#21
“वो जरुर आएगी , एक पिता बुलाये और बेटी ना आये ऐसा हो नहीं सकता ” मैंने कहा
ठाकुर- बस एक बार उसे देखने की ख्वाहिश है, अभी जाना होगा पर तुम ध्यान रखना , कोशिश करना इस इल्जाम को दूर करने की.
मैंने हाँ में सर हिलाया एक दो नसीहत और देने के पश्चात निशा के पिता चले गए. रिश्तेदार इकठ्ठा होने लगे थे. अजीब सी हालत हो गयी थी , आदमी गुस्से में चाहे जो कह दे पर परिवार में मौत को सहना आसान तो नहीं होता. शिवाले पर बैठा मैं सोच रहा था की किसी ज़माने के क्या ही रुतबा था हमारे परिवार का और अब ऐसी भद्द पिट रही थी की कुछ बचा ही नहीं था . गाँव के कुछ लोग हॉस्पिटल गए थे पोस्ट मार्टम के लिए , अब वहां पता नहीं कितना समय लगता तब तक अंतिम संस्कार भी नहीं हो सकता था . पर एक बात अच्छी थी की मंजू लौट आई थी .
“कबीर,” मेरे पास बैठते हुए बोली वो.
मैं- तुझे बीच में पड़ने की क्या जरुरत थी
मंजू- बावला है क्या तू , अगर मैं ब्यान नहीं देती तो थानेदार धर लेता तुझे, मामला गरम है न जाने क्या से क्या हो जाता.
मैं- फिर भी तुझे झूट नहीं बोलना था
मंजू- मुझे यकीन है की इसमें तेरा कुछ लेना देना नहीं है.
मैं- तेरी कसम मैं तो सोया पड़ा था तूने ही तो उठाया न मुझे.
मंजु- कबीर एक बात तो गाँव के सबसे चूतिया से चूतिया की भी समझ में आ गयी है की तुम्हारे परिवार का दुश्मन गाँव में ही है, तू नहीं था तो सब शांत था जैसे ही तू आया ये काण्ड हो गया. कोई तो है जो हद्द खुन्नस खाए हुए है तुझसे.
मैं- मालूम कर लूँगा
मंजू- अभी तू शांत रहना, लोग आयेंगे कोई कुछ बोलेगा कोई कुछ किसी को सफाई नहीं देनी.
मैं-जी घुट रहा है यहाँ थोडा बाहर चले क्या
मंजू- घर चल फिर
मैं – नहीं थोडा बाहर की तरफ चलते है , ताज़ी हवा मिलेगी तो अच्छा लगेगा.
मंजू- उसके लिए भी तुझे घर चलना ही होगा. मुझे कपडे बदलने है
हम दोनों मंजू के घर आ गए . मैने हाथ मुह धोये , मंजू कपडे बदलने लगी.
मैं- एक काम कर चाय बना ले , उधर ही कही बैठ कर पियेंगे
मंजू- ये बढ़िया है .
मैंने जीप स्टार्ट की और जल्दी ही हम खेतो के पास उसी पेड़ के निचे बैठे थे .
“कबीर, क्या रंडी-रोना है तेरे कुनबे का , मैं जानती हु तू कुछ बाते छिपा लेता है मुझसे पर तू चाहे तो मुझसे अपने मन की बात कर सकता है , और एक बात ये की चाची की इज्जत नहीं उछालनी थी तुझे गाँव के बीच ” बोली वो
मैं- आज तक उसकी ही इज्जत बचाते आया हूँ मैं, पर उसे कद्र ही नहीं . उसको बचाने के लिए मैं सब से ख़राब हुआ चाचा से भी , यहाँ तक तू भी यही जानती है की मैं चोदता था उसे पर ये सच नहीं है
मंजू कसम से, फिर तू क्यों जलील हुआ ऐसी क्या वजह थी
मैं- वो वजह जा चुकी है अब मंजू पर तू अजीज है मुझे तो आज मैं तुझे वो सच बता ही देता हूँ चाची में अवैध सम्बन्ध मुझसे नहीं बल्कि पिताजी से थे .
