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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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एक ही साइड होगी कबीर और निशा की बाकी सब मिथ्या
मतलब दोनो को आमने सामने खड़े कर दोगे आप आखिरी में।
 

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#61



उस दोपहर मैं कुछ कपडे लेने अपने चोबारे में गया . कुछ पुराणी चीजे थी जरुरत की मैंने सोचा की इनको चाची के घर ही ले चलता हूँ. फिर देखा की चोबारे की सफाई काफी दिनों से हुई नहीं सोचा की चंपा को बोल दू पर फिर विचार किया छोटे से काम के लिए उसे क्या परेशां करना . इसी काम में थोडा धुल-मिटटी में सन गया मैं . मैंने अपने कपडे उतारे और बाथरूम की तरफ बढ़ गया.

दरवाजा आधा खुला था , मैंने पल्ले को और खोल दिया पर जो देखा मैंने कसम से एक पल नजरे ऐसी ठहरी की फिर उठ नहीं पाई. बाथरूम में मेरी आंखो के सामने भाभी पूरी नंगी पानी की बूंदों में लिपटी हुई खड़ी थी . साबुन के झाग में लिपटी भाभी की उन्नत चुचिया . गुलाबी जांघे और उतनी ही गुलाबी भाभी की छोटी सी चूत मेरे होश-हवास छीन ले गयी उस एक छोटे से पल में .

अचानक से ऐसा मामला हो गया जो न उसने सोचा था न मैंने. वो भोचक्की रह गयी मैं हैरान . भाभी के हुस्न का ऐसा दीदार शुक्र था मैं पिघल कर बह नहीं गया. जब भाभी को भान हुआ तो उसने तुरंत दरवाजा बंद कर लिया .अपनी तेज धडकनों को सँभालते हुए मैं तुरंत निचे आ गया.

निचे आते समय मेरी नजर राय साहब के कमरे पर पड़ी . मैंने सोचा की ये जाते कहाँ है . मैं पूरी ताक में था की कब वो चंपा को बुलाएगा चोदने के लिए . मैंने साइकिल उठाई और चौपाल पर जाकर बैठ गया. मेरे दिल में इस जगह को देख कर हमेशा ख्याल आता था की मेरी मोहब्बत की कहानी यही पर पूरी होगी. हाथ जोड़ कर मैंने लाली से माफ़ी मांगी और अपनी आगे की योजना पर विचार करने लगा.



समाज की चाशनी में लिपटे इस गाँव में अवैध संबंधो का तंदूर दहक रहा था . जिसका उधाहरण, लालि, चंपा राय साहब , मंगू-कविता, चाची और मैं खुद दे. मैंने सोचा ऐसे ही सम्बन्ध न जाने और भी गाँव वालो के रहे होंगे पर साले सब ने मुखोटे ओढ़े हुए थे शराफत के.



समझ नहीं आ रहा था की बाप चंपा को कहा किस जगह पेल रहा था . अभिमानु भाई और सूरजभान के बीच क्या था . मेरा दिल कहता था की मंगू को अपना राजदार बना लू पर चाह कर भी मैं उस पर विश्वास बना नहीं पा रहा था . मेरे पास दो सवाल थे एक का जवाब मेरे घर में था उअर दुसरे का जबाब तलाशने के लिए मुझे मलिकपुर जाना था . क्योंकि सूरजभान के बारे में मुझे जो भी जानकारी मिले वो वही से मिलती.

पसरते अँधेरे में घूमते घूमते मैं मलिकपुर में पहुँच गया . दो चार दुकानों का बाजार बंद हो रहा था . मैंने देखा की शराब की दूकान खुली थी . मैं उस तरफ बढ़ गया. मैंने देखा की एक भी आदमी नहीं था वहां पर सिर्फ एक औरत बैठी थी तीखे नैन-नक्श कपडे कम बदन की नुमाइश ज्यादा मैं समझ गया तेज औरत है ये .



“आज शराब नहीं मिलेगी आगे से माल आया नहीं ” उसने मुझे देख कर कहा.

मैं- शराब की तलब नहीं मुझे मेरी जरुरत कुछ और है .

उसने ऊपर से निचे तक देखा मुझे और बोली- तू तो वही है न जिसने सूरजभान का सर फोड़ा था .

मैं-किसी को न बताये तो वही हु मैं

वो- क्या चाहिए तुझे

मैं- कुछ सवाल है मेरे मन में जवाबो की तलाश है

वो- मेरा क्या फायदा तेरी मदद करने में

मैंने जेब से पाच पांच के नोटों की गड्डी निकाली और उसके हाथ में रख दी .

मैं- बहुत मामूली सवाल है मेरे तेरे अड्डे पर सब लोग आते है तू सबको जानती है हम एक दुसरे के काम आ सकते है .

उसने इधर उधर देखा और बोली- अन्दर आजा

मैं दुकान के अन्दर गया उसने दरवाजा बंद कर लिया . मैं उसके उन्नत उभारो को देखता रहा .

वो- क्या चाहता है तू

मैं-सूरजभान के बारे में क्या बता सकती है तू

वो- उसके बारे में क्या बताना सारा गाँव जानता है कितना नीच आदमी है वो .उसके दो ही काम है लोगो को तंग करना और पराई बहन बेटियों पर बुरी नजर डालना

मैं- कोई विरोध नहीं करता उसका .

वो- रुडा चौधरी बाप है उसका , ये गाँव उसकी जागीर है यहाँ पत्ता तक नहीं हिलता उसकी मर्जी के बिना . और फिर गाँव वाले क्या विरोध करेंगे. ये गाँव नहीं मुर्दा लोगो की बस्ती है जो सर झुका सकते है , गुलामी इनकी नसों में इतना अन्दर तक फ़ैल गयी है की आँखों में आँखे तक नहीं मिला सकते ये लोग.

