#61
उस दोपहर मैं कुछ कपडे लेने अपने चोबारे में गया . कुछ पुराणी चीजे थी जरुरत की मैंने सोचा की इनको चाची के घर ही ले चलता हूँ. फिर देखा की चोबारे की सफाई काफी दिनों से हुई नहीं सोचा की चंपा को बोल दू पर फिर विचार किया छोटे से काम के लिए उसे क्या परेशां करना . इसी काम में थोडा धुल-मिटटी में सन गया मैं . मैंने अपने कपडे उतारे और बाथरूम की तरफ बढ़ गया.
दरवाजा आधा खुला था , मैंने पल्ले को और खोल दिया पर जो देखा मैंने कसम से एक पल नजरे ऐसी ठहरी की फिर उठ नहीं पाई. बाथरूम में मेरी आंखो के सामने भाभी पूरी नंगी पानी की बूंदों में लिपटी हुई खड़ी थी . साबुन के झाग में लिपटी भाभी की उन्नत चुचिया . गुलाबी जांघे और उतनी ही गुलाबी भाभी की छोटी सी चूत मेरे होश-हवास छीन ले गयी उस एक छोटे से पल में .
अचानक से ऐसा मामला हो गया जो न उसने सोचा था न मैंने. वो भोचक्की रह गयी मैं हैरान . भाभी के हुस्न का ऐसा दीदार शुक्र था मैं पिघल कर बह नहीं गया. जब भाभी को भान हुआ तो उसने तुरंत दरवाजा बंद कर लिया .अपनी तेज धडकनों को सँभालते हुए मैं तुरंत निचे आ गया.
निचे आते समय मेरी नजर राय साहब के कमरे पर पड़ी . मैंने सोचा की ये जाते कहाँ है . मैं पूरी ताक में था की कब वो चंपा को बुलाएगा चोदने के लिए . मैंने साइकिल उठाई और चौपाल पर जाकर बैठ गया. मेरे दिल में इस जगह को देख कर हमेशा ख्याल आता था की मेरी मोहब्बत की कहानी यही पर पूरी होगी. हाथ जोड़ कर मैंने लाली से माफ़ी मांगी और अपनी आगे की योजना पर विचार करने लगा.
समाज की चाशनी में लिपटे इस गाँव में अवैध संबंधो का तंदूर दहक रहा था . जिसका उधाहरण, लालि, चंपा राय साहब , मंगू-कविता, चाची और मैं खुद दे. मैंने सोचा ऐसे ही सम्बन्ध न जाने और भी गाँव वालो के रहे होंगे पर साले सब ने मुखोटे ओढ़े हुए थे शराफत के.
समझ नहीं आ रहा था की बाप चंपा को कहा किस जगह पेल रहा था . अभिमानु भाई और सूरजभान के बीच क्या था . मेरा दिल कहता था की मंगू को अपना राजदार बना लू पर चाह कर भी मैं उस पर विश्वास बना नहीं पा रहा था . मेरे पास दो सवाल थे एक का जवाब मेरे घर में था उअर दुसरे का जबाब तलाशने के लिए मुझे मलिकपुर जाना था . क्योंकि सूरजभान के बारे में मुझे जो भी जानकारी मिले वो वही से मिलती.
पसरते अँधेरे में घूमते घूमते मैं मलिकपुर में पहुँच गया . दो चार दुकानों का बाजार बंद हो रहा था . मैंने देखा की शराब की दूकान खुली थी . मैं उस तरफ बढ़ गया. मैंने देखा की एक भी आदमी नहीं था वहां पर सिर्फ एक औरत बैठी थी तीखे नैन-नक्श कपडे कम बदन की नुमाइश ज्यादा मैं समझ गया तेज औरत है ये .
“आज शराब नहीं मिलेगी आगे से माल आया नहीं ” उसने मुझे देख कर कहा.
मैं- शराब की तलब नहीं मुझे मेरी जरुरत कुछ और है .
उसने ऊपर से निचे तक देखा मुझे और बोली- तू तो वही है न जिसने सूरजभान का सर फोड़ा था .
मैं-किसी को न बताये तो वही हु मैं
वो- क्या चाहिए तुझे
मैं- कुछ सवाल है मेरे मन में जवाबो की तलाश है
वो- मेरा क्या फायदा तेरी मदद करने में
मैंने जेब से पाच पांच के नोटों की गड्डी निकाली और उसके हाथ में रख दी .
