sandyk1234
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#25
“कबीर मेरा बिलकुल भी मूड नहीं है देने का , तू जानता है मैंने कभी तुझे मना नहीं किया पर अभी मन नहीं है मेरा ” मंजू ने अपना हाथ हटाते हुए कहा
मैं- ठीक है नाराज क्यों होती है . चल सोते है
निचे आने के बाद मैंने एक बार फिर से चेक किया की दरवाजे सब बंद है की नहीं फिर हम बिस्तर पर आ गए.
मंजू- बहुत बरसो बाद हवेली ने रौशनी देखी है
मैं- समय का फेर है सब यार.
मन्जू- तुझे सच में दुःख नहीं है न चाचा की मौत का
मैं- दुःख है पर इतना नहीं है, हमेशा से ही उसका और मेरा रिश्ता ऐसा ही रहा था
बहुत दिनों में वो रात थी जब मैं गहरी नींद में सोया हु. सुबह उठा तो मंजू सफाई में लगी हुई थी . आसमान तन कर खड़ा था बरसने के लिए, मैंने जाकेट पहनी और बाहर निकल गया. कल की अफरा तफरी में मुझे ये होश ही नहीं था की जला सिर्फ मंजू का घर ही नहीं था बल्कि पिताजी की जीप में भी आग लगी थी . इतना लापरवाह कैसे हो सकता था मैं जो ये बात नोटिस नहीं कर सका मैं. अभी गाडी तो चाहिए थी ही , पहले की बात और थी जब साइकिल से दुरी नाप देते थे पर अब उम्रभी वो ना रही थी गाड़ी का जुगाड़ करना ही था . खैर, मैं पैदल ही खेतो की तरफ चल दिया.
एक मन मेरा था की गीली मिटटी में ट्रेक्टर से मेहनत कर ली जाये और दूजा मन था की जंगल में चला जाये. बाड में बने छेद से मैं जंगल में घुस गया . पूरी सावधानी से होते हुए मैं एक बार फिर से उसी झोपडी पर पहुँच गया . पर अफ़सोस की झोपडी का वजूद नहीं बचा था , शेष कुछ था तो बस सरकंडो की राख . कोई था जिसे ये भी मालूम था की मैं यहाँ तक आ पहुंचा हु.
“कुछ तो कहानी रही होगी तुम्हारी भी , कोई तो बात थी जरुर, जो तुम्हारा ये हाल हुआ ” मैंने कहा और आसपास तलाश करने लगा. अक्सर लोग हड़बड़ी में कुछ गिरा जाते है या कुछ छूट जाता है. एक तो बहनचोद ये बारिस का मौसम , इसकी वजह से उमस इतनी थी की झाड़ियो में घुसना साला सजा ही था ऊपर से जब देखो तब बारिश . जैसे तैसे करके मैं अपनी तलाश में लगा था और मुझे थोड़ी ही दूर एक छोटा पोखर मिला. दरअसल वो एक गड्ढा था जिसमे बारिश का पानी इकठ्ठा हुआ पड़ा था . पास में एक बड़ा सा पत्थर था पर मेरी दिलचस्पी उस चीज में थी जिसे मैंने अपने हाथ में उठा लिया था .
किसी औरत के कच्छी थी वो . बेहद ही सुन्दर कच्छी . हलके नीले रंग की कच्छी जिस पर तारे बने हुए थे . खास बात ये थी की उस पर मिटटी नहीं थी . मतलब की किसी ने उसे खुद उतार कर रखा हो . बेशक वो गीली थी पर गन्दी नहीं थी ,इसका सिर्फ और सिर्फ एक ही मतलब था की हाल फिलहाल में ही कोई औरत थी इधर. पर मुद्दे की बात ये नहीं थी , जंगल में आई हो कोई चुदने . गाँव देहात में ये कोई अनोखी घटना तो नहीं थी .