मैं- तू तो दबंग लगती है . तू नहीं डरती उन लोगो से

वो- नहीं डरती मेरे पास है ही क्या खोने को जो मुझसे छीन लेंगे.

मैं- नाम क्या है तेरा

वो- रमा

मैं- रमा, तू इतना तो समझ ही गयी होगी की मुझे सूरजभान से कितनी नफरत है

रमा- जानती हूँ

मैं- उसके आतंक के अंत के लिए क्या तू मेरी सहायता करेगी मैं तुझे मुह मांगे पैसे दूंगा

रमा- पैसे नहीं चाहिए , क्या तू वादा कर सकता है की तू उसे मार देगा

मैं- इच्छा तो मेरी भी यही है . पर तू क्यों चाहती है ऐसा

रमा- उसकी वजह से मेरी बेटी को मरना पड़ा था .

मैंने रमा के कंधे पर हाथ रखा और बोला- मैं तुझसे वादा करता हु उसकी खाल जरुर उतारूंगा . एक बात बता तू अभिमानु ठाकुर को जानती है .

रमा- जानती हूँ

मैं- अभी मानु और सूरजभान की दोस्ती कैसी है . मेरा मतलब अभिमानु आते जाते रहता होगा यहाँ

रमा ने अजीब नजरो से देखा मुझे और बोली- सूरजभान से अभीमानु ठाकुर की दोस्ती. तुझे तो बिन पिए ही नशा हो रहा है .

मैं- कुछ समझा नहीं

रमा- अभिमानु शीतल जल है और सूरजभान तेल . दोनों अलग है उनमे दोस्ती मुमकिन नहीं

मैं- पर उस दिन जब मैंने सूरजभान को मारा तूने भी देखा होगा मेरा भाई कैसे उसे अपने सीने से लगाया था .

रमा- यही बात मुझे बहुत दिन से खटक रही है . अभिमानु ठाकुर ने पुरे पांच साल बाद इस गाँव में कदम रखा था .

रमा की बात से मैं और हिल गया.

मैं- पांच साल बाद, पर क्यों . और क्या पहले भैया रोज आते थे यहाँ

रमा- रोज तो नहीं पर तीसरे-चौथे दिन जरुर आते थे. फिर अचानक से उनका आना बंद हो गया.

पांच साल से भैया ने मुह मोड़ा हुआ था मलिकपुर से और फिर अचानक ही वो उस दिन आते है जब मैंने सूरजभान को लगभग मार ही दिया था और रमा बताती है की उन दोनों में कोई दोस्ती नहीं है . खैर मैंने रमा से वादा किया की मैं उस से मिलता रहूँगा और जो भी कुछ मेरे मतलब का उसे मालूम हो वो मुझे बतादे. वापसी में मेरा मन था की कुवे पर ही सो जाऊ . रस्ते में मैंने देखा की एक जगह राय साहब की गाड़ी खड़ी थी . जंगल के घने हिस्से में राय साहब की गाड़ी का होना अटपटा सा लगा मुझे. मैंने गाड़ी को देखा कोई नहीं था अन्दर.

“बाप, क्या करने आया होगा इधर ” मैंने अपनी साइकिल एक तरफ लगाई और झाड़ियो में छुप गया आज मुझे मालूम करना ही था की बाप के मन में क्या चल रहा था ..........................
:claps: jabardast, kahani ka aalam hi kuch nashe wala hai, jitna piyo utna kum lagti hai.

मैंने रमा के कंधे पर हाथ रखा और बोला- मैं तुझसे वादा करता हु उसकी खाल जरुर उतारूंगा . एक बात बता तू अभिमानु ठाकुर को जानती है
:laughing: kitni baar pelega be usko, ab kya khaal udhed ke kapde silega
 

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#62

कुछ देर बीती , फिर और देर हुई और होती ही गयी . राय साहब का कहें कोई पता नहीं था. इंतज़ार करते हुए मैं थकने लगा था.इतने बड़े जंगल में मैं तलाश करू तो कहाँ करू न जाने किस दिशा में गए होंगे वो. मेरी आँखे नींद के मारे झूलने लगी थी की तभी जंगल एक चिंघाड़ से गूंज उठा . आवाज इतने करीब से आई थी की मैं बुरी तरह से हिल गया.

आज जंगल शांत नहीं था और मुझे तुरंत समझ आ गया की शिकारी निकल पड़ा है शिकार में पर वो ये नहीं जानता था की मैं भी हूँ यहाँ .मैं आवाज की दिशा में दौड़ा. झुरमुट पार करके मैं खुली जगह में पहुंचा तो देखा की एक बड़े से पत्थर पर वो ही आदमखोर बैठा है . उसकी पीठ मेरी तरफ थी पर न जाने कैसे उसे मेरी उपस्तिथि का भान हो गया था .

गर्दन पीछे घुमा कर उसने अपनी सुलगती आँखों से मुझे देखा . मैं भी खुल कर उसके सामने आ गया. अँधेरी रात में भी हम दोनों एक दुसरे को घूर रहे थे . समय को बस इतंजार था की पहला वार कौन करे .क्योंकि आज मौका भी था दस्तूर भी था और ये मैदान भी . आज या तो उसकी कहानी खत्म होती या फिर मेरी. एक छलांग में ही वो तुरंत पत्थर से मेरे सामने आकर खड़ा हो गया.

मैंने अपना घुटना उसके पेट में मारा और उछलते हुए उसके सर पर वार किया. ऐसा लगा की जैसे पत्थर पर हाथ दे मारा हो मैंने. उसने प्रतिकार किया और मुझे धक्का दिया मैं थोड़ी दूर एक सूखे लट्ठे पर जाकर गिरा. इस से पहले की मैं उठ पाता उसने अपने पैर के पंजे से मेरे पेट पर मारा.

