शहनाज आज बेहद खुश थी क्योंकि एक साल की ट्रेनिंग के बाद उसका बेटा साहिल फिर से घर वापिस आ रहा था। शहनाज की शादी शहर के नवाब गुलाम अली खान से हुई थी जिनका पूरे शहर में नाम था। शहर के बीच में उनके जैसा घर जो बिलकुल महल जैसा दिखता था किसी के पास नही था। आजादी के बाद देश का माहौल बदल गया और रियासते और राज्य खत्म होते चले गए लेकिन कुछ राजा और नवाब ऐसे थे जिनकी हुकूमत तो चली गई लेकिन अकड़ अभी तक बाकी थी और गुलाम अली खान भी कुछ उसी सोच के इंसान थे।
साहिल ने जैसे ही घर के सामने वाली गली मे आया तो उसका भव्य स्वागत किया गया और सड़क पर दोनो और खड़ी औरते उस पर फूल बरसा रही थी। हालाकि साहिल को ये सब पसंद नही था लेकिन फिर भी शांति से स्माइल करता हुए आगे बढ़ रहा था। जैसे ही ने घर के अंदर कदम रखा तो शहनाज ने अपने बेटे का मुस्कान के साथ स्वागत किया और उसके गले मे फूलो की माला पहना दी और दौड़कर उसके गले लग गई और अपने बेटे को अपनी बांहों में भर लिया। साहिल भी अपनी मां से बेहद प्यार करता था और उसने भी अपनी मां को गले लगा लिया।
प्रेमपूर्वक अपने बेटे का गाल चूम कर शहनाज बोली:"
" कैसी रही बेटे तेरी पढ़ाई ?
साहिल:" पढ़ाई तो अल्लाह का शुक्र हैं बेहद ही अच्छी रही अम्मी। लेकिन आज कल लोग पढ़ाई से ज्यादा अपने खुद के काम पर ज्यादा ध्यान देते हैं लंदन में। जिसको देखो सबकी अपनी मार्केट और काम है।
शहनाज:" अच्छा जी, फिर तुमने क्या क्या किया वहां पर ?
साहिल:" अम्मी बस मैने पढ़ाई के साथ टैटू बनाने का काम भी सीख लिया है। बस कुछ थोड़ी नई तकनीक आई थी बस वही सीख कर आया कि टैटू अगर हटाना हो तो कैसे हटाते हैं क्योंकि थोड़े समय के बाद ही लोगो को टैटू बुरे लगने लगते हैं क्योंकि कुछ लोगो को स्किन में दिक्कत आने लगती हैं और बाद में गंभीर हो सकती है।
शहनाज उसकी बात सुनकर चौंक सी गई लेकिन कुछ जाहिर नही होने दिया और बोली:"
" वहा विदेश में तुझे कुछ खाने को नहीं मिलता था क्या !! एक ही सप्ताह में कितना कमजोर हो गया है तू ?
साहिल:" नही ऐसा तो कुछ नही, आप भारतीय माए भी न अगर बस चले तो सारी दुनिया का खाना अपने बेटे को खिला दे।
शहनाज उसकी बात सुनकर बोली:" हान तो इसमें गलत क्या है भला!! हर मां चाहती है कि उसका बेटा खा पीकर सबसे ज्यादा ताकतवर बने। चल अच्छा जल्दी से नहा धो ले, और तू तो भूल ही गया रे कि आज तेरी अम्मी का जन्मदिन है।
साहिल:" ओह मम्मी, मैं भुला नहीं हू, भला अपनी मां का जन्मदिन। ही कोई भूलता हैं क्या ? याद हैं तभी तो आज ही वापिस आया हु मै आपके जन्मदिन पर।
शहनाज ने एक बार फिर से साहिल को गले लगा लिया और उसका माथा चूम कर बोली:"
" वाह बेटा हो तो ऐसा, अल्लाह तेरा जैसा बेटा सबको दे। एक तेरा अब्बा हैं जिसे दारू और नाच गाने के अलावा कुछ याद ही नहीं रहता।
साहिल ने भी अपनी मां को गले लगा लिया और बोला:"
" क्या अम्मी, अभी तक उनकी दारू की आदत नही छूटी क्या ?
