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Adultery तेरे प्यार में .....

Premkumar65

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#21

“वो जरुर आएगी , एक पिता बुलाये और बेटी ना आये ऐसा हो नहीं सकता ” मैंने कहा

ठाकुर- बस एक बार उसे देखने की ख्वाहिश है, अभी जाना होगा पर तुम ध्यान रखना , कोशिश करना इस इल्जाम को दूर करने की.

मैंने हाँ में सर हिलाया एक दो नसीहत और देने के पश्चात निशा के पिता चले गए. रिश्तेदार इकठ्ठा होने लगे थे. अजीब सी हालत हो गयी थी , आदमी गुस्से में चाहे जो कह दे पर परिवार में मौत को सहना आसान तो नहीं होता. शिवाले पर बैठा मैं सोच रहा था की किसी ज़माने के क्या ही रुतबा था हमारे परिवार का और अब ऐसी भद्द पिट रही थी की कुछ बचा ही नहीं था . गाँव के कुछ लोग हॉस्पिटल गए थे पोस्ट मार्टम के लिए , अब वहां पता नहीं कितना समय लगता तब तक अंतिम संस्कार भी नहीं हो सकता था . पर एक बात अच्छी थी की मंजू लौट आई थी .

“कबीर,” मेरे पास बैठते हुए बोली वो.

मैं- तुझे बीच में पड़ने की क्या जरुरत थी

मंजू- बावला है क्या तू , अगर मैं ब्यान नहीं देती तो थानेदार धर लेता तुझे, मामला गरम है न जाने क्या से क्या हो जाता.

मैं- फिर भी तुझे झूट नहीं बोलना था

मंजू- मुझे यकीन है की इसमें तेरा कुछ लेना देना नहीं है.

मैं- तेरी कसम मैं तो सोया पड़ा था तूने ही तो उठाया न मुझे.

मंजु- कबीर एक बात तो गाँव के सबसे चूतिया से चूतिया की भी समझ में आ गयी है की तुम्हारे परिवार का दुश्मन गाँव में ही है, तू नहीं था तो सब शांत था जैसे ही तू आया ये काण्ड हो गया. कोई तो है जो हद्द खुन्नस खाए हुए है तुझसे.

मैं- मालूम कर लूँगा

मंजू- अभी तू शांत रहना, लोग आयेंगे कोई कुछ बोलेगा कोई कुछ किसी को सफाई नहीं देनी.

मैं-जी घुट रहा है यहाँ थोडा बाहर चले क्या

मंजू- घर चल फिर

मैं – नहीं थोडा बाहर की तरफ चलते है , ताज़ी हवा मिलेगी तो अच्छा लगेगा.

मंजू- उसके लिए भी तुझे घर चलना ही होगा. मुझे कपडे बदलने है

हम दोनों मंजू के घर आ गए . मैने हाथ मुह धोये , मंजू कपडे बदलने लगी.

मैं- एक काम कर चाय बना ले , उधर ही कही बैठ कर पियेंगे

मंजू- ये बढ़िया है .

मैंने जीप स्टार्ट की और जल्दी ही हम खेतो के पास उसी पेड़ के निचे बैठे थे .

“कबीर, क्या रंडी-रोना है तेरे कुनबे का , मैं जानती हु तू कुछ बाते छिपा लेता है मुझसे पर तू चाहे तो मुझसे अपने मन की बात कर सकता है , और एक बात ये की चाची की इज्जत नहीं उछालनी थी तुझे गाँव के बीच ” बोली वो

मैं- आज तक उसकी ही इज्जत बचाते आया हूँ मैं, पर उसे कद्र ही नहीं . उसको बचाने के लिए मैं सब से ख़राब हुआ चाचा से भी , यहाँ तक तू भी यही जानती है की मैं चोदता था उसे पर ये सच नहीं है

मंजू कसम से, फिर तू क्यों जलील हुआ ऐसी क्या वजह थी

मैं- वो वजह जा चुकी है अब मंजू पर तू अजीज है मुझे तो आज मैं तुझे वो सच बता ही देता हूँ चाची में अवैध सम्बन्ध मुझसे नहीं बल्कि पिताजी से थे .

जैसे ही मैंने ये बात कही मंजू के हाथ से बिस्कुट गिर गया.

