बहुत ही जबरदस्त और लाजवाब अपडेट है भाई मजा आ गयाअभी तक आपने पढा की अपनी माँ के कहने पर रुपा राहुल के साथ पहाङी वाले लिँगा बाबा पर दिया जलाकर टोटके करने आ गयी थी, मगर दिनभर के रास्ते मे एक दुसरे का हाथ पकङे पकङे राजु का तो बुरा हाल हो ही गया था, रुपा भी राजु के प्रति रोमाँच व एक अजीब अहसास को महसूस करने लगी थी अब उसके आगे:-
दोनो रुकते रुकते आराम से आये थे इसलिये दिन ढलने के बाद वो दोनो उपर लिँगा बाबा की पहाङी के उपर पहुँच सके। पहाङी उपर से एकदम समतल व सपाट थी, जहाँ काफी बङी सी जगह को पक्की चार दिवारी करके एक दरवाजा लगाया हुवा था। दोनो भाई बहन ने अन्दर आ आकर अब अन्दर से दरवाजे की कुण्डी लगा ली। अन्दर एक कुँवा था जिसके पास ही हैण्ड पम्प लगा था। हैण्ड पम्प के पास ही चार पाँच पक्के कमरे से बने हुवे थे, जहाँ लोग दीया जलाते है और इन्ही को वो मन्दिर कहते है।
वैसे तो आजकल पहाङी वाले लिँगा बाबा पर बहुत ही कम लोग जाते है, बस सावन मे जब यहाँ मेला लगता है तो लोगो की काफी चहल पहल हो जाती है मगर बच्चा ना होने पर दीया जलाने के नाम पर शायद ही कभी कोई आता है, क्योंकि बच्चा ना होने पर पहाङी वाले बाबा पर आकर दिया जलाना पुराने समय मे किसी समझदार इन्सान द्वारा बनाई हुई बस एक सोची समझी योजना भर थी।
दरअसल पुराने समय मे गाँवो मे सन्युक्त परिवार होते थे जिनमे घर तो छोटा होता था और परिवार के सदस्य ज्यादा। अब छोट घर व बङे परिवार मे पति पत्नी को साथ मे रहने का इतना समय ही कहाँ मिल पाता था जो उन्हे बच्चे हो, इसलिये पुराने समय मे किसी समझदार इन्सान ने ये जुगत लगाई थी, ताकी मासिक धर्म के बाद दीया जलाने के बहाने पति पत्नी यहाँ साथ मे आयेँगे तो उन्हे एक साथ रहने का समय मिल जायेगा और उन्हे जल्दी बच्चे हो जायेँगा..!
क्योंकि पहाङी वाला लिँगा बाबा पर ना तो कोई बाबा है, और ना ही अलग से उसका कोई मन्दिर है, ये बस गाँव से पच्चीस तीस किलोमीटर दुर एक छोटी सी पहाङी का नाम है, यहाँ तक जाने और आने मे ही दो दिन लगते है, उपर से दीया जलाने के लिये यहाँ रात मे रुकना भी पङता है..! अब दो दिन व एक रात पति पत्नी अकेले साथ मे रहेँगे तो उनके बीच कुछ ना कुछ तो होगा ही, उपर से औरत को मासिक धर्म के बाद यहाँ आना है जिससे मासिक धर्म आने के बाद पत्नी की चुदाई होगी तो बच्चे अपने आप हो ही जाँयेँगे..!
अब पुराने समय मे जिसने भी ये योजना बनाई थी उस समय के लिये तो सही थी, मगर धीरे धीरे इसने अन्ध विश्वास का रुप ले लिया था, जिससे पहाङी वाले बाबा से इसका नाम लिँगा बाबा पङ गया और हर साल सावन मे यहाँ मेला तक लगना शुरु हो गया था। अब सावन मे जब यहाँ मेला लगता है तो लोगो की काफी चहल पहल हो जाती है, मगर बच्चा ना होने के लिये दीया जलाने शायद ही कोई आता है..!
क्योंकि गाँवो मे भी आजकल सन्युक्त परिवार रहे है ही कहा है..? और अगर होते भी है, तो शादी के बाद ही ही उन्हे तुरन्त घर मे अलग से कमरा मिल जाता है इसलिये बच्चा ना होने की वजह ही नही रही थी जो लोग यहाँ दीया जलाने जाये..? मगर फिर भी अन्ध विश्वास तो अन्ध विश्वास होता है इसलिये गाँव के लोगो का अभी भी ये मानना है की जिस किसी औरत को बच्चे ना हो रहे हो तो, वो औरत अगर मासिक धर्म के बाद अपने पति के साथ यहाँ पर दीया जलाकर जाये तो जल्दी ही उसे माँ बनने का सुख मिल जाता है...
बहुत ही गरमागरम कामुक और रोमांचक अपडेट है भाई मजा आ गयाखैर पहाङी के उपर पहुँचकर पहले तो दोनो भाई बहन ने हैण्ड पम्प से पानी पिया फिर वही पर बैठकर आराम करने लगे। दिन तो ढल गया था मगर पुरी तरह से रात नही हुई थी इसलिये रुपा ने सोचा की वो रात होने के बाद नहा लेँगे ताकी अन्धेरे मे उसे राजु के सामने इतना अधिक शर्मिंदा ना होना पङे इसलिये कुछ देर आराम करने के बाद..
रुपा: चल पहले खाना खा लेते है, फिर नहाकर पुजा कर लेँगे...
राजु: हाँ.. हाँ.. जीज्जी बहुत भुख भी लगी है चलो पहले खाना खा लेते है..!" राजु ने भी हामी भरते हुवे कहा और थैले से खाना बाहर निकालकर रख लिया।
दोनो भाई बहन ने जब तक खाना खाया तब तक रात तो हो गयी मगर रुपा ने जैसा सोचा था ये उसके एकदम उलट हो गया, क्योकि वो चाँदनी रात थी। पहले थोङा बहुत अन्धेरा भी था मगर चाँद के निकलते ही इतना अधिक उजाला हो गया की सब कुछ एकदम साफ साफ नजर आने लगा, उपर से जो हैण्ड पम्प था वो भी एकदम खुले मे था।
वैसे तो चारो ओर काफी पेङ पौधे थे जिससे उनके नीचे थोङा बहुत अन्धेरा था मगर हैण्ड पम्प के आस पास एक भी पेङ नही था जिस कारण हैण्ड पम्प के पास और भी अधिक उजाला फैल गया था। रुपा भी अब क्या करती। एक बार तो उसने सोचा की कपङे पहने पहने ही नहा ले मगर एक तो वो दुसरे कपङे लेकर नही आई थी उपर से उसने सोचा की वैसे भी उसे राजु के साथ नँगी होकर दीया भी जलाना है इसलिये कुछ देर तो वो ऐसे वही बैठे बैठे कुछ सोचती सा रही फिर...
"चल राजु अब नहा ले..! नहाकर हमे पुजा भी करनी है..!" रुपा ने गहरी साँस लेते हुवे कहा और उठकर खङी हो गयी।
राजु भी बचे हुवे खाने को वापस थैले मे रखकर खङा हो गया था इसलिये रुपा अब उसका हाथ पकङे पकङे उसे हैण्ड पम्प पर ले आई और...
"चल तु नहा, मै पम्प को चलाती हुँ..!" रुपा ने पम्प के हैण्डल को पकङते हुवे कहा जिससे..
"म्.म.मै..क्यो..? पुजा तो तुमको करनी है ना..!" राजु ने हङबङाते हुवे कहा।
रुपा: नही हम दोनो को साथ मे करनी है।
राजु: पर मैने कच्छा नही पहना और दुसरे कपङे भी नही लाया..
रुपा: तो क्या हुवा..? ऐसे ही नहा ले..!
राजु: न्.न्. नही पहले तुम नहा लो...
रुपा: याद नही माँ ने क्या कहा था, किसी काम के लिये मना नही करना..? चल अब चुपचाप नहा ले..!
रुपा ने अब थोङा जोर देते हुवे कहा जिससे..