शहनाज:" दारू की आदत भला किसी की कभी छूटी हैं क्या तो जब उन्हें काम से फुरसत हो। बस मुजरा देखन और दारू दो ही तो काम आते हैं उन्हें आखिर पैदायशी नवाब जो ठहरे।
इतना कहकर शहनाज थोड़ा गंभीर हो गई तो साहिल समझ गया कि अपने शौहर की दारू की आदत उसकी अम्मी पूरी दुखी हो गई है तो बोला:"
" अम्मी आप परेशान मत होइए। मैं उन्हे फिर से समझा दूंगा और वो जल्दी ही सब बंद कर देंगे।
शहनाज:" कुछ फायदा नहीं बेटा,आज तक नही छूटी तो अब क्या खाक छूटने वाली है। सच कहूं तो जैसे मेरी खुशियों में दारू ग्रहण बन गई है।
साहिल को लगा कि मामला ज्यादा गंभीर हो रहा है तो धीरे से बोला:"
" आप इतनी दुखी मत हो। वो तो सुधर ही जाएंगे कभी न कभी। कुछ दिक्कत हो तो आप मुझसे भी कह सकती हो।
शहनाज ने गहरी लंबी आह भरी और बोली:" बेटा दुनिया की हर समस्या अगर बेटा सुलझा देता तो पति की क्या जरूरत होती। छोड़ जाने दो तुम ये सब।
साहिल को एहसास हो गया था कि मामला उसकी सोच से कहीं ज्यादा गंभीर हैं तो बात को संभालते हुए बोला:
" चलिए आप जल्दी से खाना बना लीजिए फिर। फिर अब्बा भी आने ही वाले है।
शहनाज के चेहरे के भाव पल पल बदल रहे थे और बीच बीच में मौका देखकर साहिल की नजरें बचा कर अपनी जांघो को रगड़ सा रही थी। साहिल की बात सुनकर चेहरे पर मुस्कान आई और बोली:"
" वो तो रोज रात को देर से ही आते हैं, पहले जायेंगे दारू पिएंगे और फिर मुजरा देखेंगे।
इतना कहकर शहनाज किचन की तरफ बढ़ गई और जैसे ही उसने देखा कि साहिल का ध्यान उसकी तरफ नही हैं तो उसने अपनी जांघो के बीच खुजलाया और किचन में घुस गई खाना तैयार करने लगी। उसके बाद पसीने से भीगी हुई शहनाज नहाने के लिए बाथरूम में घुस गई। नहाने के बाद उसने अपनी एक खूबसूरत सा काले रंग का सूट निकाला और उससे पहन लिया। सौंदर्य प्रसाधन का सहारा हमेशा से ही औरत ने मर्द को लुभाने के लिए लिया हैं इसलिए शहनाज भी आज की रात कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती थी तो अपने आपको सजाने लगी। 38 वर्षीय शहनाज अधेड़ उम्र की जरूर थी लेकिन पूरी तरह से अपने आपको उसने संतुलित रखा हुआ था। बिलकुल सही जगह पर सही उभार उसे कुदरत का तोहफा था और शहनाज ने उसे पूरी तरह से बरकरार रखा था या यूं कहिए कि गुलाम अली खान ने उसे बरकरार रखने में शहनाज की मदद करी थी।
खूबसूरत सा चेहरा और बड़ी बड़ी गोल आंखे उसकी सुंदरता को और बढ़ा रही थी। आंखों में लगा गहरा काला काजल जिससे उसकी आंखे एक जादू सा कर रही थी, बिलकुल लाल सुर्ख लिपिस्टिक से सजे उसके रसीले लिप्स किसी को भी अपनी और आकर्षित करने के लिए लालयित थे। शहनाज जब अपने बेटे के सामने आई तो कुछ पलों के लिए उसका बेटा भी उसकी अदभुत सुंदरता की मन ही मन तारीफ किए बिना न रह सका। शहनाज एक सुलझी हुई धार्मिक और काफी सख्त स्वभाव की महिला थी इसलिए शहनाज के अंदर सीधे शब्दों में अपनी मां की तारीफ करने की भी हिम्मत नही थी। जब शहनाज नहा रही थी तो साहिल ने केक मंगा लिया था। आज तक शहनाज ने कभी केक नही काटा था बस कभी कभी फिल्मों में जरूर देखा था। रात के करीब दस बज रहे थे लेकिन गुलाम साहब का कोई पता नहीं था। दोनो मां बेटे कॉल पर कॉल कर रहे थे लेकिन गुलाम फोन नही उठा रहा था।
