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Adultery ठाकुर ज़ालिम और इच्छाधारी नाग

आपका सबसे पसंदीदा चरित्र कौनसा है?

  • कामवती

  • रतिवती

  • रुखसाना

  • भूरी काकी

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sunoanuj

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अपडेट तैयार है दोस्तों आज दोपहर तक पढ़ने को मिलेगा 👍

Bhai update nahin aaya abhi tak….
 

andypndy

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अपडेट -82

शराब का नशा सभी के सर चढ़ के बोल रहा था, रामनिवास तो जीत कि खुशी मे ज्यादा ही धुत्त हो चला.
सत्तू :- रामनिवास भाई ऐसा क्या जादू है आपके पास कि जीतते ही जा रहे हो. सत्तू कि निगाह रतिवती पे ही टिकी हुई थी
"जादू" शब्द बोल के उसका धयान रतिवती के बहार झाँकते स्तन पे ही था.
रतिवती खुद जानबूझ के इस तरह बैठी थी कि उसकी चुचुईया आधे से ज्यादा बहार झाँक रही थी.
पैसे और वासना कि गर्मी से रतिवती का बदन भी जलने लगा.
images-5.jpg


उस्ताद :- दिखता नहीं क्या सत्तू तुझे कितने बड़े बड़े दो जादू है रामनिवास के पास, उस्ताद ने भी रतिवती कि गहरी खाई मे गोता लगाते हुए कहा. वो रतिवती कि निगाह को पहचान रहा था.

रतिवती उन सब कि बातो को भलीभांति समझ रही थी आखिर थी तो वो मझी हुई खिलाडी ही.
उसकी नजर भी उस्ताद और सत्तू के पाजामे से होती हुई झुक गई उसके होंठो पे एक अजीब सी मुस्कान तैर गई थी.

एक बाजी और हुई.....उस्ताद ये दाँव भी हार गया तीनो के चेहरे बुरी तरह उतर गए.
इधर रामनिवास और रतिवती के ख़ुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था.
"हाहाहाहाहा......देखा भाग्यवन कहा था ना मैंने किस्मत अपने साथ है देखो हम सब जीत गए " रामनिवास दारू के नशे मे झूम उठा,
उठने को हुआ ही था कि नशे कि अधिकता से वापस पलंग पे गिर पड़ा.
बस यही वो मौका था जिसकी योजना सत्तू ने बनाई थी समय आ गया था योजना को अमलीजमा पहनाने का.
सत्तू रुआसा सा मुँह बना के " क्या रामनिवास तुमने तो हमें नंगा ही कर दिया "
रामनिवास :- क्या करे भाई खेल ही ऐसा है कोई जीतता है तो कोई हारता है.
रामनिवास का कोई ध्यान नहीं था उनकी तरफ वो सिर्फ नोटों के बंडल को देख रहा था.
रतिवती तो इस कदर खुश थी कि उसे अपने कपड़ो का भी ध्यान नहीं था,वो इतने सारे पैसे देख बावरी हो गई थी उसके बदन से साड़ी का पल्लू सरक के जमीन चाट रहा था
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तीनो कि निगाह रतिवती के बड़े और उन्नत स्तनों पे ही टिकी हुई थी जिसकी गहरी खाई तीनो को ललचा रही थी.
कि तभी "एक दाँव और हो जाये रामनिवास " उस्ताद ने रतिवती और रामनिवास कि ख़ुशी मे बांधा डालते हुए कहा
रामनिवास :- हाहाहाहा....उस्ताद अब क्या लगाईगे दाँव पे अपनी लंगोट? रामनिवास घमंड और नशे मे चूर बोल रहा था
उसे आज ऐसा अनुभव हो रहा था कि साक्षात् भगवान भी उसके साथ जुआ खेल ले तो हार जाये.
उस्ताद :- रामनिवास सब तो तुम जीत चुके हो हमारा, दाँव पर इस बार हम अपनी गुलामी लगाते है.
ये दाँव तुम जीते तो हम तीनो ताउम्र तुम्हारे गुलाम रहेंगे और यदि हम जीते तो सारे पैसे हमारे होंगे जो भी तुम जीते हो बोलो मंजूर?
उस्ताद,करतार और सत्तू अपने जीवन का आखिरी दाँव खेल रहे थे.
रामनिवास ने एक बार रतिवती कि तरफ देखा,रतिवती कि लालची आँखों मे हाँ थी.