राजु: तो पहले तुम नहा लो ना..! मै बाद मे नहा लुँगा..!"
रुपा को मालुम था की वो ऐसे नही मानेगा, क्योंकि उसके सामने नहाने मे वो शरमा रहा है इसलिये रुपा ने अब खुद ही पहले नहाने की सोची, मगर राजु क्या उसे खुद भी राजु के सामने अपने कपङे उतारने मे शरम आ रही थी इसलिये वो घुमकर अब राजु की ओर पीठ करके खङी हो गयी। वो अभी भी राजु का हाथ पकङे हुवे थी इसलिये एक हाथ से उसे अब अपने कपङे उतारने मे दिक्कत महसूस हुई तो उसे याद आया की बाबा जी वाली भस्म को खाने के बाद चाहे तो वो राजु के हाथ को छोङ सकती है।
जैसा की उसे लीला ने बताया था वैसे भी नहाने के लिए उसे अपने कपङे उतारने से पहले फकीर बाबा वाली उस भस्म को खाना है, ताकी वो जिन्न उन्हे कोई नुकसान ना पहुँचा सके...इसलिये रुपा अब तुरन्त राजु के पास से थैला लेकर उसमे जो टोटके का सामान रखा हुवा था उसमे से काले कपङे मे बन्धी वैद जी वाली दवा को निकाल लिया जो की लीला ने उसे फकीर वाबा की भस्म बताकर दिया था।
रुपा ने उस कपङे मे बँधी आधी दवा को चुटकी मे भरकर पहले तो खुद खा लिया, फिर बाकी की दवा को राजु के मुँह मे दे दी जिससे.....
"उम्मह्..! ये क्या है जीज्जी... बङा ही अजीब स्वाद है इसका..? उम्म्.क्या खिला दिया..?" राजु ने गन्दा सा मुँह बनाते हुवे कहा जिससे...
"ऐसे नही कहते..! बाबा जी की भस्म है चुपचाप खा ले..! और अब चाहे तो हाथ भी छोङ दे..!" रुपा ने दवा वाले खाली कपङे को अब वापस थैले मे रखते हुवे कहा और उसके हाथ को छोङकर हैण्ड पम्प के पास जाकर राजु की ओर पीठ करके खङी हो गयी।
अब नहाने के लिये अपने कपङे उतारने से पहले रुपा ने एक बार तो घुमकर राजु की ओर देखा, फिर दोनो हाथो से अपने सुट को नीचे से पकङकर उसे उपर की ओर गर्दन से निकालकर नीचे जमीन पर रख दिया, सुट के बाद उसने ब्रा को भी खोलकर अब सुट के उपर ही रख दिया जिससे राजु की आँखे अब फटी की फटी रह गयी और उसके लण्ड मे हवा सी भरती चली गयी।
रुपा दुसरी ओर मुँह किये थी इसलिये राजु के सामने रुपा की नँगी पीठ थी मगर चाँद की चाँदनी मे रुपा की एकदम कोरे कगज सी दुधिया सफेद व गोरी चिकनी पीठ अलग ही चमक रही थी। रुपा ने एक हाथ से अपनी चुँचियो को ढक कर अब एक बार फिर से पहले तो थोङा सा घुमकर राजु की तरफ देखा फिर अपनी शलवार का नाङा भी खोल दिया जिससे राजु की साँसे उपर की उपर और नीचे की नीचे रह गयी..
शलवार के साथ रुपा ने अपनी पेन्टी को भी निकालकर बाकी के कपङो के उपर ही रख दिया और एकदम नँगी हो गयी। राजु के सामने रुपा की एकदम गोरी चिकनी नँगी पीठ व उसके उभरे हुवे कूल्हे थे जिसे देख मानो वो साँस लेना ही भुल गया। राजु के समाने नँगी होकर रुपा को अब जोरो की शरम तो आ रही थी मगर फिर भी एक हाथ से अपनी चुँचियो को तो दुसरे हाथ से अपनी चुत को ढकर वो राजु की तरफ घुम गयी...
राजु एकटक उसे जोरो से घुरे जा रहा था जिससे शरम के मारे रुपा सिमट सी रही थी मगर फिर भी वो हैण्ड पम्प के नीचे आकर बैठ गयी। नीचे बैठकर उसने अब नीचे अपनी चुत वाले हाथ को तो हटा लिया मगर दुसरे हाथ से अपनी चुँचियो को छुपाये रही और..
"चल पम्प चला ..!" उसने राजु की ओर देखते हुवे धीरे से कहा मगर राजु होश मे ही कहा था जो वो ये सुनता। वो तो बस बिना पलके झपकाये उसके कोरे कागज सफेद नँगे बदन को ही देखे जा रहा था। राजु के ऐसे देखने से रुपा को शरम भी आ रही थी और उस पर गुस्सा भी इसलिये...
"ओ्ये्..!देख क्या रहा है..? आँखे नही बन्द कर सकता तु..? बेशर्म..! चल पम्प चला अब..!" रुपा ने गुस्सा सा करते हुवे थोङा जोरो से कहा जिससे वो अब हङबङा सा गया और...
"अ्. ह्.हाँ..हाँ..... जीज्जी..." करते हुवे हैण्ड पम्प चलाने लग गया।
हैण्ड पम्प के चलते ही रुपा ने पहले तो घुमकर अपनी पीठ को ही गीला किया, मगर बाकी के बदन को गीला करने के लिये वो राजु ओर ही मुँह करके बैठ गयी। अब ऐसे एक हाथ से तो वो नहा नही सकती थी इसलिये मजबुरन उसने अपनी चुँचियो पर से भी अपना हाथ हटा लिया। वो कुछ देर तो शरम से सिमटी सिमटी सी रह मगर वो जानती थी की दीया जलाते समय उसे राजु के सामने एकदम नँगा ही रहना है, अभी नही तो कुछ देर बाद राजु को उसका सब कुछ देख ही लेना है ये सोचकर उसने भी शरमाना छोङ दिया और अपनी चुँचियो पर से हाथ हटाकर नहाने लगी।
चुँचियो पर से हाथ हटाते ही उसकी किसी बङे से सेब जितनी एकदम ठोस भरी हुई चुँचिया राजु के समाने झुल सी गयी जिन्हे देख राजु एकदम सुन्न सा हो गया, कागज के जैसे एकदम गोरी सफेद बेदाग चुँचियाँ और उन पर एक रुपये के जितना बङा गहरे भुरे रँग का घेरा, व घेरे के बीचो बीच सुपारी के जितने बङे हल्के भुरे रँग निप्पलो को देख किसी के मुँह मे भी पानी आ जाये, मगर राजु पर इसका उल्टा असर हुवा। वो अपने जीव मे पहली बार नँगी चुँचियाँ देख रहा था इसलिये चुँचियो को देख उसका गला एकदम सुख गया तो नीचे से उसके लण्ड ने पैन्ट के अन्दर ही अन्दर पानी की लार सी छोङना शुरु कर दिया...
उसने पहले भी चौराहे वाले टोटके के समय अपनी जीज्जी को नँगी देखा था मगर उस समय रुपा ने अपनी चुत व चुँचियो को छुपा लिया था इसलिये रुपा को अब इस तरह एकदम नँगी देखकर राजु का लण्ड उसके पजाम को ही फाङकर बाहर आने को हो गया था तो पानी छोङ छोङकर उसने आगे से राजु के पजामे को भी पुरा गीलाकर दिया था मगर राजु को अब ये होश ही कहा था। वो तो बस आँखे फाङे रुपा को ही देखे जा रहा था। नहाते नहाते बीच बीच मे रुपा कभी कभी राजु की ओर भी देख ले रही थी, जो की आँखे फाङे अब भी बस उसे देखे ही जा रहा था...