दुसरे वार को मैंने हाथो से रोका और उसे हवा में उछाल दिया. न जाने क्यों मुझे वो कमजोर सा लग रहा था . तबेले वाली मुठभेड़ में भी मैंने ऐसा ही महसूस किया था .मेरे हाथ में एक पत्थर आ गया जो मैंने उसके सर पर दे मारा . वो चिंघाड़ उठा और अगले ही पल उसने मुझे कंधो से पकड़ कर उठा लिया मैं हवा में हाथ पैर मारने लगा. कंधो से होते हुए उसकी लम्बी उंगलिया मेरी गर्दन पर कसने लगी . मेरी साँसे फूलने लगी पर तभी उसने अपनी पकड़ ढीली कर दी और मुझे फेंक दिया .

मै हैरान हो गया ये दूसरी बार था जब वो चाहता तो मुझे मार सकता था पर उसने ऐसा नहीं किया . अपने आप को संभाल ही रहा था मैं की तभी मुझे गाड़ी चालू होने की आवाज सुनाई दी .मैं तुरंत उस दिशा में दौड़ा पर मुझे थोड़ी देर हो गयी गाड़ी जा चुकी थी . मैंने अपनी साइकिल उठाई और तुरंत गाँव की तरफ मोड़ दी. जितना तेज मैं उसे चला सकता था उतनी तेज मैंने कोशिश की . घर पहुंचा , सांस फूली हुई थी . मैं तुरंत पिताजी के कमरे के पास पहुंचा और दरवाजे को धक्का दिया. दरवाजा अन्दर से बंद था .

“पिताजी दरवाजा खोलिए ” मैंने किवाड़ पिटा

“हम व्यस्त है अभी ” अन्दर से आवाज आई

मैं- पिताजी दरवाजा खोलिए अभी के अभी

कुछ देर ख़ामोशी छाई रही इस से पहले की मैं आज दरवाजे को तोड़ देता अन्दर से दरवाजा खुला . मैं कमरे में घुस गया .पिताजी के हाथ में जाम था . टेबल पर एक किताब खुली थी .

मैं- जंगल में क्या कर रहे थे आप

पिताजी ने किताब बंद करके रखी और बोली- जंगल में जाना कोई गुनाह तो नहीं . हमें लगता है की इतनी आजादी तो है हमें की अपनी मर्जी से कही भी आ सके जा सके.

मैं- ये मेरे सवाल का जवाब नहीं है पिताजी

पिताजी- हम जरुरी नहीं समझते तुम्हारे सवालो का जवाब देना . रात बहुत हुई है सो जाओ जाकर

मैं- आपको जवाब देना होगा. आप अभी जवाब देंगे मुझे .

पिताजी ने अजीब नजरो से देखा मुझे और बोले- अभी तुम इतने बड़े नहीं हुए हो की हमसे नजरे मिला कर बात कर सको

मैं-नजरे छिपा कर तो आप भागे थे जंगल से . मैंने आपको पहचान लिया है आपके अन्दर छुपे उस शैतान को पहचान लिया है मैं जान चूका हूँ की वो हमलावर आदमखोर कोई और नहीं मेरा बाप है .

जिन्दगी में ये दूसरा अवसर था जब मैंने राय साहब के सामने ऊँची आवाज की थी .

राय साहब ने अपनी ऐनक उतारी उसे साफ़ किया और दुबारा पहनते हुए बोले- माना की हौंसला बहुत है तुममे बरखुरदार पर ये इल्जाम लगाते हुए तुम्हे सोचना चाहिए था क्योंकि हम चाहे तो इसी समय तुम्हारी जीभ खींच ली जाएगी.

मैं- ये ढकोसले, ये शान ओ शोकत ये झूठी नवाबी का चोला उतार कर फेंक दीजिये राय साहब .मैं जानता हूँ वो हमलावर आप ही है .

पिताजी ने जाम दुबारा उठा लिया और बोले- इस यकीन की वजह जानने में दिलचश्पी है हमें

मैं-क्योंकि मैं भी उसी जगह मोजूद था मेरी मुठभेड़ हुई उसी हमलावर से और जब मैं उसके पीछे था ठीक उसी समय आप की गाडी वहां से निकली . क्या ये महज इतेफाक है .

पिताजी ने शराब का एक घूँट गले के निचे उतारा और बोले-इत्तेफाक तू जनता ही क्या है इत्तेफाक के बारे में . समस्या ये नहीं है की हमारी गाड़ी वहां क्या कर रही थी समस्या ये है की जमीनों के साथ साथ जंगल को भी तुमने अपनी मिलकियत समझ लिया है किसी और का जंगल में जाना गवारा नहीं तुम्हे

मैं- कितना कमजोर बहाना है ये . चलो मान लिया की मुझ पर हमला होना और हमलावर का उसी समय भागना और आपका भी वही से एक साथ निकलना संयोग ही था पर इतनी रातको ऐसा क्या काम हुआ जो राय साहब को जंगल में जाना पड़ा.

पिताजी- हमने कहा न तुम्हे ये जानने की जरुरत नहीं

मैं- जरुरत है मुझे. गाँव के लोग मारे जा रहे है . गाँव की सुरक्षा मेरी जिम्मेदारी है

पिताजी- बेशक तुम्हारी जिम्मेदारी है पर तुम्हे यहाँ मेरी रात ख़राब करने की जगह कातिल को तलाशना चाहिए

मैं- उसे तो मैं तलाश लूँगा और जिस दिन ऐसा होगा मैं हर लिहाज भूल जाऊंगा.