घूमते घूमते मैं एक बार फिर उसी खान के पास पहुँच गया. इसकी ख़ामोशी मुझे अजीब बहुत लगती थी. एक बार फिर मैं सधे कदमो से अन्दर को चल दिया. पानी थोडा और भर गया था लगातार बारिश की वजह से . धीरे धीरे अँधेरा घना होने लगा.
“जब यही आना था तो कोई बैटरी साथ लानी थी ” मैंने खुद पर लानत देते हुए कहा. आँखे जितना अभ्यस्त हो सकती थी मैं चले जा रहा था , आज कुछ और आगे पहुँच गया था मैं. अजीब सी बदबू मेरी सांसो में समा रही थी , नहीं ये किसी मरे हुए जानवर की तो हरगिज नहीं थी . मेरे फेफड़ो में कुछ तो भर रहा था पर क्या . खुमारी थी या कोई मदहोशी पर अच्छा बहुत लग रहा था .
पैर में कोई कंकड़ चुभा तो जैसे होश आया. सीलन, फिसलन बहुत थी , ना जाने पानी किस तरफ से इतना अन्दर तक आ गया था . तभी मेरा सर किसी चीज से टकराया और मैं निचे गिर गया.
“क्या मुशीबत है यार ” मैंने अपने गीले हाथो को जैकेट से पोंछते हुए कहा कंकडो पर हाथ की रगड़ से लगा की हथेली छिल ही गयी हो. दर्द सा होने लगा था तो मैंने वापिस लौटने का निर्णय लिया. खान से बाहर आकर पाया की छिला तो नहीं था पर रगड़ की वजह से लाली आ गयी थी. खेतो पर आने के बाद मैं सोचने लगा की क्या करना चाहिए. दिल तो कहता था की जमीन समतल की जाये पर फिर जाने दिया. इस मौसम में और क्या ही किया जा सकता था सिवाय खाट लेने के. तीनों निचे पड़ी चारपाई पर जैसे ही मैं जाने लगा पैर में फिर कंकड़ चुभा.
“क्या चुतियापा है ” चप्पल से कंकड़ को निकाल कर फेंक ही रहा था की हाथ रुक गये.
कांच का टुकड़ा था वो बेतारिब सा . मैंने उसे फेंका , घाव पर मिटटी लगाई और लेट कर बारिश को देखने लगा की तभी पगडण्डी से मैंने उसे आते देखा तो माथा ठनक गया.........
“ये बहनचोद इधर क्यों ” मैंने अपने आप से सवाल किया और उस खूबसूरत नज़ारे में फिर खो गया . बारिसो के शोर में भी उसकी पायल की झंकार अपने दिल तक महसूस की मैंने. कलपना कीजिये दूर दूर तक कोई नहीं सिवाय इस बरसात के और खेतो की आपके सामने यौवन से लड़ी कामुक हसीना जिसके माथे से लेकर पेट तक को बूंदे चूम रही हो , छतरी तो बस नाम की थी ना उसे परवाह थी भीगने की ना मौसम की कोई कोताही थी .
“जानती थी तुम यही मिलोगे ” भाभी ने पानी झटकते हुए कहा.
मैं- इतनी तो कोई बेताबी नहीं थी की बरसते मेह में ही चली आई.
“बात करनी थी तुमसे ” बोली वो
मैं- तो भी को कोई बात नहीं थी . इतना तो तुम्हे जान ही गया हु, तो सीधा मुद्दे पर आओ
भाभी- मुझे मालूम हुआ की तुमने मंजू को हवेली में रहने को कहा है
मैं- हवेली मेरी है मैं चाहे जिसे रहने को कहू किसी को दिक्कत नहीं होनी चाहिए
भाभी- मुझे दिक्कत है .
मैं- तुम्हे मंजू से दिक्कत है या इस ख्याल से दिक्कत है की रात को उसकी चूत मेरे लिए खुलती है
भाभी- तमीज , तमीज मत भूलो कबीर.
