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#155
इंतज़ार कितना लम्बा हो सकता है मैंने उस रात जाना . मेरे दिल में निशा की चिंता भी थी उसे अकेले कुवे पर छोड़ना ठीक था या नहीं दिल में थोड़ी घबराहट भी थी . एक एक पल मेरे सब्र का इम्तिहान ले रहा था पर खंडहर खामोश था इतना खामोश की मैं अपनी सांसो की आवाज भी सुन सकता था . रात बहुत बीत गयी थी पर साला कोई भी नहीं आया . मैंने जेब से वो तस्वीर निकाली और उसे गौर से देखने लगा. उसे उस पेंटर के बनाए अनुमान से मिलाने की कोशिश करने लगा पर साला दिमाग काम नहीं कर रहा था . मुझसे कुछ तो छूट रहा था .
मैंने खंडहर के उस तहखाने को समझने की कोशिश की , न जाने क्यों मुझे लग रहा था की ये तस्वीर कुछ तो छिपाए हुए है .
“तो यहाँ तक पहुँच ही गए तुम कुंवर ” आवाज मेरे पीछे से आई थी . मैंने पलट कर देखा रमा खड़ी थी .
मैं- शुक्र है कोई तो आया . वर्ना इस तन्हाई ने जीना मुश्किल किया हुआ था मेरा
रमा- जीना तो मुश्किल ही होता है कुंवर
मैं- इतना मुश्किल भी नहीं था पर तुम सब ने इतना चुतियापा फैलाया हुआ है की मेरा जीना मुश्किल ही हुआ है .
रमा- तुमने वो कहावत तो सुनी होगी न कुंवर की जितनी चादर हो उतना ही पैर पसारना चाहिए पर तुम, तुमने तो शामियाना ही बना लिया . क्या नहीं था , क्या नहीं है तुम्हारे पास जो चाहा तुमने पाया सुख किस्मत वालो को मिलता है तुमने सुख की जगह अपने नसीब में दर्द चुना.तुम समझ ही नहीं पाए की कब अतीत की तलाश करते करते तुम खुद अतीत का हिस्सा बन गए हो.
मैं- वापिस लौटने के लिए ही मैंने वो अफवाह फैलाई थी .
रमा- खुद को जासूस समझते हो क्या तुम . तुमने क्या सोचा था तुम जाल फेंक दोगे और कबूतर फंस जायेगा. जो जिन्दगी तुम जी रहे हो न वो जिन्दगी वो दौर मेरी जुती की नोक पर है. बहुत विचार किया फिर सोचा चलो बच्चे की उत्सुकता मिटा ही देती हूँ . वर्ना चाल बड़ी बचकानी थी तुम्हारी . तुम को क्या लागत है . छोटे ठाकुर इतने साल गायब रहे और तुम कल के लौंडे तुम , तुम बीते हुए कल को एक झटके में सामने लाकर खड़ा कर दोगे .
रमा ने दो मशाल और जलाई . तहखाने का हरा फर्श सुनहरी लौ में चमकने लगा.
मैं- तुम शुरू से जानती थी की चाचा के गायब होने की क्या वजह थी . तुम भी शामिल थी उस राज को छिपाने में .
रमा- अब हर कोई तुम्हारे जैसा चुतिया तो नहीं होता न कुंवर. तुम्हे क्या लगता है किसमे इतनी हिम्मत थी जो राय साहब के भाई को गायब कर देता.
मैं- तो शुरू करते है फिर. बताओ शुरू से ये कहानी कैसे शुरू हुई.
रमा---- क्या करेगा कुंवर तू जान कर
मैं-अब तुम भी यहाँ हो हम भी यहाँ है और ये रात बाकी है .
रमा- चलो अगर तुम्हारी यही इच्छा है तो .
मैं- जंगल में तीन नहीं चार लोग थे . इस कहानी में हमेशा से चार लोग थे न
रमा- जान गए तुम
मैंने वो श्वेत श्याम तस्वीर रमा के हाथ में रख दी. रमा ने उस पर हलके से हाथ फेरा .
रमा- अक्सर आसमान में उड़ते परिंदों को ये गुमान हो जाता है की धरती पर खड़े लोग तो कीड़े-मकोड़े है . पर वो ये नहीं जानते कुंवर, की शिकारी का एक वार परिंदे की उड़ान खत्म कर देता है. एक पल में अर्श से फर्श पर आ गिरते है गुरुर की उड़ान वाले.
मैं-क्यों किया ये सब तुमने
रमा- मैंने क्या किया कुछ भी नहीं . मैं तो जी ही रही थी न . क्या चाहती थी मैं कुछ भी तो नहीं . कुछ भी नहीं कुंवर. पर मुझे क्या मिला तिरस्कार, घर्णा और उपहास उड़ाती वो नजरे.
