तुम सामने सच में हो या कोई ख्वाब है।
भाग-1
तुमसे अंतिम बार मिले हुए आज 3 साल पूरे होने को आए है और आज भी सोचता हुँ कि शायद हम कभी मिले ही ना होते, शायद हमनें दिल लगाये ही नी होते, पर ये शायद शायद ही रह गया क्यूकिं आज भी आस लगी है कि शायद तुम आओगे और गले लगाकर कहोगे साजन तुम्हारी यादों ने बहुत रूलाया हमें।
तुम्हें याद हैं वो सोमू भैया के छोले-समोसे जिसे तुम खाकर हमेशा कहते थे वाह! क्या स्वाद है और अपनी आखें बड़ी करके जो प्यार से कहते थे की एक और मिल जाता तो मजा आ जाता और मैं हस कर कहता था हा भुक्कड़!! रूको लाया। वो शाम को कॉलेज से घर जाते हुए तुम्हारे मेरा कंधे पर सर रखना और मुझे कसके बाँहों में भर कर बैठना। वो रविवार की शाम को घंटों तक घाट पर बैठ कर गंगा मैया को निहारते हुए हमारे भविष्य के बारे में बाते करना। और हाँ तुम्हें वो वाकिय़ा तो याद होगा ही जब तुमने नमन को झाप्पड़ मारा था और उसका एक दाँत टुट गया था, पूरा कॉलेज उस पर हस रहे थे, उसे लगा कि तुम शायद कोई साधारण सी लड़की होगी पर उसे क्या पता की तुम्हारे पिता एक पुलिस अफसर हैं, जिन्होने उसे आत्मरक्षा करना सिखाया है।
पर ये सिर्फ यादे बनकर ही रह गयी, तुम्हारे आने पर तो ऐसा लगा था जैसे पुष्पवर्षा हो रही हो, पर तुम इस तरह गायब हुए जैसे मुठ्ठी से रेत फिसल जाता है, मैने तुम्हें खोजना तो चाहा पर मैं तो ये भी नहीं जानता था कि कहाँ हो, कैसे हो, क्या कर रहे हो। मेरा इन्तज़ार कर रहे हो या नहीं। बस इतना पता है कि इस कमबख्त दिल पर तुमने राज़ किया था या शायद ये कहना ज्यादा सही होगा कि अब भी करती हो। तुम मेरी जिन्दगी की किताब का वो पन्ना हो जिसे मैं पूरा करना तो चाहता हुँ पर अब तक कर नहीं पाया हुँ। ये 3 साल कैसे तेरी यादों के सहारे बिताये है बस मैं ही जानता हुँ -
रात हुई जब शाम के बाद, तेरी याद आई हर बात के बाद ।
हमने खामोश रह कर भी देखा, तेरी आवाज़ आई हर साँस के बाद ।।
मैने आज भी तुम्हारी हर एक चीज उसी तरह संभाल कर रखी है जैसे तुम रखा करते थे। तुम्हारी पायल जिसे तुम अंतिम मिलन में भुल गये थे, जिसकी धुन सुन कर मैं होश खो देता था।
चलो तुम नहीं तो, तुम्हारी यादों के सहारे ही ये तीन साल काट लिए मैनें पर अब ये बेरूखी खलने लगी है, दिल करता है कि तुम्हें अपनी बाहों में कैद करके कहीं भी ना जाने दुँ, हमेशा अपनी नज़रों के सामने रखूं और तुम्हारी इन झील सी आँखों के सागर में डुब जाऊँ, तेरी कोयल जैसी मधुर आवाज को सुनता रहुँ।
अब तुम्हारे बिना ये पल-पल सुल (काँटो) की भाँति चुब रहे है। अब देर ना लगाओ लौट आओ, अब देर ना लगाओ लौट.....
