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Erotica जोरू का गुलाम उर्फ़ जे के जी

komaalrani

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जोरू का गुलाम भाग २४४, ' नया प्रोजेक्ट ' पृष्ठ १५१८

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97Shiv

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Hi komaal ji
Kya adbhut lekhan shaili hai aapki .aaj ke daur me aisi shaili itti gaharai vichato ki ki is tarha abhivyakti kamal hai tarif ke liye shabd nahi hai bas itta hi kah sakta hu ki isase utkristha lekhan to ab swayam ma sharda hi kr sakti hai
Kya mujhe aapki sari khaniyon ki suchi mil sakti hai jo ki n keval mere balki mujh jaise n jane aapke kitte prashanshako ke liye upyogi hogi
 
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Premkumar65

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चलते चलते
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आफिस से निकलते हुए मैंने एक महत्वपूर्ण फैसला किया, मैं घर पैदल जाऊँगा।

वैसे तो रोज घर पहुँचने की जल्दी रहती थी और कम्पनी की कार पिक अप और ड्राप करती ही थी, पर आज दो बातें थीं। एक तो मुझे लगा की कंपनी की कार में भी जरूर डालने वाले ने कीड़े डाल दिए होंगे और मैं सारे रस्ते कांशस रहूँगा, दूसरे आज वही तीज को लेकर एक कोई लम्बी मीटिंग चल रही थी क्लब में लेडीज क्लब की, तो घर पर कोई इन्तजार भी नहीं कर रहा था।

लेकिन दो बातें और थी पैदल चलने की, एक तो मैं चलते हुए सोच ज्यादा पाता था, और ख़ास तौर से जब अकेले रहूं और दूसरे उसी बहाने, आफिस से टाउनशिप और अपने घर तक मैं ये भी देखना चाहता था की पिछले तीन चार दिनों से कोई नयी एक्टिविटी तो नहीं चालू हुयी, जैसे हम लोगो के घर के पास वो गाजर के ठेले वाला खड़ा हो गया या फ़ो फ़ूड ट्रक लग गयी तो कहीं आफिस के आस पास या रस्ते में भी इस तरह की को नयी दूकान तो नहीं लग गयी।

मौसम भी अच्छा था और पैदल का भी रास्ता १०-१२ मिनट से ज्यादा का नहीं था।

मेरे दिमाग में बार बार इस नए प्रोजेक्ट की बात घूम रही थी, इतना टॉप सीक्रेट प्रॉजेक्ट, जिसमे आई बी के एक टॉप बॉस खुद सिक्योरिटी हैंडल कर रहे हो और, मेरे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। हम लोगो के प्रोजेक्ट का इससे क्या जुड़ाव था, और आखिर क्यों मुझे ऑर्डिनेट करने का काम मिला,



पहले तो ' नीड टू नो ' वाली बात सोच के मैंने अपने को मना किया कुछ भी सोचने से, लेकिन मन मानता कहाँ है। हाँ मैं इस प्रॉजेक्ट के बारे में

कहीं बात नहीं कर सकता था ये तो एकदम साफ़ था,

अचानक कुछ बादल छंटे , और मेरी समझ में एक बात तो आ गयी, दिल्ली में दिल्ली जिमखाना और गोल्फ क्लब से लेकर झंडेवालन में जिन लोगों से मैं मिला था, जो सत्ता के गलियारों के असली ताकत के स्त्रोत थे, वो बाकी बातों के साथ मेरी भी वेटिंग कर रहे थे, जांच पड़ताल परख कर रहे थे और उन्हें मैं ठीक लगा होऊंगा तभी उन्होंने ग्रीन सिग्नल दिया होगा मेरे नाम के लिए, कोऑर्डिनेट करने के लिए और इस प्रॉजेक्ट का हिस्सा बनाने के लिए।

अगले दिन बंबई में जो बमचक मची, और फिर सुबह सुबह एयरपोर्ट पर मुलाक़ात जिसमे मुझे वो कीड़ा पकडक यंत्र मिला और मेरे सर्वेलेंस के बारे में रिपोर्ट मिली वो भी अब मुझे लग रहा था की उसी जांच पड़ताल का हिस्सा था और उन लोगो को लग गया था की मैं कामोनी और जो सरकार का स्ट्रेटजी ग्रुप होगा उस के बीच में पुल का काम कर सकता हूँ।

