हेडक्वार्टर मैनहटन में ही था और सारे नीतिगत निर्णय भी वहीँ लिए जाते थे।



लेकिन हमारी कम्पनी का कारपोरेट आफिस हेडक्वार्टस सिएटल में था और हिन्दुस्तानी कम्पनी का मुम्बई में. तो इस तरह से इस कम्पनी के पेपर्स की छनबीन दोनों जगह से शुरू होती,

लेकिन हमने जेनेवा आफिस को निशाना बनाया और इसलिए की हमारा भी एक आफिस वहीँ था लेकिन उससे बड़ी बात की वहां के एक ( नाम बताना उचित नहीं होगा ), बस यह समझिये आउट ऑफ़ बॉक्स सोच और लैटरल थिंकिंग में उसका जवाब नहीं था। उस कारपोरेट एनलिस्ट से मैं रेगुलर स्ट्रेटेजी सेशन में मिलता था वीडियो कांफ्रेंस में, कई इंट्रेस्ट कॉमन थे और बिग डाटा एनलिटिक्स औरफ्राड डिटेक्शन में उनका नाम था।

मैंने उनको अमेरिकन कौंसुलेट के सिक्योर कांफ्रेंस रूम से ही फोन लगाया और अपनी आइडिया बतायी।

चांस की बात थी जो बातें मुझे परेशांन कर रही थी वही उनको भी और हम दोनों ने प्लान तैयार किया।

लेकिन उसका सिएटल आफिस में कम से कम लेवल टू के बॉसेस से क्लियरेंस लेना जरूरी था।

कभी भी हम लोग एक्जीक्यूटिव चैयरमैन को या सी इ ओ को ऐसी स्कीम में नहीं इन्वाल्व करते थे जिससे एक प्लाजिबल डिनायबेलिटी का उनके पास मौका रहे। कोई पेपर या डिजिटल ट्रेल उन तक नहीं ट्रेस की जा सकती थी, लेकिन उनकी मौन स्वीकृति रहती थी।

और ये भी तय था का की अगर कुछ बड़ी गड़बड़ हुयी तो जो लोग इन्वाल्व है उन्हें जाना होगा, हालंकि सिवियरेंस पैकेज अच्छा मिलता था और साल भर के अंदर किसी अच्छी कम्पनी में जॉब भी।



अब सवाल था की सेंध कैसे लगे, मिस X की कंपनी में।



जो कारपोरेट एनलिस्ट थे वो लुसाने में स्विट्जलैंड में रहते थे और उनकी कई इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट से दोस्ती थी.

उसी में एक लड़की थी जिसे इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट का नंबर दो का अवार्ड मिला था। साइप्रस पेपर्स को लीक कराने में उसकी ख़ास भूमिका थी . मिस x की कंपनी के इन्वेस्टिगेटर्स से भी उसकी अच्छी जान पहचान थी।

स्कीइंग सीजन शुरू हो रहा था और ये तय हुआ की दो दिन बाद सेंट मारित्ज में वो दोनों स्कीईंग के लिए मिलेंगे। वहीँ बातचीत हुयी और जो रिपोर्ट हम चाहते थे स्कीइंग के बाद उस जर्नलिस्ट को मिल गयी।

एक नजर से से उस जर्नलिस्ट ने भी चेक किया एक दो स्कीईंग के लिए आये कारपोरेट एनैलिस्ट से बात भी की, और हिन्दुतान में जो शेयरों की उठापटक हुई थी, एक्विजशन की कोशिश हुयी थी उसके बारे में डिटेल्स चेक किये और उसी शाम को मिस X की जेनेवा हेडक्वार्टर के एक मिडल लेवल फायनेंसियल अनलिस्ट के साथ १७ वीं शताब्दी के एक फ़ार्म हाउस में बने से वो इटैलियन पीजेरिया में मिली और उस रिपोर्ट के डाटा ले आधार पर अपनी एक रिपोर्ट पेश कर दी।

और यह भी बता दिया की उसका नाम कहीं नहीं आना चाहिए,



जेनेवा में ठोक बजा के चेक करके वो रिपार्ट मैनहटन के ऑफिस में अगले दिन पहुँच गयी।

लेकिन अभी बारह आने का काम हुआ। मेन कंपनी तो अमेरिका में थीं।

और वहां एक दिन पहले ही, हमारी कम्पनी के सिएटल आफिस में , एक मिडल लेवल अनिलिस्ट जिसके बारे में इंटरनल सिक्योरिटी ने वार्न किया था की वो इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्टों को इन्फॉर्मेशन लीक करता है, उसकी क्लियरेंस बढ़ा दी गयी थी और कुछ कुछ कारपोरेट आफिस के बारे डाटा जानबूझ के उसे एक्सेस करने दिया गया और वहां से मिस x की कम्पनी के इन्वेस्टिगेटिव एनेलिस्ट के पास।



