राजु के साथ ही लीला भी अब खेत मे आ गयी और खटिया के पास आकर...
"चल अब सो जा.!, रात मे अगर जानवर खेत मे घुसे तो मुझे भी उठा लेना..!" लीला ने अपनी साङी को खोलकर खटिया पर रखते हुवे कहा जिससे...
"पर बुवा मै कहाँ सोऊँगा..?" खेत मे बस एक ही खटिया थी और वो भी बहुत छोटी थी इसलिये राजु ने लीला की ओर देखते हुवे पुछा।
लीला: कहाँ क्या सोयेगा, इसी पर सो जाना..!
राजु: फिर तुम..!, तुम कहा सोओगी..?
लीला: अब मै कहा जाऊँगी, मै भी तेरे साथ इसी पर सो जाऊँगी..!
राजु: पर बुवा हम दोनो इस पर नही आयेँगे.., रुको मै गप्पु के खेत से उसकी खटिया उठा लाता हुँ..!
लीला: अब कहाँ दुसरी खटिया लेने जायेगा..?, सो जा इसी पर..! रात भर की तो बात है, तु लेट तब तक मै पिशाब कर आती हुँ..!"
ये कहते हुवे लीला अब दस बारह कदम तो चलकर खटिया से दुर आई, फिर पीछे मुङकर राजु की ओर देखने लगी, राजु भी उसकी ओर ही देख रहा था जिससे घबराकर वो अब इधर उधर देखने लगा, मगर लीला ने एक बार तो राजु की ओर देखा, फिर अपने पेटीकोट को उपर कमर तक उठाकर सीधे मुतने के लिये नीचे बैठ गयी..
पेन्टी तो वो पहनती थी नही इसलिये नीचे बैठकर लीला ने अब जैसे ही अपनी पिशाब की थैली से चुत की मांसपेशियों पर दबाव बनाया, पिशाब की धार के सीधे खेत की नर्म मिट्टी पर गीरने से श्श्श्शु्र्र.र्र.र्र.र्र... की सीटी की सी आवाज वहाँ गुँज सी गयी, अपनी बुवा के पिशाब करके आने की बात सुनकर ही राजु का लण्ड फुलने सा लगा था, अब उसकी चुत से पिशाब की धार के साथ निकल रही इस मादक आवाज को सुनकर राजु का लण्ड तुरन्त अकङकर एकदम पत्थर हो गया तो नजर घुमकर उसके पिछवाङे पर जम गयी...
वैसे तो रात का अन्धेरा था, मगर चाँद की जो थोङी बहुत रोशनी थी वो इतना देखने के लिये पर्याप्त थी की राजु को अपने से बस कुछ ही कदम दुर नीचे बैठकर पिशाब करते अपनी बुवा साफ नजर आ रही थी। वो आगे की ओर मुँह करके मुत रही थी, मगर मुतने के लिये उसने अपने पेटीकोट को कमर के उपर तक उठा रखा था जिससे पीछे से उसके किसी बङे से तरबुझ के जैसे बङे बङे व गोरे चिकने नँगे कुल्हे राजु को साफ नजर आ रहे थे।
राजु को डर तो लग रहा था की कही उसकी बुवा उसे देख ना ले, की वो उसे छुप छुप कर पिशाब करते देख रहा है, मगर फिर भी उसे पिशाब करते देखने का लालच उससे छोङा नही जा रहा था। लीला भी अब कुछ देर तो ऐसे ही बैठे बैठे मूत्तती रही, फिर अपनी चुत से मूत की छोटी छोटी तीन चार पिचकारियाँ सी जमीन पर छोङकर अपने पेटीकोट को कमर तक उठाये उठाये ही सीधे खङी हो गयी जिससे कुछ ्एर के लिये तो राजु को उसका पुरा नँगा पिछवाङा साफ नजर आया, मगर तब तक लीला अपने पेटीकोट को छोङकर वापस राजु की ओर घुम गयी...