मंजू- शर्म कर ले कबीर.

मैं- जिज्ञासा है तो फिर सच सुनने की क्षमता भी रख मंजू. जीजा साली का प्रेम-प्रसंग था कब से मैं ये तो नहीं जानता था पर अगर उस दिन तुड़े के कमरे में मैंने दोनों की चुदाई नहीं देखी होती तो मियन भी यकीं नहीं करता .

मंजू- यकीन नहीं होता की ताऊ जी ऐसा कर सकते है

मैं- ये दुनिया उतनी भी शरीफ नहीं जितना लोग समझते है

मंजू- पर फिर तूने अपने ऊपर क्यों लिया वो इल्जाम

मैं- मैं झूठ नहीं कहूँगा, जब से मैने चाची को देखा था मैं चोदना चाहता था उसे , मैंने प्रयास भी किया था पर उसने ऐसी बात बोल दी की फिर मुझे दो में से एक चुनाव करना था और मैंने उसकी इच्छा का मान रखा.

मंजू- क्या

मैं- चाची भी समझ रही थी की मेरे मन में क्या था उसके प्रति और फिर एक शाम ऐसी आई जब हम दोनों घर पर अकेले थे , चाची उस रात मेरे पास आई और उसने कहा कबीर तेरे मन में क्या है

“मेरे मन में क्या होगा चाची ” मैंने कहा

चाची- कबीर, हम दोनों जानते है की क्या बात है , मुझे भली भाँती मालूम है की तुम्हे पूर्ण जानकारी है मेरे गलत रिश्ते के बारे में

मैंने सर झुका लिया.

चाची- कबीर तुम्हारी उम्र में ये स्वाभाविक है की तुम मोह करो इस जिस्म का , और मेरे हालात ऐसे है की मुझे तुम्हारी इच्छा पूरी करनी होगी. पर कबीर तुमने इस जिस्म को पा भी लिया थो तुम कुछ नहीं पा सकोगे. जेठ जी और मैं प्रेम करते है एक दुसरे से , आज तो नहीं पर एक दिन तुम जरुर इसे समझ पाओगे. मैं तुम्हे अपना बेटा मानती हु , बेशक तुम चाहो तो मुझे इस बिस्तर पर लिटा सकते हो पर उस से केवल तुम्हारी भूख शांत होगी और मेरा मन घायल . औरत को कभी हासिल नहीं किया जाता कबीर, औरत के मन को जीता जाता है और इस जन्म में मेरा मन कहीं और है . तुम्हे चुनाव का पूर्ण अधिकार है , मैं कुण्डी नहीं लगा रही , तुम्हारा जो भी निर्णय मुझे मंजूर है , मेरी गरह्स्थी की लाज तुम्हारे पास छोड़ कर जा रही हु , आगे तुम जानो



“मंजू , उस रात मेरे पास मौका था पर मेरी हिम्मत नहीं हुई. मन का चोर हार गया. मैं नहीं जा पाया उसके कमरे में ” मैंने कहा

मंजू- फिर वो तमाशा क्यों हुआ

मैं- इस घर की गिरती नींव को बचाने के लिए. चाचा ने जीजा-साली को देख लिया था पर वो गलत समझ गया उसे लगा की मैं हु पर थे पिताजी ने हुबहू दो शर्ट खरीदी थी , वो ही पहन कर मैं दो रात पहले चाचा के साथ एक शादी में गया था , चाचा ने पिताजी की पीठ देखी और वो मुझे समझ बैठा, चूतिये को मैंने समझाने की भरपूर कोशिश की पर उसने तमाशा कर दिया. मारने लगा चाची को अब वो इस से पहले की पिताजी का नाम ले देती , अजीब सी बदनामी को बचाने के लिए मैंने विष का प्याला उठा लिया और फिर जो भी हुआ वो तो तू जानती ही है .

मंजू- फिर भी वो तुझी को कातिल बता रही है , भूल गयी कम से कम उसे तो तेरा लिहाज करना था .

