राजु के रुपा के उपर आ जाने से दोनो की उत्तेजक गर्म साँसे फिर से एक दुसरे की साँसो मे समाने लगी थी जो की उनके बदन की आग को और भी भङकाने लगी। रुपा के मुकाबले राजु बदन हल्का था मगर फिर भी रुपा की दोनो चुँचियाँ उसकी छाती के भार से दब सी गयी थी। हालांकि उसकी चुँचियो के निप्पल अब भी सुपाङी के जैसे एकदम सख्त तने खङे रहे जो की राजु को भी अपने सीने मे चुभते से महसूस हो रहे थे, मगर अपनी जीज्जी नर्म मुलायम नँगे बदन के स्पर्श से ही उसकी हालत खराब हो गयी थी जिससे उसका लण्ड अब और भी जोरो से झटके से खाने लगा तो वही उसमे से पानी सा रीश रीश कर रुपा की पुरी चुत के उभार पर फैलने लगा...
रुपा को भी अपनी चुत के उभार पर राजु के लण्ड का कम्पन्न व झटके साफ महसूस हो रहे थे तो, उसके लण्ड से निकलकर अपनी चुत पर फैल रहे गीलेपन का भी पुरा अहसास था। राजु क्या..? खुद रुपा की चुत भी तो उत्तेजना के मारे टपक रही थी जिससे उसका दिल तो कर रहा था की राजु अपने लण्ड को उसकी चुत मे घुसाकर उसकी जलती सुलगती चुत को एकदम रौँध डाले मगर इसके लिये राजु को कुछ मालुम नही था.. और रुपा की शरम हया के मारे उससे कुछ कहने की या खु्द से ऐसा कुछ करने की हिम्मत नही हो रही थी..
राजु को ये तो मालुम था की इस तरह लङकी या औरत के उपर लेटकर चुदाई की जाती है, मगर ये नही मालुम था की उसके लिये लण्ड को कैसे और कहाँ घुसाना होता है। रुपा के उसे अपने उपर सुला लेने से राजु ने तो अब यही समझा की उसकी जीज्जी उससे चुदाना चाह रही, मगर उसे ये समझ नही आ रहा था की वो अपने लण्ड को घुसाये तो कहाँ घुसाये, इसलिये वो ऐसे ही अपने लण्ड को रुपा की चुत के उभार पर दबाव सा बना रहा था...
उत्तेजना के मारे उसकी साँसे जोरो से चल रही थी जो की सीधे रुपा के चेहरे से टकरा रही थी। उसके मुँह से निकलती गर्म गर्म उत्तेजित साँसे व अपनी चुत के उभार पर झटके से खाता राजु का एकदम कङा व कुँवारा लण्ड रुपा को भी पागल सा बना रहा था जिससे रुपा को अपना बदन टुटता सा महसूस हो रहा था। उत्तेजना के मारे दोनो का ही बुरा हाल था मगर रुपा जहाँ लोक लाज की शरम किये पङी थी, तो राजु को कुछ मालुम नही थी की वो अब कैसे क्या करे..?
रुपा ने जो उसके लण्ड को अपने मुँह मे लेकर उसे अधुरे मे ही छोङ दिया था उसकी वजह से पहले ही राजु का बुरा हाल था, उपर से उसे अब अपनी जीज्जी
के नर्म मुलायम रेशमी से बदन की नर्मी व उसकी चुत की गर्मी अपने लण्ड पर महसूस तो हो रही थी मगर उसे ये मालुम नही पङ रहा था की वो अपने लण्ड को आखिर घुसाये तो कहाँ घुसाये, जिससे उत्तेजना व घुस्से के मारे उसका लण्ड किसी साँप के जैसे अपने बिल मे घुसने के लिये जोरो से फुँफकार सा रहा था...
उसे अपने लण्ड की नशे फटती सी महसुस हो रही थी जो की राजु से बर्दाश्त नही हो रहा था। उसे ये तो मालुम नही पङ रहा था की वो अपने लण्ड को कैसे और कहाँ घुसाये, इसलिये उत्तेजना के मारे उसने अपने कूल्हो से जुम्बीस सी करके रुपा की चुत के उभार पर ही अब अपने लण्ड को घीसना शुरु कर दिया, रुपा भी हल्के हल्के मसकने सा लगी। रुपा को भी राजु की हालत का अहसास था, राजु क्या..? उत्तेजना के मारे खुद उसकी हालत भी खराब थी जिससे रुपा भी अब एकदम जङ सी होकर रह गयी...