मैं- बहुत मामूली सवाल है मेरे तेरे अड्डे पर सब लोग आते है तू सबको जानती है हम एक दुसरे के काम आ सकते है .
उसने इधर उधर देखा और बोली- अन्दर आजा
मैं दुकान के अन्दर गया उसने दरवाजा बंद कर लिया . मैं उसके उन्नत उभारो को देखता रहा .
वो- क्या चाहता है तू
मैं-सूरजभान के बारे में क्या बता सकती है तू
वो- उसके बारे में क्या बताना सारा गाँव जानता है कितना नीच आदमी है वो .उसके दो ही काम है लोगो को तंग करना और पराई बहन बेटियों पर बुरी नजर डालना
मैं- कोई विरोध नहीं करता उसका .
वो- रुडा चौधरी बाप है उसका , ये गाँव उसकी जागीर है यहाँ पत्ता तक नहीं हिलता उसकी मर्जी के बिना . और फिर गाँव वाले क्या विरोध करेंगे. ये गाँव नहीं मुर्दा लोगो की बस्ती है जो सर झुका सकते है , गुलामी इनकी नसों में इतना अन्दर तक फ़ैल गयी है की आँखों में आँखे तक नहीं मिला सकते ये लोग.
मैं- तू तो दबंग लगती है . तू नहीं डरती उन लोगो से
वो- नहीं डरती मेरे पास है ही क्या खोने को जो मुझसे छीन लेंगे.
मैं- नाम क्या है तेरा
वो- रमा
मैं- रमा, तू इतना तो समझ ही गयी होगी की मुझे सूरजभान से कितनी नफरत है
रमा- जानती हूँ
मैं- उसके आतंक के अंत के लिए क्या तू मेरी सहायता करेगी मैं तुझे मुह मांगे पैसे दूंगा
रमा- पैसे नहीं चाहिए , क्या तू वादा कर सकता है की तू उसे मार देगा
मैं- इच्छा तो मेरी भी यही है . पर तू क्यों चाहती है ऐसा
रमा- उसकी वजह से मेरी बेटी को मरना पड़ा था .
मैंने रमा के कंधे पर हाथ रखा और बोला- मैं तुझसे वादा करता हु उसकी खाल जरुर उतारूंगा . एक बात बता तू अभिमानु ठाकुर को जानती है .
रमा- जानती हूँ
मैं- अभी मानु और सूरजभान की दोस्ती कैसी है . मेरा मतलब अभिमानु आते जाते रहता होगा यहाँ
रमा ने अजीब नजरो से देखा मुझे और बोली- सूरजभान से अभीमानु ठाकुर की दोस्ती. तुझे तो बिन पिए ही नशा हो रहा है .
मैं- कुछ समझा नहीं
रमा- अभिमानु शीतल जल है और सूरजभान तेल . दोनों अलग है उनमे दोस्ती मुमकिन नहीं
मैं- पर उस दिन जब मैंने सूरजभान को मारा तूने भी देखा होगा मेरा भाई कैसे उसे अपने सीने से लगाया था .
रमा- यही बात मुझे बहुत दिन से खटक रही है . अभिमानु ठाकुर ने पुरे पांच साल बाद इस गाँव में कदम रखा था .
रमा की बात से मैं और हिल गया.
मैं- पांच साल बाद, पर क्यों . और क्या पहले भैया रोज आते थे यहाँ
रमा- रोज तो नहीं पर तीसरे-चौथे दिन जरुर आते थे. फिर अचानक से उनका आना बंद हो गया.
पांच साल से भैया ने मुह मोड़ा हुआ था मलिकपुर से और फिर अचानक ही वो उस दिन आते है जब मैंने सूरजभान को लगभग मार ही दिया था और रमा बताती है की उन दोनों में कोई दोस्ती नहीं है . खैर मैंने रमा से वादा किया की मैं उस से मिलता रहूँगा और जो भी कुछ मेरे मतलब का उसे मालूम हो वो मुझे बतादे. वापसी में मेरा मन था की कुवे पर ही सो जाऊ . रस्ते में मैंने देखा की एक जगह राय साहब की गाड़ी खड़ी थी . जंगल के घने हिस्से में राय साहब की गाड़ी का होना अटपटा सा लगा मुझे. मैंने गाड़ी को देखा कोई नहीं था अन्दर.
“बाप, क्या करने आया होगा इधर ” मैंने अपनी साइकिल एक तरफ लगाई और झाड़ियो में छुप गया आज मुझे मालूम करना ही था की बाप के मन में क्या चल रहा था ..........................