मैं- यही तो समझ नहीं आ रहा की ऐसा क्या हुआ जो वो इतना बदल गयी. ................
Nice twist in story. Abhi tak sab Chacha ko dushman samajh rahe they. par ab naya rwist aa gaya hai.
 

sunoanuj

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बहुत ही उम्दा अपडेट है ! फिर इस एक नई उलझन हर अपडेट एक नई उलझन दे जाता है !
 

HalfbludPrince

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आपकी कहानी में अनुमान तो अक्सर ग़लत होते हैं
कहानियो की ऐसी ही नियति होती है लेखक और पाठक के बीच चोर पुलिस का खेल चलता है
 

HalfbludPrince

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#२२

चबूतरे पर बैठे ठंडी हवा में चाय की चुसकिया लेते हुए हम दोनों तमाम सम्भावनाये तलाश रहे थे की कैसे क्या हो सकता था , क्या हुआ होगा चाचा के साथ .

“मुझे लगता है की चाची को अपनी गृहस्थी बचानी थी इसलिए वो पलट गयी ” मैंने कहा

मंजू- मैं मानती हूँ की औरत भरोसा तोडती है . चाची का मामला पेचीदा है पर मालूम तो करना ही होगा की उसके मन में कैसे इतना जहर भरा.

मैं- मौका मिलेगा तो अकेले में पूछुंगा उस से . पर मैं तुझसे कुछ कहना चाहता हु

मंजू- हाँ

मैं- तू कब तक ऐसे धक्के खाएगी , घर बसा ले यार

मंजू- अब तो आदत हो गयी है . साली जिन्दगी में इतना तिरस्कार सहा है न की सम्मान का मोह ख़त्म ही हो गया है . तेरी बात कभी कभी सही लगती है मुझे , परिवार में अपन को कोई चाहता नहीं है बस दिखावा है . वैसे मैं खुश हु कबीर, अकेलापन तंग करता नहीं मुझे.

मैं- समझता हु मंजू , पर फिर भी जिदंगी बहुत लम्बी है साथी रहे तो बेहतर तरीके से कट जाती है.

मंजू- ठीक है मानती हु तेरी बात पर तू बता कौन करेगा मुझसे अब शादी

मैं- कोई क्यों नहीं करेगा. क्या नहीं है तेरे पास, गदराया जोबन, सरकारी नौकरी अरे तू पाल लेगी उसे.

मंजू- गाँव-बस्ती में ये सब नहीं चलता, लोगो को लगता है की छोड़ी हुई औरत ही गलत होती है .

मैं- माँ चुदाने के गाँव को तू , तू अपनी मस्ती में जी न

मंजू- बचपन ही ठीक था यार, ये जवानी बहन की लौड़ी तंग ही कर रही है .

मैंने चाय का कप साइड में रखा और बोला- सुन तू एक काम करियो दिनों में तो तू जाएगी ही वहां पर , पूरी जासूसी करनी है तुझे. देखना कुछ न कुछ तो मिलेगा ही मैं बाहर से कोशिश करूँगा तू घर के अन्दर से करना . वैसे देगी क्या आज

मंजू- शर्म कर ले रे घर में लाश पड़ी है तुझे लेने देने की पड़ी है .

मैं- अब जो है वो है मैं क्या करू ,सुन बकरा बनाते है बहुत दिन हुए

मंजू- अभी तूने सोच ही लिया तो फिर करनी ही है मनमानी

“मनमानी नहीं है , बस अब फर्क नहीं पड़ता है जिन्दगी के उस दौर से गुजर रहा हूँ की मिल तो सब रहा है पर अब चाहत नहीं है ” मैंने कहा

मंजू- उदास मत हो , करते है मनमानी फिर

मैं मुस्कुरा दिया. बहुत देर तक हम वहां बैठे रहे .बचपन की बहुत सी यादे ताजा हो गयी थी . शाम से थोडा पहले हम वापिस गाँव आये , जीप को धोने का सोचा मैंने , सफाई करते समय मुझे कुछ गड्डी पैसो की मिली नोटों पर कालिख जमी थी , सीलन थी . मैंने उन्हें अन्दर रखा और जीप को धोने लगा की तभी मैंने सामने से मामी को आते हुए देखा. एक अरसे के बाद मैं उन्हें देख रहा था. लगा की वक्त जैसे मेरे लिए ठहर सा गया था .सब कुछ मेरे सामने वैसे ही आ रहा था जैसे की मेरी कहानी शूरू होने पर था .