रतिवती को तो सोने पे सुहागा नजर आ रहा था पैसो के साथ उसे तीन तीन मुस्तडे गुलाम भी मील रहे थे जिनके साथ वो अपनी प्यास बुझा सकती थी. उसे अब रामनिवास की कोई जरूरत नहीं थी, वो सिर्फ ये आखरी दाँव जीत लेना चाहती थी.
रामनिवास :- अरे भाई नेकी और पूछ पूछ, मुझे मंजूर है तुम एक बार फिर सोच लो
उस्ताद:- सोचना क्या रामनिवास या तो जीत या फिर गुलामी
उस्ताद और सत्तू खुद को लाचार दिखा रहे थे जिससे कि वह अपने जीवन ही हार गए हो.
इस बार सत्तू ने पत्ते पिसे और उस्ताद और रामनिवास के बीच बट गए.
रामनिवास और रतिवती बेफिक्र थे उन्हें पता था आज किस्मत उनके साथ है वही जीतेंगे.
रामनिवास :- अभी भी सोच लो उस्ताद आखिरी वक़्त है पत्ते एक बार उठा लिए तो फिर खेल नहीं रुकेगा.
उस्ताद :- सोचना क्या है मित्र आज से तुम्हारी गुलामी भी मंजूर है,बोलते हुए उस्ताद ने पत्ते पलट दिये 3-3-3.
"हाहाहाहाहा......रामनिवास जोरो से हॅस पड़ा,क्या उस्ताद ये भी गया तुम्हारा तो.
रामनिवास इतना ज्यादा आत्मविश्वस मे था कि खुद के पत्ते देखे बिना ही अपनी जीत मान बैठा था.
उस्ताद :- अपने पत्ते तो दिखा दो रामनिवास अभी हारा नहीं हू मै.
रामनिवास ने पहला पत्ता पलटा "एक्का..." रतिवती तो खुशी से उछल ही पड़ी,जीत कि खुशी और तीन मुस्तडे गुलामो कि ललक ने उसकी चुत से पानी टपका दिया था.
उसकी खुशी का अंदाजा लगाना मुश्किल था.
भगवान जब देता है छप्पर फाड़ के ही देता है.
सामने बैठे करतार,उस्ताद पसीने पसीने हो चले थे.
दोनों ने सत्तू कि तरफ देखा जैसे पूछना चाह रहे हो "ये क्या कर दिया तूने? यही प्लान था तेरा?
सत्तू सिर्फ मुस्कुरा दिया " रामनिवास अगला पत्ता तो दिखाओ?"
रामनिवास :- देखना क्या है, मै ही जीत...जी...जी.....बोलते हुए रामनिवास ने पत्ता उलट दिया...साथ ही उसके हलक मे जबान अटक गई.
दूसरा पत्ता दुक्की था, रामनिवास के हाथ कंपने लगे,आखिरी पत्ते पलटने मे उसे जोर आ रहा था जैसे पहाड़ से भी भारी हो वो पत्ता.
अब तो खेल से भागा भी नहीं जा सकता था,
रतिवती कि हसीं भी गायब हो गई थी.
सत्तू :- क्या हुआ रामनिवास पलटो पत्ता?
रामनिवास ने कंपते हाथो से पत्ता धीरे से पलटा,उससे पत्ते का बोझ तक नहीं उठाया जा रहा था.
आखिर रामनिवास ने पत्ता पलट ही दिया...जैसे ही पत्ता पलटा कि रामनिवास और रतिवती कि किस्मत भी पलट गई.
"हाहाहाःहाहा.......रामनिवास मै जीता " उस्ताद खुशी के मारे उछल पड़ा सामने एक्का,दुक्की और पंजा था.
रामनिवास तो जैसे मर ही गया उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि वो अपना सारा पैसा एक बार मे ही हार गया.

