अपडेट -77
आअह्ह्ह.....आअह्ह्ह....और तेज़ मारो हरामियों नामर्द हो क्या सब के सब.
मुर्दाबाड़ा काबिले मे रात के सन्नाटे को चिरती कामरूपा की आवाज़ गूंज रही थी,कामरूपा किसी घायल शेरनी की तरह खूंखार वहांशी हो उठी थी.
सेवक के लंड पे अपनी गांड पटकते पटकते उसे काफ़ी समय बीत चूका था परन्तु वो अपने चरम पे नहीं पहुंच पा रही थी यही खीज और बदन की गर्माहट उसे चैन नहीं लेने दे रही थी गुस्से और हवस मे वो जो मन मे आता बके जा रही थी.
नीचे लेता सेवक अपने प्राण की खेर मना रहा था उस से अब रुका नहीं जा रहा था.
पास बैठा सरदार भुजंग ये कामुक नजारा देख बेकाबू होता जा रहा था उसका लंड वापस अकड़ने लगा था.
"साली बहुत बड़ी छिनाल है " भुजंग अपनी जगह से उठ खड़ा होता है उसका हाहाँकारी लंड जांघो के बीच झूल रहा था.
कामरूपा उस देत्य को अपनी और बढ़ता देख ख़ुश हुई की शायद अब उसकी प्यास बुझ जाये.
कामरूपा ने उन्माद मे भर अपने स्तनों को भींच लिया जैसे भुजंग का हौसला बढ़ा रही हो.
भुजंग कामरूपा की बड़ी गांड को ही घूर रहा था सेवक के लंड पे अपनी गांड पटक पटक के लाल कर ली थी.
भुजंग चलता हुआ कामरूपा के पीछे आ चूका था जहाँ उसकी गांड का लाल चिद्र चुत रस और थूक से सना हुआ चमक रहा था गुहा छिद्र की चमक भुजंग की आँखों मे साफ देखि जा सकती थी.
भुजंग घुटने के बल बैठता चला गया उसका काला भयानक लंड कामरूपा की गरम सुलगती गांड मे पडा तो कामरूपा के मुँह से एक सुखद आनंदमयी आअह्ह्हम्मम..निकल गई.
भुजंग का लंड किसी काले सांप की भांति कामरूपा की गोरी मखमली बड़ी गांड पे लौट रहा था,
कामरूपा को कुछ कुछ अंदाजा हो चला था की क्या होने वाला है परन्तु वो इस कदर काम अग्नि मे जल रही थी की उसे अंजाम को परवाह नहीं थी उसे सिर्फ हवस मिटानी थी अपनी चुत की गर्मी को बाहर निकालना था अब चाहे गांड के रास्ते निकले या फिर चुत के रास्ते.
भुजंग अपने लिंग को पकड़ कामरूपा की गांड की दरार मे चलाने लगा,कमरे मे सन्नाटा छा गया था नीचे से चुत मे लंड घुसए सेवक भू शांत था सिर्फ कामरूपा की मदहोशी से भरी सांसे चल रही थी नाथूने फूल पिचक रहे थे.
की तभी आआआ.....अअअअअ....हहहहहह....की आवाज़ ने सन्नाटा को चिर दिया पास खड़े दर्शक गण खुशी से झूम उठे इस चीख मे हवस का जायका था.
भुजंग का लंड कामरूपा की बड़ी गांड के छोटे छेद मे आधा घुस चूका था.
पिच...करती एक खून की पतली धार ने भुजंग के लंड का तिलक अभिषेक कर दिया.
कामरूपा की गांड फैलती चली गई....आआहहहह.....आअह्ह्ह..... दर्द इतना भीषण था की कामरूपा की चुत से फर फ्रा के पेशाब छूट गया.
पेशाब इस कद्र दबाव से निकला की चुत मे घुसा सेवक का लंड बाहर को फिक गया.
"आअह्ह्ह....सरदार आअह्ह्ह....रुकना नहीं और अंदर " कामरूपा मदहोशी मे चीख उठी.
ये क्या....जिस सरदार भुजंग के लंड से औरते मर जाया करती थी,पानी मांगने लगती थी आज वो ही लंड ये कामरूपा और अंदर डालने की बात कर रही है.
वहा मौजूद सभी आदमी आश्चर्य चकित रह गए किस तरह की औरत है ये.
कामरूपा जो कामवासना से घिरी हुई थी उसे क्या लेना देना था उनके आश्चर्य से उसे सिर्फ अपने शरीर की गर्मी निकालनी थी.
कामरूपा के ये शब्द भुजंग के अभिमान पे चोट की तरह था,उसकी मर्दानगी पे सवाल था.
भुजंग :- साली छिनाल.....ये ले बोलते हुए भुजंग ने एक ही झटके मे अपना पूरा राक्षसी लंड कामरूपा की गांड मे घुसेड़ दिया.