तो अब मिस X की कम्पनी के पास रिपोर्ट का खाका तो तैयार था, लेकिन सवाल ये था की टाइम बहुत कम है क्या वो रिपोर्ट पब्लिश करने के पहले जो जांच पड़ताल करेंगी वो तब तक हो पाएगी? और उससे बढ़कर रिपोर्ट में कुछ गलतियां पकड़ी तो नहीं जायेंगीं?


लेकिन मिस एक्स की कम्पनी भी दो बातें थीं, जो उन्हें बहुत ज्यादा टाइम नहीं दे रही थी। ।

पहली बात तो ये की वो कम्पनी इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्ट पब्लिश करने के साथ शार्ट सेलर भी थी। इसलिए उसके लिए भी टाइम बहुत अहम् था। अगर वो बातें पहले किसी ने छाप दिया तो न तो उनको इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्ट का फायदा मिल पाता न ही शार्ट सेलिंग का मौका।


दूसरे उन्हें यह भी खबर लग गयी थी की ब्यूरो आफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज़्म को भी इस रिपोर्ट का काफी हिस्सा मिल गया है और अगर अगले हफ्ते दस दिन में उन्होंने वो रिपोर्ट नहीं छापी तो शर्तिया ब्यूरो उस रिपोर्ट को छाप देगा।

ब्यूरो के दो डिप्टी एडिटर कोशिश कर रहे हैं की इंडिया वाले हिस्से के बारे में थोड़ी और जानकारी मिल जाए। उनके चीफ एडिटर ने एक चीफ एडिटर ने अपने हेड ऑफ ऑपरेशन को इस काम पर लगा दिया है और दस दिन का टारगेट दिया है।


ब्यूरो आफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्म की भी काफी पकड़ थी और उसका नाम भी था। उनकी रिपोर्ट के चलते हार्वर्ड के एक प्रोफ़ेसर को इस्तीफा अभी हफ्ते भर पहले देना पड़ा था। पनामा पेपर और साइप्रस पेपर ने पूरी दुनिया में हलचल मचा दी थी और ६२ देशों के इन्वेस्टिगेटिव पत्रकार जो सब के सब नामी थे उनसे जुड़े हुए थे।

रिपोर्ट


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मेरे मुम्बई निकलने से पहले पता चल गया था की मिस x की कम्पनी ने २६८ पन्नों की रिपोर्ट को आलमोस्ट फाइनल कर लिया है। मतलब फोरंसिक अकाउंटिंग, लीगल और आडिट टीम ने उसे देख लिया है , टेक टीम ने भी सारे मेल, इलेक्ट्रानिक डेटा की अथार्टी चेक कर ली और अब वह उनके बोर्ड आफ डायरेक्टर्स के पास है जहाँ से ५-६ दिन के अंदर वो क्लियर हो के पोस्ट हो जायेगी।



और सबसे बड़ी बात वो २६८ पेज की रिपोर्ट जस की तस मेरे पास पहुँच गयी थी, मुंबई छोड़ने के पहले और वो एकदम लुसाने के जो मेरे मित्र ने और सिएटल के कारोपोरेट आफिस ने जानबूझ के डॉक्युमनेट लिक कराये थे एकदम उसी के आधार पर थी और वही सब डाटा इस्तेमाल किये गए थे। हाँ लॉजिक इस तरह इस्तेमाल किया गया था की प्राइमा फेसाई रिपोर्ट डैमेजिंग तो थी ही उसके डाटा एनेलेटिक्स में कहीं से खामी नहीं नजर आती थी।



उम्मीद थी की मेरे घर पहुँचने के हफ्ते भर के अंदर शनिवार की शाम को वो रिपोर्ट रिलीज करेंगे जो अमेरिका में दिन की शुरआत होगी।



लेकिन जब तक रिपोर्ट रिलीज न हो जाए तब तक कुछ कहा नहीं जा सकता था।


मछली ने चारा खा तो लिया था लेकिन वो कांटे में फंस के ऊपर आ जाए तो बात थी और तब तक इन्तजार करना था और मुझे ऑलमोस्ट कम्प्लीट रेडियो साइलेंस पर रहना था।



तीन चार दिन और,...