लीला के वापस घुमते ही राजु अब एकदम डर सा गया की कही उसकी बुवा उसे देख ना ले इसलिये वो तुरुन्त खटिया पर दुसरी ओर मुँह करके लेट गया, मगर तब तक राजु के लण्ड ने तनकर उसके पजामे मे ही पुरा उभार बना लिया था। लीला को भी मालुम था की राजु उसे पिशाब करते देख रहा था इसलिये वापस घुमकर उसने एक नजर तो पहले राजु की ओर देखा, फिर चलकर वो राजु के पास ही आ गयी, मगर राजु दुसरी ओर मुँह किये लेटा हुवा था इसलिये...
"क्या हुवा..!, सो गया क्या रे.." लीला ने खटिया के पास आकर एक बार तो राजु की ओर देखते हुवे पुछा, फिर खटिया पर जो उसकी साङी पङी थी उसे सिराहने रखकर धीरे से वो भी उसकी बगल मे ही खटिया पर लेट गयी...
अब जिस छोटी सी खटिया पर वो दोनो लेटे थे वो एक आदमी के लिये तो पर्याप्त थी, मगर दो लोगो के लिये काफी छोटी थी इसलिये लीला का बदन राजु से एकदम सट सा गया था, मगर राजु चुपचाप वैसे ही दुसरी ओर मुँह किये लेटा रहा। लीला को पिशाब करते देखने से उसका लण्ड तना हुवा था जिससे वो डर सा रहा था की कही उसकी बुवा ये देख ना ले इसलिये वो अब ऐसे ही चुपचाप पङा रहा...
लीला को भी मालुम था की वो ऐसे क्यो गुमसुम सा पङा हुवा है इसलिये एक दो बार हील डुलकर लीला ने उसके बदन से अपने बदन को रगङकर भी देखा, अगर वो कोई हरकत करे तो...? मगर वो ऐसे ही लेटा रहा जिससे..
"क्या हुवा रे..सो गया क्या..?" ये कहते हुवे लीला ने अब करवट बदलकर राजु की ओर ही मुँह कर लिया और एक हाथ से राजु के कँधे को पकङकर उसे अपनी ओर खिँचते हुवे कहा जिससे..
"न्.न्.नही्..व्.वो्.. ब्.बुआ्...!" घबराहट मे उसने हकलाते हुवे सा कहा।
लीला के खिँचने से वो अब थोङा सीधा तो हुवा, मगर उसका लण्ड अभी तना हुवा था जिसे छुपाने के लिये उसने दोनो पैरो को घुटनो से थोङा मोङ सा लिया, लीला भी राजु से सीधे सीधे तो कुछ कहने मे हिचक सा रही थी इसलिये...
"ये ऐसे पैर क्यो मोङ रखे है तुने, क्या हुवा ठण्ड लग रही है क्या..?" ये कहते हुवे लीला ने अब धीरे से अपना एक पैर राजु के पैरो पर रख लिया तो साथ ही उसकी कमर मे हाथ डालकर उसे थोङा सा अपनी तरफ भी खीँच सा लिया।
अब वो खटिया छोटी सी तो थी ही जिससे पहले ही लीला का पुरा बदन राजु के शरीर से चिपका हुवा था, उपर से लीला के खिँचने से राजु अब करवट बदलकर सीधा कमर के बल होकर लेटा तो उसका हाथ लीला की जाँघ से छु गया, लीला पहले ही अपनी साङी को उतारकर लेटी थी, उपर से राजु के पास लेटकर उसने अपने पेटीकोट को भी उपर अपनी कमर तक चढा लिया था इसलिये जैसे ही वो करवट बदलकर सीधा कमर के बल हुवा उसका एक हाथ लीला की नँगी जाँघ से छु गया जिससे राजु के पुरे बदन मे अब एकदम करँट की लहर सी दौङ गयी, डर के मारे उसके लण्ड का जो थोङा बहुत तनाव कुछ कम भी हुवा था वो अब अपनी बुवा की नँगी जाँघ के स्पर्श से ही फिर से चढ गया..