शहनाज के खूबसूरत से चेहरे पर गुस्से के भाव उभर रहे थे और वो अपने बेटे से बोली:"
" देखो तुम आज भी साहब को होश नही है, ये इंसान न बस कहा कहूं कुछ समझ नहीं आता।
साहिल:" अम्मी हो सकता है कि किसी काम में फंस गए हो। थोड़ी देर और इंतजार कर लिजिए।
शहनाज के होंठो पर गुस्से में भी स्माइल आ गई और बोली:"
"तुम अपने अब्बा को कभी नही समझ पाओगे। मैं जानती हु कि वो किस जरूरी काम में बिजी होगे। थोड़ी देर रुक जाओ तो तुम्हे भी एहसास हो जायेगा।
तभी गेट पर दस्तक हुई और साहिल ने दरवाजा खोला तो उसका बाप लड़खड़ाते हुए कदमों से अंदर दाखिल हुआ जिसके मुंह से दारू की तेज बदबू आ रही थी। शहनाजके साथ साहिल ने भी अपना माथा पीट लिया और साहिल को देखते ही गुलाम बोला:*
" अरे बेटा तुम कब आए ? कैसे हो तुम ?
साहिल ने अपने झूमते हुए बाप को सहारा दिया और बोला:"
" अभी आया हु बस थोड़ी देर पहले ही। अब्बा आप कहां थे इतनी रात तक ? कभी तक आप दारू पीते रहेंगे ?
गुलाम:" अरे बेटा बस ऐसे ही दोस्तो के साथ था, मन तो नहीं करता लेकिन कमबख्त मेरे दोस्त पीछा ही नही छोड़ते।
साहिल:" आप छोड़ दीजिए ये सब। अम्मी को देखिए आपकी वजह से कितनी परेशान होती है
गुलाम ने एक बार शहनाज की तरफ देखा और बोले:" अरे बेगम आप क्यों अपना खून जला रही हो ? थोड़ा खुश रहा कीजिए। खाने पीने की किसी चीज की दिक्कत हो तो हम बताए आप। सारे शहर की चीज़ों से महल भर देंगे।
साहिल:" अच्छा ये सब बाते बाद में कीजिए। आज अम्मी का जन्मदिन हैं और मैं केक भी लेकर आया हु अम्मी के लिए।
अपने बेटे की बात सुनकर शहनाज की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। लेकिन गुलाम साहब बोले:"
" अरे बेटा ये केक सेक सब अंग्रेजो के ड्रामे है। हम तो अपना देसी ही ठीक है। क्यों बेगम आपका क्या ख्याल है ?
शहनाज कुछ नहीं बोली तो साहिल ने धीरे से गुलाम को सोफे पर बैठा दिया और टेबल पर केक की पैकिंग खोल दी। सच में बेहद खूबसूरत केक था और शहनाज बिना कुछ बोले बस मंद मंद मुस्कुरा रही थी।
तीनो खड़े थे और शहनाज ने हाथ में चाकू लिया और जैसे ही केक काटने के लिए झुकी उससे पहले ही गुलाम साहब का पैर फिसला और सीधे केक पर जा गिरे। साहिल और शहनाज को काटो तो खून नहीं। गुलाम का सारा चेहरा केक से सन गया था और वो धीरे धीरे उठा और बोला:"
" ये क्या गुनाह हो गया मुझसे, माफ करना बेगम थोड़ा पैर फिसल गया। मैं नहाकर आता हु।
इतना कहकर वो लड़खड़ाते हुए बाथरूम की तरफ बढ़ा गया और बीच में काफी बाद दीवार से टकराया लेकिन दोनो मां बेटे से उसे सहारा नही दिया। गिरता पड़ता वो बाथरूम में घुस गया।
