अपडेट -73
दरोगा वीर प्रताप की हत्या की खबर चारो तरफ फ़ैल गई थी और साथ मे फ़ैल गई थी रंगा बिल्ला की दहाशत भी.
दोपहर का समय हो चला था,काम्या भी होश मे आ गई थी लेकिन उसकी आँखों मे सुना पन था.
नदी किनारे अंतिम संस्कार की तैयारी हो चुकी थी
आस पास के गांव के ठाकुर जमींदार और नागरिक भी आये हुए थे इसी भीड़ मे रंगा बिल्ला भी शामिल थे.
तभी काले लिबास मे लिपटी काम्या अग्नि देने आई.
लोगो मे खुसर फुसर शुरू हो गई.
"बताओ बेचारी अनाथ हो गई " क्या करेगी अब ये
रंगा जो कम्बल ओढे खड़ा था "कौन है ये लड़की "?
भीड़ मे खड़े ग्रामीण से पूछा
ग्रामीण :- दरोगा साहेब की अभागी बच्ची है आज ही शहर से पढ़ाई कर लौटी है..
बिल्ला :- देखो भगवान भी कैसे कैसे दुख दिखता है.
दूसरा ग्रामीण :- रंगा बिल्ला से कौन बच पाया है आखिर.
आस पास के गांव वालो ने तो सारा धन अनाज ठिकाने लगाना शुरू कर दिया है.
अन्य ग्रामीण :- भगवान बचाये रंगा बिल्ला से.
अजी मै तो कहता हूँ कभी सामना हो जाये तो जो हो चुप चाप उनके हवाले कर दो, जान है तो जहान है.
रंगा बिल्ला वापस से अपनी दहशत देख के ख़ुश थे, उनकी राह अब आसान थी उनका दबदबा वापस से कायम हो चूका था.
दोनों पलट के भीड़ से बाहर निकलने लगते है की तभी उनके कान मे चित्कार सुनाई देती है.
"तुम जहाँ भी होंगे तुम्हे कुत्ते की मौत दूंगी मै " काम्या अपने माँ पिता की चिता की कसम खाती है और फफ़क़ फफ़क़ के रो पड़ती है..
इस चित्कार मे एक सिहारन थी जो की रंगा बिल्ला को अपने बदन मे महसूस होती है, खुद को संभाल के वो पलट के देखते है परन्तु उन्हें काम्या पीछे से दिखाई देती है उसका चेहरा दुखी नहीं देता.
भीड़ काम्या को धंधास बंधती है.इन सब मे ठाकुर ज़ालिम सिंह भी थे.
"धैर्य रखो बेटी काम्या, और जो मदद चाहिए हो मुझसे मांग लेना, तुम्हारे पिता ने मेरी बीवी की रक्षा की थी.
बहुत बहादुर थे तुम्हारे पिता"
भीड़ धीरे धीरे जाने लगी बवहए थे सिर्फ सुलेमान,रामलखन,बहादुर और आँखों मे अँगारे लिए काम्या....इंस्पेक्टर काम्या.
इन सब से दूर जंगल मे किसी सुनसान कोने मे उत्सव का माहौल था
नरभक्षी काबिला मुर्दाबाड़ा जहाँ भूरी एक पतले से कपडे मे लिपटी किसी देवता की मूर्ति के सामने बंद गुफा मे सर झुकाये बैठी थी उसे अपना अंत नजर आ रहा था उसके लालच,हमेशा जवान बने रहने की चाह ने उसे इस मुकाम पे पंहुचा दिया था.
सेनापति मरखप :- सरदार सारी तैयारी हो गई है हमें देवता का अहान करना चाहिए.
सरदार भुजंग :- हाँ भाई इंतज़ार तो हमें भी है इस गद्दाराये बदन की मालकिन को भोगने का.
हाहाहाहहह....सारे काबिले के मर्द हस पड़े.
आज भूरी की शामत भरे काबिले के सामने उसका बदन नोचा जायेगा.
भुजंग :- हे देवता हमें काम शक्ति प्रदान कर ताकि इस स्त्री का कामरस का भोग तुझे जल्द से जल्द लगा सके.
ऐसा बोलते ही वहा खड़े सभी मर्दो ने अपना अपना लंगोट उतार फेंका.
कामरूपा ने नजर उठा के देखा तो उसके तोते उड़ गए,काटो तो कहीं नहीं आंखे पथरा गई
उसे अपनी मौत निश्चित दिखाई दी.
7 काले भयानक मर्द उसे घेरे खड़े थे, बिलकुल नंगे सभी के जांघो के बीच लम्बे मोटे काले भयानक गंध छोड़ते लंड लटक रहे थे, उस लंड के पीछे भारी भारी टट्टे लटके थे.
लगता था की किसी स्त्री पे गिर भर जाये तो प्राण निकाल ले.
सातों लोग नीचे बैठी कामरूपा के चारो और चक्कर काटने लगे उस अपने हाथ से चुटकी मे कोई पीला लाल ग़ुलाल जैसा पदार्थ कामरूपा पे छिड़कने लगे.