शाम से ही राजु उसके व अपनी बुवा के बीच जो कुछ भी हो रहा था, उसके बारे मे सोच सोचकर उत्तेजना सी महसूस कर रहा था, उपर से लीला के अब उसके साथ ही इस छोटी सी खटिया पर आकर सो जाने से उसकी धङकन बढ सी गयी थी। घर पर लीला हमेशा से ही अपने लिये अलग से चारपाई बिछाकर सोती थी, वो कभी भी राजु के साथ नही सोई थी इसलिये अपनी बुवा के उसके साथ मे सो जाने से पहले ही उसे अजीब सा अहसास हो रहा था, उपर से अब उसे ये अहसास हुवा की उसकी बुवा नीचे नँगी है तो उसकी साँसे भारी सी हो आई...
अपनी बुवा के इस तरह अपने बगल मे नँगा लेट जाने से राजु की उत्तेजना तो जोर सा मारने लगी थी, मगर अपनी बुवा से उसे अभी भी डर लग रहा था। वो जितना अपनी बुवा से डर रहा था, लीला उतना ही उससे चिपकती जा रही थी इसलिये उत्तेजना व डर के कारण राजु का बदन अब हल्का हल्का कँपकँपाने सा लगा जिससे...
"क्या हुवा रे..! ऐसे काँप क्यो रहा है...? बहुत ठण्ड लग रही है क्या..?" ये कहते हुवे लीला भी अब राजु पास खिसकर उससे चिपका सा गयी।
लीला घाघ व खेली खाई हुई औरत थी। वो समझ तो गयी थी की राजु ऐसे क्यो काँप रहा है, मगर राजु से चिपकने का उसे भी ये बहाना मिल गया था इसलिये ठण्ड के बहाने राजु की ओर खिसककर उसने अपना एक पैर अब राजु के पैरो पर चढा दिया, तो वही अपनी बङी बङी चुँचियाँ को राजु के सीने पर लादकर वो उससे चिपक सा गयी जिससे राजु के बदन मे भी अब उत्तेजना की लहरे सी उठना शुरु हो गयी और...
"न्.न्.न्.नही्.. ब्.बु्आ्..!" डर व उत्तेजना के मारे उसने अब हकलाते हुवे सा ही कहा।
"तो फिर ऐसे काँप क्यो रहा है, और तुने ये पैर क्यो मोङ रखे है.. सीधा हो कर सो जा..!" ये कहते हुवे लीला का जो पैर राजु के पैरो पर रखा हुवा था उसे घुटने से मोङकर लीला ने अब अपनी जाँघ को ही राजु की जाँघो पर चढाकर उसके पैरो को सीधा कर लिया जिससे राजु अब...
"व्.व्.वो्.ब्.ब्.बुआ्...!" कहते हुवे हकलाने लगा, मगर तब तक लीला ने अपनी नँगी जाँघ को धीरे धीरे राजु की जाँघो पर खिसकाते हुवे उपर उसके लण्ड की ओर बढाना शुरु कर दिया...
अपनी बुवा की नँगी जाँघ के अहसास से राजु को मजा तो आ रहा था, मगर साथ ही उसे डर सा भी लग रहा था की कही उसकी बुवा को उसके पजामे मे एकदम तने खङे लण्ड का ना पता चल जाये इसलिये डर के मारे उसका बदन और भी जोरो से कँपकँपाने लगा जिससे..
"क्या हुवा रे..? तु इतना काँप क्यो रहा है, तेरी तबियत तो ठीक है ना..!" ये कहते हुवे लीला अब हाथ से राजु के माथे को छुकर देखने के बहाने उसकी छाती पर अपनी पुरी चुँचियाँ लादकर लगभग उस पर चढ सा गयी तो साथ ही उसकी जाँघ भी राजु की जाँघो पर पुरा चढाकर उसके लण्ड तक पहुँच गयी जिससे...