गुस्से से दनदनाते हुए मैं कमरे से बाहर निकला . पहले चंपा के साथ सम्बन्ध और फिर ये घटना मैंने सोच लिया राय सहाब के चेहरे पर चढ़े मुखोटे को उसी पंचायत में उतारूंगा जहाँ लाली को फांसी दी गयी थी .




सुबह होते ही मैं उसी जगह पर पहुँच गया और वहां की भोगोलिक स्तिथि को समझने की कोशिश करने लगा. चारो दिशाओ में मैंने खूब छानबीन की तीन दिशाओ में मुझे कुछ नहीं मिला पर चौथी दिशा में काफी चलने के बाद मैं संकरी झाड़ियो से होते हुए उस जगह पर पहुँच गया जो मुझे हैरान कर गयी . मैं काले खंडहर के सामने खड़ा था .
:hinthint2: baap se bhid raha hai, baap baap hota hai, beshak werewolf banne wala hai par baap ke paas zarur kuch hukum ka ikka hoga. aage dekhte kya hota hai
 

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#63

क्या पिताजी निशा से मिलने आये थे या फिर वो किसी तरह से जानते है निशा को मैंने खुद से सवाल किया और फिर खुद ही नकार दिया क्योंकि चारो दिशाओ में से कोई न कोई कहीं न कहीं तो जायेगी ही . अंजुली भर कर मैंने तालाब के पानी से अपने गले को तर किया और सीढिया चढ़ते हुए खंडहर में घुस गया. कुछ भी ऐसा नहीं था जो बताये की किसी और की आमद हुई हो वहां पर . फिर भी मैंने इस खंडहर को तलाशने का सोचा .

ऐसा कुछ भी नहीं था जो इस जगह को खास बनाये सिवाय निशा की मोजुदगी के. इक तरफ से ऊपर आती सीढिया जो घूम पर पीछे उस पगडण्डी पर जाती थी. मंदिर की गुम्बद नुमा छत और दो पायो के बीच तीन कमरे जैसे बरामदे. एक तरफ बड़ी दीवारे थी दूजी तरफ कुछ नहीं .राय साहब जैसा सक्श बिना किसी बात के जंगल में क्यों जायेगा इतनी रात को . ये बात पच नहीं रही थी मुझे.

निशा जब साथ होती थी तो ये जगह किसी जन्नत से कम नहीं लगती थी पर अभी यहाँ पर घोर सन्नाटा पसरा हुआ था . खैर, भूख भी लगी थी तो मैं वापिस कुवे पर चला गया . देखा चंपा घास खोद रही थी मैंने उसे अपने पास बुलाया

मैं- कुछ है क्या खाने को

चंपा- नहीं मालूम होता की तू यहाँ है तो ले आती खाना

मैं- कोई बात नहीं

मैंने चारपाई बाहर निकाली और लेट गया .चंपा थोड़ी दूर बैठ गयी मूढे पर

मैं- आज मजदुर नहीं आये क्या .

चंपा- पता नहीं क्यों नहीं आये

मैं- मंगू भी नहीं दिख रहा

चंपा- वो शहर गया है अभिमानु के साथ

मैं-किसलिए

चंपा- ये तो नहीं मालूम

मैंने एक नजर चंपा की फूली हुई चुचियो पर डाली और बोला- तू बता कैसा चल रहा है तेरा

चंपा- बस ठीक ही हूँ

मैं-तू आजकल घर नहीं आती

चंपा- तूने ही तो कहा था थोड़े दिन न आऊ

मैं- मेरा मतलब था की बच्चा गिराने की वजह से कमजोरी लगेगी तो आराम करना पर इतना भी आराम नहीं करना तुझे. वैसे मुझे मालूम है की मंगू ने नहीं चोदा तुझे. तू झूठ बोली मेरे से

चंपा- मैं तुझसे कभी झूठ नहीं बोलती

मैं- मंगू ने खुद कहा मुझसे

चंपा- कल को तू मुझे चोद रहा होता तो क्या तू ये बात कबूल कर लेता

मैं- मैं नहीं मानता तेरी बात क्योंकि मंगू किसी और से प्यार करता था .

चंपा- चूत मरवाई को प्यार नहीं कहते कबीर. उस रांड कविता के लिए मंगू एक खिलौना था बस जिस से वो खेल रही थी .

मैं- मंगू हद से जायदा मोहब्बत करता था उस से

चंपा- मुफ्त की चूत बड़ी प्यारी लगती है कबीर. मंगू को चूत चाहिए था कविता को लंड खुमारी प्यार लगेगी ही .

मैं- तू बहुत बड़ा आरोप लगा रही है

चंपा- मैं बस सच कह रही हूँ

मैं चंपा को देखता रहा .

चंपा- अब तू मुझे बता चुदाई के लिए आदमी किसी सुरक्षित स्थान की तलाश करेगा की नहीं

मैं- बिलकुल

चंपा- कविता ज्यादातर अकेली रहती थी वैध कभी होता कभी नहीं . तो जब घर पर गांड मरवा सकती थी वो तो जंगल में क्या माँ चुदाने गयी थी .

मैंने चंपा के हसीं चेहरे को देखा. लडकिया गाली बकते समय और भी प्यारी लगती थी. अफ़सोस इस बात का था की मेरे पास कोई जवाब नहीं था .

चंपा- मुझे पूर्ण विश्वास है की उसका कोई और यार था जिससे चुदने वो जंगल में गयी थी और तभी उस पर हमला हुआ

मैं- क्या ऐसा नहीं हो सकता की किसी ने उस पर हमला किया जान बूझ कर जंगल में बुलाया ताकि शक उस आदमखोर पर जाये

चंपा- हो सकता है

मेरे मन में था की सीधे चंपा से पुछू की राय साहब ने कैसे चोदा उसे पर मैं पूछने से कतरा रहा था .