मैं- तुम जलती थी उस से
रमा- मैं जलती थी उस से. मैं. मैं उसकी छाया थी पर गुरुर के नशे में डूबी उसकी आँखे कभी मुझे समझ ही नहीं पायी. उसे बहुत घमंड था रुडा और राय साहब के साथ त्रिकोण बनाया उसने. डेरे की सबसे काबिल थी वो . उसने वो कर दिखाया जो किसी ने सोचा भी नहीं था . उसने कहानी, किवंदिती को सच करके दिखा दिया पर वो ये नहीं जानती थी की लोभ, लालच का मोल चुकाने की औकात नहीं थी उसकी.
रमा ने एक मशाल ली और दिवार पर जमी लताओं में आग लगा दी. जब लपटे थमी तो मैंने वो देखा , जो समझना बहुत मुश्किल था राख से बनी वो तस्वीर मेरे सीने में आग सी लग गयी . लगा की मैं आदमखोर बनने वाला ही हूँ पर मैंने रोका खुद को
रमा- बड़े बुजुर्गो ने हमेशा चेतावनी दी कुंवर की चाहे कुछ भी हो जाये उस स्वर्ण का लालच कभी न करना जो तुम्हारा ना हो . सोना इस दुनिया की सबसे अभिशप्त धातु. इसका मोह , इन्सान को फिर इन्सान नहीं रहने देता उसे जानवर बना देता है .
सुनैना राय साहब और रुडा ने इसी तहखाने में बैठ कर वादा किया था की अगर किवंदिती सच हुई तो वो सोने का कभी लालच नहीं करेंगे . उसे देखेंगे और वापिस कर देंगे. पर मोह कुंवर मोह. सोने की आभा ने उनके मन में लालच का बीज सींच दिया. सुनैना ने वो ही गलती की जो अभिमानु ने की थी , चक्रव्यूह के अंतिम चरण को वो नहीं भेद पाया था सुनैना भी नहीं भेद पायी तब सामने आया इस सोने का मालिक . इन्सान बड़ा नीच किस्म का जानवर है , तब सुनैना ने एक सौदा किया
मैं- कैसा सौदा
रमा- उसने अपनी आत्मा का टुकड़ा गिरवी रख दिया
इंतज़ार कितना लम्बा हो सकता है मैंने उस रात जाना . मेरे दिल में निशा की चिंता भी थी उसे अकेले कुवे पर छोड़ना ठीक था या नहीं दिल में थोड़ी घबराहट भी थी . एक एक पल मेरे सब्र का इम्तिहान ले रहा था पर खंडहर खामोश था इतना खामोश की मैं अपनी सांसो की आवाज भी सुन सकता था . रात बहुत बीत गयी थी पर साला कोई भी नहीं आया . मैंने जेब से वो तस्वीर निकाली और उसे गौर से देखने लगा. उसे उस पेंटर के बनाए अनुमान से मिलाने की कोशिश करने लगा पर साला दिमाग काम नहीं कर रहा था . मुझसे कुछ तो छूट रहा था .
मैंने खंडहर के उस तहखाने को समझने की कोशिश की , न जाने क्यों मुझे लग रहा था की ये तस्वीर कुछ तो छिपाए हुए है .
“तो यहाँ तक पहुँच ही गए तुम कुंवर ” आवाज मेरे पीछे से आई थी . मैंने पलट कर देखा रमा खड़ी थी .
मैं- शुक्र है कोई तो आया . वर्ना इस तन्हाई ने जीना मुश्किल किया हुआ था मेरा
रमा- जीना तो मुश्किल ही होता है कुंवर
मैं- इतना मुश्किल भी नहीं था पर तुम सब ने इतना चुतियापा फैलाया हुआ है की मेरा जीना मुश्किल ही हुआ है .
रमा- तुमने वो कहावत तो सुनी होगी न कुंवर की जितनी चादर हो उतना ही पैर पसारना चाहिए पर तुम, तुमने तो शामियाना ही बना लिया . क्या नहीं था , क्या नहीं है तुम्हारे पास जो चाहा तुमने पाया सुख किस्मत वालो को मिलता है तुमने सुख की जगह अपने नसीब में दर्द चुना.तुम समझ ही नहीं पाए की कब अतीत की तलाश करते करते तुम खुद अतीत का हिस्सा बन गए हो.
मैं- वापिस लौटने के लिए ही मैंने वो अफवाह फैलाई थी .