उसके ऐसे देखने से रुपा को उस पर हँशी भी आ रही थी और शरम भी..! जिससे उसे एक अजीब सा ही अहसास सा हो रहा था, जो की अपने जीवन मे वो पहली बार महसूस कर रही थी। अपने छोटे भाई के ऐसे उसे नँगा नहाते देखने से रुपा के दिल मे गुदगुदी सी हो रही थी तो साथ ही वो अपनी चुत मे भी हल्की हल्की सरसराहट सी महसूस कर रही थी। शरम के मारे रुपा ने अब नहाने के नाम पर बस अपने पुरे बदन को ही गीला किया और राजु की ओर पीठ करके खङी हो गयी।
खङी होकर उसने पहले तो अपने गीले बालो को इकट्ठा करके उनका जुङा सा बनाया फिर हाथो से ही अपने गीले बदन को हल्का सा पौँछकर...
"तौलिया दे मुझे..." रुपा ने अब हल्का सा पीछ घुमकर राजु की ओर देखेते हुवे कहा मगर राजु अभी भी एकटक उसे ही देखे जा रहा था तो साथ ही वो अभी भी हैण्ड पम्प को चलाये जा रहा था जिसे देख रुपा की हँशी छुट गयी और..
"ओ्य्..! बेशर्म..! ये क्या कर रहा है..? चल इसे बन्द कर और थैले से निकालकर तौलिया दे मुझे..?" रुपा ने अब हँशते हुवे ही थोङा जोर से कहा जिससे हङबङाकर राजु अब...
"ह्.ह्.हा्.आ्.आ्.व्.वो्. ज्.ज्जीज्जी्...जी..!" करके रह गया और जल्दी से थैले से तौलिया निकालकर रुपा की ओर फेँक दीया।
रुपा ने भी अब दुसरी ओर मुँह किये किये ही पहले तो तौलिये से अपने गीले बदन को पौँछा, फिर उसे अपनी कमर पर लपेटकर आगे पीछे से अपनी चुत व कुल्हो को को तो तौलिये से छुपा लिया और एक हाथ से अपनी चुँचियो को छुपाकर...
"चल तु भी नहा ले अब, ला हैण्ड पम्प मै चलाती हुँ..." रुपा ने अब राजु के पास आकर दुसरे हाथ से हैण्ड पम्प के हैण्डल को पकङते हुवे कहा जिससे..
"म्.म्.मै..क्यो..? वो पुजा तो आपको करनी है ना..!" राजु ने हङबङाते हुवे कहा।
रुपा: मैने बताया ना हम दोनो को ही साथ मे दीया जलाना इसलिये चल अब तु भी नहा ले..!
राजु: पर मैने कच्छा नही पहना..?
रुपा: तो क्या हुवा..? मै भी तो नहाई हुँ, तु भी नहा ले उसके बाद ऐसे ही हमे पुजा भी करनी है, चल अब जल्दी कर..!
राजु: पर्.व्.वो्. जीजजी...
रुपा: पर वर कुछ नही याद नही माँ ने क्या कहा था जैसे जैसे मै कुहुँ तुझे वैसे ही करना है.. चल अब जल्दी से कपङे उतार और नहा ले..!
राजु ने अब एक बार तो रुपा की ओर देखा फिर धीरे से अपनी कमीज को उतार कर रुपा के कपङो के साथ ही रख दिया..! रुपा को नँगे नहाते देख राजु का लण्ड अभी भी एकदम तना खङा था जिससे रुपा से उसे डर भी लग रहा था और शरम भी आ रही थी इसलिये कमीज को उतारक वो रुक गया और रुपा की ओर देखने लगा। रुपा भी उसकी ओर ही देख रही थी इसलिये...
"अब क्या हुवा जल्दी कर हमे पुजा भी करनी है..?" उसने थोङा खिजते हुवे कहा।
"क्.क.कुछ नही..!" कहते हुवे राजु ने अब धीर से अपने पजामे को भी उतार कर रख दिया। सही मे उसने नीचे कच्चा नही पहना हुवा था। उसका लण्ड अभी भी एकदम सीधा तना खङा था इसलिये दोनो हाथो से अपने लण्ड को छुपाकर वो अब धीरे धीरे रुपा की ओर घुम गया। रुपा उसे ही देख रही थी इसलिये वो अब...
"व्.व.वो..जीज्जी म्.म्..!"करने लगा। अपने छोटे भाई को अपने लिये उत्तेजित हुवा देख रुपा को शरम भी आ रही थी और हँशी भी। जिस तरह से राजु उसे नहाते देख रहा था उससे राजु की हालत वो समझ सकती थी।
उसे मालुम था की जिन परिस्थितियों से वो गुजर रहा है उससे ये होना लाजमी है, क्योंकि दिनभर राजु के साथ रहकर वो खुद भी तो अजीब सा ही महसूस कर रही थी।
जब राजु को बस अपने पास मे खङे होकर पिशाब करने से ही उसकी चुत मे पानी सा भर आ रहा था तो, राजु तो उसे कब से पुरी नँगी देख रहा इसलिये उसकी इस हालत पर रुपा को हँशी तो आ रही थी मगर फिर भी...
"चल ठीक है..! ठीक..! मै दुसरी ओर मुँह कर लेती हुँ, तु नहा ले...!" ये कहते हुवे रुपा ने अपना मुँह दुसरी ओर कर लिया और एक हाथ से अपनी चुँचियो को ढके ढके दुसरे हाथ से हैण्ड पम्प को चलाने लगी जिससे राजु अब चुपचाप हैण्ड पम्प के नीचे आकर नहाने लग गया। पम्प को चलाते चलाते बीच बीच मे अनायास ही रुपा की नजरे राजु की ओर भी चली जा रही। नहाने के लिये राजु ने अब अपने हाथ लण्ड पर से हटा लिये थे इसलिये राजु के एकदम तने खङे लण्ड को देख रुपा को भी अपनी चुत मे सुरसुरी से महसूस होने लगी।
खैर कुछ देर बाद ही राजु भी नहाकर रुपा की ओर पीठ करके खङा हो गया और...
"व्. वो्. ज्. जी्ज्जी्.ई.. त्.तौलिया्..!" उसने अब एक बार तो गर्दन घुमाकर पीछे रुपा की ओर देखते हुवे कहा मगर उसने देखा की तौलिये को रुपा अपनी कम पर लपेटे है तो वो ऐसे ही अपने कपङे उठाकर पहनने लगा जिससे...
"अभी कपङे नही पहनने..!, हमे ऐसे ही पुजा करनी है..! ये ले, बदन पौँछना है तो पौँछ ले..!" ये कहते हुवे रुपा ने अपनी कमर से तौलिये को खोलकर अब राजु को देते हुवे कहा और खुद दुसरी ओर मुँह करके खङी हो गयी।
अपने गीले बदन को तौलिये से अच्छे से पौँछने के बाद राजु ने अब अपनी कमर पर उसे बाँध लिया और...
ह्.हो्..हो गया... जीज्जी्... राजु ने अब घुमकर रुपा की ओर देखते हुवे कहा जिससे...
रुपा अब उसके पास आकर खङी हो गयी। उसने हाथो अब से ना तो अपनी चुँचियो को छुपाने की कोशिश की और ना ही अपनी चुत को। वो ऐसे ही एकदम नँगी उसके पास आकर खङी हो गयी थी जिससे राजु ने उपर से नीचे तक अब एक नजर उसके पुरे बदन पर डाली, मगर फिर उसकी नजरे रुपा की जाँघो के बीच जमकर रह गयी...
रुपा को भी मालुम था की राजु की नजरे अब कहाँ पर है, मगर जान रही थी की वैसे ही उसे राजु को उसे अपना सब कुछ खोलकर दिखाना है इसलिये उसने अब हाथो से तो अपनी चुत व चुँचियो को छुपाने की कोशिश नही की, मगर नारी लज्जा के वश स्वतः ही उसका एक पैर दुसरे पैर के आगे आ गया और दोनो जाँघो को भीँचकर उसने अब अपनी चुत को छिपाने की कोशिश की।
रुपा के अपनी जाँघो के भीँच लेने से उसकी चुत तो दोनो जाँघो के बीच छिप गयी थी मगर एकदम दुधिया सफेद गोरी चिकनी चुत के आस पास के बालो के कारण चुत का फुला हुवा त्रिकोण अब भी दिखाई देता रहा मगर रुपा ने उसकी अब कोई परवाह नही की और...