मैं- तुझे क्या लगता है की वो दूसरा कौन होगा जिस से कविता चुदती होगी . वैध जी की गैर मोजुदगी में कोई तो आता होगा उसके घर .

चंपा- ये अनुमान लगाना बहुत मुश्किल है क्योंकि कोई भी बीमारी का बहाना करके जा सकता था उनके घर

कविता चालू औरत थी चंपा की इस बात को पुख्ता कविता की वो हरकत कर रही थी जब उसने मेरा लंड चूसने की हरकत की थी.

मैं- मुझे भी लेनी है तेरी

चंपा ने मेरी बात बहुत गौर से सुनी और बोली- जानता है मैं हमेशा से चाहती थी तेरे साथ ये सब करना पर मैं तुझे तुझसे ज्यादा जानती हूँ तू ये कह रहा है क्योंकि तू मेरे मन की थाह लेना चाहता है .ऐसे कितने लम्हे आये गए जब हम एक हो सकते थे पर तू न जाने किस मिटटी का बना है और मुझे अभिमान है इस बात का की नियति ने मुझे तुझ जैसा दोस्त दिया है जो ये जानते हुए भी की मैं गलत हु मेरे साथ है .

मैं- फिर भी मुझे लेनी है

चंपा उठी और सलवार का नाडा खोल दिया मेरे सामने सलवार उसके पैरो में गिर गयी.

“ले फिर कर ले तेरी मनचाही ” उसने कहा

मैं- अभी नहीं जब मेरा मन करेगा तब

चंपा- ये खेल मत खेल मेरे साथ तू जो जानना चाहता है कह तो सही मुझे

मैं- मुझे लगता है की चाची और राय साहब के बीच चुदाई होती है

मेरी बात सुनकर चंपा की आँखे बाहर ही आ गयी.

चंपा- असंभव है ये . चाची कदापि ऐसा नहीं करेगी

मैं- चाची नहीं करेगी राय साहब तो कर सकते है न और दोनों के पास वजह भी तो है दोनों अकेलेपन से जूझ रहे है और फिर घर में ही जब सुख मिल सकता है तो क्या रोकेगा उनको.

चंपा - चाची बहुत नेक औरत है

मैं-नेक तो तू भी है पर अपने ही भाई का बिस्तर गर्म करती है जब तू कर सकती है तो राय साहब अपने भाई की बीवी को क्यों नहीं चोद सकते.

मैंने अपना पासा द्रढ़ता से फेंका.

चंपा-मानती हूँ चाची प्यासी है कितनी ही बार मैंने उसकी चूत का पानी निकाला है पर फिर भी मैं कहूँगी की तेरी कही बात कोई कल्पना है

मैं- मैं सच कह रहा हूँ , मैंने राय साहब के कमरे में किसी को देखा था .

मेरी बात सुनकर चंपा के माथे पर बल पड़ गये.

मैं- राय साहब अकेले है उनको भी तो इस चीज की जरुरत है और जब घर में ही चूत मिले तो उसके मजे ही मजे तू तो समझती ही हैं न

चंपा इस से पहले की मेरी बात का जवाब देती . पगडण्डी से आते मैंने राय साहब को देखा .

पिताजी ने एक नजर हम दोनों पर डाली और फिर चंपा से बोले- हमने तुमसे कहा था की तुम्हे कही चलना है हमारे साथ . हम गाड़ी में इंतजार कर रहे है तुम्हारा इतना कह कर पिताजी वापिस मुड गए. मैंने चंपा के चेहरे पर एक अजीब कशमकश देखि.
:blush: champa bhi chameli ka fool kabir ko sughaane wali hai, khoob jamega rang jab mil baithenge teen yaar, champa, kabir aur kabir ki foolan
 

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#64

“कहाँ जाना है आपको ” मैंने राय साहब से पूछा

पिताजी ने एक नजर मुझपर डाली और बोले- तुम्हारा जानना जरुरी नहीं है .

मैं- ये फिर कभी जाएगी आप के साथ मुझसे इस से कुछ काम है बाद में आएगी ये

पिताजी- चंपा तूने सुना नहीं हमने क्या कहा

मैं- चंपा ने सुना भी और देख भी रही है पर ये अभी यही रहेगी.

पिताजी ने गहरी नजरो से देखा चंपा को उसने अपने कदम आगे बढ़ाये की मैंने उसकी कलाई पकड़ ली .

“बदतमीजी एक हद तक ही बर्दास्त के काबिल रहती है बरखुरदार ” इस बार पिताजी थोडा तल्ख़ थे.

चंपा - जाने दे कबीर, मैं बाद में मिलूंगी तुझे.

मैं चाहता तो नहीं था पर चंपा की आँखों में एक विनती सी थी .दस्तूर तो ये था की चंपा अपनी चूत किसी को भी दे उसकी मर्जी पर न जाने क्यों मुझे बुरा बहुत लगने लगा था . मैंने रजाई ओढ़ी और सोने की कोशिश करने लगा क्योंकि नींद ही मेर सर के दर्द को मिटा सकती थी .

नींद उचटी तो पाया की अँधेरा घिरा हुआ था . आसमान में कुछ नहीं था काली रात के सिवाय . मटके से पानी पीने आया तो देखा की कुवे की मुंडेर पर निशा बैठी थी .

मैं- तू कब आई

निशा- तूने देखा तभी

मैं- मुझे जगा लेती और बाहर क्यों बैठी है

निशा- अजब सा सकून है तेरे दर पर कदम अपने आप बढ़ने लगे है इस दहलीज की तरफ .