लेकिन रिपोर्ट में था क्या,... और क्यों हम लोगों ने उसे इस तरह अपनी कंपनी के ही सेंसिटिव डेटा,


सब पता चलेगा, संक्षेप में ही सही , लेकिन उस रिपोर्ट के पीछे मैं था ये बात सिर्फ दो लोगों को मालूम थी, मुझे और कुछ हद तक लुसाने वाले एनेलिस्ट को। रिपोर्ट के पीछे हमारी अपनी कम्पनी है ये बात भी सिर्फ चार लोगों को मालूम थी।

चलिए पहले रिपोर्ट के बारे में संक्षेप में,...

इन्वेस्टमेंट स्ट्रक्चर, फायनेंसियल अकाउंट, कारपोरेट फाइलिंग्स, कारपोरेट स्ट्रक्चर, इ मेल एक्सचेंज, शेयर परचेज पेपर्स, ट्रस्ट डीड्स, और भी बहुत सब डॉक्युमेंट्स जिनकी ओरिजिन कारपोरेट फाइलिंग्स से और जियो पॉजीशनिंग से चेक की जा सकती थी। ज्यादातर डाकुमेंट पब्लिक डोमेन में थे।


लेकिन उससे भी ज्यादा गहरा मकड़ जाल था फॉरेन इन्वेस्टर्स का जिनमे से कुछ कम्पनी से जुडी अन्य कंपनियों के बोर्ड में भी थे। और उनके रिलेशंस कई शेल कंपनियों में थे।

चार कंपनियां ऐसी थीं जो साइप्रस में रजिस्टर्ड थीं लेकिन उनका असेट बेस बहुत कम था लेकिन इन्वेस्टमेंट काफी हाई था और कुछ में तो पर्सोनेल भी बहुत कम थे।



इस रिपोर्ट में राउंड ट्रिपिंग, ओवरइंवाइसिंग, गोल्ड प्लेटिंग , ऐसी कई बातें निकल कर आती थीं।


उससे भी बड़ी बात थी की कंम्पनी के साथ जुडी हुयी कुछ कंपनियों के असेट बेस में, टर्नओवर या सेल्स में कोई ख़ास बढ़ोत्तरी नहीं हुयी थी लेकिन शेयर वैल्यू में काफी बढ़त आयी थी। इन बढे हुए दामो वाले शेयर को मॉर्गेज करके कम्पनी ने लोन लेकर नए प्राजकेट्स स्टार्ट किये, नयी कम्पनी खोली, और फिर उसके आई पी ओ निकाले, उनमे उन्ही फॉरेन इन्वेस्टर्स ने इन्वेस्ट किया, शेयर ओवर सब्स्क्राइब हुए, और खुलने के बाद मार्केट में उनकी कीमतें बढ़ी, उन्ही बढ़ी हुयी शेयर्स को मॉर्गेज कर के फिर नए लोन लिए गए। यह लोन फॉरन और इंडियन बैंक्स, नान बैंकिंग फायनसियल कम्पनी सब से लिए गए थे।



अब यह सवाल होता है की इतनी डैमेजिंग रिपोर्ट हमने खुद क्यों अपनी कंपनी के लिए क्यों तैयार करवाई।

कौन है दुश्मन


अब यह सवाल होता है की इतनी डैमेजिंग रिपोर्ट हमने खुद क्यों अपनी कंपनी के लिए क्यों तैयार करवाई।



लेकिन उससे ज्यादा जरूरी है की फायनेंस डाटा तो कामन आदमी के समझ में आता नहीं तो बुलेटेड प्वाइंट से १६ सवाल बन रहे थे, जिनमे कम से कम दस ऐसे थे जो कारपोरेट फाइलिंग से जुड़े थे और जिसमे सीरयस मामला हो सकता था। इन दस में से छह तो इंडियन कम्पनी या मेरी कम्पनी से जुड़ा था।



अब इत्ती मेहनत करके ये रिपोर्ट बनी क्यों और हम कोईं उत्सुक थे की ये रिपोर्ट किसी तरह मिस X की रिपोर्ट्स में जिसे पॉपुलरली X रिपोर्ट कहा जाता है। रिस्क के हिसाब से वो कम्पनी उसे X, X X या X,X X कैटगरी में रखती थी और बाहर के स्टॉक एक्सचेंज और क्रेडिट रेटिंग कम्पनिया अगर किसी की X रेटिंग भी आ गयी तो निगेटिव क्रेडिट रेटिंग कर देती थीं।