"हो गया तो चल अब कमरे जाकर हमे दीया भी जलाना है..! और ये मुझे दे..!" ये कहते हुवे रुपा ने अब
राजु से तौलिये को लेकर वापस थैले मे रख दिया और
उसे अपने साथ पास के ही एक कमरे मे लेकर आ गयी...
खैर पहाङी के उपर पहुँचकर पहले तो दोनो भाई बहन ने हैण्ड पम्प से पानी पिया फिर वही पर बैठकर आराम करने लगे। दिन तो ढल गया था मगर पुरी तरह से रात नही हुई थी इसलिये रुपा ने सोचा की वो रात होने के बाद नहा लेँगे ताकी अन्धेरे मे उसे राजु के सामने इतना अधिक शर्मिंदा ना होना पङे इसलिये कुछ देर आराम करने के बाद..
रुपा: चल पहले खाना खा लेते है, फिर नहाकर पुजा कर लेँगे...
राजु: हाँ.. हाँ.. जीज्जी बहुत भुख भी लगी है चलो पहले खाना खा लेते है..!" राजु ने भी हामी भरते हुवे कहा और थैले से खाना बाहर निकालकर रख लिया।
दोनो भाई बहन ने जब तक खाना खाया तब तक रात तो हो गयी मगर रुपा ने जैसा सोचा था ये उसके एकदम उलट हो गया, क्योकि वो चाँदनी रात थी। पहले थोङा बहुत अन्धेरा भी था मगर चाँद के निकलते ही इतना अधिक उजाला हो गया की सब कुछ एकदम साफ साफ नजर आने लगा, उपर से जो हैण्ड पम्प था वो भी एकदम खुले मे था।
वैसे तो चारो ओर काफी पेङ पौधे थे जिससे उनके नीचे थोङा बहुत अन्धेरा था मगर हैण्ड पम्प के आस पास एक भी पेङ नही था जिस कारण हैण्ड पम्प के पास और भी अधिक उजाला फैल गया था। रुपा भी अब क्या करती। एक बार तो उसने सोचा की कपङे पहने पहने ही नहा ले मगर एक तो वो दुसरे कपङे लेकर नही आई थी उपर से उसने सोचा की वैसे भी उसे राजु के साथ नँगी होकर दीया भी जलाना है इसलिये कुछ देर तो वो ऐसे वही बैठे बैठे कुछ सोचती सा रही फिर...
"चल राजु अब नहा ले..! नहाकर हमे पुजा भी करनी है..!" रुपा ने गहरी साँस लेते हुवे कहा और उठकर खङी हो गयी।
राजु भी बचे हुवे खाने को वापस थैले मे रखकर खङा हो गया था इसलिये रुपा अब उसका हाथ पकङे पकङे उसे हैण्ड पम्प पर ले आई और...
"चल तु नहा, मै पम्प को चलाती हुँ..!" रुपा ने पम्प के हैण्डल को पकङते हुवे कहा जिससे..
"म्.म.मै..क्यो..? पुजा तो तुमको करनी है ना..!" राजु ने हङबङाते हुवे कहा।
रुपा: नही हम दोनो को साथ मे करनी है।
राजु: पर मैने कच्छा नही पहना और दुसरे कपङे भी नही लाया..
रुपा: तो क्या हुवा..? ऐसे ही नहा ले..!
राजु: न्.न्. नही पहले तुम नहा लो...
रुपा: याद नही माँ ने क्या कहा था, किसी काम के लिये मना नही करना..? चल अब चुपचाप नहा ले..!
रुपा ने अब थोङा जोर देते हुवे कहा जिससे..
राजु: तो पहले तुम नहा लो ना..! मै बाद मे नहा लुँगा..!"
रुपा को मालुम था की वो ऐसे नही मानेगा, क्योंकि उसके सामने नहाने मे वो शरमा रहा है इसलिये रुपा ने अब खुद ही पहले नहाने की सोची, मगर राजु क्या उसे खुद भी राजु के सामने अपने कपङे उतारने मे शरम आ रही थी इसलिये वो घुमकर अब राजु की ओर पीठ करके खङी हो गयी। वो अभी भी राजु का हाथ पकङे हुवे थी इसलिये एक हाथ से उसे अब अपने कपङे उतारने मे दिक्कत महसूस हुई तो उसे याद आया की बाबा जी वाली भस्म को खाने के बाद चाहे तो वो राजु के हाथ को छोङ सकती है।
जैसा की उसे लीला ने बताया था वैसे भी नहाने के लिए उसे अपने कपङे उतारने से पहले फकीर बाबा वाली उस भस्म को खाना है, ताकी वो जिन्न उन्हे कोई नुकसान ना पहुँचा सके...इसलिये रुपा अब तुरन्त राजु के पास से थैला लेकर उसमे जो टोटके का सामान रखा हुवा था उसमे से काले कपङे मे बन्धी वैद जी वाली दवा को निकाल लिया जो की लीला ने उसे फकीर वाबा की भस्म बताकर दिया था।
रुपा ने उस कपङे मे बँधी आधी दवा को चुटकी मे भरकर पहले तो खुद खा लिया, फिर बाकी की दवा को राजु के मुँह मे दे दी जिससे.....
"उम्मह्..! ये क्या है जीज्जी... बङा ही अजीब स्वाद है इसका..? उम्म्.क्या खिला दिया..?" राजु ने गन्दा सा मुँह बनाते हुवे कहा जिससे...
"ऐसे नही कहते..! बाबा जी की भस्म है चुपचाप खा ले..! और अब चाहे तो हाथ भी छोङ दे..!" रुपा ने दवा वाले खाली कपङे को अब वापस थैले मे रखते हुवे कहा और उसके हाथ को छोङकर हैण्ड पम्प के पास जाकर राजु की ओर पीठ करके खङी हो गयी।
अब नहाने के लिये अपने कपङे उतारने से पहले रुपा ने एक बार तो घुमकर राजु की ओर देखा, फिर दोनो हाथो से अपने सुट को नीचे से पकङकर उसे उपर की ओर गर्दन से निकालकर नीचे जमीन पर रख दिया, सुट के बाद उसने ब्रा को भी खोलकर अब सुट के उपर ही रख दिया जिससे राजु की आँखे अब फटी की फटी रह गयी और उसके लण्ड मे हवा सी भरती चली गयी।
रुपा दुसरी ओर मुँह किये थी इसलिये राजु के सामने रुपा की नँगी पीठ थी मगर चाँद की चाँदनी मे रुपा की एकदम कोरे कगज सी दुधिया सफेद व गोरी चिकनी पीठ अलग ही चमक रही थी। रुपा ने एक हाथ से अपनी चुँचियो को ढक कर अब एक बार फिर से पहले तो थोङा सा घुमकर राजु की तरफ देखा फिर अपनी शलवार का नाङा भी खोल दिया जिससे राजु की साँसे उपर की उपर और नीचे की नीचे रह गयी..
शलवार के साथ रुपा ने अपनी पेन्टी को भी निकालकर बाकी के कपङो के उपर ही रख दिया और एकदम नँगी हो गयी। राजु के सामने रुपा की एकदम गोरी चिकनी नँगी पीठ व उसके उभरे हुवे कूल्हे थे जिसे देख मानो वो साँस लेना ही भुल गया। राजु के समाने नँगी होकर रुपा को अब जोरो की शरम तो आ रही थी मगर फिर भी एक हाथ से अपनी चुँचियो को तो दुसरे हाथ से अपनी चुत को ढकर वो राजु की तरफ घुम गयी...
राजु एकटक उसे जोरो से घुरे जा रहा था जिससे शरम के मारे रुपा सिमट सी रही थी मगर फिर भी वो हैण्ड पम्प के नीचे आकर बैठ गयी। नीचे बैठकर उसने अब नीचे अपनी चुत वाले हाथ को तो हटा लिया मगर दुसरे हाथ से अपनी चुँचियो को छुपाये रही और..
