#24
मेरे सामने मंजू का घर धू-धू करके जल रहा था ,गाँव के लोग कोशिश कर रहे थे आग को बुझाने के लिए और मंजू बदहवास सी बस देखे जा रही थी अपने आशियाने को बर्बाद होते हुए. कांपते हाथो से मैंने उसके सर पर हाथ रखा, सीने से लग कर जो रोई वो उसका एक एक आंसू मेरे कलेजे को चीर गया.
“कबीर, मेरा घर , कबीर कुछ नहीं बचा ” सुबकते हुए कहने लगी वो .
मैं- कुछ , कुछ नहीं हुआ मंजू, तू सुरक्षित है तो सब कुछ बचा है. ये घर हम दुबारा बना लेंगे , तमाम नुकसान की भरपाई कर लेंगे. ये तमाम चीजे तुझसे है . मैं वचन देता हु तुझे जिसने भी ये किया है ऐसे ही आग में जलाऊंगा उसे.
जब से इस गाँव में मैंने कदम रखा था अजीब सी मनहूसियत फैली हुई थी , कलेश थम ही नहीं रहा था पर अब बात हद से आगे बढ़ गयी थी, अगर मंजू घर में होती तो आज कुछ नहीं बचता , अचानक से ही मैंने बदन में डर को महसूस किया, कौन था वो दुश्मन जो मेरे साथ ही नहीं जो मेरे करीबियों पर भी वार करना चाहता था . मैं अपने डर को काबू नहीं कर पा रहा था मैंने उसका हाथ पकड़ा और हवेली ले आया.
“अब से तू यही रहेगी. ” मैंने कहा
मंजू- पर कबीर मैं कैसे ..
“मेरा जो भी है वो तेरा ही है और वैसे भी अब मुझे तेरी सुरक्षा की चिंता है ” मैंने उसकी बात काटते हुए कहा.
मंजू- क्या कहना चाहता है तू
मैं- मेरे दुश्मन को मालूम था की मैं तेरे घर पर ही हूँ , इसी वजह से तेरा नुकसान हुआ है. हवेली की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करना होगा, की कोई परिंदा भी ना आ सके. मैं आज ही व्यवस्था करता हूँ हवेली को रोशन करने की .
पूरा दिन मेरा बहुत व्यस्त बीता. दुगुने दामो पर मजदुर लाकर मैंने तमाम साफ़ सफाई करवाई. रिश्वत देकर आज के आज ही बिजली वाला काम भी करवा लिया था अब बस पानी के नलके बचे थे . रसोई के लिए जरुरी सामान भी बनिए से ले आया था . समस्या बस एक ही थी हवेली अकेली थी बस्ती थोड़ी दूर थी यहाँ से पर तसल्ली ये थी की अगर अब कोई हमला हुआ तो अपनी जगह पर होगा. मामी भी इस बात से बहुत चिंतित थी , मैंने जानबूझ कर पुलिस में कोई शिकायत नहीं दी थी , पर निशा से बात करना जरुरी था मैंने एसटीडी से फ़ोन मिलाया और उसे पूरी बात बताई , निशा चिंतित थी उसने कहा की वो जल्दी ही आएगी. उसने सुरक्षा के लिए कुछ बातो पर गौर करने का कहा मुझे. बरसो बाद हवेली में रौशनी हुई थी . बरसो बाद मैंने घर को महसूस किया. मामी ने खाना बना लिया था ,मन तो नहीं था पर खाने से बैर तो कर नहीं सकते थे , खाना परोसा ही था की ताईजी आ गयी .
“कबीर-मंजू मेरे बच्चो ठीक तो हो न तुम ” ताई ने हमें गले लगाया.
