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वाह... ऐन दिल की बात कही है जनाब...मेरा ये सोचना है कि सूत्रधार .. कहानी को हर किसी के नजरिए से पेश कर सकता है...
और कोई प्रसंग कथा वाचक के उपस्थित नहीं रहने से छूटेगा नहीं....
सही कहा श्रीमान...कोमल मैम
कहानी का यह भाग अब तक का सबसे क्लिष्ट लेकिन सस्पेंस से भरपूर है।
"वो कौन है, कौन हो सकता है ?"
दिमाग खूब दौड़ा लिया लेकिन रडार फैल हो गया। आप की स्टेल्थ तकनीक कामयाब रही।
व्यापार की समझ कम है लेकिन एक बात तो समझ आ गई कि मामला बहुत पेचीदा और उम्मीद से ज्यादा गहरा है।
शायद कई अपडेट के बात पत्ते खुलेंगे।
अपडेट के इंतजार में।
सादर
शॉर्ट स्टोरीज में सेक्स हीं होता है...Komal Ji, ek baat note ki h maine, itni achchi story aur sex scene ke baad bhi jyada comment kyu nai aate. Iska kaaran hai ki aapki story lambi hai. Jab bhi me koi story dekhta hu to lengthy hone ke karan ni read karta whatever i may be good one. Aaap JKG ko 2nd part me likho to naye reader bhi judenge.
बदलाव.. उम्मीदन एक नया रस ले के आएगी...Abhi tak aapki story komal hi suna rahi thi. Ham wahi dekh rahe the jo komal dikha rahi thi. Ab scene badal gaya h. hope yeh bhi achh lage. Rajeev ki nazar se. Mujhe itna corporate samjh ni aya but jasoosi kaise ho rahi hai samajh aa raha h. itna kafi h mere liye. Aap chutki ko beech me chhod aayi. aap udhar bhi dekhna.
सही कहा महोदय...आपके द्वारा प्रस्तुत इन अध्यायों को पढ़कर ऐसा लगता है मानो कॉर्पोरेट जगत की उन अदृश्य लड़ाइयों के बीच खड़ा हो गया हूँ, जहाँ डेटा हथियार है और सच्चाई एक रणनीतिक मोहरा। मिस एक्स और उनकी रिपोर्ट्स सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि वैश्विक वित्तीय युद्धक्षेत्र का एक यथार्थवादी चित्रण है, जहाँ शेयर बाजार की उठापटक, शेल कंपनियों का जाल, और पावर कॉरिडोर के छिपे खेल सब कुछ एक साथ गुथे हुए हैं।
आपने तीन प्रमुख पात्रों, मिस एक्स (फ्रेंच-अमेरिकन फॉरेंसिक एक्सपर्ट), एन (देसी लेकिन ग्लोबलाइज्ड महिला), और एम (मिश्रित राष्ट्रीयता का पुरुष), का परिचय बड़े ही सधे हुए अंदाज़ में दिया है। मिस एक्स की बैकग्राउंड, प्रिंसटन से डॉक्टरेट, FATF में भूमिका, और कॉर्पोरेट फ्रॉड उजागर करने का जुनून, उन्हें एक खलनायिका नहीं, बल्कि एक एंटी-हीरो बनाती है। वह इंटेग्रिटी और हिम्मत की प्रतीक हैं, जो ट्रिलियन-डॉलर कंपनियों को उनकी गलतियाँ गिनाती है। यहाँ आपका कौशल दिखता है: पात्रों को स्टीरियोटाइप से बचाकर उन्हें मानवीय बनाना।
कहानी का सबसे दिलचस्प पहलू वह पैराडॉक्स है जहाँ एक कंपनी खुद पर ही एक डैमिंग रिपोर्ट कमीशन करती है। यह सर्पगंधा जैसी स्थिति है, जहर को ही जहर से काटने की कोशिश। आपने इसे सिर्फ एक थ्रिलर तक सीमित नहीं रखा, बल्कि कॉर्पोरेट जगत के उन सवालों से जोड़ा है जो आज के दौर में प्रासंगिक हैं:
मिस एक्स की कंपनी का इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्ट्स के साथ-साथ शॉर्ट सेलिंग में हिस्सेदारी होना, बताता है कि नैतिकता और मुनाफा अक्सर एक ही सिक्के के दो पहलू होते हैं।
नायक का हर कदम पर निगरानी में होना, फोन का कीड़ा-ग्रस्त होना, और प्लॉजिबल डिनायबिलिटी जैसे टर्म्स कॉर्पोरेट जासूसी की दुनिया की असली तस्वीर पेश करते हैं।
आपके लेखन में वित्तीय शब्दावली (राउंड ट्रिपिंग, ओवरइनवॉइसिंग, गोल्ड प्लेटिंग) का सटीक इस्तेमाल और स्विस बैंकिंग सिस्टम, साइप्रस पेपर्स, FATF जैसे रेफरेंस कहानी को प्रामाणिक बनाते हैं। यह साफ़ झलकता है कि आपने इस दुनिया को गहराई से समझा है या खूब रिसर्च की है।
एक सुझाव देने की जुर्रत करूंगा.. आपने फर्स्ट-पर्सन (कोमल) से थर्ड-पर्सन की ओर शिफ्ट करने की बात कही.. इस ट्रांज़िशन को यदि धीरे धीरे अमल में लाएँ तो बिना रस-क्षति के कहानी की पकड़ बनी रहेगी, ऐसा मेरा मानना है..