"चल पम्प चला ..!" उसने राजु की ओर देखते हुवे धीरे से कहा मगर राजु होश मे ही कहा था जो वो ये सुनता। वो तो बस बिना पलके झपकाये उसके कोरे कागज सफेद नँगे बदन को ही देखे जा रहा था। राजु के ऐसे देखने से रुपा को शरम भी आ रही थी और उस पर गुस्सा भी इसलिये...
"ओ्ये्..!देख क्या रहा है..? आँखे नही बन्द कर सकता तु..? बेशर्म..! चल पम्प चला अब..!" रुपा ने गुस्सा सा करते हुवे थोङा जोरो से कहा जिससे वो अब हङबङा सा गया और...
"अ्. ह्.हाँ..हाँ..... जीज्जी..." करते हुवे हैण्ड पम्प चलाने लग गया।
हैण्ड पम्प के चलते ही रुपा ने पहले तो घुमकर अपनी पीठ को ही गीला किया, मगर बाकी के बदन को गीला करने के लिये वो राजु ओर ही मुँह करके बैठ गयी। अब ऐसे एक हाथ से तो वो नहा नही सकती थी इसलिये मजबुरन उसने अपनी चुँचियो पर से भी अपना हाथ हटा लिया। वो कुछ देर तो शरम से सिमटी सिमटी सी रह मगर वो जानती थी की दीया जलाते समय उसे राजु के सामने एकदम नँगा ही रहना है, अभी नही तो कुछ देर बाद राजु को उसका सब कुछ देख ही लेना है ये सोचकर उसने भी शरमाना छोङ दिया और अपनी चुँचियो पर से हाथ हटाकर नहाने लगी।
चुँचियो पर से हाथ हटाते ही उसकी किसी बङे से सेब जितनी एकदम ठोस भरी हुई चुँचिया राजु के समाने झुल सी गयी जिन्हे देख राजु एकदम सुन्न सा हो गया, कागज के जैसे एकदम गोरी सफेद बेदाग चुँचियाँ और उन पर एक रुपये के जितना बङा गहरे भुरे रँग का घेरा, व घेरे के बीचो बीच सुपारी के जितने बङे हल्के भुरे रँग निप्पलो को देख किसी के मुँह मे भी पानी आ जाये, मगर राजु पर इसका उल्टा असर हुवा। वो अपने जीव मे पहली बार नँगी चुँचियाँ देख रहा था इसलिये चुँचियो को देख उसका गला एकदम सुख गया तो नीचे से उसके लण्ड ने पैन्ट के अन्दर ही अन्दर पानी की लार सी छोङना शुरु कर दिया...
उसने पहले भी चौराहे वाले टोटके के समय अपनी जीज्जी को नँगी देखा था मगर उस समय रुपा ने अपनी चुत व चुँचियो को छुपा लिया था इसलिये रुपा को अब इस तरह एकदम नँगी देखकर राजु का लण्ड उसके पजाम को ही फाङकर बाहर आने को हो गया था तो पानी छोङ छोङकर उसने आगे से राजु के पजामे को भी पुरा गीलाकर दिया था मगर राजु को अब ये होश ही कहा था। वो तो बस आँखे फाङे रुपा को ही देखे जा रहा था। नहाते नहाते बीच बीच मे रुपा कभी कभी राजु की ओर भी देख ले रही थी, जो की आँखे फाङे अब भी बस उसे देखे ही जा रहा था...
उसके ऐसे देखने से रुपा को उस पर हँशी भी आ रही थी और शरम भी..! जिससे उसे एक अजीब सा ही अहसास सा हो रहा था, जो की अपने जीवन मे वो पहली बार महसूस कर रही थी। अपने छोटे भाई के ऐसे उसे नँगा नहाते देखने से रुपा के दिल मे गुदगुदी सी हो रही थी तो साथ ही वो अपनी चुत मे भी हल्की हल्की सरसराहट सी महसूस कर रही थी। शरम के मारे रुपा ने अब नहाने के नाम पर बस अपने पुरे बदन को ही गीला किया और राजु की ओर पीठ करके खङी हो गयी।
खङी होकर उसने पहले तो अपने गीले बालो को इकट्ठा करके उनका जुङा सा बनाया फिर हाथो से ही अपने गीले बदन को हल्का सा पौँछकर...
"तौलिया दे मुझे..." रुपा ने अब हल्का सा पीछ घुमकर राजु की ओर देखेते हुवे कहा मगर राजु अभी भी एकटक उसे ही देखे जा रहा था तो साथ ही वो अभी भी हैण्ड पम्प को चलाये जा रहा था जिसे देख रुपा की हँशी छुट गयी और..
"ओ्य्..! बेशर्म..! ये क्या कर रहा है..? चल इसे बन्द कर और थैले से निकालकर तौलिया दे मुझे..?" रुपा ने अब हँशते हुवे ही थोङा जोर से कहा जिससे हङबङाकर राजु अब...
"ह्.ह्.हा्.आ्.आ्.व्.वो्. ज्.ज्जीज्जी्...जी..!" करके रह गया और जल्दी से थैले से तौलिया निकालकर रुपा की ओर फेँक दीया।
रुपा ने भी अब दुसरी ओर मुँह किये किये ही पहले तो तौलिये से अपने गीले बदन को पौँछा, फिर उसे अपनी कमर पर लपेटकर आगे पीछे से अपनी चुत व कुल्हो को को तो तौलिये से छुपा लिया और एक हाथ से अपनी चुँचियो को छुपाकर...
"चल तु भी नहा ले अब, ला हैण्ड पम्प मै चलाती हुँ..." रुपा ने अब राजु के पास आकर दुसरे हाथ से हैण्ड पम्प के हैण्डल को पकङते हुवे कहा जिससे..
"म्.म्.मै..क्यो..? वो पुजा तो आपको करनी है ना..!" राजु ने हङबङाते हुवे कहा।
रुपा: मैने बताया ना हम दोनो को ही साथ मे दीया जलाना इसलिये चल अब तु भी नहा ले..!
राजु: पर मैने कच्छा नही पहना..?
रुपा: तो क्या हुवा..? मै भी तो नहाई हुँ, तु भी नहा ले उसके बाद ऐसे ही हमे पुजा भी करनी है, चल अब जल्दी कर..!
राजु: पर्.व्.वो्. जीजजी...
रुपा: पर वर कुछ नही याद नही माँ ने क्या कहा था जैसे जैसे मै कुहुँ तुझे वैसे ही करना है.. चल अब जल्दी से कपङे उतार और नहा ले..!
राजु ने अब एक बार तो रुपा की ओर देखा फिर धीरे से अपनी कमीज को उतार कर रुपा के कपङो के साथ ही रख दिया..! रुपा को नँगे नहाते देख राजु का लण्ड अभी भी एकदम तना खङा था जिससे रुपा से उसे डर भी लग रहा था और शरम भी आ रही थी इसलिये कमीज को उतारक वो रुक गया और रुपा की ओर देखने लगा। रुपा भी उसकी ओर ही देख रही थी इसलिये...
"अब क्या हुवा जल्दी कर हमे पुजा भी करनी है..?" उसने थोङा खिजते हुवे कहा।
"क्.क.कुछ नही..!" कहते हुवे राजु ने अब धीर से अपने पजामे को भी उतार कर रख दिया। सही मे उसने नीचे कच्चा नही पहना हुवा था। उसका लण्ड अभी भी एकदम सीधा तना खङा था इसलिये दोनो हाथो से अपने लण्ड को छुपाकर वो अब धीरे धीरे रुपा की ओर घुम गया। रुपा उसे ही देख रही थी इसलिये वो अब...