ओये युग क्या य़ार पूरे दिन बैठके डायरी लिखते रहता है कभी हमारे साथ भी समय गुजारा कर, हमेशा क्या इसके पन्ने भरने में लगा रहता है पिछले 3 साल में 4 ऐसी डायरीयाँ भर चुका है, वैसे कौन है वो मोहतरमा जिनके बारे में हमारे युग ने 4 किताबे (डायरीयाँ) लिख डाली।
युग ने बस बोलने वाले को एक मुस्कान के साथ देखा और डायरी को अपने बैग में रखने लगा।
हाँ भाई, हमें क्यों बताएगा।
क्या स़र आप भी टाँग खींच रहे है और यहाँ करने को है ही क्या, यहाँ पहाड़ और हम जैसे पागलों के सिवा रहता ही कौन है जिससे बातें कि जाए, अब तो बस ये डायरी ही है जिसका सहारा है-
ये एक पागल शायर की डायरी मेरे स़ारे गमों को बाँट लेती है, एक चोट जो है मेरे दिल पर, उस पर भी अपनी मोहब्बत का मलहम लगा देती है।
तभी एक सैनिक आकर उन दोनों को बताता है की युग साहब को कर्नल साहब ने याद किया है। युग अपने बैरेक से निकल कर कर्नल साहब के ऑफिस क्वार्टर के बाहर खड़े सिपाही को कहता है कि साहब को बोलिए की मैं आया हु, सिपाही अन्दर जाकर साहब को युग के बारे में बताता है और बाहर आकर अन्दर जाने का आग्रह करता है। युग अन्दर जाता है।
जय हिन्द सर,
जय हिन्द, अरे युग आओ-आओ, और बताओ क्या हाल-चाल बर्खुरदार मज़ा आ रहा है ना।
सर आप भी ना हर बार एक ही सवाल करते हो, कभी तो नया कुछ ट्राई किजिए।
अरे ये क्या बात हुई, तुम भी तो 3 सालों से वैसे के वैसे हो, जऱा सा भी चेंज नहीं लाये खुद में, भला मैं क्युँ अपना सवाल चेंज करू।
और वैसे लास्ट बार अपने घर कब गये थे,
दो साल पहले सर,
चलो तो अपने बैग तैयार करलो, तुम्हारा बुलावा आ चुका है, तुम्हारी माँ ने तुम्हारे लिए खत भेजा है
माँ का खत और एक डब्बा देता है।
हाँ और उस पागल ने भी दो खत भेजे है, ये लो और मुझे बता देना कब निकलना है, मैं तुम्हारे घर इत्तला करवा दुँगा।
जी सर, जय हिंद सर, मुस्कुराते हुए अपने बैरेक में आ जाता है।
पहला खत - माँ का
प्रिय पुत्र युग,
आशा करती हुँ कि तुम और तुम्हारी बटालियन सकुशल होंगे। मैनें अपने हाथों से तुम्हारे लिए देशी घी वाले बेसन के लड्डू भेजे है, अपने साथ अपनी बटालियन वालों को भी देना। मैं तुमसे बहुत नाराज हुँ, बेटा ऐसा क्या हुआ है 2 सालों में जो तुम हमसें यूँ कट से गये हो, ऐसी क्या बात है जो तुम हमें यूँ सजा दे रहे हो। कम से कम हमें ये तो बताओ कि वो क्या बात है जिसनें तुम्हें हमसे यूँ जुदा कर दिया जैसे साख से पत्ता टूट जाता है। तुम्हारे पिताजी कह रहे थे शायद उसे छुट्टी नहीं मिल रहीं, नहीं तो वो तुम्हारे बिना रह सकता है क्या। मेरी भैया से भी बात हुई थी उन्होनें कहा उन्हें कुछ नहीं मालूम बस इतना पता है कि तुम अपना खाली समय एक डायरी लिखने में व्यतीत करते हो। तुम्हें घर आये भी लगभग 2 साल हो गये है, और तुम्हारा आखरी खत भी 1 साल पहले आया था। आज से ठीक 1 माह बाद तुम 27 वर्ष के हो जाओगे। मैं चाहती हुँ इस बार तुम अपना जन्मदिन हमारे साथ, अपने परिवार के साथ मिलकर मनाओ। और अगर तुम इस बार भी ना आये तो शायद अगली बार तुम मेरा हंसता हुआ वो चेहरा नहीं देख पाओगे जिसे देखकर तुम कहते थे कि माँ आप हंसते हुए कितने प्यारे लगते हो और ये तुम्हारी माँ का ये अन्तिम फैसला है। और तुम्हारे लिए एक खुशखबरी भी है जो तुम्हें तभी बताई जाएगी जब तुम घर लौट जाऔगे। मैं ये आशा करती हुँ कि खत मिलते ही तुम मुझे अपने आने कि खबर भिजवा दोंगे। पूरा परिवार तुमसें बहुत प्रेम करता है।
तुम्हारी माँ।
दुसरा खत - WD (पागल) का
A.V.N.I.
धन्यवाद