Bhai apni soch ke anusar kahani likho. Fir bhi yadi kahani me badlav lana hi hai to leela ke alva Rupaki saas aur nanad aur gaon ki dusri aurato ko bhi shalmil karlo Romanchak. Pratiksha agle rasprad update ki
बहुत ही शानदार और मदमस्त अपडेट है भाई मजा आ गयाअभी तक आपने पढा की अपनी माँ के समझाने पर रुपा भी राजु को साथ मे लेकर लिँगा बाबा पर दिया जलाकर टोटके करने निकल आई थी। अब रास्ते मे वो दोनो आराम करने के लिये कुछ देर रुके तो रुपा पिशाब करने लगी जिससे राजु उसे देख राजु उत्तेजित हो गया था इसलिये राजु को उत्तेजित हुवा देखकर रुपा के दिलमे भी हलचल सी होनी शुरु हो गयी थी। अब कुछ देर वही आराम करने के बाद दोनो फिर से चलने लगे तो:-
राजु: व्.वो जीज्जी मुझे पिशाब भी करना है..!
ये कहते हुवे इस बार राजु इतना शरमाया नही मगर
पिशाब करके आने की बात सुनकर रुपा को अब उस पर हँशी सी आ गयी और...
रुपा: बस दिन भर एक ही काम है पानी पीते रहना और मूत्तते रहना..!
रुपा ने राजु की ओर देख थोङा हँशते हुवे कहा जिससे राजु शरमा गया और..
राजु: क्या...जीज्जी...!
उसने शरमाते हुवे कहा जिससे..
"अच्छा अच्छा चल अब..! ये कहते हुवे रुपा अब उसके साथ चलकर जहाँ वो दोनो चद्दर बिछाकर लेटे थे उससे थोङा सा दुर आ गयी और पहले के जैसे ही उसके कन्धे पर हाथ रखके दुसरी ओर मुँह करके खङी हो गयी...
राजु ने भी अब जल्दी से पहले तो अपने पजामे के नाङे को खोला, फिर उसे थोङा सा नीचे खिसका कर अपने लण्ड को बाहर निकालकर मुत्तना शुरु कर दिया जिससे एक बार फिर रुपा के कानो मे "तङ्.तङ्ङ्..तङ्ङ्ङ्..." मुत की धार नीचे जमीन पर गिरने की आवाज गुँज सा गयी। इस बार राजु शरमा नही रहा था वो खुलकर मूत रहा था इसलिये उसके लण्ड से निकलकर मूत की धार दुर तक जाकर गीर रही थी तो उसके गीरने की आवाज भी जोरो से आ रही थी जिसे सुनकर रुपा के दिल मे भी अब हलचल होना शुरु हो गयी, राजु के पिशाब करने की आवाज सुनकर उसके दिल मे कुछ अजीब ही तरँगे सी उठ रही थी इसलिये अनायास ही उसकी गर्दन घुमकर नजरे अब राजु पर टिक गयी...
राजु का लण्ड अभी पुरी तरह से शाँत नही हुवा था। शायद पिशाब के जोर से या किसी अन्य कारण से उसके लण्ड मे अभी भी कुछ चेतना बाकी थी जिससे एक तो उसके लण्ड का आकार सामान्य के मुकाबले बढा हुवा था, उपर से रुपा भी इस बार राजू के थोङा बगल मे ही खङी थी इसलिये रुपा के गर्दन घुमाकर देखने से उसे राजु का पुरा लण्ड तो नजर नही आया मगर पिशाब की धार छोङता राजु के लण्ड का सुपाङा उसकी नजर मे आ गया।
सुपाङे के उपर की चमङी पीछे की ओर खुली होने के कारण एकदम लाल व फुला हुवा सुपाङा रुपा को साफ नजर आ रहा था। सुपाङे के मुहाने से मूत की मोटी धार निकलकर "तङ्.तङ्ङ्..तङ्ङ्ङ्..." की आवाज के साथ सीधे जमीन पर दुर तक जाकर गीर रही थी जो की जमीन पर गीरकर ईधर उधर बहकर जा रही थी। सुपाङे के उपर की चमङी पीछे की ओर खुली होने के कारण एकदम लाल व फुला हुवा सुपाङा और उससे निकलती मुत की मोटी धार को देख रुपा की साँसे जैसे अब थम सी गयी...
रुपा ने बस एक नजर तो उसे देखा फिर वापस गर्दन घुमाकर दुसरी ओर मुँह करके खङी हो गयी, मगर राजु के मूतने की आवाज उसके कानो मे गुँजती रही जिससे रुपा के दिल मे अजीब ही गुदगुदी सी होती रही, तो वही उसे अपनी चुत मे भी अब शुरशुरी सी महसुस होने लगी। राजु ने भी अब तीन चार मूत की मोटी मोटी पिचकारियाँ सी छोङी, फिर अपने लण्ड को अच्छे से झाङकर उसे वापस पजामे के अन्दर कर लिया और...