रमा- खुद को जासूस समझते हो क्या तुम . तुमने क्या सोचा था तुम जाल फेंक दोगे और कबूतर फंस जायेगा. जो जिन्दगी तुम जी रहे हो न वो जिन्दगी वो दौर मेरी जुती की नोक पर है. बहुत विचार किया फिर सोचा चलो बच्चे की उत्सुकता मिटा ही देती हूँ . वर्ना चाल बड़ी बचकानी थी तुम्हारी . तुम को क्या लागत है . छोटे ठाकुर इतने साल गायब रहे और तुम कल के लौंडे तुम , तुम बीते हुए कल को एक झटके में सामने लाकर खड़ा कर दोगे .
रमा ने दो मशाल और जलाई . तहखाने का हरा फर्श सुनहरी लौ में चमकने लगा.
मैं- तुम शुरू से जानती थी की चाचा के गायब होने की क्या वजह थी . तुम भी शामिल थी उस राज को छिपाने में .
रमा- अब हर कोई तुम्हारे जैसा चुतिया तो नहीं होता न कुंवर. तुम्हे क्या लगता है किसमे इतनी हिम्मत थी जो राय साहब के भाई को गायब कर देता.
मैं- तो शुरू करते है फिर. बताओ शुरू से ये कहानी कैसे शुरू हुई.
रमा---- क्या करेगा कुंवर तू जान कर
मैं-अब तुम भी यहाँ हो हम भी यहाँ है और ये रात बाकी है .
रमा- चलो अगर तुम्हारी यही इच्छा है तो .
मैं- जंगल में तीन नहीं चार लोग थे . इस कहानी में हमेशा से चार लोग थे न
रमा- जान गए तुम
मैंने वो श्वेत श्याम तस्वीर रमा के हाथ में रख दी. रमा ने उस पर हलके से हाथ फेरा .
रमा- अक्सर आसमान में उड़ते परिंदों को ये गुमान हो जाता है की धरती पर खड़े लोग तो कीड़े-मकोड़े है . पर वो ये नहीं जानते कुंवर, की शिकारी का एक वार परिंदे की उड़ान खत्म कर देता है. एक पल में अर्श से फर्श पर आ गिरते है गुरुर की उड़ान वाले.
मैं-क्यों किया ये सब तुमने
रमा- मैंने क्या किया कुछ भी नहीं . मैं तो जी ही रही थी न . क्या चाहती थी मैं कुछ भी तो नहीं . कुछ भी नहीं कुंवर. पर मुझे क्या मिला तिरस्कार, घर्णा और उपहास उड़ाती वो नजरे.
मैं- तुम जलती थी उस से
रमा- मैं जलती थी उस से. मैं. मैं उसकी छाया थी पर गुरुर के नशे में डूबी उसकी आँखे कभी मुझे समझ ही नहीं पायी. उसे बहुत घमंड था रुडा और राय साहब के साथ त्रिकोण बनाया उसने. डेरे की सबसे काबिल थी वो . उसने वो कर दिखाया जो किसी ने सोचा भी नहीं था . उसने कहानी, किवंदिती को सच करके दिखा दिया पर वो ये नहीं जानती थी की लोभ, लालच का मोल चुकाने की औकात नहीं थी उसकी.
रमा ने एक मशाल ली और दिवार पर जमी लताओं में आग लगा दी. जब लपटे थमी तो मैंने वो देखा , जो समझना बहुत मुश्किल था राख से बनी वो तस्वीर मेरे सीने में आग सी लग गयी . लगा की मैं आदमखोर बनने वाला ही हूँ पर मैंने रोका खुद को
रमा- बड़े बुजुर्गो ने हमेशा चेतावनी दी कुंवर की चाहे कुछ भी हो जाये उस स्वर्ण का लालच कभी न करना जो तुम्हारा ना हो . सोना इस दुनिया की सबसे अभिशप्त धातु. इसका मोह , इन्सान को फिर इन्सान नहीं रहने देता उसे जानवर बना देता है .
सुनैना राय साहब और रुडा ने इसी तहखाने में बैठ कर वादा किया था की अगर किवंदिती सच हुई तो वो सोने का कभी लालच नहीं करेंगे . उसे देखेंगे और वापिस कर देंगे. पर मोह कुंवर मोह. सोने की आभा ने उनके मन में लालच का बीज सींच दिया. सुनैना ने वो ही गलती की जो अभिमानु ने की थी , चक्रव्यूह के अंतिम चरण को वो नहीं भेद पाया था सुनैना भी नहीं भेद पायी तब सामने आया इस सोने का मालिक . इन्सान बड़ा नीच किस्म का जानवर है , तब सुनैना ने एक सौदा किया
मैं- कैसा सौदा
रमा- उसने अपनी आत्मा का टुकड़ा गिरवी रख दिया