मैं- तकलीफ बताओ अपनी भाभी , रिश्तो के गणित में मत उलझो
भाभी- मंजू की माँ और उसका भाई आये थे मेरे पास. गाँव-बस्ती में अभी भी कुछ नियम-कायदे चलते है . उनको आपत्ति है मंजू का तुम्हारे साथ रहने से . उन्होंने कहा है की या तो कबीर समझ जाये या फिर ........
भाभी ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी.
मैं- या फिर क्या.... क्या वो लोग झगडा करना चाहते है , भाभी तुम भी जानती हो की उसका घर जल गया है जब तक उसका नया घर नहीं बन जाता वो कहाँ रहेगी .
भाभी- कही भी रह सकती है , चाहे तो मेरे घर चाहे तो ताई के घर पर हवेली में नहीं .
मैं-मेरी मर्जी में जो आएगा वो करेगा . मंजू का हवेली पर उतना ही हक़ है जितना की मेरा .
भाभी- उफ़ ये उद्दंडता तुम्हारी, मैंने चाह तो अभी के अभी गांड पर लात मार कर उसे बाहर फेंक सकती हूँ और ये मत भूलना की हवेली पर सिर्फ तुम्हारा अकेले का ही अधिकार नहीं
मैं- मेरे अकेले का ही अधिकार है , कहाँ गयी थी तुम जब हवेली की नींव दरक रही थी जब हवेली सुनी पड़ी थी .
भाभी- ये तुम भी जानते हो और मुझे कहने की जरुरत नहीं की कितना प्यार है मुझे उस से .वो मैं ही थी जिसने उस ख़ामोशी को सीने में उतारा है
“मंजू तो वही रहेगी चाहे जो कुछ हो जाये ” मैंने कहा
भाभी- जिद मत करो कबीर. उसकी माँ से वादा करके आई हु मैं
मैं- जिद कहाँ की भाभी ,ये मेरा कर्तव्य है उसके प्रति जिद कर बैठा तो कहीं हवेली उसके नाम न कर बैठू .
भाभी- मजबूर मत कर कबीर मुझे, उसे या तो मेरे घर रहने दे या फिर ताई के . इसमें तेरी बात भी रह जाएगी और मेरा मान भी. इतना हक़ तो मेरा आज भी है तुम पर . बरसो पहले हुए कलेश के घाव आज तक तकलीफ दे रहे है नया कलेश मत कर कबीर. मान जा .
मैं- मुझे लगता है की तुम्हे जाना चाहिए भाभी .
“अगर तुम्हारी यही इच्छा है कबीर तो ये ही सही इसे भी पूरा करुँगी ” भाभी ने फिर मुड कर ना देखा. ..............
Nice अपडेट भाई#25
“कबीर मेरा बिलकुल भी मूड नहीं है देने का , तू जानता है मैंने कभी तुझे मना नहीं किया पर अभी मन नहीं है मेरा ” मंजू ने अपना हाथ हटाते हुए कहा
मैं- ठीक है नाराज क्यों होती है . चल सोते है
निचे आने के बाद मैंने एक बार फिर से चेक किया की दरवाजे सब बंद है की नहीं फिर हम बिस्तर पर आ गए.
मंजू- बहुत बरसो बाद हवेली ने रौशनी देखी है
मैं- समय का फेर है सब यार.
मन्जू- तुझे सच में दुःख नहीं है न चाचा की मौत का
मैं- दुःख है पर इतना नहीं है, हमेशा से ही उसका और मेरा रिश्ता ऐसा ही रहा था
बहुत दिनों में वो रात थी जब मैं गहरी नींद में सोया हु. सुबह उठा तो मंजू सफाई में लगी हुई थी . आसमान तन कर खड़ा था बरसने के लिए, मैंने जाकेट पहनी और बाहर निकल गया. कल की अफरा तफरी में मुझे ये होश ही नहीं था की जला सिर्फ मंजू का घर ही नहीं था बल्कि पिताजी की जीप में भी आग लगी थी . इतना लापरवाह कैसे हो सकता था मैं जो ये बात नोटिस नहीं कर सका मैं. अभी गाडी तो चाहिए थी ही , पहले की बात और थी जब साइकिल से दुरी नाप देते थे पर अब उम्रभी वो ना रही थी गाड़ी का जुगाड़ करना ही था . खैर, मैं पैदल ही खेतो की तरफ चल दिया.