मैं- जहाँ तक तेरी नजर देखे सब कुछ तेरा ही तो है

निशा- बेशक ,पर मुझे क्या मोह क्या चाहत जो कुछ है तू है

मैं- कहती है तू मानती तो नहीं

निशा-मैं मानु न मानु ये रात सब जानती है

मैं- अन्दर आजा

मैंने पानी पिया और हम अन्दर आ गए.

निशा मेरी रजाई में घुस कर बैठ गयी और बोली- क्या बात है कुछ परेशान से लगते हो कुंवर जी

मैं - वही घर की परेशानी . चंपा और राय साहब का अलग ही नाटक चल रहा है .

निशा- बड़े रंगीले है पिताजी तुम्हारे. तुम्हे बुरा लगता है क्योंकि वो बाप है तुम्हारा पर ठाकुरों को विरासत में अय्याशी ही मिलती है . खून में दौड़ता है जिस्मो को पाने का नशा. इनको लगता है की दुनिया में जो भी मिले उसे अपने निचे पटक लो.

मैं- कहती तो तू सही है मेरी जाना पर क्या करू तू ही बता

निशा- जीने दे उनको अपनी जिन्दगी . चंपा को ठीक लगता है तो चलने दे जो चल रहा है .

मैं- बात सिर्फ इतनी सी नहीं है मेरी समस्या गाँव वालो की सुरक्षा की भी है . ये जो सिलसिला शुरू हुआ है इसका अंत न जाने क्या होगा

निशा-जो भी होगा ठीक ही होगा

मैं- तू कर न मेरी मदद .

निशा- क्या चाहिए तुझे बता

मैं- कविता उस रात जंगल में क्या कर रही थी इसका जवाब चाहिए और कल राय साहब जंगल में क्या कर रहे थे ये भी .

निशा-जंगल का हमारे जीवन में बहुत महत्त्व है कबीर. जंगल साक्षात् जीवन है क्या नहीं देता ये तुमको. खाना , पानी इंधन, जडीबुटी . पर लोग इसको भूलने लगे है . कितनी ही लोग इसको ख़राब कर रहे है , मतलबी इंसानी जात . ये लोग भी अपना कोई मकसद साध रहे होंगे.

मैं- क्या पिताजी कल तेरे ठिकाने की तरफ आये थे .

निशा- वहां कोई नहीं आता , भुला दी गयी एक कहानी है वो जिसे मैं और तू जी रहे है . क्या हुआ कभी कोई पशु बेशक आ निकले पर इन्सान नहीं झांकता उधर. दूसरी बात वो एक शापित जगह है और इन्सान एक कमजोर कौम है जिसके दिल में कुछ नहीं सिवाय खौफ के .

मैं- समझ नहीं आ रहा की ऐसा क्या है इस जंगल में जो कविता और राय साहब को खींच लाये . तूने तो देखा था न कविता को

निशा- मुझे अफ़सोस है की मैं उसे बचा नहीं पाई. वैसे क्या तूने चंपा और राय साहब को देखा हमबिस्तर होते हुए

मैं- नहीं भाभी ने बताया मुझे

निशा - कानो का कच्चा है क्या तू . तूने मान लिया

मैं- और वो टूटी चुडिया

निशा- बड़े भोले हो कुंवर जी , तुम्हे रंगे हाथ पकड़ना चाहिए उन दोनों को . भाभी ने अगर उनको देखा तो उसने तुम्हारे भैया को क्यों नहीं बताया उसने क्यों प्रतिकार नहीं किया की घर में ये अनैतिक काम क्यों हो रहा है पर उसने चुप्पी साधी और तुम्हे बताया .मैं पूछती हु क्यों तुम ही क्यों

मेरे पास कोई जवाब नहीं था निशा की बात का

निशा- जो राज घर में दबे होते है उनकी जड़े बहुत गहरी होती है . मैं तुम्हे रास्ता दिखा सकती हूँ चलना तुम्हे खुद पड़ेगा .

मैं-वही कोशिस कर रहा हूँ . एक मेरे घर की समस्या दूजा वो आदमखोर और तीसरा एक चुतिया वो सूरजभान कुंडली मार कर मेरे सुख पर बैठ गए है .एक तू ही तो है जिसको देख कर मैं अपना गम भूल जाता हूँ तू एक बार कह तो सही मैं सब कुछ छोड़ दू तेरे लिए तू कहे तो उसी खंडहर को हम अपना आशियाँ बना लेंगे. तू एक बार थाम तो सही हाथ मेरा

निशा- न मुझमे इतनी शक्ति है कबीर न मेरी नियति में तेरा साथ है ये एक अकाट्य सत्य है

मैं- तू ही बता मैं क्या करू

निशा- तू खोज उस सच को जो तेरी दहलीज में छुपा है . तुझे लगता है तेरे पिता गलत है तो साबित कर उनको गलत . इतिहास को तलाशना बहुत मुश्किल होता है कबीर . गड़े मुर्दे उख्ड़ेंगे तो उनकी बदबू जीना हराम कर देगी तेरा. कड़ीयो को जोड़ना सीख . पहली कड़ी तुझे तलाशनी है तो देख वो कमजोर कड़ी कहाँ है .

मैं- ठीक है चंपा से कल खुल कर पूछताछ करूँगा.

निशा- लोगो को पहचान परख उनको

मैं- समझ गया .

