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जोरू का गुलाम भाग २४२, 'कीड़े' और 'कीड़े पकड़ने की मशीन, पृष्ठ १४९१
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वाह कोमल जीबरसात की रात
कहीं लगता है बिजली गिरी , और मैं अपनी ननद को खींच के घर के अंदर ले गयी , और अंदर से दरवाजा बंद कर दिया , जैसे डर रही होऊं कहीं हमारे पीछे पीछे बारिश भी ,...
तेज बारिश की आवाज अभी भी आ रही थी ,
" हे रानी कपडे उतार , वरना कहीं बीमार पड़ गयी न तो तेरे दर्जन भर नए नए बने यारों को मैं क्या जवाब दूंगी। "
और मैंने उस टीनेजर की ट्यूबटॉप ड्रेस वहीँ खींच कर फर्श पर ,
" अरे भाभी , आप के भी तो कपडे उतार दूँ , वरना कहीं मेरी मीठी मीठी भौजी बीमार हो गयीं तो , ... " अब मेरी ननद पीछे रहने वाली नहीं थी , ... मेरी ड्रेस भी गुड्डी की ड्रेस के ऊपर ,
मैं गुड्डी के पीछे , उसकी ब्रा का स्ट्रैप खोल रही थी
तभी जोर से आवाज हुयी ,
धड़ाम ,... लगता है कोई बड़ा पेड़ गिरा।
बिजली कड़कने की तेज आवाज हुयी ,... और बिजली चली गयी।
हवा हूँ हूँ हूँ हूँ कर चल रही थी , खूब डरावनी आवाज
गुड्डी की आँखों पर पीछे से उस काले अँधेरे में , किसी ने काला कपड़ा बाँध दिया , खूब कस कस , और उस की कोमल कलाइयों को पीछे से पकड़ कर , मरोड़ कर , ...
कस के ,...
हिलना मत। सिर्फ उसके होंठो पर,... वो भी ऊँगली नहीं बल्कि मोबाइल रख के जबरदस्ती
हलके से पुश करके , घर से बाहर ,
कभी कभी लगता , ट्रैफिक की आवाज , कार के हार्न ,
कभी बारिश की आवाज ,
कभी पैरों के नीचे कच्ची मिटटी , घास ,
तो कभी पक्का फर्श ,....
दस मिनट चलने के बाद ,...
कोई आवाज नहीं , ...सिर्फ पीठ पर पुश कर के , वो भी मोबाइल से , ... ऊँगली से भी नहीं ,...
दस मिनट बाद एक हल्का सा धक्का , ... उसके होंठों पर ऊँगली रख कर इशारा ,... चुप रहना वरना ,...
दोनों हाथ खुल गए थे , पर एक बार फिर वो पलंग के ऊपर लगे , ... जैसे किसी हथकड़ी में फंस गए , जरा भी हिलाना मुश्किल था ,
ज़रा भी हिलना , मुश्किल था।
आँख पर पट्टी , हाथ बंधा हुआ , कमरे में पूरा अँधेरा ,... फिर बहुत हलकी सी रोशनी,.... हलकी सी