"हो गया जीज्जी चलो अब..!" उसने पजामे के नाङे को बाँधकर रुपा की ओर घुमते हुवे कहा।
रुपा भी अब उसकी ओर घुम गयी थी जिससे राजु की नजरे रुपा से मिली तो उसके चेहरे पर शरम की मुस्कान सी तैर गयी जिसे देख रुपा को भी हँशी आ गयी।
"रुक मै भी कर लेती हुँ..!" रुपा ने चेहरे पर शरम हया की मुस्कान लाकर राजु से नजरे चुराते हुवे कहा और उसका एक हाथ अपने कन्धे पर रखवाकर दुसरी ओर मुँह करके अपनी शलवार का नाङा खोलने लग गयी। राजु अब वैसे ही खङा रुपा को देख रहा था, तब तक रुपा ने शलवार का नाङा खोलकर दोनो हाथो से अपनी पेन्टी व शलवार को घुटनो तक खिसका दिया जिससे राजु को उसका पुरा पिछवाङा एकदम साफ नजर आया।
अबकी बार रुपा ने उसे दुसरी ओर मुँह करने को कहा नही तो वो भी वैसे ही खङा रहा, इसलिये अपनी जीज्जी के मोटे मांसल व भरे भरे कुल्हो और उसकी गोरी चिकनी लम्बी लम्बी जाँघो को देख राजु की साँसे उपर की उपर और नीचे की नीचे रह गयी। उसका चेहरा गर्म होने लगा तो उसे अपने लण्ड मे भी तनाव सा महसूस होने लगा मगर राजु को इन सब की बस एक झलक ही मिली थी की तब तक रुपा मूतने के लिये नीचे बैठ गयी।
रुपा के बैठते ही पीछे से उसके सुट ने उसके कुल्हो को ढक लिया तो वही बैठने से उसकी जाँघो का भी अधिकतर भाग छुप गया। नीचे बैठकर रुपा ने एक हाथ से अपने सुट का आगे का हिस्सा थोङा सा उपर उठाकर मूतना शुरु कर दिया जिससे उसकी चुत से मुत्त की धार के साथ ही "श्श्श्शुशुश्.र्र.र्र.र्र.र्र.श्श्श्श्" की सीटी की सी आवाज निकलना शुरु हो गयी...
रुपा के नँगे कुल्हो व जाँघो को देखकर राजु का पहले ही बुरा हाल हो गया था उपर से मूत्त की धार के साथ अपनी जीज्जी की चुत से निकलती इस मादक आवाज को सुनकर उसके लण्ड ने तुरन्त विकराल रूप ले लिया। उसके पजामे मे उसके लण्ड ने तनकर अब फिर से पुरा उभार बना लिया था तो उसमे से हल्के हल्के पानी सा भी रीशना शुरु हो गया था मगर राजु को अब ये होश ही कहा था।
पिशाब करते करते अब ऐसे ही रुपा ने एक नजर राजु की ओर भी देखा तो उसे अपने आप को घुरते पाया जिससे...
"अ्.ओ्.ओ्य् बेशरम..! क्या कर रहा है, तु उधर देख..!" ये कहते हुवे रुपा ने अब एक बार तो राजु से नजरे मिलाई फिर शरम के मारे अपनी गर्दन नीचे कर लिया...
अपनी चोरी पकङी जाने के डर से राजु भी घबरा गया था इसलिये...
"व्.व.वो्..ज्.जी्.जी..!" करते हुवे उसने तुरन्त घुमकर अपना मुँह दुसरी ओर कर लिया। तब तक रुपा के पिशाब की थैली भी खाली हो गयी थी इसलिये..
"श्श्शूशूर्र.र्र.....
श्श्शूशूर्र.र्र......
श्शूशूर्र.र्र....
श्श्श..." की सीटी के साथ उसने मूत की छोटी छोटी सी पिचकारियाँ जमीन पर छोङी और उठकर खङी हो गयी।
खङी होने के साथ ही उसने दोनो हाथो से अपनी पेन्टी व शलवार को पकङकर उपर कर लिया और दोनो हाथो से शलवार का नाङा बाँधने लगी। शलवार का नाङा बाँधकर रुपा अब वापस पलटी तो उसकी नजर राजु की नजरो से जा मिली, राजु अब चुपचाप एकदम गुमसुम सा खङा था, तो रुपा के चेहरे पर शरम की मुस्कान सी तैर रही थी।
राजु के चेहरे को देखकर ही रुपा को उसकी हालत का पता लग गया था इसलिये अनायास ही उसकी नजर अब नीचे उसके पजामे पर आ गयी, जहाँ पजामे मे बने लण्ड का उभार के साथ साथ हल्के आसमानी से रँग के उसके पजामे पर फैला गीलापन तक साफ नजर आ रहा था। रुपा को मालुम था की ये क्या है और क्यो हुवा है इसलिये राजु की हालत देख रुपा को उस पर अब हँशी भी आई और शरम भी..!