लेकिन दो मेरे साथ बड़ी समस्याएं थीं, एक तो जिस तरह का मेरा सर्वेलेंस था मुझे उस रिपोर्ट से दूर ही रहना था। किसी भी तरह से अगले पंद्रह दिन कंपनी के किसी सेंसिटिव काम से खुद को जोड़ना, एक मुसीबत में डालना था। अभी तो सर्वायालनेस वाले मुझे ठरकी मान रहे थे और आने वाले दिनों में उनके इस शक को पक्का करना था। साथ ही साथ उस सरवायलेंस के तार को पकड़ कर, कौन हम लोगों के पीछे पड़ा है वहां तक पहुंचना था।



इस रिपोर्ट के छपने के बाद भी कुछ ऐसा ही होना था, कम्पनी पर जबरदस्त अटैक होता, हम लोगों यानी इंडियन सब्सिडियरी भी एक बार फिर से दांव पर लग जाती, लेकिन उससे कुछ क्ल्यु तो लगता और हम लोगों को असली दुश्मन को ट्रेस करने में आसानी होती। और भी फायदे थे जिसके बारे में मुझे बाद में पता चला, लेकिन दो बातें थी। पहली तो रिपोर्ट जिस दिन आनी थी, उसी दिन मुझे दो दर्जा नौ वाली बालिकाओं को, मिसेज मोइत्रा की कबुतरियों को रगड़ रगड़ के, मतलब पूरा दिन मिसेज मोइत्रा के घर पे और मिसेज मोइत्रा तीज की मस्ती में, और रिपोर्ट हिन्दुस्तान के समय से रात में साढ़े ११ बजे आनी थी क्योंकि न्यूआर्क में उस समय दिन होता। और फिर उस रिपोर्ट के बाद, कुछ डैमेज कंट्रोल और कुछ आगे की बातें, लेकिन सर्वेलेंस से बच कर और मेरा फोन, लैपी सब कुछ कीड़ा ग्रस्त था और फीज़िकल सर्वेलेंस भी कम्प्लीट था।



मैंने झटक कर उस बात को अलग कर दिया, अभी जब होगा तब देखा जाएगा। अभी तो एकदम सब नार्मल लगना चाहिए जिससे कोई शक न हो।

तो इन सवालों का जवाब जानने के पहले यह जानना जरूरी था की किन सवालों का जवाब नहीं मिल रहा था, एक एक्विजशन के अटैक को हम ने न्यूट्रलाइज कर दिया था, और अटेम्प्ट करने वालों की कमर टूट गयी थी।



लेकिन उसके बाद भी यह साफ़ था की कोई अटैक प्लान कर रहा था और वह हफते दस दिन में ही होने वाला था



पहली बात मेरा सर्वेलेंस,... जब शक का लेवल बहुत हल्का था तब भी इस लेवल का फिजिकल और डिजिटल सर्वायालेंस दिखाता था, की अटैकर्स के रिसोर्सेज अनलिमिटेड हैं,



दूसरी बात, जिस तरह लाउंज में मुझे वो रिपोर्ट मिली और बाकी इशारे थे वो यही दिखा रहे थे की अटैक मतलब कम्पनी पर साइबर या फायनान्सियल अटैक कभी भी हो सकता है,...



और उससे तीन सवाल और उभर रहे थे



१. अटैक क्यों किया जा रहा है ?



२. अटैक करने वाला कौन है ?



३ अटैक का टाइम और टारगेट क्या होगा ?



पिछली बार हम डिफेन्स पर थे लेकिन इस बार मुझे लग रहा था हमें अटैक करना होगा लेकिन वो तब तक पॉसिबल नहीं था जबतक अटैकर्स पहचाने न जाए,

इसलिए उन्हें बाहर निकालना जरूरी था और एक बार पता चल गया तो कारपोरेट आफिस के लोग उसे हैंडल कर लेते,... लेकिन अभी कुछ पता नहीं चल रहा था
कारपोरेट हेडक्वार्टस ने भी तय कर लिया की अब हमें अटैक करना है, लेकिन उस काम में मुझे इन्वाल्व नहीं होना था। एक तो मेरा जिस तरह से सर्वेलेंस हो रहा था, मेरे लिए ज्यादा एक्टिव रोल लेना मुश्किल था, फिर अब यह क्लियर था की मूल अटैकर कोई ग्लोबल एम् एन सी थी और असली टारगेट पैरेंट कम्पनी थी। तो कारपोरेट वार का अबकी बड़ा रोल सिएटल के आफिस में ही होता,