"अ्.आ्.हा्.हाँ..ब्.ब्.बुआ्...व्.व्.वो्..!" राजु ने अब हकलाते हुवे फिर से अपने पैरो को घुटनो से मोङकर अपने लण्ड को छुपाना चाहा, मगर तब तक लीला ने अपनी जाँघ को राजु के लण्ड तक पहुँचाकर उसके लण्ड को अपनी जाँघ से दबा लिया और...
"अच्छा तो ये बात है..!, क्या हुवा अपनी जीज्जी की बहुत याद आ रही है क्या रे..?" लीला ने अब अपनी जाँघ को धीरे धीरे उपर नीचे कर राजु के लण्ड को सहलाते हुवे पुछा जिससे..
"न्.न्.नही्. ब्.बु्आ् व्.व्.वो्....!" डर के मारे राजु अब हकलाने सा लगा, मगर तभी..
"तो फिर इसे तान क्यो है, लगता है बहुत याद आ रही है अपनी जीज्जी की..?" लीला ने वैसे ही अपनी जाँघ से उसके लण्ड को सहलाते हुवे पुछा जिससे..
"न्.न्.नही्. व्.व्.वो्..ब्.बु्आ्....!" डर के मारे राजु अभी भी हकला सा रहा था इसलिये..
"इतना ही मन कर रह है तो मेरी ले ले बेशर्म..!" लीला ने वैसे ही अपनी जाँघो से राजु के लण्ड को सहलाते हुवे कहा जो की राजु को कुछ समझ नही आया इसलिये...
"क्.क्.क्या..? राजु ने हकलाते हुवे ही पुछा जिससे...
"तेरी जीज्जी तो अब यहाँ है नही, इतना ही मन कर रहा है तो, मै ये बोल रही हुँ अब मेरी ले ले बेशर्म..!,
"बोल लेनी है अपनी बुवा की..?" लीला ने राजु की ओर देख अब मुस्कुराते हुवे कहा, मगर राजु के लिये लीला ने ये जैसे ये कोई बम सा फोङा था इसलिये...
"क्.क्.कया..?" उसने भी अब हैरानी के मारे लीला की ओर देखते हुवे कहा जिससे...
"वही जो खेतो मे तुझे तेरी जीज्जी देती थी वो मेरी ले ले..!" लीला ने भी अब राजु से अलग होकर मुस्कुराकर उसके चेहरे की ओर देखते हुवे कहा, मगर राजु को जैसे अपने कानो पर यकीन नही हो रहा था इसलिये...
"क्.क्या..?" उसने हैरानी के मारे फिर से पुछा।
लीला ने भी मुस्कुराकर एक बार तो राजु की आँखो मे देखा फिर...
"ये और क्या.. बेशर्म..!" ये कहकर उसने अब खुद ही राजु के हाथ को पकङ कर सीधा अपनी नँगी गीली चुत पर रखवा लिया जिससे राजु की साँसे जैसे फुल सी आई तो वही उसका दिल भी धाँय धाँय सा बजने लगा....
अपनी बुवा की नर्म मुलायम चिकनी जाँघो व जाँघो के बीच बालो से भरी उसकी फुली हुई चुत को छुकर उसका हाथ काँपने सा लगा था इसलिये घबराहट व डर के मारे...
"न्.न्.न्.ह्.ई्.ई्...!" कहकर राजु ने अब एक बार तो अपना हाथ अपनी बुवा की चुत पर से हटाना भी चाहा, मगर लीला ने उसके हाथ को अपनी चुत पर वैसे ही दबाये रखा, उसकी चुत पहले ही पानी सा छोङ रही थी उपर से अब राजु के कँपकँपाते हाथ के स्पर्श से वो और भी पानी छोङने लगी जिससे लीला ने उसके हाथ को अपनी चुत पर लगाकर जाँघो से भीँच सा लिया और..
"क्यो..? क्या हुवा..? अपनी बुवा की लेने मे शरम आ रही है..? लीला उसकी आँखो मे देखते हुवे पुछा...
राजु को कुछ समझ नही आ रहा था की वो अब क्या करे और क्या कहे इसलिये...
