खैर जैसे भी करके वो अब राजु के लण्ड को हाथ से सीधा कर उस पर मुतने की कोशिश करने लगी, मगर राजु का लण्ड था की जो अब सीधा ठहर ही नही रहा था। उत्तेजना के वश वो झटके से खा रहा था जिससे बार बार वो रुपा के हाथ से छुटकर वापस उसके पेट के समान्तर खङा हो जा रहा था। रुपा उसे हाथ से पकङकर जैसे ही उसे सीधा करके उस पर मुतने की कोशिश करती वो उसके हाथ से छुटकर बार बार सीधे हो जा रहा था जिससे रुपा का पिशाब दोनो के पैरो पर ही गिरके रह जा रहा था जिससे...
"तु आराम से खङा रह ना..?" रुपा ने उसे अब डाटते हुवे उसके लण्ड को पकङे पकङे ही कहा। रुपा का इशारा राजु को अपने लण्ड को एक जगह रखने के लिये था, मगर इसमे बेचार राजु का भी क्या कसुर जो उसका अपने लण्ड पर कुछ जोर चलता। उत्तेजना के वश वो अपने आप ही झटके खा रहा था। एक बार तो उसने इतने जोर से झटका खाया की रुपा के हाथ से छुटकर उसके लण्ड ने रुपा की चुत के मुँह पर ही ठोकर मारी और चुत का मुँह खोलकर लण्ड के सुपाङे ने सीधा चुत मे ही घुसने की कोशिश की जिससे रुपा भी तो सुबक सी उठी, मगर फिर...
"तु नीचे बैठ..!" उसने राजु से दुर हटकर वापस एक हाथ से अपनी चुत तो दुसरे हाथ से उपर अपनी चुँचियो को छुपा लिया और झुन्झलाते हुवे कहा, जिससे राजु चुपचाप नीचे बैठ गया मगर वो उकडु (जैसे लङकियाँ पिशाबा करती है) बैठा था इसलिये...
"अब ये टाँगे तो सीधी कर..!" रुपा ने अब फिर से झुँनझुलाते हुवे कहा तो राजु भी चुपचाप नीचे मिट्टी मे कुल्हे टिकाकर पैर सीधे कर दिये और रुपा उसके दोनो ओर पैर करके खङी हो गयी, मानो वो उसके लण्ड की सवारी करने की तैयारी मे हो।
रुपा अभी भी दोनो हाथो से अपनी चुत व चुँचियो को छिपाये हुवे थी, मगर राजु के लण्ड को अपने पिशाब से धोने के लिये वो अब घुटनो को मोङकर अपनी चुत को उसके लण्ड के पास लेकर आई, तो उसने अपनी चुत वाले हाथ को हटा लिया और उस हाथ से राजु के लण्ड को पकङ लिया ताकी वो उसके लण्ड को अपने पिशाब से धो सके... जिससे राजु की नजरे अब उसकी चुत पर ही जमकर रह गयी... क्योंकि घुटनो को मोङ लेने से रुपा की जाँघे खूल गयी थी और उसकी माचिस की डिबिया के समान एकदम फुली हुई चुत अब राजु को साफ नजर आ रही थी...