लेकिन मेरा रोल अभी भी अहम था, एक तो वो बकरे वाला, जिसे बांधकर शिकारी शिकार की अट्रैक्ट करता है, मेरे सर्वेलेंस से पता चल सकता था की कौन ये करवा रहा है और दूसरे इण्डिया आपरेशन के बारे में इनपुट।



और यह रिपोर्ट भी हमारे लिए एक इम्पॉरटेंट टूल होती,... कैसे क्या फायदा होता कम्पनी को



ये एक बार रिपोर्ट छप जाए तो पता चलेगा



अभी हालत ये थी की मछली ने चारा खा तो लिया था लेकिन उसके बाद मछली पकड़ने वाले को बड़े धैर्य का परिचय देना होता है। जितनी बड़ी भारी- मछली उतना ज्यादा इन्तजार, धैर्य और ताकत



तो ये समय अभी इन्तजार का था। और जरा भी आहट न करने का।

अगले दिन जरा और जोर का झटका लगा जब मैं इत्ते दिनों बाद आफिस पहुंच।



मिसेज डी मेलो ने सबसे पहले बताया, बाद में और लोगो ने भी, लेकिन मिसेज डी मेलो ने ये भी बताया की एक मीटिंग भी शेड्यूल है जिसके लिए मुझे साढ़े ग्यारह बजे साइट पर ही जाना होगा।

बस एक बात और

अब तक कहानी करीब करीब फर्स्ट परसन में थी, यानी कोमल की कहानी, कोमल की जुबानी और उसके फायदे भी थे और सीमाएं भी। लेकिन जैसे मैंने पिछले भाग में कहा था कहानी का कलेवर अब थोड़ा बड़ा हो गया है, घटनाएं कहीं जगहों पर घट रही हैं इसलिए कुछ हिस्सों में नैरेटर बदल जायँगे लेकिन मुझे पूरा विश्वास है की सुधी पाठक, संदर्भ के अनुसार उसे पढ़ेंगे भी, समझेंगे भी और सराहेंगे भी।

कहानी का यह भाग और आगे के कुछ भाग भी इसी तरह के नरेशन में हैं और हाँ अभी कुछ सालों पहले एक रिपोर्ट ने एक बड़े आद्योगिक, समूह को हिलाने की कोशिश की, जिसकी चर्चा आप सब ने पढ़ी होगी, की भी होगी तो उस घटना से इस रिपोर्ट का कोई सम्बन्ध नहीं है, न उसे जोड़ कर देखने

कैसा लगा यह भाग, जरूर लिखिए लाइक और कमेंट दोनों का इन्तजार रहेगा
आपके द्वारा प्रस्तुत इन अध्यायों को पढ़कर ऐसा लगता है मानो कॉर्पोरेट जगत की उन अदृश्य लड़ाइयों के बीच खड़ा हो गया हूँ, जहाँ डेटा हथियार है और सच्चाई एक रणनीतिक मोहरा। मिस एक्स और उनकी रिपोर्ट्स सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि वैश्विक वित्तीय युद्धक्षेत्र का एक यथार्थवादी चित्रण है, जहाँ शेयर बाजार की उठापटक, शेल कंपनियों का जाल, और पावर कॉरिडोर के छिपे खेल सब कुछ एक साथ गुथे हुए हैं।

आपने तीन प्रमुख पात्रों, मिस एक्स (फ्रेंच-अमेरिकन फॉरेंसिक एक्सपर्ट), एन (देसी लेकिन ग्लोबलाइज्ड महिला), और एम (मिश्रित राष्ट्रीयता का पुरुष), का परिचय बड़े ही सधे हुए अंदाज़ में दिया है। मिस एक्स की बैकग्राउंड, प्रिंसटन से डॉक्टरेट, FATF में भूमिका, और कॉर्पोरेट फ्रॉड उजागर करने का जुनून, उन्हें एक खलनायिका नहीं, बल्कि एक एंटी-हीरो बनाती है। वह इंटेग्रिटी और हिम्मत की प्रतीक हैं, जो ट्रिलियन-डॉलर कंपनियों को उनकी गलतियाँ गिनाती है। यहाँ आपका कौशल दिखता है: पात्रों को स्टीरियोटाइप से बचाकर उन्हें मानवीय बनाना।