"न्.न.नही्...!" राजु ने हकलाते हुवे कहा जिससे..
"तो फिर बोल, लेनी है अपनी बुवा की..?" लीला उसके हाथ को अपनी चुत पर अब जोरो से दबाते हुवे कहा।
राजु पहले ही उत्तेजना के मारे जल सा रहा था अब उसकी बुवा ही उसे खुद अपनी लेने के लिये कह रही थी तो वो कैसे पीछे हटता, वो भी अब तुरन्त लीला के उपर चढ सा गया जिससे...
"अरे.रे.पहले ये कपङे तो खोल बेशर्म..!" लीला ने उसे धकेलते हुवे कहा तो खुद भी अपने ब्लाउज के बटन खोलने लग गयी।
राजु भी अब एक बार तो लीला से अलग हुवा, मगर फिर अगले ही पल वो अपने पजामे व कमीज को उतारकर एकदम नँगा हो गया। अब जब तक राजु ने अपने कपङे उतारे तब तक लीला ने भी ब्लाउज के बटन खोलकर ब्रा से भी अपनी दोनो चुँचियो को बाहर निकाल लिया था जो की चाँद की रोशनी मे चाँदी के जैसे अलग ही दमक सा रही थी। अपनी बुवा की एकदम दुधिया सफेद व बङी बङी नँगी चुँचियाँ व उनके भुरे भुरे निप्पलो को देख कुछ देर तो राजु पलके झपकाना तक भुल और बस उन्हे देखता ही रह गया जिससे..
"क्या हुवा..? अच्छी नही क्या..?" लीला ने उसके चेहरे की ओर देखकर हँशते हुवे पुछा।
"नही..!, बहुत अच्छी है..!" राजु ने अब शरम से मुस्कुराते हुवे कहा जिससे...
"तेरी जीज्जी से भी..?" लीला ने उसकी आँखो मे देखते हुवे पुछा।
"हाँ.. और उससे बङी भी..!" राजु ने शरमाकर मुस्कुराते हुवे कहा जिससे..
"बदमाश..!" कहते हुवे लीला ने अब उसके गले मे हाथ डालकर उसे अपने उपर खीँच सा लिया तो राजु ने भी अब तुरंत उसकी दोनो चुँचियो मे से एक चुँची के निप्पल को अपने मुँह मे भर लिया और दुसरी चुँची को अपनी हथेली मे भरकर जोरो से मसल सा दिया जिससे...
"ईईईश्श्श्. ओ्ओ्ह्ह्य्.." कहकर लीला सुबक सा उठी और दोनो हाथो से राजु के सिर को पकङकर अब खुद ही जोरो से उसे अपनी नँगी चुँचियो पर दबा लिया।
राजु भी अब पूरे जोश में भर कर उसकी चूचियों को अपने मुँह में लेकर खिँच खिँचकर जोरो से चूशने लगा जिससे...
"ईईईश्श्श्.. ओ्ह्ह्.य्.य.. क्या करता है..! खीँच क्यो रहा है बेशर्म...आराम से पी ना..!" कहकर सुबकने सा लगी, मगर राजु को मानो जैसे अपनी बुवा की चुँचियाँ नही बल्की पके हुवे दो दशहरी आम मिल गये थे जिन्हे वो दोनो हाथो से दबा दबाकर, खीँच खीँचकर व चुश चुशकर पीने लगा।
वैसे भी लीला की चुँचियाँ अभी भी एकदम कसी हुई थी, जो की बाहर से तो मखमल सी नर्म मुलायम ही थी मगर अन्दर से एकदम ठोस भरी हुई व किसी स्पँज के जैसे एकदम गुदाज थी। हालांकि थोङा ज्यादा बङी होने के कारण वो खुद के ही भार से थोङा नीचे लटक सी जरुर आई थी, मगर उसकी चुँचियो को देखकर कोई कह नही सकता की वो एक चौबिस पच्चीस साल की लङकी की माँ भी हो सकती है, क्योंकि उसकी चुँचिया अभी भी बिल्कुल किसी लङकी की तरह एकदम कसी हुई थी जिन्हे राजु भी अब मस्त होकर मसल मसलकर व बदल बदलकर पीने लगा जिससे लीला ने भी अपना एक हाथ अब नीचे राजु के लण्ड की ओर बढा दिया..