"व्.व.वो..जीज्जी म्.म्..!"करने लगा। अपने छोटे भाई को अपने लिये उत्तेजित हुवा देख रुपा को शरम भी आ रही थी और हँशी भी। जिस तरह से राजु उसे नहाते देख रहा था उससे राजु की हालत वो समझ सकती थी।
उसे मालुम था की जिन परिस्थितियों से वो गुजर रहा है उससे ये होना लाजमी है, क्योंकि दिनभर राजु के साथ रहकर वो खुद भी तो अजीब सा ही महसूस कर रही थी।
जब राजु को बस अपने पास मे खङे होकर पिशाब करने से ही उसकी चुत मे पानी सा भर आ रहा था तो, राजु तो उसे कब से पुरी नँगी देख रहा इसलिये उसकी इस हालत पर रुपा को हँशी तो आ रही थी मगर फिर भी...
"चल ठीक है..! ठीक..! मै दुसरी ओर मुँह कर लेती हुँ, तु नहा ले...!" ये कहते हुवे रुपा ने अपना मुँह दुसरी ओर कर लिया और एक हाथ से अपनी चुँचियो को ढके ढके दुसरे हाथ से हैण्ड पम्प को चलाने लगी जिससे राजु अब चुपचाप हैण्ड पम्प के नीचे आकर नहाने लग गया। पम्प को चलाते चलाते बीच बीच मे अनायास ही रुपा की नजरे राजु की ओर भी चली जा रही। नहाने के लिये राजु ने अब अपने हाथ लण्ड पर से हटा लिये थे इसलिये राजु के एकदम तने खङे लण्ड को देख रुपा को भी अपनी चुत मे सुरसुरी से महसूस होने लगी।
खैर कुछ देर बाद ही राजु भी नहाकर रुपा की ओर पीठ करके खङा हो गया और...
"व्. वो्. ज्. जी्ज्जी्.ई.. त्.तौलिया्..!" उसने अब एक बार तो गर्दन घुमाकर पीछे रुपा की ओर देखते हुवे कहा मगर उसने देखा की तौलिये को रुपा अपनी कम पर लपेटे है तो वो ऐसे ही अपने कपङे उठाकर पहनने लगा जिससे...
"अभी कपङे नही पहनने..!, हमे ऐसे ही पुजा करनी है..! ये ले, बदन पौँछना है तो पौँछ ले..!" ये कहते हुवे रुपा ने अपनी कमर से तौलिये को खोलकर अब राजु को देते हुवे कहा और खुद दुसरी ओर मुँह करके खङी हो गयी।
अपने गीले बदन को तौलिये से अच्छे से पौँछने के बाद राजु ने अब अपनी कमर पर उसे बाँध लिया और...
ह्.हो्..हो गया... जीज्जी्... राजु ने अब घुमकर रुपा की ओर देखते हुवे कहा जिससे...
रुपा अब उसके पास आकर खङी हो गयी। उसने हाथो अब से ना तो अपनी चुँचियो को छुपाने की कोशिश की और ना ही अपनी चुत को। वो ऐसे ही एकदम नँगी उसके पास आकर खङी हो गयी थी जिससे राजु ने उपर से नीचे तक अब एक नजर उसके पुरे बदन पर डाली, मगर फिर उसकी नजरे रुपा की जाँघो के बीच जमकर रह गयी...
रुपा को भी मालुम था की राजु की नजरे अब कहाँ पर है, मगर जान रही थी की वैसे ही उसे राजु को उसे अपना सब कुछ खोलकर दिखाना है इसलिये उसने अब हाथो से तो अपनी चुत व चुँचियो को छुपाने की कोशिश नही की, मगर नारी लज्जा के वश स्वतः ही उसका एक पैर दुसरे पैर के आगे आ गया और दोनो जाँघो को भीँचकर उसने अब अपनी चुत को छिपाने की कोशिश की।
रुपा के अपनी जाँघो के भीँच लेने से उसकी चुत तो दोनो जाँघो के बीच छिप गयी थी मगर एकदम दुधिया सफेद गोरी चिकनी चुत के आस पास के बालो के कारण चुत का फुला हुवा त्रिकोण अब भी दिखाई देता रहा मगर रुपा ने उसकी अब कोई परवाह नही की और...
"हो गया तो चल अब कमरे जाकर हमे दीया भी जलाना है..! और ये मुझे दे..!" ये कहते हुवे रुपा ने अब
राजु से तौलिये को लेकर वापस थैले मे रख दिया और
उसे अपने साथ पास के ही एक कमरे मे लेकर आ गयी...
Nice update broखैर पहाङी के उपर पहुँचकर पहले तो दोनो भाई बहन ने हैण्ड पम्प से पानी पिया फिर वही पर बैठकर आराम करने लगे। दिन तो ढल गया था मगर पुरी तरह से रात नही हुई थी इसलिये रुपा ने सोचा की वो रात होने के बाद नहा लेँगे ताकी अन्धेरे मे उसे राजु के सामने इतना अधिक शर्मिंदा ना होना पङे इसलिये कुछ देर आराम करने के बाद..
रुपा: चल पहले खाना खा लेते है, फिर नहाकर पुजा कर लेँगे...
राजु: हाँ.. हाँ.. जीज्जी बहुत भुख भी लगी है चलो पहले खाना खा लेते है..!" राजु ने भी हामी भरते हुवे कहा और थैले से खाना बाहर निकालकर रख लिया।
दोनो भाई बहन ने जब तक खाना खाया तब तक रात तो हो गयी मगर रुपा ने जैसा सोचा था ये उसके एकदम उलट हो गया, क्योकि वो चाँदनी रात थी। पहले थोङा बहुत अन्धेरा भी था मगर चाँद के निकलते ही इतना अधिक उजाला हो गया की सब कुछ एकदम साफ साफ नजर आने लगा, उपर से जो हैण्ड पम्प था वो भी एकदम खुले मे था।
वैसे तो चारो ओर काफी पेङ पौधे थे जिससे उनके नीचे थोङा बहुत अन्धेरा था मगर हैण्ड पम्प के आस पास एक भी पेङ नही था जिस कारण हैण्ड पम्प के पास और भी अधिक उजाला फैल गया था। रुपा भी अब क्या करती। एक बार तो उसने सोचा की कपङे पहने पहने ही नहा ले मगर एक तो वो दुसरे कपङे लेकर नही आई थी उपर से उसने सोचा की वैसे भी उसे राजु के साथ नँगी होकर दीया भी जलाना है इसलिये कुछ देर तो वो ऐसे वही बैठे बैठे कुछ सोचती सा रही फिर...
"चल राजु अब नहा ले..! नहाकर हमे पुजा भी करनी है..!" रुपा ने गहरी साँस लेते हुवे कहा और उठकर खङी हो गयी।
राजु भी बचे हुवे खाने को वापस थैले मे रखकर खङा हो गया था इसलिये रुपा अब उसका हाथ पकङे पकङे उसे हैण्ड पम्प पर ले आई और...
"चल तु नहा, मै पम्प को चलाती हुँ..!" रुपा ने पम्प के हैण्डल को पकङते हुवे कहा जिससे..
"म्.म.मै..क्यो..? पुजा तो तुमको करनी है ना..!" राजु ने हङबङाते हुवे कहा।
रुपा: नही हम दोनो को साथ मे करनी है।
राजु: पर मैने कच्छा नही पहना और दुसरे कपङे भी नही लाया..
रुपा: तो क्या हुवा..? ऐसे ही नहा ले..!
राजु: न्.न्. नही पहले तुम नहा लो...
रुपा: याद नही माँ ने क्या कहा था, किसी काम के लिये मना नही करना..? चल अब चुपचाप नहा ले..!
रुपा ने अब थोङा जोर देते हुवे कहा जिससे..
राजु: तो पहले तुम नहा लो ना..! मै बाद मे नहा लुँगा..!"