कहानी का सबसे दिलचस्प पहलू वह पैराडॉक्स है जहाँ एक कंपनी खुद पर ही एक डैमिंग रिपोर्ट कमीशन करती है। यह सर्पगंधा जैसी स्थिति है, जहर को ही जहर से काटने की कोशिश। आपने इसे सिर्फ एक थ्रिलर तक सीमित नहीं रखा, बल्कि कॉर्पोरेट जगत के उन सवालों से जोड़ा है जो आज के दौर में प्रासंगिक हैं:

मिस एक्स की कंपनी का इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्ट्स के साथ-साथ शॉर्ट सेलिंग में हिस्सेदारी होना, बताता है कि नैतिकता और मुनाफा अक्सर एक ही सिक्के के दो पहलू होते हैं।

नायक का हर कदम पर निगरानी में होना, फोन का कीड़ा-ग्रस्त होना, और प्लॉजिबल डिनायबिलिटी जैसे टर्म्स कॉर्पोरेट जासूसी की दुनिया की असली तस्वीर पेश करते हैं।

आपके लेखन में वित्तीय शब्दावली (राउंड ट्रिपिंग, ओवरइनवॉइसिंग, गोल्ड प्लेटिंग) का सटीक इस्तेमाल और स्विस बैंकिंग सिस्टम, साइप्रस पेपर्स, FATF जैसे रेफरेंस कहानी को प्रामाणिक बनाते हैं। यह साफ़ झलकता है कि आपने इस दुनिया को गहराई से समझा है या खूब रिसर्च की है।

एक सुझाव देने की जुर्रत करूंगा.. आपने फर्स्ट-पर्सन (कोमल) से थर्ड-पर्सन की ओर शिफ्ट करने की बात कही.. इस ट्रांज़िशन को यदि धीरे धीरे अमल में लाएँ तो बिना रस-क्षति के कहानी की पकड़ बनी रहेगी, ऐसा मेरा मानना है..

अगले अध्यायों का इंतज़ार रहेगा, खासकर यह जानने के लिए कि क्या मिस एक्स की रिपोर्ट वाकई उस दुश्मन को उजागर कर पाती है जो छाया में छिपा है..!! और हाँ, मिसेज मोइत्रा की कबूतरियों वाला संदर्भ बड़ा ही रहस्यमयी लगा, उम्मीद है, यह कोई मेटाफर तो नहीं!

शुभकामनाओं सहित,

वखारिया
 

Black horse

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कौन है दुश्मन


अब यह सवाल होता है की इतनी डैमेजिंग रिपोर्ट हमने खुद क्यों अपनी कंपनी के लिए क्यों तैयार करवाई।



लेकिन उससे ज्यादा जरूरी है की फायनेंस डाटा तो कामन आदमी के समझ में आता नहीं तो बुलेटेड प्वाइंट से १६ सवाल बन रहे थे, जिनमे कम से कम दस ऐसे थे जो कारपोरेट फाइलिंग से जुड़े थे और जिसमे सीरयस मामला हो सकता था। इन दस में से छह तो इंडियन कम्पनी या मेरी कम्पनी से जुड़ा था।



अब इत्ती मेहनत करके ये रिपोर्ट बनी क्यों और हम कोईं उत्सुक थे की ये रिपोर्ट किसी तरह मिस X की रिपोर्ट्स में जिसे पॉपुलरली X रिपोर्ट कहा जाता है। रिस्क के हिसाब से वो कम्पनी उसे X, X X या X,X X कैटगरी में रखती थी और बाहर के स्टॉक एक्सचेंज और क्रेडिट रेटिंग कम्पनिया अगर किसी की X रेटिंग भी आ गयी तो निगेटिव क्रेडिट रेटिंग कर देती थीं।

लेकिन दो मेरे साथ बड़ी समस्याएं थीं, एक तो जिस तरह का मेरा सर्वेलेंस था मुझे उस रिपोर्ट से दूर ही रहना था। किसी भी तरह से अगले पंद्रह दिन कंपनी के किसी सेंसिटिव काम से खुद को जोड़ना, एक मुसीबत में डालना था। अभी तो सर्वायालनेस वाले मुझे ठरकी मान रहे थे और आने वाले दिनों में उनके इस शक को पक्का करना था। साथ ही साथ उस सरवायलेंस के तार को पकड़ कर, कौन हम लोगों के पीछे पड़ा है वहां तक पहुंचना था।