राजु का इस तरह अपने लण्ड को रुपा की चुत पर घीसना रुपा को भी कही ना कही थोङी बहुत राहत सी पहुँचा रहा था जिससे वो भी राजु से ना तो कुछ बोल पा रही थी और ना ही उसे रोक पा रही थी, ये कुछ तो बुढे वैद की दवा का असर था और कुछ राजु के एकदम कङे कुँवारे लण्ड का, की राजु के नीचे लेटकर रुपा का खुद पर ही अब कोई बस नही चल रहा था, इसलिये उसने भी अब खुद ही धीरे से पैरो को फैलाकर राजु को अपनी जाँघो के बीच ले लिया तो वही अपनी गर्दन को एक ओर घुमाकर आँखे बन्द करके वो एकदम शाँत व ढीला पङ गयी, मानो जैसे अपने आपको राजु के हवाले कर वो भी उससे अब कुछ चाह रही हो...
रुपा के अब राजु को अपनी जाँघो के बीच ले लेने से उसका लण्ड एकदम ठीक रुपा की चुत की फाँको से लग गया था जिससे रुपा की चुत की तपिस राजु को अब सीधे अपने लण्ड पर महसूस हुई, तो उत्तेजना के वश उसने भी जोरो से अपने लण्ड को उसकी चुत की फाँको के बीच घिसना शुरु कर दिया..
उसने पहले तो हल्के हल्के बस अपने कुल्हो से ही जुम्बीस सी करके अपने लण्ड को उसकी चुत की चुत के उभार पर ही घीसना शुरु किया था, मगर रुपा के उसे अब अपनी जाँघो के बीच ले लेने से उसका लण्ड सीधे ही उसकी चुत की फाँके को खोलकर अन्दर के नर्म मुलायम भाग पर घीसने लगा जिससे उसे अब अपनी जीज्जी की चुत की तपिस सीधे अपने लण्ड पर महसूस हुई तो वो भी धीरे से वो अपने हाथ रुपा के कँधो पर ले आया और दोनो हाथो से उसके कन्धो को पकङकर अब जल्दी जल्दी व जोरो से उपर नीचे हो होकर उसकी चुत की फाँको के बीच के वाले नर्म मुलायम भाग पर ही अपने लण्ड को घीसने लग गया जिससे रुपा की हालत अब और भी खराब हो गयी...
इस तरह अपने बदन को आगे पीछे करने से राजु का पुरा शरीर ही रुपा के नँगे बदन से घीसने लगा था जिससे राजु का मझा तो दुगुना हो गया, मगर इससे रुपा की हालत और भी खराब होने लगी, क्योंकि इस तरह उपर नीचे होने से राजु का लण्ड तो नीचे से रुपा की चुत की फाँको के बीच रगङ मार ही रहा था, उपर से उसकी नँगी चुँचियाँ भी अब उसकी छाती से चटनी की तरह पीसने लगी जिससे...
ऊह्ह्..ईईश्श्.. बस्स्...
ऊऊ्ह्ह्ह...बस्स्स्..ईईईश्श्श्...! कहकर रुपा सिसकने सा लगी...
वैसे तो रुपा का दिल भी अब चाह रहा था की कोई उसे ऐसे ही रगङे मसले व अपना लण्ड उसकी चुत मे घुसाकर उसे एकदम रौँध डाले, मगर राजु ऐसे ही अपने लण्ड को उसकी चुत के उभार पर ही घीसे जा रहा था। राजु को ना तो ये मालुम था की चुत मे लण्ड कहाँ और कैसे घुसाते है और ना ही वो अब ये जानने की कोशिश मे था, वो बस कैसे भी करके अपने लण्ड मे उठ रहे इस ज्वार को शाँत करना चाह रहा था, मगर रुपा ये अच्छे से जान रही थी की राजु अपने लण्ड को कहाँ घीस रहा है..?
हालांकि बीच बीच मे उसका लण्ड नीचे रुपा की चुत की फाँको के बीच कभी कभी घुसने की भी कोशिश सी कर रहा था जिससे...