चंद लम्हे पहले कि बाते उसे याद आने लगी "ये तो खेल है कोई जीतता है तो कोई हारता है "
वो इतना लालची कैसे हो गया था.
उस्ताद :- सो सुनार कि एक लुहार कि क्यों भाभी जी?
उस्ताद ने रतिवती कि तरफ देखते हुए कहा,
कहाँ रतिवती खुशी से फूली नहीं समा रही थी कहा अब उसकी आँखों मे आँसू थे.
मात्र थोड़े से लालच ने उनके सारे पैसे छीन लिए थे.
"अरे भाभीजी आप रोती क्यों है? एक मौका ओर देते है हम आपको " सत्तू लगभग रतिवती के पास जा बैठा.
रतिवती जो कि अभी तक सुन्दर काम वासनामयी स्वप्न मे डूबी हुई थी,एक पल मे ही उसके सारे सपने चकनाचूर हो चुके थे.
उसके चालक दिमाग़ ने काम.करना ही बंद कर दिया था.
"सब कुछ तो ले चुके हो तुम,अब कुछ नहीं है दाँव लगाने को सुबुक सुबुक....." रतिवती सुबूकते हुए सत्तू कि ओर देखते हुए बोली.
उस्ताद :- अभी तो बहुत कुछ है,क्यों रामनिवास? बात रामनिवास से कर रहा था लेकिन नजरें रतिवती के जिस्म पे ही टिकी हुई थी.

सत्तू :- जैसे हमने खुद को दाँव पे लगाया था,वैसे ही तुम दोनों खुद को दाँव पे लगा सकते हो.
उस्ताद कि बात सुन दोनों के पैरो तले जमीन खिसक गई.
"ये...ये....क्या बोल रहे हो तुम?हमें नहीं खेलना " रामनिवास हार से बिलबिलाया हुआ था
सत्तू :- सोच लो भाभीजी पूरा पैसा और हमारी गुलामी दाँव पे रहेगी
रामनिवास :- नहीं....नहीं....हमें.....
"क्या नहीं नहीं......सब तुम्हारी गलती है जब जीत रहे थे तब ही मान जाते, बिना पैसे के जीने से अच्छा है इनके गुलाम ही बन जाये.
रतिवती तुनक कर खड़ी हो गई और एकाएक रामनिवास पे बरस पड़ी.
" क्या जरुरत थी मुझे विषरूप से लाने कि, लालची हो तुम भुगतो अब, हम तैयार है लेकिन ये आखिरी दाँव होगा "
20211009-204826.jpg

रतिवती ने गुस्से और बेबसी मे हाँ तो भर दि थी.
लेकिन वो नहीं जानती थी इसका अंजाम बहुत बुरा होने वाला है.,इन सब मे वो ये बात तक भूल गई थी कि इस दौलत से कीमती भी एक चीज अभी भी उसके पास ही है
"नागमणि "
पत्ते वापस से बाटे जाने लगे एक आखिरी दाँव के लिए...

इधर रात के सन्नाटे को चिरता चोर मंगूस भी अपनी मंजिल कि और बढ़ा जा रहा था,उसे हर हालात मे नागमणि चाहिए थी.

तो क्या रतिवती खुद को गुलामी से बचा पायेगी?
समय रहते मंगूस रतिवती के घर पहुंच पाएगा?
बने रहिये कथा जारी है...
 