निशा ने मेरे गालो को चूमा और बोली- कल राय साहब किसी आदमी के साथ थे जंगल में . दोनों बड़ी देर तक दोनों कुछ देख रहे थे अनुमान लगा रहे थे

मैं- क्या देख रहे थे

निशा- शायद कुछ ऐसा जो तू जानना चाहता है .
kahani zor pe zor pakad rahi hai, beshak sahi hai ki hum anuman nahi laga ki kahani me kya hone wala hai, parantu har update ki choti si kadi me jo mithas hai, ek bhola bhala reader usi me khush hai, ek reader bus kahani ko sunhere raste sa pahta hai, jispe chalne me maja hi maja hai, bus manjil aayi to ye rasta khatam nahi ho jaae
 

Ajju Landwalia

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Shandar update Fauji Bhai,

Aakhir wo din aa hi gaya jiska Kabir aur Nisha ko besabri se intezar tha........

Charo taraf rang ud rahe he.....is rango ke tayohar me hi Kabir apni aur Nisha ki jindgi me indradhanush ke sabhi rang bharna chahta he.......

Lekin ye Jeep me kaun aaya he.....shayad Rai Sahab ya fir Abhimanu????????

Update ke intezar rahega Bhai
 

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#68

मैं- क्या भैया किसी लड़की से प्रेम करते थे .

चाची- जहाँ तक मैं अभिमानु को जानती हूँ नहीं , छोटी उम्र से ही वो व्यापार संभाल रहा है. उसे किताबो का शौक रहा है . सबसे आदर से बोलना सबका ख्याल रखना परिवार को हमेशा से पहली प्राथमिकता रखना बस यही जिन्दगी है उसकी.

मैं- जहाँ तक मुझे याद है मैंने भैया को कभी पढ़ते नहीं देखा

चाची- तूने उसे देखा ही कहाँ है

बात तो सही थी चाची की मोजुदा हालातो को देखतेहुए मैं समझ सकता था इस बात की गहराई को .

मैं- कितनी बार भैया के कमरे में गया हूँ मैंने वहां भी किताबो का ढेर नहीं देखा.

चाची- क्योंकि तू उस अभिमानु को जानता है जिसे तू आज देखता है . मैं उस अभिमानु की बात कर रही हूँ जिसे मैंने कल देखा था .

मैं- उसी अभिमानु को जानना चाहता हूँ मैं

चाची- उसने किसी से प्यार किया होगा ये मैं नहीं जानती पर अब इन बातो का कोई मतलब नहीं है कबीर, हमेशा ये याद रखना अब उसकी ग्रहस्थी ही उसका सबकुछ हो. मैं जानती हूँ आजकल तू किसी खुराफात में है पर इतना याद रहे तेरी वजह से किसी का घर न उजड़े.

मैं- और जो तेरा घर उजड़ा पड़ा है उसका क्या . चाचा के बिना तू कैसे जी रही है कोई नहीं समझता सिवाय तेरे खुद के. आदमी मर जाये तो औरत समझ जाती है , जीवन से समझौता कर लेती है पर चाचा ऐसे गया की लौटा नहीं . आज तक तू नहीं जानती वो कहाँ है जिन्दा है भी या नहीं . तेरी गृहस्थी का क्या . इसका कोई जवाब क्यों नहीं मिलता.



चाची ने एक गहरी साँस ली और बोली- तू समझता है न मेरा दुःख तो तू ले आ उसकी कोई खबर . राय साहब और अभिमानु ने दिन रात एक कर दिया था तेरे चाचा की तलाश में पर किस्मत में लिखे को नहीं टाल पाए. मेरे नसीब में जुदाई लिखी है तो ये ही सही .

मैं- कोरी बाते है ये .राय साहब की मर्जी के बिना पत्ता तक नहीं हिल सकता इस इलाके में और पिछले कुछ सालो से उनका भाई गायब है . क्या तुझे कभी हैरानी नहीं हुई इस बात की. मान ले कोई दुश्मन ने कुछ उल्टा-सीधा कर दिया चाचा के साथ तो भी क्या मेरे बाप को मालूम नहीं हुआ होगा. सोच कर देख, लाली और उसके प्रेमी को तलाशने में कितना ही वक्त लगा था फिर चाचा को क्यों नहीं तलाश कर पाया वो इन्सान.

चाची- तू मुझे जेठ जी के खिलाफ भड़का रहा है

मैं- मैं तुझे आइना दिखा रहा हूँ. इस घर की खामोश दीवारे चीखना चाहती है तू मेरी मदद कर जरा

चाची-रसोई की बगल में जो पेंटिंग लगी है उसके पीछे दरवाजा है . उस कमरे में देख ले तुझे कुछ मिले तो .

मैं- इस घर में ऐसा भी कोई कमरा है मुझे आज तक नहीं पता .

चाची- अभिमानु का कमरा था वो किसी ज़माने में .

मैंने चाची के होंठो को चूम लिया और लालटेन लेकर उस तरफ चल दिया. हमेशा की तरह दरवाजा खुला पड़ा था . सारा घर सन्नाटे में डूबा था . मैंने उस बड़ी सी पेंटिंग को हटाया . दरवाजा मेरे सामने था . कोई ताला नहीं लगा था सिवाय एक कुण्डी के जो जंग खाई थी . देखने से ही मालूम होता था की बरसों से इसे छुआ नहीं गया. चुर्र्रर्र्र की आवाज करते हुए दरवाजा खुला और मैं अन्दर गया. कमरे की हालत ठीक नहीं थी . चारो तरफ जाले लगे थे . सीलन थी मैंने मुह पर कपडा बाँधा और थोड़े जाले हटाये. सामने एक बड़ी सी मेज थी . कुछ कुर्सिया थी .

लालटेन की लौ थोड़ी और ऊंची की . कमरे में शेल्फ ही शेल्फ थी जिनमे किताबे सलीके से लगाई गयी थी. मैंने धुल साफ़ की . तरह तरह की किताबे थी.टेबल पर कोरे कागज पड़े थे.



“अभिमानु ठाकुर , क्या छिपाया है तुमने अपने अतीत में ” मैंने कहा .