इस रिपोर्ट के छपने के बाद भी कुछ ऐसा ही होना था, कम्पनी पर जबरदस्त अटैक होता, हम लोगों यानी इंडियन सब्सिडियरी भी एक बार फिर से दांव पर लग जाती, लेकिन उससे कुछ क्ल्यु तो लगता और हम लोगों को असली दुश्मन को ट्रेस करने में आसानी होती। और भी फायदे थे जिसके बारे में मुझे बाद में पता चला, लेकिन दो बातें थी। पहली तो रिपोर्ट जिस दिन आनी थी, उसी दिन मुझे दो दर्जा नौ वाली बालिकाओं को, मिसेज मोइत्रा की कबुतरियों को रगड़ रगड़ के, मतलब पूरा दिन मिसेज मोइत्रा के घर पे और मिसेज मोइत्रा तीज की मस्ती में, और रिपोर्ट हिन्दुस्तान के समय से रात में साढ़े ११ बजे आनी थी क्योंकि न्यूआर्क में उस समय दिन होता। और फिर उस रिपोर्ट के बाद, कुछ डैमेज कंट्रोल और कुछ आगे की बातें, लेकिन सर्वेलेंस से बच कर और मेरा फोन, लैपी सब कुछ कीड़ा ग्रस्त था और फीज़िकल सर्वेलेंस भी कम्प्लीट था।



मैंने झटक कर उस बात को अलग कर दिया, अभी जब होगा तब देखा जाएगा। अभी तो एकदम सब नार्मल लगना चाहिए जिससे कोई शक न हो।

तो इन सवालों का जवाब जानने के पहले यह जानना जरूरी था की किन सवालों का जवाब नहीं मिल रहा था, एक एक्विजशन के अटैक को हम ने न्यूट्रलाइज कर दिया था, और अटेम्प्ट करने वालों की कमर टूट गयी थी।



लेकिन उसके बाद भी यह साफ़ था की कोई अटैक प्लान कर रहा था और वह हफते दस दिन में ही होने वाला था



पहली बात मेरा सर्वेलेंस,... जब शक का लेवल बहुत हल्का था तब भी इस लेवल का फिजिकल और डिजिटल सर्वायालेंस दिखाता था, की अटैकर्स के रिसोर्सेज अनलिमिटेड हैं,



दूसरी बात, जिस तरह लाउंज में मुझे वो रिपोर्ट मिली और बाकी इशारे थे वो यही दिखा रहे थे की अटैक मतलब कम्पनी पर साइबर या फायनान्सियल अटैक कभी भी हो सकता है,...



और उससे तीन सवाल और उभर रहे थे



१. अटैक क्यों किया जा रहा है ?



२. अटैक करने वाला कौन है ?



३ अटैक का टाइम और टारगेट क्या होगा ?



पिछली बार हम डिफेन्स पर थे लेकिन इस बार मुझे लग रहा था हमें अटैक करना होगा लेकिन वो तब तक पॉसिबल नहीं था जबतक अटैकर्स पहचाने न जाए,

इसलिए उन्हें बाहर निकालना जरूरी था और एक बार पता चल गया तो कारपोरेट आफिस के लोग उसे हैंडल कर लेते,... लेकिन अभी कुछ पता नहीं चल रहा था
कारपोरेट हेडक्वार्टस ने भी तय कर लिया की अब हमें अटैक करना है, लेकिन उस काम में मुझे इन्वाल्व नहीं होना था। एक तो मेरा जिस तरह से सर्वेलेंस हो रहा था, मेरे लिए ज्यादा एक्टिव रोल लेना मुश्किल था, फिर अब यह क्लियर था की मूल अटैकर कोई ग्लोबल एम् एन सी थी और असली टारगेट पैरेंट कम्पनी थी। तो कारपोरेट वार का अबकी बड़ा रोल सिएटल के आफिस में ही होता,

लेकिन मेरा रोल अभी भी अहम था, एक तो वो बकरे वाला, जिसे बांधकर शिकारी शिकार की अट्रैक्ट करता है, मेरे सर्वेलेंस से पता चल सकता था की कौन ये करवा रहा है और दूसरे इण्डिया आपरेशन के बारे में इनपुट।