"ईईश्श्श्..बस्स्...!" की सी आवाज निकालकर रुपा सुबक सी पङती, तो राजु को वही के वही पकङकर रोकने की भी कोशिश करती, मगर शरम हया के मारे राजु से कुछ कह नही पा रही थी, क्योंकि उसकी चुत पर राजु के लण्ड से निकलते रश व खुद रुपा की चुत के रश की इतनी चिकनाई फैली हुई थी की राजु का लण्ड उसकी चुत के मुँह मे कभी कभी अटक सा तो रहा था, मगर चिकनाई के कारण वो बार बार फिसल जा रहा था...
आखिर बर्दाश्त की भी एक हद होती है, और रुपा की वो हद पार होती जा रही थी, क्योंकि राजु के साथ ये टोटके करते करते उसका पहले ही उत्तेजना के मारे बुरा हाल था, उपर से उसने फकीर बाबा की भस्म जानकर जो बुढे वैद की दवा खाई थी उसने रुपा की चुत मे एक आग सी भर दी जिसे राजु अब उसकी चुत की फाँको के बीच ठीक उसके प्रवेशद्वार से अपने लण्ड से घिसकर और भी भङका रहा था जिससे रुपा को अपनी चुत एकदम जलती सुलगती सी महसूस हो रही थी जो की वो अब बर्दाश्त नही कर पा रही थी...
अब शरम हया के मारे राजु से सीधे सीधे तो उसकी कुछ कहने की हिम्मत नही हो रही थी इसलिये ऐसे ही...
ईईश्श्श्..बस्स्...
ईईईश्श्श्.. ओह्ह्.य्.य.. बस्स्स्स्...! कहते हुवे राजु को पकङने के बहाने उसे नीचे की तरफ धकेलकर, तो कभी खुद से ही अपनी कमर को उपर नीचे और दाँये बाये करके रुपा अब खुद से ही ये कोशिश सी करने लगी की उसकी चुत की फाँको पर रगङ खाता राजु का लण्ड सीधे अब उसकी चुत मे ही उतर जाये...
वो उपर उपर से तो दिखावे के लिये राजु को रोक सा रही थी, मगर अपनी कमर को उपर नीचे व दाँये बाँये हिलाकर अन्दर ही अन्दर वो खुद ये चाह रहा था की कैसे भी करके वो राजु के लण्ड को अपनी चुत मे निँगल जाये, जिससे अब कुछ तो राजु अपने लण्ड को ठीक रुपा की चुत की फाँको के बीच घीसे जा रहा था और कुछ रुपा ने खुद से ही थोङा बहुत उपर नीचे हो होकर ये कोशिश की, की अबकी बार जैसे ही राजु के लण्ड का सुपाङा उसकी चुत की फाँको के बीच घीसते हुवे उपर की ओर जाने लगा, रुपा ने खुद ही अपनी कमर को उचकाकर उसके लण्ड के सुपाङे के आगे अपनी चुत के मुँह को लगा दिया जिससे राजु के लण्ड का सुपाङा एक बार तो उसकी चुत के प्रवेशद्वार मे थोङा सा अटका मगर गीली चुत होने के कारण...
. .हल्की "फच्च्... की सी आवाज करके एक ही झटके मे उसका आधे से ज्यादा लण्ड रुपा की चुत मे उतर गया जिससे....
....ईश्श्श्श्..अ्.आ्ह्ह्ह्....ओ्ह्.ये्ऐ..रा्जु्उ्ह्ह्ह... की सुबकी सी लेते हुवे अपने हाथ पैरो को समेटकर राजु से एकदम कसकर लिपट सा गयी मानो जैसे जन्मो से भुखी उसकी चुत को आज पहली बार लण्ड मिला हो...
उसके दोनो पैर राजु के पैरो मे फँस गये थे तो उसके हाथ भी राजु की पीठ पर लिपट गये। राजु के लण्ड से मिले इस मीठे से दर्द व आनन्द के वश रुपा के नाखुन राजु की पीठ मे गङ से गये थे तो वही रुपा ने उसे अपनी बाँहो मे भीँचकर उसकी गर्दन व गालो पर चुम्बनो की झङी सी लगा दी जिससे अब एक बार तो राजु कुछ समझ ही नही आया की आखिर ये हुवा क्या..? मगर राजु का लण्ड रुपा की चुत की सँकरी दीवारो को एकदम घीसते हुवे अन्दर घुसा था..