एक मन मेरा था की गीली मिटटी में ट्रेक्टर से मेहनत कर ली जाये और दूजा मन था की जंगल में चला जाये. बाड में बने छेद से मैं जंगल में घुस गया . पूरी सावधानी से होते हुए मैं एक बार फिर से उसी झोपडी पर पहुँच गया . पर अफ़सोस की झोपडी का वजूद नहीं बचा था , शेष कुछ था तो बस सरकंडो की राख . कोई था जिसे ये भी मालूम था की मैं यहाँ तक आ पहुंचा हु.
“कुछ तो कहानी रही होगी तुम्हारी भी , कोई तो बात थी जरुर, जो तुम्हारा ये हाल हुआ ” मैंने कहा और आसपास तलाश करने लगा. अक्सर लोग हड़बड़ी में कुछ गिरा जाते है या कुछ छूट जाता है. एक तो बहनचोद ये बारिस का मौसम , इसकी वजह से उमस इतनी थी की झाड़ियो में घुसना साला सजा ही था ऊपर से जब देखो तब बारिश . जैसे तैसे करके मैं अपनी तलाश में लगा था और मुझे थोड़ी ही दूर एक छोटा पोखर मिला. दरअसल वो एक गड्ढा था जिसमे बारिश का पानी इकठ्ठा हुआ पड़ा था . पास में एक बड़ा सा पत्थर था पर मेरी दिलचस्पी उस चीज में थी जिसे मैंने अपने हाथ में उठा लिया था .
किसी औरत के कच्छी थी वो . बेहद ही सुन्दर कच्छी . हलके नीले रंग की कच्छी जिस पर तारे बने हुए थे . खास बात ये थी की उस पर मिटटी नहीं थी . मतलब की किसी ने उसे खुद उतार कर रखा हो . बेशक वो गीली थी पर गन्दी नहीं थी ,इसका सिर्फ और सिर्फ एक ही मतलब था की हाल फिलहाल में ही कोई औरत थी इधर. पर मुद्दे की बात ये नहीं थी , जंगल में आई हो कोई चुदने . गाँव देहात में ये कोई अनोखी घटना तो नहीं थी .
घूमते घूमते मैं एक बार फिर उसी खान के पास पहुँच गया. इसकी ख़ामोशी मुझे अजीब बहुत लगती थी. एक बार फिर मैं सधे कदमो से अन्दर को चल दिया. पानी थोडा और भर गया था लगातार बारिश की वजह से . धीरे धीरे अँधेरा घना होने लगा.
“जब यही आना था तो कोई बैटरी साथ लानी थी ” मैंने खुद पर लानत देते हुए कहा. आँखे जितना अभ्यस्त हो सकती थी मैं चले जा रहा था , आज कुछ और आगे पहुँच गया था मैं. अजीब सी बदबू मेरी सांसो में समा रही थी , नहीं ये किसी मरे हुए जानवर की तो हरगिज नहीं थी . मेरे फेफड़ो में कुछ तो भर रहा था पर क्या . खुमारी थी या कोई मदहोशी पर अच्छा बहुत लग रहा था .
पैर में कोई कंकड़ चुभा तो जैसे होश आया. सीलन, फिसलन बहुत थी , ना जाने पानी किस तरफ से इतना अन्दर तक आ गया था . तभी मेरा सर किसी चीज से टकराया और मैं निचे गिर गया.