अपने जीवन मे राजु पहली बार नँगी चुत देख रहा था और वो भी इतने करीब से, इसलिये कुछ देर तो उसे यकिन ही हुवा की चुत ऐसी होती है, क्योंकि मुश्किल से तीन उँगल का एक चीरा भर ही थी रुपा की चुत। मानो उसने जाँघो के जोङ पर कोइ छोटा सा चीरा लगा रखा हो। राजु ने अपने दोस्त गप्पु के साथ एक बार अश्लील किताब मे लङकी की चुत को देखा था जिसमे चुत की बङी बङी फाँके थी और चुत पर कोई बाल भी नही थे। वो एकदम गोरी चिकनी थी मगर रुपा की चुत बिल्कुल भी वैसी नही थी।
हालांकि रुपा के घुटनो को मोङ लेने से उसकी जाँघे थोङा खुल गयी थी जिससे उसकी चुत की फाँके भी खुलकर थोङा अलग अलग नजर आ रही थी, नही तो उसकी चुत जाँघो के जोङ पर लगा बस एक छोटा सा चीरा भर ही थी जिस पर ज्यादा तो नही मगर फिर भी हल्के हल्के और छोटे छोटे बाल थे। उत्तेजना के वश रुपा की चुत से चाशनी की लार के जैसे पारदर्शी सा रश भी बह रहा था जिससे उसकी चुत व जाँघे गीली हो रखी थी और चाँद की रोशनी मे वो चमकती साफ नजर आ रही थी, मगर रुपा ने अब इसकी कोई परवाह नही की। उसे बस अपना ये टोटका पुरा करना था।
राजु बङी ही उत्सुकता से आँखे फाङे रुपा की चुत को देखे जा रहा था। वो अभी भी इसी भ्रम मे था की उसकी जीज्जी उसके लण्ड को अपनी चुत मे घुसायेगी..., मगर रुपा ने अपनी चुत को उसके लण्ड के पास ले जाकर सीधे ही उस पर मुत की धार छोङकर उसे अपने हाथ से मल मलकर धोना शुरु कर दिया। अपने लण्ड पर रुपा के गर्म गर्म पिशाब के गिरने से व उसके नर्म नाजुक हाथ के ठण्डे स्पर्श से राजु तो जैसे अब हवा मे ही उङने लगा। उसकी साँसे फुल सी गयी तो उत्तेजना व आनन्द के वश उसके मुँह से भी...
"ईश्श्..ज्.ज्जिज्जी..ईश्श्...
...ईश्श्श्...
....ईश्श्श्श.." की सुबकियाँ सी भी फुटना शुरु हो गयी।
रुपा ने राजु के लण्ड को पहले तो उपर उपर से ही धोया, फिर सुपाङे की चमङी को पीछे करके उसके सुपाङे को भी बाहर निकाल लिया और चारो ओर से उसे हाथ से मल मलकर धोने लगी जिससे हल्की हल्की...
"ईश्श्..आ्ह्
...ईश्श्श्...आ्ह्
....ईश्श्श्श....आ्ह..." की सुबकियो के साथ अपने आप ही राजु की कमर भी हरकत मे आ गयी।
उत्तेजना के वश वो अपने कुल्हे उठा उठाकर रुपा के हाथ पर धक्के से मारने लगा, मानो वो उसके हाथ को ही चोद रहा हो जिससे रुपा को राजु पर अब हँशी भी आने लगी और शरम भी। उसने राजु के चेहरे की ओर देखा, तो वो आँखे मुदे था तो उसकी साँसे जोरो से चल रही थी। उस पर क्या बीत रही है ये वो अच्छे से से जान रही थी, क्योंकि राजु के लण्ड को हाथ मे पकङकर खुद रुपा की साँसे भी उखङ सी रही थी तो उसे भी अपनी चुत मे चिँटीयाँ सी काटती महसूस हो रही थी।
धीरे धीरे राजु के प्रति रुपा का भी मन अब बदल सा रहा था इसलिये उसने अब एक बार तो सोचा की वो राजु के लण्ड अपने हाथ से ठण्डा कर दे, ताकी उसकी चुत को अपने पिशाब से धोने के समय वो शाँत रहे, मगर पता नही क्यो राजु को इस हाल मे देखकर उसे एक रोमाँच सा महसूस हो रहा था, मानो जैसे राजु को इस हाल मे देखकर उसे मजा आ रहा हो। वैसे भी उसकी टँकी तब तक खाली हो गयी थी इसलिये उसने अपनी चुत से राजु के लण्ड पर तीन चार पिशाब की छोटी छोटी पिचकारीयाँ सी तो छोङी, फिर धीरे से उठकर वो राजु से अलग हो गयी, मगर उत्तेजना व आनन्द की खुमारी मे राजु अभी भी आँखे मुँदे ऐसे ही पङे पङे लम्बी लम्बी व गहरी साँसे लेता रहा...
राजु से अलग होकर रुपा ने अब उसकी हालत देखी तो उसे राजु पर हँशी सी आई तो खुद पर शरम सी महसूस हुई, क्योंकि उसने पिशाब से राजु को जाँघो से लेकर पेट तक पुरा भीगो दिया था। अपने भाई को इस तरह अपने पिशाब से भीगोकर उसे खुद पर शरम सी आ रही थी तो पिशाब से पुरा गीला होकर भी राजु ऐसे ही एकदम नँगा अपने लण्ड को ताने पङा हुवा था जिससे उसे राजु पर हँशी भी आ रही थी। वो अब खङा नही हुवा तो...