साहिल ने देखा कि शहनाज बिलकुल गुमसुम सी हो गई तो बोला:"
" आप इतनी छोटी सी बात के लिए अपना दिल मत दुखाए आप। मैं कल इससे भी अच्छा केक लेकर आऊंगा आपके लिए।
शहनाज कुछ नहीं बोली और बस अपने बेटे के गले लग कर सुबकती रही। साहिल ने जैसे तैसे उसे खाना खिलाया और फिर वो अपनी अम्मी से बात करने लगा। शहनाज उसे अपना दुख बताने लगी कि उसके बाप ने कभी उसका ख्याल नही रखा। हर कदम पर उसने बस दुख ही उठाए हैं।
तभी बाहर जोर से कुछ गिरने की आवाज आई तो साहिल बाहर की जाने लगा और उसने शहनाज की तरफ देखा तो शहनाज ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तो साहिल खुद ही बाहर आया और देखा कि उसका बाप बिलकुल नंगा बाहर गैलरी में पड़ा हुआ था। शायद नशे के कारण गिर गया होगा, साहिल उसके पास पहुंचा और न चाहते हुए भी उसकी नजर अपने बाप की जांघो के बीच में चली गई और उसे मानो यकीन ही नहीं हुआ, उसे लग रहा था कि मानो वो दुनिया का सबसे बड़ा अजूबा देख रहा हो। उसके बाप का लंड उसके हाथ की छोटी उंगली से भी पतला और उतना की लंबा था।
साहिल ने हैरानी के साथ अपने बाप को सहारा दिया और नशे मे गुलाम पता नही क्या क्या बडबडा रहा था, उसे अपनी हालत का बिलकुल भी अंदाजा नहीं था।
साहिल ने उसे कमरे में ले जाकर बेड पर लिटा दिया और उसके ऊपर एक चादर डालकर बाहर आ गया और देखा कि उसकी अम्मी ने भी अपने कमरे की लाइट बंद कर ली थी तो वो भी अपने कमरे में चला गया और सोने की कोशिश करने लगा। नींद उसकी आंखों से कोसो दूर थी, उसे बार बार अपनी अम्मी की याद आ रही थी कि किस तरह से दुख भरा जीवन वो जी रही हैं।
सोचते सोचते उसकी आंख लग गई और वो नींद के आगोश मे चला गया। अगले दिन सुबह वो उठा और नाश्ते की टेबल पर पहुंचा तो देखा कि उसके अब्बा पहले से ही वहां मौजूद थे और बिलकुल एक नवाब की तरह अकड़ कर बैठे हुए थे। थोड़ी देर बाद सबने नाश्ता किया और साहिल बोला:"
" अब्बा मैं लंदन से पढ़ाई के साथ साथ टैटू का काम भी सीख कर आया हु। चाहता हूं कि एक दुकान खोल लू, आज कल इसमे बहुत ज्यादा पैसा है।
नवाब ने उसे घूरा और बोले:"
" कमाल करते हो तुम, तुम नवाब गुलाम अली खान के बेटे हो। हमारे पास कौन सा पैसे की कमी है, जाओ और अपनी जिंदगी में ऐश करो हमारी तरह।
शहनाज:" बस आप तो रहने ही दीजिए। अगर साहिल काम करना चाहता हैं तो इसमें बुराई क्या है
नवाब:" तुम चुप रहो बेगम, हमारा शहर में नाम चलता है , लोग झुककर सलाम करते है और हमारा बेटा अपनी दुकान खोलेगा तो लोग क्या कहेंगे ?
शहनाज:" माफ कीजिए नवाब साहब, बस अब थोड़ी सी जमीन और ये महल ही बचा हुआ है। अगर ऐसे ही चलता रहा तो ये महल भी बिकने के कगार पर आ जाएगा।
नवाब:" आप जुबान संभाल कर बात कीजिए। आप होश में तो हो क्या कर रही हो? हमेशा इस तरह से बात करने की हिम्मत कैसे हुई आपकी ?