“क्या मुशीबत है यार ” मैंने अपने गीले हाथो को जैकेट से पोंछते हुए कहा कंकडो पर हाथ की रगड़ से लगा की हथेली छिल ही गयी हो. दर्द सा होने लगा था तो मैंने वापिस लौटने का निर्णय लिया. खान से बाहर आकर पाया की छिला तो नहीं था पर रगड़ की वजह से लाली आ गयी थी. खेतो पर आने के बाद मैं सोचने लगा की क्या करना चाहिए. दिल तो कहता था की जमीन समतल की जाये पर फिर जाने दिया. इस मौसम में और क्या ही किया जा सकता था सिवाय खाट लेने के. तीनों निचे पड़ी चारपाई पर जैसे ही मैं जाने लगा पैर में फिर कंकड़ चुभा.
“क्या चुतियापा है ” चप्पल से कंकड़ को निकाल कर फेंक ही रहा था की हाथ रुक गये.
कांच का टुकड़ा था वो बेतारिब सा . मैंने उसे फेंका , घाव पर मिटटी लगाई और लेट कर बारिश को देखने लगा की तभी पगडण्डी से मैंने उसे आते देखा तो माथा ठनक गया.........
“ये बहनचोद इधर क्यों ” मैंने अपने आप से सवाल किया और उस खूबसूरत नज़ारे में फिर खो गया . बारिसो के शोर में भी उसकी पायल की झंकार अपने दिल तक महसूस की मैंने. कलपना कीजिये दूर दूर तक कोई नहीं सिवाय इस बरसात के और खेतो की आपके सामने यौवन से लड़ी कामुक हसीना जिसके माथे से लेकर पेट तक को बूंदे चूम रही हो , छतरी तो बस नाम की थी ना उसे परवाह थी भीगने की ना मौसम की कोई कोताही थी .
“जानती थी तुम यही मिलोगे ” भाभी ने पानी झटकते हुए कहा.
मैं- इतनी तो कोई बेताबी नहीं थी की बरसते मेह में ही चली आई.
“बात करनी थी तुमसे ” बोली वो
मैं- तो भी को कोई बात नहीं थी . इतना तो तुम्हे जान ही गया हु, तो सीधा मुद्दे पर आओ
भाभी- मुझे मालूम हुआ की तुमने मंजू को हवेली में रहने को कहा है
मैं- हवेली मेरी है मैं चाहे जिसे रहने को कहू किसी को दिक्कत नहीं होनी चाहिए
भाभी- मुझे दिक्कत है .
मैं- तुम्हे मंजू से दिक्कत है या इस ख्याल से दिक्कत है की रात को उसकी चूत मेरे लिए खुलती है
भाभी- तमीज , तमीज मत भूलो कबीर.
मैं- तकलीफ बताओ अपनी भाभी , रिश्तो के गणित में मत उलझो
भाभी- मंजू की माँ और उसका भाई आये थे मेरे पास. गाँव-बस्ती में अभी भी कुछ नियम-कायदे चलते है . उनको आपत्ति है मंजू का तुम्हारे साथ रहने से . उन्होंने कहा है की या तो कबीर समझ जाये या फिर ........
भाभी ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी.
मैं- या फिर क्या.... क्या वो लोग झगडा करना चाहते है , भाभी तुम भी जानती हो की उसका घर जल गया है जब तक उसका नया घर नहीं बन जाता वो कहाँ रहेगी .
भाभी- कही भी रह सकती है , चाहे तो मेरे घर चाहे तो ताई के घर पर हवेली में नहीं .
मैं-मेरी मर्जी में जो आएगा वो करेगा . मंजू का हवेली पर उतना ही हक़ है जितना की मेरा .
भाभी- उफ़ ये उद्दंडता तुम्हारी, मैंने चाह तो अभी के अभी गांड पर लात मार कर उसे बाहर फेंक सकती हूँ और ये मत भूलना की हवेली पर सिर्फ तुम्हारा अकेले का ही अधिकार नहीं
मैं- मेरे अकेले का ही अधिकार है , कहाँ गयी थी तुम जब हवेली की नींव दरक रही थी जब हवेली सुनी पड़ी थी .