और यह रिपोर्ट भी हमारे लिए एक इम्पॉरटेंट टूल होती,... कैसे क्या फायदा होता कम्पनी को



ये एक बार रिपोर्ट छप जाए तो पता चलेगा



अभी हालत ये थी की मछली ने चारा खा तो लिया था लेकिन उसके बाद मछली पकड़ने वाले को बड़े धैर्य का परिचय देना होता है। जितनी बड़ी भारी- मछली उतना ज्यादा इन्तजार, धैर्य और ताकत



तो ये समय अभी इन्तजार का था। और जरा भी आहट न करने का।

अगले दिन जरा और जोर का झटका लगा जब मैं इत्ते दिनों बाद आफिस पहुंच।



मिसेज डी मेलो ने सबसे पहले बताया, बाद में और लोगो ने भी, लेकिन मिसेज डी मेलो ने ये भी बताया की एक मीटिंग भी शेड्यूल है जिसके लिए मुझे साढ़े ग्यारह बजे साइट पर ही जाना होगा।
Mind blowing informative update
 

Luckyloda

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बस एक बात और

अब तक कहानी करीब करीब फर्स्ट परसन में थी, यानी कोमल की कहानी, कोमल की जुबानी और उसके फायदे भी थे और सीमाएं भी। लेकिन जैसे मैंने पिछले भाग में कहा था कहानी का कलेवर अब थोड़ा बड़ा हो गया है, घटनाएं कहीं जगहों पर घट रही हैं इसलिए कुछ हिस्सों में नैरेटर बदल जायँगे लेकिन मुझे पूरा विश्वास है की सुधी पाठक, संदर्भ के अनुसार उसे पढ़ेंगे भी, समझेंगे भी और सराहेंगे भी।

कहानी का यह भाग और आगे के कुछ भाग भी इसी तरह के नरेशन में हैं और हाँ अभी कुछ सालों पहले एक रिपोर्ट ने एक बड़े आद्योगिक, समूह को हिलाने की कोशिश की, जिसकी चर्चा आप सब ने पढ़ी होगी, की भी होगी तो उस घटना से इस रिपोर्ट का कोई सम्बन्ध नहीं है, न उसे जोड़ कर देखने

कैसा लगा यह भाग, जरूर लिखिए लाइक और कमेंट दोनों का इन्तजार रहेगा
Samjh gye.. aur naam google kar lena ji....
 

komaalrani

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komaalrani

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कुछ अनिष्ट की आशंका... तो मस्तिष्क पहले से हीं सावधान कर देता है...
अब बचाव का रास्ता...
और काउंटर अटैक ही है, बचाव का रास्ता, लेकिन पता तो चले, दुश्मन कौन है
 

komaalrani

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अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी और जंग का मैदान...
जंग का मैदान कई महाद्वीपों में फैला है।
 

komaalrani

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रिपोर्ट... कहीं पे निगाहें.. कहीं पर निशाना तो नहीं...
:thanks: :thanks: :thanks: :thanks: :thanks: :thanks: Thanks so much
 

komaalrani

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मेरा ये सोचना है कि सूत्रधार .. कहानी को हर किसी के नजरिए से पेश कर सकता है...
और कोई प्रसंग कथा वाचक के उपस्थित नहीं रहने से छूटेगा नहीं....
कोशिश यही रहेगी
 

komaalrani

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कोमल मैम

कहानी का यह भाग अब तक का सबसे क्लिष्ट लेकिन सस्पेंस से भरपूर है।

"वो कौन है, कौन हो सकता है ?"

दिमाग खूब दौड़ा लिया लेकिन रडार फैल हो गया। आप की स्टेल्थ तकनीक कामयाब रही।

व्यापार की समझ कम है लेकिन एक बात तो समझ आ गई कि मामला बहुत पेचीदा और उम्मीद से ज्यादा गहरा है।

शायद कई अपडेट के बात पत्ते खुलेंगे।


अपडेट के इंतजार में।


सादर
आप की बात एकदम सही है की मामला पेचीदा और गहरा है और ऊपर से मुश्किल है की हाथ बंधे है, मतलब चारो ओर कीड़े लगे हैं, सामने ठेले वाला और बगल में फ़ूड ट्रक और सख्त इंस्ट्रक्शन है की पंद्रह दिन तक एकदम सेफ रहना है

लेकिन थ्रिलर लिखने और पढ़ने का यही तो मजा है
 
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