मैं- ठीक है सब
ताई-इतना सब हो गया मुझे सुचना देने की जहमत नहीं उठाई किसी ने भी, पीहर से न लौटती तो मालूम ही नहीं होता. मेरे बच्चो तुम अकेले नहीं हो. मैं हूँ अभी, तुम लोग आज से मेरे साथ रहोगे. इस दुनिया में ऐसी कोई शक्ति नहीं जो एक माँ के रहते उसके आँचल से उसके बच्चो को तकलीफ दे सके. भाभी, तुम अपनी ननद को समझाओ की दूर हो जाने से भी खून का रंग नहीं बदलता. ऐसा कौन सा घर है जिसमे तमाशे नहीं होते, कलेश नहीं होते , मेरे देवर की मौत हो गयी मुझे पता ही नहीं .
मामी- आपको तो सब पता है न दीदी
ताई- मेरे देखते देखते ये घर बिखर गया , ये हवेली सुनसान हो गयी. मैं चुप रही , मेरा सब कुछ लुट गया मैं चुप रही पर मेरे बच्चो का कोई अहित करने की सोचेगा तो मैं न जाने क्या कर दूंगी. मंजू बेशक मेरी कोख से नहीं जन्मी पर उसकी परवरिश इसी हवेली में हु , इसी हवेली में इसका बचपन बिता यही ये जवान हुई. मेरी बच्ची जिसने भी तुझे आंसू दिए है वो भुगतेगा जरुर.
मामला थोडा संजीदा हो गया था . माहौल हल्का करने के लिए मैंने बात को बदला और सबको खाना खाने के लिए कहा . बरसो बाद हवेली में चहल पहल थी .
“अब से तुम दोनों मेरे घर पर रहोगे ” ताईजी ने कहा
मैं- नहीं ताईजी, फिलहाल हवेली ही सुरक्षित जगह है , बल्कि मैं तो ये ही कहूँगा की आप भी यही रहो .
ताईजी- कबीर, उस घर को भी नहीं छोड़ सकती
मैं- फिर भी मैं चाहूँगा की जितना हो सके आप इधर ही रहो
ताई- बिलकुल
मैं- मंजू तू फ़िक्र ना कर, तुझे इतना खूबसूरत घर बना कर दूंगा की लोग देखेंगे
मंजू ने अपना सर मेरे काँधे पर रख दिया. बाते तो बहुत सी करनी थी पर ताईजी और मामी को चाची के घर जाना था .रह गए मैं और मंजू . दरवाजा बंद करने के बाद मैंने उसे छत पर आने को कहा. बिजली की वजह से अच्छा हो गया था . ठंडी हवा को महसूस करते हुए मैं एक पेग बना लिया.
“लेगी क्या ” मैंने कहा
मंजू- नहीं
मैं- ले ले थोडा अच्छा लगेगा
मंजू ने दो चार घूँट लिए और गिलास वापिस रख दिया.
मैं- यार कौन हो सकता है
मंजू- पहले तो मैं चाचा को ही समझती थी पर अब समझ से बाहर है सौदा
मैं- मुझे एक कड़ी मिल जाये तो फिर सब कुछ सामने आ जायेगा. पर न जाने वो कड़ी कहाँ है इतना तो मैं जान गया हूँ की माँ-पिताजी की मौत भी कोई साजिश ही थी.
मंजू- अतीत को कैसे तलाशेगा कबीर.
मैं- अतीत वर्तमान बन कर सामने आ गया है मंजू, समय की अपनी योजनाये होती है वो खुद मुझे वहां ले जायेगा. वक्त ने मेरा सब कुछ छीना है यही वक्त मुझे मेरा हक़ वापिस लौटाएगा .सवाल बस ये है की ये सब हो क्यों रहा है , ऐसा तो मुझे याद नहीं की कोई भी हो गाँव में जो इतनी शिद्दत से नफरत करता हो परिवार से .
मंजू ने अपनी जुल्फे खोल ली थी. चांदनी रात में उसकी ऊपर निचे होती छाती और मेरे हाथ में जाम
“ऐसे मत देख, समझ रही हु मैं ” शोखी से बोली वो
मैं- इसमें मेरा कोई दोष नहीं , ये तो कोई और है जो मजबूर है तेरी चूत में जाने को
“और कौन है वो भला ” मेरे आकर कहा उसने . की तभी मैंने उसका हाथ अपने लंड पर रख दिया.......................