लीला को अपना पसन्दीदा खिलौना मिल गया था जिसे वो हाथ से भीँचकर तो कभी मसलकर उससे खेलने सा लगी, तो वही राजु भी उसकी दोनो चुँचियो को बदल बदलकर पीने तो कभी चुशने व चाटने लगा जिससे लीला के मुँह से अब सुबकियाँ सी निकलना शुरु हो गयी, मगर जब लीला राजु के लण्ड से खेल रही थी तो राजु के मन मे भी अब अपनी बुवा की चुत देखने की इच्छा जागी होगी की उसकी चुँचियो को पीते पीते ही उसने भी अपना एक हाथ लीला की चुत की ओर भी बढा दिया, इस बात का अहसास लीला को भी हो गया था इसलिए उसने अब खुद ही अपने पैरो को फैलाकर अपनी जाँघो को खोल दिया.. जिससे राजु का हाथ अब सीधा लीला की फुली हुई नँगी चुत को छु गया...
लीला ने अपने परटीकोट को पहले ही कमर तक चढाया हुवा था, उपर से वो कभी पेन्टी भी नही पहनती थी इसलिये अपनी बुवा को नीचे से नँगी पाकर राजु से अब रहा नही गया, वो तुरन्त उसकी चुँचियो को छोङकर नीचे उसकी जाँघो के जोङ के पास आ गया, और उसकी चुत को बङे ही ध्यान से देखने लगा... चाँद की रोशनी मे लीला की एकदम दुधिया सफेद गोरी चिकनी माँसल जाँघे व जाँघो के बीच उसकी फुली हुई काले काले बालो से भरी चुत अलग ही नजर आ रही थी।
उसकी चुत पर बहुत ज्यादा बङे बाल तो नही थे मगर शायद काफी दिनो से उसने अपनी चुत को साफ नही किया था इसलिये उसकी चुत बालो से भरी भरी सी लग रही थी। चुत की फाँको के पास वाले बाल चुतरश से भीग कर उसकी चुत से ही चिपक गए थे इसलिए चुत की गुलाबी फाँकें और दोनों फांकों के बीच का हल्का सिन्दूरी रंग चाँद की सफेद रोशनी मे हल्का गुलाबी सा नजर आ रहा था जिसे देख राजु अब कुछ देर तो साँसे लेना तक भुल गया जिससे..
"क्या हुवा..? लीला ने अब राजु की ओर देख मुस्कुराते हुवे पुछा जिससे...
"क्.क्.कुछ् नही्..!" राजु ने भी अब उसकी ओर देखकर मुस्कुराते हुवे कहा।
"अच्छी नही लगी क्या..? लीला ने अब फिर से पुछा जिससे..
"नही, अच्छी है..!" ये कहते हुवे राजु ने अब लीला की चुत को और भी करीब से देखना चाहा मगर वो जैसे ही लीला की चुत को देखने के लिये उसके करीब हुवा एक बेहद ही तीखी और मादक गन्ध उसके नथुनो मे भरती चली गयी...
अपनी बुवा की चुत की महक पाकर राजु के जहन मे अब रुपा की चुत का ख्याल उभर आया क्योंकि लीला की चुत की गन्ध भी बिल्कुल रुपा की चुत की गन्ध के जैसे ही थी, दोनो की चुत की गन्ध मे बस जो थोङा बहुत अन्तर था वो शायद रुपा व लीला की उम्र की वजह से था, क्योंकि रुपा की चुत की गन्ध थोङी कच्ची कच्ची सी थी तो वही लीला की चुत की गन्ध थोङा पकी पकी सी थी नही तो दोनो की चुत की गन्ध एक जैसी ही थी, और हो भी क्यो ना आखिर रुपा भी लीला की ही तो बेटी थी। अपनी बुवा की चुत की गन्ध पाकर राजु से अब रहा नही गया इसलिये उसने अपने दोनो हाथो को लीला की जाँघो के बीच घुसाकर सीधा ही अपने होंठों को उसकी चूत के होठो से जोङ दिया जिससे..