लेकिन कई बार जैसे एक सवाल सुलझने के कगार पर पहुंचता है कई और सवाल मुंह बा कर खड़े हो जाते हैं, और एक सवाल कौंधने लगा

पिछले दिनों जो कुछ हुआ, हमारी कम्पनी को कब्ज़ा करने की कोशिश, बाल बाल हमारा बचना, सरकार का पीछे से ही सही फाएंसियल इंस्टीट्यूशन की ओर से सहयता देना, कुछ तो है ये सब एक संयोग तो नहीं होगा और फिर ये सुपर सीक्रेट प्रोजेट।

और मुझे कुछ कुछ याद आया, कुछ उड़ती उड़ती सुनी थी, की हमारी पैरेंट कम्पनी कोई कटिंग एज टेक्नोलॉजी पे काम कर रही है जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से भी शायद एक कदम आगे हो, और वो ए आई के साथ बिग डाटा, क्वाण्टम कम्प्यूटिंग सब का इस्तेमाल कर रही है। उस के बाद कंप्यूटर शायद पुरानी बातें हो जाये, और उस के डिफेन्स में भी इस्तेमाल हो सकते हैं, हर नयी टेक्नोलॉजी की तरह।



और फिर मुझे दूसरी बात याद आयी, गवर्नमेंट की एक परेशानी ट्रांसफर ऑफ़ टेक्नोलॉजी को लेकर, लेटेस्ट प्रॉडक्ट हर कंपनी बेचना चाहती है लेकिन ट्रांसफर ऑफ़ टेक्नोलॉजी के नाम पर वो बिदक जाते हैं, और होता भी है तो आधा तीहा। सोर्स कोड कंपनी कभी नहीं देती और न ही सर्वर यहाँ लगाती है। और मैंने अपनी कम्पनी की ओर से सर्वर फ़ार्म की भी पेशकश की थी।



फिर हमारी कम्पनी भी, इंडस्ट्रियल जासूसी से घिरी है, उसे भी कहीं अपनी उस कटिंग एज टेक्नोलॉजी को जांचना पड़ेगा तो कहीं



और अब मुझे कुछ मामला समझ में आया, हो सकता है बल्कि यही है, अभी हम लोगो की फाएंसियल स्थिति डांवाडोल है तब भी एक्वायर करने वाले ने इतना घाटा सहकर एक्वायर करने की कोशिश की, क्योंकि उसे मालूम था की टेक्नोलॉजी में ब्रेकथ्रू होने वाला है और वह बिना रइस्सर्च पर पैसा खर्च किये उसे एक्वायर कर लेता। लग रहा था सरकार यह नहीं चाहती थी और उन्होंने परदे के पीछे से हम लोगो का साथ दिया। एक्वायर होने के बाद ये टॉप सीक्रेट प्रोजेक्ट खटाई में पड़ जाता

और हो सकता है वो टेक्नोलॉजी, और ये प्रॉजेक्ट कहीं न कहीं हो सकताहै जुड़े हो और जो मेरे ऊपर शक की सुई घूमी है वो भी शायद इसलिए

अब मैं टाउनशिप के बीच में पहुंच गया था, जहाँ से एक पतली सी सड़क गीता के घर की ओर टाउनशिप की बाहरी पर्धित पर जात्ती थी और मेन रोड कालोनी में

और मैंने अब तक की सब बातें झटक दी और अपने से बोला, " सोचो, तुझे क्या करना है "

और वो जवाब सामने था, दूर गाजर का ठेला दिख रहा था।

बार बार मुझे यही कहा जाता है की वर्तमान में जीयो, लिव इन द मोमेंट। डूएबल क्या है और ये शीशे की तरह साफ़ था, दिख रहा था,