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andypndy

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सबसे पहले देर से आने के लिए माफ़ी चाहूंगा.
जिंदगी कि उलझन मे फसा रहा.
अपडेट भी थोड़ा छोटा है, परन्तु अब से रेगुलर और लम्बे अपडेट आया करंगे.पहले कि तरह ही.
बने रहिये कथा जारी रहेगी....👍
 

andypndy

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nice update


update chhota hai.
par bahot khusi hui ki aap ne update diya
asha karta hu ki aap ki story ke regular update milte rahenge
बिल्कुल दोस्त अपडेट अब रेगुलर आया करेंगे
 
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Nevil singh

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शराब का नशा सभी के सर चढ़ के बोल रहा था, रामनिवास तो जीत कि खुशी मे ज्यादा ही धुत्त हो चला था.
सत्तू :- रामनिवास भाई ऐसा क्या जादू है आपके पास कि जीतते ही जा रहे हो. सत्तू कि निगाह रतिवती पे ही टिकी हुई थी
"जादू" शब्द बोल के उसका धयान रतिवती के बहार झाँकते स्तन पे ही था.
रतिवती खुद जानबूझ के इस तरह बैठी थी कि उसकी चुचुईया आधे से ज्यादा बहार झाँक रही थी.
पैसे और वासना कि गर्मी से रतिवती का बदन भी जलने लगा था.
images-5.jpg


उस्ताद :- दिखता नहीं क्या सत्तू तुझे कितने बड़े बड़े दो जादू है रामनिवास के पास, उस्ताद ने भी रतिवती कि गहरी खाई मे गोता लगाते हुए कहा. वो रतिवती कि निगाह को पहचान रहा था.

रतिवती उन सब कि बातो को भलीभांति समझ रही थी आखिर थी तो वो मझी हुई खिलाडी ही.
उसकी नजर भी उस्ताद और सत्तू के पाजामे से होती हुई झुक गई उसके होंठो पे एक अजीब सी मुस्कान तैर गई थी.

एक बाजी और हुई.....उस्ताद ये दाँव भी हार गया तीनो के चेहरे बुरी तरह उतर गए.
इधर रामनिवास और रतिवती के ख़ुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था.
"हाहाहाहाहा......देखा भाग्यवन कहा था ना मैंने किस्मत अपने साथ है देखो हम सब जीत गए " रामनिवास दारू के नशे मे झूम उठा उठने को हुआ ही था कि नशे कि अधिकता से वापस पलंग पे गिर पड़ा.
बस यही वो मौका था जिसकी योजना सत्तू ने बनाई थी समय आ गया था योजना को अमलीजमा पहनाने का.
सत्तू रुआसा सा मुँह बना के " क्या रामनिवास तुमने तो हमें नंगा ही कर दिया "
रामनिवास :- क्या करे भाई खेल ही ऐसा है कोई जीतता है तो कोई हारता है.
रामनिवास का कोई ध्यान नहीं था उनकी तरफ वो सिर्फ नोटों के बंडल को देख रहा था.
रतिवती तो इस कदर खुश थी कि उसे अपने कपड़ो का भी ध्यान नहीं था,वो इतने सारे पैसे देख बावरी हो गई थी उसके बदन से साड़ी का पल्लू सरक के जमीन चाट रहा था
bhabhi-saree.gif

तीनो कि निगाह रतिवती के बड़े और उन्नत स्तनों पे ही टिकी हुई थी जिसकी गहरी खाई तीनो को ललचा रही थी.
कि तभी "एक दाँव और हो जाये रामनिवास " उस्ताद ने रतिवती और रामनिवास कि ख़ुशी मे बंधा ढकते हुए कहा
रामनिवास :- हाहाहाहा....उस्ताद अब क्या लगाईगे दाँव पे अपनी लंगोट? रामनिवास घमंड और नशे मे चूर बोल रहा था
उसे आज ऐसा अनुभव हो रहा था कि साक्षात् भगवान भी उसके साथ जुआ खेल ले तो हार जाये.
उस्ताद :- रामनिवास सब तो तुम जीत चुके हो हमारा, दाँव पर इस बार हम अपनी गुलामी लगाते है.
ये दाँव तुम जीते तो हम तीनो ताउम्र तुम्हारे गुलाम रहेंगे और यदि हम जीते तो सारे पैसे हमारे होंगे जो भी तुम जीते हो बोलो मंजूर?
उस्ताद,करतार और सत्तू अपने जीवन का आखिरी दाँव खेल रहे थे.
रामनिवास ने एक बार रतिवती कि तरफ देखा,रतिवती कि लालची आँखों मे हाँ थी.