"ह्.हो् गया्...! चल उठ जा अब..!" रुपा ने पैर से ही उसके पैर को हिलाते हुवे कहा जिससे राजु भी अब चुपचाप उठकर खङा हो गया।
"तु आराम से खङा रह ना..?" रुपा ने उसे अब डाटते हुवे उसके लण्ड को पकङे पकङे ही कहा। रुपा का इशारा राजु को अपने लण्ड को एक जगह रखने के लिये था, मगर इसमे बेचार राजु का भी क्या कसुर जो उसका अपने लण्ड पर कुछ जोर चलता। उत्तेजना के वश वो अपने आप ही झटके खा रहा था। एक बार तो उसने इतने जोर से झटका खाया की रुपा के हाथ से छुटकर उसके लण्ड ने रुपा की चुत के मुँह पर ही ठोकर मारी और चुत का मुँह खोलकर लण्ड के सुपाङे ने सीधा चुत मे ही घुसने की कोशिश की जिससे रुपा भी तो सुबक सी उठी, मगर फिर...
"तु नीचे बैठ..!" उसने राजु से दुर हटकर वापस एक हाथ से अपनी चुत तो दुसरे हाथ से उपर अपनी चुँचियो को छुपा लिया और झुन्झलाते हुवे कहा, जिससे राजु चुपचाप नीचे बैठ गया मगर वो उकडु (जैसे लङकियाँ पिशाबा करती है) बैठा था इसलिये...
"अब ये टाँगे तो सीधी कर..!" रुपा ने अब फिर से झुँनझुलाते हुवे कहा तो राजु भी चुपचाप नीचे मिट्टी मे कुल्हे टिकाकर पैर सीधे कर दिये और रुपा उसके दोनो ओर पैर करके खङी हो गयी, मानो वो उसके लण्ड की सवारी करने की तैयारी मे हो।
रुपा अभी भी दोनो हाथो से अपनी चुत व चुँचियो को छिपाये हुवे थी, मगर राजु के लण्ड को अपने पिशाब से धोने के लिये वो अब घुटनो को मोङकर अपनी चुत को उसके लण्ड के पास लेकर आई, तो उसने अपनी चुत वाले हाथ को हटा लिया और उस हाथ से राजु के लण्ड को पकङ लिया ताकी वो उसके लण्ड को अपने पिशाब से धो सके... जिससे राजु की नजरे अब उसकी चुत पर ही जमकर रह गयी... क्योंकि घुटनो को मोङ लेने से रुपा की जाँघे खूल गयी थी और उसकी माचिस की डिबिया के समान एकदम फुली हुई चुत अब राजु को साफ नजर आ रही थी...
अपने जीवन मे राजु पहली बार नँगी चुत देख रहा था और वो भी इतने करीब से, इसलिये कुछ देर तो उसे यकिन ही हुवा की चुत ऐसी होती है, क्योंकि मुश्किल से तीन उँगल का एक चीरा भर ही थी रुपा की चुत। मानो उसने जाँघो के जोङ पर कोइ छोटा सा चीरा लगा रखा हो। राजु ने अपने दोस्त गप्पु के साथ एक बार अश्लील किताब मे लङकी की चुत को देखा था जिसमे चुत की बङी बङी फाँके थी और चुत पर कोई बाल भी नही थे। वो एकदम गोरी चिकनी थी मगर रुपा की चुत बिल्कुल भी वैसी नही थी।
हालांकि रुपा के घुटनो को मोङ लेने से उसकी जाँघे थोङा खुल गयी थी जिससे उसकी चुत की फाँके भी खुलकर थोङा अलग अलग नजर आ रही थी, नही तो उसकी चुत जाँघो के जोङ पर लगा बस एक छोटा सा चीरा भर ही थी जिस पर ज्यादा तो नही मगर फिर भी हल्के हल्के और छोटे छोटे बाल थे। उत्तेजना के वश रुपा की चुत से चाशनी की लार के जैसे पारदर्शी सा रश भी बह रहा था जिससे उसकी चुत व जाँघे गीली हो रखी थी और चाँद की रोशनी मे वो चमकती साफ नजर आ रही थी, मगर रुपा ने अब इसकी कोई परवाह नही की। उसे बस अपना ये टोटका पुरा करना था।
राजु बङी ही उत्सुकता से आँखे फाङे रुपा की चुत को देखे जा रहा था। वो अभी भी इसी भ्रम मे था की उसकी जीज्जी उसके लण्ड को अपनी चुत मे घुसायेगी..., मगर रुपा ने अपनी चुत को उसके लण्ड के पास ले जाकर सीधे ही उस पर मुत की धार छोङकर उसे अपने हाथ से मल मलकर धोना शुरु कर दिया। अपने लण्ड पर रुपा के गर्म गर्म पिशाब के गिरने से व उसके नर्म नाजुक हाथ के ठण्डे स्पर्श से राजु तो जैसे अब हवा मे ही उङने लगा। उसकी साँसे फुल सी गयी तो उत्तेजना व आनन्द के वश उसके मुँह से भी...