भाभी- ये तुम भी जानते हो और मुझे कहने की जरुरत नहीं की कितना प्यार है मुझे उस से .वो मैं ही थी जिसने उस ख़ामोशी को सीने में उतारा है
“मंजू तो वही रहेगी चाहे जो कुछ हो जाये ” मैंने कहा
भाभी- जिद मत करो कबीर. उसकी माँ से वादा करके आई हु मैं
मैं- जिद कहाँ की भाभी ,ये मेरा कर्तव्य है उसके प्रति जिद कर बैठा तो कहीं हवेली उसके नाम न कर बैठू .
भाभी- मजबूर मत कर कबीर मुझे, उसे या तो मेरे घर रहने दे या फिर ताई के . इसमें तेरी बात भी रह जाएगी और मेरा मान भी. इतना हक़ तो मेरा आज भी है तुम पर . बरसो पहले हुए कलेश के घाव आज तक तकलीफ दे रहे है नया कलेश मत कर कबीर. मान जा .
मैं- मुझे लगता है की तुम्हे जाना चाहिए भाभी .
“अगर तुम्हारी यही इच्छा है कबीर तो ये ही सही इसे भी पूरा करुँगी ” भाभी ने फिर मुड कर ना देखा. ..............
मामी को तो हमारे यहां आधी घरवाली भी कहा जाता है.....मामी पहला प्यार है यार![]()
आज तो कबीर के साथ KLPD ho गया...पहले मंजू ने मना किया और जंगल में बारिश से भीगी हुयी भाभी भी यू ही चली गयी......#25
“कबीर मेरा बिलकुल भी मूड नहीं है देने का , तू जानता है मैंने कभी तुझे मना नहीं किया पर अभी मन नहीं है मेरा ” मंजू ने अपना हाथ हटाते हुए कहा
मैं- ठीक है नाराज क्यों होती है . चल सोते है
निचे आने के बाद मैंने एक बार फिर से चेक किया की दरवाजे सब बंद है की नहीं फिर हम बिस्तर पर आ गए.
मंजू- बहुत बरसो बाद हवेली ने रौशनी देखी है
मैं- समय का फेर है सब यार.
मन्जू- तुझे सच में दुःख नहीं है न चाचा की मौत का
मैं- दुःख है पर इतना नहीं है, हमेशा से ही उसका और मेरा रिश्ता ऐसा ही रहा था
बहुत दिनों में वो रात थी जब मैं गहरी नींद में सोया हु. सुबह उठा तो मंजू सफाई में लगी हुई थी . आसमान तन कर खड़ा था बरसने के लिए, मैंने जाकेट पहनी और बाहर निकल गया. कल की अफरा तफरी में मुझे ये होश ही नहीं था की जला सिर्फ मंजू का घर ही नहीं था बल्कि पिताजी की जीप में भी आग लगी थी . इतना लापरवाह कैसे हो सकता था मैं जो ये बात नोटिस नहीं कर सका मैं. अभी गाडी तो चाहिए थी ही , पहले की बात और थी जब साइकिल से दुरी नाप देते थे पर अब उम्रभी वो ना रही थी गाड़ी का जुगाड़ करना ही था . खैर, मैं पैदल ही खेतो की तरफ चल दिया.
एक मन मेरा था की गीली मिटटी में ट्रेक्टर से मेहनत कर ली जाये और दूजा मन था की जंगल में चला जाये. बाड में बने छेद से मैं जंगल में घुस गया . पूरी सावधानी से होते हुए मैं एक बार फिर से उसी झोपडी पर पहुँच गया . पर अफ़सोस की झोपडी का वजूद नहीं बचा था , शेष कुछ था तो बस सरकंडो की राख . कोई था जिसे ये भी मालूम था की मैं यहाँ तक आ पहुंचा हु.