रतिवती को तो सोने पे सुहागा नजर आ रहा था पैसो के साथ उसे तीन तीन मुस्तडे गुलाम भी मील रहे थे जिनके साथ वो अपनी प्यास बुझा सकती थी. उसे अब रामनिवास की कोई जरूरत नहीं थी, वो सिर्फ ये आखरी दाँव जीत लेना चाहती थी.
रामनिवास :- अरे भाई नेकी और पूछ पूछ, मुझे मंजूर है तुम एक बार फिर सोच लो
उस्ताद:- सोचना क्या रामनिवास या तो जीत या फिर गुलामी
उस्ताद और सत्तू खुद को लाचार दिखा रहे थे जिससे कि वह अपने जीवन ही हार गए हो.
इस बार सत्तू ने पत्ते पिसे और उस्ताद और रामनिवास के बीच बट गए.
रामनिवास और रतिवती बेफिक्र थे उन्हें पता था आज किस्मत उनके साथ है वही जीतेंगे.
रामनिवास :- अभी भी सोच लो उस्ताद आखिरी वक़्त है पत्ते एक बार उठा लिए तो फिर खेल नहीं रुकेगा.
उस्ताद :- सोचना क्या है मित्र आज से तुम्हारी गुलामी भी मंजूर है,बोलते हुए उस्ताद ने पत्ते पलट दिये 3-3-3.
"हाहाहाहाहा......रामनिवास जोरो से हॅस पड़ा,क्या उस्ताद ये भी गया तुम्हारा तो.
रामनिवास इतना ज्यादा आत्मविश्वस मे था कि खुद के पत्ते देखे बिना ही अपनी जीत मान बैठा था.
उस्ताद :- अपने पत्ते तो दिखा दो रामनिवास अभी हरा नहीं हू मै.
रामनिवास ने पहला पत्ता पलटा "एक्का..." रतिवती तो खुशी से उछल ही पड़ी,जीत कि खुशी और तीन मुस्तडे गुलामो कि ललक ने उसकी चुत से पानी टपका दिया था.
उसकी खुशी का अंदाजा लगाना मुश्किल था.
भगवान जब देता है छप्पर फाड़ के ही देता है.
सामने बैठे करतार,उस्ताद पसीने पसीने हो चले थे.
दोनों ने सत्तू कि तरफ देखा जैसे पूछना चाह रहे हो "ये क्या कर दिया तूने? यही प्लान था तेरा?
सत्तू सिर्फ मुस्कुरा दिया " रामनिवास अगला पत्ता तो दिखाओ?"
रामनिवास :- देखना क्या है, मै ही जीत...जी...जी.....बोलते हुए रामनिवास ने पत्ता उलट दिया...साथ ही उसके हलक मे जबान अटक गई.
दूसरा पत्ता दुक्की था, रामनिवास के हाथ कंपने लगे,आखिरी पत्ते पलटने मे उसे जोर आ रहा था जैसे पहाड़ से भी भारी हो वो पत्ता.
अब तो खेल से भागा भी नहीं जा सकता था,
रतिवती कि हसीं भी गायब हो गई थी.
सत्तू :- क्या हुआ रामनिवास पलटो पत्ता?
रामनिवास ने कंपते हाथो से पत्ता धीरे से पलटा,उससे पत्ते का बोझ तक नहीं उठाया जा रहा था.
आखिर रामनिवास ने पत्ता पलट ही दिया...जैसे ही पत्ता पलटा कि रामनिवास और रतिवती कि किस्मत भी पलट गई.
"हाहाहाःहाहा.......रामनिवास मै जीता " उस्ताद खुशी के मारे उछल पड़ा सामने एक्का,दुक्की और पंजा था.
रामनिवास तो जैसे मर ही गया उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि वो अपना सारा पैसा एक बार मे ही हार गया.

