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जोरू का गुलाम भाग १९५
टिप टिप बरसा पानी
16,77, 228
हम लोग पुरानी सहेलियों की तरह बात करते रहे , ज्यादातर मैं सुनती रही।
लेकिन जैसे ही वेटर डेसर्ट का कार्ड ले आया , बाहर बारिश शुरू होगयी , भादों तो चल ही रहा था।
गुड्डी ही बोली , नहीं बिल ले आइये।
थोड़ी देर तक हम लोग रेस्टोरेंट के बाहर ही खड़े रहे , बारिश बहुत तेज नहीं थी लेकिन बूंदों की फुहार ,सीधे हमारे चेहरे पर पड़ रही थी ,...
" भाभी चलें , ... " एक बच्चे की तरह गुड्डी ने मेरा हाथ खींचते हुए जिद किया।
" पगली , ... भीग जाएंगे , ... कार इतनी दूर पार्क है ,... " मैंने मुस्कराते हुए मना कर दिया।
सड़क खाली थी , लोग दुकानों के शेड में खड़े थे , कुछ एक बार फिर से रेस्टोरेंट में घुस गए थे , बस दो चार लोग छाता का सहारा लेकर ,...
टिप टिप बूंदे सड़क पर दुकानों की छतों पर पड़ रही थी,
" भाभी चल न , भीग जाएंगे तो भीग जायेंगे ,... " उसने फिर जोर से मेरा हाथ पकड़ के खींचा ,...
मुझे भी लगा की भादों की बारिश काले दूर दूर तक घिरे मेघ ,... हो सकता है की सारी रात तक चले , फिर अभी तो हलकी है कहीं तेज ,... और इनके भी घर आने का थोड़ी देर में टाइम हो जाएगा,
मैंने अपना डर अब खुल कर अपनी ननद को कह दिया , फुसफुसाते हुए ,
" यार अपन ने जो ड्रेस से पहन रखी है , एकदम चिपकउवा ,... वो बारिश में झलकौवा हो जाएगी , सब कुछ दिखता है टाइप ,.. "
वो टीनेजर बड़ी जोर से खिलखिलाई , उसके दूध के दांत चमक गए ,
" अच्छा तो है भाभी , चलिए न। आप ही तो कहती हैं जो दिखता है वो बिकता है। और सब ये लड़के आपके देवर ही तो लगेंगे, देख लेंगे तो देख लेंगे ,... "
और अबकी गुड्डी ने जो पूरी ताकत से जो खींचा मैं उसके साथ सड़क पर , ...
और एक बार भीग गयी तो भीग गयी।
मैं भी जैसे गुड्डी के साथ टीन हो गयी थी , तन से भी मन से भी।
बारिश का पहला झोंका , पहली फुहार जो मेरे चेहरे पर पड़ी , मन पहले भीगा , तन बाद में। पहले मैं सर पर हाथ रख कर बालों को बचाने की कोशिस की पर जब मेरी निगाह उस टीनेजर पर पड़ी ,
एकदम बिंदास , बारिश की बूंदो का मजा लेती , ऊँगली के इशारे से मुझे अपने पास बुलाती ,...
सड़क के दोनों ओर रेस्टोरेंट्स और बार के बाहर लोग खड़े , बारिश बंद होने का इन्तजार करते ,... उस बिंदास किशोरी को भीगते देख रहे थे।
और मैं कभी लोगों को उसे देखते , तो कभी उस भीगी भागी लड़की को , क्या चलती का नाम गाड़ी में भीगी हुयी मधुबाला लगी रही होंगी ,
टिप टिप बरसा पानी
16,77, 228
हम लोग पुरानी सहेलियों की तरह बात करते रहे , ज्यादातर मैं सुनती रही।
लेकिन जैसे ही वेटर डेसर्ट का कार्ड ले आया , बाहर बारिश शुरू होगयी , भादों तो चल ही रहा था।
गुड्डी ही बोली , नहीं बिल ले आइये।
थोड़ी देर तक हम लोग रेस्टोरेंट के बाहर ही खड़े रहे , बारिश बहुत तेज नहीं थी लेकिन बूंदों की फुहार ,सीधे हमारे चेहरे पर पड़ रही थी ,...
" भाभी चलें , ... " एक बच्चे की तरह गुड्डी ने मेरा हाथ खींचते हुए जिद किया।
" पगली , ... भीग जाएंगे , ... कार इतनी दूर पार्क है ,... " मैंने मुस्कराते हुए मना कर दिया।
सड़क खाली थी , लोग दुकानों के शेड में खड़े थे , कुछ एक बार फिर से रेस्टोरेंट में घुस गए थे , बस दो चार लोग छाता का सहारा लेकर ,...
टिप टिप बूंदे सड़क पर दुकानों की छतों पर पड़ रही थी,
" भाभी चल न , भीग जाएंगे तो भीग जायेंगे ,... " उसने फिर जोर से मेरा हाथ पकड़ के खींचा ,...
मुझे भी लगा की भादों की बारिश काले दूर दूर तक घिरे मेघ ,... हो सकता है की सारी रात तक चले , फिर अभी तो हलकी है कहीं तेज ,... और इनके भी घर आने का थोड़ी देर में टाइम हो जाएगा,
मैंने अपना डर अब खुल कर अपनी ननद को कह दिया , फुसफुसाते हुए ,
" यार अपन ने जो ड्रेस से पहन रखी है , एकदम चिपकउवा ,... वो बारिश में झलकौवा हो जाएगी , सब कुछ दिखता है टाइप ,.. "
वो टीनेजर बड़ी जोर से खिलखिलाई , उसके दूध के दांत चमक गए ,
" अच्छा तो है भाभी , चलिए न। आप ही तो कहती हैं जो दिखता है वो बिकता है। और सब ये लड़के आपके देवर ही तो लगेंगे, देख लेंगे तो देख लेंगे ,... "
और अबकी गुड्डी ने जो पूरी ताकत से जो खींचा मैं उसके साथ सड़क पर , ...
और एक बार भीग गयी तो भीग गयी।
मैं भी जैसे गुड्डी के साथ टीन हो गयी थी , तन से भी मन से भी।
बारिश का पहला झोंका , पहली फुहार जो मेरे चेहरे पर पड़ी , मन पहले भीगा , तन बाद में। पहले मैं सर पर हाथ रख कर बालों को बचाने की कोशिस की पर जब मेरी निगाह उस टीनेजर पर पड़ी ,
एकदम बिंदास , बारिश की बूंदो का मजा लेती , ऊँगली के इशारे से मुझे अपने पास बुलाती ,...
सड़क के दोनों ओर रेस्टोरेंट्स और बार के बाहर लोग खड़े , बारिश बंद होने का इन्तजार करते ,... उस बिंदास किशोरी को भीगते देख रहे थे।
और मैं कभी लोगों को उसे देखते , तो कभी उस भीगी भागी लड़की को , क्या चलती का नाम गाड़ी में भीगी हुयी मधुबाला लगी रही होंगी ,
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