हालांकि चुत से बहते कामरश के कारण रुपा की चुत की दिवारे एकदम चिकनी हो रखी थी, मगर फिर भी उसकी चुत एकदम तँग व इतनी कसी हुई थी की राजु का लण्ड उसकी चुत की दीवारो से एकदम रगङते रगङते अन्दर घुसा था। राजु को नही मालुम था की ये क्या हुवा, क्योंकि उसका लण्ड को को पहली बार गर्म व गीली चुत की नर्मी व गर्मी का मजा मिला था। अभी तक वो इस सुख से अनजान था। उसका ये पहला अवसर था जब उसके लण्ड को चुत की एकदम तँग व मखमली चिकनी गहराई को महसूस कर रहा था।
लण्ड घुसाना तो दुर इससे पहले उसने कभी चुत देखी तक नही थी, मगर रुपा की चुत की दिवारो की इतनी कसी हुई व एकदम चिकनी रगङ को अपने लण्ड पर महसूस करके राजु को भी एक अलग ही सुख मिला था इसलिये इस नये सुख व आनन्द के वश उसे ये तक अहसास नही हुवा की रुपा के नाखुन उसकी पीठ मे भी चुभे है। रुपा की चुत ने भी उसके लण्ड को एकदम जकङ सा लिया था जिससे राजु को ऐसा लग रहा था मानो उसके लण्ड को कसकर मुट्ठी मे भीँच लिया हो...
अन्दर से रुपा की चुत एकदम किसी आग की भट्टी की तरह सुलग सी रही थी तो वो चिकनाई से भी एकदम भरी पङी थी। उत्तेजना के कारण उसकी चुत की माँस पेसियो मे भी इतना सँकुचन हो रहा था की अन्दर ही अन्दर वो राजु के लण्ड को चुश सा रही थी जिसने राजु के मझे को दोगुना कर दिया था, जिससे शायद उसे भी समझ आ गया ये सब क्या हुवा और उसका लण्ड कहाँ और किस सँकरी गुफा मे घुसा है, इसलिये वो अब एक बार तो कुछ देर के लिये रुका, फिर वापस उसने धक्के लगाने शुरु कर दिये, मगर इस बार आगे पीछे होने की बजाय, वो सीधे चुदाई की मुद्रा मे अपने कुल्हो को उचका उचकाकर धक्के लगाने लगा जिससे उसका लण्ड रुपा की चुत की सँकरी गुफा को घीसते हुवे अन्दर बाहर होने लगा तो रुपा... ईश्श्.. ओ्ओ्ह्ह... राजुउ्ह्ह्ह...
.......ईश्श्श्.. आ्ह्ह्ह्....
......…..ईश्श्श्श्.. आ्ह्ह्ह्ह्..... करते हुवे जोरो से सिसकने लगी।
वो अभी भी राजु से एकदम कसके लिपटे हुवे थी और उसकी गर्दन व गालो को चुमे जा रही थी। वो राजु के पैरो मे अपने पैरो को फँसाकर उसे कसकर पकङे हुवे थी, तो एक हाथ उसकी गर्दन मे डालकर उसे कसकर अपनी चुँचियो से चिपका रखा था, मगर उसका दुसरा हाथ अब राजु के कुल्हो पर आ गया और उसकी गर्दन व गालो को चुमते हुवे राजु के कुल्हो व कमर को सहलाकर उसका अब जोश सा बढाने लगा...
राजु को पहली बार चुत को भोगने का सुख मिल रहा था इसलिये वो भी जोश मे आ गया। धीरे धीरे कर उसने अपना पुरा ही लण्ड रुपा की चुत मे उतार दिया और..
.....ईश्श्.. जिज्जीईह्ह्ह...
.......ईश्श्श्.. जिज्जीईईह्ह्ह्....
......…..ईश्श्श्श्..जिज्जीईईईह्ह्ह्ह्..... करते हुवे तेजी से धक्के लगाने लगा जिससे रुपा की सिसकीयाँ भी तेज हो गयी। उत्तेजना व आनन्द के वश उसने दोनो हाथो से राजु के मुँह को घुमाकर अपनी ओर कर लिया और उसके होठो को जोरो से चाटना चुशना शुरु कर दिया...