रुपा को मालुम था की वो ऐसे नही मानेगा, क्योंकि उसके सामने नहाने मे वो शरमा रहा है इसलिये रुपा ने अब खुद ही पहले नहाने की सोची, मगर राजु क्या उसे खुद भी राजु के सामने अपने कपङे उतारने मे शरम आ रही थी इसलिये वो घुमकर अब राजु की ओर पीठ करके खङी हो गयी। वो अभी भी राजु का हाथ पकङे हुवे थी इसलिये एक हाथ से उसे अब अपने कपङे उतारने मे दिक्कत महसूस हुई तो उसे याद आया की बाबा जी वाली भस्म को खाने के बाद चाहे तो वो राजु के हाथ को छोङ सकती है।
जैसा की उसे लीला ने बताया था वैसे भी नहाने के लिए उसे अपने कपङे उतारने से पहले फकीर बाबा वाली उस भस्म को खाना है, ताकी वो जिन्न उन्हे कोई नुकसान ना पहुँचा सके...इसलिये रुपा अब तुरन्त राजु के पास से थैला लेकर उसमे जो टोटके का सामान रखा हुवा था उसमे से काले कपङे मे बन्धी वैद जी वाली दवा को निकाल लिया जो की लीला ने उसे फकीर वाबा की भस्म बताकर दिया था।
रुपा ने उस कपङे मे बँधी आधी दवा को चुटकी मे भरकर पहले तो खुद खा लिया, फिर बाकी की दवा को राजु के मुँह मे दे दी जिससे.....
"उम्मह्..! ये क्या है जीज्जी... बङा ही अजीब स्वाद है इसका..? उम्म्.क्या खिला दिया..?" राजु ने गन्दा सा मुँह बनाते हुवे कहा जिससे...
"ऐसे नही कहते..! बाबा जी की भस्म है चुपचाप खा ले..! और अब चाहे तो हाथ भी छोङ दे..!" रुपा ने दवा वाले खाली कपङे को अब वापस थैले मे रखते हुवे कहा और उसके हाथ को छोङकर हैण्ड पम्प के पास जाकर राजु की ओर पीठ करके खङी हो गयी।
अब नहाने के लिये अपने कपङे उतारने से पहले रुपा ने एक बार तो घुमकर राजु की ओर देखा, फिर दोनो हाथो से अपने सुट को नीचे से पकङकर उसे उपर की ओर गर्दन से निकालकर नीचे जमीन पर रख दिया, सुट के बाद उसने ब्रा को भी खोलकर अब सुट के उपर ही रख दिया जिससे राजु की आँखे अब फटी की फटी रह गयी और उसके लण्ड मे हवा सी भरती चली गयी।
रुपा दुसरी ओर मुँह किये थी इसलिये राजु के सामने रुपा की नँगी पीठ थी मगर चाँद की चाँदनी मे रुपा की एकदम कोरे कगज सी दुधिया सफेद व गोरी चिकनी पीठ अलग ही चमक रही थी। रुपा ने एक हाथ से अपनी चुँचियो को ढक कर अब एक बार फिर से पहले तो थोङा सा घुमकर राजु की तरफ देखा फिर अपनी शलवार का नाङा भी खोल दिया जिससे राजु की साँसे उपर की उपर और नीचे की नीचे रह गयी..
शलवार के साथ रुपा ने अपनी पेन्टी को भी निकालकर बाकी के कपङो के उपर ही रख दिया और एकदम नँगी हो गयी। राजु के सामने रुपा की एकदम गोरी चिकनी नँगी पीठ व उसके उभरे हुवे कूल्हे थे जिसे देख मानो वो साँस लेना ही भुल गया। राजु के समाने नँगी होकर रुपा को अब जोरो की शरम तो आ रही थी मगर फिर भी एक हाथ से अपनी चुँचियो को तो दुसरे हाथ से अपनी चुत को ढकर वो राजु की तरफ घुम गयी...
राजु एकटक उसे जोरो से घुरे जा रहा था जिससे शरम के मारे रुपा सिमट सी रही थी मगर फिर भी वो हैण्ड पम्प के नीचे आकर बैठ गयी। नीचे बैठकर उसने अब नीचे अपनी चुत वाले हाथ को तो हटा लिया मगर दुसरे हाथ से अपनी चुँचियो को छुपाये रही और..
"चल पम्प चला ..!" उसने राजु की ओर देखते हुवे धीरे से कहा मगर राजु होश मे ही कहा था जो वो ये सुनता। वो तो बस बिना पलके झपकाये उसके कोरे कागज सफेद नँगे बदन को ही देखे जा रहा था। राजु के ऐसे देखने से रुपा को शरम भी आ रही थी और उस पर गुस्सा भी इसलिये...
"ओ्ये्..!देख क्या रहा है..? आँखे नही बन्द कर सकता तु..? बेशर्म..! चल पम्प चला अब..!" रुपा ने गुस्सा सा करते हुवे थोङा जोरो से कहा जिससे वो अब हङबङा सा गया और...
"अ्. ह्.हाँ..हाँ..... जीज्जी..." करते हुवे हैण्ड पम्प चलाने लग गया।
हैण्ड पम्प के चलते ही रुपा ने पहले तो घुमकर अपनी पीठ को ही गीला किया, मगर बाकी के बदन को गीला करने के लिये वो राजु ओर ही मुँह करके बैठ गयी। अब ऐसे एक हाथ से तो वो नहा नही सकती थी इसलिये मजबुरन उसने अपनी चुँचियो पर से भी अपना हाथ हटा लिया। वो कुछ देर तो शरम से सिमटी सिमटी सी रह मगर वो जानती थी की दीया जलाते समय उसे राजु के सामने एकदम नँगा ही रहना है, अभी नही तो कुछ देर बाद राजु को उसका सब कुछ देख ही लेना है ये सोचकर उसने भी शरमाना छोङ दिया और अपनी चुँचियो पर से हाथ हटाकर नहाने लगी।
चुँचियो पर से हाथ हटाते ही उसकी किसी बङे से सेब जितनी एकदम ठोस भरी हुई चुँचिया राजु के समाने झुल सी गयी जिन्हे देख राजु एकदम सुन्न सा हो गया, कागज के जैसे एकदम गोरी सफेद बेदाग चुँचियाँ और उन पर एक रुपये के जितना बङा गहरे भुरे रँग का घेरा, व घेरे के बीचो बीच सुपारी के जितने बङे हल्के भुरे रँग निप्पलो को देख किसी के मुँह मे भी पानी आ जाये, मगर राजु पर इसका उल्टा असर हुवा। वो अपने जीव मे पहली बार नँगी चुँचियाँ देख रहा था इसलिये चुँचियो को देख उसका गला एकदम सुख गया तो नीचे से उसके लण्ड ने पैन्ट के अन्दर ही अन्दर पानी की लार सी छोङना शुरु कर दिया...
उसने पहले भी चौराहे वाले टोटके के समय अपनी जीज्जी को नँगी देखा था मगर उस समय रुपा ने अपनी चुत व चुँचियो को छुपा लिया था इसलिये रुपा को अब इस तरह एकदम नँगी देखकर राजु का लण्ड उसके पजाम को ही फाङकर बाहर आने को हो गया था तो पानी छोङ छोङकर उसने आगे से राजु के पजामे को भी पुरा गीलाकर दिया था मगर राजु को अब ये होश ही कहा था। वो तो बस आँखे फाङे रुपा को ही देखे जा रहा था। नहाते नहाते बीच बीच मे रुपा कभी कभी राजु की ओर भी देख ले रही थी, जो की आँखे फाङे अब भी बस उसे देखे ही जा रहा था...
उसके ऐसे देखने से रुपा को उस पर हँशी भी आ रही थी और शरम भी..! जिससे उसे एक अजीब सा ही अहसास सा हो रहा था, जो की अपने जीवन मे वो पहली बार महसूस कर रही थी। अपने छोटे भाई के ऐसे उसे नँगा नहाते देखने से रुपा के दिल मे गुदगुदी सी हो रही थी तो साथ ही वो अपनी चुत मे भी हल्की हल्की सरसराहट सी महसूस कर रही थी। शरम के मारे रुपा ने अब नहाने के नाम पर बस अपने पुरे बदन को ही गीला किया और राजु की ओर पीठ करके खङी हो गयी।
खङी होकर उसने पहले तो अपने गीले बालो को इकट्ठा करके उनका जुङा सा बनाया फिर हाथो से ही अपने गीले बदन को हल्का सा पौँछकर...