सर्वेलेंस,



उसे होने भी देना है और उससे बचना भी है।


होने देना इसलिए जरूरी है की उसी के धागे को पकड़ कर हम पहुँच सकते हैं की नेपथ्य में कौन है , और जितना ज्यादा सर्वेलेंस होगा उतना ही पकड़ना आसान भी होगा। दूसरी बात है की मुझे यह पता है की उन्हें क्या पता करना है, अगर उन्हें शक है की मैं ठरकी हूँ, मेरे घर में सभी, तो बस मुझे उनके इस शक को सही सिद्ध करना होगा। आठ दस दिन के सर्वेलेंस के बाद जब उनके आकाओ को विश्वास हो जाएगा की मुझसे कोई खतरा नहीं है तो ये बंद हो जाएगा और उसका सबसे बड़ा सबूत होगा की वो ठेला और फ़ूड ट्रक हट जाएंगे।

और बचना इसलिए है की किसी भी हाल में इस प्रोजेक्ट की या हमारे काउंटर ऑफेंसिव के बारे में उन्हें नहीं मालूम होना चाहिए। लेकिन कई बार हो सकता है मुझे कांटेक्ट करना पड़े तो उस का कोई रास्ता ढूंढना होगा। पर अभी कुछ दिन तो उसकी जल्दी नहीं लग रही थी

सोचते सोचते घर आ गया था,
Mast update hai. Bahut technical ban gaya hai to thoda dhyaan se Sadhna pasta hai samajhne ke liye.
 

Sutradhar

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भाग २४४ नया प्रोजेक्ट

३६००,८९४
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हम लोगों के टाउनशिप में आफिस के पास ही एक बड़ी जगह खाली पड़ी थी और बार बार कुछ न कुछ वहां होने की बात होती थी लेकिन टल जाती थी। जमींन वैसे भी टाउनशिप की सेंट्रल गवर्मेंट से लीज पर थी। इसलिए बिना सरकार की परमिशन के कुछ हो भी नहीं सकता था, बस उसी जगह कुछ बन रहा था। मेरे कम्पनी की एक मेल भी आफिस के अक्काउंट पे मेरे लिए आयी थी। उसी के सिलसिले में और कुछ डॉक्युमेंट्स भी कारपोरेट आफिस ने क्लियर कर के भेजे थे मुझे ऑथराइज्ड सिग्नेटरी बनाया था लेकिन वो मामला कनफेडेंशियल से भी ज्यादा था और उसमें यहाँ के किसी भी आदमी को इन्वाल्व बिना कारपोरेट आफिस की परमिशन के नहीं करना था।

कुछ डिफेन्स से जुड़ा मामला लग रहा था

हमारी कम्पनी कुछ डिफेन्स कॉनट्रेक्ट लेना चाहती थी, शायद उसी से जुड़ा होगा, मैंने सोचा। हम लोग डी आर डी ओ को कुछ इक्विपमेंट सप्लाई करने वाले थे उसी शायद कुछ लिंक हो।


लेकिन दूर से ही देख कर मुझे लगा की ये कुछ अलग ही हो रहा है।

एक वार्बड वायर की फेंसिंग जो कम से काम बारह फिट ऊँची थी और जगह जगह कैमरे, शायद इलेक्ट्रिफाइड भी,

सिर्फ एक गेट था, स्टील का और उसके आगे ऑटोमेटिक पिलर्स थे जिससे अगर कोई ट्रक से भी गेट तोड़ के घुसने की कोशिश करे तो स्टील के मोटे करीब एक दर्जन पिलर्स सामने होते, वो भी चार पांच फिट ऊँचे तो थे ही।

मेरी कार वहीँ रुकी, फिर एक आदमी ने आके आइडेंटिफाई किया कार के ऊपर नीचे आगे पीछे अच्छी तरह से चेक किया फिर उसने वाकी टाकी से मेसेज दिया तो फिर वो पिलर्स नीचे हुए और गाडी गेट तक पहुंची, लेकिन गेट खुलने के पहले एक बार फिर से मेटल डिटेक्टर से मेरी चेकिंग हुयी और एक लेडी आफिसर बाहर निकली, उन्होंने हाथ मिलाया और मेरा फोन वहां जमा कर लिया और तब गेट खुला।