राजु का ये पहला अवसर था, उसे इन सब बातो का ज्यादा कोई ज्ञान नही था, मगर रुपा के उसके होठो को चुशने चाटने से रुपा के मुँह के थुक व लार उसके मुँह मे घुलने लगे तो उसे एक अलग ही अहसास होने लगा, क्योंकि रुपा के उसके होठो को चुशने चाटने से राजु के सुखे सूखे होठ व मुँह का स्वाद भी एकदम चिकनाई भरा होने लगा था इसलिये वो भी अब नीचे से धक्के लगाते हुवे कभी कभी रुपा के होठो को अपने होठो से दबाने की कोशिश करने लगा, हालांकि रुपा उसे ये मौका नही दे रही थी, वो खुद ही उसके होठो को चुसे चाटे जा रही थी..
राजु हाथ से घीसकर तो अपने लण्ड को काफी बार पानी निकाला था मगर चुत की इतनी तँग सँकरी व एकदम चिकनाई भरी घीसाई का उसे पहली बार सुख मिल रहा था इसलिये वो अब कुछ ही देर बाद ही वो पुरे जोश मे आ गया और अपनी पुरी तेजी व ताकत से धक्के लगाकर जल्दी जल्दी अपने लण्ड को रुपा की एकदम तँग चुत की सँकरी दिवारो से घीसने लगा। उसका चर्म करीब आ गया था इसलिये आठ दस धक्के तो उसने ऐसे ही अपनी पुरी ताकत व तेजी से लगाये और फिर...
.....ईश्श्.. जिज्जीईह्ह्ह...
.......ईश्श्श्.. जिज्जीईईह्ह्ह्....
......…..ईश्श्श्श्..जिज्जीईईईह्ह्ह्ह्.....!"कहकर उसने रुपा के कन्धो को कस कर पकङ लिया और झटके से खा खाकर उसके लण्ड ने रुपा की चुत को वीर्य से भरना शुरुकर दिया...
रुपा का चर्म भी करीब ही था, मगर राजु उससे थोङा जल्दी चर्म पहुँच गया था। रुपा का पति कभी भी उसे चर्म तक पहुँचाने का सुख नही दे पाया था। वो बस आठ दस धक्को मे ही ढेर होकर सो जाता था। राजु का ये पहला अवसर था इसलिये वो रुपा को उसकी मँजिल के करीब तो ले आया था मगर रुपा से पहले ही ढेर होने लगा था। रुपा ने अब अपनी चुत मे झटके खा खा कर उसके लण्ड से निकलते गर्म गर्म वीर्य को महसूस किया तो उसे लगा कही राजु भी उसे बीच मे ही अधूरी ना छोङ दे इसलिये...
....ओ्.ओ्य्.ह्...
.........ईश्श्..आ्ह्ह्ह्..
...........ईश्श्श्.. आ्ह्ह्ह्....
........…..ईश्श्श्श्.. आ्ह्ह्ह्ह्..... जोर जोर की सिसकीयाँ सी लेते हुवे रुपा ने अब खुद ही अपने हाथ पैरो के सहारे राजु को हिला हिलाकर चार पाँच बार तो अपनी चुत की दिवारो को उसके लण्ड से घीसवाया, फिर थरथराकर वो भी झङना शुरु हो गयी...
उत्तेजना के जोश मे रुपा ने अब उपर से राजु को एकदम कसकर अपनी बाँहो मे भीँच लिया तो नीचे उसकी चुत की मांसपेशियों ने भी राजु के लण्ड को एकदम जकङ सा लिया और राजु के होठो को जोरो से चुमते चाटते वो गले से..
ईश्श्..ऊऊह्ह्..
..ईश्श्श्.. ऊऊऊह्ह्....
....ईश्श्श्श्.. ऊऊऊह्ह्ह्...की गर्राहट सी निकालते हुवे अपनी चुत से राजु के लण्ड को अन्दर ही अन्दर निचौङने सा लग गयी...
राजु का तो ये पहला अवसर था ही रुपा भी पहले कभी भी इस तरह लण्ड से रसखलित नही थी। उसका पति रसखलन तो दुर, उसे कभी उसकी मंजिल के करीब भी नही पहुँचा पाया था मगर आज वो अपने जीवन मे पहली बार राजु के लण्ड से रसखलित हो रही थी, इसलिये उसका ये रसखलन इतना उग्र था की जब उसने अपनी चुत से राजु के लण्ड से वीर्य का आखरी कतरा तक नही नीचौङ लिया। वो ऐसे ही सिसकियाँ लेते हुवे राजु से लिपटे रही और उसके लण्ड को अपनी चुत से निचौङती रही...