"तौलिया दे मुझे..." रुपा ने अब हल्का सा पीछ घुमकर राजु की ओर देखेते हुवे कहा मगर राजु अभी भी एकटक उसे ही देखे जा रहा था तो साथ ही वो अभी भी हैण्ड पम्प को चलाये जा रहा था जिसे देख रुपा की हँशी छुट गयी और..
"ओ्य्..! बेशर्म..! ये क्या कर रहा है..? चल इसे बन्द कर और थैले से निकालकर तौलिया दे मुझे..?" रुपा ने अब हँशते हुवे ही थोङा जोर से कहा जिससे हङबङाकर राजु अब...
"ह्.ह्.हा्.आ्.आ्.व्.वो्. ज्.ज्जीज्जी्...जी..!" करके रह गया और जल्दी से थैले से तौलिया निकालकर रुपा की ओर फेँक दीया।
रुपा ने भी अब दुसरी ओर मुँह किये किये ही पहले तो तौलिये से अपने गीले बदन को पौँछा, फिर उसे अपनी कमर पर लपेटकर आगे पीछे से अपनी चुत व कुल्हो को को तो तौलिये से छुपा लिया और एक हाथ से अपनी चुँचियो को छुपाकर...
"चल तु भी नहा ले अब, ला हैण्ड पम्प मै चलाती हुँ..." रुपा ने अब राजु के पास आकर दुसरे हाथ से हैण्ड पम्प के हैण्डल को पकङते हुवे कहा जिससे..
"म्.म्.मै..क्यो..? वो पुजा तो आपको करनी है ना..!" राजु ने हङबङाते हुवे कहा।
रुपा: मैने बताया ना हम दोनो को ही साथ मे दीया जलाना इसलिये चल अब तु भी नहा ले..!
राजु: पर मैने कच्छा नही पहना..?
रुपा: तो क्या हुवा..? मै भी तो नहाई हुँ, तु भी नहा ले उसके बाद ऐसे ही हमे पुजा भी करनी है, चल अब जल्दी कर..!
राजु: पर्.व्.वो्. जीजजी...
रुपा: पर वर कुछ नही याद नही माँ ने क्या कहा था जैसे जैसे मै कुहुँ तुझे वैसे ही करना है.. चल अब जल्दी से कपङे उतार और नहा ले..!
राजु ने अब एक बार तो रुपा की ओर देखा फिर धीरे से अपनी कमीज को उतार कर रुपा के कपङो के साथ ही रख दिया..! रुपा को नँगे नहाते देख राजु का लण्ड अभी भी एकदम तना खङा था जिससे रुपा से उसे डर भी लग रहा था और शरम भी आ रही थी इसलिये कमीज को उतारक वो रुक गया और रुपा की ओर देखने लगा। रुपा भी उसकी ओर ही देख रही थी इसलिये...
"अब क्या हुवा जल्दी कर हमे पुजा भी करनी है..?" उसने थोङा खिजते हुवे कहा।
"क्.क.कुछ नही..!" कहते हुवे राजु ने अब धीर से अपने पजामे को भी उतार कर रख दिया। सही मे उसने नीचे कच्चा नही पहना हुवा था। उसका लण्ड अभी भी एकदम सीधा तना खङा था इसलिये दोनो हाथो से अपने लण्ड को छुपाकर वो अब धीरे धीरे रुपा की ओर घुम गया। रुपा उसे ही देख रही थी इसलिये वो अब...
"व्.व.वो..जीज्जी म्.म्..!"करने लगा। अपने छोटे भाई को अपने लिये उत्तेजित हुवा देख रुपा को शरम भी आ रही थी और हँशी भी। जिस तरह से राजु उसे नहाते देख रहा था उससे राजु की हालत वो समझ सकती थी।
उसे मालुम था की जिन परिस्थितियों से वो गुजर रहा है उससे ये होना लाजमी है, क्योंकि दिनभर राजु के साथ रहकर वो खुद भी तो अजीब सा ही महसूस कर रही थी।
जब राजु को बस अपने पास मे खङे होकर पिशाब करने से ही उसकी चुत मे पानी सा भर आ रहा था तो, राजु तो उसे कब से पुरी नँगी देख रहा इसलिये उसकी इस हालत पर रुपा को हँशी तो आ रही थी मगर फिर भी...
"चल ठीक है..! ठीक..! मै दुसरी ओर मुँह कर लेती हुँ, तु नहा ले...!" ये कहते हुवे रुपा ने अपना मुँह दुसरी ओर कर लिया और एक हाथ से अपनी चुँचियो को ढके ढके दुसरे हाथ से हैण्ड पम्प को चलाने लगी जिससे राजु अब चुपचाप हैण्ड पम्प के नीचे आकर नहाने लग गया। पम्प को चलाते चलाते बीच बीच मे अनायास ही रुपा की नजरे राजु की ओर भी चली जा रही। नहाने के लिये राजु ने अब अपने हाथ लण्ड पर से हटा लिये थे इसलिये राजु के एकदम तने खङे लण्ड को देख रुपा को भी अपनी चुत मे सुरसुरी से महसूस होने लगी।
खैर कुछ देर बाद ही राजु भी नहाकर रुपा की ओर पीठ करके खङा हो गया और...
"व्. वो्. ज्. जी्ज्जी्.ई.. त्.तौलिया्..!" उसने अब एक बार तो गर्दन घुमाकर पीछे रुपा की ओर देखते हुवे कहा मगर उसने देखा की तौलिये को रुपा अपनी कम पर लपेटे है तो वो ऐसे ही अपने कपङे उठाकर पहनने लगा जिससे...
"अभी कपङे नही पहनने..!, हमे ऐसे ही पुजा करनी है..! ये ले, बदन पौँछना है तो पौँछ ले..!" ये कहते हुवे रुपा ने अपनी कमर से तौलिये को खोलकर अब राजु को देते हुवे कहा और खुद दुसरी ओर मुँह करके खङी हो गयी।
अपने गीले बदन को तौलिये से अच्छे से पौँछने के बाद राजु ने अब अपनी कमर पर उसे बाँध लिया और...
ह्.हो्..हो गया... जीज्जी्... राजु ने अब घुमकर रुपा की ओर देखते हुवे कहा जिससे...
रुपा अब उसके पास आकर खङी हो गयी। उसने हाथो अब से ना तो अपनी चुँचियो को छुपाने की कोशिश की और ना ही अपनी चुत को। वो ऐसे ही एकदम नँगी उसके पास आकर खङी हो गयी थी जिससे राजु ने उपर से नीचे तक अब एक नजर उसके पुरे बदन पर डाली, मगर फिर उसकी नजरे रुपा की जाँघो के बीच जमकर रह गयी...
रुपा को भी मालुम था की राजु की नजरे अब कहाँ पर है, मगर जान रही थी की वैसे ही उसे राजु को उसे अपना सब कुछ खोलकर दिखाना है इसलिये उसने अब हाथो से तो अपनी चुत व चुँचियो को छुपाने की कोशिश नही की, मगर नारी लज्जा के वश स्वतः ही उसका एक पैर दुसरे पैर के आगे आ गया और दोनो जाँघो को भीँचकर उसने अब अपनी चुत को छिपाने की कोशिश की।
रुपा के अपनी जाँघो के भीँच लेने से उसकी चुत तो दोनो जाँघो के बीच छिप गयी थी मगर एकदम दुधिया सफेद गोरी चिकनी चुत के आस पास के बालो के कारण चुत का फुला हुवा त्रिकोण अब भी दिखाई देता रहा मगर रुपा ने उसकी अब कोई परवाह नही की और...
"हो गया तो चल अब कमरे जाकर हमे दीया भी जलाना है..! और ये मुझे दे..!" ये कहते हुवे रुपा ने अब
राजु से तौलिये को लेकर वापस थैले मे रख दिया और
उसे अपने साथ पास के ही एक कमरे मे लेकर आ गयी...