"ईश्श्..ज्.ज्जिज्जी..ईश्श्...
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रुपा ने राजु के लण्ड को पहले तो उपर उपर से ही धोया, फिर सुपाङे की चमङी को पीछे करके उसके सुपाङे को भी बाहर निकाल लिया और चारो ओर से उसे हाथ से मल मलकर धोने लगी जिससे हल्की हल्की...
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उत्तेजना के वश वो अपने कुल्हे उठा उठाकर रुपा के हाथ पर धक्के से मारने लगा, मानो वो उसके हाथ को ही चोद रहा हो जिससे रुपा को राजु पर अब हँशी भी आने लगी और शरम भी। उसने राजु के चेहरे की ओर देखा, तो वो आँखे मुदे था तो उसकी साँसे जोरो से चल रही थी। उस पर क्या बीत रही है ये वो अच्छे से से जान रही थी, क्योंकि राजु के लण्ड को हाथ मे पकङकर खुद रुपा की साँसे भी उखङ सी रही थी तो उसे भी अपनी चुत मे चिँटीयाँ सी काटती महसूस हो रही थी।
धीरे धीरे राजु के प्रति रुपा का भी मन अब बदल सा रहा था इसलिये उसने अब एक बार तो सोचा की वो राजु के लण्ड अपने हाथ से ठण्डा कर दे, ताकी उसकी चुत को अपने पिशाब से धोने के समय वो शाँत रहे, मगर पता नही क्यो राजु को इस हाल मे देखकर उसे एक रोमाँच सा महसूस हो रहा था, मानो जैसे राजु को इस हाल मे देखकर उसे मजा आ रहा हो। वैसे भी उसकी टँकी तब तक खाली हो गयी थी इसलिये उसने अपनी चुत से राजु के लण्ड पर तीन चार पिशाब की छोटी छोटी पिचकारीयाँ सी तो छोङी, फिर धीरे से उठकर वो राजु से अलग हो गयी, मगर उत्तेजना व आनन्द की खुमारी मे राजु अभी भी आँखे मुँदे ऐसे ही पङे पङे लम्बी लम्बी व गहरी साँसे लेता रहा...
राजु से अलग होकर रुपा ने अब उसकी हालत देखी तो उसे राजु पर हँशी सी आई तो खुद पर शरम सी महसूस हुई, क्योंकि उसने पिशाब से राजु को जाँघो से लेकर पेट तक पुरा भीगो दिया था। अपने भाई को इस तरह अपने पिशाब से भीगोकर उसे खुद पर शरम सी आ रही थी तो पिशाब से पुरा गीला होकर भी राजु ऐसे ही एकदम नँगा अपने लण्ड को ताने पङा हुवा था जिससे उसे राजु पर हँशी भी आ रही थी। वो अब खङा नही हुवा तो...
"ह्.हो् गया्...! चल उठ जा अब..!" रुपा ने पैर से ही उसके पैर को हिलाते हुवे कहा जिससे राजु भी अब चुपचाप उठकर खङा हो गया।