“कुछ तो कहानी रही होगी तुम्हारी भी , कोई तो बात थी जरुर, जो तुम्हारा ये हाल हुआ ” मैंने कहा और आसपास तलाश करने लगा. अक्सर लोग हड़बड़ी में कुछ गिरा जाते है या कुछ छूट जाता है. एक तो बहनचोद ये बारिस का मौसम , इसकी वजह से उमस इतनी थी की झाड़ियो में घुसना साला सजा ही था ऊपर से जब देखो तब बारिश . जैसे तैसे करके मैं अपनी तलाश में लगा था और मुझे थोड़ी ही दूर एक छोटा पोखर मिला. दरअसल वो एक गड्ढा था जिसमे बारिश का पानी इकठ्ठा हुआ पड़ा था . पास में एक बड़ा सा पत्थर था पर मेरी दिलचस्पी उस चीज में थी जिसे मैंने अपने हाथ में उठा लिया था .
किसी औरत के कच्छी थी वो . बेहद ही सुन्दर कच्छी . हलके नीले रंग की कच्छी जिस पर तारे बने हुए थे . खास बात ये थी की उस पर मिटटी नहीं थी . मतलब की किसी ने उसे खुद उतार कर रखा हो . बेशक वो गीली थी पर गन्दी नहीं थी ,इसका सिर्फ और सिर्फ एक ही मतलब था की हाल फिलहाल में ही कोई औरत थी इधर. पर मुद्दे की बात ये नहीं थी , जंगल में आई हो कोई चुदने . गाँव देहात में ये कोई अनोखी घटना तो नहीं थी .
घूमते घूमते मैं एक बार फिर उसी खान के पास पहुँच गया. इसकी ख़ामोशी मुझे अजीब बहुत लगती थी. एक बार फिर मैं सधे कदमो से अन्दर को चल दिया. पानी थोडा और भर गया था लगातार बारिश की वजह से . धीरे धीरे अँधेरा घना होने लगा.
“जब यही आना था तो कोई बैटरी साथ लानी थी ” मैंने खुद पर लानत देते हुए कहा. आँखे जितना अभ्यस्त हो सकती थी मैं चले जा रहा था , आज कुछ और आगे पहुँच गया था मैं. अजीब सी बदबू मेरी सांसो में समा रही थी , नहीं ये किसी मरे हुए जानवर की तो हरगिज नहीं थी . मेरे फेफड़ो में कुछ तो भर रहा था पर क्या . खुमारी थी या कोई मदहोशी पर अच्छा बहुत लग रहा था .
पैर में कोई कंकड़ चुभा तो जैसे होश आया. सीलन, फिसलन बहुत थी , ना जाने पानी किस तरफ से इतना अन्दर तक आ गया था . तभी मेरा सर किसी चीज से टकराया और मैं निचे गिर गया.
“क्या मुशीबत है यार ” मैंने अपने गीले हाथो को जैकेट से पोंछते हुए कहा कंकडो पर हाथ की रगड़ से लगा की हथेली छिल ही गयी हो. दर्द सा होने लगा था तो मैंने वापिस लौटने का निर्णय लिया. खान से बाहर आकर पाया की छिला तो नहीं था पर रगड़ की वजह से लाली आ गयी थी. खेतो पर आने के बाद मैं सोचने लगा की क्या करना चाहिए. दिल तो कहता था की जमीन समतल की जाये पर फिर जाने दिया. इस मौसम में और क्या ही किया जा सकता था सिवाय खाट लेने के. तीनों निचे पड़ी चारपाई पर जैसे ही मैं जाने लगा पैर में फिर कंकड़ चुभा.
“क्या चुतियापा है ” चप्पल से कंकड़ को निकाल कर फेंक ही रहा था की हाथ रुक गये.
कांच का टुकड़ा था वो बेतारिब सा . मैंने उसे फेंका , घाव पर मिटटी लगाई और लेट कर बारिश को देखने लगा की तभी पगडण्डी से मैंने उसे आते देखा तो माथा ठनक गया.........
“ये बहनचोद इधर क्यों ” मैंने अपने आप से सवाल किया और उस खूबसूरत नज़ारे में फिर खो गया . बारिसो के शोर में भी उसकी पायल की झंकार अपने दिल तक महसूस की मैंने. कलपना कीजिये दूर दूर तक कोई नहीं सिवाय इस बरसात के और खेतो की आपके सामने यौवन से लड़ी कामुक हसीना जिसके माथे से लेकर पेट तक को बूंदे चूम रही हो , छतरी तो बस नाम की थी ना उसे परवाह थी भीगने की ना मौसम की कोई कोताही थी .