राजु को भी मालुम हो गया था की उसकी जीज्जी ने उसके पजामे मे बने उभार को देख लिया है, जिससे वो एकदम हङबङा सा गया और...
"व्.व.वो्..ज्.जी्जी्.ई..!" करते हुवे जल्दी से अपने एक हाथ को आगे लाकर अपने पजामे मे बने उभार को छुपाने की कोशिश करने लगा...
राजु की हालत देख रुपा को हँशी तो आ रही थी मगर फिर भी....
"ठीक है ठीक है..चल चले अब..!" रुपा ने एक नजर राजु के पजामे की ओर देख, उसके चेहरे की ओर देखते हुवे कहा और राजु का हाथ पकङकर चुपचाप चलने लग गयी।
बहुत ही सुंदर लाजवाब और मदमस्त अपडेट है भाई मजा आ गयाराजु के पजामे मे अभी भी उभार बना हुवा था जिसे छुपाने के लिये वो अब रुपा से थोङा आगे होकर चल रहा था तो रुपा को भी उससे बात करने मे अब शरम सी महसूस हो रही थी जिससे दोनो मे से किसी ने भी अब काफी देर तक कोई भी बात नही की, मगर रुपा समझदार थी। उसे मालुम था की दोनो के बीच ये स्थिति क्यो बनी है। वो नही चाहती थी की राजु उससे शरमाता रहे। वैसे भी रात मे उसे राजु के साथ नँगे रहकर बहुत सारे काम भी करने थे जो की उसे लीला ने बताये थे इसलिये...
"क्या हुवा रे..! ऐसे क्यो गुमसुम हो गया .?" रुपा ने अब अपना दुसरा हाथ आगे करके राजु के सिर के बालो को सहलाते हुवे पुछा जिससे..
"क्.क्.कुछ्..न्.नही जीज्जी...बस ऐसे ही ..!" राजु ने अब हकलाते हुवे से जवाब दिया मगर तभी रुपा को थोङी दुरी पर एक हैण्ड पम्प सा कुछ दिखाई दे गया जिससे...
"अरे..! वो देख तो, वहाँ वो हैण्ड पम्प सा लग रहा है। हैण्ड पम्प है तो चल पहले पानी भर लेते है..?" रुपा ने चलते चलते ही कहा।
"हाँ.हाँ.. जीज्जी हैण्ड पम्प ही है, चलो प्यास भी लग आई, पानी भी पी लेँगे और बोतल भी भर लेँगे.." राजु अब तुरन्त उछलकर पीछे घुम गया और रुपा की ओर देखते हुवे कहा।
उसके पजामे मे बना उभार थोङा कम तो हो गया था मगर उसका लण्ड अभी भी तना हुवा था जो की बाहर से ही पता चल रहा था। इसे छुपाने के लिये अभी तक वो रुपा से बात तक नही कर रहा था मगर अब हैण्ड पम्प का नाम सुनते ही वो अब ये तक भुल गया था की वो अपने पजामे मे बने उभार को छुपाने के लिये उससे आगे होकर चल रहा था जिससे रुपा की अब हँशी निकल गयी।
राजु के साथ वो भी अब हैण्ड पम्प पर आ गयी। हैण्ड पम्प पर आकर दोनो ने पहले तो पानी पिया फिर थैले मे रखी बोतल को भी भरकर रख लिया। दोनो काफी दुर चलकर आ गये थे इसलिये पानी पीकर दोनो ने अब कुछ देर वही बैठकर आराम किया फिर आगे चल पङे। तब तक राजु के पजामे मे बना उभार भी खत्म हो गया था इसलिये कुछ देर तो वो रुपा से बात करने मे थोङा हिचकीचाता सा रहा मगर रुपा के सामान्य व्यवहार देख वो भी फिर से सामान्य हो गया, मगर इस दौरान रुपा की दो तीन बार राजु के पजामे पर नजर गयी होगी, जहाँ अब कोई उभार तो नही रहा था, मगर निक्कर के आगे का भाग पर गिलापन साफ नजर आ रहा था।
दोनो अब लगातार घण्टे भर तक चलते रहे मगर राजु ने अब ना तो पानी पीने का नाम लिया और ना ही पिशाब जाने का। रुपा व राजु दोनो को ही अब पिशाब लग आई थी, मगर रुपा को पिशाब करते देखने से राजु का पहले जो हाल हुवा था उसकी वजह से वो अब रुपा के साथ पिशाब करने मे हिचकिचा रहा था, तो रुपा भी ये सोच रही थी की जब राजु पिशाब करेगा तभी वो भी पिशाब कर लेगी, तब तक वो चलते चलते लिँगा बाबा की पहाङी तक ही पहुँच गये..