और कोई मंगल गीत भी गाते जा रहे थे... देवता प्रसन्न हो...देवता प्रसन्न हो.
नीचे बैठी कामरूपा को वैसे ही कुछ समझ नहीं आ रहा था ऊपर से सभी के लंड से निकलती तेज़ गंध उसके बदन को झकझोड़ रही थी, कामरूपा कामवासना से भरी कामुक स्त्री थी खुद को कैसे संभालती.
ऊपर से ग़ुलाल जैसी धूल उस के बदन को लगातार मदहोशी की गहराई मे धकेल रही थी.
सातों नरभक्षी नीचे बैठी कामरूपा के चारो और चक्कर लगाए जा रहे थे कामरूपा के कामुक बदन को देख देख लार टपका रहे थे.
तभी सरदार भुजंग ने अपने लंड का तेज़ प्रहार कामरूपा के गाल पे किया,कामरूपा सिहर उठी उसके हलक से हलकी सी काम भरी सिसकारी निकाल पडी.
"आअह्ह्ह.....ये क्या हो रहा है मुझे मेरा बदन जैसे जल रहा है "
भुजंग :- हाहाहाहा....हे सुन्दर स्त्री आजतक कोई महिला हमारे लिंग से बच नहीं पाई है.
तू तो वैसे भी काम से भरी स्त्री मालूम होती है.
सच ही तो कह रहा था सरदार भुजंग आखिर कामरूपा अपने जवानी अपने यौवन को हमेशा बरकरार रखना चाहती थी ताकि काम सुख का आनंद ले सके.
परन्तु आज यही कामवासना उसे मौत के कगार पे ले आई थी.
यहाँ कामवती अपना वीर्य बहती की उसकी आत्मा भी उसका साथ छोड़ देती.
अजीब रीती रीवाज था मुर्दाबाड़ा काबिले का.
सेनापति मरखप और बाकि के 5 काबिले वाले वाले भी अपने अपने लंड का प्रहार कामरूपा के बदन पे करने लगे.
कामरूपा के बदन की गर्मी बढ़ती ही जा रही थी,वो लाख कोशिश कर रही थी खुद को रोकने की परन्तु माहौल ऐसा कामपूर्ण हो चूका था की बर्दाश्त करना मुश्किल था.
कामरूपा का हाथ ना चाहते हुए भी अपनी जांघो के बीच जा कुछ टटोलने लगता है,जिस बात का डर था हुआ भी वही.
कामरूपा की उंगलियां गीली हो गई उसकी चुत से पानी रिस रहा था,ये सबूत था की उसका बदन सम्भोग के लिए तैयारी कर रहा है उसका जलता बदन इस बात का गांवह था कि उसका स्सखलन नजदीक है.
"नहीं...नहीं....ऐसा नहीं हो सकता " कामरूपा वासना मयी आवाज़ मे चीख पडी.
वही जंगल मे चीख की आवाज़ का पीछा करता वीरा झरने के पास पहुंच चूका था.
"ये तो वही झरना है जहाँ मेरी प्यारी बहन घुड़वती की हत्या की गई थी?" वीरा के सामने उसकी बहन की नंगी खून से लथपथ लाश पडी थी.
वो दृश्य याद कर उसकी आँखों मे आँसू आ गए.
"तो क्या वो चीख मेरा भ्रम थी?"
"नहीं नहीं...मैंने चीखने की साफ आवाज़ सुनी थी.
मुझे आस पास तलाश करना होगा आवाज़ घुड़वती जैसी क्यों थी?
काली गुफा के अंदर सर्पटा रुखसाना के बदन को अपनी कुंडली मे दबाये बैठा था.
रुखसाना को होश आ रहा घर धीरे धीरे....उसकी नाक मे एक अजीब सी गंध आ रही थी ये गंध उसे जानी पहचानी सी लग रही थी.
सर्पटा :- हाहाहाहाहा.....कुदरत का खेल देखो इतने बरसो बाद तुम फिर से वही रंग रूप वही यौवन लिए पैदा हुई हो घुड़वती.
रुखसाना लगभग होश मे आ चुकी थी.
रुखसाना :- कौन...कौन....ही तुम उसके लफ्ज़ो मे साफ खौफ दिखाई पड़ता था.
ऐसा डरावना नजारा उसके दिल की धड़कन रोक रहा था.
सर्पटा :- मुझे नहीं पहचाना घुड़वती?
रुखसाना :- कौन...कौन...घुड़वती मेरा नाम रुखसाना है.
सर्पटा :- अरी मुर्ख..आज टी रुखसाना है कभी घुड़वती थी जवान कच्ची उम्र की घोड़ी.
रुखसाना :- क्या बकते हो? रुखसाना को कुछ समझ नहीं आ रहा था की हो क्या रहा है.
सर्पटा अपना अर्ध सर्प रूप त्याग पूर्ण मानव रूप मे आ जाता है.
रुखसाना का तो आश्चर्य के मारे बुरा हाल था उसने आज तक जो किस्से कहानी मे सुना था वो आज अपनी आँखों के सामने देख रही थी..