तब मुझे समझ में आया की पूरी सिक्योरटी सी आई एस ऍफ़ के पास है।

और वो महिला सीआईएसएफ की कमांडेंट थीं, अभी ६-७ साल की सर्विस हुयी होगी, मेरी उम्र के ही आस पास की, नेम बैज से ही नाम पता चल गया, श्रेया रेड्डी, हाइट ६ से थोड़ी ही कम रही होगी और एकदम टाइट यूनिफार्म में, ओके , सब मर्दों की निगाह वहीँ पड़ती है, मेरी भी वहीँ पड़ी टाइट यूनिफार्म में उभार एकदम उभर के सामने आ रहे थे मैं क्या करूँ, ३४ और ३६ के बीच लेकिन कमर बहुत पतली, इसलिए उभार और उभर के सामने आ रहे थे,

मेरी चोरी पकड़ी गयी पर वो मुस्करा पड़ी जैसे आँखों आँखों में कह रही हों, होता है होता है। मुझे जो देखता है सब के साथ यही होता है ।

लेकिन उसके बाद जिस चीज पर मेरी निगाह पड़ी उसने मेरे और होश उड़ा दिए, जैसे मकान बनते समय कई बार टीन के बोर्ड की आड़ लगती है उसी तरह की, लेकिन कोई एकदम अलग ही मटेरियल था, और ऊंचाई कम से कम चार मंजिला घर से भी ऊँची। लेकिन सबसे बड़ी बात यह थी की वो होते हुए भी नहीं दिखता था। उसमें जैसे होलोग्राफिक इमेजेज थीं, पेड़ों की ऊपर आसमान की और जिसका रंग दिन के आस्मां के हिसाब से बदलता रहता था, वो फेन्स से करीब दस बारह फिट अंदर की तरफ था।
जब हम उसके पास पहुंचे तो कमांडेंट श्रिया ने एक कोई रिमोट सा बटन दबाया और एक एक ऐसा गेट सा रास्ता खुला जिसमे से एक बार में सिर्फ एक कोई जा सकता था, और यहाँ दुबारा मेर्री चेकिंग तो हुयी ही कमांडेंट श्रेया की भी चेकिंग हुयी और यहाँ पर ऑलिव ड्रेस पहने हुए कुछ कमांडों थे।

हम दोनों के फोन यहाँ रखवा लिए गए और दो छोटे छोटे नान स्मार्ट फोन दिए गए जो लौटते हुए वापस कर देने थे और उसके बाद हम दोनों को अपना फोन मिल जाता,

वहीँ उन्ही कमांडोज़ की एक गाडी थी, गोल्फ कार्ट ऐसी, जिसे श्रेया ने ड्राइव किया और मैं उनके साथ।

अंदर की जगह पहचानी नहीं जा रही थी, ७-८ कंटेनर खड़े थे जो आफिस की तरह लग रहे थे, एक टेंट था शायद वर्कर्स के रहने के लिए । कंस्ट्रकशन मशीनरी काम कर रही थीं हफ्ते भर से कम समय में कुछ हिस्सा बन गया था, बड़े बड़े चार पांच जेनसेट भी थे, लाइट्स भी ।

एक पोर्टा केबिन में मीटिंग रूम था,

लेकिन मैं बाहर नसीम अहमद से मिला, हॉस्टल में मुझसे दो साल सीनियर और पहले धक्के में ही आ इ पीएस में सेलेक्शन हो गया था, उस समय हम लोग हॉस्टल में ही थे, जबरदस्त पार्टी हुयी थी और उन्होंने मेरी जबरदस्त रैगिंग भी ली थी, मैं लेकिन आई आई टी और आईं आई एम् के रस्ते दूसरी ओर मुड़ गया और वो सिविल सर्विस में, छह महीने पहले ही यहाँ उनकी पोस्टिंग हुयी थी,

कोमल मैम

ये आपने क्या किया - मोबाइल दो बार जमा करा दिया ??

बस ऐसे ही

सादर
 
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