शहनाज:" माफ कीजिए नवाब साहब लेकिन सच्चाई यही है।
साहिल:" आप दोनो झगड़ा बंद कीजिए। देखिए अब्बा आज कल वो जमाना नही रहा और मुझे दुकान खोलने की इजाजत दीजिए।
गुलाम:" अरे तुम्हे काम ही करना है तो कोई दूसरा कीजिए। टैटू का काम मुझे बेहद बुरा लगता है। इसके लिए मैं कभी इजाजत नहीं दूंगा। अरे अल्लाह ने शरीर को पहले से ही इतना अच्छा बनाया हैं तो फिर क्यों उसे रंग बिरंगा करना जरूरी है।
इतना कहकर उसने शहनाज को घूरकर देखा और चुप हो गए। शहनाज कुछ नहीं बोली और अपना मुंह नीचे कर लिया।
साहिल:" लेकिन अब्बा मैंने अब काम ही टैटू का सीखा हैं तो दूसरा काम शुरू करना इतना आसान नहीं होगा।
नवाब:" हम तुम्हे कभी इसकी इजाजत नही देंगे। बस तुम अपना काम करो अब।
साहिल चुप हो गया और नवाब साहब उठकर नीचे आ गए और सामने कुछ नौकर खड़े थे जिन पर वो हुक्म चला रहे थे
नवाब:" क्यों कालू, तुम्हे कल खेत से फसल काटने को बोला था काटी क्यों नही ?
कालू:* साहब मेरी मां ज्यादा बीमार थी बस इसलिए नहीं काट पाया, आज सब काम खत्म हो जाएगा।
नवाब:" दफा हो जाओ और अपना काम करो नही तो आज तुम्हारी हड्डी तोड़ दूंगा। और तुम अनवर तुम्हे तो कल कलेक्टर के यहां जाना था।
अनवर:" वो कल मेरे भाई की बीवी को बच्चा हुआ था इसलिए नहीं जा पाया। आज जरूर कर दूंगा।
नवाब:" जिसको देखो वही बहाने बनाता है। आज काम हो जाना चाहिए लेकिन तो अंजाम खुद सोच लेना तुम।
सभी लोग हाथ जोड़ कर चले गए और नवाब साहब निकल पड़े अपनी आवारगी करने के लिए। साहिल कमरे में परेशान सा बैठा हुआ था और शहनाज उसे समझाते हुए बोली:*
" तुम दुखी मत हो अपना काम शुरू करो। नवाब साहब की तो आदत है झूठा रौब झाड़ने की, सच कहूं तो अब हमारे पास ज्यादा कुछ नहीं बचा है।
साहिल:" आप फिकर मत कीजिए अम्मी। मैं सब कुछ ठीक कर दूंगा। बस किसी तरह से मेरी दुकान खुल जाए। अब्बा हैं कि मानते हो नही है।
शहनाज:" तुम एक काम करो शहर में दुकान शुरू करो और गुलाम साहब की चिंता मत करो। उन्हें मैं खुद संभाल लूंगी।
साहिल ने खुशी खुशी अपनी मां का गाल चूम लिया और शहनाज का पूरा जिस्म कांप सा उठा और बोली:"
" बस कर पागल, इस उम्र में कोई मां को ऐसे प्यार करता हैं क्या भला
साहिल:* तो मेरे बड़े होने से क्या आप मेरी नही रही क्या।
शहनाज:" अरे वो बात नही है बेटा लेकिन फिर भी तुम्हे थोड़ा कुछ समझना चाहिए।
साहिल:" अरे अम्मी भी बस। अच्छा चलो बताओ तो जरा मुझे क्या समझना चाहिए।
शहनाज ने कुछ नहीं बोला और शर्मा गई और अपने काम में लग गई। कुछ दिन के बाद ही साहिल ने अपने दुकान को खोल लिया और नवाब साहब उससे बड़े नाराज हुए। लेकिन थोड़े ही दिनों के बाद उसकी दुकान ठीक ठाक चल पड़ी और साहिल का जान आप पास दूर दूर तक फैल गया।
टैटू बनवाने के लिए लड़के, लड़किया औरते सब आती थी और सबसे ज्यादा लोग टैटू मिटवाने के लिए आते थे क्योंकि अधिकतर लोगो को इससे स्किन एलर्जी हो रही थी और काफी इलाज के बाद भी कोई फायदा नही हो रहा था। शहर में साहिल की अकेली दुकान थी जहां पर टैटू मिटाए जाते थे इसलिए उसकी मांग बहुत ज्यादा थी।