सर्पटा :- तू तो ऐसे चौक रही है जैसे इच्छाधारी प्रजाति पहली बार देखि हो
तू खुद भी तो इच्छाधारी ही है.
रुखसाना:- मै...मैम....इच्छाधारी रुखसाना को सब कुछ सपना सा लग रहा था.
सर्पटा :- पिछली बार तू मेरा लंड झेल नहीं पाई थी आज देखते है झेल पाती है या नहीं झेल गई तो मेरी रखैल बनेगी तू
हाहाहाहाहा......भयानक हसीं माँ मंजर गूंज उठा
हसीं इतनी भयानक थी की रुखसाना सर से लेकर पाऊं तक पसीने से नहा गई,उसका कलेजा मुँह को आ गया था.
सर्पटा ने अपनी कमर पे लिपटा कपड़ा एक दम से हटा दिया.
ईई.ईई......आआहहहह.....एक जबरजस्त चीख उसके हलक से निकल गई.
सर्पटा की जांघो के बीच एक काला मोटा भयानक लंड झूल रहा था, लिंग जांघो की जड़ से निकल घुटने तक लटका हुआ था.
सर्पटा :- अभी से चीख पडी घुड़वती? अभी तो यही लंड तेरी चुत और गांड मे जायेगा तब क्या करेगी.
रुखसाना खूब खेली थी खूब चुदी थी परन्तु ऐसे लंड और ऐसे खूंखार इरादा लिए आदमी से कभी नहीं.
वो भागने को हुई परन्तु उसे ऐसा लगा जैसे उसके पैरो मे जान ही नहीं है जैसे ही उठी तुरंत धाराशाई ही गई.
डर है ही ऐसी चीज... पैर को कपकम्पा देता है.
सर्पटा अपने लंड को झूलाता हुआ रुखसाना की और बढ़ चलता है...
की तभी....धाड़.....
दूर हट हरामी मेरी बहन से.
सर्पटा के सीने पे एक जोड़ी मजबूत लात का प्रहार होता है.
वीरा :- तू आज तक जिन्दा कैसे है तुझे तो मैंने अपने हाथो से मारा था? वीरा की आवाज़ मे भरपूर आश्चर्य था.
रुखसाना नीचे जमीन पे पडी हुई आश्चर्य के मारे मरी जा रही थी
"ये क्या ही रहा है आज....पहले ये सांप और अब ये बोलने वाला घोड़ा?
और ये मुझे अपनी बहन क्यों बोल रहा है?"
सर्पटा दूर जा गिरा था पहले से कमजोर सर्पटा वीरा का प्रहार ना झेल सका खुद को सँभालते हुए.
"तुझे मौत देने के लिए ही जिन्दा है ये नागसम्राट सर्पटा "
वीरा जो की शक्तिहिन था अपने घुड़रूप मे था.
"घुड़वती जल्दी बैठो हमें जाना होगा "
रुखसाना :- मै...मै....रुखसाना तो जैसे विक्षिप्त हो गई थी वो जी देख रही थी वो संभव नहीं था.
"उठो घुड़वती,सर्पटा के उठने से पहले उठो मुझमे अभी वो ताकत नहीं है की सर्पटा का मुकाबला कर सकूँ "
रुखसाना को कुछ कुछ बात समझ आने लगी...उधर सर्पटा भी संभल रहा था.
"वक़्त नहीं है घुड़वती जल्दी "
रुखसाना जैसे तैसे वीरा पे सवार हो गई....सऊऊऊऊ....साइईई.....वीरा किसी हवा की तरह वहा से निकाल गया.
पीछे रह गया सर्पटा " आखिर कब तक बचोगे तुम दोनों?"
तगड़ तगड़....टप टप..टप....वीरा भागे जा रहा था उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था.
"मेरी प्यारी बहन "
वही रुखसाना डरी सहमी वीरा को कस के पकडे बैठी थी,. उसके आश्चर्य की कोई सीमा नहीं थी.
तिगाड़ तिगाड़.....ये तो किसी घोड़े की आवाज़ है लगता है कोई इधर ही आ रहा है.
चोर मंगूस जो की कामरूपा की खोज मे जंगल की खाक छान रहा था उसके कानो मे पड़ती घोड़े किआवाज़ से सतर्क हो गया था.
तभी उसके सामने से एक काला लम्बा चौड़ा घोड़ा किसी स्त्री को बैठाये तूफ़ान की तरह दौड़ता निकाल गया
"ये ये....तो वीरा है दीदी रूपवती का वफादार घोड़ा जो की नागेंद्र का दुश्मन है,लेकिन ये जंगल मे क्या कर रहा है और उसकी पीठ पे कौन स्त्री बैठी थी?"
हे भगवान कही मेरी दीदी कुछ हो तो नहीं गया.
मुझे अपने घर जाना होगा,नागमणि जल्दी से जल्दी ढूंढ़नी होंगी सब इसी का चक्कर है.
क्या मंगूस नागमणि ढूंढ़ पायेगा?
कामरूपा की हवस ही उसकी मौत का कारण बनेगी?
बने रहिये कथा जारी है....