कोने में एक अलमारी थी मैंने उसे खोला , जिसमे कुछ कागज रखे थे. मैंने उन्हें देखा , वो कागज नहीं थे वो खत थे.

“हो सकता है के बहार आये पर सरसों पीली न हो .

हो सकता है की बारिश आये पर धरती गीली न हो

पर ये नहीं हो सकता मेरी जान की तेरी याद आये और ये आँखे गीली न हो ” मन ही मन मैंने शायरी की दाद दी.

कागज पर धुल थी वक्त की मार ने उसे पुराना कर दिया था पर उस पर लिखे शब्द आज भी उतने ही कारगर थे जितना किसी ज़माने में रहे होंगे. कुछ और पन्ने थे जिन पर बस शायरिया ही लिखी थी . किस तरह के खत थे ये जिनमे केवल शायरियो के माध्यम से ही बाते हो रही थी. मेरा भाई गजब था ये मैंने उस रात जाना था.



तमाम बाते ये तो पुख्ता कर रही थी की भैया की जिदंगी में कोई लड़की थी , पर क्या वो रुडा की बेटी थी अब ये मालूम करने की बात थी. लड़की थी तो कोई तस्वीर भी रही होगी उसकी जरुर. मैंने सब कुछ देख मारा हर एक किताब का पन्ना पलटा की कही उनमे तो कुछ नहीं छिपाया गया. पर हाथ कुछ नहीं लगा. सुबह होने में थोड़ी ही देर थी और भाभी जल्दी जाग जाती थी मैंने कमरे से निकलने का सोचा दरवाजे के पास पहुंचा ही था की जालो में कैद मुझे कुछ दिखा इस हिस्से पर . मैंने कपडे से उसे साफ़ किया देखा की ये एक तस्वीर थी . ....



खेतो पर पहुंचा तो पाया की हरिया कोचवान की बीवी सरला पहले ही वहां आ चुकी थी . मैंने मंगू से कहा की अब से ये हमारे साथ ही काम करेगी उसे काम समझा दे और हर शाम उसे बिना किसी देरी के मजदूरी का भुगतान करे. कुवे की मुंडेर पर बैठे बैठे मैं बस उस तस्वीर के बारे में ही सोचता रहा . आखिर क्या खास बात थी उस तस्वीर में जो उसे दिवार पर जगह दी गयी थी .

चूँकि आज घर से खाना आया नहीं तो मैंने मंगू को घर भेज दिया खाना लाने के लिए और सरला को अपने पास बुलाया .

मैं- भाभी , मैं तुमसे दो चार बात पूछ सकता हूँ क्या

सरला- जी कुंवर जी

मैं- तुम गाँव में सबको जानती होगी

उसने हाँ में सर हिलाया

मैं- क्या तुम किसी रमा को जानती हो जो कुछ साल पहले अपने गाँव में रहती थी .

सरला- जानती हूँ

मैं- वो गाँव क्यों छोड़ गयी

सरला- उसके पति की मौत हो गयी थी .कोई सहारा नहीं था एक दिन मालूम हुआ की वो गाँव छोड़ गयी.

मैं- खेती करके वो अपना पेट पाल सकती थी फिर ऐसा क्या हुआ जो उसे गाँव छोड़ना पड़ा.

सरला- मैं नहीं जानती कुवर.

मैं- क्या मैं तुम पर पूर्ण विश्वास कर सकता हूँ

सरला- तुमने ऐसे समय पर मुझे और मेरे परिवार को थामा है जब हम टूट चुके थे. तुम्हारा अहसान है मुझ पर मैं हमेशा वैसा ही करुँगी जो तुम कहोगे.

मैं- बढ़िया .

हम बात कर ही रहे थे की तभी मैंने मंगू और भाभी को आते देखा . मंगू के जल्दी आने का मतलब ये ही था की भाभी उसे रस्ते में मिल गए. भाभी ने एक नजर सरला पर डाली और बोली- ये यहाँ क्या कर रही है

मैंने भाभी को बताया की इसे काम पर रखा है .

भाभी ने हम सबको खाना परोसा . खाने के बाद मैंने भाभी से साथ आने को कहा और हम टहलने चल दिए.

भाभी- क्या बात है

मैं- क्या आपके और भैया के बीच सब ठीक चल रहा है

भाभी चलते चलते रुक गयी और बोली- तुम्हे क्या लगता है

मैं- आप बताओ न

भाभी- सब ठीक है

मैं- क्या वो आपसे प्रेम करते है

भाभी- बेशुमार मोहब्बत , इतनी की कोई सोच न सके.

मैं- क्या आप जानती है की भैया ब्याह से पहले किसी लड़की के प्यार करते थे .

भाभी- जानती हूँ . बिलकुल जानती हूँ

मैं- ये जानते हुए भी आपको कोई शिकायत नहीं

भाभी- मुझे भला क्यों शिकायत होगी. अभिमानु जैसे पति किस्मत वाली को ही मिलते है .

मैं- हो सकता है की वो आज भी उसी को चाहते हो .

भाभी- वो आज भी उसी को चाहते है देवर जी.

भाभी की आंखो की चमक ने मेरे विश्वास को कमजोर कर दिया. क्या औरत है ये अपने पति की बुराई को भी हंस कर स्वीकार कर रही है .


मैं- फिर भी तुम उनके साथ हो क्यों...............
ab kahani kuch aur khul rahhi hai dekhte hai aage kya hota....
भाभी की आंखो की चमक ने मेरे विश्वास को कमजोर कर दिया. क्या औरत है ये अपने पति की बुराई को भी हंस कर स्वीकार कर रही है .

मैं- फिर भी तुम उनके साथ हो क्यों...............
:blush: abhimanu ke paas kuch chize jyada hi special hongi
 
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