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Erotica जोरू का गुलाम उर्फ़ जे के जी

komaalrani

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जोरू का गुलाम भाग २५६ पृष्ठ १६०७

अब मेरी बारी


अपडेट पोस्टेड, कृपया पढ़ें, लाइक करें और कमेंट जरूर करें
 

komaalrani

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Kya bilkul sahi time par entry maari hai nidhi ne.....



Aur kya jabardast chudayi huyi h komal ki.... ghodi bana kar lene me to alag hi maja aata hai.....इसके लिए हमें जानवरों को धन्यवाद देने की जरूरत है जो उन्होंने इतनी बढ़िया जानकारी दी हमें....
एकदम सही कहा अपने

जानवरों से बहुत कुछ सीखा है और इस कहानी में उसके बड़े उदाहरण हैं

जब गुड्डी को उसकी भाभियों ने गैंग बैंग की लिए ट्रेन किया था तो उसे मार्जरी आसन सिखाया गया था

भाग २५३ गुड्डी बेचारी पढ़ाई की मारी पृष्ठ १५७४ का भाग, ' और तैयारी गुड्डी की पार्टी की"

" योग जो वो रोज २० मिनट करती थी बढ़ा के मेरी कमीनी बहन ने ४० मिनट करवा दिए और उसमें भी मार्जरी आसन या कैट पोज, जिससे वो घंटो निहुरी रह सकती थी,और कित्ते जोर के धक्के लगें, दोनों छेदो में एक साथ धक्के लगे, उसकी कमर, हिप और स्पाइन एकदम फ्लैक्सिबिल और रिलेक्स रहते,... वो मजा भी ले सकती थी और जवाब भी दे सकती थी, धक्कों का धक्के से।"

उसके पहले जेठानी जी की हाईस्कूल में शिक्षा दीक्षा में भी सांड़ का बहुत योगदान था
भाग १२० - बीती यादें, गाँव की बातें पृष्ट २२० का भाग सांड़ और बछिया


" अंदर कमरे से कुछ कुछ आवाजें आ रही थीं ,सामू ने मुझे सहन में रुकने का इशारा किया,पर मैं कहाँ मानने वाली , उसके पीछे पीछे चल दी।
और अंदर घुसते ही मेरी आवाज बंद ,गले का थूक गले में।


एक खूब तगड़ा मोटा सांड एक छोटी सी बछिया पे चढ़ने की कोशिश कर रहा था। बेचारी बछिया ,होकड़ रही थी ,बचने की कोशिश कर रही थी , खूंटे से बंधी , बचने की कोई ज्यादा जगह भी नहीं।

ऊपर से दो आदमी भी उसे घेर के, एक बोला अरे अभी पहली बार है न इसलिए अगली बार तो खुदै ,

मेरी आंखे तो बस सांड़ के . कितना मोटा लम्बा एकदम सांड की तरह ही ताकतवर , सांड उसे चाट चाट कर जैसे पटा रहा हो। और फिर अचानक , जिस तरह से उसने दोनों आगे के पैर बछिया पे किये ,मैं समझ गयी अब ये नहीं बच सकती।

और यही हुआ ,अगले ही पल सांड ने अपना मोटा खूंटा उस बछिया की बिल में , मेरी सारी देह गिनगीना रही थी , पैर काँप रहे थे ,पर निगाह वहां से हिल नहीं रही थी।

तब तक वो दोनों खाली हो गए थे। एक बोला ,चला अब पेल देहले हौ , आगे का काम ई सांड खुदे सम्हाल लेई।


दूसरा अभी भी सांड को पुचकार रहा था , बोला , नयी बछिया और नयी लौंडिया एकदम एक जैसे , ... मन तो खूब करि लेकिंन अइसन नखड़ा पेलहिएँ की , लेकिन एकदायं कउनो जबरदस्ती चढ़ जाए तो बस खुदै थोड़ी देर में चूतड़ उठाय उठाय गपागप गपागप ,

सच में बछिया ने अब उछल कूद बंद कर दी थी , सांड का पूरा एक हाथ का घोंट लिया था उसने।
और मेरा पूरा ध्यान उसी में लगा था ,कैसे मस्त सटासट सटासट , अभी इतना नखड़ा दिखा रही थी और अभी खुद मजे से ,तब तक एक ने सामू को देख लिया और अचरज से बोला ,

" अरे तू कहाँ ,... "
" अरे इधर से ही जात रहलीं , पानी तेज हो गया , और हमको आना भी था , हमरो एक बछिया गरमात बाय , उहू के एकदिन लियावे क हौ। " सामू बोला।आसपास के सभी गांवों में लोग उसे अच्छी तरह जानते थे


तबतक दूसरे आदमी की नजर मेरे ऊपर पड़ी , और जिस तरह से वो मुझे देख रहा था मैं समझ गयी। भले ही घर वाले मुझे बच्ची समझते थे पर बाहर वाले मर्दों ,लौंडो की निगाहें , और आज तो भीग के मेरे स्कूल की यूनिफार्म एकदम देह से चिपकी , खासतौर से टॉप,और मेरे वैसे भी भी अपनी सहेलियों में सबसे बड़े ,

" इहौ बछिया तो खूब गरमात हौ "

उसकी निगाह खुल के मेरे कच्चे टिकोरों को घूर रही थी।


बात आपकी एकदम सही है , जानवरों से हमने बहुत कुछ सीखा है

और जानवरों ने भी शायद सीखा हो एक कविता पढ़ी थी बहुत पहले,, पूरी तो नहीं लेकिन कुछ इस तरह से थी

सांप तुम शहर में तो रहे नहीं

काटना कहाँ से सीखा, जहर कहाँ से पाया।
 
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