फिर क्या था.....धचा धच धचा धच..... गांड मे लंड जाने लगा.
सुपडे तक बाहर आता फिर टट्टो तक अंदर चला जाता.
कामरूपा :- आअह्ह्ह....आअह्ह्ह.... सरदार और जोर से आअह्ह्ह..... फाड़ मेरी गांड...आअह्ह्ह... और अंदर और अंदर
कामरूपा पागल हो चुकी थी उस से उसका बदन नहीं संभाल रहा था
पास खड़े मरखप और बाकि सेवक भी कामरूपा पे टूट पड़े
सामूहिक हमला हो चूका था कभी किसी का लंड मुँह मे तो कभी चुत मे तो कभी गांड मे....
कामरूपा अकेले ही 7 मर्दो से मुकाबला कर रही थी.
मारे लज्जात हवस के आंखे बंद होती तो कभी खुलती.
इधर रामनिवास सत्तू के पीछे पीछे चलता जा रहा था.
नजदीक ही झपड़ी दिखाई देती है
सत्तू :- आओ रामनिवास
उस्ताद :- अरे सत्तू ये किसे ले आया?
सत्तू :- उस्ताद ये अपना पुराना यार है आज दारू खाने पे मिल गया था सोच साथ ले आउ खेल लेगा ये भी.
जैसा उन्होने प्लान किया था रामनिवास के सामने वैसे ही बात चल रही थी.
रामनिवास झोपडी मे अंदर आ गया सभी का आपस मे परिचय हुआ.
और जिस काम के लिए रंगमंच सेट हुआ था वो काम भी शुरू हो गया.
चारो के पत्ते बट चुके थे,पहला दवा रामनिवास आसानी से जीत गया.
उस्ताद :- अरे वाह कमाल खेलते हो तुम तो
सब मुझे उस्ताद बोलते है लेकिन असली उस्ताद तो तुम निकले.
रामनिवास अपनज तारीफ और जीते हुए पैसे देख गदगद हो गया.
उसे लगने लगा वो वाकई मे जुए का उस्ताद है.
जबकि ये सब उन तीनो ठगों की योजना का हिस्सा था.
दूसरा दाँव खेला गया ये भी राम निवास जीत गया,तीसरा खेला गया ये भी रामनिवास जीत गया.
ऐसे ही और कुछ दाँव खेले गए और सभु रामनिवास जीतता गया.
तीनो के मुँह लटक गए, रामनिवास तो खुशी के मारे हवा मे उड़ रहा था.
सत्तू :- यार रामनिवास तूने तो हम सबको एक बार मे नंगा कर दिया, सत्तू लगभग रोते हुए बोला.
रामनिवास :- दिल छोटा मत कर सत्तू ये तो खेल का हिस्सा है हार जीत होती रहती है.
ये ले कुछ पैसे दारू प लेना, रामनिवास ने सत्तू की और पैसे फेंक दिए.
रामनिवास को अपनी किस्मत पैसे का घमंड हो चूका था
उसे लगता था की लक्ष्मी माँ उस पे मेहरबान है इसी गुरुर मे छाती चौड़ी किये वो झपड़ी से बाहर निकल चला
पीछे....
उस्ताद :- हाहाहाहा....बकरे ने चारा खा लिया है.
सत्तू :- हाँ उस्ताद देखि आपने उसकी आँखों की चमक साला लगता था की जैसे कोई पक्का जुआरी हो.हाहाहाहाबा....
करतार :- कल आएगा अब बकरा खुद हलाल होने.
उस्ताद :- हाहाहाहा.... ला भाई दारू पीला.
सुबह होने मे अभी वक़्त था
रामनिवास को आज रात भर नींद ही नहीं आई थी उसकी आँखों के सामने पैसे नाच रहे थे बेशुमार दौलत जो वो जुआ खेल के कमा सकता था.
लेकिन जुए मे ज्यादा पैसे कमाने के लिया पैसे भी ज्यादा चाहिए और सभी पैसो पे तो रतिवती कब्ज़ा कर के बैठी थी.
"रतिवती को कैसे मनाऊंगा?" ऐसे तो पैसा रखे रखे खत्म भी ही जायेगा.
रामनिवास अपनी किस्मत पर गुरुर करता हुआ काफ़ी कुछ सोचे जा रहा था आखिर कार निर्णय ले ही लिया उसने.
"भौर होने वाली है विषरूप जा के रतिवती को ले आता हूँ मना लूंगा जैसे तैसे आखिर मुफ्त मे मिले पैसे किसे अच्छे नहीं लगते"
रामनिवास लालच मे सुध बुध गवा चूका था उसे सिर्फ ढेर सारी दौलत दिख रही थी.
इसी उद्देश्य से वो रतिवती को लेने निकल पडा.
क्या वाकई रामनिवास की किस्मत तेज़ है या फिर लालच मे अंधा हो गया है.
कथा जारी है....