“आप यहाँ कैसे ” मैंने कहा

“किसी ने बताया की तुम इधर मिलोगे तो चली आई ” एक पल को लगा की मामी आगे बढ़ कर गले से लगा लेंगी पर वो रुक गयी.

मैं-कैसी हो

मामी- ठीक हूँ , बरस बीते तुमने तो सब भुला दिया . मामा का घर इन्सान का दूसरा घर होता है ,वो घर भी तुम्हारा ही है पर तुमने ना जाने किस राह पर चलने का फैसला किया की पीछे सब छोड़ गए.

मैं-पहले जैसा कुछ रहा ही नहीं , सब बिखर गया

मामी- कुछ भी नहीं बदला है थोड़ी कोशिश करोगे तो सब तुम्हारा ही है

मैं- चाची सोचती है की मैंने मारा चाचा को

मामी- मैं जानती हु की तुम ऐसा नहीं कर सकते, मैं बात करुँगी उस से पर फिलहाल वक्त ठीक नहीं है

मैं-छोड़ो ये बताओ मामा आये है क्या .

मामी- कल शाम तक पहुँच जायेंगे

मामी की आँखों में मुझे बहुत कुछ दिख रहा था . मामी की जुल्फों में सफेदी झलकने लगी थी बदन थोडा भारी हो गया था , थोड़ी और निखर आई थी वो .

मैंने मामी का हाथ पकड़ा और बोला- समय का पहिया घूम रहा है उम्मीद है की सब सही होगा.

मामी- ऐसा ही होगा . अभी मैं चलती हूँ , ननद को संभालना होगा मिलूंगी तुमसे फिर

मैं- हवेली इंतजार करेगी

मामी के जाने के बाद मैंने मंजू के साथ खाना खाया , वैसे मैं मंजू की लेना चाहता था पर वो चाचा के घर जाना चाहती थी , वहां बैठना ज्यादा जरुरी था. वो चाचा के घर गयी मैं हवेली आ गया. हालाँकि मंजू चाहती थी की मैं उसके घर ही सो जाऊ. एक बार फिर से मैं पिताजी के सामान में अनजाने सच को तलाश रहा था . हर एक किताब को मैं फिर से बार बार देख रहा था की कहीं तो कुछ मिल जाये पर इस बार भी प्रयास व्यर्थ , जो इशारा था वो मुझे शायद उन कागजो में मिल चूका था . न जाने कैसी धुन थी वो , न जाने क्या तलाश रहा था मैं . संदूक में मुझे पिताजी की वर्दी मिली . आँखे छलक पड़ी मेरी, पिताजी को अपनी वर्दी हमेशा प्रेस की हुई चाहिए होती थी , संदूक में निचे उनके काले जूते थे , लगा की अभी पालिश की हो . भावनाओ का ज्वार थामे मैंने वर्दी को सीने से लगाया तो मुझे कुछ महसूस हुआ. वर्दी के अन्दर में एक जेब थी जिसमे एक किताब थी. गुंडा शीर्षक था उसका. मैंने पन्ने पलटने शुरू किये. और मुझे वो मिला जो एक नयी राह दिखा सकती थी.

“कबीर, मैं जानता हु तुम् यहाँ तक जरुर पहुंचोगे , पर सफ़र इधर का नहीं वहां का है जहाँ तुम अँधेरे में उजाला देखोगे. सब कुछ मिटटी है , पर मिटटी जादू है वो जादू जो मुझ पर चला . उजाले से प्यार मत करना अँधेरे में खो मत जाना. वहां पहुंचोगे तो सब जान जाओगे. सबको पहचान जाओगे. रास्ता तुम्हारे दिल से होकर जायेगा.” पिताजी के लिखे ये शब्द मुझे पागल ही कर गए थे. क्या बताना चाहता था बाप सोचते सोचते मैं भन्ना ही गया था .

“कबीर ” हौले से वो फुसफुसाई और मेरे सीने पर हाथ रख दिया. झट से मेरी आँख खुली और मैंने लालटेन की रौशनी में उसे देखा..

“मैं हु कबीर ” बोली वो और मेरी चादर में घुस गयी...........
 
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