चंद लम्हे पहले कि बाते उसे याद आने लगी "ये तो खेल है कोई जीतता है तो कोई हारता है "
वो इतना लालची कैसे हो गया था.
उस्ताद :- सो सुनार कि एक लुहार कि क्यों भाभी जी?
उस्ताद ने रतिवती कि तरफ देखते हुए कहा,
कहाँ रतिवती खुशी से फूली नहीं समा रही थी कहा अब उसकी आँखों मे आँसू थे.
मात्र थोड़े से लालच ने उनके सारे पैसे छीन लिए थे.
"अरे भाभीजी आप रोती क्यों है? एक मौका ओर देते है हम आपको " सत्तू लगभग रतिवती के पास जा बैठा.
रतिवती जो कि भी तक सुन्दर काम वासनामयी स्वप्न मे डूबी हुई थी,एक पल मे ही उसके सारे सपने चकनाचूर हो चुके थे.
उसके चालक दिमाग़ ने काम.करना ही बंद कर दिया था.
"सब कुछ तो ले चुके हो तुम,अब कुछ नहीं है दाँव लगाने को सुबुक सुबुक....." रतिवती सुबूकते हुए सत्तू कि ओर देखते हुए बोली.
उस्ताद :- अभी तो बहुत कुछ है,क्यों रामनिवास? बात रामनिवास से कर रहा था लेकिन नजरें रतिवती के जिस्म पे ही टिकी हुई थी.

सत्तू :- जैसे हमने खुद को दाँव पे लगाया था,वैसे ही तुम दोनों खुद को दाँव पे लगा सकते हो.
उस्ताद कि बात सुन दोनों के पैरो तले जमीन खिसक गई.
"ये...ये....क्या बोल रहे हो तुम?हमें नहीं खेलना " रामनिवास हार से बिलबिलाया हुआ था
सत्तू :- सोच लो भाभीजी पूरा पैसा और हमारी गुलामी दाँव पे रहेगी
रामनिवास :- नहीं....नहीं....हमें.....
"क्या नहीं नहीं......सब तुम्हारी गलती है जब जीत रहे थे तब ही मान जाते, बिना पैसे के जीने से अच्छा है इनके गुलाम ही बन जाये.
रतिवती तुनक कर खड़ी हो गई और एकाएक रामनिवास पे बरस पड़ी.
" क्या जरुरत थी मुझर विषरूप से लाने कि, लालची हो तुम भुगतो अब, हम तैयार है लेकिन ये आखिरी दाँव होगा "
20211009-204826.jpg

रतिवती ने गुस्से और बेबसी मे हाँ तो भर दि थी.
लेकिन वो नहीं जानती थी इसका अंजाम बहुत बुरा होने वाला है.,इन सब मे वो ये बात तक भूल गई थी कि इस दौलत से कीमती भी एक चीज अभी भी उसके पास ही है
"नागमणि "
पत्ते वापस से बाटे जाने लगे एक आखिरी दाँव के लिए...

इधर रात के सन्नाटे को चिरता चोर मंगूस भी अपनी मंजिल कि और बढ़ा जा रहा था,उसे हर हालात मे नागमणि चाहिए थी.

तो क्या रतिवती खुद को गुलामी से बचा पायेगी?
समय रहते मांगस रतिवती के घर पहुंच आएगा?
बने रहिये कथा जारी है...
Nice update dost
 
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