“जानती थी तुम यही मिलोगे ” भाभी ने पानी झटकते हुए कहा.
मैं- इतनी तो कोई बेताबी नहीं थी की बरसते मेह में ही चली आई.
“बात करनी थी तुमसे ” बोली वो
मैं- तो भी को कोई बात नहीं थी . इतना तो तुम्हे जान ही गया हु, तो सीधा मुद्दे पर आओ
भाभी- मुझे मालूम हुआ की तुमने मंजू को हवेली में रहने को कहा है
मैं- हवेली मेरी है मैं चाहे जिसे रहने को कहू किसी को दिक्कत नहीं होनी चाहिए
भाभी- मुझे दिक्कत है .
मैं- तुम्हे मंजू से दिक्कत है या इस ख्याल से दिक्कत है की रात को उसकी चूत मेरे लिए खुलती है
भाभी- तमीज , तमीज मत भूलो कबीर.
मैं- तकलीफ बताओ अपनी भाभी , रिश्तो के गणित में मत उलझो
भाभी- मंजू की माँ और उसका भाई आये थे मेरे पास. गाँव-बस्ती में अभी भी कुछ नियम-कायदे चलते है . उनको आपत्ति है मंजू का तुम्हारे साथ रहने से . उन्होंने कहा है की या तो कबीर समझ जाये या फिर ........
भाभी ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी.
मैं- या फिर क्या.... क्या वो लोग झगडा करना चाहते है , भाभी तुम भी जानती हो की उसका घर जल गया है जब तक उसका नया घर नहीं बन जाता वो कहाँ रहेगी .
भाभी- कही भी रह सकती है , चाहे तो मेरे घर चाहे तो ताई के घर पर हवेली में नहीं .
मैं-मेरी मर्जी में जो आएगा वो करेगा . मंजू का हवेली पर उतना ही हक़ है जितना की मेरा .
भाभी- उफ़ ये उद्दंडता तुम्हारी, मैंने चाह तो अभी के अभी गांड पर लात मार कर उसे बाहर फेंक सकती हूँ और ये मत भूलना की हवेली पर सिर्फ तुम्हारा अकेले का ही अधिकार नहीं
मैं- मेरे अकेले का ही अधिकार है , कहाँ गयी थी तुम जब हवेली की नींव दरक रही थी जब हवेली सुनी पड़ी थी .
भाभी- ये तुम भी जानते हो और मुझे कहने की जरुरत नहीं की कितना प्यार है मुझे उस से .वो मैं ही थी जिसने उस ख़ामोशी को सीने में उतारा है
“मंजू तो वही रहेगी चाहे जो कुछ हो जाये ” मैंने कहा
भाभी- जिद मत करो कबीर. उसकी माँ से वादा करके आई हु मैं
मैं- जिद कहाँ की भाभी ,ये मेरा कर्तव्य है उसके प्रति जिद कर बैठा तो कहीं हवेली उसके नाम न कर बैठू .
भाभी- मजबूर मत कर कबीर मुझे, उसे या तो मेरे घर रहने दे या फिर ताई के . इसमें तेरी बात भी रह जाएगी और मेरा मान भी. इतना हक़ तो मेरा आज भी है तुम पर . बरसो पहले हुए कलेश के घाव आज तक तकलीफ दे रहे है नया कलेश मत कर कबीर. मान जा .
मैं- मुझे लगता है की तुम्हे जाना चाहिए भाभी .
“अगर तुम्हारी यही इच्छा है कबीर तो ये ही सही इसे भी पूरा करुँगी ” भाभी ने फिर मुड कर ना देखा. ..............
बिल्कुल भाई...तभी तो दिल में बस जाती हैकहानिया मैंने हमेशा दिल से ही लिखी है भाई