“ईईईश्श्श्...ओ्ह्ह्.य्.य् .श्श्शशश..आह्ह…!" की एक मीठी सित्कार सी भरकर लीला ने भी दोनो हाथो से राजु की सिर को अपनी चुत पर दबा लिया.. अपनी जीज्जी के साथ रहकर राजु अब इतना तो सीख ही गया था की चुत को कैसे चाटना है इसलिये पहले तो उसने लीला की चुत के हर एक हिस्से को चुमा, फिर अपनी जीभ निकालर चुत की फाँको के बीच वाले नर्म मुलायम भग को चाटना शुरु कर दिया जिससे लीला अब..
“ईईईश्श्श्...ओ्ह्ह्.य्.य् राजुऊ्ह्ह्..ईईश्श्श्.. बस्स्स्ह्ह…!" करते हुवे सिसकने सा लगी।
लीला की चुत पर मुँह लगाते ही उसकी चुत का एकदन चिकना व खारा और कसैला स्वाद, राजु के मुँह मे घुल गया था, क्योंकि लीला अभी अभी मुतकर आई थी जो की अभी भी उसकी चुत की फाँको व उसके झाँटो पर जमा हुवा था, तो साथ ही उसकी चुत से रह रहकर एकदम चिकना चिकना व गाढा रश सा भी बह रहा था जिससे उसके मुँह का का स्वाद एकदम खारा, कैसेला व चिकना हो गया था। अपनी बुवा की चुत का स्वाद राजु को अब फिर से अपनी जीज्जी की चुत की याद दिलाने लगा इसलिये लीला की चुत को उसने जोरो से चुश सा लिया जिससे लीला भी..
“उफ्फ… इईईई..श्श्श्शशश... य्.ऐ्..ये्..क्.क्या्.आ् कर्.अ् रहे.ऐ् हो्.ओ्ओ्ह्...!” कहते हुवे सिसक उठी और अपनी जाँघो को पुरा फैलाकर दोनो हाथों से राजु के सिर को अपनी चुत पर इतनी जोरो से दबा लिया, मानो जैसे वो राजु के सिर को ही अपनी चुत के अंदर ही घुसा लेगी जिससे राजु अब छडपटा सा उठा...
राजु के छटपटाने से लीला ने अब एक बार तो राजु के सिर को छोङ दिया, मगर अगले ही पल उसने उसके सिर के बालो को पकङकर उसे अपने उपर खीँच लिया, क्योंकि इस समय लीला राजु से अपनी चुत को चटवाने की बजाय उसके लण्ड से अपनी चुत को कुटवाने की ज्यादा जरुरत महसूस कर रही रही थी। ना जाने वो कब से प्यासी थी इसलिये उसकी चुत खुद को चुशवाने से ज्यादा लण्ड खाने की ज्यादा भुखी थी। वैसे भी राजु से अब तो वो कभी भी अपनी चुत चटवा सकती थी इसलिये राजु से अपनी चुत को चटवाने की बजाय लीला ने उसके सिर को पकङकर उसे अपने उपर खीँच लिया जिससे भी राजु अब उसके उपर चढकर लेट गया...
राजु के उपर आते ही लीला ने भी अपने पैरो को फैलाकर उसे अपनी दोनो जाँघो के बीच मे ले लिया जिससे राजु का लण्ड अब सीधा लीला की चुत पर लग गया था। लीला ने जब से राजु के लण्ड को देखा था तब से ही उसे अपनी चुत मे लेने के लिये मरी जा रही थी इसलिये उसने अब तुरन्त अपना एक हाथ नीचे ले जाकर राजु के लण्ड को सीधे अपनी चुत के मुँह पर लगा