जैसे ही मैंने ये बात कही मंजू के हाथ से बिस्कुट गिर गया.
मंजू- शर्म कर ले कबीर.
मैं- जिज्ञासा है तो फिर सच सुनने की क्षमता भी रख मंजू. जीजा साली का प्रेम-प्रसंग था कब से मैं ये तो नहीं जानता था पर अगर उस दिन तुड़े के कमरे में मैंने दोनों की चुदाई नहीं देखी होती तो मियन भी यकीं नहीं करता .
मंजू- यकीन नहीं होता की ताऊ जी ऐसा कर सकते है
मैं- ये दुनिया उतनी भी शरीफ नहीं जितना लोग समझते है
मंजू- पर फिर तूने अपने ऊपर क्यों लिया वो इल्जाम
मैं- मैं झूठ नहीं कहूँगा, जब से मैने चाची को देखा था मैं चोदना चाहता था उसे , मैंने प्रयास भी किया था पर उसने ऐसी बात बोल दी की फिर मुझे दो में से एक चुनाव करना था और मैंने उसकी इच्छा का मान रखा.
मंजू- क्या
मैं- चाची भी समझ रही थी की मेरे मन में क्या था उसके प्रति और फिर एक शाम ऐसी आई जब हम दोनों घर पर अकेले थे , चाची उस रात मेरे पास आई और उसने कहा कबीर तेरे मन में क्या है
“मेरे मन में क्या होगा चाची ” मैंने कहा
चाची- कबीर, हम दोनों जानते है की क्या बात है , मुझे भली भाँती मालूम है की तुम्हे पूर्ण जानकारी है मेरे गलत रिश्ते के बारे में
मैंने सर झुका लिया.
चाची- कबीर तुम्हारी उम्र में ये स्वाभाविक है की तुम मोह करो इस जिस्म का , और मेरे हालात ऐसे है की मुझे तुम्हारी इच्छा पूरी करनी होगी. पर कबीर तुमने इस जिस्म को पा भी लिया थो तुम कुछ नहीं पा सकोगे. जेठ जी और मैं प्रेम करते है एक दुसरे से , आज तो नहीं पर एक दिन तुम जरुर इसे समझ पाओगे. मैं तुम्हे अपना बेटा मानती हु , बेशक तुम चाहो तो मुझे इस बिस्तर पर लिटा सकते हो पर उस से केवल तुम्हारी भूख शांत होगी और मेरा मन घायल . औरत को कभी हासिल नहीं किया जाता कबीर, औरत के मन को जीता जाता है और इस जन्म में मेरा मन कहीं और है . तुम्हे चुनाव का पूर्ण अधिकार है , मैं कुण्डी नहीं लगा रही , तुम्हारा जो भी निर्णय मुझे मंजूर है , मेरी गरह्स्थी की लाज तुम्हारे पास छोड़ कर जा रही हु , आगे तुम जानो
“मंजू , उस रात मेरे पास मौका था पर मेरी हिम्मत नहीं हुई. मन का चोर हार गया. मैं नहीं जा पाया उसके कमरे में ” मैंने कहा
मंजू- फिर वो तमाशा क्यों हुआ
मैं- इस घर की गिरती नींव को बचाने के लिए. चाचा ने जीजा-साली को देख लिया था पर वो गलत समझ गया उसे लगा की मैं हु पर थे पिताजी ने हुबहू दो शर्ट खरीदी थी , वो ही पहन कर मैं दो रात पहले चाचा के साथ एक शादी में गया था , चाचा ने पिताजी की पीठ देखी और वो मुझे समझ बैठा, चूतिये को मैंने समझाने की भरपूर कोशिश की पर उसने तमाशा कर दिया. मारने लगा चाची को अब वो इस से पहले की पिताजी का नाम ले देती , अजीब सी बदनामी को बचाने के लिए मैंने विष का प्याला उठा लिया और फिर जो भी हुआ वो तो तू जानती ही है .
मंजू- फिर भी वो तुझी को कातिल बता रही है , भूल गयी कम से कम उसे तो तेरा लिहाज करना था .
मैं- यही तो समझ नहीं आ रहा की ऐसा क्या हुआ जो वो इतना बदल गयी. ................