अब राजु ने पिशाब करने के लिये नही कहा तो...
"पहुँच गये...! बस अब उपर चढना रह गया, चल कुछ देर यही रुक कर आराम कर लेते, फिर उपर चलँगे..!" रुपा ने अब राजु की ओर देखते हुवे कहा जिससे....
"हाँ.. हाँ.. जीज्जी बहुत थक भी गये है..! यही बैठ जाते है" राजु ने अब एक पहाङ के बङे से पत्थर की ओर इशारा करते हुवे कहा जो की शायद उपर पहाङी से लुढकर नीचे आया था। रुपा ने सोचा था की रुकने पर शायद राजु खुद ही उसे पिशाब करने के लिये कहेगा मगर राजु ने अब खुद से पिशाब जाने के लिये नही कहा तो...
"चल उधर चल पहले, मुझे पिशाब करना है..!" रुपा ने अब राजु की ओर देखकर शरम हया से मुस्कुराते हुवे कहा जिससे...
"हाँ.. हाँ.. जीज्जी चलो..! मुझे भी करना है..!"ये कहते हुवे राजु भी हाथ के थैले को वही रखकर तुरन्त रुपा के साथ हो लिया जिससे रुपा को एक बार तो उस पर हँशी आई, मगर फिर उसका हाथ पकङे पकङे पत्थर के दुसरी ओर आ गयी।
रुपा भी वैसे ये जान रही थी की शाम को जो कुछ हुवा था उसकी वजह से राजु शरम कर रहा है इसलिये उसने कुछ कहा नही बस हँशकर रह गयी, मगर अभी भी वो राजु को पिशाब करते देखने का लालच किये बिना रह नही सकी थी। वैसे तो वो उसके कन्धे पर हाथ रखकर खङी हो गयी थी, मगर फिर भी चोरी से उसकी नजर राजु के लण्ड पर चली ही गयी जिससे अपने आप ही उसकी चुत मे फिर से पानी सा भर आया था।
खैर राजु के बाद रुपा पिशाब करने लगी तो राजु अब दुसरी ओर मुँह करके खङा हो गया। वो नही चाहता था की पहले के जैसे उसे अपनी जीज्जी के सामने फिर से शर्मीँदा होना पङे इसलिये वो रुपा के कन्धे पर हाथ रखकर दुसरी ओर मुँह करके खङा हो गया था, मगर रुपा
को एक तो जोरो की पिशाब लगी हुई थी उपर से राजु को पिशाब करते देखने के बाद उसे अपनी चुत मे भी जोरो की सुरसुरी सी महसूस हो रही थी इसलिये जल्दबाजी मे वो अब अपनी शलवार का नाङा खोलने लगी तो उसके नाङे की गाँठ ही उलझ गयी।
रुपा ने अब पहले तो खुद ही नाङे को खोलने की कोशिश की मगर रुपा ने खुद से उसे जितना खोलना चाहा नाङे की गाँठ उतना ही कसती चली गयी इसलिये कुछ देर तो वो ऐसे ही खुद से अपने नाङे को खोलने की कोशिश करती रही मगर जब उससे नाङे की गाँठ नही ही.., नही खुली तो वो..
"ऊहूऊऊऊ..!" कहकर जोरो से झुँझला सी उठी जिससे..
"क्.क्या हुवा जीज्जी..!" राजु ने अब पलटकर रुपा की ओर देखते हुवे पुछा। रुपा भी अब क्या करती इसलिये..
"य्.य्.ये् गाँठ उलझ गयी..!" ये कहते हुवे वो भी घुमकर अब राजु की ओर मुँह करके खङी हो गयी। उसने अपने सुट को पेट से उपर उठाकर अपनी ठोडी से दबा रखा था तो दोनो हाथो से अपनी शलवार के नाङे को पकङे हुवे थी जिससे रुपा की साँसो के साथ साथ उसके फुलते पिचकते गोरे चिकने पेट व उसकी गहरी नाभी को देख राजु का लण्ड तुरन्त अब हरकत मे आ गया...