अगले अध्यायों का इंतज़ार रहेगा, खासकर यह जानने के लिए कि क्या मिस एक्स की रिपोर्ट वाकई उस दुश्मन को उजागर कर पाती है जो छाया में छिपा है..!! और हाँ, मिसेज मोइत्रा की कबूतरियों वाला संदर्भ बड़ा ही रहस्यमयी लगा, उम्मीद है, यह कोई मेटाफर तो नहीं!
शुभकामनाओं सहित,
वखारिया
ओर-छोर का पता लगाना ... मुश्किल लग रहा है...जंग का मैदान कई महाद्वीपों में फैला है।
लेकिन उत्सुकता बढ़ा दी...आप की बात एकदम सही है की मामला पेचीदा और गहरा है और ऊपर से मुश्किल है की हाथ बंधे है, मतलब चारो ओर कीड़े लगे हैं, सामने ठेले वाला और बगल में फ़ूड ट्रक और सख्त इंस्ट्रक्शन है की पंद्रह दिन तक एकदम सेफ रहना है
लेकिन थ्रिलर लिखने और पढ़ने का यही तो मजा है
मुंडे मुंडे मतिभिन्ना...maine ab saaf saaf accept kar liya hai
karan kayi ho sakte hain lein comment na aane ka sabse bada kaaran yahi hota hai ki logo ko story ya to acchi nahi lag rahi ya ' Bas aise hi Kuch khas nahi lag rhai .
jahan tak second part shuru karna hai to is kahaani ki bas ab chala chali ki bela hai, mushkil se 15-20 part aur . to kahani 260-270 parts men ho uska second part 20-25 part ka ho to bada uneven breakup hoga.
main chaahti hun ki readers jude aur comment bhi aayen lekin main kahaani se chhedchaad bhi nahi karana chaahati . main kahani ko ek commodity bana ke ekdm grahakon ki pasand aur unki jaroort ke mutabik banaa ke sale ke liye bhi nhi banana chahati , thoda bahoot alag aur apni pasand bhi rakhana chaahti hun
Thanks so much saath dene ke liye aur regular comments ke liye
बीस-पचीस पार्ट ..maine ab saaf saaf accept kar liya hai
karan kayi ho sakte hain lein comment na aane ka sabse bada kaaran yahi hota hai ki logo ko story ya to acchi nahi lag rahi ya ' Bas aise hi Kuch khas nahi lag rhai .
jahan tak second part shuru karna hai to is kahaani ki bas ab chala chali ki bela hai, mushkil se 15-20 part aur . to kahani 260-270 parts men ho uska second part 20-25 part ka ho to bada uneven breakup hoga.
main chaahti hun ki readers jude aur comment bhi aayen lekin main kahaani se chhedchaad bhi nahi karana chaahati . main kahani ko ek commodity bana ke ekdm grahakon ki pasand aur unki jaroort ke mutabik banaa ke sale ke liye bhi nhi banana chahati , thoda bahoot alag aur apni pasand bhi rakhana chaahti hun
Thanks so much saath dene ke liye aur regular comments ke liye